RBSE Solutions for Class 11 Home Science Practical Work unit 5 गृह प्रबन्धन

Rajasthan Board RBSE Class 11 Home Science Practical Work unit 5 गृह प्रबन्धन

RBSE Class 11 Home Science Practical Work chapter 10

गृह सज्जा का अर्थ:
गृह को सजाने – संवारने की कला को ‘गृह सज्जा’ या ‘आन्तरिक सज्जा’ कहते हैं।
Interior decoration is a creative art which can transform an ordinary house. It is the art of adjusting the space and equipment to suit the fundamental cultural needs of the dwellers and thus creating a pleasant atmosphere–Stella Sundararaj.

गृह सज्जा के उद्देश्य:
1. सुन्दरता – गृह सज्जा का पहला उद्देश्य है, घर को सुन्दर एवं आकर्षक रूप देना। सुन्दर चीजें चाहे वे सजीव हों या निर्जीव सभी का ध्यान आकर्षित करती हैं, सुन्दरता गुणों का वह संयोजन है जो आँखो, कानों एवं मन को आनन्द एवं खुशी प्रदान करने वाला है। गृह सज्जा के संयोजन से ही इसका स्वरूप बनता है। अत: गृह सज्जा एवं कला को एक-दूसरे का पूरक कहा जाता है। कला के तत्वों एवं सिद्धान्तों का अध्ययन करके किसी भी वस्तु की सुन्दरता को आंका जा सकता है।

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कला के सिद्धान्त:
कला के निम्न सिद्धान्त हैं –

  • अनुपात (Proportion)
  • संतुलन (Balance)
  • लय (Rhythm)
  • दबाव (Emphasis)

2. अभिव्यंजना:
सुसज्जित घर वही होता है जिसमें संगतपूर्णता हो, जिसकी सभी वस्तुएँ उचित अनुपात, बनावट, एवं लय की हो। उनकी आकार-आकृति में अनुरूपता हों। अभिव्यंजना के निम्न गुण हैं –

  • औपचारिकता (Formality)
  • अनौपचारिकता (Informality)
  • स्वाभाविकता (Naturality)
  • आधुनिकता (Modernity)

3. उपयोगिता / कार्यात्मकता:
गृह सज्जा इस प्रकार करनी चाहिए कि कम-से-कम समय, शक्ति धन, ऊर्जा का व्यय हो। सामग्रियों को क्रमबद्ध रूप से व्यवस्थित करके इस तरह से रखना चाहिए एवं सज्जा आरामदायक एवं सुविधापूर्ण होनी चाहिए।

4. विविधता:
कार्यों की विविधता के अनुसार कक्षों की सजावट में भी परिवर्तन करना आवश्यक है। गृह सज्जा में विविधता लाकर परिवार के सदस्यों में उमंग, आनन्द, हर्ष, खुशी, उत्साह भरा जा सकता है। नई ऊर्जा का संचार किया जा सकता है जिससे व्यक्ति को कार्य करने में स्फूर्ति आती है।

5. मौलिकता:
वस्तुतः सृजन कला का दूसरा नाम मौलिकता है। कक्षों की सजावट व्यवस्था एवं उसके प्रबन्ध से गृहिणी तथा अन्य सदस्यों की रूचि, स्वभाव, प्रकृति, रहन-सहन की आदतों, संस्कृति आदतों का ज्ञान होता है।

6. मितव्ययता:
सामान्य जन भी कम – से-कम साधनों का प्रयोग करके मनोहारी एवं आकर्षक गृह सज्जा कर सकते हैं। कम-से-कम उपकरण, फर्नीचर, उपसाधनों आदि के प्रयोग से भी सज्जा में आकर्षक, मनोहारी एवं लुभावना प्रभाव उत्पन्न किया जा सकता है। मितव्यता न केवल अर्थ के सम्बन्ध में हो बल्कि समय एवं शक्ति के सम्बन्ध में भी होना अनिवार्य है।

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पुष्प सज्जा:
पुष्प विन्यास का अर्थ- पुष्प विन्यास एक कला है, जिसका मुख्य उद्देश्य वातावरण को सजीव, आकर्षक, लुभावना, सुन्दर, मनोहारी एवं सुगन्धित बनाना है। पुष्प विन्यास से तात्पर्य है, ‘विभिन्न प्रकार के फूलों, पत्तियों, कलियों, टहनियों एवं फूलदानों का कला के तत्वों एवं सिद्धान्तों के आधार पर एक ऐसा सृजन करना जिससे कि अवसर, स्थान, वस्तु, घर आदि की सुन्दरता एवं आकर्षण में कई गुना वृद्धि हो सके तथा सम्पूर्ण वातावरण में प्रसन्नता एवं आनन्द छा जाए।’

पुष्प सज्जा में उपयोग लायी जाने वाली सामग्री
1. फूलदान अथवा फूल लगाने के पात्र (Flower Pot or Container)-विभिन्न आकार, रंग रूप, आकृति बनावट व डिजाइन के फूलदान बाजार में उपलब्ध होते हैं जो कि विभिन्न प्रकार के धातु, मिट्टी संगमरमर, पत्थर, लकड़ी, प्लास्टिक आदि के बने व सुन्दर चित्रकारी नक्काशी वाले होते हैं।

फूलदान के चयन में ध्यान रखने योग्य बातें
पुष्प सज्जा की शैली, स्थान, मात्रा, फूलों के रंग, रूप, आकार आदि को ध्यान में रखते हुए फूलदान का चयन करना चाहिए।

  • हल्के रंग के फूलों के साथ गहरे रंग के फूलदान अधिक शोभा देते हैं।
  • खाने की मेज पर उथला फूलदान लगाना चाहिए।
  • औपचारिक पुष्प सज्जा करनी है तो काँच के चिकने धरातल वाले फूलदान का चुनाव करना चाहिए।
  • पुष्प सज्जा को मजबूती प्रदान करने, टहनियों को बाँधे रखने एवं सहारा प्रदान करने के लिए टहनी होल्डर का उपयोग करना चाहिए।

पुष्प सज्जा हेतु आवश्यक पौध सामग्री

  • फूलों को सूर्यास्त एवं सूर्योदय से पहले काटना चाहिए।
  • फूलों को पौधों से काटने के पश्चात् तुरन्त पानी में डाल देना चाहिए।
  • फूलों की हरी पत्तियों को हटा देना चाहिए। कुछ फूलों की टहनियों; जैसे – पॉपी, रबर के तने को काटने से दूध जैसा श्वेत पदार्थ निकालता है, ऐसे में फलों को गीले कपड़े से लपेटकर उनकी टहनियों को उबले पानी में 1 – 2 मिनट छोड़ देना चाहिए।
  • फूलों की टहनियों को सदैव तिरछा काटना चाहिए। तिरटे कटे हुए भाग को चुटकी भर नमक लेकर रगड़ देना चाहिए। इससे फूल अधिक समय तक सजीव रहते हैं।

पुष्प व्यवस्था के प्रकार:
1. रेखीय डिजाइन में पुष्प व्यवस्था

  • रेखीय पुष्प व्यवस्था करने से पूर्व सज्जाकर्ता को डिजाइन को अपने मस्तिष्क में बना लेना चाहिए।
  •  किस तरह की रेखाएँ बनायी जानी हैं; जैसे – C. F. E, S अक्षर या कोई अन्य आकृति, स्पष्ट होनी चाहिए।
  • उपयुक्त फूलदान का चयन करके फूलदान की ऊँचाई एवं चौड़ाई से पुष्प व्यवस्था में ऊँचाई एवं चौड़ाई डेढ़ गुनी ज्यादा रहती है।
  • रेखा की आकृति के अनुरूप टहनियों से आधार की तैयारी की जानी चाहिए। यह ध्यान रहे कि बाह्य रेखा की निरन्तरता बनी रहे क्योंकि ये रेखाएँ ही व्यवस्था को गति देती हैं तथा इनकी लम्बाई, चौड़ाई एवं गहराई को स्पष्ट करती हैं।
  • पुष्प व्यवस्था में खाली स्थान को भी पर्याप्त महत्व दिया जाना चाहिए। उप-साधनों यथा-सीप, शंख, स्टारफिश, पत्थर, कंकड आदि रखकर भी सज्जा को आकर्षक बनाया जा सकता है।

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2. समूह शैली में व्यवस्था

  • समूहीकृत सज्जा ऊँचे आकार के फूलदान में की जानी चाहिए तथा फूलदान में ऊपरी सिरे तक तार की जाली लगा देनी चाहिए।
  • फूलदान में इतना पानी भरना चाहिए ताकि टहनियों का अन्तिम सिरा पानी में ड्बा रहे।
  • फूलदान की लम्बाई एवं चौड़ाई का ध्यान में रखते हुए इससे करीब डेढ़ गुना लम्बाई की टहनियों का चुनाव किया जाना चाहिए। पात्र की चौड़ाई से सज्जा की चौड़ाई दुगुनी रखनी चाहिए।
  • फलों की टहनियों को तार की जाली की सहायता से विभिन्न दिशाओं में छितराकर व्यवस्थित करना चाहिए। आड़ी-खड़ी विकर्ण रेखाओं का उपयोग किया जा सकता है।
  • पुष्प सज्जा को आकर्षक बनाने तथा रुचि केन्द्र पर दबाव उत्पन्न करने के लिए सबसे बड़े सुन्दर, चटकीले, खूबसूरत रंग के फूलों को केन्द्र में लगाना चाहिए।

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3. लघु पुष्प व्यवस्था:
इसकी लम्बाई सामान्यत: 4.5” से 5.5” रखनी चाहिए। इस प्रकार की पुष्प सज्जा छोटी कटोरी, गिलास, प्लेट, चौड़े मुँह की छोटी शीशी आदि में की जा सकती है।

4. मिली-जुली मिश्रित पुष्प व्यवस्था:
इस प्रकार की पुष्प सज्जा को ‘अमेरिकन शैली’ की पुष्प सज्जा भी कहा जाता है। इसमें रेखीय शैली तथा समूहीकृत शैली में सबसे उत्तम गुणों एवं विशेषताओं को चुनकर इनके द्वारा एक नवीन सज्जा कर सकते हैं।

5. जापानी पुष्प सज्जा:
इसमें फूलों, पत्तियों, टहनियों को विशेष रूप से सजाते हैं। जिसकी ऊँचाई 10-15 फीट तक हो सकती है।

  • इकेबाना – इसे चौड़े आकार के फूलदानों / गमलों में सजाया जाता है।
  • मोरी बाना एवं नाजीरे – मोरीबाना में चौड़ी व उथले फूलदानों का उपयोग किया जाता है तथा नाजीरे में लम्बे आकार के फूलदानों का उपयोग किया जाता है।

फर्श सज्जा:
1. मांडना:
मांडना राजस्थान की प्रसिद्ध लोक कला है। इसे महिलाएँ विशेष अवसरों पर जमीन अथवा दीवार पर
बनाती हैं। मांडना शब्द को मांडन शब्द से लिया गया है। जिसका अर्थ है सज्जा। मांडना की पारम्परिक आकृतियों में ज्यामितीय एवं पुष्प आकृतियों को लिया गया है मुख्य रूप से मांड़ने कच्चे फर्श पर बनाए जाते हैं तथा गीले रंग जैसे—गेरू और खड़िया का उपयोग किया जाता है।
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2. रंगोली:
रंगोली भारत की प्राचीन प्राकृतिक परम्परा और लोक कला है। इसे सामान्यत: त्यौहार, वृत्त, पूजा, उत्सव, विवाह आदि शुभ अवसरों पर सूखे एवं प्राकृतिक रंगों से बनाया जाता है। इसमें साधारण ज्यामितीय आकार हो सकते हैं या फिर देवी-देवताओं की आकृतियाँ हो सकती हैं।

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इसके लिए प्रयोग में लाए जाने वाले पारम्परिक रंगों में पिसा हुआ सुखा या गीला चावल, सिंदूर, रोली, हल्दी, सूखा आटा और अन्य प्राकृतिक रंगों का प्रयोग भी होने लगा है। कभी-कभी रंगोली फूलों, लकड़ी या किसी अन्य वस्तु के बुरादे या चावल आदि अन्न से भी बनाया जाता है। रंगोली का दूसरा नाम अल्पना भी है। रंगोली एक अलंकरण कला है जिसका भारत के अलग-अलग प्रान्तों में अलग-अलग नाम है। उत्तर प्रदेश में इसे चौक पूरना, राजस्थान में माण्डना, बिहार में अरिपन, बंगाल में अल्पना, महाराष्ट्र में रंगोली, केरल में कोलम आदि नामों से भी जाना जाता है।

रंगोली के प्रमुख तत्व:

  • पिसे हुए चावल का घोल,
  • सुखाए हुए पत्तों का पाउडर
  • चारकोल,
  • जलाई हुई मिट्टी,
  • लकड़ी का बुरादा

रंगोली की पृष्ठभूमि के लिए साफ या लिपी हुई जमीन या दीवार का प्रयोग किया जाता है। रंगोली आंगन के मध्य में, कोनों पर या बेल के रूप में चारों ओर बनाई जाती है। रंगोली को दो प्रकार से बनाया जा सकता है – सूखी रंगोली और गीली रंगोली। दोनों में एक मुक्त हस्त से और दूसरी बिन्दुओं को जोड़कर बनाई जाती है।

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  • बिन्दुओं को जोड़कर बनाई जाने वाली रंगोली के लिए पहले सफेद रंग से जमीन पर किसी विशेष आकार में निश्चित बिन्दु बनाए जाते हैं।
  • फिर उन बिन्दुओं को मिलाने पर एक सुन्दर आकृति आकार ले लेती है।
  • आकृति बनाने के बाद उनमें मनचाहे रंग भरे जा सकते हैं।
  • पारम्परिक माण्डना बनाने में गेरू और सफेद खड़िया का प्रयोग किया जाता है।
  • सांचे का प्रयोग करके भी रंगोली बनायी जाती है। इसमें नमूने के अनुसार छोटे छेद होते हैं। इन्हें जमीन से हल्का-सा
    सटाते ही निश्चित स्थानों पर रंग झरता है और सुन्दर नमूना प्रकट होता है।
  • गीली रंगोली चावलों को पीसकर उसमें पानी मिलाकर तैयार की जाती है। इस घोल को ऐपण, ऐपन या पिवर कहा जाता है। इससे रंगीन बनाने के लिए हल्दी का प्रयोग भी किया जाता है।
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प्रायोगिक चिकित्सा पेटी:
प्राथमिक उपचार की आवश्यकता सबसे अधिक उस वक्त पड़ती है जब कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना में घायल हो जाता है और उसे डॉक्टर की सहायता मिलने में या अस्पताल तक जाने में समय लगता है। ऐसी स्थिति में प्राथमिक उपचार दिया जाता है। प्राथमिक उपचार के लिए उपचारकर्ता के पास कुछ वस्तुओं का होना आवश्यक है। प्राथमिक उपचार के दौरान उपयोग में आने वाले साधनों के संग्रह को प्राथमिक चिकित्सा पेटी या First Aid Kit कहा जाता है।
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हड्डियों के टूटने / खिसकने पर, त्वचा के जलने पर शरीर में जहरीला तत्व जाने पर, कटने या छिलने, पर किसी जीव जन्तु के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा दी जाती है। ऐसी किसी भी अवस्था दुर्घटना, बीमारी या आपातकालीन स्थिति से उबारने के लिए एक प्राथमिक चिकित्सा पेटी अत्यन्त आवश्यक है।

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प्राथमिक चिकित्सा पेटी बनाना:
प्रत्येक घर, स्कल, फैक्टरी व कार्यस्थल पर, प्राथमिक चिकित्सा पेटी अवश्य होनी चाहिए ताकि आवश्यकता पड़ने पर इसका उपयोग किया जा सके। प्राथमिक चिकित्सा पेटी सुव्यविस्थत व सम्पूर्ण सामग्री युक्त होनी चाहिए। प्राथमिक चिकित्सा पेटी हल्की, टिकाऊ व खुलने में आसान होनी चाहिए ताकि सुविधानुसार इसे एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सके। प्राथमिक चिकित्सा पेटी में क्या-क्या साधन रखने हैं, यह चिकित्सा पेटी को उपयोग करने वाले के ज्ञान व अनुभव पर निर्भर करता है। सामान्यतः प्राथमिक चिकित्सा पेटी में निम्नलिखित सामग्री होनी चाहिए –

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  1. प्राथमिक चिकित्सा (First Aid Kit Manual) – प्राथमिक चिकित्सा कैसे की जाती है और प्राथमिक चिकित्सा पेटी में रखी हुई चीजों का उपयोग कैसे करते हैं, इसकी जानकारी के लिए बाजार में उपलब्ध प्राथमिक चिकित्सा पुस्तिका रखना आवश्यक है।
  2.  तिकोनी पट्टियाँ (Triangular Bandage) – घायल व्यक्ति के जख्मी या टूटे हुए हिस्से को सहारा देने के लिए गलपट्टी (Sling) के रूप में उपयोग किया जाता है।
  3. बड़ी पट्टियाँ (Big Bandages) – बड़ी पट्टियों का उपयोग घाव या मोच बांधने के लिए किया जाता है।
  4. गोल पट्टियाँ (Riound Bandages) – ये घाव पर बाँधने के प्रयोग में लायी जाती है।
  5. कीटाणु रहित गॉज (Sterile Guaz) – प्राथमिक चिकित्सक के पास साफ गाँज होना आवश्यक है। यह गॉज जख्म आदि पर बाँधने के लिए उपयोग में लिया जाता है।
  6. चिपकने वाली पट्टियाँ (Adhesive Tapes) – प्राथमिक चिकित्सा पेटी में चिपकने वाली पट्टियाँ (टेप) होनी चाहिए। इसका प्रयोग छोटे घावों पर मरहम पट्टी चिपकाने के लिए किया जाता है।
  7. कैंची (Scissor) – प्राथमिक चिकित्सा पेटी में छोटी कैंची अवश्य होनी चाहिए। यह पटिटयों को विभिन्न आकारों में काटने के काम आती है।
  8. सेफ्टी पिन (Safety pin) – ये बाजार में उपलब्ध होती हैं। इसका प्रयोग किसी प्रकार की पट्टी को घाव पर रोकने के लिए किया जाता है।
  9. छोटी चिमटी (Tweezer / Forceps) – काँटा या काँच चुभ जाने पर उसे निकालने के लिए चिमटी का प्रयोग किया जाता है।
  10. साबुन (Soap) – साबुन का उपयोग घायल का उपचार करने से पूर्व व बाद में हाथों को धोकर विसंक्रमित करने के लिए किया जाता है।
  11. तापमापी (Thermometer) – पीड़ित के शरीर का ताप मापने के लिए थर्मामीटर आवश्यक है।
  12. एण्टीसेप्टिक घोल (Antiseptic Lotion) – एन्टीसेप्टिक घोल; जैसे – डिटॉल, सेवलॉन आदि का प्रयोग गन्दे घाव को साफ कर, घाव को विसंक्रमित करने के लिए किया जाता है।
  13. सीटी (Whistle) – इसका प्रयोग किसी अन्य आदमी की सहायता लेने के लिए किया जाता है।
  14. माचिस (Match Box) – चिमटी, कैंची आदि को गर्म करके उन्हें जीवाणु रोधी बनाने के लिए माचिस का उपयोग किया जाता है।
  15. वैसलीन (Vaslein) – वैसलीन का उपयोग चिकनाई प्रदान करने के लिए किया जाता है।
  16. विक्स (Vics) – विक्स का उपयोग घायल की श्वसन क्रिया को सामान्य करने के लिए किया जाता है।
  17. बाम (Balm) – दर्द कम करने के लिए, लिए इसका उपयोग किया जाता है।
  18. चाकू-ब्लेड (Knife/Blade) – प्राथमिक चिकित्सा पेटी में विभिन्न उद्देश्यों के लिए चाकू एवं ब्लेड होना आवश्यक है।
  19. दवा पिलाने का गिलास (Glass) – घालय व्यक्ति को दवा पिलाने के काम आता है।
  20. आँख धोने का कप (Eye wash cup) – घायल व्यक्ति की आँखों को साफ करने के लिए कप काम में लिया जाता है।
  21. ग्लूकोज (Glucose) – मरीज को तुरन्त ऊर्जा प्रदान करने के लिए ग्लूकोज पाउडर काम में लाया जाता है।
  22. टार्च (Torch) – अंधेरे में देखने के लिए टार्च एक आवश्यक उपकरण हैं।
  23. खपच्चियाँ – टूटी हड्डियों को सहारा देने के लिए खपच्चियों का प्रयोग किया जाता है।
  24. खपच्चियों को स्थिर रखने के लिए फीतेटूटी हुई हड्डियों पर लगाई गई खपच्चियों को स्थिर करने के लिए फीते काम में लिए जाते हैं।
  25. बरनॉल (Burnol) – जलने पर बरनॉल क्रीम का उपयोग किया जाता है।
  26. ‘नाप की गुर्दे के आकार की चिलमची (Kidney Shaped Tray) – यह सामान रखने के कार्य में ली जाती है।
  27. प्लास्टिक शीट (Plastic Sheet) – घायल का उपचार शुरू करने से पहले लिटाने के काम आती है।
  28. ओ. आर. एस. (Oral Rehydration Salt) – घायल व्यक्ति के शरीर में पानी की कमी होने पर तुरन्त ओ. आर. एस. का घोल दिया जाता है।
  29. दवाइयाँ (Medicines) – प्राथमिक चिकित्सा के लिए पेटी में कुछ दवाइयाँ अवश्य होनी चाहिए।
    • दर्द निवारक दवाइयाँ – पेरासिटामोल (Paracetamol),
    • डाइक्लोफिनेक (Diclofenace) इत्यादि।
    • एंटिबायटिक दवाइयाँ – Neosprin, Providine Iodine
    • दस्तरोधी दवाएँ – रिनिफोल (Rinifol), लोपेरामाइड (Loperamide), ORS घोल आदि।
    • दमारोधी दवा – सेलबुटामोल (Salbutamol), एस्थेलिन इन्हेलर (Asthalin Inhaler)
    • वमनरोधी दवा – सिक्विल (Siquil), स्टेमेटिल (Stemetil)
    • हिस्टेमीनरोधी – ऐविल (Avil), बेनाड्रिल (Benadryl), फिनारगन (Phenergan)
  30. रिकार्ड बुक तथा पेंसिल-घायल व्यक्ति से सम्बन्धित आवश्यक सूचनाएँ लिखने तथा प्रेक्षण चार्ट बनाने के लिए प्राथमिक चिकित्सा पेटी में रिकार्ड बुक तथा पेन्सिल होनी चाहिए।
  31. दस्ताने (Disposable Gloves) – प्राथमिक चिकित्सक की अपनी सुरक्षा तथा घायल व्यक्ति के घावों को संक्रमित होने से बचाने के लिए दस्ताने आवश्यक हैं।
  32. रुई (Cotton) – उपचारकर्ता के पास साफ रुई होनी चाहिए। रुई घावों को साफ करने के काम आती है।
  33. जीवाणुरोधी मरहम (Antibiotic Ointment) – खुले हुए घावों पर लगाने के लिए बीटाडीन (Betadine) या सोफरामाइसिन (Soframlyein) मरहम चिकित्सा पेटी में होने चाहिए।
  34. गर्म पानी की बोतल (Hot water Bag) – इस प्रकार के बर्तन में गर्म पानी भर कर पीड़ित व्यक्ति के अंगों पर सिकाई की जाती है।

35. बर्फ की टोपी (Cold Cap):
अधिक तेज बुखार में सिर पर रखने के लिए बर्फ की टोपी का प्रयोग किया जाता है। इन सभी सामग्रियों को एक साथ स्वच्छ, मजबूत और जलरोधी (Water proof) बॉक्स में रखना चाहिए। प्राथमिक चिकित्सा पेटी पर लाल टेप या रंग से रेड क्रॉस (+) का निशान बनाएँ ताकि आपकी पेटी को अन्य सामान/डिब्बों में आसानी से पहचाना जा सके। चिकित्सा पेटी के ऊपर अपने पारिवारिक डॉक्टर व एम्बुलेंस के नाम और नम्बर अवश्य लिखें। प्रत्येक छ: माह में दवाइयों और अन्य सामानों की समाप्ति होने की दिनांक (Expiry Date) की जाँच करते रहें और आवश्यकतानुसार बदलते रहें।

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3. प्राथमिक चिकित्सा पेटी का इस्तेमाल कैसे करें –
किसी भी चिकित्सीय आपातकालीन अवस्था में अपना साहस और धैर्य बनाए रखें और हालात को समझने की कोशिश करें। जब बेहद आवश्यक हो तभी प्राथमिक चिकित्सा पेटी का इस्तेमाल करने की सोचें और नीचे दी गई बातों का ध्यान रखें –

1. यदि किसी प्रकार की आपातकालीन घटना हुई है तो सहायता के लिए चिल्लाएँ और लोगों का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करें और यदि आप सुरक्षित हैं तो घायल व्यक्ति पर ध्यान दें और सम्भव हो तो मदद के लिए अस्पताल और पुलिस को फोन करें।

2. आपातकालीन दशा में काम आने वाले फोन नम्बर आपको मालूम होने चाहिए और आपके फोन में भी वे सभी नम्बर होने चाहिए; जैसे – पुलिस, एम्बुलेंस, अस्पताल तथा अग्निशमन विभाग आदि।

3. यदि कोई घायल है तो सहायता आने तक उसे अकेला नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि आपका साथ घायल व्यक्ति को। भावनात्मक सहायता देता है और उसे घातक चोट होने पर भी जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है। घायल को सांत्वना दें कि वह ठीक है और उसे कुछ नहीं होगा।

4. यदि चोट साधारण है तो आप प्राथमिक उपचार दे सकते हैं।

5. हडडी टूटने या ऐसी कोई चोट होने पर हिलाए डुलाएँ नहीं और चोट ग्रस्त स्थान पर बर्फ लगाएँ।

6. अगर रुधिर स्राव हो रहा है तो रुधिर को बहने से रोकने का प्रयास करना चाहिए और सावधानीपूर्वक मरहम पट्टी करें।

7. आग लगने की स्थिति में ध्यान देने योग्य सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि जले हुए स्थान से त्वचा या कपड़ा हटाने का प्रयास न करें और सिर्फ उस स्थान को साफ पानी से भली प्रकार धो लें और उस स्थान पर किसी प्रकार की क्रीम या कोई मरहम न लगाएँ।

8. प्राथमिक चिकित्सा के पहले और बाद में अपने हाथ साबुन से अच्छी तरह धो लेने चाहिए।

9. घायल व्यक्ति को खाने-पीने के लिए तुरन्त कुछ नहीं देना चाहिए क्योंकि घबराहट से उल्टी हो सकती है जिससे घायल की स्थिति और अधिक खराब हो सकती है।

10. घायल व्यक्ति को पैरों के बीच में कुछ दूरी रखते हुए आरामदायक अवस्था में लिटा दें और ध्यान रखे कि श्वसन क्रिया ठीक प्रकार से हो रही है।

11. घायल के आस-पास के वातावरण का ध्यान रखें। उसके आस-पास भीड़ न इकट्ठा होने दें तथा घायल को हवा आने दें।

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गतिविधि
उपरोक्त वर्णित प्राथमिक चिकित्सा पेटी की सामग्री को ध्यान में रखते हुए पाक प्रयोगशाला में रखने हेतु प्राथमिक चिकित्सा पेटी व सफर में ले जाने हेतु प्राथमिक चिकित्सा पेटी के लिए छोटा किट बनाइए और प्रदर्शित कीजिए।
1. पाक प्रयोगशाला में रखने हेतु प्राथमिक चिकित्सा पेटी –

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2. सफर में प्राथमिक चिकित्सा के लिए छोटा किट बनाना –

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