RBSE Solution for Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 2 तुलसीदास

Rajasthan Board RBSE Class 10 Hindi क्षितिज Chapter 2 तुलसीदास

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

तुलसीदास Class 10 1. ‘भृगुसुत’ से तात्पर्य है
(क) परशुराम
(ख) विश्वामित्र
(ग) लक्ष्मण
(घ) राम।

तुलसीदास पाठ के प्रश्न उत्तर 2. ‘रघुकुले भानु’ संज्ञा किस पात्र के लिए आया है
(क) राम
(ख) लक्ष्मण
(ग) विश्वामित्र
(घ) परशुराम।
उत्तर:
1. (क),
2. (क)

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

तुलसीदास के प्रश्न उत्तर प्रश्न 3.
शिव धनुष भंग होने पर कौन कुपित हुआ?
उत्तर:
शिव के धनुष के भंग होने पर परशुराम कुपित हुए।

कक्षा 10 हिंदी पाठ 2 प्रश्न 4.
प्रसंग में ‘गाधिसूनु’ किसके लिए प्रयोग किया गया है ?
उत्तर:
प्रसंग में गाधिसूनु विश्वामित्र के लिए प्रयोग किया गया है।

RBSE Solutions For Class 10 Hindi प्रश्न 5.
परशुराम लक्ष्मण को मंदबुद्धि क्यों कह रहे हैं?
उत्तर:
लक्ष्मण अपने व्यंग्यपूर्ण वचनों से परशुराम को क्रोधित करके, अपने कुल का विनाश करा सकते हैं। इस कारण परशुराम उन्हें मंदबुद्धि बता रहे हैं।

हिंदी पास बुक 10th क्लास प्रश्न 6.
जनक दरबार में बैठी सभा ‘हाय-हाय’ क्यों करने लगी?
उत्तर:
लक्ष्मण के अपमानजनक कटुवचनों से क्रुद्ध होकर, उन्हें मारने के लिए जब परशुराम ने अपना फरसा हाथ में लिया तो सभा रक्तपात के भय से हाय-हाय करने लगी।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

RBSE Solutions For Class 10 Hindi Chapter 2 प्रश्न 7.
शिव धनुष भंग होने पर परशुराम क्यों कुपित हो रहे थे ?
उत्तर:
महाराज जनेक द्वारा आयोजित धनुष यज्ञ में जिस धनुष को राम ने तोड़ा, वह परशुराम के गुरु भगवान शिव का धनुष था। गुरु के धनुष के तोड़े जाने को परशुराम ने गुरु का अपमान माना। इसी कारण परशुराम अत्यन्त कुपित थे और धनुष को तोड़ने वाले को शत्रु के समान मानते हुए, उसे दण्ड देना चाहते थे।

कक्षा 10 पाठ 2 तुलसीदास प्रश्न 8.
शिव का धनुष कैसे टूट गया था?
उत्तर:
लक्ष्मण के अनुसार वह धनुष बहुत पुराना और जीर्ण (कमजोर) था। राम ने तो उसे नया समझकर, उस पर डोरी चढ़ाकर और उसे खींचकरं परखना चाहा था, किन्तु वह तो राम के छूने मात्र से ही टूट गया। राम का उसे तोड़ने का कोई इरादा नहीं था।

कक्षा 10 हिंदी पाठ 2 के प्रश्न उत्तर प्रश्न 9.
“इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं” पंक्ति से लक्ष्मण की कौन-सी विशेषता का पता चलता है ?
उत्तर:
परंशुराम लक्ष्मण को डराने के लिए बार-बार फरसा दिखा रहे थे और धमका रहे थे। लक्ष्मण ने इस पंक्ति द्वारा परशुराम को बता दिया कि वह उनकी धमकियों से डरने वाले व्यक्ति नहीं हैं। इस पंक्ति से ज्ञात होता है कि लक्ष्मण एक निर्भीक वीर पुरुष हैं। उन्हें कोई गर्जन-तर्जन करके दबा अथवा डरा नहीं सकता।

तुलसीदास कक्षा 10 प्रश्न 10.
लक्ष्मण-परशुराम संवाद प्रसंग’ के आधार पर परशुराम के चरित्र की किन्हीं दो विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
लक्ष्मण-परशुराम संवाद प्रसंग’ में परशुराम के चरित्र की दो प्रमुख विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं-उनका क्रोधी होना और आत्मप्रशंसा करना। वह स्वयं कहते हैं कि वह अकरुण और क्रोधी हैं। राजसभा में आते ही वह राम को, राजाओं को और लक्ष्मण को धमकाना आरम्भ कर देते हैं। वह अपनी वीरता और विजयों को अपने ही मुख से बार-बार बखान करते हैं। लक्ष्मण भी कहते हैं-‘अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।’

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

RBSE Class 10 Hindi Solutions प्रश्न 11.
लक्ष्मण परशुराम संवाद’ को कथासार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
महाराज ज़नक ने अपनी पुत्री सीता के स्वयंवर में भगवान शिव के प्राचीन धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने वाले वीर के साथ सीता का विवाह किए जाने की शर्त रखी। अनेक राजाओं ने चेष्टा की किन्तु कोई धनुष को उठा न सका। तब राम ने धनुष पर डोरी चढ़ाकर उसे खींचा तो धनुष बीच से टूट गया।
इसी समय सूचना पाकर मुनि परशुराम उस सभा मंडप में आ पहुँचे। धनुष टूटने का पता चलने पर वह बहुत क्रुद्ध हो गए। वह उनके गुरु भगवान शिव का धनुष था। उन्होंने राजा जनक से पूछा कि धनुष किसने तोड़ा। राम ने उनका क्रोध शांत करने के। लिए कहा कि धनुष को तोड़ने वाला उनको कोई दास ही होगा। यह सुनकर परशुराम भड़क गए। वह कहने लगे कि यह काम सेवक का नहीं शत्रु का है। धनुष तोड़ने वाला राजाओं के बीच से निकलकर अलग खड़ा हो जाय नहीं तो सभी राजा मारे जायेंगे।

यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा कि उन्होंने बचपन में अनेक धनुषियाँ (छोटे धनुष) तोड़ी थीं तब तो मुनि ने क्रोध नहीं किया था। इस धनुष से इतना प्रेम क्यों है? गुरु के धनुष की तुलना साधारण धनुषियों से किए जाने पर परशुराम बहुत क्रोधित हो गए। लक्ष्मण । ने कहा कि धनुष तो राम के छूते ही टूट गया। इसमें उनका कोई दोष नहीं है। मुनि अनावश्यक ही इतना क्रोध कर रहे हैं। – यह सुनते ही परशुराम ने लक्ष्मण को फटकराते हुए कठोर वचन कहे। अपने को क्षत्रियों का शत्रु बताते हुए अपनी वीरता का बखान किया। लक्ष्मण ने कहा-“आप तो फैंक से पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। हम कोई छुई-मुई का पौधा नहीं जो आपके उँगली उठाने से डर जायेंगे। आप ब्राह्ममण हैं इसलिए मैं अपने क्रोध को रोक रहा हूँ।”

यह सुनकर परशुराम क्रोध से भर गए। उन्होंने विश्वामित्र से कहा कि वह इस मूर्ख लड़के को हमारा प्रताप और बल बताकर । समझा दें। इस पर लक्ष्मण ने कहा कि शूरवीर शत्रु के सामने वीरता दिखाते हैं। कायर लोग ही व्यर्थ का प्रलाप किया करते हैं। यह सुनते ही परशुराम ने अपना फरसा हाथ में ले लिया और बोले कि यह कड़वा बोलने वाला बालक मारने योग्य है। विश्वामित्र में उन्हें शांत करना चाहा, किन्तु लक्ष्मण ने और कठोर और अपमानजनक बातें कहनी प्रारम्भ कर दीं। सभा में बैठे लोगों ने इसे अनुचित बताया। राम ने नेत्रों के संकेत से लक्ष्मण को चुप कराया और परशुराम की क्रोधाग्नि को शांत करने के लिए शीतल । वचनों में कुछ निवेदन करने लगे।

प्रश्न 12.
लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ की भाषा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ साहित्यिक अवधी भाषा में रचित है। यह अंश कवि तुलसीदास के महाकाव्य रामचरित मानस से संकलित है। इस अंश को पढ़ने से ज्ञात होता है कि अवधी भाषा पर कवि का पूर्ण अधिकार है। कवि का शब्द चयन बड़ा सटीक है। पात्र, परिस्थिति और भावानुकूल शब्द चुनने में तुलसी बहुत कुशल हैं। आपने तत्सम, तद्भव तथा आंचलिकइन सभी शब्द-रूपों का सफलता से प्रयोग किया है। अर्भक, अरि, रिपु, धनुष, क्षत्रियकुल द्रोही, मृदु आदि तत्सम, कोही परसु, लखन, रोस, बिस्व, अपकीरति आदि तद्भव तथा कुम्हड़बतिया जैसे आंचलिक शब्द इस अंश में उपस्थित हैं।

यह प्रसंग संवाद शैली में रचित है। संवादों की भाषा कसी हुई, प्रवाहपूर्ण तथा पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाली है। चौपाई, छंद के चरणों के अंतिम वर्गों को दीर्घान्त (दीर्घ मात्रा वाले) बनाकर गेयता (गाए जाने योग्य) बढ़ाई गई है। कथन को प्रभावशाली बनाने के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों का प्रयोग हुआ है। ‘चहत उड़ावन फँकि पहारू’, ‘कालकवल होइहि’, ‘हरिअरइ सूझ’, ‘माथे काढ़ा’ आदि मुहावरे तथा इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं, जे तरजनी देखि डरि जाहीं।’ बिधे पाप अपकीरति हारें’, ‘सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आप’, ‘अय मय खाँड न ऊख मय’, ‘द्विज देवता घरहि के। बाढ़े’ आदि लोकोक्तियाँ इसका उदाहरण हैं।
इस प्रकार इस काव्यांश की भाषा सब प्रकार से प्रसंग के अनुरूप वातावरण बनाने में समर्थ है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

(क) सेवक सो जो करै सेवकाई……………न ते मारे जैहहिं सब राजा ।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में पद्यांश 1 का अवलोकन करें।

(ख) बिहसि लखनु बोले मृदुबानी …………… जे तरजनी देखि डरि जाहीं।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में पद्यांश 3 को अवलोकन करें।

(ग) सूर समर करनी करहिं ……………. कायर कथहिं प्रतापु।
उत्तर:
उक्त पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्या के लिए व्याख्या भाग में पद्यांश 4 का अवलोकन करें।

(घ) कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारी. ……………तुरत देउँ मैं थैली खोली।
उत्तर:
उक्त पंक्तियों की सप्रसंग व्याख्यो के लिए व्याख्या भांग में पद्यांश 6 का अवलोकन करें।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

1.”नाथ संभुधनु भंजनिहारा” में ‘नाथ’ शब्द का प्रयोग हुआ है
(क) राम के लिए।
(ख) जनक के लिए।
(ग) परशुराम के लिए।
(घ) विश्वामित्र के लिए।

2. परशुराम ने लक्ष्मण को काल के वश बताया क्योंकि
(क) वह उनको देखकर मुस्करा रहे थे।
(ख) वह शिव के धनुष को धनुषियों के समान बता रहे थे
(ग) वह परशुराम को चुनौती दे रहे थे।
(घ) वह शिव के धनुष पर ममता का कारण पूछ रहे थे।

3. परशुराम विश्व में प्रसिद्ध थे
(क) बाल ब्रह्मचारी के रूप में ।
(ख) अत्यंत क्रोधी के रूप में
(ग) महान मुनि के रूप में।
(घ) क्षत्रियों के शत्रु के रूप में।

4. लक्ष्मण ने परशुराम के वचनों को बताया
(क) शान्त और शुभ ।
(ख) शास्त्र के विरुद्ध ।
(ग) आनन्ददायक।
(घ) करोड़ों वज्रों के समान कठोर।।

5. लक्ष्मण के अनुसार परशुराम को शोभा नहीं दे रहा था
(क) अपनी प्रशंसा स्वयं करना
(ख) अस्त्र-शस्त्र धारण करना।
(ग) गालियाँ देना
(घ) मारने की धमकियाँ देना।

6. सभा के सभी लोगों ने अनुचित बताया
(क) परशुराम को क्रोध करना
(ख) लक्ष्मण का अपशब्द बोलना ।
(ग) विश्वामित्र का लक्ष्मण को न टोकना ।
(घ) जनक का चुप रहना।
उत्तर :
1. (ग), 2. (ख), 3. (घ), 4. (घ), 5. (ग), 6. (ख) ।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“होइहि केउ एक दास तुम्हारा” राम ने इस पंक्ति में ‘दास’ शब्द का प्रयोग किसके लिए किया है?
उत्तर:
राम ने ‘दास’ शब्द का प्रयोग अपने लिए किया है क्योंकि वही धनुष को तोड़ने वाले हैं।

प्रश्न 2.
परशुराम ने धनुष तोड़ने वाले को अपना सेवक क्यों नहीं माना?
उत्तर:
क्योंकि सेवक वह होता है जो सेवा करता है। गुरु के धनुष को तोड़ने वाला सेवक नहीं शत्रु है।

प्रश्न 3.
“ऐहि धनु पर ममता केहि हेतू” लक्ष्मण के यह पूछने पर परशुराम को क्रोध क्यों आया?
उत्तर:
परशुराम के क्रोध का कारण यह था कि लक्ष्मण साधारण धनुषियों से उनके गुरु शिव के धनुष की तुलना कर रहे थे।

प्रश्न 4.
लक्ष्मण ने धनुष के टूट जाने का क्या कारण बताया?
उत्तर:
लक्ष्मण ने कहा कि राम ने तो धनुष को नया जानकर परखा था, परन्तु वह तो राम के छूते ही टूट गया।

प्रश्न 5.
परशुराम ने लक्ष्मण को अपने स्वभाव के बारे में क्या बताया?
उत्तर:
परशुराम ने कहा कि वह बहुत क्रोधी और क्षत्रियों को अपना शत्रु मानने वाले हैं।

प्रश्न 6.
परशुराम ने ब्राह्मणों को बार-बार क्या दिया था?
उत्तर:
परशुराम ने अपने पराक्रम से क्षत्रिय राजाओं का संहार करके उनकी भूमि बार-बार ब्राह्मणों को दान की थी।

प्रश्न 7.
परशुराम ने अपने फरसे की क्या विशेषता बताई?
उत्तर:
परशुराम ने लक्ष्मण से कहा कि वह राजा सहस्रबाहु की हजार भुजाओं को काटने वाले फरसे को ध्यान से देख लें।

प्रश्न 8.
परशुराम द्वारा बार-बार फरसा दिखाए जाने पर लक्ष्मण ने क्या कहा?
उत्तर:
लक्ष्मण ने कहा कि उन्हें बार-बार फरसे का डर दिखाकर परशुराम फेंक से पहाड़ उड़ाने की चेष्टा कर रहे हैं।

प्रश्न 9.
“इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं ” कहने से लक्ष्मण का आशय क्या है?
उत्तर:
लक्ष्मण का आशय यह है कि वह कोई डरपोक व्यक्ति नहीं हैं जो किसी की जरा-सी धमकी देने पर घबरा जायेंगे।

प्रश्न 10.
लक्ष्मण ने अपने कुल रघुवंश की क्या परम्परा बताई?”
उत्तर:
लक्ष्मण ने कहा कि उनके वंश में देवताओं, ब्राह्मणों, भगवान के भक्तों और गायों पर वीरता दिखाने की परम्परा नहीं है।

प्रश्न 11.
“मारतहुँ पा परिअ तुम्हारें लक्ष्मण ने परशुराम से ऐसा क्यों कहा?
उत्तर:
ऐसा कहने का कारण यह था कि परशुराम ब्राह्मण थे। उनको मारने से पाप लगता और हारने पर अपयश मिलता।

प्रश्न 12.
परशुराम ने विश्वामित्र से क्या अनुरोध किया?
उत्तर:
परशुराम ने विश्वामित्र से कहा कि वह उनका प्रताप, बल और क्रोध कैसा है, यह बताकर लक्ष्मण को समझा दें।

प्रश्न 13.
लक्ष्मण ने शूरवीरों का क्या लक्षण बताया?
उत्तर:
लक्ष्मण ने कहा कि शूरवीर शत्रु को रणभूमि में सामने देखकर अपने पराक्रम का परिचय दिया करते हैं, बातें नहीं बनाते।

प्रश्न 14.
परशुराम ने विश्वामित्र को क्या उलाहना दिया?
उत्तर:
परशुराम ने कहा कि वह निष्ठुर और क्रोधी हैं। उनके सामने उनके गुरु को अपराधी निरंतर विवाद कर रहा है फिर भी वह उसे उनका (विश्वामित्र का) लिहाज करके नहीं मार रहे हैं।

प्रश्न 15.
परशुराम पर किसका ऋण बाकी था और वह उसे कैसे चुकाना चाह रहे थे?
उत्तर:
परशुराम पर गुरु का ऋण बाकी था, जिसे वह लक्ष्मण का वध करके चुकाना चाह रहे थे।

प्रश्न 16.
सभा के सभी लोगों ने किस बात को अनुचित बताया?
उत्तर:
सभी लोगों ने लक्ष्मण के द्वारा परशुराम के लिए कहे जाने वाले कठोर और अशिष्ट शब्दों को अनुचित बताया।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राम और परशुराम के बीच क्या बातें हुईं? ‘लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ पाठ के आधार लिखिए।
उत्तर:
जब परशुराम ने स्वयंवर-सभा में आकर पूछा कि यह शिव का धनुष किसने तोड़ा है, तो राम ने उत्तर दिया कि धनुष तोड़ने वाला उनका (परशुराम का) कोई दास ही होगा। यह सुनकर परशुराम क्रोधित हो गए और कहा कि सेवक तो सेवा करने वाला होता है। धनुष तोड़ने वाला तो उनका शत्रु है। अत: वह राजाओं के बीच से अलग खड़ा हो जाए, अन्यथा सारे राजा मारे जाएँगे।

प्रश्न 2.
लक्ष्मण ने परशुराम की अवज्ञा करते हुए, धनुष तोड़े जाने के बारे में क्या कहा और परशुराम ने क्रोधित होकर क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम का उपहास करते हुए कहा कि उन्होंने बचपन में अनेक धनुषियाँ तोड़ डाली थीं तब परशुराम ने क्रोध क्यों नहीं किया? इस धनुष से उनको इतनी ममता क्यों है। इस पर परशुराम क्रुद्ध होकर बोले-अरे राजकुमार! तू बिना सोचे-समझे बोल रहा है। लगता है तू काल के वशीभूत हो गया है। भला सारे संसार में प्रसिद्ध शिव का धनुष उन साधारण धनुषियों के समान हो सकता है?

प्रश्न 3.
लक्ष्मण ने राम के बचाव में क्या कहा और परशुराम पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
लक्ष्मण ने कहा कि एक पुराने धनुष के तोड़ देने से न तो किसी की हानि हुई है न किसी को लाभ हुआ। राम ने इसे नया जानकर इसे परखना चाहा था परन्तु यह तो उनके छूते ही टूट गया। “हे मुनि आप बिना बात के इतना क्रोध क्यों कर रहे हैं?” यह सुनते ही परशुराम ने क्रोधित होकर लक्ष्मण से कहा कि वह उन्हें कोई साधारण मुनि समझने की भूल न करें। साथ ही उन्होंने अपने बल, अपनी विजयों और यश का बखान करना आरम्भ कर दिया।

प्रश्न 4.
लक्ष्मण ने परशुराम को देखकर अभिमानपूर्ण बातें करने का क्या कारण बताया और परशुराम से किस कारण क्षमा माँगने का दिखावा किया?
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि उन्हें फरसा और धनुषबाण धारण किए देखकर उन्हें क्षत्रिय समझा, इस कारण कुछ अभिमानपूर्ण बातें कह दीं। अब पता चला कि वह भृगवंशी ब्राह्मण हैं। इसीलिए वह उनकी बातें क्रोध को रोककर सहन कर रहे हैं। रघुवंशी लोग देवताओं, ब्राह्मणों, भक्तों और गायों पर वीरता नहीं दिखाते। अत: आप से युद्ध करना उचित नहीं है। आपको मारने से पाप लगेगा और हार जाने पर अपयश मिलेगा। इसलिए मेरे अनुचित वचनों को आप क्षमा कर दें। आप तो महान मुनि और धैर्यवान हैं।

प्रश्न 5.
लक्ष्मण की उपहासपूर्ण क्षमायाचना को सुनकर, परशुराम ने विश्वामित्र से क्या कहा?
उत्तर:
परशुराम ने कहा-“विश्वामित्र जी ! यह लड़का बुद्धिहीन और कुटिल स्वभाव वाला है। यह मूर्ख काल के वश में है और अपने साथ अपने कुल का भी नाश कराएगा। यह तो सूर्यवंशरूपी चन्द्रमा में कलंक के समान है, साथ ही पूर्णत: स्वच्छंद, मूर्ख और निडर भी है। यह क्षणभर में मेरे हाथों मारा जाएगा। यदि आप इसे बचाना चाहते हैं तो इसे हमारे प्रताप, बल और क्रोध के बारे में बताकर अनर्गल प्रलाप करने से रोक लें ।”

प्रश्न 6.
विश्वामित्र द्वारा अपना प्रताप और बल लक्ष्मण को समझाने की बात पर लक्ष्मण ने परशुराम पर क्या व्यंग्य किया?
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम की धमकी की हँसी उड़ाते हुए कहा कि-‘मुनिवर ! आपके यश का वर्णन भला आप से बढ़कर और कौन कर सकता है। आपने अपने मुँह से अपनी करनी का वर्णन अब तक अनेक बार और कई प्रकार से किया है। यदि अब भी आपको संतोष नहीं हुआ हो तो और कुछ बताइए। आप अपने क्रोध को दबाकर, मन में कष्ट मत पाइए। वैसे आप वीर, धीर और शान्त स्वभाव वाले हैं। अतः आप गाली देते शोभा नहीं पाते हैं।

प्रश्न 7.
परशुराम ने लक्ष्मण को वध किए जाने योग्य क्यों माना?
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम को कायर बताया। उनकी बातों की हँसी उड़ाई। यह देख कर परशुराम आपे से बाहर हो गए। वह कहने लगे कि अब लोग उन्हें दोष नहीं दें। यह कड़वा और अशिष्ट बोलने वाला लड़का, मारे जाने योग्य ही है। अब तक इसे बच्चा समझकर मैं इसे बचाता रहा। अब तो यह सच में ही मरने वाला है।

प्रश्न 8.
विश्वामित्र ने परशुराम से क्या आग्रह किया और परशुराम ने उत्तर में क्या कहा?
उत्तर:
जब परशुराम का क्रोध सीमा से बाहर होने लगा तो विश्वामित्र ने उनसे कहा कि वह लक्ष्मण का अपराध क्षमा कर दें क्योंकि सज्जन लोग बच्चों के दोषों और गुणों पर अधिक ध्यान नहीं देते। इस पर परशुराम ने कहा कि उनके हाथ में पैना फरसा है और वह बड़े दयाहीन तथा क्रोधी हैं। उनके गुरु का अपराधी सामने खड़ा अपशब्द बोले जा रहा है, फिर भी वह उसे बिना मारे छोड़ रहे हैं। इसका कारण विश्वामित्र का लिहाज ही है।

प्रश्न 9.
लक्ष्मण के आचरण को सभा के लोगों ने अनुचित क्यों बताया?
उत्तर:
परशुराम द्वारा विश्वामित्र के आग्रह का मान रखने की बात सुनकर लक्ष्मण ने मर्यादा की सीमा लाँघने जैसा आचरण किया। उन्होंने परशुराम के शील की हँसी उड़ाई, माता-पिता के ऋण चुकाने को लेकर उन पर तीखा व्यंग्य किया। ब्राह्मण होने के कारण वह बचे हुए हैं, ऐसा अपमानजनक आक्षेप किया। उनकी वीरता और यश को चुनौती दी। सभा के लोगों को लगा कि लक्ष्मण सीमा के बाहर जा रहे हैं। छोटा मुँह बड़ी बात जैसा दृश्य सामने आ रहा है। रक्तपात हो सकता है। इसी कारण सभी लोगों ने लक्ष्मण के आचरण को अनुचित बताया।

प्रश्न 10.
लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ प्रसंग में कविवर तुलसी की किस काव्यगत विशेषता के दर्शन होते हैं? संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ प्रसंग कविवर तुलसीदास की काव्यगत प्रतिभा का अनूठा उदाहरण है। इस प्रसंग में कवि ने संवादपरक वर्णन शैली में अपनी कुशलता का पूरा प्रमाण दिया है। संवादों की भाषा पात्रों और परिस्थिति के अनुरूप है। संवाद बड़े सटीक और चुटीले हैं। संवादों से पात्रों के चरित्र पर पूर्ण प्रकाश पड़ा है। संवादों की रोचक योजना ने इस प्रसंग को बड़ा नाटकीय बना दिया है।

प्रश्न 11.
‘लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ के तीनों पात्रों-राम, लक्ष्मण और परशुराम के स्वभाव की एक-एक विशेषता बताइए।
उत्तर:
इस प्रसंग के पात्र राम शान्त और संयत स्वभाव वाले हैं। वह उत्तेजित नहीं होते। शिष्ट और विनम्रतापूर्ण भाषा को प्रयोग करते हैं। मर्यादाओं का पालन करते हैं। इनके विपरीत स्वभाव लक्ष्मण का है। वह उग्र स्वभाव के युवक हैं। उनकी वाणी में व्यंग्य और आक्रामकता रहती है। तीसरे पात्र परशुराम अहंकारी स्वभाव वाले हैं। वह आत्मप्रशंसा करने वाले और अपने सामने सभी को तुच्छ समझने वाले हैं।

प्रश्न 12.
लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ के आधार पर लक्ष्मण के व्यवहार का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
काव्यांश के आधार पर लक्ष्मण एक वीर, चतुराईपूर्ण तुरंत उत्तर देने में निपुण और सहज ही उत्तेजित हो जाने वाले युवक सिद्ध होते हैं। परशुराम के बड़बोलेपन और धमकियों पर वह निरंतर व्यंग्य बाणों की वर्षा करते दिखाई देते हैं। लक्ष्मण का यह व्यवहार कुछ समय तक तो रोचक लगता है लेकिन अति उत्साह में आकर जब वह परशुराम पर तीखे, कटु और शिष्टता का उल्लंघन करने वाले व्यंग्य करने लगते हैं तो सभी सभासद इसे अनुचित कहने लगते हैं और राम को भी उन्हें चुप हो जाने का संकेत करना पड़ता है।

प्रश्न 13.
लक्ष्मण को परशुराम को मारने पर पाप और अपयश की सम्भावना क्यों थी?
उत्तर:
परशुराम ब्राह्मण थे। वह अपनी अहंकारपूर्ण बातों और धमकियों से लक्ष्मण को उत्तेजित करना चाह रहे थे। परन्तु लक्ष्मण उनसे युद्ध नहीं करना चाहते थे क्योंकि यदि परशुराम मारे जाते तो लक्ष्मण पर ब्रह्महत्या का पाप लगता और यदि पराजित हो जाते तो उन्हें अपयश झेलना पड़ता।

प्रश्न 14.
मुनि विश्वामित्र के कथन “मुनिहि हरिअरइ सूझ” का आशय क्या था?
उत्तर:
इसका आशय यह था कि परशुराम अपने अहंकार के कारण परिस्थिति की कठोर सच्चाई को नहीं समझ पा रहे थे। उन्हें पहले की भाँति हरा ही हरा सूझ रहा था। वह समझते थे कि वह लक्ष्मण और राम पर सहस्रबाहु आदि की तरह विजय पा लेंगे जबकि राम और लक्ष्मण अवतारी पुरुष और वीर योद्धा थे।

RBSE Class 10 Hindi Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“लक्ष्मण-परशुराम संवाद” एक अत्यन्त रोचक व्यंग्यमयी काव्य रचना है-इस कथन को उदाहरण सहित सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
यह संवादपरक काव्यांश कवि तुलसीदास जी की विलक्षण कल्पना, संवाद-कौशल और काव्य-प्रतिभा का अनोखा नमूना है। भगवान शिव के धनुष के भंग हो जाने पर परशुराम बड़े क्रोधित होते हैं। वह धनुष तोड़ने वाले का पता लगाने की धमकी भरी घोषणा करते हैं कि धनुष भंग करने वाला राजा सामने आ जाए अन्यथा सारे राजा उनके हाथों मारे जाएँगे, परशुराम की यह अहंकारपूर्ण घोषणा सुनकर लक्ष्मण उन पर व्यंग्य करना प्रारम्भ कर देते हैं। परशुराम और भी क्रुद्ध होकर लक्ष्मण को धमकाने लगते हैं। वह बार-बार अपने बल-पराक्रम और क्षत्रियों पर विजय की दर्प भरी बातें बखानने लगते हैं। परशुराम जितना भड़कते हैं लक्ष्मण उतने ही चुभने वाले और सटीक व्यंग्य करके उन्हें चिढ़ाते जाते हैं। लक्ष्मण के व्यंग्य बड़े पैने और मनोरंजक हैं।

  1. बहु धनुहीं तोरी लरिकाई। कबहूँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ॥
  2. सुनहु देव सब धनुष समाना॥
  3. छुअत टूट रघुपतिहु ने दोसू॥
  4. पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू॥
  5. इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरज़नी देखि डरि जाहीं ॥
  6. कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
  7. बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावह सोभा॥
  8. भृगुबर परसु देखावह मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही ॥
  9. मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े॥

प्रश्न 2.
“लक्ष्मण परशुराम संवाद” नामक काव्यांश में लक्ष्मण और परशुराम दोनों ही मर्यादाओं का उल्लंघन करते हुए दिखाई देते हैं-इस कथन पर अपना मत लिखिए।
उत्तर:
इस प्रसंग के पात्र लक्ष्मण एक वीर, निर्भीक और सहज ही उत्तेजित हो जाने वाले क्षत्रिय राजकुमार हैं। दूसरी ओर परशुराम ब्राह्मण होते हुए भी क्षत्रियों जैसा आचरण करने वाले अति क्रोधी और अहंकारी व्यक्ति हैं। दोनों के बीच विवाद प्रारम्भ होने का कारण शिव के धनुष का टूटना था।
परशुराम के द्वारा धनुष तोड़ने वाले व्यक्ति के विषय में पूछे जाने पर राम बड़े विनम्र भाव से उत्तर दे रहे थे किन्तु लक्ष्मण बिना भाई या गुरु से अनुमति लिए परशुराम से विवाद में सामने आ गए। यह विवाद कुछ समय तक तो उपस्थित लोगों को रोचक लगा किन्तु शीघ्र ही इसने अतिवादी रूप ले लिया। लक्ष्मण के व्यंग्य तीखे हुए और शिष्टता के स्तर से नीचे आ गए। लक्ष्मण ने परशुराम से कहा कि वे वीरव्रती, धैर्यवान और क्रोध न करने वाले होकर गाली देते हुए शोभा नहीं पा रहे।

किन्तु स्वयं लक्ष्मण ने भी उनके प्रति गाली जैसे ही शब्दों का प्रयोग किया। “विप्र विचारि बचऊँ नृपद्रोही।” और “मिले न कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े।” तो क्या परशुराम ने कायर और बलहीन क्षत्रियों पर विजय पाई थी? इसी प्रकार परशुराम भी अपने मुनिवेश, आयु और परिस्थिति को न देखकर, बार-बार अपने बल, प्रताप और विजयों का बखान करते जा रहे थे। वह राजाओं और लक्ष्मण को मार डालने की धमकियाँ दे रहे थे। यदि दुर्योगवश दोनों में युद्ध हो जाता तो लोग वयोवृद्ध और मुनिवेशधारी परशुराम पर भी आक्षेप करते। अतः कवि ने समर्थ लोगों को अतिवादी होने से बचने का संदेश देने के लिए इस प्रसंग की रचना की है।

प्रश्न 3.
लक्ष्मण ने परशुराम के बड़बोलेपन को लक्ष्य बनाकर क्या-क्या व्यंग्य किए हैं? संकलित अंश के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
परशुराम अपने पराक्रम के अहंकार में लक्ष्मण को केवल एक वाचाल क्षत्रिय बालक मात्र मानकर, उनको अपनी वीरता, गुरुभक्ति, आतंक आदि की बातों से डराना चाहते हैं। लक्ष्मण तनिक भी प्रभावित हुए बिना उनको सटीक व्यंग्यमयी भाषा-शैली में उत्तर देते हैं। लक्ष्मण राम द्वारा धनुष तोड़े जाने का बचाव करते हुए कहते हैं कि धनुष तो उनके छूते ही टूट गया। इसमें राम का कोई दोष नहीं। यह सुनते ही परशुराम उबल पड़े और अपने पराक्रम का बखान करने लगे।

कहा कि लक्ष्मण को बालक समझकर नहीं मार रहे हैं। लक्ष्मण ने व्यंग्य किया-हे मुनि! आप सचमुच बहुत बड़े योद्धा हैं। आप मुझे फरसा दिखाकर डराना चाह रहे हैं, लेकिन हम भी कोई छुई-मुई नहीं है जो अँगुली छूते ही मुरझा जाए। वह भी उनको भृगुवंशी और ब्राह्मण समझ कर, उनके कठोर वचन सुन रहे हैं। आपसे हारे तो अपयश मिलेगा और मार दिया तो पाप लगेगा।” परशुराम ने कहा कि वह विश्वामित्र जी का लिहाज करके लक्ष्मण को मारे बिना छोड़ रहे हैं।

लक्ष्मण ने व्यंग्य किया – “हे मुनि ! आप कितने शीलवान हैं, इसे सारा संसार जानता है। आपने माता-पिता का ऋण कितने अच्छे ढंग से चुकाया है। अब गुरु का ऋण ही आपको चुकाना है। वह ऋण आपने लगता है-मेरे माथे मढ़ दिया है। जल्दी से कोई जानकार बुलाइए। मैं तुरन्त थैली खोलकर आपका ऋण चुका हूँगा।” इस प्रकार लक्ष्मण ने परशुराम पर बड़े सटीक और चुभने वाले व्यंग्य किए हैं।

प्रश्न 4.
“लक्ष्मण-परशुराम संवाद” प्रसंग की काव्यगत विशेषताओं पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इसे प्रसंग का कलापक्ष और भावपक्ष दोनों कविवर तुलसीदास के काव्य-कौशल का प्रशंसनीय परिचय कराते हैं।
शिल्पगत विशेषताओं में प्रसंग की भाषा को देखें तो यह साहित्यिक अवधी है जो पात्र, परिस्थिति और भावों के अनुकूल है। कवि ने सटीकै शब्दों का चयन करते हुए प्रसंग को बड़ा रोचक बना दिया है। लोकोक्तियों और मुहावरों के प्रयोग ने भाषा को प्रभावशाली बनाया है। पूरे प्रसंग में संवादपरक नाटकीय शैली का प्रयोग हुआ है। पात्रों के कथन और उत्तर-प्रत्युत्तर उनके मनोभावों को व्यक्त करने के साथ ही उनके चारित्रिक गुणों-अवगुणों पर भी प्रकाश डालते हैं।

पूरे प्रसंग में वीर और रौद्र रस की सफल आयोजना हुई है। कवि ने पात्रों के अनुभावों द्वारा रस संचार को प्रभावी बनाया है। प्रसंग में अलंकारों का प्रयोग रचना को रोचक बना रहा है। “अरि करनी करि करिअ लराई”, “सठ सुनेहि सुभाउ” तथा “भुजबल भूमि भूप” आदि में अनुप्रास अलंकार “मात-पितहि उरिन भए नीके” में वक्रोक्ति, “पुनिपुनि” में पुनरुक्ति प्रकाश, सहसबाहु सम सो रिपु मोरा”, “लखन उतर आहुति सरिस” तथा “जल सम बचन” में उपमा और “भृगुबंसमनि”, “भानुबंस राकेस कलंकू’ में रूपक अलंकार है।

प्रसंग का भावपक्ष भी पुष्ट है। कवि ने संवादों और पात्रों की चेष्टाओं द्वारा उनके चरित्रों को निरूपित किया है। राम का शांत, शिष्ट और सौम्य स्वरूप, लक्ष्मण का अवेिशमय उत्साही, वाचाल स्वरूप और परशुराम का क्रोध, अहंकार और बड़बोलेपन । से युक्त स्वरूप चित्रित करने में कवि पूर्ण सफल रहा है। कवि ने इस प्रसंग द्वारा यह संदेश भी दिया है कि जीवन में अतिवादी बने रहने से व्यक्ति और समाज दोनों कुप्रभावित होते हैं। अशांति और हिंसा को बढ़ावा मिलता है। अत: व्यक्ति को मध्यमार्गी बनना चाहिए और सामाजिक तथा व्यक्तिगत जीवन की मर्यादाओं का सम्मान करना चाहिए। इस प्रकार लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ सभी काव्यगत विशेषताओं से पूर्ण रचना है।

प्रश्न 5.
‘लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ काव्यांश के आधार पर बताइए कि तुलसीदास ‘संवाद योजना’ में बड़े निपुण हैं।
उत्तर:
लक्ष्मण परशुराम संवाद’ कवि तुलसीदास की संवाद-रचना में निपुणता का प्रत्यक्ष उदाहरण है। इस अंश में प्रमुख संवाद लक्ष्मण और परशुराम के बीच हुए हैं। इस प्रसंग का प्रारम्भ राम के संवाद से होता है। राम बड़ी विनम्र वाणी में क्रोधित परशुराम से निवेदन करते हैं

“नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा।”

तो परशुराम तुरन्त आरोप लगाते हैं
“सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअलराई।।”

तुम सेवक कैसे हो सकते हो। सेवक तो वह होता है जो सेवा करता है। तुमने तो लड़ाई का काम किया है।
परशुराम कहते हैं
“धनुही सम त्रिपुरारि धनु, बिदित सकल संसार।”

शिव जगत प्रसिद्ध धनुष भला एक धनुषिया के समान हो सकता है। लक्ष्मण नहले पर दहला मारते हुए कहते हैं
“लखन कहा हसि हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना।”

लक्ष्मण पर कोई प्रभाव न पड़ते देख परशुराम ने कहा
“सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।”

अरे राजकुमार सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को ध्यान से देख ले। लक्ष्मण कब पीछे रहने वाले थे। बोले
“पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू।”

मुनि जी ! बार-बार मुझे फरसा क्या दिखा रहे हो ! आप तो फैंक से पहाड़ उड़ाना चाह रहे हो।
इस प्रकार संवाद और प्रतिसंवाद की लड़ी सजाकर कवि ने अपने काव्य-कौशल का परिचय दिया है।

कवि परिचय

जीवन परिचय-

महाकवि तुलसीदास का जन्म संवत् 1589 (सन् 1532) में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में हुआ। इनके पिता का नाम आत्माराम और माता का नाम हुलसी था। यह सरयूपारीण ब्राह्मण थे। तथाकथित अशुभ नक्षत्र में जन्म और इनके स्वरूप की विचित्रता के कारण इनके माता-पिता ने इनको त्याग दिया। इनका पालन-पोषण मुनिया नामक सेविका ने किया। इनके गुरु महात्मा नरहरिदास माने जाते हैं। इनका विवाह रत्नावली नामक गुणवती स्त्री से हुआ, किन्तु वैवाहिक जीवन अधिक नहीं चल पाया। तुलसीदास जी ने अपने विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘रामचरितमानस’ की रचना अयोध्या में प्रारम्भ की किन्तु बाद में यह काशी के निवासी हो गए। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को इनका देहावसान हो गया। तुलसी संवत् 1680 (सन् 1623) में दिवंगत हो गए।

साहित्यिक परिचय-तुलसीदास भक्त कवि थे। आपकी भक्ति दास्यभाव की थी। आपकी कीर्ति का आधार हिन्दू धर्म का लोकप्रिय ग्रन्थ रामचरितमानस है। आपने इस ग्रन्थ द्वारा समाज के सभी वर्गों में समन्वय बनाने की चेष्टा की है। इस ग्रन्थ में भगवान राम के जीवन चरित का वर्णन है। तुलसीदास जी ने अवधी और ब्रजभाषा दोनों में सुन्दर रचनाएँ की हैं।

रचनाएँ-आपकी प्रमुख रचनाएँ-रामचरितमानस, विनयपत्रिका, दोहावली, कवितावली, गीतावली, बरवै रामायण, पार्वतीमंगल, वैराग्य संदीपनी रामाज्ञाप्रश्न, जानक़ीमंगल, रामलला नहछू आदि हैं।

पाठ परिचय ‘लक्ष्मण परशुराम संवाद’ नामक काव्यांश आपके महाकाव्य रामचरितमानस से संकलित है। महाराज जनक द्वारा आयोजित ‘धनुष यड्स’ में राम ने शिव धनुष को भंग कर दिया। मुनि परशुराम यह समाचार पाकर अत्यन्त क्रोध से भरे हुए वहाँ आए। उनकी दर्प और क्रोध से भरी बातों के कारण उनका लक्ष्मण से विवाद हो गया। परशुराम ने लक्ष्मण को बहुत कठोर वचन कहे और लक्ष्मण ने भी उन पर व्यंग्य बाण चलाए। अंत में राम की विनयशीलता और मुनि विश्वामित्र के समझाने पर परशुराम का क्रोध शान्त हुआ। इस अंश में कवि ने व्यंग्यमयी और रोचक शैली में घटना को प्रस्तुत किया है।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।

(1) नाथ संभुधनु भंजनिहारा। होइहि केउ एक दास तुम्हारा॥
आयसु काह कहिअ किन मोही। सुनि रिसाइ बोले मुनि कोही॥
सेवकु सो जो करै सेवकाई। अरि करनी करि करिअ लराई॥
सुनहु राम जेहिं सिवधनु तोरा। सहसंबाहु सम सो रिपु मोरा॥
सो बिलगाउ बिहाइ समाजा। न त मारे जैहहिं सब राजा॥
सुनि मुनि बचन लखन मुसुकाने। बोले परंसु धरहि अवमाने॥
बहु धनुहीं तोरी लरिका। कबहूँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं॥
एहि, धनु पर ममता केहि हेतू। सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू॥
रे नृप बालक काल बस, बोलत तोहि न सँभार॥
धनुही सम त्रिपुरारि धनु, बिदित सकल संसार॥

शब्दार्थ-संभुधनु = शिव का धनुष। भंजनिहारा = तोड़ने वाला। केउ = कोई। आयसु = आज्ञा। काह = क्या। मोही = मुझे। रिसाइ = क्रोधित होकर। कोही = क्रोधी। अरि करनी = शत्रु जैसा काम। करिअ = की है। लराई = लड़ाई। सहसबाहु = सहस्रबाहु नाम का एक राजा जिसका परशुराम ने वध किया था। रिपु = शत्रु। मोरा = मेरा। बिलगाउ = अलग खड़ा हो जाए। बिहाइ = छोड़कर। समाजा = सभा, समूह। न त = नहीं तो। परसु धरहि = फरसा धारण करने वाले, परशुराम से। अवमाने = अपमानित करते हुए। धनुहीं = छोटे-छोटे धनुष। तोरीं = तोड़ डार्ली। लरिकाईं = बचपन में। असि = ऐसा। रिस = क्रोध। गोसाईं = स्वामी, आदरसूचक संबोधन। ममता = मोह, प्यार। केहि हेतु = किस कारण। भृगुकुलकेतू = भृगुकुल की ध्वजा अर्थात् परशुराम। नृप बालक = राजकुमार। तोहि = तुझे। सँभार = चेत, होश, ध्यान। त्रिपुरारि धनु = शिव का धनुष। बिदित = ज्ञात, प्रसिद्ध। सकलं = सारा॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश कवि तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के बालकाण्ड से संकलित है। इस अंश में राम परशुराम के क्रोध को शांत करने के लिए विनम्र वाणी में निवेदन कर रहे हैं किन्तु परशुराम भड़क उठते हैं और कठोर वचन कहते हैं। इससे लक्ष्मण के साथ उनका विवाद हो जाता है।

व्याख्या-शिव-धनुष के तोड़े जाने से कुपित परशुराम को शांत करने के लिए राम ने विनम्रतापूर्वक कहा-हे नाथ! इस धनुष को तोड़ने वाला आपका कोई दास ही होगा। आपका क्या आदेश है, मुझे बताइए? यह सुनकर क्रोधी स्वभाव वाले मुनि परशुराम क्रोध से भरकर बोले-सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे किंतु धनुष को तोड़ने वाले ने तो शत्रु जैसा
आचरण करके लड़ाई का काम किया है। जिसने भी यह शिव-धनुष तोड़ा है वह सहस्रबाहु के समान मेरा घोर शत्रु है। वह व्यक्ति इस राजाओं के समाज से अलग होकर सामने आ जाए, नहीं तो सारे राजा मेरे हाथों मारे जाएँगे।

परशुराम के इन क्रोधयुक्त वचनों को सुनकर लक्ष्मण मुस्कराए और उनका निरादर करते हुए कहने लगे-“हमने बचपन में न जाने कितनी धनुषियाँ तोड़ी होंगी पर आपने ऐसा क्रोध कभी नहीं किया। इस धनुष पर आपकी विशेष ममता किस कारण है? लक्ष्मण के व्यंग्य-वचन सुनकर भृगुवंश की ध्वजा रूप परशुराम ने क्रोधित होकर कहा-अरे राजकुमार ! तू काल के वशीभूत है तभी तुझे बोलते समय ध्यान नहीं कि तू क्या कह रहा है? क्या सारे संसार में प्रसिद्ध यह शिव का धनुष उन धनुषियों के समान हो सकता है?

विशेष-
(1) काव्यांश की भाषा साहित्यिक अवधी है। कवि का भाषा पर पूर्ण अधिकार है।
(2) सम्पूर्ण अंश में व्यंग्यमयी शैली का प्रयोग हुआ है।
(3) छंद चौपाई और दोहा हैं।
(4) शान्त और रौद्र रस की संयुक्त योजना हुई है।
(5) ‘काह कहिअ’, ‘सेवकु सो’, ‘सहसबाहु सम सो’, ‘सुनि मुनि बचन लखन’ आदि में अनुप्रास अलंकार है। ‘जेहिं सिवधनु तोरा। सहसबाहुं सम सो रिपु मोरा॥’ में ‘भृगुकुलकेतू’ में उपमा अलंकार है।
(6) पात्रों के चरित्र पर उनके संवादों से पूर्ण प्रकाश पड़ रहा है।

(2) लखन कही हसि. हमरे जाना। सुनहु देव सब धनुष समाना॥
का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा राम नयन के. भोरें॥
छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिनु काज करिअ कत रोसू॥
बोले चितइ परसु की ओरा। रे सठ सुनेहि सुभाउ न मोरा॥
बालकु बोलि बधउँ नहिं तोही। केवल मुनि जड़ जानहि मोही॥
बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्व बिदित छत्रियकुल द्रोही॥
भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही॥
सहसबाहु भुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा॥
मातु पितहि जनि सोचबस, करसि महीसकिसोर।
गर्भन्ह के अर्भक दलन, परसु मोर अति घोर॥

शब्दार्थ-हसि = हँसकर। जाना = समझ में। का = क्यो। छति = हानि। जून = पुराना, जीर्ण। तोरें = तोड़ने से। नयन = नवीन, नया। भोरें = भ्रम में, धोखे में। छुअत = छूते ही। काज = कारण, काम। करिअ = करते हो। कत = क्यों। रोसू = क्रोध। चितई = देखकर। परसु = फरसा। ओरा = ओर, तरफ। सठ = मूर्ख, धूर्त। सुभाउ = स्वभाव। बोलि = जानकर। बधउँ नहिं = नहीं मारता। जड़ = मूर्ख। बाल ब्रह्मचारी = बचपन से संयमपूर्ण जीवन बिताने वाला। कोही = क्रोधी। बिस्व बिदित = संसार भर में ज्ञात। क्षत्रियकुल = क्षत्रियों के वंश का। द्रोही = शत्रु। भुजबल = भुजाओं के बल पर, पराक्रम से। भूप = राजा। बिपुल = बहुत। महिदेवन्ह = ब्राह्मणों को। भुज = भुजा, हाथ। छेदनिहारा = काटने वाला। बिलोकु = देख ले। महीपकुमारा = राजा का पुत्र, राजकुमार। जनि = मत। सोचबस = शोकमग्न, दु:खी। करसि = करे। महीसकिसोर = राजपुत्र। गर्भन्ह के = गर्भ में स्थित। अर्भक = भ्रूण, बच्चे। दंलन = नष्ट करने वाला। अति घोर = अत्यंत भयंकर।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश कविवर तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य से संकलित है। यहाँ लक्ष्मण परशुराम के क्रोधपूर्ण वचनों का अपने व्यंग्यों के द्वारा उपहास कर रहे हैं। परशुराम उन्हें बार-बार धमकियाँ दे रहे हैं।

व्याख्या-लक्ष्मण ने हँसते हुए परशुराम से कहा- हे देव! हमारी समझ से तो सब धनुष एक जैसे ही होते हैं। एक पुराने धनुष को तोड़ने से किसे हानि या लाभ हो सकता है? राम ने इसे नए के भ्रम में परखा था। यह तो राम के छूते ही टूट गया। अतः इसमें राम का कोई दोष नहीं है। हे मुनिवर ! आप बिना कारण ही इतना क्रोध क्यों कर रहे हैं? यह सुनते ही परशुराम ने क्रोधित होकर अपने फरसे की ओर देखा और बोले- अरे मूर्ख! तूने मेरे स्वभाव के बारे में नहीं सुना है। मैं तो तुझे बालक जानकर नहीं मार रहा हूँ। तू मुझे केवल एक साधारण मुनि समझ रहा है। मैं बाल ब्रह्मचारी और अत्यंत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रिय वंश का शत्रु हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल से धरती को कितनी ही बार राजाओं से रहित किया है और उनके राज्यों की भूमि को अनेक बार ब्राह्मणों को दान किया है। अरे राजपुत्र! सहस्रबाहु की भुजाओं को काटने वाले मेरे इस फरसे को ध्यान से देख ले॥
अरे राजकुमार ! अपने माता-पिता को शोकमग्न मत कर। मेरा यह भयंकर फरसा गर्भ में स्थित बच्चों को भी नष्ट कर देता है। मेरे फरसे से भयभीत क्षत्राणियों के गर्भ गिर जाते हैं।

विशेष-
(1) साहित्यिक अवधी भाषा का प्रयोग है। शब्दों का चयन पात्रों और परिस्थिति के अनुरूप है।
(2) व्यंग्य और उपहासपूर्ण शैली का प्रयोग है।
(3) रौद्र रस तथा हास्य रस की सफल योजना है।
(4) ‘हसि हमरे’, ‘काज करिअ कत’, ‘सठ सुनेहि सुभाउ’ तथा ‘बालकु बोलि बधउ’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘छुअत टूट’ में अतिशयोक्ति अलंकार है।
(5) संवाद दोनों पात्रों के चरित्र पर प्रकाश डालने वाले हैं।

(3) बिहसि लखनु बोले मृदबानी। अहो मुनीसु महा भटमानी॥
पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन फँकि पहारू॥
इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि डरि जाहीं॥
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना॥
भृगुसुत समुझि जनेउ बिलोकी। जो कछु कहहु सहउँ रिस रोकी ॥
सुर महिसुर हरिजन अरु गाई। हमरे कुल इन्ह पर न सुराई॥
बधे पापु अपकीरति हारें। मारतहूँ पा परिअ तुम्हारे॥
कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा॥
जो बिलोकि अनुचित कहेउँ, छमहु महामुनि धीर।
सुनि सरोष भृगुबंसमनि, बोले गिरा गभीर॥

शब्दार्थ-बिहसि = हँसकर। मृदु = कोमल, नम्र। मुनीसु = महान मुनि। महाभट = महान योद्धा। मानी = प्रसिद्ध। कुठारू = फरसा। चहत = चाहते हो। पहारू = पहाड़। कुम्हड़बतिया = एक पौधा जो उँगली समीप ले जाने से ही पत्तियाँ सिकोड़ लेता है, छुईमुई, निर्बल व्यक्ति। कोउ = कोई। जे = जो। तरजनी = अँगूठे के पास वाली उँगली, तर्जनी। सरांसन = धनुष। बाना = बाण। भृगुसुत = भृगु ऋषि के वंशज। जनेउ = जनेऊ, ब्राह्मण द्वारा कंधे पर धारण किया जाने वाला धागा, यज्ञोपवीत। बिलोकी = देखकर। सहौं = सह रहा हूँ। रिस = क्रोध। रोकी = रोककर। सुर = देवता। महिसुर = ब्राह्मण। हरिजन = भगवान के भक्त। गाई = गाय। कुल = वंश। सुराई = शूरता, वीरता। बधे = मारने से। अपकीरति = अपयश। मारतहुँ = मारने पर भी। पा = पैर। परिअ = पड़ेंगे। कोटि = करोड़ों। कुलिस = वज्र। सम = समान। बचनु = शब्द, वाणी। ब्यर्थ = बेकार। धरहु = धारण करते हो। धीर = धैर्यवान। सरोश = क्रोध से। भृगुबंसमनि = भृगु के वंश में श्रेष्ठ, परशुराम। गिरा = वाणी। गभीर = गहरी, भारी।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश कविवर तुलसीदास की प्रसिद्ध रचना ‘रामचरितमानस’ के बालकाण्ड से उद्धृत है। इस अंश में शिव का धनुष तोड़े जाने से रुष्ट परशुराम का लक्ष्मण से विवाद प्रस्तुत हुआ है। लक्ष्मण हँस-हँस कर परशुराम पर व्यंग्य कस रहे हैं और परशुराम भड़क-भड़ककर लक्ष्मण को गम्भीर परिणामों की धमकियाँ दे रहे हैं।

व्याख्या-लक्ष्मण ने हँसते हुए कोमल वाणी में कहा – अहा महामुनि ! आपको तो निश्चय ही महान योद्धा मानना पड़ेगा अथवा आप तो निश्चय ही माने हुए महान् योद्धा हैं। आप बार-बार मुझे अपना फरसा दिखाकरे डराना चाह रहे हैं। आप तो फेंक से पहाड़ को उड़ा देना चाहते हैं। लेकिन ध्यान रखिए कि हम भी कोई छुईमुई के पौधे नहीं हैं जो आपकी तर्जनी उँगली दिखाने से सिकुड़ (डर) जाएँगे। हम आपके इस गर्जन-तर्जन से डरने वाले नहीं हैं। आपको क्षत्रियों की भाँति फरसा, धनुष-बाण आदि अस्त्र-शस्त्र धारण किए देखकर मैंने अभिमानपूर्वक कुछ बातें कह दीं, पर अब ज्ञात हुआ कि आप महर्षि भृगु के वंशज हैं। आपका जनेऊ बता रहा है कि आप ब्राह्मण हैं। इसी कारण आपकी सारी उचित-अनुचित बातों को मैं क्रोध को रोककर सुन रहा हूँ। हमारे वंश में देवता, ब्राह्मण, भक्तजन और गांय पर वीरता दिखाने की परंपरा नहीं है। क्योंकि इन्हें मारने पर पाप लगता है।

और इनसे हार जाने पर अपयश मिलता है। आप ब्राह्मण होने के नाते पूज्य और अबध्य हैं, अतः आप हमें मारेंगे तो भी हम आपके चरणों में ही पड़ेंगे। आपकी तो वाणी ही करोड़ों वज्रों के समान कठोरे है फिर आप ये धनुष-बाण और कुठार व्यर्थ धारण करते हैं। हे मुनिवर ! आपके वेश को देखकर मैंने अनुचित बातें कह दीं उन्हें क्षमा कर दीजिए, क्योंकि आप तो बड़े धैर्यवान और क्षमाशील हैं। लक्ष्मण की ये व्यंग्यमयी बातें सुनकर भृगुवंश में श्रेष्ठ परशुराम क्रुद्ध होकर गंभीर वाणी में कहने लगे।

विशेष-
(1) काव्यांश की भाषा साहित्यिक अवधी है। कवि ने प्रसंग को प्रभावशाली और रोचक बनाने के लिए सटीक शब्दों का चयन किया है। कुम्हड़बतिया’ जैसे आंचलिक शब्द का भी प्रयोग हुआ है।
(2) शैली व्यंग्य और उपहासपूर्ण है।
(3) ‘मुनीसु महा’, ‘कछु कहा’, ‘कोटि कुलिस’ में अनुप्रास अलंकार है तथा ‘कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा’ में उपमा अलंकार है।
(4) ‘वीर’ तथा ‘रौद्र’ रस की सफल व्यंजना हुई है।
(5) दोनों ही पात्र शील की सीमाओं से बाहर जा रहे हैं।

(4) कौसिक सुनहु मंद यहु बालकु। कुटिल काले बस निजकुल घालकु॥
भानु बंस राकेस कलंकू। निपट निरंकुस अबुध असंकू॥
काल कवलु होइहि छन माहीं। कहऊँ पुकारि खोरि मोहि नाहीं॥
तुम्ह हटकहु जौं चहहु उबारा। कहि प्रतापु बलु रोषु हमारा॥
लखन कहेउ मुनि सुजसु तुम्हारा। तुम्हहि अछत को बरनै पारा॥
अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी॥
नहिं संतोषु त पुनि कछु कहहू। जनि रिस रोकि दुसह दुख सहहू॥
बीरब्रती तुम्ह धीर अछोभा। गारी देत न पावहु सोभा॥
सूर समर करनी करहिं, कहिन जनावहिं आपु॥
विद्यमान रन पाइ रिपु, कायर कथहिं प्रतापु॥

शब्दार्थ-कौसिक = विश्वामित्र। मंद = मूर्ख, बुद्धिहीन। कुटिल = टेढ़ा। काल बस = मृत्यु के वश होकर। घालकु = नष्ट करने वाला। भानु बंस = सूर्यवंश। राकेस = चन्द्रमा। कलंकू = कलंक, दाग। निपट = निरा, अत्यंत। निरंकुस = स्वच्छन्द, अनुशासनहीन। अबुध = मूर्ख, अज्ञानी। असंकू = निडर। काल कवलु = मृत्यु का ग्रास , मृत। छन माहीं = क्षणभर में। खोरि = दोष। हटकहु = रोक लो। जौं = यदि। चहहु = चाहते हो। उबारा = बचाना। प्रतापु = प्रभाव, पराक्रम। रोषु = क्रोध। सुजसु = कीर्ति, यश। अछत = रहते हुए, होते हुए। को = कौन। बरनै = वर्णन करना। पारा = समर्थ, कर पाना। आपनि = अपनी। करनी = कार्य। बहु = बहुत। बरनी = वर्णन की है। पुनि = पुनः, फिर से। कहहू = कहिए। जनि = मत। रिस = क्रोध। रोकि = रोककर। दुसह = असहनीय। सहहू = सहिए, सहन कीजिए। बीरबती = वीरों के व्रत का पालन करने वाला। धीर = धैर्यवान। अछोभा = क्रोध न करने वाला। गारी देत = गाली देते हुए। सूर = शूर, वीर। समर = युद्ध में। जनावहिं = जताते हैं। रिपु = शत्रु। कायर = डरपोक। कथहिं = कहते हैं, सुनाते हैं।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश कविवर तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य के बालकाण्ड से संकलित है। इस अंश में लक्ष्मण के अपमानजनक व्यंग्य वचनों से क्रोधित परशुराम विश्वामित्र से उन्हें समझाने के लिए कह रहे हैं तथा लक्ष्मण उन्हें और उकसा रहे हैं।

व्याख्या–परशुराम ने विश्वामित्र से कहा-हे विश्वामित्र! यह बालक लक्ष्मण बुद्धिहीन और कुटिल स्वभाव वाला है। यह काल के वश में होकर अपने कुल का भी नाश कराएगा। यह सूर्यवंश रूपी चन्द्रमा में कलंक के समान है। यह अत्यन्त स्वच्छन्द, मूर्ख और निडर है। यह क्षणभर में मेरे हाथों मारा जाएगा। मैं पुकार कर कह रहा हूँ कि फिर मुझे दोष मत देना। यदि आप इसे बचाना चाहते हैं तो इसे हमारे प्रताप, बल और क्रोध का परिचय कराके रोक लीजिए। यह सुनकर लक्ष्मण ने कहा-हे मुनीश्वर! आपके रहते हुए आपके यश का वर्णन और कौन अच्छी प्रकार कर सकता है।

आपने अब तक अपने मुँह से अपने कार्यों की खूब प्रशंसा की है फिर भी यदि आपको संतोष न हुआ हो तो और कुछ कहिए। आप अपने क्रोध को मन में दबाकर असहनीय दुःख मत सहिए। आप तो वीरता का व्रत धारण करने वाले हैं, धैर्यवान हैं और क्षुब्ध न होने वाले हैं। आप इस प्रकार गाली देते शोभा नहीं पाते हैं। शूरवीर युद्ध में खुद वीरता का प्रदर्शन किया करते हैं वे अपने मुँह से अपनी प्रशंसा नहीं करते। कायर लोग ही युद्ध में शत्रु को सामने देखकर अपनी वीरता की डींग हाँका करते हैं।

विशेष-
(1) पद्यांश की भाषा साहित्यिक, प्रवाहपूर्ण और पात्रों तथा प्रसंग के अनुरूप है।
(2) शैली व्यंग्य और उपहास से परिपूर्ण है।
(3) वीर और रौद्र रस की रोचक व्यंजना हुई है।
(4) ‘कुटिल काल’, ‘निपट निरंकुस’, ‘रिस रोकि’ तथा ‘करनी करहिं कहि ……………………..’ आदि में अनुप्रास अलंकार है। ‘भानु बंस राकेस कलंकू’ में रूपक तथा उपमा अलंकार है।

(5) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार-बार मोहि लागि बोलावा॥
सुनत लखन के बचन कठोरा। परसु सुधारि धरेऊ कर घोरा॥
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुबादी बालकु बधजोगू॥
बाल बिलोकि बहुत मैं बाँचा। अब यहु मरनिहार भा साँचा॥
कौसिक कहा छमिअ अपराधू। बाल दोष गुन गनहिं न साधू॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उतर देत छोड़उँ बिनु मारें। केवल कौसिक सील तुम्हारें॥
न त एहि काटि कुठार कठोरें। गुरहि उरिन होतेउँ श्रम थोरें॥
गाधिसूनु कह हृदयँ हँसि, मुनिहि हरिअरइ सुझ।
अयमय खाँड न ऊखमये, अजहुँ न बूझ अबूझे॥

शब्दार्थ-कालु = मृत्यु। हाँक जनु लावा = मानो हाँक कर ले आए हों, बलपूर्वक ले आए हों। मोहि लागि = मेरे लिए। बोलावा = बुला रहे हों। सुधारि = अच्छी तरह, सँवारकर। धरेऊ = उठा लिया, ले लिया। कर = हाथ। घोरा = भयंकर। जनि = मत, नहीं। देइ = दें। कटुबादी = कड़वा बोलने वाला। बधजोगू = मारने योग्य। बिलोकि = देखकर, जानकर। बाँचा = बचाया, छोड़ दिया। यह = यह। मरनिहार = मरने योग्य। भा= हो गया। साँचा = सच में। छमिअ = क्षमा कर दो। गनहिं. = गिनते हैं, ध्यान देते हैं। साधू = सज्जन। खर = पैना, धारदार। अकरुन = करुणारहित, निर्दय। कोही = क्रोधी। आगें = सामने। गुरुद्रोही = गुरु का अपमान करने वाला। उतर = उत्तर। सील = शील, सज्जनता। न त = नहीं तो। एहि = इसको। गुरहि = गुरु से। उरिन = ऋण से मुक्त। होतेउँ = हो जाती। श्रम = परिश्रम। थोरें = थोड़ा-सा। गाधिसूनु = गाधि के पुत्र, विश्वामित्र। हरियरे = हरा ही हरा। सूझ = दिखाई दे रहा है। अयमय = लोहे की। ऊखमय = ईख की, गन्ने से बनी। अजहूँ = अब भी। बूझ = जाना, समझा। अबूझ = अज्ञानी, नासमझे॥

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ महाकाव्य के बालकाण्ड से संकलित है। लक्ष्मण अपने व्यंग्यपूर्ण कथनों से परशुराम को निरंतर उत्तेजित और क्रुद्ध कर रहे हैं। विश्वामित्र उनसे शांत होने का अनुरोध कर रहे हैं।

व्याख्या-लक्ष्मण ने परशुराम से कहा- आप तो मानो मृत्यु को अपने साथ हाँककर ले आए हैं। इसीलिए बार-बार उसे मेरे लिए बुला रहे हैं। लक्ष्मण के ऐसे कठोर और व्यंग्यमय वचन सुनकर परशुराम ने अपने भयंकर फरसे को सँभालकर हाथ में ले लिया। वह कहने लगे–अब लोग मुझे इस बालक का वध करने पर दोष न दें। यह कटु वचन बोलने वाला लड़को मारने योग्य ही है। मैंने इसे बालक जानकर अब तक बहुत बचाया परन्तु अब यह वास्तव में मरने योग्य ही है।

बात बढ़ती देखकर विश्वामित्र ने परशुराम से कहा-मुनिवर ! सज्जन लोग बालकों के गुण-दोषों पर अधिक ध्यान नहीं देते इसलिए आप इसे क्षमा कर दीजिए। इस पर परशुराम ने कहा- मेरे हाथ में धारदार फरसा है और मैं बड़ा निर्दयी और क्रोधी हूँ। मेरे सामने घोर अपराधी और मेरे गुरु का अपमान करने वाला खड़ा है। वह बार-बार मुझे उत्तर पर उत्तर देता जा रहा है। इतना होते हुए भी मैं इसे आज बिना मारे छोड़ रहा हूँ तो केवल आपके शील-स्वभाव के कारण। नहीं तो अब तक मैं इसे कठोर फरसे से काटकर थोड़े ही परिश्रम से अपने गुरु के ऋण से मुक्त हो जाता।

यह सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हँसे और सोचने लगे कि मुनि परशुराम को अब भी हरा ही हरा सूझ रहा है। यह इन राम-लक्ष्मण को भी उन साधारण क्षत्रियों जैसा समझ रहे हैं जिनको इन्होंने सहज ही मार गिराया था। इनको पता नहीं कि ये राजकुमार गन्ने के रस से बनी खाँड़ न होकर लोहे की खाँड़ हैं। इनसे पार पाना असम्भव है। अज्ञानवश मुनि सच्चाई को नहीं समझ पा रहे हैं।

विशेष-
(1) काव्यांश की भाषा मुहावरेदार और व्यंग्य तथा रौद्र रस के अनुरूप है।
(2) परशुराम के क्रोधावेश का बड़ा सजीव और स्वाभाविक वर्णन हुआ है।
(3) रौद्र रस के अनुभवों का प्रकाशन बड़ां सजीव है।
(4) ‘बाल बिलोकि बहुत’, ‘गुन गनहिं न’ तथा ‘केवल कौसिक’ में अनुप्रास अलंकार है। बार-बार’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

(6) कहेउ लखन मुनि सील तुम्हारा। को नहिं जान बिदित संसारा॥
माता पितहि उरिन भए नीकें। गुरु रिनु रहा सोचु बड़ जीकें॥
सो जनु हमरेहि माथे काढ़ा। दिन चलि गए ब्याज बड़ बाढ़ा।
अब आनिअ ब्यवहरिआ बोली। तुरत देउँ मैं थैली खोली।
सुनि कटु बचन कुठार सुधारा। हाय हाय सब सभा पुकारा॥
भृगुबर परसु देखावहु मोही। बिप्र बिचारि बचउँ नृपद्रोही॥
मिले न, कबहुँ सुभट रन गाढ़े। द्विज देवता घरहि के बाढ़े॥
अनुचित कहि सब लोग पुकारे। रघुपति सयनहिं लखनु नेवारे॥
लखन उतरे आहुति सरिस, भृगुबर कोपु कृसानु॥
बढ़त देखि जल सम बचन, बोले रघुकुल भानु॥

शब्दार्थ-सील = स्वभाव, व्यवहार। बिदित = ज्ञात, विख्यात। उरिन = ऋण से मुक्त। भए = हुए। नीकें = अच्छी तरह। गुरु रिनु = गुरु का ऋण। सोचु = चिंता। बड़ = बड़ा। जी = हृदय। सो = वह। हमरेहि = हमारे। माथे काढ़ा = मत्थे मढ़ दिया, हम पर निकाल दिया। चलि गए = बीत गए। बड़ = बहुत। बाढ़ा = बढ़ गया। आनिअ = ले आईए। ब्यवहरिआ = हिसाब लगाने वाला, गणना करने वाला। तुरत = तुरंत, अभी। कटु = कड़वे। सुधारा = सँभाल लिया। भृगुबर = परशुराम। मोही = मुझे। बिप्र = ब्राह्मण। बिचारि = जानकर। बचउँ = बेच रहा हूँ, छोड़ रहा हूँ। नृपद्रोही = राजाओं या क्षत्रियों से द्वेष रखने वाला। सुभट = अच्छे योद्धा। रन = युद्ध। गाढ़े = दृढ़, लड़ाकू। द्विज देवता = ब्राह्मण देवता। घरहि के = घरे के ही। बाढ़ = बढ़े हुए, श्रेष्ठ बने हुए। रघुपति = राम। सयनहिं = नेत्रों के संकेत से। नेवारे = रोका, मना किया। आहुति = अग्नि को भड़काने वाली सामग्री। संरिस = समाने। भृगुबर कोपु = परशुराम का क्रोध। कृसानु = अग्नि। रघुकुल भानु = रघुवंश में सूर्य के समान तेजस्वी, राम।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश कवि तुलसीदास जी के द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ नामक महाकाव्य के बालकाण्ड से लिया गया है। इस प्रसंग में लक्ष्मण परशुराम के बड़बोलेपन पर व्यंग्य करके उन्हें चिढ़ा रहे हैं। उनके सीमा से बाहर, कठोर वचनों को लोग अनुचित बता रहे हैं और राम उन्हें संकेत से चुप हो जाने को कह रहे हैं।

व्याख्या-लक्ष्मण ने परशुराम से कहा-आप कितने शील स्वभाव वाले हैं, यह बात सारा संसार जानता है। माता-पिता के ऋण से तो आप बड़ी अच्छी तरह मुक्त हो गए लेकिन गुरु का ऋण बाकी रह जाने से आपके मन में बंड़ी चिंता थी। आपने उस ऋण को हमारे माथे मढ़ दिया। दिन भी बहुत हो गए इसलिए इस ऋण का ब्याज भी काफी बढ़ गया होगा। अब आप किसी हिसाब लगाने वाले को बुला लीजिए। आपका जितना ऋण निकलेगा मैं तुरंत थैली खोलकर चुका हूँगा। लक्ष्मण के इन कटु व्यंग्य वचनों को सुनकर परशुराम ने अपना फरसा सँभाल लिया। वह लक्ष्मण पर प्रहार करने को उद्यत हो गए। यह देख सारी सभा हाहाकार करने लगी।

इतने पर भी लक्ष्मण चुप नहीं हुए और बोले- हे भृगुवंशी! आप मुझे फरसा दिखाकर डराना चाहते हैं। अरे क्षत्रियों के शत्रु ! आप ब्राह्मण हैं इसीलिए मैं आपसे युद्ध करने से बच रहा हूँ। आपका अभी तक युद्ध में अच्छे योद्धाओं से पाला नहीं पड़ा। आप घर में ही वीर बने हुए हैं। लक्ष्मण को अभद्र वचन कहते सुनकर सभी लोग उनके व्यवहार की निन्दा करने लगे तब राम ने नेत्रों के संकेत से लक्ष्मण को अधिक बोलने से मना किया। परशुराम की क्रोधरूपी अग्नि को लक्ष्मण के उत्तर आहुति के समान भड़का रहे थे। तब क्रोधाग्नि को बढ़ते देखकर राम ने जल के समान शीतल वचन बोलकर परशुराम के क्रोध को शांत करने का प्रयास किया॥

विशेष-
(1) काव्यांश की भाषा साहित्यिक और प्रवाहपूर्ण है। माथे काढ़ना, घर के ही बड़े होना आदि मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा भावों को व्यक्त करने में समर्थ है। पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग है।
(2) छंद चौपाई तथा दोहा हैं।
(3) रस वीर और रौद्र हैं।
(4) ‘ब्याज बड़ बाढ़ा’, ‘बिप्र बिचारि बचउँ’ में अनुप्रास’हाय हाय’ में पुनरुक्ति प्रकाश, ‘लखन उतर आहुति सरिस’, ‘जल सम वचन’ में उपमा तथा रघुकुल भानु’ में रूपक अलंकार है। ‘मात पितहिं उरिन भए नीके’ में वक्रोक्ति अलंकार है।

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