RBSE Solutions for Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 खेल

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 खेल

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरबाला के भाड़ को फोड़कर मनोहर को कैसा लगा
(क) जैसे उसने दौड़ जीत ली हो।
(ख) जैसे उसने किला फतह कर लिया हो।
(ग) जैसे उसने दौलत प्राप्त कर ली हो।
(घ) जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो।
उत्तर तालिका:
(ख) जैसे उसने किला फतह कर लिया हो।

प्रश्न 2.
“सुरी ………… ओ सुरिया। मैं मनोहर हूँ ………….. मनोहर। मुझे मारती नहीं?” मनोहर के इस कथन से क्या भाव प्रकट होता है?
(क) खेद और ग्लानि
(ख) स्नेह
(ग) ऊब और निराशा
(घ) विरंक्ति
उत्तर तालिका:
(क) खेद और ग्लानि

प्रश्न 3.
सुरौ रानी मूक खड़ी थी। उसके मुँह पर जहाँ अभी एक विशुद्ध रस था, वहाँ अब
एक शून्य फैल गया। कारण थी
(क) मनोहर का झगड़ा
(ख) मनोहर द्वारा भाड़ को तोड़ डालना
(ग) मनोहर द्वारा चिढ़ाना
(घ) मनोहर के अपशब्द सुनना।
उत्तर तालिका:
(ख) मनोहर द्वारा भाड़ को तोड़ डालना

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरबाला और मनोहर की उम्र क्या थी?
उत्तर:
सुरबाला सात वर्ष की और मनोहर नौ वर्ष का था।

प्रश्न 2.
सुरबाला ने मिट्टी से क्या बनाया था?
उत्तर:
सुरबाला ने मिट्टी से भाड़ बनाया था।

प्रश्न 3.
“सुरबाला हँसी से नाच उठी। मनोहर उत्फुल्लता से कहकहा लगाने लगा।” दोनों की प्रसन्नता का क्या कारण था?
उत्तर:
सुरबाला ने मनोहर के बनाये भाड़ को तोड़कर अपनी नाराजगी दूर कर दी थी, इसी कारण दोनों प्रसन्नतापूर्वक हँस रहे थे।

प्रश्न 4.
“कह दिया तुम से, तुम चुप रहो। हम नहीं बोलते।” यह वाक्य किसने, किसको और कब कहे?
उत्तर:
यह वाक्य सुरबाला ने मनोहर से तब कहा जब मनोहर ने सुरबाला का भाड़ तोड़ दिया और वह रूठकर चुपचाप खड़ी हो गई थी।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सुरबाला के व्यक्तित्व में नारीत्व झलकती प्रतीत होता है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुरबाला सात वर्षीया बालिका है। उसका हृदय निश्छल प्रेम और कोमलता से भरा हुआ है। परन्तु उसके व्यवहार, बोलचाल और हावभाव से नारीत्व झलकता प्रतीत होता है। भाड़ पर कुटिया बनाते समय मनोहर के बारे में यह सोचना कि उसे गर्म लगेगा, वह कैसे रहेगा, मैं उसे मना कर देंगी आदि वाक्यों में उसका स्त्रीत्व भाव ही है। इसके अतिरिक्त भाड़ तोड़ देने के बाद मनोहर के मनाने पर भी नहीं बोलना तथा व्याजकोप अर्थात् क्रोधित होने का बहाना कर खड़े रहना उसके व्यक्तित्व के नारीत्व को ही प्रतिबिम्बित करता है।

प्रश्न 2.
मनोहर की काँपती हुई आवाज सुनकर सुरबाला पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
मनोहर की काँपती आवाज सुनकर सुरबाला का हृदय पिघल गया। कोमल हृदयी सुरबाला मन ही मन उसे क्षमा कर चुकी थी। उसके हृदय से भाड़ तोड़े जाने पर उत्पन्न हुआ व्यथा और क्रोध का भाव पूर्णत: विलीन हो चुका था। उसने मनोहर से वैसा ही भाड़ बनवाया और अन्त में उसे लात मारकर तोड़ दिया। इस प्रकार सुरबाला ने। बाल-स्वभाव के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

प्रश्न 3.
‘खेल’ कहानी के आधार पर बच्चों की बदला लेने की प्रवृत्ति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
बालकों की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वे किसी भी बात का बदला लिए बिना संतुष्ट नहीं होते। यदि एक बालक के कोई मारता है तो वह भी उसके मारकर ही रहता है, जब तक बदला नहीं ले लेता तब तक शांति से नहीं बैठता है। प्रस्तुत कहानी में सुरबाला भी अपने भाड़ को तोड़े जाने का बदला मनोहर द्वारा बनाये गये भाड़ को तोड़कर लेती है और मन में प्रसन्नता का अनुभव करती है।

प्रश्न 4.
‘बच्चे देर तक क्रोध को बनाये रखकर रूठे नहीं रहते।’ खेल कहानी के आधार पर इस बाल मनोविज्ञान को समझाइये।
उत्तर:
बालकों की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है कि वे अपने हृदय में क्रोध जैसे मनोभाव को अधिक समय तक बनाये नहीं रखते। वे कुछ ही समय पश्चात् क्रोध को भुलाकर खेलने-कूदने या बातचीत करने में मशगूल हो जाते हैं। यही स्थिति खेल कहानी की सुरबाला में देखने को मिलती है। भाड़ तोड़ने पर सुरबाला नाराज होती है तो मनोहर भी व्यथित हो जाता है। वह वैसा ही भाड़ बनाता है। तब मनोहर की मनुहार पर सुरबाला अपना क्रोध भूल जाती है।

प्रश्न 5.
बच्चों में कल्पनाशीलता होती है।” सुरबाला के व्यवहार को आधार लेकर बताइये।
उत्तर:
बालमन बहुत कल्पनाशील होता है। वे कई प्रकार के सपने बुनते रहते हैं। प्रस्तुत कहानी की बालिका सुरबाला मिट्टी का भाड़ बनाकर उस पर कुटिया बनाती है। उसमें मनोहर के रहने को लेकर कितनी कल्पनाएँ करती है, यह उसके मन की बातों को पढ़कर जाना जा सकता है। मनोहर को कुटिया में रखने को लेकर वह कई विचार मन.. में लाती है। वह सोचती है मनोहर को गर्म लगेगा तो मैं उसे कुटिया में आने से मना कर देंगी। वह मेरे पास आने की जिद करेगा तो उसे धक्का देकर कहूँगी-‘अरे जलेगा। मूर्ख।’ यह सुरबाला की कल्पनाशीलता है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘खेल’ कहानी का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
‘खेल’ कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित श्रेष्ठ कहानी है। जैनेन्द्र कुमार ने इस कहानी में बालकों के कोमल मन तथा उनके पवित्र एवं निश्छल भावों की सहज अभिव्यक्ति की है। बालकों की सहज क्रीड़ाओं का स्वाभाविक चित्रण भी लेखक ने बड़े सुन्दर ढंग से किया है। बालकों की बदला लेने की प्रवृत्ति को भी लेखक ने मनोहर और सुरबाला द्वारा एक-दूसरे के द्वारा बनाये गये भाड़ को तोड़कर प्रसन्नता अनुभव करने की घटना द्वारा व्यक्त किया है। बालकों का रूठना तथा मनाना नैसर्गिक प्रवृत्ति है जिसे लेखक ने बड़े अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया है । इस प्रकार कहानीकार का उद्देश्य बालकों की कल्पनाशीलता, बाल-सुलभ मस्ती, उनका परस्पर रूठना व मनाना, खेल-खेल में बदला लेना, अनजान होने पर भी भावी जीवन का चिन्तन करना आदि बाल-सुलभ चेष्टाओं का चित्रण करना रहा है। इस दृष्टि से यह पूर्ण सफल रहा है।

प्रश्न 2.
सिद्ध कीजिए कि जैनेन्द्र की ‘खेल’ कहानी बाल मनोविज्ञान का निदर्शन कराती है।
उत्तर:
जैनेन्द्र कुमार की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उनमें मनोविज्ञान का समावेश है। वे अपने पात्रों की छोटी-छोटी सामान्य-सी घटनाओं को कहानी का रूप प्रदान करते हैं और संवेदनशील पात्रों के मनोभावों को अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। प्रस्तुत कहानी ‘खेल’ में कोमल मन बालक-बालिका मनोहर और सुरबाला के माध्यम से बाल मनोविज्ञान को मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति प्रदान की है। गंगातट पर रेत का भाड़ बनाती है। बालिका मनोहर के बारे में कई मधुर कल्पनाएँ कर मन ही मन प्रसन्न होती रहती है। जब वह बालक उसके भीड़ को तोड़ देता है तो वह दु:ख और क्रोध से भर जाती है। मनोहर उसे मनाते हुए रोने लगता है तो रूठना छोड़कर उसका हृदय पिघल जाता है। मनोहर द्वारा बनाये भाड़ को तोड़कर बदला लेने पर वह प्रसन्न हो जाती है। इस प्रकार बालकों के अनेक मनोभाव इस कहानी में व्यक्त हुए हैं।

प्रश्न 3.
घर लौटते समय सुरबाला और मनोहर के मध्य क्या बातचीत हुई। होगी, कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
घर लौटते हुए सात वर्षीया सुरबाला और नौ वर्षीय मनोहर बात कर रहे होंगे कि उन्होंने दिन बहुत ही हँसी-खुशी खेल कर बड़े आनंद से बिताया। सुरबाला ने मनोहर से यह शिकायत भी की होगी कि उसने इतनी मेहनत और लगन से इतना अद्भुत और अलौकिक भाड़ बनाया, उस पर तुम्हारे लिए सुन्दर कुटिया बनाई और तुमने उसकी सराहना करने की बजाय निर्दयतापूर्वक तोड़ डाला। मनोहर ने जवाब में कहा होगा कि तुम तो उसी में पूर्णतः तल्लीन हो रही थीं, मेरी तरफ देख ही नहीं रही थीं इसलिए मुझे भाड़ से ईष्र्या हो गई। फिर दोनों ने कहा होगा कि चलो कल फिर हम उनसे भी सुन्दर चीज बनाएँगे परन्तु तोडेंगे नहीं।

प्रश्न 4.
‘खेल’ कहानी के आधार पर सुरबाला और मनोहर के चरित्र की विशेषताएँ लिखते हुए उनकी तुलना कीजिए।
उत्तर:
खेल कहानी में सात वर्षीया सुरबाला और नौ वर्षीय बालक मनोहर, ये दो ही पात्र हैं। इनकी चारित्रिक विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. सुरबाला और मनोहर दोनों ही मासूम और निश्छल एवं पवित्र मन वाले हैं।
  2. दोनों का हृदय संवेदनशील और मन बहुत कोमल है।
  3. दोनों बालक-बालिका खेल-कूद में रुचि रखने वाले या क्रीड़ानुरागी हैं।
  4. दोनों में बदला लेने की बाल-प्रवृत्ति है।
  5. बालमन की रूठने व मनाने की प्रवृत्ति दोनों में विद्यमान है।

दोनों के चरित्र की तुलना या अन्तर–दोनों पात्र अनेक बातों में समान होते हुए भी कुछ बातों में अलग हैं|

  1. सुरबाला कल्पनाशील एवं सृजनशील स्वभाव की है तो मनोहर कुछ उदंड बालक प्रतीत होता है।
  2. सुरबाला के स्वभाव में नारीत्व का भाव स्पष्ट रूप से झलकता है तो मनोहर दृढ़ पुरुषार्थ के गुणों से युक्त है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘प्रकृति इन निर्दोष परमात्म-खण्डों को निस्तब्ध और निर्निमेष निहार रही थी।’ यहाँ परमात्म-खण्डों से आशय है.
(क) नदी-तट पर पड़े पत्थर के खण्ड
(ख) गंगा-तट पर खड़े वृक्ष
(ग) सुरबाला और मनोहर
(घ) गंगा-तट के छोटे-छोटे घरौंदे
उत्तर तालिका:
(ग) सुरबाला और मनोहर

प्रश्न 2.
‘वह किसी एक को उसकी एक-एक मनोरमता और स्वर्गीयता का दर्शन कराना चाहती थी।’ सुरबाला किसको दर्शन कराना चाहती थी
(क) मनोहर को
(ख) परमात्मा को
(ग) गंगा के निर्मल जल को
(घ) सुन्दर वन प्रान्त को
उत्तर तालिका:
(क) मनोहर को

प्रश्न 3.
‘यह कुछ और भाव था। यह एक उल्लास था जो व्याजकोप का रूप धर रहा था।’ सुरबाला का यह कौन सा भाव था
(क) बचपना था
(ख) नारीत्व का भाव था
(ग) अनन्य प्रेम का भाव था
(घ) तिरस्कारे का भाव था।
उत्तर तालिका:
(ख) नारीत्व का भाव था

प्रश्न 4.
जैनेन्द्र कुमार की ‘खेल’ कहानी का प्रमुख उद्देश्य है –
(क) प्रकृति चित्रण
(ख) बाल्य क्रीड़ाओं का चित्रण
(ग) प्रेम की अभिव्यक्ति
(घ) बालमनोविज्ञान की अभिव्यक्ति
उत्तर तालिका:
(घ) बालमनोविज्ञान की अभिव्यक्ति

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उसे क्या मालूम कि यहाँ अकारण ही उस पर रोष और अनुग्रह किया जा रहा है।’ यहाँ कौन, किस पर और क्यों अकारण ही रोष और अनुग्रह कर रहा है?
उत्तर:
यहाँ सुरबाला मनोहर पर अकारण ही रोष और अनुग्रह कर रही थी। बालिका सुरबाला भाड़ बनाते हुए कल्पनालोक में विचरण कर रही थी। वह सोच रही थी कि भाड़ के ऊपर एक कुटी बनाऊँगी। वह मेरी कुटी होगी। मनोहर उसमें नहीं रहेगा। वह बाहर खड़ा-खड़ा भाड़ में पत्ते झोंकेगा। जब वह थक जायेगा और बहुत आग्रह करेगा तो कुटी के भीतर ले लूंगी। इस प्रकार सुरबाला मनोहर पर गुस्सा और कृपा दोनों कर रही थी, जबकि मनोहर गंगा तट पर पानी से खेल रहा था।

प्रश्न 2.
बालिका सुरबाला मनोहर के बारे में अपने मन में क्या सोचती थी?
उत्तर:
बालिका सुरबाला अपने मन में सोचती थी कि मनोहर वैसे तो अच्छा बालक है, परन्तु वह उदंड बहुत है। वह सदैव कितना दंगा मचाता रहता है। वह मुझे छेड़ता ही रहता है। वह मन ही मन निश्चय कर रही थी कि अब वह फिर दंगा करेगा तो मैं उसे अपनी कुटी में साझीदार नहीं करूंगी। यदि वह साझी होने को कहेगा तो उससे पहले तय कर लूंगी कि फिर द्या न करे। इसी शर्त पर उसे अपनी कुटी में रचूँगी।

प्रश्न 3.
भाड़ बनाकर अपना पैर निकालकर सुरबाला के मन में क्या भाव और विचार उत्पन्न हुए?
उत्तर:
भाड़ बनाकर उसके नीचे से अपना पैर निकालकर बालिका आनन्द से नाच उठी। एक बार तो वह अपनी इस सुन्दर और अलौकिक रचना को दिखाने के लिए बरबस ही दौड़कर मनोहर को खींच लाने को तैयार हो गई थी। वह भाड़ उसके लिए। दुनिया की अद्भुत शिल्पकला का नमूना था। वह सोच रही थी कि यह मनोहर व्यर्थ ही। वहाँ पानी से क्यों उलझ रहा है। यहाँ कैसी सुन्दर कलात्मक रचना हुई है जिसे यह देख नहीं रहा है। कभी उसने अपने जीवन में ऐसा.भव्य भाड़ देखा भी नहीं होगा। भाव यह है कि सुरबाला अपने हाथों से बनाए गये उस भीड़ को देखकर भाव विभोर हो रही थी।

प्रश्न 4.
सुरबाला के भाड़ को तोड़कर मनोहर कैसा अनुभव कर रहा था?
उत्तर:
सुरबाला की अत्यन्त प्रिय और अलौकिक रचना भाड़ को मनोहर ने कहकहा लगाकर लात मार कर तोड़ दिया। भाड़ को तोड़कर मनोहर ने ऐसा गर्व महसूस किया जैसे कोई किला जीत लिया हो। वह गर्व और निर्दयता से भरकर सुरानी कहकर चिल्लाते हुए खुशी से उछलने लगा था। उस समय सुरबाला को चिढ़ाने में मनोहर को बड़े आनन्द का अनुभव हो रहा था।

प्रश्न 5.
‘सुरों रानी मूक खड़ी थी।’ सुरबाला की यह स्थिति क्यों थी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुरबाला ने बड़े चाव से, लगन से और तन्मयता से बालू रेत को अपने पैर पर थापकर भाड़ बनाया था। वह उसके लिए संसार की सबसे अद्भुत, अलौकिक और भव्य रचना थी जिसे देखकर वह भाव-मग्न हो गई थी। वह इस अनुपम रचना को अपने साथी मनोहर को दिखाकर अपने आनंद को और बढ़ाना चाहती थी, परन्तु मनोहर ने निर्दयतापूर्वक लात मारकर उसे तोड़ दिया था। यह देखकर सुरबाला का मन व्यथित हो उठा और वह अथाह दुःख से भरकर चुपचाप खड़ी रह गयी थी।

प्रश्न 6.
सुरबाला ने रूठकर मनोहर से बात नहीं की, तब मनोहर की क्या प्रतिक्रिया थी?
उत्तर:
अपना भाड़ तोड़ दिये जाने से व्यथित सुरबाला जब मूक खड़ी रही तथा उसके चेहरे पर शून्यता का भाव व्याप्त हो गया। तब मनोहर का मन भी बैचेन हो उठा। उसे लगा जैसे कोई भीतर ही भीतर उसे मसोसकर निचोड़ डाल रहा है। उसकी मानो जीवनशक्ति क्षीण हो गई हो। वह बनावटी भाव लाकर उसे मनाना चाहता था पर सुरबाला पूर्ववत् खड़ी रही। मनोहर उक्त स्थिति में अपने मन को सँभाल नहीं पाया, उसकी वाणी काँपने लगी थी और वह एकदम रुआँसा हो गया था।

प्रश्न 7.
”हम नहीं बोलते।” बालिका से बिना बोले रहा न गया। इस वाक्य में निहित भाव को समझाइये।
उत्तर:
जब रूठी हुई सुरबाला को मनाता हुआ मनोहर भावुक होकर रोने लगा, तब सुरबाला का मन भी व्यथित हो उठा। वह नारी स्वभाव के अनुसार अपने स्वाभिमान को रखती हुई बिना बोले न रह सकी और मनोहर से बोल पड़ी कि ‘हम नहीं बोलते ।’ भाव यह है कि सुरबाला जो अब तक मूक रहकर मनोहर की बातों की कोई प्रतिक्रिया नहीं कर रही थी, अब बोलने लगी थी, भले ही उसने इस वाक्यांश से ही शुरूआत की कि ‘हमें नहीं बोलते। इससे यह तथ्य भी स्पष्ट सामने आता है कि बच्चे देर तक क्रोध को बनाए रखकर रूठे नहीं रह पाते हैं।

प्रश्न 8.
“कह दिया तुमसे, तुम चुप रहो।हम नहीं बोलते।” सुरबाला के इस कथन भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुरबाला के उक्त कथन से यह भाव झलकता है कि वह मनोहर को क्षमा कर चुकी है, उसके मन की व्यथा और क्रोध का भाव भी समाप्त हो चुका है। उसका हृदय नारी सुलभ दया और कोमलता से भर गया है। अब उसका मन उल्लास से भरा है। वह केवल क्रोध में होने का दिखावा कर रही है। वस्तुतः यह उसका स्त्रीत्व प्रकट हो रहा है।

प्रश्न 9.
“हमारा भाड़ क्यों तोड़ा जी? हमारा भाड़ बना के दो।” प्रस्तुत कथन में निहित भाव को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कथन में सुरबाला मनोहर के व्यथित हृदय को सांत्वना देने तथा उससे बदला लेने के उद्देश्य से भाड़ बनाने के लिए कहती है। मनोहर उसकी चुप्पी से बड़ा व्याकुल एवं दुःखी हो रहा था। वह उसके मुख से कुछ सुनने को अधीर हो रहा था चाहे वह सजा देने के लिए ही कुछ कहे। सुरबाला ने भी उस बोझिल वातावरण को हल्का करने के लिए यह बात कही जिसे सुनकर मनोहर भी प्रसन्नतापूर्वक भाड़ बनाने में जुट गया।

प्रश्न 10.
सुरबाला खुशी से नाच उठी। मनोहर उत्फुल्लता से कहकहा लगाने लगा।’ यहाँ दोनों की खुशी का कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सुरबाला के कहने से मनोहर ने भाड़ बनाया। जब सुरबाला ने लात मार कर भाड़ को तोड़ दिया तो दोनों मासूम हृदयों की निश्छल हँसी फूट पड़ी। अब तक रूठने-मनाने से बोझिल वातावरण बिलकुल हल्का और आनंददायी हो गया। दोनों निर्मल और पवित्र हृदयं-बालक-बालिका खुलकर हँसी की किलकारी मारने लगे। भाड़ बनाकर तोड़ने की घटना पूर्णतः बालमन के अनुकूल थी, जो दोनों के मन को खुशी और उल्लास से भर गयी।

प्रश्न 11.
” ‘खेल’ कहानी में वातावरण-सृष्टि में प्रकृति का बड़ा योगदान बन पड़ा है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वातावरण कहानी में सजीवता और विश्वसनीयता उत्पन्न करने में सहायक होता है। ‘खेल’ कहानी में वातावरण की सृष्टि में प्राकृतिक परिवेश का बड़ा योगदाने परिलक्षित होता है। कहानीकार ने मौन-मुग्ध संध्या में गंगा के बालुका मय तट, निर्जन प्रान्त में लम्बे-ऊँचे दिग्गज पेड़ जो दार्शनिक पंडितों की भाँति लग रहे थे, संध्याकाल को लाल-लाल मुँह से गुलाबी हँसी हँसता सूर्य आदि प्रकृति के रूपों का कहानी में समावेश कर वातावरण को सजीव बना दिया है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“स्वयं कष्ट सहकर अपनों को उनसे दूर रखना नारी के स्वभाव का नैसर्गिक गुण है।” सुरबाला के चरित्र को दृष्टिगत रखते हुए इस कथन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नारी की प्रकृति में ही यह विशेषता होती है कि वह स्वयं कष्ट उठाकर अपनों को उनसे दूर रखती है।’खेल’ कहानी में सुरबाला में यह गुण बाल्यावस्था में ही देखा जा सकता है। वह भाड़ पर कुटी बनाकर अपने और मनोहर के लिए उसमें रहने की सोचती है, तब उसके मन में विचार आया कि भाड़ की छत तो गर्म होगी। मनोहर उसमें कैसे रह पायेगा। वह कल्पना करती है“मैं तो रह जाऊँगी, पर मनोहर बिचारा कैसे सहेगा? मैं कहूँगी भई छत बहुत तप रही है, तुम जलोगे, तुम मत जाओ।” इस कल्पना : में स्पष्ट रूप से उक्त भाव प्रतिबिम्बित होता है। वह स्वयं तो उस गर्म छत पर बनी कुटी में रह सकती है, पर उसका अपना मनोहर कल्पना में भी उस कष्ट को नहीं उठा सकता। यही त्याग और कष्ट सहने की प्रवृत्ति नारीत्व का नैसर्गिक गुण है।

प्रश्न 2.
“सृजनशीलता सुरबाला के चरित्र की महत्त्वपूर्ण विशेषता है।” उक्त कथन को उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सृजनशीलता नारी का स्वाभाविक गुण होता है। सुरबाला में भी यह गुण स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। गंगा के तट पर जहाँ उसका बालसखा मनोहर लकड़ी से छटाछट जल को उछालकर अपने स्वभाव की उद्दंडता का परिचय दे रहा था, वहीं सुरबाला अपने स्त्री स्वभावानुकूल बालू-रेत को अपने पैर पर थाप कर भाड़ बनाने में : तल्लीन थी। भाड़ बन जाने पर उसके ऊपर कुटी बनाना, धुआँ निकलने के लिए भाड़ की छत पर एक सींक गाढ़ना और फिर अपनी उस रचना को देखकर पुलकित हो उठना, उसे संसार की सुन्दरतम कृति मानकर आनंदमग्न हो जाना आदि बातों से स्पष्ट होता है कि सुरबाला के स्वभाव में सृजनशीलता का गुण नैसर्गिक रूप से ही विद्यमान है।

प्रश्न 3.
अपनी अलौकिक रचना भाड़ को देखकर सुरबाला के मन में उत्पन्न भावों को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
अपनी अद्भुत रचना भाड़ को देखकर सुरबाला आलाद से नाच उठी। उसके लिए यह भाड़ सम्पूर्ण ब्रह्मांड की सबसे सम्पूर्ण सम्पदा और विश्व की सुन्दरतम कृति थी। वह इसे देखकर पुलकित और विस्मित हो रही थी। यदि कोई उससे पूछता कि परमात्मा कहाँ बसते हैं, तो वह बताती कि इस भाड़ के जादू में । वह इस अपूर्व स्थापत्य को अपने उजड्ड बाल सखा मनोहर को दिखाने के लिए दौड़ कर खींच लाने को उद्यत थी। वह सोच रही थी कि मूर्ख लड़का पानी से उलझ रहा है, यहाँ कैसी जबर्दस्त कलाकारी की गई है जिसे वह नहीं देखता है। इस प्रकार सुरबाला का बालमन अपनी अनुपम और अपूर्व रचना को देखकर आनंद मग्न था तथा अपने मनोहर को इसके दर्शन कराने को उत्सुक था।

प्रश्न 4.
‘हमारी रानी व्यथा से भर गई।’ कहानीकार के इस कथन में निहित भावों को अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर:
कहानीकार कहता है कि हमारी रानी सुरबाला अपनी अलौकिक कृति बालू-रेत के भाड़ को एकटक निहारती हुई अपनी अनुपम रचना के जादू को समझने और सराहने में लगी हुई थी। वह अपनी इस रचना की एक-एक मनोरमता और स्वर्गीयता को दर्शन अपने प्रिय बाल सखा मनोहर को कराना चाहती थी। परन्तु बड़े दुःख की बात है। कि वही मनोहर आया और उसने अपनी लात से उसे तोड़-फोड़ कर नष्ट कर दिया। ऐसी अकल्पनीय और स्तब्ध कर देने वाली घटना ने सुरबाला के कोमल हृदय को व्यथा से भर दिया था। वह अपनी सुन्दर सृष्टि को जिस व्यक्ति को दिखाकर आनंदित करना चाहती थी और उसके मुख से उसकी प्रशंसा सुनना चाहती थी, उसी ने जब निर्दयतापूर्वक सुन्दर भाड़ को तोड़ डाला तो सुरबाला अपार व्यथा से भरकर मूक और स्तब्ध खड़ी रह गयी।

प्रश्न 5.
‘अब बनना न हो सका।मनोहर की आवाज हठात् कॅपी सी निकली। मनोहर की स्थिति को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
मनोहर ने सुरबाला के हाथों से बनाये भाड़ को तोड़ दिया तो सुरबाला की मनोव्यथा की कोई सीमा न रही। वह मूक सी-स्थिर खड़ी रही, न उसने मनोहर से कुछ कहा न उसकी तरफ देखा। तब मनोहर का मन भी न जाने कैसी खेदजनक निराशा से भर गया। उसे लगा कोई भीतर ही भीतर उसके मन को मसोसकर निचोड़ रहा है। परन्तु अपने भावों को छिपाकर उसने चेहरे पर कृत्रिमभाव बनाकर कहा-‘सुरो, दुत पगली रूठती है?” उसने मनाने की कोशिश की, बार-बार उसका नाम लेकर पुकारा, परन्तु वह तनिक भी न हिली न बोली । यह देखकर मनोहर अपने दुःखी मन के भावों को अधिक समय छिपा न सका और उसकी आवाज काँपने लगी, वह रुआँसा हो गया सुरबाला मुँह फेर कर खड़ी हो गई। मनोहर चाहता था कि सुरबाला उसे डॉटे, उसे सजा दे परन्तु उसका मूक रह कर स्थिर खड़े रह जाना मनोहर के मन पर बहुत भारी गुजर रहा था।

प्रश्न 6.
सुरबाला ने अपने किये पर पछता रहे व्यथित मन मनोहर की स्थिति को समझ कर कैसा व्यवहार किया?
उत्तर:
मनोहर समझ गया था कि भाड को तोड़ देने से सुरबाला का मन अत्यधिक व्यथित हुआ है, इसलिए वह उससे बोलने का तथा उसे सामान्य स्थिति में लाने का प्रयत्न करता है। जब वह असफल रहता है तो उसका बालमन रोने लगता है। यह देखकर सुरबाला का मन पिघल जाता है। वह स्थिति को संभालती है और बोझिल वातावरण को हल्का करने के लिए बोल उठती है। वह कृत्रिम क्रोध का भाव लाकर कहती है “हमारा भाड़ क्यों तोड़ा जी? हमारा भाड़ बना के दो।” इस प्रकार मनोहर भी बड़ी खुशी के साथ भाड़ बनाने लगता है। सुरबाला निर्देश देती रहती है, कुछ आवश्यक सुधार कराकर भाड़ बनवाती है और पूरा होते ही लात मार कर भाड़ को फोड़ डालती है। दोनों मासूम हृदय खुलकर हँसते हैं और पुनः आनंदमग्न हो जाते हैं। इस प्रकार सुरबाला स्थिति के अनुसार अपना व्यवहार बदलकर मनोहर के मन का भार दूर कर देती है।

प्रश्न 7.
”खेल कहानी में संवाद बहुत ही मार्मिक और पात्रानुकूल बन पड़े हैं।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
संवाद योजना या कथोपकथन कहानी विधा का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। ‘खेल’ कहानी में जैनेन्द्र कुमार की संवाद योजना बहुत अच्छी बन पड़ी है। इसे निम्नांकित बिन्दुओं में समझा जा सकता है।

  1. पात्रानुकूल संवाद – सुरबाला और मनोहर के निश्छल और पवित्र मन के भाव संवादों के माध्यम से स्पष्ट हुए हैं।
  2. चरित्रोद्घाटक संवाद – यहाँ संवाद पात्रों की चारित्रिक विशेषताओं को प्रकट करते हैं।
  3. संक्षिप्त संवाद – प्रस्तुत कहानी के संवाद संक्षिप्त, सारपूर्ण, चुस्त एवं संवेदनायुक्त हैं।
  4. सहज संवाद – संवादों की भाषा सहज, सरल और भावानुकूल एवं पात्रानुकूल
  5. उद्देश्यनिष्ठ संवाद – ‘खेल’ कहानी के संवाद बालमन के अनुरूप अत्यन्त मर्मस्पर्शी और प्रभावोत्पादक बन पड़े हैं।

प्रश्न 8.
“जैनेन्द्र की कहानियों में घटनाओं का महत्त्वं नहीं है, मानव के सामान्य व्यवहार की अभिव्यक्ति ही महत्त्वपूर्ण है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि जैनेन्द्र कुमार की कहानियों में कथानक का या घटनाओं का विशेष महत्त्व नहीं होता है। देखा जाये तो उनकी अधिकतरे कथाओं में घटनाक्रम है। ही नहीं, बल्कि मानव व्यवहार के किसी एक पहलू को लेकर या उसकी कुछ चारित्रिक विशेषताओं को लेकर उन्होंने कहानी रचना की है। प्रस्तुत कहानी ‘खेल’ में भी यह तथ्य पूर्णतः परिलक्षित होता है। यहाँ कोई घटनाओं को संयोजन न होकर केवल पात्रों के मनोभाव, उनका व्यवहार एवं उनका चरित्र-चित्रण ही प्रमुख है। सुरबाला और मनोहर के व्यवहार का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण, निश्च्छल और पवित्र बालमन की विशेषताओं का उद्घाटन और उनके व्यवहार का यथार्थ चित्रण ही ‘खेल’ कहानी में दृष्टिगत होता है।

प्रश्न 9.
कहानी के तत्त्वों के आधार पर खेल कहानी की समीक्षा कीजिए।
उत्तर
कहानी के तत्त्वों के आधार पर ‘खेल’ कहानी पूर्णतः सफल मर्मस्पर्शी कहानी है। इसको निम्नांकित बिन्दुओं में पढ़ा जा सकता है

  1. कथानक – कहानी का कथानक संक्षिप्त एवं रोचक है। इसमें जालकों की खेल-गतिविधियों का मनोविज्ञान के आधार पर निरूपण हुआ है।
  2. चरित्र – चित्रण-कहानी में दो ही पात्र हैं। दोनों का चरित्रांकन बालमनोविज्ञान के आधार पर किया गया है।
  3. संवाद – कहानी के संवाद चुस्त, संक्षिप्त, चरित्रोद्घाटक, नाटकीयता से युक्त, भावानुकूल एवं मर्मस्पर्शी हैं।
  4. वातावरण – प्रस्तुत कहानी में गंगा-तट के सुन्दर प्राकृतिक परिवेश को, बालुकामय तट, वृक्षावली आदि को सुन्दर ढंग से उपस्थित किया गया है।
  5. उद्देश्य – इसमें बाल मन की चेष्टाओं तथा कल्पनाशीलता का प्रकाशन बाल-मनोविज्ञान के आधार पर किया गया है।

अतः कहा जा सकता है कि ‘खेल’ कहानी कथा-तत्त्वों के आधार पर एक श्रेष्ठ कहानी है।

खेल लेखक परिचय

कहानीकार जैनेन्द्र कुमार का जन्म सन् 1905 ई. में अलीगढ़ के कौड़ियागंज में हुआ। प्रेमचन्द के बाद कहानी को नई दिशा की ओर मोड़ने का काम जैनेन्द्र कुमार ने किया। इनकी रचनाओं में बाल मनोविज्ञान, दार्शनिकता, संवेदनशीलता आदि का समावेश है। इन्होंने अन्तर्द्वन्द्व के द्वारा मानवीय उदात्त भावनाओं को अभिव्यक्त किया है। इनकी कहानियों में व्यक्ति या चरित्र चित्रण को अधिक महत्त्व दिया गया है। इनमें व्यक्ति सत्य के साथ अहं का त्याग है और सहज मानवीय प्रवृत्तियाँ भी विद्यमान हैं। रचनाएँ-खेल, एक कैदी, पाजेब, जाह्नवी, अपना-अपना भाग्य, नीलम देश की राजकन्या, एक गो आदि प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। इनकी सम्पूर्ण कहानियाँ जैनेन्द्र की कहानियाँ’ सात भाग में संकलित हैं। इन्होंने ‘परख’, ‘सुनीता’,’त्यागपत्र आदि उपन्यास तथा अनेक निबन्ध भी लिखे हैं।

पाठ-सार

  1. सुरबाला का भाड़बनाना-जैनेन्द्र कुमार की ‘खेल’ कहानी बाल मनोविज्ञान पर आधारित श्रेष्ठ कहानी है। कहानी में सात वर्षीया सुरबाला और नौ वर्षीय बालक मनोहर संध्याकाल के मनोरम वातावरण में गंगा तट पर क्रीड़ा कर रहे थे। बालक एक लकड़ी से तट के जल को छटाछट उछाल रहा था और बालिका सुरबाला किनारे की बालू रेत को एक पैर पर थाप कर भाड़ बना रही थी। भाड़ बनाते हुए वह सोच रही थी कि भाड़ के ऊपर एक कुटी बनाऊँगी जो मेरी कुटी होगी। मनोहर को उसमें नहीं रखेंगी। यदि वह बहुत आग्रह करेगा तो उसे कुटी के भीतर ले लूंगी।
  2. सुरबाला की कल्पना- झल्पना लोक में खोई सुरबाला सोचती है कि मनोहर यों तो बहुत अच्छा है, रन्तु वह दंगा बहुत करता है। उसे उडता नहीं करने की शर्त पर ही अपनी कुटी। प्रवेश देंगी। इस प्रकार अपने से ही बतियाती हुई सुरबाला ने बहुत लगन और रिश्रम से भाड़ बनाया।
  3. भाड़ की सुन्दरता पर सुरबाला का मुग्ध होना-सुरबाला ने अपने हाथों से बनाये मिट्टी के भाड़ को देखा तो भाव विभोर हो उठी। उसी समय मनोहर आया और सुरबाला को भाड़ को निहारने में मग्न देखकर कहकहा लगाता हुआ भाड़ को लात मारकर तोड़ देता है।
  4. सुरबाला का व्यथित होना तथा रूठना-अपनी स्वर्ग-सी मनोरम रचना को इस तरह तोड़ दिये जाने पर सुरबाला अथाह दुःख से भरकर स्तब्ध और मूक खड़ी रह जाती है। मनोहर सुरबाला को मूक और स्तब्ध खड़ी देखकर कुछ ही देर में व्याकुल हो उठता है और उसे मनाने तथा बोलने का प्रयत्न करता है, परन्तु सुरबाला तनिक भी नहीं हिली।
  5. मनोहर का दुःखी मन से रोना और सुरबाला का मान जाना-मनोहर सुरबाला को मनाने के लिए सुरी, ओ सुरी, सुरी कहकर पुकारता है। कुछ क्षण चुप रहकर सुरबाला कहती है-‘हमारा भाड़ क्यों फोड़ा जी?’ ‘हमारा. भाड़ बनाकर दो।’ मनोहर तुरन्त बोल उठता है-‘लो अभी लो,’ सुरबाला-‘हम वैसा ही लेंगे।’ मनोहर-वैसा ही लो, उससे भी अच्छा।’
  6. मनोहर द्वारा भाड़ बनाना-इस प्रकार सुरबाला के निर्देशन के अनुसार मनोहर वैसा ही भाड़ बनाता है और सुरबाला अचानक ही लात मारकर उसे फोड़ देती है। इस प्रकार बदला लेकर व देकर दोनों अपार आनंद और उल्लास से भर जाते हैं।

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