RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 3 विषाणु या वाइरस

Rajasthan Board RBSE Class 11 Biology Chapter 3 विषाणु या वाइरस

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वाइरस होते हैं –
(अ) कणिकामय या अकोशिक
(ब) एककोशिक
(स) बहुकोशिक
(द) उपरोक्त कोई नहीं

प्रश्न 2.
जीवाणुभोजी बने होते हैं –
(अ) न्यूक्लिक अम्ल के
(ब) केवल प्रोटीन के
(स) न्यूक्लिओ प्रोटीन के
(द) कार्बोहाइड्रेट के

प्रश्न 3.
वाइरस कण के आवरण को कहते हैं –
(अ) कोशिका झिल्ली
(ब) कोशिका भित्ति
(स) क्यूटिकल
(द) केप्सिड

प्रश्न 4.
निम्न में से वाइरस जनित रोग है –
(अ) टाइफाइड
(ब) टी.बी.
(स) पोलियो
(द) डिप्थीरिया
उत्तरमाला:
1. (अ), 2. (स), 3. (द), 4. (स)

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उस विषाणु का नाम लिखिये जिसमें एकल रज्जुकी DNA पाया जाता है।
उत्तर:
AIDS विषाणु तथा Φ x 174

प्रश्न 2.
उस विषाणु का नाम लिखिये जिसमें द्विरज्जुकी RNA पाया जाता है।
उत्तर:
पादप विषाणु Reo virus (wound tumor virus)।

प्रश्न 3.
टी.एम.वी. (T.M.V.) का पूरा नाम लिखिये।
उत्तर:
तम्बाकू या टोबेको मोजैक वाइरस (Tobacco mosaic virus)।

प्रश्न 4.
दो विषाणु जनित प्राणि रोगों के नाम बताइये।
उत्तर:
चेचक-पॉक्स वाइरस तथा पोलियो।

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विषाणु सजीव या निर्जीव है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विषाणु में सजीव व निर्जीव दोनों प्रकार के गुण होते हैं। वाइरस में स्वयं के स्तर पर स्वतंत्र रूप से जनन की क्षमता नहीं होती है, अतः इन्हें सजीव नहीं कहा जा सकता किन्तु ये अकोशिकीय कण परपोषी कोशिकाओं का उपयोग स्वयं के जनन के लिए करते हैं। अर्थात् ये कण (वाइरस) सजीव परपोषी के बाहर निर्जीव या निष्क्रिय तथा सजीव परपोषी के अन्दर जीवित जीव की तरह व्यवहार करते हैं। अतः वाइरस न सजीव है और न ही निर्जीव। यह सजीवों एवं निर्जीवों के बीच की योजक कड़ी है। क्योंकि इनमें सजीव इकाइयों एवं निर्जीव पदार्थों दोनों के गुण समान रूप से पाये जाते हैं।

प्रश्न 2.
पादप व जन्तु विषाणु में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
पादप व जन्तु विषाणुओं में दो मुख्य अन्तर हैं –

  1. सभी प्रकार के पादप विषाणुओं में आवरण का अभाव होता है। जबकि जन्तु विषाणुओं में यह उपस्थित (जैसे इन्फ्लूएंज्म विषाणु, मम्पस विषाणु) अथवा अनुपस्थित (जैसे पोलियो मेरुरज्जु शोथ विषाणु) होता है।
  2. सभी पादप विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है। जबकि जन्तु विषाणुओं में यह RNA अथवा DNA होता है।
    पादप विषाणु पौधों में पाये जाते हैं तथा ये उच्च श्रेणी के पौधों में रोग फैलाते हैं, जैसे तम्बाकू का मोजैक रोग (TMV)। प्राणी विषाणु केवल प्राणियों में पाये जाते हैं, ये जन्तुओं व मानव में रोग फैलाते हैं, जैसे-एड्स, इन्फ्लूएन्जा आदि।

प्रश्न 3.
किसी भी विषाणु की संरचना समझाइये।
उत्तर:
सभी विषाणु अकोशिकीय, कणिकीय संरचना के हैं। ये न्यूक्लीक अम्ल व प्रोटीन के बने होते हैं। न्यूक्लीक अम्ल में से DNA या RNA ही पाया जाता है। यह विषाणु का केन्द्रीय कोर होता है। न्यूक्लीक अम्ल के चारों ओर एक प्रोटीनयुक्त आवरण होता है, जो न्यूक्लीक अम्ल की रक्षा करता है तथा विषाणु की सममित के लिए उत्तरदायी है, इसे पेटिका या केसिड कहते हैं। केप्सिड की उपइकाइयों को पेटिकांशक या कैप्सोमियर्स। कहते हैं। प्रत्येक कैप्सोमियर अनेक प्रोटीन अणुओं का बना। होता है। कोर तथा कैप्सिड कैप्सोमियर को मिलाकर इसे न्यूक्लिओकेप्सिड कहते हैं।
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कुछ विषाणुओं में प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्ल के अतिरिक्त एक बाहरी आवरण (शर्करा, वसा या वसा-प्रोटीनयुक्त) होता है, इन्हें लिपोविषाणु कहते हैं, जैसे-हरपीस विषाणु । जीवाणु विषाणु की पूँछ में विशेष प्रकार के प्रोटीन होते हैं जिसके माध्यम से वे जीवाणुओं की कोशिका में प्रवेश करते हैं।

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विषाणुओं की प्रकृति एवं लक्षण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विषाणुओं के जैविक गुण (Living or animate characters of viruses):

  1. विषाणुओं का गुणन (multiplication) मात्र जीवित कोशिकाओं में ही हो सकता है।
  2. विषाणु, परपोषी के प्रति विशिष्टता (host specificity) दर्शाते हैं।
  3. ये जीवाणु व कवक की जैसे किसी भी स्वस्थ पौधे को संक्रमित कर सकते हैं।
  4. इनमें न्यूक्लिक अम्ल (DNA or RNA) होता है और प्रतिजनी (antigen) गुण होते हैं।
  5. ये विकरण, प्रकाश, रासायनिक पदार्थों, अम्ल, क्षार तथा तापक्रम जैसे उद्दीपकों (stimulants) के प्रति अनुक्रिया (response) दर्शाते हैं।
  6. विषाणुओं में आनुवंशिक पदार्थों की पुनरावृत्ति (replication) होती है, जो सजीवों का प्रमुख लक्षण है।
  7. इनके उत्परिवर्ती प्रारूप (mutual form) मिलते हैं, उत्परिवर्तन (mutation) जीवों का प्रमुख लक्षण है।

विषाणुओं के निर्जीव गुण(Non-living or inanimate characters of viruses):

  1. इनमें कोशिका भित्ति, प्लाज्मा झिल्ली तथा कोशिकांगों (cell organelles) का अभाव होता है।
  2. इनमें श्वसन, वृद्धि इत्यादि जैविक क्रियायें नहीं होती।
  3. विषाणुओं को क्रिस्टल के रूप में प्राप्त किया जा सकता है, यह केवल निर्जीव में ही सम्भव है।
  4. ये विशिष्ट परपोषी (specific host) की ऊतक के बाहर अक्रिय (inert) रहते हैं।
  5. ये स्वउत्प्रेरक (autocatalytic) होते हैं तथा इनमें कार्यशीलता स्वायत्तता (functional autonomy) नहीं होती।
  6. इनमें एन्जाइम्स का अभाव होता है। इनका प्रोटीन की जैसे। अवसादन (sedimented like proteins) किया जा सकता है।
  7. विभिन्न रायासनिक पदार्थों की सहायता से इनका अवक्षेपण (precipitation) भी किया जा सकता है।

प्रश्न 2.
विषाणु की संरचना एवं रासायनिक संगठन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विषाणुओं की संरचना (Structure of Viruses):
आमाप (size):
विषाणु विभिन्न आमाप व आकार के होते हैं। इसके लिए संक्रमित पादपों के रस से विषाणुओं को पृथक् कर इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी यंत्र में विषाणु कण अर्थात् विरिऑन (Virions) का अध्ययन किया जाता है। विरिऑन इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें नेनोमीटर (nanometer = nm) में मापा जाता है। इनका आमाप लगभग 10 nm से लेकर 300 nm तक होता है। प्रायः पादप विषाणु आमाप में जन्तु विषाणु से छोटे होते हैं।

आकार (Shape):
विषाणुओं का आकार कुण्डलित दंड़िका (helical rod जैसे मम्प विषाणु = Mumps virus)
धनाभ (Cuboid, जैसे हरपीज विषाणु = Herps Virus)
अथवा
जटिल (Complex, जैसे इन्फ्लु एन्जा विषाणु = Influenza virus) होते हैं।

रासायनिक संगठन (Chemical composition):
सभी प्रकार के विषाणुओं का रासायनिक संगठन समान प्रकार का होता है। प्रत्येक विषाणु में न्यूक्लिक अम्ल (nucleic acid, RNA या DNA) का एक केन्द्रीय क्रोड (Central core) होता है जो कि एक प्रोटीन आवरण से ढका होता है, जिसे पेटिका (Capsid) कहते हैं। पेटिका अनेक छोटीछोटी उपइकाइयों पेटीकाशंक (capsomeres) से बनी होती है। केन्द्रीय क्रोड़ तथा पेटिका संयुक्त रूप से न्यूक्लिओकैप्सिड (nucleocapsid) कहलाती हैं। न्यूक्लिओकैप्सिड पर भी एक आच्छद (envelope) होती है किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि यह आवरण सभी प्रकार के विषाणुओं पर पाया जाये। प्रायः पादप विषाणुओं में इस आच्छद का अभाव होता है, किन्तु जन्तु विषाणुओं पर यह अच्छद उपस्थित या अनुपस्थित हो सकता है। स्तनधारियों में पाये जाने वाले अनेक विषाणुओं में पेटिका के बाहर लिपिड अथवा लिपोप्रोटीन से बना एक आवरण (envelope) होता है।

ऐसे विषाणुओं को लिपोविषाणु (Lipovirus) कहते हैं। जैसा पूर्व में बताया जा चुका है कि पादप विषाणुओं में केवल RNA पाया जाता है। किन्तु जन्तु विषाणुओं में RNA अथवा DNA में से एक न्यूक्लिक अम्ल होता है। प्रत्येक विषाणु में आनुवंशिक पदार्थ का केवल एक अणु होता है। इसमें न्यूक्लिओटाइड युग्मों की संख्या 1000 से 2,50,000 तक होती है। परन्तु किसी एक प्रकार के विषाणु में इनकी संख्या निश्चित होती है। अतः न्यूक्लिओटाइडों की संख्या विषाणु का एक विशिष्ट लक्षण है। विषाणुओं का एक महत्त्वपूर्ण लक्षण यह है कि उनका प्रोटीन घटक हानिकारक नहीं होता है। विषाणु के संक्रामक लक्षण (infectious characters) उसके न्यूक्लिक अम्ल में विद्यमान होते हैं। अतः संक्रमण के लिए परपोषी कोशिका में विषाणु के न्यूक्लिक अम्ल का प्रवेश आवश्यक है।
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प्रश्न 3.
विषाणु/जीवाणुभोजी के जनन को समझाइये।
उत्तर:
विषाणुओं में बहुगुणन अथवा जनन (Multiplication or Reproduction in Viruses):
विषाणुओं में जनन इनके न्यूक्लिक अम्लों में प्रतिकृतिकरण (replication) के कारण होता है। गुणन की प्रक्रिया में विषाणु कण, परपोषी कोशिका की उपापचयी क्रिया में परिवर्तन कर अपने कणों की संख्या में वृद्धि करते हैं। कुछ विषाणुओं को छोड़कर सभी विषाणुओं में गुणन की प्रक्रिया लगभग जीवाणुभोजी के समान ही होती है। अतः विषाणुओं के जनन की प्रक्रिया को समझने के लिए जीवाणुभोजियों के जीवन-चक्र को समझना आवश्यक है। जीवाणुभोजी वे विषाणु होते हैं। जो जीवाणुओं (Bacteria) को संक्रमित करते हैं।
इनमें जनन चक्र दो प्रकार का होता है-
(i) लयनकारी चक्र।
(ii) लयकारी चक्र।
इसमें प्रथम प्रकार के चक्र में जीवाणु नष्ट हो जाता है । परन्तु द्वितीय प्रकार के चक्र में जीवाणु जीवित रहता है।

(i) लयनकारी चक्र (Lytic cycle):
इस प्रकार के चक्र में उग्र (virulent), लयनकारी lytic) जीवाणुभोजी जीवाणु कोशिकाओं को संक्रमित कर नष्ट कर देते हैं। इन मृत परपोषी कोशिकाओं में विभोजी (विषाणु) के DNA का प्रतिकृतन होता है तथा नये विभोजीकण बनते हैं। जो परपोषी कोशिका के फटने के बाद बाहर आ जाते हैं।
यह चक्र निम्न चरणों में पूर्ण होता है।
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अधिशोषण अवस्था (absorption stage):

  1. इसमें विषाणु कण परपोषी कोशिका (जीवाणु) की भित्ति के विशिष्ट स्थानों पर पूँछ द्वारा चिपक जाते हैं। इन विशिष्ट स्थानों को अभिग्रह स्थल (receptor site) कहते हैं।
  2. भित्ति पर लगने या चिपकने के बाद विषाणु एक एन्जाइम (लाइसोसोम के समतुल्य) स्रावित करता है। इससे जीवाणु कोशिका भित्ति पर छिद्र हो जाता है तथा न्यूक्लिक अम्ल जीवाणु में प्रवेश कर जाता है।
  3. जैसे ही विषाणु DNA परपोषी की कोशिका में प्रवेश करता है, यह कोशिकीय उपापचय पर नियंत्रण कर स्वयं के अनुरूप DNA एवं प्रोटीन का संश्लेषण करता है। DNA के निर्माण के पश्चात् परपोषी कोशिका में नये प्रकार के प्रोटीन उत्पन्न होते हैं। कुछ समय बाद इस प्रकार के नवनिर्मित DNA एवं प्रोटीन के नये फेज (विषाणु) के कण बनते हैं।
  4. यह नये फेज के कण निर्माण की क्रिया 30-90 मिनट में पूर्ण हो जाती है तथा इस अवधि में प्रत्येक संक्रमित जीवाणु कोशिका में लगभग 200 तक विभोजी बन जाते हैं। इसके बाद विभोजी का DNA लाइसोजाइम एन्जाइम स्रावित करते हैं जिससे परपोषी की कोशिका का लयन (फट जाना) हो जाता है। कोशिका भित्ति के लयन के कारण विभोजी मुक्त होकर बाहर निकल जाते हैं।

(ii) लयकारी चक्र (Lysogenic cycle):
इसमें अनउग्र (non-virulent) लयनकारी जीवाणुभोजी परपोषी जीवाणु कोशिकाओं को नष्ट नहीं करते हैं तथा इनका DNA खण्ड जीवाणु कोशिका के जीनोम के साथ समाकलित (integrate) हो जाता है अर्थात् जुड़ जाता है। इसे प्रोफेज अवस्था (prophage stage) कहते हैं। जीवाणु के जीनोम के साथ जुड़ा हुआ यह DNA जीवाणु की अनेक पीढ़ियों तक प्रतिकृतिकरण (replication) करता है। इसमें परपोषी कोशिका (जीवाणु) का लयन (फटना) नहीं होता है। इस प्रक्रिया को लयजकता (Lysogeny) कहते हैं।
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प्रश्न 4.
विषाणुओं के वर्गीकरण के बारे में लिखिये।
उत्तर:
विषाणुओं का वर्गीकरण (Classification of Viruses):
लोफ, होर्नी, तथा टोर्नियर (Lowit, Horne and Tournier, 1962) ने विषाणुओं का वर्गीकरण दिया तथा इसे विषाणुओं के नाम पद्धति की अन्तर्राष्ट्रीय समिति (International committee for virus nomenclature) ने 1965 में मान्यता प्रदान की। उक्त वर्गीकरण को इन वैज्ञानिकों के नाम से LHT (Lowff, Horne, Tournier) से भी जाना जाता है। वर्गीकरण की यह पद्धति न्यूक्लिक अम्लों के प्रकार तथा
आकारिकीय लक्षणों (morphological characters) पर आधारित है। इस वर्गीकरण की संक्षिप्त रूपरेखा निम्न प्रकार से है –
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RBSE Class 11 Biology Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वायरसों में आनुवंशिक पदार्थ होता है –
(अ) केवल डी एन ए
(ब) केवल आर एन ए
(स) डी एन ए अथवा आर एन ए
(द) हिस्टोन प्रोटीन

प्रश्न 2.
वायरस के प्रोटीन चोल को कहते हैं –
(अ) केप्सिड
(ब) केप्सोमीयर
(स) वायरॉन
(द) संलयन

प्रश्न 3.
सबसे छोटा रोगकारक कौनसा है –
(अ) वायरस
(ब) जीवाणु
(स) माइकोप्लाज्मा
(द) एककोशिकीय शैवाल

प्रश्न 4.
वायरस आवश्यक रूप से निर्मित होते हैं –
(अ) प्रोटीन व न्यूक्लिक अम्ल
(ब) स्टार्च व कार्बोहाइड्रेट
(स) प्रोटीन व लिपिड
(द) स्टार्च, प्रोटीन व लिपिड

प्रश्न 5.
वायरस का निम्न भाग उसे आनुवंशिकता का गुण प्रदान करता है –
(अ) आर एन ए अथवा डी एन ए
(ब) केप्सिङ
(स) केप्सोमीयर
(द) प्रोटीन चोल
उत्तरमाला:
1. (स), 2. (अ), 3. (अ), 4. (अ), 5. (अ)

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वाइरस का शाब्दिक अर्थ क्या है ?
उत्तर:
विष अणु।

प्रश्न 2.
विषाणु तथा विषाणुभोजी के खोजकर्ता कौन थे ?
उत्तर:
विषाणु के इवेनोव्सकी तथा विषाणुभोजी के वार्ट एवं डी. हैरेली खोजकर्ता थे।

प्रश्न 3.
सर्वप्रथम वाइरस का क्रिस्टलीकरण करने वाले कौन थे ?
उत्तर:
स्टैन्ले (Stanley)।

प्रश्न 4.
बीजलेख या क्रिप्टोग्राम (Cryptogram) किसे कहते है ?
उत्तर:
विषाणु के नामकरण में प्रथम भाग प्रचलित नाम होता है। तथा दूसरे भाग में विषाणु के विषय में सांकेतिक सूचना होती है। इस दूसरे भाग को ही बीजलेख कहते हैं।

प्रश्न 5.
सामान्य जुखाम किसके कारण से होता है ? .
उत्तर:
राइनो वाइरस के कारण होता है।

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
विषाणुओं को संचरण किसके द्वारा होता है ?
उत्तर:
विषाणुओं का संचरण (Transmission of Viruses):
विषाणुओं के संचरण से तात्पर्य है कि रोगी पादप या जन्तु से स्वस्थ परपोषी तक इनका जाना अर्थात् संक्रमण करना। विषाणुओं का संचरण निम्नलिखित विधियों द्वारा होता है –
रोपण (graft),
अन्तःक्षेपण (injection)
घर्षण (friction or rubbing)
छिड़काव द्वारा
मिट्टी तथा बीजों
कायिक प्रवर्यो (vegetative propagules)
परागकणों
कवकों
जल तथा कीटों द्वारा संचरण होता है।

प्रश्न 2.
विषाणुओं के लाभदायक प्रभाव बताइये।
उत्तर:
विषाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Viruses):
विषाणु लाभदायक तथा हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं –
(i) लाभदायक प्रभाव (Useful effects):

  1. अनेक विषाणुओं का उपयोग फसल के लिए हानिकारक जीवों एवं कीटों के उन्मूलन व रोकथाम के लिए किया जा रहा है। इसे जैविक नियंत्रण (biological control) कहते हैं। जैसे बैक्यूलोवाइरस (Bacculovirus) का प्रयोग विशिष्ट कीटों के जैविक नियन्त्रण में किया जाता है।
  2. विशिष्ट प्रकार के विषाणु प्रभेद (strain) का संवर्धन कर विशिष्ट रोग के निवारण हेतु वेक्सीन (vaccine) के रूप में उपयोग किया जाता है।
  3. सांयनोफॉज LPP-1 व SM-1 का उपयोग जल प्रस्फुटन (water bloom) के नियंत्रण में किया जाता है।
  4. अनुसंधान कार्य में उपयोगी है। हर्षे व चेस ने ही इन पर प्रयोग कर यह सिद्ध किया था कि DNA आनुवंशिकी का रासायनिक आधार है।
  5. गंगा नदी के जल में असंख्य जीवाणुभोजी उपस्थित होते हैं। तथा ये नदी के प्रदूषित जल में उपस्थित रोगजनक जीवाणुओं का लयन कर नष्ट कर देते हैं। अतः ये अपमार्जक (scavanger) का कार्य कर गंगा नदी के जल को सदैव शुद्ध बनाये रखते हैं।
  6. अन्तरिक्ष सूक्ष्मविज्ञान में जीवाणुभोजियों का उपयोग विकिरण संकेतक (radiation indicator) के रूप में होता है।
  7. अनेक विषाणु कण प्रतिजैविक पदार्थों के उत्पादन को रोकते हैं।

प्रश्न 3.
विषाणुजनित पादप व मानव रोग तथा उनके कारक बताइये।
उत्तर:
विषाणुजनित महत्त्वपूर्ण मानव रोग (Important human diseases caused by virus):

रोग (Disease) रोग पैदा करने वाले जीव (Causal organism)
 चेचक (Small pox) पाक्स विषाणु (Pox virus)
 इन्फ्लू एन्जा (Influenza) आर्थोमिक्सोवाइरस (Orthomyxo virus)
 खसरा (Measles) मिक्सो वाइरस (Myxo virus)
 पोलियो (Polio) पोलियो वाइरस (Polio virus)
 रेबीज (Rabies) रैब्डो वाइरस (Rhabdo virus)
 हेपेटाइटिस (Hepatitis) हेपेयइटिस वाइरस (Hepatitis virus)
 जुकाम (Cold) राइनो वाइरस (Rhino virus)
 पीला बुखार (Yellow fever) कॉक्सेकिया वाइरस (Coccicia virus)
 एड्स (AIDS) ह्यूमन T लिम्फोट्रोफिक वाइरस I-II (HLV III), HIV या AIDS सम्बन्धित स्ट्रोवाइरस (ARV) या  लिम्फाडीनोपेथी सम्बन्धित वाइरस (LAV)

RBSE Class 11 Biology Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जीवाणुभोजी की संरचना को सचित्र समझाइये।
उत्तर:
जीवाणुभोजी (Bacteriophage):
वे विषाणु जो जीवाणु कोशिका में परजीवी (parasite) होते हैं, उन्हें जीवाणुभोजी या बैक्टीरियोफाज (Bacteriophage) कहते हैं। इनका आविष्कार वार्ट तथा डी. हैरेल (d’Herelle) द्वारा 1917 में किया गया था। बैक्टीरियोफाज का शाब्दिक अर्थ जीवाणुओं को खाने वाले जीव (phage = eater) हैं।

जीवाणुभोजी अविकल्पी परजीवी (obligate parasites) विषाणु होते हैं तथा ये जीवाणु कोशिकाओं को संक्रमित करते हैं। ये प्रायः मिट्टी,
गन्दे जल, नालियों, जन्तुओं व मनुष्यों की आँतों, थूक, लार, रक्त व पस (pus), दूध, सब्जियों, फल आदि में अधिक पाये जाते हैं। इसके अतिरिक्त ये जन्तुओं व पक्षियों, मल, खाद व समुद्र में भी पाये जाते हैं। कुछ जीवाणुभोजी जीवाणुओं के अतिरिक्त यीस्ट तथा नीलहरित शैवालों पर भी परजीवी के रूप में पाये जाते हैं। इन्हें क्रमशः जाइमोफेज (Zymophage) व सायनोफेज (Cyanophage) कहते हैं।

जीवाणुभोजी की संरचना (Structure of Bacteriophage):
जीवाणुभोजी इतने सूक्ष्म होते हैं कि इन्हें जीवाणुज फिल्टर से भी पृथक् नहीं किया जा सकता है। इनकी संरचना का अध्ययन केवल इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के द्वारा ही किया जा सकता है। एक प्रारूपिक जीवाणुभोजी टैडपोल (tadpole) के समान सिर (head) व पूंछ (tail) में विभेदित होता है (चित्र 3.4) ।
RBSE Solutions for Class 11 Biology Chapter 3 विषाणु या वाइरस img-6
अधिकांश जीवाणुभोजियों (T1, T2, T6 आदि) का सिर प्रिज्माभ (prismoid) होता है किन्तु T3 व T4 जीवाणुभोजियों में यह षटकोणीय होता है। इनके अतिरिक्त कुछ जीवाणुभोजी तन्तुमय (filamentous) होते हैं तथा इनमें सिर व पूछ में विभेदन नहीं पाया जाता है। T2 विभोजी के प्रिज्माभ सिर का आमाप 950 x 650Å होता है। सिर व पूँछ के नीचे का भाग कालर (callar) कहलाता है। पूँछ की लम्बाई लगभग सिर की लम्बाई (950Å) के बराबर होती है। इसका व्यास लगभग 80Å होता है तथा यह प्रोटीन की परत से ढका होता है। पूंछ के पास एक षट्कोणीय प्लेट होती है जिसे पूंछ प्लेट (tail plate) या आधार प्लेट (basal plate) कहते हैं, इसकी मोटाई लगभग 200Å होती है। इस प्लेट की निचली सतह पर छः पुच्छ तन्तु (tail fibres) जुड़े होते हैं। प्रत्येक पुच्छ तन्तु की लम्बाई 1500Å होती है। पुच्छ तन्तु के दो मुख्य कार्य हैं –

  1. जीवाणुभोजी को जीवाणु की सतह पर चिपकाने में सहायता करते हैं तथा
  2. इनसे स्रावित एन्जाइम जीवाणु की भित्ति के लयन (lysis) में सहायक होते हैं।

जीवाणुभोजी का प्रिज्माभ सिर न्यूक्लियोकैप्सिड (nucleocapsid) से बना होता है। इसका निर्माण करने वाले सभी प्रोटीन अणु एक समान होते हैं व यह जीवाणुभोजी का एक लाक्षणिक गुण हैं। सिर के केन्द्र में DNA का एक केन्द्रीय क्रोड (central core) होता है जो प्रोटीन के एक अलग आवरण (आन्तरिक कवच, inner cell) से ढका होता है। आन्तरिक कवच का निर्माण करने वाली प्रोटीन उपइकाइयाँ केप्सोमियर्स (capsomeres) कहलाती हैं। कोलीफाज (coliphage), Φ x 174, आदि कुछ जीवाणुभोजियों को छोड़कर अधिकांश जीवाणुभोजियों में DNA द्विरज्जुकी (ds DNA) होता है। DNA जीवाणुभोजी का आनुवंशिक पदार्थ है। इसके दो मुख्य कार्य हैं –

  1. इसमें जीवाणुभोजी के आनुवंशिक लक्षण निहित हैं, तथा
  2. यह संक्रमण का मुख्य वाहक है। यह परपोषी कोशिका को अधिक से अधिक विषाणु बनाने के लिए प्रेरित करता है।

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