RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 सुमित्रानंदन पंत

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 सुमित्रानंदन पंत

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आँगन को उर्वर कौन करता है?
(क) खाद
(ख) केंचुए
(ग) वर्षा का जल
(घ) किसान
उत्तर:
(ग) वर्षा का जल

प्रश्न 2.
कवि ने संध्या की तुलना किससे की है?
(क) सुंदर स्त्री से
(ख) सुंदर पुरुष से
(ग) लालिमा से
(घ) नूपुर-ध्वनि से
उत्तर:
(क) सुंदर स्त्री से

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भूमि को उर्वर कौन बनाता है?
उत्तर:
दल भूमि को उर्वर बनाता है।

प्रश्न 2.
व्योम से चुपचाप कौन उतर रही है?
उत्तर:
संध्यारूपी सुंदरी चुपचाप व्योम से उतर रही है।

प्रश्न 3.
लज्जा से किसके गाल लाल-लाल हो रहे हैं?
उत्तर:
लज्जा से संध्या-सुंदरी के गाल लाल-लाल हो रहे हैं।

प्रश्न 4.
श्वासहीन कौन-सा युग है?
उत्तर:
बीता हुआ युग श्वासहीन है।

प्रश्न 5.
मतवाली कौन है?
उत्तर:
मतवाली कोकिल है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि का जगत के जीर्ण पत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जगत के जीर्ण पत्र से कवि का अभिप्राय पुरातन युग की सड़ी-गली मान्यताओं तथा अन्धविश्वास से है। विगत युग की मान्यताएँ नये युग में सन्दर्भहीन और अनुपयोगी हो चुकी हैं। उनको त्याग देना ही श्रेयष्कर है।

प्रश्न 2.
विगत युग को निष्प्राण क्यों कहा गया है?
उत्तर:
विगत युग की उपयोगिता नष्ट हो चुकी है। नवयुग के विचार उसका स्थान ग्रहण कर चुके हैं। कवि चाहता है कि विगत युग चला जाय। अनुपयोगी होने के कारण उसको निष्प्राण कहा गया है।

प्रश्न 3.
जीवन में मांसल हरियाली कब आयेगी?
उत्तर:
विगत युग, विगत अनुपयोगी विचारधारा के जाने के बाद ही जीवन का नवोदय होगा। नवीन युग और नवीन विचारों के आगमन के पश्चात् ही जीवन की मांसल हरियाली आयेगी।

प्रश्न 4.
कवि प्याली को किससे भरने की बात कहता है?
उत्तर:
कवि कहता है कि नवयुग की प्याली को अमरप्रेम की मदिरा से भर दिया जाय। संसार में नवयुग का आगमन हो और समस्त विश्व में प्रेम की मादकता फैले।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने बादलों से क्या प्रार्थना की है?
उत्तर:
कवि ने बादलों से प्रार्थना की है कि वे संसाररूपी आँगन अर्थात् पृथ्वी पर नवजीवन की वर्षा करें। बादल अपने जल की वर्षा द्वारा पृथ्वी को उपजाऊ बना दें। बादल जल की वर्षा करें जिससे धरती पर बसन्त की शोभा प्रकट हो तथा वह फूलों से भर जाय। वे अपने जल की वर्षा से धरती को जीवन दें। वे पृथ्वी पर अमर प्रेम की वर्षा करें। धरती शस्य-श्यामला होगी और उसके हृदय तथा शरीर में सुख का यौवन उमड़ेगा। कवि बादल से प्रार्थना करता है कि वह अपने स्पर्श द्वारा भूमि के रेतीले मृत कणों में नया जीवन भर दें। बादलों के पानी की वर्षा से अनुपजाऊ भूमि भी उर्वरा हो जायेगी तथा उसमें पेड़-पौधे भी उगने लगेंगे। बादल अपने सुखद आलिंगन द्वारा संसार को मौत के बन्धन से मुक्त कर दे।

कवि बादलों से प्रार्थना करता है कि वे संसार के सुख और सौन्दर्य का रूप धारण कर बरसे। बादलों की वर्षा से संसार के प्राणियों को सुख और सौन्दर्य की प्राप्ति होगी। सावन की वर्षा के कारण धरती पर अनेक प्रकार के पौधे उग आते हैं। अत: कवि बादलों से प्रार्थना कर रहा है कि वे प्रत्येक दिशा में तथा पल-पल में जल की वर्षा करें।

प्रश्न 2.
पठित कविता के आधार पर संध्या का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘संध्या’ शीर्षक कविता में पंतजी ने संध्या के सौन्दर्य का चित्रण किया है। कवि ने इसमें संध्या को एक सुंदरी नारी के रूप में प्रस्तुत किया है। संध्या एक सुंदर युवती है। उसका केश-कलाप पीताभ और मनोहर है। उसकी केशराशि उसके कंधों पर फैली हुई है। वह कोमले धीमी गति से चल रही है। वह मौन है, कुछ बोल नहीं रही है। वह आकाश से धरती पर धीरे-धीरे उतर रही है। संध्या के दोनों होंठ सटे हुए हैं। वह कुछ भी बोल नहीं रही है। उसके पैरों में गति है तथा पलकों में निमिष बन्द है।

उसकी टेढ़ी भौंहें भावों से भरी हुई है। संध्या की गर्दन एक ओर झुकी हुई है। उसके शरीर की द्युति चम्पक पुष्प के समान है। उसके नेत्र नीचे की ओर मुख किए हुए अधखुले कमल के समान हैं। संध्या सुंदरी का सुनहरा आँचल हवा के कारण हिल रहा है। पक्षियों का कलरव ऐसा लग रहा है जैसे कि उसके मुँघरू बज रहे हैं। वह बादलों रूपी पंख खोलकर आकाश में मौन होकर उड़ रही है। उसके कपोल लज्जा के कारण लाल हो रहे हैं। उसके अधरे सुरा के समय मादक हैं। वह पावसे के बादलों रूपी हिंडोले में झूल रही है। वह अकेली ही मौन होकर मंथर गति से धरती पर उतर रही है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए।
(क) द्रुत झरो जगत ……………… पुराचीन।
(ख) अनिल पुलकित ………………. नभ में मौन।
उत्तर:
उपर्युक्त की सप्रसंग व्याख्या के लिए इस पाठ के महत्त्वपूर्ण पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ’ शीर्षक देखिए।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि-बादलों से कहाँ बरसने की प्रार्थना करता है?
(क) अपने आँगन में
(ख) खेत में
(ग) बगीचे में
(घ) प्रत्येक दिशा में
उत्तर:
(घ) प्रत्येक दिशा में

प्रश्न 2.
‘मृत रजकण’ होता है –
(क) सूखी मिट्टी
(ख) खाद विहीन मिट्टी
(ग) शस्य विहीन भूमि
(घ) रेतीली भूमि।
उत्तर:
(क) सूखी मिट्टी

प्रश्न 3.
संध्या चुपचाप उतर रही है।
(क) पहाड़ से
(ख) व्योम से।
(ग) टीले से
(घ) पेड़ से
उत्तर:
(ख) व्योम से।

प्रश्न 4.
संध्या के गाल लाल हैं
(क) रंग लगा होने से
(ख) धूप के कारण
(ग) लाज के कारण
(घ) पिटाई के कारण
उत्तर:
(ग) लाज के कारण

प्रश्न 5.
पत्ते पीले पड़ गए हैं।
(क) हिम ताप से
(ख) पानी न मिलने से
(ग) रासायनिक खाद से
(घ) दवा के छिड़काव से
उत्तर:
(क) हिम ताप से

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने किससे तथा क्या प्रार्थना की है?
उत्तर:
कवि ने बादल से जल बरसाने की प्रार्थना की है।

प्रश्न 2.
‘छु-छू जग के मृत रजकण’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि का आशय है कि बादल वर्षा के जल से सूखी मिट्टी को नवजीवन दे।

प्रश्न 3.
‘बरसो सुख बन सुखमा बन’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
बादल से जल का बरसना सुखदायक होता है तथा उससे धरती हरी-भरी होकर शोभायमान हो जाती है।

प्रश्न 4.
‘बरसो संसृति के सावन’ कहने का तात्पर्य क्या है?
उत्तर:
सावन के महीने की वर्षा धरती को नवजीवन देती है। पृथ्वी पर अनेक पौधे उग आते हैं। नई सृष्टि होती है।

प्रश्न 5.
संध्या का केशकलाप सुनहरा क्यों कहा गया है?
उत्तर:
संध्या के समय वातावरण कुछ पीला-सा हो जाता है।

प्रश्न 6.
‘मँद अधरों में मधुपालाप’ कहने का आशय क्या है?
उत्तर:
भौंरों की गुनगुनाहट संध्या के होठों में बन्द है। कहने का आशय यह है कि शाम होने पर भौंरे भी गुंजार नहीं कर रहे हैं।

प्रश्न 7.
संध्या के शरीर को किसके समान बताया गया है?
उत्तर:
संध्या के शरीर की आभा चम्पक पुष्प के समान है। प्रश्न 8. संध्या के अधर कैसे हैं? उत्तर-संध्या सुंदरी के अधर नशीले हैं।

प्रश्न 9.
‘जीर्ण पत्र’ किसके प्रतीक हैं?
उत्तर:
‘जीर्ण पत्र’ विगत युग की अनुपयोगी परंपराओं के प्रतीक हैं।

प्रश्न 10.
‘नवल रुधिर पल्लव लाली’ से कवि क्या व्यक्त करना चाहता है?
उत्तर:
पुराने पत्ते टूटकर नये लाल-लाल पत्ते आते हैं, उसी प्रकार नया खून दुर्बल शरीर को सशक्त और सुन्दर बनाता है।

प्रश्न 11.
वीतराग’ किसको कहते हैं?
उत्तर:
संसार के भोगों के प्रति विरक्ति होने को वीतराग कहते हैं।

प्रश्न 12.
‘मधुवात भीत’ कौन है तथा क्यों?
उत्तर:
वृक्ष के पत्ते बसन्त ऋतु की हवा से भयभीत हैं। बसन्त में तेज हवा चलने से जर्जर पत्ते टूटकर उड़ जाते हैं।

 RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हे चिर अव्यय चिर नूतन’ किसको कहा गया है तथा क्यों?
उत्तर:
कवि ने बादल को चिर अव्यय और चिर नूतन कहा है। बादल सदा से पृथ्वी पर जल की वर्षा करते रहे हैं। वह पेड़-पौधों को नया जीवन देने वाले हैं। बादल का यह स्वरूप सनातन है तथा इतना समय बीतने पर भी उसमें कोई विकार उत्पन्न नहीं हुआ है। वह सदा नवीन ही बना रहता है।

प्रश्न 2.
कवि बादल से क्या करने को कहता है?
उत्तर:
कवि बादल से छोटे-छोटे पादपों तथा वृक्षों पर जल की वर्षा करने को कहता है। छोटे पौधों और तृणों के लिए उसका जल अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 3.
‘छु-छू जग के मृत रजकण/कर दो तरु तृण में चेतन’ में क्या भाव निहित है?
उत्तर:
उक्त पंक्ति में भाव यह है कि वर्षा का जल सूखी मिट्टी को उर्वरा बनाता है। वर्षा के जल द्वारा सिंचित होकर उसमें स्थित पेड़-पौधों में सजीवता आती है। वे तेजी से पुष्पित-पल्लवित होने लगता है।

प्रश्न 4.
बादलों को जन जीवन के घन’ कहकर कवि क्या प्रकट करना चाहता है?
उत्तर:
कवि ने बादलों से वर्षा करने की प्रार्थना ‘बरसो जन जीवन के घन’ कहकर की है। बादल जल की वर्षा करके संसार के प्राणियों को नवजीवन देते हैं। उनके कारण जीव-जन्तुओं को अन्न और जल प्राप्त होता है। जल के अभाव में जीवन की कल्पना भी संभव नहीं है।

प्रश्न 5.
कवि पन्त ने संध्या का चित्रण किस रूप में किया है?
उत्तर:
कवि पन्त ने संध्या का सजीव चित्रण किया है। कवि ने उसको एक सुंदरी नारी कहा है। उसके सुनहरे बाल बिखरे हैं। वह चुपचाप आकाश से उतर रही है।

प्रश्न 6.
‘मौन केवल तुम मौन’ कहकर कवि संध्या की किस विशेषता का वर्णन करना चाहता है?
उत्तर:
‘मौन केवल तुम मौन’ कहकर कवि बताना चाहता है कि संध्या का समय पूर्णत: शान्त है। दिनभर की चहल-पहल समाप्त होकर सर्वत्र शान्ति छा गई है। जीव-जन्तुओं को कोलाहल भी शान्त हो गया है। दिन के कार्यों को विराम लगने से सभी प्रकार की आवाजें शान्त हो गई हैं।

प्रश्न 7.
संध्या-सुदरी के चलने से उसके नूपुरों से निकली ध्वनि के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
कवि ने कहा है कि संध्या सुंदरी आकाश से धरती पर धीरे-धीरे उतर रही है। इससे उसके पैरों के नूपुर बज रहे हैं। पक्षी रव कर रहे हैं, वह कवि को उसके नूपुरों से निकली ध्वनि प्रतीत होती है। उनकी चहचहाहट ही संध्या के नूपुरों से निकली ध्वनि

प्रश्न 8.
संध्या आकाश में किसकी सहायता से उड़ रही है?
उत्तर:
संध्या आकाश में बादलों के पंख लगाकर उड़ रही है। आकाश में संध्या के समय छोटे-छोटे बादल छाए हैं। कवि को वे बादल संध्या के पंखों के समान प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 9.
‘कहो एकाकिन कौन’ कवि ने संध्या के एकाकिन क्यों कहा है?
उत्तर:
शाम होने पर संसार के सभी जीव-जन्तु अपने-अपने निवास में लौट आते हैं। इससे निर्जनता उत्पन्न हो जाती है। पथ पर बहुत कम लोग ही दिखाई देते हैं। ऐसे समय में व्योम से उतरती संध्या कवि को एकाकिन लग रही है। वह अकेली ही आ रही है। उसका कोई साथी नहीं है।

प्रश्न 10.
संध्या सुंदरी के नेत्र कैसे हैं?
उत्तर:
संध्या सुंदरी के नेत्र अधखुले, नतमुख कमल के जैसे हैं। संध्याकाल में कमल आधे बन्द हो चुके हैं। वे कुछ नीचे को लटक गए हैं। कवि को वे संध्या-सुंदरी के नेत्रों के समान दिखाई देते हैं।

प्रश्न 11.
दूम झरो जगत के जीर्ण पत्र’ क्यों कहा गया है?
उत्तर:
पेड़ का पत्ता पुराना होकर पीला पड़ गया है। वह निर्जीव हो गया है। तेज चलने वाली हवा के चलने से वह टूटने वाला है। उसका टूटना प्रकृति के नियम के अनुकूल है। पुरातन का जाना और नवीन का आना प्रकृति का नियम है। कवि कहता है कि पुराना पत्ता जल्दी झड़ जाये और उसका स्थान नई कोपलें ले लें।

प्रश्न 12.
‘निष्प्राण विगत युग’ कवि कथन में पुरातन काल के बारे में क्या कहा गया है?
उत्तर:
कवि ने पुरातन युग को ‘निष्प्राण’ कहा है। पुराना समय निर्जीव हो चुका है। पुरानी मान्यताएँ अनुपयोगी हो चुकी हैं। पुराने विचार वर्तमान समय के उपयुक्त नहीं रह गए हैं। पुरातन काल की इस विशेषता के कारण कवि ने उसको निष्प्राण कहा है।

प्रश्न 13.
“प्राणों के मर्मर से मुखरित जीवन की मांसल हरियाली’ – कविता की पंक्ति का आशय क्या है?
उत्तर:
पुरातन युग के जाने के बाद नवयुग का आगमन हो गया। निष्प्राण शरीर पुन: सजीव हो उठेगा। उसमें प्राणों के स्वर उत्पन्न हो जायेंगे। स्पन्दन आदि जीवन के लक्षण प्रकट होंगे। कंकाल भी जीवन के संकेतों से सजीव हो उठेंगे।

प्रश्न 14.
‘मंजरित विश्व में यौवन के’-पंक्ति में निहित भावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पेड़ों पर मंजरी आना फल आने का पूर्व संकेत है। कवि को आशा है कि जब पुरानी रीति और निर्जीव परंपराएँ नहीं रहेंगी तो नवयुग आयेगा उस पर यौवन की मंजरी प्रकट होंगी। तब जग की कोकिल नवजीवन का संकेत देगी। उसकी कूक से पता चलेगा कि नवयुग का सुखद फल अब उत्पन्न होने में देर नहीं है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘दुत झरो’ कविता में व्यक्त विचारों को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-:
्रुत झरो’ कविता में पन्त जी ने पुरातन युग और उसकी व्यवस्था को जाने के लिए कहा है। पेड़ का पीला जर्जर पत्ता विगत आयु और युग का सूचक है। जर्जर पत्ते की एकमात्र नियति यही है कि वह डाल टूटकर अलग हो जाय। उसके इस टूटकर गिर जाने में ही नवयुग की संभावना है। पुराने पत्ते जब झड़ जायेंगे तो उनके स्थान पर नये पल्लव विकसित होंगे। ये रक्तिम आभा वाले कोमल पल्लव पीत और जर्जर पत्र का स्थान लेंगे। द्रुत झरो’ कविता में कवि ने कहा है कि पुराने युग की सड़ी-गली परंपराओं के जाने का समय आ गया है। उनको तो नष्ट होना ही है। उनके जाने के बाद नये युग का आगमन होगा।

इस नवयुग में अंधविश्वासों के लिए कोई स्थान नहीं होगा। नवयुग में संसार वैमनस्य से मुक्त और सुख-शांति से जीयेगा। नवीन विचार, नई मान्यताएँ और नए विश्वास पुराने अनुपयोगी विचारों का स्थान ग्रहण करेंगे। पुराने पत्ते शीघ्र गिर जायें तो नए पत्ते उनका स्थान लें। कवि का आशय है कि निष्प्राण पुरातन युग चला जाए और आशा से भरा नवयुग आ जाए। जीवन में फिर से हरियाली छा जाए। जीवन की समस्याओं और द्वेषभाव से मुक्ति मिले। विश्व में नवयौवन की मंजरी उत्पन्न हो और कोकिल अमर प्रेम का मादक राग सुनाए। संसार की खाली प्याली मादक मधुरता से भर जाए।

प्रश्न 2.
संध्या को एक सुंदर नारी निरूपित कर उसके सौन्दर्य का सजीव वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पन्त जी ने संध्या का चित्रण करते हुए उसको एक सुंदरी नारी के रूप में निरूपित किया है। उन्होंने संध्या का मानवीकरण किया है। उनकी संध्या सजीव और सुंदर है। संध्या एक सुंदरी नारी है। वह आकाश पथ से अकेली ही उतर रही है। उसके केश सुनहरे हैं तथा उसके मुखमण्डल के आसपास बिखरे हैं। वह मंथर गति से चल रही है। उसके अधर बन्द हैं तथा वह मूक है, कुछ भी बोल नहीं रही है। उसकी भ्रूभंगिमा गहरे भावों से युक्त है। उसके पैरों में गति है किन्तु वह बिल्कुल चुप है।

संध्या सुंदरी की गर्दन एक ओर झुकी हुई है तथा टेढ़ी है। उसके शरीर की आभा चम्पक पुष्प के समान है। उसके नेत्र नीचे को मुख किए अधखुले कमल के जैसे हैं। संध्या का आँचल स्वर्णिम है तथा वायु के चलने से हिल रहा है। पक्षियों के कलरव के रूप में उसके मुँघरू बजते से लग रहे हैं। वह बादलों के पंख लगाकर आकाश में उड़ रही है। लज्जा के कारण उसके गाल लाल हो रहे हैं। उसके होंठ नशीले हैं। वह वर्षाकालीन बादलों के हिंडोले में बैठी हुई झूल रही है। वह अकेली है और कोई अन्य उसके साथ नहीं है।

प्रश्न 3.
बादलों से क्या लाभ है? यदि बादल न होते तो क्या होता? अपनी कल्पना के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
बादल प्रकृति का अंग है। उनके विविध रंग और आकार दर्शनीय होते हैं। आकाश में उमड़ते-घुमड़ते बादल अत्यन्त सुंदर लगते हैं। उनको देखकर मन आनन्द से भर उठता है। बादलों से अनेक लाभ हैं। बादल धरती पर जल की वर्षा करते हैं। जल को जीवन कहा गया है। जल से ही जीव-जन्तुओं का होना संभव है। बादलों के जल से धरती को नया जीवन मिलता है। उनके कारण ही वह शस्य-श्यामला कहलाती है।

बादलों से जल बरसता है तो उससे नदियाँ और सरोवर बनते हैं। उनका जल मनुष्य तथा अन्य जीवों के पीने तथा अन्य कार्यों के लिए उपयोगी होता है। किसान को अपनी खेती में बादलों से अनेक लाभ होते हैं। बादलों से पानी बरसने से उसकी फसलों को पानी मिलता है तथा भरपूर अन्न उत्पन्न होता है। यह अन्न मनुष्यों के पेट भरने के लिए जरूरी होता है। बादलों की धरती को सदा से आवश्यकता रही है। बादलों के कारण ही सृष्टि हुई है तथा चल रही है। यदि बादल न होते तो सृष्टि पूर्व का आग का गोला बनी धरती शीतल न होती। समुद्र न बनते और उनमें जलचर उत्पन्न भी न होते। अन्य जीवों तथा मनुष्य के रहने लायक वातावरण भी पृथ्वी पर नहीं बनता। जल का भीषण अभाव होता और जलाभाव में धरती पर जीवन ही न होता।

प्रश्न 4.
‘पन्त प्रकृति के कुशल चितेरे हैं’-सोदाहरण टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
पन्त प्रकृति के रूप के कुशल चित्रकार हैं। वह बचपन से ही प्रकृति की गोद में खेले हैं। प्रकृति के प्रति उनकी तल्लीनता उनके काव्य में भी व्यक्त हुई है। उनकी कविता में प्रकृति के रम्य और रौद्र दोनों ही रूपों का चित्रण मिलता है। पन्त जी ने प्रकृति का मानवीकरण किया हैं और उसके सजीव चित्र अंकित किए हैं। आपका प्रकृति वर्णन आकर्षक है तथा एक चित्र जैसा प्रतीत होता है। उसमें रस, गंध, ध्वनि और गति के भी चित्र मिलते हैं अनिल पुलकित स्वर्णाचल लोल, मधुर नूपुर ध्वनि खग-कुल रोल, सीप से जलदों के पर खोल उड़ रही नभ में मौन! पन्त जी के काव्य में अज्ञात सत्ता के प्रति जिज्ञासा है। उनका यह भाव ही रहस्यवाद की झाँकी प्रस्तुत करता है न जाने कौन, अये द्युतिमान जान मुझको अबोध अज्ञान सुझाते हो तुम पथ अनजान पन्त जी के काव्य में प्रकृति का रम्य रूप ही सार्थक दिखाई देता है। प्रकृति का यह स्वरूप उनको निरन्तर आकर्षित करता है। संध्या काल का एक चित्र दर्शनीय है।

सिमटा पंख साँझ की लाली जा बैठी अब तरु शिखरों पर। ताम्रवर्ण पीपल से, शतमुख, झरते चंचल स्वर्णिम निर्झर। ज्योति स्तम्भ से धंस सरिता में, सूर्य क्षितिज पर होता ओझल। वहद् जिहन विश्लथ केंचुल सा लगता चितकबरा गंगाजल। पन्तजी प्रकृति के कोमल रूप के वर्णन के लिए प्रसिद्ध हैं किन्तु प्रकृति के भैरव और रौद्र रूप का भी आपने चित्रण किया है। समय का कठोर चक्र मनुष्य को भी अपनी अटल भीषणता से प्रभावित करता है अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलते कंकाल कचों के चिकने काले व्याल, केंचुली, काँस, सिवार। संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है। सब कुछ नश्वर है। सुख के क्षण परिवर्तन की अटल कठोरता की भेंट चढ़ जाते हैं खोलता इधर जन्म लोचन, मूंदती उधर मृत्यु क्षण-क्षण। अभी उत्सव और हास उल्लास, अभी अवसाद, अश्रु, उच्छ्वास।

सुमित्रानन्दन पंत कवि परिचय

जीवन-परिचय-

सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म हिमालय के रमणीक प्रदेश उत्तराखण्ड कुमायूँ के कौसानी नामक ग्राम में 20 मई, सन् 1900 में हुआ था। आपके जन्म के बाद ही आपकी माताजी का देहावसान हो गया। आपकी पढ़ाई अल्मोड़ा तथा प्रयाग के सेंट्रल म्योर कॉलेज में हुई थी। बचपन में आपका नाम गुसाईं दत्त था जिसे बदलकर आपने ही सुमित्रानन्दन पन्त रखा था। गाँधी जी के आव्हान पर आप पढ़ाई छोड़कर राष्ट्रीय आन्दोलन में उतर पड़े तथा साहित्य सेवा में प्रवृत्त हुए। हिन्दी की सेवा करते हुए 28 दिसम्बर, सन् 1977 में आपका स्वर्गवास हो गया।

साहित्यिक परिचय-पन्त छायावादी कवियों में गिने जाते हैं किन्तु आप किसी वाद से बँधे नहीं हैं। उनकी कविता पर रहस्यवाद, प्रगतिवाद, मार्क्सवाद, गाँधीवाद तथा महर्षि अरविन्द के दार्शनिक विचारों का प्रभाव है। पंत अंग्रेजी भाषा के वर्डस्वर्थ, कीट्स, शैली और टेनीसन आदि कवियों तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर से प्रभावित हैं। पन्त प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। हिमालय की प्राकृतिक सुषमा ने उनको गहराई तक प्रभावित किया है। चित्रोपमता, ध्वन्यात्मकता, सजीवता आदि उनके काव्य की विशेषताएँ हैं। आपकी भाषा कोमल, सरस तथा संस्कृतनिष्ठ है। परम्परागत अलंकारों के साथ-साथ आपने मानवीकारण, सम्बोधन तथा ध्वन्यात्मकता आदि अंग्रेजी भाषा के अलंकारों का भी प्रयोग किया है।

कृतियाँ-वीणा, गांधी, पल्लव, गुंजन, युगवाणी, युगान्त, ग्राम्या आदि आपके काव्य-ग्रन्थ हैं। ‘चिदम्बरा’ पर आपको ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त से चुका है।

पाठ-परिचय

इस पुस्तक में पन्त जी की तीन कविताएँ संकलित हैं- प्रार्थना, संध्या और द्रुत झरो। इन कविताओं का सारांश निम्नलिखित है प्रार्थना-कवि बादलों से पृथ्वी पर वर्षा करने की प्रार्थना कर रहा है। वर्षा का पानी धरती पर नवजीवन का संचार करने वाला है। वह नवजीवन का संदेशवाहक है। वर्षा के जल से पृथ्वी पर अनेक पेड़-पौधे उगते हैं। वर्षा का जल वृक्षों, पत्तों और तिनकों में नई स्फूर्ति उत्पन्न कर देता है। प्राणों को हर्षित करने वाला जल अमर धन के समान है। कवि बादल से प्रार्थना करते हुए कहता है-हे जलद ! तुम प्रत्येक दिशा में और समस्त संसार में बरसो॥

सन्ध्या-प्रस्तुत कविता में सन्ध्या काल का मनोहारी चित्रण हुआ है। कवि उससे पूछता है-हे सुन्दरी ! तुम कौन हो? तुम आकाश से चुपचाप अपनी छवि में छिपी हुई, अपने सुनहरे केशों को लहराती हुई मौन भाव से धरती पर उतर रही हो। अधरों में मधुर आलाप बन्द किए, पलकों में निमिष और पदों में गति को समेटे, बंकिम भौंहों में भावों को धारण किए हुए सन्ध्या-सुन्दरी एकदम मौन हैं। टेढ़ी गर्दन, चम्पा की शोभा से युक्त शरीर, नीचे झुके अधखिले कमल जैसे नेत्रों वाली सन्ध्या से कवि पूछता है कि वह दिनभर कहाँ रहती है। उसका सुनहरा आँचल हवा से हिल रहा है। पक्षियों का कलरव उसके नूपुरों की ध्वनि है। वह सीप जैसे बादलों के पंख खोलकर आकाश में मौन उड रही है, लज्जा से उसके कपोल लाल हैं। उसके मदभरे होठों की सुरा अमूल्य है। वर्षा के बादलों के हिंडोले में वह झूलती है। वह मधुर और मंथर गति से चलने वाली और अकेली है।

दुत झरो-प्रस्तुत कविता में कवि ने पुरानी और जीर्ण-शीर्ण परम्पराओं को नष्ट करने की बात कही है। कवि चाहता है कि पुराने जीर्ण पत्ते शीघ्र ही झड़ जायें तथा उनका स्थान नए कोमल पत्ते ले लें। कवि कहना चाहता है कि पुराना निष्प्राण युग चला जाए और उसका स्थान नवीन शक्ति और आशाओं से भरा हुआ नवयुग ग्रहण कर ले। कवि कामना करता है कि संसार में नये जीवन की हरियाली फिर से छा जाए। कवि ऐसे नवीन युग की कामना करता है जिसमें अन्धविश्वास और वैमनस्यता को कोई स्थान न हो। कवि को आशा है कि संसार में नवचेतना का उदय होगा तथा नवयुग की प्याली पुनः भरेगी। कवि को विश्वास है कि नवयुग के यौवन पर मंजरी लगेंगी और मतवाली कोकिल नव बसन्त का आव्हान करेगी। अपने अमर प्रेम के स्वर की मदिरा से नवयुग की प्याली को फिर से भर देगी।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ प्रार्थना

1.
जग के उर्वर आँगन में,
बरसो ज्योतिर्मय जीवन।
बरसो लघु लघु तृण तरु पर,
हे चिर-अव्यय चिर-नूतन!
बरसो कुसुमों के मधुवन,
प्राणों के अमर प्रणय धन,
स्मिति स्वप्न अधर पलकों में,
उर अंगों में सुख यौवन।

कठिन शब्दार्थ-उर्वर = उपजाऊ। ज्योतिर्मय = प्रकाशपूर्ण। तृण = तिनके। तरु = वृक्ष। अव्यय = अक्षय, निर्विकार। चिर-नूतन = सदैव नवीन। मधुवन = बसंत। स्मिति = मुस्कराहट। अधर = होंठ॥

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘प्रार्थना’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि बादल से जल की वर्षा करने की प्रार्थना कर रहा है, जिससे धरती हरी-भरी हो सके।

व्याख्या-कवि बादल से प्रार्थना करता है कि वह धरती पर जल की वर्षा करे जिससे पृथ्वी उपजाऊ हो सके और उस पर आलोक पूर्ण नवजीवन के पादप उत्पन्न हो सकें। हे सदैव नवीन रहने वाले तथा निर्विकार बादल, तुम छोटे-छोटे पौधों तथा वृक्षों को अपने जल की वर्षा से जीवन दो।

हे बादल ! तुम पुष्पों को वसंतकालीन सुषमा प्रदान करने के लिए बरसो। हे बादल, तुम्हारा जल धरती को नवजीवन तथा अमरता देने वाला है। तुम्हारा जल होंठों पर मुस्कराहट तथा पलकों में सुनहरे सपने जगाने वाला है। तुम्हारा जल हृदय तथा अंग-अंग में सुख और नवयौवन भरने वाला है। तुम लोगों को सुखी करने के लिए बरसो॥

विशेष-
(i) संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा है।
(ii) लघु लघु’ में पुनरुक्तिप्रकाश, “हे चिर अव्यस! चिर नूतन’ में सम्बोधन अलंकार है।
(iii) बादलों से वर्षा कर धरती को उपजाऊ बनाने की प्रार्थना की गई है।
(iv) प्रकृति के रम्य रूप का वर्णन है।

2.
छु-छू जग के मृत रजकण
कर दो तृण तरु में चेतन,
मृन्मरण बाँध दो जग का,
दे प्राणों का आलिंगन!
बरसो सुख बन सुखमा बन,
बरसो जग-जीवन के घन!
दिशि-दिशि में औ पल-पल में
बरसो संसृति के सावन!

कठिन शब्दार्थ-मृत = निर्जीव। चेतन = सजीव। मृन्मरण = मृत्यु का मरण। सुखमा = सौन्दर्य। दिशि = दिशा। पल = क्षण। संसृति = सृष्टि।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘प्रार्थना’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता छायावादी कवि सुमित्रानंदन पंत हैं। कवि बादल को धरती को नया जीवन देने वाला बताते हुए उससे वर्षा करने की प्रार्थना कर रहा है।

व्याख्या-कवि बादल से कहता है कि वह संसार के निर्जीव धूल के कणों में अपने जल की वर्षा द्वारा नवीन चेतना जाग्रत कर देता है, जिससे उसमें पेड़-पौधे तथा वृक्ष उत्पन्न होते हैं। वह अपने मधुर आलिंगन द्वारा संसार में नवजीवन देता है तथा मृत्यु का मरना भी रोक देता है। आशय यह है कि वर्षा का जल पेड़-पौधों को नवजीवन देने वाला होता है। है वह उतर रही। संध्या-सुन्दरी परी-सी धीरे-धीरे-धीरे -सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

3.
अनिल पुलकित स्वर्णाचल लोल,
मधुर नूपुर-ध्वनि खग -कुल रोल,
सीप से जलदों के पर खोल,
उड़ रही नभ में मौन!।
लाज से अरुण-अरुण सुकपोल,
मदिर अधरों की सुरा अमोलबने
पावस घन स्वर्ण-हिंडोल,
कहो एकाकिनि कौन?
मधुर, मंथर तुम मौन॥

कठिन शब्दार्थ-पुलकित = रोमांचित। लोल = हिलता हुआ। नूपुर = मुँघरू। रोल = रोर, स्वर। पर = पंख। सुकपोल = सुन्दर गाल। मदिर = मदपूर्ण, नशीले। सुरा = शराब। अमोल = अमूल्य। पावस = वर्षा ऋतु॥

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘सन्ध्या’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता प्रसिद्ध छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पंत हैं।

कवि ने सन्ध्या काल का मनोरम चित्रण किया है। सन्ध्या एक सुन्दरी स्त्री है जो मौनभाव से धीरे-धीरे धरती की ओर आ रही है।

व्याख्या- कवि कहता है कि सन्ध्या का सुनहरा आँचल हवा के कारण हिल रहा है। पक्षियों के कलरव के रूप में उसके नूपुर मधुर ध्वनि में बज रहे हैं। अर्थात् पक्षियों का कलरव उसके नूपुरों से निकली मधुर आवाज है। जैसे बादलों के पंखों को खोलकर वह आकाश में मौन रहकर उड़ रही है। लज्जा के कारण उसके सुन्दर गाल लाल हो रहे हैं। उसके होंठ अमूल्य सुरा के समान मारक है। वह वर्षा के बादलों के स्वर्णिम हिंडोले में धीमी गति से झूल रही है। कवि संध्या-सुन्दरी से पूछता है कि अकेली ही धीमी गति से वहाँ विचरण कर रही मधुर मौनधारिणी वह कौन है?

विशेष-
(i) भाषा सरस, साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ है।
(ii) शैली चित्रात्मक और सजीव है।
(iii) सांगरूपक, मानवीकरण, अनुप्रास अलंकार हैं।
(iv) सन्ध्या को एक रूपसी स्त्री के रूप में प्रस्तुत किया है।

दुत झरो

4.
द्वत झरो जगत के जीर्णपत्र।
हे स्वस्त ध्वस्त! हे शुष्क शीर्ण!
हिमताप पीत, मधुवात भीत
तुम वीत-राग जड़ पुराचीन!!
निष्प्राण विगत युग! मृत विहंग!
जग नीड़ शब्द और श्वासहीन
च्युत अस्त व्यस्त पंखों से तुम,
झर-झर अनन्त में हो विलीन!

कठिन शब्दार्थ-दुत = तेजी से। जगत = संसार। जीर्ण = पुराने, पीले पड़े हुए। पत्र = पत्ते। सस्त = गिरा हुआ। ध्वस्त = नष्ट हुआ। शुष्क = सूखा। शीर्ण = क्षीण, दुर्बल। हिम = बर्फ। ताप = धूप। वीतराग = विरक्त, आसक्तिहीन। जड़ = निर्जीव। पुराचीन = प्राचीन। निष्प्राण = प्राणहीन। विहंग = पक्षी। नीड़ = घोंसला। च्युत = अलग। अनन्त = जिसका अन्त न हो, अमर॥

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित द्रुत झरो’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता कविवर सुमित्रानन्दन पन्त हैं।

परिवर्तन संसार का नियम है। पुराना युग जाता है तथा नया आता है। वृक्षों से पुराने पत्ते टूटते हैं और उनके स्थान पर नए पत्ते आते हैं। कवि पुरातन से जाकर नवागतों के लिए मार्ग प्रशस्त करने को कहता है।

व्याख्या– कवि कहता है कि हे संसार के पुराने पत्ते, तुम शीघ्र ही झड़ जाओ। तुम डाल से गिरकर नष्ट हो चुके हो। तुम सूख और मुरझा चुके हो। बर्फ और धूप के कारण तुम पीले पड़ चुके हो। बसन्त की तेज चलने वाली हवा से तुम्हें दूर उड़ जाने का भय है। तुम संसार की भोगलिप्सा से विरक्त, निर्जीव और प्राचीन हो चुके हो।

तुम बीते हुए प्राणहीन युग हो। तुम मृत पक्षी हो। तुम्हारा संसार रूपी घोंसला नष्ट हो चुका है। तुम साँस लेने में असमर्थ हो तथा चहचहाने में भी समर्थ नहीं हो। तुम्हारे पंख अस्त-व्यस्त होकर टूट चुके हैं। तुम पंखविहीन हो गए हो। कवि पेड़ के पीले पत्ते को बीते हुए युग के समान प्रयोजनहीन बता रहा है। उसको मृत पक्षी के समान भी बताया गया है। कवि जर्जर पीले पत्तों से कहता है कि वे झड़कर अनन्त में विलीन हो जायें।

विशेष-
(i) भाषा सरस, साहित्यिक, संस्कृतनिष्ठ है।
(ii) पेड़ के जर्जर पीले पत्तों के माध्यम से पुराने समय तथा परंपराओं की विदाई का आग्रह किया गया है।
(iii) पुरानों का जाना आवश्यक है, तभी नवीन उसका स्थान ले सकेंगे।
(iv) अनुप्रास, मानवीकरण, सम्बोधन आदि अलंकार हैं।

5.
कंकाल जाल जग में फैले
फिर नवल रुधिर-पल्लव लाली!
प्राणों के मर्मर से मुखरित
जीवन की मांसल हरियाली!
मंजरित विश्व में यौवन के
जगकर जग का पिक,
मतवाली निज अमर प्रणय स्वर मदिरा से
भर दे फिर नवयुग की प्याली।

कठिन शब्दार्थ-कंकाल = अस्थिपंजर। नवल = नई। पल्लव = नए लाल पत्ते। मर्मर = ध्वनि। मुखरित = ध्वनित। मांसल = सजीव। मंजरित = फूल से लदे हुए। पिक = कोयल। प्रणय = प्रेम। मदिरा = शराब।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘दुत झरो’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सुमित्रानंदन पंत हैं।

कवि वृक्ष के जर्जर पत्तों से शीघ्र ही झड़ने के लिए कह रहा है। जर्जर पत्ते बीते हुए समय तथा उसकी सन्दर्भहीन मान्यताओं के प्रतीक हैं। कवि चाहता है कि प्राचीन अन्धविश्वास समाप्त हों तथा नवीन विचार उनका स्थान ग्रहण करें।

व्याख्या- कवि कहता है कि अब संसार में गत युग के अस्थिपंजर ही शेष रह गए हैं। विगतं युग के इन अस्थि पंजर में नवीन रक्त की लालिमा वाले पत्ते उत्पन्न हों। जिस प्रकार पुराने पीले पत्ते टूटकर गिरते हैं और उनका स्थान नवीन रक्तिम पल्लव ले लेते हैं, उसी प्रकार पुराने युग की मान्यताएँ जाएँ और उनका स्थान नवयुग के उपयोगी विचार ग्रहण करें। जीवन की उखड़ी-उखड़ी ध्वनि से नवजीवन का आनन्द पूर्ण स्वर प्रकट हो। युवावस्था के पुष्पित संसार में मतवाली कोयल का मधुर स्वर गूंजे। वह अपने अमर प्रेम की शराब से नवीन युग की प्याली को फिर से भर दे। कवि का आशय यह है कि पुरातन युग की टूटी-फूटी मान्यताएँ और विश्वास जाएँ और उनके स्थान पर नवीन युग की जनोपयोगी विचारधारा लें।

विशेष-
(i) भाषा सरस, साहित्यिक तथा संस्कृतनिष्ठ है॥
(ii) शैली प्रतीकात्मक है।
(iii) वृक्ष के पुराने पीले पत्ते विगत युग की सड़ी-गली मान्यताओं के प्रतीक हैं, जिनको शीघ्र ही चले जाना चाहिए।
(iv) रूपक और अनुप्रास अलंकार है।
(v) भाव साम्य-
राह रोककर खड़े न होना।
सारा श्रेय तुम्हें ही देंगे,
अपने पूर्वजों की उदारता
जीवनभर ये याद रखेंगे
ओ पीपल के पीले पत्ते!

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