RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 13 वायुदाब की पेटियाँ एवं पवनें

Rajasthan Board RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 वायुदाब की पेटियाँ एवं पवनें

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 पाठ्य पुस्तक के अभ्यास प्रश्न

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुदाब की खोज किसने की थी?
(अ) ट्रिवार्था
(ब) फेरल
(स) ग्यूरिक
(द) फिन्च
उत्तर:
(स) ग्यूरिक

प्रश्न 2.
भूमध्यरेखीय निम्न दाब पेटी का विस्तार क्या है?
(अ) 5° उत्तर से 5° दक्षिणी अक्षांशों
(ब) 30° से 35° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों
(स) 60° से 65° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) 5° उत्तर से 5° दक्षिणी अक्षांशों

प्रश्न 3.
उत्तरी भारत व पाकिस्तान के मैदानी भागों में चलने वाली गर्म व शुष्क पवन को क्या कहते हैं?
(अ) चिनूक
(ब) लू
(स) मिस्ट्रल
(द) बोरा
उत्तर:
(ब) लू

प्रश्न 4.
वे पवनें जो वर्ष भर निश्चित दिशा में चलती हैं, कहलाती हैं
(अ) अनिश्चित पवने
(ब) मौसमी पवने
(स) प्रचलित पवनें
(द) स्थानीय पवनें
उत्तर:
(स) प्रचलित पवनें

प्रश्न 5.
‘डोलड्रम’ पेटी पाई जाती है-
(अ) भूमध्य रेखा के निकट
(ब) कर्क रेखा के निकट
(स) मकर रेखा के निकट
(द) आर्कटिक के निकट
उत्तर:
(अ) भूमध्य रेखा के निकट

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 अति लघूत्तात्मक प्रश्न

प्रश्न 6.
वायुदाब मापने की प्रचलित इकाई क्या है?
उत्तर:
वायुदाब मापने की प्रचलित इकाई मिलीबार है।

प्रश्न 7.
मिस्ट्रल पवन कहाँ चलती है?
उत्तर:
मिस्ट्रल पवन मुख्यतः भूमध्य सागर के उत्तरी-पश्चिमी भाग विशेषकर स्पेन वे फ्रांस में चलती है।

प्रश्न 8.
आल्पस पर्वतीय क्षेत्र में चलने वाली पवन कौन-सी है?
उत्तर:
आल्पस पर्वतीय क्षेत्र में चलने वाली पवन फॉन है जो आल्पस पर्वत के दक्षिणी ढाल से चढ़कर उत्तर की ओर ढाल के सहारे नीचे उतरती है।

प्रश्न 9.
भूमध्यरेखीय निम्न दाब पेटी का विस्तार बताओ।
उत्तर:
भूमध्यरेखीय निम्न दाब पेटी का विस्तार भूमध्य रेखा के 5° उत्तर से 5° दक्षिण अक्षांशों के बीच स्थित है।

प्रश्न 10.
पवन किसे कहते हैं?
उत्तर:
क्षैतिज रूप में गतिशील वायु को पवन कहते हैं। यह भूतल के ऊपर किसी दिशा में किसी गति से होने वाला वायु का संचार होता है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 लघूत्तात्मक प्रश्न

प्रश्न 11.
वायुदाब किसे कहते हैं?
उत्तर:
हमारी पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल व्याप्त है जो अनेक गैसों से निर्मित हजारों किलोमीटर मोटा आवरण है। यह गैसीय आवरण धरातल पर दबाव डालता है जिसे वायुदाब कहते हैं। इसे प्रायः भूतल के किसी क्षेत्रीय इकाई पर पड़ने वाले वायुमण्डलीय दबाव के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है। सागरतल पर औसत वायुदाब 1013°25 मिलीबार होता है। भूतल से ऊपर की ओर वायुदाब घटता जाता है। सागरतल से लगभग 540 मीटर की ऊँचाई पर वायुदाब की मात्रा सागरतल की तुलना में आधी पायी जाती है।

प्रश्न 12.
डोलड्रम क्या है?
उत्तर:
भूमध्यरेखीय पेटी का विस्तार भूमध्य रेखा से दोनों गोलार्डो में 5° अक्षांश वृत्तों तक मिलता है। इस पेटी में वर्षभर तापमान ऊँचा रहने के कारण वायुदाब कम रहता है। इस पेटी पर अपकेन्द्रीय बल का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। इस पेटी में धरातलीय क्षैतिज पवनें नहीं चलतीं अपितु अधिक तापमान के कारण वायु हल्की होकर ऊपर उठती है और संवहनीय धाराओं का जन्म होता है। इसलिए इस कटिबन्ध को शान्त कटिबन्ध या डोलड्रम पेटी भी कहते हैं।

प्रश्न 13.
प्रचलित पवनें किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वीतल पर वायुदाब की स्थिति के अनुसार व्यापारिक पवने, पछुआ पवनें तथा ध्रुवीय पवनें चलती हैं। ये सभी पवनें वर्षभर एक निश्चित दिशा तथा निश्चित क्रम में चलती हैं। वर्षभर एक निश्चित दिशा व निश्चित क्रम में चलने वाली ऐसी पवनों को स्थाई पवनें कहते हैं। इन स्थाई पवनों को ही प्रचलित पवन, ग्रहीय पवन, भूमण्डलीय पवन व सनातनी पवनों के नाम से भी जाना जाता है।

प्रश्न 14.
‘लू’ किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्रीष्मकाल के दौरान भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग एवं पाकिस्तान के मैदानी क्षेत्रों में साधारणतः दोपहर के बाद अत्यधिक गर्म और शुष्क हवाएँ पश्चिमी दिशा से बहती हैं। इन अत्यधिक गर्म व शुष्क हवाओं को ही लू कहा जाता है। ये हवाएँ प्रायः मई-जून महीने में चलती हैं। इन हवाओं के कारण मौसम अत्यधिक गर्म एवं कष्टदायक हो जाता है। इसके प्रभाव से ग्रीष्मकालीन फसलें तथा घासे सूख जाती हैं।

प्रश्न 15.
वायुदाब को प्रभावित करने वाले कारकों के नाम बताइये।
उत्तर:
वायुदाब को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों में तापमान, ऊँचाई जलवाष्प एवं गतिक कारक शामिल किये जाते हैं। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नानुसार है-

  1. तापमान – तापमान व वायुदाब में प्रायः विपरीत सम्बन्ध होता है। जहाँ ताप अधिक मिलता है वहाँ वायुदाब कम जबकि कम ताप वाले क्षेत्रों में वायुदाब अधिक मिलता है।
  2. जलवाष्प – जलवाष्प की मौजूदगी जितनी अधिक होगी वायु दाब उतना की कम जबकि शुष्क वायु की स्थिति में वायुदाब अधिक मिलता है।
  3. ऊँचाई – समुद्रतल से बढ़ती ऊँचाई के साथ भी वायुदाब कम होता जाता है।
  4. गतिक कारण – परिभ्रमण करती हुई पृथ्वी धरातल पर दाब का अनुपात नियन्त्रित करती है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 16.
वायुदाब किसे कहते हैं? वायुदाब की पेटियों को वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारी पृथ्वी के चारों ओर वायुमण्डल व्याप्त है जो अनेक गैसों से निर्मित हजारों किलोमीटर मोटा आवरण है। यह गैसीय आवरण धरातल पर दबाव डालता है जिसे वायुदाब कहते हैं। वायुदाब पेटियाँ-विश्व में वायुदाब की जो पेटियाँ मिलती हैं उनके निर्धारण में तापमान दाब सम्बन्ध के साथ-साथ पृथ्वी की घूर्णन गति का भी हाथ होता है। इसी आधार पर वायुदाब पेटियाँ दो प्रकार की होती हैं-

  1. तापजन्य पेटी,
  2. गतिजन्य पेटी।

इन दोनों आधारों पर विश्व में निम्न वायुदाब पेटियाँ मिलती हैं-
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इन सभी वायुदाब पेटियों का वर्णन निम्नानुसार है-

(i) भूमध्य रेखीय निम्नदाब पेटी-इस पेटी का विस्तार भूमध्य रेखा के 5° उत्तर से 5° दक्षिण अक्षांशों तक विस्तृत है। यहाँ वर्षभर सूर्य की सीधी किरणें पड़ने के कारण तापमान सदैव ऊँचा तथा वायुदाब कम रहता है। यहाँ वायुमण्डल में जलवाष्प की अधिकता रहती है तथा वायु का घनत्व कम रहता है। भूमध्य रेखा पर भू-घूर्णन का वेग सर्वाधिक होता है, जिससे यहाँ अपकेन्द्रीय बल सर्वाधिक होता है। इस पेटी में धरातलीय क्षैतिज पवनें नहीं चलतीं अपितु अधिक तापमान के कारण वायु हल्की होकर ऊपर उठती है और संवहनीय धाराओं का जन्म होता है। इसलिए इस कटिबन्ध को भूमध्य रेखीय ‘शान्त कटिबन्ध’ या डोलड्रम पेटी भी कहते हैं। यह तापजन्य पेटी है।

(ii) उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी-विषुवत रेखा के दोनों और 30° से 35° अक्षांशों के मध्य ये पेटियाँ स्थित हैं। यहाँ पर प्रायः वर्षभर उच्च तापमान, उच्च वायुदाब एवं मेघरहित आकाश पाये जाते हैं। इस पेटी की मुख्य विशेषताओं में एक यह भी है कि विश्व के सभी उष्ण मरुप्रदेश इसी पेटी में महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर स्थित हैं। वायुमण्डल के ऊपरी भाग में घर्षण का अभाव होने से उत्तरी व दक्षिणी गोलाद्ध में ये हवायें क्रमश: अपने दायीं तथा बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इन उच्चदाब के क्षेत्रों को ‘अश्व अक्षांश’ भी कहते हैं। यह गतिजन्य पेटी है।

(iii) उपध्रुवीय निम्नदाब पेटी-यह पेटी 60° से 65° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के मध्य में स्थित है। इन आक्षांशों में निम्न तापमान पाया जाता है। लेकिन यहाँ उच्चदाब के बजाय निम्न वायुदाब पाया जाता है। जिसका कारण पृथ्वी की घूर्णन मति है। इन क्षेत्रों में गर्म जल धारायें चलने के कारण तापक्रम अधिक होने से वायुभार कम पाया जाता है। यह भी गतिजन्य पेटी है।

(iv) धुव्रीय उच्च वायुदाब पेटी-ध्रुवों के निकट निम्न तापमान के कारण सदैव उच्चदाब रहता है। दोनों गोलार्थों में स्थित ये दोनों पेटियाँ ताप जनित हैं। यहाँ पर तापमान वर्ष भर कम रहने के कारण ध्रुवों तथा उनके निकटवर्ती क्षेत्रों का धरातल सदैव हिमाच्छादित रहता है। इसलिये धरातल के निकट की वायु अत्यधिक शीतल व भारी रहती है। इसी कारण से यहाँ धरातलीय दाब सम्बन्धी आँकड़े प्रचुर मात्रा में प्राप्त नहीं किये जा सकते।
वायुदाब पेटियों के इस स्वरूप को निम्न चित्र के माध्यम से दर्शाया गया है-
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प्रश्न 17.
पवन क्या है? पवनों के कितने प्रकार होते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
क्षैतिज रूप में गतिशील वायु को पवन कहते हैं। पवनें उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती हैं। यह वायुदाब की विषमताओं को सन्तुलित करने का प्राकृतिक प्रयास है। यदि पृथ्वी स्थिर होती और इसको धरातल एक समान समतल होता तो पवनें उच्च-वायुदाब से निम्न-वायुदाब वाले स्थानों की ओर, समदाब रेखाओं पर समकोण बनाते हुए, सीधी चलतीं। किन्तु वास्तव में ऐसा नहीं होता है, क्योंकि पवनों की दिशा और गति को कई कारक प्रभावित करते हैं।

पवनों के प्रकार – पवनों को उनके प्रभाव क्षेत्र व अवधि के आधार पर निम्न भागों में बांटा गया है-

  1. स्थाई पवनें,
  2. सामयिक पवनें,
  3. स्थानीय पवनें।

इन तीनों पवनों के अन्तर्गत भी अनेक पवनों को शामिल किया जाता है, जिन्हें निम्न तालिका के माध्यम से दर्शाया गया है-
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पवनों के इस वर्गीकरण को संक्षिप्त रूप में निम्नानुसार वर्णित किया गया है-

(i) स्थायी पवनें-जो पवने वर्षभर एक निश्चित दिशा तथा निश्चित क्रम में चलती हैं, उन्हें स्थाई पवनें कहते हैं। इन्हें प्रचलित पवने, ग्रहीय पवनें, भूमण्डलीय पवने, सनातनी पवनें आदि नामों से भी जाना जाता है। ये पवनें वायुदाब की पेटियों से सम्बन्धित हैं। इनमें प्रमुख हैं-व्यापारिक पवने, पछुआ पवन तथा ध्रुवीय पवनें।

(ii) सामयिक पवनें-जिन हवाओं की दिशा में मौसम अथवा समय के अनुसार परिवर्तन होता है, उन्हें सामयिक पवनें कहते हैं। इनमें निम्न प्रकार की पवनें सम्मिलित की जाती हैं-

  • मानसूनी पवनें
  • स्थल समीर और सागर समीर
  • पर्वत समीर और घाटी समीर

(iii) स्थानीय पवनें – जो हवाएँ किसी स्थान विशेष के तापमान और वायुदाब में अन्तर के कारण चलती हैं, उन्हें स्थानीय पवने कहते हैं। ये हवाएँ वहाँ चलने वाली प्रचलित हवाओं के विपरीत स्वभाव वाली होती हैं। ये हवाएँ स्थानीय विशेषताओं के अनुरूप गर्म, ठण्डी, बर्फ से भरी, धूल से युक्त आदि कई प्रकार की हो सकती हैं। इनसे प्रभावित क्षेत्रों में ये लाभकारी अथवा हानिकारक प्रभाव डालती हैं। मुख्य स्थानीय पवनों में चिनूक, फोन, बोरा, सिराको, हरमट्टान, खमसिन, मिस्ट्राल, ब्लिजार्ड, ब्रिक फिल्डर, विली-विली आदि हैं।

प्रश्न 18.
मानसून पवनों की उत्पत्ति से सम्बन्धित सिद्धान्तों का वैज्ञानिक परीक्षण कीजिए।
उत्तर:
मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसिम शब्द से हुई है जिसका अर्थ मौसम होता है। अतः मानसूनी पवनें उन हवाओं को कहते हैं जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा परिवर्तित कर लेती हैं। इन पवनों की उत्पत्ति के लिए निम्न संकल्पनाएँ प्रतिपादित की गई हैं-

  1. तापीय संकल्पना,
  2. गतिक संकल्पना,
  3. आधुनिक संकल्पना।

(i) तापीय संकल्पना-इस विचारधारा के अनुसार मानसून की उत्पत्ति पृथ्वी के असमान संगठन (स्थलीय तथा जलीय भाग) तथा उनके गर्म एवम् ठण्डा होने के विरोधी स्वभाव के कारण होती है। गर्मियों में अधिक सूर्यातप के कारण स्थलीय भाग सागरों की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाने के कारण निम्न दाब के क्षेत्र हो जाते हैं, जिससे सागरीय भागों से स्थल की ओर हवाएँ चलने लगती हैं। इसे ग्रीष्मकालीन मानसून कहते हैं। इसके विपरीत सर्दियों में सूर्य के दक्षिणायन के कारण स्थलीय भाग उच्च दाब के केन्द्र बन जाते हैं तथा सागरीय भाग निम्न दाब के केन्द्र। परिणामस्वरूप स्थलीय भाग से सागरों की ओर हवाएँ चलती हैं जिन्हें शीतकालीन मानसून कहते हैं। इसे ही उत्तरी-पूर्वी मानसून भी कहते हैं।
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(ii) फूलॉन की गतिक संकल्पना-फ्लॉन ने मानसून की तापीय उत्पत्ति का खण्डन करके गतिक उत्पत्ति की संकल्पना का प्रतिपादन किया। इनके अनुसार मानसून हवाओं की उत्पत्ति मात्र वायुदाब तथा हवाओं की पेटियों के खिसकाव के कारण होती है। विषुवत रेखा के पास व्यापारिक पवनों के मिलने से अभिसरण का आविर्भाव होता है। इसे अन्त: उष्ण कटिबन्धीय अभिसरण कहते हैं। इसकी उत्तरी सीमा को NITC तथा दक्षिणी सीमा को SITC कहते हैं। इस ITC के मध्य डोलड्रम की मेखला होती है, जिसमें विषुवतीय ‘पछुआ हवाएँ’ चलती हैं। सूर्य के उत्तरायण की स्थिति के समय NITC खिसककर 30° उत्तरी अक्षांश तक विस्तृत हो जाती है जिससे दक्षिण पूर्वी एशिया इसके अन्तर्गत आ जाता है। अतः इन भागों पर डोलड्रम की विषुवत रेखीय पछुआ हवाएँ स्थापित हो जाती हैं, जो कि गर्मी की दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाएँ होती हैं। इसी प्रकार सूर्य के दक्षिणायन होने पर दक्षिण-पूर्वी एशिया से NITC हट जाती है तथा उस पर उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक हवाएँ पुनः स्थापित हो जाती हैं। यह शीतकालीन उत्तरी-पूर्वी मानसून होता है।

(iii) आधुनिक संकल्पना-इसे ‘जेट स्ट्रीम’ संकल्पना के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिणी एशिया में यह जेट स्ट्रीम नामक तीव्र प्रवाह क्षोभमण्डल में लगभग 12 किमी की ऊँचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर चलता है। इसे यहाँ पर उपोष्ण कटिबन्धीय पछुआ जेट स्ट्रीम कहते हैं। 60° उत्तरी अक्षांश पर इसकी ऊँचाई 9 से 10 किमी तथा ध्रुवों पर ऊँचाई और कम होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों में इस उच्च तलीय पछुआ जेट स्ट्रीम का हिमालय तथा तिब्बत पठार के यान्त्रिक अवरोध के कारण विभाजन हो जाता है। उत्तरी शाखा तिब्बत के पठार के उत्तर में चापाकार रूप में पश्चिम से पूर्व की ओर तथा मुख्य शाखा तिब्बत के पठार तथा हिमालय के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है।

मुख्य शाखा अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के ऊपर से होकर चक्रवातीय मार्ग का अनुसरण करती है। इसी के प्रभाव से शरदकालीन मानसून की उत्पत्ति होती है। गर्मियों में 21 मार्च के बाद सूर्य की स्थिति उत्तरायण हो जाती है, जिस कारण ध्रुवीय धरातलीय उच्च वायुदाब कमजोर होने लगता है। उच्च तलीय ध्रुवीय भंवर के उत्तर की ओर खिसकने के कारण उच्चतलीय पछुआ जेट स्ट्रीम भी उत्तर की ओर खिसकने लगती है। भारत से यह जेट स्ट्रीम मध्य जून तक पूर्णत: लुप्त हो जाती है। अब जेट स्ट्रीम तिब्बत के पठार के उत्तर में शीतकालीन मार्ग के विपरीत बहने लगती है।

ईरान के उत्तरी भाग एवम् अफगानिस्तान के ऊपर इस उच्च तटीय जेट स्ट्रीम का प्रवाह मार्ग चक्रवातीय वक्र (घड़ी की सूई के विपरीत दिशा में) के रूप में होता है, जिससे क्षोभमण्डल में गतिक निम्नदाब तथा चक्रवातीय दशा बन जाती है। यह उच्च तलीय निम्न दाब उत्तर-पश्चिमी भारत व पाकिस्तान तक विस्तृत होता है। इसके नीचे धरातल पर पहले से ही तापजन्य निम्न दाब स्थित होता है। इस स्थिति के कारण धरातलीय निम्न दाब से हवाएँ ऊपर उठती हैं तथा उच्च तलीय निम्न दाब इन हवाओं को अधिक ऊपर तक खींचता है जिस कारण दक्षिण-पश्चिम मानसून की अचानक प्रस्फोट (बौछार) होता है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सर्वाधिक वायुदाब मिलता है-
(अ) पृथ्वी तल के निकट
(ब) समताप मण्डल में
(स) पृथ्वी के ऊपरी भाग में
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) पृथ्वी तल के निकट

प्रश्न 2.
पृथ्वी का घूर्णन वेग सर्वाधिक कहाँ मिलता है?
(अ) कर्क रेखा पर
(ब) भूमध्य रेखा पर
(स) मकर रेखा पर
(द) ध्रुवों पर
उत्तर:
(ब) भूमध्य रेखा पर

प्रश्न 3.
उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी का विस्तार मिलता है-
(अ) भूमध्य रेखा से दोनों ओर 10° अक्षांशों तक
(ब) दोनों गोलाद्ध में 10०-30° अक्षांशों के मध्य
(स) विषुवत रेखा के दोनों ओर 30°-35° अक्षांशों के मध्य
(द) दोनों गोलार्द्ध में 60°-65° अक्षाशों के मध्य
उत्तर:
(स) विषुवत रेखा के दोनों ओर 30°-35° अक्षांशों के मध्य

प्रश्न 4.
अश्व अक्षांश किस पेटी में मिलते हैं?
(अ) भूमध्यरेखीय पेटी में
(ब) उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी में
(स) उपध्रुवीय निम्नदाब पेटी में
(द) ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी में
उत्तर:
(ब) उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी में

प्रश्न 5.
निम्न में से जो गतिजन्य पेटी है, वह है-
(अ) भूमध्यरेखीय निम्नदाब पेटी
(ब) ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी
(स) उपध्रुवीय निम्नदाब पेटी
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) उपध्रुवीय निम्नदाब पेटी

प्रश्न 6.
वायुदाब के वितरण हेतु मुख्यतः किन महीनों को चुना गया है?
(अ) फरवरी में अप्रैल
(ब) मार्च व अगस्त
(स) मई व सितम्बर
(द) जनवरी व जुलाई
उत्तर:
(द) जनवरी व जुलाई

प्रश्न 7.
जुलाई में सूर्य लम्बवत होता है-
(अ) भूमध्य रेखा पर
(ब) कर्क रेखा पर
(स) मकर रेखा पर
(द) आर्कटिक वृत्त पर
उत्तर:
(ब) कर्क रेखा पर

प्रश्न 8.
पश्चिम से आ रही पवनें कहलाती हैं-
(अ) व्यापारिक पवनें
(ब) पछुआ पवनें
(स) ध्रुवीय पवनें
(द) मानसूनी पवनें
उत्तर:
(ब) पछुआ पवनें

प्रश्न 9.
गरजती चालीसा का संचरण क्षेत्र है-
(अ) दक्षिणी गोलार्द्ध में 40°-50° अक्षांश के मध्य
(ब) दक्षिणी गोलार्द्ध में 50° अक्षांश के पास
(स) दक्षिणी गोलार्द्ध में 60° अक्षांश के पास
(द) उत्तरी गोलार्द्ध में 50° अक्षांश के पास
उत्तर:
(अ) दक्षिणी गोलार्द्ध में 40°-50° अक्षांश के मध्य

प्रश्न 10.
साइबेरिया में चलने वाली ठण्डी पवनें कहलाती हैं-
(अ) बोरा
(ब) मिस्ट्रल
(स) बुरान
(द) जोण्डा
उत्तर:
(स) बुरान

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्न में स्तम्भ अ को स्तम्भ ब से सुमेलित कीजिए

स्तम्भ (अ)
(वायुदाब पेटी)
स्तम्भ (ब)
(अक्षांशीय विस्तार)
(i) भूमध्य रेखीय निम्न दाब पेटी (अ) दोनों गोलार्डो में 60°- 65° अक्षांशों के मध्य
(ii) उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी (ब) दोनों गोलार्डो में ध्रुवों के निकट
(iii) उपध्रुवीय निम्नदाब पेटी (स) दोनों गोलार्थों में 30°-35° अक्षांशों के मध्य
(iv) ध्रुवीय उच्चदाब पेटी (द) 5° उत्तर से 5° दक्षिण अक्षांशों के मध्य

उत्तर:
(i) द, (ii) स, (iii) अ, (iv) ब।

स्तम्भ (अ)
(पवन का नाम)
स्तम्भ (ब)
(संचरण क्षेत्र)
(i) चिनूक (अ) एड्रियाटिक सागर के पूर्वी किनारे पर
(ii) सिराको (ब) उत्तरी अमेरिका में राकीज के पूर्वी ढाल पर
(iii) हरमट्टान (स) सहारा रेगिस्तान से भूमध्य की ओर
(iv) मिस्ट्रल (द) उत्तरी भारत व पाकिस्तान के मैदानी भाग
(v) लू (य) सहारा रेगिस्तान के पूर्वी भाग में
(vi) बोरा (र) फ्रांस व स्पेन

उत्तर:
(i) ब, (ii) स, (iii) य, (iv) र, (v) द, (vi) अ।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 अतिलघूत्तात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुदाब क्यों घटता है?
उत्तर:
वायुमण्डल में दाब सब जगह और सारे समय समान नहीं रहता, यह वायुताप द्वारा नियन्त्रित रहता है। अधिक ताप पाकर वायु फैलती है, जिससे वायुदाब घटता है।

प्रश्न 2.
वायुदाब मौसम के किन तत्वों को नियन्त्रित करता है?
उत्तर:
मौसम के तत्व; जैसे – बादल, वर्षा, तूफान, आँधी व पवन वायुदाब से ही नियन्त्रित होते हैं।

प्रश्न 3.
वर्षा कैसे सम्भव होती है?
उत्तर:
पवनों के द्वारा ही महासागरों से महाद्वीपों को आर्द्रता पहुँचाई जाती है, जिससे वर्षा सम्भव होती है।

प्रश्न 4.
वायुदाब पेटियों का निर्धारण किस आधार पर किया गया है?
उत्तर:
वायुदाब पेटियों को निर्धारण का आधार मुख्यतः तापमान तथा पृथ्वी को एक ही प्रकार का धरातल (स्थल या जल) मानकर पेटियों का निर्धारण किया गया है।

प्रश्न 5.
वायुदाब में भिन्नता क्यों मिलती है?
उत्तर:
भूमण्डल पर वायुदाब के नियन्त्रक कारकों में मिलने वाली भिन्नताओं के कारण वायुदाब में प्रादेशिक आधार पर भिन्नता देखने को मिलती है।

प्रश्न 6.
पृथ्वीतल (ग्लोब) पर कितनी वायुदाब पेटियाँ मिलती हैं?
उत्तर:
पृथ्वीतल (ग्लोब) पर मुख्यत: निम्न वायुदाब पेटियाँ मिलती हैं-

  1. भूमध्यरेखीय निम्न वायुदाब पेटी,
  2. उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब पेटी (उत्तरी एवं दक्षिणी),
  3. उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी,
  4. उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी।

प्रश्न 7.
भूमध्य रेखा पर सदैव निम्न वायुदाब क्यों मिलता है?
उत्तर:
भूमध्य रेखा पर वर्षभर उच्च तापमान बना रहता है क्योंकि यहाँ अधिकांश समय सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती हैं। जिसके कारण उच्च ताप की स्थिति से वायुदाब कम मिलता है।

प्रश्न 8.
भूमध्य रेखा पर अपकेन्द्रीय बल सर्वाधिक क्यों मिलता है?
उत्तर:
भूमध्यरेखा पर वायुमण्डल में जलवाष्प की अधिकता रहती है तथा वायु का घनत्व कम रहता है। भूमध्य रेखा पर भू-घूर्णन का वेग सर्वाधिक होता है, जिससे यहाँ अपकेन्द्रीय बल सर्वाधिक होता है।

प्रश्न 9.
शांत कटिबन्ध किसे व क्यों कहा गया है?
उत्तर:
भूमध्य रेखीय पेटी को शांत कटिबन्ध कहा जाता है क्योंकि इस पेटी में धरातलीय क्षैतिज पवनें नहीं चलतीं अपितु अधिक तापमान के कारण वायु हल्की होकर ऊपर उठती है और संवहनीय धाराओं का जन्म होता है। इसलिए इस कटिबन्ध को भूमध्य रेखीय शांत कटिबन्ध कहा जाता है।

प्रश्न 10.
उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी मुख्यतः क्यों जानी जाती है?
उत्तर:
उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी का मुख्यतः विश्व के सभी उष्ण मरुप्रदेश जो इसी पेटी में महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर स्थित है के लिए जानी जाती है।

प्रश्न 11.
अश्व अक्षांश से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
विषुवत रेखा के दोनों और 30°-35° अक्षांशों के मध्य उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी मिलती है। इन उच्चदाब के क्षेत्रों को अश्व अक्षांश भी कहते हैं।

प्रश्न 12.
उपधुवीय पेटी में ताप कम होते हुए भी वायुदाब कम मिलता है, क्यों?
उत्तर:
उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी में निम्न तापमान मिलता है लेकिन इस स्थिति के होते हुए भी यहाँ उच्च वायुदाब के स्थान पर निम्न वायुदाब मिलता है। जिसका प्रमुख कारण पृथ्वी की घूर्णन गति है। जिसके कारण यहाँ से हवाएँ ऊपर की ओर उठती हैं।

प्रश्न 13.
ध्रुवीय क्षेत्रों में दाब सम्बन्धी आंकड़े प्रचुर मात्रा में क्यों नहीं प्राप्त किए जा सके हैं?
उत्तर:
ध्रुवीय क्षेत्रों में तापमान वर्षभर कम रहने के कारण हिमाच्छादन का स्वरूप देखने को मिलता है। इसलिये धरातल के निकट की वायु अत्यधिक शीतल व भारी रहती है। इसी कारण से यहाँ धरातलीय दाब सम्बधी आंकड़े प्रचुर मात्रा में प्राप्त नहीं किये जा सकते हैं।

प्रश्न 14.
समभार रेखाओं से क्या तात्पर्य है? अथवा समदाब रेखाएँ क्या है?
उत्तर:
मानचित्र पर वायुदाब का वितरण समभार (समदाब) रेखाओं द्वारा व्यक्त किया जाता है। धरातल पर या सागर तल से समान दबाव वाले स्थानों को मिलाती हुए जो रेखाएँ खींची जाती हैं, उन्हें समदाब रेखाएँ कहते हैं।

प्रश्न 15.
वायुदाब की पेटियों में ऋतुवत् परिवर्तन क्यों होता है?
उत्तर:
वायुदाब की पेटियों का स्वरूप एक सा नहीं मिलता है। सूर्य के उत्तरायण एवं दक्षिणायन की स्थितियों, स्थल एवं जल के स्वभाव में अन्तर आदि कारणों से वायुदाब की पेटियों में ऋतुवत् परिवर्तन होता है।

प्रश्न 16.
वायुदाब पेटियाँ ऋतुगत आधार पर किस प्रकार बदलती हैं?
अथवा
वायुदाब पेटियों के ऋतुगत परिवर्तन के स्वरूप को बताइये।
उत्तर:
वायुदाब पेटियाँ सूर्य की स्थिति के अनुसार बदलती हैं। गर्मियों में जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में होता है तो ये पेटियाँ औसत स्थिति से 5° दक्षिण से 5° उत्तर व सूर्य के दक्षिण गोलार्द्ध में होने पर पेटियाँ 5° दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं।

प्रश्न 17.
वायुदाब के घटने की दर समान क्यों नहीं होती है?
उत्तर:
वायु के घनत्व, तापमान, जलवाष्प की मात्रा तथा पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के भिन्न-भिन्न होने के कारण वायुदाबे के घटने की दर समान नहीं होती है।

प्रश्न 18.
ऊँची पर्वत चोटियों पर चढ़ते समय मानव ऑक्सीजन के सिलेण्डरों व विशेष सूट का उपयोग क्यों करते हैं?
उत्तर:
अधिक ऊँचाई पर गैसें तेजी से विरल और हल्की होती जाती हैं। परिणामस्वरूप वायुदाब अत्यधिक कम हो जाता है। इसीलिए मनुष्य ऊँची पर्वत चोटियों पर चढ़ते समय ऑक्सीजन के सिलेण्डर एवं विशेष सूट का उपयोग करता है।

प्रश्न 19.
पवनें कहाँ से कहाँ कीओर चलती हैं?
उत्तर:
पवनें उच्च-वायुदाब वाले क्षेत्र से निम्न वायुदाब वाले स्थानों की ओर चलती हैं।

प्रश्न 20.
दाब प्रवणता से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। दाब प्रवणता को बैरोमैट्रिक ढाल भी कहते हैं।

प्रश्न 21.
कारिऑलिस प्रभाव किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण पवनें विक्षेपित हो जाती हैं। इस प्रकार के स्वरूप को कारिऑलिस बल और इस बल के प्रभाव को कारिऑलिस प्रभाव कहते हैं।

प्रश्न 22.
फेरल का नियम किसे कहते हैं?
उत्तर:
कारिऑलिस प्रभाव के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इस प्रभाव को फेरल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था, इसलिए इसे फेरल का नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 23.
महासागरीय भागों की तुलना में स्थलीय भागों पर पवनों की गति धीमी क्यों हो जाती है?
उत्तर:
महासागरीय तल पर घर्षण की मात्रा कम होती है जिससे पवनें अधिक तेज गति से चलती हैं। इसके विपरीत स्थलखण्डों पर घर्षण की मात्रा अधिक होती है जिससे पवनों की गति कम हो जाती है।

प्रश्न 24.
पछुआ व पुरवा पवनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
पश्चिम दिशा से आने वाली पवनों को पछुआ पवन तथा पूर्व दिशा से आ रही पवनों को पुरवा पवन कहते हैं।

प्रश्न 25.
पवनों को उनके प्रभाव क्षेत्र व अवधि के आधार पर किन भागों में बाँटा गया है?
उत्तर:
पवनों को उनके प्रभाव व अवधि के आधार पर स्थाई पवनों, सामयिक पवनों व स्थानीय पवनों में बाँटा गया है।

प्रश्न 26.
व्यापारिक पवनें किसे कहते हैं?
उत्तर:
दोनों गोलार्डों में उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी की ओर चलने वाली हवाओं को व्यापारिक पवनें कहते हैं।

प्रश्न 27.
पछुआ पवनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दोनों गोलार्डों में उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियों की ओर बहने वाली पवनों को पछुआ पवन कहते हैं।

प्रश्न 28.
ध्रुवीय पवनों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
दोनों गोलार्डो में ध्रुवीय उच्च वायुदाब पेटी से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटी की ओर चलने वाली हवाओं को ध्रुवीय पवनें कहते हैं।

प्रश्न 29.
सामयिक पवनें क्या होती हैं?
उत्तर:
जिन हवाओं की दिशा में मौसम अथवा समय के अनुसार परिवर्तन होता है, उन्हें सामयिक पवनें कहते हैं।

प्रश्न 30.
मानसूनी पवनों से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानसूनी शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के मौसम शब्द से हुई है जिसका अर्थ मौसम होता है। अतः मौसम के अनुसार अपनी दिशा परिवर्तित करने वाली पवनों को मौसमी पवनें कहते हैं।

प्रश्न 31.
स्थलीय समीर किसे कहते है?
उत्तर:
रात्रि के समय स्थलीय भाग में जल की अपेक्षा तीव्र गति से पार्थिव विकिरण का ह्रास होने से शीघ्रता से ठण्डा हो जाता है। इसके कारण स्थलीय भाग पर उच्च दाब व सागरों पर निम्न दाब बन जाता है जिसके कारण स्थल से सागर की ओर पवनें चलती हैं। इन पवनों को ही स्थलीय समीर कहते हैं।

प्रश्न 32.
स्थानीय पवनें क्या होती हैं?
उत्तर:
जो हवाएँ किसी स्थान विशेष के तापमान और वायुदाब में अन्तर के कारण चलती हैं, उन्हें स्थानीय पवन कहा जाता है।

प्रश्न 33.
कुछ मुख्य स्थानीय पवनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
विश्व में मिलने वाली मुख्य स्थानीय पवनों में चिनूक, ब्लिजार्ड, बोरा, फॉन, हरमट्टान, काराबुरान, लू, गिबली, पम्पेरो, जोण्डा, ब्रिकफिल्डर, खमसिन, सिरोको, विली-विली आदि प्रमुख हैं।

प्रश्न 34.
किन पवनों को हिम-भक्षिणी पवन कहा जाता है व क्यों?
उत्तर:
उत्तरी अमेरिका में रॉकी पर्वतों को पार कर पूर्व की ओर चलने वाली चिनूक पवन को हिम-भक्षिणी पवन कहते हैं। क्योंकि शीत ऋतु के दौरान अमेरिकी मैदानों में जमी बर्फ इन गर्म व शुष्क पवन के कारण पिघलती है।

प्रश्न 35.
रक्त वर्षा से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सिराको पवन के साथ लाल रेत की मात्रा अधिक होती है। भूमध्य सागर से गुजरने के दौरान यह पवन नमी धारण कर लेती है। दक्षिणी इटली में इन नमी युक्त पवनों से लाल मृदा मिले होने के कारण लाल मिट्टी वर्षा के साथ नीचे उतरती है इस वर्षा को रक्त वर्षा कहते हैं।

प्रश्न 36.
हरमंट्टान क्या है?
उत्तर:
अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के पूर्वी भाग में उत्तर-पूर्व तथा पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा में चलने वाली गर्म व शुष्क हवाओं को हरमट्टान कहते हैं।

प्रश्न 37.
बोरा पवन कहाँ चलती हैं?
उत्तर:
यह एक शुष्क तथा ठण्डी प्रचण्ड हवा है, जो कि एड्रियाटिक सागर के पूर्वी किनारे पर चलती है। विशेषकर उत्तरी इटली का भाग इन हवाओं द्वारा प्रभावित होता है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type I

प्रश्न 1.
वायुदाब के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी तल से हजारों किलोमीटर ऊपर तक फैला वायुमण्डल अपनी रचना के अनुसार पृथ्वी तल पर दबाव या दाब उत्पन्न करता है। पृथ्वी तल के नजदीक वायुदाब सर्वाधिक मिलता है ऊपर जाने पर वायुदाब कम होता जाता है। वायुदाब तथा पवन जलवायु के ऐसे महत्वपूर्ण तत्व हैं जो इसके अन्य तत्वों को गहराई से प्रभावित करते हैं। किसी स्थान का वायुदाब निरन्तर परिवर्तनशील होता है। वायुमण्डल में दाब सब जगह और सारे समय समान नहीं रहता, यह वायुताप द्वारा नियन्त्रित रहता है। वायुदाब का ऊध्र्वाधर वितरण अधिक महत्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 2.
वायुदाब व पवन संचार में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
वायुदाब व पवन संचार में अत्यधिक घनिष्ठ सम्बन्ध है। वायुदाब में अन्तर ही पवनों की उत्पत्ति का कारण होता है। वायुदाब का अन्तर वर्षा एवं तापमान को भी प्रभावित करता है। पवनों द्वारा निम्न अक्षांशों व उच्च अक्षांशों के मध्य ऊष्मा का स्थानान्तरण होता है, जिससे अक्षांशीय ताप सन्तुलन बनाये रखने में सहायता मिलती है। पवनों के द्वारा ही महासागरों से महाद्वीपों को। आर्द्रता पहुँचाई जाती है, जिससे वर्षा सम्भव होती है।

प्रश्न 3.
भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब पेटी की विशेषता बताइये।
उत्तर:
भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब पेटी की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. इस पेटी का विस्तार भूमध्य रेखा से दोनों ओर 5° अक्षांशों के मध्य मिलता है।
  2. इस पेटी में सूर्य की सीधी किरणें पड़ने के कारण तापमान सदैव ऊँचा वे वायुदाब कम रहता है।
  3. इस पेटी में वायुमण्डल के अन्दर जलवाष्प की अधिकता मिलती है।
  4. इस पेटी में क्षैतिज पवनें नहीं चलती हैं अपितु यहाँ संवहनीय धाराओं का जन्म होता है।
  5. इसे शान्तं कटिबन्ध यो डोलड्रम पेटी भी कहते हैं।

प्रश्न 4.
उपध्रुवीय निम्न दाब पेटी की विशेषता बताइए।
उत्तर:
उपध्रुवीय निम्नदाब पेटी की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. यह पेटी दोनों गोलार्डो में 60°- 65° उत्तरी बदक्षिणी अक्षांशों के मध्य स्थित है।
  2. इन अक्षांशों में मध्य निम्न तापमान पाया जाता है।
  3. इस वायुदाब पेटी में गर्म जल धारायें चलने के कारण तापक्रम अधिक होने से वायुभार कम पाया जाता है।
  4. यह एक गतिजन्य पेटी है।
  5. इस पेटी में उच्चदाब के बजाय निम्न वायुदाब पाया जाता है।

प्रश्न 5.
जनवरी में वायुदाब की स्थिति कैसी होती है?
उत्तर:
जनवरी में सूर्य दक्षिण गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लगभग लम्बवत् चमकता है। इस कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान अधिक तथा वायुभार कम होता है। इस अवधि में निम्न वायुदाब का क्षेत्र दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया के आन्तरिक भागों में विकसित हो जाता है जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में पूर्णत: विकसित उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र महाद्वीपों पर मिलते हैं।

प्रश्न 6.
पृथ्वी की परिभ्रमण गति का पवनों पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण पवनें विक्षेपित हो जाती हैं। इसे कारिऑलिस बल और इस बल के प्रभाव को कारिऑलिस प्रभाव कहते हैं। इस प्रभाव के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर विक्षेपित हो जाती है। इस प्रभाव को फेरल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था, इसलिए इसे फेरल का नियम भी कहते हैं।

प्रश्न 7.
व्यापारिक पवनों का नामकरण कैसे हुआ हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राचीन काल में समुद्र के अन्दर पालयुक्त जलयानों को इन पवनों द्वारा व्यापार में सुविधा मिलती थी, इसलिए इन्हें व्यापारिक पवन कहा गया है। ये पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में उत्तरी-पूर्वी व्यापारिक पवनें एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पूर्वी व्यापारिक पवनों के नाम से जानी जाती हैं।

प्रश्न 8.
व्यापारिक पवनों की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
व्यापारिक पवनों की निम्न विशेषताएँ हैं-

  1. उपोष्ण उच्च वायुदाब के पास हवाओं के नीचे उतरने के कारण ये हवाएँ शुष्क व शांत होती हैं।
  2. ये पवनें जैसे-जैसे अग्रसर होती हैं, मार्ग में जलराशियों से जलवाष्प ग्रहण कर लेती हैं।
  3. विषुवत रेखा के पास पहुँचते-पहुँचते ये हवाएँ जलवाष्प से लगभग संतृप्त हो जाती हैं।
  4. दोनों गोलार्थों की व्यापारिक पवनें भूमध्य रेखा के पास आपस में टकराती हैं और ऊपर उठकर घनघोर वर्षा करती हैं।

प्रश्न 9.
दक्षिणी गोलार्द्ध में पछुआ पवनों को किन-किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
दक्षिणी गोलार्द्ध में महासागरीय क्षेत्र के विस्तार के कारण ये पवनें अधिक नियमित और स्थाई होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में इनका वेग भी अधिक होता है। इनकी प्रचण्डता के कारण ही इन्हें दक्षिणी गोलार्द्ध में 40-50° अक्षांशों में गरजती चालीसा, 50° दक्षिणी अक्षांश के पास भयंकर पचासा व 60° दक्षिणी अक्षांश के पास चीखती साठा के नाम से जाना जाता है।

प्रश्न 10.
ध्रुवीय पवनों की विशेषताएं बताइये।
उत्तर:
ध्रुवीय पवनों की निम्न विशेषताएँ होती हैं-

  1. ये पवनें ध्रुवीय क्षेत्रों से उपध्रुवीय क्षेत्रों की ओर चलती हैं।
  2. उत्तरी गोलार्द्ध में इन पवनों की दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम व दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है।
  3. ध्रुवीय शीत क्षेत्रों से चलने के कारण ये हवाएँ अत्यन्त ठण्डी व शुष्क होती हैं।
  4. तापमान कम होने के कारण इनकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता भी कम होती है।
  5. उत्तरी गोलार्द्ध में तीव्र गति से चलने के कारण ध्रुवीय पवनों को नारईस्टर कहा जाता है।

प्रश्न 11.
उत्तरी-पूर्वी मानसून किसे कहते हैं?
अथवा
शीतकालीन मानसून से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सर्दियों में सूर्य की स्थिति दक्षिणायन की ओर होती है। इसके कारण स्थलीय भाग उच्च दाब के केन्द्र बन जाते हैं तथा सागरीय भाग निम्न दाब के केन्द्र बन जाते हैं। इस स्थिति के कारण हवाएँ स्थलीय भाग से सागरों की ओर चलती हैं। इन पवनों को ही शीतकालीन मानसून या उत्तरी-पूर्वी मानसून भी कहते हैं।

प्रश्न 12.
आधुनिक संकल्पना के अनुसार शरदकालीन मानसून कैसे उत्पन्न होता है?
उत्तर:
जेट स्ट्रीम नामक तीव्र प्रवाह क्षोभमण्डल में लगभग 12 किमी की ऊँचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर चलता है। उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों में इस उच्च स्तरीय जेट पवनों का हिमालय तथा तिब्बत पठार के यान्त्रिक अवरोध के कारण विभाजन हो जाता है। उत्तरी शाखा तिब्बत के पठार के उत्तर में चापाकार रूप में पश्चिम से पूर्व की ओर तथा मुख्य शाखा तिब्बत के पठार तथा हिमालय के दक्षिण में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। मुख्य शाखा अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान के ऊपर से होकर चक्रवातीय मार्ग का अनुसरण करती है। इसी के प्रभाव से शरद्कालीन मानसून की उत्पत्ति होती है।

प्रश्न 13.
सिराको पवनों के लक्षणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सिराको पवनों के प्रभावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सिराको पवनों के निम्न लक्षण व प्रभाव दृष्टिगत होते हैं-

  1. यह गर्म, शुष्क तथा रेत से भरी हवा होती है जोकि सहारा के रेगिस्तान से उत्तर दिशा में भूमध्य सागर की ओर चलती है।
  2. यह पवन रक्त वर्षा के लिए उत्तरदायी होती है।
  3. एटलस पर्वत के उत्तरी ढाल के सहारे नीचे उतरने पर इसकी शुष्कता तथा तापमान बढ़ जाते हैं।
  4. इन हवाओं को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है।
  5. इन हवाओं का वनस्पति, कृषि एवं फलों के बागों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 14.
ब्लिजार्ड पवनों की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
ब्लिजार्ड पवनों की निम्न विशेषताएँ मिलती हैं-

  1. इन पवनों को झंझावात भी कहते हैं।
  2. ये पवनें हिमकणों से युक्त होती हैं जिसके कारण इनसे दृश्यता समाप्त हो जाती है।
  3. इन पवनों के आगमान से तापमान अचानक हिमांक से नीचे चला जाता है।
  4. इन पवनों के कारण धरातलीय सतह बर्फ से ढक जाती है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 लघुत्तरात्मक प्रश्न Type II

प्रश्न 1.
उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उपोष्ण कटिबन्धीय उच्चदाब पेटी का विस्तार दोनों गोलार्थों में 30-35° अक्षांशों के मध्य पाया जाता है। इस पेटी में वर्ष भर उच्च तापमान, उच्च वायुदाब व मेघरहित आकाश की स्थिति देखने को मिलती है। इस वायुदाब पेटी की मुख्य विशेषता के रूप में विश्व के सभी उष्ण मरुस्थलीय प्रदेशों का इसी पेटी में महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर स्थित होना है। वायुमण्डल के ऊपरी भाग में घर्षण का अभाव होने से उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द्ध में ये हवायें क्रमश: अपने दायीं तथा बायीं ओर मुड़ जाती हैं। इन उच्चदाब के क्षेत्रों को अश्व अक्षांश भी कहते हैं। इस वायुदाब पेटी को गतिजन्य पेटी माना गया है। इस पेटी में सिर्फ शीतकालीन अवधि को छोड़कर तापमान अधिक मिलता है। दोनों गोलार्द्ध में ग्रीष्म काल में उच्च वायुदाब केन्द्र महासागरों के ऊपर पाये जाते हैं। वायु के नीचे उतरने के कारण इस पेटी में वायुमण्डल शान्त रहता है।

प्रश्न 2.
वायुदाब की पेटियों में होने वाले ऋतुवत् परिवर्तन को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वायुदाब पेटियों में होने वाले खिसकाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वायुदाब की पेटियों का वितरण सदैव एक सा नहीं रहता है। सूर्य के उत्तरायण एवम् दक्षिणायन की स्थितियाँ, स्थल एवम् जल के स्वभाव में अन्तर आदि कारकों के कारण, वायुदाब में दैनिक तथा वार्षिक परिवर्तन होते रहते हैं। गर्मियों में जब सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में होता है तो यह पेटियाँ अपनी औसत स्थिति से 5° उत्तर की ओर एवम् सर्दियों में जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में सीधा चमकता है तो यह पेटियाँ अपनी औसत स्थिति से 5° दक्षिण की ओर खिसक जाती हैं। इनकी आदर्श स्थिति केवल 21 मार्च तथा 23 सितम्बर को होती है, जब सूर्य विषुवत रेखा पर लम्बवत् होता है।

वायुदाब की पेटियों के खिसकाव के समय विषुवत् रेखीय पेटी 5° अक्षांश के स्थान पर 0°- 10° अक्षांशों के मध्य ऋतु के अनुसार उत्तरी व दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित हो जाती है। इसी प्रकार उपोष्ण पेटी 30° से 35° अक्षांशों के स्थान पर 30° से 40° अक्षांशों के मध्य, जबकि उपध्रुवीय पेटी 60° से 65° अक्षांशों के स्थान पर 60° से 70° अक्षांशों के मध्य पाई जाती है। ध्रुवीय प्रदेशों में विशेषकर उत्तरी ध्रुवीय प्रदेश में महाद्वीपीय विस्तार के कारण इसका अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि यहाँ ग्रीष्मकाल में ध्रुवीय पेटी बहुत संकरी हो जाती है। दक्षिणी ध्रुवीय प्रदेश में भूखण्ड के संकरे होने व महासागरीय विस्तार के कारण इनमें विशेष परिवर्तन नहीं मिलता है।

प्रश्न 3.
वायुमण्डलीय दाब के ऊर्ध्वाधर वितरण को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
समुद्र तल से ऊँचाई में जाने पर वायुमण्डलीय दाब में होने वाले परिवर्तनों की प्रक्रिया को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पास्कल ने सर्वप्रथम बताया था कि वायुमण्डल में ऊँचाई के साथ वायुदाब कम होता है। वायुमण्डल की निचली परतों को घनत्व अधिक होता है, क्योंकि यहाँ ऊपर की वायु का दबाव पड़ता है। इसके परिणामस्वरूप वायुमण्डल की निचली परतों की हवा का घनत्व और दाब दोनों अधिक होते हैं। इसके विपरीत, ऊपरी परतों की वायु कम दबी हुई होती है, अत: उसके घनत्व और दाब दोनों कम होते हैं। इसीलिए ऊँचाई के साथ वायुदाब हमेशा घटता जाता है, लेकिन इसके घटने की दर हमेशा एक समान नहीं होती है।

यह वायु के घनत्व, तापमान, जलवाष्प की मात्रा तथा पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति पर निर्भर होती है। इन सभी कारकों के परिवर्तनशील होने के कारण ऊँचाई और वायुदाब के बीच कोई सीधा आनुपातिक सम्बन्ध नहीं होता है। फिर भी सामान्य रूप से क्षोभमण्डल में वायुदाब घटने की औसत दर प्रति 300 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 34 मिलीबार होती है। अधिक ऊँचाई पर गैसे तेजी से विरल और हल्की होती जाती हैं। परिणामस्वरूप वायुदाब अत्यधिक कम हो जाता है। इसीलिए मनुष्य ऊँची पर्वत चोटियों पर चढ़ते समय ऑक्सीजन के सिलेण्डर एवम् विशेष सूट का उपयोग करता है।

प्रश्न 4.
स्थलीय समीर और सागरीय समीर में मिलने वाले अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
स्थलीय समीर सागरीय समीर से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
स्थलीय समीर वे सागरीय समीर में मिलने वाले अन्तर निम्नानुसार हैं-
RBSE Solutions for Class 11 Physical Geography Chapter 13 वायुदाब की पेटियाँ एवं पवनें 5

प्रश्न 5.
सागरीय पवनों की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
सागरीय समीरों के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दिन के समय सूर्य की किरणों से स्थलीय भाग जल की अपेक्षा शीघ्र गर्म हो जाते हैं, जिससे तटवर्ती स्थलीय भागों पर । निम्न दाब तथा समुद्री भागों पर उच्च दाब बन जाते हैं। परिणामस्वरूप सागरीय भागों से स्थल की ओर हवाएँ चलने लगती हैं, जिन्हें सागरीय समीर कहते हैं। इन हवाओं का संचार सुबह 10-11 बजे प्रारम्भ होता है तथा 1 से 2 बजे के बीच सर्वाधिक सक्रिय हो जाता है तथा रात्रि में 8 बजे तक समाप्त हो जाता है। उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में तटीय भागों पर इन हवाओं के आगमन के साथ ही 15-20 मिनट के अन्दर 5-7°C तापमान गिर जाता है। परिणामस्वरूप मौसम सुहावना तथा स्वास्थ्यप्रद हो जाता है। ये हवाएँ आगे चलकर तटीय भागों पर वर्षा करती हैं। इन हवाओं का संचार केवल गर्मियों में दिन के समय ही हो पाता है।

प्रश्न 6.
पर्वतीय समीर व घाटी समीर में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
पर्वतीय समीर व घाटी समीर किस प्रकार एक-दूसरे से भिन्न हैं?
उत्तर:
पर्वतीय एवं घाटी समीरों में निम्न अन्तर पाये जाते हैं-

क्र.सं. अन्तर का आधार पर्वतीय समीर घाटी समीर
1. समय पर्वतीय समीर रात्रि कालीन अवधि के दौरान चलती हैं। घाटी समीर दिन के समय चलती हैं।
2. दाब की स्थिति पर्वतीय समीर के दौरान पर्वतीय ढालों पर उच्च दाब और घाटी तल में निम्न दाब मिलता है। घाटी समीर की स्थिति में पर्वतीय ढालों पर निम्न दाब व घाटी के तल में उच्च वायुदाब मिलता है।
3. तापमान सूर्यास्त के बाद पर्वतीय ढालों पर विकिरण द्वारा ताप ह्रास अधिक होता है। जिससे ऊपरी भाग में कम ताप व घाटी तली में अधिक ताप मिलता है। दिन के समय सूर्य की किरणों से पर्वतों के ढाल घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। जबकि घाटी तल तक किरणें नहीं पहुँचने से कम दाब मिलता है।
4. नामकरण इन उतरती हुई पवनों को केटबिटिक समीर भी कहते हैं। इस प्रकार की पवनें ऊपर की ओर चढ़ती हैं इन्हें एनाबेटिक हवायें कहा जाता है।
5. प्रारम्भ इन पवनों का प्रारम्भ सूर्यास्त के बाद होता है। इन पवनों का प्रारम्भ दिन में 9-10 बजे से होता है।

प्रश्न 7.
हरमट्टान व मिस्ट्रल पवनों के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
हरमट्टान व मिस्ट्रल पवनें एक-दूसरे से किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर:
हरमट्टाने व मिस्ट्रले पवन में निम्न अन्तर मिलते हैं-

क्र.सं. अन्तर हरमट्टान पवन मिस्ट्रल पवन
1. संचरण क्षेत्र हरमट्ट्टान पवनें अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के पूर्वी भाग में उत्तर-पूर्व तथा पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा में चलती हैं। ये पवनें भूमध्य सागर के उत्तरी-पश्चिमी भाग, विशेषकर स्पेन तथा फ्रांस में चलती हैं।
2. पवन का स्वभाव हरमट्टान एक गर्म एवं शुष्क पवन है। मिस्ट्रल एक ठण्डी एवं शुष्क पवन है।
3. प्रभाव हरमट्टान के आने पर यहाँ का मौसम शुष्क हो जाने के कारण सुहावना व स्वास्थ्यप्रद हो जाता है। मिस्ट्रल पवनों के आने पर इसके प्रभावित क्षेत्र में तापमान हिमांक से नीचे चला जाता है।
4. प्रबन्धन हरमट्ट्टान हवाएँ लाभप्रद होती हैं। इसी कारण इनको विशेष प्रबन्धित नहीं किया जाता है। मिस्ट्रल पवनों से बचने के लिए इनकी प्रवाह-दिशा के समकोण पर बाग तथा झाड़ियाँ लगाई जाती हैं।
5. तापमान इन पवनों का तापमान सदैव 0°C से अधिक पाया जाता है। इन पवनों का तापमान सदैव 0°C से कम पाया जाता है।

प्रश्न 8.
बोरा एवं लू पवनों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
बोरा पवन व लू पवन किस प्रकार आपस में भिन्न हैं?
उत्तर:
बोरा – यह शुष्क तथा ठण्डी प्रचण्ड हवा है, जो कि एड्रियाटिक सागर के पूर्वी किनारे पर चलती है। विशेषकर उत्तरी इटली का भाग इन हवाओं द्वारा अधिक प्रभावित होता है। इसकी तेज गति के कारण रास्ते में इमारतों की छतें उड़ जाती हैं तथा पेड़-पौधे धराशायी हो जाते हैं। कभी-कभी तो ये कई दिनों तक लगातार चलती है। नमीयुक्त होने से इनसे वर्षा भी हो जाती है।

लू – उत्तरी भारत और पाकिस्तान के मैदानी क्षेत्रों में गर्मियों में साधारणत: दोपहर बाद, अति गर्म और शुष्क हवाएँ पश्चिम दिशा से बहती हैं। इन्हें ही लू कहते हैं। इनका तापमान 40° से 50° सेल्शियम के बीच रहता है। इस मौसम में घर से बाहर निकले व्यक्तियों को लू लगने की सम्भावना रहती है। हन हवाओं के कारण प्रभावित क्षेत्र का मौसम कष्टदायक हो जाता है।

RBSE Class 11 Physical Geography Chapter 13 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
वायुदाब को परिभाषित करते हुए जनवरी व जुलाई की वायुदाबीय स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
वायुदाब की स्थिति में भिन्न-भिन्न स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मानचित्रों पर वायुदाब को समभार रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है। तापमान की भाँति वायुदाब के लिए भी वर्ष के दो महीने (जनवरी तथा जुलाई) चुने जाते हैं।

जनवरी में वायुदाब की स्थिति – जनवरी में इस समय सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध में मकर रेखा पर लगभग लम्बवत् चमकता है। इस कारण वहाँ तापमान अधिक तथा वायुभार कम होता है। निम्न वायुदाब के क्षेत्र दक्षिणी अमेरिका, दक्षिणी अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया के आन्तरिक भागों में है। उत्तरी गोलार्द्ध पूर्णतः विकसित उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र महाद्वीपों पर पाये जाते हैं।
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जुलाई में वायुदाब की स्थिति – जुलाई में सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध में कर्क रेखा पर लगभग लम्बवत् चमकता है। यह खिसकाव एशिया में सर्वाधिक होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थल के अधिक गर्म हो जाने के कारण वहाँ पर निम्न वायुदाब का क्षेत्र विकसित हो जाता है। तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उच्च वायुदाब की पेटी विकसित होती है।
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प्रश्न 2.
पवनों को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
पवनों की स्थिति किन दशाओं के द्वारा नियन्त्रित होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पवनों की दशा एवं दिशा को प्रभावित करने वाले मुख्य कारक निम्नानुसार हैं-

  1. दाब प्रवणता,
  2. पृथ्वी की परिभ्रमण गति,
  3. धरातलीय स्वरूप।

(i) दाब प्रवणता – किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। यह प्रवणता क्षैतिज दिशा में होती है। दाब प्रवणता को बैरोमेट्रिक ढाल भी कहते हैं। किन्हीं दो स्थानों के बीच दाब प्रवणता अधिक होने पर पवनों की गति अधिक होती है, इसके विपरीत दाब प्रवणता कम होने पर पवनों की गति धीमी होती है।

(ii) पृथ्वी की परिभ्रमण गति-पृथ्वी की परिभ्रमण गति के कारण पवनें विक्षेपित हो जाती हैं। इसे ‘कारिऑलिस बल’ और इस बल के प्रभाव को ‘कारिऑलिस प्रभाव’ कहते हैं। इस प्रभाव के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। इस प्रभाव को फेरल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था, इसलिए इसे फेरल का नियम भी कहते हैं।

(iii) धरातलीय स्वरूप-पृथ्वी पर धरातलीय असमानताएँ पवनों के मार्ग में अवरोध उत्पन्न करती हैं, जिससे पवनों की दिशा और गति प्रभावित होती है। अपेक्षाकृत समतल महासागरीय तल पर घर्षण की मात्रा कम होती है, जिससे पवनें अधिक तेज गति से प्रवाहित होती हैं। इसके विपरीत स्थलखण्डों पर घर्षण की मात्रा अधिक होती है जिससे पवनों की गति काफी धीमी हो जाती है। यही कारण है कि दक्षिणी गोलार्द्ध में महासागरीय विस्तार के कारण पछुआ पवनें अधिक तेज तथा निश्चित दिशा में प्रवाहित होती हैं। जबकि उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलीय भागों के कारण पछुआ पवनों की गति अपेक्षाकृत धीमी हो जाती है।

प्रश्न 3.
स्थायी पवनों को परिभाषित करते हुए इनके प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
व्यापारिक, पछुआ व ध्रुवीय पवनों की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जो पवने वर्षभर एक निश्चित दिशा एवं क्रम में चलती हैं, उन्हें स्थायी पवनें कहते हैं। इन्हें प्रचलित, ग्रहीय एवं भूमण्डलीय पवनों के नाम से भी जाना जाता है। स्थायी पवनों के प्रकार-स्थायी पवनों को मुख्यत: निम्नलिखित प्रकारों में विभाजित किया गया है-

  1. व्यापारिक पवनें,
  2. पछुआ पवने,
  3. ध्रुवीय पवनें।

(i) व्यापारिक पवनें – दोनों गोलाद्ध में उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से विषुवतीय निम्न वायुदाब पेटी की ओर चलने वाली हवाओं को व्यापारिक पवनें कहते हैं। ये पवनें सीधी न चलकर फैरल के नियम के अनुसार उत्तरी गोलार्द्ध में अपने दाहिनी ओर और दक्षिणी गोलार्द्ध में अपने बाईं ओर विक्षेपित हो जाती हैं। अत: दिशानुरूप इन पवनों को उत्तरी गोलार्द्ध में ‘उत्तरी पूर्वी व्यापारिक पवनें तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में ‘दक्षिणी पूर्वी व्यापारिक पवनें’ कहा जाता है। ये पवनें प्राचीन काल में पालयुक्त जलयानों को व्यापार में सुविधा प्रदान करती थी, इसलिए इन्हें ‘व्यापारिक पवन’ कहा जाता है। इन पवनों की विभिन्न भागों में विभिन्न विशेषताएँ होती हैं। उपोष्ण उच्च वायुदाब के पास हवाओं के नीचे उतरने के कारण ये हवाएँ शुष्क और शांत होती हैं। ये पवनें जैसे-जैसे आगे बढ़ती हैं मार्ग में जलराशियों से जलवाष्प ग्रहण कर लेती है। विषुवत् रेखा के पास पहुँचते-पहुंचते ये हवाएँ जलवाष्प से लगभग संतृप्त हो जाती हैं, जहाँ अस्थिर होकर वर्षा करती हैं। विषुवत् रेखा के पास दोनों गोलाद्धों की व्यापारिक पवनें आपस में टकराती हैं और ऊपर उठकर घनघोर वर्षा करती हैं।

(ii) पछुआ पवनें – दोनों गोलार्थों में उपोष्ण उच्च वायुदाब पेटियों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पेटियों की ओर बहने वाली पवनों को पछुआ पवनें कहते हैं। इनकी दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में स्थलखण्ड की अधिकता तथा मौसमी परिवर्तन के कारण इन पवनों का पश्चिमी प्रवाह अस्पष्ट हो जाता है। दक्षिणी गोलार्द्ध में महासागरीय विस्तार के कारण ये पवने अधिक नियमित और स्थाई होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में इनका वेग भी अधिक होता है। इनकी प्रचण्डता के कारण ही इन्हें दक्षिणी गोलार्द्ध में 40-50° अक्षांशों में ‘गरजती चालीसा’ 50° दक्षिण अक्षांश के पास ‘भयंकर पचासा तथा 60° दक्षिणी अक्षांश के पास ‘चीखती साठा’ कहते हैं। ध्रुवों की ओर पछुआ पवनों की सीमा अस्थिर होती है। ये हवाएँ मौसम में अस्थिरता उत्पन्न करती हैं।

(iii) ध्रुवीय पवनें – दोनों गोलार्द्ध में ध्रुवीय उच्च वायुदाब से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की ओर चलने वाली हवाओं को ध्रुवीय पवनें कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्व से उत्तर-पश्चिम की ओर होती है। ध्रुवीय शीत क्षेत्रों से चलने के कारण ये हवाएँ अत्यन्त ठण्डी तथा शुष्क होती है। तापमान कम होने के कारण इनकी जलवाष्प धारण करने की क्षमता भी कम होती है। उत्तरी गोलार्द्ध में तीव्र गति से चलने वाली ध्रुवीय पवनों को ‘नारईस्टर’ कहते हैं। जिसका सर्वाधिक प्रभाव उत्तर पूर्वी कनाडा एवं यू.एस.ए. पर पड़ता है।
विश्व में मिलने वाली स्थायी पवनों के इस स्वरूप को निम्न चित्र के द्वारा दर्शाया गया है-
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प्रश्न 4.
स्थानीय पवनों से क्या अभिप्राय है? विश्व की प्रमुख स्थानीय पवनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
क्षेत्रीय आधार पर पवनों का स्वरूप व स्वभाव भिन्न-भिन्न मिलता है, कैसे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जो हवाएँ किसी स्थान विशेष के तापमान और वायुदाब में अन्तर के कारण चलती हैं उन्हें स्थानीय पवन कहा जाता है। ये पवने क्षेत्र विशेष की धरातलीय व जलवायु विशेषताओं से जुड़ी होती हैं।

विश्व की प्रमुख स्थानीय पवनें – सम्पूर्ण विश्व में प्रादेशिक आधार पर अनेक स्थानीय पवनें मिलती हैं। इन पवनों का स्वभाव प्रायः भिन्न-भिन्न होता है। इनके तापमान के आधार पर ठण्डी व उष्ण पवनों, नमी के आधार पर शुष्क एवं तर पवनों एवं गति के आधार पर मन्द एवं तीव्र पवनों के रूप में पायी जाती हैं। विश्व में मिलने वाली कुछ महत्वपूर्ण स्थानीय पवनों को निम्नानुसार वर्णित किया गया है।

ब्लिजर्ड – इन्हें हम झंझावात भी कहते हैं। ये मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा तथा साइबेरिया में चला करती हैं। इनकी गति 80-96 किमी प्रति घण्टा होती है। हिम कणों से युक्त होने के कारण इनसे दृश्यता समाप्त हो जाती है। इनके आगमन से तापमान अचानक हिमांक के नीचे चला जाता है तथा सतह बर्फ से ढक जाती है। संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिम-पूर्व धरातलीय अवरोध के अभाव में ये हवाएँ समस्त मध्यवर्ती मैदान को प्रभावित करती हुई दक्षिणी प्रान्तों तक पहुँच जाती हैं। यहाँ इन्हें ‘नार्दन’ तथा साइबेरिया में ‘बुरान’ कहते हैं।

चिनूक – पर्वतीय ढालों के सहारे चलने वाली गर्म और शुष्क स्थानीय हवाओं को उत्तरी अमेरिका में ‘चिनूक’ कहते हैं। चिनूक पवनों का प्रभाव संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रेयरी मैदानों पर विशेष रूप से पाया जाता है। मुख्यरूप से ये हवाएँ शीत ऋतु में चलती हैं। इस ऋतु में उत्तरी अमेरिका के वृहत् मैदानों में बर्फ की परत बिछ जाती है। किन्तु जब ये गर्म व शुष्क चिनूक हवायें रॉकी पर्वतों को पार कर पूर्व के प्रेयरी घास के मैदानों मे उतरती हैं तो उस बर्फ की परत को शीघ्र ही पिघला देती हैं। इसलिए इन पवनों को हिम-भक्षिणी पवनें भी कहते हैं।

फॉन – ये हवाये आल्पस पर्वत के दक्षिणी ढाल से चढ़कर उत्तर की ओर ढाल के सहारे नीचे उतरती हैं। इन हवाओं के कारण प्रभावित क्षेत्रों का ताप एकदम तेजी से बढ़ जाता है, अर्थात् एक या दो मिनट में 8° से 10° सेल्शियस तक। इससे वहाँ जमी बर्फ पिघल जाने से घास उग आती है और पशुओं के लिए चारागाह तैयार हो जाते हैं। साथ ही कृषि आरम्भ कर दी जाती है। इसका सर्वाधिक प्रभाव स्विट्जरलैण्ड में होता है, जहाँ ये हवाएँ बसन्त तथा पतझड़ ऋतुओं में अधिक चलती हैं।

सिराको – ये गर्म, शुष्क तथा रेत से भरी हवा होती हैं, जो कि सहारा के रेगिस्तान से उत्तर दिशा में भूमध्यसागर की ओर चलकर इटली, स्पेन आदि को प्रभावित करती हैं। सिराको के साथ लाल रेत की मात्रा अधिक होती है। जब ये भूमध्य सागर से होकर गुजरती हैं तो नमी धारण कर लेती हैं। दक्षिण इटली में लाल मिट्टी वर्षा के साथ नीचे उतरती हैं, इस वर्षा को रक्त वर्षा के नाम से जाना जाता है। एटलस पर्वत के उत्तरी ढाल के सहारे नीचे उतरने पर इनकी शुष्कता तथा तापमान बढ़ जाते हैं। इन हवाओं को अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इटली में सिराको, सहारा में सिमूम, लीबिया में गिबली, ट्यूनिशिया में चिली, स्पेन में लेवेश आदि नामों से जाना जाता है। अरब के रेगिस्तान में चलने वाली गर्म व शुष्क हवा को सिमूम कहते हैं। इन हवाओं का वनस्पति, कृषि एवम् फलों के बागों पर विनाशकारी प्रभाव पड़ता है।

हरमट्टान – अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के पूर्वी भाग में उत्तर-पूर्व तथा पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा में चलने वाली गर्म व शुष्क हवाओं को हरमट्टान’ कहते हैं। इनकी गति तीव्र होती है। अफ्रीका का पश्चिमी तट उष्ण तथा आर्द्र होता है, जिससे मौसम अस्वास्थ्यकर हो जाता है। हरमट्टान के आने पर यहाँ का मौसम शुष्क हो जाने के कारण सुहावना एवम् स्वास्थ्यप्रद हो जाता है। इसी प्रभाव के कारण गिनी तट पर इस हवा को ‘डॉक्टर हवा’ की संज्ञा दी जाती है। इस तरह की गर्म एवम् शुष्क हवाएँ आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रान्त में चलती हैं जिन्हें ‘ब्रिकफिल्डर’ कहते हैं।

मिस्ट्रल – ये ठण्डी, शुष्क और तीव्र गति से चलने वाली हवाएँ हैं, जो कि भूमध्य सागर के उत्तरी-पश्चिमी भाग, विशेषकर स्पेन तथा फ्रान्स को प्रभावित करती हैं। मिस्ट्रल सामान्य रूप से 56-64 किमी प्रति घण्टे की चाल से चलती हैं, परन्तु कभी-कभी इनकी गति 128 किमी प्रति घण्टे तक हो जाती है। इससे वायुयानों के चलने में कठिनाई होती है। इन हवाओं से बचने के लिए इनकी प्रवाह-दिशा के समकोण पर बाग तथा झाड़ियाँ लगाई जाती हैं। इन हवाओं के आने पर तापमान हिमांक के नीचे चला जाता है।

लू – यह एक ऊष्ण एवं शुष्क पवन हैं जो भारत के उत्तरी-पश्चिमी भारत व पाकिस्तान के मैदानी भागों में चलती हैं। यह ग्रीष्म कालीन अवधि के दौरान चलती हैं। जब यह पवन चलती है तो अपने संचरित क्षेत्र के तापमान को बढ़ा देती है। इसी कारण ग्रीष्मकाल के दौरान सुबह 9-10 बजे के पश्चात् इनसे प्रभावित क्षेत्र सुनसान हो जाते हैं।
विश्व में मिलने वाली प्रमुख स्थानीय पवनों को निम्न रेखाचित्र के माध्यम से प्रदर्शित किया गया है-
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