RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 चंदवरदायी

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 चंदवरदायी

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
चंदवरदायी की रचना का नाम है
(क) पद्मावत
(ख) पृथ्वीराज रासो
(ग) खुमान रासो
(घ) रामायण
उत्तर:
(ख) पृथ्वीराज रासो

प्रश्न 2.
पृथ्वीराज का युद्ध किसके साथ हुआ ?
(क) कुमोद मणि
(ख) अकबर
(ग) महमूद गजनवी
(घ) शहाबुद्दीन गौरी
उत्तर:
(घ) शहाबुद्दीन गौरी

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्या ‘पृथ्वीराज रासो’ प्रामाणिक रचना है?
उत्तर:
पृथ्वीराज रासो एक प्रामाणिक रचना नहीं है। क्योंकि इसमें दिए सन्-संवत्, स्थान, घटनाएँ आदि इतिहास से मेल नहीं खाते।

प्रश्न 2.
चंदवरदायी किसके सभाकवि थे?
उत्तर:
चंदवरदायी सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सभाकवि थे।

प्रश्न 3.
तोता पृथ्वीराज से किस नगर में मिला?
उत्तर:
तोता पृथ्वीराज से दिल्ली नगर में मिला।

प्रश्न 4.
पृथ्वीराज रासो का प्रधान रस कौन-सा है?
उत्तर:
पृथ्वीराज रासो का प्रधान रस, वीर रस है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पद्मावती ने तोते से क्या पूछा?
उत्तर:
पद्मावती ने तोते से उसका परिचय पूछा। तोते ने उसे राजा पृथ्वीराज के पराक्रम, वैभव और सुन्दरता के बारे में बताया।

प्रश्न 2.
‘पदमसेन कुँवर सुधर’ किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
उत्तर:
‘पदमसेन कुँवर सुघर’ समुद्र शिखर गढ़ के गढ़-पति के राजकुमार के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 3.
शुक को लेकर पद्मावती कहाँ गई और उसे कहाँ रखा।
उत्तर:
शुक (तोता) को लेकर पद्मावती अपने महल में गई। वहाँ उसने तोते को सोने के बने तथा रत्नों और मणियों से जड़े हुए पिंजरे में रखा।।

प्रश्न 4.
पृथ्वीराज ने गौरी को किस प्रकार पकड़ लिया?
उत्तर:
जब पृथ्वीराज और गौरी के बीच युद्ध प्रारम्भ हुआ तो पृथ्वीराज ने तलवार लेकर शत्रु का सामना किया। इसी बीच पृथ्वीराज को मौका मिला तो उसने अपने धनुष में गौरी के सिर को फंसाकर अपनी ओर खींच लिया और उसे ऐसे पकड़ लिया जैसे बाज अपने शिकार-पक्षी को पकड़ लिया करता है।

प्रश्न 5.
पृथ्वीराज ने शत्रुओं का सामना किस तरह किया?
उत्तर:
जब पृथ्वीराज पद्मावती को लेकर दिल्ली की ओर चले तो शहाबुद्दीन गौरी’ने उन पर अचानक आक्रमण कर दिया। उसकी सेना ने नालि, हथनालि, तोप आदि हथियारों से सज्जित होकर पृथ्वीराज को घेर लिया। पृथ्वीराज इस अचानक आक्रमण से तनिक भी नहीं घबराए। उन्होंने तलवार हाथ में लेकर वीरता के साथ शत्रु का सामना किया। अपनी चतुराई से उन्होंने गोरी को बन्दी बना लिया और पद्मावती के साथ दिल्ली पहुंच गए।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पद्मावती समय’ के आधार पर इस काव्य के महत्व पर प्रकाश डालिए।”
उत्तर:
‘पद्मावती समय’ कविवर चंदवरदायी के प्रसिद्ध काव्य पृथ्वीराज रासो का एक सर्ग या अध्याय है। इस महाकाव्य में 69 ‘समय’ हैं। हमारी पाठ्य-पुस्तक में ‘पद्मावती समय’ का कुछ भाग संकलित किया गया है। “पद्मावती समयं’ के इस अंश में जो वर्णन या घटनाएँ हैं, उनसे पृथ्वीराज रासो के महत्व पर कुछ प्रकाश पड़ता है। सम्राट पृथ्वीराज अंतिम हिन्दू शासक थे, जिन्होंने अपने पराक्रम से अनेक बार विदेशी आक्रमणकारियों को पराजित करके भारतभूमि की वीर परम्परा को गौरव प्रदान किया।’पद्मावती समय’ में कवि ने पृथ्वीराज के शौर्य और उदारता का परिचय कराया है। उन्होंने पृथ्वीराज के रूप में हमें एक भारतीय संस्कृति के संरक्षक, वीरता के अद्वितीय आदर्श और अनेक गुणों से युक्त राष्ट्रीय नायक प्रदान किया है। ‘पद्मावती समय में पृथ्वीराज का यह स्वरूप सामने आया है। गोरी की अस्त्र-शस्त्र सज्जित प्रबल सेना को पराजित करके पृथ्वीराज ने गोरी को बन्दी बनाया है और उसे दण्डित करके मुक्त कर दिया है। इस प्रकार ‘पद्मावती समय’ महाकाव्य के महत्व को दर्शाता है।

प्रश्न 2.
पृथ्वीराज रासो’ हिन्दी का आदि महाकाव्य है।’ इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
उत्तर:
‘पृथ्वीराज रासो’ आज जिस रूप में प्राप्त होता है, उस पर अनेक विद्वानों ने शंकाएँ प्रकट की हैं। उसे प्रामाणिक नहीं माना है। यह एक विशालकाय ग्रन्थ हैं। महाकाव्य के जो लक्षण बताए गए हैं वे सभी इसमें प्राप्त होते हैं। यह सर्गबद्ध या ‘समय’ नामक अध्यायों से युक्त है। इसका नायक लोक प्रसिद्ध क्षत्रिय सम्राट पृथ्वीराज़ है। युद्ध, प्रेमाचार, प्रकृति वर्णन आदि अनेक विषयों का वर्णन है। इसका प्रधान रस वीररस है। इसमें अनेक छंदों का प्रयोग हुआ है। भारतीय संस्कृति तथा जीवन-मूल्यों को इसमें उचित स्थान मिला है। हिन्दी के आदिकाल में इसकी रचना हुई है। यह अन्य अनेक रासो ग्रन्थों को प्रेरणास्रोत रहा है। मूल रूप में भले ही पृथ्वीराज रासो का आकार इतना बड़ा न रहा हो। ऐतिहासिक दृष्टि से इसकी विश्वसनीयता भले संदेह के घेरे में रही हो, किन्तु यहं हिन्दी का आदि महाकाव्य है, इतना निश्चित है।

प्रश्न 3.
पद्मावती के रूप-सौन्दर्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘पद्मावती समय’ नामक काव्यांश में कवि ने समुद्र शिखर गढ़ के स्वामी की पुत्री राजकुमारी पद्मावती के रूप सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहा है
‘पदमिनिय रूप पदमावतिय।।
मनहु काम कामिनि रचिय।।’
भारतीय सौन्दर्य शास्त्र के आचार्यों ने स्त्रियों के चार वर्ग या जाति निश्चित की हैं- शंखिनी, पमिनी, हस्तिनी और चित्रिणी। इनमें ‘पद्मिनी’ को स्त्रियोचित सारे गुणों की खान माना है। पद्मावती में भी चंदवरदायी ने न केवल परम सुन्दरता दिखाई है अपितु उसे सारी कलाओं और विधाओं के साथ-साथ वेद-वेदांग के ज्ञान से भी सम्पन्न माना है।

कवि पद्मावती की सुन्दरता का वर्णन करते हुए कहता है –

ऐसा लगता था जैसे पद्मावती की रचना विधाता ने चन्द्रमा की सोलह कलाओं से की थी। उसके नेत्रों की सुन्दरता के सामने विकसित कमल, मछली, भ्रमर, खंजन, मृग आदि सभी सुन्दरता के उपमान शोभाहीन लगते थे। उसके दाँतों के सामने हीरे की, नासिका के सामने तोता की चोंच, होंठों के सामने बिंबाफल और नाखूनों के सामने मोती लजाते थे। उसकी ललित चाल के सामने हाथी, सिंह और हंस की चाल लज्जा से छिप-जाती थी। वस्तुत: पद्मावती ‘पद्मनी’ नारी का ही साक्षात् स्वरूप थी। लगता था कि पद्मावती के रूप में कामदेव की परम सुन्दरी पत्नी रति की ही रचना हुई थी। इतना ही नहीं पद्मावती में सामुद्रिक शास्त्र के सारे शुभ लक्षण विद्यमान थे। वह चौंसठ कलाओं, चौदह विद्याओं और छह वेदांगों की भी ज्ञानवती थी। इस प्रकार कवि चंदवरदायी ने पद्मावती में सुन्दरता, विद्वत्ता और कलाओं का अद्भुत सम्मिलन साकार किया है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वीराज राजा था
क) मेवाड़ का
(ख) जयपुर का
(ग) दिल्ली का
(घ) आगरे का
उत्तर:
(ग) दिल्ली का

प्रश्न 2.
पद्मावती किसका रूप थी
(क) शंखिनी स्त्री का
(ख) चित्रिणी स्त्री को
(ग) पमिनी स्त्री का
(घ) हस्तिनी स्त्री का
उत्तर:
(ग) पमिनी स्त्री का

प्रश्न 3.
तोते ने पदमिनी के होंठों को समझा
(क) गुलाब के फूल
(ख) सेव का फल
(ग) लाल मिर्च
(घ) बिंबाफल
उत्तर:
(घ) बिंबाफल

प्रश्न 4.
पद्मावती का पिता पद्मावती का विवाह करना चाहता था
(क) पृथ्वीराज से …………..
(ख) कुमाऊँ के राजा कुमोद मणि से
(ग) जोधपुर के राजा से
(घ) कश्मीर के राजकुमार से
उत्तर:
(ख) कुमाऊँ के राजा कुमोद मणि से

प्रश्न 5.
पद्मावती को लेकर जा रहे पृथ्वीराज को घेर लिया
(क) समुद्र शिखर दुर्ग के गढ़पति की सेना ने
(ख) कुमोदमणि के योद्धाओं ने
(ग) वनवासी लुटेरों ने
(घ) शहाबुद्दीन गोरी की सेना ने
उत्तर:
(घ) शहाबुद्दीन गोरी की सेना ने

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पद्मावती कौन थी ?
उत्तर:
पद्मावती समुद्रशिखर दुर्ग के गढ़पति की पुत्री थी।

प्रश्न 2.
समुद्र शिखर दुर्ग की रक्षा में कितने घुड़सवार नियुक्त थे?
उत्तर:
दुर्ग की रक्षा में दस हजार घुड़सवार नियुक्त थे।

प्रश्न 3.
पद्मावती के नेत्रों ने किनकी शोभा को कान्तिहीन बना दिया था?
उत्तर:
पद्मावती के नेत्रों ने कमल, मछली, भ्रमर, खंजन, मृग के नेत्रों आदि की शोभा को छविहीन कर दिया था। ..

प्रश्न 4.
हीरा, तोता, बिंबाफल तथा मोती की सुंदरता को पद्मावती के किन अंगों ने फीका कर दिया था ?
उत्तर:
दाँतों की शुभ्रता ने हीरे की, नुकीली नाक ने तोते की चोंच की, लाल होंठों ने बिंबाफल की तथा नाखूनों ने मोतियों की सुंदरता को फीका कर दिया था।

प्रश्न 5.
पद्मावती किन-किन विषयों का ज्ञान रखती थी?
उत्तर:
पद्मावती चौंसठ कलाओं, चौदह विद्याओं और छह वेदांगों का ज्ञान रखती थी। प्रश्न 6. पद्मावती ने तोते को कैसे पकड़ा? उत्तर-जब तोते ने पद्मावती के लाल होंठों को बिंबाफल समझकर उन पर चोंच चलाई तो पद्मावती ने तोते को पकड़ लिया।

प्रश्न 7.
पद्मावती ने पृथ्वीराज के पास संदेश क्यों भिजवाया?
उत्तर:
जब पद्मावती के पिता ने पद्मावती का विवाह कुमोदमणि से करना चाहा तो पद्मावती ने पृथ्वीराज के पास संदेश भिजवाया। वह पृथ्वीराज से ही विवाह करना चाहती थी।

प्रश्न 8.
जब तोते ने पृथ्वीराज को पद्मावती का पत्र सौंपा तो पृथ्वीराज ने क्या किया?
उत्तर:
पृथ्वीराज ने पत्र को खोलकर पढ़ा और वह तोते की ओर देखकर मन में हँस दिये।

प्रश्न 9.
जब पृथ्वीराज द्वारा पद्मावती का अपहरण किए जाने की खबर नगर में पहुँची तो क्या हुआ?
उत्तर:
इस खबर को पाते ही राजा की सेना ने पृथ्वीराज से युद्ध छेड़ दिया और बहुत रक्तपात हुआ।

प्रश्न 10.
शहाबुद्दीन गोरी ने पृथ्वीराज को ललकारते हुए क्या कहा?
उत्तर:
शहाबुद्दीन ने बड़े घमंड में भरकर कहा कि वह पृथ्वीराज को बंदी बनाकर ले जाएगा।

प्रश्न 11.
पृथ्वीराज को घेरने वाले गोरी के योद्धाओं को कवि ने कैसा बताया है?
उत्तर:
कवि ने कहा है कि वे लोहे के पर्वत जैसे विशाल और बलिष्ठ थे। उनकी भुजाओं में हाथियों जैसा बल था।

प्रश्न 12.
गोरी और पृथ्वीराज के बीच युद्ध का क्या परिणाम निकला?
उत्तर:
पृथ्वीराज ने गोरी को बन्दी बना लिया और वह उसे लेकर दिल्ली की ओर चल दिए।

प्रश्न 13.
दिल्ली पहुँचकर पृथ्वीराज ने पहला काम क्या किया?
उत्तर:
पृथ्वीराज ने ब्रह्मणों को बुलाकर पद्मावती के साथ अपने विवाह की शुभ लग्न निकलवाई और पद्मावती के साथ हरे बाँसों से बने मण्डप में फेरे लेकर पद्मावती का पाणिग्रहण किया।

प्रश्न 14.
विवाह के पश्चात् पृथ्वीराज ने क्या किया?
उत्तर:
विवाह के पश्चात् पृथ्वीराज ने ब्रह्मणों को दान और सम्मान से संतुष्ट करके विदा किया और दुर्ग में चले गए।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समुद्र शिखर गढ़ के गढ़पति का और उसके वैभव का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
समुद्र शिखर गढ़ सारे गढ़ों में श्रेष्ठ और दुर्गम था। उसका स्वामी शत्रुओं पर विजय पाने वाला, इन्द्र के समान प्रतापी और यादव कुल का राजा था। उसके दुर्ग पर सारे दिन नगाड़े और अन्य मधुर वाद्य बजते रहते थे। दस हजार घुड़सवार उसकी रक्षा में नियुक्त थे। उसकी सेना अत्यंत विशाल थी और उसके पास हजारों खरब से भी अधिक लक्ष्मी का भंडार था।

प्रश्न 2.
कवि चंदवरदायी ने पद्मावती को ‘पदमिनी’ नारी के समान किस आधार पर बताया है? लिखिए।
उत्तर:
प्राचीन भारतीय सौन्दर्यशास्त्र में लक्षणों के आधार पर नारियों की चार जातियाँ निश्चित की गईं- 1. शंखिनी 2. पड्मिनी 3. हस्तिनी और 4. चित्रिणी। इनमें ‘पद्मिनी’ नारी को सबसे श्रेष्ठ माना गया था। कवि चंदवरदायी ने ‘पद्मिनी’ नारी के सभी लक्षण पद्मावती में दिखाए हैं। उसके नेत्रों के सौन्दर्य के सामने खिले कमल, मछली, भ्रमर, खंजन तथा मृग के नेत्र आदि सभी उपमानों को कान्तिहीन दिखाया है। पद्मावती के दाँत हीरों से, नासिका तोते की चोंच से, होंठ बिंबाफल से, नाखून मोतियों से और केश सर्पिणी से भी अधिक काले और सुन्दर बताए गए हैं। उसकी मनमोहक चाल के सामने हाथी, सिंह और हंस की चाल भी लज्जित हो जाती है। वह सारी कलाओं और विद्याओं से सम्पन्न है। इसी आधार पर कवि ने पद्मावती को ‘पद्मिनी’ नारी के समान बताया है।

प्रश्न 3.
तोते को देखकर पद्मावती पर और पद्मावती को देखकर तोते पर क्या प्रभाव हुआ?
उत्तर:
तोते को देखकर पद्मावती का हृदय उल्लास से भर गया। मानो सूर्य की किरणों के दर्शन से लाल कमल खिल गया हो। उधर पद्मावती के लाल-लाल होंठों को देखकर तोता भ्रम में पड़ गया। उसे लगा कि वे उसके परम प्रिय बिंबाफल हैं। पद्मावती तोते को चकित होकर देखने लगी और तोते ने उसके होंठों को चोंच से पकड़ना चाहा। यह देख पद्मावती ने तोते को तुरंत अपने हाथों से पकड़ लिया।

प्रश्न 4.
जब पद्मावती के पिता ने उसका विवाह कुमाऊँ के राजा कुमोदमणि से करना चाहा तो पद्मावती ने क्या किया?
उत्तूर:
पद्मावती को तोते ने राजा पृथ्वीराज चौहान के पराक्रम, रूप-रंग और वैभव के बारे में विस्तार से बताया था। यह सुनकर पद्मावती पृथ्वीराज से प्रेम करने लगी थी और उन्हीं के साथ विवाह की कामना करने लगी थी, किन्तु जब पिता ने उससे बिना पूछे ही उसका विवाह अन्य राजा से करना चाहा तो वह बहुत व्याकुल हो गई और उसने पृथ्वीराज को बुलाने के लिए तोते के द्वारा अपना संदेश भिजवाया।

प्रश्न 5.
पृथ्वीराज चौहान को पद्मावती का संदेश कैसे प्राप्त हुआ और उसने संदेश को पढ़कर क्या किया?
उत्तर:
पद्मावती को जब कुमोदमणि से अपना विवाह किए जाने के बारे में पता चला तो वह घबराकर रोने लगी। उसे उस समय केवल तोता ही संकट का साथी प्रतीत हुआ। वह पृथ्वीराज से पूर्ण परिचित था। अतः उसने उसी के द्वारा अपना संदेश भिजवाना उचित समझा। तोता भी आठ पहर में दिल्ली पहुँचने का संकल्प लेकर हवा से बातें करने लगा। सही समय पर पहुँचकर उसने पद्मावती का संदेश-पत्र पृथ्वीराज को सौंप दिया। पृथ्वीराज ने तुरन्त अपनी सेना लेकर समुद्र शिखर को प्रस्थान कर दिया और नगर के बाहर शिव की पूजा करने आयी पद्मावती को घोड़े पर बैठाकर दिल्ली चल दिया।

प्रश्न 6.
जब पद्मावती के हरण की सूचना समुद्र शिखर गढ़ के स्वामी को मिली तो क्या हुआ?
उत्तर:
हरण की सूचना मिलते ही गढ़पति सेना सहित पृथ्वीराज को पकड़ने निकल पड़ा। दोनों ओर से बाण चलने लगे। सैनिकों के घायल और मृत शरीरों से बहने वाले रक्त के मिलने से समीपवर्ती नदी की धारा लहू की धार जैसी लगने लगी। घमासान युद्ध में सैकड़ों वीर योद्धा मारे गए। अत्यधिक रक्त बहने से युद्धभूमि की रेत लाल हो गई। अन्त में समुद्र शिखर गढ़ का स्वामी (राजा) पराजित हुआ और पृथ्वीराज विजयी होकर दिल्ली की ओर बढ़ चले।

प्रश्न 7.
पृथ्वीराज़ जब विजयी होकर बड़े हर्ष से दिल्ली की ओर चले तो उन्हें किसने ललकारा और क्या घटना घटी?
उत्तर:
जब पृथ्वीराज पद्मावती को लेकर दिल्ली की ओर चले तो अचानक ही उन्हें मार्ग रोके खड़े शहाबुद्दीन गोरी ने ललकारा। शहाबुद्दीन बोला “आज मैं पृथ्वीराज को बन्दी बनाकर रहूँगा।” वह अत्यधिक अहंकार से भरा हुआ पृथ्वीराज को चुनौती दे रहा था। उसके योद्धा युद्ध करने को बेचैन हो रहे थे। उन्हें पृथ्वीराज को घेर लेने में बड़ा आनंद आ रहा था। शीघ्र ही गोरी ने अपने सैनिकों को पंक्तिबद्ध किया। नाल, हथनाल, तोप आदि से सुसज्जित गोरी के योद्धाओं ने आक्रमण कर दिया।

प्रश्न 8.
पृथ्वीराज और गोरी के बीच युद्ध का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्रोध से उन्मत्त गोरी के सैनिकों ने नाल, हथनाल, बाण और तोप आदि अस्त्र-शस्त्रों के साथ पृथ्वीराज की सेना पर आक्रमण कर दिया। उस समय गोरी के योद्धा लोहे के पर्वतों के समान विशालकाय और बलिष्ठ लग रहे थे। उनकी भुजाओं में हाथियों के समान बल प्रतीत हो रहा था। पुरासान के सुल्तान गोरी के योद्धा हुँकार भरते हुए पृथ्वीराज पर आक्रमण किए जा रहे थे। उन्होंने पृथ्वीराज को चारों ओर से घेर लिया। युद्धभूमि में चारों ओर युद्ध के वाद्य (नगाड़े आदि) बज रहे थे। ऐसी स्थिति में पृथ्वीराज ने अपनी तलवार सँभाली और शत्रु सेना पर उसी प्रकार टूट पड़े जैसे सिंह हाथियों के समूह पर आक्रमण करता है। अंत में पृथ्वीराज ने अपनी रण कुशलता से गोरी को बंदी बना लिया।

प्रश्न 9.
पृथ्वीराज और पद्मावती के विवाह का संकलित काव्यांश के आधार पर वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दिल्ली पहुँचकर पृथ्वीराज ने पद्मावती से अपने विवाह की तैयारी की। उन्होंने ब्रह्मणों को बुलाकर विवाह की शुभ लग्न निकलवायी। हरे-हरे बाँसों से निर्मित मंडप में पद्मावती के साथ सात फेरे लिए। वेद-मंत्रों के उच्चारण तथा हवन आदि क्रियाओं के साथ पृथ्वीराज ने पद्मावती का पाणिग्रहण किया। ब्राह्मणों को दान-मान से सम्मानित करते हुए विदा किया।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 1 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पद्मावती समय’ काव्यांश में वर्णित प्रमुख घटनाओं को संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
‘पद्मावती समय’ कवि चंदवरदायी रचित महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ से संकलित काव्यांश है। इसकी प्रमुख घटनाएँ इस प्रकार हैं पूर्व दिशा में समुद्र शिखर नामक एक विशाल और दृढ़ दुर्ग था। उसके स्वामी की एक सर्वगुण सम्पन्न, अत्यन्त सुन्दरी पुत्री पद्मावती थी। एक बार एक तोता पद्मावती के राजकीय उपवन में आया। पद्मावती ने उसे पकड़कर एक रत्नजड़ित सोने के पिंजरे में रख लिया। तोते ने उसे दिल्ली के प्रतापी राजा पृथ्वीराज चौहान के बारे में बताया। पृथ्वीराज के पराक्रम और आकर्षक व्यक्तित्व के विषय में जानने पर पद्मावती उनसे प्रेम करने लगी और उन्हीं से विवाह की कामना करने लगी। पद्मावती के पिता ने उसका विवाह कुमाऊँ के राजा कुमोदमणि से करने का निश्चय किया। इससे पद्मावती बड़ी व्याकुल हो गई।

उसने तोते के पास जाकर सारी बात बताई और उससे कहा कि वह उसका संदेश महाराज पृथ्वीराज तक पहुँचा दें। तोता उसका संदेश-पत्र लेकर दिल्ली जा पहुँचा और वह पत्र पृथ्वीराज को सौंप दिया। पृथ्वीराज ने जब पद्मावती का संदेश पढ़ा और किसी अन्य से विवाह किए जाने पर पद्मावती द्वारा प्राण त्यागने का निश्चय किए जाने की बात पता चली तो वे तुरंत दिल्ली से चल दिए। समुद्र शिखर जाकर उन्होंने नगर से बाहर शिवपूजन को आई, पद्मावती का अपहरण कर लिया और उसे लेकर दिल्ली की ओर चल दिया। राजा की सेना उन्हें नहीं रोक पाई। आगे बढ़ने पर पुरासान के सुल्तान शहाबुद्दीन गोरी ने उनका रास्ता रोका और उन्हें बंदी बनाना चाहा लेकिन पृथ्वीराज ने अपने रण कौशल से गोरी को ही बंदी बना लिया और उसे लेकर दिल्ली पहुंच गए। दिल्ली पहुँचकर पृथ्वीराज ने पद्मावती से विधिपूर्वक विवाह किया और शहाबुद्दीन को दण्डित किया और दोनों राजभवन में आनन्दपूर्वक रहने लगे।

प्रश्न 2.
आपकी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पद्मावती समय’ काव्यांश किस काव्य-ग्रन्थ से लिया गया है ? काव्य ग्रन्थ तथा उसके रचयिता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पद्मावती समय’ नामक काव्यांश कवि चंदवरदायी रचित ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक महाकाव्य से लिया गया है। कवि चंदवरदायी अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के सभा-कवि थे। वह पृथ्वीराज के अनन्य मित्र तथा रणभूमि में भी साथ देने वाले योद्धा थे। पृथ्वीराज रासो आज जिस विशालकाय रूप में प्राप्त है वह प्रामाणिक नहीं माना जाता। इसमें वर्णित पात्र, स्थान, घटनाएँ तथा समय आदि इतिहास से मेल नहीं खाते। मूल रूप में यह काव्य छोटा रहा होगा।

इस महाकाव्य के नायक पृथ्वीराज चौहान में कवि ने सभी श्रेष्ठ गुणों को प्रदर्शित किया है। यह काव्य वीर रस प्रधान है। इसके अतिरिक्त शृंगार, भयानक, वीभत्स आदि रस भी यथास्थान उपस्थित हैं। इस काव्य की भाषा संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा अरबी-फारसी शब्दावली का मिश्रण है। इसमें संस्कृत तथा प्राकृत आदि भाषा के छंदों का प्रयोग किया गया है। कवि ने छप्पय छंदों का प्रयोग युद्ध-दृश्यों के वर्णन में सफलता से किया है। अलंकारों के द्वारा भी कवि ने अपनी रचना को आकर्षक बनाने में कोई कमी नहीं रखी है।

प्रश्न 3.
‘पद्मावती समय’ नामक काव्यांश के आधार पर पद्मावती के व्यक्तित्व और उसकी चरित्रगत विशेषताओं का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
पद्मावती समुद्र शिखर दुर्ग के गढ़पति की पुत्री थी। वह बचपन से परम सुन्दर कन्या थी। धीरे-धीरे उसके रूप-सौन्दर्य। और गुणों का विकास होता चला गया। उसके नेत्र, होंठ, गति आदि की सुन्दरता कवियों द्वारा दिए गए उपमानों को भी लज्जित करती थी। सुन्दर रूप के अतिरिक्त पद्मावती सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार शुभ लक्षणों से युक्त अंगों वाली स्त्री भी थी। वह चौंसठ कलाओं, चौदह विद्याओं और वेद के छह अंगों अथवा छह शास्त्रों का भी पूर्ण ज्ञान रखती थी। पद्मावती ने अपने ही अनुरूप सुन्दर तथा पराक्रमी योद्धा पृथ्वीराज को अपने पति के रूप में वरण किया था। वह एक साहसी नारी थी। पिता द्वारा कुमोदमणि के साथ विवाह कराने पर वह अपने प्रिय पृथ्वीराज को संदेश भेजती है और उनके साथ चल देती है। इस प्रकार पद्मावती का एक आदर्श नारी के सभी गुणों से युक्त व्यक्तित्व वाली युवती के रूप में चित्रण हुआ है।

प्रश्न 4.
‘पद्मावती समय’ नामक काव्यांश के आधार पर पृथ्वीराज चौहान की चरित्रगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘पद्मावती समय’ नामक काव्यांश के आधार पर पृथ्वीराज चौहान के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित रूप में सामने आती हैं –

  1. साहसी प्रेमी – काव्यांश के अनुसार पृथ्वीराज एक अबला प्रेमिका की पुकार पर तुरंत उसका उद्धार करने चल पड़ते हैं। वह निर्भीकता से पद्मावती का हरण करके दिल्ली को चल देते हैं।
  2. पराक्रमी योद्धा – वह राजा की सेना से युद्ध करके उसे पराजित करते हैं और आगे चल देते हैं। इसी बीच शहाबुद्दीन गोरी अपनी अस्त्र – शस्त्रों से सज्जित सेना के साथ उन पर आक्रमण कर देता है। इससे पृथ्वीराज तनिक भी विचलित नहीं होते और अपनी पूरी शक्ति से शत्रुओं पर टूट पड़ते हैं।
  3. युद्ध कौशल में निपुण – पृथ्वीराज पराक्रमी योद्धा तो हैं ही साथ ही वह युद्ध-विद्या में भी निपुण हैं। वह अपमी कमान से हँसाकर गोरी को ऐसे पकड़ लेते हैं, जैसे बाज अपने शिकार पक्षी को अपने चंगुल में जकड़ लेता है।
  4. विद्वानों का सम्मान करने वाले – पृथ्वीराज विद्वत्ता का सम्मान करने वाले हैं। वह विवाह के पश्चात् विद्वान ब्राह्मणों को दान-मान से संतुष्ट करते हैं।

चंदवरदायी कवि-परिचय

जीवन परिचय-

हिन्दी काव्य के आदिकाल के प्रसिद्ध महाकाव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ के रचयिता कविवर चंदवरदायी का जन्म लाहौर (वर्तमान में पाकिस्तान में) में सन् 1168 ई. में हुआ था। चंदवरदायी दिल्ली के अंतिम हिन्दू सम्राट पृथ्वीराज चौहान के राजकवि तौर परम मित्र थे। ऐसा प्रसिद्ध है कि पृथ्वीराज और चंदवरदायी का जन्म और मृत्यु एक ही दिन हुई। मोहम्मद गौरी द्वारा पृथ्वीराज को बंदी बनाकर गजनी ले जाने पर चंदवरदायी भी वहाँ जा पहुँचे और पृथ्वीराज द्वारा शब्द भेदी बाण चलाए जाने की भी बात कही। इसे परीक्षा में गौरी मारा गया और दोनों मित्रों ने एक दूसरे को कटार मारकर स्वतंत्र मृत्यु का वरण किया। साहित्यिक परिचय-रचना-चंदवरदायी की केवल एक ही रचना ‘पृथ्वीराज रासो’ प्राप्त होती है।

‘पृथ्वीराज रासो’ का वर्तमान स्वरूप प्रामाणिक नहीं माना जाता। इसके नाम, स्थान, घटना-समय इतिहास से मेल नहीं खाते। कुछ विद्वान एक नए संवत् की कल्पना करके नाम तथा घटना आदि की संगति बैठाते हैं। कवि ने इस विशाल काव्य-ग्रन्थ में अपने नायक-पृथ्वीराज को सभी श्रेष्ठ गुणों से मंडित दिखाया है।

कवि चंद एक रससिद्ध रचनाकार हैं। पृथ्वीराज रासो में सभी रसों का प्रभावशाली चित्रण हुआ है। चन्द की भाषा में संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, अरबी, फारसी आदि भाषाओं का अद्भुत मिश्रण प्राप्त होता है। इस भाषा को डिंगल नाम दिया गया है। छप्पय कवि चंद का सिद्ध छंद है।

कवि चंदवरदायी द्वारा निर्मित सम्राट पृथ्वीराज चौहान की जो भव्य छवि प्रस्तुत हुई है उसने उन्हें भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष के रूप में जन-मन में प्रतिष्ठित कर दिया है।

पाठ-परिचय
पाठ्य-पुस्तकं में संकलित प्रस्तुत अंश ‘पृथ्वीराज रासो’ के ‘पद्मावती समय’ से उधृत है। इस अंश में कवि ने ‘समुद्र शिखर दुर्ग’ के अधिपति की पुत्री पद्मावती के पृथ्वीराज पर मुग्ध होने और पृथ्वीराज द्वारा उसके हरण और वरण का वर्णन हुआ है।

कवि ने समुद्र शिखर दुर्ग की अजेयता और वैभव का वर्णन करते हुए पद्मावती के अद्वितीय सौन्दर्य का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया। है। एक दिन एक तोते से सम्राट पृथ्वीराज के पराक्रम का वर्णन सुनकर पद्मावती उस पर मुग्ध हो जाती है। जब पद्मावती का पिता उसका विवाह कुमायूँ के राजा से करना चाहता है तो पद्मावती पृथ्वीराज के पास तोते द्वारा अपना प्रेम संदेश.भिजवाती है।

संदेश पाकर।
पृथ्वीराज पद्मावती की इच्छा पूर्ण करने चल देते हैं और शिव-मंदिर में पूजा करने गई पद्मावती का हरण करके दिल्ली लौटते हैं। युद्ध में राजा की सेना पराजित होती है। मार्ग में ही शहाबुद्दीन गौरी पृथ्वीराज पर आक्रमण करता है और गौरी बंदी बना लिया जाता है। दिल्ली पहुँच कर शुभ लग्न में पृथ्वीराज पद्मावती से विवाह कर लेते हैं। पद्मावती समय।

पद्यांशों की संप्रसंग व्याख्याएँ

1.
पूरब दिस गढ़ गढ़नपति। समुद सिषर अति दुग्ग।
तहँ सु विजय सुर राज पति। जादू कुलह अभंग॥
धुनि निसान बहु साद। नाद सुरपंच बजत दीन।
दस हजार हय चढ़त। हेम नग जटित साज तिन॥
गंज असंष गजपतिय। मुहर सेना तिय संघह।
इक नायक कर धरी। पिनाक धरभर रज राष्षह॥
दस पुत्र पुत्रिय एक सम। रथ सुरङ्ग अम्मर डमर।
भंडार लछिय अगनित पदम। सो पदम सेन कुँवर सुधर॥

कठिन शब्दार्थ-गढ़ = दुर्ग, किला। गढ़नपति = गढ़ों का स्वामी, गढ़ों में श्रेष्ठ। समुद्र सिषर = समुद्र शिखर (नाम)। अति = अत्यन्त, विशाल। दुग्ग = दुर्ग। सुविजय = श्रेष्ठ विजयी, महान विजेता। सुर राज पति = इन्द्र। जादू = यादव। कुलह = कुल या वंश का। अभंग = अडिग। धुनि = ध्वनि, शब्द। निसात = नगाड़े। साद = एक साथ। नाद = शब्द। सुरपंच = पाँचसुरों में, पाँच प्रकार के बाजों की ध्वनि। य = घोड़ा। हेम = सोना। नग = रत्न। साज = घोड़े की सजावट जीन, चेंबर आदि। असंष = असंख्य, अनगिनती। गजपतिय = श्रेष्ठ हाथी। मुहर = हरावल, सेना का आगे चलने वाला भाग। तिय संषह= तीन शंख, एक बड़ी संख्या (दस पद्म से आगे की गिनती) नायक = योद्धा, सेनापति। पिनाक = धनुष। धरभर = धैर्य सहित। रज्य= राज्य। रष्षह= रक्षा करता है। सुरङ्ग = सुन्दर। अम्मर = आकाश। डमर (अमर) = चंदोवा, ऊपर ताना जाने वाला वस्त्र। लछिय = लक्ष्मी, सम्पत्ति। अगनित = जो गिना न जा सके। पदम = पद्म (दस नील के आगे की संख्या) (अरब, खरब, नील, पद्म, शंख आदि बड़ी संख्याएँ हैं) सुधरः = सुन्दर॥

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुते काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित कवि चंदवरदायी रचित ‘पृथ्वीराज रासो’ काव्य के ‘पद्मावती समय’ नामक प्रकरण से उद्धृत है। इस अंश में कवि ने समुद्र शिखर’ नामक दुर्ग के दुर्गपति के व्यक्तित्व का और दुर्ग में चलने वाले क्रिया-कलापों का परिचय कराया है।

व्याख्या-कवि कहता है पूर्व दिशा में समुद्र शिखर नाम का, अति दुर्गम और दुर्गों में श्रेष्ठ एक गढ़ है। वहाँ महान विजेता और इन्द्र के समान प्रतापी, यादव कुल का अडिग रहने वाला गढ़पति राज करता है।

उस दुर्ग में दिनभर बहुत से नगाड़े और पाँच प्रकार के सुर निकालने वाले बाजे बजा करते हैं। उस दुर्ग की रक्षा के लिए स्वर्णरत्नजटित साजों से सजे घोड़ों पर, दस हजार घुड़सवार नियुक्त रहते हैं। उस गढ़ की सेना के हरावल या आगे चलने वाले भाग में, असंख्य, श्रेष्ठ हाथियों से युक्त, तीन शंख (अरबों-खरबों से भी अधिक) सैनिक रक्षा करते हैं। उस सेना का सेनापति हाथ में धनुष धारण किए बड़े धैर्यपूर्वक राज्य की रक्षा किया करता है। उस दुर्गपति (राजा) के दस पुत्र और पुत्रियाँ एक साथ रथों पर आरूढ़ होकर, आकाशरूपी चंदोबे के नीचे, हर समय युद्ध आदि के लिए तैयार रहा करते हैं। समुद्र शिखर के इस गढ़पति के पास अनगिनती पद्म (संख्या) के बराबर धन का भंडार या राजकोश है। उसका पुत्र कुँवरसेन अत्यन्त सुन्दर राजकुमार है।

विशेष-
(i) प्रस्तुत काव्यांश में समुद्र शिखर नाम के किसी दुर्गपति के वैभव का वर्णन हुआ है।
(ii) कवि ने संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा विदेशी भाषा की शब्दावली का प्रयोग किया है।
(iii) अतिशयोक्ति पूर्ण वर्णन शैली है।
(iv) ‘मुहर सेना तिय संषह’ तथा ‘भंडार लछिये अगनित पदम’ में अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(v) अपने प्रिय छंद ‘छप्पन’ का कवि ने प्रयोग किया है।

2.
मनहुँ कलां ससिभान। कला सोलह सो बन्निय।
बाल बैस ससिता समीप। अम्रित रस पिन्निय॥
बिंगसि कमल म्रिग भमर। वैन षंजन मृग लुट्टिय॥
हीर कीर अरु बिंब। मोति नष सिष अहि घुट्टिय॥
छप्पति गयंद हरि हंस गति। विह बनाय संचै सचिय॥
पदमिनिय रूप पदमावतिय। मनहु काम कामिनि रचिय॥

कठिन शब्दार्थ-मनहुँ = मानो। कला सोलह = (चन्द्रमा की) सोलह कलाओं से। बन्निय = बनी या बनाई गई। बाल बैस = बालकपन। ससिता = शिशुता, शैशव की अवस्था। अम्रित = अमृत। पिन्निय = पिया था। बिगसि कमल = खिला हुआ कमल। म्रिग = मकर राशि अर्थात् मछली। भमर = भौंरा। वैन = बेणु (वंशी), बाँस की गाँठ। पंजन = खंजन पक्षी। लुट्टिय = लूट लिया, कांतिहीन कर दिया। हीर = हीरा (दाँत)। कीर = तोता (नाक)। बिंब = बिंबाफल जो लाल रंग का होता है, (होंठ)। मोति = मोती। नष = नाखून। सिष = शिख, चोटी या केश। छिप्पती = छिपती है। गयंद = हाथी। हरि = सिंह। विह = विधि, विधाता, ब्रह्मा। संचै संचिय = साँचे में ढालकर। पदमिनिय = पमिनी नायक-नायिका (स्त्री) जो अत्यन्त सुन्दर मानी गई है। काम = कामदेव। कामिनि = पत्नी। रचिय = बनाई थी।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में कवि चंदवरदायी रचित पृथ्वीराज रासो नामक काव्य के ‘पद्मावती समय’ नामक प्रकरण से उद्धृत है। इस अंश में कवि ने समुद्र शिखर गढ़ के स्वामी की पुत्री राजकुमारी पद्मावती की सुंदरता का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि राजकुमारी पद्मावती मानो चन्द्रमा की सोलह कलाओं से बनी थीं। चन्द्रमा की कलाओं के समान उसका सौन्दर्य दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। इसी कारण उसकी शिशु अवस्था और बाल्यावस्था मानो चन्द्रमा के अमृत रस से सिंची हुई थी। उसके चंचल और विशाल नेत्रों ने अपनी शोभा से, खिले हुए कमल, मकर राशि (मछली),भरवंशी (बाँस की गाँठ जो आँख जैसी प्रतीत होती है) या वंश लोचन, खंजन पक्षी और हरिणों के नेत्रों की शोभा को कांतिहीन बना दिया है। इन सभी से सुंदर नेत्रों की तुलना की जाती है।

उसके शुभ्र दाँतों के सामने हीरे की, सुन्दर नाक के सामने तोते की चोंच की, लाल-लाल कोमल होंठों के सामने बिंबाफल की, नाखूनों के सामने मोतियों की सुन्दरता फीकी लगती है। उसके लम्बे केश देखकर लगता था मानो उसके शरीर से काले सर्प लिपटे हुए हों। उसकी मंद और ललित चाल के सामने हाथी, सिंह और हंस की गति भी लज्जा से छिप जाती है। ऐसा लगता है जैसे विधाता ने उसे साँचे में ढालकर बनाया है। उसके सभी अंग साँचे में ढले हुए से प्रतीत होते हैं। उस पद्मावती में एक ‘पमिनी’ नारी के सारे लक्षण विद्यमान हैं। लगता है कि विधाता ने पद्मावती रूप में साक्षात् कामदेव की पत्नी रति की रचना की है।

विशेष-
(i) कवि ने परम्परागत उपमानों को पद्मावती के अंगों की सुन्दरता के सामने हीन दिखाया है। सुंदर नेत्रों की तुलना कवि खिले कमल, मछली, भ्रमर, खंजन पक्षी, हरिण के नेत्र आदि से करते आए हैं। लेकिन पद्मावती के नेत्रों ने इस सभी को अपनी सुन्दरता से लज्जित कर दिया है।
(ii) ‘बाल बैस ससिता समीप’ ‘हीर कीर’;”नष सिष’ तथा ‘काम कामिनि’ ‘हरि हंस’ ‘संचै सचिय’ आदि में अनुप्रास अलंकार है। अंग सौन्दर्य के वर्णन में अतिशयोक्ति अलंकार है।
(iii) भाषा डिंगल है। मिश्रित शब्दावली का प्रयोग है।
(iv) श्रृंगार रस का स्पर्श है।

3.
सामुद्रिक लच्छन सकल। चौसठ कला सुजान॥
जानि चतुर दस अंग षट। रति बसंत परमान॥
सषियन सँग खेलत फिरत। महलनि बाग निवास।
कीर इक्क दिष्षिय नयन। तब मन भयौ हुलास॥
मन अति भयो हुलास। विगसि जनु कोक किरण रवि॥
अरुण अधर तिय सुघर। बिंब फल जानि कीर छबि॥
यह चाहत चष चकित। उहजु तक्किय झरप्पि झर॥
चंच चहुटिय लोभ्। लियौ तब गहित अप्प कर॥
हरषत अनंद मन महि हुलस। लै जु महल भीतर गइय॥
पंजर अनूप नग मनि जटित। सो तिहि मँह रष्षत भइय॥

कठिन शब्दार्थ-सामुद्रिक लच्छन = हाथ, पैर तथा मुखं की आकृति देख शुभ-अशुभ लक्षणों का निर्णय। सकल = सारे, सभी। चौंसठ कला = संगीत, नृत्य, चतुराई, चित्रकला आदि चौंसठ प्रकार की कलाएँ। चतुर दस = चौदह, चौदह प्रकार की विद्याएँ। अंग षट = छह अंग, वेद के छह अंग-शिक्षा, छंद, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और कल्प, अथवा छह शास्त्र। रति = प्रेम, विलास। बसंत = बसंत ऋतु बसते हैं। परमान = प्रमाण, समान। कीर = तोता। इक्क = एक। दिष्षिय = दिखाई दिया। हुलास = प्रसन्नता। विगसि = खिला, विकसित हुआ। जनु = मानो। कोक (कोक नद) = कमल। तिय =’नारी। सुघर = सुंदर। बिंब फल = लाल रंग का एक फल जो सुंदर होंठों को उपमान माना गया है। चष= नेत्र। चकित = आश्चर्ययुक्त। उहजु= और वह। तक्किय = तक रहा। झरप्पि झर = झट से झपटना। चंच = चोंच। चहुट्टिय.= पकड़ा। गहित = ग्रहण किया, पकड़ लिया। अप्प = अपने। कर = हाथ से। पंजर = पिंजरा। अनूप = अनोखा, अद्वितीय। नग मनि = रत्न और मणियाँ। जटित = जड़ा हुआ। सो तिहि मँह = उसमें। रेष्षत भइय = रख दिया।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित कवि चंदवरदायी रचित पृथ्वीराज रासो काव्य के ‘पद्मावती समय’ नामक प्रकरण से उद्धृत है। इस अंश में कवि ने पद्मावती के शुभ लक्षणों से युक्त शरीर और उसके तोते से मिलने के प्रसंग का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि राजकुमारी पद्मावती सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार निश्चित सभी शुभ लक्षणों से युक्त थी। वह चौंसठ कलाओं में प्रवीण थी और उसे चौदह विद्याओं और वेद के छह अंगों का भी ज्ञान थी। वह रति और बसंत के सम्मिलित सौन्दर्य का साक्षात् प्रमाण थी। वह अपनी सखियों के साथ, राजभवनों, उपवनों और निवासों में खेलती-फिरती थी। एक दिन उसे एक तोता दिखाई दिया। उसे देखकर पद्मावती का मन बड़ा प्रसन्न हुआ। उसके प्रसन्न मुख को देख ऐसा लगा मानो सूर्य की किरणों के दर्शन से कोई लाल कमल खिल गया हो।

उस सुन्दर नारी पद्मावती के लाल होंठों को वह तो बिंबा के लाल फल समझ बैठा। इधर तो पद्मावती उस तोते को आश्चर्य से देख रही थी और उधर वह तोता बड़े ध्यान से उसके होंठों पर झपट पड़ने की ताक में था। अंत में तोते के बिंबाफल (होंठ) के मधुर रस के लोभ से, पद्मावती के होंठों को चोंच से पकड़ा तो तुरंत पद्मावती ने तोते को अपने हाथों से पकड़ लिया। तोते को पाकर पद्मावती बड़ी हर्षित हो रही थी और उसका मन प्रसन्नता से भर उठा था। वह तोते को अपने महल में ले गई। वहाँ उसने उस तोते को, रत्नों और मणियों से जड़े सोने के एक अनोखे पिंजरे में बिठा दिया।

विशेष-
(i) कवि ने इस काव्यांश में अपने ज्योतिष शास्त्र, कलाओं, विद्या और वेदांग संबंधी ज्ञान का परिचय कराया है।
(ii) भाषा डिंगल, मिश्रित शब्दावली युक्त है।
(iii) ‘सषियन सँग’, ‘कोक किरण’, ‘अरुण अधर’ झरप्पि झर’, ‘चंच चहुट्टिय’ में अनुप्रास अलंकार है।

4.
विगसि जनु कोक किरण रवि’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है।
सवालष्ष उत्तर सयल। कमऊँ गड्डू दूरंग॥
राजत राज कुमोदमनि। हय गय ट्रिब्ब अभंग॥7॥
नारिकेल फल परठि दुज। चौक पूरि मनि मुत्ति॥
दई जु कन्यसा बचन बर। अति अनंद करि जुत्ति॥8॥
पदमावति विलषि बर बाल बेली। कही कीर सों बात तब हो अकेली॥
झटं जाहु तुम्ह कीर दिल्ली सुदेस। बरं चाहुवानं जु आनौ नरेस॥9॥
आँनो तुम्ह चाहुवानं बर। अरु कहि इहै संदेस॥
सांस सरीरहि जो रहै। प्रिय प्रथिराज नरेस॥10॥

कठिन शब्दार्थ-सवालष्प = सवालाख (सपादलक्ष) (धनधान्य से पूर्व प्रदेश, जिससे कर के रूप में सवालाख भी आय होती। हो।) सयल = शैल, पर्वत। कमँऊ = कुमायूँ। दूरंग = दुर्गम। राजत = विराजता है, शोभा पाता है। राज = राजा। कुमोदमनि = कुमोदमणि (नाम), हय = घोड़े। गये = हाथी। दिब्बे = द्रव्य, सम्पत्ति। अभंग = अपार। नारिकेल = नारियल। दुज = द्विज, ब्राह्मण। चौक = शुभकार्यों में बनाई जाने वाली चौकोर आकृति। पूरि = बनाकर। मनि = मणि। मुत्ति = मोती। दई न कन्या बचन बर = कन्या के विवाह का वचन दे दिया था, विवाह कर दिया। जुत्ति = गाँठजोड़। विलषि = रोकर। झटं = शीघ्र। चाहुवानं = चौहान (पृथ्वीराज चौहान)। आँनौ = लाओ। नरेस = राजा॥

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित कवि चंदवरदायी रचित काव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ के ‘पावती समय’ नामक प्रकरण से उद्धृत है। यहाँ कवि ने पद्मावती के पिता द्वारा पद्मावती का विवाह कुमायूँ के राजा कुमोदमणि के साथ किए जाने और पद्मावती द्वारा तोते को संदेश देकर पृथ्वीराज चौहान के पास भेजे जाने का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि उत्तर दिशा में पर्वतीय क्षेत्र में, धन-धान्य से परिपूर्ण सवालाख का राजस्व देने वाला कुमायूँ नाम का दुर्गम प्रदेश है। उस पर कुमोद मणि नाप का राजा राज करता है। उसके पास असंख्य हाथी, घोड़े और अपार सम्पदा है। पद्मावती के पिता ने ब्राह्मणों को नारियल से सम्मानित करके, मणि-मोतियों का चौक पुरवाकर अपनी कन्या को गठबन्धन (विवाह) राजा कुमोदमणि से कर दिया या करने का वचन दे दिया। सुन्दर राजकुमारी पद्मावती ने रोते हुए, तोते के पास जाकर अकेले में उससे कहा कि वह तुरंत दिल्ली जाये और श्रेष्ठ वर राजा पृथ्वीराज चौहान को लेकर आए।

पद्मावती ने तोते से पृथ्वीराज को शीघ्र लेकर आने और उसे वह संदेश देने को कहा ‘हे प्रिय पृथ्वीराज नरेश ! मेरे शरीर में प्राण रहते आप मुझे लेने को आ जाओ।’।

विशेष-
(i) राजकुमारी की इच्छा जाने बिना पिता द्वारा उसका विवाह अन्य राजा से कर देने के परिणामस्वरूप उसकी वेदना का हृदयस्पर्शी वर्णन हुआ है।
(ii) हय गय ट्रिब्ब’, ‘मनि मुत्ति’, ‘विलषि बरं बाल बेली’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।
(iii) भाषा में विविध भाषाओं के शब्दों का मिश्रण है।
(iv) छप्पय छंद का प्रभावशाली प्रयोग है।

5.
लै पत्री सुक यों चल्यौ। उड्यौ गगनि गहि बाव॥
जहँ दिल्ली प्रथिराज नर। अट्ठ जाम में जाव॥11॥
दिय कग्गर नृप राज कर। पुलि बंचिय प्रथिराज॥
सुक देखत मन में हँसे। कियौ चलन को साज॥12॥
कर पकरि पीठ हय परि चढ़ाय। लै चल्यौ नृपति दिल्ली सुराय॥
भइ षबरि नगर बाहिर सुनाय। पदमावतीय हरि लीय जय॥13॥
कम्मान बन छुट्टहि अपार। लागंत लोह इम सारि धार॥
घमसान घाँन सब बीर घेत। घन श्रोन बहेत अरु रकत रेत॥14॥

कठिन शब्दार्थ-पत्री = पत्र, संदेश। गगनि = आकाश। गहि = पकड़कर, साथ में। बाव = वायु। अट्ठ जाम = आठ पहर, लगभग चौबीस घण्टे। दिय = दिया। कग्गर = कागज, पत्र। नृपराज = राजाओं का राजा, श्रेष्ठ राजी। पुलि = (खुलि) खोलकर। बंचिय = बाँची, पढ़ी। चलन कौ = चलने का। साज = तैयारी। सुराय = श्रेष्ठ राजा। षबरि = खबर। हरी लीय जाय = हरण करके लिए जा रहा है। कम्मान = धनुष। लागंत = लगती है। लोह = लोहू, रक्त। इम = जैसी, समान। सारि = छोटी नदी या नहर। धार = धारा। घेत = (खेत) रणभूमि। घन =घना, बहुत। श्रोन = रक्त। रकत = लाल॥

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित कवि चंदवरदायी रचित काव्य ‘पृथ्वीराज रासो’ के ‘पद्मावती समय’ नामक प्रकरण से लिया गया है। कवि इस अंश में तोते के पत्र लेकर पृथ्वीराज के पास पहुँचने और पृथ्वीराज द्वारा पद्मावती के हरण का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या-पद्मावती का संदेश-पत्र लेकर. तोता ऐसे चला जैसे वह वायु को पकड़कर या वायु के साथ उड़ा जा रहा हो। उसे पृथ्वीराज की राजधानी दिल्ली में आठ पहर में पहुँचाना था। दिल्ली पहुँचकर तोते ने पद्मावती का पत्र पृथ्वीराज के हाथ में दिया। पृथ्वीराज ने पत्र को खोलकर पढ़ा। वह तोते की ओर देखकर मन ही मन हँसे और समुद्र शिखर चलने की तैयारी करने लगे। समुद्र शिखर पहुँचकर (शिव पूजन को निकली) पद्मावती का हाथ पकड़कर उसे अपने घोड़े पर बिठा लिया और राजा पृथ्वीराज उसे दिल्ली ले चले। इस घटना की खबर नगर में पहुँची कि पृथ्वीराज पद्मावती का हरण करके ले जा रहा है।

उसी समय ‘पृथ्वीराज की सेना और पद्मावती के पिता की सेना के बीच युद्ध छिड़ गया। धनुषों से असंख्य बाण छूटने लगे। सैनिकों के रक्त से समीप बह रही छोटी-सी नदी की धार लहू की धार जैसी लगने लगी। घमासान युद्ध में अनेक वीर मारे गए, चारों ओर रक्त बहने लगा और उससे रणभूमि की रेत लाल हो गई।

विशेष-
(i) युद्ध का जीवंत वर्णन हुआ है। छंद वीर रस के अनुकूल है।
(ii) ‘गगन गहि’ पक्षी जीव‘तथा रकत रेत’ में अनुप्रास अलंकार तथा लागंत लोह इम सारि धार में उपमा अलंकार है।

6.
पदमावति इम लै चल्यौ। हरषि राज प्रिथिराज॥
एते परि पतिसाह की। भई जु आनि अवाज॥15॥
भई जु आँनि अवाज। आय साहाबदीन सुर॥
आज गहौं प्रथिराज। बोला बुल्लंत गजत धुर॥
क्रोध जोध जोधा अनंद। करिय पती अनि गज्जिये॥
बांन नालि, हथनालि। तुपक तीरह स्रव सज्जिय॥
पव्वै पहार मनों सार के। भिरि भुजांन गजनेस बल॥
आये हकरि हकार करि। घुरासान सुलतान दल॥16॥

कठिन शब्दार्थ-एते परि = इसी बीच। पतिसाह = शाहबुद्दीन गौरी। गहौं = पकडूंगा, बंदी बनाऊँगा। बोल = बोली, बात। बुल्लंत = बोलता। गजत = गरजता। जोध= युद्ध। करिय= पंक्ति में खड़ी थी। अनि = सेना। बांन नालि = नावक, नली में रख चलाये जाने वाल बाण। हथनालि = बन्दूक तुपक = तोप। तीरह= बाण। सार के = लोहे के। भुजांन = भुजाओं में। गजनेस = बड़ा हाथी। हरकि हकार = हुंकार भरते हुए। घुरासान = एक देश। दल = सेना या सैनिक।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘पद्मावती समय’ नामक प्रसंग से अवतरित है। इसके रचयिता चंदवरदायी हैं। इस अंश में पद्मावती का हरण करके उसे दिल्ली ले जा रहे पृथ्वीराज पर शहाबुद्दीन गौरी द्वारा आक्रमण और युद्ध का वर्णन है।

व्याख्या-राजा पृथ्वीराज बड़े प्रसन्न मन से, पद्मावती को लेकर दिल्ली की ओर चला। इसी बीच शहाबुद्दीन गौरी ने आकर आवाज लगाई। वह बेड़े घमंड भरे स्वर में बोला कि वह पृथ्वीराज को बंदी बनाएगा। उसके योद्धा क्रोध और युद्ध के आनंद में भरे हुए थे। उसने आकर सेना को पंक्तियों में खड़ा किया। उसके सैनिक बान नालि, हथनालि, तोप और बाणों से सुसज्जित थे। वे योद्धा ऐसे लग रहे थे मानो वे लोहे के पर्वत हों। उनकी भुजाओं में गजराज जैसा बल था। पुरासान के सुलतान गौरी के वे योद्धा हुंकार भरते हुए पृथ्वीराज के सामने आ पहुँचे॥

विशेष-
(i) कवि ने कथा में नाटकीयता उत्पन्न की है। पद्मावती का हरण करके बड़े हर्षित हो रहे पृथ्वीराज को अचानक गौरी की ललकार सुनाई देती है

“पद्मान्नति इम ……………………………… आनि आवाज”

(ii) गौरी की सेना का शब्द-चित्र बड़ा सजीव ओजवर्धक है।
(iii) भाषा में मिश्रित शब्दावली के साथ ही कवि ने कुछ नए शब्द भी गढ़े हैं। जैसे-‘गजनेस’।’

7.
तिन घेरिय राज प्रथिराज राजं। चिहौ ओर घन घोर निसाँन बाज॥
गही तेग चहुँवान हिंदवांन रिनं। गजं जूथ परि कोप केहरि समानं॥
गिरदं उड़ी भाँन अंधार रैनं। गई सूधि सुज्झै नहीं मज्झि नैनं॥
सिरं नाय कम्मान प्रथिराज राजें। पकरियै साहि जिम कुलिंगबाजे॥
जीति भई प्रथिराज की। पकरि साह लै संग॥
दिल्ली दिंसी मारगि लगौ। उतरि घाट गिर गंग॥

कठिन शब्दार्थ-तिन =उन, गौरी के सैनिकों ने। घेरिय = घेर लिया। चिहौ = चारों। घनघोर = बादलों के गर्जन (के समान)। निसाँन = युद्ध बाजे, धोंसा या नगाड़ा। तेग = तलवार। चहुँवान = चौहान। हिंदवान= हिन्दुओं (के)। रानं = राजा। गिरदं = गर्द, धूल। कोप = क्रोध। केहरि = सिंह। भाँन = सूर्य सा हो गया। अंधार = अँधेरा। रैनं = रात। सूधि = सुध। सुज्झै = सूझको। मज्झि = मध्य में। नाय= डालकर वा झुकाकर। कम्मान = धनुष। कुलिंग = पक्षी। बाजं = बाज पक्षी जो अन्य पक्षियों का शिकार करता है। हिंसी = दिशा, ओर। मारगि = मार्ग। लगौ = लग लिया। (मार्ग पर चल दिया) गिर = पर्वत॥

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित, कवि चंदवरदायी रचित ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक काव्य के प्रकरण ‘पद्मावती समय से लिया गया है। इस अंश में कवि ने पृथ्वीराज और शाहबुद्दीन गौरी के बीच युद्ध का वर्णन किया है।

व्याख्या-उस गौरी की सेना ने राजा पृथ्वीराज को घेर लिया। चारों ओर नगाड़ों या युद्ध के बाजों का घनघोर शब्द होने लगा। तब हिन्दुओं के प्रिय सम्राट पृथ्वीराज ने अपनी तलवार हाथ में उठाई। ऐसा लगा मानो सिंह ने क्रुद्ध होकर हाथियों के झुण्ड पर आक्रमण कर दिया हो। चारों ओर धूल उड़ने लगी और अँधेरा होने से रात-सी लगने लगी। धूल और अंधकार के मारे सैनिकों की सुध-बुध चली गई। आँखों से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। तब राजा पृथ्वीराज ने गौरी के गले में अपने धनुष को हँसाकर, उसे ऐसे पकड़ लिया जैसे बाज अपने शिकार पक्षी को पकड़ लिया करता है।

इस प्रकार युद्ध में पृथ्वीराज की विजय हुई और वह साह (गौरी) को बंदी बनाकर और अपने साथ लेकर, घाट, पर्वत और गंगा आदि नदियों को पार करता हुआ, दिल्ली के मार्ग पर चल दिया।

विशेष-
(i) पृथ्वीराज और शाहबुद्दीन गौरी के बीच युद्ध का अत्यन्त सजीव और शब्द-चित्रात्मक वर्णन हुआ है।
(ii) वीर रस का संचार करने वाली भाषा-शैली का प्रयोग है।
(iii) ‘राज प्रथिराज राजं’; ‘चहुंवान हिंदवन रानं’ में अनुप्रास तथा ‘पकरियै साहि जिम कुलिंगबाज’ में उपमा अलंकार है।

8.
बोलि विप्र सोधे लगन्न। सुभ घरी परट्ठिय॥
हर बासह मंडप बनाय। करि भांवरि गंठिय॥
ब्रह्म वेद उच्चरहिं। होम चौरी जुप्रति वर॥
पद्मावती दुलहिन अनूप। दुल्लह प्रथिराज राज नर॥
डंडयौ साह साहाबदी। अट्ठ सहस हे वर सुघर॥
दै दाँन माँन षट भेष कौ। चढ़े राज दूग्गा हुजर॥

कठिन शब्दार्थ-विप्र = ब्राह्मण। सोधे = शोधित की। लगन्न = लग्न। घरी = घड़ी, समय। परिटिठ्य = निश्चित की गई। हर = हरे। बांसह = बांसों से। भांवरि गंठिय = भाँवर डाली गई। ब्रह्म = ब्राह्मण। उच्चसिंह = उच्चारण कर रहे थे। होम चौरी = हवन की वेदी। दुल्लह = दूलह, वर। डंडयौ = दण्डित किया। अट्ठ= आठ। सहस = हजार। षट भेष = अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना, दान लेना ये छह कर्म करने वाले, ब्राह्मण। दूग्गा = दुर्ग।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित, कवि चंदवरदायी रचित ‘पृथ्वीराज रासो’ नामक काव्य के प्रकरण ‘पद्मावती समय’ से लिया गया है। इस अंश में कवि ने पद्मावती और पृथ्वीराज के विवाह का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि राजा पृथ्वीराज ने ब्राह्मणों को बुलाकर उनसे पद्मावती के साथ अपने विवाह की लग्न और शुभ घड़ी निश्चित कराई। हरे बाँसों का मंडप बनवाकर उसमें राजा पृथ्वीराज की पद्मावती के संग भावर डलवाई गई। उस समय ब्राह्मण वेद मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे और होम की वेदी पर हवन हो रहा था। उस समय दुलहिन के रूप में पद्मावती और दूलह के रूप में पृथ्वीराज की जोड़ी, अद्वितीय सुन्दर लग रही थी।

पृथ्वीराज ने शहाबुद्दीन गौरी को दंडित किया। इसके पश्चात् पृथ्वीराज ने ब्राह्मणों को दान देकर सम्मानित किया और फिर दुलहिन पद्मावती के साथ दुर्ग या राजभवन में प्रवेश किया।

विशेष-
(i) वैवाहिक क्रिया का सजीव चित्रण हुआ है।
(ii) वीरगाथा कालीन भाषा का स्वरूप काव्यांश में उपस्थित है।
(iii) ‘साह साहाबदी’ तथा ‘दाँन माँन’ में अनुप्रास अलंकार है।

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