RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 नशा

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 नशा

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

Nasha Kahani Ka Question Answer प्रश्न 1.
“एक आदमी ने हमारा कमरा खोला। मैं तुरंत चिल्ला उठा दूसरा दर्जा है सैकण्ड क्लास है।” ईश्वरी के मित्र के पीछे चिल्लाने का भाव था ?
(क) अहंकार
(ख) क्रोध
(ग) हीनता
(घ) काईयापन
उत्तर:
(क) अहंकार

Nasha Kahani Ka Saransh In Hindi प्रश्न 2.
‘नशा’ कहानी में किस विसंगति पर व्यंग्य किया गया ?
(क) उपदेशात्मकता
(ख) कथनी और करनी में अंतर
(ग) शोषण चक्र
(घ) जमींदार प्रथा
उत्तर:
(ख) कथनी और करनी में अंतर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

Nasha Premchand Summary In Hindi प्रश्न 1.
‘नशा’ कहानी के कहानीकार कौन हैं ?
उत्तर:
‘नशा’ कहानी के कहानीकार प्रेमचन्द हैं।

Nasha Munshi Premchand Summary प्रश्न. 2.
ईश्वरी के मित्र के पिता क्या करते थे ?
उत्तर:
ईश्वरी के मित्र के पिता क्लर्क थे।

Nasha Story Summary In Hindi प्रश्न. 3.
ईश्वरी के मित्र के लिए लैम्प किसने जलाया?
उत्तर:
लैम्प मुंशी रियासत अली ने जलाया था।

Summary Of Nasha Story In Hindi प्रश्न. 4.
प्रेमचन्द का जन्म कहाँ हुआ?
उत्तर:
प्रेमचन्द का जन्म वाराणसी जिले के लमही गाँव में हुआ था।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न

पूस की रात कहानी के प्रश्न उत्तर प्रश्न.1.
अब दशहरे की छुट्टियों में ईश्वरी का मित्र घर क्यों नहीं जाना चाहता था ?
उत्तर:
दशहरे की छुट्टियाँ होने को थीं। ईश्वरी अपने घर जा रहा था। इसका मित्र अपने घर नहीं जाना चाहता था। उसके पास किराये के लिए पैसे नहीं थे। वह घरवालों से अधिक पैसा माँगना नहीं चाहता था। साथ ही परीक्षा का भी ख्याल था। उसको पढ़ाई भी करनी थी। घर जाकर पढ़ाई हो नहीं सकती थी।

Nasha Premchand Pdf Download प्रश्न. 2.
ईश्वरी ने अपने नौकरों के सामने मित्रे का बढ़ा-चढ़ाकर परिचय क्यों दिया? –
उत्तर:
ईश्वरी ने अपने नौकरों के सामने अपने मित्र का बढ़ा-चढ़ाकर परिचय दिया। वह एक मामूली क्लर्क का बेटा था परन्तु उसको ढाई लाख की रियासत का उत्तराधिकारी बताया। ईश्वरी चाहता था कि उसके नौकर उसके मित्र का सम्मान उसी के समान करें। ऐसा न करने पर वे उसकी उपेक्षा करते। साथ ही इससे ईश्वरी को यह भी डर था कि वे कहेंगे कि उसका दोस्त इतने छोटे घर से है। इसमें उसकी अहंकार प्रदर्शन की भावना भी निहित है।

प्रश्न. 3.
ईश्वरी का मित्र उसकी आलोचना क्यों करता था ?
उत्तर:
ईश्वरी का मित्र कमजोर आर्थिक स्थिति का था। ईश्वरी जमींदार का पुत्र था। ईश्वरी का मित्र उसकी आलोचना करता था। इससे उसको कुछ आत्मतुष्टि मिलती थी तथा अपने छोटेपन से मुक्ति प्राप्त हुई प्रतीत होती थी। उसकी आलोचना किसी सैद्धान्तिक आधार पर नहीं थी। उसकी अपनी स्थिति ही इसका कारण थी।

प्रश्न 4.
प्रेमचन्द की इस कहानी को मूल आशय स्पष्ट कीजिएं?”
उत्तर:
प्रेमचन्द का इस कहानी का आशय यह है कि व्यक्ति जो कहता है वह अपने जीवन में वैसा आचरण नहीं करता ईश्वरी का दोस्त अपने मन को संतोष देने के लिए ईश्वरी की अमीरी की आलोचना करता है। परन्तु जब उसको ईश्वरी के समान जीवन जीने का अवसर मिलता है, तो वह आलोचना की बातें ही भूल जाता है और नौकरों, रेलयात्रियों आदि के साथ अहंकारपूर्ण अमानवीय व्यवहार करता है। कहानी का मूल आशय यह है कि उच्च सिद्धान्तों के अनुसार कहना तथा उनके अनुकूल व्यवहार करना दो भिन्न-भिन्न बातें हैं।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न. 1.
ईश्वरी और उसके मित्र की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ईश्वरी और उनका मित्र साथ-साथ पढ़ते हैं और बोर्डिंग में एक ही कमरे में रहते हैं किन्तु उनकी स्थिति में भिन्नता है। ईश्वरी एक जमींदार का पुत्र था। वह ऐश्वर्यप्रिय था और ठाठबाट से रहता था। वह नौकरों के प्रति कठोर था और काम में लापरवाही तथा देरी उसको बिल्कुल सहन नहीं थी। अमीरों में जो उद्दण्डता और बेदर्दी होती है, वह उसमें भी भरपूर मात्रा में थी। बिस्तर बिछाने में देर होने, साइकिल साफ न होने, दूध अधिक ठंडा या गुरम रहने पर वह नौकरों को डांटता-फटकारता था। वह जमींदारों का पक्ष लेता था परन्तु हारने पर भी कभी गरमें नहीं होता था। वह हमेशा मुस्कराती रहता था। अमीर होकर भी वह बहुत परिश्रमी और बुद्धिमान था।

उसका व्यवहार दोस्तों तथा अन्य लोगों से नम्रतापूर्ण और सौहार्द का होता था। ईश्वरी का मित्र एक गरीब परिवार से था। उसके पिता एक क्लर्क थे। उनका वेतने बहुत कम था। होटल के खानसामों को मिलने वाला इनाम-इकराम उससे ज्यादा होता था। दशहरे की छुट्टियों में पैसे न होने के कारण वह घर नहीं गया था। वह जमींदारों का कटु आलोचक था। उनको खून चूसने वाली जौंक, हिंसक पशु इत्यादि कहता था। वह वाद-विवाद में प्रायः गरम हो जाता था। अमीरों की आलोचना उसकी अपनी स्थिति के कारण थी। वह उनकी आलोचना किसी सिद्धान्त के आधार पर नहीं करता था। उसके कथन और कार्य में भिन्नता थी।

जब वह ईश्वरी के गाँव पहुँचा तो स्वयं को कुँवर साहब ही मान बैठा। अपने इस बनावटी स्वरूप का नशा उस पर ऐसा चढ़ा कि वह मानवीयता औरा सामान्य शिष्टाचार के नियम भी भूल गया। बिस्तर बिछाने और लैम्प जलाने का मामूली काम भी उसने स्वयं नहीं किया। उसने ईश्वरी के नौकर तथा मुंशी रियासत अली को बुरी तरह डाँटा। वह एक गरीब क्लर्क का बेटा है, इस सच्चाई को लोगों को बताने का साहस भी उसमें नहीं हुआ। उसने रेल में एक गरीब सहयात्री के साथ अकारण दुर्व्यवहार किया। उस तरह उसका आचरण व्यवहार दोगलेपन से भरा है।

प्रश्न 2.
गाँव जाते ही ईश्वरी के मित्र के स्वभाव में आएं परिवर्तन का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ईश्वरी एक जमींदार का पुत्र था। उसका मित्र एक क्लर्क का बेटा था। दोनों एक स्कूल में पढ़ते थे और बोर्डिंग हाउस के एक ही कमरे में रहते थे। दशहरे की छुट्टियाँ होने पर ईश्वरी ने अपने मित्र को अपने साथ चलने के लिए निमंत्रण दिया। ईश्वरी जमींदारों का समर्थक था और मनुष्यों में छोटा-बड़ा होना प्रकृति या ईश्वरीय नियम मानता था। उसका मित्र जमींदारों को खून चूसने वाली जोंक, हिंसक पशु, पेड़ों के ऊपर फूलने वाला बंझा आदि कहकर उनकी कटु आलोचना करता था। वह वाद-विवाद के समय उग्र भी हो जाता था किन्तु ईश्वरी मुस्कराता रहता था।

मित्र ने ईश्वरी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया। ईश्वरी ने उससे कहा कि वह उसके घरवालों के सामने जमींदारों की बुराई न करे तो उसने कहा कि वह बदल नहीं सकता। गाँव पहुँचने पर ईश्वरी ने अपने नौकरों तथा घर के लोगों से मित्र का परिचय कराया और उसको ढाई लाख की रियासत का उत्तराधिकारी बताया। उसके साधारण लिवास को उसके सादगीपसन्द होने तथा गाँधी जी का भक्त होना बताया। गाँव पहुँचकर ईश्वरी की बातों का मित्र ने विरोध नहीं किया। उसने एक जमींदार-पुत्र की तरह ही व्यवहार करना शुरू कर दिया। नाई से चुपचाप पैर दबवा लिए भोजन के लिए, जाने पर पैर भी धुला लिए। उसने अपने हाथों अपना बिस्तर नहीं बिछाया और देर से आने पर नौकर को डाँटा।

पास में लैम्प और माचिस रखे होने पर भी, अँधेरा होने पर उसने लैम्प नहीं जलाया। संयोग से मुंशी रियासत अली आ पहुँचे तो उनको बुरी तरह डाँटा-फटकारा। इतना ही नहीं उसने वापसी रेलयात्रा में एक गरीब मुसाफिर को धक्का दिया और चाँटे भी मारे। ईश्वरी के मित्र पर अपने बनावटी रूप का नशा इस कदर चढ़ा कि वह स्वयं को जमींदार का पुत्र ही समझने लगा और अपने विचारों को भूलकर वैसा ही अमानवीय आचरण करने लगा।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रेमचन्द के साहित्य पर प्रभाव है –
(क) गाँधीवाद
(ख) नेहरूवाद
(ग) समाजवाद
(घ) साम्यवाद
उत्तर:
(क) गाँधीवाद

प्रश्न 2.
प्रेमचंद की लिखी हुई कहानियाँ है –
(क) लगभग 200
(ख) लगभग 400
(ग) लगभग 300
(घ) लगभग 500
उत्तर:
(ग) लगभग 300

प्रश्न 3.
ईश्वरी के मित्र को नशा है –
(क) शराब का
(ख) अपने नकली कुँवर बनने का
(ग) भाँग का
(घ) ईश्वरी का मेहमान होने का
उत्तर:
(ख) अपने नकली कुँवर बनने का

प्रश्न 4.
ईश्वरी के मित्र का लोकप्रेम आधारित था –
(क) सिद्धान्त पर
(ख) गहन अध्ययन पर
(ग) सच्चे प्रेम पर
(घ) निजी दशा पर
उत्तर:
(घ) निजी दशा पर

प्रश्न 5.
रेलगाड़ी में पहले दर्जा नहीं होता था –
(क) फर्स्ट क्लास
(ख) सेकेण्ड क्लास
(ग) इण्टर क्लास
(घ) स्लीपर क्लास
उत्तर:
(घ) स्लीपर क्लास

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रेमचंद ने किन पत्रिकाओं का सम्पादन किया था?
उत्तर:
प्रेमचंद ने मर्यादा, माधुरी, हंस, जागरण आदि पत्रिकाओं को सम्पादन किया था।

प्रश्न. 2.
प्रेमचन्द के साहित्य में किसके प्रति सहानुभूति व्यक्त हुई है?
उत्तर:
प्रेमचन्द के साहित्य में दलित वर्ग अर्थात् किसानों-मजदूरों एवं उपेक्षित महिलाओं के प्रति उनकी सहानुभूति व्यक्त हुई है।

प्रश्न. 3.
प्रेमचन्द का साहित्य के उद्देश्य के बारे में क्या कहना है ?
उत्तर:
प्रेमचन्द का कहना है कि साहित्य को समाज का मार्ग-दर्शक होना चाहिए। वह तत्कालीन राजनैतिक तथा सामाजिक विचारधारा में प्रगतिशीलता का पक्षधर है।

प्रश्न. 4.
‘नशा’ कहानी में किस बात पर व्यंग्य किया गया है?
उत्तर:
‘नशा’ कहानी में कथनी और करनी के अन्तर पर व्यंग्य किया गया है।

प्रश्न. 5.
मित्र के अनुसार ईश्वरी की लचर दलीलें क्या थीं ?
उत्तर:
सभी मनुष्य बराबर नहीं होते, छोटे-बड़े हमेशा होते रहे हैं और होते रहेंगे-इत्यादि ईश्वरी की लचर दलीलें थीं।

प्रश्न 6.
‘बोर्डिंग हाउस में भूत की तरह पड़े रहने’ से मित्र का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
दशहरे के अवकाश पर सब घर जा रहे थे। वह अपने घर जाना नहीं चाहता था। ऐसी दशा में वह बोर्डिंग हाउस में अकेला ही रह जाता।

प्रश्न 7.
खानसामों को पारखी क्यों कहा गया है? उत्तर-खानसामों के अपने ग्राहकों की परख थी। वे जान लेते थे कि बिल चुकाने वाला कौन है तथा उसके पिछलगू कौन है।

प्रश्न 8.
‘गाड़ी चली डाक की’-कहने का क्या आशय है ?
उत्तर:
आशय यह है कि जिस गाड़ी से वे यात्रा कर रहे थे, वह तेज गति से चलने वाली गाड़ी थी, हर स्टेशन पर नहीं रुकती थी।

प्रश्न 9.
मित्र के सादे लिवास के बारे में रियासत अली की अर्ध शंका को ईश्वरी ने क्या कहकर दूर किया ?
उत्तर:
ईश्वरी ने कहा कि ये महात्मा गाँधी के भक्त हैं। खद्दर के सिवा कुछ पहनते ही नहीं। पुराने सभी कपड़े जला चुके हैं।

प्रश्न 10.
उसके प्रत्येक वाक्य के साथ मन में उसे कल्पित वैभव के समीपतर आता जाता था।’ वाक्य से मित्र की किस मनोदशा का पता चलता है ?
उत्तर:
इस वाक्य से पता चलता है कि अपने को अमीर, ढाई लाख की रियासत का राजा आदि सुनकर वह, ईश्वरी का मित्र स्वयं को वैसा ही वैभवसम्पन्न समझने लगा था।

प्रश्न 11.
‘पोतंडों का रईस बनने का स्वांग भरना’ वाक्यांश में मित्र के बारे में क्या बताया गया है ?
उत्तर:
मित्र के कपड़े पुराने और साधारण थे परन्तु वह जर्मीदार होने या रियासत का राजा होने का नाटक कर रही थी।

प्रश्न 12.
‘मेरा वह विचार जाने कहाँ चला गया था’ मित्र का कौन-सा विचार उसके मन से हट गया था ?
उत्तर:
मित्र का मानना कि सब मनुष्य बराबर होते हैं, कोई छोटा-बड़ा नहीं होता-आदि विचार ईश्वरी के गाँव पहुँचकर उसने भुला दिए थे।

प्रश्न. 13.
गाँव से वापसी के समय रेलगाड़ी ठसाठस क्यों भरी थी?
उत्तर:
दशहरे की छुट्टियाँ खत्म हो गई र्थी सभी अपने-अपने काम पर लौट रहे थे।

प्रश्न. 14.
‘गाड़ी में तूफान आ गया’-क्यों ?
उत्तर:
मित्र ने एक अन्य यात्री को धक्का दिया था और चाँटे मारे थे। उसके इस अनुचित कार्य का सभी यात्रियों ने जोरदार तरीके से विरोध किया।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न. 1.
ईश्वरी के निमंत्रण पर उसके मित्र द्वारा उसके घर जाने के लिए राजी होने के तीन कारण बताइए।
उत्तर:
मित्र द्वारा ईश्वरी के घर जाने के लिए राजी होने के तीन कारण हैं –

  1. अपने घर जाने के लिए उसके पास किराये के पैसे न थे तथा वह घरवालों से माँगना नहीं चाहता था।
  2. सभी विद्यार्थी दशहरे के अवकाश के कारण जा रहे थे। वह बोर्डिंग हाउस में अकेला रहना नहीं चाहता था।
  3. ईश्वरी मेहनती और बुद्धिमान था। उसके साथ परीक्षा की तैयारी करना चाहता था।

प्रश्न 2.
‘अमीरों में जो एक बेदर्दी और उद्दण्डता होती है, इसमें उसे भी प्रचुर भोग मिला था’-ईश्वरी के बारे में उसके मित्र को यह कथन क्या स्वयं मित्र पर लागू होता है।
उत्तर:
ईश्वरी के बारे में उसके मित्र का यह कथन है। किन्तु यह उसके मित्र पर भी लागू होता है। उसका मित्र अमीर नहीं था। वह एक क्लर्क का पुत्र था किन्तु ईश्वरी के गाँव जाने पर उसने नौकरों, मुंशी रियासत अली तथा रेलयात्री के साथ जो व्यवहार किया, उसको देखकर उसके बारे में भी यही कहा जा सकता है।

प्रश्न, 3.
“यह भेद मेरे ध्यान को सम्पूर्ण रूप से अपनी ओर खींचे हुए था।’ मित्र के इस कथन को स्पष्ट करके लिखिए।
उत्तर:
गाड़ी आने में देर थी। ईश्वरी और उसका मित्र रिफ्रेशमेंट रूम में भोजन करने गए। वहाँ चतुर खानसामों ने उसकी वेश-भूषा देखकर पहचान लिया कि उनका असली ग्राहक ईश्वरी है। ईश्वरी ने उनको इनाम भी दिया। वे बड़ी नम्रता और तत्परता के साथ उसकी सेवा में लगे रहे और मित्र की ओर ध्यान नहीं दिया। ईश्वरी तथा अपने बीच का यह भेद उसके ध्यान में निरन्तर रहा और उसको भोजन में स्वाद नहीं आया।

प्रश्न 4.
ईश्वरी के मित्र को किस बात पर लज्जा आई ?
उत्तर:
ईश्वरी और उसका मित्र दूसरे दर्जे में यात्रा कर रहे थे। उसके मित्र ने इसके पहले इण्टर क्लास में भी सफर नहीं किया था। एक आदमी ने डिब्बे का दरवाजा खोला तो उसने चिल्लाकर कहा-‘यह दूसरा दर्जा अर्थात् सैकेण्ड क्लास है।’ वह यात्री अन्दर आया, और विचित्र दृष्टि से उसकी ओर देखकर कहा कि यह बात वह जानता है। वह बीच वाली बर्थ पर बैठ गया। अपने इस व्यवहार पर मित्र को लज्जा आई।

प्रश्न. 5.
कहानी में इलाहाबाद, लखनऊ और मुरादाबाद-तीन स्थानों के नाम हैं। ईश्वरी का इनसे क्या सम्बन्ध था ? कहानी के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ईश्वरी इलाहाबाद में पढ़ता था। वहाँ पर ही बोर्डिंग हाउस में रहता था। अपने मित्र के बारे में रियासत अली को बताया-‘आप ही की बदौलत मैं इलाहाबाद में पड़ा हूँ नहीं कब का लेखनऊ चला आया होता’ इससे लगता है कि वह लखनऊ का रहने वाला है। इससे पहले बताया गया है – भोर होते-होते हम लोग मुरादाबाद पहुँचे। स्टेशन पर कई लोग हमारा स्वागत करने के लिए खड़े थे।” उस वर्णन से उसका मुरादाबाद निवासी होना पता चलता है। उसके घर पर इमामबाड़े का-सा फाटक थी। इससे उसको घर लखनऊ में होना प्रतीत होता है।

प्रश्न. 6.
ईश्वरी ने अपने मित्र का परिचय रियासत अली से किस प्रकार कराया ?
उत्तर:
ईश्वरी ने कहा कि वे दोनों इलाहाबाद में साथ पढ़ते हैं और रहते हैं। वह अपने मित्र की बदौलत ही वहाँ पड़ा है। वह उसको बहुत आग्रह करके अपने साथ लाया है। मित्र के घर से आये तारों का उत्तर नहीं में भिजवा दिया है।

प्रश्न. 7.
रियासत अली की शंका क्या थी तथा उसका समाधान ईश्वरी ने किस प्रकार किया ?
उत्तर:
ईश्वरी के मित्र को बहुत सादा कपड़ों में देखकर रियासत अली ने शंका व्यक्त की-‘आप बड़े सादे लिवास में रहते हैं ? ईश्वरी ने इसका समाधान करते हुए बताया कि उसका मित्र महात्मा गाँधी का शिष्य है। केवल खद्दर के कपड़े ही पहनता है। पुराने कीमती कपड़े जला चुका है। वह तो राजा है। ढाई लाख सालाना की रियासत है।

प्रश्न. 8.
ईश्वरी का घर कैसा था ?
उत्तर:
ईश्वरी का घर बहुत शानदार था। उसका फाटक इमामबाड़े के फाटक जैसा था। नौकरों की तो कोई गिनती ही नहीं थी। घर के दरवाजे पर पहरेदार टहल रहा था। द्वार पर एक हाथी भी बँधा था।

प्रश्न, 9.
एकान्त होने पर मित्र ने ईश्वरी से यह क्यों कहा-‘मेरी मिट्टी क्यों पलीद कर रहे हो ?’
उत्तर:
ईश्वरी ने अपने मित्र का परिचय अपने घरवालों तथा नौकरों के साथ बढ़ा-चढ़ाकर कराया। उसने उसको ढाई लाख सालाना की रियासत का मालिक बताया था और सादगी पसन्द महात्मा गाँधी का भक्त बताया था। ये बातें सत्य नहीं थीं। अतः मित्र को ठीक नहीं लग रही थीं परन्तु वह विरोध नहीं कर रहा था।

प्रश्न 10.
नाई से पैर दबवाने और कहार से पैर धुलवाने से मित्र के चरित्र पर क्या प्रकाश पड़ता है?
उत्तर:
नाई से पैर दबवाने को मित्र अमीरों के चोंचले, रईसों का गधापन और बड़े आदमियों की मुटमररी कहता था। कहार से पैर धुलवाना भी उसको यही लगता था। परन्तु ईश्वरी के घर उसने इन बातों का विरोध नहीं किया। उसने स्वीकार किया है – “उसके (ईश्वरी) प्रत्येक वाक्य के साथ मन में उस कल्पित वैभव के समीपतर आता जाता था। ‘मेरा वह विचार न जाने कहाँ चला-गया था।” इससे पता चलता है कि उसका विरोध सिद्धान्तहीन था तथा उस पर अपने बनावटी स्वरूप का नशा चढ़ चुका था। उसमें सत्य को व्यक्त करने का साहस नहीं था।

प्रश्न 11.
ईश्वरी और उसके मित्र की गाँव में क्या दिनचर्या थी ?
उत्तर:
मित्र ईश्वरी के साथ उसके गाँव पढ़ाई के विचार से आया था किन्तु उनका समय सैर-सपाटे में बीत रहा था। नदी में सैर क़रना, शिकार खेलना, पहलवानों की कुश्ती देखना, शतरंज खेलना आदि उनकी दिनचर्या थी।

प्रश्न. 12.
मित्र ने महरा को क्यों डाँटा ?
उत्तर:
महरा ने मित्र का बिस्तर नहीं बिछाया था। रात साढ़े ग्यारह बज रहे थे। तब वह आया तो मित्र ने उसको उसकी लापरवाही के लिए डाँटा।

प्रश्न 13.
मुंशी रियासत अली को फटकारने का क्या कारण था ?
उत्तर:
शाम के बाद का अँधेरा हो गया था। किन्तु कमरे में लैम्प नहीं जली थी, मित्र लैम्प स्वयं भी जला सकता था किन्तु यह बाते उसे अपनी शान के खिलाफ लग रही थी। तभी अचानक मुंशी रियासत अली वहाँ आ पहुँचे। मित्र ने उनकी इसी कारण फटकारा।

प्रश्न 14.
मित्र को नशा किस बात का था और वह कब उतरा ?
उत्तर:
ईश्वरी की झूठी प्रशंसा सुनकर मित्र ने स्वयं को वैभवसम्पन्न समझ लिया था। उस पर अपने कल्पित स्वरूप का नशा चढ़ गया था। वह स्वयं को जमींदार-कुँवर समझने लगा था। इस कारण उसका व्यवहार बदल गया था। रेलयात्री के साथ उसके अमानवीय व्यवहार का जब लोगों ने विरोध किया और ईश्वरी ने भी उसे अनुचित बताया तभी उसका नशा टूटा।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘नशा’ कहानी का शीर्षक आपकी दृष्टि में कितना उचित है ?
उत्तर:
‘नशा’ कहानी के दो प्रमुख पात्र हैं-ईश्वरी तथा उसका मित्र। ईश्वरी जमींदार का पुत्र है। उसके गाँव जाने पर उसके मित्र पर उसके वैभव का नशा चढ़ जाता है। अपने लोगों को प्रभावित करने के लिए ईश्वरी उसका परिचय एक रियासत के स्वामी के रूप में कराता है। यह कल्पित वैभव मित्र पर छा जाता है और वह स्वयं को जमींदार कुँवर मान लेता है। उसका व्यवहार तथा विचार बदल जाते हैं। रेल में यात्री के साथ उसके दुर्व्यवहार के विरोध होने पर ही उसका नशा टूटता है। कहानी का शीर्षक उसके पात्र-नायक के चरित्रगत गुण पर आधारित है। वह जिज्ञासा से परिपूर्ण है तथा कहानी के कथ्य को व्यक्त करने वाला है। मादक पदार्थों का नशा तो कुछ देर रहता है किन्तु मित्र का नशा तभी टूटता है जब उसका मित्र ईश्वरीय उसको फटकारता है। इस तरह इस कहानी का शीर्षक ‘नशा’ सर्वथा औचित्यपूर्ण है।

प्रश्न. 2.
‘नशा’ कहानी के माध्यम से कहानीकार मानव स्वभाव की किस विशेषता का परिचय देना चाहता है ?
अथवा
‘नशा’ कहानी एक सोद्देश्य रचना है।”- टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
‘नशप्त’ कहानी को कथानक मानव स्वभाव की विसंगतियों पर अधारित है। कहानी का प्रमुख पात्र जो ईश्वरी का मित्र है, एक गरीब क्लर्क का पुत्र है। वह अपने मित्र ईश्वरी की अमीरी तथा उसके अमीरों के समान आचरण का कटु आलोचक है। वह गरीबों तथा किसान मजदूरों का समर्थक है। उसका अपने मित्र के साथ वाद-विवाद होता है और इसमें वह बहुत बार गर्म भी हो जाता है। उसके ये विचार सिद्धान्तों पर आधारित न होकर उसके जीवन की परिस्थितियों पर आधारित हैं। जब वह ईश्वरी के साथ उसके गाँव जाता है और उसका परिचय ढाई लाख सालाना आमदनी वाली रियासत के मालिक के रूप में कराया जाता है तो वह अपने कल्पित चरित्र को ही वास्तविक समझने लगता है और उसका व्यवहार बदल जाता है। वह महरा, मुंशी रियासत अली और रेलयात्री के साथ अमानवीय और अनुचित व्यवहार करता है।

दलित पीड़ितों के प्रति उसकी सहानुभूति न जाने कहाँ गायब हो जाती है। मित्र के चरित्र का सृजन कहानीकार ने खूब सोच-समझकर किया है। वह इस मनोवैज्ञानिक सच्चाई को बताना चाहता है कि सुख-सुविधाओं, धन-सम्पत्ति और दूसरों से अलग बड़ा आदमी होने की आकांक्षा मानव में स्वाभाविक रूप से होती है। जब तक ये चीजें उसके पास नहीं होर्ती, तब तक वह इनकी निन्दा करता है। लेकिन इनको पाने की इच्छा उसके मन में बनी रहती है। इनकी प्राप्ति के साथ ही उसका आचरण बदल जाता है। इस कहानी में कथनी और करनी के अन्तर को सफलतापूर्वक व्यक्त किया गया है।

पर उपदेश कुशल बहुतेरे के अनुसार लोग आदर्शों की बातें तो बहुत कहते हैं पर अपने ऊपर आचरण नहीं करते। परिवर्तन, क्रान्ति, समानता, मातृत्व, सामंती विलासिता की निन्दा तो लोग करते हैं परन्तु व्यावहारिक जीवन में वैसा नहीं करते। अवसर मिलने पर दूसरों का शोषण हम भी करते हैं। तर्क, बौद्धिकता आदि को भुलाकर हम उसी पथ के पथिक हो जाते हैं जिसके हम विरोधी थे। ‘नशा’ कहानी में सम्पत्ति और बड़प्पन के इसी नशे के प्रभाव का चित्रण हुआ है। कह्मनी का उद्देश्य इस मानवीय कमजोरी पर प्रकाश डालना है। कहानी के कथानक का यह प्रमुख तत्व है।’नशा’ प्रेमचन्द की एक उद्देश्यपूर्ण रचना है।

प्रश्न 3.
‘नशा’ कहानी का प्रधान पात्र और नायक कौन है ? उसके चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘नशा’ प्रेमचन्द की एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। इस कहानी को प्रधान पात्र और नायक ईश्वरी का मित्र है। कहानी में उसका कोई नाम नहीं है, कहानी के समस्त कथानक तथा घटनाओं का केन्द्रबिन्दु वही है। उसके चरित्र की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं। निर्धन-मित्र एक निर्धन क्लर्क का पुत्र है। उसके वस्त्र मामूली और कम कीमती हैं। घर जाने के लिए किराए तक के पैसे उसके पास नहीं होते। अमीरों को आलोचक-वह ईश्वरी का मित्र है, जो एक जमींदार का पुत्र है। मित्र अपने ही मित्र ईश्वरी की जमींदारी, अमीरी तथा उसके अनुरूप आचरण की निन्दा करता है। वह जमींदारों को खून चूसने वाली जोंक, हिंसक पशु, शोषक आदि कहता है। वह स्वयं को गरीबों का समर्थक मानता है।

उसके विचार दलितों के प्रति सहानुभूति तथा शोषण विरोधी हैं। आचरण की भिन्नता -मित्र का आचरण अलग है। उसकी करनी और कथनी में अन्तर है। वह ईश्वरी के गाँव जाता है तो सामन्ती सुख का आनन्द उठाता है। वहाँ उसका व्यवहार एक शोषक, उत्पीड़क जमींदार और अमीर व्यक्ति के समान ही होता है। साहस का अभाव-मित्र के चरित्र में साहस का अभाव है। सत्य को स्वीकार करने और असत्य का विरोध करने का साहस वह नहीं दिखाता। ईश्वरी उसका परिचय एक अमीर और धनवान रियासत के मालिक के रूप में देता है तो वह चुप रहता है तथा इस असत्य का विरोध नहीं करता।

उल्टे वह स्वयं को वैसा ही समझने लगता है। कल्पना का नशा-अपने कल्पित चरित्र का नशा उस पर चढ़ जाता है। वह दूसरों के साथ अनुचित और अमानवीय व्यवहार करता है। उसके अहंकार के शिकार ईश्वरी के नौकर, मुंशी रियासत अली तथा गरीब रेलयात्री बनते हैं। अन्त में, ईश्वरी को भी उल्टे फटकारना पड़ता है। मित्र के चरित्र में उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हैं। उसमें मानव-स्वभाव की सहज दुर्बलताएँ विद्यमान हैं। उसका चरित्र कहानीकार की सजग दृष्टि का परिणाम है।

प्रश्न. 4.
प्रेमचन्द की कहानी-कला की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
प्रेमचन्द हिन्दी के उपन्यास और कहानी सम्राट हैं। आपने लगभग 300 कहानियों की रचना की है। पहले आप उर्दू में लिखते थे। बाद में हिन्दी में लेखन आरम्भ किया। हिन्दी में आपकी पहली कहानी ‘पंचपरमेश्वर’ छपी थी। आपकी कहानी कला प्रभावशाली और उत्कृष्ट है। प्रेमचंद की कहानियों का कथानक समाज के दलित शोषित वर्ग से सम्बन्धित है। उसमें किसानों, मजदूरों तथा छोटे माने जाने वाले लोगों के जीवन तथा समस्याओं का चित्रण हुआ है। उपेक्षित महिलाओं के प्रति भी आपकी सहानुभूति रही है। किसानों के जीवन का आपने सजीव तथा प्रभावशाली वर्णन किया है। आपकी कहानियों में भारतीय जीवन का सजीव स्वरूप देखने को मिलता है।

प्रेमचंद के साहित्य पर गाँधीवाद का प्रभाव स्पष्ट है। आप प्रगतिवादी साहित्यिक विचारधारा से जुड़े हुए हैं। इस तरह साम्यवादी-समाजवादी प्रभाव से भी आपका साहित्य अछूता नहीं है। किन्तु इस पर भारतीय जीवन दर्शन की गहरी छाप है। प्रेमचंद मानते हैं कि साहित्यकार को समाज का चित्रण ही नहीं करना चाहिए वरन् अपने साहित्य द्वारा, उसका मार्गदर्शन भी करना चाहिए। पंचपरमेश्वर, पूस की रात’ ‘ठाकुर का कुआँ’, ‘ईदगाह’ इत्यादि कहानियों में भारतीय समाज पर प्रेमचंद की व्यापक दृष्टि का परिचय मिलता है। प्रेमचंद ने हिन्दी कहानी को नया स्वरूप प्रदान किया है। उसको तिलस्म और जासूसी के मायाजाल से मुक्त कर जीवन के वास्तविक धरातल पर उतारा है। समाज की समस्याओं को वर्णन का विषय बनाकर उसको यथार्थ स्वरूप प्रदान किया है। प्रेमचंद आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को मानने वाले कहानीकार हैं।

प्रेमचंद की भाषा सरल, बोलचाल की भाषा के निकट तथा विषयानुकूल है। उसमें तत्सम शब्दों के साथ उर्दू, अरबी, फारसी, अँग्रेजी आदि भाषाओं के साथ लोकभाषा के शब्द भी मिलते हैं। मुहावरों और कहावतों के प्रयोग में प्रेमचंद सिद्धहस्त हैं। प्रेमचन्द की शैली वर्णनात्मक है। यत्र-तत्र उसमें विचार-विवेचनात्मक शैली प्रयुक्त हुई है। हास्य-व्यंग्य के छींटे उसे सशक्त और प्रभावशाली बनाते हैं। हम कह सकते हैं कि प्रेमचंद हिन्दी के सशक्त कहानीकार हैं।

नशा लेखक-परिचय

जीवन-परिचय-

मुंशी प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 ई० में वाराणसी के लमही नामक गाँव में हुआ था। आपका वास्तविक नाम धनपतराय था। आप कायस्थ जाति के थे। प्रेमचन्द जब 8 वर्ष के थे तब उनकी माता तथा जब सोलह वर्ष के थे तो उनके पिता का देहान्त हो गया था। पन्द्रह वर्ष की उम्र में आपका विवाह हुआ किन्तु जमींदार परिवार की उनकी पत्नी उनको छोड़कर मायके चली गई और पुन: कभी नहीं लौटी। तब प्रेमचंद ने शिवरानी देवी नामक बाल विधवा से दूसरा विवाह किया।

प्रेमचन्द ने क्वींस कालेज से हाईस्कूल परीक्षा पास की। सन् 1910 में इण्टर तथा सन् 1919 में बी.ए. की परीक्षायें पास कौं। आप शिक्षा विभाग में सब डिप्टी इंस्पैक्टर बने। सन् 1920 में गाँधी जी के आंदोलन से प्रभावित होकर आपने सरकारी नौकरी छोड़ दी और साहित्य सेवा का अपना ध्येय बना लिया। 8 अक्टूबर, सन् 1936 को आपका देहावसान हो गया।

साहित्यिक परिचय-पहले आप उर्दू में नवाब राय नाम से लिखते थे। उनके कहानी संग्रह ‘सोजेवतन’ को अँग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया। तत्पश्चात् आप हिंदी में आए और प्रेमचंद नाम से लिखने लगे। उनकी पहली कहानी ‘पंच परमेश्वर’ ‘सरस्वती’ पत्रिका में छपी थी। आपने लगभग 300 कहानियाँ तथा आठ उपन्यास लिखे हैं। ‘गोदान’ उनका प्रसिद्ध उपन्यास है। प्रेमचन्द के कथा साहित्य में भारतीय जीवन का सफल चित्रण हुआ है। दलितों, किसानों, मजदूरों तथा महिलाओं की पीड़ा उनमें मुखरित हुई है। उनके कथा-साहित्य का फलक अत्यन्त व्यापक है। आप प्रगतिवादी विचारधारा के कथाकार हैं तथा गाँधीवाद से प्रभावित हैं। कथा-साहित्य को जासूसी तथा तिलिस्म की दुनिया से निकालकर उसे समाज की यथार्थ समस्याओं तक ले जाने का श्रेय प्रेमचंद को है। आपकी भाषा सरल, विषयानुरूप तथा पाउकों के समझ में आने वाली है। उसमें मुहावरे तथा लोकोक्तियों का प्रयोग सफलतापूर्वक हुआ है। तत्सम शब्दों के साथ-साथ उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी तथा लोकभाषा के शब्द उसमें मिलते हैं। आपने वर्णनात्मक शैली, विवरणात्मक शैली तथा संवाद शैली का प्रयोग किया है।

कृतियाँ-मानसरोवर (आठ भाग) तथा गुप्तधन (दो भाग) नामक कहानी संग्रहों में आपकी लगभग 300 कहानियाँ संग्रहीत हैं। आपने सेवासदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान आदि उपन्यासों की रचना की है। आपने तीन नाटक ‘कर्बला’, ‘संग्राम’ तथा ‘प्रेम की वेदी’ लिखे हैं। आपका निबन्ध-संग्रह विविध प्रसंग कुछ विचार है।

पाठ-सार

ईश्वरी एक जमींदार का पुत्र था और उसका मित्र एक गरीब क्लर्क का बेटा था। दोनों इलाहाबाद में बोर्डिंग में साथ रहते और पढ़ते थे। मित्र ईश्वरी की जमींदारी, अमीरी रहन-सहन का कटु आलोचक था परन्तु ईश्वरी का उसके प्रति सौहार्द्रभाव था। वह बहस करते-करते गर्म हो जाता था परन्तु ईश्वरी मुस्कराता रहता था। ईश्वरी के निमंत्रण पर वह उसके घर गया। वहाँ ईश्वरी ने उसका परिचय एक बड़ी रियासत के उत्तराधिकारी के रूप में कराया। इस सम्बन्ध में ईश्वरी ने जो बढ़ा चढ़ाकर बातें बताईं उसका विरोध उसने नहीं किया और सत्य बात नहीं बताई।

उस पर अपने कल्पित स्वरूप का नशा चढ़ रहा था। वह अपने आपको जमींदार कुँवर मान बैठा था। उसकी सादगी का कारण उसका महात्मा गाँधी का अनुयायी होना था। उसके सादा कपड़े गाँधी जी के खद्दर के कपड़े थे। . वह पढ़ाई-लिखाई के इरादे से ईश्वरी के साथ आया था परन्तु यहाँ उसका समय बजरे पर नदी में सैर करने, शिकार करने, शतरंज खेलने ऑदि में बीत रहा था। वह ईश्वरी की नकल करता था और नौकरों से वैसा ही आदर-सम्मान चाहता था, जैसा वे ईश्वरी का करते थे। एक बार ईश्वरी घर पर अपनी माता के साथ बातें करता रह गया था। रात के दस बजे तक बिस्तर नहीं लगाया गया था। मित्र ने भी अपने हाथों बिस्तर नहीं लगाया था। नींद आ रही थी। साढ़े ग्यारह बजे महरा आया। वह घर के काम में यह भूल गया था। ईश्वरी ने उसे बहुत बुरी तरह डाँटा।

वह तुनकमिजाज हो गया था। एक बार शाम के बाद अँधेरा हो गया था। लैम्प और माचिस पास ही रखी थी। परन्तु उसने लैम्प नहीं जलाई। वह प्रतीक्षा करता रहा कि कोई नौकर आए और लैम्प जलाए। संयोगवश उसी समय मुंशी रियासत अली वहाँ आ पहुँचे। उनको देखकर उसका पारा चढ़ गया और उनको बुरी तरह फटकारने लगा। मुंशी जी ने काँपते हाथों से लैम्प जला दी।

दशहरे की छुट्टियाँ समाप्त होने पर वे इलाहाबाद लौट रहे थे। गाड़ी में बहुत भीड़ थी। एक यात्री की पीठ पर गठरी थी। उसे रखने का स्थान डिब्बे में नहीं मिल रहा था। वह हवा लेने के इरादे से दरवाजे पर बार-बार आ जाता था। उसकी गठरी की रगड़ मित्र के चेहरे पर लगती थी। इससे उसे इतना क्रोध आया कि उसने उठकर उसे धक्का दिया और दो-तीन चाँटे गड़ दिए। इसका सभी यात्रियों ने प्रबल विरोध किया। ईश्वरी को भी यह बात अच्छी नहीं लगी और उसने अँग्रेजी में उसे उसके इस अनुचित काम के लिए डाँटा। तब कहीं उसका नशा कुछ-कुछ उतरने लगा।

शब्दार्थ-

(पृष्ठसं. 72)-
जायदाद = सम्पत्ति। जोंक = एक कीट। बंझा = अमरबेल। दलील = तर्क। लचर = कमजोर। औचित्य = उचित होना। अक्सर = प्रायः। गर्म = नाराज। बेदर्दी = दूसरों का दुःख न समझना। उद्दण्डता = अविनय। सौहार्द = मित्रता। लोकप्रेम = जनता से प्रेम। हैसियत = क्षमता। न्योता = निमंत्रण। जहीन = बुद्धिमान।

(पृष्ठ सं. 13)-
असामी = जमींदार से लगान पर खेती के लिए जमीन लेने वाला। मौलिक = मूल सम्बन्धी। मुआमला = मामला। सफर = यात्रा। रिफ्रेशमेंट = ताजगी। पारखी = समझदार, चतुर। खानसामा = बेरा। अदब = आदर॥

(पृष्ठ सं. 74)-
भोर = सबेरा। भद्र = सज्जन। बेगार = बिना मजदूरी लिए काम करना। लगेज = सामान। बदौलत = कारण। लिबास = कपड़े। भाँपना = अनुमान लगाना। गाढ़ा = मोटा हाथ का बुना कपड़ा। मिर्जई = बन्दगले का कोट जैसा एक कपड़ा। चमरोधा = गाँवों में पहने जाने वाला चमड़े का जूता। शहसवार = कुशल घुड़सवार।

(पृष्ठसं. 75)-
चोंचले = दिखावटीपन। मुटमरदी = जबरदस्ती। पोतड़े = फटे कपड़े। स्वांग = नाटक। बजरा = बड़ी नाव। जत्था = दल। बिछावन = बिस्तर॥

(पृष्ठ सं. 76)-
नदारद = गायब। लैम्प = मिट्टी के तेल का दिया। दैवयोग = संयोग। जुल्म = अत्याचार। अख्तियार = अधिकार। कुबेरोचित = धनवान मनुष्य के योग्य। बदतर = खराब।

(पृष्ठ सं. 77)-
जब्त = बर्दाश्त। नाजुक मिजाज = कोमल स्वभाव का। अव्वलदर्जा = फर्स्ट क्लास।

महत्वपूर्ण गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

1. ईश्वरी एक बड़े जमींदार का लड़का था और मैं एक गरीब क्लर्क का जिसके पास मेहनत-मजदूरी के सिवा और कोई जायदाद न थी। हम दोनों में परस्पर बहसें होती रहती थीं। मैं जमींदारों की बुराई करता, उन्हें हिंसक पशु और खून चूसनेवाली जोंक और वृक्षों की चोटी पर फूलने वाला बंझा कहता। वह जमींदारों का पक्ष लेता; पर स्वभावतः उसका पहलू कुछ कमजोर होता था; क्योंकि उसके पास जमींदारों के अनुकूल कोई दलील न थी। यह कहना कि सभी मनुष्य बराबर नहीं होते, छोटे-बड़े हमेशा होते रहते हैं और होते रहेंगे, लचर दलीलें थीं। किसी मानुषीय या नैतिक नियम से इस व्यवसाय का औचित्य सिद्ध करना कठिन था। मैं इस वाद-विवाद की गर्मा-गर्मी में अक्सर तेज हो जाता और लगने वाली बात कह जाता; लेकिन ईश्वरी हारकर भी मुस्कराता रहता था। मैंने उसे कभी गर्म होते नहीं देखा।

(पृष्ठ सं. 72)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘नशा’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इसक रचयिता मुंशी प्रेमचन्द हैं।

कहानीकार ने ईश्वरी तथा उसके मित्र का वर्णन किया है। दोनों साथ पढ़ते हैं। ईश्वरी जमींदार का तथा उसका मित्र एक क्लर्क का बेटा है। ईश्वरी का मित्र जमींदारों की बुराई करता है।

व्याख्या-कहानीकार कहते हैं कि ईश्वरी एक जमींदार का बेटा था और उसका मित्र एक गरीब क्लर्क का पुत्र था। उसके पास कोई सम्पत्ति नहीं थी। दोनों में आपस में बहस होती रहती थी। मित्र जमींदारों की बुराई करता था। वह उनको हिंसक पशु, खून चूसने वाली जोंक और पेड़ की चोटी पर फूलने वाली अमरबेल कहता था। ईश्वरी जमींदारों के पक्ष में बोलता था परन्तु स्वाभाविक रूप से उसका पक्ष कुछ कमजोर रहता था। कारण यह था कि उसके पास ऐसा मजबूत तर्क नहीं था जो जमींदारों के पक्ष को सही सिद्ध कर सके। वह कहता सभी मनुष्य बराबर नहीं होते। संसार में कोई छोटा तथा बड़ा होता है। ऐसा हमेशा से होता रहा है और भविष्य में भी यही होगा। उसके ये तर्क शक्तिशाली नहीं थे। जर्मीदारी के व्यवसाय को किसी भी मानवीय अथवा नीति-नियम के अनुसार उचित सिद्ध नहीं किया जा सकता। मित्र इस वाद-विवाद में उत्तेजित और नाराज हो जाता था और चुभने वाली बातें बोल जाता था परन्तु ईश्वरी हारने पर भी मुस्कराता रहता था। उसको कभी भी नाराज होते नहीं देखा गया।

विशेष-
(i) ईश्वरी तथा उसके मित्र के विचारों की तुलना की गई है। दोनों के विचार तथा स्वभाव भिन्न हैं।
(ii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(iii) शैली परिचयात्मक है।

2. मेरी वेश-भूषा और रंग-ढंग से पारखी खानसामों को पहचानने में देरी न लगी कि मालिक कौन है और पिछलग्गू कौन; लेकिन न जाने क्यों मुझे उनकी गुस्ताखी बुरी लग रही थी। पैसे ईश्वरी की जेब से गये। शायद मेरे पिता को जो वेतन मिलता है, उससे ज्यादा इन खानसामों को इनाम-इकराम में मिल जाता हो। एक अठन्नी तो चलते समय ईश्वरी ने ही दी। फिर भी मैं उन सभी से उसी तत्परता और विनय की प्रतीक्षा करता था जिससे वे ईश्वरी की सेवा कर रहे थे। ईश्वरी के हुक्म पर तो सब दौड़ते हैं लेकिन मैं कोई चीज माँगता हूँ तो उतना उत्साह नहीं दिखाते। मुझे भोजन में कुछ स्वाद न मिला। वह भेद मेरे ध्यान को संपूर्ण रूप से अपनी ओर खींचे हुए था।

(पृष्ठ सं. 73)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘नशा’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इसकी रचना प्रसिद्ध कहानीकार मुंशी प्रेमचन्द ने की है।

ईश्वरी के निमंत्रण पर उसका मित्र भी उसके साथ उसके घर गया। इस यात्रा का खर्च ईश्वरी ने उठाया था। वे द्वितीय श्रेणी में यात्रा करने वाले थे। वे गाड़ी आने से बहुत पहले स्टेशन पर पहुँच गए थे। इधर-उधर घूमने के बाद वे एक भोजनालय में भोजन के लिए पहुंचे।

व्याख्या-ईश्वरी के वस्त्र महँगे और शानदार थे। मित्र की वेशभूषा साधारण थी। भोजनालय के खानसामा बड़े चतुर थे। वे मित्र के वस्त्रों आदि को देखकर ही समझ गए थे कि वह मालिक नहीं मालिक के पीछे लगा रहने वाला है। मालिक तो ईश्वरी है। मित्र को खानसामों का ऐसा अभद्र व्यवहार अच्छा नहीं लग रहा था। भुगतान ईश्वरी ने ही किया था। मित्र के पिता के वेतन से अधिक इनाम आदि

खानसामों को मिल जाता था। चलते समय ईश्वरी ने ही आठ आने इनाम में उनको दिये थे। तब भी मित्र चाहता था कि वे उसके प्रति विनम्रता और तत्परता दिखायें, उतनी ही जितनी वे ईश्वरी के प्रति दिखा रहे थे। वे आदेश मिलते ही ईश्वरी की सेवा के लिए दौड़ पड़ते थे लेकिन मित्र के कुछ माँगने पर उसकी ओर ध्यान नहीं देते थे। अपनी उपेक्षा से आहत मित्र को भोजन में आनन्द नहीं आया। ईश्वरी और उसमें अन्तर है, यह बात उसे निरन्तर पूरी तरह अपनी ओर खींच रही थी॥

विशेष-
(i) ईश्वरी और उसके मित्र का आर्थिक स्तर भिन्न था। इस कारण भोजनालय में खानसामों की उपेक्षा से वह आहत हुआ।
(ii) भाषा उर्दू शब्दों से युक्त सरल तथा प्रवाहपूर्ण खड़ी बोली है।
(iii) शैली वर्णनात्मक है।

3. मैं चारपाई पर लेटा हुआ था। मेरे जीवन में ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि किसी ने मेरे पाँव दबाये हों। मैं इसे अमीरों के चोंचले, रईसों का गधापन और बड़े आदमियों की मुटमरदी और जाने क्या-क्या कह कर ईश्वरी का परिहास किया करता और आज मैं पोतड़ों का रईस बनने का स्वांग भर रहा था।

(पृष्ठ सं. 72)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘नशा’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। ‘नशा’ मुंशी प्रेमचन्द द्वारा लिखित एक कहानी है।

ईश्वरी ने अपने घरवालों तथा अन्य लोगों को बताया कि उसका मित्र एक धनी खानदान से है। इनकी ढाई लाख सालाना की. रियासत है। ये महात्मा गाँधी के अनुयायी होने के कारण सादगी-पसंद हैं। एक नाई ईश्वरी के पाँव दबाने आया तो उसने उसे अपने मित्र के पाँव दबाने को कहा।

व्याख्या-ईश्वरी का मित्र चारपाई पर लेटा था। उसके जीवन में कभी किसी ने उसके पैर नहीं दबाये थे। ऐसी घटना पहले कभी नहीं घटी थी। वह इस तरह की बातों को रईसों की प्रदर्शनप्रियता, धनवानों की मूर्खता और पैसे वालों की जबरदस्ती आदि अनेक नामों से पुकारता था। यह सब कहकर वह ईश्वरी का मजाक उड़ाया करता था। लेकिन आज वह स्वयं को फटे-पुराने कपड़े पहनने वाले सादगीपसंद धनवान व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत कर रहा था, सादा मामूली कपड़े पहनकर वह ढाई लाख सालाना आमदनी वाले का बेटा होने का नाटक कर रहा था।

विशेष-
(i) भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और मुहावरेदार है।
(ii) शैली विवरणात्मक है।
(iii) ईश्वरी ने मित्र को एक सादगीपसंद धनी व्यक्ति के रूप में परिचय कराया था। इस रूप का नशा धीरे-धीरे उस पर चढ़ रहा था।

4. एक दिन सचमुच यही बात हो गयी। ईश्वरी घर में था। शायद अपनी माता से कुछ बातचीत करने में देर हो गई। यहाँ दस बज गये, मेरी आँखें नींद से झपक रही थीं; मगर बिस्तर कैसे लगाऊँ ? कुँवर जो ठहरा। कोई साढ़े ग्यारह बजे महरा आया। बड़ा मुँहलगा नौकर था। घर के धन्धों में मेरा बिस्तर लगाने की उसे सुध न रही। अब जो याद आयी तो भागा हुआ आया। मैंने ऐसी डांट बतायी कि उसने भी याद किया होगा।

(पृष्ठ सं. 72)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘नशा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचायिता मुंशी प्रेमचन्द हैं। . ईश्वरी ने अपने मित्र को महात्म गाँधी के भक्त जमींदार-पुत्र के रूप में प्रचारित किया था। उस पर उसका प्रभाव भी हुआ था। अपने इस बनावटी रूप का नशा उस पर चढ़ चुका था। वह कुँवर साहब की तरह ही आचरण कर रहा था।

व्याख्या-लेखक कहते हैं कि एक दिन एक ऐसी ही घटना हुई। ईश्वरी घर पर था। संभवत: वह अपनी माँ से बातें करने में व्यस्त था। रात हो गई थी और दस बजने को थे। मित्र की आँखें नींद में झपक रही थीं। बिस्तर अभी तक बिछाया नहीं गया था। समस्या यह थी कि वह अपने हाथों से बिस्तर कैसे बिछायेगा ? वह तो कुंवर साहब था। ऐसा करना उसकी शान के खिलाफ था। साढ़े ग्यारह बजे के लगभग महरा आया। वह परिवार का मुँहलगा नौकर था। घर के कामों में लगा रह गया था और मित्र का बिस्तर बिछाना भूल गया था। जब याद आई तो दौड़ा हुआ आया। उसे देखकर मित्र महाशय गर्म हो गये और उसको कसकर डाँटा।

विशेष-
(i) ईश्वरी के मित्र पर अपने नए रूप का नशा चढ़ चुका था। वह स्वयं को कुंवर मानने लगा था।
(ii) प्रेमचन्द ने मित्र के मनोविज्ञान का सजीव चित्रांकन किया है।
(iii) भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण, वर्णनानुरूप खड़ी बोली है।
(iv) शैली वर्णनात्मक है।

5. इसी तरह ईश्वरी एक दिन एक जगह दावत में गया हुआ था। शाम हो गयी; मगर लैम्प न जला। लैम्प मेज पर रक्खा हुआ था। दियासलाई भी वहीं थी, लेकिन ईश्वरी खुद कभी लैम्प ने जलाता। फिर कुँवर साहब कैसे जलायें ? आँझला रहा। था, समाचार-पत्र आया रखा हुआ था। जी उधर लगा हुआ था पर लैम्प नदारद। दैवयोग से उसी वक्त मुंशी रियासत अली आ निकले। मैं उन्हीं पर उबल पड़ा, ऐसी फटकार बतायी कि बेचारा उल्लू….हो गया। तुम लोगों को इतनी फिक्र भी नहीं है, लैम्प तो जलवा दो। मालूम नहीं ऐसे कामचोर आदमियों को यहाँ कैसे गुजर होता है। मेरे यहाँ घंटे भर निर्वाह न हो।

(पृष्ठ सं. 76)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘नशा’ शीर्षक कहानी से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रेमचन्द हैं।

ईश्वरी ने अपने लोगों से अपने मित्र का परिचय एक ढाई लाख सालाना वाली रियासत के उत्तराधिकारी के रूप में कराया था। अपने इस बनावटी रूप का नशा मित्र पर चढ़ चुका था। वह ईश्वरी से भी अधिक तुनकमिजाज हो गया था।

व्याख्या–एक दिन ईश्वरी घर पर नहीं था। वह किसी स्थान पर एक दावत में गया था। शाम हो गई थी मगर कमरे में बत्ती नहीं जली थी। वहाँ लैम्प मेज पर रखा था तथा माचिस भी वहीं पर रखी हुई थी। मित्र ने स्वयं उठकर वह लैम्प नहीं जलाया क्योंकि ईश्वरी भी लैम्प स्वयं नहीं जलाता था। फिर कुँवर साहब बना वह लैम्प कैसे जलाता ? वह झुंझला तो रहा था किन्तु लैम्प नहीं जला रहा था। समाचार-पत्र आ चुका था, वहीं पर रखा था, पढ़ने की इच्छा भी थी परन्तु लैम्प नहीं था। संयोग से उसी समय मुंशी रियासत अली आ पहुँचे। मित्र उनको ही डाँटने लगा। उनको इतना फटकरा कि वह हक्का-बक्का हो गए। मित्र ने कहा कि वह बहुत लापरवाह है। उनको लैम्प जलवा देने की भी चिन्ता नहीं है। न जाने यहाँ का काम ऐसे कामचोरों से किस तरह चलता है। ऐसे लोगों को उसकी रियासत में एक घंटे भी गुजारा नहीं होगा।

विशेष-
(i) ईश्वरी के मित्र के बदले हुए रूप का सजीव चित्रण हुआ है।
(ii) अपने बनावटी रूप का जो नशा उस पर चढ़ा है, वही कहानी का वर्ण्य विषय है।
(iii) भाषा सरल और वर्णन के अनुरूप है।
(iv) शैली वर्णनात्मक एवं सजीव है।

6. एक आदमी, जिसकी पीठ पर बड़ा-सा गट्ठर बँधा था, कलकत्ते जा रहा था। कहीं गठरी रखने को जगह न मिलती थी। पीठ पर बाँधे हुए था। इससे बेचैन होकर बार-बार द्वार पर खड़ा हो जाता। मैं द्वार के पास ही बैठा हुआ था। उसका बार-बार आकर मेरे मुँह को अपनी गठरी से रगड़ना मुझे बहुत बुरा लग रहा था। एक तो हवा यों ही कम थी, दूसरे उस गॅवार का आकर मेरे मुँह पर खड़ा हो जाना मानो मेरा गला दबाना था। मैं कुछ देर तक जब्त किये बैठा रहा। एकाएक मुझे क्रोध आ गया। मैंने उसे पकड़कर पीछे धकेल दिया और दो तमाचे जोर-जोर से लगाये।

(पृष्ठ सं. 77)
सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित’नशा’ शीर्षक कहानी से लिया गया है। इसके रचयिता मुंशी प्रेमचन्द हैं।

लेखक ने मित्र की बनावटी स्वरूप में कैद छवि का चित्रण किया है। स्वयं को ढाई लाख सालाना वाली रियासत का उत्तराधिकारी समझकर वह मानवीयता भूल गया था और अहंकार से भर उठा था।

व्याख्या-छुट्टियाँ समाप्त होने पर ईश्वरी और उसका मित्र स्कूल लौट रहे थे। गाड़ी के तीसरे दर्जे में भारी भीड़ थी। एक यात्री की पीठ पर एक बड़ी-सी गठरी लदी थी। उसे रखने की कोई जगह डिब्बे में नहीं मिल रही थी। उसे पीठ पर रखे-रखे वह बेचैन हो रहा था। बेचैनी में वह बार-बार डिब्बे के दरवाजे पर आकर खड़ा हो जाता था। मित्र भी दरवाजे के पास वाली सीट पर बैठा था। इस तरह उसकी गठरी बार-बार उसके मुँह से रगड़ जाती थी। यह उसको बहुत बुरा लग रहा था। डिब्बे में हवा बहुत कम थी। ऊपर से वह गंवार आदमी बार-बार मित्र के मुँह के पास खड़ा हो जाता था। उसको लगा जैसे वह उसका गला दबा रहा है। कुछ देर तो वह अपने को रोके रहा और चुप बैठा रहा परन्तु यकायक उसको क्रोध आ गया और उसने उस आदमी को पकड़कर पीछे की ओर धक्का दिया और जोर-जोर से दो तमाचे जड़ दिए।

विशेष-
(i) भाषा सरल है। प्रवाहपूर्ण और विषयानुकूल पाठकों की समझ में आने वाली भाषा का प्रयोग किया गया है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) मित्र के ‘बनावटी कुँवर’ वाले रूप का चित्रण हुआ है।
(iv) अपने बनावटी स्वरूप से मित्र अप्रभावित नहीं रह सका है।

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