RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ कवि हैं
(क) प्रगतिवादी
(ख) प्रयोगवादी
(ग) हालावादी
(घ) छायावादी
उत्तर:
(घ) छायावादी

प्रश्न 2.
‘जागो फिर एक बार!’ कविता में कौनसा भाव है?
(क) उत्साह
(ख) शोक
(ग) करुण
(घ) जुगुप्सा
उत्तर:
(क) उत्साह

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘शेर की माँद में आया है स्यार’-यहाँ स्यार शब्द किसके लिए आया है?
उत्तर:
यहाँ स्यार अर्थात् सियार शब्द सिक्ख सेना पर आक्रमण करने वाले विदेशी शत्रुओं के लिए आया है।

प्रश्न 2.
‘भिक्षुक’ कविता में कौन-सा रस है? लिखिए।
उत्तर:
‘भिक्षुक’ कविता में करुण रस है।

प्रश्न 3.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि युवा पीढ़ी को क्या सन्देश दे रहा है?
उत्तर:
‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि युवा पीढ़ी को त्याग, बलिदान, नव-जागरण और जोश रखकर आगे बढ़ने का सन्देश दे रहा है।

प्रश्न 4.
“सैन्धव-तुरंगों पर चतुरंग-चमू-संग
सवा-सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा ।”
इन काव्य-पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार को लिखिए।
उत्तर:
विविध वर्गों की आवृत्ति से अनुप्रास अलंकार है पुनरुक्तिप्रकाश एवं अतिशयोक्ति अलंकार भी हैं।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6  लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“सिंह की गोद से, छीनता रे शिशु कौन?’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि निराला कहते हैं कि जो शक्तिशाली होता है, वही इस संसार में जीवित रहता है, क्योंकि उसके प्रभाव के सामने कोई भी टिकने का साहस नहीं करता है। अपितु उसके पराक्रमी व्यक्तित्व को सभी स्वीकार करते हैं। इसी तथ्य को कवि ने उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि ऐसी शक्ति और साहस किसमें है जो सिंहनी की गोद से उसके शावक को छीन सके। अर्थात् शेरनी अपने बच्चे को किसी भी हालत में छीनने नहीं देती है, वह पूरी शक्ति से अपने शावक की रक्षा करती है। इसी प्रकार वीर पुरुष भी अपने स्वत्व की रक्षा पूरी शक्ति से करते हैं और देशभक्ति की खातिर ओज-तेज का परिचय देते हैं।

प्रश्न 2.
”तुम्हारा दुःख मैं अपने हृदय में खींच लँगा।” इसके लिए कवि के अनुसार भिक्षुक को क्या करना होगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि भिक्षुक के प्रति पूरी संवेदना रखकर कहता है कि मैं अपने हृदय का सारा अमृत निकालकर भिक्षुक के सूखे होंठों को सरस कर देंगी और उसै जीवनी शक्ति देकर उसकी भूख मिटा दूंगा तथा उसे कष्ट से मुक्त कर दूंगा, परन्तु इसके लिए भिक्षुक को अभिमन्यु बनना पड़ेगा। अर्थात् जैसे अभिमन्यु अकेले ही सभी विरोधियों का डटकर सामना करता रहा, उसी प्रकार भिक्षुक को भी सारी बाधाओं: और विपरीत सामाजिक स्थितियों का अकेले ही सामना करना पड़ेगा। भिक्षुक को इसके लिए साहस एवं दृढ़ता का परिचय देना होगा, बाधाओं को झेलने की क्षमता रखनी होगी।

प्रश्न 3.
“योग्य जन जीता है, पश्चिम की उक्ति नहीं, गीता है।” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि कहता है कि इस संसार में शक्तिशाली एवं कर्मनिरत मानव ही जीवित रह सकता है। यह उक्ति या कथने पश्चिमी देशों के विकासवादी सिद्धान्त की देन न होकर भारतीय चिन्तन एवं गीता का उपदेश है। गीता में स्पष्ट कहा गया है कि जो व्यक्ति समय का सदुपयोग कर्मनिष्ठा रखकर करता है, साहस एवं शौर्य का परिचय देता है, वह व्यक्ति संसार में जीवन का सुफल पा लेता है। कर्मयोग का उपदेश गीता का मुख्य सन्देश है, जो इस उपदेश के अनुसार आचरण करता है उसे अवश्य विजय या सफलता मिलती है।

प्रश्न 4.
‘भिक्षुक’ का शब्द-चित्र कैसा है? लिखिए।
उत्तर:
कवि निराला ने ‘भिक्षुक’ कविता में सुन्दर शब्द-चित्र उपस्थित किया है। भिक्षुक इतना दुर्बल है कि उसकी पीठ एवं पेट मिलकर एक हो गये हैं। वह लाठी टेकता हुआ मन्दगति से चलता है और हर किसी के सामने अपनी फटीपुरानी झोली फैलाता है। उसके साथ दो बच्चे भी हैं, जो बायें हाथ से अपने पेट को मलते हुए चलते हैं और दायाँ हाथ भिक्षा पाने के लिए फैलाते रहे हैं । भिक्षुक की आवाज करुणा-दीनता से भरी हुई है, उसके आँसू सूख गये हैं, होंठ भी सूखे गये हैं। वह सभी की ओर टकटकी लगाये रहता है और कुछ पाने के लिए दीनता प्रकट करता है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जागो फिर एक बार’ कविता का केन्द्रीय भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि निराला द्वारा रचित ‘जागो फिर एक बार’ कविता भारत के पराधीनता काल की रचना है। इस कविता में परतन्त्रता से निराश, भविष्य को लेकर कुछ चिन्तित एवं सुप्त भारतीय जनता को उसके गौरवमय अतीत का स्मरण दिलाते हुए जाग जाने का आह्वान किया गया है। पराधीनता काल में अनेक कारणों से भारतीयों का मानस सोया हुआ, आलस्य-प्रमाद से ग्रस्त तथा कायरता-दीनता से आक्रान्त था। उस समय वह अंपनी कमजोरियों को जानता हुआ भी उन्हें दूर करने में असमर्थ-सा था । ऐसी स्थिति का ध्यान रखकर प्रस्तुत कविता में निराला ने कायरता का विरोध एवं मानव-आत्माओं की अनुभूतिमय एकता का प्रतिपादन करते हुए ओजस्वी भाव व्यक्त किया है। यथा –

“तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्,
है नश्वर यह दीन भाव
कायरता, कामपरता/ब्रह्म हो तुम।”

प्रस्तुत कविता में देश-प्रेम का भाव व्यक्त करते हुए गुरु गोविन्दसिंह का स्मरण दिलाकर वीरता अपनाने का स्वर व्यक्त किया गया है। साथ ही योग्यजन जीता है, पश्चिम की उक्ति नहीं, गीता है, गीता है” कहकर नवजागरण एवं कर्मनिष्ठा का सन्देश दिया गया है। इस प्रकार प्रस्तुत कविता को केन्द्रीय भाव देश-प्रेम, कर्मनिष्ठा, वीरता एवं मानवतावादी चेतना की अभिव्यक्ति करना है।

प्रश्न 2.
‘भिक्षुक’ कविता में करुणा का प्रतिबिम्ब झलकता है। पठित कविता के आधार पर समझाइये।
उत्तर:
‘भिक्षुक’ कविता में कवि निराला ने भिक्षुक की विवशता-वेदना एवं करुणामय दशा का स्वाभाविक चित्रण किया है। कवि ने बतलाया है कि भूख की। वेदना से व्यथित भिक्षुक अपने करुण स्वर में लोगों से भिक्षा माँगता है। उसका करुण स्वर हृदय को विदीर्ण करने वाला-सा प्रतीत होता है, परन्तु याचना करने। पर भी जब उसे भिक्षा नहीं मिलती है, तो वह अपने जीवन पर पछताने लगता है। वह भिक्षुक, भूखा रहने से इतना कमजोर है कि उसकी पीठ और पेट आपस में मिलकर एकं हो गये हैं। वह अतीव दुर्बल होने से अपनी लाठी टेककर मार्ग पर चलता है। वह मुट्ठीभर अनाज या थोड़ा-सा भोजन पाने के लिए सभी के सामने कातर दृष्टि से अपनी फटी-पुरानी झोली फैलाता है। परन्तु उसकी याचना। अधूरी रह जाती है, उसकी भूख पर लोग करुणा नहीं रखते हैं।

मानवीय संवेदना एवं करुणा भी उसका साथ नहीं देती है। उसके साथ दो बच्चे भी रहते हैं, जो सबके सामने अपने हाथ फैलाते हैं। भूख से उनके होंठ सूखे हुए हैं और वे आँसुओं के पूंट पीकर भूख की वेदना को सहते रहते हैं। वे जब अपनी भूख शान्त करने। में असफल रहते हैं, तो तब सड़क के किनारे पड़ी जूठी पत्तलों को चाटने को मजबूर हो जाते हैं। इस प्रकार भिक्षुक का जीवन एकदम गर्हित, वेदना एवं करुणामय दिखाई देता है। कवि ने ऐसा स्वाभाविक चित्रण कर भिक्षुक के प्रति करुणा तथा संवेदना की अभिव्यक्ति की है।

प्रश्नं 3.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में ओज तथा दार्शनिकता का समन्वय है।” इस कथन की समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
‘जागो फिर एक बार’ कविता में निराला ने भारत के अतीत का स्मरण कर और गुरु गोविन्दसिंह की वीर-घोषणा का उल्लेख कर ओजस्वी भावों की अभिव्यक्ति की है। कवि याद दिलाता है कि “सवा-सवा लाख पर एक को चढ़ाऊँगा, गोविन्दसिंह निज नाम जब कहाऊँगा।”-ऐसी वीर घोषणा करने वाले गोविन्दसिंह आज भले ही हमारे सामने नहीं हैं, परन्तु देश-प्रेम की खातिर त्यागबलिदान भावना का उनका सन्देश अब भी सुनाई देता है। हमारे देश का इतिहास शौर्य-पराक्रम से भरा रहा, परन्तु हम उस शौर्य को भूलकर पराधीन बने हुए हैं। इस तरह निराला ने इस कविता में भारतवासियों में ओज, शौर्य एवं संघर्षशीलता रखने का स्वर व्यक्त किया है।

प्रस्तुत कविता में निराला ने भारतवासियों की इस प्रवृत्ति पर आक्षेप किया है। कि हम आध्यात्मिक क्षेत्र में प्राचीनकाल से ही अग्रणी बने रहे और आत्मा की अमरता एवं जीवन की नश्वरता स्वीकारते रहे, फिर भी दीन-भाव से किस कारण ग्रस्त रहे? इसलिए कवि कहता है कि “तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्, है नश्वर यह दीन भाव ……… ब्रह्म हो तुम !” इसी क्रम में कवि ने गीता को कर्मयोग का सन्देश दिया है और ‘मृत्युंजय व्योमकेश के समान अमृत-सन्तान’ बताकर ‘माया से मुक्त सच्चिदानन्द रूप’ घोषित करते हुए कवि ने भारतीय दार्शनिक चिन्तन का समावेश किया है। इस तरह प्रस्तुत कविता में ओज तथा दार्शनिकता का सुन्दर * समन्वय हुआ है।

प्रश्न 4.
पठित पाठ के आधार पर निराला के काव्य की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कवि निराला की संकलित कविताएँ उनके ओजस्वी चिन्तन एवं प्रगतिवादी चेतना की परिचायक हैं। इन पठित कविताओं के आधार पर निराला की काव्यगत विशेषताओं का उल्लेख इस प्रकार है –
भावे पक्ष – निराला की प्रारम्भिक कविताओं में छायावादी चेतना के कारण प्रकृति-सौन्दर्य, प्रेम और श्रृंगार-विलास का चित्रण हुआ है, परन्तु बाद की कविताओं में निराला की उर्वरा कल्पना-शक्ति के साथ प्रगतिवादी व मानवतावादी चिन्तन दिखाई देता है। विधवा’, ‘भिक्षुक’, ‘तोड़ती पत्थर’ आदि कविताओं में कल्पनानुभूति कम एवं यथार्थ-चित्रण अधिक किया गया है। ऐसी कविताओं में सामाजिक विषमता के प्रति आक्रोश, शोषित-पीड़ित समाज के प्रति सहानुभूति तथा व्यवस्था को लेकर क्रान्ति का स्वर व्यक्त हुआ है। ‘भिक्षुक’ कविता में संघर्षशीलता के साथ व्यंग्य का पैनापन दिखाई देता है। ‘जागो फिर एक बार’ कविता में देश-प्रेम, त्यागबलिदान, अतीत का गौरव-गान, ओज तथा दार्शनिक चेतना की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। राष्ट्रीय-चेतना की दृष्टि से यह कविता प्रशस्य है।

कला पक्ष – निराला के काव्य में अत्यन्त प्रौढ़, परिष्कृत, तत्सम-प्रधान भाषा के साथ आम बोलचाल की भाषा प्रयुक्त हुई है। उनके काव्य में ध्वनि-बिम्ब, रंगबिम्ब एवं चाक्षुष-बिम्बों की भरमार है। प्रतीक विधान उनका अनूठा है तो अलंकारों का प्रयोग छायावादी-प्रगतिवादी काव्य-चेतना के अनुरूप किया है। मुक्त छन्द को शैली के प्रयोग में निराला को क्रान्तिकारी माना जाता है। इस प्रकार निराला को काव्य भाषा-शैली आदि विशेषताओं से मण्डित है।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. समर अमर कर …….. आज आया है स्यार।
2. पशु नहीं वीर तुम …………. जागो फिर एक बार।
3. ठहरो, अहो है मेरे …………. अपने हृदय में खींच लूंगा।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्या भाग देखकर व्याख्या लिखिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में कवि ने भारतवासियों को उद्बोधन दिया
(क) मानवतावादी चिन्तन का
(ख) राष्ट्रीय-जागरण का
(ग) दया और प्रेम का
(घ) आध्यात्मिक चेतना का।
उत्तर:
(ख) राष्ट्रीय-जागरण का

प्रश्न 2.
“सवा सवा लाख पर, एक को चढ़ाऊँगा।” यह प्रतिज्ञा की थी
(क) महाराणा प्रताप ने
(ख) गुरु नानक ने
(ग) गुरु गोविन्दसिंह ने
(घ) वीर शिवाजी ने।
उत्तर:
(ग) गुरु गोविन्दसिंह ने

प्रश्न 3.
“एक मेषमाता ही रहती है निर्निमेष”।
इसमें ‘मेषमाता’ से कवि का तात्पर्य है
(क) साधारण व्यक्ति
(ख) धर्मात्मा व्यक्ति
(ग) अभिशप्त व्यक्ति
(घ) निर्बल व्यक्ति।
उत्तर:
(घ) निर्बल व्यक्ति।

प्रश्न 4.
“गीता है, गीता है,
स्मरण करो बार-बार ।”
इस कथन से कवि ने भारतीय को सन्देश दिया है –
(क) कर्मनिष्ठा का
(ख) धर्मनिष्ठा का
(ग) एकता का
(घ) सर्वधर्म सद्भाव का।
उत्तर:
(क) कर्मनिष्ठा का

प्रश्न 5.
“योग्य जन जीता है।
पश्चिम की उक्ति नहीं ………. गीता है।”
इस कथन से कवि का कौन-सा मनोभाव व्यक्त हुआ है?
(क) उत्साह
(ख) स्वाभिमान
(ग) घृणा
(घ) आक्रोश
उत्तर:
(ख) स्वाभिमान

प्रश्न 6.
‘भिक्षुक’ कविता में निराला की किस प्रवृत्ति के दर्शन होते हैं?
(क) सौन्दर्य चेतना के
(ख) काल्पनिक अनुभूति के
(ग) प्रगतिशील चेतना के
(घ) छायावादी प्रवृत्ति के।
उत्तर:
(ग) प्रगतिशील चेतना के

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जागो फिर एक बार’ कविता का मूल कथ्य क्या है?
उत्तर:
उक्त कविता का मूल कथ्य परतन्त्रता में सुप्त, निराश भारतीय जनता को अतीत का गौरवमय स्मरण दिलाते हुए उसे जाग जाने को ओजस्वी स्वर में आह्वान करना है।

प्रश्न 2.
भस्म हो गया था काल –
तीनों गुण ताप त्रय।”।
तीनों गुणों और तीनों तापों के नाम बताइये।
उत्तर:
तीन गुण-सत्त्व, रज और तमं ये तीन गुण हैं।
तीन ताप-दैहिक, दैविक और भौतिक ये तीन ताप हैं।

प्रश्न 3.
गुरु गोविन्दसिंह ने क्या प्रतिज्ञा की थी? .
उत्तर:
गुरु गोविन्दसिंह ने प्रतिज्ञा की थी कि सवा-सवा लाख मुगल शत्रुओं पर अपने एक-एक वीर सैनिक को बलिदान कर दूंगा।

प्रश्न 4.
”पहुँचे थे वहाँ
जहाँ आसन है सहस्रार।”
इस कथन में जहाँ आसन है सहस्रार’ को आशय बताइए।
उत्तर:
सहस्रदल कमल मस्तक के ऊपरी भाग में उलटा स्थित रहता है। हठयोग साधना के अन्तर्गत सहस्रार कमल में चेतनः स्थिर हो जाती है तथा समाधि दशा में परमानन्द, की अनुभूति होती है।

प्रश्न 5.
“सिंही की गोद से
छीनता रे शिशु कौन?”
इस कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
इससे कवि यह कहना चाहता है कि वीर पुरुष ही पृथ्वी का उपभोग । करते हैं, उनकी वीरता के सामने सभी घुटने टेक देते हैं। शक्ति से सब डरते हैं।

प्रश्न 6.
“ब्रह्म हो तुम।
पद-रज भर भी है नहीं पूरा यह विश्व-भार।”
इस कथन से कवि ने भारतीयों को क्या सन्देश दिया है?
उत्तर:
इस कथन के माध्यम से निराला ने अतीत का गौरव-गाने कर भारतीयों को नव-जागरण की आत्मिक चेतना रखने का सन्देश दिया है।

प्रश्न 7.
“पेट-पीठ मिलकर हैं एक
चल रहा लकुटिया टेक।”
इन पंक्तियों में कवि कौन-सा भाव व्यंजित करना चाहता है?
उत्तर:
इन पंक्तियों में कवि भिक्षुक की दीन स्थिति का चित्रण करके उसके प्रति दया और सहानुभूति का भाव व्यंजित करना चाहता है।

प्रश्न 8.
‘भिक्षुक’ कविता में कवि निराला का क्या उद्देश्य निहित है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि निराला का उद्देश्य समाज में व्याप्त संवेदनहीनता और भिक्षुकों की दीन-हीन दशा की ओर सबका ध्यान आकृष्ट कर लोगों की सहानुभूति जगाना है।

प्रश्न 9.
“दो टूक कलेजे के करता, पछताता” – इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इसका आशय यह है कि भिक्षुक की दीन पुकार सुनकर हृदय वेदना से भर जाता है और भिक्षुक अपनी आर्त पुकार में पछताता हुआ आगे बढ़ जाता है।

प्रश्न 10.
कवि भिक्षुक को अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम’ किस आशय से कहता है?
उत्तर:
कवि इस आशय से कहता है कि वीर अभिमन्यु की तरह वह अकेले ही अन्याय एवं विषमता से संघर्ष कर सके।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में व्यक्त भारतीय संस्कृति की कोई तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
‘जागो फिर एक बार’ कविता में निराला ने भारतीयों को उनके गौरवमय अतीत का स्मरण कराते हुए नव-जागरण का आह्वान किया है। कवि ने इस कविता में भारतीय संस्कृति की इन विशेषताओं को उजागर किया है –

  1. भारतीय संस्कृति वीरता की भाव-भूमि पर देशभक्तों को हमेशा ही मातृभूमि की रक्षा की प्रेरणा देती रही है।
  2. भारतीय संस्कृति पंनिष्ठा या कर्मयोग की भावभूमि पर आधारित है। तथा आध्यात्मिक समन्वय से पूरित है।
  3. भारतीय संस्कृति मानवतावादी चिन्तन की प्रेरणा-स्रोत रही है।

प्रश्न 2.
“सवा-सवा लाख पर।
एक को चढ़ाऊँगा,
गोविन्दसिंह निज नाम तब कहाऊँगा।”
गुरु गोविन्दसिंह की भारतीय इतिहास में प्रसिद्धि क्यों है?
उत्तर:
जब सारे भारत में मुगल शासक हिन्दू जनता पर तरह-तरह के अत्याचार कर रहे थे, परन्तु कोई भी देशी राजा या ठाकुर उनका विरोध नहीं कर पा रहा था, तब गुरु गोविन्दसिंह ने पहाड़ी राजाओं से मित्रता कर मुगल शासक औरंगजेब का डटकर विरोध किया। इस विरोध के कारण उनके दो बेटे जीवित ही दीवार में चिनवा दिये गये, फिर भी वे अपने निश्चय से अडिग रहे। गुरु गोविन्दसिंह ने खालसा पंथ का प्रवर्तन किया और छोटी-सी सेना के सहारे अपने राज्य का प्रसार किया । इन्हीं विशेषताओं के कारण भारतीय इतिहास में गुरु गोविन्दसिंह की अत्यधिक प्रसिद्धि है।

प्रश्न 3.
‘जागो फिर एक बार’ कविता में व्यक्त सन्देश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
कवि निराला की ‘जागो फिर एक बार’ कविता का शीर्षक जागरण के भाव को व्यक्त करने वाला है। इसमें कवि ने गुरु गोविन्दसिंह की वीरता तथा देशभक्ति का उल्लेख कर भारतीयों को शक्तिशाली एवं शौर्यसम्पन्न बनने की प्रेरणा दी है और अपने अधिकारों व स्वत्व की रक्षा के लिए जागृत रहने का सन्देश दिया। है। भारतीयों को अमृत की सन्तान बतलाते हुए कवि ने यह ध्वनित किया है कि केवल ध्यानस्थ रहने या चिन्तन में निमग्न रहने की अपेक्षा जागृत रहने से अपने देश के गौरव और स्वाधीनता की रक्षा हो सकती है। सिंहनी और मेषमाता के प्रतीकात्मक उल्लेख से भी इसी सन्देश की व्यंजना की गई है। अतः प्रस्तुत कविता में नव-जागरण का सन्देश प्रमुखता से व्यक्त हुआ है।

प्रश्न 4.
“दाता-भाग्य-विधाता से क्या पाते?
पूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।”
‘भिक्षुक’ कविता की इन पंक्तियों से कवि ने क्या व्यंजना की है?
उत्तर:
‘भिक्षुक’ कविता की इन पंक्तियों से कवि ने यह व्यंजना की है कि बेचारा दीन-हीन भिक्षुक अपनी भूख मिटाने के लिए सम्पन्न लोगों के सामने हाथ फैलाता है। भीख मिल जाने की आशा से उन्हें वह दाता और अपना भाग्य-विधाता तक मान लेता है। वह उनके सामने काफी रिरियाता और गिड़गिड़ाता है, करुण स्वर में याचना करता है, परन्तु तब भी वे कुछ नहीं देते हैं और उपेक्षा से देखकर उसे दुत्कार देते हैं। इस तरह वे भिक्षुक के प्रति जरा भी संवेदना नहीं रखते हैं। इसमें कवि ने सम्पन्न वर्ग के लोगों में शोषित-पीड़ितों के प्रति उपेक्षा-भाव की व्यंजना की है।

प्रश्न 5.
‘भिक्षुक’ कविता के आधार पर निराला की विचारधारा अथवा उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘भिक्षुक’ कविता में निराला के प्रगतिशील दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति हुई है। कवि निराला ने इसमें समाज के दीन-हीन और शोषित-पीड़ित के प्रति अपनी गहरी सहानुभूति व्यक्त करते हुए मानवीय संवेदना एवं करुणा व्यक्त की है। भिक्षुक की दीन-दशा से द्रवित होकर कवि मानो उसे आश्वासन देने लगता है – “ठहरो, अहो है मेरे हृदय में, अमृत से सींच दूंगा।” इतना ही नहीं, वह उसे अपनी करुणा और सहानुभूति की शक्ति देकर अभिमन्यु के समान संघर्ष करने की शक्ति प्रदान करने को उद्यत होता है। इस प्रकार प्रस्तुत कविता में भिक्षुक की यथार्थस्थिति के निरूपण में कवि का मानवतावादी चिन्तन तथा प्रगतिवादी विचारधारा व्यक्त

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
निराला की प्रगतिवादी रचनाओं की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
कवि निराला पहले छायावादी काव्यधारा के प्रमुख स्तम्भ रहे, फिर वे प्रगतिवादी काव्यधारा के प्रमुख कवि बने। कवि निराला की प्रगतिवादी कविताओं का स्वरूप समझने के लिए उनकी रचनाओं को अग्रांकित छह भागों में विभक्त कर अध्ययन किया जा सकता है। इससे उनके सामाजिक विषयों की विविधता तथा मानवतावादी दृष्टिकोण भी सामने आ जाता है

  1. प्रगतिशील सामाजिक रचनाएँ
  2. नारी उत्थान सम्बन्धी प्रगतिशील रचनाएँ।
  3. धार्मिक और व्यंग्य परम्पराओं व रूढ़ियों का दिग्दर्शन
  4. राजनीतिक विषयक रचनाएँ
  5. आर्थिक विषमता को लक्षित करने वाली रचनाएँ
  6. प्रगतिशील कविताओं में मानवतावादी पक्ष।

निरालाजी की रचनाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि उनकी आरम्भिक रचनाएँ आवेगपूर्ण हैं जिसके कारण उनमें क्रान्ति का स्वर अधिक प्रखर है तथा परवर्ती रचनाओं में व्यंग्य की प्रधानता है। उपर्युक्त उपवर्गों के आधार पर निरालाजी की। प्रगतिवादी रचनाओं में व्यक्त उनकी सामाजिक चेतना का उद्घाटन हो जाता है। सामाजिक विषमता, आर्थिक असमानता, शोषण-उत्पीड़न तथा वर्ग-भेद आदि के कारण समाज का जो विकृत रूप दिखाई देता है, निराला ने उस पर आक्रोश एन्नं व्यंग्य किया है। इस तरह के वर्णन से उनकी प्रगतिवादी रचनाओं की सभी विशेषताएँ स्पष्ट परिलक्षित हो जाती हैं।

प्रश्न 2.
निराला की सर्वोत्तम देन क्या रही है? स्पष्ट विवेचन कीजिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य को निराला की सर्वोत्तम देन विद्रोह और क्रान्ति का स्वर है, जो काव्य-क्षेत्र में चली आती हुई मान्यताओं और रूढ़ियों के विरुद्ध थी। स्वच्छन्दतावाद का जो विद्रोही रूप था, वह निराला के काव्य में सबसे अधिक मुखर हुआ है। छन्दों का बंधन अस्वीकार करके उन्होंने कविता को मुक्त छन्द का रूप प्रदान किया है। उन्होंने केवल भावों में ही नहीं, भाषा और शैली में भी नवीनता व मौलिकता का समावेश किया है। मुक्त छन्दों में काव्य का यह सृजन निरालाजी की हिन्दी साहित्य को अनुपम देन है। निराला की दूसरी महत्त्वपूर्ण देन उनकी गीत-सृष्टि है। हिन्दी में गीतों का जैसा प्रयोग निराला ने स्थापित एवं निर्देशित किया, वैसा अन्यत्र दुर्लभ है। उनके गीत में शास्त्रीय पद्धति के साथ ही काव्य का परिष्कार हुआ है।

मुक्त छन्द के साथ छन्दोबद्ध संगीतात्मक सृष्टि का उनका यह दूसरा चरण हिन्दी काव्य के लिए नया प्रस्थान ही कहा जायेगा। इसके अतिरिक्त लोकगीतों की ‘सहज भूमि पर आधारित लोकधुनों की प्रचुरता बेला’, ‘अर्चना’ और ‘आराधना’ रचनाओं में मिलती है। हिन्दी गीति – परम्परा में उक्त दोनों रूप अप्रतिम देन हैं। छायावाद काव्य की पलायनवादी एवं एकान्तिक प्रवृत्ति को सामाजिक यथार्थ के धरातल पर प्रतिष्ठित करने और उसे जन-सामान्य की वाणी बनाने का श्रेय निराला की तीसरी देन है। प्रगतिवादी काव्य का भी निराला सही नेतृत्व करते हैं। समग्रतः निराला के काव्य में शोषित वर्ग के प्रति संवेदना, पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के प्रति व्यंग्य और मानव मात्र के हित की कामना निहित है।

प्रश्न 3.
‘भिक्षुक’ कविता में व्यक्त कवि के भावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘भिक्षुक’ कविता में कवि निराला ने दीन-हीन एवं असहाय भिक्षुक के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए अपना मानवतावादी दृष्टिकोण निरूपित किया है। वस्तुतः यह यथार्थ पर आधारित रचना है तथा इसमें भिक्षुक की पीड़ा से कवि ने तादात्म्य स्थापित किया है। भिक्षुक अपनी भूख मिटाने के लिए हर किसी के सामने अपनी झोली फैलाता है तथा ‘दर्दभरी वाणी में अपनी व्यथा कहता है, परन्तु करुण याचना करने पर भी उसे उचित भिक्षा नहीं मिलती है। उसके साथ दो बच्चे भी भूख से विवश रहते हैं, जो सड़क के किनारे घड़ी जूठी पत्तले चाटने लगते हैं। लेकिन वहाँ पर भी कुत्ते उन्हें काटने दौड़ते हैं।

इस प्रकार भिक्षुक की व्यथा का अन्त नहीं हो पाता है। प्रस्तुत कविता में कवि निराला ने समाज में दीन-हीन लोगों के प्रति मानवीय संवेदना व्यक्त कर उनके कष्टों को दूर करने की भावना व्यक्त की है। समाज के सम्पन्न लोग भिखारियों के प्रति सहानुभूति नहीं रखते हैं, वे भाग्य-विधाता दाता बनकर भी भिक्षुक की वेदना कम नहीं करते हैं। इस तरह के संवेदनारहित आचरण से समाज में शोषित-पीड़ित निम्न वर्ग की स्थिति दयनीय बन गई है। इसे आर्थिक विषमता का निवारण अत्यन्त आवश्यक है। इस दिशा में मानवीय दृष्टिकोण अपनाना अपेक्षित है। निराला ने प्रस्तुत कविता में भिक्षुक का शब्द-चित्र प्रस्तुत कर मानवीय संवेदना-सहानुभूति का भाव व्यक्त किया है।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
महाकवि निराला का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
महाकवि निराला आधुनिक हिन्दी साहित्य की महान् विभूतियों में एक हैं। इनके लिए महाप्राण’ और ‘निराला’ शब्दों का प्रयोग किया जाता है, जो इनके स्वभाव एवं वैचित्र्य के अनुरूप ही हैं। निराला के पिता बंगाल के महिषादल राज्य के सेवक थे। वहीं पर निराला का जन्म हुआ। तीन वर्ष की अल्पायु में इनकी माता का निधन हो गया था। निराला का साहित्यिक जीवन संघर्ष की एक लम्बी कहानी है। शिक्षा-दीक्षा एवं स्वाध्याय से इन्होंने अपने व्यक्तित्व को बनाया और साहित्यसाधना में प्रवृत्त हुए। प्रारम्भ में इनकी रचनाएँ ‘मतवाला’ पत्रिका में प्रकाशित होने लगीं। लखनऊ एवं इलाहाबाद में रहकर निराला अपनी बहुमुखी प्रतिभा से विविध रचनाओं से हिन्दी साहित्य को समृद्ध करते रहे। इन्होंने ‘समन्वय’ एवं ‘सुधा’ पत्र का सम्पादन भी किया। ये प्रारम्भ में छायावाद के प्रमुख स्तम्भ रहे, फिर प्रगतिवाद की ओर बढ़े।

कविता को छन्द मुक्त करने में इनका प्रमुख योगदान रहा। छन्दमुक्त होने पर भी इनकी कविताओं में स्वाभाविक संगीत-सौन्दर्य मिलता है। ये दार्शनिक विचारधारा से भी प्रभावित रहे। कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ ने काव्य, उपन्यास, कहानी, रेखाचित्र, निबन्ध, जीवनी तथा समीक्षा-लेखन में अपनी बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया। मूल रूप| से ये कवि थे। इनकी प्रमुख काव्य-कृतियों के नाम इस प्रकार हैं – अनामिका, परिमल, गीतिका, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, अणिमा, बेला, नये पत्ते, आराधना, अर्चना, गीतगूंज, सान्ध्य की वाणी और राम की शक्ति-पूजा।

सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ कवि-परिचय-

छायावादी काव्यधारा के प्रमुख स्तम्भ सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म सन् 1896 ई. में हुआ। निराला बहुमुखी प्रतिभा से सम्पन्न एवं ऐसे युगान्तकारी कवि हुए, जिनकी कविता में तत्कालीन समाज में जी रहे मानव की पीड़ा, विवशता, शोषण, परतन्त्रता आदि का यथार्थ चित्रण हुआ है। इन्होंने समाज में विद्यमान अन्याय, असमानता एवं पाशविकता के प्रति विद्रोह का स्वरे व्यक्त कर विषम परिस्थितियों में संघर्ष करते रहने की भावना व्यक्त की है। यद्यपि निराला ने उपन्यास, कहानी, रेखाचित्र, निबन्ध, जीवनी एवं अनुवाद कार्य आदि सभी पर अपनी लेखनी चलायी, तथापि ये मूलतः कवि थे और काव्य-रचना के द्वारा यथार्थ का कल्पनाशील चित्रण करने में पूर्णतया सफल रहे। इनके कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हैं। इनकी समस्त रचनाओं को ‘निराला ग्रन्थावली’ के आठ खण्डों में प्रकाशित किया गया है।

पाठ-परिचय-

पाठ में निराला की ‘जागो फिर एक बार’ शीर्षक कविता राष्ट्रीय जागरण के स्वर पर आधारित है। इसमें परतन्त्रता में सुप्त, निराश-हताश भारतीय जनता को उनके गौरवमय अतीत की याद दिलाते हुए जागरण का आह्वान किया गया है। साथ ही इसमें भारतीयों की उस प्रवृत्ति पर चोट की गई है, जिसमें आध्यात्मिक एवं दार्शनिक चिन्तन के क्षेत्र में उन्नति करने पर भी वे पराधीनता के विरुद्ध शौर्य-प्रदर्शन करने में प्रमादी बने रहे। निराला की दूसरी कविता ‘भिक्षुक’ में भिक्षुक का ऐसा शब्द-चित्र प्रस्तुत किया गया है जो पेट की भूख मिटाने के लिए संघर्षरत रहता है। निराला ने इस कविता में सामाजिक विषमता, शोषण-उत्पीड़न पर सशक्त प्रहार कर साहसी और संघर्षशील बनने का आह्वान किया है।

सप्रसंग व्याख्याएँ जागो फिर एक बार

(1)

जागो फिर एक बार!।
समरे अमर कर प्राण,
गान गए महासिन्धु-से
सिन्धु-नद-तीरवासी!
सैन्धव तुरंगों पर
चतुरंग चमूसंग,
सवा सवा लाख पर
एक को चढ़ाऊँगा,
गोविन्द सिंह निज।
नाम जब कहाऊँगा,
किसने सुनाया यह
वीर-जन-मोहन अति
दुर्जय-संग्राम-राग,
फाग का खेला रण
बारहों महीने में?
शेरों की माँद में।
आया है आज स्यार
जागो फिर एक बार!

कठिन शब्दार्थ-समर = युद्ध। सैन्धव = सिन्धु देश के। तुरंगों = घोड़ों। चमू = सेना। चतुरंगे = चतुरंगिणी सेना, अर्थात् पैदल, रथसवार, अश्वारोही तथा हस्तिबल। दुर्जय = जिसे जीता न जा सके। माँद = गुफा। स्यार = सियार, गीदड़ अर्थात् कायर।
प्रसंग-यह अवतरण कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘जागो फिर एक बार’ शीर्षक कविता से उद्धत है। इसमें भारत के अतीत की गौरव-गाथा का
स्मरण कर देशवासियों को नवीन उत्साह एवं ओजस्विता अपनाने का आह्वान किया गया है।

व्याख्या-ऐतिहासिक परिवेश की ओर संकेत करते हुए कवि निराला कहते हैं कि भारत का अतीत ऐसा गौरवशाली था, जब यहाँ के वीर युद्ध-क्षेत्र में प्राणों की बाजी लगाकर अमर हो जाते थे। ऐसे योद्धाओं की गौरव-गाथाओं को यहाँ के समुद्र के साथ विशाल नदियों और उनके तट पर रहने वाले लोगों ने, अर्थात् सिन्धु-सभ्यता के लोगों ने अनेक बार गाया था। इसलिए जब-जब विदेशी आक्रान्ताओं ने भारत पर आक्रमण किया, तो यहाँ के वीरों ने चतुरंगिणी सेना सजाकर वीरता के साथ उनका डटकर सामना किया। इसी तरह जब विदेशियों ने आक्रमण किया, तो सिखों के गुरु महाराज गोविन्दसिंह ने वीरतापूर्वक यह घोषणा की कि “जब तक सवा-सवा लाख शत्रुओं पर अपने एक वीर को समर्पित नहीं कर दूंगा, तब तक अपना नाम सार्थक नहीं मानूंगा।”

महाराज गोविन्दसिंह के कथन का भाव यह था कि विदेशी आक्रान्ताओं का डटकर सामना करने वाले वीरों पर सब कुछ न्यौछावर किया जा सकता है। उनकी यह वीर घोषणा किसी ने वीरवर जगमोहन को सुनाई थी, जिसने शत्रुओं से अतीव भयंकर संग्राम किया था और युद्ध-क्षेत्र में रक्त की पिचकारियाँ चला कर वीभत्स फाग खेला था। उसके सामने सभी आक्रान्ता सियार की तरह कायर सिद्ध हुए थे। वस्तुतः शेरों की माँद में सियार भयभीत होकर कभी नहीं आता है। यदि वह आता भी है तो विनष्ट हो जाता है। पंजाब के सिख भी शेर के समान ही थे, जिन्होंने आक्रमणकारियों को सियार की तरह मार भगाया था। ऐसे गौरवपूर्ण अतीत का स्मरण करते हुए कवि कहता है कि हे भारतीयो! अब तुम जाग जाओ, सचेत रहकर शत्रुओं का दमन करो।

विशेष-
(1) गुरु गोविन्दसिंह के बलिदानी एवं शौयपूर्ण व्यक्तित्व का स्मरण करके भारतीयों के मन में आशा और विश्वास का भाग जागृत किया गया है।
(2) यह कविता पराधीनता काल की रचना है। ओजस्वी भावों की अभिव्यक्ति हुई है।

(2)

सत् श्री अकाल,
भाल-अनल धक-धक कर जला,
भस्म हो गया था काल-
तीनों गुण ताप त्रय,
अभय हो गये थे तुम
मृत्युंजय व्योमकेश के समान,
अमृत-सन्तान! तीव्र
भेदकर सप्तावरण-मरण लोक,
शोकहारी। पहुँचे थे वहाँ।
जहाँ आसन है संहस्रार
जागो फिर एक बार!

कठिन शब्दार्थ-भाल = मस्तक। अनल = आग। तीनों गुण = सत्त्व, रज व तम। ताप-त्रय = तीनों ताप, दैविक, दैहिक एवं भौतिक ताप। व्योमकेश = शिव।

अमृत-संन्तान = देवताओं की सन्तान। सहस्रार = सिर की चोटी में उलटे कमल के समान गर्त, जिसे आत्मा का आसन माना जाता है, संहस्रदल कमल।।

प्रसंग-यह अवतरण कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ द्वारा रचित ‘जागो फिर एक बार’ कविता से लिया गया है। इनमें कवि मातृभूमि की खातिर बलिदान होने वाले सिख वीरों की प्रशस्ति करता हुआ कहता है कि

व्याख्या- मुगलों के विरुद्ध जब गुरु गोविन्दसिंह ने ‘सत्श्री अकाल’ का उद्घोष किया और युद्ध-क्षेत्र में उतरे, तो उनके ललाट में क्रोध रूपी आग की ज्वाला प्रज्वलित हुई थी। उस आग में धक-धक करके काल भस्म हो गया था, तीनों गुण अर्थात् सत्व, रज व तम तथा दैविक, दैहिक व भौतिक–तीनों ताप भी भस्म हो गये थे। परिणामस्वरूप तुम शत्रुओं से अभय हो गये थे। उस समय तुम मृत्यु को जीतने वाले देवता शिवजी के समान बन गये थे। हे अमरों की सन्तान ! तुम योग-साधना द्वारा सातों आवरणों को भेदकर तथा समस्त शोक से रहित होकर उस उच्चतम स्थान के अधिकारी बन गये थे, जहाँ पर सिद्ध योगी लोग सांसारिक कष्टों से मुक्त होकर, सहस्र-दल कमल में आसन लगाकर परमानन्द में लीन हो जाते हैं। इस प्रकार तुम सांसारिक शोक-सन्ताप से परे होकर जीवन्मुक्त हो गये थे। इसलिए तुम एक बार फिर जागकर उसी शौर्य का प्रदर्शन करो।

विशेष-
1 सप्तावरण अर्थात् चेतना के सात स्वर हैं, हठयोग में इन्हें सात चक्र कहते हैं, राजयोग में इन्हें सात शरीर कहते हैं। ये सप्तावरण ठोस, द्रव, गैस, ईश्वर, सुपर ईश्वर, निम्न आणविक तथा आणविक माने गये हैं।
(2) देश-प्रेम का स्वर तथा देश-हित में बलिदान होने की प्रेरणा व्यक्त हुई

(3)

सिंही की गोद से
छीनता रे शिशु कौन?
मौन भी क्या रहती वह
रहते प्राण? रे अंजान।
एक मेषमाता ही
रहती है निर्निमेष
दुर्बल वहे
छिनती सन्तान जब
जन्म पर अपने अभिशप्त
तप्त आँसू बहाती है,
किन्तु क्या,
योग्य जन जीता है।
पश्चिम की उक्ति नहीं
गीता है, गीता है
स्मरण करो बार-बार
जागो फिर एक बार!

कठिन शब्दार्थ-मेषमाता = भेड़। निर्निमेष = एकटक, चुपचाप। तप्त = गर्म। अभिशप्त = शाप या वेदना से ग्रस्त। उक्ति = कथन, सिद्धान्त।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण सूर्यकान्त त्रिपाठी “निराला’ द्वारा रचित ‘जागो फिर एक बार’ कविता से उद्धृत है। इसमें कवि ने वीर भोग्या वसुन्धरा की दुहाई देकर देशभक्ति का ओजस्वी स्वर व्यक्त किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि ऐसी शक्ति और ऐसा साहस किसमें है, जो शेरनी की गोद से उसके बच्चे को बलपूर्वक ले सके। क्या शेरनी अपने जीते-जी अपने बच्चे को छीन लेने देगी और स्वयं चुप बैठी रहेगी? अर्थात् सिंहनी ऐसी तब तक नहीं होने देगी, जब तक उसके तन में प्राण रहेंगे। अरे अज्ञानियो! केवल भेड़ ही ऐसी हुआ करती है, जो अपने बच्चे को अपनी गोद से छिन जाने पर चुप रहती है। वह दुर्बलता के कारण ही अपने बच्चे को छिनते हुए टकटकी लगाए देखती है। अपनी सन्तान के छिनने पर वह अपने दुःखी जीवन के कारण जन्मभर गर्म-गर्म आँसू बहाती रहती है, अपने व्यथित जीवन पर रोती रहती है। परन्तु क्या। शक्तिशाली प्राणी इस तरह के अत्याचार को सहते हुए जीवित रह सकता है, अर्थात् नहीं, क्योंकि वह अत्याचार सहने की अपेक्षा मर जाना अच्छा समझता है। सत्य तो यह है कि इस संसार में शक्तिशाली व्यक्ति ही जीवित रहता है। क्या यह उक्ति पाश्चात्य चिन्तन की देन है? नहीं, यह तो गीता का उपदेश है। अतः गीता के कर्मयोग के उपदेश को बार-बार स्मरण करो और जागकर तुम अपने शक्तिशाली स्वरूप को पहचानो।

विशेष-
(1) कवि ने गीता का उल्लेख कर भारतीय संस्कृति के प्रति आस्था व्यक्त की है।
(2) देशवासियों को जागृति को तथा शक्तिशाली बनने का सन्देश दिया गया

(4)

पशु नहीं, वीर तुम,
समर शूर, क्रूर नहीं,
काल-चक्र में ही दबे
आज तुम राज-कुँवर! समर-सरताज!
पर क्या है,
सब माया है-माया है,
मुक्त हो सदा ही तुम,
बाधा-विहीन-बन्ध छन्द ज्यों,
डूबे आनन्द में सच्चिदानन्द रूप
महामन्त्र ऋषियों का
अणुओं परमाणुओं में फेंका हुआ
“तुम हो महान्, तुम सदा हो महान्
है नश्वर यह दीन भाव,
कायरता, कामपरता।

ब्रह्म हो तुम
पद-रज भर भी है नहीं पूरा यह विश्व-भार” जागो फिर एक बार! कठिन शब्दार्थ-समर शूर = युद्ध में पराक्रमी। सरताज = अग्रणी, शिरमोर। सच्चिदानन्द = परमात्मा, ब्रह्म। कामपरता = वासनाओं की आसक्ति। पद-रज = चरणों की धूल। विश्वभार = संसार का भार, सांसारिक समस्याएँ।

प्रसंग-यह अवतरण कवि निराला द्वारा रचित ‘जागो फिर एक बार’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसमें कवि ने देशवासियों को जागृति का सन्देश दिया है।

व्याख्या-भारतीयों को अपनी शक्ति का स्मरण कराते हुए कविवर निराला कहते हैं कि तुम पशु (एकदम कायर-नादान) नहीं हों, तुम युद्ध में पराक्रम दिखाने वाले हो। तुम कोई क्रूरता का आचरण करने वाले न होकर न्यायार्थ वीरता का प्रदर्शन करने वाले हो। तुम काल रूपी चक्र (समय-परिवर्तन के चक्र) में दबे हुए राजकुमार हो तथा युद्ध-क्षेत्र के श्रेष्ठ योद्धा हो। परन्तु तुम इस तरह क्यों हो? सांसारिक आसक्ति या लोकाचार तो माया के बन्धन हैं और तुम सदा ही इन सबसे मुक्त रहे हो। जिस प्रकार बाधाओं से अर्थात् यति, विराम, लघु व गुरु आदि नियमों के बन्धनों से मुक्त रहने वाली अर्थात् मुक्त छन्द कविता भावपूर्ण लगती है, वैसे ही तुम सदा सांसारिकता से मुक्त रहकर सच्चिदानन्द अर्थात् परम ब्रह्म के आनन्द में निमग्न रहते हो। इस देश के कण-कण में, अणु-परमाणुओं में ऋषियों के महामन्त्र व्याप्त हैं, जो मानव को सुखद जीवन एवं मुक्ति प्रदान करने वाले हैं। इसलिए हे भारतीयो! तुम सदा ही महान् हो, तुम्हारे मन में जो दीनता और कायरता की भावना तथा काम-वासनाओं की आसक्ति के भाव उत्पन्न हो रहे हैं, वे सब नश्वर हैं, तुम्हारे दैन्य भाव तथा कायरता के विचार सब नष्ट होने वाले हैं। वस्तुतः तुम ब्रह्म-स्वरूप हो, यह समस्त विश्व-भार तुम्हारे चरणों की धूल से भी तुच्छ है। आशय यह है कि तुम परमात्मा की सृष्टि के सर्वाधिक शक्तिशाली प्राणी हो। अतएव तुम अपनी शक्ति को पहचानो और एक बार फिर जाग जाओ।

विशेष-
(1) भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता एवं मानवता का गौरवपूर्ण उल्लेख कर नव-जागरण का स्वर व्यक्त हुआ है।
(2) भारतीयों की वीरता तथा वैचारिक चेतना की व्यंजना हुई है।

भिक्षुक
(5)

वह आता-
दो टूक कलेजे के करता।
पछताता पथ पर आता।
पेट-पीठ दोनों मिलकर हैं एक,
चल रहा लकुटिया टेके,
मुट्ठीभर दाने को, भूख मिटाने को,
मुँह फटी पुरानी झोली को फैलाता
दो टूक कलेजे के करता
पछताता पथ पर आता।
साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,
बायें से वे मलते हुए पेट चलते हैं,
और दाहिना दयादृष्टि पाने की ओर बढ़ाये।

कठिन शब्दार्थ-पथ = रास्ता। दयादृष्टि = दयापूर्वक देखना।

प्रसंग-यह अवतरण कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ द्वारा रचित ‘भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पूरी संवेदना के साथ एक भिक्षुक का चित्रण किया है।

व्याख्या-कवि निराला वर्णन करते हैं कि जब भिक्षुक आता दिखाई देता है, तो उसकी दयनीय दशा देखकर हृदय के टुकड़े होने लगते हैं। वह स्वयं भी अपनी करुणाजनक स्थिति से सभी को हार्दिक वेदना से भर देता है। कारण यह है कि वह इतना दुर्बल और कमजोर है कि उसका पेट और पीठ मिलकर अर्थात् एकदम पिचककर एक ही प्रतीत होते हैं। वह अपने कष्टमय जीवन को लेकर पछताता रहता है और अपनी लाठी टेक-टेक कर चल रहा है। वह एक मुठी अनाज को प्राप्त करके अपनी भूख मिटाना चाहता है और इसके लिए लोगों के सामने अपनी फटी हुई पुरानी झोली को फैलाता रहता है। उसकी उस स्थिति को देखकर संवेदनशील व्यक्ति के हृदय के दो टुकड़े होने लगते हैं। उस गरीब की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है, इस कारण दु:ख का अनुभव करते हुए वह अपने जीवन पर पछताता है और नित्य ही मार्ग पर आता-जाता दिखाई देता है।

कवि वर्णन करता है कि उस भिखारी के साथ दो बच्चे भी हैं, जो सदा ही भिक्षा पाने के लिए हाथ फैलाये रहते हैं। वे बायें हाथ से अपने पेट को मलते हुए अर्थात् पेट की भूख से उत्पन्न वेदना को सहलाते हुए चलते हैं तथा दायाँ हाथ दाताओं की दया-दृष्टि अर्थात् भिक्षा प्राप्त करने के लिए सामने फैलाये रहते हैं।

विशेष-
(1) भिखारी का यथार्थ चित्रण पूरी संवेदना के साथ किया गया है। कवि का मानवतावादी स्वर प्रमुख है। इसमें सामाजिक विषमता पर व्यंग्य किया गया
(2) ‘कलेजे के टुकड़े होना’ मुहावरे का प्रयोग सटीक है।

(6)

भूख से सूख होंठ जब जाते,
दाता-भाग्यविधाता से क्या पाते
पँट आँसुओं के पीकर रह जाते,
चाट रहे जूठी पत्तल वे
कभी सड़क पर खड़े हुए,
और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए।
ठहरो, अहो है मेरे हृदय में,
अमृत में सींच दूंगा
अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुम
तुम्हारे दुःख मैं अपने हृदय में खींच लूंगा।

कठिन शब्दार्थ-दाता = देने वाला। अमृत = अमर होने, जीवनी-शक्ति देने वाला तत्त्व।

प्रसंग-यह अवतरण कवि निराला की ‘भिक्षुक’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने भिखारियों की विवशता का चित्रण कर मानवीय संवेदना रखने का भाव व्यक्त किया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि भिक्षुक जब भूख से व्याकुल हो जाता है और प्यास से उसके होंठ सूखने लगते हैं, तब उसकी स्थिति बड़ी दयनीय बन जाती है। ऐसी स्थिति में कोई भी व्यक्ति दाता बनकर उसकी सहायता नहीं करता। है। उसे बड़े-बड़े लोगों से भी कुछ नहीं मिलता है। इस कारण भूख और प्यास से व्याकुल भिक्षुक केवल अपने आँसुओं को पीकर रह जाता है, अर्थात् निराश होकर अपने दर्द को दबाकर चुप रह जाता है। कवि कहता है कि कभी-कभी भिक्षुक सड़क पर खड़े रहकर जूठी पत्तले चाटते हुए भी दिखाई देते हैं, किन्तु उन पत्तलों को झपट लेने के लिए कुत्ते भी अड़े रहते हैं। उस स्थिति को देखकर कवि करुणा और संवेदना से विगलित हो जाता है। इसलिए वह कहता है कि मैं अपने हृदय का सारा अमृत निकालकर इसके सूखे होंठों को सरस कर दूंगा और जीवनी-शक्ति देकर इसकी भूख शान्त कर दूंगा। व्यक्ति यदि संघर्ष करे, तो दृढ़-संकल्प करके वह जीवन के कष्टों को मिटाकर अपने लिए नया पथ बना सकता है, वह अभिमन्यु की भाँति अकेले ही सारी बाधाओं को झेल सकता है। अन्त में कवि भावुक होकर कहता है कि वह ऐसे भिक्षुकों के दुःखों को खींचकर अपने हृदय में रखना चाहता है और अपने हृदय की सारी संवेदनाओं को देकर बदले में उसे सुखी और तृप्त देखना चाहता है।

विशेष-
(1) कवि का मानवतावादी दृष्टिकोण व्यक्त हुआ है।
(2) ‘अभिमन्यु’ संघर्षरत एवं संकल्पनिष्ठ व्यक्ति के प्रतीक रूप में प्रयुक्त हुआ है।
(3) आँसुओं के चूंट पीना और अमृत से सींचना जैसे मुहावरों के प्रयोग भावसौन्दर्य को बढ़ा रहे हैं।

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