RBSE Solutions for Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 नंदलाल जोशी

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 नंदलाल जोशी

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शील’ का शाब्दिक अर्थ है –
(क) ज्ञान
(ख) गुण
(ग) स्वभाव
(घ) चरित्र
उत्तर:
(घ) चरित्र

प्रश्न 2.
मर्यादित का विलोम शब्द है –
(क) संयमित
(ख) स्वतंत्र
(ग) उच्छृखल
(घ) परतंत्र
उत्तर:
(ग) उच्छृखल

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किस प्रकार का देश यश प्राप्त नहीं कर सकता ?
उत्तर:
परावलम्बी देश यश प्राप्त नहीं कर सकता।

प्रश्न 2.
हमारा उपभोग किस प्रकार का था?
उत्तर:
हमारा उपभोग मर्यादित था।

प्रश्न 3.
कवि ने किस प्रकार के लोगों को अपना मानने को कहा है ?
उत्तर:
भारत से प्रेम करने वाले लोगों को कवि ने अपना मानने को कहा है।

प्रश्न 4.
‘विष पीकर भी नहीं मरा’ पंक्ति में किस पौराणिक घटना की ओर संकेत किया गया है ?
उत्तर:
“विष पीकर भी नहीं मरा” पंक्ति में समुद्र मंथन की पौराणिक घटना की ओर संकेत है। मंथन में निकले विष को शिवजी पी गए थे।’

प्रश्न 5.
गहनतम अनुसंधान के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर:
गहनतम अनुसंधान के लिए ध्यान का एकाग्र होना आवश्यक है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राचीन भारत का निर्माण किस प्रकार के पुरुषार्थ से संभव हुआ ?
उत्तर:
प्राचीन भारत का निर्माण अपने ही अथक श्रम से संभव हुआ था। भारतीयों ने इसके निर्माण के लिए अपना जीवन अर्पित कर दिया था। उनका उपभोग संयमित था और प्रत्येक व्यक्ति पवित्रतापूर्ण जीवन बिताता था।

प्रश्न 2.
ईश विधान से संचालित सृष्टि से क्या आशय है?
उत्तर:
इस सृष्टि का संचालन जिस नियम से होता है, उसकी रचना करने वाला ईश्वर ही है। समस्त संसार उसी ईश्वर के बनाए हुए विधान से संचालित हो रहा है।

प्रश्न 3.
“अपने-अपने मार्ग विशेष”- में भारत की कौनसी परंपरा का बोध होता है?
उत्तर:
‘अपने-अपने मार्ग विशेष’ में भारत की विविधता की ओर संकेत है। भारत में अनेक धर्म, मत-मतान्तर आदि प्रचलित रहे हैं तथा ईश्वर को पाने के उसके मार्ग तथा पद्धतियाँ भी अलग-अलग रही हैं।

प्रश्न 4.
‘कालातीत दर्शन’ से क्या आशय है? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय दर्शन अर्थात् आध्यात्मिक विचारधारा शाश्वत और चिरंतन है। हमारे पूर्वजों ने सत्य का साक्षात्कार बहुत पहले ही कर लिया था। उनके द्वारा सत्य का देखा गया स्वरूप समय के परिवर्तन चक्र से अप्रभावित है।

प्रश्न 5.
‘नेत्र तीसरा फिर से खोल’ पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
शिवजी के द्वारा अपना तीसरा नेत्र खोलते ही सामने स्थित कामदेव भस्म हो गया था। कवि कहना चाहता है कि भारत को भी अपने शत्रु का विनाश करने के लिए कठोर प्रतिज्ञा तथा प्रयास करना चाहिए।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अपनी नवरचनाएँ होंगी अपनी ही पहचान से’-के माध्यम से भारत की समृद्धि के रहस्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि ने भारत के अतीत सम्बन्धी ज्ञान और सुख-समृद्धि का कारण उसकी आत्मनिर्भरता को माना है। भारत विश्व को देता था, उससे लेता नहीं था। विश्व भर को सभ्यता और संस्कृति का निर्यात भारत ने ही किया था। जब अन्य देशों के लोग असभ्य और जंगली थे तब भारत में ज्ञानोदय हो चुका था। ज्ञान की ज्योति भारत में उदित हुई थी और यहाँ से ही उसकी किरणें समस्त विश्व में फैली थीं। उस समय हमारे पोत विश्व के अनेक नगरों के तटों पर जा रहे थे। यहाँ के व्यापारी दूर-दूर तक आते-जाते थे। उनके उद्योगों का माल विश्वभर में बेचा जाता था। इससे हमारा भारत परम समृद्धिशाली था।

विगत समय में पराधीनता काल में भारत ने अपना यह स्वरूप भुला दिया है। आज देश स्वाधीन है तथा नवनिर्माण के मार्ग पर चल पड़ा है। भारत के विकास और समृद्धि के पंथ तलाशे जा रहे हैं। इसके लिए हम विदेशों से तकनीक और पूँजी का भारत में आव्हान कर रहे हैं। विकास का यह मार्ग कर्ज का मार्ग है। कवि इससे सहमत नहीं है। वह स्वदेश की समृद्धि के लिए आत्मनिर्भरता को आवश्यक समझता है। हम भारत में नवनिर्माण करना चाहते हैं। इसके लिए हमको अपना स्वरूप पहचानना होगा। स्वयं लगन और श्रम के साथ उन्नति के पथ पर अग्रसर होना होगा। जब तक भारतीय अपनी क्षमताओं को नहीं पहचानेंगे’ अपनी योग्यता का आकलन नहीं करेंगे, तब तक भारत का सच्चा निर्माण नहीं होगा। अपनी पूँजी, अपनी तकनीक, अपना श्रम यही भारत के नवनिर्माण का मार्ग है।

प्रश्न 2.
‘मायावी संसार चक्र में कदम बढ़ाओ ध्यान से’ पंक्ति के माध्यम से कवि का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
माया भ्रम पैदा करती है। माया के प्रभाव के कारण ही मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को भुलाकर संसार के मायावी रूप से आकर्षित होता है। इस आध्यात्मिक भाव के अनुसार ही सन्त कबीर ने माया को ठगने वाली कहा है।-‘माया महाठगनि हम जाने।’ इस आध्यात्मिक भाव से हटेकर भी देखा जाय तो भ्रम मनुष्य को सच के समझने में बाधक ही होता है। कवि जोशी जी ने संसार में फैले हुए इसी भ्रम से बचकर रहने को कहा है। भ्रम में पड़कर हम अपने देश का उत्थान सही तरीके से नहीं कर पायेंगे। भारतीय भ्रम में पड़े हैं कि वे देश का उत्थान दूसरों के सहारे कर सकेंगे। तभी तो हमारे नेता देश-देश का दौरा करते हैं और विदेशी पूँजी और तकनीक की याचना करते फिरते हैं। स्वदेश की प्रगति और उत्थान के लिए इससे मुक्त हो, की जरूरत है।

भारत अपने पैरों पर खड़ा तभी होगा जब हम आत्मगौरव के भाव से भर उठेंगे। अपने गौरवशाली स्वरूप का भान होने पर ही देश आत्मनिर्भर होगा। इसके लिए हमको भारतीयों में आपसी प्रेम तथा विश्वास को जगाना होगा। हमको इस भ्रम से बचना होगा कि भारत की उन्नति दूसरों का सहारा लेकर हो सकती है। जो दूसरों का सहारा लेता है, उसकी प्रशंसा कोई नहीं करता। आत्मनिर्भरता ही प्रशंसनीय गुण है। भारतीय आत्मनिर्भर होकर ही देश को आगे बढ़ा सकते हैं तथा समृद्धिशाली बना सकते हैं, दूसरों की अच्छाइयों को गिनने से, उनकी उपलब्धियों का गुणगान करने से भारत उन्नत नहीं होगा। अत: संसार में फैले पराश्रय के भय से बचना जरूरी है।

प्रश्न 3.
अधिकार और कर्तव्यों के समन्वये पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
अधिकार खोकर बैठ रहना भी महादुष्कर्म है। न्यायार्थ अपने बन्धु को भी दण्ड देना धर्म है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की ये प्रसिद्ध पंक्तियाँ अधिकार पाने की प्रेरणा देने वाली हैं। अधिकार पाने की इच्छा प्रत्येक मनुष्य में स्वाभाविक ही होती है। भारत के संविधान के अनुसार भारतीय नागरिकों को अनेक अधिकार प्राप्त हैं। इनको मौखिक अधिकार कहते हैं। देश के किसी भी भूभाग में रहने-बसने का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार, अपनी इच्छानुसार किसी धर्म को मानने का अधिकार समानता का अधिकार, सम्पत्ति के अर्जन करने और रखने का अधिकार इत्यादि। नागरिकों को राज्य की ओर से इसी प्रकार के अन्य अनेक अधिकार प्राप्त होते हैं। अधिकार प्रायः जनतंत्रात्मक शासन में ही नागरिकों को प्राप्त होते हैं। इन अधिकारों का उपयोग करने के साथ ही नागरिकों के कुछ कर्तव्य भी होते हैं। डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल का कहना है कि राज्य की उपलरियों में हिस्सा पाने का प्रत्येक मनुष्य को अधिकार है।

कर्तव्य के प्रति प्राय: उपेक्षा का भाव देखा जाता है। लोग अधिकार तो प्राप्त करना चाहते हैं किन्तु राष्ट्र और समाज के प्रति कर्तव्य पालन पर ध्यान नहीं देते। कर्त्तव्य और अधिकारों का अन्योन्याश्रित सम्बन्ध होता है उनमें समन्वय का होना आवश्यक होता है। डॉ. सम्पूर्णानन्द ने मनुष्य के कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए कहा है कि कर्त्तव्य अनेक होते हैं तथा समाज के अनेक लोगों के प्रति होते हैं। कर्तव्यों की डोर पूर्वजों से लेकर सन्तति तक फैली हुई है। एक ओर हमारे कर्त्तव्य अपनी पूर्व पीढ़ी अर्थात् पूर्वजों के प्रति भी होते हैं। वहीं जिस देश के हम नागरिक हैं उनके प्रति भी हमारे कर्तव्य होते हैं। हमको चाहिए कि अपने देश, समाज और परिवार के प्रति कर्तव्य पालन में सजग रहें। कर्तव्य पालन करने वाले को अधिकारों की चिन्ता नहीं करनी चाहिए, वे तो कर्तव्यशील व्यक्ति को अपने आप प्राप्त हो जाते हैं।

प्रश्न 4.
‘गौरवशाली परम्परा’ गीत में भारत की किन-किन परम्पराओं का उल्लेख हुआ है ? विस्तार से बताइए।
उत्तर:
‘गौरवशाली परम्परा’ गीत में भारत की अनेक परम्पराओं का उल्लेख कवि ने किया है। जीवन के प्रति भारत का दर्शन आदर्श से परिपूर्ण है तथा उनके विचार परिपक्व हैं। भारत की विचारधारा समय के प्रभाव से परे। है। वह समस्त सृष्टि को अपने समान मानता है। भारत में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ (पूरा विश्व ही एक परिवार है।) तथा धरती को सबकी माता मानने की विचारधारा मान्य है।

भारत में ईश्वर के अनेक रूपों की पूजा होती है अर्थात् यहाँ बहुदेववाद को माना जाता है। सभी पंथों के अनुयायी अपने-अपने मतों के अनुसार श्रद्धा भक्ति और निष्ठा के साथ उसकी उपासना करते हैं। उनके मूल में एक सत्य का भाव निहित है। भारतीय परम्परा से ही सत्य, शील, संयम, मर्यादा, शुद्ध आचरण, करुणा, सेवा आदि का पालन करते हैं। भारत में आत्मा को . अजर-अमर माना जाता है। शिव भारत के ऐसे देवता हैं जो विष पीकर भी जीवित रहते हैं।

भारत के लोग एकाग्र होकर ईश्वर का ध्यान करते हैं। कला, शिल्प, संगीत, रसायन, गणित, अणु, आयुर्वेद आदि के सम्बन्ध में उन्होंने अनुसंधान किया है। भारतीय परम्परा से ही शूर-वीर हैं। वे पराक्रमी और शास्त्रों से सुसज्जित होकर रणभूमि में उतरते हैं तो शिव का तीसरा नेत्र खुल जाता है। सिर कटने पर भी वे युद्ध में पीठ नहीं दिखाते । मृत्यु भी उनके इस स्वरूप को देखकर डर जाती है। आज भारत नवनिर्माण के पथ पर चल पड़ा है। परम्परा से प्राप्त इन गुणों से ही उसका निर्माण होगा।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत अपने पैरों पर खड़ा होगा –
(क) अपने अतीत गौरव का भान होने से
(ख) अतीत में हुई भूलों पर विचार करने से
(ग) वर्तमान समस्याओं पर चिन्तन करने से
(घ) पड़ौसी राष्ट्रों की सहायता-सहयोग से
उत्तर:
(क) अपने अतीत गौरव का भान होने से

प्रश्न 2.
भारत को सावधान रहना है –
(क) छिपे हुए शत्रुओं से
(ख) पड़ौसी राष्ट्रों से
(ग) देश विधातक षडयंत्रों से
(घ) देश विभाजक जनों से
उत्तर:
(ग) देश विधातक षडयंत्रों से

प्रश्न 3.
वही अपना है, जो –
(क) समस्त विश्व से प्रेम करे
(ख) जो भारत से प्रेम करे
(ग) परिवार से प्रेम करे
(घ) हमको अपना माने.
उत्तर:
(ख) जो भारत से प्रेम करे

प्रश्न 4.
अखिल विश्व को जीवन देने वाला है –
(क) चन्द्रमा
(ख) सूर्य
(ग) आकाश
(घ) धरती
उत्तर:
(घ) धरती

प्रश्न 5.
परमेश्वर के रूप अनेकों माने जाते है –
(क) एकेश्वरवाद में
(ख) बहुदेववाद में
(ग) सर्वदेववाद में
(घ) वेदों में
उत्तर:
(ख) बहुदेववाद में

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुख और सम्मान से जीने का उपाय क्या है?
उत्तर:
आपस में प्रेम और विश्वास होना सुख और सम्मान से जीने के लिए आवश्यक है।

प्रश्न 2.
संसार में कौन प्रशंसनीय नहीं होता ?
उत्तर:
परावलम्वी मनुष्य संसार में प्रशंसनीय नहीं होता।

प्रश्न 3.
संसार में ध्यानपूर्वक चलना क्यों जरूरी है ?
उत्तर:
संसार में अनेक मायावी चक्रे फैले हुए हैं, उससे बचने के लिए ध्यानपूर्वक चलना जरूरी है।

प्रश्न 4.
अपने साधन नहीं बढ़ेंगे औरों के गुणगान से’-को आशय क्या है ?
उत्तर:
दूसरों की स्तुति, प्रशंसा अर्थात् चापलूसी करने से आपके साधनों का विकास नहीं होता। उन्नति के लिए अपने ऊपर निर्भरता और विश्वास करना ही श्रेष्ठ उपाय है।

प्रश्न 5.
भारतीय ज्ञान की विशेषता क्या है ?
उत्तर:
भारत ने समस्त विश्व को ज्ञान देकर उसका मार्गदर्शन किया है।

प्रश्न 6.
कवि देशवासियों से अधिकारों-कर्तव्यों के बारे में क्या कहता है?
उत्तर:
कवि देशवासियों से कहता है कि उनको अधिकारों की ही बात नहीं करनी चाहिए व देश-समाज के प्रति अपने कर्तव्यों के पालन पर भी ध्यान देना चाहिए।

प्रश्न 7.
कवि की दृष्टि में अपना कौन है?
उत्तर:
कवि की दृष्टि में भारत भूमि से प्रेम करने वाले ही अपने हैं।

प्रश्न 8.
‘कोई ऊपर नहीं रहेगा भारत के संविधान से’-पंक्ति में क्या संदेश दिया गया है?
उत्तर:
इस पंक्ति द्वारा संदेश दिया गया है कि भारत संविधान से शासित है। किसी को भी मनमानी करने का अधिकार नहीं है।

प्रश्न 9.
‘सारा जग परिवार हमारा’ में किस भारतीय विचारधारा की अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर:
‘सारा जग परिवार हमारा’ में ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की मान्य विचारधारा की पुष्ट अभिव्यक्ति हुई है।

प्रश्न 10.
भारत में ईश्वर की पूजा किस विधि से होती है ?
उत्तर:
भारत में ईश्वर की अनेक रूपों में पूजा होती है। इसके लिए अनेक पंथ हैं जो अपनी-अपनी विधि से पूजा करते हैं।

प्रश्न 11.
‘विष पीकर भी नहीं मरा’-विष पीकर कौन नहीं मरा था ?
उत्तर:
समुद्र मंथन में निकले विष को शिवजी ने पी लिया था परन्तु उनकी मृत्यु नहीं हुई थी।

प्रश्न 12.
भारतीय वीरों के प्रमुख गुण कौन-से बताये गये हैं?
उत्तर:
शौर्य, पराक्रम, अतुल तेज, वीरता तथा युद्ध भूमि में डटे रहना भारतीय वीरों के प्रमुख गुण हैं।

प्रश्न 13.
कवि स्वतंत्र भारत से क्या आशा करता है ?
उत्तर:
कवि आशा करता है नवीन तेज और चेतना लेकर फिर से खड़ा हुआ भारत दुष्टों का दृढ़तापूर्वक दमन करे।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पृथ्वी से आदिकाल से समस्त संसार को क्या प्राप्त होता रहा है।
उत्तर:
पृथ्वी जीवनदायिनी है। आदिकाल से ही पूरा विश्व इस पृथ्वी से जीवन प्राप्त करता रहा है। धरती पर सृष्टि के आरम्भ से ही अनेक जीव-जन्तु रहे हैं।

प्रश्न 2.
भारतीय धरती तथा उसके निवासियों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करते हैं?
उत्तर:
भारतीय धरती को अपनी माता मानते हैं। धरती पर रहने वाले सभी स्त्री-पुरुष उनके बहिन-भाई हैं। यह सम्पूर्ण पृथ्वी एक ही परिवार है और सभी पृथ्वीवासी. उसी परिवार के अंग हैं।

प्रश्न 3.
‘परमेश्वर के रूप अनेकों’ कहने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
कवि ने ईश्वर के अनेक रूप बताये हैं। इसमें कवि का संकेत भारत में विकसित आध्यात्मिक धारा की ओर है। वेदों के एक ईश्वर से लेकर पौराणिक काल में विकसित हुई अनेक देवी-देवताओं की बहुदेववाद की विचारधारा का उल्लेख इसमें किया गया

प्रश्न 4.
विभिन्न पंथों तथा आध्यात्मिक विचारों के बारे में कवि ने क्या कहा है।
उत्तर:
कवि ने कहा है कि भारत में अनेक पंथ तथा आध्यात्मिक विचारधारायें प्रचलित हैं। सब अपने-अपने मत का पालन करते हैं। उनमें किसी प्रकार का द्वेष-भाव नहीं है। अपने पंथ के साथ-साथ दूसरे पंथों के प्रति भी इनके मन में सम्मान का भाव रहता

प्रश्न 5.
कवि के अनुसार भारतीय किन सद्गुणों से ओतप्रोत हैं?
उत्तर:
कवि के अनुसार भारतीय शील, सत्य, संयम, मर्यादा, विशुद्ध आचरण, करुणा, प्रेम, सेवा आदि सद्गुणों से ओतप्रोत हैं। तपस्या उनके जीवन को सार है तथा वे अमर आत्मा को मानने वाले हैं।

प्रश्न 6.
भारतीयों ने किन-किन ज्ञान-विधाओं की खोज की है?
उत्तर:
भारतीयों ने स्वयं को ज्ञान की खोज के प्रति समर्पित कर रखा है। प्राचीनकाल में ही उन्होंने, ज्ञान की अनेक शाखाओं में महत्वपूर्ण खोज की थी। कला, शिक्षा, संगीत, रसायन, गणित, अणु, आयुर्वेद आदि क्षेत्रों में भारतीयों ने महत्वपूर्ण अनुसंधान किए हैं। गणित में शून्य अंक भारतीयों की ही खोज है।

प्रश्न 7.
युद्ध भूमि में भारतीय अपना पराक्रम किस प्रकार प्रदर्शित करते थे?
उत्तर:
भारतीय वीर तथा पराक्रमी हैं। युद्ध भूमि में शत्रु उनकी क्रोधाग्नि में जलकर नष्ट हो जाता था। वे युद्ध भूमि से कभी पलायन नहीं करते थे। सिर कटने पर भी वे युद्ध भूमि में डटे रहते थे।

प्रश्न 8.
फिर से भारत राष्ट्र खड़ा’ कहने से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि का आशय यह है कि हजारों सालों की पराधीनता के पश्चात् आज भारत स्वतंत्र है और वह एक गणराज्य है। आज वह विकास के पथ पर चल रहा है। उसमें नवीन चेतना और तेज है। वह दुष्टों के दमन के लिए कृत संकल्प है। उसकी शक्ति विराट है। तथा उसके नागरिक कर्तव्य परायण हैं।

प्रश्न 9.
कवि भारत के विकास के लिए किस पथ को अपनाने की सलाह दे रहा है?
उत्तर:
कवि का मत है कि भारत का विकास अपनी शक्ति को पहचानने और अपने पैरों पर खड़े होने से ही होगा। दूसरों की उपलब्धियों की प्रशंसा करने से भारत को कुछ नहीं मिलने वाला । परावलंबी देश को कभी यश प्राप्त नहीं हो सकता। संसार में छल-कपट फैला हुआ है। इससे बचकर आत्मनिर्भर होने से ही स्वदेश का उत्थान होगा।

प्रश्न 10.
भारत ने विश्व को ज्ञान का दान किस प्रकार दिया था?
उत्तर:
भारत एक प्राचीन देश है जिसमें विश्व में सर्वप्रथम ज्ञान की ज्योति जली थी। प्राचीन भारत ज्ञान-विज्ञान और वैभव से परिपूर्ण था। उसने समस्त संसार को शिक्षा प्रदान की तथा ज्ञान का दान दिया। यहाँ के परिव्राजक साधु-संत विदेशों में जाकर भारत के ज्ञान का प्रचार करते थे। यहाँ के विश्वविद्यालयों में अनेक देशों के छात्र पढ़ने आते थे।

प्रश्न 11.
नवभारत के विकास और उत्थान में ईश्वर तथा मानव का क्या योगदान संभव है?
उत्तर:
भारत स्वाधीन हो चुका है। हमको उसका नवनिर्माण करना है। यह सृष्टि ईश्वर के बनाए हुए नियमों से चलती है। इस बात का ध्यान रखते हुए भारत के नवनिर्माण में नागरिकों के श्रम का योजनाबद्ध ढंग से प्रयोग किया जाना आवश्यक है। इसमें भारतीय पूँजी, श्रम तथा प्रबन्धन की योजना बनाकर तथा प्रकृति के अनुकूले चलकर ही भारत का विकास किया जा सकता है। इसके लिए अपनी क्षमताओं की पहचान जरूरी है।

प्रश्न 12.
भारत के उत्थान तथा विकास में क्या बाधा है?
उत्तर:
भारत विकास पथ का पाथेय है। इसको सही मार्ग का दर्शन करने वाले बुद्धिमान लोग भटक गए हैं। उनको अपने ऊपर भरोसा नहीं है। वे दूसरों को ओर ताक रहे हैं। भारतीयों में आपस में टूट-फूट है। क्षुद्रता और स्वार्थ उनको पथभ्रष्ट कर रहे हैं। उनके अच्छे गुण उनसे छूट रहे हैं।

प्रश्न 13.
नवभारत के निर्माण के लिए नागरिकों की अधिकार लिप्सा के सम्बन्ध में कवि का क्या कहना है?
उत्तर:
कवि का कहना है कि यह नवीन भारत के निर्माण का काल है। सभी नागरिकों को इस पवित्र कार्य में हाथ बँटाने का अपना-अपना कर्तव्य पूरा करना है। यह अधिकारों के प्रति लिप्सा भाव उनको त्यागना होगा। यह अधिकारों की माँग करने का नहीं कर्तव्यों के पालन करने का समय है।

प्रश्न 14.
कवि ने देशवासियों को किसके प्रति सतर्क रहने को कहा है?
उत्तर:
कवि ने भारतीयों से कहा है कि स्वदेश के उत्थान और विकास का पालन और महान् कर्तव्य उनको पूरा करना है। देश को तोड़ने वाली अनेक शक्तियाँ इसके विरुद्ध षडयंत्र करने में लगी हैं। उनको इनसे सावधान रहने की आवश्यकता है।

RBSE Class 11 Hindi अपरा Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘देश उठेगा’ गीत के आधार पर बताइए कि नवभारत के निर्माण में कौन-सी बाधाएँ हैं?
उत्तर:
भारत स्वाधीनता प्राप्त होने के पश्चात् नवनिर्माण के पथ पर अग्रसर है। कवि के अनुसार इस सम्बन्ध में देश के सामने कुछ बाधाएँ हैं। देश के बुद्धिमान लोग अपने पथ से भटक रहे हैं। नवनिर्माण के लिए अपनी शक्ति और क्षमता को पहचानना जरूरी है। वे यह भूलकर कि अपनी शक्ति के प्रयोग से ही देश उठेगी, दूसरों की ओर देख रहे हैं। भारतवासियों में आपस में एकता के स्थान पर टूट-फूट है। लोगों में क्षुद्रता की तथा स्वार्थ की भावनाएँ उत्पन्न हो रही हैं। उनके अनेक श्रेष्ठ गुण नष्ट होते जा रहे हैं। उनके स्वत्व की धारा कमजोर हो रही है।

आज भारतवासियों में अधिकार पाने की प्रबल इच्छा जाग उठी है। उनकी यह दृष्टि आपसी संघर्ष को जन्म देती है। कर्तव्यपरायणता जो देश के उत्थान के लिए आवश्यक है, धीरे-धीरे लोगों के मन से गायब होती जा रही है। नागरिकों को अपनी उन्नति के लिए समान अवसर उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। उनको धर्म-जाति आदि के आधार पर बाँटा जा रहा है। इससे देश दु:खी है। देशद्रोही तरह-तरह के षडयंत्र करके देश को पीछे धकेल रहे हैं। देश की स्वतंत्रता के लिए पड़ौसी राष्ट्र भी खतरा बने हुए हैं तथा तरह-तरह के षड्यंत्र कर रहे हैं। इस प्रकार भारत के विकास में भीतर तथा बाहर-दोनों ही ओर से बाधाएँ उत्पन्न की जा रही हैं। “कवि ने देशवासियों को इन सभी के प्रति सतर्क और सावधान रहने को कहा है।

प्रश्न 2.
‘गौरवशाली परम्परा’ कविता के अनुसार भारत के अतीत गौरव का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
‘गौरवशाली परम्परा’ कविता में कवि ने भारत के गौरवशाली अतीत का वर्णन किया है। भारत की दार्शनिक विचारधारा पूर्ण तथा परिपक्व रही है तथा उस पर देश-काल का प्रभाव नहीं होता। भारत में सभी प्राणियों में एक ही अमर आत्मा के दर्शन किए जाते हैं। भारतीय पूरे विश्व को एक ही परिवार मानते हैं तथा सभी मनुष्य उस एक परिवार के ही सदस्य हैं। भारतीय विचारधारा में पृथ्वी को माता तथा सभी मनुष्यों को उसकी सन्तान माना जाता है।

भारत में अनेक पथ तथा मत-मतांतर हैं। उनके अनुसार अनेक देवी-देवता हैं। ये सभी देवी-देवता ईश्वर के ही हैं। सबके केन्द्र में एक ही सत्य विद्यमान है अर्थात् सबमें एक ही ईश्वर विविध स्वरूपों में स्थित है। इसको भारतीय दर्शन में ‘बहुदेववाद’ कहा जाता है। भारतीय शील, सत्य, संयम, मर्यादा, शुद्धाचरण, करुणा, प्रेम, सेवा, तप आदि गुणों से युक्त रहे हैं। वे अमरता के पूजक हैं तथा प्रत्येक प्राणी में अमर आत्मा के दर्शन करते हैं। भारत में अनेक कलाओं, शिल्पों, संगीत, रसायन, अणु, आयुर्वेद आदि का विकास हुआ तथा समस्त विश्व को इनकी शिक्षा भारत से प्राप्त हुई। शौर्य, पराक्रम और तेजस्विता भारतीयों को परम्परा से ही प्राप्त रहे हैं। उनकी वीरता के सामने भूमण्डल भी प्रकम्पित होता है। शत्रु उनसे भय खाते हैं। वे युद्ध में कभी पीठ नहीं दिखाते। इस प्रकार भारत का अतीतकालीन गौरव देश-विदेश में ज्ञात और विख्यात रहा है।

प्रश्न 3.
‘देश उठेगा’ गीत में कवि ने भारत के उत्थान के लिए क्या उपाय करने का आह्वान किया है?
उत्तर:
भारत लम्बी पराधीनता के पश्चात् स्वतंत्र हुआ है। वह अपने पिछड़ेपन, अशिक्षा, गरीबी आदि समस्याओं से मुक्त होने के लिए प्रयासरत हैं। कवि ने भारतीयों से इस सम्बन्ध में प्रयास करने का आह्वान किया है। कवि का स्पष्ट विचार है कि देश का उत्थान तभी हो सकता है जब प्रत्येक भारतीय अपने गौरव से अवगत रहे। अपनी सामर्थ्य, शक्ति आदि का स्पष्ट ज्ञान हुए बिना देश अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो सकता।। स्वावलम्बन विकास के लिए जरूरी है। परावलम्बी होकर भारत आगे नहीं बढ़ सकता। आज हम देश के विकास के लिए अपनी शक्ति का उपयोग न कर विदेशों की सहायता पर निर्भर हो गए हैं। कवि की दृष्टि में यह उचित नहीं है। उस संसार में बड़ा छल-कपट है। सब अपना-अपना हित साधन करना चाहते हैं। जब तक हम दूसरों के गुण गाते रहेंगे उनकी चापलूसी करेंगे और उन पर आश्रित रहेंगे, देश नहीं उठेगा।

भारत ने प्राचीनकाल से ही विश्व को ज्ञान दिया है। कलाएँ भारत से ही विश्व में फैली हैं। जीवन निर्माण में उन्होंने बहुत श्रम किया है। अपने इस समर्थ स्वरूप को याद करके परिश्रम करने से ही भारत का विकास होगा। देश के विकास के लिए भारतीयों को अपने मतभेद भुलाकर एकता स्थापित करनी होगी। विद्वानों को भटकाव से बचना होगा। स्वार्थ और क्षुद्र भावना का त्याग करना होगा। ‘स्वत्व’ भाव विकसित करना होगा। देशोत्थान अधिकारों की माँग करने से नहीं होगा। अधिकारों की बातें करना छोड़कर देश के प्रति कर्तव्यों का तथा अपने-अपने कर्तव्यों का पालन करने से ही देश उन्नत होगा। संविधान के शासन को सबको मानना होगा। किसी की मनमानी नहीं चलेगी। देशद्रोहियों को सख्ती से कुचलना होगा तथा देशप्रेमियों को अपना मानना होगा। इस प्रकार सजग रहकर काम करने से ही देश का उत्थान होगा।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित से सम्बन्धित अन्तर्कथाओं को लिखिए
(क) विष पीकर भी नहीं मरा।
(ख) नेत्र तीसरा फिर से खोला।
उत्तर:
(क) विषर पीकर भी नहीं मरा – पौराणिक कथा है कि जब समुद्र मंथन हो रहा था तो देवता और राक्षस दोनों ही इस काम में लगे थे। इस मंथन से चौदह रत्न निकलें थे उनमें अमृत तथा विष भी थे। देवता अमृत पीकर अमर होना चाहते थे। विष्णु भगवान ने विश्वमोहिनी का रूप धारण किया और अमृत कलश से देवताओं को अमृतपान कराया। उनमें एक राक्षस ने भी चुपके से अमृत पी लिया । विष्णु ने चुक्र से उसका सिर काट दिया, उसके दो टुकड़े हो गए। वे राहु और केतु कहलाए। विष से समस्त संसार के नष्ट होने का भय था। यह महान् संकट था। किसी की समझ में कुछ नहीं आ रहा था। तब शिवजी ने वह विष पी लिया। उन्होंने योगबल से उसको अपने कंठ में ही धारण कॅर लिया। इससे उनका कंठ नीला पड़ गया। उनको नीलकंठ कहा जाता है। इस विष की गर्मी से बचने के लिए श्विजी ने अपनी जटाओं में गंगा तथा माथे पर चन्द्रमा को धारण कर लिया। कंठ से नीचे विष के न उतरने के कारण शिवजी की मृत्यु नहीं हुई।

(ख) नेत्र तीसरा फिर से खोला – यह अन्तर्कथा भी शिवजी से ही सम्बन्धित है। शिवजी तपस्यारत थे। वह ध्यानस्थ थे। उधर पार्वती शिव को पतिरूप में पाने के लिए तपस्यारत थीं। इसके लिए शिवजी का ध्यान भंग होना आवश्यक था। रति के पति कामदेव पार्वती की सहायता के लिए सामने वाले वृक्ष पर चढ़ गये और उन पर अपने धनुष से फूलों के बाण छोड़े। शिवजी की समाधि भंग हो गई। इससे उनको क्रोध आया तो उनका तीसरा नेत्र खुल गया। उनको सामने कामदेव दिखाई दिया। उनकी दृष्टि पड़ते ही कामदेव भस्म हो गया। जब रति ने शिवजी से अपने पति को जीवित करने की प्रार्थना की तो उन्होंने उससे कहा-तेरा पति शरीर विहीन होने पर भी पूरे विश्व के प्राणियों पर शासन करेगा तथा जीवित रहेगा।

नंदलाल जोशी कवि परिचय

जीवन-परिचय-

नंदलाल जोशी का जन्म राजस्थान के बाड़मेर में हुआ था। आपने कक्षा 11 तक की पढ़ाई बाड़मेर में ही प्राप्त ‘की। उसके पश्चात् आप जोधपुर आ गए। जोधपुर के एम. बी. एम. इंजीनियरिंग कॉलेज से आपने सन् 1968 में माइनिंग में बी. ई. की उपाधि स्वर्ण पदक के साथ प्राप्त की। आप अत्यन्त मेधावी रहे हैं। कई बड़ी-बड़ी कम्पनियों से उच्च पदों की नौकरी के प्रस्ताव प्राप्त होने पर भी आपने उनको स्वीकार नहीं किया और अविवाहित रहकर देशसेवा में संलग्न हैं।

साहित्यिक परिचय-विज्ञान के विद्यार्थी होने पर भी आपकी साहित्य में गहरी रुचि है, अपनी पूज्य माताजी से कृष्ण लीला के पद सुनकर आपके मन में काव्य प्रतिभा जाग्रत हो उठीं। आपने अब तक 211 राष्ट्रप्रेम के गीतों तथा 161 देशभक्ति के भजनों की रचना की है तथा उनको अपना स्वर भी दिया है। उनमें ईश्वर की भक्ति तथा राष्ट्रप्रेम के भावों का ज्वार है। कृतियाँ-प्रेरणा पुष्पांजलि, भक्ति हिलौरें ‘मन मस्त फकीरी धारी है, अब एक ही धुन जय जय भारत’ आपकी रचना है।

पाठ-परिचय

देश उठेगा-यह नंदलाल जोशी का प्रथम गीत है, जो इस पाठ में संकलित है। इस गीत में गीतकार ने स्वदेश को प्रगति तथा उत्थान के बारे में बताया है। अपने पुराने गौरव का पहचानने से ही स्वदेश अपने पैरों पर खड़ा होगा। इसके लिए लोगों में स्नेहपूर्ण आत्म-विश्वास का भावना जगानी होगी। स्वावलम्बन ही स्वदेश को यशस्वी बनायेगा। परायों की स्तुति करने से अपने साधन नहीं बढ़ेंगे। प्राचीनकाल में भारत विश्व गुरु था और संसार को ज्ञान का दान देता था। भारत ने ही पूरे विश्व को विविध विद्याएँ सिखाई थीं। आज हम अपना स्वरूप भूल गए हैं। हम स्वार्थी हो गए हैं तथा हमने अपने श्रेष्ठ गुण भुला दिए हैं। हमें उनको पुनः स्मरण करना होगा।

हमें दृढ़ निश्चय करके स्वदेश को दुःखों से और अपमान से मुक्त करना होगा। इसके लिए अधिकारों की बातें न करके हमें अपने कर्तव्य निभाने होंगे। हमें राष्ट्र को विघटित करने वाले तत्वों से सतर्क रहना होगा। भारत की मिट्टी से प्रेम करने वाला हर व्यक्ति भारतीय है। भारत में संविधान के ऊपर कोई नहीं होगा। हम देशद्रोहियों को सख्ती के साथ नष्ट कर देंगे और स्वदेश को सशक्त और आत्मनिर्भर बनायेंगे। गौरवशाली परम्परा-‘गौरवशाली परम्परा’ जोशी जी का दूसरा गीत है। इसमें गीतकार ने भारत के अतीत गौरव का गायन किया है। भारत की यह गौरवशाली परम्परा है कि उसने प्राचीनकाल से ही समस्त संसार को नवजीवन दिया है।

भारतीय चिन्तन आदर्श जीवन का है। हमारे विचार परिपूर्ण और परिपक्व हैं। सारा संसार हमारा परिवार है, हमें किसी से राग-द्वेष नहीं है। ईश्वर के अनेक रूप हैं। अपने-अपने पंथ के अनुसार सब उसमें श्रद्धा रखते हैं किन्तु सभी एक सत्य की भावना से भरे हैं। भारत शील सत्य, मर्यादा और प्रेम का पुजारी है। भारतीय अमर तत्व के उपासक हैं। भारतीयों ने ज्ञान की विभिन्न विधाओं की खोज की है। तथा विश्व को उन्हें सिखाया है। भारतीय शूरवीर और पराक्रमी हैं। वे शस्त्रों से सुसज्जित होकर जब रणभूमि में उतरते हैं तो काल भी भयभीत हो जाता है। अनाचार देखते ही उनका तीसरा नेत्र खुल जाता है। आज भारत आत्मचेतना की नई आशा लेकर पुनः खड़ा हुआ है। वह दुष्टों के दलन के लिए गर्जना करता हुआ अपनी विराट शक्ति को प्रदर्शित कर रहा है। कवि चाहता है सभी भारतीय अपने-अपने धर्म का पालन दृढ़ता से करें। भारत की यह गौरवशाली परम्परा सदा बनी रहेगी।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ देश उठेगा
देश उठेगा

1.
अपने पैरों निज गौरव के भान से।
स्नेह भरा विश्वास जगाकर जीयें सुख सम्मान से॥
देश उठेगा॥
परावलम्बी देश जगत में, कभी न यश पा सकता है।
मृग तृष्णा में मत भटको, छीना सब कुछ जा सकता है।
मायावी संसार चक्र में कदम बढ़ाओ ध्यान से।
अपने साधन नहीं बढ़ेंगे औरों के गुणगान से …………..॥

कठिन शब्दार्थ-भान = ज्ञान होना। परावलम्बी = दूसरों पर आश्रित। मृगतृष्णा = भ्रम (प्यासे हिरण को रेगिस्तान में रेत पर बनी लहरें पानी जैसी प्रतीत होती हैं)। मायावी = छली, धोखे से भरा हुआ। साधन = उपाय॥

प्रसंग तथा संदर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘देश उठेगा’ शीर्षक गीत से लिया गया है। इसकी रचना गीतकार नंदलाल जोशी ने की है।

कविवर जोशी जी ने बताया है कि स्वदेश की प्रगति नागरिकों के सजग रहकर अपना कर्तव्य पालन करने से होगी। स्वयं कार्य करने तथा आत्मविश्वास से ही वह ऊपर उठेगा।

व्याख्या-कवि कहता है कि हमें अपने देश भारत का उत्थान करना है। इसके लिए हमको अपने पैरों पर खड़ा होना होगा तथा अपने अतीतकालीन गौरव को जानना होगा। हमें अपने देशवासियों में प्रेम और विश्वास की भावना पैदा करनी होगी। तभी हम सुख और सम्मान के साथ जी सकेंगे। जो देश दूसरों पर आश्रित होता है, वह संसार में कभी यश नहीं पा सकता है। हमको भ्रम से मुक्त होकर अपनी शक्ति पहचाननी होगी। हम अपना स्वत्व अपहर्ता से अपनी शक्ति का प्रयोग करके छीन सकते हैं। यह संसार बड़ा छली और कपटी है। इसमें सावधानीपूर्वक आगे बढ़ने की जरूरत है। यह ध्यान रहे कि दूसरों गुणगान करने से हमारी उपलब्धियों की वृद्धि नहीं होगी।

विशेष-
(i) कवि ने भ्रम मुक्त होकर अपने अतीत, गौरव तथा शक्ति को पहचानने का आह्वान किया है।
(ii) आत्मज्ञान और कर्तव्यपालन से ही देश की प्रगति होगी।
(iii) भाषा सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) गीत शैली है।

2.
इसी देश में आदिकाल से अन्न, रत्न, भण्डार रहा।
सारे जग को दृष्टि देता, परम ज्ञान आगार रहा॥
आलोकित अपने वैभव से, अपने ही विज्ञान से।
विविध विधाएँ फैली भू पर अपने हिन्दुस्तान से ……………..।

कठिन शब्दार्थ-आदिकाल = प्राचीनकाल। अपार = भण्डार। आलोकित = प्रकाशित। वैभव = ऐश्वर्य। विविध = अनेक। विद्या = ज्ञान की शाखायें।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित गीत ‘देश उठेगा’ से लिया गया है। इसके गीतकार नंदलाल जोशी हैं।

गीतकार भारत के अतीत, गौरव तथा ज्ञान और ऐश्वर्य के बारे में बता रहे हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि हमारा देश भारत प्राचीन काल से ही ज्ञान-सम्पन्न रहा है। यहाँ अन्न और मूल्यवान रत्नों का भण्डार सदा से रहा है। यह देश श्रेष्ठ ज्ञान से सदा सम्पन्न रहा है तथा इसने सभ्यता के आरम्भ से ही पूरे संसार को दिव्य ज्ञान सिखाया है। यह देश अपने ही ऐश्वर्य से तथा अपने ही ज्ञान से संसार में आलोकित रहा है। अपने देश भारत से ही संसार में ज्ञान की विभिन्न शाखाओं का विस्तार हुआ है।

विशेष-
(i) भाषा सरल और विषयानुकूल है।
(ii) गीत शैली है।
(iii) अनुप्रास अलंकार है। ओजगुण है।
(iv) भारत के अतीतकालीन ज्ञान और ऐश्वर्य का वर्णन है।

3.
अथक किया था श्रम अनगिन जीवन अर्पित निर्माण में।
मर्यादित उपभोग हमारा, पवित्रता हर प्राण में।
परिपूरक परिपूरण सृष्टि, चलती ईश विधान से।
अपनी नव रचनाएँ होंगी, अपनी ही पहचान से ……………..॥

कठिन शब्दार्थ-अथक= निरन्तर, बिना थके। मर्यादित = संयमपूर्ण। प्राण = प्राणी, जीवन। विधान = नियम।

संदभ तथा प्रसंग-उपर्युक्त पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘देश उठेगा’ शीर्षक गीत से अवतरित है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं।

कवि ने बताया है कि हमारा देश भारत अत्यन्त पुरातन है तथा इसके निर्माण में हमने अथक परिश्रम किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि हमने देश भारत के निर्माण में निरन्तर परिश्रम किया है। अनेक देशवासियों ने इसके निर्माण के लिए अपना जीवन समर्पित किया है। हमारा प्रत्येक देशवासी पवित्र जीवन जीता है। हम उपभोग्य वस्तुओं का प्रयोग संयमपूर्वक करते हैं। यह सम्पूर्ण सृष्टि ईश्वर के बनाए गए नियमों से चलती है। इस देश में जो नए नए-निर्माण होंगे, वे भारतीयों की जीवन दृष्टि के अनुरूप ही होंगे।

विशेष-
(i) भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण तथा सजीव है।
(ii) शैली वर्णनात्मक है।
(iii) गीतछंद है।
(iv) ओजगुण है।
(v) अनुप्रास अलंकार है।

4.
आज देश की प्रज्ञा भटकी, अपनों से हम टूट रहे।
क्षुद्र भावना स्वार्थ जगा है, श्रेष्ठ तत्व सब छूट रहे॥
धारा ‘स्व’ की पुष्ट करेंगे समरस अमृत पान से।
कर संकल्प गरज कर बोले, भारत स्वाभिमान से …………….॥

कठिन शब्दार्थ-प्रज्ञा = बुद्धि, बुद्धिमान लोग। भटकी = पथभ्रष्ट हो गई है। क्षुद्र = नीच। धारा = प्रवाह। स्व = अपनापन। समरस = समानता की भावना। संकल्प = निश्चय।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अपरा में संकलित ‘देश उठेगा’ शीर्षक गीत से अवतरित है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं। जोशीजी ने भारत की वर्तमान अवस्था का वर्णन किया है। गौरवशाली अतीत वाला भारत आज आपसी मतभेदों के कारण संकट में फंस गया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि आज देश के बुद्धिमान लोग मतभेदों के कारण भ्रमित हो रहे हैं और वास्तविकता से अलग हो गए। हैं। अपने ही देशवासियों से हम अलग हो रहे हैं। हमारे चरित्र के उच्च गुण पीछे छूट रहे हैं, किन्तु इससे निराश नहीं होना है। हम अपनेपन की धारा को प्रवाहित करेंगे। हम सभी देशवासियों को समानता तथा अपनेपन का अमृत पिलायेंगे। तब हमारा देश गर्जना करेगा और स्वाभिमानपूर्वक देश की एकता का संकल्प लेगा।

विशेष-
(i) गीत सरस, सरल और प्रवाहपूर्ण है।
(ii) गीत शैली है।
(iii) भारत की एकता के लिए अपनत्व और समानता को आवश्यक कहा गया है।
(iv) ओजगुण है।
(v) मानेवीकरण अलंकार है।

5.
केवल सुविधा अधिकारों की भाषा अब हम नहीं कहें।
हों कर्तव्य परायण सारे, अवसर सबको सुलभ रहें।
माँ धरती को मुक्त करेंगे, दुःख दुविधा अपमान से।
जय जय अम्बर में गूंजेगा सभी दिशा उत्थान से ……॥

कठिन शब्दार्थ-सुलभ = सरलता से प्राप्त। अम्बर = आकाश। उत्थान = प्रगति। संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘देश उठेगा’ शीर्षक गीत से लिया गया है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि हमको केवल अपनी सुख-सुविधाओं और अधिकारों की माँग नहीं करनी चाहिए। सभी देशवासियों को अपने-अपने कर्तव्यों का पालन सतर्कता के साथ करना चाहिए। देश में सभी को आगे बढ़ने और विकास करने के समान अवसर प्राप्त होने चाहिए। हमको धरती माता को अपमान और दुःख और दुविधा से मुक्त कराना होगा। तभी हमारे देश की जय-जयकार आकाश में गूंजेगी तथा सभी दिशाएँ देश के उत्थान की गाथाओं से गुंजायमान हो उठेगी।

विशेष-
(i) भाषा की सरसता और सरलता दर्शनीय है।
(ii) गीत शैली है।
(iii) ओजगुण और वीर रस है।
(iv) अनुप्रास अलंकार है।
(v) संदेश दिया गया है कि कर्तव्य परायणता से ही देश का उत्थान होगा।

6.
देश विघातक षड्यन्त्रों के जाल बिछे हैं सावधान।
इस माटी को प्रेम करे जो, बस उनको ही अपना मान॥
कोई ऊपर नहीं रहेगा, भारत के संविधान से।
देशद्रोहियों को कुचलेंगे, देशभक्त की शान से ……………॥
देश उठेगा अपने पैरों निज गौरव के भान से।
स्नेह भरा विश्वास जगाकर जीयें सुख सम्मान से॥

कठिन शब्दार्थ-विघातक = विघटन करने वाले; एकता नष्ट करने वाले। षडयंत्र = छल, धोखा। माटी = मिट्टी। द्रोही = विरोधी।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘देश उठेगा’ शीर्षक गीत से लिया गया है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं।

कवि सावधान करता है कि देश के विरुद्ध गुप्त रूप से छलपूर्ण आचरण करने वाले उसकी एकता भंग करना चाहते हैं। उनसे बचना जरूरी है।

व्याख्या-कवि कहता है कि आज भारत के सामने अपनी एकता की रक्षा की समस्या है। अनेक कुचक्री लोग देश की एकता के विरुद्ध कार्य कर रहे हैं। उनसे बचना जरूरी है। जो देश से प्रेम करते हैं, हमको उनको ही अपना मानना है। इस देश में संविधान के अनुसार शासन चलता है। संविधान के उल्लंघन का अधिकार किसी को नहीं है। देशभक्त शान के साथ देश-विरोधी लोगों के विरुद्ध उतरेंगे और उनको नष्ट कर देंगे। अपने गौरव का ज्ञान होने पर प्यारा देश भारत अपने पैरों पर शान से खड़ा हो जायेगा। प्रेम और विश्वास का भाव उत्पन्न होने पर सभी भारतीय सुख और सम्मान का जीवन बितायेंगे।

विशेष-
(i) भाषा सरल और सरस है।
(ii) गीत शैली है।
(iii) वीररस है।
(iv) कवि ने देशद्रोहियों के षडयंत्रों से सतर्क रहने को कहा है।

गौरवशाली परम्परा

7.
आदिकाल से अखिल विश्व को, देती जीवन यही धरा।
गौरवशाली परम्परा …….. जीवन की आदर्श चिन्तना,
परिपूरण परिपक्व विचार कालातीत है दर्शन अपना,
आत्मवत् सब सृष्टि निहार सारा जग परिवार हमारा,
पूज्या माता वसुन्धरा गौरवशाली परम्परा …………………………॥

कठिन शब्दार्थ-आदिकाल = प्राचीनकाल। अखिल = सम्पूर्ण। धरा = पृथ्वी। परम्परा = उत्तराधिकार। चिन्तन = विचार। परिपक्व = पका हुआ, पुष्ट। कालातीत = समय से अप्रभावित। दर्शन = चिन्तन। वसुन्धरा = धरती॥

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘गौरवशाली परम्परा’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं।

कवि भारतीय विचारधारा को विश्व का मार्गदर्शन करने वाली बता रहा है। समस्त विश्व को एक परिवार मानने वाली यह विचारधारा अत्यन्त गौरवपूर्ण है।

व्याख्या-कवि कहता है कि यह धरती अत्यन्त प्राचीनकाल से ही समस्त संसार को जीवन देती आई है। उसकी यह परम्परा अत्यन्त गौरवपूर्ण है। यह जीवन का आदर्श विचार है। यह परिपूर्ण और पुष्ट है। हमारा अर्थात् भारत की दार्शनिक विचारधारा चिरस्थायी है। वह समय के परिवर्तन से अप्रभावित रहती है। इसके अनुसार हम समस्त सृष्टि को अपने समान ही मानकर उसके साथ व्यवहार करते हैं। भारतीय दर्शन में आत्मवत् सर्वभूतेष का विचार है। यह समस्त विश्व एक परिवार है। यह धरती हमारी पूज्या, आदरणीय माता है। भारतीय दर्शन की यह परम्परा गौरव और सनातन है।

विशेष-
(i) भाषा सरल और विषयानुरूप संस्कृतनिष्ठ है।
(ii) गीत शैली है।
(iii) अनुप्रास अलंकार है। ओज गुण है।
(iv) भारत की विश्व को एक परिवार (वसुधैव कुटुम्बकम्) मानने वाले जीवन दर्शन के गौरव का चित्रण हुआ है।

8.
परमेश्वर के रूप अनेकों, अपने अपने मार्ग विशेष
श्रद्धा भक्ति अक्षय निष्ठा, नहीं किसी से राग न द्वेष
विविध पंथ वैशिष्ट्ये सुवासित, एक सत्य का भाव भरा
गौरवशाली परम्परा ……………………………
शील सत्य संयम मर्यादा, शुद्ध विशुद्ध रहा व्यवहार
करुणा प्रेम सहज सा छलका, सेवा तप ही जीवन सार
अमर तत्व के अमर पुजारी, विष पीकर भी नहीं मरा।
गौरवशाली परम्परा ………………………

कठिन शब्दार्थ-मार्ग = पंथ। अक्षय = कभी नष्ट न होने वाला। द्वेष = द्रोह। पंथ = धार्मिक पूजा-पद्धति। वैशिष्ट्य = विशेषता। सुवासित = सुगंधित। संयम = आत्मनियंत्रण। करुणा = दया। सहज = स्वाभाविक। आत्मतत्व = आत्मा। छलका = बिखरा।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘गौरवशाली परम्परा’ शीर्षक कविता से उधृत है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं।

कवि ने भारतीय जीवन दर्शन को कालातीत तथा गौरवशाली बताया है। इसमें अनेक विचारधाराओं का संगम है किन्तु सबका सत्य एक ही है।

व्याख्या-कवि कहता है कि भारत में बहुदेववाद को मान्यता प्राप्त है। भारतीय परमेश्वर को अनेक रूपों में देखते हैं और उनकी पूजा करते हैं। प्रत्येक रूप के लिए अलग-अलग पंथ हैं। सब में ईश्वर के प्रति श्रद्धा भक्ति और अटूट विश्वास की भावना पाई जाती है। इनमें किसी भी प्रकार का राग-द्वेष नहीं होता। ये अनेक पंथ अपनी-अपनी विशेषताओं से सुसज्जित हैं किन्तु इन सबमें एक सत्य की भावना व्याप्त है। भारतीय चिन्तन की यह गौरवशाली परम्परा है। भारतीय दर्शन शील, सत्य, इन्द्रिय निग्रह और मर्यादा पालन की शिक्षा देता है। भारतीयों का व्यवहार हमेशा शुद्धता से परिपूर्ण रहा है। उनके व्यवहार से दया और प्रेम स्वाभाविक रूप में छलकता है। उसके अनुसार सेवा ही तपस्या है तथा जीवन का महत्वपूर्ण सार है। भारतीय अमर आत्मा परमात्मा को मानने वाले हैं। विष भी आत्मा को मारने में समर्थ नहीं है। हम भारतीय इस गौरवशाली परम्परा के मानने वाले हैं।

विशेष-
(i) भाषा संस्कृतनिष्ठ, सरस और प्रवाहपूर्ण है।
(ii) गीत शैली है।
(iii) अनुप्रास अलंकार है।
(iv) भारतीय दर्शन के कालातीत होने तथा गौरवशाली होने का वर्णन है।

सघन ध्यान एकाग्र ज्योति से, किये गहनतम अनुसंधान
कला शिल्प संगीत रसायन, गणित अणु आयुर्विज्ञान
सभी विधाएँ आलोकित कर, महिमामय भूलोक वरा
गौरवशाली परम्परा ……………………………………………..
शौर्य पराक्रम अतुल तेज से, वीरोचित आया भूडोल।
आयुध सज्जित अगणित योद्धा, नेत्र तीसरा फिर से खोल
शीश कटा पर देह लड़ी थी, स्वयं काल भी यहीं डरा
गौरवशाली परम्परा ……………………………………………..

कठिन शब्दार्थ-सघन = गहरा। ज्योति = परम प्रकाश, परमात्मा। गहनतम = गम्भीरतापूर्ण। अनुसंधान = खोज। शिल्प = हस्त कौशल। अणु = पदार्थ का लघुतम रूप। युर्विज्ञान = आयुर्वेद; वैद्यकशास्त्र। आलोकित = प्रकाशित। भूलोक = पृथ्वी लोक। वरा = वरण किया। शौर्य = वीरता। अतुल = अनुपम। वीरोचित = वीर पुरुषों के योग्य आचरण। आयुध = अस्त्र-शस्त्र, हथियार। सज्जित = सुशोभित। तीसरा नेत्र खुलना = महाविनाश होना। काल = मृत्यु।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक अपरा में संकलित ‘गौरवशाली परंपरा’ शीर्षक पाठ से लिया गया है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं। कवि ने बताया है कि भारत में ईश्वर का ध्यान करने के साथ अनेक कलाओं को विकसित करने में भी भारतीयों ने सतत श्रम किया

व्याख्या-कवि कहता है कि भारतीय निरंतर ईश्वर के गम्भीर चिन्तन-मनन में लीन रहते हैं। इसके साथ ही उन्होंने अनेक क्षेत्रों में गहरी खोज की है। उन्होंने अनेक कलाओं, हस्त कौशल, संगीत, रसायन विज्ञान, गणित, अणु विज्ञान, वैद्यक शास्त्र आदि में गहन अनुसंधान किए हैं। ज्ञान की सभी विधाओं को प्रकाशित कर इस पृथ्वी लोक को महिमाशाली बनाया तथा वरण किया है। इस देश की परम्परा अत्यन्त महिमाशाली है॥

भारत की संस्कृति की परम्परा अत्यन्त गौरवशाली है। भारतीयों की शूरवीरता, पराक्रम और अनुपम तेजस्विता को देखकर पृथ्वी लोक प्रकम्पित हो उठता है। अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित अनेक भारतीय वीरों का तीसरा नेत्र शत्रु को देखकर खुल जाता है। अर्थात् शत्रु उनकी वीरता की अग्नि में भस्म हो जाता है। भारतीय योद्धा सिर कटने पर भी समर भूमि में युद्ध से विरत नहीं होते। उनके इस पराक्रमी स्वरूप को देखकर मृत्यु भी भयभीत हो उठती है।

विशेष-
(i) भाषा सरल, सरस और प्रवाहमयी है।
(ii) गीत शैली है।
(iii) वीर रस है। ओजगुण है।
(iv) भारतीय वीरों के पराक्रम और वीरता का वर्णन किया गया है।

10.
आत्मचेतना नव-आभा ले, फिर से भारत राष्ट्र खड़ा
विराट् शक्ति प्रगटे, गरजे दुष्ट दलन हो कदम कड़ा
तुमुल घोष जयनाद करेगा, अपनाओ स्वधर्म जरा
गौरवशाली परम्परा ……………………………………………

शब्दार्थ-आत्मचेतना = आत्मज्ञान, मन की सजगता। आत्मा = तेज। विराट = विशाल। दुष्ट दलन = दुष्ट लोगों का दमन करना। तुमुल = ऊँची आवाज़। घोष = स्वर, ललकार। जयकार = विजय की घोषणा, विजय घोष। स्वधर्म = अपना कर्तव्य।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक अपरा में संकलित “गौरवशाली परम्परा’ शीर्षक कविता से अवतरित है। इसके रचयिता नंदलाल जोशी हैं।
कवि बता रहा है कि भारतीय संस्कृति अत्यन्त पुरातन है तथा उसकी परम्परा गौरव से परिपूर्ण है।

व्याख्या-कवि कहता है कि आज भारत जाग उठा है। उसको अपनी गौरव-गरिमा को पुनर्जान हो गया है। उसमें नवचेतना और नवीन तेज उत्पन्न हो चुका है। अपने इस नवीन स्वरूप के साथ वह उठकर खड़ा हो गया है। वह अपनी विराट शक्ति को प्रकट करते हुए गर्जना कर रहा है। अब वह दुष्टों को नष्ट करने और उसका दमन करने के लिए कड़ा कदम उठायेगा। वह तेज़ आवाज में अपनी विजय की घोषणा करेगा। कवि भारतीयों से कहता है कि अब उनको अपने कर्तव्य को अपनाने की आवश्यकता है। भारत की सांस्कृतिक परम्परा अत्यन्त गौरवशाली है॥

विशेष-
(i) भारत के नवजागरण का वर्णन है।
(ii) कवि ने भारतीयों से आग्रह किया है कि नव जागरण के काल में वे अपने कर्त्तव्य को सजगता के साथ पालन करें।
(iii) भाषा सरल सरस और प्रवाहपूर्ण है।
(iv) शैली ओजपूर्ण गीतात्मक है।
(v) अनुप्रास अलंकार है।

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