RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 दुष्यन्त कुमार

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 दुष्यन्त कुमार

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘साये में धूप’ नामक गजल संग्रह का प्रकाशन वर्ष है
(क) सन् 1960
(ख) सन् 1957
(ग) सन् 1984
(घ) सन् 1975
उत्तर:
(घ) सन् 1975

प्रश्न 2.
‘आदमी की पीर’ गजल संकेत करती है
(क) व्यक्ति की पीड़ा की ओर
(ख) व्यक्ति की हताशा की ओर
(ग) सामाजिक कुण्ठा की ओर
(घ) देश की संभावनाओं की ओर।
उत्तर:
(घ) देश की संभावनाओं की ओर।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पीर का पर्वत के समान होने से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
इसका तात्पर्य है-दर्द की सघनता और व्यापकता। कवि ने गहरी वेदना. और उसके व्यापक प्रसार-प्रभाव के लिए ‘पीर पर्वत-सी’ शब्दों का प्रयोग किया है। समस्याएँ अब विकराल रूप में फैल गई हैं।

प्रश्न 2.
‘यह बुनियाद हिलनी चाहिए।’ यहाँ ‘बुनियाद’ का क्या अर्थ है?
उत्तर:
‘बुनियाद’ से कवि का आशय समाज की आन्तरिक दशा से है। देश की अनेक समस्याओं का मूल कारण बुनियाद रूपी आन्तरिक बुरी दशा है, इसमें आकांक्षाओं के अनुसार बदलाव लाना जरूरी है।

प्रश्न 3.
‘नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।’ यहाँ कवि जर्जर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद जनता की आकांक्षाओं की पूर्ति हो तो रही है, परन्तु उसकी गति धीमी एवं अव्यवस्थित है। कवि ने ‘जर्जर’ के माध्यम से यही कहा है।

प्रश्न 4.
‘यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।’ कवि ने अंधेरे की सड़क किसे कहा है?
उत्तर:
देश में निराशा एवं अव्यवस्था के बाद भी जो आशी एवं सामाजिक परिवर्तन की गति दिखाई दे रही है, कवि ने उसे अंधेरे की सड़क कहा है, जो कि प्रकाश की ओर जाती है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि ने इस पंक्ति से यह संकेत किया है कि लाश अर्थात् निर्जीव सामाजिक व्यवस्था तथा अनेक समस्याएँ इतनी प्रबल हो गई हैं कि उनका समाधान अत्यन्त कठिन लग रहा है। फिर भी हाथ लहराते हुए सामाजिक बदलाव का प्रयास होना चाहिए। ऐसा परिवर्तन सामाजिक चेतना तथा सामूहिकता से ही हो सकता है। समाज तथा देश में व्याप्त शोषण, अव्यवस्था आदि समस्याओं एवं बुराइयों का निवारण एक व्यक्ति नहीं कर सकता, इसलिए सभी को एकजुट होना चाहिए। ऐसा होने पर ही अव्यवस्थाओं और बुराइयों की लाश दफन हो सकती है।

प्रश्न 2.
‘आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।’ इन काव्य-पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि का कथन है कि वर्तमान काल में हमारे देश में सामाजिक जीवन में अनेक तरह का भेदभाव प्रचलित है, लोगों के बीच कई तरह की दीवारें खड़ी हैं और कई ऐसी समस्याएँ हैं जिनसे सामाजिकता का विघटन हो रहा है। इस कारण सामाजिक एकता की दीवारें भले ही परदों की तरह हिलने लग गई हैं, परन्तु जरूरत इस बात की है कि विभेद एवं अव्यवस्था के मूल कारण रूपी इन जर्जर दीवारों की जड़े हिलनी चाहिए। अतः बुरी दशा रूपी बुनियाद को हिलाकर ढहा देना चाहिए, ताकि समाज का नये ढंग से निर्माण हो सके तथा सही ढंग से बदलाव आ सके।

प्रश्न 3.
“एक खण्डहर के हृदय-सी एक जंगली फूल-सी।” इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार प्रयुक्त हुआ है? परिभाषा भी दीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में वेदना – व्यथा से पीड़ित हृदय के लिए खण्डहर और प्रखर अभिव्यक्ति के लिए जंगली फूल का उपमान-उपमेय रूप में प्रयोग किया गया है। इस कारण इसमें उपमा अलंकार है। उपमा में उपमेय और उपमान की सादृश्य स्थिति रहती है, गुण-धर्म की समानता रहती है। इसमें ‘सी’ उपमावाचक शब्द है। इसमें धर्म का प्रयोग व्यंजना के द्वारा दिखाया गया है।

प्रश्न 4.
अगर हंगामा खड़ा करना कवि का मकसद नहीं है तो उसका मकसद क्या है? और वह क्या करना चाहता है?
उत्तर:
स्वतन्त्रता – प्राप्ति के बाद देश में उभरने वाली समस्याओं तथा सामाजिक अव्यवस्थाओं को लेकर कवि सभी का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना चाहता है। उसका मकसद कोरा हंगामा खड़ा करना नहीं हैं, अपितु वह यही बताना चाहता है या उसकी यही कोशिश है कि इन समस्याओं एवं अव्यवस्थाओं का समाधान हो, समाज व देश की सूरत बदली जावे तथा कुछ ऐसा बदलाव आये कि बुरी स्थितियों का नामोनिशान मिट जावे। इस तरह कवि का मकसद यही है कि हमारे देश व समाज में नये परिवर्तन का दौर चले, देश की सूरत बदले तथा आमूलचूल बदलाव आवे।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आग जलनी चाहिए’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘आग जलनी चाहिए’ शीर्षक के अन्तर्गत पाँच गजलें रखी गई हैं। इनका सार इस प्रकार है

  1. हमारे समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेकारी, अव्यवस्था तथा विविध : सामाजिक समस्याएँ रूपी पीड़ा पर्वत की तरह विशाल हो गई हैं। अब यह पीड़ा पिघलकर समाप्त होनी चाहिए और कोई ऐसा चमत्कार होना चाहिए कि सभी बुराइयों का अन्त हो जावे।
  2. वर्तमान में हमारे देश में अनेक प्रकार का भेदभाव प्रचलित है। यह भेदभाव पूरी तरह समाप्त होना चाहिए तथा सामाजिक समन्वय स्थापित होना चाहिए।
  3. कवि चाहता है कि प्रत्येक सड़क, प्रत्येक नगर और गाँव से होकर अव्यवस्थाओं तथा बुराइयों की लाश जानी चाहिए, परन्तु इसके लिए सामूहिक प्रयास होना चाहिए।
  4. कवि कहता है कि केवल नारा देना या सामाजिक परिवर्तन की बात पर कोरी हलचल मचाना मेरा उद्देश्य नहीं है। मेरा तो यही प्रयास है कि समाज की दशा अवश्य बदलनी चाहिए, सभी बातों में जड़ से परिवर्तन होना चाहिए।
  5. कवि कहता है कि देश की युवा पीढ़ी के सीने में ऐसा जोश और साहस । होना चाहिए कि वह वर्तमान अव्यवस्थाओं एवं समस्याओं का समाधान कर सके। सामाजिक चेतना एवं क्रान्ति की दृढ़ता भावना से ही उचित परिवर्तन हो सकता है।

प्रश्न 2.
‘आदमी की पीर’ गजल का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आदमी की पीर’ गजल में कवि दुष्यन्त कुमार ने समाज में परिवर्तन हो सकने की आशा व्यक्त की है। इस गजल का काव्य-सौन्दर्य इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है – भावगत सौन्दर्य-कवि सामाजिक परिवेश की दशा-कुदशी को लेकर कहता है कि इस नदी की धार से ठण्डी हवा तो आती है और जर्जर नाव नदी की लहरों से टकराकर भी पार चली जाती है। दीये में तेल भी है और बत्ती भी है, केवल एक चिनगारी की जरूरत है जो उसे प्रज्वलित कर दे। गूंगा आदमी भी प्रयास करने पर अपनी व्यथा प्रकट कर देता है, रात के अंधेरे के बाद सुबह का प्रकाश फैलता है तथा नदी की लहरें भी पत्थरों से टकराकर अपना मार्ग प्रशस्त करती हैं।

इसलिए कवि कहता है कि अनेक बाधाओं का सामना करने से, आगे बढ़ते रहने का साहस करने और आशावादी होने से बुरी दशाओं में अवश्य परिवर्तन हो सकता है। आदमी की पीड़ा धैर्य से सहन करने से कुछ हल्की हो जाती है। इस प्रकार प्रस्तुत गजल में जनचेतना को लेकर प्रेरणादायी भावों की व्यंजना हुई है। कलागत सौन्दर्य प्रस्तुत गजल में शब्दावली सरल एवं भावानुकूल है। नदी, नाव, दीपक, बत्ती आदि का प्रतीकात्मक प्रयोग हुआ है। साथ ही उपमा अलंकार को प्रयोग भाव-सौन्दर्य को बढ़ा रहा है। शब्द तत्सम, तद्भव एवं उर्दू मिश्रित हैं। गजल की गेयता एवं तुकान्तता प्रशस्य है।

प्रश्न 3.
पठित गजलों के आधार पर दुष्यन्त कुमार के काव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कवि दुष्यन्त कुमार की गजलों में जीवन के विविध स्तरों को लेकर आशावादी स्वर एवं संघर्ष की भावना व्यक्त हुई है। इनकी गजलों में भावपक्ष एवं कलापक्ष सन्तुलित है। इन्होंने जहाँ प्रेम-भावना का स्वर व्यक्त किया है, वहीं सामाजिक दशा को लेकर असन्तोष एवं आक्रोश भी व्यक्त किया है। इन्होंने अपनी गजलों में सरल एवं सामान्य रूप से प्रचलित हिन्दी-उर्दू के शब्द ही अपनाये हैं, परन्तु भावों को व्यक्त करने का उनका अपना विशेष तरीका है, जिससे सामान्य शब्दों से विशिष्ट प्रकार के अर्थ की अभिव्यक्ति हुई है। इस विशेषता के कारण इनका काव्य विशिष्ट भाव-भूमि से सम्पन्न है।

इनकी गजलों के सम्बन्ध में एक प्रखर समीक्षक का कथन है कि उनकी मंझी हुई जुबान, कसे हुए छन्द, बंकिम भंगिमा, नया तेवर और कसी हुई अभिव्यक्ति यह सब तो था ही, पर सबसे बड़ी बात यह थी कि ये गजलें एक ऐसे आदमी की प्रामाणिक पीड़ा भरी आवाज है, जो अपने इस मुल्क को, अपनी इस जमीन को बेहद प्यार करता रहा है, जो इसके बेहतर सपनों और उजले भविष्य के प्रति अखण्ड आस्थावान् रहा है, भविष्य के सपनों को जी-जान से जिया है।” इस कथन से स्पष्ट हो जाता है कि कवि दुष्यन्त कुमार की गजलें अथवा उनको काव्य भले ही सरल शब्दावली में गुम्फित है, सरल भावों पर आधारित है, फिर भी उसमें कुछ विशिष्टता है, जिससे उनकी गजलें-उनका काव्यु अत्यन्त प्रभावशाली बन गया है। उनकी यह विशेषता सामाजिक हितेच्छा तथा देश-प्रेम की प्रबल भावना है, जिसमें केवल आशावादी स्वर न होकर प्रखर संकल्पनिष्ठा का भाव समाहित है।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. हर सड़क पर ………… आग जलनी चाहिए।
2. एक खण्डहर के ………….. बतियाती तो है।
उत्तर:
व्याख्या के लिए सप्रसंग व्याख्याएँ देखिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।’ इस पंक्ति में ‘हिमालय’
से कवि का तात्पर्य है
(क) हिमालय पर्वत।
(ख) कोई महापुरुष
(ग) आदमी की सांघातिक पीड़ा
(घ) उच्च आदर्श
उत्तर:
(ग) आदमी की सांघातिक पीड़ा

प्रश्न 2.
‘शर्त लेकिन थी कि ये’ – कवि के अनुसार सामाजिक परिवर्तन के साथ क्या शर्त थी?
(क) स्थायी परिवर्तन की
(ख) बुनियादी परिवर्तन की
(ग) बाहरी परिवर्तन की
(घ) चारित्रिक परिवर्तन की
उत्तर:
(ख) बुनियादी परिवर्तन की

प्रश्न 3.
“आज यह दीवार परदों की तरह हिलने लगी।” इसमें ‘दीवार’ से कवि का क्या आशय है?
(क) प्रशासन
(ख) अव्यवस्थाएँ
(ग) सामाजिक परिवेश
(घ) सामाजिक समस्याएँ
उत्तर:
(ग) सामाजिक परिवेश

प्रश्न 4.
‘मेरी कोशिश है कि ये कवि की कोशिश क्या है?
(क) देश का शासन बदले
(ख) लोगों के विचार बदलें
(ग) आर्थिक परिवर्तन हो
(घ) सामाजिक परिवर्तन हो
उत्तर:
(घ) सामाजिक परिवर्तन हो

प्रश्न 5.
‘आदमी की पीर’ कविता में किस ओर संकेत है?
(क) व्यक्तिगत पीड़ा की ओर
(ख) सामाजिक दशा की ओर
(ग) देश की दुर्दशा की ओर
(घ) राष्ट्र-निर्माण की ओर।
उत्तर:
(ग) देश की दुर्दशा की ओर

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए’–कवि दुष्यन्त कुमार की इस पंक्ति का आशय बताइए।
उत्तर:
इस पंक्ति का आशय है कि हमारे देश में सामान्य आदमी की व्यथा एवं दुर्दशा अत्यधिक बढ़ गई है, अब उसमें बदलाव आना चाहिए, अर्थात् दुर्दशा को समाधान होना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।’ इसमें ‘आग’ का प्रतीकार्थ क्या है?
उत्तर:
इस पंक्ति में ‘आग’ का प्रतीकार्थ समाज में परिवर्तन के लिए अपेक्षित उत्तेजना या उत्साह है, क्योंकि उत्तेजना या उत्साह से ही परिवर्तन सम्भव है।

प्रश्न 3.
”एक चादर साँझ ने सारे नगर परे डाल दी। इस पंक्ति में चादर का आशय क्या है?
उत्तर:
इस पंक्ति में चादर का आशय निराशा एवं जागृति का अभाव है। लोगों में अपने देश की दुर्दशा को दूर करने की जागृति नहीं है, वे निराशा से ग्रस्त हो गये हैं।

प्रश्न 4.
‘आदमी की पीर’ गजल में ‘एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तो में किस चिनगारी की ओर संकेत किया गया है?
उत्तर:
इसमें कवि ने आन्तरिक जागृति एवं जोश रूपी चिनगारी की ओर संकेत किया है, आन्तरिक शक्ति एवं जोश से ही व्यापक परिवर्तन सम्भव है।

प्रश्न 5.
सूरत बदलनी चाहिए’ – कथन से कवि ने क्या आह्वान किया है?
उत्तर:
इससे कवि ने सामाजिक-राष्ट्रीय परिवेश में व्याप्त अव्यवस्थाओं एवं समस्याओं का समाधान करने हेतु आमूलचूल परिवर्तन लाने का आह्वान किया है।

प्रश्न 6.
‘आग जलनी चाहिए’ गजल दुष्यन्त कुमार के किस काव्य-संग्रह से ली गई है?
उत्तर:
‘आग जलनी चाहिए’ गजल कवि दुष्यन्त कुमार के साये में धूप’ गजल-संग्रह से ली गई है।

प्रश्न 7.
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।” इसमें ‘जर्जर नाव किसकी प्रतीक है?
उत्तर:
इसमें जर्जर नाव सामाजिक दुर्दशाओं एवं गलित व्यवस्थाओं की प्रतीक है।

प्रश्न 8.
‘निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी’ – इसमें ‘निर्वचन नदी’ का आशय क्या है?
उत्तर:
निर्वचन नदी का आशय मौन व शान्त भाव से चल रहा सामाजिक परिवेश तथा सकारात्मक चेतना है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आग जलनी चाहिए’ और ‘आदमी की पीर’ गजलों की भावभूमि में क्या अन्तर है?
उत्तर:
कवि दुष्यन्त कुमार की ‘आग जलनी चाहिए’ शीर्षक गंजल में प्रतीकों के द्वारा देश की दुर्व्यवस्था की ओर संकेत किया गया है और उसमें परिवर्तन लाने का आह्वान व्यक्त हुआ है। ‘आदमी की पीर’ गजल में देश में विद्यमान उन सम्भावनाओं की ओर संकेत किया गया है, जो अपेक्षित परिवर्तन ला सकती हैं। ‘आग जलनी चाहिए’ में ‘आग’ सामाजिक जोश, उत्तेजना और उत्साह की प्रतीक है।,कवि का अभिमत है कि जोश, उत्साह एवं अपेक्षित गतिशीलता रखने से ही समाज और देश में परिवर्तन लाया जा सकता है।’आदमी की पीर’ में पीर निराशावेदना की प्रतीक है। इस निराशा का अन्त सम्भव है, अतः इसके लिए सभी को आशावादी होना चाहिए और यथाशक्ति प्रयास भी करना चाहिए।

प्रश्न 2.
‘आग जलनी चाहिए’ पंक्ति के द्वारा कवि क्या समझाना चाहता
उत्तर:
इस पंक्ति से कवि यह समझाना चाहता है कि ‘आग’ अर्थात् जोश, उत्साह एवं क्रान्ति का भाव तभी सार्थक रहेगा, जब देश के सामाजिक एवं प्रशासनिक परिवेश में उत्तेजना एवं क्रान्ति नहीं आयेगी, परिवर्तन का जोश और उत्साह नहीं रहेगा। तब तक हमारे देश में व्याप्त समस्याओं तथा अव्यवस्थाओं का अन्त भी नहीं हो सकेगा। कवि कहना चाहता है कि देशवासियों में बदलाव लाने का दृढ़-संकल्प होना चाहिए, उसमें सकारात्मक चेतना और कर्मठता होनी चाहिए, तभी हमें वर्तमानकालीन बुरी अवस्था से छुटकारा मिल सकता है। आग जलने पर ही समस्याएं भस्म हो सकती हैं।

प्रश्न 3.
”मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।” इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति से कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि सभी को मिलजुलकर देश की सभी समस्याओं का समाधान करना चाहिए। स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व हमने जो आशाएँ-अपेक्षाएँ की थीं, उनके अनुसार देश का निर्माण होना चाहिए। लेकिन यह तभी सम्भव है, जब वर्तमान बुरी दशा से मुक्ति मिले। इसके लिए कोरा आशावादी होना तथा दिखावे का क्रान्तिकारी बनना कवि का उद्देश्य नहीं है। वह शब्दाडम्बर वाली नकली क्रान्ति का पक्षधर नहीं है। वह तो सच्चे मन से, देश-प्रेम की पवित्र भावना से ऐसी कोशिश करना चाहता है कि जिससे देश में तथा सामाजिक-प्रशासनिक स्तर पर बदलाव आ सके।

प्रश्न 4.
“शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।” यह शर्त किसकी थी? इससे कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
यह शर्त देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले लोगों तथा उन देशभक्तों की थी, जो देश की समस्याओं से पूर्ण परिचित थे। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय उन्होंने बुनियादी परिवर्तन की आवश्यकता बतलायी थी और इस निमित्त अनेक योजनाएँ भी प्रारम्भ की गई थीं, परन्तु बाद में उन पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया। फलस्वरूप अनेक समस्याएँ विकराल रूप में उभरने लगीं। प्रशासन-तन्त्र में कुछ ढीलापन रहा, जनता भी कोरी आशावादी बनी रही। अतः कवि का आशय है कि उन समस्त समस्याओं तथा अव्यवस्थाओं का समाधान करने के लिए आमूलचूल परिवर्तन की जरूरत है और यह कार्य प्रखरे जोश एवं उत्साह से ही सम्भव है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘आग जलनी चाहिए’ कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘आग जलनी चाहिए’ शीर्षक गजल में प्रतीकों का सहारा लेकर कवि दुष्यन्त कुमार ने देश की वर्तमान बुरी स्थिति का यथार्थ चित्रण किया है। कवि ने यह बतलाने की कोशिश की है कि जब दर्द अधिक बढ़ जाये तो उसका पिघलना आवश्यक होता है, वह पिघलकर किसी नयी चेतना को जन्म दे सकता है। आज समाज व देश में भेदभाव की अनेक दीवारें हिल रही। हैं और उन्हें लेकर खूब हो-हल्ला हो रहा है, परन्तु उन दीवारों की नींव नहीं हिल रही है। इसलिए दीवारों को ध्वस्त करने के लिए बुनियाद को भी हिलना चाहिए, तभी पूरी तरह परिवर्तन हो सकता है।

कवि कहता है कि प्रत्येक काम तभी सफलता से हो पाता है, जब उसके लिए अपेक्षित क्रियाशीलता और कर्मठता का संचार हो। हमारे देश में परिवर्तन के लिए ऐसी कर्मठता एवं जोश अपेक्षित है। जब तक देश के नागरिक अपने सीने में आग अर्थात् जोश नहीं रखेंगे और कोरा हंगामा करने में ही लगे रहेंगे, तब तक समाज में परिवर्तनकारी जीवनी शक्ति का संचार नहीं होगा तथा संघर्ष की चेतना भी उद्वेलित नहीं होगी। अतएव तमाम समस्याओं के अन्त के लिए, उन्हें भस्म करने के लिए आग जलनी चाहिए।

प्रश्न 2.
दुष्यन्त कुमार की संकलित गजलों में निहित संवेदनाओं तथा भाषासौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
पाठ्य-पुस्तक में दुष्यन्त कुमार की जो गजलें संकलित हैं, उनके आधार पर उनकी संवेदना एवं भाषा-सौष्ठव पर इस प्रकार प्रकाश डाला जा सकता है – संवेदना-संकलित गजलों में जो संवेदना व्यक्त हुई है, वह सामाजिक परिवर्तन से जुड़ी हुई हैं। कवि पहले तो देश व समाज की दुर्व्यवस्था का चित्र प्रस्तुत किया है, फिर उसमें परिवर्तन लाने और समस्याओं का समाधान करने के लिए संकल्प व्यक्त किया है। इतना ही नहीं, कवि उस संवेदना के वृत्त में यह प्रखर भाव भी व्यक्त किया है कि परिवर्तन किस प्रकार लाया जा सकता है। कवि ने उन सम्भावनाओं को। भी अभिव्यक्ति दी है, जो सामाजिक परिवर्तन में सहायक हो सकती हैं। इस प्रकार संवेदना की दृष्टि से संकलित गजलें प्रखर सामाजिक चेतना से संवलित हैं।

भाषा-सौष्ठव – दुष्यन्त कुमार की संकलित गजलों की भाषा आम आदमी की भाषा है। इसमें पीर, पिघलना, बुनियाद, दीवार, परदा, लाश, सड़क, सूरत, हंगामा, चादर, भीगी हुई बाती, नदी की धार और ठण्डी हवा आदि शब्द आम बोलचाल की भाषा के हैं। ये हिन्दी खड़ी बोली और उर्दू में समान रूप से प्रचलित एवं समान भाव-व्यंजक हैं। इन शब्दों की व्यंजना-शक्ति को दुष्यन्त कुमार ने अच्छी तरह पहचाना है और इनका उचित प्रयोग भी किया है। गजलों में प्रयुक्त भाषा: लाक्षणिकता, व्यंजकता, चित्रात्मकता और प्रतीकात्मकता गुण से परिपूर्ण है। ओज इन गजलों में प्रमुख रूप से देखा जा सकता है। इस प्रकार भाषा-शिल्प की दृष्टि से ये गजलें अतीव प्रभावशाली हैं।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
दुष्यन्त कुमार के साहित्यकार रूप का परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
कवि दुष्यन्त कुमार जन्मजात प्रतिभाशाली थे। इन्होंने अपने अल्प जीवन-काल में कविता, काव्य-नाटक, उपन्यास, गद्य आदि प्रमुख विधाओं का सृजन किया तथा नव-लेखन को गति दी। बचपन से ही इनकी कविता-लेखन में रुचि थी। नहटौर (मुरादाबाद) में हाई स्कूल में पढ़ते समय विधिवत् कविता-लेखन किया। फिर कुछ दिनों के बाद कहानी-लेखन भी किया। इलाहाबाद में अध्ययन करते समय ‘परिमल’ से जुड़े और एक मासिक पत्र ‘विहान’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया, परन्तु अर्थाभाव से वह नहीं चल सका। उसी अवधि में कवि-सम्मेलनों के मंचों से गीतों एवं गजलों का पाठ करने में सहभागी बने। उच्च शिक्षा प्राप्ति के समय इन्होंने ‘नयी कहानी : परम्परा और प्रयोग’ शीर्षक से ऐतिहासिक आलोचना का प्रकाशन कराया। इन्होंने सर्वप्रथम शिक्षक रूप में नौकरी की, फिर आकाशवाणी में नियुक्ति मिली और दिल्ली से भोपाल तबादला हुआ। वहाँ पर आकाशवाणी की नौकरी छोड़कर मध्य प्रदेश के भाषा-विभाग में सहायक निदेशक नियुक्त हुए। वहीं पर कार्य करते हुए इनको अल्पायु में ही निधन हो गया।

रचनाएँ – अनेक पत्र-पत्रिकाओं – प्रतीक, निकष, संकेत, नयी कविता आदि में कविताओं का प्रकाशन; सूर्य का स्वागत’, ‘आवाजों के घेरे’ कविता-संग्रह; ‘एक कण्ठ विषपायी’ काव्य-नाटक; ‘छोटे से सवाल’, आँगन में एक वृक्ष’ उपन्यास; ‘जलते हुए वन का वसन्त’ कविता-संग्रह तथा अन्त में ‘साये में धूप’ शीर्षक गजलों का संग्रह के प्रकाशन से इनके कृतित्व को उल्लेख किया जा सकता है।

दुष्यन्त कुमार कवि-परिचय-

हिन्दी में नव-लेखन के अग्रणी कवि दुष्यन्त कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश के बिजनौर जिले के राजपुर नवादा गाँव में सन् 1933 ई. में हुआ था। इनका पूरा नाम दुष्यन्त कुमार त्यागी, था। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा मुजफ्फरनगर एवं मुरादाबाद में हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी विषय में स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। वहीं पर साहित्यिक संस्था ‘परिमल’ से जुड़कर अपना साहित्यिक जीवन प्रारम्भ किया। सन् 1958 में आकाशवाणी में काम करने लगे, फिर सन् 1961 में मध्य प्रदेश के भाषा विभाग में सहायक निदेशक नियुक्त हुए। वहीं पर सन् 1975 में इनका स्वर्गवास हुआ। इनके द्वारा रचित उपन्यास, नाटक, गजल-संग्रह एवं काव्य-नाटक आदि रचनाएँ प्रकाशित हैं, जिनमें इनकी मौलिक प्रतिभा का परिचय मिलता है।

पाठ-परिचय-

पाठ में दुष्यन्त कुमार के गजल-संग्रह ‘साये में धूप’ से दो गजलें संकलित हैं। इनमें प्रतीकों के माध्यम से देश की बुरी दशा का चित्रण किया गया है। आजादी मिलने पर भी प्रशासन-व्यवस्था का ढंग नहीं बदला और युवा पीढ़ी की समस्याओं का उचित समाधान नहीं हुआ। इन गजलों में कवि ने प्रचलित दुर्व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने का स्वर व्यक्त किया है तथा प्रतीकों के माध्यम से शिष्ट क्रान्ति लाने की प्रेरणा दी है।

सप्रसंग व्याख्याएँ आग जलनी चाहिए।

(1) हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
इसे हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी.
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

कंठिन शब्दार्थ-पीर = पीड़ा। दीवार = भेदभाव या बाधक स्थिति। बुनियाद = नींव, आधार।

प्रसंग-यह अवतरण दुष्यन्त कुमार द्वारा रचित ‘आग जलनी चाहिए’ शीर्षक गजल से लिया गया है। इसमें कवि ने देश की वर्तमान बुरी दशा को लक्ष्य कर सामाजिक परिवर्तन लाने का स्वर व्यक्त किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि हमारे समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, बेकारी, महँगाई एवं प्रशासनिक अव्यवस्था रूपी पीड़ा पर्वत की तरह विशाल हो गई है। अब यह पीड़ा पिघलकर समाप्त होनी चाहिए। ऐसे सामाजिक परिवेश रूपी हिमालय से पिघलकर कोई गंगा निकलनी चाहिए। अर्थात् गंगा-प्रवाह की तरह कोई चमत्कार हो, जिससे समाज एवं देश में व्याप्त बुराइयाँ दूर हो जायें। अब अव्यवस्थाओं को समाप्त कर नये परिवर्तन की गंगा बहनी चाहिए।

कवि कहता है कि वर्तमान काल में हमारे देश के सामाजिक जीवन में कई तरह के भेदभाव प्रचलित हैं, लोगों के बीच में कई तरह की दीवारें खड़ी हैं। भले ही ये दीवारें अब परदों की तरह हिलने लगी हैं, सामाजिक भेदभाव एवं अव्यवस्थाओं में कुछ सुधार होने लगा है, परन्तु जरूरत इस बात की है कि इन दीवारों की जड़े हिलें, ताकि ये दीवारें एकदम गिर जावें। अर्थात् देश में बदलाव लाकर बुरी दशा रूपी बुनियाद को हिलाकरे ढहा देना चाहिए।

विशेष-
(1) कवि ने देश में प्रचलित अनेक बुराइयों और अव्यवस्थाओं को लक्ष्य कर सामाजिक परिवर्तन का सन्देश दिया है।
(2) हिमालय से गंगा निकली, तो सगर के पुत्रों का उद्धार हुआ, इसी प्रकार सामाजिक परिवर्तन की क्रान्ति से देश का उद्धार होना चाहिए, यही कवि का मुख्य स्वर व्यक्त हुआ है।
(3) शब्दावली प्रतीकात्मक, लाक्षणिक एवं भाव-गांभीर्य से युक्त है। उपमा अलंकार का प्रयोग द्रष्टव्य है।

(2)
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर,
हर गाँव में हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे, सीने में सही
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

कठिन शब्दार्थ- हंगामा = निरर्थक हो-हल्ला, उत्पात। मकसद = उद्देश्य। सूरत। = आकार, समाज के हालात, शक्ल।

प्रसंग-यह अवतरण दुष्यन्त कुमार द्वारा रचित ‘आग जलनी चाहिए’ शीर्षक गजल से लिया गया है। इसमें कवि ने देश में व्याप्त बुराइयों को तथा समाज की बुरी हालत को बदलने या समाप्त करने का स्वर व्यक्त किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि प्रत्येक सड़क, प्रत्येक गली, प्रत्येक नगर और गाँव में होकर अव्यवस्थाओं और बुराइयों की लाश जानी चाहिए। आशय यह है। कि सारे देश में सामाजिक बदलाव का पूरा प्रयास होना चाहिए और इसके लिए सभी को सामूहिक रूप से प्रयास करना चाहिए। कवि कहता है कि केवल परिवर्तन का नारा देकर हलचल मचाना, शोर-शराबा खड़ा करना मेरा उद्देश्य नहीं है। कोरा विरोध करना भी मेरा लक्ष्य नहीं है। मेरा तो यह प्रयास है कि समाज की हालत बदलनी चाहिए और सभी बातों में आमूलचूले परिवर्तन होना चाहिए। ठोस प्रयास करने से ही समाज को बुराइयों एवं अव्यवस्थाओं से मुक्ति मिल सकती है। कवि देश की युवा पीढ़ी को लक्ष्य कर कहता है कि मेरे सीने में नहीं, तो तुम्हारे सीने में ऐसा जोश और साहस होना चाहिए, ताकि इस अव्यवस्था को बदला जा सके। सामाजिक परिवर्तन एवं क्रान्ति की आग चाहे कहीं भी हो, परन्तु वह सदा जलनी चाहिए। कवि का आशय है कि देश की युवा पीढ़ी में वर्तमान अव्यवस्था को बदलने का जोश अवश्य होना चाहिए, तभी यह संकल्प पूरा हो सकता है।

विशेष-
(1) युवा पीढ़ी को सामाजिक चेतना एवं क्रान्ति के लिए आगे आने का सन्देश दिया गया है।
(2) अनुप्रास एवं यमक अलंकार का प्रयोग द्रष्टव्य है। प्रतीकात्मक शैली में कथ्य को व्यक्त करने का प्रयास किया गया है।

आदमी की पीर।

(3)
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिये में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

कठिन शब्दार्थ-जर्जर = पुरानी, कमजोर।

प्रसंग-यह अवतरण दुष्यन्त कुमार द्वारा रचित ‘आदमी की पीर’ शीर्षक गजल से उद्धृत है। इसमें कवि ने प्रतीक रूप में युवा पीढ़ी में विद्यमान जोश एवं सकारात्मक सोच को निरूपण किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि सामाजिक चेतना को लेकर जो धारा बह रही है, वह अधिक तेज नहीं है, फिर भी लगातार बह रही है। नाव यद्यपि कुछ पुरानी और कमजोर है, फिर भी वह लहरों से टकराती हुई आगे बढ़ती जा रही है। इसी प्रकार युवा पीढ़ी के सामने कमजोर नकारात्मक परिस्थितियाँ हैं, परन्तु सामाजिक परिवर्तन का जोश कम नहीं हुआ है, वह समय के साथ चल रहा है। कवि कहता है कि हे साथियो! कहीं से आग की एक चिनगारी हूँढ़ कर ले आओ, शिष्ट क्रान्ति का एक स्वर ले आओ, ताकि दीपक में तेल से भीगी हुई बत्ती को रोशन किया जा सके, समाज में सकारात्मक चेतना को जागृत किया जा सके।

विशेष-
(1) समाज में मन्द पड़ी हुई सकारात्मक चेतना के प्रति कवि ने आशावादी स्वर व्यक्त किया है।
(2) नाव जर्जर हो, परन्तु लहरों से टकराने में सक्षम हो और दीपक में तेलबत्ती दोनों हों, उसके जलाने के लिए एक चिनगारी की जरूरत हो- इत्यादि कथन से हमारे समाज की समकालीन स्थिति की व्यंजना की गई है।
(3) अप्रस्तुत विधान एवं प्रतीकात्मक शैली प्रशस्य है।

(4)
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी
आदमी की पीर गैंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी
यह अँधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।

कठिन शब्दार्थ-पीर = पीड़ा, वेदना। भोर = सुबह।

प्रसंग-यह अवतरण दुष्यन्त कुमार द्वारा रचित ‘आदमी की पीर’ शीर्षक गजल से लिया गया है। इसमें विपरीत परिस्थितियों में भी भविष्य की सुन्दर आशा का स्वर व्यक्त किया गया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि समाज के आम आदमी की पीड़ा एक खण्डहर के भीतरी भाग की तरह और एक जंगली फूल की तरह कुछ भद्दी होने पर भी वेदनामय है। भले ही आदमी की पीड़ा गूंगी होने से स्पष्ट नहीं बोल पाती है, परन्तु उसमें भविष्य में सकारात्मक परिवर्तन का स्वर तो है। अर्थात् पूरे जोश से न सही, मन्द स्वर से ही जनता में सामाजिक परिवर्तन का जो स्वर उभर रहा है, जिससे अच्छे भविष्य की आशा हो रही है।

कवि प्रतीकात्मक रूप में कहता है कि अंधेरा रूपी चादर सारे नगर को ढक लेता है, परन्तु रात के अंधेरे का अन्त भोर होते ही हो जाता है। यह आशा रहती। है कि सुबह अवश्य होगा और अंधेरा भी अवश्य मिट जायेगा। इसी प्रकार समाज की नकारात्मक एवं विपरीत परिस्थितियाँ मिट जाने से सामाजिक पीड़ा का निवारण भी अवश्य हो जायेगा। परन्तु इसके लिए निराशा त्यागकर सत्यप्रयाश करते रहना चाहिए।

विशेष-
(1) आम आदमी की पीड़ा को लेकर कवि का आशावादी स्वर व्यक्त हुआ है।
(2) युवा पीढ़ी की पीड़ा को लेकर जो प्रतीकात्मक वर्णन किया गया है, वह यथार्थ है।
(3) उपमा एवं रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।

(5)
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में, जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।

कठिन शब्दार्थ-निर्वचन = बिना बोले हुए, बिना वचन के, चुप-मौन। उपलब्धियों = जो कोशिश करने से प्राप्त हों, परिश्रम से अर्जित।

प्रसंग-यह अवतरण दुष्यन्त कुमार द्वारा रचित ‘आदमी की पीर’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसमें कवि ने युवा पीढ़ी में बढ़ रही सामाजिक एवं सकारात्मक चेतना को भविष्य के लिए शुभ बताया है। व्याख्या-कवि प्रतीकात्मक रूप में कहता है कि सामाजिक परिवेश रूपी मैदान में युवा पीढ़ी की सकारात्मक चेतना रूपी नदी यद्यपि अभी चुप लेटी हुई है, परन्तु वह बिना बोले भी धारा के पत्थरों से टकराती हुई कुछ बोलती तो है। अर्थात् सामाजिक परिवर्तन को लेकर युवा पीढ़ी में जो जोश एवं क्रान्ति का स्वर है, वह मन्द भले ही है, परन्तु वह निरन्तर आगे बढ़ रहा है।

कवि कहता है कि समाज की बुरी स्थितियों को बदलने का प्रयास करने पर भी भले ही कोई श्रेष्ठ प्रतिफल नहीं मिला हो, अभी तक कोई उपलब्धि नहीं रही हो, फिर भी आकाश की तरह चौड़ी छाती रखने वाली युवा पीढ़ी का जोश कम नहीं हुआ है। अर्थात् विपरीत स्थितियों को अनुकूल बनाने का स्वर बन्द नहीं हो गया है। सामाजिक क्रान्ति का स्वर भविष्य में अवश्य फलदायी रहेगा।

विशेष-
(1) प्रतीकात्मक शैली में देश की युवा पीढ़ी को सकारात्मक चेतना रखने की प्रेरणा दी गई है।
(2) आदमी की पीड़ा का निवारण सामाजिक क्रान्ति से ही हो सकेगा, यही आशावादी स्वर व्यक्त हुआ है।

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