RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 2 जीवों का वर्गीकरण

Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 2 जीवों का वर्गीकरण

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवों के वर्गीकरण के वैज्ञानिक मापदण्डों का उपयोग सर्वप्रथम किस वैज्ञानिक ने किया –
(अ) केरोलस लिनियस
(ब) अरस्तू
(स) डार्विन
(द) व्हिटेकर

प्रश्न 2.
द्विजगत पद्धति के अनुसार जीवों को वर्गीकृत किया गया –
(अ) मोनेरा व प्रोटिस्टा में
(ब) प्रोटिस्टा व प्लांटी में
(स) प्लांटी व ऐनिमेलिया
(द) प्रोटिस्टा व ऐनिमेलिया में

प्रश्न 3.
पंचजगत वर्गीकरण पद्धति का प्रतिपादन निम्नलिखित में से किसने किया –
(अ) केरोलस लिनियस
(ब) व्हिटेकर
(स) हेकेल
(द) कोपलेण्ड

प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से कौनसा लक्षण मोनेरा जगत के जनन विधि से सम्बन्धित है –
(अ) संयुग्मन
(ब) युग्मक संलयन
(स) युग्मक संलयन एवं संयुग्मन
(द) निषेचन
उत्तरमाला:
1. (ब) 2. (स) 3. (ब) 4. (अ)

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
द्विजगत पद्धति का प्रतिपादन किसने किया ?
उत्तर:
द्विजगत पद्धति का प्रतिपादन केरोलस लिनियस ने किया था।

प्रश्न 2.
त्रिजगत वर्गीकरण पद्धति क्या है ?
उत्तर:
इस पद्धति में तीन जगत-प्रोटिस्टा, प्लाण्टी एवं ऐनिमेलिया हैं।

प्रश्न 3.
पंचजगत पद्धति में सम्मिलित जगतों के नाम लिखो।
उत्तर:
इस पद्धति में मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंजाई, प्लाण्टी एवं ऐनिमेलिया हैं।

प्रश्न 4.
वर्गीकरण क्या है ?
उत्तर:
पादप व जन्तुओं का उनकी पहचान तथा पारस्परिक सम्बन्धों व वर्गिकी समूहं के आधार पर वैज्ञानिक व्यवस्थापन वर्गीकरण कहलाता है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्गीकरण की आवश्यकता को संक्षिप्त में बताइये।
उत्तर:
पृथ्वी पर असंख्य जीव हैं जिसमें से विभिन्न प्रकार की दस लाख अठैत्तर हजार जातियों की पहचान हो चुकी है। अतः इनका व्यवस्थित वैज्ञानिक आधारित वर्गीकरण होना चाहिए अन्यथा इनका अध्ययन करना बड़ा कठिन कार्य है। वर्गीकरण के बिना किसी भी शोधकर्ता के लिए पादपों, जन्तुओं एवं सूक्ष्म जीवाणुओं पर अपना शोध कार्य करना या उसे जारी रखना संभव नहीं हो पाता है। इस प्रकार सजीवों के समग्र अध्ययन के लिए हमारे लिए यह अत्यावश्यक है कि विभिन्न प्राणि या पौधों को इनके किसी भी प्रमुख लक्षण के आधार पर इनके सुनिश्चित वर्गों में स्थापित किया जावे।

वर्गीकरण का उपयोग कर वनस्पति जात, जन्तुजात व सूक्ष्म जीवाणु जाति की पहचान की जा सकती है। यही नहीं अनेक पादप व जन्तु का नाम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग भाषाओं में होता है। इस कारण इनके नामों की भ्रान्ति हो जाती है। इस प्रकार की भ्रान्तियों को दूर करने के लिए वर्गीकरण के अन्तर्गत नामकरण भी अति आवश्यक है।

प्रश्न 2.
पादपों के वर्गीकरण इतिहास पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
उत्तर:
प्रारम्भ में पादपों का वर्गीकरण उपयोगिता के आधार पर किया गया था व जन्तुओं को पाँच समूहों में बाँटा गया था। बाद में अरस्तू ने वैज्ञानिक मापदण्डों के आधार पर वर्गीकरण प्रस्तुत किया। पौधों को वृक्ष, झाड़ी एवं शाक में बाँटा व प्राणियों को लाल रक्त की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर वर्गीकृत किया। लीनियस ने सभी पौधों व प्राणियों के वर्गीकरण के लिए द्विजगत पद्धति बनाई, इसके अन्तर्गत सभी जीवों को प्लाण्टी (पादप) एवं ऐनिमैलिया (प्राणि) जगत में वर्गीकृत किया।

यद्यपि यह वर्गीकरण सरल था किन्तु इसमें अनेक जीवों को रखना सम्भव नहीं था। वर्गीकरण में जीव के आकारिकी लक्षण के अलावा कोशिका संरचना, कोशिका भित्ति के लक्षण, पोषण विधि, आवास, प्रजनन की विधियों एवं विकासीय सम्बन्धों को भी समाहित करने की आवश्यकता हुई। फलस्वरूप वर्गीकरण की पद्धति में अनेक परिवर्तन आये।

प्रश्न 3.
पंचजगत वर्गीकरण पद्धति को संक्षिप्त में समझाइये।
उत्तर:
इस वर्गीकरण पद्धति को व्हिटेकर ने प्रतिपादित किया था। इस पद्धति में पाँच जगत क्रमश: मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंजाई (कवक), प्लाण्टी एवं ऐनिमेलिया सम्मिलित किये गये। इस पद्धति में जीवों की कोशिका संरचना, थैलस संरचना, कोशिका भित्ति, केन्द्रक झिल्ली, पोषण विधि एवं जनन विधि के लक्षणों को लिया गया। इसमें सभी प्रोकैरियोटिक जीवों को ‘‘मोनेरा” तथा एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीवों को ‘प्रोटिस्टा जगत में रखा गया। इस वर्गीकरण के अनुसार मोनेरा, प्रोटिस्टा, फंजाई, प्लाण्टी व ऐनिमैलिया पाँच जगत हैं।

प्रश्न 4.
चतुर्जगत वर्गीकरण पद्धति त्रिजगत वर्गीकरण पद्धति से किस प्रकार भिन्न थी ?
उत्तर:
त्रिजगत पद्धति में एक इस प्रकार का जगत बनाया जिसमें जीव न तो पादप है, न ही जन्तु हैं, उनके लिए प्रोटिस्टा जगत बनाया गया। इस प्रकार इसके अन्तर्गत तीन जगत-प्रोटिस्टा, प्लाण्टी एवं ऐनिमेलिया थे। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के आविष्कार के बाद यह स्पष्ट हो गया कि कुछ जीवों में स्पष्ट केन्द्रक का अभाव होता है, उन्हें प्रोकैरियोट कहा गया तथा जिन जीवों की कोशिका में स्पष्ट केन्द्रक उपस्थित होता है उन्हें यूकैरियोट कहा गया। इस आधार पर चतुर्जगत पद्धति प्रतिपादित की गई। इसमें जीवाणुओं व नील हरित शैवालों के लिए एक नया जगत ” मोनेरा” बनाया गया। इस पद्धति में चार जगत क्रमशः मोनेरा, प्रोटिस्टा, प्लाण्टी एवं ऐनिमेलिया हैं।

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पादप वर्गीकरण का संक्षिप्त इतिहास बताइये।
उत्तर:
पादप वर्गीकरण का संक्षिप्त इतिहास (Brief History of Plant Classification):
प्रारम्भ में दिये गये वर्गीकरण भोजन, वस्त्र, औषध एवं आवास जैसी सामान्य उपयोगिता की वस्तुओं के उपयोग पर आधारित थे। एक अन्य प्राचीनतम वर्गीकरण अनुसार जन्तुओं को पाँच समूहों में विभक्त किया गया जिसमें पालतू, जंगली जीव, रेंगकर चलने वाले, उड़ने वाले एवं समुद्री जीव इत्यादि थे। सर्वप्रथम ग्रीक दार्शनिक अरस्तू (Aristotle) ने वैज्ञानिक मापदण्डों का उपयोग कर वर्गीकरण प्रस्तुत किया। उन्होंने पादपों को सरल आकारिक लक्षणों के आधार पर वृक्ष, झाड़ी एवं शाक में वर्गीकृत किया था। परन्तु प्राणियों का वर्गीकरण लाल रक्त की उपस्थिति या अनुपस्थिति के आधार पर किया था। यही नहीं प्राणियों के गति आधार पर उन्हें उड़ने, चलने वाले व तैरने वाले समूह में विभक्त किया था।

स्वीडन के वैज्ञानिक केरोलस लीनियस ने सभी पौधों व प्राणियों के वर्गीकरण हेतु द्वि-जगत पद्धति (Two-kingdom system) विकसित की। इसमें जीवों को क्रमश: प्लांटी (पादप) एवं एनिमैलिया (प्राणि) जगत में वर्गीकृत किया गया था। इस पद्धति के अनुसार प्रोकैरियोटी (असीमकेन्द्रकी) एवं यूकैरियोटी (ससीमकेन्द्रकी), एककोशीय एवं बहुकोशीय तथा प्रकाश-संश्लेषी (हरित शैवाल) एवं अप्रकाश-संश्लेषी (कवक) के बीच अन्तर करना सम्भव नहीं था। यद्यपि इस वर्गीकरण के सरल होने के बावजूद भी अनेक जीवों को इसमें रखना सम्भव नहीं था। इस कारण यह पद्धति अपर्याप्त सिद्ध हुई। वर्गीकरण के अन्तर्गत जीव के आकारिकी लक्षण के अतिरिक्त कोशिका संरचना, कोशिका भित्ति के लक्षण, पोषण विधि, आवास, प्रजनन की विधियाँ एवं विकासीय सम्बन्धों को भी समाहित करने की आवश्यकता हुई। फलस्वरूप वर्गीकरण की पद्धति में अनेक परिवर्तन आये।

19वीं शताब्दी में प्रस्तुत वर्गीकरण पद्धतियाँ जीवों के आकारकीय लक्षणों के साथ-साथ शारीरिक तथा भौगोलिक वितरण सम्बन्धी लक्षणों पर आधारित थी। डार्विन (Darwin) के विकासवाद के बाद जातिवृत्तीय (Phylogenetic) पद्धतियाँ आईं। इन वर्गीकरण पद्धतियों के अन्तर्गत, पौधों के जातिवृत्तीय सम्बन्धों एवं जीवों के परस्पर आनुवंशिक समानताएँ तथा कोशिकानुवंशिक लक्षणों को विशेष महत्त्व दिया जाता था। सन् 1960 के बाद वर्गिकी के अन्तर्गत दो प्रमुख क्षेत्रों

  1. रसायन वर्गिकी (Chemotaxonomy) एवं
  2. संख्यात्मक वर्गिकी या टेक्सोमेट्रिक्स (Numerical taxonomy or Taxometries) का विकास हुआ।

प्रश्न 2.
वर्गीकरण के प्रकार एवं विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा दिये। गये वर्गीकरणों की विस्तृत विवेचना कीजिए।
उत्तर:
वर्गीकरण के प्रकार एवं विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये वर्गीकरणों का संक्षिप्त इतिहास (Types of Classification and Brief History of Classifications Given by Different Scientists):
जीवविज्ञान के अन्तर्गत समय-समय पर वर्गीकरण पद्धतियों में आवश्यकतानुसार परिवर्तन होते रहे हैं। विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा दिये गये मुख्य वर्गीकरण पद्धतियों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है –
(i) द्विजगत पद्धति (Two kingdom system):
वर्गीकरण की यह पद्धति सबसे प्राचीन है। इसे 18वीं शताब्दी में केरोलस लिनियस ने दिया था। इन्होंने जीवों को दो जगत में विभक्त किया-(अ) प्लाण्टी (Plantae) या पादप जगत, एवं (ब) ऐनिमेलिया (Animalia) या जन्तु जगत।

(ii) त्रिजगत पद्धति (Three kingdom system):
जर्मन जीवविज्ञानी अर्नेस्ट हेकेल (Ernst Haeckel) ने त्रिजगत या तीन जगत पद्धति प्रस्तुत की जिसमें एक तटस्थ जीव ”प्रोटिस्टा” (Protista) का तीसरा जगत बनाया जो न तो पादप है न ही जन्तु है। अतः इस पद्धति अनुसार प्रोटिस्टा, प्लाण्टी व ऐनिमेलिया तीन जगत थे।

(iii) चतुर्जगत पद्धति (Four kingdom system):
इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के आविष्कार पश्चात् यह स्पष्ट हो गया कि जिन जीवों की कोशिकाओं में स्पष्ट केन्द्रक का अभाव होता है, उन्हें प्रोकैरियोट (Prokaryote) तथा जिन जीवों की कोशिकाओं में स्पष्ट केन्द्रक पाया जाता है, उन्हें यूकैरियोट्स (Eukaryotes) कहते हैं। एच.एफ. कॉपलेण्ड (H.F. Copeland) ने इस पद्धति को दिया था। जिसमें जीवाणुओं तथा नीलहरित शैवालों के लिए एक नया जगत “मोनेरा” (Monera) बनाया गया। अतः इस पद्धति के चार जगत-मोनेरा, प्रोटिस्टा, प्लाण्टी एवं ऐनिमेलिया है।

(iv) पंच जगत पद्धति (Five Kingdom system):
आर.एच. व्हिटेकर (R.H. Whittaker, 1969) ने वर्गीकरण की पाँच-जगत प्रणाली प्रस्तुत की। इस प्रणाली में जीवों को वर्गीकृत करने का मुख्य आधार, कोशिका संरचना की जटिलता (प्रोकैरियोटी एवं यूकैरियोटी कोशिकाएँ), पोषण विधि, जीवन-चक्र, शारीरिक संगठन की जटिलता (एककोशीय व बहुकोशीय) तथा जातिवृत्तीय सम्बन्ध रखा गया। तालिका 2.1 में आगे इन सभी जगतों के विभिन्न लक्षणों का एक तुलनात्मक विवरण दिया गया है –

  1. किसी भी जाति की उत्पत्ति से लेकर आज तक की उसकी विकास यात्रा (evolutionary trends) को जातिवृत्त (phylogeny) कहा जाता है।
  2. रसायन वर्गिकी के अन्तर्गत पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न महत्त्वपूर्ण रासायनिक पदार्थों एवं पौधों के द्वारा अभिव्यक्त समग्र रासायनिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है।
  3. पादप वर्गीकरण पद्धति जिसमें पौधों के विभिन्न मानदंडों के अनुरूप मात्रात्मक (Quantitative) लक्षणों को कम्प्यूटर की सहायता से संख्यात्मक (numerical) एवं सांख्यिकी (statistical) आधार पर विश्लेषित करके उनकी आपसी समानताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाकर, इसका उपयोग वर्गिकी के लिये किया जावे, इसे संख्यात्मक वर्गिको कहते हैं।

तालिका-2.1 : पंच जगत पद्धति के लक्षण:

लक्षण(Character) पाँच जगत (Five Kingdom)
मॉनेरा (Monera) प्रोटिस्टा (Protista) फंजाई (Fungi) प्लांटी (Plantae) ऐनिमेलिया (Animalia)
1. कोशिका का प्रकार प्रोकैरियोटिक यूकैरियोटिक यूकैरियोटिक यूकैरियोटिक यूकैरियोटिक
2. कोशिका भित्ति सेलूलोज रहित (बहुशर्कराइड) + एमीनो अम्ल कुछ में उपस्थित उपस्थित (सेल्युलोस : रहित) काइटिन उपस्थित (सेल्युलोस सहित) अनुपस्थित
3. केन्द्रक झिल्ली अनुपस्थित उपस्थित उपस्थित उपस्थित उपस्थित
4. काय संरचना एक कोशिक एक कोशिक बहुकोशिक/ अदृढ़ ऊतक ऊतक/अंग ऊतक/अंग/ अंग तंत्र
5. पोषण की विधि स्वपोषी (रसायन- संश्लेषी एवं प्रकाशसंश्लेषी) तथा परपोषी (मृतपोषी एवं परजीवी) स्वपोषी (प्रकाश परपोषी  संश्लेषी) तथा परपोषी परपोषी (मृतपोषी। एवं परजीवी) स्वपोषी  (प्रकाशसंश्लेषी) परपोषी (प्राणि समभोजी, मृतपोषी इत्यादि)
6. प्रजनन की विधि संयुग्मन युग्मक संलयन एवं संयुग्मन निषेचन निषेचन निषेचन

प्रश्न 3.
वर्गीकरण की पंचजगत पद्धति क्या है ? इस पद्धति के अन्तर्गत आने वाले पाँच जगतों के प्रमुख लक्षण लिखिये।
उत्तर:
पंच जगत पद्धति (Five Kingdom system):
आर.एच. व्हिटेकर (R.H. Whittaker, 1969) ने वर्गीकरण की पाँच-जगत प्रणाली प्रस्तुत की। इस प्रणाली में जीवों को वर्गीकृत करने का मुख्य आधार, कोशिका संरचना की जटिलता (प्रोकैरियोटी एवं यूकैरियोटी कोशिकाएँ), पोषण विधि, जीवन-चक्र, शारीरिक संगठन की जटिलता (एककोशीय व बहुकोशीय) तथा जातिवृत्तीय सम्बन्ध रखा गया। तालिका 2.1 में आगे इन सभी जगतों के विभिन्न लक्षणों का एक तुलनात्मक विवरण दिया गया है –

  1. किसी भी जाति की उत्पत्ति से लेकर आज तक की उसकी विकास यात्रा (evolutionary trends) को जातिवृत्त (phylogeny) कहा जाता है।
  2. रसायन वर्गिकी के अन्तर्गत पौधों में पाये जाने वाले विभिन्न महत्त्वपूर्ण रासायनिक पदार्थों एवं पौधों के द्वारा अभिव्यक्त समग्र रासायनिक लक्षणों का अध्ययन किया जाता है।
  3. पादप वर्गीकरण पद्धति जिसमें पौधों के विभिन्न मानदंडों के अनुरूप मात्रात्मक (Quantitative) लक्षणों को कम्प्यूटर की सहायता से संख्यात्मक (numerical) एवं सांख्यिकी (statistical) आधार पर विश्लेषित करके उनकी आपसी समानताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाकर, इसका उपयोग वर्गिकी के लिये किया जावे, इसे संख्यात्मक वर्गिको कहते हैं।

तालिका-2.1 : पंच जगत पद्धति के लक्षण:

लक्षण(Character) पाँच जगत (Five Kingdom)
मॉनेरा (Monera) प्रोटिस्टा (Protista) फंजाई (Fungi) प्लांटी (Plantae) ऐनिमेलिया (Animalia)
1. कोशिका का प्रकार प्रोकैरियोटिक यूकैरियोटिक यूकैरियोटिक यूकैरियोटिक यूकैरियोटिक
2. कोशिका भित्ति सेलूलोज रहित (बहुशर्कराइड) + एमीनो अम्ल कुछ में उपस्थित उपस्थित (सेल्युलोस : रहित) काइटिन उपस्थित (सेल्युलोस सहित) अनुपस्थित
3. केन्द्रक झिल्ली अनुपस्थित उपस्थित उपस्थित उपस्थित उपस्थित
4. काय संरचना एक कोशिक एक कोशिक बहुकोशिक/ अदृढ़ ऊतक ऊतक/अंग ऊतक/अंग/ अंग तंत्र
5. पोषण की विधि स्वपोषी (रसायन- संश्लेषी एवं प्रकाशसंश्लेषी) तथा । परपोषी (मृतपोषी। एवं परजीवी) स्वपोषी (प्रकाश परपोषी  संश्लेषी) तथा परपोषी परपोषी (मृतपोषी। एवं परजीवी) स्वपोषी  (प्रकाशसंश्लेषी) परपोषी । (प्राणि समभोजी, मृतपोषी इत्यादि)
6. प्रजनन की विधि संयुग्मन युग्मक संलयन एवं संयुग्मन निषेचन निषेचन निषेचन

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्गिकी (Taxonomy) शब्द की उत्पत्ति हुई है –
(अ) लेटिन भाषा से
(ब) ग्रीक भाषा से
(स) अंग्रेजी भाषा से
(द) फ्रांसीसी भाषा से

प्रश्न 2.
कोपलेण्ड प्रतिपादित करने वाले थे –
(अ) द्विजगत पद्धति
(ब) त्रिजगत पद्धति
(स) चतुर्जगत पद्धति
(द) पंचजगत पद्धति

प्रश्न 3.
डार्विन के विकासवाद पश्चात् कौन-सी पद्धतियाँ प्रतिपादित की गईं –
(अ) कृत्रिम
(ब) प्राकृतिक
(स) लैंगिक
(द) जातिवृत्तीय

प्रश्न 4.
तटस्थजीव जो न तो पादप हैं व न जन्तु हैं, उन्हें किसमें रखा गया –
(अ) मोनेरा में
(ब) प्रोटिस्टा में
(स) प्लाण्टी में
(द) ऐनिमेलिया में

प्रश्न 5.
जीवाणुओं तथा नील हरित शैवालों को किस जगत में रखा गया है।
(अ) प्रोटिस्टा
(ब) मोनेरा
(स) प्रोकैरियोटी
(द) प्लांटी
उत्तरमाला:
1. (ब) 2. (स) 3. (द) 4. (ब) 5. (ब)

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पादपों के वर्गिकी समूह बताइये।
उत्तर:
डिवीजन, वर्ग, गण, कुल, वंश एवं जाति इत्यादि।

प्रश्न 2.
वनस्पतिजात (Flora) से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में उगने वाली सम्पूर्ण वनस्पति को उस क्षेत्र का वनस्पतिजात कहते हैं।

प्रश्न 3.
समुद्री घोड़ा क्या होता है ?
उत्तर:
यह एक जलीय जीव है जो समुद्री जल में तैरने वाली मछली होती है।

प्रश्न 4.
सन् 1960 के पश्चात् वर्गिकी के दो प्रमुख क्षेत्र कौनकौन से हैं?
उत्तर:

  1. रसायन वर्गिकी (Chemotaxonomy) तथा
  2. संख्यात्मक वर्गिकी या टेक्सोमेट्रिक्स (Numerical taxonomy or Taxometrics)।

प्रश्न 5.
प्रोकैरियोट तथा यूकैरियोट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
वे जीव जिनकी कोशिकाओं में स्पष्ट केन्द्रक का अभाव होता है, उन्हें प्रोकैरियोट कहते हैं किन्तु जिन जीवों की कोशिकाओं में स्पष्ट केन्द्रक पाया जाता है, उन्हें यूकैरियोट कहते हैं।

प्रश्न 6.
सबसे छोटा टैक्सॉन का नाम बताइये।
उत्तर:
सबसे छोटा टैक्सॉन जाति (species) होती है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
केरोलस लिनियस ने वर्गीकरण की किस पद्धति को बताया तथा इसमें क्या कमी थी ?
उत्तर:
केरोलस लिनियस ने सभी पादप व प्राणियों के स्वरूप (form) की समानता के आधार पर दो जगत बनाये थे। इसे द्विजगत पद्धति कहते हैं। इसमें पादपों को प्लाण्टी एवं प्राणियों को ऐनिमेलिया जगत में विभक्त किया गया। इस पद्धति में यूकैरियोटी, प्रोकैरियोटी, एककोशिक एवं बहुकोशिक, प्रकाश संश्लेषी (शैवाल) एवं अप्रकाश संश्लेषी (कवक) के बीच विभेद करना संभव नहीं था। यद्यपि पादपों एवं प्राणियों पर आधारित यह वर्गीकरण पद्धति सरल होने के बावजूद अनेक जीवधारियों को इसमें से किसी भी वर्ग में रखना सम्भव नहीं था।

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