RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 9 भारत की मृदा

Rajasthan Board RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 भारत की मृदा

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत में स्थानीय मृदा है-
(अ) पर्वतीय
(ब) बलुई
(स) विस्थापित
(द) काली
उत्तर:
(अ) पर्वतीय

प्रश्न 2.
भारत में कपास की कृषि के लिये सर्वाधिक उपयुक्त मृदा है-
(अ) पर्वतीय
(ब) काली
(स) लाल
(द) लैटेराइट
उत्तर:
(ब) काली

प्रश्न 3.
भारत में काली मिट्टी है-
(अ) विस्थापित
(ब) दलदली
(स) लावा-जन्य
(द) विक्षालन-जन्य
उत्तर:
(स) लावा-जन्य

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 4.
लैटेराइट मृदा का रंग कैसा होता है?
उत्तर:
लैटेराइट मृदा का रंग पकी हुई ईंट के समान लाल रंग का होता है।

प्रश्न 5.
भारत में पुरातन काँप मृदा कहाँ मिलती है?
उत्तर:
भारत में पुरातन काँप मृदा नदियों के बाढ़ क्षेत्रों से ऊँचे भागों में मिलती है जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँच पाता है।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 लघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
मृदा संरक्षण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मृदा संरक्षण से तात्पर्य है विविध प्रकार से मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखने का प्रयास करना। जिसमें मिट्टी को अपने स्थान पर स्थिर रखने, उर्वरता में अभिवृद्धि करने, उर्वर तत्वों की अपेक्षित मात्रा तथा अनुपात को बनाये रखने और दीर्घ काल तक उत्पादन प्राप्त करते रहने के लिए प्राकृतिक यो कृत्रिम उपायों द्वारा इसकी उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना ही मृदा संरक्षण है।

प्रश्न 7.
किस प्रकार की मृदा में प्राकृतिक रूप से नवीनीकरण होता रहता है ?
उत्तर:
काँप मृदाएँ मैदानी भागों में पायी जाती हैं। इन मृदाओं का निर्माण नदियों द्वारा बहाकर लाये गये अवसादों से होता हैं। नदियों द्वारा प्रतिवर्ष मिट्टी की नई परत बिछा दिये जाने के कारण काँप मृदाओं का प्राकृतिक रूप से नवीनीकरण होता रहता है।

प्रश्न 8.
मृदा क्षरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मृदा क्षरण से आशय है विभिन्न माध्यमों; यथा– वायु, जल, हिमानी, नहरी जल, खारेपन, लवणीयता, क्षारीयता, जलभराव व हिमाच्छादने की प्रक्रिया के माध्यम से मृदा का उपजाऊपन कम होना या मृदा की गुणवत्ता में कमी आना। यह प्रक्रिया फसल उत्पादन की दृष्टि से अलाभप्रद होती है जो मिट्टी को अनुपजाऊ बना देती है।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 9.
मृदा के निर्माण की प्रक्रिया समझाते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का विस्तृत वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मृदा निर्माण की प्रक्रिया स्थलमंडल के ऊपरी भाग में मिलने वाली मृदा, किसी क्षेत्र की जलवायु, कार्बनिक पदार्थों, आधारभूत शैलों, उच्चावचों और समय का प्रतिफल होती है। चट्टानों के विखण्डन से प्राप्त पदार्थों के विघटन एवं वियोजन से मृदा का निर्माण होता है इसमें अनेक प्रकार के पेड़-पौधों के सड़ने-गलने से जीवांशों का सम्मिश्रण चट्टान चूर्ण के साथ होता रहता है। यह प्रक्रिया वहाँ की जलवायु व उच्चावचों के मिश्रित प्रभाव को दर्शाती है। मृदा के प्रकार भारतीय मिट्टियों को उनकी रचना व गुणों के आधार पर निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. काँप मृदा
  2. काली या लावा मृदा
  3. लाल मृदा
  4. लैटेराइट मृदा
  5. बलुई मृदा
  6. पर्वतीय मृदा

1. कॉप मृदा – यह मृदा भारत के विशाल मैदान व तटीय मैदानों में मिलती है, यह नदियों द्वारा लाकर जमा की गई मिट्टी है। यह मृदा भारत में 8 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है। इस मिट्टी को पुन: पुरातन काँप मृदा, नूतन काँप मृदा व नूतनतम काँप मृदा के रूप में बाँटा गया है। ये मृदाएँ अत्यधिक उपजाऊ, भुरभुरी, जीवांशों से युक्त व स्थानान्तरित मृदा हैं।

2. काली या लावा मृदा – यह मिट्टी दक्षिणी भारत के लावा प्रदेश में पायी जाती है। भारत में 5 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में इनका फैलाव मिलता है। इनमें नमी धारण करने की अत्यधिक क्षमता होती है। इन मृदाओं को कपास की उत्पादकता के कारण कपास की काली मिट्टी के साथ-साथ रेगर (रेगुर) के नाम से भी जाना जाता है। इन मृदाओं में सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ती है।

3. लाल मृदा – यह मृदा छिद्रदार होती है। इसमें आर्द्रता बनाये रखने की क्षमता नहीं होती है। इसमें सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। यह उपजाऊ नहीं होती है। इसका रंग भूरा और लाल होता है। इसमें लोहे का अंश अधिक रहता है। इसमे कंकड़ भी पाये जाते हैं। इसमें चूने का अंश भी कम रहता है। इस मिट्टी में बार-बार सिंचाई की आवश्यकता होती है।

4. लैटेराइट मृदा – यह पकी ईंट के समान रंग वाली मृदा होती है। जिसमें कंकड़ों की प्रधानता रहती है। यह पुरानी चट्टानों के विखंडन से बनी होती है। इसमें लोहा और एल्यूमीनियम की मात्रा अधिक रहती है। किन्तु चूना, फॉस्फोरस, नाइट्रोजन, पोटाश व जीवांश की कमी रहती है। सूखने पर यह मिट्टी पत्थर की तरह कड़ी हो जाती है। यह मृदा चाय की खेती हेतु उपयुक्त मानी जाती है।

5. बलुई मृदा – यह मृदा क्षारीय तत्वों की अधिकता दर्शाती है। इसमें नाइट्रोजन ह्यूमस आदि तत्वों की कमी होती है। यह शुष्क व रंध्रमय होने के कारण स्थानान्तरित होती रहती है। सिंचाई की उपलब्धता वाले क्षेत्रों में यह उपजाऊ सिद्ध हो रही है।

6. पर्वतीय मृदा – यह अपरिपक्व मिट्टी होती है जो मोटे कणों वाली व कंकड़-पत्थर से युक्त होती है। इसकी परत पतली होने के साथ-साथ अम्लीय होती है। यह मोटे व बारीक कणों में मिलती है। बारीक कणों वाली मिट्टी के क्षेत्र में सीढ़ीदार खेत बनाकर चावल की कृषि की जाती है तथा कम उपजाऊ ढालों पर चारागाह पाये जाते हैं।

आंकिक प्रश्न

प्रश्न 10.
भारत के रूपरेखा मानचित्र में लाल व बलुई मृदा के क्षेत्र दर्शाइये-
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 9 भारत की मृदा 1

प्रश्न 11.
भारत के रूपरेखा मानचित्र में काली व पर्वतीय मृदा के क्षेत्र दर्शाइये।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 9 भारत की मृदा 2

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
भारत की कितने प्रतिशत जनसंख्या कृषि पर निर्भर है?
(अ) लगभग 50 प्रतिशत
(ब) लगभग 70 प्रतिशत
(स) लगभग 80 प्रतिशत
(द) लगभग 90 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) लगभग 70 प्रतिशत

प्रश्न 2.
लावा के विघटन से जो मृदा बनती है, वह है-
(अ) बलुई मृदा
(ब) कॉप मृदा
(स) काली मृदा
(द) पर्वतीय मृदा
उत्तर:
(स) काली मृदा

प्रश्न 3.
नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जो मृदा मिलती है, वह है
(अ) पुरातन कॉप
(ब) नूतन काँप
(स) नूतनतम काँप
(द) लैटेराइट
उत्तर:
(ब) नूतन काँप

प्रश्न 4.
कपासी मृदा किसे कहते हैं?
(अ) लाल मृदा को
(ब) काली मृदा को
(स) पर्वतीय मृदा को
(द) काँप मृदा को
उत्तर:
(ब) काली मृदा को

प्रश्न 5.
आक्सीकरण की प्रक्रिया से निर्मित होने वाली मृदा है-
(अ) नूतन काँप
(ब) काली मृदा
(स) लाल मृदा
(द) लैटेराइट मृदा
उत्तर:
(द) लैटेराइट मृदा

प्रश्न 6.
मरुस्थलीय मृदा को क्या कहा जाता है?
(अ) लाल मृदा
(ब) काली मृदा
(स) बलुई मृदा
(द) क्षारीय मृदा
उत्तर:
(स) बलुई मृदा

प्रश्न 7.
अपरिपक्व मिट्टी कौन-सी है?
(अ) पुरातन काँप
(ब) काली मृदा
(स) लैटेराइट मृदा
(द) पर्वतीय मृदा
उत्तर:
(द) पर्वतीय मृदा

प्रश्न 8.
वायु अपरदन सर्वाधिक कहाँ होता है?
(अ) पठारी भाग में
(ब) मरुस्थलीय भाग में
(स) मैदानी भाग में
(द) पर्वतीय भाग में
उत्तर:
(ब) मरुस्थलीय भाग में

प्रश्न 9.
बीहड़ बनने का कारण है-
(अ) परतदार अपरदन
(ब) आवरण अपरदन
(स) नालीदार अपरदने
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(स) नालीदार अपरदने

प्रश्न 10.
प्राकृतिक रूप से भूमि को नवीनीकृत किया जा सकता है-
(अ) रासायनिक खाद द्वारा
(ब) कीटनाशकों के प्रयोग द्वारा
(स) गहन कृषि द्वारा
(द) भूमि को परती छोड़कर
उत्तर:
(द) भूमि को परती छोड़कर

प्रश्न 11.
इन्दिरा गांधी नहर परियोजना से सर्वाधिक लाभान्वित राज्य बनाने की योजना है-
(अ) उत्तर प्रदेश
(ब) हरियाणा को
(स) राजस्थान को
(द) मध्य प्रदेश को
उत्तर:
(स) राजस्थान को

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए-

स्तम्भ अ स्तम्भ ब
(i) पुरातन काँप (अ) पर्वतीय
(ii) नूतन काँप (ब) बांगर
(iii) नूतनतम कॉप (स) काली
(iv) रेगुर (द) खादर
(v) अपरिपक्व मृदा (य) डेल्टाई

उत्तर:
(i) (ब), (ii) (द), (iii) (य), (iv) (स), (v) (अ)

स्तम्भ अ
(क्षेत्र का नाम)
स्तम्भ ब
(अपरदन का कारक)
(i) थार का मरुस्थल (अ) नदी जात (प्रवाहित जल जात)
(ii) मैदानी भाग (ब) सागरीय तरंग जात
(iii) समुद्र तटीय भाग (स) हिमानी जात
(iv) उच्च हिमालय क्षेत्र (द) वायु जात

उत्तर:
(i) (द), (ii) (अ), (iii) (ब), (iv) (स)।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मृदा किसे कहते हैं?
उत्तर:
असंगठित चट्टानों के चूर्ण को मृदा कहते हैं जो चट्टानों के विखण्डन, विघटन और जीवांशों के सड़ने-गलने से बनती है। इसमें पेड़-पौधों के उगने की क्षमता होती है।

प्रश्न 2.
मृदा को नियंत्रित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
मृदा को नियंत्रित करने वाले कारक-जलवायु, उच्चावच, कार्बनिक पदार्थ, आधारभूत शैल व समय आदि हैं।

प्रश्न 3.
रचना-विधि के अनुसार मिट्टी के कितने प्रकार हैं?
उत्तर:
रचना-विधि के अनुसार मिट्टी के दो प्रकार-स्थानीय व विस्थापित मिट्टी हैं।

प्रश्न 4.
स्थानीय मिट्टी से क्या तात्पर्य है?
अथवा
स्थानिक मृदा क्या है?
उत्तर:
जब ऋतु क्रिया के प्रभाव से विखण्डित चट्टानें अपने मूल स्थान से नहीं हटतीं या बहुत कम हटती हैं तो इस प्रकार से निर्मित मिट्टी को स्थानीय मिट्टी कहते हैं।

प्रश्न 5.
विस्थापित मिट्टी से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब विखण्डन के पश्चात चट्टाने विविध अपरदन कारकों द्वारा अपने मूल स्थान से हटकर दूर चली जाती हैं, तो इस तरह से निर्मित मिट्टी को विस्थापित मिट्टी कहते हैं।

प्रश्न 6.
विस्थापित मिट्टी का विस्थापन किन माध्यमों से होता है?
उत्तर:
विस्थापित मिट्टियों का विस्थापन, नदी जल, हिमनद, पवनों, सागरीय तरंगों आदि माध्यमों से होता है।

प्रश्न 7.
भारत में कॉप मृदा का महत्व अधिक क्यों है?
उत्तर:
काँप मृदा सबसे अधिक उपजाऊ मृदा है। इस मिट्टी में अन्नोत्पादन की क्षमता सर्वाधिक होती है। इसलिए कॉप मृदा के क्षेत्र सर्वाधिक घने बसे क्षेत्र हैं। इसलिए यह मृदा एक महत्त्वपूर्ण मृदा है।

प्रश्न 8.
भारत में काँप मृदा कहाँ पायी जाती है?
उत्तर:
भारत में काँप मृदा भारत के उत्तरी विशाल मैदान व तटीय मैदानी भागों में पायी जाती है।

प्रश्न 9.
कॉप मृदा भारत के कितने क्षेत्र पर मिलती हैं?
उत्तर:
काँप मृदाएँ भारत के लगभग 8 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में फैली हुई मिलती है।

प्रश्न 10.
भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार काँप मृदा को कितने भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार काँप मृदा को पुरातन काँप, नूतन काँप व नूतनतम काँप मृदाओं में बाँटा गया है।

प्रश्न 11.
बांगर प्रदेश से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसा क्षेत्र जो अपने समीपवर्ती भू-भाग से ऊँचा होने के कारण बाढ़ के प्रभाव क्षेत्र में नहीं आता, उसे बांगर प्रदेश कहते हैं।

प्रश्न 12.
खादर प्रदेश किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसा क्षेत्र जो अपने समीपवर्ती भू-भाग से नीचा होने के कारण बाढ़ से प्रभावित होता है, उसे खादर प्रदेश कहते हैं।

प्रश्न 13.
नूतनतम काँप के क्षेत्र कौन से हैं?
उत्तर:
गंगा-ब्रह्मपुत्र के डेल्टाई क्षेत्र नूतनतम काँप के प्रमुख क्षेत्र हैं।

प्रश्न 14.
कॉप मृदा में अधिक वनस्पति अंश क्यों मिलता है?
उत्तर:
काँप मृदा नदियों के द्वारा लाये गये अवसादों से बनती है, नदियों में अनेक प्रकार की वस्तुओं के सड़ने-गलने से इनमें जीवांश बढ़ जाते हैं। इसी कारण काँप मृदाएँ अधिक वनस्पति अंश वाली होती हैं।

प्रश्न 15.
काँप मिट्टी का प्राकृतिक नवीनीकरण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
काँप मिट्टी वाले क्षेत्रों में प्रतिवर्ष नदियों के प्रवाहन के कारण मिट्टी की नई परत जमती रहती है जिससे इनका नवीनीकरण होता रहता है।

प्रश्न 16.
काली मृदा का निर्माण कैसे हुआ है?
उत्तर:
काली मृदा का निर्माण प्राचीनकाल में भूगर्भिक प्रक्रियाओं से निकले हुए लावा के शीतलन, व कालान्तर में इनके अपरदन व निक्षेपण होने की प्रक्रिया से हुआ है।

प्रश्न 17.
काली मृदाएँ भारत में कहाँ-कहाँ मिलती हैं?
उत्तर:
काली मृदाएँ भारत में मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, आन्ध्र प्रदेश व तेलंगाना के पश्चिमी भाग, उत्तरी कर्नाटक, गुजरात व दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में पायी जाती हैं।

प्रश्न 18.
काली मृदाएँ लम्बे समय तक जलधारण क्षमता रखती हैं। क्यों?
उत्तर:
काली मृदाओं में मिलने वाले माष्टमोरिलोनाइट नामक खनिज की प्रधानता के कारण इन मृदाओं की जलधारण क्षमता अधिक मिलती है।

प्रश्न 19.
काली मृदा को कपासी मृदा भी कहते हैं, क्यों?
उत्तर:
काली मृदाएँ अपने लावाजन्य संघटन के कारण कपास उत्पादन में सर्वाधिक उपजाऊ सिद्ध होती हैं। इन मृदाओं में कपास के अत्यधिक उत्पादन के कारण ही इन्हें कपासी मृदा कहते हैं।

प्रश्न 20.
भारत में लाल मृदाएँ कहाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
भारत में लाल मृदाएँ छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी भाग, तमिलनाडु और कर्नाटक में मुख्य रूप से मिलती हैं।

प्रश्न 21.
लैटेराइट मृदा कैसे बनती है?
उत्तर:
लैटेराइट मृदा लोहे की अधिकता वाले क्षेत्रों में उच्च तापमान व अधिक आर्द्र दशाओं के कारण बनती है।

प्रश्न 22.
लैटेराइट मृदाएँ भारत में कहाँ मिलती हैं?
उत्तर:
लैटेराइट मृदा भारत में पूर्वी घाट के किनारे से राजमहल पहाड़ी और पश्चिम बंगाल होते हुए असम तक एक संकरी पट्टी के रूप में पाई जाती है।

प्रश्न 23.
मरुस्थलीय मृदा निर्माण हेतु उत्तरदायी कारक कौन-से हैं?
उत्तर:
मरुस्थलीय मृदा का निर्माण मुख्यत: उच्च तापमान, अधिक तापान्तर एवं भौतिक अपक्षय आदि कारकों के परिणामस्वरूप होता है।

प्रश्न 24.
बलुई मृदा कहाँ मिलती है?
उत्तर:
बलुई मृदाएँ भारत में मुख्यतः शुष्क जलवायु दशाओं वाले क्षेत्रों के रूप में पश्चिमी राजस्थान, सौराष्ट्र व कच्छ की मरुभूमि में मिलती हैं।

प्रश्न 25.
पर्वतीय मृदाएँ अपरिपक्व क्यों होती हैं?
उत्तर:
पर्वततीय ढालों में मृदा की परतें विकसित नहीं हो पाती हैं। साथ ही मोटे कणों वाली होने के कारण इसमें वनस्पति अंशों का मिश्रण नहीं हो पाता। इसी कारण ये कम विकसित होने के कारण अपरिपक्व मृदाएँ कहलाती हैं।

प्रश्न 26.
मृदा अपरदन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
धरातल की ऊपरी परत के रूप में मिलने वाली मृदा का विभिन्न अपरदन कारकों द्वारा स्थानान्तरित हो जाना मृदा अपरदन कहलाता है।

प्रश्न 27.
भारत के किन क्षेत्रों में मृदा अपरदन की समस्या अधिक देखने को मिलती है?
उत्तर:
भारत में मृदा अपरदन की समस्या मुख्यतः राजस्थान, हरियाणा, उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, छतीसगढ़, झारखण्ड व बिहार राज्यों में सर्वाधिक देखने को मिलती है।

प्रश्न 28.
भारत में मृदा की कौन-कौन-सी समस्याएँ मिलती हैं?
उत्तर:
भारत में मृदा की मुख्य समस्याओं में मृदा क्षरण, उर्वरता का ह्रास, मृदा प्रदूषण आदि प्रमुख समस्याएँ हैं।

प्रश्न 29.
उत्पादन शक्ति के ह्रास से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
उत्पादन शक्ति के ह्रास से तात्पर्य है- मिट्टी से फसलों का उत्पादन घटते जाना अर्थात् भूमि की उत्पादन क्षमता का कम हो जाना।

प्रश्न 30.
हरी खाद से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
भूमि में उगने वाले अनेक प्रकार की फसल रूपी पौधों; यथा-ग्वार, सनई, मूंग, द्वेचा आदि को बिना काटे भूमि जोत कर इन्हें मिट्टी में मिला देने से जो खाद प्राप्त होती है उसे हरी खाद कहा जाता है।

प्रश्न 31.
मृदा संरक्षण से सम्बन्धित अनुसंधानशालाएँ कहाँ-कहाँ खोली गयी हैं?
उत्तर:
सरकार ने मृदा संरक्षण से सम्बन्धित अनुसन्धानशालाएँ देहरादून, कोटा, जोधपुर, बेलारी तथा ऊटकमण्ड में खोली हैं।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
स्थानीय व विस्थापित मिट्टियों में क्या अन्तर होता है?
उत्तर:
स्थानीय व विस्थापित मिट्टियों में निम्न अन्तर मिलते हैं।

स्थानीय मिट्टी विस्थापित मिट्टी
(i) इस प्रकार की मिट्टी अपने मूल स्थान पर ही निर्मित होती है। (i) इस प्रकार की मिट्टियाँ अपनी मूल चट्टानों के चूर्ण के विभिन्न माध्यमों से स्थानान्तरित होने के कारण बनती हैं।
(ii) इस प्रकार की मिट्टियाँ प्रायः मोटे कणों वाली होती हैं। (ii) इस प्रकार की मिट्टी बारीक कणों वाली होती हैं।
(iii) ये कम उपजाऊ होती हैं। (iii) ये ज्यादा उपजाऊ होती हैं।

प्रश्न 2.
मिट्टियों की फसल उगाने में क्या आर्थिक उपयोगिता है?
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला राष्ट्र है जिसके कारण मृदाओं के स्वरूप पर ही जुताई की इकाई, भूमि की सिंचाई, उपयुक्त फसलों का चुनाव, अपनाई जाने वाली कृषि-पद्धति का स्वरूप निर्भर करता है। मिट्टी की गुणवत्ता व उसके संगठन के अनुसार ही रासायनिक उर्वरकों, बीजों के प्रकार का स्वरूप भी नियंत्रित होता है। इसी कारण आर्थिक दृष्टि से मृदाओं का अहम् योगदान होता है।

प्रश्न 3.
नूतनतम कॉप मृदा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसी मृदाएँ जो नदियों के डेल्टाई भागों में पायी जाती हैं। इन मृदाओं में चूना, मैग्नीशियम, पोटाश, फॉस्फोरस व जीवांश की अधिकता मिलती है। इस प्रकार की मिट्टियाँ कृषि हेतु उपयोगी होती हैं। इस प्रकार की मिट्टी तटीय मैदानों में भी पायी जाती हैं।

प्रश्न 4.
बांगर (पुरातन काँप) क्षेत्र व खादर क्षेत्र (नूतन कॉप) में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बांगर (पुरातन काँप) क्षेत्र व खादर क्षेत्र (नूतन कॉप) में अन्तर

बांगर क्षेत्र खादर क्षेत्र
(i) ये मिट्टियाँ उन भागों में मिलती हैं जहाँ बाढ़ का पानी नहीं पहुँचता है। (i) ये मिट्टियाँ उन भागों में मिलती है। जहाँ प्रतिवर्ष बाढ़ का पानी पहुँचता है।
(ii) इन क्षेत्रों को पुरातन काँप के क्षेत्रों के नाम से जानते हैं। (ii) इन क्षेत्रों को नूतन काँप के क्षेत्रों के नाम से जाना जाता है।
(iii) ये क्षेत्र अपने समीपवर्ती क्षेत्र की तुलना में ऊँचे होते हैं। (iii) ये क्षेत्र अपने समीपवर्ती क्षेत्र की तुलना में नीचे होते हैं।
(iv) इन क्षेत्रों की मिट्टियों में सिंचाई की आवश्यकता अधिक होती है। (iv) इन क्षेत्रों की मिट्टियों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।
(v) इन क्षेत्रों की मिट्टियों में चीका की मात्रा अल्प मिलती है। (v) इन क्षेत्रों में चीका की मात्रा अधिक पायी जाती है।
(vi) इन क्षेत्रों में गहम कृषि की जाती है। (vi) इन क्षेत्रों में जीवन निर्वाह कृषि की जाती है।

प्रश्न 5.
काली मृदा की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
काली मृदा की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. इस मृदा में लम्बे समय तक आर्द्रता बनाये रखने की अपूर्व क्षमता होती है।
  2. ये मृदाएँ उत्तरी अमेरिका के प्रेयरी व सोवियत संघ के यूक्रेन क्षेत्र में मिलने वाली चरनोजम के समान है।
  3. इन मिट्टियों में लोहा व एल्युमीनियम नामक खनिजों की अधिकता के कारण इनका रंग काला मिलता है।
  4. इन मृदाओं में पोटाश व चूने की अधिकता मिलती है।
  5. इन मिट्टियों की उर्वरा शक्ति अधिक होती है।
  6. इन मृदाओं में सिंचाई की आवश्यकता कम पड़ने के साथ-साथ इनमें खाद का उपयोग भी कम करना पड़ता है।
  7. ये मृदाएँ सूखने पर कड़ी हो जाती हैं जिसके कारण इनमें दरारें पड़ जाती हैं।

प्रश्न 6.
लाल मृदा की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
लाल मृदा की विशेषताएँ निम्नानुसार हैं-

  1. यह मिट्टी छिद्रदार होती है।
  2. इन मृदाओं में आर्द्रता बनाये रखने की क्षमता नहीं होती है।
  3. इन मृदाओं में अधिक सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है।
  4. ये मृदाएँ उपजाऊ नहीं होती हैं। इनमें खाद का प्रयोग करके उत्पादकता बढ़ाई जाती है।
  5. लोहे के अधिक अंश के कारण इनका रंग भूरा व लाल होता है।
  6. इन मृदाओं में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व जीवांशों की कमी मिलती है।
  7. इन मृदाओं की परतें पतली होती हैं।

प्रश्न 7.
लैटेराइट मृदा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
लैटेराइट मृदा में निम्न विशेषताएँ मिलती हैं-

  1. यह मृदा ईंट जैसे लाल रंग की होती है।
  2. इस मृदा में कंकड़ों की प्रधानता पायी जाती है।
  3. इस मृदा का निर्माण पुरानी चट्टानों के विखण्डन से होता है।
  4. इस मृदा में लोहे और एल्युमीनियम की मात्रा अधिक मिलती है।
  5. यह मृदा अधिक वर्षा व अधिक ताप वाले क्षेत्रों में पायी जाती है।
  6. इस मिट्टी के क्षेत्र ऊसर होते हैं किन्तु सूखने पर यह मिट्टी पत्थर की तरह कड़ी हो जाती है।
  7. अधिक वर्षा के कारण इस मिट्टी में से सिलिका, रासायनिक लवण व बारीक उपजाऊ कण बह जाते हैं।
  8. इस प्रकार की मृदा वाले क्षेत्रों में चाय की कृषि बहुलता से की जाती है।

प्रश्न 8.
भारतीय मृदा की उत्पादन शक्ति के ह्रास व भावी उपायों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उत्पादन शक्ति ह्रास भारतीय मृदा की एक महत्वपूर्ण समस्या है, जिसका तात्पर्य है- मिट्टी से फसलों का उत्पादन घटते जाना। यह प्रक्रिया प्राय: तब होती है जब मिट्टी से फसलों का अधिकाधिक उत्पादन लेकर हम उसे उसके उत्पादन तत्वों से विहीन कर देते हैं और प्राकृतिक या कृत्रिम उपायों से उन तत्वों को पुन: पहुँचाने का उपाय नहीं करते। इसके लिए गोबर, कम्पोस्ट की खाद तथा रासायनिक खाद का उचित उपयोग आवश्यक है। मृदा के अधिकाधिक प्रयोग से मृदा की उर्वरता की शक्ति क्षीण हो जाती है।

उपाय

  1. मृदा को उर्वर बनाने के लिए हरी खाद का प्रयोग करना चाहिए।
  2. फसल चक्रण प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।
  3. कुछ समय के लिये कृषि भूमि को परती छोड़ना चाहिए।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
काँप मृदा की विशेषताएँ बताइए।
अथवा
काँप मृदा के मुख्य लक्षण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मुख्यत: मैदानी क्षेत्रों की यह मृदा निम्न विशेषताओं को दर्शाती है-

  1. इस मिट्टी के क्षेत्र सामान्यत: समतल होते हैं जिन पर नहरें निकालना, कुएँ खोदना व खेती करना सुगम होता है।
  2. इन मृदाओं में अधिक समय तक नमी विद्यमान रहती है।
  3. ये मृदाएँ बारीक कणों वाली भुरभुरी मिट्टी के रूप में मिलती हैं। जिनमें फसलों को उगाना व पौधों द्वारा सरलता से खुराक प्राप्त करना सम्भव होता है।
  4. ये मृदाएँ स्थानान्तरित होने के कारण उपजाऊ होती हैं।
  5. इने मृदाओं में वनस्पति का अंश (ह्यूमस) अधिक मिलता है। क्योंकि नदियों के जल द्वारा अनेक वस्तुएँ सड़ा-गलाकर इनमें मिला दी जाती हैं।
  6. इस प्रकार की मिट्टियाँ प्रतिवर्ष नई परत बिछ जाने के कारण प्राकृतिक रूप से नवीनीकृत होती रहती हैं।
  7. इन मृदाओं में खाद की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  8. ये मृदाएँ भारत के लिए अन्न कटोरे व मानव पेटी के रूप में जानी जाती हैं।

प्रश्न 2.
बलुई एवं पर्वतीय मृदाओं में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बलुई एवं पर्वतीय मृदाओं में मिलने वाली भिन्नताओं की तुलना निम्न बिन्दुओं के आधार पर की गई है।

क्र.सं. तुलना का आधार बलुई मृदा पर्वतीय मृदा
1. संरचना ये मृदाएँ कमजोर व महीन कणों वाली होती हैं। ये मृदाएँ कठोर एवं मोटे कणों वाली होती हैं।
2. स्थानान्तरण का कारक ये मृदाएँ हवाओं के द्वारा मुख्य रूप से स्थानान्तरित होती हैं। ये मृदाएँ मुख्यत: नदियों के जल व वर्षा जल से मुख्यतः स्थानान्तरित होती हैं।
3. स्वरूप ये मृदाएँ शुष्क एवं रंध्रमय होती हैं। ये मृदाएँ मोटे कणों वाली एवं कंकड़-पत्थर से युक्त होती हैं।
4. रासायनिक गुण ये मृदाएँ क्षारीयता के स्वरूप को दर्शाती हैं। ये मृदाएँ अम्लीयता के स्वरूप को दर्शाती हैं।
5. परिपक्वता ये मृदाएँ परिपक्व होती हैं। ये मृदाएँ अपरिपक्व होती हैं।
6. उपजाऊपन सिंचाई की सुविधा उपलब्ध होने पर ये मृदाएँ उपजाऊ सिद्ध होती हैं। ये मृदाएँ प्राय: अनुपजाऊ होती हैं।

प्रश्न 3.
भारत में मृदा अपरदन की समस्या को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मृदा अपरदन भारतीय मृदाओं की एक प्रमुख समस्या है-इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मिलने वाली मृदा की समस्याओं में से मृदा अपरदन की समस्या एक प्रमुख समस्या है जो उपजाऊ भूमि को कृषि के अयोग्य बना देती है। मृदा अपरदन का तात्पर्य होता है- मिट्टी का धीरे-धीरे स्थान छोड़ना या कट-कटकर अपने स्थान से बह जाना। अपरदन की यह प्रक्रिया बहते हुए जल एवं पवनों के द्वारा मुख्य रूप से होती है। भारत की लगभग एक चौथाई भूमि इस समस्या से ग्रस्त है।

मृदा अपरदन वाले क्षेत्र – भारत में मृदा अपरदन वाले प्रमुख क्षेत्रों में राजस्थान, उत्तराखण्ड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखण्ड व बिहार को शामिल किया गया है। यह समस्या यमुना, चम्बल, दामोदर, महानदी की घाटियों में मुख्य रूप से देखने को मिलती है। मृदा का यह अपरदन परतदार एवं नालीदार दोनों स्वरूपों में होता है। यमुना वे चम्बल क्षेत्र में तो नालीदार कटाव के कारण बीहड़ बन गये हैं।

प्रश्न 4.
मृदा अपरदन के कारण स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में मृदा अपरदन क्यों होता है?
अथवा
मृदा अपरदन की समस्या हेतु उत्तरदायी कारणों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मिट्टी के कटाव हेतु उत्तरदायी कारण निम्नानुसार हैं-

  1. यहाँ मानसूनी वर्षा मूसलाधार होती है। इस वृष्टि से मिट्टी आसानी से कटने लगती है।
  2. अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में भीषण बाढ़ आया करती है, जिससे मिट्टी ढीली पड़ जाती है।
  3. नदी घाटियों तथा पहाड़ी ढालों पर वनों की कटाई के कारण भूमि नग्न सी पड़ी रहती है और आसानी से पवन तथा वर्षा की चपेट में आ जाती है।
  4. ढालू जमीन पर चारागाहों को खेतों में बदल दिया गया है या पशुओं को उपयुक्त ढंग से चराने पर ध्यान नहीं रखा जाता है।
  5. ग्रीष्मकाल में जब खेत खाली पड़े रहते हैं और पवने वेग से चलने लगती हैं, तब खेतों की उपजाऊ मिट्टी पवनों के साथ उड़ जाती है।
  6. मानव के द्वारा निरन्तर की जाने वाली कृषि प्रक्रिया के कारण मृदा का संघटन कम हो जाता है जिसके कारण अपरदन को बढ़ावा मिलता है।
  7. भारतीय मिट्टियों का प्रकार व उनका रासायनिक स्वरूप भी अपरदन में सहायक है।

प्रश्न 5.
मृदा अपरदन के प्रकारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
मृदा अपरदन के मुख्यतः दो प्रकार होते हैं-

  1. परत अपरदन
  2. अवनालिका अपरदन

1. परत अपरदन – इस प्रकार के अपदरन में मिट्टी की परतें क्षैतिज रूप में तेज हवा या भारी वर्षा द्वारा उड़ाकर या बहाकर ले जायी जाती हैं। इस अपरदन में मिट्टी की ऊपरी परत के उड़ जाने से उपजाऊपन क्रमशः कम होता जाता है। इस प्रकार का अपरदन मुख्यत: वनस्पतिविहीन क्षेत्रों के अलावा जलोढ़ मिट्टी वाले क्षेत्रों में होता है।
2. अवनालिका अपरदन – प्रवाही जल द्वारा पतली-लम्बी नालियों के रूप में होने वाले धरातलीय अपरदन को अवनालिका अपरदन कहा जाता हैं। इस अपरदन में गहरी नालियाँ, खड्डे व गड्ढे बन जाते हैं। मिट्टी की लम्बवंत परते पानी के द्वारा बहा दी जाती हैं। पानी से गहरी हुई अवनालिकाएँ कृषि भूमियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँट देती । चम्बल नदी की घाटी में इस
प्रकार के अपरदन की प्रक्रिया के कारण बीहड़ों का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 6.
भूमि-संरक्षण हेतु अपनाये जा सकने वाले उपायों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मृदा अपरदन को नियंत्रित करने वाले उपाय लिखिए।
अथवा
मृदा विकास हेतु किए जा सकने वाले प्रयासों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमि-संरक्षण हेतु निम्नलिखित उपाय मुख्य रूप से अपनाये जा रहे हैं-

  1. अधिक से अधिक मात्रा में वृक्षारोपण करके मृदा के कटाव को रोका जा सकता है। इस प्रक्रिया के कारण वृक्षों की जड़े मिट्टी को मजबूती से जकड़ लेती हैं। इसलिए हरित पट्टियों में वृक्षारोपण होना चाहिए।
  2. बाँध बनाकर व विशाल जलाशयों का निर्माण करने से भी अपरदन को रोका जा सकता है।
  3. पहाड़ी ढालों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर खेती करनी चाहिए।
  4. खेतों की मेढ़े मजबूत करनी चाहिए।
  5. अनियंत्रित पशुचारण पर रोक लगाकर अपरदन को कम करना।
  6. ढालू जमीन पर गोलाई में समोच्च रेखाओं की तरह जुताई करना।
  7. नालियों पर अवरोध लगाना।
  8. वनों की अनियंत्रित कटाई पर रोक लगाना।
  9. कृषि भूमि को कम से कम परती छोड़ना।

प्रश्न 7.
मृदा संरक्षण हेतु भारत सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मृदा की समस्याओं के निवारण हेतु स्थानीय राज्य एवं केन्द्र सरकार के द्वारा अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जिनमें से मुख्य प्रयासों का विवरण निम्नानुसार है-

  1. भरतीय मृदा के मरुस्थलीकरण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए केन्द्रीय मरुक्षेत्र अनुसंधान जोधपुर की स्थापना करके मृदा विकास के कार्य किए जा रहे हैं।
  2. इंदिरा गाँधी नहर के माध्यम से अधिक शुष्कता सह सकने वाले पेड़ों को लगाया जा रहा है।
  3. केन्द्रीय भूमि रक्षा बोर्ड के माध्यम से कटी-फटी भूमि को कृषि योग्य बनाकर, वर्तमान कृषि भूमि की उपजाऊ शक्ति को बनाये रखकरे मृदा बचाव के प्रयास किए गए हैं।
  4. सरकार के द्वारा अनुसंधानशालाएँ खोली गयी हैं।
  5. रेत को उड़ने से रोकने के लिए चारागाह बनाने व वायुयान से बीज बिखेर कर बबूल व आक के पेड़ लगाने का काम शुरू किया गया है।
  6. लोगों को जागरूक करने के प्रयास किए जा रहे हैं।
  7. भूमि में रॉक, ‘फास्फेट वे जिप्सम मिलाकर लवणीयता व क्षारीयता की समस्या को दूर करने के प्रयास किए जा रहे हैं।

प्रश्न 8.
भारत के संदर्भ में मृदाओं के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मृदाओं को भारत में महत्त्वपूर्ण स्थान है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत एक कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला देश है। इसकी अधिकांश जनसंख्या कृषि पर निर्भर है। कृषि की प्रक्रिया में मृदाओं का मुख्य योगदान होता है। मृदाओं के इस योगदान को निम्न बिन्दुओं के रूप में वर्णित किया गया है-

  1. मृदाओं के द्वारा ही भारतीय कृषि को स्वरूप निर्धारित किया गया है।
  2. मृदा विविध प्रकार की फसलों के उत्पादन हेतु आधार प्रदान करती है।
  3. भारत की जलोढ़ मृदाएँ चावल, गेहूँ, गन्ने के उत्पादन हेतु महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई हैं।
  4. भारतीय मृदाएँ अनेक प्रकार के खनिजों के वितरण को दर्शाती हैं; यथा- केरल की समुद्रतटीयं मृदा में मोनोजाइट नामक खनिज पाया जाता है।
  5. मृदाओं के द्वारा ही विविध प्रकार की वनस्पति को उत्पन्न होने हेतु आधार प्राप्त होता है।

RBSE Class 11 Indian Geography Chapter 9 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भारतीय मृदाओं का विस्तृत वर्णन कीजिए।
अथवा
भौतिक विन्यास व रंग के आधार पर भारतीय मृदाओं का विभाजन कीजिए।
भारतीय मृदाएँ प्रादेशिक आधार पर भिन्नताओं को दर्शाती हैं, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतीय मृदाएँ मृदा निर्माणकारी घटकों से नियंत्रित मिलती हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मृदाएँ भारत के विशाल भौगोलिक क्षेत्रफल, इसमें मिलने वाले उच्चावचों की विविधता, वनस्पति, जलवायु व आधारभूत शैलों तथा समय की लम्बी प्रक्रिया का प्रतिफल हैं। इन सभी दशाओं ने भारतीय मृदाओं को नियंत्रित किया है। इसी आधार पर भारत में मृदाओं का रंग, उनका संघटन व उनकी संरचना भी भिन्न-भिन्न मिलती है। भारत की मृदाओं का विभाजन निम्नानुसार है-

  1. जलोढ़ मृदा
  2. काली मृदा
  3. मरुस्थलीय मृदा
  4. पर्वतीय मृदा
  5. धूसर-भूरी मृदा
  6. लैटेराइट मृदा
  7. लाल व पीली मृदा
  8. लाल मृदा
  9. ग्लेशियर एवं कंकालीय मृदा
  10. उप-पर्वतीय मृदा।

1. जलोढ़ मृदा – इस प्रकार की मृदाएँ मुख्यतः भारत के मध्यवर्ती मैदानी भागों व समुद्र तटीय मैदानों में मिलती हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी भाग व असम में मुख्य रूप से मिलती हैं।

2. काली मृदा – इस प्रकार की मृदाएँ मुख्यत: भारत के मध्यवर्ती भाग में फैली हुई मिलती हैं। इस प्रकार की मृदा गुजरात के . दक्षिणी भाग, राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग, अधिकांश मध्य प्रदेश, दक्षिणी-पूर्वी गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक के उत्तरी भाग, तेलंगाना के पश्चिमी, उत्तरी व उत्तरी-पूर्वी भाग, आन्ध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

3. मरुस्थलीय मृदा – ये मृदाएँ मुख्यतः राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र में प्रमुख रूप से मिलती हैं। साथ ही सौराष्ट्र व कच्छ . की मरुभूमि में भी मिलती हैं। ये मृदाएँ शुष्क वे रंध्रमयं होने के कारण पवनों के द्वारा स्थानान्तरित होती रहती हैं।

4. पर्वतीय मृदा – इस प्रकार की मिट्टी मुख्यतः हिमालय पर्वतीय क्षेत्र में मिलती है। अपरिपक्व होने के कारण यह मिट्टी मोटे कणों वाली व कंकड़-पत्थर
युक्त होती है। इस मृदा की परत पतली होती है। इसमें ह्यूमस व चूने के तत्व कम होते हैं।

5. धूसर-भूरी मृदा – इस प्रकार की मृदाएँ मुख्यत: गुजरात के उत्तरी मध्यवर्ती भाग में उत्तर से दक्षिण की ओर तथा राजस्थान में अरावली पर्वत श्रृंखला के गिरिपदीय क्षेत्रों में फैली हुई मिलती है।

6. लैटेराइट मृदा – यह ईंट जैसी लाल रंग ही मिट्टी होती है जिसमें कंकड़ों की प्रधानता रहती है। यह पुरानी चट्टानों के विखण्डन से बनी होती है। ये मृदाएँ अधिक वर्षा और अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में विकसित होती हैं। यह मिट्टी मुख्यतः पश्चिमी घाट क्षेत्र, पूर्वी घाट के किनारे राजमहल की पहाड़ियों व पश्चिमी बागल से होते हुए असम तक एक संकरी पट्टी में मिलती है।

7. लाल व पीली मृदा-इस प्रकार की मृदाएँ भारत में बिखरे हुए रूप से मिलती हैं जो सामान्यत: राजस्थान के बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, चितौड़गढ़, भीलवाड़ा, मध्य प्रदेश, उड़ीसा व छत्तीसगढ़ के कुछ भागों में पाई जाती हैं।

8. लाल मृदा – छिद्रदार स्वरूप वाली यह मृदा छत्तीसगढ़, छोटा नागपुर के पठार, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश के पूर्वी भाग, तमिलनाडु और कर्नाटक के साथ तेलंगाना के मध्य से लेकर दक्षिण-पूर्वी भागों तक मिलती है।

9. ग्लेशियर एवं कंकालीय मृदाएँ-इस प्रकार की मृदाएँ उत्तरी जम्मू-कश्मीर व सिक्किम के ऊँचाई वाले भागों में पाई जाती हैं।

10. उप-पर्वतीय मृदाएँ-इस प्रकार की मृदाएँ मुख्यत: उत्तराखंड के मध्यवर्ती भाग, हिमाचल के मध्य पूर्वी-भाग व जम्मू-कश्मीर राज्य के दक्षिणी भाग में कुछ क्षेत्र में मिलती हैं।

भारतीय मृदाओं के इस वितरण स्वरूप को निम्न रेखाचित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 9 भारत की मृदा 3

प्रश्न 2.
भारत में मृदा क्षरण के विभिन्न प्रारूपों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में मृदा क्षरण के भिन्न-भिन्न स्वरूप दृष्टिगत होते हैं, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
मृदा क्षरण विविध प्रक्रियाओं का प्रतिफल है। इसके प्रारूपों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में मृदा क्षरण अनेक प्रक्रियाओं के माध्यम से होता है। प्रादेशिक आधार पर होने वाले क्षरण व उसके प्रारूप के अनुसार मृदा क्षरण को निम्न भागों में बाँटा गया है-

  1. वायु जात क्षरण
  2. जल जात क्षरण
  3. पोषक अपक्षय
  4. लवणीय और क्षारीय
  5. खार
  6. जल जमाव
  7. हिमाच्छादन जात क्षरण

1. वायु जात क्षरण – भारत में मृदा क्षरण का यह प्रारूप मुख्यत: राजस्थान के पश्चिमी भाग, दक्षिणी पंजाब व उत्तरी गुजरात में दृष्टिगत होता है। यहाँ तीव्र हवा प्रवाहन के कारण मिट्टी का क्षरण होता है।
2. जल जात क्षरण – इस प्रकार के क्षरण की प्रक्रिया मुख्यत: पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, असम तथा पूर्वी व पश्चिमी तटीय मैदानों में मुख्य रूप से सम्पन्न होती है।
3. पोषक अवक्षय – इस प्रकार के अवक्षयन की प्रक्रिया मुख्यतः भारत के पूर्वी राज्यों नागालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अरुणाचल के पूर्वी भाग तथा मेघालय में मुख्य रूप से देखने को मिलती है।
4. लवणीय और क्षारीय – मिट्टी क्षरण की यह प्रक्रिया मुख्यत: हरियाणा, दक्षिण गुजरात के तटीय क्षेत्रों, राजस्थान में चम्बल प्रवाहित क्षेत्र, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग, आन्ध्र प्रदेश के मध्यवर्ती भाग में मुख्य रूप से देखने को मिलती है।
5. खार – मृदा में खार जनित यह प्रकिया गुजरात में कच्छ के रण तथा भारतीय नदियों के किनारों के सहारे दृष्टिगत होती है।
6. जल जमावे – मृदा में जल जमाव की प्रक्रिया मुख्यत: प्रायद्वीपीय पठारी भाग के अधिकांश क्षेत्रों में देखने को मिलती है। राजस्थान के मध्यवर्ती मैदानी भाग, दक्षिणी-पूर्वी पठारी क्षेत्र, महाराष्ट्र का अधिकांश भाग, कर्नाटक का पूर्वी भाग, तमिलनाडु, तेलंगाना एवं मध्य प्रदेश में इस प्रकार की प्रक्रिया मुख्यतः दृष्टिगत होती है।
7. हिमाच्छादन जात क्षरण – भारत के उत्तरी राज्यों मुख्यत: जम्मू-कश्मीर, हिमाचल एवं सिक्किम के ऊँचे भागों में सतत् । हिमाच्छादन के कारण मृदा क्षरण का स्वरूप देखने को मिलता है।
इन महत्वपूर्ण क्षरण प्रारूपों के अलावा शुष्क पर्वत एवं स्थिर भूभाग के रूप में भी मृदा क्षरण की प्रक्रिया देखने को मिलती है। भारत में मृदा क्षरण के इस प्रारूप को निम्न रेखाचित्र की सहायता से दर्शाया गया है-
RBSE Solutions for Class 11 Indian Geography Chapter 9 भारत की मृदा 4

प्रश्न 3.
भारतीय मृदा की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारतीय मृदाएँ विश्व की मृदाओं की तुलना में भिन्न हैं। कैसे? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारतीय मृदाएँ अपने आप में अद्वितीय हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मृदाओं के वितरण को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि इनकी अपनी एक अलग पहचान है जो इसे विश्व की अन्य मृदाओं से अलग बनाती है। भारतीय मृदा की इन विशेषताओं को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्ट किया गया है-

  1. हमारे देश में उत्तर भारत की मिट्टियाँ पूर्णत: जलोढ़ मिट्टियाँ हैं। जिनके निर्माण में पैतृक चट्टानों के अतिरिक्त जलवायु व वनस्पति तथा विविध अपरदनकारी शक्तियों का हाथ रहा है।
  2. प्रायद्वीपीय मिट्टियों में आधारभूत चट्टान चूर्ण का प्राधान्य मिलता है। जो जलवायु के विविध तत्वों से विखण्डित होकर रिगोलिथ का निर्माण करती हैं।
  3. भारत की मिट्टी रचना, कालावधि एवं निर्माण की प्रक्रिया की दृष्टि से अनेक देशों की मिट्टियों से भिन्न है।
  4. भारत की अधिकांश मिट्टी, प्राचीन, परिपक्व व ह्यूमस युक्त हैं।
  5. भारत की अधिकांश मृदाओं में उर्वरक तथा नत्रजन, जीवांश व वनस्पति अंश कम मिलते हैं।
  6. भारतीय मिट्टियों में तापमान अधिक मिलता है।
  7. पहाड़ी, पठारी और ढालों की मिट्टियाँ कम गहरी होती हैं जबकि उत्तरी विशाल मैदान की मिट्टियाँ गहरी मिलती हैं।
  8. भारतीय मृदाएँ निरन्तर कृषि कार्य करने से उर्वरा शक्ति के दृष्टिकोण से कमजोर हो गई हैं।
  9. बिना सिंचाई के मृदाओं का मात्रात्मक एवं गुणात्मक स्वरूप हास को दर्शाता है।
  10. भारतीय मृदाएँ उर्वरक एवं पानी की उपलब्धि होने पर उपजाऊ सिद्ध होती हैं।
  11. भारतीय मृदाओं के क्षितिज निर्माण की प्रक्रिया लम्बी और परिपक्व रही है।

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