RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 13 राजस्थान: जलवायु, वनस्पति व मृदा

Rajasthan Board RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 राजस्थान: जलवायु, वनस्पति व मृदा

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्थान की औसत वर्षा है-
(अ) 52.37 सेमी
(ब) 65.62 सेमी
(स) 25.25 सेमी
(द) 100.85 सेमी
उत्तर:
(अ) 52.37 सेमी

प्रश्न 2.
उपोष्ण, पर्वतीय वन जिस जिले में पाए जाते है, वह है।
(अ) अलवर
(ब) जयपुर
(स) अजमेर
(द) सिरोही
उत्तर:
(द) सिरोही

प्रश्न 3.
राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी क्षेत्र के जितने भाग पर वन होने चाहिए, वह है
(अ) दो तिहाई
(ब) एक तिहाई
(स) चौथाई
(द) तीन चौथाई
उत्तर:
(ब) एक तिहाई

प्रश्न 4.
राजस्थान में कितनी प्रकार की मिट्टियाँ पाई जाती हैं?
(अ) सात
(ब) छः
(स) नौ
(द) दस
उत्तर:
(ब) छः

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 5.
राजस्थान की जलवायु कैसी है?
उत्तर:
राजस्थान की जलवायु, शुष्क से उपार्द्र मानसूनी प्रकार की है।

प्रश्न 6.
कर्क रेखा पर सूर्य किस महीने में सीधा चमकता है?
उत्तर:
कर्क रेखा पर जून माह में सूर्य सीधा चमकता है।

प्रश्न 7.
मावट क्या है?
उत्तर:
भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में दिसम्बर-जनवरी माह में पश्चिम से आने वाले शीतोष्ण चक्रवातों द्वारा जो वर्षा होती है, उसे मावट कहते हैं।

प्रश्न 8.
राजस्थान को कितने जलवायु प्रदेशों में बाँटा गया है?
उत्तर:
राजस्थान को मुख्यत: चार जलवायु प्रदेशों-शुष्क जलवायु प्रदेश, अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश, आर्द्र जलवायु प्रदेश व अति आर्द्र जलवायु प्रदेश के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 9.
सागवान के वन प्रधानतः किन जिलों में पाए जाते हैं?
उत्तर:
सागवान के वन मुख्यत: उदयपुर, डूंगरपुर, झालावाड़, चित्तौड़गढ़ व बारां जिलों में पाए जाते हैं।

प्रश्न10.
राजस्थान की मिट्टी की दो मुख्य समस्याएँ बताइये।
उत्तर:
राजस्थान की मिट्टी की दो मुख्य समस्याएँ हैं-

  1. मृदा अपरदन की समस्या
  2. मृदा उर्वरता के ह्रास की समस्या।

प्रश्न 11.
रेंगती मृत्यु किसे कहते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में मृदा अपरदन एक बड़ी समस्या है। इससे मृदा व उसकी उर्वरता में होने वाली विनाश की प्रक्रिया को रेंगती मृत्यु कहा जाता है।

प्रश्न 12.
मिट्टी अपरदन के रूप बताइये।
उत्तर:
मिट्टी का अपरदन मुख्यतः परत अपरदन व नालीनुमा अपरदन के रूप में होता है।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 13.
जलवायु को परिभाषित करते हुए इसके तत्व बताइये।
उत्तर:
जलवायु की परिभाषा – किसी विस्तृत क्षेत्र की लम्बी अवधि (तीस वर्षों से अधिक) की औसत मौसमी दशाओं को उस क्षेत्र की जलवायु कहते हैं। यह प्रायः किसी क्षेत्र में शुष्क, अर्द्धशुष्क, उपार्द, आर्द्र एवं अतिआर्द्र जलवायु के रूप में पायी जाती है।
जलवायु के तत्व – जलवायु का प्रारूप अनेक तत्वों को सम्मिश्रण होता है। इन तत्वों में तापमान, वायुदाब, पवन एवं वर्षा आदि को शामिल किया गया है। इन तत्वों की स्थिति के अनुसार ही जलवायु का निर्धारण होता है।

प्रश्न 14.
राजस्थान की जलवायु की कोई चार मुख्य विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
राजस्थान एक विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वाला राज्य है इसमें जलवायु की स्थिति अनेक विशेषताओं को दर्शाती है। यथा-

  1. राजस्थान में शुष्क एवं उपार्द मानसूनी जलवायु पाई जाती है।
  2. राजस्थान में वर्षा के वितरण में अधिक विषमता देखने को मिलती है। कहीं वर्षा का वितरण अधिक मिलता है तो कहीं पर वितरण बहुत ही कम पाया जाता है।
  3. राजस्थान में मिलने वाली रेत की अधिकता के कारण यहाँ दैनिक व वार्षिक तापान्तर अधिक पाया जाता है।
  4. राजस्थान में अधिकांश वर्षा, वर्षा ऋतु में होती है। पूर्व से पश्चिम व दक्षिण से उत्तर की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है।

प्रश्न 15.
राजस्थान में कम वर्षा क्यों होती है?
उत्तर:
राजस्थान में मिलने वाली कम वर्षा की स्थिति के लिए निम्न कारक उत्तरदायी हैं-

  1. अरावली पर्वत का विस्तार अरब सागर की मानसून शाखा की दिशा के समानान्तर होने के कारण यह मानसून राज्य में बिना वर्षा किये उत्तर की तरफ चला जाता है।
  2. बंगाल की खाड़ी की ओर से आने वाले मानसून के राजस्थान में पहुँचते-पहुँचते आर्द्रता की मात्रा काफी कम हो जाती है।
  3. अरावली पर्वतमाला की कम ऊँचाई व उस पर वनस्पति की कमी भी कम वर्षा के लिए उत्तरदायी है।

प्रश्न 16.
अतिशुष्क जलवायु प्रदेश की मुख्य विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
राजस्थान के सबसे पश्चिमी भाग की ओर फैले हुए अतिशुष्क जलवायु प्रदेश की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. इस जलवायु प्रदेश में शुष्क व उष्ण जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं।
  2. इस, जलवायु प्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा की मात्रा 25 सेमी से कम मिलती है।
  3. ग्रीष्मकालीन अवधि के दौरान इस जलवायु प्रदेश में तापमान 45°C से 49°C तक मिलता है। जबकि शीतकाल में 8°C से 0°C तक पहुँच जाता है।
  4. इस जलवायु प्रदेश में रेत की अधिकता मिलने के कारण ग्रीष्मकाल में धूल भरी आँधियाँ चलती हैं।
  5. इस जलवायु प्रदेश में दैनिक व वार्षिक तापान्तर अधिक पाये जाते हैं।

प्रश्न 17.
राजस्थान में सघन वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
वनों की सघनता वर्षा की मात्रा के अनुसार नियंत्रित होती है। इसी कारण जिन क्षेत्रों में अधिक वर्षा होती है वहाँ वन प्रायः अधिक सघन होते हैं। राजस्थान का दक्षिणी व दक्षिणी-पूर्वी भाग अधिक वार्षिक वर्षा की प्राप्ति करता है। इसी कारण इस भाग में वनों की सघनता देखने को मिलती है। राजस्थान में मुख्यत: सिरोही, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, झालावाड़, कोटा, बून्दी, सवाई माधोपुर व अलवर जिलों में वनों की सघनता देखने को मिलती है।

प्रश्न 18.
मृदा अपरदन के कारण बताइये।
उत्तर:
मृदा अपरदन की प्रक्रिया हेतु प्राकृतिक एवं जैविक दोनों कारण उत्तरदायी होते हैं; यथा-

  1. तेजी से बहता हुआ जल मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत को बहा ले जाता है।
  2. खड़े ढालों पर जल का वेग अधिक होने से वहाँ अनेक नालियाँ वे खड्डे बन जाते हैं।
  3. शुष्क क्षेत्रों में वनस्पति के अभाव में तेज हवाएँ अपवाहन क्रिया द्वारा मिट्टी के असंगठित कणों को अपने साथ उड़ा ले जाती हैं।
  4. वनों के अन्धाधुन्ध कटाव से मिट्टी अपरदन को बल मिलता है। वृक्षों की जड़े मिट्टी को बाँधे रहती हैं।
  5. अत्यधिक पशुचारण से घास के नष्ट होने से मिट्टी की ऊपरी परत पर अपरदन आसानी से हो जाता है।
  6. झूमिंग कृषि से भी बड़ी मात्रा में मिट्टी का अपरदन होता है।
  7. अवैज्ञानिक तरीके से कृषि करने से मिट्टी का अपरदन होता है।

प्रश्न 19.
मृदा अपरदन को रोकने के उपाय बताइये।
उत्तर:
मृदा अपरदन की प्रक्रिया को रोकने के प्राकृतिक कारकों से बचाव के साथ-साथ जैविक कारकों को नियंत्रित करना आवश्यक है। इसके लिए निम्नलिखित कदम उठाये जाने चाहिए-

  1. बाढ़ के क्षेत्रों में बाँध व एनीकट बनाकर तथा खेतों की मेड़बन्दी कर पानी के बहाव को नियंत्रित करना चाहिए।
  2. वनों की अनियंत्रित कटाई को रोककर वृक्षारोपण को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  3. पशुचारण पर नियंत्रण किया जाना चाहिए।
  4. शुष्क क्षेत्रों में हवा की गति को कम करने व मिट्टी के अपरदन को रोकने के लिए पंक्तिबद्ध पौधे लगाए जाने चाहिए।
  5. सीढ़ीदार खेत बनाकर, समोच्च रेखीय जुताई कर एवं फसल चक्र का पालन कर मृदा अपरदन को काफी हद तक रोको जा सकता है।
  6. मृदा के संगठन को मजबूत बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशी तथा शाकनाशी दवाओं पर प्रतिबन्ध लगाकर हरी खाद, जैविक खाद के प्रयोग व भूमि के उपजाऊपन को बढ़ाने वाली फसलों के उत्पादन पर जोर देना चाहिए।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 निबन्धाक प्रश्न

प्रश्न 20.
राजस्थान की मुख्य ऋतुओं का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में जो ऋतुएँ मिलती हैं उनका वर्णन निम्नानुसार है-

  1. ग्रीष्म ऋतु,
  2. वर्षा ऋतु,
  3. शीत ऋतु।

1.  ग्रीष्म ऋतु – राजस्थान में इस ऋतु का समय मार्च से मध्य जून तक मिलता है। यह ऋतु सूर्य के उत्तरायण की ओर आने के साथ ही प्रारम्भ होने लगती है। जून में जब सूर्य कर्क रेखा पर चमकने लगती है तो राजस्थान में अधिकांश क्षेत्रों का औसत तापमान 30°-36°C तक हो जाता है। पश्चिमी राजस्थान में तापमान 48°C तक पहुँच जाता है। दिन में भयंकर गर्मी पड़ती है। शरीर झुलसने लगता है। प्रचण्ड लू व धूल भरी आँधियाँ चलती हैं। लू के रूप में उच्च ताप वाली हवाएँ चलती हैं। वायु में नमी की कमी हो जाती है। राजस्थान का पूर्वी भाग पश्चिमी भाग की तुलना में कम विषमता को दर्शाता है।

2. वर्षा ऋतु – इस ऋतु का समय मध्य जून से सितम्बर तक मिलता है। मध्य जून में वायुदाब व हवाओं की दिशा में परिवर्तन शुरू हो जाता है। राजस्थान में मानसून जून के अंतिम सप्ताह या जुलाई के प्रारम्भ में पहुँचता है। राजस्थान में मानसून की दोनों शाखाओं अरब सागर व बंगाल की खाड़ी से वर्षा होती है। 50 सेमी समवर्षा रेखा राजस्थान को दो भागों में बाँटती है। अरावली के पूर्वी भाग में 50-100 सेमी वर्षा होती है। जबकि इसके पश्चिमी भाग में वर्षा का औसत 50 सेमी से कम मिलता है। राजस्थान की अधिकांश वर्षा इसी ऋतु में होती है। वर्षा की मात्रा में पूर्व से पश्चिमी व दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर कमी आती जाती है।

3. शीत ऋतु-इस ऋतु का समय अक्टूबर से फरवरी तक मिलता है। इस ऋतु को भारत सरकार के मौसम विभाग ने दो भागों में बाँटा है –
(1) शरद ऋतु , (2) शुष्क शीत ऋतु।

(1) शरद् ऋतु – (मानसून प्रत्यावर्तन काल) अक्टूबर में मानसूनी हवाएँ लौटने लगती हैं। क्योंकि स्थलीय निम्न दाब का क्षेत्र समाप्त हो जाता है और हिन्द महासागर में ताप वृद्धि के कारण निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। सितम्बर व अक्टूबर में उच्च तापमान व उच्च आर्द्रता के कारण उमस बनी रहती है। यह मानसून के लौटने का समय होता है।

(2) शुष्क शीत ऋतु – शीत ऋतु का राजस्थान में वास्तविक आगमन दिसम्बर माह में होता है। सूर्य के दक्षिणायन होने के साथ ही हवाओं की दिशा में परिवर्तन होने लगता है। उत्तरी-पश्चिमी ठण्डी हवाएँ पूरे राज्य में चलने लगती हैं। दिसम्बर-जनवरी माह में पश्चिम से आने वाले शीतोष्ण चक्रवातों द्वारा राज्य में कुछ स्थानों पर वर्षा होती है। इस शीतकालीन वर्षा को स्थानीय भाषा में मावट कहते हैं। शीतकाल में होने वाली यह वर्षा रबी की फसल के लिए वरदान सिद्ध होती है। इस समय उत्तरी राजस्थान में तापमान 10° से कम जबकि हाड़ौती क्षेत्र में तापमान 20°C के कम पाया जाता है। कभी-कभी हिमालय क्षेत्र में हिमपात होने पर राज्य में शीत लहर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इससे अनेक स्थानों पर तापमान हिमांक बिन्दु तक पहुँच
जाता है।

प्रश्न 21.
राजस्थान को जलवायु प्रदेशों में बाँटते हुए उनका विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान की विशाल भौगोलिक आकृति जलवायु सम्बन्धी दशाओं की विविधता को दर्शाती है। राजस्थान में मिलने वाले तापमान व वर्षा के वितरण के आधार पर राजस्थान में निम्न चार जलवायु प्रदेश माने गये हैं-

  1. शुष्क जलवायु प्रदेश,
  2. अर्द्ध-शुष्क जलवायु प्रदेश,
  3. आर्द जलवायु प्रदेश,
  4. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश।

1. शुष्क जलवायु प्रदेश – इसे मरुस्थलीय प्रदेश भी कहते हैं। इस प्रदेश में शुष्क वे उष्ण जलवायु दशाएँ पाई जाती हैं। यहाँ ग्रीष्मकाल में 45°C से 49°C तक अधिकतम तापमान हो जाता है तथा शीतकाल में 8°C से शून्य डिग्री तक न्यूनतम तापमान पहुँच जाता है। यहाँ 25 सेमी से कम वार्षिक वर्षा होती है। रेत की अधिकता के कारण ग्रीष्म ऋतु में धूल भरी आँधियाँ चलना आम बात है। अधिक दैनिक व वार्षिक तापान्तर यहाँ की विशेषता है। इस प्रकार की जलवायु जैसलमेर, बाड़मेर व बीकानेर में पाई जाती है।

2. अर्द्ध-शुष्क जलवायु प्रदेश – अरावली के पश्चिम एवं शुष्क जलवायु प्रदेश के मध्य यह प्रदेश फैला है। यहाँ 25 से 45 सेमी तक वार्षिक वर्षा होती है। गर्मियों में तापमान 36° से 42°C और शीतकाल का 10° से 17°C रहता है।

3. आर्द्र जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश में 50 से 75 सेण्टीमीटर तक वर्षा होती है। ग्रीष्मकालीन तापमान 32° से 34°C तथा शीतकालीन तापमान 12° से 18°C रहते हैं। अलवर, भरतपुर, धौलपुर, सवाई माधोपुर, टोंक, बून्दी, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ जिले का उत्तरी भाग इस प्रदेश में सम्मिलित हैं।

4. अति आर्द्र जलवायु प्रदेश – इस प्रदेश में 75 सेण्टीमीटर से अधिक वार्षिक वर्षा होती है। इसके अन्तर्गत कोटा, बारां, झालावाड़, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, सिरोही; उदयपुर व चितौड़गढ़ जिले का दक्षिणी भाग शामिल है। मानसून इस प्रदेश में सर्वाधिक सक्रिय रहता है।

राजस्थान में मिलने वाले इन जलवायु प्रदेशों को निम्न रेखाचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
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प्रश्न 22.
राजस्थान में पाए जाने वाले वनों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में पाए जाने वाले वन प्रादेशिक आधार पर अलग-अलग पाए जाते हैं। वनों के वितरण में मिलने वाली इस भिन्नता के लिए वर्षा का स्वरूप मुख्य भूमिका निभाता है। सम्पूर्ण राजस्थान में केवल 9.32 प्रतिशत भाग पर ही वन क्षेत्र है। राजस्थान में सघन वनों का आवरण मात्र 3.83 प्रतिशत ही है। राजस्थान में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र भी मात्र 0.03 हैक्टेयर है। राजस्थान में सिरोही में सर्वाधिक वन प्रतिशत जबकि चूरू सबसे कम वन प्रतिशत वाला जिला है।
राजस्थान के वनों को भौगोलिक एवं प्रशासनिक आधार पर निम्न भागों में बाँटा गया है-
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वनों के वितरण में भौगोलिक वर्गीकरण के स्वरूप को निम्नानुसार स्पष्ट किया गया है-

1. उष्ण कटिबन्धीय कंटीले वन-इस प्रकार के वन राजस्थान में पश्चिमी मरुस्थलीय शुष्क व अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में पाये जाते हैं। जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, पाली, बीकानेर, चूरू, नागौर, सीकर, झुन्झुनू में इस प्रकार की वनस्पति मिलती है। खेजड़ी का वृक्ष इस प्रकार के वनों में मुख्य है। इसके अलावा रोहिड़ा, बैर, कैर; थोर के वृक्ष व झाड़ियाँ मिलती हैं।

2. उपोष्ण पर्वतीय वन-इस प्रकार के वन केवल आबू पर्वतीय क्षेत्र में पाये जाते हैं। इन वनों में सदाबहार एवं अर्द्ध-सदाबहार वनस्पति होती हैं। इन वनों में आम, बांस, सागवान व नीम मुख्य रूप से मिलता है। इस प्रकार के वन राजस्थान में बहुत कम क्षेत्र (0.5%) पर मिलते हैं।

3. उष्ण कटिबन्धीय शुष्क पतझड़ वन-इन वनों का विस्तार राजस्थान के बहुत बड़े क्षेत्र में है। ये वन राजस्थान के 50-100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। ये वन मुख्यत: राजस्थान के मध्य, दक्षिण व दक्षिणी-पूर्वी भागों में बहुतायत से पाये जाते हैं। इन वनों में कई उप प्रकार मिलते हैं जिनमें शुष्क सागवान वन, सालर वन, बांस के वन, धोंकड़ा के वन, पलाश के वन, बबूल के वन व मिश्रित पर्णपाती वनों को शामिल किया गया है। राजस्थान में मिलने वाले वनों के इस स्वरूप को निम्न रेखाचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
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प्रश्न 23.
राजस्थान की मिट्टियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मिट्टी एक प्रकृति प्रदत्त उपहार है। राजस्थान की मृदाएँ भी राजस्थान हेतु कृषि कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ की मृदाओं का स्वरूप भौतिक स्वरूप का अनुसरण करता हुआ दृष्टिगत होता है। राजस्थान की मृदाओं को रंग, गठन व उपजाऊपन के आधार पर निम्न भागों में विभाजित किया गया है-

  1. मरूस्थलीय मिट्टी,
  2. लाल-पीली मिट्टी,
  3. लैटेराइट मिट्टी,
  4. मिश्रित लाल व काली मिट्टी,
  5. काली मिट्टी,
  6. कछारी मिट्टी।

1. मरुस्थलीय मिट्टी – यह मिट्टी पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती है। जालौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, बीकानेर, चूरू, झुन्झुन, नागौर आदि जिलों के अधिकांश क्षेत्रों में यह मिट्टी पाई जाती है। यह मिट्टी कम उपजाऊ होती है। अधिक तापान्तर व भौतिक अपक्षय इस मिट्टी के प्रमुख निर्माणकारी तत्व हैं।

2. लाल-पीली मिट्टी – इस प्रकार की मृदा सवाई माधोपुर, सिरोही, राजसमंद, उदयपुर व भीलवाड़ा जिलों के पश्चिमी भागों में पाई जाती है। यह मिट्टी ग्रेनाइट, नीस व शिस्ट चट्टानों के विखण्डन से बनती है। लौह अंश के कारण इस मिट्टी का रंग लाल व पीला होता है।

3. लैटेराइट मिट्टी – इस प्रकार की मिट्टी डूंगरपुर, उदयपुर के मध्य व दक्षिणी भागों एवं दक्षिणी राजसमंद जिले में मिलती है। यह मृदा प्राचीन स्फटिकीय व कायान्तरित चट्टानों से निर्मित होती है।

4. मिश्रित लाल व काली मिट्टी – इस प्रकार की मिट्टी का वितरण बाँसवाड़ा, पूर्वी उदयपुर, डूंगरपुर, चित्तौड़गढ़ व भीलवाड़ा जिलों में मिलती है। इसमें चीका की प्रधानता मिलती है।

5. काली मिट्टी – लावा जन्य मृदा के रूप में मिलने वाली यह मृदा दक्षिण-पूर्वी जिलों में कोटा, बून्दी, बारां वे झालावाड़ जिलों में मिलती है। यह चीका प्रधान दोमट मिट्टी होती है।

6. कछारी मिट्टी – राजस्थान में इस मिट्टी का विस्तार उत्तरी-पूर्वी जिलों गंगानगर, हनुमानगढ़, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर व टोंक जिले में मिलता हैं। यह हल्के भूरे लाल रंग की मृदा होती है जो रेतीले दोमट स्वरूप को दर्शाती है।
राजस्थान में मिलने वाली मृदाओं के इस स्वरूप को निम्न रेखाचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
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आंकिक प्रश्न

प्रश्न 24.
राजस्थान के मानचित्र पर जुलाई व जनवरी माह की समताप रेखाएँ दर्शाइये।
उत्तर:
राजस्थान में समताप रेखाओं को जनवरी व जून में वितरण प्रारूप निम्नानुसार है-
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प्रश्न 25.
राजस्थान के जलवायु प्रदेशों को मानचित्र पर दर्शाइये।
उत्तर:
राजस्थान के जलवायु प्रदेशों को निम्नानुसार दर्शाया गया है-
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प्रश्न 26.
राजस्थान के वन क्षेत्रों को मानचित्र पर दर्शाइये।
उत्तर:
राजस्थान के वन क्षेत्रों का प्रदर्शन निम्नानुसार है-
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प्रश्न 27.
राजस्थान के मानचित्र में मिट्टी के प्रकारों को दर्शाइये।
उत्तर:
राजस्थान में मिलने वाली मिट्टियों के प्रकारों को निम्नानुसार दर्शाया गया है-
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RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्थान में सर्वाधिक तापान्तर मिलता है-
(अ) पश्चिमी भाग में
(ब) पूर्वी भाग में
(स) उत्तरी भाग में
(द) दक्षिणी भाग में
उत्तर:
(अ) पश्चिमी भाग में

प्रश्न 2.
ग्रीष्म ऋतु का समय है-
(अ) मार्च से मध्य जून
(ब) मध्य जून से सितम्बर
(स) अक्टूबर से फरवरी
(द) जनवरी से मार्च
उत्तर:
(अ) मार्च से मध्य जून

प्रश्न 3.
राजस्थान में लू चलती हैं-
(अ) ग्रीष्म ऋतु में
(ब) शीत ऋतु में
(स) वर्षा ऋतु में
(द) शरद् ऋतु में
उत्तर:
(अ) ग्रीष्म ऋतु में

प्रश्न 4.
मानसून प्रत्यावर्तन काल को कहा जाता है-
(अ) शीत ऋतु
(ब) ग्रीष्म ऋतु
(स) शरद् ऋतु
(द) वर्षा ऋतु
उत्तर:
(स) शरद् ऋतु

प्रश्न 5.
राजस्थान में शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से होने वाली वर्षा क्या कहलाती है?
(अ) मावट
(ब) आम्र वर्षा
(स) काल बैशाखी
(द) फूलों की बौछार
उत्तर:
(अ) मावट

प्रश्न 6.
राजस्थान में सर्वाधिक वन प्रतिशत कहाँ मिलता हैं?
(अ) जैसलमेर
(ब) चित्तौड़गढ़
(स) झालावाड़
(द) सिरोही
उत्तर:
(द) सिरोही

प्रश्न 7.
मरुस्थल का कल्पवृक्ष किसे कहते है?
(अ) रोहिड़ा को
(ब) खैर को
(स) खेजड़ी को
(द) धोंकड़ा को
उत्तर:
(स) खेजड़ी को

प्रश्न 8.
राजस्थान में संरक्षित वनों का प्रतिशत है-
(अ) 38 प्रतिशत
(ब) 51 प्रतिशत
(स) 11 प्रतिशत
(द) 28 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 51 प्रतिशत

प्रश्न 9.
राजस्थान की कितनी भूमि जलीय अपरदन से प्रभावित है?
(अ) 2 लाख हैक्टेयर
(ब) 3 लाख हैक्टेयर
(स) 4 लाख हैक्टेयर
(द) 5 लाख हैक्टेयर
उत्तर:
(स) 4 लाख हैक्टेयर

प्रश्न 10.
राजस्थान में कितनी भूमि लवणीय एवं क्षारीय है?
(अ) 4.5 लाख हैक्टेयर
(ब) 5.4 लाख हैक्टेयर
(स) 6 लाख हैक्टेयर
(द) 7.2 लाख हैक्टेयर
उत्तर:
(द) 7.2 लाख हैक्टेयर

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए-

स्तम्भ अ
(जिले का नाम)
स्तम्भ ब
(जलवायु प्रदेश)
(i) बाड़मेर (अ) अति आर्द्र जलवायु प्रदेश
(ii) नागौर (ब) आर्द्र जलवायु प्रदेश
(iii) धौलपुर (स) अर्द्र-शुष्क जलवायु प्रदेश
(iv) डूंगरपुर (द) शुष्क जलवायु प्रदेश

उत्तर:
(i) द (ii) स (iii) ब (iv) अ

स्तम्भ अ
(वृक्ष प्रजाति)
स्तम्भ ब
(वन का प्रकार)
(i) सिरिस (अ ) पलाश वन
(ii) कठीरा (ब ) मिश्रित पर्णपाती वन
(iii) कंकेरी (स) धोकड़ा वन
(iv) जामुन (द) शुष्क सागवान वन
(v) अडूसा (य) सालर वन

उत्तर:
(i) द (ii) य (iii) अ (iv) ब (v) स

स्तम्भ अ
(जिले का नाम)
स्तम्भ ब
(मिट्टी का प्रकार)
(i) जोधपुर (अ) लाल-पीली मिट्टी
(ii) सिरोही (ब) काली मिट्टी
(iii) पूर्वी उदयपुर (स) लैटेराइट मिट्टी
(iv) कोटा (द) मिश्रित लाल व काली मिट्टी
(v) गंगानगर (य) मरुस्थलीय मृदा
(vi) डूंगरपुर (र) कछारी मिट्टी

उत्तर:
(i) य (ii) अ (iii) द (iv) ब (v) र (vi) स

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 अतिलघूतात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मौसम से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी स्थान पर किसी विशेष समय में मौसम के घटकों के सन्दर्भ में वायुमंडलीय दशाओं के योग को मौसम कहते हैं।

प्रश्न 2.
तापमान के आधार पर विश्व को किन कटिबन्धों में बाँटा गया है?
उत्तर:
तापमान के आधार पर विश्व को उष्ण कटिबन्ध, शीतोष्ण कटिबन्ध व शीत कटिबन्ध में बाँटा गया है।

प्रश्न 3.
वर्षा के आधार पर कौन-कौन से जलवायु प्रदेश होते हैं?
उत्तर:
वर्षा के आधार पर शुष्क जलवायु प्रदेश, अर्द्धशुष्क जलवायु प्रदेश, उपार्द्र जलवायु प्रदेश, आर्द्र जलवायु प्रदेश एवं अति आर्द्र जलवायु प्रदेश होते हैं।

प्रश्न 4.
राजस्थान में जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
राजस्थान में जलवायु को प्रभावित करने वाले कारकों में अक्षांशीय स्थिति, समुद्र से दूरी, समुद्र तल से ऊँचाई, अरावली पर्वत की स्थिति व दिशा, मिट्टी की संरचना व वनस्पति का आवरण आदि को शामिल किया गया है।

प्रश्न 5.
राजस्थान में मुख्यतः कितनी ऋतुएँ मिलती हैं?
उत्तर:
राजस्थान में मुख्यत: तीन ऋतुएँ – ग्रीष्म ऋतु, वर्षा ऋतु व शीत ऋतु पाई जाती हैं।

प्रश्न 6.
लू से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ग्रीष्मकालीन ऋतु के दौरान चलने वाली अत्यधिक शुष्क व उष्ण हवाओं को लू कहा जाता है। जिनमें आर्द्रता का अभाव होता हैं।

प्रश्न 7.
राजस्थान को कौन-सी रेखा दो भागों में बाँटती है?
उत्तर:
अरावली के सहारे मिलने वाली 50 सेमी समवर्षा रेखा राजस्थान को दो भागों में बाँटती है।

प्रश्न 8.
अरब सागरीय मानसून शाखा से राजस्थान वर्षा प्राप्त क्यों नहीं करता?
उत्तर:
अरावली पर्वत का विस्तार अरब सागर की मानसून शाखा की दिशा के समानान्तर होने के कारण यह मानसून राज्य में बिना वर्षा किये उत्तर की तरफ चला जाता है।

प्रश्न 9.
बंगाल की खाड़ी के मानसून से राजस्थान कम वर्षा प्राप्त करता है। क्यों?
उत्तर:
बंगाल की खाड़ी का मानसून एक लम्बी दूरी तय करके राजस्थान तक पहुँचता है। राजस्थान तक पहुँचते-पहुँचते आर्द्रता में काफी कमी आ जाने से राजस्थान कम वर्षा प्राप्त करता है।

प्रश्न 10.
अरावली वर्षा कराने में सहायक क्यों नहीं है?
उत्तर:
अरावली पर्वतमाला की ऊँचाई कम होने व इस पर वनस्पति की कमी के कारण यह वर्षा कराने में सहायक नहीं है।

प्रश्न 11.
शीत ऋतु को किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
भारत सरकार के मौसम विभाग ने शीत ऋतु को मुख्यत: निम्न दो भागों में बाँटा है-

  1. शरद् ऋतु या मानसून प्रत्यावर्तन काल,
  2. शुष्क शीत ऋतु।

प्रश्न 12.
मावट वरदान क्यों सिद्ध होती है?
उत्तर:
मावट के रूप में होने वाली वर्षा वरदान इसलिये सिद्ध होती है क्योंकि इस समय रबी की फसल का समय होता है। इस वर्षा के कारण रबी की फसल को अत्यधिक फायदा पहुँचता है जिससे उत्पादन क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 13.
हिमांक बिन्दु से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
हिमांक बिन्दु से तात्पर्य है तापमान का एक ऐसा स्तर जहाँ तरल पानी (जल/जलवाष्प) ठोस रूप में परिवर्तित हो जाता है। तापमान का यह स्तर 0° सेंग्रे. होता है। तापमान के 0° सेंग्रे. पर पहुँचने पर जल जम जाता है। इसे ही हिमांक बिन्दु कहते हैं।

प्रश्न 14.
अति आर्द्र जलवायु प्रदेश की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
अति आर्द्र जलवायु प्रदेश में

  1. वार्षिक वर्षा का औसत 75 सेमी से अधिक पाया जाता है।
  2. इस जलवायु में ही मानसून सर्वाधिक सक्रिय मिलता है।
  3. इस जलवायु प्रदेश में सदाबहार वन देखने को मिलते हैं।

प्रश्न 15.
प्राकृतिक वनस्पति से क्या तात्पर्य है? अथवा वनस्पति का क्या भावार्थ है?
उत्तर:
पृथ्वी पर मिलने वाले पेड़-पौधों, वृक्षों, झाड़ियों एव घासों के समावेशित स्वरूप को वनस्पति कहते हैं। वनस्पति प्राकृतिक दशाओं की देन होती है।

प्रश्न 16.
राजस्थान में वनों की कमी किन जिलों में देखने को मिलती है?
उत्तर:
राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्र में स्थित जिलों मुख्यत: चूरू, नागौर, जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर आदि जिलों में वनस्पति का लगभग विरल स्वरूप देखने को मिलता है।

प्रश्न 17.
उष्ण कटिबन्धीय कटीले वन क्षेत्र में कौन-सी घास मिलती है?
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय कंटीले वन क्षेत्रों के अन्दर सेवाण व धामण नामक घासें पाई जाती हैं। धामण नामक घास दुधारू पशुओं के लिए जबकिं सेवण नामक घास सभी पशुओं के लिए पौष्टिक रहती है।

प्रश्न 18.
शुष्क सागवान वनों की वृक्ष प्रजातियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
शुष्क सागवान वनों में मिलने वाली वृक्ष प्रजातियों में मुख्यत: तेंदु, धावड़ा, गुरजन, गोदल, सिरिस, हल्दू, खैर, सेमल, रीठा, बहेड़ा व इमली के वृक्ष मिलते हैं।

प्रश्न 19.
सागवान के वृक्ष दक्षिणी राजस्थान में ही क्यों मिलते हैं?
उत्तर:
सागवान को वृक्ष सर्दी व पाला सहन नहीं कर सकता है। अत: इनका विस्तार राजस्थान के दक्षिण भागों में अधिक मिलता है क्योंकि उत्तरी, उत्तरी-पश्चिमी व उत्तरी-पूर्वी राजस्थान में दक्षिणी राजस्थान की तुलना में अधिक सर्दी व पाले की स्थिति मिलती है।

प्रश्न 20.
सालर वन राजस्थान में कहाँ पाये जाते हैं?
उत्तर:
सालर वन राजस्थान में मुख्यत: उदयपुर, राजसमन्द, सिरोही, चित्तौड़गढ़, पाली, अजमेर, जयपुर, अलवर एवं सीकर जिलों में पाये जाते हैं।

प्रश्न 21.
धोकड़ा के वन मुख्यतः कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में धोकड़ा के वन 240 से 760 मीटर ऊँचाई वाले भागों में पाये जाते हैं। ये वृक्ष मुख्यत: कोटा, बून्दी, सवाई माधोपुर, जयपुर, अलवर, अजमेर, उदयपुर, राजसमंद व चित्तौड़गढ़ जिलों में मिलते हैं।

प्रश्न 22.
पलाश के वन कहाँ मिलते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में पलाश के वन मुख्यत: अलवर, अजमेर, सिरोही, उदयपुर, पाली, राजसमंद एवं चित्तौड़गढ़ जिलों में मिलते हैं।

प्रश्न 23.
मिश्रित पर्णपाती वनों में मिलने वाली वृक्ष प्रजातियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
मिश्रित पर्णपाती वनों में मिलने वाली वृक्ष प्रजातियों में मुख्यत: आँवला, शीशम, सालर, तेंदू, अमलताश, रोहन, करंज गूलर व अर्जुन के वृक्ष मिलते हैं।

प्रश्न 24.
आरक्षित वनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसे वन जिनमें पेड़ों की कटाई व पशुचारण पर पूर्णत: प्रतिबन्ध होता है, उन्हें आरक्षित वन कहते है। इस प्रकार के वन राजकीय सम्पत्ति होते हैं।

प्रश्न 25.
अवर्गीकृत वन किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे वने जिनमें लकड़ी काटने व पशु चराने पर किसी भी तरह का कोई सरकारी नियंत्रण नहीं होता हैं तथा लोग अपनी स्वेच्छा से इनमें लकड़ी काटने व पशु चराने का कार्य करते हैं, उन्हें ही अवर्गीकृत वन कहा जाता है।

प्रश्न 26.
मिट्टी किसे कहते हैं? अथवा मृदा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मिट्टी भू-पृष्ठ पर मिलने वाले असंगठित पदार्थों की वह ऊपरी परत है जो मूल चट्टानों व वनस्पति के योग से बनती है। अर्थात् चट्टानों के चूर्ण को ही मृदा कहते हैं।

प्रश्न 27.
मृदा निर्माण के घटक कौन-कौन से हैं?
अथवा
मृदा को नियंत्रित करने वाले कारक कौन से हैं?
अथवा
मृदा को प्रभावित करने वाले कारक कौन से हैं?
उत्तर:
मृदा के निर्माण में किसी क्षेत्र विशेष में मिलने वाली जलवायु, उस क्षेत्र की उच्चावचीय स्थिति, उसमें मिलने वाले कार्बनिक पदार्थों, वहाँ की आधारभूत शैलों एवं समय का सबसे महत्वपूर्ण योगदान रहता है। अत: इन सभी कारकों को मृदा निर्माण के कारक, मृदा के नियंत्रक या प्रभावित करने वाले कारकों के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 28.
राजस्थान की मृदाओं को किन भागों में बाँटा गया है?
अथवा
राजस्थान में मृदाओं के कौन से प्रकार दृष्टिगत होते हैं?
उत्तर:
राजस्थान में मिलने वाली मृदाओं को उनके रंग, संगठन व संरचना के आधार पर मरुस्थलीय मिट्टी, लाल-पीली मिट्टी, मिश्रित लाल व काली मिट्टी, लैटेराइट मिट्टी, काली मिट्टी एवं कुछारी मिट्टी के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 29.
राजस्थान में लाल-पीली मिट्टी कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
राजस्थान में लाल-पीली मिट्टी का विस्तार मुख्यतः सवाई माधोपुर, सिरोही, राजसमन्द, उदयपुर व भीलवाड़ा जिले के पश्चिमी भाग में पाया जाता है।

प्रश्न 30.
लैटेराइट मृदा की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
लैटेराइट मृदा की निम्न विशेषताएँ मिलती हैं-

  1. इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व ह्यूमस आदि की कमी मिलती है।
  2. लौह तत्व की मौजूदगी के कारण इस मृदा का रंग लाल दिखाई देता है।
  3. इस मिट्टी में मक्का, चावल व गन्ने की खेती की जाती है।
  4. यह मिट्टी आक्सीकरण की प्रक्रिया से बनती है।

प्रश्न 31.
मिश्रित लाल व काली मिट्टी की विशेषता बताइये।
उत्तर:
मिश्रित लाल व काली मिट्टी की विशेषताओं में निम्न को शामिल किया गया है-

  1. इस मिट्टी में चूना, नाइट्रोजन व फॉस्फोरस की कमी मिलती है किन्तु पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
  2. इस मिट्टी में चीका की अधिकता पाई जाती है।
  3. यह उपजाऊ मिट्टी है। इसमें कपास, गन्ना, मक्का आदि की खेती की जाती है।

प्रश्न 32.
मृदा अपरदन से क्या तात्पर्य है?
अथवा
मृदा कटाव का क्या अर्थ है?
उत्तर:
किसी क्षेत्र में जल व वायु द्वारा मिट्टी की ऊपरी उपजाऊ परत के बह जाने या उड़ जाने को मृदा अपरदन कहते हैं। राजस्थान के पश्चिमी भाग में वायुजात मृदा अपरदन जबकि दक्षिणी-पूर्वी पठारी भाग में जलजात मृदा अपरदन सर्वाधिक होता है।

प्रश्न 33.
मृदा उर्वरता हास से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मिट्टी के सतत् उपयोग एवं कृषि की दोषपूर्ण पद्धति अपनाने से मिट्टी की उत्पादकता में कमी आती है। मृदा के उपजाऊपन में आने वाली इस कमी को ही मृदा उर्वरता ह्रास के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 34.
राजस्थान में मुख्यतः मृदा क्षारीयता व लवणीयता की समस्या कहाँ मिलती है?
उत्तर:
राजस्थान में मुख्यत: मृदा क्षारीयता व लवणीयता की समस्या अलवर, भरतपुर, जयपुर, नागौर, पाली, जोधपुर, भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़ व सिरोही जिलों में सर्वाधिक मिलती है।

प्रश्न 35.
मृदा संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
अथवा
मृदा सुदृढीकरण क्या है?
उत्तर:
मृदा की गुणवत्ता में कमी लाने वाले पदार्थों व पद्धतियों का प्रयोग न करके विवेकपूर्ण ढंग से कृषि करते हुए मृदा की गुणवत्ता को बनाए रखना ही मृदा संरक्षण है। संरक्षण की यह प्रक्रिया मृदा उपजाऊपन की मात्रा को सन्तुलित स्थिति में बनाए रखती है।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
राजस्थान की जलवायु में किस प्रकार भिन्नता देखने को मिलती है?
अथवा
राजस्थान में जलवायु प्रादेशिक आधार पर भिन्न-भिन्न मिलती है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वे जलवायु निर्धारक घटकों में मिलने वाली प्रादेशिक विषमता के कारण जलवायु का स्वरूप भी भिन्न-भिन्न मिलता है। राजस्थान के पश्चिमी भाग में उच्च दैनिक व वार्षिक तापन्तिर, अल्प वर्षा, गर्म झुलसा देने वाली लू एवं तीव्र धूल भरी आँधियों से युक्त शुष्क जलवायु पाई जाती है जबकि अरावली के पूर्वी भाग में अपेक्षाकृत कम तापमान, कम तापान्तर एवं वर्षा की थोड़ी अधिकता के कारण उपार्द्र जलवायु पाई जाती है। राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित जिलों एवं सिरोही जिले के माउंट आबू क्षेत्र में अधिक वर्षा के कारण अति आर्द्र जलवायु की स्थिति देखने को मिलती है। राजस्थान की जलवायु सारांशतः शुष्क से उपार्द मानसूनी प्रकार की है।

प्रश्न 2.
ग्रीष्म ऋतु की विशेषताएँ बताइये।
अथवा
ग्रीष्म ऋतु किन भौतिक दशाओं को प्रदर्शित करती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ग्रीष्म ऋतु में निम्नलिखित विशिष्ट दशायें मिलती हैं-

  1. ग्रीष्म ऋतु का आगमन सूर्य के उत्तरायण आने के साथ ही प्रारम्भ हो जाता है।
  2. अधिकांश क्षेत्रों में तापमान में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
  3. इस ऋतु के दौरान दिन में भयंकर गर्मी पड़ती है।
  4. अत्यधिक उष्ण व शुष्क पवनों के रूप में लू चलने लगती है।
  5. इस ऋतु में धूल भरी आँधियाँ चलने लगती हैं।
  6. वायु में आर्द्रता की मात्रा काफी कम हो जाती है।
  7. रात्रिकालीन अवधि के दौरान मौसम सुहावना हो जाता है।

प्रश्न 3.
वर्षा ऋतु की विशेषता बताइये।
उत्तर:
वर्षा ऋतु की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. राजस्थान दोनों मानसूनी शाखाओं से वर्षा प्राप्त करता है।
  2. वर्षा का राजस्थान में वितरण असमान मिलता है। पूर्व से पश्चिम की ओर एवं दक्षिण से उत्तर की ओर जाने पर वर्षा की मात्रा कम होती जाती है।
  3. राजस्थान की अधिकांश वर्षा इसी ऋतु में होती है।
  4. वर्षा ऋतु राजस्थान की फसलों हेतु उपयोगी होती है। राजस्थान की अधिकांश खरीफ की फसलें पूर्णत: वर्षा ऋतु पर ही निर्भर हैं।
  5. राजस्थान में वर्षा ऋतु के दौरान दोनों शाखाओं के होते हुए भी कम वर्षा होती है।

प्रश्न 4.
शीत ऋतु की विशेषताएँ बताइये।
अथवा
शीत ऋतु किस प्रकार विलक्षणताओं को दर्शाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शीत ऋतु राजस्थान में अक्टूबर से फरवरी तक मिलती है। इसकी निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. सूर्य के दक्षिणायन की ओर आने के साथ ही शीत ऋतु का आगमन होता है।
  2. इस ऋतु में उत्तरी-पश्चिमी ठण्डी हवाएँ पूरे राज्य में चलने लगती हैं।
  3. इस ऋतु में तापमान कम होने के साथ ही कभी-कभी पाले की स्थिति देखने को मिलती है।
  4. इस ऋतु में तापमान कभी-कभी हिमांक बिन्दु से नीचे चला जाता है।
  5. इस ऋतु में शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों से मावट के रूप में वर्षा होती है।

प्रश्न 5.
मावट राजस्थान के लिए वरदान के समान है। क्यों?
अथवा
मावट के महत्व को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
राजस्थान एक कृषि प्रधान राज्य है। इसकी अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर करती है। राजस्थान जल उपलब्धता के दृष्टिकोण से भी एक न्यून जल उपलब्धता वाला राज्य है। शीत ऋतु के समय राजस्थान में रबी की फसल बोई जाती है। शीतोष्ण चक्रवातों से होने वाली मावट रूपी वर्षा के कारण रबी की फसल को अत्यधिक लाभ होता है। इस वर्षा से रबी की फसलों को उत्पादन कई गुना बढ़ जाता है। जिससे किसानों को फायदा होने के साथ-साथ राजस्थान की अर्थव्यवस्था पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसी कारण मावट को राजस्थान के सन्दर्भ में वरदान माना जाता है।

प्रश्न 6.
प्राकृतिक वनस्पति के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वनों की उपयोगिता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:

  1. पर्यावरणीय व पारिस्थितिकीय सन्तुलन बनाये रखने में प्राकृतिक वनस्पति व वनों की प्रमुख भूमिका होती है।
  2. वन स्थानीय जलवायु को सौम्य वे सन्तुलित करते हैं।
  3. वनों के द्वारा मृदा अपरदन पर रोक लगती है।
  4. वन नदी के प्रवाह को नियमित करते हैं।
  5. वनों से विभिन्न उद्योगों को कच्चा माल प्राप्त होता है।
  6. वन लोगों को आजीविका प्रदान करते हैं।
  7. वनों के द्वारा तूफानों की गति कम होती है।
  8. वनों से इमारती लकड़ी, जलाऊ लकड़ी, चारा और अनेक उपयोगी व मूल्यवान उत्पादन प्राप्त होते हैं।
  9. वन वन्य जीवन के लिए प्राकृतिक पर्यावरण प्रदान करते हैं।

प्रश्न 7.
उष्ण कटिबन्धीय कंटीले वनों की विशेषता बताइये।
अथवा
उष्ण कटिबन्धीय वनों की विलक्षणताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय कंटीले वनों की निम्न मुख्य विशेषताएँ हैं-

  1. इस प्रकार के वनों में पेड़ बहुत छोटे आकार के होते हैं।
  2. इस प्रकार के वनों में छोटी झाड़ियों की अधिकता मिलती है।
  3. इसे वनस्पति में मिलने वाले पेड़ों व झाड़ियों की जड़े लम्बी होती है।
  4. इस प्रकार की वनस्पति की पत्तियाँ कंटीली मिलती हैं।
  5. ऐसे वनों में घासों की प्रधानता मिलती है। ये घासें दुधारू पशुओं के लिए अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होती हैं।
  6. इस प्रकार की वनस्पति में पेड़ों की पत्तियाँ छोटी एवं गोल होती हैं।

प्रश्न 8.
धोकड़ा के वनों की विशेषता बताइये।
उत्तर:
धोकड़ा के वनों की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. रेगिस्तानी क्षेत्रों को छोड़कर राजस्थान के सभी क्षेत्रों में भौगोलिक पर्यावरण इनके अनुकूल है।
  2. राजस्थान में इन वनों का विस्तार सबसे अधिक क्षेत्र पर मिलता है।
  3. इस प्रकार के वन 240 मीटर से 760 मी तक की ऊँचाई वाले क्षेत्रों में मिलते हैं।
  4. इन वनों को राज्य की प्रमुख वन सम्पदा में शामिल किया गया है।
  5. इन वनों की लकड़ी बहुत मजबूत होती है।
  6. इन वनों की लकड़ी को जलाकर कोयला बनाया जाता है।
  7. पहाड़ी, तलहटी क्षेत्रों में धोक के साथ पलाश के वृक्ष बहुतायत में मिलते हैं।

प्रश्न 9.
मृदा निर्माण की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मृदा का निर्माण अनेक घटकों की देन है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक पर्यावरण में विद्यमान विविधता मिट्टी के विविध प्रकारों को जन्म देती है। मिट्टी के निर्माण पर उच्चावच, जलवायु, प्राकृतिक वनस्पति, समय आदि कारकों का प्रभाव पड़ता है। पैतृक पदार्थ, जल, वायु व ह्यूमस मिट्टी के चार मुख्य घटक हैं जो इसमें पाये जाते हैं। मिट्टी ठोस, द्रव व गैसीय पदार्थों का मिश्रण है जो चट्टानों के अपक्षय, जलवायु, पौधों व अनन्त जीवाणुओं के बीच होने वाली अन्त:क्रिया का परिणाम होती है।

प्रश्न 10.
मरुस्थलीय मृदा की विशेषताएँ बताइये।
अथवा
मरुस्थलीय मिट्टियाँ अपने विशिष्ट स्वरूप के कारण जानी जाती हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मरुस्थलीय मिट्टियाँ राजस्थान के पश्चिमी प्रतिकूल जलवायु क्षेत्र में मिलने वाली मृदाएँ हैं। इनकी निम्न विशेषताएँ मिलती हैं-

  1. इस प्रकार की मृदाओं का निर्माण मुख्यत: भौतिक अपक्षय (तापमान, वायु) द्वारा हुआ है।
  2. यह मृदा पवनों के द्वारा स्थानान्तरित होती रहती है।
  3. इस मृदा की जल धारण करने की क्षमता कम होती है।
  4. इस मृदा में उपजाऊ तत्वों की मात्रा कम व लवणता अधिक मिलती है।
  5. इस मृदा की संरचना रेतीली व बालू मृदा के रूप में मिलती है।
  6. सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर यह मृदा उपजाऊ सिद्ध होती है।

प्रश्न 11.
लाल-पीली मिट्टी की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लाल-पीली मिट्टी की निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं-

  1. इस मिट्टी में उपजाऊ तत्त्वों की कमी होती है।
  2. यह मिट्टी ग्रेनाइट, शिस्ट व नीस चट्टानों के विखण्डन से निर्मित है।
  3. इसमें चूना व नाइट्रोजन की कमी पाई जाती है।
  4. लौह अंश के कारण इस मिट्टी का रंग लाल व पीला होता है।
  5. यह मिट्टी मूंगफली व कपास की कृषि के लिए उपयुक्त है।

प्रश्न 12.
राजस्थान में मृदा अपरदन की समस्या को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में मृदा अपरदन एक गंभीर समस्या है। मृदा अपरदन की यह प्रक्रिया मुख्यतः जल एवं वायु द्वारा सम्पन्न होती है। इसके कारण मृदा में होने वाला कटाव परतदार एवं नालीनुमा स्वरूपों को प्रदर्शित करता है। राजस्थान में लगभग 4 लाख हेक्टेयर भूमि जलजात अपरदन से प्रभावित है। जलजात अपरदन मुख्यत: चम्बल एवं उसकी सहायक नदियों के द्वारा इनके प्रवाहन क्षेत्र मुख्यतः हाड़ौती के पठार पर किया गया है। जलजात अपरदन की समस्या मुख्यत: कोटा, सवाई माधोपुर व धौलपुर जिलों में सर्वाधिक सक्रिय है। जबकि वायुजात अपरदन की प्रक्रिया है राजस्थान के पश्चिमी मरुस्थलीय क्षेत्र में सर्वाधिक सक्रिय मिलती है। इस वायुजात अपरदन की प्रक्रिया से हजारों हैक्टेयर भूमि नष्ट हो चुकी है।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 लघूत्तात्मक प्रश्न Type II

प्रश्न 1.
राजस्थान में जुलाई माह की समताप रेखाओं को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
जुलाई माह में तापमान किस प्रकार भिन्नता को दर्शाता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में मिलने वाले तापमान की स्थिति जुलाई माह में अत्यधिक भिन्नताओं को दर्शाती है। राजस्थान में तापमान को दर्शाने वाली समताप रेखाएँ अधिकतम व न्यूनतम ताप के क्षेत्रों को प्रदर्शित करती हैं। राजस्थान के पश्चिमी जिलों मुख्यतः जैसलमेर बीकानेर, श्रीगंगानगर, जोधपुर के पश्चिम तथा उत्तर में स्थित हनुमानगढ़ एवं चूरू के पश्चिमी भाग में औसत अधिकतम तापमान 37.5 से 50° सेंग्रे. तक मिलता है। जबकि इसी माह में बीकानेर जिले में गंगानगर के दक्षिणी-पश्चिमी भाग व चुरू के पश्चिमी भाग में औसतन न्यूनतम तापामन 27.5°C भी मिलता है।

बाड़मेर, जैसलमेर के दक्षिणी पूर्वी भाग, जोधपुर के मध्य से पूर्वी भाग, नागौर, चुरू के दक्षिणी-पूर्वी वे उत्तरी-पूर्वी भाग, झुन्झनू, सीकर, अलवर, भरतपुर, दौसा, करौली, धौलपुर जिलों में अधिकतम औसत तापमान 25° से 37.5° सेंग्रे. तक मिलता है। जबकि न्यूनतम औसत तापमान 25°C से 27.5°C के मध्य पाया जाता है। जालौर के अधिकांश भांग, सिरोही के उत्तरी-पश्चिमी भाग, पाली के उत्तरी-पूर्वी व दक्षिणी–पूर्वी भाग, बासवाड़ा, अजमेर, जयपुर, बूंदी, कोटा, बारां चित्तौड़गढ़ के उत्तरी भाग व झालावाड़ के उत्तरी भागों में अधिकतम औसत माध्य तापमान 32.5°C से 35°C के मध्य मिलता है जबकि औसत न्यूनतम तापमान 25°C के लगभग मिलता है। राजस्थान के दक्षिणी भागों में स्थित उदयपुर, डूंगरपुर, बाँसवाड़ा, अधिकांश चित्तौड़गढ़, राजसमंद के दक्षिणी भाग में झालावाड़ के दक्षिणी भाग में, अधिकतम औसत तापमान 32.5°C पाया जाता है। इन्हीं जिलों में न्यूनतम औसत तापमान 25°C से कम मिलता है।

प्रश्न 2.
राजस्थान में वनों के वितरण प्रारूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान के विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल के कारण मिलने वाली दशाएँ भिन्नताओं को दर्शाती हैं। राजस्थान की भौतिक दशाएँ व जलवायु इस प्रकार है कि यहाँ भारत के अन्य राज्यों की तुलना में वनों का विस्तार बहुत कम पाया जाता है। राष्ट्रीय वन नीति (1988) के अनुसार जीवनदायिनी तंत्र को बचाने के लिए एक तिहाई भूमि पर वन होने चाहिए। राजस्थान में मात्र 9.32 प्रतिशत भूमि पर ही वन क्षेत्र है। राजस्थान में सघन वन आवरण क्षेत्र तो 3.83 प्रतिशत ही है। राजस्थान में प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र मात्र 0.03 हैक्टेअर है जो सम्पूर्ण भारत के प्रति व्यक्ति वन क्षेत्र 0.13 हैक्टेअर से काफी कम है। राजस्थान में वनों के भौगौलिक वितरण में बहुत भिन्नता है।

राजस्थान के अपेक्षाकृत सघन वन क्षेत्र मुख्यतः सिरोही, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर, उदयपुर, राजसमन्द, चित्तौड़गढ़, झालावाड़, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर एवं अलवर जिलों में है। इन जिलों में 20 प्रतिशत से अधिक भूमि पर वन पाए जाते हैं। राजस्थान के शुष्क क्षेत्र में स्थित जिलों चूरू, नागौर, जोधपुर जैसलमेर, बाड़मेर आदि में अपने कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 2 प्रतिशत से भी कम क्षेत्र में वन हैं। राजस्थान में सिरोही व चूरू क्रमशः सर्वाधिक (31 प्रतिशत) वे न्यूनतम (0.05 प्रतिशत) वने क्षेत्र वाले जिले हैं। जैसलमेर में कटीली झाड़ियाँ व सेवण घास ही मिलती है। इन्दिरा गांधी नहर द्वारा जल उपलब्ध हो जाने के कारण यहाँ अब हरियाली में वृद्धि होने लगी है।

प्रश्न 3.
राजस्थान की वनस्पति पश्चिम से पूर्व की ओर बढ़ने पर परिवर्तित होती जाती है। क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान की वनस्पति इसके भौतिक विभागों का अनुसरण करती है। साथ ही पश्चिम से पूर्व की ओर जाने पर तापमान, वर्षा व मृदा का स्वरूप भी बदलता जाता है। यथा -राजस्थान के पश्चिमी भाग में मरुस्थल मिलता है। जिसमें ताप की अधिकता, वर्षा की कमी व रेतीली बालु मिट्टी के कारण शुष्क व अर्द्धशुष्क वनस्पति मिलती है। मध्यवर्ती भाग में मिलने वाली अरावली पर्वत श्रृंखला में पर्वतीय वनस्पति मिलती है जबकि पूर्वी मैदानी प्रदेश में नदियों की प्रधानता, अधिक वर्षा तथा उपजाऊ काँप मिट्टी के कारण पतझड़ वनस्पति मिलती है।

जबकि राजस्थान के पठारी प्रदेश व माउंट आबू क्षेत्र में अधिक तर व आर्द्र स्थिति के कारण सदाबहार वन पाये जाते हैं। राजस्थान में जैसे-जैसे वर्षा का वितरण प्रारूप कम से अधिकता की ओर बढ़ता है इसकी मात्रा के अनुसार ही वनों का प्रारूप भी शुष्क वनों से हरे-भरे वनों की ओर अग्रसर होने लगता है। दक्षिण से उत्तर एवं पूर्व से पश्चिम की ओर जाने पर वनों का स्वरूप कर्म व छोटे स्वरूप में परिवर्तित होता जाता है।

प्रश्न 4.
राजस्थान में मिलने वाले वनों के प्रशासनिक वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रशासनिक दृष्टि से राजस्थान के वनों को तीन भागों में विभक्त किया गया है-

  1. आरक्षित वन – ये वन राजकीय सम्पत्ति हैं तथा इन क्षेत्रों में वन कटाई व पशु चराई पर पूर्णतः प्रतिबंध है। इस प्रकार के वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के 38 प्रतिशत क्षेत्र पर विस्तृत हैं। ये वन बाढ़ की रोकथाम, भूमि कटाव से बचाव व मरुस्थल के प्रसार को रोकने की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
  2. संरक्षित वन  इस प्रकार के वन भी सरकारी नियंत्रण में रहते हैं। पर इन वनों में नियंत्रित वने कटाई व पशुचारण की अनुमति दी जाती है। इस प्रकार के वन राज्य के कुल वन क्षेत्र के 51 प्रतिशत भाग पर पाये जाते हैं।
  3. अवर्गीकृत वन – इन वनों में लकड़ी काटने व पशुचारण पर किसी प्रकार का सरकारी नियंत्रण नहीं रहता है। राज्य के शेष 11 प्रतिशत वन क्षेत्र इस वर्ग के अन्तर्गत आते हैं।

प्रश्न 5.
वनों से होने वाले प्रत्यक्ष लाभों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
वनों से हमें अनेक प्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं। जिनका विवरण निम्नानुसार है-

  1. वनों से हमें ईंधन की लकड़ी, इमारती लकड़ी व बाँस मिलते हैं।
  2. वनों के द्वारा हमें शहद, मोम, कत्था, गोंद आदि पदार्थ प्राप्त होते है जो हमारी अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सहायक हैं।
  3. वनों से तेन्दू की पत्तियाँ मिलती हैं जो बीड़ी उद्योग में काम आती हैं। इसके अलावा पलाश के पत्तों, छीले के पत्तों से पत्तल दोने भी बनाये जाते हैं।
  4. वनों से अनेक प्रकार के फलों की प्राप्ति होती है; जैसे-आम, जामुन, शहतूत, आँवला, टीमरू, करौंदे, खिरनी, सीताफल आदि।
  5. वनों से विविध प्रकार की सुगन्धित घासे प्राप्त होती हैं। जिनसे सुगन्धित तेल व इत्रे बनाये जाते हैं।
  6. वनों से अनेक तरह की जड़ी-बूटियाँ प्राप्त होती हैं जो आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में उपयोगी दवाइयों के निर्माण में काम आती हैं।
  7. वनों में अरण्डी व शहतूत के वृक्षों पर रेशम के कीड़े पालने से रेशम की प्राप्ति होती है।
  8. वनों से कागज, दियासलाई, खेल के सामान, रबर, रंग आदि उद्योगों के लिये कच्चा माल प्राप्त होता है।
  9. वनों से पशुओं को चारी प्राप्त होता है।

प्रश्न 6.
वनों से होने वाले अप्रत्यक्ष लाभों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वनों के द्वारा हमें अनेक दीर्घकालिक या अदृश्य लाभ प्राप्त होते हैं। कैसे?
उत्तर:
वनों से प्राप्त होने वाले लाभों में कुछ लाभ ऐसे होते हैं जिनका प्रभाव लम्बे समय या अस्वाभाविक रूप से देखने को मिलता है। इन लाभों को अप्रत्यक्ष लाभ कहते हैं; यथा-

  1. वन जलवायु को सम और नम बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  2. बादलों को अपनी ओर आकृष्ट करके अधिक जलवृष्टि कराने में सहायक होते हैं।
  3. आँधी और तूफान की प्रचण्डता को कम करते हैं।
  4. वनों के कारण बाढ़ का प्रकोप कम हो जाता है।
  5. वन भूमि-कटाव तथा मरुस्थल के प्रसार को रोकने में सहायक होते हैं।
  6. पेड़ों की पत्तियों से ह्युमस व जीवांश मिलने के कारण मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।
  7. वन क्षेत्र में वर्षा के जल के भूमि में अधिक प्रविष्ट होने के कारण जल-स्तर ऊँचा उठता है।
  8. दीर्घकाल में इनके भूमि में दब जाने से कोयले जैसा महत्त्वपूर्ण खनिज प्राप्त होता हैं।
  9. ये वन्य जीवों के सरंक्षण-स्थल होते हैं।
  10. आखेट आदि की दृष्टि से ये मनोरंजन स्थल होते हैं।
  11. वन सौन्दर्य के प्रतीक होते हैं।
  12. वनों से जैविक-सन्तुलन बनाए रखने में सहायता मिलती है।
  13. वनों के कारण वायुमण्डलीय प्रदूषण नियन्त्रण में रहता है।
  14. वन शोर प्रदूषण को कम करने में सहायक होते हैं।
  15. वायु प्रदूषण के कारण बढ़ते हरित गृह प्रभाव को वन संयत करते हैं।
  16. वनों का भारतीय संस्कृति में विशेष महत्त्व है। यहाँ वन क्षेत्र तपोभूमि दार्शनिक चिन्तन तथा ज्ञानार्जन के लिए उपयुक्त पाये जाते हैं।

प्रश्न 7.
राजस्थान में मिलने वाली काली एवं कछारी मिट्टियों की तुलना कीजिए।
अथवा
काली व कछारी मृदाएँ एक-दूसरे से कैसे भिन्न हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान में मिलने वाली काली व कछारी मृदाओं की तुलना निम्न बिन्दुओं के आधार पर की गयी है-

क्र.सं. तुलना के आधार पर काली मिट्टी कछारी मिट्टी
1. मृदा का रंग इस मृदा का रंग काला होता है। यह मिट्टी हल्के भूरे लाल रंग की होती है।
2. संगठन इस प्रकार की मृदा चीका, प्रधान दोमट होती है। यह मिट्टी रेतीली दोमट होती है।
3. मिश्रित पदार्थ इस मिट्टी में कैल्शियम व पोटाश पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। इस मिट्टी में चूना फास्फोरस, पोटाश व लौह अंश पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।
4. त्पादित होने वाली इसे मृदा में मुख्यतः गन्ना, चावल, धनिया व सोयाबीन मुख्य रूप से उत्पादित होते हैं। इस मिट्टी में मुख्यत: गेहूं, सरसों, कपास व तम्बाकू उत्पादित होती है।
5. क्षेत्र यह मृदा कोटा बूंदी, बारां व झालावाड़ जिलों में मिलती है। यह मृदा, गंगानगर, हनुमानगढ़, अलवर जयपुर, दौसा, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाईमाधोपुर व टोंक जिलों में मिलती है।

प्रश्न 8.
मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने के उपाय बताइए।
अथवा
मिट्टी की गुणवत्ता को कैसे बनाये रखा जा सकता है?
उत्तर:
मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने के लिए निम्न उपाय अपनाये जाने चाहिए-

  1. मिट्टी पर जल का अधिक प्रवाह जलक्रान्ति की समस्या खड़ी कर देता है। इससे उपजाऊ तत्वों का निक्षालन हो जाता है।
    अतः जल प्रवाह पर नियंत्रण रखना चाहिए।
  2. भूमि की लवणता को नियंत्रित करने के लिए जौ, कपास, मक्का आदि उगानी चाहिए।
  3. मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को दूर करने के लिए दालों वाली फसलें उगानी चाहिए। जैसे–चना, मूंग आदि चक्र से बोनी चाहिए।
  4. फसलों के उत्पादन को बढ़ाने हेतु प्रयुक्त किये जाने वाले रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशी तथा शाकनाशी दवाओं पर रोक लगाकर हरी खाद एवं जैविक खाद का प्रयोग करना चाहिए।
  5. मृदा की समय-समय पर मृदा परीक्षणशालाओं के माध्यम से जाँच करवानी चाहिए।
  6. मृदा में आवश्यकता के अनुसार जिप्सम व खनिज पदार्थ डाले जाने चाहिए।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राजस्थान में वार्षिक वर्षा के वितरण को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
राजस्थान में वार्षिक वर्षा का वितरण असमानताओं को दर्शाता है। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
राजस्थान एक विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल वाला राज्य है। इस विशालता के कारण वर्षा के स्वरूप में भिन्नतायें मिलना स्वाभाविक है।

राजस्थान में वर्षा के वितरण प्रारूप में प्रादेशिक भिन्नताएँ पायी जाती हैं। राजस्थान की आन्तरिक स्थिति के कारण वर्षा का औसत अधिक नहीं है। अरावली के पूर्व की ओर वर्षा का वितरण अधिक मिलता है। वहीं अरावली के पश्चिम में वर्षा का वितरण कम मिलता हैं। राज्य में मिलने वाले वर्षा के इस वितरण प्रारूप को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. 100 सेमी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्र – इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 100 सेमी से अधिक पाया जाता है। जिसमें सिरोही के माउंट आबू, उदयपुर का पश्चिमी भाग, राजसमंद, दक्षिणी-पश्चिमी भीलवाड़ा आदि को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है।
  2. 75 से 100 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र – ऐसे क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा का औसत 75 से 100 से सेमी के बीच मिलता है। इसमें मुख्यतः झालावाड़, दक्षिणी कोटा, चित्तौड़गढ़ के पूर्वी भाग, प्रतापगढ़, बाँसवाड़ा, डूंगरपुर का पूर्वी भाग, मध्यवर्ती उदयपुर, भीलवाड़ा का मध्य से लेकर दक्षिण का भाग, सिरोही एवं पाली के पूर्वी भागों व राजसमंद के मध्य भाग को शामिल करते हैं।
  3. 50 से 75 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र – राजस्थान में ऐसे क्षेत्रों में मुख्यत: जालौर का दक्षिणी-पूर्वी एवं पूर्वी भाग, मध्यवर्ती पाली, अजमेर, जयपुर, दौसा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, टोंक, बूंदी बारां, कोटा व भीलवाड़ा जिलों के । अधिकांश भाग को शामिल किया जाता है।
  4. 25 से 50 सेमी वर्षा वाले क्षेत्र – इस वर्षा वर्ग की श्रेणी में झुंझुनूं, सीकर, नागौर, जोधपुर की फलौदी तहसील के पूर्व के भाग, बाड़मेर के अधिकांश भाग तथा जालौर, पाली, अजमेर, जयपुर, पश्चिमी भागों को शामिल किया जाता है।
  5. 25 सेमी से कम वर्षा वाले क्षेत्र – इन क्षेत्रों में मुख्यत: श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, जैसलमेर, जोधपुर की फलौदी तहसील से पश्चिम के भाग व बाड़मेर तथा नागौर के पश्चिमी भागों को शामिल करते हैं।
    राजस्थान की वर्षा के इस वितरण प्रारूप को निम्न मानचित्र द्वारा दर्शाया गया है

RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 13 राजस्थान जलवायु, वनस्पति व मृदा 10

प्रश्न 2.
मृदा संरक्षण से क्या आशय है? मृदा संरक्षण की प्रमुख विधियों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
मृदा संरक्षण से आशय-मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है। मिट्टी के अपरदन व क्षय को रोका जाता है तथा मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है। मृदा संरक्षण की विधियाँ-मृदा संरक्षण की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. समोच्च रेखीय जुताई या बोआई – ढालू धरातल पर यदि ऊपर से नीचे की ओर जुताई कर कृषि की जाती है तो वर्षा का जल या सिंचाई के लिए प्रयुक्त जल शीघ्रता से मिट्टी का कटाव करता है। इस समस्या से निपटने के लिए ढालू भूमि पर समोच्च रेखाओं के साथ-साथ बाँध बनाकर जुताई कर अधिक ढाल को धीमे ढाल में परिवर्तित कर दिया जाता है।
  2. वेदिकाकरण – पर्वतीय क्षेत्रों में ढालों में सीढ़ीदार खेत बनाकर प्रत्येक खेत के किनारे मेड़बन्दी कर दी जाती है जिससे भूमि कटाव में कमी आ जाती है तथा अपरदित मिट्टी निचले सीढ़ीदार खेतों में जमा होती चली जाती है। वेदिकाकरण विधि ढालू भूमि पर प्रयुक्त की जाती है।
  3. मेड़बन्दी करना – अपेक्षाकृत हल्के ढाल वाले मैदानी भागों में स्थित खेतों की मेड़ों को ऊँचा कर देना चाहिए। जिससे भूमि का कटाव रुकता है तथा भूमिगत जल के स्तर में वृद्धि होती है।
  4. फसल आवर्तन – एक कृषि भूमि पर कई वर्षों तक एक ही फसल बार-बार न बोकर अन्य फसलों को उगाना चाहिए जैसे एक स्थान पर फलीदार फसल जैसे- मटर, चना, आदि बोई जाती है तो मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा पहले से अधिक हो जाती है। क्योंकि फलीदार फसलों की जड़ों में स्थित असंख्य जीवाणु वायु की नाइट्रोजन को ग्रहण करके उपयोगी नाइट्रोजन के यौगिकों में बदल देते हैं। फलीदार फसल के बाद यदि बिना फलीदार फसल बोई जाये जो उनको मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में नाइट्रोजन यौगिक मिल जाते हैं। वस्तुतः फसलों के समुचित आवर्तन से भूमि की उर्वरकता बनी रहती है।
  5. वृक्षारोपण एवं घास रोपड़ – मिट्टी अपरदन की समस्या से ग्रस्त क्षेत्रों में विस्तृत पैमाने पर वृक्षारोपण एवं घास का रोपण करना आवश्यक होता है। इससे मृदा अपरदन की दर में अधिक गिरावट आती है। साथ ही भूमि की जल अवशोषण क्षमता में वृद्धि होती है।
  6. नियन्त्रित पशुचारणता – नियन्त्रित पशुचारणता से भूमि कटाव की प्रक्रिया रुकती है तथा घासों व अन्य वनस्पति की वृद्धि भी सुचारु रूप में होती है।
  7. अस्थाई कृषि पर प्रतिबन्ध-जिन क्षेत्रों में परम्परागत रूप से अस्थाई कृषि या झूमिंग कृषि का प्रचलन है, उन क्षेत्रों में एक तो भूमि की उर्वरता शीघ्र समाप्त हो जाती है, दूसरे, मृदा अपरदन की दर में तेजी से वृद्धि होती है। अतः अस्थाई कृषि पर कड़ाई से प्रतिबन्ध लगाकर उन क्षेत्रों को मृदा संरक्षण किया जा सकता है।
  8. नदियों पर बाँधों का निर्माण-नदियों में आने वाली बाढ़ों को रोकने के लिए नदियों पर स्थान-स्थान पर बड़े-बड़े बाँधों का निर्माण करना चाहिए जिससे नदियों के जल प्रवाह के तीव्र प्रवाह को नियन्त्रित किया जा सकता है तथा जल विद्युत उत्पादित की जा सकती है।
  9. अन्य विधियाँ-भूमि को जल अपरदन से बचाने के लिए खाली भूमि में घासे तथा फलियों वाली आवरण फसलों को लगाना, वायु अपरदन वाले क्षेत्रों में बालू बन्धक पौधे लगाना, मिट्टी के प्रदूषण से सुरक्षा तथा मिट्टी को पर्याप्त सिंचाई साधनों की उपलब्धता कराना आदि अन्य मिट्टी संरक्षण विधियाँ हैं।

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