RBSE Class 11 Hindi संवाद सेतु Chapter 1 पत्रकारिता का इतिहास

Rajasthan Board RBSE Class 11 Hindi संवाद सेतु Chapter 1 पत्रकारिता का इतिहास

पत्रकारिता का इतिहास पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व में पत्रकारिता का आरम्भ कहाँ से हुआ?
उत्तर:
विश्व में पत्रकारिता का आरम्भ चीन से हुआ। सन् 1340 ई. में चीन में मुद्रण कला का आविष्कार होने से पहला पत्र ‘पीकिंग गजट’ अथवा ‘लिंचाओ’ का प्रकाशन हुआ, भले ही यह पत्र हस्तलिखित माना जाता है। इसके बाद विश्व में सबसे पहला समाचार-पत्र यूरोप से निकला। हालैण्ड से सन् 1526 में, इंग्लैण्ड से सन् 1603 में, जर्मनी से सन् 1610 में फिर इंग्लैण्ड से सन् 1622 और 1666 में समाचार-पत्र प्रकाशित हुए। इस प्रकार पत्रकारिता की आरम्भ चीन के बाद यूरोप से ही हुआ। वहाँ से लन्दन गजट’, ‘पोस्टमैन’, ‘डेली करेंट’ आदि दैनिक तथा साप्ताहिक समाचार-पत्रों का प्रकाशन किया गया।

प्रश्न 2.
विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता का जन्म कब हुआ?
उत्तर:
विदेशों में प्रवासी भारतीयों ने हिन्दी पत्रकारिता का प्रसार किया। विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता का जन्म सन् 1883 में माना जाता है। कहा जाता है कि लन्दन से ‘हिन्दुस्तान’ नामक त्रैमासिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था, जो कि हिन्दी, अंग्रेजी एवं उर्दू में मिश्रित रूप से दो वर्ष तक छपता रहा, फिर सन् 1885 में। वह कालालंकर (अवध) से प्रकाशित होने लगा। सन् 1857 की क्रान्ति का प्रभाव पड़ने पर लाला हरदयाल ने ओरोगन राज्य के पोर्टलैण्ड में हिन्दी एसोसियेशन’ नामक संस्था की स्थापना की। इसी क्रम में अमेरिका से प्रवासी भारतीयों ने सन् 1913 में ‘गदर’, सन् 1908 में ‘फ्री हिन्दुस्तान’, सन् 1909 में ‘स्वदेश सेवक’ तथा लन्दन से ‘सन्मार्ग’ एवं ‘प्रवासिनी’ नामक पत्रों का प्रकाशन हुआ। इस प्रकार इंग्लैण्ड एवं अमेरिका में हिन्दी पत्रकारिता का सर्वप्रथम प्रसार हुआ।

प्रश्न 3.
भारत में पहला प्रिंटिंग प्रेस कहाँ स्थापित हुआ था?
उत्तर:
सभी इतिहासकारों का मत है कि भारत में मुद्रण कला का आगमन 8 सितम्बर, 1556 को हुआ। पुर्तगाल से एक प्रिंटिंग प्रेस अबीसीनिया भेजा गया था। उन दिनों स्वेज नहर नहीं बनने से अबीसीनिया के लिए भारत होकर जाना पड़ता था। जब अबीसीनिया के लिए भेजा गया प्रेस गोवा पहुँचा, तो राजनीतिक कारणों से उसे वहीं पर रोक दिया गया तथा गोवा में ही उस प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई। इस प्रकार भारत में मुद्रण कला के माध्यम से प्रकाशन के कार्य की जन्मभूमि गोवा को ही माना जाता है। गोवा के बाद मुम्बई में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की गई, जिसकी बाद में भारत के अन्य भागों में भी स्थापना की गई और देवनागरी लिपि के टाइप को प्रयोग किया जाने लगा।

प्रश्न 4.
उन्नीसवीं सदी भारतीय पत्रकारिता में क्यों महत्त्वपूर्ण है?
उत्तर:
सन् 1780 में भारत का पहला पत्र ‘बंगाल गजट ऑफ कलकत्ता जनरल एडव्हरटाईजर’ नाम से प्रकाशित हुआ, जिसमें अंग्रेज शासन की त्रुटियों की आलोचना की गई थी। उससे प्रभावित होकर तथा अंग्रेज शासन की गलत नीतियों को लेकर राजा राममोहन राय के प्रयासों से सन् 1818 में ‘बंगाल गजट’, सन् 1820 में ‘संवाद कौमुदी’ तथा बाद में ‘मिरातुल’ समाचार-पत्र प्रारम्भ हुए। सन् 1826 में कलकत्ता से पं. युगल किशोर शुक्ल ने ‘उदन्त मार्तण्ड’ नामक हिन्दी का पहला समाचार-पत्र प्रकाशित किया। इस पत्र के प्रकाशन से भारतीय पत्रकारिता में क्रान्ति का सूत्रपात हुआ। भले ही उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन रोका गया, परन्तु इसके बाद भारत में अनेक पत्र प्रकाशित होने लगे। फिर 1857 की क्रान्ति के बाद भारतीय पत्रकारिता को खूब गति मिली, जिससे स्वतन्त्रता आन्दोलन का प्रसार-प्रचार हुआ। इस तरह उन्नीसवीं सदी में भारतीय पत्रकारिता में नयी चेतना का संचार हुआ और इससे पूरे भारत में नवजागरण का सूत्रपात हुआ।

प्रश्न 5.
हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में गाँधी युग कब से शुरू हुआ?
उत्तर:
हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में सन् 1920 से नया मोड़ आया। तब से ही गाँधी युग शुरू हुआ। क्योंकि तब गाँधीजी ने स्वतन्त्रता आन्दोलन को गति देने के लिए अनेक प्रयोग किये। उन्होंने ‘यंग इण्डिया’, ‘नवजीवन’ और ‘हरिजन’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। गाँधीजी ने ‘नवजीवन’ गुजराती में निकाला। हिन्दी में इसको नाम ‘हिन्दी नवजीवन’ रखा। फिर उन्होंने सन् 1933 में ‘हरिजन सेवक’ पत्र निकाला तथा, ‘यंग इण्डिया’ का हिन्दी संस्करण ‘तरुण भारत’ नाम से प्रकाशित किया। इस प्रकार हिन्दी पत्रकारिता के द्वारा भारत में सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना का जागरण करने में गाँधीजी का विशेष योगदान माना जाता है तथा सन् 1920 से पत्रकारिता के क्षेत्र में गाँधी युग का आरम्भ माना जाता है।

प्रश्न 6.
स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी पत्रकारिता का सबसे सकारात्मक पहलू क्या है?
उत्तर:
स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी पत्रकारिता का सबसे सकारात्मक पहलू यह है कि इसे सामाजिक, सांस्कृतिक एवं राजनीतिक चेतना का वाहक माना गया है। अब ज्ञानविज्ञान, साहित्य और संस्कृति, तकनीक और राष्ट्र-निर्माण की नयी ललक हिन्दी पत्रकारिता के मूल विषय बन गये हैं। अब पत्रकारिता की प्रकृति एवं स्वरूप में बदलाव आ गया है। वर्तमान में पत्रकारिता को लोकतन्त्र का चतुर्थ स्तम्भ माना जाता है। इस प्रकार समाज एवं राष्ट्रहित को लेकर सजगता रखने की उत्कट चेतना हिन्दी पत्रकारिता का सकारात्मक पहलू मानना उचित है।

पत्रकारिता का इतिहास अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न 1.
‘पत्रकारिता का इतिहास’ अध्याय का उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
मानव सामाजिक प्राणी है और समाज में सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए जिस माध्यम को मुख्यतया अपनाया गया, वह पत्रकारिता है। विश्व में पत्रकारिता का उद्भव एवं विकास बड़े रोचक ढंग से हुआ है। पहले मुद्रण कला का विकास हुआ, फिर धार्मिक प्रकाशन पर जोर दिया गया। इसी क्रम में शासकों के मनमाने आचरण एवं गलत नीतियों का विरोध करने के लिए पत्रकारिता को अपनाया गया। भारत में अंग्रेजों की हुकूमत के विरोध में समाचार-पत्रों को माध्यम बनाकर अनेक आन्दोलन चलाये गये। इससे लोकतन्त्र को बल मिला, तो नवजागरण की चेतना का प्रसार भी हुआ। प्रस्तुत अध्याय का उद्देश्य समाचार-पत्रों के इसी क्रान्तिकारी इतिहास की जानकारी देना है, साथ ही हिन्दी में पत्रकारिता के विकास-विस्तार को सर्वेक्षणात्मक विवरण उपस्थित कर समाचार-पत्रों का महत्त्व निरूपित करना है।

प्रश्न 2.
पत्रकारिता की परिभाषा एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिये।
उत्तर:
पत्रकारिता सूचना का एक माध्यम है, परन्तु साथ ही यह मानव की जिज्ञासाओं एवं सामाजिक चेतना के प्रसार या समाधान का एक सशक्त माध्यम भी है। वर्तमान में अपनी निष्पक्षता एवं निर्भीकता के कारण पत्रकारिता को लोकतन्त्र का सशक्त माध्यम माना जाता है। पत्रकारिता की परिभाषा एवं स्वरूप को लेकर अनेक विद्वानों ने अपने-अपने मत व्यक्त किये हैं। अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार एडीसन ने पत्रकारिता के विषय में कहा कि “पत्रकारिता से अधिक मनोरंजक, अधिक चुनौतीपूर्ण, अधिक रसमयी और अधिक जनहितकारी कोई दूसरी बात मुझे नहीं दिखायी देती।” डॉ. हरिमोहन का मत है कि ‘पत्रकारिता नवीनतम घटनाओं की जानकारी एवं विचारों को सावधानीपूर्वक चुनकर, उनका मूल्यांकन कर, यथावश्यक उनका विश्लेषण या उनकी समीक्षा करते हुए किसी भी तरह वे संचार माध्यम (मुद्रित अथवा श्रव्य-दृश्य) की सहायता से जन-जन तक पहुँचाने की प्रक्रिया है।”

प्रश्न 3.
कागज एवं मुदण-कला के आविष्कार एवं विकास पर संक्षेप में टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यह सर्वमान्य मत है कि कागज और मुद्रण कला का आविष्कार सर्वप्रथम चीन में हुआ। चीन में सन् 1340 में मुद्रित समाचार-पत्र ‘लिंचाओ’ का प्रकाशन हुआ, जिसे ‘बीजिंग गजट’ भी कहा गया। फिर जर्मनी के गुटेनबर्ग नामक व्यक्ति ने मुद्रण कला का परिष्कार किया। सन् 1440 में जर्मनी (यूरोप) में पहली प्रेस की स्थापना हुई। इसी क्रम में कैक्टसन ने इंग्लैण्ड में सन् 1477 में प्रेस की स्थापना की। यूरोप के अन्य देशों में अर्थात् हालैण्ड, स्वीडन, जर्मनी, रूस, फ्रांस आदि में मुद्रण कला का विकास हुआ, जिससे समाचार-पत्रों के प्रकाशन के साथ ही धार्मिक पुस्तकों का प्रकाशन भी हुआ। इसके बाद अमेरिका, अफ्रीका एवं एशियाई देशों में मुद्रण कला का प्रसार एवं विकास हुआ। भारत में पहला प्रेस 8 सितम्बर, 1556 में गोवा में स्थापित हुआ।

प्रश्न 4.
विश्व का प्रथम दैनिक एवं व्यावसायिक समाचार-पत्र कहाँ से प्रकाशित हुआ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विश्व का पहला समाचार-पत्र ‘लिंचाओ’ चीन में सन् 1340 ई. में प्रकाशित हुआ। विश्व का सबसे पुराना नियमित समाचार-पत्र स्वीडन का ‘पोस्ट ऑफ इनरिक्स ट्रिडनिंगर’ था, जिसे स्वीडिश अकादमी ने सन् 1644 में छापना शुरू किया था। विश्व का पहला दैनिक समाचार-पत्र लन्दन से सन् 1772 में प्रकाशित ‘मार्निग पोस्ट’ था। इसके कुछ दिनों बाद लन्दन से ही ‘टाइम्स’ नामक समाचार-पत्र प्रकाशित होने लगा। विश्व का पहला व्यावसायिक समाचार-पत्र 8 जनवरी, 1658 में हालैण्ड से ‘बीकेलिक कुरंत बात यूरोप’ नाम से प्रारम्भ हुआ था। वर्तमान में इसका नाम ‘हालैक्स दोगब्लेडे हारलमेशे कुरंत’ है। हिन्दी का पहला समाचार-पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ 30 मई, 1826 को कलकत्ता से प्रकाशित हुआ।

प्रश्न 5.
आधुनिक विश्व की जन-क्रान्तियों में पत्रकारिता का क्या योगदान रहा?
उत्तर:
आधुनिक काल में विश्व के तमाम देशों में जो जन-क्रान्तियाँ तथा स्वाधीनता आन्दोलन हुए, उन्हें गति देने में पत्रकारिता का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा। अमेरिका की आजादी की लड़ाई हो या भारत का स्वाधीनता संग्राम हो, अफ्रीका में जातीय स्वतन्त्रता का मोर्चा हो, चाहे एशियाई देशों के आन्तरिक मसले हों, हर जगह पत्रकारिता ने राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर से ऊपर उठकर वैश्विक दृष्टिकोण सामने रखा और स्वतन्त्र जन-चेतना की अभिव्यक्ति को बढ़ावा दिया। पिछली सदी में अनेक देश उपनिवेशवाद से मुक्त हुए, दासता एवं गुलामी से मुक्त हुए, उन्हें भी पत्रकारिता से अपार सहायता एवं नैतिक सहयोग प्राप्त हुआ है। विश्व के देशों में लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना एवं संचालन में पत्रकारिता का योगदान प्रशस्य माना जाता है।

प्रश्न 6.
प्राचीन गणराज्यों में सूचनाओं का आदान-प्रदान किस प्रकार होता था? बताइए।
उत्तर:
इतिहास में ऐसे अनेक प्रमाण मिलते हैं कि प्राचीन काल में रोमन गणराज्य के उदय के साथ सूचनाओं का आदान-प्रदान पत्रकारिता की तरह होता था। उस समय शासक-मण्डल के पास ऐसे संवाद लेखक होते थे, जो हाथ से समाचार लिखकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजते थे। रोमन साम्राज्य में संवाद-लेखकों की व्यवस्था के प्रमाण मिलते हैं। इसके बाद जूलियस सीजर ने 60 ई.पूर्व ‘एक्टा डोयना’ नाम से दैनिक बुलेटिन निकाला, जो राज्य की जरूरी सूचनाओं का एक हस्तलिखित पोस्टर होता था। भारतीय इतिहास में सम्राट अशोक ने सुदृढ़ शासन-व्यवस्था बनाये रखने के लिए अनेक प्रयास किये। उस समय उपयोगी सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए संवाद-दूतों की व्यवस्था थी। साथ ही अनेक स्थानों पर शिलालेखों के द्वारा शासनादेश प्रसारित करने की परम्परा थी।

प्रश्न 7.
पत्रकारिता के विकास में इंग्लैण्ड के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
इतिहासकारों का मत है कि इंग्लैण्ड में कैक्सटन द्वारा सन् 1477 में प्रेस की स्थापना करने से वहाँ पर पत्रकारिता के क्षेत्र में नये रक्त का संचार हुआ। उपलब्ध प्रमाणों के अनुसार सन् 1561 में ‘न्यूज प्वाइंट ऑफ केन्ट’ नाम से एक पेज का पत्र प्रकाशित हुआ। दूसरा पत्र सन् 1575 में ‘न्यू न्यूज’ नाम से छपा। फिर 1603 में एक छोटे आकार का समाचार-पत्र निकला। सन् 1620 में लन्दन से डच न्यूज बीट्स’ का प्रकाशन हुआ। फिर 1622 में ‘वीकली न्यूज’ पत्र छपा तथा 1666 में ‘लन्दन गजट’ प्रकाशित हुआ जो सप्ताह में दो बार छपता था। सन् 1622 में ही इंग्लैण्ड से पोस्टमैन’ नाम से पहला साप्ताहिक समाचार-पत्र निकली। इसके बाद ‘डेली करेन्ट’, ‘गार्जियन’, ‘डेली मेल’, ‘डेली टेलीग्राफ’, ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ तथा ‘संडे टाइम्स’ आदि अनेक पत्रों का प्रकाशन हुआ। इस प्रकार पत्रकारिता के विकास में इंग्लैण्ड का विशेष योगदान रहा।

प्रश्न 8.
अविभाजित भारत के लाहौर से किन-किन पत्रों का प्रकाशन हुआ?
उत्तर:
अविभाजित भारत में पत्रकारिता की दृष्टि से लाहौर का विशेष स्थान रहा। वहाँ पर हिन्दी और संस्कृत के साथ पत्रकारिता को खूब अपनाया गया। लाहौर से उस समय ‘विश्वबन्धु’, ‘आर्य बन्धु’, ‘आर्य’, ‘आर्य जगत’, ‘शान्ति’, सुधाकर’, ‘क्षत्रिय’, ‘मित्र विलास’, ‘बूढा दर्पण’, ‘आकाशवाणी’ आदि पत्र प्रकाशित हुए। सन् 1914 में श्रीसन्तराम के सम्पादन में ‘आर्यप्रभा’ का प्रकाशन हुआ, इसके साथ ही उन्होंने ‘उषा’ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया। सन् 1927 में वहाँ से हिन्दी. मिलाप’ का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया, जो आजादी के बाद सन् 1949 में जालन्धर से प्रकाशित होने लगा। इस प्रकार अविभाजित भारत में लाहौर न केवल शिक्षा का केन्द्र रहा अपितु अनेक पत्रों के प्रकाशन से पत्रकारिता का गढ़ भी रहा।

प्रश्न 9.
भारतीय भाषा में पत्रकारिता के लिए राजा राममोहन राय का योगदान स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय भाषा में पत्रकारिता के लिए राजा राममोहन राय को पत्रकारिता का स्तम्भ कहा जाता है। उनके प्रयासों से सन् 1818 में ‘बंगाल गजट’ और 1820 में ‘संवाद कौमुदी’ तथा बाद में ‘मिरातुल’ अखबार प्रारम्भ हुए। उन्होंने बांग्ला भाषा के पत्र ‘संवाद कौमुदी’ में अंग्रेज शासन के विरुद्ध आवाज उठाई। परिणामस्वरूप सरकार ने इस पत्र के प्रकाशन पर रोक लगा दी। इसी घटना से सरकार से पत्रकारिता का संघर्ष प्रारम्भ हुआ। राजा राममोहन राय संघर्षशील व्यक्ति थे। वे अंग्रेज सरकार से नहीं दबे तथा जनता के समक्ष पत्रकारिता के माध्यम से स्वमत की अभिव्यक्ति करते रहे। उन्होंने सन् 1829 में कलकत्ता से ही ‘बंगदूत’ पत्र का प्रकाशन किया। इस प्रकार बंग्ला भाषा में पत्रकारिता का प्रसार करने में राजा राममोहन राय का विशेष योगदान रहा।

प्रश्न 10.
हिन्दी भाषा में प्रकाशित आरम्भिक समाचार-पत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति से एक सदी पूर्व हिन्दी भाषा का पहला पत्र बनारस अखबार’ सन् 1845 में कलकत्ता से प्रकाशित हुआ। इससे पूर्व कलकत्ता से ही सन्। 1826 में ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन हुआ, परन्तु यह सन् 1827 से छपना बन्द हो गया। सन् 1846 में कलकत्ता से ‘मार्तण्ड’ नामक पत्र का प्रकाशन हुआ। राजा राममोहन राय का बंगदूत’ भी हिन्दी में ही प्रकाशित हुआ। इसी अवधि में ‘सद्धर्मप्रचारक’, ‘प्रजामित्र’, ‘ज्ञानदीप’ आदि पत्रों का प्रकाशन हुआ। सन् 1854 में कलकत्ता से ही हिन्दी के दैनिक पत्र ‘समाचार सुधावर्षण’ का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। बाद में यह पत्र बांग्ला भाषा में भी छपने लगा। इसी क्रम में सन् 1848 में इन्दौर से हिन्दी और उर्दू में ‘मालवा समाचार का प्रकाशन होने लगा और सन् 1950 में बनारस से बांगला व हिन्दी में सुधाकर’ नामक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इस। प्रकार इन सभी पत्रों के प्रकाशन से भारत में नवजागरण का प्रसार हुआ।

प्रश्न 11.
बीसवीं सदी के प्रारम्भ में भारत में पत्रकारिता की क्या स्थिति रही? बताइये।
उत्तर:
बीसवीं सदी के प्रारम्भ में लार्ड कर्जन ने भारतीय चेतना को खत्म करने के लिए दमनकारी नीति का सहारा लिया। उसने सन् 1905 में बंगाल का विभाजन कर डाला। फलस्वरूप उसकी नीतियों का जमकर विरोध हुआ और बंगाल के लोग एकजुट हो गये, जिससे राष्ट्रीय आन्दोलन की गति और तेज हो गई। उस समय विपिनचन्द्र पाल, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी आदि ने पत्रकारिता के माध्यम से पुनर्जागरण का प्रसार किया। इधर लोकमान्य तिलक ने ‘मराठा’ और ‘केसरी’ नामक पत्रों का प्रकाशन प्रारम्भ किया। उनके ‘केसरी’ पत्र को स्वर उग्र था। इसी काल में महावीरप्रसाद द्विवेदी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से भारतीय पत्रकारिता को सँवारने का कार्य किया। इसी दौरान हिन्दी केसरी’, ‘भारतमित्र’, ‘नृसिंह’, ‘मारवाड़ी बन्धु’, ‘अभ्युदय’, ‘कर्मयोगी’, ‘प्रताप’, ‘कर्मवीर’ आदि पत्रों का प्रकाशन हुआ, जिनसे पत्रकारिता का स्वर देश-प्रेम से पूरित होता गया।

प्रश्न 12.
स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व हिन्दी पत्रकारिता का विकास किस तरह हुआ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व जैसे-जैसे हिन्दी तथा भाषायी समाचार-पत्रों की संख्या बढ़ने लगी, वैसे-वैसे अंग्रेज सरकार ने प्रतिबन्ध भी बढ़ा दिये थे। तब पत्रकारिता का विकास अवरुद्ध न हो, इस दृष्टि से सम्पादकों ने हिन्दी उद्धारिणी प्रतिनिधि सभा’ नाम से एक संगठन बनाया। इसको सही स्वरूप सन् 1915 में ‘प्रेम एसोसियेशन ऑफ इण्डिया’ के गठन से सामने आया। इस संगठन के माध्यम से सभी पत्रकार अंग्रेज सरकार से टक्कर लेने लगे। इस प्रकार पत्रकारिता का स्वर ऊँचा उठने लगा और इसके स्वतन्त्र विकास का मार्ग काफी प्रशस्त होने लगा। इसी से भारत छोड़ो आन्दोलन के समय हिन्दी पत्रकारिता ने अपने दायित्व का सुन्दर निर्वाह किया। भले ही सरकार ने सेंसर भी लगाया, परन्तु 1945 में सेंसर हटाना पड़ा। तब पुनः अपनी पूरी ऊर्जा के साथ पत्रकारिता का विकास होने लगा। इससे देश को स्वतन्त्रताप्राप्ति में ओजस्वी एवं प्रखर चेतना प्राप्त हुई।

प्रश्न 13.
राजस्थान की पत्रकारिता के इतिहास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान में स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व दोहरी शासन-व्यवस्था थी। देशी रियासतों के राजाओं, सामन्तों एवं जागीरदारों के अत्याचारों से आम जनता परेशान थी। देशी रियासतों पर अंग्रेज सरकार का नियन्त्रण था। इस कारण यहाँ के स्वतन्त्रता सेनानियों को दोहरी लड़ाई लड़नी पड़ी और अनेक तरह से दमनचक्र का सामना करना पड़ा। ऐसी स्थिति में भी यहाँ पर पत्रकारिता का दौर मन्दगति से चलता रहा। सन् 1869 में उदयपुर से उदयपुर गजट’, सन् 1878 में जयपुर से जयपुर गजट’, सन् 1879 में उदयपुर से ‘सज्जनकीर्ति’, सन् 1883 में जयपुर से ‘सदाचार मार्तण्ड’ आदि पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुईं। इसी क्रम में ‘नवज्योति’, ‘प्रजासेवक’, ‘लोकवाणी’, ‘जयभूमि’, ‘प्रभात’ आदि समाचार-पत्र प्रकाशित होते रहे। बाद में राजस्थान समाचार’, ‘तरुण राजस्थान’, ‘नवीन राजस्थान’, ‘अधिकार’ एवं ‘राजदूत’ आदि समाचार-पत्रों ने राजनीतिक जनजागरण का महत्त्वपूर्ण कार्य सम्पन्न किया।

पत्रकारिता का इतिहास अध्याय-सार

प्रस्तावना-पत्रकारिता का उद्भव और विकास रोचक रहा है। सामाजिक जीवन में पत्रकारिता का विशेष महत्त्व है तथा इससे समूचा विश्व प्रभावित हुआ है। भारत में पत्रकारिता के माध्यम से अनेक कुरीतियों की रोकथाम हुई है।

विश्व-पत्रकारिता का संक्षिप्त इतिहास-पत्रकारिता का उद्भव सहज जिज्ञासा और खोजी प्रवृत्ति का परिणाम है। पत्रकारिता को अनेक विशेषताओं के कारण प्रजातन्त्र का प्रमुख स्तम्भ या माध्यम माना जाता है। सर्वमान्य मत है कि कागज और मुद्रण का आविष्कार सर्वप्रथम चीन में हुआ और फिर यह कला यूरोप तक पहुँची। चीन में ही सन् 1340 ई. में सबसे पहला समाचार-पत्र ‘लिंचाओ’ अथवा ‘पीकिंग गजट’ प्रकाशित हुआ। यूरोप में पहली प्रेस सन् 1440 में स्थापित हुई और इंग्लैण्ड का पहला समाचार-पत्र सन् 1603 में तथा सन् 1666 में ‘लन्दन गजट’ प्रकाशित हुआ। इससे पूर्व हालैण्ड में सन् 1526 में पहला समाचार-पत्र निकला। इसके बाद जर्मनी में सन् 1610 में, अमेरिका में सन् 1660 में, रूस में सन् 1703 में तथा फ्रांस में सन् 1737 में पहला समाचार-पत्र निकला। सन् 1702 में लन्दन से पहला दैनिक-पत्र ‘डेली करेन्ट’ प्रकाशित हुआ।

यूरोप में समाचार-पत्रों का उत्तरोत्तर विकास होता रहा। इसी क्रम में लन्दन में ‘दि टाइम्स’ पत्र की स्थापना (1785 में) हुई, ‘गार्जियन’ सन् 1881 में, ‘डेली टेलीग्राफ’ सन् 1855 में, ईवनिंग न्यूज’ सन् 1881 में, डेली एक्सप्रेस’ सन् 1900 में तथा ‘डेली मिरर’ सन् 1903 में प्रारम्भ हुए। रविवासरीय पत्रों में ‘ऑब्जर्वर’, ‘संडे टाइम्स’, ‘संडे पीपल’ आदि पत्र प्रकाशित हुए। विश्व का सबसे नियमित समाचार-पत्र स्वीडन का ‘पोस्ट ओच इनरिक्स ट्रिडनिगर’ था, जो सन्। 1644 में छपना प्रारम्भ हुआ था। विश्व का सबसे पुराना व्यावसायिक समाचार-पत्र सन् 1658 में हॉलैण्ड में प्रकाशित हुआ था जो अब ‘हार्लेक्स दोगब्लेडे हारलमेशे कुरंत’ नाम से छपता है। विश्व का पहला दैनिक समाचार-पत्र ‘मार्निग पोस्ट’ था जो लन्दन से 1772 में प्रकाशित होने लगा था, परन्तु यह अधिक समय नहीं चला। इसी प्रकार अमेरिका से भी ‘न्यूयार्क गजट’, न्यूयार्क टाइम्स’, ‘ट्रिब्यून’ आदि समाचार-पत्र प्रकाशित हुए।

आजादी से पूर्व विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता-विदेशों में जो प्रवासी भारतीय थे, उन्होंने हिन्दी पत्रकारिता को गति दी। सन् 1883 ई. में लन्दन से ‘हिन्दुस्तान’ नामक त्रैमासिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। यह पत्र त्रिभाषी था। दो वर्ष बाद यह पत्र कालाकांकर (अवध) से प्रकाशित होने लगा था और सन् 1887 में इसका स्वरूप दैनिक हो गया। 1857 की क्रान्ति को जीवित रखने के लिए अमेरिका से प्रवासी भारतीयों ने भारतीय भाषाओं का एक पत्र ‘गदर’ नाम से प्रकाशित कराया। सन् 1908 में तारकनाथ दास ने ‘फ्री हिन्दुस्तान’ तथा सन् 1909 में गुरुदत्त कुमार ने ‘स्वदेश सेवक’ पत्रों का प्रकाशन किया। इसी क्रम में लन्दन से ‘नवीन’, ‘सन्मार्ग’, ‘केसरी’, ‘प्रवासी’, ‘अमरदीप’ एवं प्रवासिनी’ नामक पत्रों का प्रकाशन हुआ। सन् 1972 में मास्को से सोवियत संघ’ नामक हिन्दी पत्रिका प्रकाशित हुई। मारीशस से हिन्दी में पहला समाचार-पत्र सन् 1909 में ‘हिन्दुस्तानी’ प्रकाशित हुआ। वहाँ से ‘जनता’, ‘कांग्रेस’, ‘हिन्दू धर्म’, ‘दर्पण’, ‘अनुराग’, ‘महाशिवरात्रि’ आदि पत्र भी प्रकाशित हुए। इसी प्रकार सूरीनाम, नेटाल, डरबन शहर, त्रिनिनाद आदि देशों एवं स्थानों से भी समय-समय पर समाचार-पत्र एवं पत्रिकाएँ प्रकाशित होती रहीं। अविभाजित भारत में ढाका से बिहार बन्धु’, ‘धर्मनीति’, विद्याधर्मदीपिका’, ‘नारद’ तथा ‘नागरी हितैषी’ आदिं पत्र प्रकाशित हुए। इसी क्रम में जैसोर से ‘अमृत बाजार पत्रिका के संस्करण का प्रकाशन उल्लेखनीय है। अविभाजित भारत में लाहौर किसी समय संस्कृत और हिन्दी पत्रकारिता का गढ़ रहा। लाहौर से अन्य पत्रों के अलावा ‘मिलाप’ का प्रकाशन हुआ, जो स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद सन् 1949 से जालन्धर से पुनः प्रकाशित होने लगा। इनके अलावा आज भी कई लोग विदेशों में रहकर हिन्दी पत्रों का प्रकाशन कर हिन्दी पत्रकारिता को बढ़ावा दे रहे हैं।

स्वतन्त्रतापूर्व भारत की पत्रकारिता-भारत में पत्रकारिता का आरम्भ मुद्रण कला के बाद माना जाता है। मुद्रण कला का विकास पहले यूरोप में हुआ। विद्वानों का मत है कि भारत में सन् 1556 में मुद्रण कला का आगमन ईसाई धर्म–प्रचार की दृष्टि से हुआ। संयोगवश पुर्तगाल से जो प्रेस अबीसीनिया भेजा गया था, वह किन्हीं कारणों से गोवा पहुँच गया। इस प्रकार भारत में मुद्रण कला के माध्यम से प्रकाशन कार्य सर्वप्रथम गोवा में ही हुआ। इसमें लगभग तेरह पुस्तकें प्रकाशित हुईं। गोवा के बाद मुम्बई में मुद्रण कला का विकास हुआ। महाराज शिवाजी ने भी एक प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की थी, परन्तु लम्बे समय तक उपयोग में न आने से उसे सन् 1674 में भीमजी पारख नामक एक व्यापारी को दे दी, जिसने गुजराती तथा देवनागरी भाषा में मुद्रण कार्य के प्रयास किये।

ऐसा माना जाता है कि सन् 1788 में भारत का पहला पत्र ‘बंगाल गजट ऑफ कलकत्ता जनरल एडव्हरटाईजर’ नाम से प्रकाशित हुआ। अंग्रेज शासन के विरुद्ध आवाज उठाने से इसके सम्पादक हिक्की को अंग्रेज सरकार का कोपभाजन बनना पड़ा। तत्पश्चात् भारतीय भाषा में पत्रकारिता के लिए राजा राममोहन राय को अग्रणी माना जाता है। इनके प्रयासों से सन् 1818 में ‘बंगाल गजट’ और सन् 1820 में संवाद कौमुदी’ तथा बाद में ‘मिरातुल’ समाचार-पत्र भी प्रारम्भ हुए।

इसी अवधि में मुम्बई और मद्रास (चेन्नई) से भी कई. पत्र प्रकाशित हुए। इस तरह। भारत में पत्रकारिता को लगातार गति मिलती रही।

हिन्दी का पहला पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ सन् 1826 में कलकत्ता से पं. युगल किशोर शुक्ल ने प्रकाशित किया, परन्तु यह कम समय में ही बन्द हो गया। राजा राममोहन राय ने सन् 1829 में ‘बंगदूत’ पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया। इसी क्रम में काशी से ‘सद्धर्मप्रचारक’, कलकत्ता से समाचार सुधावर्षण’ तथा सन् 1845 में शिवप्रसादसिंह द्वारा बनारस अखबार का प्रकाशन किया गया। सन् 1846 में कलकत्ता में ‘मार्तण्ड़’ का प्रकाशन किया जाने लगा। सन् 1848 में इन्दौर से ‘मालवा समाचार तथा सन् 1850 में बनारस से ‘सुधाकर’ नामक पत्र का प्रकाशन किया गया। इस प्रकार समाचार-पत्रों के प्रकाशन से भारत में नवजागरण का प्रसार होने लगा। सन् 1857 के बाद ब्रिटिश शासन की दमनकारी नीतियों के विरोध में पत्रकारिता को नयी शक्ति मिली। कुछ समय तक समाचार-पत्रों पर पाबन्दी भी लगी, परन्तु लार्ड विलियम बैंटिंक के काल में आये चार्ल्स मैटकाफ के प्रयासों से भारतीय समाचार-पत्रों पर लगी सभी पाबन्दियाँ हटा दी गईं। इस प्रकार उन्नीसवीं शताब्दी में भारत में पत्रकारिता काफी संघर्षपूर्ण रही।

बीसवीं शताब्दी में पत्रकारिता-स्वतन्त्रता-प्राप्ति से पूर्व अंग्रेज सरकार ने दमनकारी नीतियों का सहारा लिया। सन् 1905 में बंगाल का विभाजन किया गया। अंग्रेजों की इस नीति का विरोध करने के लिए लोग एकजुट हुए, फलतः राष्ट्रीय आन्दोलन की गति तेज हो गई। इस अवधि में ‘सरस्वती’, ‘मराठा’, ‘केसरी’आदि पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से देश-प्रेम का भाव प्रखर होता रहा। सन् 1920 में महात्मा गाँधी के आगमन से पत्रकारिता को नयी दिशा मिली। उन्होंने ‘यंग इण्डिया’, ‘नवजीवन’ और ‘हरिजन’ पत्रों का सम्पादन किया। सन् 1920 से ही बनारस से ‘आज’ तथा कानपुर से ‘प्रताप’ नामक दैनिक समाचार-पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ। इससे पहले ‘प्रेस एसोसिएशन ऑफ इण्डिया’ का गठन हो गया था। इससे अन्य पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन को गति मिलने लगी। साथ ही स्वतन्त्रता आन्दोलन को प्रखर स्वर मिलने लगा।’ भारत छोड़ो आन्दोलन में हिन्दी पत्रकारिता को विशेष योगदान रहा। भले ही कुछ समय के लिए अंग्रेज सरकार ने समाचारपत्रों पर सेंसर भी लगाया, परन्तु सरकार को झुकना पड़ा। सेंसर हटते ही समाचारपत्रों ने देशवासियों में नवचेतना का संचार किया। फलस्वरूप देश को स्वतन्त्रताप्राप्ति का सुफल मिला।

राजस्थान की पत्रकारिता का इतिहास-राजपूताना में देशी राज्यों, जागीरदारों एवं सामन्तों का बोलबाला था। ये सब ब्रिटिश शासन के ही अधीन थे। इस कारण यहाँ की जनता को दोहरे अत्याचारों से संघर्ष करना पड़ता था। राजपूताना से बाहर जो समाचार-पत्र प्रकाशित होते थे, उनसे ही यहाँ के कुछ बुद्धिजीवियों को देशप्रेम की प्रेरणा मिलती थी। पत्रकारिता के इतिहास के अनुसार राजस्थान में जयपुर से सन् 1856 में ‘राजपूताना अखबार’, अजमेर से सन् 1861 में ‘जगलाभ चिन्तक तथा सन् 1863 में ‘जगहित कारक’ नामक पत्र हिन्दी में प्रकाशित हुए। यहाँ से।

कुछ साप्ताहिक, मासिक एवं पाक्षिक पत्र-पत्रिकाएँ भी प्रकाशित हुईं, जिनमें ‘उदयपुर गजट’ (सन् 1869) तथा ‘जयपुर गजट’ (सन् 1878), ‘सज्जन कीर्ति’ (सन् 1879), सदाचार मार्तण्ड’ (सन् 1883) तथा ‘जयपुर समाचार’ (सन् 1890) आदि उल्लेखनीय हैं। इनके बाद राजस्थान समाचार’, ‘तरुण राजस्थान’, ‘नक्ज्योति’, ‘नवजीवन’, ‘प्रजासेवक’, ‘जयभूमि’ और ‘लोकवाणी’ आदि पत्रों का प्रकाशन समय-समय पर होता रहा, जिनसे राजनीतिक चेतना एवं देश-प्रेम की भावना का संचार होता रहा।

इस तरह. संक्षेप में कह सकते हैं कि भारत में पत्रकारिता का इतिहास काफी संघर्षमय रहा। इससे समाजोत्थान एवं स्वाधीनता की चेतना का संचार हुआ।

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