RBSE Solutions for Class 11 Hindi आलोक Chapter 5 विष पिया अमृत दिया

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 5 विष पिया अमृत दिया

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 5 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
डॉ. अंबेडकर ने महाराजा गायकवाड़ की नौकरी क्यों छोड़ी?
(क) अध्ययन हेतु
(ख) माताजी की सेवा हेतु
(ग) पिताजी की सेवा हेतु
(घ) राजनीति में आने हेतु
उत्तर:
(ग) पिताजी की सेवा हेतु

प्रश्न. 2.
डॉ. अंबेडकर के लिए सबसे पहले क्या था?
(क) जाति
(ख) स्वयं
(ग) देश
(घ) समाज
उत्तर:
(ग) देश

प्रश्न. 3.
बालक भीम को अंबेडकर उपनाम किससे मिला?
(क) पिताजी से
(ख) माताजी से
(ग) शिक्षक से
(घ) महाराजा गायकवाड़ से
उत्तर:
(ग) शिक्षक से

प्रश्न. 4.
डॉ. अंबेडकर के पिताजी का नाम था –
(क) रामजी सकपाल
(ख) सकजी रामपाल
(ग) पालजी सकराम
(घ) रावजी भीमपाल
उत्तर:
(क) रामजी सकपाल

प्रश्न. 5.
बालक भीम को विद्यालय में प्रवेश किस शर्त पर मिला?
उत्तर:
बालक भीम महार जाति का था। इसलिए उसे अन्य छात्रों तथा शिक्षकों के जूतों के पास बैठकर पढ़ने की शर्त पर विद्यालय में प्रवेश मिला।

प्रश्न. 6.
डॉ. अंबेडकर को मजबूती किसने प्रदान की?
उत्तर:
डॉ. अंबेडकर का जीवन सरस-सहज नहीं था। उन्हें बार-बार अपमान की ज्वाला में जलना पड़ा ‘तथा जगह-जगह सम्मान के छींटे भी मिलीं। इस रूप में उनके विराट व्यक्तित्व की दृढ़ता विपरीत अनुभवों को सहते-समझते लगातार आगे बढ़ती गई। डॉ. अंबेडकर को यह मजबूती तत्कालीन परिस्थितियों ने प्रदान की।

प्रश्न. 7.
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर के बड़े आदमी होने का क्या कारण था?
उत्तर:
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर निश्चित रूप से बड़े आदमी थे। उनके बड़े होने का कारण था कि उनका जीवन संघर्षमय था। उन्होंने जीवन में बड़ी-बड़ी अनेक बाधाएँ पार कीं। उनको व्यक्तित्व विराट था, क्योंकि कदम-कदम पर अपमानित होने के बाद भी उनके मन में किसी के प्रति घृणा का भाव नहीं था।

प्रश्न. 8.
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर ने जीवन भर किससे लड़ाई लड़ी?
उत्तर:
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर ने जीवन भर समाज की गलन और गंदगी के विरुद्ध लड़ाई लड़ी। उन्होंने हमेशा समाज से अन्याय को दूर करने का प्रयास किया। वे न्याय व्यवस्था में राष्ट्रीय स्तर पर मतैक्य स्थापित करना चाहते थे।

प्रश्न. 9.
समाज को डॉ. अंबेडकर का पहला उत्तर क्या था? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
बालक भीम को छात्रों और शिक्षकों के जूतों के पास बैठकर पढ़ने की शर्त पर ही विद्यालय में प्रवेश मिल सकता था। बालक भीम ने अपनी माँ से कहा कि वह उसे जूतों के पास बैठकर पढ़ने की शर्त पर ही दाखिला करा दे। बच्चों में फर्क देखने वाले तथाकथित बड़े लोगों के समाज को डॉ. अंबेडकर का यह पहला उत्तर था।

प्रश्न. 10.
किस घटना ने बालक भीम के मन में उथल-पुथल मचा दी?
उत्तर:
महार का बेटा होने के कारण बालक भीमं समाज के अन्य बच्चों के साथ नहीं खेल सकता था। समाज की इस विषम कुव्यवस्था से बालक के कोमल मन पर गहरी चोट लगी। बंधनों में जकड़े बचपन की छटपटाहट से प्रश्न उत्पन्न हुआ कि क्या बच्चों में भी फर्क होता है? जीवन के इस पहले झटके, पहले प्रश्न ने बालक भीम के मन में उथल-पुथल मचा दी।

प्रश्न. 11.
माँ भीमाबाई ने बालक भीम को क्या-क्या शिक्षा दी? विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
माँ भीमाबाई एक अनुभवी महिला थीं। वह सामाजिक स्थिति को अच्छी तरह समझती थीं। उसके नन्हें बेटे में असीम संभावनाएँ हैं, वह इसे पहचानती भी थीं। वह अपने बेटे भीम को शिक्षा देती हुई कहती हैं कि उसे समाज में बहुत अपमान सहना पड़ेगा और साथ ही बंड़ी घृणा भी झेलनी पड़ेगी। किन्तु वह इन सबकी कभी परवाह न करे। उसे खूब पढ़ना है और बड़ा आदमी बनना है। बड़ा आदमी बनने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है। बिना पढ़े कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता। जब वह बड़ा आदमी बन जाए, तो समाज से ऊँच-नीच, छुआछूत, अन्याय आदि गंदी रीति को बदल दे। यही उसकी इच्छा है।

प्रश्न. 12.
उच्च पद की नौकरी करने के बाद भी डॉ. अंबेडकर को किन-किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?
उत्तर:
1917 ई. में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पढ़कर लौटने पर महाराज गायकवाड़ ने डॉ. अंबेडकर को सैन्य सचिव का ऊँचा पद प्रदान किया। किन्तु समाज जातिगत श्रेष्ठता के झूठे बंधन में बँधा हुआ था। ऊँची जाति वाले विभागीय अधिकारियों में से कोई भी उनको लेने रेलवे स्टेशन तक नहीं गया। ऊँची जाति का चपरासी उन्हें फाइलें पकड़ाता नहीं था, दूर से ही पटक देता था। पानी माँगने पर उनके मातहत साफ-साफ इनकार कर देते थे। ऊँची जाति वाले उन्हें किराये पर मकान नहीं देते थे। पहचान छिपाकर यदि मकान मिल भी जाता तो बाद में मालूम होने पर उनका सामान सड़क पर फेंक दिया जाता था।

प्रश्न. 13.
बालक भीम का बचपन जिन विषम परिस्थितियों में बीता उनका उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बालक भीम का बचपन विभिन्न विषम परिस्थितियों में बीता। जाति के बंधन में जकड़े रहने के कारण बालक भीम समाज के अन्य बच्चों के साथ नहीं खेल सकता था। वह उन बच्चों के साथ खेलने के लिए छटपटाता था, रोता था पर विवश था। उसे विद्यालय में अपने घर से अपनी टाट-पट्टी साथ ले जाना पड़ता था। वहाँ जूतों के बीच, दहलीज पर बैठकर पढ़ना पड़ता था। आधी छुट्टी में दीवार की ओर मुँह करके खाना पड़ता था। बीमार माँ इस कारण मर गई, क्योंकि तथाकथित निम्न जाति के घर उच्च जाति के वैद्य जाने के लिए तैयार नहीं हुए। माँ क्या मरी, उस बच्चे के लिए पूरी दुनिया ही निष्प्राण हो गई। इन्हीं विषम परिस्थितियों में बालक भीम का बचपन बीता।

प्रश्न. 14.
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर ने अपने आचरण एवं व्यवहार से समाज को क्या-क्या उत्तर दिए ? समझाइए।
उत्तर:
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर महामानव थे। उनका व्यक्तित्व विराट था, क्योंकि कदम-कदम पर अपमान का विषपान करने के बाद भी उनके मन में किसी के प्रति घृणा का भाव उत्पन्न नहीं हुआ। महाराज गायकवाड़ की रियासत में सेवा देने के लिए उन्हें लफ्टिनेंट का पद दिया गया। पिता की मृत्यु के निकट होने पर उनकी सेवा के लिए छुट्टी न देने वाले अधिकारी द्वारा कठोर व्यवहार करने पर इसके लिए उन्होंने महाराज से प्रार्थना नहीं की। उन्होंने मान-अपमान का विचार न करते हुए अनुशासन और भारतीय संस्कार के अनुरूप रियासत की रौबदार नौकरी सहज ही छोड़ दी। सैन्य सचिव जैसे उच्च पद पर रहते हुए भी अपने अधीनस्थों एंव मकान मालिक के दुर्व्यवहारों के उनके दिल पर चोट तो पहुँचती थी, किन्तु वे उन्हें क्षमा कर देते थे। इस प्रकार डॉ. अंबेडकर ने अपने आचरण और व्यवहार से समाज के कटुतम प्रश्नों के सरलतम और सटीक उत्तर दिए।

पाठ के आसपास :

प्रश्न. 1.
परस्पर समानता एवं समरसता की आवश्यकता एवं उपादेयता पर अपने शिक्षक के निर्देशन में समूह चर्चा कीजिए।
उत्तर:
सुगठित समाज के लिए परस्पर समानता एवं समरसता अत्यन्त आवश्यक है। इससे समाज मजबूत एवं समृद्ध होता है और मानवाधिकारों की संरक्षा होती है। मानवीय मूल्यों और बन्धुत्व की दृष्टि से परस्पर समानता एवं समरसता की उपादेयता स्वत: सिद्ध है। ध्यातव्य-विद्यार्थी अपने शिक्षक महोदय के निर्देशन में इस विषय पर और वृहद चर्चा कर सकते हैं।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 5 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 5 लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न. 1.
डॉ. अंबेडकर की दृढ़ता का विलक्षण पक्ष क्या है ?
उत्तर:
डॉ. अंबेडकर की दृढ़ता का विलक्षण प्रक्ष यह है कि विपरीत अनुभवों के कारण उनके हृदय पर चोट लगती थी। हर चोट के साथ वे सामाजिक मजबूती के काम में और अधिक जोश के साथ जुट जाते थे। वे एकरस समाज और मजबूत राष्ट्र के प्रबल पक्षधर ,

प्रश्न. 2.
समाज की कुव्यवस्था पर डॉ. अंबेडकर की क्या प्रतिक्रिया होती थी ?
उत्तर:
समाज की व्यवस्थागत गलन अर्थात् गिरती स्थिति और उसमें व्याप्त गंदगी (बुराइयाँ) पर डॉ. अंबेडकर की घोर प्रतिक्रिया होती थी। समाज की विकृत स्थिति को देखकर वे बड़बड़ाने लगते थे। इसके विपरीत राष्ट्र और समाज की अखंडता पर किसी प्रकार की आँच आने पर वे बाबासाहेब बन जाते थे। इसके साथ ही वे इस समाज के अनुभवी बुजुर्ग की तरह व्यवहार करते थे।

प्रश्न. 3.
बालक भीम के जीवन की कौन-सी घटना सबके जीवन में नहीं घटती ?,
उत्तर:
लेखक के अनुसार बालक भीम ही आगे चलकर डॉ. अंबेडकर और बाबासाहब कहलाया। बालक भीम का डॉ. अंबेडकर होने से लेकर बाबासाहब रूपी राष्ट्ररक्षक कवच बनकर प्रस्तुत होना ऐसी घटना है, जो सबके जीवन में नहीं घटती लेखक के अनुसार यदि ऐसी घटना घटती भी है, तो वैसी यंत्रणा झेलना सबके वश की बात नहीं।

प्रश्न. 4.
बालक भीम के जीवन का पहला झटका या पहला सवाल क्या था?
उत्तर:
जातिगत बंधनों में जकड़े होने के कारण बालक भीम को समाज के अन्य बच्चों के साथ खेलने की मनाहीं थी। बच्चे तो बच्चे होते हैं, तो फिर उनमें फर्क का क्या कारण है ? यह प्रश्न बालक भीम के जीवन का पहला झटका या पहला सवाल था। वह अपनी छोटी-सी उम्र में प्रश्न नहीं, उसका उत्तर जानना चाहता था।

प्रश्न. 5.
बालक भीम की माँ का क्या सपना था ?
उत्तर:
बालक भीम की माँ का सपना था कि उसका बेटा खूब पढ़े। उसकी मान्यता थी कि बिना पढ़े कोई बड़ा आदमी नहीं बन सकता। उसकी इच्छा थी कि पढ़-लिखकर जब उसका बेटा बड़ा आदमी बन जाए तो समाज में व्याप्त ऊँच-नीच, जात-पात छुआछूत की विकृत परम्परा को बदल दे।

प्रश्न. 6.
बालक भीम के लिए सबसे पहले शिक्षा मंदिर के द्वार किसने खोले और किस प्रकार ?
उत्तर:
तत्कालीन भारतीय समाज में जातिगत श्रेष्ठता का झूठा बंधन था। इस कारण निम्न जाति का बच्चा उच्च जाति के बच्चों के साथ बैठकर विद्यालय में नहीं पढ़ सकता था। किन्तु प्राथमिक विद्यालय के एक ब्राह्मण मुख्य अध्यापक बालक भीम की अनुपम मेधा (प्रतिभा) को पहचाना। उन्होंने अपना उपनाम अंबेडकर देकर भीम के लिए सबसे पहले शिक्षा मंदिर के द्वार खोले।

प्रश्न. 7.
सिडनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स बम्बई में डॉ. अंबेडकर के साथ क्या घटना घटी ?
उत्तर:
डॉ. अंबेडकर 1918 ई. में बम्बई (अब मुम्बई) के सिडनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीति और अर्थशास्त्र के शिक्षक के रूप में आए। एक दिन उन्हें जोरों की प्यास लगी। प्यास के मारे उनका गला सूखने लगा। वे स्वयं घड़े से पानी लेने गए। उन्होंने घड़े को छुआ भर था कि वहाँ बवाल मच गया।

प्रश्न. 8.
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर के जीवन का ध्येय क्या था ?
उत्तर:
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर चाहते थे कि न्याय व्यवस्था के संबंध में राष्ट्रीय स्तर पर मतैक्य स्थापित हो। भले ही जीवन में स्वयं उन्होंने बहुत कुछ झेला हो, लेकिन इसके बाद भी समाज से अन्याय दूर करने के लिए सबकी सहमति पाने का संतत (लगातार) प्रयास करते रहना, उसके लिए निरंतर संघर्ष करना, उनके जीवन का ध्येय था।

प्रश्न. 9.
कुछ लोग डॉ. अंबेडकर को किस रूप में प्रस्तुत करते हैं ?
उत्तर:
कुछ लोग डॉ. अंबेडकर के जीवन को केवल सीमित लोगों की चिन्ता और अन्य लोगों के घृणा का पुलिंदा बनाकर प्रस्तुत करते हैं। लेखक के अनुसार उन लोगों के ऐसे प्रयास अपने आप में घृणित हैं। ऐसा इसलिए कि यह एक बड़े व्यक्ति को बौना साबित करने का प्रयास है।

प्रश्न, 10.
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर के जीवन में समझने वाली बात क्या है ?
उत्तर:
लेखक के अनुसार डॉ. अंबेडकर के जीवन में सामाजिक उठापटक और उलझाव तो अत्यधिक हैं, किन्तु इसमें कोई दुराव नहीं है। यदि उन्हें तत्कालीन भारतीय समाज की बुराइयों को काटने वाली तेज तलवार कहें, तो समाज की सामूहिक शक्ति की रक्षा करने वाली ढाल भी कह सकते हैं।

RBSE Class 11 Hindi आलोक Chapter 5 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
डॉ. अंबेडकर एक तपस्वी थे, सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
डॉ. अंबेडकर को निश्चित रूप से एक तपस्वी कहा जा सकता है। भारतीय संस्कृति में तप का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। तपस्या से व्यक्ति को शक्ति और तेज की प्राप्ति होती है लेकिन तपस्या की राह आसान नहीं होती। डॉ. अंबेडकर के जीवन की राह सुगंम नहीं थी। उन्होंने अपने जीवन की दुर्गम यात्रा विषमताओं के काँटों और अपमान के अंगारों पर चलकर और उन्हें कुचलकर तय की। उन्होंने भौगोलिक एवं सामाजिक अखंडता को समाज का अभिन्न अंग कहकर तथा समाज हित को सर्वोपरि मानकर स्वयं को गला दिया। यह किसी तपस्या से कम नहीं।

प्रश्न 2.
डॉ. अंबेडकर ने किस सामान्य मनोवैज्ञानिक धारणा को झुठला दिया और कैसे ?
उत्तर:
‘जैसे को तैसा’ अर्थात् जो जैसा व्यवहार करे, उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए। यह सामान्य मनोवैज्ञानिक धारणा है। इस सामान्य मनोवैज्ञानिक धारणा को डॉ. अंबेडकर ने यह व्याख्या प्रस्तुत कर झुठला दिया कि ‘कोई कैसा है के सामने किसी व्यक्ति और व्यवस्था को कैसा होना चाहिए’। डॉ. अंबेडकर का स्पष्ट विचार था कि अस्पृश्यता (छुआछूत) और अन्याय के विरुद्ध लड़ना तो घर के भीतर की बात है। यह लड़ाई शेष हिन्दू समाज से अलग होकर नहीं लड़ी जा सकती है। इसके साथ ही दलितों को भी हाशिए। (किनारे) पर पड़े रहने देना इसका इलाज नहीं है।

प्रश्न 3.
सामाजिक निष्ठुरता के प्रति डॉ. अंबेडकर का तीसरा उत्तर क्या था ?
उत्तर:
बालक भीम की माँ ने अपनी आँखों में अपने बेटे को पढ़ाने और उसे बड़ा आदमी बनने का सपना सँजोए थी। वह अपने सपने को साकार होते नहीं देख सकी। उसके रोग की चिकित्सा के लिए कुलीन वैद्य उसके घर जाने हेतु तैयार नहीं हुआ। उसकी मृत्यु हो गई। ऐसी सामाजिक निष्ठुरता को देखकर बालक भीम का दिल बैठने लगा, उसके आँसू सूख गए और उसकी भूख मर गई। लेकिन उसने बड़े धैर्य के साथ संकल्प लिया कि निम्न और कुलीन के अन्यायपूर्ण प्रश्नों में उलझे समाज को वह उत्तर अवश्य देगा। यह सामाजिक रोग माँ के रोग से भी बढ़कर है। वह इस सामाजिक रोग का इलाज अवश्य करेगा। डॉ. अंबेडकर का यह मूक प्रणे सामाजिक निष्ठुरताओं को उनका तीसरा उत्तर था।

प्रश्न 4.
लेखक की दृष्टि में डॉ. अंबेडकर को केवल तत्कालीन तथाकथित वर्ग का क्रांतिकारी नेता सिद्ध करना उनके साथ सरासर अन्याय है। कैसे ?
उत्तर:
लेखक की दृष्टि में डॉ. अंबेडकर को केवल तत्कालीन तथा कथित वर्ग का क्रांतिकारी नेता सिद्ध करना सर्वथा अनुचित है, उनके साथ सरासर अन्याय है। डॉ. अंबेडकर को सामाजिक विषमताओं का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने समाज की सामूहिक शक्ति को पहचाना और राष्ट्रहित में सबसे एक रहने का आह्वान किया। उनकी दृष्टि में सबसे पहले देश है। भारत को जाति, धर्म, वर्ग और पंथों की नहीं, एकात्म भाव चाहिए। देश में एकता चाहिए। इसकी स्वतंत्रता के लिए छोटी-बड़ी जातियों में न बँटकर एकजुट होना चाहिए। किसी भी स्थिति में धर्म, पंथ, जाति देश से बड़े नहीं हो सकते। डॉ. अंबेडकर ने 1949 के एक भाषण में कहा था-“देश को समुदाय से ऊपर रखना चाहिए। सामाजिक क़टुता बाँटती है और नुकसान पूरे देश, पूरे समाज का होता है।”

विष पिया, अमृत दिया

पाठ-सारांश

डॉ. भीमराव अंबेडकर का जीवन सामान्य लोगों की तरह सरस-समतल और सपाट नहीं है। उनके विराट व्यक्तित्व की दृढ़ता बार-बार अपमानों एवं विपरीत अनुभवों को सहते-समझते हुए लगातार बढ़ती जाती है। उनमें यह मजबूती तत्कालीन परिस्थितियों के कारण आई। उन्हें समाज में व्याप्त गंदगी, व्यवस्थागत गलन बर्दाश्त नहीं थी। वे राष्ट्र और समाज को अखंड रूप में देखना चाहते थे। वे एकरस समाज और मजबूत राष्ट्र के प्रबल पक्षधर थे।

डॉ. अंबेडकर के बचपन की छोटी-छोटी घटनाओं ने उनके मन पर गहरी चोट की। महार जाति में जन्म लेने के कारण वे समाज के अन्य बच्चों के साथ नहीं खेल सकते थे। अन्य छात्रों और शिक्षकों के जूतों के पास बैठकर पढ़ने की शर्त पर उन्हें विद्यालय में दाखिला मिलना निश्चय ही बालक भीम के पिता रामजी सकपाल के लिए बड़े अपमान और ग्लानि की बात थी। माँ भीमाबाई की इच्छा थी कि उसके बेटे को समाज में चाहे बहुत अपमान सहना पड़े, बड़ी घृणा सहनी पड़े, उसे इन सबकी परवाह नहीं करनी है। उसे खूब पढ़ना है। पढ़-लिखकर और बड़ा आदमी बनकर उसे समाज की गंदी रीत को बदल डालना है।

बालक भीम की माँ की आँखों में अपने बेटे को पढ़ाने और बड़ा आदमी बनता देखने का सपना था। उस माँ की एक रोग के कारण मृत्यु हो गई, क्योंकि तथाकथित अछूत के घर श्रेष्ठ वैद्य आने को तैयार नहीं था। बालक भीम ने मन-ही-मन संकल्प लिया कि समाज में व्याप्त निम्न और कुलीन रूपी अन्यायपूर्ण विचार को अवश्य दूर करेगा।

डॉ. अंबेडकर महामानव हैं। वे बड़े हैं विभिन्न बाधाएँ पार करने के कारण। कदम-कदम पर अपमान का विष पीने के बाद भी उनके मन में किसी के प्रति घृणा उत्पन्न नहीं हुई। वे सदाशय (उच्च विचारवाले) थे।

प्राथमिक विद्यालय के ब्राह्मण प्रधानाध्यापक ने अंबेडकर की प्रतिभा को पहचाना। उन्होंने ही सबसे पहले भीम के लिए शिक्षा। मंदिर के दरवाजे खोले और प्यार से अपना ब्राह्मण उपनाम अंबेडकर दिया। बड़ौदा नरेश महाराज गायकवाड़ ने उच्च शिक्षा के लिए अंबेडकर को छात्रवृत्ति दी और बाद में उन्हें लेफ्टिनेंट की ओहदा मिला। उन्होंने मान-अपमान में उलझने की अपेक्षा अनुशासन और भारतीय संस्कार को अपनाया। उनकी कल्पना थी कि देश जाति, वर्ग और पंथों में न बँटकर एकात्म भाव से रहे। डॉ. अंबेडकर ने सन् 1949 ई. के अंत में अपने एक भाषण में कहा था-“देश को समुदाय से ऊपर रखना चाहिए। सामाजिक कटुता वाँटती है और नुकसान पूरे देश, पूरे समाज का होता है।”

1917 में डॉ. अंबेडकर कोलंबिया विश्वविद्यालय से पढ़कर लौटे। महाराज गायकवाड़ ने सैन्य सचिव का ऊँचा पद दिया। जातिगत श्रेष्ठता के झूठे बंधनों में पड़कर ऊँची जाति के उनके अधीनस्थ चपरासी फाइलें हाथ में न देकर दूर से ही पटक देता था ! नवंबर 1918 में अंबेडकर बंबई( अब मुम्बई) के सिडनहम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनॉमिक्स में राजनीति और अर्थशास्त्र के प्राध्यापक होकर आए तो वहाँ भी उनका अपमान हुआ। उन्हें सब जगह अपमान का विष पीना पड़ा, पर उन्होंने अपने भीतर किसी के लिए जहर नहीं पाला।

25 नवंबर, 1949 को दिया गया डॉ. अंबेडकर का एक भाषण सांस्कृतिक चेतना का एक दस्तावेज कहा जा सकता है। उन्होंने उस भाषण में देश के सांस्कृतिक अतीत और इस पर आक्रमणों का पूरा लेखा देश के सामने रखा था। डॉ. अंबेडकर जुझारू थे, किसी से दबते नहीं थे। उन्होंने ‘अखिल भारतीय शेड्यूल कास्ट फेडरेशन’ बनाई थी। उनका मानना था कि अस्पृश्यता( छुआछूत) और अन्याय के विरुद्ध लड़ना है तो यह देश के भीतर की बात है। यह लड़ाई बाकी हिन्दू समाज से अलग होकर नहीं लड़ी जा सकती। दलितों को हाशिए पर रखकर भी इसका इलाज नहीं किया जा सकता। कामगार मैदान सभा में उन्होंने स्पष्ट कहा था कि इच्छा से हो या अनिच्छा से, दलित वर्ग हिन्दू समाज का ही अंग है। उनकी इच्छा थी कि न्याय व्यवस्था में राष्ट्रीय स्तर पर मतैक्य स्थापित हो।

डॉ. अंबेडकर के जीवन में सामाजिक उठापटक और उलझाव तो अत्यधिक हैं, लेकिन दुराव नहीं है। यदि वे तत्कालीन भारतीय समाज की बुराइयों को काटने वाली तेज तलवार की तरह थे, तो इस समाज की सामूहिक शक्ति को बचाने वाली ढाल भी थे। डॉ. अंबेडकर का जीवन सरलताओं की आसान राह नहीं, बल्कि विपरीतताओं के काँटों और अपमान के अँगारों पर चलकर तथा उन्हें कुचलकर तय की गई एक कठिनतम यात्रा है।

कठिन शब्दार्थ

पृष्ठ-32. परिपूर्ण = हर तरह से पूर्ण। समष्टि = सामूहिकता। व्यष्टि = व्यक्ति। खुरी = स्पष्ट, साफ। आपत्ति = एतराज, दोष निकालना। सीझा हुआ = पका हुआ। विराट = बहुत बड़ा। विलक्षण = अद्भुत, महत्वपूर्ण या विशेष लक्षणों वाला। बुजुर्ग = बूढ़े, घर में सबसे बड़े। यंत्रणा = पीड़ा, कष्ट। संदर्भ = वर्णित प्रसंग। कवच = शरीर की सुरक्षा के लिए धारण किया जाने वाला आवरण।

पृष्ठ-33. मचलाना = जिद करना। उथल-पुथल = उलट-पलट, हलचल। दाखिला = प्रवेश। ग्लानि = दुख, खेद। रीत = परम्परा, चलन, रिवाज। संकल्प = दृढ़ निश्चय, विचार, प्रतिज्ञा। दहलीज = देहली, दरवाजे के चौखट के नीचे की लकड़ी। दिल बैठने लगना (मुहा.) = बेहोश होना, व्याकुल होना। निष्प्राण = प्राणरहित। जिजीविषा = जीने की चाह (इच्छा)। कुलीन = उच्च कुल का, अभिजात। मूक = गुँगा, चुप। निष्ठुरता = कठोरता, निर्दयता। सदाशयता = सज्जनता, उच्च विचारों वाला।

पृष्ठ-34. मेधा = बुद्धि। मेधावी = बुद्धिमान। ओहदा = पद। गुहार लगाना (मुहा.) = रक्षा के लिए पुकारना, दुहाई देना। जूझना = उठा-पटक और हाथापाई करना, तकरार करना। हितैषी = शुभ चिन्तक, भला चाहने वाला। सवर्ण = समान जाति का। सर्व = सब, समस्त, सारा। समावेशी = समावेश (साथ रहने) संबंधी। संकीर्ण = सँकरा, तंग, तुच्छ, नीच। दायरा = सीमा, कार्यक्षेत्र। अमलदार = अधिकारी, सेवाकर्मी। मातहत = अधीन, अधीन रहने वाला कर्मचारी। तुच्छ = नीच, हीन, छुद्र। हलाहल = जहर, विष।

पृष्ठ-35. दस्तावेज = विधिक (कानून संबंधी) लेख्य। आहत = घायल, जख्मी, दुखी। कुंठित = कुंद, भोथरा, जड़, गतिहीन। कटुतम = सबसे अधिक कड्आ या अप्रिय, सबसे अधिक कष्टादायक। सटीक = सही। अस्पृश्यता = छुआछूत, अछूतापन। हाशिया = किनारा। मतैक्य = विभिन्न मतों में एकता। ध्येय = उद्देश्य, लक्ष्य। यकीनन = नि:संदेह, निश्चित रूप से। चिंदियों = कागज के छोटे-छोटे टुकड़े। स्पंदन = कंपन, गति, धड़कन। दुराव = छिपाव।

पृष्ठ-36. सुगम = आसान। दुर्गम = कठिन। सर्वोपरि = सबसे ऊपर या बढ़कर। जीवन होम करना (मुहा.) = जीवन को न्योछावर करना।

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