RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 4 गर्भावस्था

Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Chapter 4 गर्भावस्था

RBSE Class 11 Home Science Chapter 4 पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें –
(i) गर्भावस्था का समय है –
(अ) 10 माह 2 दिन
(ब) 9 माह 7 दिन
(स) 8 माह
(द) 7 माह
उत्तर:
(ब) 9 माह 7 दिन

(ii) गर्भावस्था का प्रारम्भिक लक्षण है –
(अ) अधिक नींद आना
(ब) मासिक चक्र का रुकना
(स) लार का अधिक स्रवण
(द) बार-बार मूत्र उत्सर्जन हेतु जाना
उत्तर:
(ब) मासिक चक्र का रुकना।

(iii) भ्रूण की उपस्थिति का संकेत माँ को मिलता है –
(अ) 3 माह
(ब) 7 माह
(स) 4 माह
(द) 6 माह
उत्तर:
(स) 4 माह।

(iv) गर्भकालीन विकास की सर्वप्रथम अवस्था है –
(अ) भ्रूणावस्था
(ब) गर्भस्थ शिशु
(स) आरोपण
(द) बीजावस्था
उत्तर:
(द) बीजावस्था।

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(v) गर्भावस्था में आरोपण कहते हैं –
(अ) भ्रूण में मसूड़ों का निर्माण होना
(ब) निषेचित डिम्ब का माता के गर्भाशय की दीवार से चिपक जाना
(स) अपरा नाल
(द) अंगों व मांसपेशियों का बनना
उत्तर:
(ब) निषेचित डिम्ब का माता के गर्भाशय की दीवार से चिपक जाना।

(vi) लिंग निर्धारण गर्भावस्था के किस माह में होता है?
(अ) 2 माह
(ब) 4 माह
(स) 5 माह
(द) 6 माह
उत्तर:
(ब) 4 माह।

(vii) गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले कारक हैं –
(अ) गर्भवती माता का आहार
(ब) माता-पिता की अभिवृत्तियाँ
(स) मादक पदार्थो व शराब का सेवन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी।

(viii) जन्म के समय शिशु का सामान्य वजन होना चाहिए –
(अ) 2.5 – 3.0 किग्रा
(ब) 3.0 – 3.5 किग्रा
(स) 5.0 – 6.0 किग्रा
(द) 4.0 – 4.5 किग्रा
उत्तर:
(ब) 3.0 – 3.5 किग्रा।

प्रश्न 2.
रिक्त स्थान भरो –
1. गर्भाशय का आकार सामान्य स्त्री की अपेक्षा ……… हो जाता है।
2. गर्भावस्था में निषेचित अण्डाणु आरोपण के बाद ……… से पोषण प्राप्त करता है।
3. ……… से भ्रूण के हृदय की धड़कन को सुना जा सकता है।
4. पैरों की पेशियों में ……… के बढ़ने से संकुचन होने लगता है व सूजन आ जाती है।
5. ……… हार्मोन की उपस्थिति के कारण आँतों की पेशियों में शिथिलता आ जाती है।
उत्तर:
1. अधिक
2. माता
3. स्टेथोस्कोप
4. रक्तचाप
5. प्रोजेस्ट्रोन

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प्रश्न 3.
गर्भावस्था में प्रथम पाँच माह के लक्षण व संकेत क्या है?
उत्तर:
गर्भावस्था में प्रथम पाँच माह के लक्षण व संकेत –

  • मासिक चक्र का रुकना-गर्भावस्था प्रारम्भ होने पर मासिक चक्र की क्रिया रुक जाती है।
  • प्रातःकाल जी मिचलाना-चक्कर आना व उल्टी आना।
  • अधिक नींद आना-हार्मोन्स में परिवर्तन के कारण व शरीर में नवीन प्रक्रियाओं के समायोजन के लिए अतिरिक्त विश्राम की आवश्यकता होती है।
  • लार का अधिक स्रावण-खट्टे या मीठे भोज्य पदार्थो को देखकर लार स्रवण बढ़ जाता है।
  • आलस्य व सुस्ती का अनुभव होता है।
  • बार-बार मूत्र विसर्जन हेतु जाना-बढ़े हुए गर्भाशय का भार मूत्राशय पर पड़ता है, जिससे स्त्री को बार-बार मूत्र त्यागने की इच्छा होती है।
  • गर्भ की हलचल का अनुभव-यह अनुभव 16-18 सप्ताह की अवधि में होता है। गर्भस्थ शिशु के हाथ व पैरों की हलचल माँ को महसूस होती है।
  • पेट का बढ़ना-गर्भाशय के आकार में वृद्धि होने से उदर में भी वृद्धि होने लगती है।

प्रश्न 4.
गर्भावस्था में आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन क्या होते हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था में आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन:

गर्भावस्था में महिला के शरीर में निम्नलिखित आन्तरिक शारीरिक परिवर्तन होते हैं –
1. उपापचयात्मक परिवर्तन:
गर्भवती स्त्री के शरीर में अधिक पोषण की माँग, भ्रूण द्वारा अधिक पोषण की माँग, स्तनपान हेतु अतिरिक्त पोषण की माँग, गर्भावस्था की वृद्धि व विकास के लिए उपापचयात्मक परिवर्तन होते हैं। आमाशयिक स्राव कम होने के कारण भोजन अधिक समय तक आमाशय में पड़ा रहता है। प्रोजेस्ट्रान हार्मोन्स के कारण आंतों की पेशियों में शिथिलता आ जाती है। कब्ज, उल्टी, जी मिचलाने व छाती में जलन की समस्या भी होती है।

2. मूत्र नलिकाओं में परिवर्तन:
वृक्क की ओर अधिक रक्त परिसंचरण होने के कारण वृक्क को अतिरिक्त कार्य करना पड़ता है। ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन की दर 5% तक बढ़ जाती है जिससे अधिक यूरिया का निष्कासन होने लगता है। इस अवस्था में ग्लूकोज के पुन: अवशोषण की गति कम हो जाती है, जिससे मूत्र में ग्लूकोज आने लगता है। प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन के अत्यधिक स्राव से मूत्र नलिकाएँ फूलकर वक्राकार हो जाती हैं।

3. रक्त परिसंचरण में परिवर्तन:
शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ने के कारण हृदय को अधिक कार्य करना पड़ता है। रक्तवारी के आयतन में वृद्धि हो जाती है। रक्त में हीमोग्लोबिन का प्रतिशत कम हो जाता है। रक्तचाप भी चौथे व पाँचवें माह तक बढ़ जाता है। रक्तचाप बढ़ने से टाँगों की शिराएँ फूलकर मोटी हो जाती हैं।

4. श्वसन सम्बन्धी परिवर्तन:
गर्भाशय का बढ़ता भार महाप्राचीरा पेशी पर पड़ता है जिससे यह दब जाती है जिससे श्वसन क्रिया में बाधा उत्पन्न होती है। 5. हार्मोन्स में परिवर्तन गर्भावस्था में एड्रिनोकॉर्टिको तथा थाइरोट्रोपिन हार्मोन्स की क्रियाशीलता बढ़ जाती है। एड्रीनल ग्रन्थियों से भी अधिक मात्रा में कॉर्टिकोस्टीरॉन हार्मोन स्रावित होने लगता है, जिससे उदर पर निशान बन जाते हैं। रक्त में प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन की उपस्थिति के कारण उथला श्वास होता है। थाइराइड ग्रन्थि का आकार बढ़ जाता है।

6. नाड़ी संस्थान में परिवर्तन:
नाड़ी संस्थान में परिवर्तन के कारण गर्भवती महिला में तनाव, भय, चिन्ता, सिरदर्द आदि का अनुभव होता है।

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7. योनि मार्ग, ग्रीवा व गर्भाशय में परिवर्तन:
हार्मोन्स का प्रभाव प्रजनन अंगों पर पड़ता है। ईस्ट्रोजन के कारण योनि मार्ग की श्लेष्मिक झिल्ली अधिक मोटी हो जाती है, रंग नीला पड़ जाता है। गर्भाशयी ग्रीवा में रक्त नालिकाओं का जाल बढ़ जाता है एवं इसकी संयोजक तंतुएँ अधिक आर्द्रताग्राही हो जाती हैं।

8. उदर व श्रोणि जोड़ों में परिवर्तन:
उदर में वृद्धि के कारण वहाँ की त्वचा में तनाव पैदा होता है जिससे त्वचा लचीली होकर फट सी जाती है जिससे पेट पर धारियाँ बन जाती हैं।

9. पेशियों व कंकाल तन्त्र में परिवर्तन:
ऐच्छिक पेशियों की गति कम हो जाती है। पीठ व कमर की पेशियों में भी खिंचाव होता है। मलाशय की पेशियों पर दबाव पढ़ता है, जिससे गुदा द्वार की शिराएँ फूल जाती हैं और बवासीर भी हो सकता है।

प्रश्न 5.
गर्भावस्था में रक्त परिसंचरण में क्या परिवर्तन आता है?
उत्तर:
रक्त परिसंचरण में परिवर्तन:
शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ने के कारण हृदय को अधिक कार्य करना पड़ता है। रक्तवारी के आयतन में वृद्धि हो जाती है। रक्त में हीमोग्लोबिन का प्रतिशत कम हो जाता है। रक्तचाप भी चौथे व पाँचवें माह तक बढ़ जाता है। रक्तचाप बढ़ने से टाँगों की शिराएँ फूलकर मोटी हो जाती हैं।

प्रश्न 6.
बीजावस्था क्या है?
उत्तर:
बीजावस्था (Zygote):
पुरुष के शुक्राणु (Sperm) तथा स्त्री के अण्डाणु (Ovum) के मिलने से जो संरचना बनती हैं, उसे बीजावस्था या युग्मनज कहते हैं। यह दो सप्ताह तक चलती है। गर्भित डिम्ब के आन्तरिक भाग में निरन्तर कोशिका विभाजन की क्रिया चलती रहती है, जिससे कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। गर्भाधान के 7 – 8 दिन तक निषेचित डिम्ब माता के गर्भाशय में उपस्थित तरल पदार्थ में तैरता है।

10 दिन बाद यह माता के गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है जिसे आरोपण (Implantation) कहते हैं। अब इसमें कोशिकाओं के तीन समूह बनते हैं। पहले समूह से शिशु शरीर का विकास होता है, दूसरे से नाभि नाल एवं अपरा का विकास तथा कोशिकाओं का तीसरा समूह पारदर्शी झिल्ली का रूप ग्रहण कर लेता है। इस झिल्ली में ‘गर्भस्थ जीव’ लिपटा रहता है तथा इसकी सुरक्षा होती है।

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प्रश्न 7.
भ्रूणावस्था को विस्तार से समझाओ।
उत्तर:
भ्रूणावस्था (Embryo period):
भ्रूणावस्था में विकास की अवस्था प्रारम्भ होती है जो तीसरे सप्ताह से प्रारम्भ होकर माह के अन्त तक रहती है। बढ़ते हुए कोशों (Cells) के समूह को भ्रूण (Embryo) कहते हैं। इस अवधि में भ्रूण का संरचनात्मक विकास पूर्ण हो जाता है।

(अ) बाह्य परत:
यह भ्रूण की सबसे ऊपरी एवं पतली परत होती है। इस परत से शिशु के बाल, नाखून, त्वचा, दाँत एवं नाड़ी मण्डल का निर्माण होता है।

(ब) मध्य परत:
इससे त्वचा के भीतरी भाग व माँसपेशियों का निर्माण होता है।

(स) अन्तः परत:
इससे सभी जीवनोपयोगी अंगों (फेफड़े, मस्तिष्क, यकृत, पाचन प्रणाली) का निर्माण होता है। भ्रूणावस्था के अन्त तक भ्रूण 1 1/2 से 2 इंच की लम्बाई प्राप्त कर लेता है एवं 15 से 20 ग्राम वजन हो जाता है। माह के अन्त तक भ्रूण के हृदय में धड़कन प्रारम्भ हो जाती है एवं नाभि नाल का विकास होता है।

प्रश्न 8.
गर्भावस्था की विकास की अवस्थाएँ समझाइए।
उत्तर:
गर्भावस्था की विकास की अवस्थाएँ:
गर्भकालीन विकास की कुल अवधि 9 माह की होती है, इसे तीन अवस्थाओं में विभाजित किया गया है-बीजावस्था, भ्रूणावस्था तथा गर्भस्थ शिशु।

1.बीजावस्था (Zygote):
पुरुष के शुक्राणु (Sperm) तथा स्त्री के अण्डाणु (Ovum) के मिलने से जो संरचना बनती हैं, उसे बीजावस्था या युग्मनज कहते हैं। यह दो सप्ताह तक चलती है। गर्भित डिम्ब के आन्तरिक भाग में निरन्तर कोशिका विभाजन की क्रिया चलती रहती है, जिससे कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि होती है। गर्भाधान के 7-8 दिन तक निषेचित डिम्ब माता के गर्भाशय में उपस्थित तरल पदार्थ में तैरता है।

10 दिन बाद यह माता के गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है जिसे आरोपण (Implantation) कहते हैं। अब इसमें कोशिकाओं के तीन समूह बनते हैं। पहले समूह से शिशु शरीर का विकास होता है, दूसरे से नाभि नाल एवं अपरा का विकास तथा कोशिकाओं का तीसरा समूह पारदर्शी झिल्ली का रूप ग्रहण कर लेता है। इस झिल्ली में ‘गर्भस्थ जीव’ लिपटा रहता है तथा इसकी सुरक्षा होती है।

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2. भ्रूणावस्था (Embryo period):
भ्रूणावस्था में विकास की अवस्था प्रारम्भ होती है जो तीसरे सप्ताह से प्रारम्भ होकर माह के अन्त तक रहती है। बढ़ते हुए कोशों (Cells) के समूह को भ्रूण (Embryo) कहते हैं। इस अवधि में भ्रूण का संरचनात्मक विकास पूर्ण हो जाता है।

(अ) बाह्य परत:
यह भ्रूण की सबसे ऊपरी एवं पतली परत होती है। इस परत से शिशु के बाल, नाखून, त्वचा, दाँत एवं नाड़ी मण्डल का निर्माण होता है।

(ब) मध्य परत:
इससे त्वचा के भीतरी भाग व माँसपेशियों का निर्माण होता है।

(स) अन्तः परत:
इससे सभी जीवनोपयोगी अंगों (फेफड़े, मस्तिष्क, यकृत, पाचन प्रणाली) का निर्माण होता है। भ्रूणावस्था के अन्त तक भ्रूण 1 1 / 2 से 2 इंच की लम्बाई प्राप्त कर लेता है एवं 15 से 20 ग्राम वजन हो जाता है। माह के अन्त तक भ्रूण के हृदय में धड़कन प्रारम्भ हो जाती है एवं नाभि नाल का विकास होता है।

3. गर्भस्थ शिशु (Period of Foetus):
यह अवस्था 3 माह से लेकर शिशु के जन्म से पहले तक की है। इसमें शरीर के विभिन्न अंगों एवं माँसपेशियों का विकास पूर्ण हो जाता है और सभी अंग क्रियाशील हो जाते हैं। लम्बाई, आकार, आकृति एवं वजन में तेजी से वृद्धि होती है।

4. माह:
इस माह में शिशु छोटा व मोटा अर्द्धवृत्त के समान दिखाई देने लगता है। रीढ़ की हड्डी बनने लगती है। शरीर लम्बा हो जाता है व माह के अन्त तक हाथ व पैर बनने प्रारम्भ हो जाते हैं। त्वचा गुलाबी हो जाती है। सिर का विकास शरीर के आकार का 1 / 3 भाग होता है व गुर्दे कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं। इसी माह में चेहरा भी बनने लगता है। बाह्य कान, आँख की पलकें बन जाती हैं और हाथ अधिक लम्बे होते हैं। लम्बाई 6 – 8 सेमी व वजन 3 / 4 औंस हो जाता है। पोषण अब नाभिनाल से नाभिरज्जु (Umblical cord) द्वारा होने लगता है। गर्भाशय के आकार में वृद्धि होती है।

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5. माह:
शिशु का सिर अधिक बड़ा होता है व छोटे-छोटे बाल भी उग आते हैं। पीठ धनुषाकार होती है एवं हाथ-पैरों की उँगलियों में नाखून और मसूड़ों के भीतर दाँतों का विकास होने लगता है। लिंग निर्धारण भी इसी माह होने लगता है। माह के अन्त तक आन्तरिक अंग अपना-अपना कार्य करने लगते हैं। लम्बाई 11-12 सेमी तथा वजन 100-110 ग्राम हो जाता है।

6. माह:
हृदय की धड़कन में स्पष्टता आती है। माँसपेशियों की क्रियाशीलता में वृद्धि होती है। लम्बाई 18 – 20 सेमी व वजन 280 – 300 ग्राम हो जाता है।

7. माह:
इस माह में त्वचा पर कोमल रोंये उगने लगते है तथा शरीर पर सफेद क्रीम जैसा चिपचिपा तैलीय तरल पदार्थ एकत्रित होने लगता है जिसे वर्निक्स (Vernix) कहते हैं। माता को शिशु के शरीर के अंगों के संचालन का अनुभव होने लगता है। शिशु की पलकें अलग-अलग हो जाती हैं। सिर का विकास तीव्र होता है। माह के अन्त तक 30-32 सेमी लम्बाई व वजन 600 से 750 ग्राम तक होता है।

8. माह:
इस माह तक सम्पूर्ण शिशु बन जाता है। हाथ – पैरों की उँगलियों में नाखून बन जाते हैं। शिशु सामान्यत: किसी एक स्थिति को ग्रहण कर लेता है। इसकी क्रियाशीलता कम हो जाती है और इस समय तक लम्बाई 15-16 इंच तथा वजन 1.5 – 2 किग्रा तक होता है।

9. माह:
आँखें पूर्ण रूप से विकसित हो जाती हैं, रेटिना का निर्माण हो जाता है, श्वसन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है, एवं त्वचा तथा शरीर में वसा एकत्र होती है। शिशु परिपक्व हो जाता है।

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10. माह:
त्वचा का रंग स्वाभाविक हो जाता है। सिर पर बाल उग आते हैं। होंठ पतले व गुलाबी रंग के होते हैं। वसीय तन्तुओं की मात्रा भी अधिक होती है। 9 माह के अन्त तक 3.0 से 3.5 किग्रा वजन व लम्बाई 18-20 इंच तक हो जाती है। नौंवे माह के अन्त तक गर्भवती स्त्री को गम्भीर संकुचन होने लगता है। जन्म से पूर्व शिशु धीरे-धीरे गर्भाशय में नीचे की ओर खिसकने लगता है।
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प्रश्न 9
गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को विस्तार में लिखो।
उत्तर:
गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले कारक:

गर्भकालीन विकास को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं –
1. माता – पिता की उम्र:
अत्यधिक कम आयु में या ढलती उम्र में माता-पिता बनने पर शिशु के गर्भकालीन विकास पर विपरीत प्रभाव होता है। माता की कम उम्र होने पर जननांग भी पूर्ण विकसित नहीं होते और साथ ही गर्भकालीन समस्याओं का ज्ञान नहीं होता है। बढ़ती उम्र में हार्मोन्स का स्राव अनियमित हो जाता है।

2. गर्भवती माता का स्वास्थ्य:
स्वस्थ माँ ही स्वस्थ शिशु को जन्म दे सकती है। अतः यह अत्यन्त महत्वपूर्ण है कि गर्भवती माँ का स्वास्थ्य उत्तम होना चाहिए।

3. गर्भवती माता का आहार:
गर्भकाल में माता की आहार सम्बन्धी आवश्यकताएँ बढ़ जाती हैं। माँ जिस प्रकार का भोजन गर्भकाल के दौरान ग्रहण करती है, उसका गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है। पौष्टिक एवं सन्तुलित आहार से गर्भस्थ शिशु का विकास अच्छी प्रकार होता है।

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4. माता – पिता की अभिवृत्तियाँ:
गर्भस्थ शिशु के विकास पर माता-पिता की अभिवृत्तियों का भी प्रभाव होता है। चिन्ता, भय, क्रोध आदि अभिवृत्तियाँ शिशु के विकास पर कुप्रभाव डालती है।

5. मादक पदार्थों व शराब का सेवन:
गर्भकाल के दौरान माता द्वारा व्यसनों का शिशु पर बुरा प्रभाव पड़ता है। तम्बाकू, शराब एवं अन्य नशीली वस्तुओं के सेवन से शिशु का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है। अत: गर्भावस्था में गर्भवती को इन पदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।

6. गर्भवती माता की संवेगात्मक अनुभूतियाँ:
गर्भवस्था में माता का कुण्ठा, घृणा, ईष्या आदि संवेगात्मक अनुभूतियों से दूर रहना चाहिए।
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प्रश्न 10.
गर्भवती स्त्री की देख-भाल व गर्भावस्था के कष्ट क्या हैं?
उत्तर:
गर्भवती स्त्री भी देख-भाल:
गर्भवती महिला को दिए जाने वाले आहार का महिला एवं गर्भ के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्त्व है। सन्तुलित आहार के सेवन से स्वास्थ्य उत्तम रहता है। इस अवस्था में अतिरिक्त भोज्य पदार्थों (कार्बोज, प्रोटीन, विटामिन व खनिज तत्त्व) की आवश्यकता होती है। गर्भवती स्त्री को अनाज (जैसे – चावल, गेहूँ, बाजरा, जौ, मक्का , रागी आदि), दूध एवं दूध से बने भोज्य पदार्थ, पनीर, दाल, दही, अण्डा, मछली, सोयाबीन, मूंगफली, सूखे मेवे, तेल, घी, नारियल, तेलयुक्त बीज, पपीता, आम, गाजर, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, गुड़, शलजम, हल्दी, केला आदि जो कि कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटमिन, खनिज लवण (कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, आयोडीन) जल व रेशे आदि से भरपूर हों, भोजन में देने चाहिए।

  • गर्भवती माँ को एक या दो बार भरपेट भोजन न करके थोड़ी – थोड़ी मात्रा में दिन में 5 – 6 बार भोजन करना चाहिए।
  • मिर्च, मसाले युक्त, तला, गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए। हरी पत्तेदार सब्जियाँ, छिलके सहित फल, पीली सब्जियाँ, सलाद, दूध, छाछ आदि को अधिक मात्रा में आहार में शामिलकरना चाहिए।
  • जल की भी अधिक मात्रा लेनी चाहिए।
  • छिलकेदार दाल, चोकर सहित आटा, अंकुरित अनाज आदि के सेवन से कब्ज की शिकायत नहीं रहती।
  • रात्रि में सोने से दो घण्टे पूर्व भोजन कर लेना चाहिए।
  • बासी एवं गरिष्ठ भोजन नहीं करना चाहिए।
  • पर्याप्त आराम एवं नींद लेनी चाहिए। आरामदायक वस्त्र पहनने चाहिए ताकि शरीरिक क्रियाओं में बाधा न आए व रक्त संचार सुचारु हो।
  • हल्का एवं हानि रहित व्यायाम करना चाहिए।
  • स्वच्छ वायु व सूर्य का प्रकाश भी नियमित रूप से लेना चाहिए ताकि मानसिक शान्ति के साथ शरीर सुचारु रूप से चलता रहे।
  • शारीरिक स्वच्छता, वातावरण स्वच्छता, आहार स्वच्छता व वस्त्र स्वच्छता का भली भाँति खयाल रखना चाहिए।
  • मानसिक स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना चाहिए। गर्भवती माँ को खुश व चिन्तामुक्त, सकारात्मक होना चाहिए व सुबह-शाम खुले स्थान व स्वच्छ वायु में टहलना चाहिए।

गर्भावस्था के कष्ट:
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RBSE Class 11 Home Science Chapter 4 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न

RBSE Class 11 Home Science Chapter 4 बहुविकल्पीय प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों में सही विकल्प चुनिए –
प्रश्न 1.
गर्भाविधि की गणना की जाती है –
(अ) रजोधर्म के प्रथम दिन से
(ब) रजोधर्म के अन्तिम दिन से
(स) रजोधर्म के चौदहवे दिन से
(द) रजोनिवृत्ति से
उत्तर:
(ब) रजोधर्म के अन्तिम दिन से

प्रश्न 2.
गर्भावस्था का संकेत है –
(अ) जी मिचलाना
(ब) आलस्य अनुभव करना
(स) अधिक नींद आना
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

प्रश्न 3.
भ्रूण का विकास हो जाता है –
(अ) प्रथम सप्ताह तक
(ब) दूसरे सप्ताह तक
(स) प्रथम माह तक
(द) चौथे माह तक
उत्तर:
(द) चौथे माह तक

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प्रश्न 4.
भ्रूणीय परतों की संख्या होती है –
(अ) दो
(ब) तीन
(स) चार
(द) पाँच
उत्तर:
(ब) तीन

प्रश्न 5.
9 माह के अन्त तक गर्भस्थ शिशु की लम्बाई होती है –
(अ) 10 – 12 इंच
(अ) 12 – 15 इंच
(स) 15 – 18 इंच
(द) 18 – 20 इंच।
उत्तर:
(द) 18 – 20 इंच।

रिक्त स्थान
निम्नलिखित वाक्यों में खाली स्थान भरिए –
1. जब स्त्री के अण्डाणु का निषेचन पुरुष के शुक्राणु से हो जाता है तब इसे ……… कहते हैं।
2. शुक्राणु से गर्भित डिम्ब से ……… प्रारम्भ होती है।
3. बढ़ते हुए कोषों के समूह को ………कहते हैं।
4. ………परत से शिशु के बाल, नाखून, त्वचा, दाँत एवं नाड़ी मण्डल का निर्माण होता है।
5. शरीर में रक्त की मात्रा बढ़ने के कारण ……… को अधिक कार्य करना पड़ता है।
उत्तर:
1. निषेचित अण्डाणु
2. बीजावस्था
3. भ्रूण
4. बाह्य परत
5. हृदय। सुमेलन

स्तम्भ A का तथा स्तम्भ B के शब्दों का मिलान कीजिए.
स्तम्भ A                               स्तम्भ B
शुक्राणु                              (a) मादा
अण्डाणु                             (b) नर
गर्भित डिम्ब                        (c) शुक्राणु व अण्डाणु का मिलन
अपरा                                (d) गर्भ विकास
गर्भाशय                             (e) पोषण नाल
उत्तर:
1. (b) नर
2. (a) मादा
3. (c) शुक्राणु व अण्डाणु का मिलन
4. (e) पोषण नाल
5. (d) गर्भ विकास

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RBSE Class 11 Home Science Chapter 4 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था का समय कितना होता है?
उत्तर:
गर्भावस्था का समय 9 माह 7 दिन का होता है।

प्रश्न 2.
जब स्त्री के अण्डाणु का निषेचन पुरुष के शुक्राणु से हो जाता है तब क्या बनता है?
उत्तर:
निषेचित अण्डाणु या जाइगोट।

प्रश्न 3.
गर्भावस्था में अधिक नींद क्यों आती है?
उत्तर:
हार्मोन में परिवर्तन एवं नवीन क्रियाओं के समायोजन के कारण नींद व विश्राम की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 4.
गर्भावस्था के दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:

  • मानसिक चक्र का रुकना,
  • उदर का बढ़ना।

प्रश्न 5.
गर्भावस्था में कौन-सा हार्मोन अधिक सक्रिय हो जाता है?
उत्तर:
र्भावस्था में प्रोजेस्ट्रॉन हार्मोन अधिक सक्रिय हो जाता है।

प्रश्न 6.
गर्भावस्था में ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन की गति पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर:
गर्भावस्था में ग्लोमेरुलर फिल्टरेशन की गति 5 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।

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प्रश्न 7.
गर्भावस्था में किस हार्मोन के स्रावण के कारण उदर पर निशान बन जाते हैं?
उत्तर:
एड्रीनल ग्रन्थियों से कॉर्टिकोस्टीरॉन के अधिक स्रावण के कारण।

प्रश्न 8.
गर्भवती महिला के नाड़ी संस्थान में परिवर्तन होने से क्या प्रभाव दिखाई देते हैं?
उत्तर:
नाड़ी संस्थान में परिवर्तन के कारण गर्भवती महिला में तनाव, भय, चिन्ता, सिरदर्द आदि का अनुभव होता है।

प्रश्न 9.
किसमें एक शिशु के विकास की समस्त सूचनाएँ संकेतित रहती हैं?
उत्तर:
गर्भित कोशिका में समस्त आनुवंशिक सूचनाएँ संकेतित रहती हैं।

प्रश्न 10.
गर्भित कोशिका का निर्माण कैसे होता है?
उत्तर:
पुरुष के शुक्राणु तथा स्त्री के डिम्ब के सम्मिलन से गर्भित कोशिका का निर्माण होता है।

प्रश्न 11.
आरोपण किसे कहते हैं?
उत्तर:
निषेचित डिम्ब लगभग 10 दिन बाद, माता के गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है, जिसे आरोपण कहते हैं।

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प्रश्न 12.
भ्रूण किसे कहते हैं?
उत्तर:
गर्भावस्था के तीसरे सप्ताह से माह के अन्त तक बढ़ते हुए कोषों (Cells) के समूह को भ्रूण (Embryo) कहते हैं।

प्रश्न 13.
विकासशील शिशु में फेफड़ों, मस्तिष्क, यकृत आदि अंगों का निर्माण भ्रूण की किस परत से होता है?
उत्तर:
अन्त: परत से।

प्रश्न 14.
5 वे माह में गर्भस्थ शिशु की लम्बाई व वजन कितना होता है?
उत्तर:
लम्बाई 18 – 20 सेमी व वजन 280-300 ग्राम।

प्रश्न 15.
किस माह तक सम्पूर्ण शिशु बन जाता है?
उत्तर:
7 वें माह के अन्त तक पूर्ण शिशु बन जाता है।

RBSE Class 11 Home Science Chapter 4  लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भावस्था के समय उदर व श्रोणि जोड़ों में परिवर्तन से प्रभाव बताइए।
उत्तर:
उदर में वृद्धि श्रोणि जोड़ों में खिंचाव के कारण वहाँ की त्वचा में तनाव पैदा होता है, जिससे वहाँ की त्वचा लचीली होकर खिंचकर फट-सी जाती है, फलस्वरूप पेट पर धारियाँ बन जाती हैं।

प्रश्न 2.
गर्भाधान किसे कहते हैं?
उत्तर:
गर्भाधान (Insamination):
स्त्री के अण्ड या डिम्ब (Ovum) का पुरुष के शुक्राणु (Sperm) द्वारा निषेचन होता है। अब निषेचित डिम्ब गर्भाशयी तरल में तैरता हुआ फैलोपियन नलिका से गर्भाशय में आ जाता है और लगभग दो सप्ताह के भीतर गर्भाशय की दीवार से चिपक जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को गर्भाधान कहते हैं।

प्रश्न 3.
गर्भस्थ शिशु के 9वें माह के विकास को लिखिए।
उत्तर:
नौवें माह में शिशु की त्वचा का रंग स्वाभाविक हो जाता है। बाल उग आते हैं। होंठ पतले व गुलाबी रंग के होते हैं। वसीय तन्तुओं की मात्रा अधिक होती है। 9वें माह के अन्त तक वजन 3.0 से 3.5 किग्रा व लम्बाई 18-20 इंच होती है। इस माह के अन्त तक गर्भवती को गम्भीर गर्भाशयी संकुचन होने लगते हैं और शिशु गर्भाशय के नीचे की ओर खिसकने लगता है।

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RBSE Class 11 Home Science Chapter 4  निबन्धनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
गर्भवती महिला में 5 माह की अवधि में चिकित्सक द्वारा जाने गए संकेत लिखिए।
अथवा
गर्भवती महिला में चिकित्सकीय परिवर्तन समझाइए।
उत्तर:
प्रथम पाँच माह की अवधि में चिकित्सक द्वारा जाने गए संकेत –
1. स्तनों में परिवर्तन:
स्तनों के आकार में वृद्धि होने लगती है। चौथे माह में स्तनों के चारों ओर कालिमा छा जाती है। और पाँचवें माह तक स्तनों की शिराएं फूलने लगती हैं।

2. गर्भाशय के आकार, आकृति एवं स्थिति में परिवर्तन:
गर्भाशय सामान्य स्त्री के गर्भाशय के अपेक्षा गोलाकार हो जाता है। गर्भकाल के चौथे व पाँचवें माह तक गर्भाशय के मध्य भाग तथा अग्रभाग नाभि तक पहुँच जाते हैं। इस प्रकार गर्भाशय में वृद्धि होती है।

3. भ्रूण की उपस्थिति से संकेत:
चौथे माह तक भ्रूण का विकास हो जाता है। अब यह गर्भ में हलचल करने लगता है जिसे माता स्पष्ट अनुभव करने लगती है। भ्रूण के विकास के साथ – साथ गर्भाशय में उल्व तरल पदार्थ (Amniotic liquid) भी बढ़ने लगता है। स्टेथोस्कोप से भ्रूण के हृदय की धड़कन को सुना जा सकता है।

4. योनि का नीला पड़ना:
गर्भावस्था के दूसरे माह से योनि के रंग में परिवर्तन होने लगता है। चौथे माह तक योनि का नीलापन अपनी चरम सीमा पर होता है जो प्रसव के समय तक बना रहता है।

5. त्वचा में परिवर्तन:
गर्भवती स्त्री के चेहरे का रंग पीला व आँखों के नीचे व ऊपर व होंठ के आस-पास का रंग कुछ काला सा हो जाता है।

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प्रश्न 2.
गर्भवती महिला में अन्तिम 5 माह में उत्पन्न लक्षणों को लिखिए।
उत्तर:
गर्भवती महिला में अन्तिम 5 माह में उत्पन्न लक्षण निम्न प्रकार हैं –

  • भ्रूण की क्रियाशीलता बनी रहती है व भ्रूण की गतिशीलता निरन्तर बढ़ती जाती है।
  • स्तनों के भार में भी निरन्तर वृद्धि होती रहती है।
  • पैरों की पेशियों में अन्त:उदरीय रक्तचाप के बढ़ने से संकुचन होने लगता है एवं सूजन आ जाती है।
  • गर्भावस्था के अन्तिम दो – तीन माह में गर्भवती स्त्री की महाप्राचीरा पेशियों (मध्यपट) पर अधिक दबाव पड़ने लगता है जिससे सांस लेने में कठिनाई का अनुभव होता है।
  • गर्भाशयी संकुचन भी होता रहता है।

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