RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 21 पुष्प

Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 21 पुष्प

RBSE Class 11 Biology Chapter 21 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 21 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
युक्तकोशी पुंकेसर पाए जाते हैं –
(अ) गुड़हल में
(ब) सूर्यमुखी में
(स) खीरा में
(द) सेमल में

प्रश्न 2.
ऐसा दलविन्यास जिसमें दलों के किनारे आपस में एक-दूसरे को छूते हैं, ढुकते नहीं, कहलाता है –
(अ) कोरस्पर्शी
(ब) व्यावर्तित
(स) कोरछादी
(द) ध्वजीय

प्रश्न 3.
स्वास्तिकाकार दलपुंज पाया जाता है –
(अ) गुलाब के पुष्प में
(ब) सरसों के पुष्प में
(स) धतूरे के पुष्प में
(द) गुड़हल के पुष्प में

उत्तरमाला:
1. (ब), 2. (अ), 3. (ब)

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RBSE Class 11 Biology Chapter 21 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुंकेसर के तीन भागों के नाम लिखिये ?
उत्तर:
प्रत्येक पुंकेसर के तीन भाग होते हैं –

  1. पुतन्तु (filament)
  2. योजी (connective)
  3. परागकोष (anther)

प्रश्न 2.
पूर्ण पुष्प किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वह पुष्प जिसमें पुष्प के चारों चक्र जैसे बाह्यदलपुंज, दलपुंज, पुमंग वे जायांग उपस्थित हों, उसे पूर्ण पुष्प कहते हैं।

प्रश्न 3.
परिदलपुंज किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब एक पुष्प में बाह्यदलपुंज व दलपुंज समान रंग व आकार के हों तो उसे परिदलपुंज कहते हैं।

प्रश्न 4.
गुडहल में एकसंघी स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गुडहल में सभी पुंकेसरों के पुतन्तु संयुक्त होकर एक संघ या नलिका बनाते हैं, जिसे पुंकेसरी नाल कहते हैं। इसके परागकोश पृथक् होते हैं।

प्रश्न 5.
चतुर्थी पुंकेसर किस पादप में पाये जाते हैं ?
उत्तर:
सरसों में।

प्रश्न 6.
ऐसा पुष्प जिसमें वृन्त या डन्ठल का अभाव हो क्या कहलाता है?
उत्तर:
अंवृन्ती पुष्प।

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प्रश्न 7.
स्त्रीकेसरी पुष्प किसे कहते हैं ?
उत्तर:
एकलिंगी पुष्प जिसमें केवल स्त्रीकेसर उपस्थित हो, स्त्रीकेसरी पुष्प कहते हैं।

प्रश्न 8.
दलाभ परिदलपुंज किसे कहते हैं ?
उत्तर:
जब परिदलपुंज का रंग दलपुंज की जैसे हो तो उसे दलाभ परिदलपुंज कहते हैं।

RBSE Class 11 Biology Chapter 21 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सीमान्त बीजाण्डन्यास को सचित्र समझाइये ?
उत्तर:
इस प्रकार का बीजाण्डवान्यास एकअण्डपी (Monocarpellary) जायांग में मिलता है। अण्डाशय एककोष्ठीय (Unilocular) होता है। बीजाण्डासन, एक ही अण्डप (Carpel) के दोनों किनारों के जोड़ (संयुक्त फलक कोर) पर स्थित होते हैं। इन्हीं बीजाण्डासनों पर बीजाण्डों का परिवर्धन होता है। उदाहरण – मटर, चना, सेम।
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प्रश्न 2.
व्यावर्तित और कोरछादी दलविन्यास में चित्र व उदाहरण सहित अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

व्यावर्तित (Twisted) कोरछादी (Imbricate)

इस प्रकार के विन्यास में प्रत्येक दल या बाह्यदल का एक किनारा दूसरे दल के एक किनारे से ढका रहता है। उदाहरण-गुड़हल, कपास के दल आदि।
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इसमें एक बाह्यदल या दल के दोनों कोरे निकटवर्ती दो दलों की एक-एक कोर से ढकी रहती हैं और एक दल की दोनों कोरे निकटवर्ती दोनों दलों की एक-एक कोर को ढके रहती है।
शेष दल व्यावर्तित प्रकार से विन्यासित रहते हैं अथवा जब दलपुंज या बाह्यदलपुंज के पाँच सदस्यों में से कम से कम एक सदस्य पूर्णतः बाहर रहता है। उदाहरण-केशिया, मटर, चना आदि।
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प्रश्न 3.
पंचाण्डपी, युक्ताण्डपी एवं पंचकोष्ठीय अण्डाशय जिसमें प्रत्येक कोष्ठ में एक बीजाण्ड हो, इस स्थिति को चित्र द्वारा दर्शाइये ?
उत्तर:
इस प्रकार के अण्डाशय में स्तम्भीय (axile) प्रकार का बीजाण्डन्यास होता है।
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प्रश्न 4.
पुमंगधर (androphore) स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यदि दलपुंज (corolla) और पुमंग के मध्य का पर्व लम्बा हो तो उसे पुमंगधर कहते हैं। उदाहरण-झुमका या पैशन पुष्प (Passi flora), हुरहुर (Cleome gynandra)।

प्रश्न 5.
सहपत्र क्या है ? इसके प्रकारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मुख्य अक्ष की जिस पत्ती के कक्ष में पुष्प विकसित होता है, उसे सहपत्र (bract) कहते हैं। ये पर्णिल सहपत्र (foliaceous bracts), अनुबाह्यदल (epicalyx), दलाभ सहपत्र (petaloid bract), स्पेथ सहपत्र (spathe bract), सहपत्र-चक्र (involucre), क्यूपूल (Cupule), शल्कीय सहपत्र (scaly bract) व तुष सहपत्र (Glume) प्रकार के होते हैं।

प्रश्न 6.
पुंकेसरों के संसंजन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पुंकेसरों का संसजन (Colhesion of startmens):
पुष्प के एक ही पुष्पचक्र के सदस्यों को आपस में संयुक्त हो जाना संसजन कहलाता है। प्रायः पुमंग में पुंकेसर एक-दूसरे से पृथक् रहते हैं, इसे पृथक पुंकेसरी (pilyanslrous) कहते हैं। कुछ में पुंकेसर का कुछ भाग या पूर्ण पुंकेसर परस्पर एक-दूसरे से संयुक्त हो जाते हैं। जय पुंकेसरों के पुतन्तु जुड़कर समूह बनाते हैं किन्तु परागकोश एक-दूसरे से पृथक् रहते हो तो इसे संघी (adelplityus) कहा जाता है। ये निम्न प्रकार के होते हैं –

  1. एकसंधी (Montadelphous): जब सभी पुंकेसरों के पुतन्तु परस्पर जुड़कर एक समूह बनाते हैं किन्तु उनके परागकोश स्वतंत्र होते हैं, जैसे गुड़हल।
  2. द्विसंधी (Diadelphous): पुंकेसरों के पुतन्तु परस्पर जुड़कर दो समूह बनाते हैं किन्तु परागकोश पृथक् रहते हैं, जैसे – मटर।
  3. बहुसंघी (lalyadelplious): पुंकेसरों के पुत्तन्तु परस्पर जुड़कर दो या अधिक समूहों में रहते हैं किन्तु परागकोश स्वतंत्र रहते हैं, जैसे – नींबू।
  4. युक्तकोशी (Syngenesious): पुंकेसरों के परागकोश परस्पर जुड़े होते हैं, किन्तु पुतन्तु पृथक् रहते हैं तथा वर्तिका के चारों ओर एक बेलनाकार संरचना बनाते हैं, जैसे कमोजिटी कुल के सदस्यों में।
  5. संमुपंगी (Synandlrous): समस्त पुंकेसर ऊपर से नीचे तक अपने पुतन्तुओं ये परागकोशों दोनों के द्वारा परस्पर गुड़ जाते हैं, जैसे-कुकरबिटेसी कुल के सदस्यों में।
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प्रश्न 7.
पुष्प चित्र को परिभाषित कीजिए ? मातृ अक्ष को कौनसे चिन्ह द्वारा निरूपित किया जाता है ?
उत्तर:
पुष्प में विद्यमान विभिन्न रचनाओं की संख्या तथा उनका आपस में सम्बन्ध व पुष्प में उनकी स्थिति को पुष्प चित्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पुष्प चित्र बनाने के लिए पुष्प की विभिन्न रचनाओं को दर्शाने हेतु निम्न चिन्हों का प्रयोग करते हैं –
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RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 21 पुष्प img-7
पुष्प चित्र वस्तुतः एक पुष्प कलिका (bud) की अनुप्रस्थ काट (transverse section) है। चित्र बनाते समय पुष्प कलिका का ही उपयोग किया जाता है। पुष्प चित्र सदैव वृत्ताकार होता है। तथा चित्र बनाते समय मातृ अक्ष (mother axis) का विशेष ध्यान रखा जाता है। मातृ अक्ष वह अक्ष है जिस पर पुष्प उत्पन्न होता है। पुष्प का वह भाग जो मातृ अक्ष की ओर होता है, उसे पश्च (posterior) तथा इससे दूर वाला भाग अग्र (anterior) कहलाता है। पुष्प चित्र में सहपत्र सदैव अग्र भाग की ओर होती है। पुष्प चित्र को पुष्प की विभिन्न रचनाओं की स्थिति व विन्यास अनुसार बनाया जाता है। मातृअक्ष को भरी हुई बिन्दु • से दर्शाते हैं।

प्रश्न 8.
नियमित और अनियमित पुष्प में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

नियमित (Regular) अनियमित (Irregular)
1. पुष्प के प्रत्येक चक्र के सदस्य परस्पर समान आकारिकी के होते हैं। उदाहरण – सरसों। 1. पुष्प के किसी भी एक या अधिक चक्रों के सदस्य परस्पर असमान आकारिकी के होते हैं, जैसे – मटर।

प्रश्न 9.
सहपत्री और असहपत्री पुष्प को उदाहरण सहित समझाइये ?
उत्तर:
जब पुष्प सहपत्र (bract) की कक्ष में उत्पन्न हो अर्थात् सहपत्र उपस्थित हो तो उसे सहपत्री (bracteate) कहते हैं। उदाहरण – गुडहल। सहपत्र की अनुपस्थिति वाले पुष्प को असहपत्री (ebracteate) कहते हैं, उदाहरण – सरसों।

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प्रश्न 10.
पुंकेसरों के संसंजन के आधार पर गुडहल वे मटर में स्थिति को सचित्र समझाइये।
उत्तर:
गुडहल में एकसंघी तथा मटर में द्विसंधी पुंकेसरों की अवस्था होती है –

  1. एकसंधी पुंकेसर (Monoadelphous): इस अवस्था में पुमंग के सभी पुंकेसरों के पुतन्तु संसंजित होकर एक संघ बना लेते हैं। लेकिन इनके परागकोश एक-दूसरे से अलगअलग (पृथक्) रहते हैं। पुतन्तुओं के इस प्रकार के संसंजन से जायांग के चारों ओर एक नलिका बन जाती है जिसे पुंकेसरी नाल कहते हैं। उदाहरण-मालवेसी कुल के पौधे जैसे कि कपास, भिण्डी, गुड़हल आदि।
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  2. द्वि संघी पुके सर (Diadelphous): इस अवस्था में पुंकेसरों के पुतन्तु दो संघों से संसंजित हो जाते हैं और परागकोश पृथक् रहते हैं। उदाहरण-मटर कुल के पौधे, जैसे कि सेम, चना और मटर। इन पौधों के पुष्पों में 10 पुंकेसर होते हैं जिसमें 9 पुंकेसर एक संघ में और दसवाँ पुंकेसर अलग रहता है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 21 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जायांगाधर, परिजायांगी व जायांगोपरिक पुष्पों का नामांकित चित्र की सहायता से वर्णन कीजिये ?
उत्तर:
पुष्पासन पर पुष्प-पत्रों का निवेश (Insertion of floral leaves on the thalamus): प्रायः पुष्पासन पर पुष्प के चारों चक्र स्थित होते हैं। परन्तु जायांग तथा पुष्प के तीन शेष चक्रों के साथ एक व्यवस्था का विशेष सम्बन्ध होता है, इस सम्बन्ध को निवेश (insertion) या स्थिति (position) कहा जाता है। यह सम्बन्ध तीन प्रकार का होता है –

1. जायांगधर या अधोजायांगी (Hypogynous – Hypo = below या नीचे तथा gyne = gynoecium या जायांग): पुष्पासन, चपटा, छोटा व शंक्वाकार होता है। ऐसे पुष्पासनों पर जायांग की स्थिति पुष्प चक्रों की तुलना में सबसे ऊपर होती है तथा पुष्प के अण्डाशय को उर्ध्ववर्ती (superior) कहते हैं, जैसे-सरसों, गुड़हल।

2. परिजायांगी या परिजायांगधर (Perigynous – peri = around या परिधि, gyne = gynoecium या जायांग): पुष्पासन अवतल या प्यालेनुमा होता है। प्याले की जैसे पुष्पासन के तल पर जायांग तथा प्याले की भित्ति के ऊपरी किनारों पर अन्य पुष्प चक्र स्थित होते हैं। अतः इसमें जायांग अन्य पुष्प चक्रों की तुलना में नीचे अर्थात् प्याले के तल में स्थित रहता है परन्तु अण्डाशय अर्द्ध उर्ध्ववर्ती (Halfsuperior) होता है, जैसे-गुलाब, प्रिमरोज।

3. जायांगोपरिकता या जायांगोपरिक (Epigynous-Epi = above या ऊपर, gyne = gynoecium या जायांग): इसमें पुष्पासन के किनारे ऊपर उठकर आपस में जुड़ जाते हैं तथा अण्डाशय को अपने अन्दर ढक लेते हैं। अतः इस स्थिति में अण्डाशय सबसे नीचे तथा शेष पुष्प पत्र ऊपर लगे होते हैं। ऐसे पुष्प में अण्डाशय अधोवर्ती (inferior) होता है, जैसे सुर्यमुखी (sunflower)।
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प्रश्न 2.
दलविन्यास से क्या अभिप्राय है ? इसके विभिन्न प्रकारों को चित्र व उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
दलपुंज पुष्प का द्वितीयक चक्र होता है, इसके प्रत्येक सदस्य को दल या पंखुड़ी (petal) कहते हैं। प्रायः दलपुंज रंगीन होते हैं जिससे कीट व अन्य जीव आकर्षित होते हैं। दलों का रंग जल में घुलनशील रंजक एन्थोसायनिन (anthocyanin) लाल, बैंगनी, नीला व नारंगी, एन्थोजेन्थिन (Anthoxanthin – श्वेत व पीला) तथा केरोटिनाइड्स (carotenoids) के कारण होता है। ये आकृति में बाह्यदल से बड़े होते हैं।

कलिका अवस्था में अन्दर की ओर स्थित, पुमंग व जायांग को सुरक्षा भी प्रदान करते हैं।किसी पुष्प में जब दलपुंज के सभी सदस्य आकार एवं आकृति में समान होते हैं तो इस लक्षण को सममित या नियमित (symmetrial or regular) कहते हैं किन्तु दलों के असमान होने पर असममित या अनियमित (assymetrial or irregular) कहते हैं। दलों के एक-दूसरे से पृथक् होने पर पृथकदली (polypetalous) तथा आपस में एक-दूसरे में जुड़े होने पर संयुक्तदली (gamopetalous) कहते हैं।

पृथकदली अवस्था में प्रत्येक दल नखर (claw) व दल फलक या भुजा (limb) में विभेदित होता है। नीचे का संकरा, वृंत सदृश्य नखर तथा ऊपर का चौड़ा भाग भुजा या फलक होता है। संयुक्तदली में नीचे का भाग दलों से जुड़ने के कारण दलपुंज नलिका (Corolla tube) तथा ऊपर का चौड़ा भाग दलपुंज फलक होता है। नलिका जिस स्थान पर दलफलक से जुड़ी हुई होती है उसे दलपुंज कण्ठ (corolla throat) कहते हैं।

पुष्पदल विन्यास (Aestivation): बाह्यदलों व दलों या परिदलों के कलिका अवस्था में पारस्परिक सम्बन्ध को पुष्पदल विन्यास कहते हैं। यह निम्न प्रकार का होता है –

  1. कोरस्पर्शी (Valvate): पुष्पदल के किनारे दूसरे पुष्पदल के किनारे आपस में एक-दूसरे के सामने होते हैं या एक-दूसरे को केवल छूते हैं, ढकते नहीं है, जैसे आक, बबूल आदि में।
  2. कोरछादी (Imbricate): इस प्रकार के दल विन्यास में दलों के किनारे एक दूसरे को ढक लेते हैं, जैसे – मटर। यह दो प्रकार का होता है।
    • आरोही कोरछादी (Ascending imbricate): इसमें पश्च दल के दोनों किनारे पावं दलों से ढके रहते हैं और शेष तीन का एक किनारा ढ़का हुआ व दूसरा किनारा स्वतंत्र होता है। अग्रतम दल के दोनों किनारे स्वतंत्र होते हैं, जैसे गुलमोहर।
    • अवरोही कोरछादी या ध्वजिक (Descending imbricate or vexillary): इस प्रकार के दल विन्यास में ध्वजक दल के दोनों किनारे स्वतंत्र होते हैं और पक्ष या पंखों (wings) के किनारों को ढके रहते हैं। नौतल (keel) जो कि भीतरी दो दलों के मिलने से बनता है, पंखों द्वारा ढका रहता है, जैसे मटर।
  3. व्यावर्तित (Twisted): दल विन्यास में एक दल का एक किनारा दूसरे दल के किनारे को ढक लेता है। दूसरे दल का दूसरा किनारा तीसरे दल के एक किनारे को ढक लेता है, जैसे गुडहल ।
  4. क्विनकन्शियल (Quincuncial): इसमें दो दल पूर्ण रूप से बाहर, दो दल पूर्णतया अन्दर (दोनों किनारे ढके हुये) तथा शेष एक दल का एक किनारा ढ़के हुये व दूसरा ढ़का नहीं होता है, जैसे अमरूद।
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प्रश्न 3.
बीजाण्डन्यास से क्या अभिप्राय है ? विभिन्न प्रकार के बीजाण्डन्यास को सचित्र, सोदाहरण समझाइये ?
उत्तर:
बीजाण्डन्यास (Placentation)
अण्डाशय की भित्ति की भीतरी सतह से मृदूतकीय ऊतकों का उभार बनता है जिसे बीजाण्डासन (placenta) कहते हैं। बीजाण्डासन पर बीजाण्ड लगे होते हैं। अण्डाशय के अन्दर बीजाण्डसनों तथा बीजाण्डों की व्यवस्था को बीजाण्डन्यास (placentation) कहा जाता है। बीजाण्डन्यास निम्न प्रकार के होते हैं –

  1. सीमान्त (Marginal): एक अण्डपी व एककोष्ठकी अण्डाशय में जोड़ या अभ्यक्ष सीवनी (ventral suture) पर बीजाण्ड लगे रहते हैं, जैसे – मटर।
  2. भित्तिय (Parietal): दो या दो से अधिक अण्डपों वाले युक्ताअण्डपी, एक कोष्ठी अण्डाशय में भित्तिय बीजाण्डन्यास पाया जाता है। एक दूसरे के पास-पास स्थित अण्डप के पाश्र्वी कोर जहाँ संयुक्त होते हैं, उस स्थान पर बीजाण्ड लगते हैं। ऐसे बीजाण्डन्यास में बीजाण्डासनों की संख्या अण्डपों की संख्या के बराबर होती है, जैसे – सरसों, ककड़ी आदि।
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  3. स्तम्भीय (Axile): इस प्रकार का बीजाण्डन्यास युक्ताअण्डपी जायांग में पाया जाता है। अण्डप के संयुक्त कोर वृद्धि कर अण्डाशय के केन्द्र भाग में परस्पर संयुक्त हो जाते हैं। इसमें केन्द्र में एक अक्ष बन जाता है तथा अण्डाशय अनेक प्रकोष्ठों में विभक्त हो जाता है। प्रायः इनकी संस्था अण्डपों की संख्या के समतुल्य होती है। प्रत्येक प्रकोष्ठ में बीजाण्ड केन्द्रीय अक्ष पर विकसित होते हैं, जैसे गुडहल, नींबू, प्याज आदि।
  4. मुक्त स्तम्भीय (Free Central): यह युक्ताअण्डपी जायांग में पाया जाता है अण्डाशय एककोष्ठी होता है तथा बीजाण्ड केन्द्रीय अक्ष पर होते हैं। यह बीजाण्डन्यास दो प्रकार का होता है –
    • केन्दीय बीजाण्डन्यास (Central placentation): प्रारम्भ में बीजाण्डन्यास स्तम्भीय होता है परन्तु शीघ्र ही प्रकोष्ठ की भित्तियाँ नष्ट हो जाती है, जिससे यह एककोष्ठीय प्रतीत होता है। तथा केन्द्रीय अक्ष पर बीजाण्ड लगे होते हैं, जैसे – जिपसोफिसा (Gypsophyla), प्राइमुला (Primula)।
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    • परिभित्तिय (Superficial): इस प्रकार का बीजाण्डन्यास प्रायः युक्ताअण्डपी, बहुकोष्ठीय, अण्डाशय में मिलता है। बीजाण्ड कोष्ठों की भित्तियों पर लगे होते हैं, जैसे – जल – लिलि (Nympheas)।
  5. आधारलग्न (Basal): एककोष्ठीय, युक्ताअण्डपी अण्डाशय में केवल एक बीजाण्ड अण्डाशय के आधार पर से विकसित होता है, जैसे-सूर्यमुखी कुल के पादप।

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