RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् वाच्य-परिवर्तनम्

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Rajasthan Board RBSE Class 10 Sanskrit व्याकरणम् वाच्य-परिवर्तनम्

संस्कृत-भाषायां, सर्वासु भारतीयभाषासु, अन्यासु च भारोपीयभाषासु वीच्यस्य महत्त्वपूर्ण स्थानं वर्तते । वाच्यस्य सम्यग्ज्ञानं विना भाषायाः आकारः न अवगम्यते । (संस्कृत भाषा में, सभी भारतीय भाषाओं में और अन्य भारोपीय भाषाओं में वाच्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वाच्य के सही ज्ञान के बिना भाषा के आकार को नहीं जाना जाता है।)

संस्कृतभाषायां त्रीणि वाच्यानि भवन्ति- कर्तृवाच्यं, कर्मवाच्य, भाववाच्यं च। क्रियया कथितं कथनप्रकारम् वाच्यम् । कर्तृ-कर्म-भावेषु क्रियया एव: कथ्यते । अतः क्रिया कर्तृवाच्ये, भाववाच्ये वा भवति । (संस्कृत भाषा में तीन वाच्य होते हैं. कर्तृवाच्य, कर्मवाच्य और भाववाच्य। क्रिया के द्वारा कहा गया कथन का प्रकार वाच्य है। कर्तृ-कर्म-भाव में क्रिया द्वारा ही कहा जाता है। अत: क्रिया कर्तवाच्य, कर्मवाच्य तथा भाववाच्य में होती है।)

‘पठति’ इति कथिते सति प्रश्न: समुदेति यत् ‘क: पठति ?’ अस्य उत्तररूपेण कथ्यते- ‘कोऽपि पठनकर्ता पठति’ इति । अनेन प्रकारेण अत्र क्रियया कर्ता सूच्यते, अत: ‘पठति’ इत्यत्र कर्तृवाच्यमस्ति । अन्यतः ‘पठ्यते’ इति कथिते सति प्रश्न: समुदेति ‘किम् पठ्यते’ इति । उत्तररूपेण कथयितुं शक्यते यत् कोऽपि ग्रन्थः किमपि पुस्तकं वा पठ्यते । अनेन स्पष्टं यत् अत्र पठ्यते क्रियया कर्म उच्यते। अत: ‘पठ्यते’ इत्यत्र कर्मवाच्यमस्ति । कर्तृवाच्यं तु सकर्मकाकर्मकाणां सर्वासामेव क्रियाणां भवति, किन्तु कर्मवाच्यं सकर्मकक्रियाणामेव भवितुं शक्यते, तत्र कर्मण: सद्भावात् । यासां क्रियाणां कर्म न भवति ताः अकर्मकक्रियाः कथ्यन्ते, यथा ‘हस्’, ‘शी’ इत्यादयः। संस्कृतभाषायां अकर्मकक्रियाभि: भाववाच्यं कर्तृवाच्यं च भवति । तत्र कर्मणः अविद्यमानत्वात् कर्मवाच्यं कर्तुं न शक्यते । उदाहरणार्थं ‘स्वप्’ अकर्मक अस्ति । तत्र भाववाच्यं ‘सुप्यते’ भविष्यति । भावस्य अर्थ अस्ति ‘क्रिया’। अर्थात् ‘सुप्यते’ पदेन नैव कर्ता कथ्यते नापि कर्म कथ्यते, अपितु क्रिया एवं कथ्यते । अत: ‘सुप्यते’ भाववाच्यमस्ति । सामान्यरूपेण अत्र वाच्यानां स्वरूपं प्रदर्शितम्।

वाक्यरचनाविशेषे वाच्यानुसारिणः केचन नियमाः सन्ति, तेषां ज्ञानं वाक्यरचनायै आवश्यकम्।

(“पठति’ यह कहते ही प्रश्न उठता है कि कः पठति ? (कौन पढ़ता है?) इसके उत्तर रूप में कहा जाता है-‘कोऽपि पठनकर्ता पठति’ (कोई भी पढ़ने वाला पढ़ता है।) इस प्रकार से यहाँ क्रिया से कर्ता सूचित होता है, अतः ‘पठति’ यह कर्तृवाच्य है। दूसरे आधार पर ‘पठ्यते’ यह कहते ही प्रश्न उठता है कि ‘‘कोऽपि ग्रन्थः किमपि पुस्तकं वा पठ्यते” (कोई भी ग्रन्थ अथवा कोई भी पुस्तक पढ़ी जाती है।) इससे स्पष्ट है कि यहाँ पठ्यते क्रिया से कर्म कहा जाता है। अत: ‘पठ्यते’ कर्मवाच्य है। कर्तृवाच्य तो सकर्मक-अकर्मक सभी क्रियाओं का होता है, किन्तु कर्मवाच्य सकर्मक क्रियाओं को ही हो सकता है, वहाँ कर्म के सद्भाव से क्रिया होती है अर्थात् क्रिया कर्म के अनुसार होती है। जिन क्रियाओं का कर्म नहीं होता है वे अकर्मक क्रिया कही जाती हैं, जैसे ‘हस’, ‘शी’ इत्यादि। संस्कृत भाषा में अकर्मक क्रिया के द्वारा भाववाच्य और कर्तृवाच्य होता है। वहाँ कर्म के अविद्यमान रहने से कर्मवाच्य बनाया नहीं जा सका है। उदाहरणार्थ- ‘स्वप्’ अकर्मक (क्रिया) है। उसका भाववाच्य ‘सुप्यते’ होगा। भाव का अर्थ है- ‘क्रिया’ अर्थात् ‘सुप्यते’ पद से न ही कर्ता कहा जाता है। न ही कर्म कहा जाता है, अपितु क्रिया ही कही जाती है। अत: ‘सुप्यते’ भाववाच्य है। सामान्य रूप से यहाँ वाच्यों का स्वरूप प्रदर्शित किया जा रहा है।

वाक्य रचना विशेष में वाच्यों के अनुसार कुछ नियम हैं, उनका ज्ञान वाक्य रचना के लिए आवश्यक है।)

कर्तृवाच्यम्
कर्तृवाच्ये कर्तुः प्राधान्यं भवति, अतः क्रिया लिङ्गपुरुषवचनेषु कर्तारमनुसरित । तद्यथा-बालकः विद्यालयं गच्छति । बालकौ विद्यालयं गच्छतः। बालका: विद्या यं गच्छन्ति । त्वं किं करोषि ? युवां किं कुरुथः? यूयं किं कुरुथ? अहं ग्रन्थं पठामि। आवां ग्रन्थौ पठावः। वयं ग्रन्थान् पठाम:। उक्तञ्च

कर्तरि प्रथमा यत्र द्वितीयोऽथ च कर्मणि।
कर्तृवाच्यं भवेत् तत्तु क्रिया कत्रनुसारिणी।।

(कर्तृवाच्य में (कर्ता की प्रधानता) कर्ता प्रधान होता है, अत: क्रिया लिङ्ग, पुरुष, वचन में कर्ता का अनुसरण करती है (अर्थात् क्रिया कर्ता के लिङ्ग, पुरुष तथा वचन के अनुसार होती है।) जैसे- बालक विद्यालय जाता है। दो बालक विद्यालय जाते हैं। बहुत से बालक विद्यालय जाते हैं। तुम क्या करते हो? तुम दोनों क्या करते हो? तुम सब क्या करते हो? मैं ग्रन्थ पढ़ता हूँ। हम दोनों दो ग्रन्थ पढ़ते हैं। हम सब ग्रन्थों को पढ़ते हैं। कहा भी है

“जहाँ कर्ता में प्रथमा और कर्म में द्वितीया हो। क्रिया कर्ता के अनुसार हो तो कर्तृवाच्य होना चाहिए।”)

कर्मवाच्यम्।
अत्र कर्मणः प्राधान्यं भवति । अतः क्रिया लिङ्गपुरुषवचनेषु कर्मानुसारिणी। कर्तृवाच्यस्य कर्ता कर्मवाच्ये तृतीया विभक्तौ भवति कर्म च प्रथमा-विभक्तौ भवति। अत्र सर्वाः धातवः आत्मनेपदिनः भवन्ति, मध्ये ‘य’ युज्यते च। तद्याथा-छात्रेण । विद्यालयः गम्यते । छात्राभ्यां पुस्तके पठ्येते। अस्माभिः पद्यानि पठ्यन्ते । तदुक्तम्

कर्मणि प्रथमा यत्र तृतीयाऽथ कर्तरि।
कर्मवाच्यं भवेत् तत्तु कर्मानुसारिणी।।

संस्कृतभाषायां कर्मवाच्यस्य, भाववाच्यस्य च प्रयोग: बहुशः क्रियते ।
(यहाँ कर्म की प्रधानता होती है। अतः क्रिया लिङ्ग, पुरुष और वचनों में कर्म का अनुसरण करती है (अर्थात् क्रिया कर्म के लिङ्ग, पुरुष और वचन के अनुसार होती है।) कर्तृवाच्य का ‘कर्ता’ कर्मवाच्य में तृतीया विभक्ति का होता है। यहाँ सभी धातुएँ आत्मनेपदी की होती हैं और उनके बीच में ‘य’ जुड़ जाता है। जैसे- छात्र के द्वारा विद्यालय जाया जाता है। “छात्राभ्यां पुस्तके पठ्येते” (दो छात्रों के द्वारा दो पुस्तकें पढ़ी जाती हैं। हमारे द्वारा पद्य पढ़े जाते हैं। कहा भी है

“जहाँ कर्म में प्रथमा और कर्ता में तृतीया हो। क्रिया कर्म के अनुसार हो तो वह कर्मवाच्य होना चाहिए।”
संस्कृत भाषा में कर्मवाच्य और भाववाच्य का प्रयोग बहुत किया जाता है।)

भाववाच्यम्
अकर्मकधातूनां कर्मवाच्यसदृशं रूपं यस्मिन् प्रयोगे दृश्यते सः भाववाच्य-प्रयोगः। अत्र क्रिया केवलं भावं सूचयति ।। अतः सा सदैव केवलं प्रथमपुरुषैकवचने प्रयुज्यते । सा कर्तुः लिङ्गपुरुषवचनानि नैव अनुसरति । यत्र लिङ्गम् अपेक्षितं तत्र नपुंसकलिङ्गकवचनमेव प्रयुज्यते । कृदन्ते क्रिया-प्रयोगे कृते सति सा नपुंसकलिङ्गप्रथमैकवचने एवं स्यात् । भाववाच्ये प्रथमाविभक्तयन्त पदं नैव दृश्यते। भाववाच्येऽपि कर्ता तृतीयाविभक्तौ भवति। तद्यथा- (अकर्मक धातुओं का कर्मवाच्य के समान रूप जिस प्रयोग में दिखाई देता है वह भाववाच्य प्रयोग होता है। यहाँ क्रिया केवल भाव को सूचित करती है। अतः क्रिया सदैव केवल प्रथम पुरुष एकवचन में प्रयुक्त की जाती है। वह (क्रिया) कर्ता के लिङ्ग, पुरुष, वचनों को अनुसरण नहीं करती है। जहाँ लिङ्ग अपेक्षित (आवश्यक) होता है वहाँ नपुंसकलिङ्ग एकवचन ही प्रयुक्त होता है। क्रिया का प्रयोग कृदन्त में करने पर वह नपुंसकलिङ्ग प्रथम एकवचन में ही होवे। भाववाच्य में प्रथमा विभक्ति से अन्त होने पर पद दिखाई ही नहीं देते। भाववाच्य में भी कर्ता तृतीया विभक्ति में होता है। जैसे-)

Vachya Parivartan In Sanskrit RBSE Class 10

जायते/ खेल्यते/ हस्यते/ सुप्यते/ म्रियते/ जातम्/ खेलितम्/ हसितम्/ सुप्तम् । तदुक्तम् यथा

भावाच्ये क्रिया वक्ति न कर्तार न कर्म च।
तत्र कर्ता तृतीयायां क्रिया भावानुसारिणी।।
भावे तु कर्मवाच्यक्रियैकवचने प्रथमपुरुषे ।
सा चेद्भवेद्कृदन्ता क्लीबप्रथमैकवचने स्यात् ।।

(भाववाच्य में क्रिया कहने वाली होती है न कर्ता कहता है न कर्म। वहाँ कर्ता में तृतीया होती है और क्रिया भाव के अनुसार होती है। भाव में तो कर्मवाच्य की क्रिया प्रथम पुरुष एकवचन में होती है और वह क्रिया कृदन्त होनी चाहिए जो नपुंसकलिङ्ग प्रथमा एकवचन में हो ।)

अकर्मकधातवः सन्तिः – लज्ज्, भू, स्था, जागृ, वृध्, क्षि, भी, जीव, मृ, कुट्, कण्ठ्, भ्रम्, यत्, ग्लौ, जु, कृप्, च्युत्, शम्, ध्वन्, मस्ज्, कद्, जृम्भ्, रम्भ्, रुद्, हस्, शी, क्रीड्, रुच्, दीप् इति इमे; एतत्समानार्थकधातवश्च। पद्ये उपर्युक्तधातून परिगणनं निम्नप्रकारेण कृतम्- (लज्ज, भू, स्था, जागृ, वृधृ, क्षि, भी, जीव, भृ, कुट्, कण्ठ्, भ्रम्, यत्, ग्लौ, जु, कृप्, व्यतु, शम्, ध्वन, मस्ज्, कद्, जुम्भ, रम्भ्, रुद्, हस्, शी, क्रीड्, रुच्, दीप, ये और इनके समानार्थक धातुएँ । पद्य में उपर्युक्त धातुओं का परिगणन निम्न प्रकार से किया गया है-)

लज्जासत्तास्थितिजागरणं, वृद्धिक्षयभयजीवितमरणम् ।
कौटिल्यौत्सुक्य भ्रमयत्नग्लानिजरा सामर्थ्य क्षरणम्।।
शान्तिध्वनिमज्जनवैकल्यं, जृम्भणरम्भणरोदनहसनम् ।
शयनक्रीडारुचिदीप्त्यर्थं, धातुगणं तमकर्मकमाहुः ।।

एतदतिरिक्तान्यधातवः तु सकर्मकाः एव । अत्र कर्तृकर्मानुसारिणी कर्तृकर्मवाच्ययो: तालिका प्रस्तूयते । अनया तालिकया वाच्यपरिवर्तनाभ्यास: कर्त्तव्यः- (इसके अतिरिक्त अन्य धातुएँ सकर्मक होती हैं। यहाँ कर्ता-कर्म के अनुसार कर्ता-कर्म वाच्यों को तालिका में प्रस्तुत किया है। इस तालिका से वाच्य-परिवर्तन का अभ्यास करना चाहिए-)

वाच्य परिवर्तन संस्कृत RBSE Class 10
Vachya Parivartan In Sanskrit Class 10 RBSE

वाच्य-परिवर्तन की विधि

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन करने के लिए वाक्य में कर्ता का तृतीया विभक्ति में तथा कर्म को प्रथमा विभक्ति में परिवर्तन करके कर्म के पुरुष एवं वचन के अनुसार कर्मवाच्य की क्रिया लगाते हैं ।
जैसे – (i) रामः पाठं पठति । (राम पाठ पढ़ता है ।) – कर्तृवाच्य (क्रिया सकर्मक)
रामेण पाठः पठ्यते । (राम द्वारा पाठ पढ़ा जाता है ।) – कर्मवाच्य

इसी प्रकार से कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाने के लिए भी कर्ता को तृतीया में परिवर्तित करके क्रिया को प्रथम पुरुष एकवचन (आत्मनेपद) में लगाते हैं । जैसे –
(i) बालकः हसति । (कर्तृवाच्य) – क्रिया अकर्मक
बालकेन हस्यते । (भाववाच्य)

(ii) वयं हसामः । (कर्तृवाच्य) – क्रिया अकर्मक
अस्माभिः हस्यते । ( भाववाच्य)

कर्मवाच्य एवं भाववाच्य की क्रिया
कर्मवाच्य एवं भाववाच्य में सभी प्रकार की क्रियाओं का प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु धातु चाहे परस्मैपदी हो या अत्मनेपदी, दोनों का प्रयोग आत्मनेपद में ही होता है । कर्म एवं भाववाच्य की क्रिया बनाने के नियम इस प्रकार हैं –

1. मूल धातु के बाद ‘य’ लगाया जाता है । जैसे – पठ् -पठ्य, लिख्-लिख्य, गम्-गम्य, सेव्-सेव्य, लभ्-लभ्य आदि ।
2. इन दोनों प्रकार की धातुओं के रूप आत्मनेपद में ही चलाये जाते हैं, जैसे
पठ् – पठ्यते, पट्येते, पठ्यन्ते । (परस्मैपद) सेव् – सेव्यते, सेव्येते, सेव्यन्ते । ( आत्मनेपद)
3. ऋकारान्त धातुओं के अन्तिम ऋ का प्रायः ‘रि’ हो जाता है, जैसे – कृ-क्रियते, मृ-म्रियते आदि परन्तु स्मृ, जाग्र
आदि कुछ धातुएँ इसका अपवाद हैं । इनके ऋ का अर् होता है । जैसे – स्मृ-स्मर्यते, जागृ-जागर्यते आदि ।

4. धातु के आरम्भ के य, व का प्राय: क्रमशः इ, उ हो जाता है। जैसे –
यज् – इज्यते, वच् – उच्यते, वष् – उष्यते, वप् – उप्यते, वह् – उह्यते, वद् – उद्यते ।

5. प्रच्छ एवं ग्रह आदि धातुओं के र का ऋ हो जाता है । जैसे – प्रच्छ – पृच्छ्यते, ग्रह – गृह्यते आदि ।

6. धातु के अन्तिम इ, उ का दीर्घ हो जाता है । जैसे –
ई-ईयते , चि-चीयते, जि-जीयते, नी-नीयते, क्री-क्रीयते, श्रु-श्रूयते हु – हूयते, दु – दूयते आदि ।

7. आकारान्त धातुओं के ‘आ’ का ई हो जाता है । जैसे – | दा – दीयते, पा-पीयते, स्था-स्थीयते, हा-हीयते, विधा-विधीयते, मा-मीयते आदि । परन्तु कुछ आकारान्त
धातुओं के ‘आ’ का परिवर्तन नहीं होता । जैसे – घ्रा-घ्रायते, ज्ञा-ज्ञायते आदि ।।

8. उपधा के अनुस्वार (‘) या उससे बने पञ्चम वर्ण का लोप हो जाता है । जैसे –
बन्ध् – बध्यते, रञ्ज – रज्यते, मन्थ्-मथ्यते, ग्रन्थ्-ग्रथ्यते, प्रशंस् – प्रशस्यते, दंश् – दश्यते, परन्तु शङ्क, वञ्च आदि में ऐसा नहीं होता ।।

9. धातु के अन्तिम ऋ का ईर् हो जाता है । जैसे
वि + दृ = विदीर्यते, निगृ = निगीर्यते, उद् + तृ = उत्तीर्यते, जृ – जीर्यते, शृ – शीर्यते ।

10. दीर्घ ई, ऊ अन्त वाली तथा सामान्य हलन्त धातुओं से सीधा ‘य’ जोड़कर आत्मनेपद में रूप चलाये जाते हैं ।
जैसे- नी – नीयते, भू – भूयते, क्रीड् -क्रीड्यते, पच् – पच्यते आदि ।
कर्मवाच्य की धातुओं के रूप तीनों पुरुषों में तीनों वचनों में चलते हैं । जैसे –

Vachya Parivartan Sanskrit Class 10 RBSE

लेट्लकारे कतिपय धातूनां कर्मवाच्यरूपाणि (प्रथम पुरुषे) अत्र प्रस्तूयन्ते । अन्य धातूनां रूपाणि अनेन प्रकारेण निर्मातुं शक्यते । (लट् लकार में कुछ धातुओं के कर्मवाच्य रूप (प्रथम पुरुष में) यहाँ पस्तुत किये जा रहे हैं। अन्य धातुओं के रूप इसी प्रकार से बनाये जा सकते हैं।)

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना संस्कृत RBSE Class 10

भाववाच्ये क्रिया प्रथमपुरुषैकवचने एव प्रयुज्यते। ( भाववाच्य में क्रिया प्रथम पुरुष एकवचन में ही प्रयुक्त की जाती है।)

अन्य धातून उदाहरणानि

कर्मवाच्य और भाववाच्य के रूप
Vachya Parivartan Sanskrit RBSE Class 10
संस्कृत वाच्य परिवर्तन RBSE Class 10

वाच्य-परिवर्तनस्य अन्यानि उदारणानि (वाच्य-परिवर्तन के कुछ अन्य उदाहरण)

Vachya Parivartan In Sanskrit (1) कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य – कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य में परिवर्तन करते समय वाक्य के कर्ता को तृतीया विभक्ति में, कर्म को प्रथमा में परिवर्तित करके क्रिया को कर्म के अनुसार बनाया जाता है ।
संस्कृत में वाच्य परिवर्तन के उदाहरण RBSE Class 10

वाच्य परिवर्तन संस्कृत (2) कर्मवाच्य से कर्तृवाच्य – कर्ता प्रथमा विभक्ति में तथा कर्म को द्वितीया विभक्ति में करके कर्ता के अनुसार क्रिया लगायी जाती है।

कर्मवाच्य के 10 उदाहरण In Sanskrit RBSE

Vachya Parivartan In Sanskrit Class 10 (3) कर्तृवाच्य से भाववाच्य – कर्ता को तृतीया विभक्ति में परिवर्तित करके क्रिया प्रथम पुरुष एकवचन की कर्मवाच्य की जैसी आत्मनेपदी रूप में लगायी जाती है ।

Vakya Parivartan In Sanskrit RBSE Class 10

Vachya Parivartan Sanskrit Class 10 (4) भाववाच्य से कर्तृवाच्य – कर्ता जो तृतीया विभक्ति में होता है उसे प्रथमा विभक्ति में परिवर्तित करके कर्ता के पुरुष एवं वचन के अनुसार क्रिया लगायी जाती है । जैसे –
संस्कृत में वाच्य परिवर्तन RBSE Class 10
वाच्य परिवर्तन Class 10 In Sanskrit RBSE

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना संस्कृत (5) द्विकर्मक धातुओं के कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य – द्विकर्मक धातुएँ कुल 16 होती हैं – दुह, याच्, पच्, दण्ड्, रुध्, प्रच्छ, चि, ब्रू, शास्, जि, मथ्, मुष्, नी, हु, कृष्, वह् । कर्मवाच्य बनाते समय गौण ( अप्रधान) कर्म में प्रथमा तथा मुख्य कर्म में द्वितीया ही होती है । कर्ता तो तृतीया में ही होता है तथा क्रिया गौण कर्म के अनुसार होती है, जैसे –
Vachya In Sanskrit RBSE Class 10

अभ्यासः

(1) अधोलिखित वाक्यानां वाच्यपरिवर्तनं कृत्वा उत्तरपुस्तिकायां लिखते –
(निम्नलिखित वाक्यों का वाच्य परिवर्तन करके उत्तर पुस्तिका में लिखिए -)

Vachya Parivartan Sanskrit 1. (i) छात्रः पुरस्कारं गृह्णाति । (छात्र पुरस्कार ग्रहण करता है।)
(ii) छायाकार : छायाचित्रं रचयति । (छायाकार छायाचित्र बनाता है ।)
(iii) अहं लेख लिखामि । (मैं लेख लिखता हूँ ।)
उत्तरम्:
(i) छत्रेण पुरस्कारः गृह्यते । (छात्र द्वारा पुरस्कार ग्रहण किया जाता है ।)
(ii) छायाकारेण छायाचित्रं रच्यते । (छायाकार द्वारा छायाचित्र बनाया जाता है ।)
(iii) मया लेखः लिख्यते । (मेरे द्वारा लेख लिखा जाता है ।)

संस्कृत वाच्य परिवर्तन 2. (i) वृक्षाः फलानि ददति । (वृक्ष फल देते हैं ।)
(ii) छात्रा: गुरून् नमन्ति । (छात्र गुरुओं को नमस्कार करते हैं ।)
(iii) पापी पापं करोति । (पापी पाप करता है ।)
उत्तरम्:
(i) वृक्षै: फलानि दीयन्ते । (वृक्षों द्वारा फल दिए जाते हैं ।)
(ii) छात्रैः गुरवः नम्यन्ते । (छात्रों द्वारा गुरुओं को नमस्कार किया जाता है ।)
(iii) पापिना पापं क्रियते । (पापी द्वारा पाप किया जाता है ।)

संस्कृत में वाच्य परिवर्तन के उदाहरण 3. (i) विद्या विनयं ददाति । (विद्या विनय देती है।)
(ii) अहं पितरं सेवे । (मैं पिता की सेवा करता हूँ।)
(iii) त्वं मां पृच्छति । (तुम मुझे पूछते हो।) ।
उत्तरम्:
(i) विद्यया विनय: दीयते । (विद्या द्वारा विनय दी जाती है ।)
(ii) मया पिता सेव्यते । मेरे द्वारा पिताजी की सेवा की जाती है ।)
(iii) त्वया अहं पृच्छ्ये । (तुम्हारे द्वारा मैं पूछा जाता हूँ ।)

कर्मवाच्य के 10 उदाहरण In Sanskrit 4. (i) नृपः शत्रु हन्ति । (राजा शत्रु को मारता है।)
(ii) सर्पा: पवनं पिबन्ति । (सर्प वायु पीते हैं ।)
(iii) वृद्धः वेदान् पठति । (वृद्ध वेदों को पढ़ता है ।)
उत्तरम्:
(i) नृपेण शत्रुः हन्यते । (राजा द्वारा शत्रु को मारा जाता है ।)
(ii) सपैः पवन: पीयते । (सर्पो द्वारा पवन पिया जाता है ।)
(iii) वृद्धेन वेदाः पठ्यन्ते । (वृद्ध द्वारा वेद पढ़े जाते हैं ।)

Vakya Parivartan In Sanskrit 5. (i) त्वं कथां शृणोषि । (तुम कथा सुनते हो ।)
(ii) अहं मोहं त्यजामि । (मैं मोह छोड़ता हूँ ।)
(iii) रामेण जनकः प्रणम्यते । (राम द्वारा जनक को प्रणाम किया जाता है।)
उत्तरम्:
(i) त्वया कथा श्रूयते । (तुम्हारे द्वारा कथा सुनी जाती है ।)
(ii) मया मोहः त्यज्यते । (मेरे द्वारा मोह त्यागा जाता है ।)
(iii) रामे: जनकं प्रणमति । (राम जनक को प्रणाम करता है ।)

संस्कृत में वाच्य परिवर्तन 6. (i) अहं पाठं स्मरामि । (मैं पाठ याद करता हूँ)
(ii) मया नित्यं व्यायामः क्रियते । (मेरे द्वारा नित्य व्यायाम किया जाता है ।)
(iii) बालकः हसति । (बालक हँसता है ।)
उत्तरम्:
(i) मया पाठः स्मर्यते । (मेरे द्वारा पाठ याद किया जाता है । )
(ii) अहं नित्यं व्यायामं करोमि । (मैं नित्य व्यायाम करता हूँ ।)
(iii) बालकेन हस्यते । (बालक द्वारा हँसा जाता है ।)

वाच्य परिवर्तन Class 10 In Sanskrit 7. (i) भवान् भ्रमणाय गच्छति । (आप भ्रमण के लिए जाते हैं ।)
(ii) दिव्या गीतां पठति । (दिव्या गीता पढ़ती है ।)
(iii) मया फलानि खाद्यन्ते । (मेरे द्वारा फल खाये जाते हैं ।)
उत्तरम्:
(i) भवता भ्रमणाय गम्यते । (आपके द्वारा घूमने जाया जाता है ।)
(ii) दिव्यया गीता पठ्यते । (दिव्या द्वारा गीता पढ़ी जाती है ।)
(iii) अहं फलानि खादामि । (मैं फल खाता हूँ ।)

Vachya In Sanskrit 8. (i) मया तु अत्रैव स्थीयते । (मेरे द्वारा यहीं ठहरा जाता है ।)
(ii) त्वम् अभ्यास पुस्तिकायाम् उत्तराणि लिखासि । (तुम अभ्यास पुस्तिका में उत्तर लिखते हो ।)
(iii) अधिकारी प्रार्थनां शृणोति । (अधिकारी प्रार्थना को सुनता है ।)
उत्तरम्:
(i) अहं तु अत्रैव तिष्ठामि । (मैं तो यहीं ठहता हूँ )
(ii) त्वया अभ्यासपुस्तिकायाम् उत्तराणि लिख्यन्ते । (तुम्हारे द्वारा अभ्यास पुस्तिका में उत्तर लिखे जाते हैं ।)
(iii) अधिकारिणी प्रार्थना श्रूयते । (अधिकारी द्वारा प्रार्थना सुनी जाती है ।)

Vachya Parivartan Class 10 Sanskrit 9. (i) कृष्ण: कंसं हन्ति । (कृष्ण के द्वारा कंस को मारता है ।)
(ii) अहं तु समाचारान् शृणोमि । (मैं समाचार सुनता हूँ ।)
(iii) जनैः रामायणी कथा श्रूयते । (लोगों द्वारा रामायण की कथा सुनी जाती है ।)
उत्तरम्:
(i) कृष्णेन केस: हन्यते । (कृष्ण के द्वारा कंस मारा जाता हैं ।)
(ii) मया तु समाचाराः श्रूयन्ते । (मेरे द्वारा तो समाचार सुने जाते हैं ।)
(iii) जना: रामायण कथां शृण्वन्ति । (लोग रामायण की कथा सुनते है ।)

Sanskrit Vachya Parivartan 10. (i) रेखा उत्तर पुस्तिका या उत्तराणि लिखति । (रेखा कापी में उत्तर लिखती है ।)
(ii) बालिकाया नृत्यते । (लड़की द्वारा नाचा जाता है ।)।
(iii) गुरु: शिष्यान् पाठयति । (गुरु शिष्यों को पढ़ाता है ।)
उत्तरम्:
(i) रेखया उत्तर पुस्तिकायां उत्तराणि लिख्यन्ते । (रेखा द्वारा कापी में उत्तर लिखे जाते हैं ।)
(ii) बालिका नृत्यति । (बालिका नाचती है ।)
(iii) गुरुणा शिष्या: पाठ्यन्ते । (गुरु द्वारा शिष्यों को पढ़ाया जाता है ।)

संस्कृत वाच्य परिवर्तनम् Utkarsh 11. (i) माता ओदनं पचति । (माता चावल पकाती है ।)
(ii) भक्ता: देवान् पूजयन्ति । (भक्त देवताओं को पूजते हैं ।)
(iii) तदनन्तरं मया गीता श्रूयते । (उसके बाद मेरे द्वारा गीत सुनी जाती हैं ।)
उत्तरम्:
(i) मात्रा ओदेन: पेच्यते । (माता जी द्वारा चावल पकाये जाते हैं ।
(ii) भक्त: देवाः पूज्यन्ते । (भक्तों द्वारा देवता पूजे जाते हैं ।)
(iii) रमन्ते तत्र देवाः । (वहाँ देव रमण करते हैं ।)

Vachya In Sanskrit Class 10 12. (i) अहं पार्ट कण्ठस्थं करोमि । (मैं पाठ को कण्ठस्थ करता हूँ ।)
(ii) त्वया कि क्रियते ? (तुम्हारे द्वारा क्या किया जाता है ?) ।
(iii) अहं फलानि क्रीणामि । (मैं फल खरीदता हूँ ।)
उत्तरम्:
(i) मया पाठः कण्ठस्थः क्रियते । (मेरे द्वारा पाठ कंठस्थ किया जाता है ।)
(ii) त्वं किं करोषि । (तुम द्वारा क्या करते हो ?)
(iii) मया फलानि क्रीयन्ते । (मेरे द्वारा फल खरीदे जाते हैं ।)

वाच्य परिवर्तन संस्कृत में 13. (i) मया सुप्यते । (मेरे द्वारा सोया जाता है ।)
(ii) त्वं प्रदर्शनीं पश्यसि । (तू प्रदर्शनी देखती है ।)
(iii) अधुना मया कुत्रापि न गम्यते । (अब मेरे द्वारा कहीं नहीं जाया जा रहा है ।)
उत्तरम्:
(i) अहं स्वपिमि । ( मैं सोता हूँ ।)।
(ii) त्वया प्रदर्शनी दृश्यते । (तुम्हारे द्वारा प्रदर्शनी देखी जाती है ।)
(iii) अधुना अहं कुत्रापि न गच्छामि । (अब मैं कहीं नहीं जा रहा हूँ ।)

Vachya Parivartan In Sanskrit Class 10 Examples 14. (i) महापुरुषा: ईश्वरं ध्यायन्ति । (महापुरुष ईश्वर का ध्यान करते है ।)
(ii) यत्र नार्य: पूज्यन्ते । (जहाँ नारियाँ पूजी जाती हैं ।)
(iii) एषी मालाम् अपि रचयति । (यह माला भी बनाती है ।)
उत्तरम्:
(i) महापुरुषैः ईश्वरः ध्यायते ।(महापुरुषों द्वारा ईश्वर का ध्यान किया जाता है ।)
(ii) यत्र नारी: पूजयन्ति । (जहाँ नारियों को पूजते हैं ।)
(iii) अनया माला अपि रच्यते । (इसके द्वारा माला भी बनाई जाती है ।)

वाच्य परिवर्तन Exercise In Sanskrit 15. (i) ते तत्र पुष्पाणि चिन्वन्ति । (वे वहाँ फूल चुन रहे हैं।)
(ii) विद्यालये छात्रा: संस्कृतं पठन्ति । (विद्यालय में छात्र संस्कृत पढ़ते हैं ।)
(iii) ईश्वरेण संसार: सृज्यते । (ईश्वर द्वारा संसार सृजित होता है ।)
उत्तरम्:
(i) तैः पुष्पाणि चीयन्ते । (उनके द्वारा फूल तोड़े जाते हैं ।)।
(ii) विद्यालये छात्रैः संस्कृतं पठ्यते । (विद्यालय में छात्रों द्वारा संस्कृत पढ़ी जाती है ।) (iii) ईश्वर: संसारं सृजति । (ईश्वर संसार की सृष्टि करता है ।)

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