RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 भूषण

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 भूषण

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भूषण ने किसे श्रेष्ठ वीर माना है –
(क) अल्लाउद्दीन
(ख) औरंगजेब
(ग) मानसिंह
(घ) शिवाजी
उत्तर:
(घ) शिवाजी

प्रश्न 2.
‘चमू’ का अर्थ है –
(क) चक्र
(ख) चमड़ा
(ग) चमक
(घ) सेना
उत्तर:
(घ) सेना

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
शिवाजी ने किसे आतंकित कर रखा था ?
उत्तर:
शिवाजी ने शत्रुओं की स्त्रियों को आतंकित कर रखा था।

प्रश्न 2.
‘तीन बेर खाती ते वें तीन बेर खाती हैं।’ पटरानियों की ऐसी दशा किस कारण हुई ?
उत्तर:
पटरानियों की ऐसी दशा शिवाजी के आतंक के कारण हुई।

प्रश्न 3.
कंदमूल भोग करें कंदमूल भोग करें’ पंक्ति में कौन सा अलंकार है ?
उत्तर:
इस पंक्ति में यमक अलंकार है क्योंकि ‘कंदमूल भोग करें’ पंक्ति का दो भिन्न अर्थों में दो बार प्रयोग हुआ है।

प्रश्न. 4.
शिवाजी ने गढ़पतियों के साथ कैसा व्यवहार किया ?.
उत्तर:
शिवाजी ने गढ़ों को ध्वस्त किया, गढ़पतियों को दण्डित किया और कुछ को गढ़ों से भिखारी-सा बनाकर बाहर कर दिया।

प्रश्न. 5.
भूषण ने छत्रसाल की भुजाओं की समता किससे की है ?
उत्तर:
भूषण ने छत्रसाल की भुजाओं की समानता भुजगेश (सर्प) से की है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भुज भुजगेस की बैसंगिनी भुजंगिनी’ से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
इस पंक्ति में कवि ने छत्रसाल की बरछी की घातकता का वर्णन किया है। जैसे सर्प के साथ उसकी सर्पिणी आजीवन रहा करती है और आक्रामकों को डसा करती है, उसी प्रकार छत्रसाल की भुजा में सदा रहने वाली, उसकी बरछी भी, शत्रु सैनिकों को घेर-घेर कर हताहत किया करती है। इस पंक्ति में कवि ने छत्रसाल के बरछी चलाने की घोतक शैली का वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
‘तीन बेर खाती ते वें तीन बेर खाती है’ का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा कवि ने शिवाजी के आतंक से भयभीत मुगलों की बेगमों की दुर्दशा का वर्णन किया है। जो परदों में रहने वाली बेगमें कभी दिन में तीन- तीन बार भोजन किया करती थीं आज उनकी यह दशा हो गई है कि वनों में भटकती हुई तीन बेर के फलों से ही गुजारा कर रही हैं। उन्हें पेट-भर भोजन भी नहीं मिल पा रहा है।

प्रश्न 3.
शिवाजी के डर के कारण बेगमों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
शिवाजी के भय से बेगमों का सारा राजसी ठाट-बाट बिखर गया। जो बेगमें हरमों में शाही जिंदगी का आनंद ले रही थीं, जिन्होंने कभी बाहर निकलकर महलों के दरवाजे तक नहीं देखे थे, वे बिना वाहन के नंगे पैर-रास्तों पर भागी चली जा रही थीं। जिनको कभी बाहर की हवा तक नहीं छू पाती थी, वे ही बेगमें हवा से अस्त-व्यस्त वस्त्रों में लाखों की भीड़ में नंगी छाती को नहीं ढक पा रही थीं। सभी बेगमों पर शिवाजी का आतंक हावी था।

प्रश्न 4.
‘नासपाती खाती तें वनासपाती खाती हैं।’ पंक्ति को अर्थ लिखिए।
उत्तर:
नाशपाती एक प्रसिद्ध फल है। कवि का उद्देश्य इस पंक्ति द्वारा मुगल-बेगमों की शिवाजी के भय से हुई दुर्दशा को दिखाना है। जो बेगमें कभी बड़े शाही अंदाज में नाशपातियाँ खाया करती थीं, आज उनकी यह दशा हो गई है कि वे जंगलों में वनस्पतियाँ (पौधे, घास, जड़े) खाकर पेट की आग शांत कर रही हैं। मुगलों के सारे हरम शिवाजी के आतंक से नरम पड़ गए हैं।

प्रश्न 5.
छत्रसाल के प्रताप का वर्णन तीन पंक्तियों में कीजिए।
उत्तर:
छत्रसाल अत्यन्त तेजस्वी और प्रतापी राजा थे। उनके प्रताप के सनने परम तेजस्वी सूर्य का ताप भी मंद प्रतीत होता था। उनके प्रताप से दुष्ट लोग मन ही मन बड़े भयभीत रहा करते थे। वे लोगों को किसी भी प्रकार से सताने का साहस नहीं करते थे।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूषण का काव्य वीर रस प्रधान है’ उक्त कथन की सार्थकता पर विचार कीजिए।
उत्तर:
कवि भूषण की कविता वीररस का पर्यायवाची बन गई है। वीर रस की चर्चा होते ही कवि भूषण का काव्य ही सर्वप्रथम ध्यान में आता है। हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित भूषण के छंदों में भी वीररस की प्रधानता है। भूषण के चरित नायक महाराज शिवाजी और वीर छत्रसाल हैं। दोनों ही इतिहास में अपनी वीरता, निर्भीकता और युद्ध कौशल के लिए प्रसिद्ध हैं। ये दोनों शूरवीर कवि भूषण के वीर रसात्मक काव्य में ‘आश्रय’ हैं। वीररस के प्रेमी पाठ्कों और श्रोताओं को भी ‘आश्रय’ माना जा सकता है। मुगल बादशाह औरंगजेब, शेख, सैयद, मुगल और पठान आदि ‘आलम्बन’ हैं।

इन शत्रुपक्षीय लोगों के क्रिया-कलाप ही ‘उद्दीपन’ हैं तथा वीर शिवाजी और छत्रसाल की प्रतिक्रियाएँ ‘ विभाव’ के अंतर्गत आती संकलित पदों में शत्रु के गढ़ों को ध्वस्त करना, उन्हें दण्डित करना, शत्रुपक्षीय राजाओं का भयभीत होना, छत्रसाल का शत्रुओं पर आक्रमण और युद्ध, उनकी बरछी का कमाल आदि घटनाएँ वीररस के संचार में सहायक हैं। अत: यह कथन सर्वथा उपयुक्त है कि भूषण का काव्य वीररस प्रदान है। संकलित छंदों में शिवाजी से आतंकित स्त्रियों की दशा, शिवा का हिन्दू धर्म-संरक्षक-स्वरूप तथा छत्रसाल की दानशीलता आदि के वर्णन इसके कुछ अपवाद माने जा सकते हैं।

प्रश्न 2.
भूषण की काव्य कला की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भूषण हिन्दी कविता के रीतिकाल की समय सीमा में आते हैं किन्तु उन्होंने लीक से हटकर काव्य रचना की। उन्हीं के अनुसार वाणी (कविता) को कलियुग के कवियों ने साधारण लोगों के गुणगान से अपवित्र कर दिया था। उन्होंने वाणी को शिवाजी और छत्रसाल जैसे राष्ट्र-नायकों के चरित्र-सरोवर में स्नान कराके पुनः पवित्र किया। शृंगार के पंक से कविता को निकालकर भूषण ने वीर रस के मानसरोवर में स्थापित किया फिर भी रीतिकालीन प्रवृत्तियों का कुछ प्रभाव उनकी काव्य-कला पर देखा जा सकता है।

भाषा-भाषा पर भूषण का पूर्ण अधिकार है। उन्होंने व्याकरण की उपेक्षा करके भाव-उत्कर्ष के लिए शब्दों को स्वतंत्रता से तोड़ा-मरोड़ा है। अरबी, फारसी, बुंदेली आदि भाषाओं के शब्द सहज भाव से अपनाए हैं। उनकी भाषा वीर रस के काव्य के लिए सर्वथा उपयुक्त है। शैली-मुक्तक छंद शैली में रचना करते हुए भूषण ने रीतिकालीन अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किए हैं। शिवाजी के आतंक से त्रस्त मुगल बेगमों के वर्णन ऐसे ही हैं भूषण भनत शिवराज वीर तेरे त्रास नगन जड़ाती ते वै नगन जड़ाती हैं। इसी प्रकार छत्रसाल का आक्रमण तथा उसकी बरछी चलाने का कौशल भी अतिशयोक्तिपूर्ण है। अलंकार- भूषण को अनुप्रास तथा यमक अलंकार विशेष प्रिय हैं। इनके द्वारा उन्होंने भाषा को वीररस वर्णन के अनुकूल बनाया पच्छी पर छीने ऐसे परे परछीने बीर, तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के। रसयोजना-भूषण की कविता का प्रधान रस वीर रस ही है। युद्धवीर, दानवीर, धर्मवीर आदि वीरों के विविध रूपों और कार्यों का उन्होंने वर्णन किया है। उनकी भाषा और शैली वीररस के अनुरूप है।

भाव-वैभव-भूषण की कविता का मुख्य उद्देश्य शिवाजी महाराज और छत्रसाल जैसे अन्याय विरोधी और वीर पुरुषों को प्रकाश में लाना था। उन्होंने दोनों को राष्ट्रीय नायकों के रूप में प्रतिष्ठित करने का पूरा प्रयास किया है। कवि मानव मनोविज्ञान का पारखी है। शिवाजी के त्रास से व्याकुल मुगल बेगमों की दशा का वर्णन अत्युक्तिपूर्ण होते हुए भी सजीव है। शिवाजी और छत्रसाल दोनों ही दानवीर और दुर्बलों के रक्षक हैं। इस प्रकार भूषण की काव्य-कला की अनेक विशेषताएँ मन को आकर्षित करती हैं।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
(क) ऊँचे घोर ……….. जड़ाती हैं।
(ख) चाक चक ……….. महिपाल की
(ग) भुज भुजगेस ……….. खलन के
(घ) अंदर तें …………… खाती हैं।
उत्तर:
संकेत-उक्त पद्यांश की व्याख्याओं के लिए व्याख्या प्रकरण का अवलोकन कर स्वयं लिखें।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कन्दमूल भोग करें, कन्दमूल भोग करें’ में अलंकार है –
(क) उपमा
(ख) अनुप्रास
(ग) यमक
(घ) रूपक
उत्तर:
(ग) यमक

प्रश्न 2.
शिवाजी की जीत के नगाड़े की ध्वनि सुनकर कर्नाटक के राजा|
(क) उत्साह से भर गए,
(ख) युद्ध की तैयारी करने लगे।
(ग) सिंहल द्वीप के पास जा पहुँचे
(घ) किलों में बंद हो गए।
उत्तर:
(ग) सिंहल द्वीप के पास जा पहुँचे

प्रश्न 3.
‘बेद राखे विदित पुरान परसिद्ध राखे’ का अर्थ है-
(क) वेदों और पुराणों का प्रचार किया।
(ख) वेदों और पुराणों को प्रसिद्ध बनाए रखा।
(ग) वेदों और पुराणों का लोप नहीं होने दिया।
(घ) वेदों और पुराणों की शिक्षा का प्रबंध किया।
उत्तर:
(ग) वेदों और पुराणों का लोप नहीं होने दिया।

प्रश्न 4.
छत्रसाल की सेवा कौन करने लगे ?
(क) युद्ध में पराजित शत्रु
(ख) गुणों पर मुग्ध राजा लोग
(ग) दान से संतुष्ट लोग
(घ) बन्दी बनाए गए सैनिक
उत्तर:
(ख) गुणों पर मुग्ध राजा लोग

प्रश्न 5.
छत्रसाल के किस शस्त्र ने शत्रुओं को परकटे पक्षी जैसा बना दिया
(क) तलवार ने
(ख) भाले ने
(ग) बरछी ने
(घ) फरसे ने
उत्तर:
(ग) बरछी ने

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी’ का क्या अर्थ है ?
उत्तर:
इस पंक्ति का अर्थ है, ऊँचे-ऊँचे भवनों या महलों में निवास करने वाली मुगलों की बेगमें।

प्रश्न 2.
आभूषण के भार से जिनके अंग शिथिल रहते थे, उनका शिवाजी के आतंक से क्या हाल हो गया ?
उत्तर:
शिवाजी के आतंक से उनको भोजन मिलना भी दुर्लभ हो गया और भूख के मारे उनके शरीर दुर्बल हो गए।

प्रश्न 3.
महाराज शिवाजी ने किनको भिखारी जैसा बनाकर छोड़ दिया ?
उत्तर:
शिवाजी महाराज ने मुगल गढ़पतियों को भिखारी जैसा बनाकर छोड़ दिया।

प्रश्न 4.
अहंकारी पठानों का शिवाजी ने क्या हाल किया ?
उत्तर:
शिवाजी ने उन्हें गाँव के पटवारियों जैसा बना डाला।

प्रश्न 5.
‘दुग्ग पर दुग्गे जीते सरजा शिवाजी गाजी’ का आशय क्या है ?
उत्तर:
गर्जना करने वाले या विजेता शिवाजी ने मुगलों के, एक के बाद एक, अनेक किले जीत लिए।

प्रश्न 6.
बीजापुर, गोलकुण्डा और दिल्ली के सरदारों और शासकों का शिवाजी की विजयों को सुनकर क्या हाल हुआ ?
उत्तर:
इन सभी शासकों के हृदय शिवाजी के आतंक से अनार की भाँति फट गए।

प्रश्न 7.
‘ऐसी परी नरम हरम बादसाहन की’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति का आशय है कि शिवाजी की धाक सुनकर, मुगल बादशाहों की बेगमें सारे ठाट-बाट भूलकर आम औरतों की तरह रहने को मजबूर हो गईं।

प्रश्न. 8.
शिवाजी ने हिन्दुओं की किन-किन वस्तुओं की रक्षा की ?
उत्तर:
शिवाजी महाराज ने वेदों, पुराणों, राम नाम, हिन्दुओं की चोटी और हिन्दू सैनिकों की आजीविका की रक्षा की।

प्रश्न. 9.
शिवाजी ने अपनी तेग (तलवार) के बल पर किसकी रक्षा की ?
उत्तर:
मुगल शासकों द्वारा हड़पे जा रहे छोटे-छोटे राजाओं के राज्यों की सीमा को शिवाजी ने अपनी तलवार के बल पर बचाया।

प्रश्न. 10.
वीर छत्रसाल की विजय के नगाड़े की ध्वनि का शत्रुओं की स्त्रियों पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
छत्रसाल की विजय के सूचक नगाड़ों की ध्वनि सुनकर शत्रुओं की स्त्रियाँ भवनों के परकोटे फलाँग-फलाँग कर भागने लर्गी।

प्रश्न 11.
चाकचकचमू के अचाकचक चहुँ ओर’ पंक्ति में कौन सा अलंकार है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है, क्योंकि ‘च’ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है।

प्रश्न 12.
जंग में जीत सकने वाले राजा भी भेंट आदि देकर छत्रसाल की सेवा क्यों करने लगे ?
उत्तर:
छत्रसाल के बड़प्पन और छोटे राजाओं के संरक्षण को देखकर अनेक पराक्रमी राजा भी छत्रसाल को सम्मान देने लगे।

प्रश्न 13.
कवि ने ‘कबड़ी के खेलवारन लौं’ किसके लिए कहा है ?
उत्तर:
कवि ने छत्रसाल के आगे बढ़कर शत्रु पर प्रहार करने वाले, छत्रसाल के साहसी सैनिकों को कबड्डी के खिलाड़ियों जैसा बताया है।

प्रश्न 14.
‘ईस की जमाति’ से कवि का क्या आशय है ?
उत्तर:
ईस की जमाति’ का आशय युद्ध क्षेत्र में काली के साथ आए शिव के गण हैं जो नरमुण्डों के लिए जोर आजमा रहे हैं।

प्रश्न 15.
महाराजा छत्रसाल के हाथियों की गर्जना से किनके हृदयों को चोट लग रही है ?
उत्तर:
छत्रसाल के हाथियों की गर्जना सुनकर, चारों दिशाओं में स्थित ‘दिग्गजों के हृदयों को लज्जा के कारण चोट-सी लग रही

प्रश्न 16.
आफताब किसके प्रताप से मलीन हो रहा है ?
उत्तर:
आफताब अर्थात् सूर्य छत्रसाल के प्रताप के सामने कान्तिहीन-सा लगता है।

प्रश्न. 17.
छत्रसाल की दानवीरता का कवि भूषण ने क्या उदाहरण दिया है ?
उत्तर:
कवि ने कहा है कि छत्रसाल ने साजों से सुसज्जित करके हाथियों, घोड़ों और पैदलों की पंक्तियाँ दान में दी हैं।

प्रश्न. 18.
कवि भूषण ने ‘साहू कों सराहों कै सराहौं छत्रसाल को’ ऐसा क्यों कहा है ?
उत्तर:
साहू और छत्रसाल दोनों ने ही भूषण का सम्मान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इसी कारण भूषण ने ऐसा कहा है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न. 1.
शिवाजी के आतंक से मुगले घरानों की स्त्रियों पर क्या संकट आ गया ?
उत्तर:
शिवाजी की मुगल बादशाह औरंगजेब के विरुद्ध निरंतर होती विजयों से मुगलों की बेगमें अत्यन्त भयभीत हो गईं। उनको लगा कि शिवाजी का आक्रमण उन पर भी हो सकता है। अत: वे महलों को छोड़कर पर्वतों और जंगलों में छिपकर रहने लगीं। शाही हरमों में आरामदायक जीवन बिताने वाली ये बेगमें जंगलों में बेर आदि खाकर गुजारा करने लगीं। इनके शरीर भूख के मारे दुर्बल हो गए। जाड़ों में पूरे वस्त्र,न होने से वे ठंड से काँप-काँप कर समय बिता रही थीं।

प्रश्न. 2.
शिवाजी ने मुगल साम्राज्य के किलेदारों, सरदारों, घमंडी मुगलों, पठानों और सहायक राजाओं का क्या हाल किया ?
उत्तर:
शिवाजी ने अनेक गढ़ों को ध्वस्त कर दिया। गढ़ों के स्वामियों को दण्ड दिया और अनेकों को भिखारी जैसा बनाकर छोड़ दिया। शेख, सैयद और पंचहजारी मनसबदारों को साधारण आदमियों की तरह पकड़-पकड़ कर बंदीगृहों में डाल दिया। बड़ी शान से रहने वाले मुगलों, पठानों और औरंगजेब के पक्ष के राजाओं को महतों, महाजन और पटवारी जैसा बना डाला। इस प्रकार बादशाह औरंगजेब के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाई।

प्रश्न 3.
उत्तर तथा दक्षिण भारत में औरंगजेब के अधीन प्रशासन करने वाले सूबदारों, राजाओं और सरदारों पर शिवाजी की निरंतर होती विजयों का क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
दुर्ग पर दुर्ग जीतते हुए वीर शिवाजी की विजयों की सूचना देने वाले नगाड़ों की ध्वनि कान में पड़ने पर दक्षिण में कर्नाटक प्रदेश के सारे राजा, डरकर दूर सिंहल (श्रीलंका) के समीप जा पहुँचे। शिवाजी ने पनारे वाले पराक्रमी योद्धाओं को भी ठिकाने लगा दिया, यह खबर सुनकर सितारागढ़ के अधिपति की आँखों की पुतलियाँ भय से घूमने लगीं। बीजापुर, गोलकुण्डा ही नहीं दिल्ली के मीरों और सरदारों के दिल भी घबराहट से पके अनारों की तरह चटकने लगे।

प्रश्न 4.
बादशाहों के हरमों में सदा परदे में रहने वाली और नाशपातियों का स्वाद लेने वाली बेगमें ‘वनासपाती’ खाकर क्यों गुजारा करने लगीं ?
उत्तर:
मुगल बादशाहों के हरमों में शाही जिन्दगी बिताने वाली बेगमों ने जब शिवाजी की निरंतर होती विजयों के बारे में सुना तो वे हरमों से निकल-निकल कर जान बचाने को भागने लगीं। जिन मुगलानियों ने कभी महल का द्वार तक नहीं देखा था। कभी पैदल नहीं चलीं, वे ही अब नंगे पैर भागी जा रही थीं। उन्हें अपने अस्तव्यस्त वस्त्रों को सम्हालने का भी होश न था। उनकी ऐसी दुर्दशा हो रही थी कि स्वादिष्ट फलों का आनन्द लेने वाली वे स्त्रियाँ घास-पत्ते खाकर अपनी भूख मिटा रही थीं।

कवि ने इस दृश्य का आलंकारिक वर्णन किया है। कवि कहता है-यदि समद की सेना समुद्र के समान थी तो बुंदेलों की चमचमाते भालों और तलवारों से युक्त सेना, समुद्र के जल को जलाने वाली बड़वाग्नि (पानी में जलने वाली आग की लपटों के समान प्रतीत हो रही थी।

प्रश्न 5.
भूषण ने शिवाजी को हिन्दू धर्म-संस्कृति का संरक्षक कैसे बताया है ?
उत्तर:
औरंगजेब एक कट्टर मुगल बादशाह था। उसने हिन्दू प्रजा को कष्ट देने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। शिवाजी ने औरंगजेब के अत्याचारों का डटकर विरोध किया। उन्होंने हिन्दुओं के धर्म ग्रन्थ वेदों और पुराणों को नष्ट होने से बचाया। राम का नाम लेने की स्वतंत्रता प्रदान की। हिन्दुओं को अपने धार्मिक चिह्नों, जैसे-चोटी, जनेऊ, माला आदि को धारण करने का अधिकार दिया और हिन्दू सैनिकों को सेना में स्थान देकर उनकी आजीविका को बचाया।

प्रश्न. 6.
शिवाजी ने अपनी तलवार के बल पर पीड़ितों की रक्षा कैसे की ? संकलित काव्यांश के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
शिवाजी ने औरंगजेब के शासन में निरंकुश बने हुए मुगलों को मोड़कर रख दिया। उनका सफाया कर दिया। बादशाहों को भी अपने आतंक से, नियंत्रण में रहने को विवश कर दिया। शत्रुओं को कठोर दण्ड देकर प्रभावहीन बना डाला। साथ ही सुपात्रों की सहायता के लिए सदा दान देना भी जारी रखा। वीर शिवाजी ने अपनी तलवार के बल पर छोटे राजाओं के राज्यों की रक्षा की। देवमंदिरों को टूटने से बचाने के साथ-साथ उन्होंने हिन्दू धर्म को भारत में सुरक्षा प्रदान की।

प्रश्न 7.
वीर छत्रसाल द्वारा शत्रुओं पर चढ़ाई करने के समय के दृश्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जब छत्रसाल ने शत्रुओं पर आक्रमण किया तो उनकी सेना के हाथी पूरे उत्साह के साथ सेना के आगे चले। छत्रसाल की विशाल सेना के चलने से धूल उड़कर आकाश में छाने लगी। उस समय ऐसा लगा जैसे भादों मास के बादलों की घटा आकाश में छा गई हो। छत्रसाल के योद्धा अपने भालों और तलवारों को घुमा रहे थे। वे शस्त्र ऐसे लग रहे थे जैसे भादों की घटा में बिजलियाँ चमक रही हैं।

प्रश्न 8.
छत्रसाल की सेना के साथ बजते चल रहे नगाड़ों की ध्वनि का, शत्रुओं पर क्या प्रभाव पड़ रहा था ?
उत्तर:
सैनिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए छत्रसाल की सेना के साथ नगाड़े बजते चल रहे थे। उन नगाड़ों की धमक शत्रुओं में खलबली पैदा कर रही थी तथा रावों के दिलों पर नगाड़ों की धमक घन (बड़ा हथौड़ा) चोटों के समान लग रही थी। शत्रुओं की, भवनों के अंदर रहने वाली स्त्रियाँ उन धमकों से घबराकर घरों के बाहर बने परकोटों को लाँघ-लाँघकर भाग रही थीं।

प्रश्न. 9.
‘वीर छत्रसाल की धाक से ही शत्रु घबराए रहते थे।’ संकलित छंदों में कवि भूषण ने इस विषय में क्या कहा है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि भूषण ने वीर छत्रसाल की धाक के प्रभाव का वर्णन करते हुए कहा है कि शत्रुओं की सब ओर से सुरक्षित सेना को भी विचलित और सशंकित करते हुए, छत्रसाल की धाक या आतंक चारों ओर मँडराता रहता था। शत्रु अपने को असुरक्षित अनुभव किया करते थे। छत्रसाल की धाक ने बादशाह तक को शक्तिहीन-सा बना दिया था। अमीर-उमरावों का तो कहना ही क्या था ? वे तो छत्रसाल की घातक तलवार का सामना करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाते थे।

प्रश्न. 10.
‘हवै कै दाम देवा भूप’ से कवि भूषण का क्या आशय है ? संकलित छंद के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि का आशय है कि जो राजा लोग शूरवीर थे और युद्ध में विजयी रहा करते थे, उन्होंने अब छत्रसाल की उदारता के बारे में जाना तो वे भी छत्रसाल के प्रशंसक हो गये। छत्रसाल छोटे राजाओं को स्थापित होने में और उनके उत्थान में सहायता करते थे। छत्रसाल के इस बड़प्पन को देखकर पराक्रमी राजा भी उन्हें भेंट या कर देकर उनके अधीन हो गए।

प्रश्न. 11.
पठानों से युद्ध में, छत्रसाल और उनके सैनिकों ने किस प्रकार अपने साहस और युद्ध-कौशल का परिचय दिया?
उत्तर:
वेतबा के रणक्षेत्र में छत्रसाल का अब्दुस्समद नामक पठान की सेना से सामना हुआ। इस युद्ध में छत्रसाल ने पठानों पर क्रुद्ध होकर आक्रमण किया। उधर पठानों ने भी छत्रसाल की सेना पर घात लगाकर झपट्टे मारे । छत्रसाल के सैनिकों ने भी अपने अपूर्व साहस का परिचय देते हुए, कबड्डी के खिलाड़ियों की भाँति समद की सौ हजार की सेना पर हजारों बार भीतर घुसकर चोटें कीं। युद्ध की देवी महाकाली मनचाहा दृश्य (रक्तपात और मारकाट) देखकर छत्रसाल को आशीर्वाद देने लगी। शिव के गण जो काली के साथ आए थे वे नरमुण्डों के लिए आपस में खींचतान करने लगे। वे अपने स्वामी शिव को नरमुण्ड भेंट कर प्रसन्न करना चाहते थे।

प्रश्न. 12.
समद लौं समदं की सेना त्यों बुंदेलन की सेनैं समसेरै भईं बाड़व की लपटैं।’ इस पंक्ति का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अब्दुस्समद की सेना में सौ हजार (एक लाख) सैनिक थे। उनकी सेना समुद्र जैसी विशाल लग रही थी। लेकिन शत्रु सेना की इतनी बड़ी संख्या देखकर बुंदेले सैनिक तनिक भी शंकित नहीं हुए। वे अपने चमकते भालों और तलवारों के प्रहारों से समद की सेना पर भारी पड़ने लगे।

प्रश्न. 13.
कवि भूषण ने वीर छत्रसाल के बरछी चलाने के घातक स्वरूप का किस प्रकार वर्णन किया है ? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
भूषण कहते हैं कि छत्रसाल के हाथ में सदा रहने वाली उनकी बरछी, सर्प के साथ आजीवन रहने वाली सर्पिणी के समान प्रतीत होती थी। वह शत्रु-सैनिकों को घेर-घेर कर डसती (मारती) थी। छत्रसाल बरछी को इतने बल के साथ चलाते थे कि वह लोहे के कवचों और हाथियों की झूलों को चीरती हुई शरीर के पास उसी प्रकार निकल जाती थी जैसे मछली जल के प्रवाह को चीरती हुई तैर कर पार निकल जाया करती है। महाराज छत्रसाल के पराक्रम का वर्णन कर पाना सम्भव नहीं था। उनकी बरछी से आहत होकर, दुष्ट शत्रु, रणभूमि पर, पंखकटे पक्षियों के समान अशक्त पड़े हुए दिखाई दिया करते थे।

प्रश्न. 14.
कवि भूषण ने छत्रसाल के गुणों का वर्णन किस प्रकार किया है ? पाठ्य-पुस्तक में संकलित छंद के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
कवि भूषण कहते हैं कि महाराज छत्रसाल परम तेजस्वी, यशस्वी और प्रतापी शासक हैं। उनके प्रताप के सामने सूर्य का प्रताप भी कान्तिहीन दिखाई देता है। उनके प्रताप से दुष्ट लोग सदा भयभीत रहते हैं। छत्रसाल बड़े उदारहृदय दानी हैं। उन्होंने साज से सजे हुए हाथियों, घोड़ों और पैदलों की पंक्तियाँ दान में दी हैं। छत्रसाल के गुणों पर मुग्ध होकर भूषण कहते हैं कि अब वह केवल शिवाजी महाराज और छत्रसाल की ही सराहना करेंगे, अन्य किसी की नहीं।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 4 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न. 1.
पाठ्य-पुस्तक में संकलित छंदों के आधार पर महाराज शिवाजी के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संकलित छंदों में कवि भूषण ने शिवाजी महाराज को जुझारू योद्धा, युद्ध कुशल, अत्याचारियों के दृढ़ विरोधी, सुशासक और हिन्दू धर्म रक्षक राष्ट्रीय नायक के रूप में प्रस्तुत किया है। शिवाजी बाढ़ पर गढ़ जीत कर औरंगजेब की बादशाहत को चुनौती देने वाले जुझारू योद्धा हैं। तानाशाह किलेदारों को दण्डित करके और जनता का उत्पीड़न करने वाले शेख, सैयद, पठान और राजाओं को उन्होंने पकड़-पकड़ कर बन्दीगृह में डाल दिया। शिवाजी की युद्ध कला से, दिल्ली से लेकर दक्षिण में बीजापुर, गोलकुण्डा और कर्नाटक तक के शासक और सूबेदार सदा आतंकित रहते थे।

शिवाजी की धाक से शत्रु की स्त्रियों और बादशाह के हरम की बेगमों का जीना कठिन हो गया था। शिवाजी ने हिन्दूधर्म के ग्रन्थों की रक्षा की, राम नाम लेने की स्वतंत्रता प्रदान की और उनको धर्मिक चिह्नों-चोटी, जनेऊ तथा माला आदि के धारण करने में सुरक्षा प्रदान की। एक राष्ट्रीय नायक के समान उन्होंने, अत्याचारी मुगल शासकों की मनमानी समाप्त कर दी, छोटे राजाओं के राज्यों की रक्षा की और हिन्दू देवालयों तथा हिन्दू धर्म पर होने वाले प्रहार समाप्त कर दिए।

प्रश्न 2.
पाठ्य-पुस्तक में संकलित छंदों के आधार पर वीर छत्रसाल के व्यक्तित्व का परिचय दीजिए।
उत्तर:
छत्रसाल राजा चंपतिराय के पुत्र थे। उन्होंने अपने पराक्रम से शत्रुओं को परास्त करते हुए अपने राज्य और प्रताप में वृद्धि की। छत्रसाल एक वीर योद्धा थे। उनसे सामना होने पर शक्तिशाली शत्रु भी सशंकित रहा करते थे। पठानों की विशाल सेना पर अपने युद्ध कौशल से उन्होंने विजय प्राप्त की। छत्रसाल उदार-हृदय शासक थे। उन्होंने छोटे हिन्दू राजाओं की सहायता करके उन्हें शत्रुओं के विरुद्ध खड़ा किया। छत्रसाल के बड़प्पन से प्रभावित होकर अनेक राजाओं ने उनकी अधीनता स्वीकार कर ली।

छत्रसाल अस्त्र-शस्त्र संचालन में अत्यन्त कुशल थे। उनकी बरछी के अचूक प्रहारों से बलहीन होकर शत्रु सेना विखर जाती थी। वीर योद्धा होने के साथ-साथ छत्रसाल महान दानी भी थे। उन्होंने हाथी, घोड़े और पैदलों की कतारें दान में दे दीं। वह अपने दान से दीनजनों का पालन-पोषण करते थे। उनके प्रताप और धाक से दुष्ट लोग घबराते थे। इस प्रकार छत्रसाल का व्यक्तित्व अनेक मानवीय गुणों का भंडार था।

भूषण कवि परिचय।

जीवन परिचय-रीतिकालीन श्रृंगार प्रधान रचनाओं के बीच वीरत्व की हुंकार और शस्त्रों की झंकार सुनाने वाले कवि भूषण का जन्म सन् 1613 ई. में हुआ था। कवि चिंतामणि तथा मतिराम इनके भाई कहे जाते हैं। भूषण का नाम तो घनश्याम माना जाता है। ‘भूषण’ इनकी उपाधि थी। आज यह भूषण नाम से ही प्रसिद्ध हैं।

भूषण अनेक राजाओं के आश्रय में रहे किन्तु महाराज शिवाजी तथा राजा छत्रसाल से भूषण को विशेष सम्मान मिला। इसी कारण इन दो वीरों को भूषण की रचनाओं में सर्वाधिक स्थान मिला। अन्यायी मुगल बादशाह औरंगजेब को चुनौती देने वाले ये दोनों वीर भूषण के काव्य में राष्ट्रीय नायकों के रूप में प्रतिष्ठित हैं।

इनका देहावसाने सन् 1715 ई. में माना जाता है।

साहित्यिक परिचय-रचनाएँ-कवि भूषण की तीन काव्य रचनाएँ प्राप्त हुई हैं-शिवबावनी, शिवराज भूषण तथा छत्रसाल दशक। भूषण का सारा काव्य ब्रज भाषा में है। उन्होंने अरबी-फारसी शब्दों का मुक्त भाव से प्रयोग किया है। आवश्यकतानुसार शब्दों के रूप को खूब बदला है।

भूषण का काव्य वीररस से ओत-प्रोत है। उसमें पाठकों और श्रोताओं के हृदयों में वीरत्व की भावना जगाने की ऐसी स्वाभाविक क्षमता है कि वीररस की चर्चा होते ही ध्याने भूषण पर ही जाता है।

भूषण की कविता का मुख्य विषय शिवाजी महाराज की वीरता, दानशीलता और धर्म रक्षा आदि को तथा वीर छत्रसाल की युद्ध कुशलता का वर्णन करना रहा है।

पाठ-परिचय

पाठ्य-पुस्तक में संकलित प्रथम पाँच छंदों में शिवाजी की वीरता और आतंक का वर्णन है। प्रथम छंद में शत्रुओं की नारियों की शिवाजी के भय से हुई दुर्दशा का चित्रण है। द्वितीय छंद में औरंगजेब के गढ़पतियों की दयनीय दशा का चित्रण है। तीसरे छंद में शिवाजी के आतंक से कर्नाटक, बीजापुर, गोलकुण्डा आदि के शासकों के भयभीत होने का वर्णन है। चौथे छंद में बादशाह के हरम की बेगमों के भयभीत होकर भागने का वर्णन है। अंतिम पाँचवें छंद में शिवाजी को हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति के संरक्षक के रूप दिखाया गया

छत्रसाल को समर्पित पाँच छंदों में क्रमश: शत्रु पर आक्रमण करने, अनेक राजाओं पर विजय पाने, युद्ध में पराक्रम दिखाने, बरछी चलाने और दानशीलता आदि का वर्णन है।

शिवाजी का शौर्य

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

1.
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहनवारी,
ऊँचे घोर मंदर के अंदर रहती हैं।
कंदमूल भोग करें, कन्दमूल भोग करें,
तीन बेर खाती ते वै तीन बेर खाती हैं।
भूषन सिथिल अंग, भूषन सिथिल अंग,
बिजन डुलाती ते वै बिजन डुलाती हैं।
‘भूषन’ भनत सिवराज वीर तेरे त्रास,
नगन जड़ाती है वै नगन जड़ाती हैं।

कठिन शब्दार्थ-ऊँचे घोर= अत्यन्त ऊँचे। मन्दर = भवन, महल। मंदर = पर्वत की गुफा। कंदमूल = मिष्ठान्न, स्वादिष्ट वस्तुएँ। कन्दमूल = भूमि के अंदर से प्राप्त कंद और जड़े। तीन बेर = तीन बार। तीन बेर = तीन बेर के फल। भूषन = आभूषण, गहने। भूषन = भूख से। सिथिल अंग = दुर्बल अंग। बिजन = पंखे। डुलाती = हवा कराती। बिजन = निर्जन, जंगल। डुलाती = भटकती। भनत = कहते हैं। सिवराज = शिवाजी महाराज। त्रास = भय, आतंक। लगन = रत्नों की माला। जड़ती = गहनों को जड़वाती थी। ते = वे। नगन = नग्न, वस्त्र न होने से। जड़ाती = जाड़े में काँपती रहती है।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में ‘शिवाजी का शौर्य’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित कवि भूषण के छंदों से उद्धृत है। इस छंद में कवि भूषण’ ने शिवाजी के भय से व्याकुल शत्रु-नारियों की दयनीय दशा का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि’ भूषण’ कहते हैं-हे शिवाजी महाराज! आपके भय और आतंक से व्याकुल, शत्रुओं की स्त्रियों की दशा दयनीय हो गई है। जो बेगमें कभी ऊँचे महलों में निवास किया करती थीं; वे अब ऊँचे पर्वतों की गुफाओं में छिपकर रह रही हैं। जो स्त्रियाँ मेवा-मिष्ठान्न आदि स्वादिष्ट वस्तुओं का भोग लगाती थीं; आज वे वनों में खोद-खोद कर कंदमूल खा रही हैं। जो दिन में तीन-तीन बार खाया करती थीं; वे आज केवल तीन बेर के फल खाकर गुजारा कर रही हैं। जिनके शरीर कभी आभूषणों के भार से शिथिल रहा करते थे आज वे भूख के मारे दुर्बल अंग वाली हो गई हैं, जो कभी दासियों से पंखे हिलवाया करती थीं वे आज जंगलों में मारी-मारी फिर रही हैं। हे वीर शिवराज ! जो स्त्रियाँ कभी अपने गहनों में मोती, पन्ना, हीरे आदि बहुमूल्य रत्न जड़वाया करती थीं, आज वे बेचारी वस्त्र न होने के कारण जाड़ों में थर-थर काँपती रहती हैं।

विशेष-
(i) शत्रु-नारियों की दशा का बहुत बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया गया है।
(ii) शिवाजी के भय और आतंक का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।
(iii) पूरे छंद में अनुप्रास, अतिशयोक्ति तथा यमक अलंकार का चमत्कार पाठक और श्रोता को चमत्कृत करने वाला है।

2.
गढून गॅजाय, गढ़धरन सजाय करि,
छाँडि केते धरम दुवार दै भिखारी से।
साहि के सपूत पूत वीर सिवराजसिंह,
केते गढ़धारी किये वन वनचारी से।
‘भूषन’ बखानैं केते दीन्हें बन्दीखानेसेख,
सैयद हजारी गहे रैयत बजारी से।
महतो से मुगल महाजन से महाराज,
डाँडि लीन्हें पकरि पठान पटवारी से॥

कठिन शब्दार्थ-गढ़ = किला। पूँजाय = तोड़कर, डहाकर। गढ़धर = किलेदार, दुर्ग का प्रधान अधिकारी। सजाय = सजा देकर, दंडिन् करके। दुवार = द्वार। साहि= शाहू जी। केते = कितने ही। वनचारी = वनों में भटकने वाले, वनवासी। बन्दी खाने = कारागार में। सेख = शेख कहे जाने वाले मुसलमान। सैयद = मुसलमानों का एक वर्ग। हजारी = पंचहजारी, पाँच हजार तक के मनसबदार, सरदार या सामंत। गहे = पकड़ लिए। रैयत = प्रजा, आम लोग। बेजारी से = बाजार में घूमने वालों के समान। महतो = गाँव का प्रधान या मुखिया। महाजन = धनी व्यक्ति, ऋण देने वाला। डाँडि = दण्ड देकर, जुरमाना वसूल कर। पटवारी = गाँव की जमीन, उपज, लगान आदि का हिसाब रखने वाला कर्मचारी।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में शिवाजी का शौर्य’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित कवि भूषण रचित छन्दों में से अवतरित है। इस छन्द में कवि ने शिवाजी द्वारा औरंगजेब के किलेदारों, मनसबदारों तथा अहंकारी मुगलों को दण्डित किए जाने का वर्णन है।

व्याख्या-शिवाजी महाराज ने मुगल बादशाह औरंगजेब के अनेक गढ़ों को ध्वस्त करके उनके गढ़धारियों को दण्डित किया और कितनों ही को दया-धर्म से प्रेरित होकर गढ़ों के द्वारों से भिखारियों की भाँति निकाल दिया। शाहू जी के योग्य पुत्र वीर शिवाजी ने कितने की दुर्गपतियों को गढ़ों से बाहर निकालकर वन-वन भटकने वाले वनवासी बना दिया। कितने ही शेख मुसलमानों को बन्दीगृह में डाल लिया, सैयदों और पंचहजारी मनसबदारों को बाजार के आम आदमियों की तरह पकड़वा लिया। अहंकारी मुगलों को गाँव के मुखियों (मेहता) जैसा बना दिया। औरंगजेब के समर्थक राजाओं को महाजनों जैसा और पठानों को पटवारियों जैसा बना डाला। सभी का अहंकार चूर-चूर कर दिया।

विशेष-
(i) औरंगजेब के विभिन्न अधिकारियों और सहायकों को दण्डित करके शिवाजी द्वारा उसकी बादशाहत को चुनौती दिए। जाने का वर्णन हुआ है।
(ii) ‘गढ़न आँजाय गढ़धरन सजाय’ तथा ‘महतो से मुगल महाजन से महाराज’ में अनुप्रास अलंकार है। पूरे छंद में कवि ने उपमाओं की माला सी सजा दी है।

3.
दुग्ग पर दुग्ग जीते सरजा सिवाजी गाजी,
उग नाचे उग्ग पर रुण्ड-मुंड फरके।
‘भूषन’ भनत बाजे जीति के नगारे भारे,
सारे करनाटी भूप सिंहल लौं सरके।
मारे सुनि सुभट पनारेवारे उद्भट,
तारे लागे फिरन सितारे गढ़धर के।
बीजापुर वीरन के, गोकुण्डा धीरन के,
दिल्ली उर मीरन के दाड़िम से दरके।

कठिन शब्दार्थ-दुग्ग = दुर्ग, किलो। गाजी = विजेता। उग्ग = उरग, सर्प। ग्ग = उग्र, रुद्र या शिव। रुण्ड = धड़। मुण्ड = सिर। फरके = फड़कने लगे। भनत = कहते हैं। भारे = बहुत जोर से। करनाटी = कर्नाटक के। भूप = राजा। सिंहल = वर्तमान श्रीलंका। सरके = खिसकने लगे। सुभट = कुशल योद्धा। उद्भट = बड़ा भारी। तारे = आँखों की पुतलियाँ। सितारे = सितारा, दुर्ग का नाम। गढ़धर = किले का अधिपति। बीजापुर, गोकुण्डा (गोलकुण्डा) = दक्षिण की तत्कालीन रियासतें या राज्य। धीरन के = धैर्यशालियों के। उर = हृदय। दाड़िम = अनार। दरके = दरक गए, चटक गए।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरां में ‘शिवाजी का शौर्य’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित, कवि’ भूषण’ रचित छंदों में से उद्धृत है। इस छंद में कवि भूषण ने शिवाजी द्वारा मुगलों के दुर्गों पर विजय पाने का और विजयों की सूचना पाकर अन्य गढ़पतियों के भयभीत होने का वर्णन है। . व्याख्या-जब विजेता शिवाजी महाराज ने मुगलों के दुर्ग पर दुर्ग जीतना आरम्भ किया, तो युद्ध के देवता रुद्र के शरीर पर स्थित सर्प भी प्रसन्नता से नाचने लगे। यहाँ तक कि शिवाजी की वीरता से उत्तेजित होकर रणभूमि में पड़े धड़ और सिर भी फड़कने लगे। शिवाजी की विजय के नगाड़ों के भारी स्वर को सुनकर कर्नाटक के राजा घबराकर श्रीलंका के समीप जा पहुँचे। जब सितारा दुर्ग के स्वामी को पता चला कि शिवा की सेना ने पनारे वाले अत्यन्त युद्ध कुशल योद्धाओं को भी सुरलोक पहुँचा दिया, तो भय के मारे उसकी आँखों की पुतलियाँ घूमने लगीं। शिवाजी की निरंतर होती विजयों की सूचना पाकर दक्षिण के बीजापुर और गोलकुण्डा के वीर और धीरों तथा दिल्ली निवासी मुगल सरदारों के हृदय, घबराहट के मारे, पके अनार की भाँति चटखने लगे।।

विशेष-
(i) शिवाजी की विजयों का और उनकी विजयों से घबराए हुए मुगल अधिकारियों, दक्षिण के सूबेदारों और राजाओं की दशा का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन है।
(ii) भाषा वीररस का संचार करने वाली हैं। शब्दों को मनचाहा रूप प्रदान किया गया है। (उग्ग, दुग्ग)
(iii) अनुप्रास अलंकार तथा ध्वनि साम्य द्वारा आकर्षण उत्पन्न किया गया है। यथा-सिवाजी, गाजी; तारे, सिवारे; वीरन, धीरत, मीरन।
(iv) ‘दाड़िम से दरके’ में उपमा अलंकार है।

4.
अंदर ते निकसीं न मंदिर को देख्यो द्वार.
बिन रथ पथ ते उघारे पाँव जाती हैं।
हवा हू न लागती ते हवा ते बिहाल भईं
लाखन की भीरि में सम्हारतीं न छाती हैं।
‘भूषन’ भनत शिवराज तेरी धाक सुनि,
हयादारी चीर फारि मन झुझलाती हैं।
ऐसी परीं नरम हरम बादसाहन की,
नासपाती खातीं तें वनासपाती खाती हैं।

कठिन शब्दार्थ-निकसी = निकली। मंदिर = भवन, महल। रथ = एक वाहन। पथ = मार्ग। उघारे= नंगे। बिहाल = व्याकुल, परेशान। लाखन = लाखों। भीरि = भीड़। सम्हारती = सम्हालत, ठीक से ढककर रखतीं। धाक = दबदबा, आतंक। हयादारी = लज्जासूचक। चीर = वस्त्र। परीं नरम = घमंड दूर हो गया। हरम = बेगमें रानियाँ। नासपाती = नाशपाती फल। बनासपाती = वनस्पति, पत्तियाँ।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में ‘शिवाजी का शौर्य’ नामक शीर्षक के अंतर्गत संकलित कवि भूषण रचित छंदों में से उद्धृत है। इस छंद में शिवाजी की धाक से भयभीत बादशाहों की बेगमों के बेहाल हो जाने का वर्णन है। परदों में रहने वाली, नाज-नखरों वाली बेगमें अब वेपर्दा होकर नंगे पाँव चली जा रही हैं।

व्याख्या-कवि भूषण कहते हैं कि जिन औरतों ने कभी बाहर आकर महल का द्वार तक नहीं देखा था और जो बिना किसी वाहन के नहीं चला करती थीं, आज वही बादशाहों की बेगमें नंगे पैर मार्ग पर चली जा रही हैं। जिनको कभी बाहर की हवा तक नहीं लगती थी, सदा पर्दे में रहती थीं वे आज हवा से उड़ते अस्त-व्यस्त वस्त्रों को सम्हालते हुए बेहाल हुई जा रही हैं। जिनका एक अंग भी कपड़ों से बाहर नहीं रहता था, आज उन्हें ही लाखों की भीड़ में उघड़ी हुई छाती को ढकने का होश नहीं रहा है। हे वीर शिवाजी। तुम्हारी धाक सुनकर भयभीत, ये स्त्रियाँ, अपने लज्जासूचक वस्त्र, बुरके आदि को, शीघ्र चलने में बाधक देख, मन ही मन झुंझलाकर, उसे फाड़कर फेंक रही हैं। तुम्हारे आतंक से इन नाज-नखरे वाली बादशाही बेगमों का सारा घमंड दूर हो गया है। जो कभी नाशपाती आदि फल खाया करती थीं, वे आज घास, पत्ती आदि वनस्पतियाँ खाकर गुजारा कर रही हैं।

विशेष-
(i) कवि ने शाही घरानों की औरतों पर शिवाजी के आतंक का मनोवैज्ञानिक और रोचक शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है।
(ii) भाषा में अरबी-फारसी शब्दों का मिश्रण है।
(iii) शैली अतिशयोक्तिपूर्ण है।
(iv) अनुपास के प्रयोग से कथन को प्रभावशाली बनाया गया है।

बेद राखे विदित पुरान परसिद्ध राखे,
राम नाम राख्यो अति रसना सुधर में।
हिन्दन की चोटी रोटी राखी है सिपाहिन की
काँधे में जनेऊ राख्यो माल राखी गर में।
मीड़ि राखे मुगल मरोड़ि राखे पातसाहि,
बैरी पीसि राखे बरदान राख्यो, कर में।
राजन की हद्द राखी तेगबल सिवराज,
देवराखे देवल स्वधर्म राख्यो घर में॥

कठिन शब्दार्थ-विदित = ज्ञात, सुरक्षित। परसिद्ध = प्रसिद्ध। रसना = जीभ, मुख। सुघर = सुन्दर, सहज। रोटी = वृत्ति, रोजगार। काँधे में = कंधे पर। गर = गला। मीडि राखे = नियंत्रण में रखे। पातसाहि = मुगल बादशाह। बैरी = शत्रु। कर = हाथ। हद्द = राज्यों की सीमाएँ। तेगबल = तलवार के बल पर। देव = देवता। देवल = मंदिर, देवालय।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में ‘शिवाजी का शौर्य’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित छंदों से उधृत है। इस छंद में कवि ने शिवाजी महाराज को हिन्दू धर्म और संस्कृति के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत किया है।

व्याख्या-कवि भूषण’ कहते हैं-हे वीर शिवराज तुमने हिन्दुओं के धर्मग्रन्थ वेदों को लुप्त होने से बचा लिया और पुराणों को को प्रसिद्ध बनाए रखा। मुगल बादशाह औरंगजेब के असहिष्णु शासन में, हिन्दुओं को राम नाम लेने की स्वतंत्रता बनाए रखी अर्थात् अपने विश्वास के अनुसार धर्म पालन की स्वतंत्रता बनाए रखी। हिन्दुओं के धार्मिक चिह्नों ‘चोटी’ को बचाया अर्थात् उनका बलात् धर्म परिवर्तन होने से रोका। सैनिकों को नौकरियाँ देकर उनकी जीविका को सुरक्षित बनाया और हिन्दू धर्म के अनुयायियों के धर्म-चिह्नों जनेऊ और माला को धारण करने में कोई बाधा नहीं आने दी। अत्याचारी मुगलों के घमंड को चूर किया और स्वेच्छाचारी बादशाहों की मनमानी नहीं चलने दी। शत्रुओं को मिटा दिया लेकिन साथ ही, सुपात्रों को सदा सहायता प्रदान की है। हे शिवाजी ! आपने अपनी तलवार के बल परं हिन्दू राजाओं के राज्यों की सीमाओं को मुगलों से बचाया है, देवताओं के मंदिरों की और हिन्दूधर्म की सब प्रकार से रक्षा की

विशेष-
(i) कवि ने शिवाजी को हिन्दू प्रजाओं के धर्म, आजीविका और संस्कृति के संरक्षक और एक राष्ट्रीय नायक के रूप में प्रस्तुत किया है।
(ii) औरगंजेब के शासन काल में हिन्दू प्रजा पर क्या-क्या अत्याचार हो रहे थे, इसका भी ज्ञान कराया है।
(iii) अनुप्रास अलंकार का सहज भाव से प्रयोग हुआ है।

(4) मुहावरों के प्रयोग से कथन को प्रभावशाली बनाया है।
छत्रसाल की वीरता।

1.
रैयारावे चंपति को चढ़ो छत्रसाल सिंह भूषण भनत गजराज जोम जमके।
भाद की घटा सी उड़ि गरद गगन घिरे सेलैंसमसेरें फिरें दामिनि सी दमके।
खान उमरावन के आन राजारावन के सुनि-सुनि उर आर्गे घन कैसे घमके।
बैयर बगारन की अरिके आगरन की लाँधती पगारन नगारन के धमके।

कठिन शब्दार्थ-रैयाराव = छोटा राजा, सरदार। चंपति = चंपतिराय, छत्रसाल के पिता। जोम = उत्साह, जोश। जमके = जम जाना। गरद = गर्द, धूल। सेलें = भाले। समसेरै = तलवारें। फिरें = चलती हुईं। दामिनि = बिजली। उमरावे = अमीर लोग, सरदार। आन = अन्य। घन = बड़ा हथौड़ा। धमकें = धमक। बैयर = स्त्रियाँ। बगारन की = भवनों की। अरि = शत्रु। अगारन की = घरों की। पगारन = परकोटों को। धमके = ध्वनि, धक्का।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में ‘छत्रसाल की वीरता’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित कवि भूषण रचित छंदों में से उद्धृत है। इस छंद में कवि ने छत्रसाल द्वारा शत्रु सेना पर आक्रमण के समय का दृश्य अंकित किया है।

व्याख्या-जब राजा चंपतिराय के पुत्र वीर छत्रसाल ने शत्रु पर चढ़ाई की तो सेना के विशालकाय हाथी उत्साह से जमे हुए थे। सेना के चलने से उड़ी धूल, भाद मास की बादल की घटा की तरह आकाश में छा गई। योद्धाओं के हाथों में स्थित भाले और तलवारें उस घटा में चमकती बिजली जैसी प्रतीत हो रही थीं। छत्रसाल के नगाड़ों की ध्वनि मुगल सेना के खानों, सरदारों, राजाओं और रावों के हृदयों पर, घन की चोटें-सी लग रही थीं। नगाड़ों की धमक को सुनकर शत्रुओं के घरों की स्त्रियाँ, परकोटों को लाँघती हुई भागी जा रही थीं।
विशेष-
(i) छत्रसाल के आक्रमण के समय दृश्य का सजीव चित्र अंकित हुआ है।
(ii) मिश्रित शब्दावली युक्त ब्रजभाषा का प्रयोग है।
(iii) अनुप्रास रस योजना को प्रभावी बना रहे हैं।
(iv) शब्द-योजना उत्साह का संचार करती हुई, वीररस की अनुभूति करा रही हैं।
(v) “भाद की घटा ………………. गगन घिरै।’ तथा ‘सेलैंसमसेरें …………….. दामिनी-सी दमके। में उपमा अलंकार है।

2.
चाकचकचमू के अचाकचक चहुँ ओर, चाक सी फिरति धाक चंपति के लाल की।
भूषन भनत पातसाही मारि जेर कीन्ही, काहू उमराव ना करेरी करवाल थी।
सुनि सुनि रीति बिरुदैत के बड़प्पन की, थप्पन उथप्पन की बानि छत्रसाल की।
जंग जीतिलेवा, तेऊ ह्वै कै दामदेवा भूप, सेवा लागे करन महेवा महिपाल की॥

कठिन शब्दार्थ-चाकचक = चारों ओर से सुरक्षित। चमू = सेना (शत्रु-सेना)। अचाकचक = आशंकित अचानक होने वाली घटना में शंकित। चहुँ ओर = चारों ओर। चाक = चक्र, कुम्हार का चाक। पातसाही = बादशाहत, मुगल बादशाह औरंगजेब का घमंड। जेर = हीन, प्रभावहीन। काहू = किसी भी। उमराव = अमीर, सरदार। करेरी = दृढ़, कठोर। करवाल = तलवारे। विरुदैत = विख्यात योद्धा, छत्रसाल। बड़प्पन = उदारता, बड़ाई। थप्पन = स्थापन, स्थापित या सुरक्षित करना। उथप्पन = उत्थान, ऊँचा उठाना। बानि = स्वभाव, रीति। जंग = युद्ध। जीतिलेवा = (युद्ध में) विजयी होने वाले। तेऊ = वे भी। हुवैकै = होकर। दानदेवा = कर या भेट देने वाले। महेवा महिपाल = महाराज छत्रसाल।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छन्द हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में ‘छत्रसाल की वीरता’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित, कवि भूषण रचित छंदों में से उधृत है। इस छंद में कवि ने महाराज छत्रसाल की धाक, वीरता, उदारता आदि गुणों का प्रकाशन किया है।

व्याख्या-कवि भूषण कहते हैं-रणभूमि में चारों ओर से सुरक्षित शत्रु सेना को भी, चकित और शंकित करते हुए, चंपति राव के पुत्र राजा छत्रसाल की धाक चक्र के समान चारों ओर घूमती रहती है। भाव यह है कि पूर्ण सुरक्षा कर लेने पर भी शत्रु सैनिक छत्रसाल के आक्रमण से भयभीत बने रहते हैं। वीर छत्रसाल ने बादशाह औरंगजेब को बार-बार पराजित करके उसकी बादशाहत का घमंड मिट्टी में मिला दिया है। छत्रसाल की कठोर तलवार का सामना करने का साहस बादशाह के किसी भी सरदार आदि में नहीं है। केवल युद्ध में वीरता से ही नहीं अपितु विख्यात योद्धा छत्रसाल के बड़प्पन या उदारता ने भी लोगों का मन जीत लिया है। छत्रसाल की छोटे राजाओं को स्थापित करने और उनका उत्थान करने की नीति (स्वभाव) ने, युद्ध में विजयी होने वाले राजाओं को भी वश में कर लिया है। वे पराक्रमी राजा भी महाराज छत्रसाल को भेंट देकर उनकी सेवा करने लगे हैं।

विशेष-
(i) छत्रसाल की धाक का, चकाचौंध कर देने वाला, अनुप्रास, यमक और उपमा अलंकारों से सुसज्जित वर्णन है। (‘चाकचक चमू के अचाकचक चहुँ ओर’ में अनुप्रास तथा यमक और चाक सी फिरति धाक’ में उपमा है।)
(ii) ‘सुनि-सुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है तथा ‘लेवा, देवा, सेवा और महेवा’ में ध्वनि समानता से उत्पन्न आकर्षण है।
(iii) ब्रजभाषा के साथ अरबी, फारसी, बुंदेलखंडी आदि की शब्दावली का सहजे तालमेल है।
(iv) वीररस का संचार करती प्रवाहपूर्ण भाषा-शैली है।।

3.
अस्त्रगहि छत्रसाल खिभयो खेत बेतबै के, उत ते पठानन हूँ कीन्ही झुकि झपटैं।
हिम्मति बड़ी कै कबड़ी के खेलवारन लौं, देत सै हजारन हजार बार चपटैं।
भूषन भनत काली हुलसी असीसन कौं, सीसन कौं ईस की जमाति जोर जपटैं।
समद लौं समद की सेना त्यों बँदेलन की सेलैं समसेरै भई बाड़व की लपटें ॥

कठिन शब्दार्थ-अस्त्र = दूर से चलाए जाने वाले हथियार, बाण, चक्र, शक्ति आदि। गहि = पकड़कर, लेकर। खिभयो = क्रुद्ध हुआ। खेत = रणक्षेत्र। बेतवे के = बेतवा का। झपटें = प्रहार। हिम्मति = साहस। कबड़ी = कबड्डी का खेल। खेलवार = खिलाड़ी। सै = सौ। हजारन = हजारों की संख्या में। चपर्दै = चपेट, चोट पहुँचाना। काली = युद्ध की देवी महाकाली। हुलसी = प्रसन्न हो गई। असीसन कों = आशीर्वाद देने के। सीसन क = कटे सिरों के लिए। ईस = शिव। जमाति = गण, सेवक। जोर = बल प्रयोग। जपटें = झपटना। समदलों = समुद्र के समान। समद = अब्दुस्समद, पठानों का सरदार या राजा। सेलैं = भाले। समसेरै = शमशीर, तलवार। बाड़व = बडवाग्नि, पानी में लगने वाली आग। लपटें = ज्वाला, आग की लपट।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में ‘छत्रसाल की वीरता’ नामक शीर्षक के अंतर्गत संकलित कवि छत्रसाल और पठान अब्दुस्समद के बीच संग्राम का वर्णन कर रहा है।

व्याख्या-बेतवा के युद्ध क्षेत्र में छत्रसाल ने अस्त्र-शस्त्र लेकर और क्रोधित होकर पठानों पर आक्रमण कर दिया। उधर पठान सेना ने भी, अवसर पाकर छत्रसाल की सेना पर झपट्टे मारे। छत्रसाल के बड़े साहसी सैनिकों ने कबड्डी के खिलाड़ियों की भाँति, सौ हजार (एक लाख) शत्रु सैनिकों के बीच घुसकर हजारों बार प्रहार किए। कवि भूषण कहते हैं-छत्रसाल और उसके सैनिकों की वीरता से मारे गए शत्रुओं की संख्या देखकर महाकाली आशीर्वाद देने को प्रसन्न हो गई और काली के साथ आए शिव के गण कटे पड़े सैनिकों के सिरों को पाने के लिए आपस में जोर दिखाने और सिरों पर झपटने में लगे हुए थे। पठान सरदार अब्दुस्समद की सेना यदि समुद्र के समान विशाल थी तो छत्रसाल के वीर बुंदेलों के भाले और तलवारें भी बड्वाग्नि की लपटें बन गए थे जो समुद्र के जल को जला देती

विशेष-
(i) छत्रसाल के सैनिकों को कबड्डी-खेल के खिलाड़ी बताना, कवि की बड़ी सटीक उपमा प्रतीत होती है। कबड्डी के साहसी खिलाड़ी विपक्षी पाले में अकेले अंदर घुसकर चुनौती दिया करते हैं। छत्रसाल के साहसी सैनिक भी लाखों पठान सैनिकों के बीच फँसकरवार कर रहे थे।
(ii) “सीसन कैं …………………… जोर जपटे” में शिव के गणों पर हलका-सा व्यंग्य किया गया है।
(iii) भाषा में विविध भाषाओं के शब्दों का सुन्दर ताल-मेल है।
(iv) ‘खिभयो खेत’ झुकि झपटें ‘बड़ी कै कबड़ी के’, ‘हजारन हजार बार’, ‘जमाति जोर जपर्दै’ तथा ‘समद लौं समद की सेना’ में अनुप्रास अलंकार है। हिम्मति बड़ी कबड़ी के खेल के वारन लौं तथा ‘समद लौं समद की सेना’ में उपमा अलंकार है।

(i) रचना वीररस का संचार करने वाली है।
4.
भुज-भुजनेस की बैसंगिनी भुजंगिनी सी खेदि खेदि खाती दीह दारुन दलन के।
बखतर पाखरन बीच धंसि जाति मीन पैरि पारे जात परबाह ज्यों जलन के।
रैयाराव चंपति के छत्रसाल महाराज भूषन सकै करि बाखान को बलन के।
पच्छी पर छीने, ऐसे परे परछीने बीर, तेरी बरछी ने बर छीने हैं खलन के॥

कठिन शब्दार्थ-भुज = भुज, बाँह। भुजनेस = सर्प। बैसंगिनी = आजीवन साथ रहने वाला। भुजंगिनी = सर्पिणी। खेदि-खेदि = खदेड़-खदेड़कर, घेर-घेर कर। दहि= दीर्घ, बड़ा। दारुन = भयंकर। दलन = दलों, सेनाओं। बखतर = कवच। पाखर= हाथियों की लोहे से बनी झूल जो शस्त्रों से रक्षा करती थीं। मीन = मछली। पैरि = तैरकर। परबाह = प्रवाह, धारा। बखान = वर्णन। बल = पराक्रम। पच्छी = पक्षी। पर छीने = पंख कटे हुए। परछीने = क्षीण होकर, कटे अंगों वाले होकर। वरछीने = एक हाथ में लेकर चलाए जाने वाले हथियार। वरछीने। = बल छीन लिए, बलहीन या मृत बना दिया। खलन के = दुष्टों या शत्रुओं के।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में ‘छत्रसाल की वीरता’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित कवि भूषण रचित छंदों में से अवतरित है। इस छंद में कवि ने छत्रसाल के बरछी चलाने के कौशल और परिणाम का वर्णन किया है।। व्याख्या-हे महाराज चंपतिराय के सुपुत्र वीर छत्रसाल! आपकी बरछी आपकी भुजारूपी सर्प की जीवनसंगिनी सर्पिणी के सामन है। यह भयंकर शत्रु सेनाओं को घेर-घेर कर उन्हें खाती या डसती रहती है। यह बरछी शत्रु सैनिकों द्वारा पहने हुए कवचों और हाथियों की रक्षा के लिए डाली गई झूलों में उसी प्रकार हँसती चली जाती है जैसे मछली जल के प्रवाह को चीरती हुई तैरकर पार निकल जाती है।

आपके पराक्रम का वर्णन भला कौन कर सकता है। आपकी बरछी ने शत्रु सैनिकों के सारे बल छीन लिए हैं, उन्हें बलहीन या मृत बना दिया है। ये सैनिक रणभूमि में परकटे हुए पक्षियों के सामन कटे अंगों वाले होकर पड़े हैं या परकटे पक्षियों के समान लड़ने में असमर्थ होकर रणभूमि में पड़े हुए हैं।

विशेष-
(i) छत्रसाल के बरछी चलाने की कुशलता का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन हुआ है।
(ii) भाषा ओज और प्रवाह से परिपूर्ण तथा वीरसर का संचार करने वाली है।
(iii) अनुप्रासों के अतिरिक्त भुज-भुजगेस’ में रूपक, ‘भुजगेस की बैसंगिनी भुजंगिनी सी’ में उपमा तथा परछीने-परछीने ओर बरछी ने-बरछीने में यमक अलंकार है।

5.
राजत अखंड तेज, छाजत सुजस बड़ो, गाजत गयंद दिग्गजन हिय साल को।
जाहि के प्रताप सों अलीन आफताब होत, ताप तजि दुज्जन करन बहुत ख्याल को।
साजि-सजि गज, तुरी, पैदर कतार दीन्हे, भूषन भनत ऐसो दीन प्रतिपाल को।
आन रावराजा एक मन में न लाऊँ अब, साहू को सराहों कै सराह छत्रसाल को।

कठिन शब्दार्थ-राजत = शोभा पा रहा है।। अखंड = निरंतर। छाजत = छाया हुआ। सुजस = सुंदर यश। गाजत = गरजते हैं। गयंद = हाथी। दिग्गजन = दिशाओं में स्थित कल्पित हाथियों के। हिद = हृदय। साल को = सालने को, पीड़ित करने को। जाहिके = जिसके। मलीन = तेजहीन। आफताब = सूर्य। ताप = क्रोध, घमंड। तजि = त्याग कर। दुज्जन = दुष्ट व्यक्ति। ख्याल = विचार, सोचना-समझना। साजि = सजाकर। गज = हाथी। तुरी = घोड़े। पैदर = पैदल, सेवक। कतार = पंक्ति। दीन प्रतिपाल = दीन व्यक्तियों का पालनकर्ता। आन = अन्य, दूसरे। राव = छोटे राजा, सामंत। साहू = शिवाजी। सराह = प्रशंसा करूंगा।

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य-पुस्तक में ‘छत्रसाल की वीरता’ शीर्षक के अंतर्गत संकलित कवि भूषण-रचित छंदों में से उद्धृत है। कवि इस छंद में राजा छत्रसाल के प्रताप, वैभव तथा दानशीलता आदि गुणों का वर्णन कर रहा है। व्याख्या-कवि भूषण कहते हैं कि महाराज छत्रसाल का तेजस्वी स्वरूप निरंतर सुशोभित रहता है। उनका सुयश चारों ओर छाया हुआ है। उनके द्वार पर श्रेष्ठ हाथी गर्जन करते कहते हैं। इनकी गर्जना सुनकर पृथ्वी का भार उठाने वाले चारों दिशाओं के हाथी भी लज्जित होते हैं। छत्रसाल के प्रताप (तेज) के सामने सूर्य भी कान्तिहीन हो जाता है और दुष्ट तथा आतातायी लोग मन ही मन उनसे भये खाया करते हैं। महाराज छत्रसाल बड़े उदार हृदय दानी हैं। उन्होंने साज से सज्जित करके हाथी, घोड़े और पैदलों (सैनिक या सेवक) की पंक्तियाँ दान की हैं। इनके जैसा निर्धनों और दुखियों का रक्षक कोई और नहीं दिखाई देता। भूषण कहते हैं कि अब किसी अन्य राव या राजा को वह मन में भी नहीं ला सकते। अब तो वह यह नहीं समझ पा रहे हैं कि वह शिवाजी महाराज की दानशीलता और प्रताप की प्रशंसा करें या वीर छत्रसाल के गुणों की प्रशंसा करें। दोनों ही एक दूसरे से बढ़कर प्रतीत होते हैं।

विशेष-
(i) वीर छत्रसाल के गुणों का कवि ने हृदय खोलकर वर्णन किया है। छत्रसाल ने कवि भूषण की पालकी में कंधा लगाकर अपनी गुणग्राहकता और उदारता कर परिचय दिया था।
(ii) ब्रज भाषा का समृद्ध स्वरूप सारे छंद में विद्यमान है।
(iii) वीर छत्रसाल के गुणों की अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा की है-‘जाहि के प्रताप मलीन आफताब होत’।
(iv) ‘गजत गयंद’, ‘ताप तजि’, ‘राज सजि गात’ तथा साहू को सराहों कै, सराहों ‘छत्रसाल को’ में अनुप्रास अलंकार है।

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