RBSE Solutions for Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 ताई

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 ताई

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
पति को बच्चों में मगन होते देखकर उनकी भवें तन गईं।’ किसकी भवें तन गयीं –
(क) बाबूसाहब की
(ख) मनोहर की माँ
(ग) रामेश्वरी की
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर तालिका:
(ग) रामेश्वरी की

प्रश्न 2.
रामेश्वरी के मन में एक अभाव हमेशा खटकता था। वह क्या था –
(क) धन का
(ख) संतान का
(ग) घर का
(घ) पति का
उत्तर तालिका:
(ख) संतान का

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ताऊजी हमें लेलगाड़ी (रेलगाड़ी) ला दोगे।’ यह किसने और किससे कहा?
उत्तर:
यह बालक मनोहर ने अपने ताऊजी बाबू रामजीदास से कही।

प्रश्न 2.
एक बार रामेश्वरी ने बाबू साहब के हृदय का कोमल स्थान पकड़ा। बाबूसाहब के हृदय का कोमल भाव क्या था?
उत्तर:
सन्तान का मुख देखने की कामना बाबूसाहब के हृदय का कोमल भाव था, जिसका उनके जीवन में अभाव था।

प्रश्न 3.
कहानी में बाबूसाहब का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
बाबूसाहब का पूरा नाम बाबू रामजीदास है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ताई कहानी के शीर्षक की सार्थकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीर्षक या नामकरण का कहानी-तत्वों की भाँति विशेष महत्त्व होता है। शीर्षक प्रायः कहानी के प्रमुख पात्र, प्रमुख घटना या किसी विशेष संदर्भ के आधार पर दिया जाता है। यहाँ ‘ताई’ कहानी का शीर्षक इसके प्रमुख पात्र रामेश्वरी के आधार पर रखा गया है जो इसके दूसरे महत्त्वपूर्ण पात्र बालक मनोहर की ‘ताई’ है। यहाँ नि:संतान ताई अपने देवर के बच्चों से पहले किस प्रकार का व्यवहार करती है तथा बाद में एक घटना से उसका व्यवहार कैसे बदल जाता है, यह इस कहानी में अभिव्यक्त किया गया है। इस प्रकार कहानी का शीर्षक संक्षिप्त, रोचक एवं पूर्णतः सार्थक है।

प्रश्न 2.
किस घटना से रामेश्वरी का हृदय परिवर्तन हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
रामेश्वरी नि:संतान थी और अपने देवर के बच्चों के प्रति उसके मन में नारी स्वभाव की कमजोरी के कारण ईष्र्या, द्वेष और घृणा का भाव था। परन्तु एक दिन बालक मनोहर उसके देखते हुए पतंग लूटने के प्रयास में छज्जे पर लटक जाता है और गिर जाता है। रामेश्वरी अपने हृदय के दुर्भावों के कारण तुरन्त उसे नहीं पकड़ती है। यदि वह एक-दो क्षण नहीं रुकती तो मनोहर को गिरने से बचा सकती थी। परन्तु जब मनोहर गिर जाता है तो उसे अपार दुःख होता है, वह बेहोश होकर छत पर ही गिर जाती है और सप्ताह तक सदमे में रहती है। इसी घटना से उसके हृदय में ममता जाग्रत होती है और उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।

प्रश्न 3.
बाबू साहब के मुख पर घृणा का भाव झलक आया।ऐसा क्यों हुआ और उन्होंने क्या जवाब दिया?
उत्तर:
जब रामेश्वरी बाबू साहब को उलाहने देती हुई कह रही थी कि तुम तो रात-दिन भाई-भतीजों में मगन रहते हो। अपनी संतान प्राप्ति के लिए कोई पूजा-पाठ, व्रत-उपवास आदि प्रयत्न नहीं करते हो। यह सुनकर बाबूसाहब के मुख पर घृणा का भाव झलक आया। उन्होंने अपनी पत्नी को जवाब देते हुए कहा कि पूजा-पाठ सब ढकोसला है। जो वस्तु भाग्य में नहीं, वह पूजा-पाठ से कभी प्राप्त नहीं हो सकती। मेरा यह अटल विश्वास है।

प्रश्न 4.
“कभी-कभी तो तुम्हारा व्यवहार बिलकुल अमानुषिक हो उठता है।” यह पंक्ति किसने कही और क्यों कहीं?
उत्तर:
यह पंक्ति बाबू रामजीदास ने अपनी पत्नी रामेश्वरी से कही। दिन के समय बच्चों के साथ खेलते हुए, बातचीत से मनोरंजन करते हुए बाबू साहब ने मनोहर को रामेश्वरी की गोद में बैठाते हुए कहा कि लो इसे प्यार कर लो। यह तुम्हें भी अपनी रेलगाड़ी में बिठा लेगा। उसे पति की यह चुहलबाजी अच्छी नहीं लगी और उसने मनोहर को अपनी गोद से धकेल दिया, जिससे वह नीचे गिर पड़ा। इसी बात को लेकर रात्रि को बाबूसाहब ने उक्त पंक्ति कही।

प्रश्न 5.’ताई’ कहानी से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
‘ताई’ कहानी पारिवारिक संबंधों की खटास को दूर कर स्नेह सम्बन्ध को दृढ़ता प्रदान करती है। इसमें रामेश्वरी के चरित्र से यह व्यक्त करने का प्रयत्न किया गया है कि एक नि:संतान नारी स्वाभाविक रूप से ही अपने देवर के बच्चों के प्रति ईष्र्या और द्वेष का भाव रखती है। परन्तु उसके पति के सत्प्रयासों से उसकी मानसिक संकीर्णता दूर होकर उन बच्चों के प्रति सहज ही ममतामयी और निश्छल प्रेम से परिपूर्ण हो जाती है। कहानी में अन्धविश्वासों से दूर रहने और ममत्व रखने की प्रेरणा मिलती है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ताई’ कहानी की कथावस्तु का सार लिखकर उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कथावस्तु-बाबू रामजीदास की पत्नी रामेश्वरी इस कहानी की प्रमुख पात्र है जिसे देवर के बच्चे ‘ताई’ कहकर पुकारते हैं। ताई नि:संतान है। अपने देवर के बच्चों से वह पहले तो ईर्ष्या और द्वेष का भाव रखती है, लेकिन आगे चलकर उसके हृदय में उन बच्चों के प्रति ममता का स्रोत फूट पड़ता है। वह उनसे निश्छल प्यार करने लग जाती है। विशेषताएँ-‘ताई’ कहानी की यह विशेषता है कि यह अंधविश्वासों का खण्डन करती है, बाल-मनोविज्ञान को व्यंजित करती है तथा नारी मन की संकीर्णताओं को दूर करके पारिवारिक संबंधों को दृढ़ता और मधुरता प्रदान करती है । यह सुधारात्मकता लिए हुए एक आदर्श प्रेरणादायी कहानी है।

प्रश्न 2.
कहानी के आधार पर रामेश्वरी का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:
विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक जी की ‘ताई’ कहानी में रामेश्वरी को प्रधान पात्र ‘ताई’ के रूप में चित्रित किया गया है। इसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं –

  1. सन्तानहीन मनोदशा – रामेश्वरी नि:सन्तान है। इस पीड़ा के कारण वह देवर के बच्चों से ईष्र्या-द्वेष रखती है और अपने पति से भी नाराज रहती है।
  2. अन्धविश्वासी – रामेश्वरी पूजा-पाठ, व्रत-उपवास आदि के द्वारा सन्तानप्राप्ति में विश्वास रखती है। वह पण्डितों एवं ज्योतिषियों पर अन्धविश्वास रखने वाली नारी है।
  3. ममतालु स्वभाव – रामेश्वरी का हृदय ममतापूर्ण है। नि:सन्तान होने से वह मनोहर एवं चुली को प्यार नहीं करती है, परन्तु जब मनोहर छत से गिर जाता है, तो उसकी ममता जाग जाती है। इस कारण वह सहज, सरल स्वभाव का ममतालु नारी है।
  4. अन्य गुण – रामेश्वरी कुण्ठा से ग्रस्त रहती है। सन्तान प्राप्ति की लालसा से वह असामान्य आचरण करती है। वह आदर्श पतिव्रता नारी है। उसमें दया की भावना है और अपनी छोटी-सी गलती से स्वयं को अपराधी मानती है। इसे प्रकार कहा जा सकता है कि रामेश्वरी (ताई) का चरित्र कुछ दुर्बलताओं से . युक्त होते हुए भी अनेक अच्छे गुणों का भंडार है।

प्रश्न 3.
कहानी की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कौशिकजी ने ‘ताई’ कहानी में एक ऐसी नारी पात्र की मानसिक स्थिति और उसके व्यवहार को अभिव्यक्ति दी है जो नि:संतान है। रामेश्वरी की अपनी कोई संतान नहीं है, परन्तु उसके हृदय में संतान प्राप्ति की प्रबल लालसा है, जबकि उसके पति बाबू रामजीदास अपने छोटे भाई के बच्चों को ही अपनी सन्तान के समान समझकर उनके प्यार में घुल-मिल जाते हैं। वे रामेश्वरी को भी ऐसा करने के लिए कहते हैं, परन्तु उसका मन इस स्थिति को स्वीकार नहीं करता। वह अपनी संतान चाहती है और मातृत्व-सुख प्राप्त करना चाहती है। इसलिए वह व्रत, पूजा-पाठ आदि करने के लिए भी पति से आग्रह करती है।

अपने देवर की संतान के प्रति उसके हृदय में ईर्ष्या, द्वेष आदि भाव उसकी कमजोरी को प्रकट करते हैं। अपने पति से इस बात को लेकर वह नाराज भी रहती है। उसके मन में द्वन्द्व उठता रहता है। एक दिन जब बालक मनोहर छत से नीचे। गिर जाता है तो ताई के हृदय में उसके प्रति करुणा और ममता को नैसर्गिक स्रोत फूट पड़ता है। वह उन बच्चों को अपनी सन्तान के समान प्यार करने लगती है। इस प्रकार ‘ताई’ कहानी की मूल संवेदना भारतीय आदर्शों को प्रकट करना, संयुक्त परिवार की सरसता बताना तथा ममतामय नारी-हृदय की कमजोरी बताकर उसके प्रति उदात्त भावना व्यक्त करना है।

प्रश्न 4.
‘ताई’ कहानी के आधार पर बाबू रामजीदास की चरित्रगत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ताई कहानी में बाबू रामजीदास प्रमुख पुरुष पात्र हैं जो कहानी की नायिका ताई के पति हैं। उनके चरित्र की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. बाबू रामजीदास एक समझदार और विवेकशील सज्जन हैं।
  2. वे सरल और स्नेही स्वभाव के व्यक्ति हैं।
  3. बाबूसाहब अन्धविश्वासों से दूर रहते हैं, परन्तु भाग्य में विश्वास करते हैं।
  4. वे सन्तान प्राप्ति की कामना से युक्त व पुण्य कर्मों में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं।
  5. रामजीदास संतोषी स्वभाव के सज्जन हैं।
  6. वे सहानुभूतिपूर्ण हृदय वाले व्यक्ति हैं जो अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण सहानुभूति का भाव रखते हैं।

इस प्रकार ‘ताई’ कहानी में बाबू रामजीदास को मानवीय गुणों से युक्त आदर्श पात्र बताया गया है, जो कि अन्धविश्वासों का विरोधी, पारिवारिक समरसता का पोषक और स्नेहशील गृहस्थ है। उनका चरित्र अनुकरणीय एवं प्रेरणादायी है।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
बालक मनोहर ने यह क्यों कहा कि अपनी रेलगाड़ी में ताई को नहीं ले जायेंगे
(क) उसने मनोहर को पैसे नहीं दिये थे।
(ख) ताई ने मनोहर को पीट दिया था।
(ग) उसे ताई के मुख के भाव अच्छे नहीं लगे थे।
(घ) बाबू साहब ने मना किया था।
उत्तर तालिका:
(ग) उसे ताई के मुख के भाव अच्छे नहीं लगे थे।

प्रश्न 2.
“अब झेंपने से क्या लाभ? अपने प्रेम को छिपाना व्यर्थ है।” यहाँ रामेश्वरी किसके प्रति अपने प्रेम को छिपा रही है।
(क) अपने पति के प्रति
(ख) देवर के प्रति
(ग) अपनी देवरानी के प्रति
(घ) देवर के बच्चों के प्रति
उत्तर तालिका:
(ग) अपनी देवरानी के प्रति

प्रश्न 3.
रामेश्वरी को कटु वचन सुनने पड़ते थे
(क) घर का काम न करने के कारण
(ख) पूजा-पाठ में लगे रहने के कारण
(ग) देवर के बच्चों के कारण
(घ) पति से प्रेम न करने के कारण
उत्तर तालिका:
(ग) देवर के बच्चों के कारण

प्रश्न 4.
“…………… कैसी प्यारी-प्यारी बातें करता है। यही जी चाहता है कि उठाकर छाती से लगा हूँ।” यहाँ मनोहर को छाती से कौन लगा लेना चाहता है –
(क) बाबू रामजीदास
(ख) रामेश्वरी
(ग) मनोहर का पिता
(घ) मनोहर की माता
उत्तर तालिका:
(ख) रामेश्वरी

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शरीर में चोट नहीं लगी, मन में लगी।’ बालक मनोहर के मन में क्यों चोट लगी? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बालक प्यार चाहते हैं। उनसे जो स्नेह भाव रखता है, उसके प्रति उनका स्वाभाविक लगाव हो जाता है। रामेश्वरी अपने देवर के बच्चों से ईर्ष्या, द्वेष और घृणा का भाव रखती थी। बाबू रामजीदास ने मनोहर को उसकी गोद में बैठाकर कहा कि लो इसे प्यार करो। इस बात से चिढ़कर रामेश्वरी ने मनोहर को अपनी गोद में से धकेल कर गिरा दिया। बालक के शरीर पर चोट नहीं लगी, परन्तु उसके कोमल मन में गहरी चोट लगी। अपनी ताई के स्नेहाकांक्षी बाल-मन को उसके दुर्व्यवहार ने व्यथित कर दिया।

प्रश्न 2.
”तुम्हारा चलन तो दुनिया से निराला है।” ताई के अनुसार बाबू रामजीदास का चलन निराला क्यों था?
उत्तर:
रामेश्वरी की अपनी कोई संतान नहीं थी। उसके पति अपने छोटे भाई के बच्चों से बहुत प्यार करते और उनमें घुल-मिल कर रहते थे। यह सब ताई को बुरा लगता था। उसके अनुसार लोग सन्तान प्राप्ति के लिए जाने क्या-क्या करते हैं। व्रत, पूजा-पाठ, ज्योतिषी के बताये उपाय करना आदि प्रयत्न करते हैं, परन्तु बाबूसाहब तो अपने भाईभतीजों में ही मगन रहते थे। यह सब ताई को व्यथित कर देता और वह अपने पति को उक्त बात कहती थी।

प्रश्न 3.
सन्तान प्राप्ति के लिए व्रत, पूजा-पाठ आदि करने के विषय में बाबू साहब के क्या विचार थे?
उत्तर:
बाबू रामजीदास एक विवेकशील और समझदार व्यक्ति थे। उनके विचार स्पष्ट थे कि सन्तान प्राप्ति के लिए पूजा-पाठ करना, व्रत करना या ज्योतिषियों द्वारा बताये. गये उपाय करना सब ढकोसला है। वे इस प्रकार के अन्धविश्वासों के विरोधी थे। उनका अटल विश्वास था कि जो वस्तु भाग्य में नहीं है, वह पूजा-पाठ से कभी प्राप्त नहीं हो सकती। उनके अनुसार ज्योतिषी तो झूठ बोलने की ही रोटी खाते हैं। उनके चक्कर में नहीं आना चाहिए।

प्रश्न 4.
बाबू साहब द्वारा रामेश्वरी पर अमानुषिक व्यवहार का आरोप लगाये जाने पर उसने क्या जवाब दिया?
उत्तर:
अपने पर अमानुषिक व्यवहार का आरोप लगाये जाने पर रामेश्वरी ने उल्टे अपने पति को ही उलाहना देते हुए कहा कि तुम्हीं ने मुझे ऐसा बना रखा है। वह कहती है कि उस दिन पण्डित ने बताया था कि हमारी जन्मपत्री में सन्तान को योग है जो उपाय करने से हो सकती है। उसने उपाय भी बताये थे, परन्तु तुमने उनमें से एक भी उपाय करके नहीं देखा। तुम तो अपने भाई के बच्चों में मगन रहते हो, इसीलिए मेरा कलेजा सुलगता रहता है और मेरा व्यवहार ऐसा हो जाता है।

प्रश्न 5.
रामेश्वरी के यह पूछे जाने पर कि क्या तुम्हारे जी में कभी संतान की इच्छा नहीं होती? बाबू रामजीदास ने इसका क्या जवाब दिया?
उत्तर:
बाबू रामजीदास ने इस प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि भला ऐसा कौन व्यक्ति होगा जिसके हृदय में सन्तान का मुख देखने की इच्छा न हो। परन्तु क्या किया जाए, जब नहीं है, और न होने की आशा है, तो व्यर्थ में चिन्ता करने से क्या लाभ। ऐसी स्थिति में जो आनन्द, जो सुख अपनी सन्तान से मिलता है, वही भाई की सन्तान से मिल रहा है, तो फिर दुःखी और चिन्तित रहने से क्या मिलेगा।

प्रश्न 6.
“शास्त्र में लिखा है, जिसके पुत्र नहीं होता, उसकी मुक्ति नहीं होती।” रामेश्वरी के इस कथन का रामजीदास ने क्या उत्तर दिया? .
उत्तर:
बाबू रामजीदास बोले कि मुझे मुक्ति की अवधारणा पर विश्वास ही नहीं है। मुक्ति कहते किसे हैं? वे कहने लगे कि यदि मुक्ति होना मान भी लिया जाए, तो यह कैसे स्वीकार किया जा सकता है कि सभी पुत्र वालों की मुक्ति हो जाती है। इस प्रकार तो यह मुक्ति का बहुत ही सहज उपाय हो गया। बड़े से बड़ा पापी भी पुत्रवान् होने पर मुक्ति का अधिकारी हो जायेगा। अत: यह तार्किक और स्वीकार्य बात नहीं है।

प्रश्न 7.
”इधर रामेश्वरी की नींद टूटी।” रामेश्वरी किस निद्रा में लीन थी और कैसे उसकी नींद टूटी?
उत्तर:
रामेश्वरी अपने देवर के बच्चों के प्रेम और मोह की निद्रा में लीन थी। मनोहर और चुन्नी खेलते हुए अपनी ताई की गोद में जा गिरे। रामेश्वरी उस समय सारा द्वेष भूल गयी और उन्हें ऐसे हृदये से लगा लिया जैसे वह उनकी माता हो। परन्तु जब बाबू रामजीदास आये और उन बच्चों को खिलौने देकर खूब प्यार करने लगे तो रामेश्वरी की मोह निद्रा टूट गयी। पति को बच्चों में मगन देखकर उसकी भौंहें तन गयीं और उसका हृदय पुनः बच्चों के प्रति घृणा और द्वेष से भर गया।

प्रश्न 8.
रामजीदास ने यह कहा-‘आज तो तुम बच्चों को बड़ा प्यार कर रही थीं।’ रामेश्वरी पर इसका क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
रामेश्वरी को पति की यह बात बुरी लगी। उन्हें अपनी कमजोरी पर बड़ा दुःख हुआ। केवल दुःख ही नहीं अपने ऊपर क्रोध भी आया। वह दुःख और क्रोध का भाव तब और भी प्रबल हो गया जब उसके पति ने उक्त वाक्य कहा। उसकी कमजोरी पति के समक्ष प्रकट हो गई थी, यह स्थिति उसके लिए असहनीय हो गई थी। क्योंकि पति के सामने तो वह सदैव देवर के बच्चों के प्रति अरुचि और घृणा का भाव ही प्रदर्शित करती रही थी।

प्रश्न 9.
रामेश्वरी ने यह क्यों सोचा कि देवर के बच्चों ने उसके घर का सत्यानाश कर रखा है?
उत्तर:
रामेश्वरी नि:संतान थी और उसके पति अपने छोटे भाई के बच्चों के प्रेम में मगन रहते थे। उन बच्चों के कारण रामेश्वरी को पति के कटु वचन भी सुनने पड़ते थे और पराये बच्चों के पीछे वह उससे प्रेम भी कम करते जाते थे। इस स्थिति में रामेश्वरी के हृदय में तूफान उठता और भावों की बड़ी हलचल होती रहती। उनके गृहस्थ जीवन में निरन्तर कटुता बढ़ती जा रही थी। यह सब देखकर ही रामेश्वरी ने सोचा कि इन बच्चों ने ही मेरे घर का सत्यानाश कर रखा है।

प्रश्न 10.
………. ताई पतंग मँगा दो; हम भी उड़ायेंगे।” अत्यन्त करुण स्वर में कहे गये इस वाक्य की रामेश्वरी पर क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर:
बालक मनोहर की इस भोली प्रार्थना से रामेश्वरी का कलेजा पसीज गया। कुछ देर तक वह उसे टकटकी लगाकर देखती रही। फिर एक लम्बी साँस छोड़कर मन-ही-मन कहा, यदि यह मेरा पुत्र होता तो आज मुझसे बढ़कर भाग्यवती स्त्री संसार में दूसरी न होती। निगोड़ा-मरा कितना सुन्दर है और कैसी प्यारी-प्यारी बातें करता है। जी में आता है, कि उठाकर छाती से लगा लें।

प्रश्न 11.
अपने घर की छत पर अकेली बैठी रामेश्वरी क्या सोचती रहती थी?
उत्तर:
अकेली बैठी हुई रामेश्वरी के हृदय में अनेक विचार आते रहते थे। उसकी अपनी सन्तान का अभाव, पति का भाई की सन्तान से अधिक अनुराग रखना, उन बच्चों की बात को लेकर रामेश्वरी को बुरा-भला कहना; उसके प्रति पति का प्रेम कम होना आदि ऐसी बातें थीं, जो निरन्तर उसके हृदय को उद्वेलित करती रहती थीं।

RBSE Class 11 Hindi कथा धारा Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“बालक मनोहर भावपूर्ण दृष्टि से अपनी ताई की ओर ताकता हुआ उस स्थान से चला गया।”मनोहर के हृदय में क्या भाव थे? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
ताई ने बालक मनोहर को अपनी गोद में से धकेल दिया। मनोहर नीचे गिर पड़ा। वहाँ उसके शरीर पर तो चोट नहीं लगी, परन्तु मन में गहरी चोट लगी। वह अनमना-सा वहाँ से उठकर ताई की ओर ताकता हुआ चला तो उसके हृदय में अनेक भाव भरे हुए थे। वह सोच रहा होगा कि ताऊ जी कितने अच्छे हैं, हमें कितना प्यारदुलार करते हैं, खिलौने और मिठांइयाँ लाकर देते हैं, हमारे साथ हँसते-खेलते हैं। दूसरी ओर ये ताई जी हैं जो हमेशा डाँटती-फटकारती रहती हैं; लड़ती हैं और हमसे प्यार भी। नहीं करती हैं। वे कभी कुछ चीजें भी हमें नहीं देती हैं, बल्कि हर बात में टोकती और रोकती रहती हैं। उस समय मनोहर सोच रहा होगा कि नाई ने प्यार करना तो दूर गोद में से निर्दयतापूर्वक धकेल कर गिरा दिया । इसलिए हमारी ताई जी अच्छी नहीं है, ताऊ जी बहुत अच्छे हैं।

प्रश्न 2.
“पराये धन से भी कहीं घर भरता है।” रामेश्वरी के इस कथन में निहित भावों को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
बाबू रामजीदास पत्नी को समझाने की गरज से कह रहे थे कि बच्चों को प्यार-दुलार से रखना चाहिए। उन्हें डाँटना या मानसिक प्रताड़ना देना ठीक नहीं है। बच्चों की प्यारी-प्यारी बातों से मन प्रसन्न हो जाता है। यह सुनकर रामेश्वरी कहती है कि वैसा बच्चा भी तो हो। पराये धन से भी कहीं घर भरता है। उसका आशय है कि वह बच्चा भी तो अपनी संतान होनी चाहिए। अपनी सन्तान से ही मन में स्वाभाविक लगाव रहता है। परायी संतान से कोई कहाँ तक मन बहलायेगा। लोग संतान प्राप्ति के लिए क्या-क्या नहीं करते; तुमसे से कुछ ऐसा उपाय भी नहीं किया जाता। इस प्रकार कहा जा सकता है। कि नि:संतान रामेश्वरी अपने जीवन में बहुत बड़ी रिक्तता, सूनापन और नीरसता का अनुभव करती थी। अपनी संतान को अभाव उसे हर पल व्यथित किये रहता था।

प्रश्न 3.
बाबू रामजीदास और रामेश्वरी के स्वभाव में क्या मौलिक अन्तर था? संक्षेप में समझाइये।
उत्तर;
बाबू रामजीदास का स्वभाव बहुत सरल, सहज और कोमलता लिए हुए है। वे अपने छोटे भाई के बच्चों से स्नेह भाव रखते हैं। सज्जनता उनके स्वभाव में सर्वत्र दिखाई देती है। उनका हृदय सहानुभूतिपूर्ण है। उनकी संतोषी प्रकृति भी पाठकों को आकृष्ट करती है। दूसरी ओर ताई के स्वभाव में ईर्ष्या, द्वेष और घृणा ऐसे भाव हैं जो बाबू साहब के स्वभाव से बिल्कुल भिन्न हैं। कहानी के पूर्वार्द्ध में तो ताईं के स्वभाव की नकारात्मकता ही अधिक परिलक्षित होती है, परन्तु कहानी के उत्तरार्द्ध में और अन्त में उनकी ममता, कोमलता, सहृदयता, सहानुभूति आदि स्पष्ट रूप में दिखाई देती है। संतान की लालसा ताई के हृदय में सर्वत्र दिखाई देती है।

प्रश्न 4.
संतान प्राप्ति के लिए ज्योतिषियों द्वारा बताये गये उपाय करने के विषय में दोनों की क्या धारणा है? संक्षेप में बताइये।
उत्तर:
बाबू साहब और रामेश्वरी संतान प्राप्ति की प्रबल लालसा रखते हैं। रामेश्वरी ज्योतिषी द्वारा बताये उपाय करने के लिए कहती है, तब रामजीदास ज्योतिषियों के बारे में अपनी धारणा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि तुम्हारे जैसी सीधी स्त्री ही इन ज्योतिषियों की बातों पर विश्वास करती हैं, जो बिल्कुल झूठे हैं। ये सब धूर्त होते हैं और झूठ की कमाई ही खाते हैं। इन्हें ज्योतिष का पूरा ज्ञान तो होता नहीं, दो-एक छोटी-मोटी पुस्तकें पढ़कर ज्योतिषी बन बैठते हैं और लोगों को ठगते फिरते हैं। इसके विपरीत रामेश्वरी की धारणा यह है कि ये पोथी-पुराण, शास्त्र आदि थोड़े ही झूठे हैं। पण्डित लोग अपनी तरफ से तो कुछ कहते नहीं, जो शास्त्रों में लिखा है वही वे बताते हैं। अतः उपाय करने में क्या हानि है। संतान देना या न देना तो भगवान के अधीन है।

प्रश्न 5.
“इस बार रामेश्वरी ने बाबू साहब के हृदय का कोमल स्थान पकड़।” इस पंक्ति में निहित भाव को अभिव्यक्त कीजिए।
उत्तर:
संतान प्राप्ति के लिए पति-पत्नी में कभी ज्योतिषियों के संदर्भ में तो कभी मनोहर और चुन्नी को ही अपनी संतान की तरह मानने के प्रसंग को लेकर तर्कवितर्क चलते रहते थे। परन्तु इस बार रामेश्वरी ने बाबू साहब से जो सवाल किया वह उनके हृदय के कोमल भावों को छू गया। इस मर्मस्पर्शी प्रश्न का जवाब देना बाबू साहब को भारी पड़ गयो। रामेश्वरी ने पूछा, “अच्छा एक बात पूछती हैं, भला तुम्हारे जी में संतान की इच्छा क्या कभी नहीं होती?” रामेश्वरी के उक्त प्रश्न को सुनकर बाबू साहब कुछ देर तो चुप रहे, फिर एक लम्बी साँस लेकर बोले कि भला किसको अपनी संतान का मुख देखने की इच्छा नहीं होती। परन्तु क्या किया जा सकता है, जब है ही नहीं और न होने की आशा है। इस प्रकार लेखक को उक्त कथन पूर्णतः सत्य है कि इस बार रामेश्वरी ने बाबू साहब के हृदय के कोमल भाग को पकड़ा।

प्रश्न 6.
“नाम संतान से नहीं चलता। नाम अपनी सुकृति से चलता है।”बाबू रामजीदास के इस कथन की सार्थकता पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
रामेश्वरी ने बाबू साहब से जब यह कहा कि हमारे बाद में आपका नाम अपनी संतान से ही चलेगा, इसका जवाब देते हुए बाबू रामजीदास बोले कि व्यक्ति का नाम संतान से नहीं उसके सत्कर्मों से चलता है। व्यक्ति के पुण्य कर्म ही उसे संसार में अमर बनाते हैं। हमारे समाज में ऐसे कई लोग हुए हैं जिनकी कोई संतान नहीं थी परन्तु उनका नाम आज भी चल रहा है और आगे भी चलता रहेगा। संत तुलसीदास और सूरदास ऐसे ही महान् पुण्यात्मा थे जिनकी कोई संतान नहीं थी, परन्तु नाम आज भी अमर है। बाबू साहब का यह कहना भी सार्थक है कि संतान के अयोग्य होने पर नाम के डूबने की भी संभावना रहती है।

प्रश्न 7.
“मनुष्य का दय बझममत्व प्रेमी होता है।” इस कथन के प्रकाश में अपने और पराये के विषय में लेखक के मत को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कहानीकार विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ के अनुसार मानव हृदय ममत्व प्रेमी अर्थात् अपने से प्रेम करने वाला होता है। कोई वस्तु कितनी भी मूल्यवान या कितनी भी सुन्दर क्यों न हो जब तक उसे पराई समझता है तब तक उससे प्रेम नहीं करता और न ही उसके नष्ट होने पर दुःखी होता है। ऐसे ही भद्दी से भद्दी और काम न आने वाली वस्तु को भी कोई व्यक्ति अपनी समझता है तो उससे प्रेम करता है और उसके नष्ट होने पर दु:खी होता है। इस प्रकार ममत्व से प्रेम उत्पन्न होता है और प्रेम से ममत्व। यही स्थिति सामान्य मनुष्य के जीवन में संतान के संदर्भ में भी रहती है। वह अपनी सन्तान के प्रति सहज ममत्व रखता है और यही पूर्ण सत्य भी है। रामेश्वरी देवर के बच्चों से नैसर्गिक रूप से प्रेम नहीं कर पाती, क्योंकि वे उसकी अपनी संतान नहीं हैं।

प्रश्न 8.
आप कैसे कह सकते हैं कि रामेश्वरी को भले ही माता बनने का सौभाग्य नहीं मिला था फिर भी उनका हृदय एक माता का हृदय बनने की पूर्ण योग्यता रखता था?
उत्तर:
यह सच है कि रामेश्वरी नि:संतान थी, परन्तु यह भी उतना ही सत्य है। कि उसका हृदय एक माता बनने के सभी गुणों से सम्पन्न था। उसके हृदय में मातृत्व के गुण अन्तनिर्हित थे जिनका समुचित विकास नहीं हो पाया था। रामेश्वरी का हृदय उस भूमि के समान था जिसमें बीज तो पड़ा था, परन्तु उसको सींचकर और प्रस्फुटित करके भूमि के ऊपर लाने वाला कोई नहीं था। यही कारण है कि उसका हृदय मनोहर और चुन्नी की ओर खिंचता तो था, उनके प्रति ममत्व भी रखता था। परन्तु जब उसे ध्यान आता कि वे मेरे बच्चे नहीं हैं, दूसरे के हैं, तो वहीं ठहर जाती थी। अतः कहा जा सकता है कि कहानीकार का यह कहना पूर्णतया उचित और सत्य है कि रामेश्वरी के हृदय में मातृत्व के सभी गुण विद्यमान थे।

प्रश्न 9.
“रामेश्वरी उस समय सारा द्वेष भूल गयी।” रामेश्वरी कब और क्यों सारा द्वेष भूल गई?
उत्तर:
एक शाम रामेश्वरी देवरानी के साथ खुली छत पर हवा खा रही थी। दोनों बच्चों की बाल-क्रीड़ा रामेश्वरी को बड़ी भली लग रही थी। हवा में उड़ते हुए उनके बाल, कमल की तरह खिले हुए उनके नन्हें-नन्हें मुख, उनकी प्यारी-प्यारी तोतली बातें उसके हृदय को सुकून दे रहे थे। तभी खेलते-कूदते दोनों बच्चे रामेश्वरी की गोद में आ गये। उसने उन बच्चों को उसी तरह हृदय से लगा लिया जैसे कोई बच्चों के लिए तड़पता हुआ मनुष्य लगा लेता है। उसने बड़ी सतृष्णता से उनको प्यार किया, जैसे वह उसके स्वयं के ही बच्चे हों। उस समय रामेश्वरी सारा द्वेष भूल गयी थी। रामेश्वरी सारा द्वेष इसलिए भूल गयी थी कि उसका हृदय नारी सुलभ भावनाओं ममता, प्रेम, कोमलता आदि से परिपूर्ण था और अवसर पाकर वह प्रस्फुटित हो गया था। बच्चों की क्रीड़ाओं ने उसकी ममता को जगा दिया था।

प्रश्न 10.
सदमे और संताप की स्थिति में रामेश्वरी क्या-क्या बड़बड़ाती रहती थी और क्यों?
उत्तर:
बालक मनोहर रामेश्वरी के सामने ही छत से नीचे गिर गया, उसने जानबूझकर बचाने में देर कर दी। बालक के नीचे गिरते ही उसके हृदय को बड़ा आघात लगा और सदमे के कारण वह बेहोश हो गई । एक सप्ताह तक बुखार में पड़ी रही। वह मानसिक संताप की स्थिति में थी। कभी-कभी वह जोर से चिल्लाती और कहती – “देखो वह गिर रहा है – उसे बचाओ, दौड़ो मेरे मनोहर को बचा लो।” रामेश्वरी के हृदय में ग्लानि और अपराध-बोध व्याप्त हो गया था। इस कारण उसके मुख से बरबस ही निकलता–”बेटा मनोहर, मैंने तुझे नहीं बचाया। हाँ-हाँ, मैं चाहती तो बचा सकती थी – मैंने देर कर दी।” इस प्रकार रामेश्वरी का पश्चात्ताप और मनस्ताप इन वाक्यों में प्रकट हो रहा था।

प्रश्न 11.
“‘ताई’ कहानी में कौशिक जी ने बाल मनोविज्ञान को सुन्दर अभिव्यक्ति दी है।” इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कौशिक जी की ‘ताई’ कहानी में बाल मनोविज्ञान का समावेश पर्याप्त रूप से हुआ है। पाँच वर्षीय मनोहर और दो वर्ष की चुन्नी के माध्यम से कथानक आगे बढ़ता है तथा बच्चों के अबोध मन की कोमल भावनाओं को अभिव्यक्ति मिली है। बच्चे अपने ताऊजी बाबू रामजीदास के लाड़-प्यार से प्रसन्न रहते हैं, तो उन्हें अपनी रेलगाड़ी में बिठाने को तैयार हो जाते हैं।

बच्चों की ताई उन्हें झिड़कती व डाँटती रहती है, उनसे ईर्ष्या और द्वेष का भाव रखती है, जिसे उनका बाल-मन अच्छी तरह समझ लेता है और मनोहर इसीलिए ताई को अपनी खिलौना-रेलगाड़ी में बिठाने से मना कर देता है। बाबू साहब अपने भाई के बच्चों को अपने बच्चों की तरह समझते हैं तो वे भी उन पर सच्चा प्यार लुटाते हैं। रामेश्वरी उनसे स्नेह नहीं रखती, घृणा व द्वेष का भाव रखती है, तो दोनों बच्चे भी उससे खिंचे-खिंचे से रहते हैं। इस प्रकार ‘ताई’ कहानी में बाल-मनोभावों का प्रभावपूर्ण और सुन्दर समावेश हुआ है।

प्रश्न 12.
पात्र या चरित्र चित्रण की दृष्टि से ‘ताई’ कहानी पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘ताइ’ कहानी में पात्र-योजना श्रेष्ठ ढंग से की गई है। इसमें ताई रामेश्वरी, उसके पति बाबू रामजीदास और ताई के देवर कृष्णदास को पुत्र मनोहर, ये तीनों सक्रिय और महत्त्वपूर्ण पात्र हैं। इनके अतिरिक्त चुन्नी, ताई की देवरानी और देवर कृष्णदास का केवल नामोल्लेख किया गया है। इस प्रकार पात्रों की भीड़ न होकर उचित संख्या है। बालक मनोहर का चरित्र बाल-मन के अनुकूल सरल, कोमल और बाल-सुलभ चेष्टाओं से परिपूर्ण दर्शाया गया है।

कहानी की नायिका ताई-रामेश्वरी नि:संतान स्त्री पात्र है, जो नारी सुलभ ईष्र्या, द्वेष, घृणा, अन्धविश्वास, रूढ़ियों आदि से आक्रांत होते हुए भी ममता, प्रेम, करुणा आदि भावों से युक्त है, यद्यपि ये श्रेष्ठ भाव उसके हृदय में छिपे हुए हैं। कहानी के प्रमुख पुरुष पांत्र बाबू रामजीदास सरल, स्नेही, विवेकशील और संतोषी स्वभाव के हैं। इन सभी पात्रों का चरित्र-चित्रण कथानक के अनुरूप किया गया है। ये अपने समाज में हर कहीं दिखाई देने से विश्वसनीय पात्र लगते हैं। इस प्रकार कौशिक जी ने ‘ताई’ कहानी में पात्रों का संयोजन सुन्दर और उचित रूप से किया है।

प्रश्न 13.
‘ताई’ कहानी की संवाद-योजना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संवाद या कथोपकथन की दृष्टि से ‘ताई’ कहानी एक श्रेष्ठ एवं सफल। कहानी है। इसके संवाद रोचक, संक्षिप्त और पात्रानुकूल हैं। ये कथानक को आगे बढ़ाते हैं, पात्रों के चारित्रिक गुणों एवं मनोदशा को प्रकट करते हैं। बाबू रामजीदास और रामेश्वरी के संवाद उनकी चारित्रिक विशेषताओं को उद्घाटित करते हैं तथा कहानी के उद्देश्य को अभिव्यक्ति प्रदान करते हैं। बालक मनोहर के संवाद बाल मनोभावों के अनुकूल सरल और संक्षिप्त हैं। उदाहरण के लिए ये संवाद देखिए मनोहर’ताई को नहीं ले जायेंगे।’ ताई जी सुपारी काटती हुई बोली-‘अपने ताऊ जी को ही ले जा, मेरे ऊपर दया रख।’ बाबू साहब-ताई जी को क्यों नहीं ले जायेगा?’ मनोहर – ‘ताई हमें प्याल नहीं कलती।’ बाबू साहब- ‘जो प्यार करे तो ले जायेगा?’

प्रश्न 14.
कहानी के तत्वों के आधार पर ‘ताई’ की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
‘ताई’ विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ की श्रेष्ठ कहानियों में से एक है। कथा-तत्वों की दृष्टि से इसकी श्रेष्ठता निम्नांकित बिन्दुओं में देखी जा सकती है –

  1. कथानक – इस दृष्टि से यह रोचक, कौतूहलवर्धक, बालमनोविज्ञान की व्यंजक और आदर्शपूर्ण कहानी है। इसकी कथा एक संयुक्त परिवार की है।
  2. चरित्र – चित्रण – पात्र – योजना इस कहानी में कथानक के अनुरूप सीमित संख्या में की गई है। इसमें प्रमुख पात्र रामेश्वरी, बाबू रामजीदास और मनोहर बालक हैं।
  3. संवाद – ‘ताई’ कहानी के संवाद पात्रों के चरित्रोद्घाटक, कथानक को गति देने वाले, पात्रानुकूल एवं कथा की मूल संवेदना को प्रकट करने वाले हैं।
  4. वातावरण – वातावरण सृजन की दृष्टि से ‘ताई’ कहानी में उनके घर के अन्दर, शाम को छत पर, पतंगों का उड़ना आदि का चित्रण है जो यथार्थ है।
  5. भाषा – शैली – इसमें भाषा और शैली पात्रानुकूल एवं उनके मनोभावों की व्यंजक है।
  6. सोद्देश्यता – उद्देश्य की अभिव्यक्ति में ममतामय आदर्श-चिन्तन, पारिवारिक स्नेह-सम्बन्धों की स्थापना तथा बाल मन की अभिव्यक्ति प्रभावपूर्ण ढंग से हुई है।

ताई लेखक परिचय

विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’ का जन्म सन् 1899 ई. में अम्बाला (पंजाब) में हुआ। ये प्रेमचन्द की परम्परा के कहानीकार हैं। ये उर्दू लेखन से हिन्दी में आये। इनकी प्रथम कहानी संग्रह ‘रक्षाबन्धन’ सन् 1913 में प्रकाशित हुई। ‘कल्प मन्दिर’, ‘चित्रशाला’, ‘प्रेम-प्रतिज्ञा’, ‘मणिमाला’ और ‘कल्लोल’ नामक संग्रहों में कौशिक जी की दो सौ से अधिक कहानियाँ संग्रहीत हैं। उन्होंने हास्य-व्यंग्यपूर्ण कहानियाँ भी लिखीं जो ‘चाँद’ में दुबे जी की चिट्ठी’ के रूप में प्रकाशित हुई थीं।

कौशिक जी की कहानियों में पारिवारिक जीवन की समस्याओं और उनके समाधान का सफल प्रयास हुआ है। उनकी कहानियों में पात्र हमारे यथार्थ जीवन के जीते-जागते लोग हैं जो सामाजिक चेतना से अनुप्राणित तथा प्रेरणादायी हैं। इनकी भाषा सरल और स्पष्ट है तथा शैली में सरसता, सहजता और रोचकता विद्यमान है। इनकी कहानियाँ अपनी मूल संवेदना को पूर्ण मार्मिकता के साथ प्रकट करती हैं। इनका निधन सन् 1945 में हुआ।

पाठ-सार
‘ताई’ का पारिवारिक परिचय–’ताई’ कहानी की कथावस्तु एक संयुक्त परिवार की कहानी है। कहानी के प्रमुख पुरुष पात्र बाबू रामजीदास कपड़े की आढ़त का काम करते हैं। रामेश्वरी इनकी पत्नी है जो कहानी की नायिका ‘ताई’ के रूप में जानी गई हैं। रामेश्वरी निस्संतान होने के कारण दु:खी रहती है तथा अपने देवर के बच्चों के प्रति ईष्र्या और द्वेष का भाव रखती है। मनोहर का ताऊजी से रेलगाड़ी माँगना–बालक मनोहर अपने ताऊजी से रेलगाड़ी वाला खिलौना लाने को कहता है। बाबू साहब पूछते हैं कि रेलगाड़ी का क्या करोगे तब मनोहर उसमें बैठकर बहुत दूर जाने की बात कहता है। बालक अपने ताऊ का लाड़ला है, वे भी उसे खूब प्यार करते हैं, परन्तु रामेश्वरी उससे ईर्ष्या-द्वेष रखती है।

बाबू रामजीदास और रामेश्वरी में सन्तान की बात पर तर्क-वितर्क–बाबू रामजीदास पत्नी को समझाते हैं कि भाई के बच्चों से प्यार करना चाहिए। इन्हें भी अपनी ही सन्तान समझा करो। यह सुनकर रामेश्वरी और अधिक चिढ़ जाती है। वह कहती है कि पराये धन से घर नहीं भरता। तुमने तो किसी पण्डित का कहना भी नहीं माना, न कोई व्रत, न पूजा-पाठ करते हो कि अपनी खुद की सन्तान हो जाये। रामजीदास इन अंधविश्वासों को व्यर्थ बताते हैं।

रामेश्वरी द्वारा बाबू साहब से मार्मिक प्रश्न करना–अनेक तर्क-वितर्क के पश्चात् रामेश्वरी ने रामजीदास से पूछा कि क्या तुम्हारे जी में कभी सन्तान की इच्छा नहीं होती। बाबू साहब इस दिल को छू लेने वाले प्रश्न पर कुछ देर चुप रहने के बाद बोले, ऐसा कौन मनुष्य होगा जो अपनी सन्तान का मुख नहीं देखना चाहेगा। परन्तु जब भाग्य में अपनी सन्तान नहीं है, तो भाई की सन्तान के प्रति अपनत्व रखकर सन्तोष कर लेना चाहिए।

रामेश्वरी के हृदय में मातृत्व का अन्तर्निहित भाव-यद्यपि रामेश्वरी माँ नहीं बनी थी, परन्तु माँ की ममता, प्यार आदि मातृत्व के गुण उसके हृदय में विद्यमान थे। एक दिन जब दोनों बच्चे खेलते हुए उसकी गोद में आ गये तो उसने उसी तरह हृदय से लगा लिया मानो वे उसकी अपनी सन्तान हों। उसने उनको खूब प्यार किया जैसे वर्षों की प्यास बुझाई हो।

मनोहर को छत से नीचे गिरना और रामेश्वरी का हृदय परिवर्तन होना एक दिन रामेश्वरी छत पर खड़ी थी। तभी पतंग लूटने के प्रयास में बालक मनोहर नीचे जा गिरा। इस घटना से रामेश्वरी का हृदय बिलकुल परिवर्तित हो गया। उन बच्चों के प्रति उसके मन में घृणा, ईर्ष्या और द्वेष के स्थान पर ममता और प्यार का अजस्र स्रोत फूट पड़ा। वह मनोहर को अपनी सन्तान के समान ही प्रेम और दुलार करने लगी। मनोहर की बहन चुन्नी को भी वह खूब प्यार करने लगी। उसकी सारी ईष्र्या ममत्व में बदल गयी।

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