RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 फिर से सोचने की आवश्यकता है

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 फिर से सोचने की आवश्यकता है

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
केवल जीवन-धारण के लिए उपयोगी प्रयोजनों के पीछे दौड़ना क्या है?
(क) ईश्वर धर्म
(ख) मानव धर्म
(ग) सांसारिक धर्म
(घ) पशु धर्म
उत्तर:
(घ) पशु धर्म

प्रश्न 2.
हमारे देश में कौनसी भाषा का वर्चस्व बना हुआ है –
(क) संस्कृत
(ख) उर्दू
(ग) अंग्रेजी
(घ) हिन्दी
उत्तर:
(ख) उर्दू

प्रश्न 3.
जो समझदार लोग हैं, उनकी दृष्टि रहती है।
(क) मान पर
(ख) मन पर
(ग) काम पर
(घ) परिणाम पर
उत्तर:
(घ) परिणाम पर

प्रश्न 4.
लेखक के अन्तरतम को किस भावना ने आलोडित कर रखा है?
(क) आक्रोश ने
(ख) दुःख ने
(ग) सत्संगति ने
(घ) प्रसन्नता ने
उत्तर:
(ग) सत्संगति ने

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘बात पर कान न देना’ मुहावरे का अर्थ लिखते हुए वाक्य प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
बात पर कान न देना = किसी बात पर ध्यान न देना, अनसुना-सा कर देना। वर्तमान में युवा पीढ़ी वाले बुजुर्गों की बात पर कान नहीं देते हैं।

प्रश्न 2.
लेखक का चित्त कब विचलित हो उठा?
उत्तर:
वर्तमान में देश में अनेक ज्ञानी-गुणी लोगों के सम्पर्क में आने और। राष्ट्र-भाषा विषयक उनके विचार सुनने से लेखक का चित्त विचलित हो उठा।

प्रश्न 3.
वर्तमान समय में बुद्धिमानी किसमें है?
उत्तर:
वर्तमान समय में काम निकाल लेना बुद्धिमानी मानी जाती है।

प्रश्न 4.
लेखक की दृष्टि में मनुष्यत्व क्या है?
उत्तर:
लेखक की दृष्टि में प्रयोजनों के पीछे न दौड़ना और प्रेम, दया आदि मानवीय गुणों की रक्षा करना ही मनुष्यत्व है।

प्रश्न 5.
पशु का धर्म क्या है?
उत्तर:
केवल जीवन-धारण के लिए उपयोगी प्रयोजनों के पीछे दौड़ना, केवल अपना हित साधना पशु का धर्म है।

प्रश्न 6.
विदेशों में हमारी धाक का कारण क्या है?
उत्तर:
विदेशों में हमारी धाक का कारण अंग्रेजी भाषा को राष्ट्र-भाषा की तरह अपनाना है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रवीन्द्रनाथ ने लोगों पर विश्वास न कर स्वयं पर ध्यान देने के विषय में क्या कहा?
उत्तर:
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि लोगों की बातों पर कान मत दो, अर्थात् उन्हें मत सुनो, हजारों आकर्षण से खिंचा हुआ मन इधर-उधर भटक जाता है। अपने हृदय की बात सुनो, स्वयं की आत्मा पर विश्वास करो और अपने हृदय में बैठे हुए राजा की बातों पर ही ध्यान दो। प्रत्येक व्यक्ति की आत्मा की आवाज एकदम सही आवाज होती है और उसके कथन पूर्णतः विश्वास योग्य होते हैं। बाहरी आकर्षणों से सदा बचकर रहना चाहिए।

प्रश्न 2.
मान को लेकर पुराने काव्य की नायिका क्या सोचती है?
उत्तर:
कुछ लोग मान को महत्त्व देते हैं, परन्तु कुछ लोग काम को बड़ा मानते हैं तथा मान को नगण्य समझते हैं। लेखक कहता है कि पुराने काव्य की नायिका मान की परवाह नहीं करती है। उसे तो मान घटे तो घट जाये, परन्तु प्रियतम के मिलन-दर्शन का काम हो जाना सबसे श्रेष्ठ लगता है। वह काम बन जाना, प्रियतम से मिलन किसी भी हालत में हो जाना अच्छा मानती है। यथा ‘मान घटे तें कहा घटि है, जो प्रै प्रान पियारे के दर्शन पैये।”

प्रश्न 3.
मनुष्य को केवल मनुष्य किसलिए माना है?
उत्तर:
केवल प्रयोजनों के पीछे भागनां तथा स्वार्थ को ही जीवन का श्रेष्ठ कर्तव्य मानना मनुष्य का धर्म नहीं है। अन्य जीवों एवं पशुओं की अपेक्षा मानव को इसीलिए विशिष्ट रूप में बनाया गया है कि वह शक्ति, प्रेम, दया, सहानुभूति आदि गुणों को अपनावे, इन धर्मों की रक्षा में अपने आपको समर्पित कर दे तथा मनुष्यत्व का परिचय दे। मनुष्य के वास्तविक धर्मों, मानवीय मूल्यों तथा आदर्शों का पालन करने के लिए ही इस सृष्टि में मनुष्य को बनाया गया है। मनुष्य ने ही अपने पुरुषार्थ से सृष्टि की धारा को अनुकूल दिशा में मोहा है।

प्रश्न 4.
मालिकों की बोली कौनसी थी और उसे हमने कैसे सीखा?
उत्तर:
लेखक व्यंग्य रूप में बताता है कि अंग्रेज इस देश के शासक थे, वे भारतीयों के मालिक रहे। उन्होंने राज-काज चलाने के लिए अपनी भाषा को अपनाया। राज्य व्यवस्था ठीक से चलती रहे, इसके लिए उन्होंने अपने नौकरों को अंग्रेजी भाषा सिखायी। लोगों ने भी नौकरी बनी रहे, रोटी-रोजगार मिलता रहे, इस दृष्टि से अंग्रेजी को सीखने का प्रयास किया। इस प्रकार अंग्रेजों के शासन में हमने अंग्रेजी भाषा को सीखा और वर्तमान में अपने वर्चस्व की खातिर अंग्रेजी सीखपढ़ रहे हैं। इस तरह हम गुलामी की निशानी को ढो रहे हैं।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
दो तरह के मत वालों के विचार स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने वर्तमान में दो तरह के मत रखने वाले लोगों का उल्लेख किया है। एक मत के लोग कहते हैं कि काम निकाल लेना बुद्धिमानी है तथा दूसरे कहते हैं कि मान के लिए मर-मिटना मनुष्यत्व की निशानी है। कुछ लोग अंग्रेजी को राजकाज की भाषा बने रहना देना चाहते हैं, उसी से काम निकालना उचित मानते हैं, परन्तु अन्य लोग राष्ट्र-भाषा का प्रश्न देश के सम्मान से जोड़कर हिन्दी का पक्ष लेते हैं। इन्हीं दोनों मतों को लेकर लेखक ने स्पष्ट कहा है कि

(1) काम निकालना अर्थात् स्वार्थ साधने की पूरी कोशिश करना भले ही बुद्धिमानी हो, समझदारी मानी गई हो, परन्तु इस विचार में स्वार्थ की प्रबलता है, सीधे परिणाम की अनुकूलता पर उनकी दृष्टि रहती है। यह मत एक प्रकार से पशु का आचरण है। क्योंकि पशु को केवल अपने स्वार्थ का, अपने पेट और अपने सुखसुविधा का ध्यान रहता है। वह केवल प्रयोजन या स्वार्थ के पीछे दौड़ता है और इसके लिए अपनों से भी विरोध करने लगता है।

(2) मान के लिए मर मिटना मनुष्यत्व की निशानी है। सम्मान पाने के लिए ही देशभक्तों ने आजादी के आन्दोलन में प्राणों का बलिदान किया। अपनी भाषा का प्रश्न भी मान से जुड़ा हुआ है। देशभक्ति, अस्मिता और जातीय गौरव का प्रश्न इसी से जुड़ा हुआ है। इस कारण मान का बड़ा महत्त्व है। मानवीय गुणों का पालन एवं आचरण भी इसी मत से हो पाता है।

प्रश्न 2.
“स्वतन्त्रता के बाद हमने अपनी दुर्बलताओं को महनीय तथा निष्क्रियता को तत्त्ववाद का रूप दिया है।” उपर्युक्त पंक्ति को अपने शब्दों में समझाइए।
उत्तर:
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा रूप में उचित सम्मान न मिलने और अंग्रेजी को राज-काज की भाषा बनाये रखने पर व्यंग्य किया है। कुछ स्वार्थी लोग हिन्दी भाषा को शासन के कामों में प्रयोग करने में अक्षम बताते हैं। वे अंग्रेजी का समर्थन करते हैं, उसे ही विश्व-स्तर की तथा प्रशासन के योग्य भाषा मानते हैं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद इस तरह का विचार रखने वाले लोग हिन्दी के विरोध में गलत तर्क देते हैं, मानसिक दुर्बलता से ग्रस्त होने से वे गुलामी से दबे रहते हैं तथा उनमें देश की अस्मिता को लेकर निष्क्रियता भी दिखाई देती है। वे केवल अपने रोजगार, पद-प्रतिष्ठा आदि की चिन्ता करते हैं।

वे वास्तविक रूप में देश का अहित कर रहे हैं। अंग्रेजी की गुलामी उनकी मानसिक दुर्बलता की परिचायक है, फिर भी वे अपनी दुर्बलता को छिपाकर, अपने तर्क-कुतर्क देकर अंग्रेजी :का हर तरह से समर्थन कर रहे हैं। लेखक कहता है कि वे अपनी निष्क्रियता को तत्त्ववाद का रूप दे रहे हैं, अपनी अक्षमताओं को छिपाकर ऐसे तर्क दे रहे हैं, जो सत्य से कोसों दूर हैं। अतएव कुछ थोड़े-से लोगों की सुविधा को बड़ा लाभ बताने का कार्य कदापि सराहनीय नहीं कहा जा सकता है।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. सत्संगति की महिमा ……………. भटकता न फिर।
2. क्यों हमारे नेता ………………… भाषा जानती है।
3. लेकिन फिर मैं …………………. मानना चाहता।
4. तुलसीदास की ……………. व्यक्त कर सके।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या आगे दी जा रही है, उसे देखकर लिखिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार मनुष्यत्व की निशानी है
(क) काम के लिए भागते रहना
(ख) काम निकाल लेने में तत्पर रहना
(ग) माने की चिन्ता नहीं करना
(घ) मान के लिए मर मिटना
उत्तर:
(घ) मान के लिए मर मिटना

प्रश्न 2.
बिना मान के अमृत पीने की कोशिश में, किसने सिर कटाया था?
(क) शम्भु ने
(ख) राहु ने
(ग) रावण ने
(घ) बलि ने
उत्तर:
(ख) राहु ने

प्रश्न 3.
मानवीय गुणों का पालन करने वाले लोग होते हैं-
(क) समझदार
(ख) नासमझ
(ग) भावुक
(घ) महात्मा
उत्तर:
(ग) भावुक

प्रश्न 4.
दफ्तरों की फाइलों पर अंग्रेजी में नोट लिखने की कला में कितने लोग प्रवीण हैं?
(क) देश के आधी फीसदी लोग
(ख) देश के चौथाई फीसदी लोग
(ग) देश के आधी की भी आधी फीसदी लोग
(घ) देश के दस प्रतिशत लोग
उत्तर:
(क) देश के आधी फीसदी लोग

प्रश्न 5.
कुछ लोग देश का संविधान बनाने वालों पर क्या आरोप लगा रहे हैं?
(क) देश की रोजगार नीति का गलत निर्धारण किया।
(ख) देश की विदेश नीति को अधिक महत्त्व दिया।
(ग) देश की भाषा-नीति को गलत ढंग से स्वीकार किया।
(घ) देश की आरक्षण नीति को नहीं सुलझाया।
उत्तर:
(ग) देश की भाषा-नीति को गलत ढंग से स्वीकार किया।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सत्संगति से लेखक क्या अनुभव कर रहा है?
उत्तर:
सत्संगति से लेखक का अन्तरतम आलोड़ित हो रहा है और वह व्याकुलता का अनुभव कर रहा है।

प्रश्न 2.
लेखक. के अनुसार कौन-से लोग भावुक नहीं होते हैं?
उत्तर:
जो लोग प्रयोजनों के अनुसार चलते हैं, जिसकी दृष्टि सीधे परिणाम तक पहुँची होती है, ऐसे लोग भावुक नहीं होते हैं।

प्रश्न 3.
“दृष्टि सीधे परिणाम तक पहुँचती है।” इसका तात्पर्य बताइये।
उत्तर:
इसका तात्पर्य यह है कि समझदार लोग किसी कार्य को करने से पूर्व देख लेते हैं कि वह कार्य उनके हित में रहेगा या नहीं।

प्रश्न 4.
मान पर दृष्टि रखने वाले लोग कैसे होते हैं?
उत्तर:
मान पर दृष्टि रखने वाले लोग भावुक कोटि के होते हैं, वस्तुतः वे उदार स्वभाव के महामानव होते हैं।

प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार ‘जलद’ किसे कहते हैं और किसे नहीं?
उत्तर:
लेखक के अनुसार जो जल दे सके, जल-वर्षा कर सके, उसे ही जलद कहते हैं, केवल धुएँ के पुंज को जलद नहीं कह सकते।।

प्रश्न 6.
अंग्रेजी को विदेशी भाषा क्यों नहीं कह सकते?
उत्तर:
अंग्रेजी हमारे पुराने शासकों, हमारे मालिकों की भाषा थी, यहाँ के राजकाज में प्रयुक्त होती रही। इस कारण इसे विदेशी भाषा नहीं कह सकते।

प्रश्न 7.
देश किसे गिनने से चलता है?
उत्तर:
देश केवल सिर गिनने से नहीं चलता, अपितु दिमाग गिनने से चलता है, अर्थात् दिमाग से देश चलता है।

प्रश्न 8.
कई बार मनुष्य पर गलत ढंग की अक्लमन्दी का नशा छा जाता है। उस दशा में वह क्या करता है?
उत्तर:
उस दशा में वह अपनी कमजोरियों को छिपाकर स्वयं को महान् बताने का प्रयास करता है।

प्रश्न 9.
द्विवेदीजी ने मनुष्य के जन्म का उद्देश्य क्या बताया है?
उत्तर:
द्विवेदीजी ने बताया है कि मनुष्य के जन्म का उद्देश्य सृष्टि की धारा को अपने पराक्रम से अनुकूल दिशा की ओर मोड़ना है।

प्रश्न 10.
आज किस बात को सोचने की आवश्यकता आ पड़ी है?
उत्तर:
अंग्रेजी की गुलामी को त्यागकर क्या हिन्दी को राष्ट्रभाषा का सम्मान नहीं दिया जा सकता? यह सवाल सोचने की आवश्यकता आ पड़ी है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने समझदार और भावुक लोगों में क्या अन्तर बताया है?
उत्तर:
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने बताया है कि समाज में दो तरह के लोग हैं, समझदार और भावुक। समझदार लोग मन की बात नहीं सुनते हैं, वे सीधे काम साधने का प्रयास करते हैं, स्वार्थ साधने पर ध्यान रखते हैं और उनकी दृष्टि परिणाम पर लगी रहती है। भावुक लोग मन की बात सुनते हैं, मान का पूरा ध्यान रखते हैं और मान की खातिर मर मिटने को तैयार रहते हैं। उनमें स्वार्थ की अपेक्षा प्रेम, सहानुभूति, दया, देशभक्ति आदि गुणों की अधिकता रहती है। वे प्रबल स्वार्थी न होकर मानवीय मूल्यों का पक्ष लेते हैं। इस प्रकार समझदार और भावुक लोगों में काफी अन्तर रहता है।

प्रश्न 2.
देश की राज्य-व्यवस्था की भाषा के सम्बन्ध में अंग्रेजी के पक्षधर क्या कहते हैं?
उत्तर:
लेखक बताता है कि वर्तमान में अंग्रेजी भाषा के पक्षधर लोग काफी समझदार हैं। वे कहते हैं कि अंग्रेजी भाषा के कारण दस पढ़े-लिखे लोगों को नौकरी या रोजगार मिल जाता है। अंग्रेजों के शासनकाल अर्थात् लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक अंग्रेजी राज-काज की भाषा रही है। यह हमारे पुराने शासकों की भाषा थी, हमारे मालिकों की भाषा थी और राज-काज में प्रयुक्त होने से अब यह विदेशी भाषा नहीं है, अब यह राष्ट्रीय भाषा है, क्योंकि इसमें अंग्रेजों के बहुत-से बच्चे आपसी वाग्-व्यवहार करते हैं, इसे पढ़ते-लिखते व बोलते हैं। अतएव अंग्रेजी भाषा का विरोध करना अनुचित ही है।

प्रश्न 3.
“संविधान बनाने वाले देशभक्तों ने देश की भाषा-नीति को गलत ढंग से स्वीकार किया है। इससे लेखक का क्या आशय है?
उत्तर:
इससे लेखक का आशय है कि देश को स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद संविधान बनाया गया। उस समय संविधान निर्माताओं ने भाषा-नीति का निर्धारण करते हुए लगभग पन्द्रह वर्षों तक केन्द्रीय शासन का कार्य अंग्रेजी में करते रहने तथा हिन्दी को सहभाषा के रूप में विकास करने का निर्णय लिया। हिन्दी को स्वतन्त्र भारत की राष्ट्रभाषा मानते हुए भी कुछ समय के लिए अंग्रेजी का वर्चस्व स्वीकार किया। यह सब स्वतन्त्रता-प्राप्ति के जोश में, राज-काज चलाने की धारणा से और गुलामी की मानसिकता से किया गया। इस तरह स्वतन्त्र भारत की भाषा-नीति को गलत ढंग से स्वीकार किया गया।

प्रश्न 4.
मान के साथ दिये गये विष को पीने वाले क्या घोषणा करते हैं? बताइये।
उत्तर:
माने को महत्त्व देने वाले तथा उसकी खातिर मर-मिटने के लिए तत्पर रहने वाले लोग भावुक होते हैं। वे आत्मा की बात को सुनते हैं और यदि कोई उन्हें मान के साथ विष भी दे दे, तो उसे वे सहर्ष स्वीकार कर लेते हैं। ऐसे ही लोग गर्वपूर्वक कहते हैं –

“मान सहित विष खाइके, शंभु भये जगदीश।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो शीश।।”

अर्थात् मान बना रहे, चाहे कितना भी त्याग करना पड़े, यही मनुष्यत्व की निशानी है। अतएव ऐसे लोग मान की प्रतिष्ठा करने की घोषणा करते हैं।

प्रश्न 5.
“कदाचित् आज यह सोचने की आवश्यकता आ पड़ी है। इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद भारत में अंग्रेजी भाषा की प्रतिष्ठा और संविधान में राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकृत हिन्दी भाषा की उपेक्षा लेकर कहता है। कि इस विषय में फिर से सोचने की आवश्यकता है। अंग्रेजी भाषा गुलामी की निशानी और विदेशी भाषा है। इसे बोलने वाले लोग पूरी आबादी के आधे प्रतिशत से भी। कम हैं। हिन्दी की उपेक्षा से करोड़ों भारतीयों के साथ घोर अन्याय हो रहा है। देश की आजादी के लिए जो शहीद हुए उनकी भावनाओं का अपमान हो रहा है।
हिन्दी पर अक्षमता का दोष लगाने वाले घोर स्वार्थी हैं। वर्तमान में इन सब बातों पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह गद्य Chapter 3 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रभाषा रूप में अंग्रेजी के समर्थन और हिन्दी के विरोध में क्या तर्क दिये जाते हैं? फिर से सोचने की आवश्यकता है’ निबन्ध के आधार पर बताइए।
उत्तर:
‘फिर से सोचने की आवश्यकता है’ निबन्ध में आचार्य द्विवेदी ने यह स्पष्ट किया है कि कुछ स्वार्थी लोग राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी का विरोध कर रहे हैं। वे प्रायः ये तर्क देते हैं|

  1. अंग्रेजों के शासनकाल में और स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद अंग्रेजी का निरन्तर प्रयोग होने से अब यह विदेशी भाषा न होकर राष्ट्रीय जबान बन गई है।
  2. आज विदेशों में भारत की जो धाक है, वह अंग्रेजी भाषा के वाग्व्यवहार के कारण ही है। क्योंकि अंग्रेजी विश्वस्तर की भाषा है।
  3. अंग्रेजी को अपनाने से देश में शिक्षा का स्तर उठ रहा है, जबकि हिन्दी में पढ़ाई करने से शिक्षा का स्तर गिर रहा है।
  4. अंग्रेजी भाषा में न्यायालयों में फैसले लिखे जाते हैं, जनता पर शासन चलता है, जबकि हिन्दी या देशी भाषा में वह क्षमता नहीं है।
  5. फाइलों पर नोट लिखने या आदेश प्रसारित करने से ही शासन-तन्त्र चलता है और यह काम अंग्रेजी जानने वाले ही कर सकते हैं। जनता की सुविधा के लिए देशी भाषा के प्रयोग की बात थोथी दलील है।

इस तरह के तर्क देकर राष्ट्रभाषा एवं राजकाज की भाषा रूप में हिन्दी का विरोध कर देश की अस्मिता मिटायी जा रही है।

प्रश्न 2.
“फिर से सोचने की आवश्यकता है” निबन्ध में आचार्य द्विवेदी ने सन्देश व्यक्त किया है, उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत निबन्ध में स्वतन्त्र देश में राष्ट्रभाषा का सम्मान किसे मिले और करोड़ों भारतीयों की सुविधा का ध्यान कैसे रखा जावे, इस भाव को लेकर आचार्य द्विवेदी ने जो सन्देश दिया है, उसे इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है|

  1. स्वतन्त्र देश की अपनी राष्ट्रभाषा हो, वह अस्मिता एवं देश के गौरव की प्रतीक हो। यह सम्मान अंग्रेजी को नहीं दिया जा सकता। क्योंकि वह गुलामी की प्रतीक है। देश के करोड़ों हिन्दी भाषी लोगों का यह सोचना है।
  2. स्वतन्त्रता-प्राप्ति में अनेक नौजवानों ने प्राणों का बलिदान किया और हिन्दी की प्रतिष्ठा व सम्मान के लिए सुन्दर सपने देखे, हमें उन बलिदानी देशभक्तों की भावना का सम्मान करना चाहिए।
  3. अंग्रेजी भाषा में बोलने-समझने वाले लोग कुल आबादी के आधी प्रतिशत से भी कम हैं। केवल उन लोगों की खातिर हिन्दी के साथ हो रहे अन्याय का विरोध करना चाहिए।

फिर से सोचने की आवश्यकता है। लेखक परिचय-

आधुनिक युग के मूर्धन्य निबन्धकार डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी का जन्म बलिया जिले के दुबे का छपरा’ नामक गाँव में सन् 1907 में हुआ था। इन्होंने अनेक संस्थानों में शिक्षण कार्य किया तथा अनेक विषयों पर उत्कृष्ट निबन्ध लिखे। इनके निबन्ध व्यक्तित्व-प्रधान हैं तथा उनमें प्राचीन और नवीन विचारों का अपूर्व सामंजस्य दिखाई देता है। इनके निबन्धों में पाण्डित्य की छाप दिखाई देती है। ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ इनका प्रसिद्ध उपन्यास है। ‘आम फिर बौरा गये’, ‘कुटज’, ‘शिरीष के फूल’, ‘नाखून क्यों बढ़ते हैं’ आदि इनके उत्कृष्ट निबन्ध हैं। इनके ललित-निबन्धों में अतिशय गम्भीरता एवं उदारता के दर्शन होते हैं।

पाठ-सार
आचार्य द्विवेदी ने फिर से सोचने की आवश्यकता है’ निबन्ध में राष्ट्रभाषा हिन्दी को लेकर चिन्ता प्रकट की है। इस निबन्ध का सार इस प्रकार है एक बड़ा सवाल-लेखक कहता है कि उसके मन में एक बड़ा सवाल उठा हुआ है कि आत्मा की बात मानी जावे या बाहर की आवाज। सत्संगति के प्रभाव से व्यक्ति यद्यपि आत्मा की आवाज को महत्त्व देता है, परन्तु स्वार्थ साधने वाले लोग ऐसा नहीं मानते हैं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ का कथन था कि लोगों की बात न सुनकर हृदय की बात सुननी चाहिए।

बुद्धिमानी किसमें-काम निकाल लेना बुद्धिमानी है या मान के लिए मर मिटना सही है? दोनों मतों को मानने वाले लोग मौजूद हैं। भावुक लोग मनुष्यत्व को महत्त्व देते हैं, जबकि स्वार्थी लोग काम-निकालने में समझदारी मानते हैं। लेखक बताता है कि मान के लिए मर मिटना उन्हें श्रेष्ठ लगता है।

मनुष्यत्व एवं पशु-धर्म-कोरे स्वार्थ के पीछे न दौड़कर प्रेम, दया, सहानुभूति आदि गुण अपनाना मनुष्यत्व का धर्म है, परन्तु केवल स्वार्थ का आचरण करना पशु-धर्म है। मनुष्य का कर्तव्य मनुष्यत्व-धर्म का पालन करना है।

अंग्रेजीपरस्त लोगों का चिन्तन-कुछ लोगों का मत है कि अंग्रेजी हमारे पुराने शासकों की भाषा थी, यह अब विदेशी भाषा नहीं है। जब अंग्रेजी में देश का राज-काज ठीक से चल रहा है, तो इसे हटाकर हिन्दी या देशी भाषाओं में क्या धरा है। परन्तु ऐसा सोचने वाले लोग देश की आबादी के आधी प्रतिशत ही हैं और उनकी मनोदशा गुलामी से मुक्त नहीं हुई है। स्वार्थी लोगों की धारणा-अंग्रेजी का पक्ष लेने वाले स्वार्थी लोग हैं। वे हिन्दी को शासन चलाने में असमर्थ बताते हैं। ऐसे लोग जनता की सुविधा को नकार कर वोट की राजनीति करते हैं। परमुखापेक्षिता चिन्तनीय-लेखक बताता है कि देश को आजादी दिलाने के लिए जो देशभक्त शहीद हुए, उन्होंने विदेशी भाषा का भी विरोध किया था, उन्होंने सांस्कृतिक स्वतन्त्रता का नारा दिया था, अपनी भाषा को महत्त्व देने का समर्थन तथा परमुखापेक्षिता का विरोध किया था। परन्तु हमारे संविधाननिर्माताओं ने उनकी भावनाओं का आदर नहीं किया।

फिर से सोचने की आवश्यकता-स्वतन्त्र देश की अपनी राष्ट्रभाषा हो, कुछ गिने-चुने लोगों के कारण अंग्रेजी का समर्थन नहीं किया जावे। स्वभाषा की उपेक्षा करने से देश महान् नहीं बन सकता। इस सम्बन्ध में फिर से सोचना जरूरी है।

कठिन शब्दार्थ-
विचिकित्सा = सन्देह, भूल। अन्तरतम = हृदय। आलोडित = मंथन करना। नगण्य = तुच्छ। पैये = प्राप्त होवें। जगदीश = संसार के स्वामी, श्रेष्ठदेव। जलद = बादल। धूम = धुआँ। अमंगों = पदों। पुंजित = एकत्र। तत्त्वदर्शन = सार। परमुखापेक्षिता = दूसरों का मुंह ताकना, पराश्रित। यातनाएँ = कष्ट। निष्क्रियता = काम न कर पाना। तत्त्वचिन्तक = दार्शनिक। इंगित = संकेत, इशारा। महनीय == श्रेष्ठ, पूजनीय। तर्काभास = तर्क का आभास मात्र, कोरी कल्पना। अचिन्तनीय = जिसका चिन्तन न किया जा सके। नामान्तर = दूसरा नाम। निरादर = अपमान। प्रवीण = चतुर। पुरुषार्थ = जीवन के चार मुख्य पदार्थों में से एक, मानव का उद्यम। तर्जनी-संकेत = उंगली का इशारा।

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