RBSE Solutions for Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 सुमित्रानन्दन पंत

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 सुमित्रानन्दन पंत

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उड़ गया अचानक लो भूधर ! फड़का अपार वारिद के पर’ इस पंक्ति में भूधर किसके पंख लगाकर उड़ गया –
(क) पारे के
(ख) बादल के
(ग) पेड़ों के
(घ) फूलों के
उत्तर:
(ख) बादल के

प्रश्न 2.
कवि ने सरल शैशव की सुखद सुधि सी किसे कहा है –
(क) प्रकृति को
(ख) बालिका को
(ग) माँ को
(घ) पिता को
उत्तर:
(क) प्रकृति को

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने किस ऋतु का वर्णन किया है?
उत्तर:
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने वर्षा ऋतु का वर्णन किया है।

प्रश्न 2.
नस-नस किसकी उत्तेजित हैं?
उत्तर:
कवि कल्पना करता है कि झरनों के रूप में पर्वत की नस-नस उत्तेजित

प्रश्न 3.
‘दर्पण-सा फैला है विशाल’ यहाँ दर्पण-सा किसे कहा गया है?
उत्तर:
पर्वत की तलहटी में जो विशाल तालाब फैला हुआ है, उसे ही दर्पणसा कहा गया है।

प्रश्न 4.
इन्द्र कौन-से यान में बैठकर इन्द्रजाल खेलता है?
उत्तर:
इन्द्र बादलों से बने यान में बैठकर इन्द्रजाल खेलता है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वर्षा ऋतु में प्रकृति में आये परिवर्तन को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
वर्षा ऋतु में प्रकृति में हरियाली छा जाती है। पर्वतीय प्रदेश में वर्षा होने से प्रकृति का स्वरूप निरन्तर बदलता रहता है। कभी आकाश में विशालकाय बादल छा जाते हैं और मूसलाधार वर्षा होने लगती है, तो कभी प्रकृति स्वच्छ दिखाई देती है। पर्वतीय भूमि पर तरह-तरह के रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं तथा सभी नदी-नालों में पानी वेग से बहने लगता है। पर्वतों पर झरने तेजी से झरने लगते हैं और पर्वत की तलहटी में स्थित सभी तालाब लबालब भर जाते हैं। उन तालाबों से भाप उड़ती है, जो फिर बादल रूप में आकाश में छा जाते हैं। इस तरह वर्षा ऋतु में पर्वत-प्रदेश की प्रकृति में अनेक परिवर्तन आ जाते हैं।

प्रश्न 2.
“है टूट पड़ा भू पर अम्बर” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लगातार वर्षा होने से बादल नीचे तक झुक जाते हैं और पहाड़ी झरनों से जल-प्रवाह नीचे गिरता रहता है। इस तरह वर्षा ऋतु में ऐसा लगता है कि आकाश टूटकर धरती पर पड़ रहा है। कवि पन्त ने बादलों के बरसने का सुन्दर काल्पनिक चित्र उपस्थित किया है। इसी से कवि कहता है कि बादलों के नीचे तक झुक जाने से और लगातार ऊपर से पानी गिरने से ऐसा लगता है कि आकाश टूटकर धरती पर गिर रहा है।

प्रश्न 3.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने अचेतन प्रकृति को चेतन रूप में चित्रित किया है? इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने छायावादी शैली में अचेतन प्रकृति पर चेतन का आरोप किया है। कवि ने प्रकृति को पल-पल में भेष बदलने वाली नायिका बताया है। पर्वत-शिखरों पर खिले हुए फूलों के नेत्र तथा पर्वत को महामानव बताकर नीचे तालाब रूपी दर्पण में अपना प्रतिबिम्ब देखते हुए चित्रित किया है। पर्वत से बहने वाले झरनों से उसकी नस-नस की उत्तेजना और झरनों का झर-झर शब्द उसका गौरव-गान बताया है। पर्वत पर खड़े वृक्ष हृदय की उच्च आकांक्षाओं के समान नीरव आकाश की ओर देख रहे हैं और इन्द्र अनेक तरह से इन्द्रजाले खेल रहा है। इस प्रकार कवि ने प्रकृति पर चेतन का आरोप कर सुन्दर चित्रण किया है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“पन्त प्रकृति के सुकुमार कवि हैं।” इस कथन को पठित कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविवर सुमित्रानन्दन पन्त के काव्य में प्रकृति के सुकुमार-मधुर रूप की अनेक झाँकियाँ देखने को मिलती हैं। पाठ्य-पुस्तक में पन्त की ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता इस दृष्टि से द्रष्टव्य है। इसमें पर्वतीय भागों में वर्षा ऋतु आने पर जो परिवर्तन आ जाते हैं, उनका हृदयग्राही चित्रण किया गया है। पर्वतों पर बादल उमड़-घुमड़ कर छा जाते हैं। वहाँ पर वर्षा होने से हरियाली फैल जाती है, पुष्प खिल जाते हैं और झरने पूरे वेग के साथ झर-झर शब्द करते हुए बहने लगते हैं। पर्वत की तलहटी में सारे सरोवर जल से भर जाते हैं।

उनसे भाप उठती है जो धुएँ के समान प्रतीत होती है। वह भाप फिर से बादल बन जाती है। झरने मोतियों की लड़ियों की तरह सुन्दर लगते हैं और उनका झर-झर पर्वत का गौरवगान लगता है। बादल भी तेजी से उड़ने लगते हैं, तो कभी एक ही जगह पर स्थिर रहते हैं। बादलों के घटाटोप से शाल के लम्बे वृक्ष धरती में धंसे हुए-से लगते हैं। इस प्रकार सम्पूर्ण कविता में वर्षाकाल के प्राकृतिक परिवेश का मनोहारी चित्रण किया है। अन्त में प्रकृति को बचपन की मनोरम मित्र बालिका के समान हृदय की चितेरी बताया है। इस प्रकार इसमें प्रकृति के प्रति कवि की आत्मीय भावना का प्रकाशन हुआ है। इससे सिद्ध हो जाता है कि कवि पन्त प्रकृति के सुकुमार कवि एवं कुशल चितेरे हैं।

प्रश्न 2.
“प्रकृति मनुष्य की चिर सहचरी है।” इस कथन के सन्दर्भ में प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारे क्या दायित्व हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रकृति चिर-सहचरी – प्रकृति अर्थात् धरती, पर्वत, नदी, वृक्ष, हरियाली, बादल, पुष्प आदि सभी से सचेतन प्राणियों के जीवन की रक्षा होती है तथा प्रकृति के अचेतन पदार्थों का अस्तित्व बना रहता है। प्रकृति के बिना समस्त चेतन-अचेतन का अस्तित्व सम्भव नहीं है। धरती पर ऋतुओं का परिवर्तन क्रम से होना, पेड़पौधों का बढ़ना, पुष्पों का खिलना, खेतों का लहूलहाना आदि सारे कार्य-कलाप मानव की सुख-सुविधा के लिए होते हैं। यह प्रक्रिया मानव-जीवन या समस्त प्राणियों के लिए प्रकृति की बहुत बड़ी देन है। इस आधार पर स्पष्ट हो जाता है। कि प्रकृति मनुष्य की चिर-सहचरी तथा सदैव साथ निभाने वाली हितकारिणी है। ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ शीर्षक कविता में कवि पन्त ने प्रकृति का इसी रूप में चित्रण किया है।

प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति दायित्व – मनुष्य का प्रकृति से घनिष्ठ सम्बन्ध होने पर भी वह उसका शोषण करता है, मनचाहा विदोहन कर प्रदूषण फैलाता है। और पर्यावरण को जाने-अनजाने हानि पहुँचाता है। इस बात में पूरी सच्चाई है। अत: प्रकृति और पर्यावरण के प्रति हमारा यह दायित्व बनता है कि हमें प्रकृति की रक्षा करें, इसे सदैव स्वच्छ रखने का प्रयास करें, प्राकृतिक पदार्थों को स्वाभाविक रूप से विकसित होने दें। इस निमित्त वनावलियों को रोयें और उनकी सुरक्षा करें। वृक्षों-पादपों को अनावश्यक न काटें, प्राकृतिक जल-स्रोतों को स्वच्छ रखें तथा खनन के लालच में जल-स्रोतों को सूखने न दें। इस प्रकार हम प्रकृति और पर्यावरण के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह करते रहें।

प्रश्न 3.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर पन्त की काव्यगत विशेषताओं का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर पन्त की काव्यगत विशेषताओं का निरूपण भावपक्ष एवं कलापक्ष के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है
काव्यगत भावपक्ष – कवि पन्त ने अपनी कविताओं में प्रकृति का हृदयग्राही चित्रण किया है। प्रस्तुत कविता में छायावादी शैली में अचेतन पर चेतन का आरोप कर सुन्दर काल्पनिक-चित्र उपस्थित किया है। बादलों को माध्यम बनाकर इन्द्र इन्द्रजाल खेलता रहता है। पर्वत की नस-नस में उत्तेजना रहती है, जिससे झरने बहते रहते हैं। पर्वत तालाब रूपी दर्पण में अपना चेहरा देखता है तथा हजारों पुष्प रूपी नेत्रों से आकाश की ओर निहारता है। इस प्रकार कवि ने एक और प्रकृति का मानवीकरण किया है तथा उससे समस्त मानव-व्यापारों का चित्रण किया है, तो दूसरी ओर प्रकृति के प्रति आत्मीयता व्यक्त की है।  अतः भावपक्ष की दृष्टि से पन्त का काव्य कवि-प्रतिभा का उत्तम प्रतिफल है।

काव्यगत कलापक्ष – कवि पन्त ने अपनी कविताओं में सुकोमल भावों के अनुरूप कोमल-कान्त, प्रांजल, मधुर नाद, संगीतमयी और चित्रात्मक शब्दावली का प्रयोग किया है। तत्सम, प्रतीकात्मक, लाक्षणिक एवं बिम्बात्मक शब्द-चयन इनकी अन्यतम विशेषता है। पन्तजी ने सुगेय एवं तुकान्त छन्दों का प्रयोग किया है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, मानवीकरण आदि अलंकारों की छटा देखते ही बनती है। प्रस्तुत कविता में ये सभी विशेषताएँ सुस्पष्ट दिखाई देती हैं। इस आधार पर कहा जा सकता है कि पन्त का काव्य विविध विशेषताओं से मण्डित है।

व्याख्यात्मक प्रश्न –

1. मेखलाकार पर्वत ………….. है विशाल।
2. उड़ गया ………… जल गया ताल।
3. गिरि का गौरव ……… कुछ चिन्तापर।
उत्तर:
सप्रसंग व्याख्याएँ देखकर स्वयं लिखिए।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि पन्त किस काव्यधारा के प्रमुख स्तम्भ थे?
(के) प्रयोगवाद के
(ख) छायावाद के
(ग) प्रगतिवाद के
(घ) नवचेतनावाद के
उत्तर:
(ख) छायावाद के

प्रश्न 2.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता पन्तजी के किस काव्य-संग्रह से ली गई है?
(क) ‘ग्रन्थि’ से
(ख) ‘वीणा’ से
(ग) ‘गुंजन’ से
(घ) ‘पल्लव’ से
उत्तर:
(ग) ‘गुंजन’ से

प्रश्न 3.
पर्वत प्रदेश की पावस ऋतु में कवि को प्रकृति को वेश कैसा लगता है?
(क) आकर्षक
(ख) पल-पल परिवर्तित
(ग) आश्चर्यजनक
(घ) रपटीला
उत्तर:
(ख) पल-पल परिवर्तित

प्रश्न 4.
मेखलाकार पर्वत नीचे के ताल में अपने आकार को कैसे देख पाता है?
(क) सहस्र नेत्रों से
(ख) जलरूप दर्पण से
(ग) ताल की लहरों से
(घ) सहस्र-दृग-सुमनों से
उत्तर:
(घ) सहस्र-दृग-सुमनों से

प्रश्न 5.
कवि पन्त ने ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में ‘मोतियों की लड़ियों से सुन्दर बताया है
(क) ओस के कणों को
(ख) बादलों से झरती बूंदों को
(ग) झरनों की धाराओं को
(घ) खिले हुए फूलों को
उत्तर:
(ग) झरनों की धाराओं को

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पावस-ऋतु में ऊँचे पर्वत को देखकर कवि ने क्या कल्पना की है?
उत्तर:
कवि ने कल्पना की है कि पर्वत अपने ऊपर खिले हुए हजारों पुष्परूपी नेत्रों से नीचे ताल रूपी दर्पण में अपने महान् आकार देख रहा है।

प्रश्न 2.
पर्वतों पर उगे हुए वृक्ष कवि के मन में क्या भावना उत्पन्न करते
उत्तर:
वे वृक्ष कवि के मन में यह भावना उत्पन्न करते हैं कि मानो वे वृक्ष नहीं, पर्वतों के हृदय की उच्च आकांक्षाएँ बाहर आयी हुई हैं और शान्त नीले आकाश को निर्निमेष देख रही हैं।

प्रश्न 3.
निर्झरों को झरते देख कवि के मन में क्या-क्या कल्पनाएँ जागती हैं?
उत्तर:
उस दृश्य से कवि के मन में कल्पनाएँ जागती हैं कि पर्वतों की नसनस से उसका गौरव झर रहा है या आकाश से मोतियों की लड़ियाँ झरती हुई लटक रही हैं।

प्रश्न 4.
‘उठ रहा धुआँ, जल गया ताल।’ इसका कारण क्या है?
उत्तर:
तालाब या झील से भाप उठने लगी। अधिक भाप उठने से ऐसा लग रहा था कि तालाब जल रहा है, गर्म हो रहा है और उसका धुआँ उठ रहा है।

प्रश्न 5.
“दर्पण-सा फैला है विशाल” तथा ”मोती की लड़ियों-से सुन्दर” में प्रयुक्त अलंकार बताइये।
उत्तर:
इन वाक्यों में उपमा अलंकार का प्रयोग हुआ है। उपमा में सादृश्य-वर्णन किया जाता है, जिसमें दो पदार्थों की उपमेय-उपमान रूप में योजना रहती है।

प्रश्न 6.
“फड़का अपार वारिद के पर!” इसमें कवि ने क्या कल्पना की है?
उत्तर:
विशाल आकार के बादल रूपी पर्वत मानो आकाश में उड़ रहे हों और वे सघन बादलों के पंख फड़का कर आगे बढ़ रहे हों – कवि ने ऐसी कल्पना की है।

प्रश्न 7.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में किसका वर्णन किया गया है?
उत्तर:
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में पर्वतीय भू-भाग में वर्षा-ऋतु में होने वाले परिवर्तन तथा बरसात का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 8.
‘धंस गये धरा में सभय शाल।’ इस पंक्ति का आशय क्या है?
उत्तर:
मूसलधार वर्षा होने से शाल के बड़े-बड़े वृक्ष मानो भयभीत होकर धरती में धंस गये हैं, अर्थात् बादलों से घिर गये हैं।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“था इन्द्र खेलता इन्द्रजाल!” कवि ने इन्द्रजाल किसे कहा है और क्यों?
उत्तर:
कवि ने देवराज इन्द्र को ऐसा जादूगर बताया है, जो बादलों के माध्यम से जादू का खेल दिखा रहा था। इन्द्र को वर्षा का देवता माना जाता है, इन्द्र के निर्देश पर ही बादल उमड़ते-घुमड़ते और वर्षा करते हैं। वह बादलों के छोटे या बड़े अथवा विविध आकार बनाकर उनसे कभी तेज और कभी हल्की वर्षा करता है। बादल कभी बड़े बन जाते हैं और धरती के प्राकृतिक दृश्यों को ढक देते हैं, तो कभी छोटे बनकर आकाश में सरपट दौड़ने लगते हैं। इन्द्रधनुष की आभा से बादल रंग-बिरंगे बन जाते हैं तथा जहाज की तरह सारे आकाश की सैर करने लगते हैं। इस तरह इन्द्र बादलों के द्वारा इन्द्रजाल रचता है।

प्रश्न 2.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश की वर्षाऋतु के किन-किन दृश्यों का वर्णन किया है?
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में कवि ने पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु के विविध दृश्यों का वर्णन किया है। वर्षाकाल में वहाँ पर प्रकृति क्षण-क्षण में अपना रूप बदल देती है। कभी आकाश में विशालकाय बादल छा जाते हैं तो कभी आकाश साफ रहता है। वर्षा ऋतु में पर्वतों पर झरने पूरे वेग से बहते हैं। वहाँ पर कल-कल, झरझर की ध्वनि पूँजती रहती है। पर्वत के नीचे विशाल तालाब जलराशि से लबालब भर जाता है। पर्वतीय भूमि पर अनेक तरह के पुष्प खिल जाते हैं, पेड़ों पर हरियाली छा जाती है। बादल कभी तो प्राकृतिक दृश्यों को ढक देते हैं और कभी जादू की। तरह अपने विविध रूप दिखाते हैं। इस तरह वर्षा ऋतु में पर्वतीय प्रदेश की शोभा और भी आकर्षक बन जाती है।

प्रश्न 3.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने कल्पना-प्रवणता की सशक्त अभिव्यक्ति की है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ शीर्षक से स्पष्ट हो जाता है कि इसमें पहाड़ी प्रदेश में वर्षाऋतु के दौरान जो प्राकृतिक छटा दिखाई देती है, उसका चित्रण किया। गया है। इस चित्रण में कवि पन्त ने अपनी कल्पना-प्रवणता के माध्यम से प्रकृति के पल-पल बदलने वाले परिवेश का गत्यात्मक निरूपण किया है। पर्वतों से बहने वाले झरनों को कवि ने नस-नस में मद की उत्तेजना का संचार बताया है। वहाँ पर खिले हुए पुष्पों को नेत्र तथा ताल को दर्पण के रूप में प्रस्तुत कर कवि ने छायावादी शैली में कल्पनानुभूति में नवीनता, मौलिकता एवं प्रखरता का परिचय दिया है। बादलों को लेकर कवि पन्त ने सुन्दर कल्पनाएँ की हैं। इसमें कल्पना-प्रवणता की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है।

प्रश्न 4.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में प्रयुक्त अलंकार-सौष्ठव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्तुत कविता में मानवीकरण और उपमा अलंकार का प्रयोग विशेष रूप से हुआ है। इसमें पर्वत के नीचे फैले हुए तालाब को दर्पण से उपमित किया गया है। झरनों के प्रवाह को मोती की लड़ियों से और वृक्षों की ऊँचाई को मानव की उच्चाकांक्षाओं से उपमित किया गया है। ये सभी उपमाएँ सदृश-धर्म और रंगसाम्य से युक्त हैं। पर्वत नीचे ताल में अपना रूपाकार देख रहा है, झरने गिरि का गौरव-गान कर रहे हैं, वृक्ष आकाश की ओर झाँक रहे हैं तथा इन्द्र जलद-यान पर विचरण कर इन्द्रजाल खेल रहा है, ऐसे प्रयोग मानवीकरण के सुन्दर प्रयोग हैं। इनमें मानव-व्यापारों का सहज आरोपण हुआ है। अतः इसमें अलंकार-सौष्ठव भावानुरूप है।

RBSE Class 11 Hindi प्रज्ञा प्रवाह पद्य Chapter 7 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता के आधार पर पन्त के प्रकृतिचित्रण की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सामान्यतः साहित्य में प्रकृति-चित्रण की ये छह शैलियाँ प्रचलित रही हैं – आलम्बन रूप, उद्दीपन रूप, आलंकारिक रूप, उपदेशात्मक रूप, मानवीकरण रूप और रहस्यात्मक रूप। पन्त के काव्य में चित्रित प्रकृति के कोमल-परुष रूप के साथ ही ये सभी रूप देखने को मिलते हैं।

  1. आलम्बन रूप – प्रस्तुत कविता में कवि पन्त ने प्रकृति का आलम्बन रूप में सहजता से चित्रण किया है। यथा यह अंश देखिए
    “पावस ऋतु थी पर्वत-प्रदेश
    पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश!”
  2. उद्दीपन रूप – पन्त ने प्रकृति को सुख एवं दुःख दोनों स्थितियों में समान अनुभूति व्यक्त करने वाली बताया है। उदाहरण के लिए प्रकृति का सुरम्य रूप देखकर कवि की कल्पनाएँ उभर जाती हैं –
    “इस तरह मेरे चितेरे हृदय की !
    बाह्य प्रकृति बनी चमत्कृत चित्र थी !”
  3. उपदेशात्मक रूप – पन्त की अन्य कविताओं में यह विशेषता पर्याप्त विद्यमान है।
  4. आलंकारिक रूप – प्रस्तुत कविता में कवि ने उपमा, रूपक एवं मानवीकरण के द्वारा प्रकृति का सुन्दर अलंकरण किया है।

इसी प्रकार पन्त की कविताओं में अन्य विशेषताएँ भी दिखाई देती हैं।

प्रश्न 2.
‘पर्वत-प्रदेश में पावस’ कविता के मूल भाव एवं सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कविता का मूल भाव – ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता में कवि ने पर्वत प्रदेश की वर्षा ऋतु का वर्णन कोमल कल्पनाओं के साथ किया है। वर्षा काल में प्रकृति पल-पल में वेश बदल रही है। जलाशय या तालाब रूपी दर्पण में अपने पुष्प रूपी नेत्रों से पर्वत अपना रूपाकार देख रहा है। बादल अचल पर्वत की तरह लगता है, जो कि क्षण भर बाद, आकाश में उड़ता हुआ दिखाई देता है। बादलों की ओट में सारा परिवेश अदृश्य बन जाता है और झरनों के मधुर स्वर उभर रहे हैं। बादल आकाश में स्वेच्छा से आकार धारण कर रंग-बिरंगी आभा से इन्द्रजाल दिखा रहे हैं। इस प्रकार प्रस्तुत कविता का मूलभाव अतीव मनोरम दिखाई देता है।

चित्रण-सौन्दर्य – प्रस्तुत कविता में सामान्य प्राकृतिक परिवेश को कवि ने अपनी कल्पना से अलंकृत एवं उद्दीपन रूप में चित्रित किया है। पर्वतीय क्षेत्रों में प्रायः बादल घिरे रहते हैं। अबोध बालिका बादलों की घटाओं को देखकर उस पर्वत को बादलों का घरे मान लेती है। वर्षा ऋतु में पर्वत – प्रदेश में बादल अनेक तरह से क्रीड़ा करते दिखाई देते हैं, रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं, झरनों का निनाद सुन्दर संगीत पैदा करता रहता है। ऐसे सुन्दर प्राकृतिक दृश्य को देखकर कवि को शैशव की सुखद स्मृति हो आती है। प्रस्तुत कविता में ऐसे चित्रण के लिए मानवीकरण की छायावादी शैली अपनायी गई है जो कि भाव-प्रवणता एवं कल्पना-सौन्दर्य के अनुरूप है।

रचनाकार का परिचय सम्बन्धी प्रश्न –

प्रश्न 1.
कवि सुमित्रानन्दन पन्त का साहित्यिक परिचय दीजिए।
उत्तर:
व्यक्तित्व परिचय – कविवर पन्त का जन्म उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले में कोसानी नामक गाँव में हुआ। इनका बचपन का नाम गुसाईंदत्त था, जन्म लेते ही माता का देहान्त होने से इनका झुकाव प्रकृति की ओर हो गया था। इनके कविकर्म का आरम्भ सन् 1918 में हुआ। प्रारम्भ में इनकी रचनाएँ ‘सरस्वती’ में प्रकाशित होती रहीं। सन् 1920 में इनकी पहली काव्य-कृति ‘उच्छ्वास’ नाम से प्रकाशित हुई। इन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा के अनुसार नाटक, आत्मकथा एवं कहानियाँ आदि लिखीं। इन्हें अनेक काव्य-कृतियों पर पुरस्कार प्राप्त हुए। चिदम्बरा’ काव्य-संग्रह पर इन्हें ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ का पुरस्कार मिला। भारत सरकार ने इन्हें ‘पद्मभूषण’ उपाधि से अलंकृत किया।

कृतित्व परिचय – कवि,पन्त की काव्य-साधना छायावादी सौन्दर्य युग, प्रगतिवादी युगे और आध्यात्मिक युग – इन तीन काल-खण्डों में विभक्त मानी जाती है। इन्होंने पर्याप्त मात्रा में साहित्य-सृजन किया। इन्होंने प्रगतिवाद के मुखपत्र ‘रूपाभ’ का सम्पादन भी किया। इनकी काव्य-कृतियाँ इस प्रकार हैं – ‘उच्छ्वास’, ‘ग्रन्थि’, ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘गुंजन’, ‘युगान्त’, ‘युगवाणी’, ‘ग्राम्या’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘उत्तरा’, ‘स्वर्णधूलि’, ‘रजतशिखर’, ‘वाणी’, ‘अणिमा’, ‘चित्रांगदा’, ‘सत्यकाम’, ‘तारापथ काव्य-संग्रह तथा ‘लोकायतन’ महाकाव्य। ‘चिदम्बरा उनकी कुछ चुनी हुई कविताओं का संकलन है। पाँच कहानियाँ इनका कथा-संकलन है।

सुमित्रानन्दन पन्त कवि-परिचय-

सुमित्रानन्दन पन्त का जन्म उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले में स्थित कौसानी गाँव में सन् 1900 ई. में हुआ। इन्होंने जिस मनोरम प्राकृतिक परिवेश में जन्म लिया और जिसमें ये बड़े हुए, उसका प्रभाव इनकी रचनाओं पर पड़ा। फलस्वरूप ये शान्त, सुन्दर एवं शिवमय प्रकृति के उपासक और मानवता के लिए समर्पित बने। अपनी कोमल भावनाओं, प्रकृति-प्रेम, मानवतावाद और समन्वय भावना के साथ ही छायावादी-प्रगतिवादी चेतना रखने से इनका आधुनिक कवियों में शीर्षस्थ स्थान माना जाता है। पन्तजी ने जब कॉलेज में प्रवेश लिया तब गाँधीजी का असहयोग आन्दोलन चल रहा था। उस आन्दोलन में भाग लेने के कारण इन्होंने कॉलेज छोड़ा तथा स्वतन्त्र रूप से साहित्य-साधना में प्रवृत्त हुए। प्रारम्भ में ये छायावाद के प्रमुख स्तम्भ रहे तथा बाद में प्रगतिवाद एवं नव-मानवतावाद से जुड़े रहे। इनकी काव्य-साधना काफी व्यापक है।

पाठ-परिचय-
प्रस्तुत पाठ में ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ शीर्षक कविता पन्तजी के ‘गुंजन’ काव्य-संग्रह से संकलित है। इसमें छायावादी शैली में प्रकृति का चित्रण किया गया है। प्रकृति अनादिकाल से मानव की चिर-सहचरी रही है। प्राकृतिक सौन्दर्य हमेशा ही मनुष्य को गुदगुदाता रहता है। प्रस्तुत कविता में पर्वतीय प्रदेश में वर्षा-ऋतु के दौरान बिखरने वाली प्राकृतिक छटा का मधुर कल्पनाओं के साथ चित्रण किया गया है।

सप्रसंग व्याख्याएँ पर्वत प्रदेश में पावस

(1) पावस ऋतु थी, पर्वत प्रदेश,
पल-पल परिवर्तित प्रकृति-वेश!
मेखलाकार पर्वत अपार
अपने सहस्र दृग-सुमन फाड़
अवलोक रहा है बार-बार
नीचे जल में निज महाकार,
जिसके चरणों में पला ताल
दर्पण-सा फैला है विशाल!

कठिन शब्दार्थ-पावस = वर्षा ऋतु। मेखलाकार = करधनी के आकार का, गोल आकार वाला। सहस्र = हजार। दृग-सुमन = फूल रूपी आँखें। अवलोक = देखकर। महाकार = विशाल आकार।

प्रसंग-यह अवतरण कवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा रचित ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसमें पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा ऋतु के आगमन से जो प्राकृतिक सौन्दर्य बढ़ जाता है, उसका चित्रण छायावादी शैली में किया गया है।

व्याख्या-वर्षा ऋतु का वर्णन करते हुए कवि पन्त कह रहे हैं कि पर्वतीय प्रदेश में वर्षा-ऋतु प्रारम्भ हो गई। वहाँ पर प्रकृति क्षण-क्षण में नये रूप बदल रही थी। कभी बादल आकाश में छा जाते थे, तो कभी तेज वर्षा होने लगती थी ! पर्वत-माला मेखला की तरह गोलाकार एवं विस्तृत आकार की थी, उसका ओरछोर अपार था। पर्वत पर अगणित पुष्प खिल रहे थे। पर्वत की तलहटी में एक विशाल तालाब था, जिसका स्वच्छ जल दर्पण-सा प्रतीत होता था। पर्वत पर खिले हुए पुष्पों का प्रतिबिम्ब उस तालाब पर पड़ रहा था। इसलिए कवि कल्पना करता है कि जैसे पर्वत फूलों रूपी अपने अगणित नेत्रों को फाड़कर नीचे रखे गये उस जल रूपी दर्पण में अपने महान् आकार को देख रहा हो।

विशेष-
(1) पर्वत पुष्प-रूपी नेत्रों से सरोवर-रूपी दर्पण में अपना विशाल रूप देख रहा था। इसमें मानवीकरण रूप में प्रकृति का चित्रण किया गया है।
(2) कवि-कल्पना एवं प्राकृतिक शोभा का चित्रण मनोरम हुआ है।
(3) कवि ने अनुप्रास, रूपक और उपमा अलंकारों के साथ मानवीकरण का प्रयोग किया है। भाषा तत्सम-प्रधान है।

(2)
गिरि का गौरव गाकर झर्-झर्
मद में नस-नस उत्तेजित कर
मोती की लड़ियों-से सुन्दर
झरते हैं झाग-भरे निर्झर!
गिरिवर के उर से उठ-उठकर
उच्चाकांक्षाओं-से तरुवर
हैं झाँक रहे नीरव नभ पर
अनिमेष, अटल, कुछ चिन्तापर!

कठिन शब्दार्थ-निर्झर = झरने। मर्द = नशा, मस्ती। उर = हृदय। नीरव = शान्त, ध्वनिरहित। अनिमेष = अपलक, एकटेक। चिन्तापर = चिन्तित।

प्रसंग-यह अवतरण कवि सुमित्रानन्दन पन्त की ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता से लिया गया है। इसमें पूर्व की भाँति पर्वतीय क्षेत्रों में वर्षा ऋतु का वर्णन किया गया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करता है कि वर्षा ऋतु में पर्वत से निकलने वाले झरने निरन्तर बहते रहते हैं। उन झरनों का झर-झर शब्द स्पष्ट सुनाई देता है। उस झरझर की ध्वनि से सुनने वालों की नसों में उत्तेजना दौड़ जाती है। भाव यह है कि पर्वतों से पूरे वेग एवं आह्लाद के साथ झरने बहने लगते हैं, तो उन्हें देखकर दर्शकों के मन में भी आनन्द और स्फूर्ति की तरंग दौड़ने लगती है। उन झरनों के जल से झाग उत्पन्न हो रहे थे। अतः झरनों की झागयुक्त जलधाराएँ ऐसी लगने लगीं कि जैसे मोतियों की सुन्दर लड़ियों वाली माला ऊपर से नीचे की ओर लटक रही हो। वे झरने झर-झर शब्द कर रहे थे, उस कारण ऐसे प्रतीत हो रहे थे कि मानो वे पर्वत की महिमा का बखान कर रहे हों। उस विशाल पर्वत के हृदय अर्थात् जमीन से बड़े-बड़े वृक्ष ऊपर उठ रहे थे। मानो वे महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति के मन में उठने वाली आकांक्षाओं से प्रतिस्पर्धा या होड़ कर रहे थे। वे सभी वृक्ष ऐसे लग रहे। थे कि जैसे किसी भारी चिन्ता से ग्रस्त होकर अपलक एवं स्थिर नेत्रों से शान्त आकाश की ओर झाँक रहे हों।

विशेष-
(1) छायावादी शैली में पर्वतीय भूभाग, वहाँ पर उगे हुए वृक्षों एवं झरने आदि का संश्लिष्ट चित्र उपस्थित किया गया है।
(2) वृक्षों का अपलक ऊपर देखते रहने का वर्णन कवि की रहस्यवादी भावना को पुष्ट करता है।
(3) अनुप्रास, उपमा और मानवीकरण अलंकार प्रयुक्त हैं। छन्द तुकान्त सुगेय है।

(3)
-उड़ गया, अचानक लो भूधर!
फड़का अपार वारिदे के पर!
रव-शेष रह गए हैं निर्झर!
है टूट पड़ा भू पर अम्बर!
धंस गए धरा में सभय शाल!
उठ रहा धुआँ, जल गया ताल!
-यों जलद यान में विचर-विचर!
था इन्द्र खेलता इन्द्रजाल!
इस तरह मेरे चितेरे हृदय की!
बाह्य प्रकृति बनी चमत्कृत चित्र थी!
सरल शैशव की सुखद सुधि-सी वही!
बालिका मेरी मनोरम मित्र थी!

कठिन शब्दार्थ-भूधर = पर्वत। वारिद = बादल। पर = पंख। अम्बर = आकाश। शाल = एक सीधा ऊँचा वृक्ष। जलद-यान = बादल रूपी जहाज। चितेरे = कल्पनाशील। शैशव = बाल्यकाल।

प्रसंग-प्रस्तुत अवतरण कवि पन्त द्वारा रचित ‘पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने पर्वतीय भागों में बादलों के उमड़ने-घुमड़ने, झरनों के बहने और तालाबों के भर जाने का सुन्दर अनुभूतिमय वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि वर्णन करता हैं कि वर्षा ऋतु में बादल आकाश में इस तरह उड़ने लगते हैं कि मानो कोई विशाल पर्वत उड़ रहा है और उसने पारदर्शी सफेद बादलों के पंख धारण कर रखे हैं, जिन्हें वह फड़का रहा है। बादलों के बरस जाने के बाद अर्थात् वर्षा बन्द हो जाने पर भी झरनों के झर-झर शब्द निरन्तर सुनाई दे रहे हैं और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आकाश टूटकर धरती पर गिर रहा है।

बादलों की विशाल घटाओं के कारण शाल के बड़े-बड़े वृक्ष ऐसे अदृश्य हो गये हैं कि मानो वे भयभीत होकर धरती में धंस गये हैं। पर्वत की तलहटी में विशाल तालाब से नये बादल बनकर उठ रहे हैं। ऐसा लगता है कि मानो तालाब जल रहा है और उससे धुआँ ऊपर की ओर उठ रहा है। इस प्रकार बादल रूपी जहाज में विचरण करता हुआ वर्षा का देवता इन्द्र जादू के अनेक खेल खेल रहा है।

कवि कहता है कि पर्वतीय प्रदेश में वर्षा ऋतु के प्राकृतिक दृश्यों को देखकर मेरे हृदय में अनेक कल्पनाएँ साकार होने लगीं और बाहरी प्रकृति के अनेक चमत्कारी चित्र उपस्थित होने लगे। उस समय एक बालिका का सहज स्मरण हो आया, जो कि मेरे बाल्यकाल की सहज सुखद स्मृति जैसी थी। आशय यह है कि बाल्यकाल में पर्वतीय प्रदेश की वर्षा ऋतु का स्मरण होने से मन को अतीव आनन्द की अनुभूति हुई। प्रकृति का वह चित्र आज भी अतीव चमत्कारी कल्पना जैसा लगता है।

विशेष-
(1) प्राकृतिक दृश्य को लेकर कवि ने सुन्दर कल्पना की है। ऊँचे वृक्षों को धरती के हृदय से उठने वाली उच्च आकांक्षाएँ बनाकर कवि ने नयी दृष्टि दी है।
(2) अनुप्रास, पुनरुक्तिप्रकाश, उपमा, उत्प्रेक्षा व मानवीकरण अलंकार प्रयुक्त
(3) शब्द-चित्र अत्यन्त मनोरम व्यक्त हुआ है।

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