RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 10 सरकार के रूप: (अ) एकात्मक एवं संघात्मक (ब) संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 सरकार के रूप: (अ) एकात्मक एवं संघात्मक (ब) संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 10 सरकार के रूप: (अ) एकात्मक एवं संघात्मक (ब) संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक

प्रश्न 1.
सरकार के रूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सरकार के रूप हैं

  1. राजतन्त्र
  2. कुलीन तन्त्र
  3. अधिनायक तन्त्र
  4. लोकतन्त्र।

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार क्या है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वह शासन प्रणाली जिसमें संविधान के द्वारा राज्य की सम्पूर्ण शासन शक्ति केन्द्र सरकार में निहित रहती है, एकात्मक सरकार कहलाती है। ब्रिटेन, इटली, जापान व बेल्जियम आदि देशों में एकात्मक सरकारें हैं।

प्रश्न 3.
एकात्मक सरकार का कोई एक लक्षण बताइए।
उत्तर:
एकात्मक सरकार में सत्ता का स्रोत केन्द्र सरकार होती है।

प्रश्न 4.
एकात्मक सरकार की कोई एक बुराई बताइए।
उत्तर:
एकात्मक सरकार में केन्द्र सरकार के निरंकुश होने का भय बना रहता है।

प्रश्न 5.
संघात्मक सरकार क्या है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वह शासन प्रणाली जिसमें राज्य की समस्त शक्तियों का विभाजन संघ सरकार एवं राज्यों के मध्य होता है, संघात्मक सरकार कहलाती है। भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा एवं स्विटजरलैण्ड आदि में संघात्मक सरकारें हैं।

प्रश्न 6.
संघ शब्द को आंग्ल भाषा में लिखिए।
उत्तर:
संघ शब्द को आंग्ल भाषा में फेडरेशन (Federation) कहते हैं। फेडरेशन शब्द लैटिन भाषा के शब्द फोडस (Foedus) से बना है। फोडस का अर्थ होता है-सन्धि या समझौता।

प्रश्न 7.
संघात्मक सरकार की कोई एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
संघात्मक सरकार में केन्द्र सरकार एवं स्थानीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन होता है।

प्रश्न 8.
संघात्मक सरकार की कोई एक बुराई बताइये।
उत्तर:
संघात्मक सरकार में शक्ति विभाजन के कारण केन्द्र और इकाइयों की सरकारों के मध्य निरन्तर विवाद होते रहते हैं।

प्रश्न 9.
संसदात्मक सरकार का अर्थ बताइये।
उत्तर:
वह शासन प्रणाली जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है, संसदात्मक सरकार कहलाती है।

प्रश्न 10.
संसदात्मक सरकार का कोई एक लक्षण बताइये।
उत्तर:
संसदात्मक सरकार में दोहरी कार्यपालिका कार्य करती है।

प्रश्न 11.
संसदात्मक सरकार की कोई एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
संसदात्मक सरकार में व्यवस्थापिका एवं कार्यपालिका में पारस्परिक सहयोग बना रहता है।

प्रश्न 12.
संसदात्मक सरकार का कोई एक दुर्गुण बताइये।
उत्तर:
संसदात्मक सरकार शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिकूल होती है।

प्रश्न 13.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का अर्थ बताइये।
उत्तर:
वह शासन व्यवस्था जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका से पृथक् एवं स्वतन्त्र रहती है और अपने कार्यों के लिए व्यस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं रहती है, अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली कहलाती है।

प्रश्न 14.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की कोई एक विशेषता बताइये।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त पर कार्य करती है।

प्रश्न 15.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की कोई एक अच्छाई बताइये।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में सरकार स्थायी रहती है।

प्रश्न 16.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की कोई एक बुराई बताइये।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में शासन निरंकुश एवं अनुत्तरदायी होता है।

प्रश्न 17.
वर्तमान में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को लोकतन्त्र का विकल्प बताया जा रहा है, वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के शासन में स्थायित्व, कुशलता, प्रशासन में एकता, दलबन्दी के दोषों से मुक्त, संकटकाल में उपयुक्त, नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा, व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता एवं विभिन्नता वाले राज्यों के लिए उपयुक्त होने के कारण इसे लोकतन्त्र का विकल्प बताया जा रहा है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकार का अर्थ एवं उसके स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सरकार का अर्थ एवं स्वरूप – सरकार, राज्य का अनिवार्य तत्व है, जो राज्य को मूर्त रूप प्रदान करती है। इस प्रकार राज्य को मूर्त रूप प्रदान करने वाली संस्था को सरकार कहते हैं। सरकार वह अभिकरण है, जो जनहित में राज्य की इच्छाओं को कानून के रूप में अभिव्यक्त करता है। कानूनों को कार्यान्वित कर राज्य की इच्छा को वास्तविक रूप प्रदान करता है एवं इस मार्ग में बाधा डालने वालों को दण्डित करता है। सरकार के विकास में देशकाल एवं परिस्थिति के अनुरूप परिवर्तन आते रहे हैं।

जिस प्रकार राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति के सम्बन्ध में विद्वानों में मतभेद हैं उसी प्रकार सरकार के स्वरूप के बारे में भी विद्वानों में मतैक्य का अभाव है। राज्य एक अमूर्त संस्था है। सरकार ही राज्य के स्वरूप को निर्धारित करती है। सरकार के विभिन्न स्वरूप होते हैं। राजतन्त्र, कुलीन तन्त्र, अधिनायक तन्त्र एवं लोकतन्त्र राज्य के प्रमुख स्वरूप हैं। वैधानिक दृष्टि से इनमें से किसी को भी अपनाया जा सकता है। लेकिन वर्तमान समय में लोकतन्त्र को ही सर्वाधिक श्रेष्ठ शासन व्यवस्था माना जाता है।

प्रश्न 2.
एकात्मक सरकार के लक्षण बताइये।
उत्तर:
एकात्मक सरकार के लक्षण – एकात्मक सरकार के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. शासन की शक्ति का केन्द्रीय सरकार में केन्द्रित होना – एकात्मक सरकार में संविधान केन्द्रीय सरकार को सम्पूर्ण शासन-शक्ति प्रदान करता है। अतः इसे शासन व्यवस्था में शासन शक्ति केन्द्रीय सरकार में केन्द्रित होती है।
  2. संविधान का विविध रूप – एकात्मक सरकार में देश का संविधान लिखित, अलिखित, लचीला अथवा कठोर केसा भी हो.सकता है।
  3. इकाइयों की शक्ति का आधार केन्द्रीय इच्छा – चूँकि एकात्मक सरकार में राज्य की इकाइयाँ केन्द्रीय सरकार की प्रतिनिधि होती हैं। अत: उनको दी गई शासन शक्ति का अथवा स्वायत्तता का आधार संविधान नहीं बल्कि स्वयं केन्द्रीय सरकार की इच्छा होती है।
  4. केन्द्र एवं इकाइयों में शक्ति विभाजन का अभाव – एकात्मक सरकार में संविधान द्वारा केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन नहीं किया जाता है। इसमें सत्ता का एक ही स्रोत होता है। समस्त सत्ता का मूल केन्द्र सरकार होती है और उसी की इच्छा के अनुरूप से समस्त शासन चलता है।

प्रश्न 3.
एकात्मक सरकार की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एकात्मक सरकार की आलोचनात्मक व्याख्या – एकात्मक सरकार की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है

  1. केन्द्रीय सरकार के निरंकुश होने भय – इस प्रकार की शासन व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार कभी-कभी इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि तानाशाही का रूप धारण कर लेती है।
  2. लोकतन्त्र विरोधी – एकात्मक शासन व्यवस्था लोकतन्त्र विरोधी है। इसमें अत्यधिक केन्द्रीकरण के कारण जनतन्त्र को सफलता नहीं मिल पाती।
  3.  नौकरशाही का शासन – एकात्मक शासन में सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय शासन में निहित होती है। इसके कारण उसके निरंकुश होने का भय बना रहता है और नौकरशाही का शासन स्थापित हो जाता है।
  4. जनता की उदासीनता – एकात्मक सरकार में जनता की सार्वजनिक कार्यों में रुचि कम हो जाती है और वह राज्य – कायों के प्रति उदासीन रहने लगती है।
  5. विशाल राष्ट्रों के लिए अनुपयुक्त – एकात्मक शासन व्यवस्था विभिन्नताओं वाले देशों के लिये उपयुक्त नहीं है। विविधताओं वाले विशाल राज्यों के लिए संघात्मक शासन प्रणाली ही उपयुक्त है।

प्रश्न 4.
संघात्मक सरकार क्या है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संघात्मक सरकार से आशय – संघात्मक सरकार उस शासन प्रणाली को कहा जाता है जिसमें राज्य की समस्त शक्तियों का विभाजन संघ सरकार एवं संघ की इकाइयों (राज्य) के मध्य होता है। दोनों सरकारें सीधे संविधान से ही शक्तियों प्राप्त करती हैं। दोनों अपने – अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र रहती हैं। दोनों की सत्ता मौलिक रहती है। दोनों का अस्तित्व संविधान पर निर्भर रहता है। इस प्रकार संघात्मक राज्यों में दोहरी शासन व्यवस्था होती है।

भारत, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका व स्विट्जरलैण्ड आदि देशों में संघात्मक सरकार हैं। संघात्मक सरकार में संविधान लिखित, निर्मित, कठोर एवं सर्वोच्च होता है। केन्द्र व राज्य सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया जाता है तथा स्वतन्त्र न्यायपालिका होती है। यह सरकार विशाल राज्यों के लिए उपयुक्त होती है। इसमें शासन निरंकुश नहीं होता है। यह सरकार लोकतन्त्र के अनुकूल है।

प्रश्न 5.
संघात्मक सरकार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संघात्मक सरकार की विशेषताएँ – संघात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. संघात्मक सरकार को संविधान लिखित, कठोर एवं सर्वोच्च होता है।
  2. संघात्मक सरकार में केन्द्रीय सरकार और स्थानीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया जाता है। राष्ट्रीय महत्व के विषय केन्द्रीय सरकार या संघीय सरकार को और स्थानीय महत्व के विषय इकाइयों को सौंप दिये जाते हैं।
  3. संघात्मक व्यवस्था के लिए स्वतन्त्र सर्वोच्च न्यायालय आवश्यक है, जिसका कार्य संविधान की व्याख्या करना होता है। स्वतन्त्र और सशक्त न्यायपालिका संघात्मक व्यवस्था की प्रहरी है।
  4. संघात्मक सरकार में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था होती है प्रत्येक व्यक्ति संघ सरकार का भी नागरिक होता है। और उस राज्य का भी नागरिक होता है जहाँ का वह निवासी है।
  5. संघीय सरकार व्यवस्था में केन्द्रीय व्यवस्थापिका द्विसदनात्मक होती है। जहाँ निम्न सदन सम्पूर्ण संघ की जनता का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं उच्च सदन संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है।
  6. संघात्मक राज्य में सम्प्रभुता अविभाजित होती है, किन्तु एक संघ राज्य में सम्प्रभुता की अभिव्यक्ति केन्द्रीय सरकार और स्थानीय सरकार इन दो सरकारों द्वारा होती है।

प्रश्न 6.
संघात्मक सरकार की कमियाँ बताइये।
उत्तर:
संघात्मक सरकार की कमियाँ – संघात्मक सरकार की प्रमुख कमियाँ निम्नलिखित हैं

  1. इसमें केन्द्र और राज्यों में अलग – अलग सरकारें होने से शासन की कार्यकुशलता प्रभावित होती है।
  2. संघात्मक सरकार एवं दुर्बल व्यवस्था है। इसमें विकेन्द्रीकरण और शक्ति पृथक्करण के कारण सुदृढ़ शासन की स्थापना नहीं हो पाती है।
  3. इस सरकार में संघीय सरकार और इकाइयों की सरकारों के बीच संघर्ष और विद्रोह की सम्भावना सदैव बनी रहती है।
  4. इस सरकार में केन्द्र और राज्यों के हित विभाजित रहते हैं। इसलिये शासन के निर्णयों में शिथिलता आ जाती है।
  5. इस सरकार में राष्ट्रीय एकता की भावना उतनी दृढ़ नहीं रहती जितनी एकात्मक व्यवस्था में होती है।
  6. कठोर और लिखित संविधान इस सरकार की आवश्यकता है जिसके कारण न्यायालय की प्रवृत्ति रूढ़िवादी होती है। न्यायपालिका की यह रूढ़िवादिता विकास एवं प्रगतिशील परिवर्तन में बाधक होती है।
  7. संघ राज्य अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में कमजोर होता है। विदेशी सरकारों से की गई सन्धियों एवं समझौतों को यदि इकाइयाँ स्वीकार न करें तो निर्णय में देरी होती हैं।
  8. संघात्मक सरकार व्यवस्था में संघ राज्य के सुदृढ़ एवं कुशल नेतृत्व के अभाव में संघ की इकाइयों के पृथक् होने की सम्भावना बनी रहती है।

प्रश्न 7.
संघात्मक सरकार की अच्छाइयों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संघात्मक सरकार की अच्छाइयाँ – संघात्मक सरकार की अच्छाइयाँ अग्रलिखित हैं

  1. राष्ट्रीय एकता और स्थानीय स्वायत्तता में सामंजस्य – संघात्मक सरकार व्यवस्था में राष्ट्रीय महत्व के विषय संघीय सरकार को और स्थानीय महत्व के विषय इकाइयों की सरकारों को दिये जाते हैं।
  2. विभिन्नता वाले देशों के लिए उपयुक्त – धार्मिक, सांस्कृतिक एवं भाषायी विभिन्नता वाले देशों के लिए यह व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त रहती है।
  3. राजनीतिक चेतना – इसमें क्षेत्रीय और स्थानीय समस्याओं के निराकरण के लिये उसी स्थान के योग्य व्यक्तियों का सहयोग मिल जाता है जो अपनी क्षेत्रीय समस्याओं को दूसरों से अधिक अच्छी तरह समझते हैं।
  4.  निरंकुशता की विरोधी – संघात्मक सरकार में संविधान द्वारा केन्द्र और राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र का स्पष्ट विभाजन रहता है। दोनों सरकारें एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करती हैं। राज्यों को अपने क्षेत्राधिकार में पूर्ण स्वायत्तता रहती है। अत: केन्द्र सरकार कभी भी निरंकुश नहीं हो पाती है।
  5.  प्रशासकीय दक्षता – संघीय सरकार में शासन-संचालन आसानी एवं सुगमता से किया जा सकता है, क्योंकि इसमें शासन की शक्तियाँ कई स्थानों पर विभाजित रहती हैं। इससे केन्द्र सरकार पर अत्यधिक भार नहीं पड़ता है और प्रशासन कुशल तथा अधिक क्षमताशील हो जाता है।

प्रश्न 8.
एकात्मक और संघात्मक सरकार की तुलनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
एकात्मक और संघात्मक सरकार की तुलनात्मक व्याख्या – एकात्मक और संघात्मक सरकार की तुलनात्मक व्याख्या निम्नलिखित है
(1) शासन शक्ति के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार शक्तियों के केन्द्रीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन नहीं किया जाता है। संविधान द्वारा सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार को प्रदान कर दी जाती है, जबकि संघ सरकार शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें संविधान द्वारा केन्द्र और इकाइयों की सरकारों में शक्तियों का विभाजन कर दिया जाता है। भारत के संविधान में केन्द्र को राज्य की अपेक्षा अधिक शक्तियाँ दी गई हैं।

(2) संविधान के स्वरूप के आधार पर तुलना – एकात्मक राज्य का संविधान लिखित, अलिखित, कठोर या लचीला किसी भी प्रकार का हो सकता है। लेकिन संघ राज्य का संविधान अनिवार्य रूप से सर्वोच्च, लिखित एवं कठोर ही होता है।

(3) नागरिकता के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार में व्यक्ति को केवल इंकहरी नागरिकता प्राप्त होती है। जबकि संघात्मक सरकार में व्यक्ति को प्रायः दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है। भारत इसका अपवाद है। यहाँ संघात्मक शासन होते हुए भी इकहरी नागरिकता है।

(4) राज्य के आकार के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार छोटे राज्यों के लिए उपयुक्त है, जबकि संघात्मक सरकार बड़े राज्यों के लिए उपयुक्त होती है।

प्रश्न 9.
संसदात्मक सरकार के लक्षण बताइए।
उत्तर:
संसदात्मक सरकार के लक्षण – संसदात्मक सरकार के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं
(1) दोहरी कार्यपालिका – संसदात्मक सरकार में दोहरी कार्यपालिका कार्य करती है। इस व्यवस्था में राज्याध्यक्ष राज्य का संवैधानिक प्रधान होता है। शासन का प्रधान प्रधानमन्त्री होता है जो शासन सम्बन्धी कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।

(2) कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध – संसदीय सरकार में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में घनिष्ठ सम्बन्ध बना रहता है। वास्तविक कार्यपालिका एवं मन्त्रिपरिषद् व्यवस्थापिका में से नियुक्त की जाती है जो अपने कार्यों और नीतियों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है।

(3) सामूहिक उत्तरदायित्व – संसदात्मक सरकार का एक प्रधान लक्षण है-सामूहिक उत्तरदायित्व। इसका आशय है कि किसी मन्त्री के कार्य के लिए अकेला वही उत्तरदायी नहीं होता, समस्त मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होता है।

(4) प्रधानमन्त्री का नेतृत्व – संसदात्मक सरकार में प्रधानमन्त्री सरकार का नेता होता है। मन्त्रिमण्डल का निर्णय, अन्ततोगत्वा उसी पर निर्भर रहता है।

(5) राजनीतिक एकरूपता – राजनीतिक एकरूपता से आशय है कि मन्त्रिमण्डल के सभी सदस्य एक ही राजनीतिक दल और सिद्धान्त के हों या समान विचारधारा रखते हों। राजनीतिक विचारों की एकता के कारण मन्त्रिमण्डल की नीतियों, कार्यक्रमों एवं सिद्धान्तों में एकता रहती है।

(6) गोपनीयता – इस शासन व्यवस्था में मन्त्रिमण्डल की सभी कार्यवाहियाँ गुप्त रहती हैं।

प्रश्न 10.
संसदात्मक सरकार के लिए सकारात्मक पक्ष बताइये।
उत्तर:
संसदात्मक सरकार के सकारात्मक पक्ष – संसदात्मक सरकार के सकारात्मक पक्ष निम्नलिखित हैं

  1. संसदात्मक सरकार में कार्यपालिका पूर्ण रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। प्रत्यक्ष रूप से मन्त्री संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं और परोक्ष रूप से जनता के प्रति अतः कार्यपालिका को जनता की इच्छा के अनुरूप । अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को संचालित व नियन्त्रित करना पड़ता है।
  2. संसदात्मक सरकार में व्यवस्थापिका वे कार्यपालिका में परस्पर सहयोग होता है जिससे श्रेष्ठ कानूनों का निर्माण होता है।
  3. संसदीय व्यवस्था में सरकार कभी भी निरंकुश नहीं हो पाती। संसद में व संसद के बाहर विरोधी दल सदैव सरकार के कार्यों पर निगाह रखते हैं।
  4. संसदात्मक सरकार में प्रशासन की बागडोर योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों के हाथों में रहती है।
  5. संसदात्मक सरकार में विरोधी दलों का महत्व बना रहता है। विरोधी दल सरकार की नीतियों व गलतियों की आलोचना करके शासन पर नियन्त्रण रखते हैं।
  6. संसदीय सरकार समय और आवश्यकतानुसार परिवर्तनशीलता को गुण रखती है। संकटकाल में सभी राजनीतिक दल आपसी मतभेद भुलाकर मिले-जुले मन्त्रिमण्डल का निर्माण भी कर सकते हैं।
  7. इस सरकार में जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करने को अच्छा अवसर मिलता है।
  8. इस शासन व्यवस्था में राज्याध्यक्ष के दलगत राजनीति से दूर रहने के कारण वह राष्ट्र की एकता का प्रतीक • होता है। यह संकट के समय उचित परामर्श देता है।

प्रश्न 11.
संसदात्मक सरकार की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक सरकार की आलोचनात्मक – संसदात्मक सरकार की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है

  1. यह सरकार शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिकूल है। इसमें कार्यपालिका आसानी से स्वेच्छाचारी बन जाती है।
  2. इस सरकार में राजनीतिक दल राष्ट्रहित को कम एवं दलहित को अधिक महत्व देते हैं जिससे राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचती है।
  3. इस सरकार में निरंकुशता का भय बना रहता है।
  4.  शासन का कार्यकाल व्यवस्थापिका की इच्छा पर निर्भर रहने के कारण शासन कमजोर होता है।
  5. इस सरकार में बहुदलीय व्यवस्था में एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर मिली-जुली सरकार में मतभेद उभर आने पर राजनीतिक अस्थायित्व की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  6. संकट काल में निर्णय लेने में देरी होने के कारण यह सरकार अनुपयुक्त होती है।
  7. इस प्रकार के शासन में संसद में जिस दल का बहुमत होता है उसकी सरकार बनती है। यदि किसी दल का प्रबल बहुमत होता है तो उस दल में तानाशाही की प्रवृत्ति आ जाती है।
  8. इस प्रकार की सरकार में कई बार अक्षम व्यक्तियों के हाथ में सत्ता आ जाती है।
  9. इस प्रकार की सरकार में अनेक व्यस्तताओं के कारण मन्त्री शासन सम्बन्धी कार्यों पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं।

प्रश्न 12.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लक्षणे का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लक्षण – अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं

  1. शक्तियों का पृथक्करण-अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली शक्ति पृथक्करण सिद्धांत पर आधारित है। इसमें व्यवस्थापिका व कार्यपालिका एक-दूसरे से पृथक् एवं स्वतन्त्र रहती हैं। इस शासन पद्धति में व्यवस्थापिका का कार्यपालिका पर कोई नियन्त्रण नहीं रहता है। इसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका व न्यायपालिका तीनों का अलग-अलग कार्यक्षेत्र होता है।
  2. वास्तविक कार्यपालिका – अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका एकल होती है। राष्ट्रपति में ही राज्याध्यक्ष व शासनाध्यक्ष दोनों की शक्तियाँ निहित होती हैं।
  3. निश्चित कार्यकाल – अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका को एक निश्चित अवधि के लिए चुना जाती है।
  4. राजनैतिक एकरूपता आवश्यक नहीं – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में राजनीतिक एकरूपता आवश्यक नहीं है क्योंकि इस व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् जैसी कोई चीज नहीं होती। राष्ट्रपति अपने सचिवों को चुनने व अपदस्थ करने हेतु पूर्ण स्वतन्त्र होता है।
  5. अवरोध एवं सन्तुलन का सिद्धान्त – शासन व्यवस्था में यदि शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया जाता है तो प्रशासन में अवरोध उत्पन्न हो सकता है क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने की स्वतन्त्रता के साथ – साथ सहयोग की भी आवश्यकता पड़ती है। इसलिए अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को अपनाया जाता है जिससे एक अंग को दूसरे अंग के साथ सम्बन्ध और अंकुश बना रह सके।

प्रश्न 13.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लाभ बताइए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के लाभ:

  1. शासन स्थायी – इस शासन व्यवस्था में कार्यपालिका का प्रधान एक निश्चित समय के लिए चुना जाता है और व्यवस्थापिका का निर्माण भी एक निश्चित समय के लिए होता है।
  2. प्रशासनिक कुशलता – कार्यपालिका शक्ति व्यवस्थापिका से स्वतंत्र होने के कारण अधिक साहस एवं स्वतंत्रतापूर्वक प्रशासन संबंधी कार्य कर सकती है।
  3. प्रशासनिक एकता – इसमें प्रशासनिक एकता बनी रहती है जिसके कारण संकटकाल में यह पद्धति बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।
  4. शक्ति पृथक्करण – इसके अन्तर्गत व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका एक-दूसरे से स्वतंत्र रहती हैं अतः इनकी शक्तियों का भी पृथक्करण रहता है।
  5. दलबन्दी की बुराइयाँ कम – राष्ट्रपति का चुनाव होने के बाद दलबन्दी की भावना प्रकट होने के विशेष अवसर नहीं रहते हैं।
  6. बहुदलीय प्रणाली के लिए अत्यंत उपयुक्त – बहुदलीय प्रणाली वाले देशों में अध्यक्षात्मक शासन अत्यंत उपयुक्त रहता है।

प्रश्न 14.
अध्यक्षात्मक प्रणाली की हानियाँ बताओ।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक प्रणाली की हानियाँ:

  1. अध्यक्षात्मक प्रणाली में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका एक-दूसरे से सम्बन्ध नहीं रखतीं अतः इसमें प्रशासनिक एकता का अभाव रहता है।
  2. अध्यक्षात्मक शासन का सर्वप्रथम दोष विधायी और कार्यपालिका विभाग में सहयोग और सामंजस्य का अभाव है जिसमें कानून-निर्माण व प्रशासन दोनों ही कार्य ठीक प्रकार से नहीं हो पाते हैं।
  3. अध्यक्षात्मक संबंधों के संचालन में कठिनाई उत्पन्न होती है।
  4. अध्यक्षात्मक शासन में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के बीच सम्बन्ध न होने के कारण जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करने के अवसर बहुत कम हो जाते हैं।
  5. इसके अन्तर्गत राष्ट्रपति के निरंकुश हो जाने की बहुत अधिक आशंका रहती है। 6. इसमें स्थायित्व होने के कारण शीघ्र परिवर्तन की गुंजाइश कम होती है।

प्रश्न 15.
वर्तमान में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को लोकतंत्र का विकल्प बताया जा रहा है? अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन में सरकार स्थायी रहती है जिसमें एक निश्चित समय के लिए स्थायी कार्यपालिका की स्थापना की जाती है। निश्चित समय होने के कारण राज्याध्यक्ष और उसके सचिव शासन व्यवस्था के सम्बन्ध में दीर्घकालीन योजनाएँ बनाकर पूरे आत्मविश्वास और मनोयोग के साथ उनको क्रियान्वित कर सकते हैं।

अध्यक्षात्मक प्रणाली में शासन में कुशलता आ जाती है। इस व्यवस्था में समस्त कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित रहती हैं। यह व्यवस्था युद्धकाल में या संकटकाल में भी लाभकारी होती है। इसमें नागरिक स्वतंत्रता की रक्षा होती है। उपरोक्त गुणों के कारण अध्यक्षात्मक प्रणाली को लोकतंत्र का विकल्प माना जा रहा है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एकात्मक एवं संघात्मक सरकार का तुलनात्मक वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एकात्मक और संघात्मक सरकार की तुलना
(क) शासन शक्ति के वितरण के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार शक्तियों के केन्द्रीकरण के सिद्धान्त पर आधारित है। इसमें संविधान द्वारा शक्तियों का विभाजन नहीं किया जाता है। संविधान द्वारा सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार को प्रदान कर दी जाती है। संघात्मक सरकार शक्तियों के विकेन्द्रीकरण के सिद्धान्त पर आधरित है। इसमें संविधान द्वारा केन्द्र तथा इकाइयों की सरकारों में शक्ति का विभाजन कर दिया जाता है।
(ख) संविधान के स्वरूप के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार का संविधान लिखित, अलिखित, कठोर या लचीला किसी भी प्रकार का हो सकता है, लेकिन संघात्मक सरकार का संविधान अनिवार्य रूप से सर्वोच्च, लिखित एवं कठोर ही होता है।

(ग) नागरिकता के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार में व्यक्ति को केवल इकहरी नागरिकता प्राप्त होती है, जबकि संघात्मक सरकार में व्यक्ति को प्रायः दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है। एक व्यक्ति संघ का भी नागरिक होता है। तथा राज्य का भी नागरिक होता है।

(घ) स्थानीय सरकारों की स्थिति के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार में प्रान्तीय और स्थानीय सरकारें पूर्णतया केन्द्रीय सरकार के अधीन होती हैं। ये केवल केन्द्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती हैं। संघात्मक सरकार में इकाइयाँ संविधान से शक्ति प्राप्त करती हैं। इकाइयाँ केन्द्रीय सरकार की प्रतिनिधि नहीं वरन् केन्द्र के समकक्ष होती हैं।

(ङ) प्रशासकीय अंगों की शक्ति के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार में व्यवस्थापिका सर्वोच्च होती है। न्यायपालिका का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों के आधार पर न्याय प्रदान करना होता है। न्यायपालिका कानूनों की वैधता की जाँच नहीं करती है, जबकि संघात्मक सरकार में संविधान सर्वोच्च होता है। संविधान की व्याख्या एवं रक्षा करने के कारण न्यायपालिका, व्यवस्थापिका से अधिक प्रभावी हो जाती है। वह व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों की समीक्षा कर उन्हें अवैध घोषित कर सकती है।

(च) शासन तन्त्र के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार में शासन तन्त्र इकहरा होता है। सरकार का रूप इकहरा होने से कानूनों और नीतियों में एकरूपता रहती है। संघात्मक सरकार में शासन तन्त्र दोहरा होता है। केन्द्र और इकाइयों में अलग – अलग कार्यपालिका और विधायिका होने से कानूनों और नीतियों में दोहरापन रहता है।

एकात्मक सरकार में इकहरी प्रशासनिक सेवाएँ होती हैं, जबकि संघात्मक सरकार में दोहरी प्रशासनिक सेवाएँ होती हैं। उदाहरणतः भारत में जहाँ ते न्द्रीय शासन के लिए अखिल भारतीय सेवाएँ विद्यमान हैं। वहीं राज्य सरकार के लिए प्रान्तीय सेवाएँ हैं।

(छ) राज्य के आकार के आधार पर तुलना – एकात्मक सरकार छोटे राज्यों के लिए उपयोगी रहती है। इसके विपरीत संघात्मक सरकार बड़े राज्यों के लिए उपयोगी होती है।

प्रश्न 2.
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का तुलनात्मक विश्लेषण कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का तुलनात्मक विश्लेषण
(i) कार्यपालिका के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन में कार्यपालिका का रूप दोहरा होता है। इसमें दो अध्यक्ष होते हैं, पहले को राज्याध्यक्ष तथा दूसरे को शासनाध्यक्ष कहते हैं। भारत में राष्ट्रपति तथा ब्रिटेन का राजा या रानी नाममात्र के तथा प्रधानमन्त्री व मन्त्रिपरिषद् वास्तविक कार्यपालिका होते हैं। इसके विपरीत अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका एकल होती है। कार्यपालिका की शक्ति एक ही व्यक्ति (राष्ट्रपति) में निहित रहती है। संयुक्त राज्य अमेरिका अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का सर्वोत्तम उदाहरण है।

(ii) कार्यकाल के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन में वास्तविक कार्यपालिका (मन्त्रिपरिषद्) का कार्यकाल निश्चित नहीं होता। व्यवस्थापिका किसी भी समय अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके कार्यपालिका को पदच्युत कर सकती है। जबकि अध्यक्षात्मक कार्यपालिका का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित होता है। ऐसी दशा में समय के पूर्व कार्यपालिका (राष्ट्रपति) को हटाना कठिन है।

(iii) उत्तरदायित्व के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन में वास्तविक कार्यपालिका (मन्त्रिपरिषद्) व्यवस्थापिका के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है। इसके विपरीत अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होती और न ही उसे अपने कार्यों के निष्पादन के लिए व्यवस्थापिका के विश्वास की आवश्यकता होती है।

(iv) कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के सम्बन्धों के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध बना रहता है। मन्त्रिपरिषद्, व्यवस्थापिका के प्रति पूर्ण उत्तरदायी होती है। अध्यक्षात्मक शासन शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त पर आधारित होता है।

इसमें कार्यपालिका का निर्माण स्वतन्त्र रूप से किया जाता है। कार्यपालिका (राष्ट्रपति और उसके सचिव) एवं व्यवस्थापिका का पूर्ण पृथक्करण होता है। कार्यपालिका के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते हैं। व्यवस्थापिका का कार्यपालिका पर किसी प्रकार का कोई नियन्त्रण नहीं रहता है।

(v) शासन की शक्तियों के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन का आधार शक्तियों का संयोजन है। इसमें कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका एक – दूसरे के सहयोग से मिलजुल कर कार्य करती है, जबकि अध्यक्षात्मक शासन का आधार शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त है। इसमें शासन के तीनों अंग स्वतन्त्र रूप से कार्य करते हैं।

(vi) मन्त्रियों की स्थिति के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन में मन्त्रियों की स्थिति उच्च स्तर की होती है। वे अपने विभागों के सर्वेसर्वा होते है तथा कानून निर्माण के कार्य में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं किन्तु अध्यक्षात्मक शासन में मन्त्री नहीं होते बल्कि सचिव होते हैं और वे राष्ट्रपति के अधीन रहकर कार्य करते हैं।

(vii) सरकार में दलीय स्थिति के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन में जिस राजनीतिक दल का व्यवस्थापिका में बहुमत होता है उसी दल की सरकार बनती है परन्तु कभी-कभी किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत न मिलने की स्थिति में समान विचारधारा वाले अन्य राजनीतिक दलों को सम्मिलित कर मिले-जुले मन्त्रिमण्डल का गठन किया जाता है। दूसरी ओर अध्यक्षात्मक शासन में ऐसी स्थिति का अभाव रहता है। इसमें राष्ट्रपति किसी भी योग्य व्यक्ति को बिना दलीय आधार के सचिव के पद पर नियुक्त कर सकता है।

(viii) परिवर्तन के आधार पर तुलना – संसदात्मक शासन में समयानुसार सरकार में परिवर्तन किया जा सकता। है। संकटकाल में यह व्यवस्था अधिक उपयोगी सिद्ध होती है। अध्यक्षात्मक शासन कठोर होता है। इसमें समयानुसार परिवर्तन नहीं किये जा सकते हैं। इसमें राष्ट्रपति का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित होता है।

प्रश्न 3.
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक सरकार में से आप किसे अधिक जनहितकारी मानते हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक सरकार संसदात्मक सरकार वह सरकार होती है जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है तथा कार्यपालिका का निर्माण भी व्यवस्थापिका में से ही किया जाता है। इस व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है और कार्यपालिका, व्यवस्थापिका का विश्वास बने रहने तक ही अपने पद पर बनी रह सकती है। सरकार के दोनों अंग एक-दूसरे से मिलकर एवं सहयोगात्मक प्रवृत्ति से कार्य करते हैं।

राज्याध्यक्ष अर्थात् राजा या राष्ट्रपति नाममात्र का प्रधान होता है। वह शासन के किसी कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होता। वास्तविक कार्यपालिका शक्तियाँ मन्त्रिमण्डल में निहित रहती हैं। मन्त्रिमण्डल के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं। अत: वे व्यवस्थापिका की बैठकों में शामिल होते हैं और मतदान भी करते हैं। संसदात्मक शासन को मन्त्रिमण्डलात्मक एवं उत्तरदायी शासन भी कहा जाता है।

संसदात्मक शासन व्यवस्था के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं:

  1. उत्तरदायी शासन
  2.  व्यवस्थापिका तथा कार्यपालिका में पारस्परिक सहयोग
  3. शासन की निरंकुशता पर रोक
  4. लचीलापन
  5. विरोधी दलों का महत्व
  6.  योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों का शासन
  7. राज्याध्यक्ष निष्पक्ष परामर्शदाता के रूप में
  8. राजनीतिक चेतना व शिक्षा।

अध्यक्षात्मक सरकार अध्यक्षात्मक सरकार में कार्यपालिका का प्रधान (राष्ट्रपति) वास्तविक शासक होता है। वह जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होता है तथा संविधान द्वारा उसका कार्यकाल निश्चित होता है। इसमें राष्ट्रपति के कार्यों में सहायता करने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती है, जिसकी नियुक्ति वह स्वयं करता है। इनको सचिव कहा जाता है ये राष्ट्रपति की इच्छा पर्यन्त तक ही अपने पद पर बने रहते हैं तथा अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

अध्यक्षात्मक सरकार के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-

  1. शासन में स्थायित्व
  2.  प्रशासन में एकता
  3. शासन में कुशलता
  4. दलबन्दी के दोषों से मुक्त
  5. व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता
  6. संकटकाल में उपयुक्त
  7. विभिन्नता वाले राज्यों के लिए उपयुक्त
  8. नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा।

उपर्युक्त विवरण का सूक्ष्मता से विश्लेषण करने के बाद में इस निष्कर्ष पर पहुँचता हूँ कि संसदात्मक सरकार अधिक जनहितकारी है क्योंकि

(क) संसदात्मक सरकार में शासक के कार्यों का मूल्यांकन सरल होता है-अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में जनता द्वारा शासक के कार्यों का मूल्यांकन और शासक को हटाने का कार्य एक निश्चित समय के बाद ही किया जा सकता है लेकिन संसदात्मक शासन व्यवस्था शासन के सामयिक मूल्यांकन के साथ – साथ दिन – प्रतिदिन के मूल्यांकन का भी अवसर प्रदान करती है।

(ख) संसदात्मक सरकार में जनता को राजनीतिक चेतना व शिक्षा प्राप्त होती है – संसदात्मक सरकार में संसद की कार्यवाही और सरकार तथा विरोधी दलों द्वारा व्यक्त विचार समाचार – पत्र, टेलीविजन तथा मीडिया के अन्य माध्यमों द्वारा जनता के समक्ष आते हैं, इससे जनता में राजनीतिक चेतना जाग्रत होती है और उसे समस्या के प्रत्येक पहलू का ज्ञान होता है। वहीं दूसरी ओर अध्यक्षात्मक सरकार में जनता को चुनावों के बाद राजनीतिक जागरूकता एवं शिक्षा प्राप्त होने के अवसर बहुत कम प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 4.
अध्यक्षात्मक सरकार की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएँ वर्तमान लोकतान्त्रिक युग में सरकार का दूसरा लोकप्रिय स्वरूप अध्यक्षात्मक शासन है। इस शासन व्यवस्था में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका दोनों एक-दूसरे से बिल्कुल पृथक् तथा स्वतन्त्र रहती हैं। अध्यक्षात्मक शासन को आधार शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त है। अध्यक्षात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(क) शक्तियों का पृथक्करण – अध्यक्षात्मक व्यवस्था में संसदीय व्यवस्था की तरह व्यवस्थापिका व कार्यपालिका मिलकर कोई नयी संस्था नहीं बनाती हैं अर्थात् व्यवस्थापिका से कार्यपालिका पूर्णतः पृथक् रहती है। कार्यपालिका के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य नहीं होते और न उसके प्रति उत्तरदायी ही होते हैं। इस प्रकार अध्यक्षात्मक शासन में कार्यकारिणी व व्यवस्थापिका अपनी अवधि, शक्तियों और कार्यों के सम्बन्ध में एक-दूसरे से स्वतन्त्र व पृथक् रहती हैं। तथा न्यायपालिका भी स्वतन्त्र तथा सर्वोच्च होती है।

(ख) वास्तविक कार्यपालिका – अध्यक्षात्मक सरकार में एकल कार्यपालिका ही होती है, संसदात्मक शासन की तरह नाममात्र की कार्यपालिका और वास्तविक कार्यपालिका जैसा कोई अन्तर नहीं होता है। राष्ट्रपति ही वास्तविक शासक होता है। वह राज्य और शासन दोनों का प्रधान होता है एवं संविधान द्वारा प्रदत्त कार्यपालिका की समस्त शक्तियों का वास्तविक प्रयोग करता है।

(ग) निश्चित कार्यकाल – अध्यक्षात्मक सरकार में व्यवस्थापिका व कार्यपालिका दोनों को एक निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है। इसमें कार्यपालिका व व्यवस्थापिका दोनों का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित होता है। इसमें कार्यपालिका का प्रधान (राष्ट्रपति) एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित होता है।

संयुक्त राज्य अमेरिका में यह अवधि चार वर्ष की है। इस अवधि से पूर्व व्यवस्थापिका उसे अविश्वास का प्रस्ताव पारित करके हटा नहीं सकती। निश्चित अवधि से पूर्व केवल महाभियोग लगाकर ही राष्ट्रपति को हटाया जा सकता है। परन्तु महाभियोग लगाने और उसे पारित करने की प्रक्रिया अत्यन्त जटिल है।

(घ) अवरोध और सन्तुलन का सिद्धान्त – इस शासन व्यवस्था में यदि शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया जाता है तो प्रशासन में अवरोध उत्पन्न हो सकता है क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने की स्वतन्त्रता के साथ-साथ सहयोग की भी आवश्यकता पड़ती है, इसलिये अवरोध तथा संतुलन के सिद्धान्त को अपनाया जाता है, ताकि एक अंग का दूसरे अंग के साथ सम्बन्ध और अंकुश बना रह सके।

(ङ) राजनीतिक एकरूपता आवश्यक नहीं – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में राजनीतिक एकरूपता आवश्यक नहीं है, क्योंकि व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् जैसी कोई चीज नहीं होती और राष्ट्रपति अपने सचिवों को चुनने व अपदस्थ करने हेतु पूर्ण स्वतन्त्र होता है।

प्रश्न 5.
एकात्मक सरकार की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एकात्मक सरकार की विशेषताएँ एकात्मक सरकार में शासन की सम्पूर्ण शक्ति संविधान या परम्पराओं द्वारा केवल एक ही सरकार, केन्द्रीय सरकार में निहित होती है। इसमें विविध प्रादेशिक अथवा स्थानीय सरकारें केन्द्र द्वारा ही स्थापित की जाती हैं, संविधान द्वारा नहीं।

इसके अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार अपनी कुछ शक्तियाँ, इकाइयों की सरकारों को प्रत्यायोजित कर देती है। इस सरकार में इकाइयों की कोई पृथक् स्वतन्त्र सत्ता नहीं होती है, वे केन्द्रीय सरकार की प्रतिनिधि सरकारें होती हैं जिन्हें केन्द्रीय सरकार कभी भी समाप्त कर सकती है। एकात्मक सरकार की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(क) शासन की शक्ति केन्द्रीय सरकार में केन्द्रित होना – एकात्मक सरकार में संविधान केन्द्रीय सरकार को सम्पूर्ण शासन-शक्ति प्रदान करता है। अतः इस शासन व्यवस्था में शासन शक्ति केन्द्रीय सरकार में केन्द्रित होती है।

(ख) केन्द्रीय सरकार का सर्वशक्तिमान होना – इस व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार सर्वशक्तिमान होती है, उसके अन्य घटकों की न तो स्वतन्त्र सत्ता होती है और न ही उनकी सत्ता मौलिक होती है। वे केवल केन्द्रीय सरकार के अभिकर्ता मात्र होते हैं।

(ग) केन्द्र एवं इकाइयों में शक्ति – विभाजन का अभाव – एकात्मक सरकार में संविधान द्वारा केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन नहीं किया जाता है। इसमें सत्ता का केवल एक स्रोत होता है, समस्त सत्ता का मूल, केन्द्र सरकार होती है।

(घ) इकाइयों की शक्ति का आधार केन्द्रीय इच्छा – चूँकि एकात्मक इकाइयाँ केन्द्रीय सरकार की प्रतिनिधि होती हैं। अतः उनको दी गई शासन शक्ति एवं स्वायत्तता का आधार संविधान नहीं बल्कि स्वयं केन्द्रीय सरकार की इच्छा होती है।

(ङ) राज्य को अनेक इकाइयों में विभाजित करना – इस सरकार में प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्यों को अनेक – इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है। इन इकाइयों को राज्य, प्रदेश, प्रान्त, विभाग अथवा कम्यून आदि नामों से जाना जाता है।

(च) संविधान के स्वरूप की विभिन्नता – एकात्मक सरकार वाले देशों में संविधान लिखित, अलिखित, लचीला अथवी कठोर केसा भी हो सकता है।

प्रश्न 6.
संसदात्मक सरकार की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
संसदीय सरकार की आलोचनात्मक व्याख्या संसदीय शासन व्यवस्था में कार्यपालिका पूरी तरह से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी रहती है तथा इन दोनों के मध्य पारस्परिक सहयोग रहता है। यह योग्य व अनुभवी व्यक्तियों की सरकार होती है। यह शासन की निरंकुशता पर रोक लगाने के साथ – साथ विरोधी दलों को भी महत्व प्रदान करती है इस सरकार में लचीलापन होता है। इन सब के बावजूद संसदीय सरकार की निम्नलिखित आधारों पर आलोचना की जाती है

(i) शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिकूल – संसदात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होती हैं। कार्यपालिका आसानी से स्वेच्छाचारी बन सकती है। ऐसी स्थिति में नागरिकों की स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो सकता है। इससे स्पष्ट होता है कि यह शासन शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त के प्रतिकूल है।

(ii) निरंकुशता का उदय-इस शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध रहने के दोहरे खतरे की सम्भावना सदैव बनी रहती है। डायसी व्यवस्थापिका की निरंकुशता की ओर संकेत करते हैं तो लास्की के अनुसार कार्यपालिका का अंकुश न रहे तो निरंकुशता सदैव कायम रह सकती है।

(iii) राजनीतिक दलबन्दी में उग्रता – संसदात्मक शासन में राजनीतिक दल राष्ट्रहित को कम तथा दलहित को अधिक महत्व देते हैं, जिससे राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचती है। सत्तारूढ़ और विरोधी, दोनों दलों का मुख्य उद्देश्य सत्ता प्राप्त करना तथा सत्ता में बने रहना होता है इसलिए उनमें हमेशा संघर्ष और मतभेद बना रहता है।

(iv) प्रशासनिक कार्य की उपेक्षा – मन्त्रियों को मतदाताओं से निरन्तर सम्पर्क बनाए रखना पड़ता है इसलिए उनका काफी समय अपने मतदाताओं को संतुष्ट रखने तथा शेष समय कानून निर्माण में चला जाता है। फलत: मन्त्री शासन सम्बन्धी कार्यों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते हैं।

(v) कमजोर शासन – इसमें शासन व्यवस्था कमजोर होती है। शासन का कार्यकाल व्यवस्थापिका की इच्छा पर निर्भर रहता है। इस अनिश्चित कार्यकाल के कारण मन्त्रिमण्डल सुदृढ़ और दीर्घकालीन योजनाएँ बनाकर उसे क्रियान्विते नहीं कर सकता।

(vi) अस्थिर शासन-संसदीय व्यवस्था में बहुमत प्राप्त दल की सरकार बनती है और कभी-कभी जब किसी – एकदल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो कुछ दलों की गठबंधन सरकार बनती है परन्तु इस प्रकार बने मन्त्रिमण्डल में – स्थिरता का अभाव रहता है।

(vii) संकटकाल के लिए अनुपयुक्त – यह शासन प्रणाली संकटकाल के लिये उपयुक्त नहीं है क्योंकि शासन में निर्णय और नीति-निर्धारण में बहुत अधिक वाद-विवाद होते रहते हैं। इसमें अत्यधिक समय नष्ट होता है। अतः संकटकाल व युद्धकालीन परिस्थितियों में यह व्यवस्था राष्ट्रहित में उपयोगी नहीं हो सकती है।

(viii) अक्षम व्यक्तियों का शासन – संसदीय व्यवस्था में मंन्त्रियों का चयन उनकी योग्यता व प्रशासनिक अनुभव के आधार पर न होकर दल में उनकी लोकप्रियता के आधार पर किया जाता है। ऐसी दशा में कई बार अक्षम व्यक्तियों के हाथ में सत्ता आ जाती है।

(ix) बहुमत दल की तानाशाही का भय – संसदीय शासन व्यवस्था में संसद में जिस दल को बहुमत होता है उसकी सरकार बनती है। यदि किसी दल का प्रबल बहुमत होता है तो उस दल की तानाशाही की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है। अपने बहुमत के सहारे वह दल मनमानी करने लगता है। कभी – कभी तो अपने हित में संविधान में संशोधन कराने में भी सफल हो जाता है। इस प्रकार शासन में बहुमत की तानाशाही बढ़ जाती है।

(x) मन्त्रिमण्डल की तानाशाही की प्रवृत्ति – संसदीय व्यवस्था में सिद्धान्ततः मन्त्रिमण्डल पूरी तरह व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होता है किन्तु व्यवहार में धीरे-धीरे व्यवस्थापिका मन्त्रिमण्डल के निर्णयों पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाने वाली संस्था बनकर रह जाती है। इस प्रकार मन्त्रिमण्डल पर संसद का नियन्त्रण केवल सैद्धान्तिक दृष्टि से ही रह जाता है और वास्तव में मन्त्रिमण्डल की तानाशाही स्थापित हो जाती है। .

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सरकार के कितने अंग होते हैं?
(अ) 3
(ब) 4
(स) 5
(द) 6.
उत्तर:
(अ) 3

प्रश्न 2.
एक केन्द्रीय शक्ति द्वारा सर्वोच्च विधायी शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक सरकार है। यह परिभाषा किसकी है?
(अ) डायसी
(ब) डॉ. गार्नर
(स) विलोबी
(द) डॉ. फाईनर
उत्तर:
(अ) डायसी

प्रश्न 3.
“संघ कुछ राज्यों का मेल है जो एक नए राज्य का निर्माण करते हैं यह कथन किसका है?
(अ) हैमिल्टन
(ब) फाइनर
(स) लिंकन
(द) लास्की
उत्तर:
(अ) हैमिल्टन

प्रश्न 4.
“मन्त्रिमण्डल राज्यरूपी जहाज का चालक यन्त्र है।” यह परिभाषा किसकी है?
(अ) रैम्जेम्योर
(ब), लॉवेल
(स) गार्नर
(द) अम्बेडकर
उत्तर:
(अ) रैम्जेम्योर

प्रश्न 5.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली की विशेषता है
(अ) अवरोध और सन्तुलन
(ब) तानाशाही
(स) शक्तियों का विभाजन
(द) सामूहिक दायित्व।
उत्तर:
(अ) अवरोध और सन्तुलन

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
राज्य का अभिन्न अंग है
(अ) सरकार
(ब) जनसंख्या
(स) प्रभुसत्ता
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 2.
सरकार का प्रमुख रूप है
(अ) राजतन्त्र
(ब) कुलीनतन्त्र
(स) लोकतन्त्र
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
लोकतान्त्रिक शासन का प्रमुख रूप है
(अ) एकात्मक
(ब) संघात्मक
(स) संसदात्मक
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 4.
निम्न में से किस देश में संसदात्मक लोकतन्त्र के साथ सरकार का संघात्मक रूप विद्यमान है?
(अ) भारत
(ब) चीन
(स) ब्रिटेन
(द) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर:
(अ) भारत

प्रश्न 5.
निम्न में से किस देश में संसदात्मक लोकतन्त्र के साथ सरकार का एकात्मक रूप प्रचलित है|
(अ) भारत
(ब) ब्रिटेन
(स) संयुक्त राज्य अमेरिका
(द) फ्रांस।
उत्तर:
(ब) ब्रिटेन

प्रश्न 6.
संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्यक्षात्मक लोकतन्त्र के साथ सरकार को…….रूप प्रचलित है
(अ) संघात्मक
(ब) एकात्मक
(स) मिश्रित
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) संघात्मक

प्रश्न 7.
जिसे शासन प्रणाली में शासन की सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार में होती है, कहलाता है
(अ) संघात्मक शासन
(ब) एकात्मक शासन
(स) संसदीय शासन
(द) अध्यक्षात्मक शासन
उत्तर:
(ब) एकात्मक शासन

प्रश्न 8.
जिस शासन प्रणाली में शासन की शक्तियाँ संविधान द्वारा केन्द्र व इकाइयों में विभाजित होती हैं, ऐसा शासन कहलाता है
(अ) संघात्मक शासन
(ब) एकात्मक शासन
(स) संसदीय शासन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(अ) संघात्मक शासन

प्रश्न 9.
एकात्मक शासन प्रणाली का उदाहरण है
(अ) चीन
(ब) भारत
(स) इटली
(द) संयुक्त राज्य अमेरिका।
उत्तर:
(स) इटली

प्रश्न 10.
निम्न में से कौन-सा दोष एकात्मक शासन को नहीं है
(अ) शक्तियों का केन्द्रीकरण।
(ब) दोहरी नागरिकता
(स) शक्तियों का विभाजनं
(द) स्वतन्त्र न्यायपालिका।
उत्तर:
(अ) शक्तियों का केन्द्रीकरण।

प्रश्न 11.
निम्न में से कौन-सा दोष एकात्मक शासन को नहीं है
(अ) केन्द्रीय सरकार के निरंकुश होने का भय
(ब) लोकतन्त्र विरोधी
(स) नौकरशाही का शासन
(द) शक्ति का विभाजन।
उत्तर:
(द) शक्ति का विभाजन।

प्रश्न 12.
निम्न में से कौन-सा लक्षण संघात्मक शासन से सम्बन्धित है
(अ) दोहरी कार्यपालिका
(ब) शक्तियों का विभाजन
(स) लोकतन्त्र विरोधी
(द) स्थानीय स्वशासन।
उत्तर:
(ब) शक्तियों का विभाजन

प्रश्न 13.
निम्न में से वह कौन – सी विशेषता है जो एकात्मक शासन की है, परन्तु भारत जैसे संघात्मक राज्य में पायी जाती है
(अ) इकहरी नागरिकता
(ब) शक्तियों का विभाजन
(स) लिखित व कठोर संविधान
(द) स्वतन्त्र न्यायपालिका।
उत्तर:
(अ) इकहरी नागरिकता

प्रश्न 14.
संघात्मक शासन की गौण लक्षण है
(अ) दोहरी नागरिकता
(ब) द्वि-सदनात्मक व्यवस्था,
(स) सम्प्रभुता का दोहरा प्रयोग
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 15.
वर्तमान समय में सर्वाधिक प्रचलित शासन व्यवस्था है
(अ) संघात्मक शासन
(ब) एकात्मक शासन
(स) राजतन्त्र
(द) अधिनायक तन्त्र।
उत्तर:
(अ) संघात्मक शासन

प्रश्न 16.
निम्न में से संघात्मक शासन का गुण नहीं है
(अ) राष्ट्रीय एकता एवं स्थानीय स्वायत्तता
(ब) प्रशासनिक दक्षता
(स) राजनीतिक चेतना
(द) मितव्ययता।
उत्तर:
(द) मितव्ययता।

प्रश्न 17,
यह किसका कथन है, “संघ में एक निरंकुश शासक द्वारा जनता के अधिकार कम किये जाने का खतरा नहीं रहता है।”
(अ) लॉर्ड ब्राइस का
(ब) गैटेल का
(स) आशीर्वादम को
(द) दुर्गादास बसु का।
उत्तर:
(अ) लॉर्ड ब्राइस का

प्रश्न 18.
संघात्मक शासन में केन्द्र तथा राज्य सरकारें शक्ति प्राप्त करती हैं
(अ) सरकार से’
(ब) संविधान से
(स) राष्ट्रपति से.
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ब) संविधान से

प्रश्न 19.
संघात्मक शासन को प्रमुख दोष है
(अ) अकुशल शासन
(ब) राष्ट्रीय एकता को खतरा
(स) कमजोर शासन
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 20.
एकात्मक शासन और संघात्मक शासन व्यवस्था की तुलना का प्रमुख आधार है
(अ) शासन शक्ति के वितरण के आधार पर
(ब) संविधान के स्वरूप के आधार पर
(स) नागरिकता के आधार पर
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 21.
वास्तविक कार्यपालिका का अनिश्चित कार्यकाल किस शासन प्रणाली की विशेषता है
(अ) एकात्मक
(ब) संसदात्मक
(स) अध्यक्षात्मक
(द) संघात्मक।
उत्तर:
(ब) संसदात्मक

प्रश्न 22.
लक्षण जो संसदात्मक व्यवस्था में तो पाया जाता है, किन्तु अध्यक्षात्मक व्यवस्था में नहीं है, वह है
(अ) उत्तरदायी सरकार
(ब) शक्ति का पृथक्करण
(स) वास्तविक कार्यपालिका
(द) निश्चित कार्यकाल
उत्तर:
(अ) उत्तरदायी सरकार

प्रश्न 23.
संसदात्मक शासन में शासन का प्रमुख होता है
(अ) राष्ट्रपति
(ब) प्रधानमन्त्री
(स) उपराष्ट्रपति
(द) राज्यपाल।
उत्तर:
(ब) प्रधानमन्त्री

प्रश्न 24.
संसदात्मक शासन में नाममात्र का प्रधान होता है
(अ) राष्ट्रपति
(ब) प्रधानमन्त्री
(स) मुख्यमन्त्री
(द) लोकसभाध्यक्ष।
उत्तर:
(अ) राष्ट्रपति

प्रश्न 25.
निम्न में से किस देश में संसदीय शासन प्रणाली है
(अ) कनाडा
(ब) ऑस्ट्रेलिया
(स) भारत
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 26.
वास्तविक वे नाममात्र की कार्यपालिका का भेद जिस शासन प्रणाली में समाप्त हो जाता है, वह है
(अ) अध्यक्षात्मक
(ब) एकात्मक
(स) संघात्मक
(द) संसदात्मक।
उत्तर:
(अ) अध्यक्षात्मक

प्रश्न 27.
निम्न में से संसदात्मक शासन का दोष नहीं है
(अ) शक्ति पृथक्ककरण सिद्धान्त के प्रतिकूल
(ब) कमजोर शासन
(स) अस्थिर शासन
(द) उत्तरदायी शासन
उत्तर:
(द) उत्तरदायी शासन

प्रश्न 28.
निम्न में से किस शासन व्यवस्था में राज्याध्यक्ष निष्पक्ष परामर्शदाता के रूप में कार्य करता है
(अ) संसदीय
(ब) अध्यक्षात्मक
(स) एकात्मक
(द) अधिनायक तन्त्र।
उत्तर:
(अ) संसदीय

प्रश्न 29.
कौन – सी शासन प्रणाली शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त पर आधारित है
(अ) संसदात्मक
(ब) एकात्मक
(स) अध्यक्षात्मक
(द) लोकतन्त्र।
उत्तर:
(स) अध्यक्षात्मक

प्रश्न 30.
निम्न में से किस राज्य में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली है
(अ) भारत
(ब) संयुक्त राज्य अमेरिका
(स) ब्रिटेन
(द) कनाडा
उत्तर:
(ब) संयुक्त राज्य अमेरिका

प्रश्न 31.
अध्यक्षात्मक शासन का प्रमुख गुण है
(अ) प्रधानमन्त्री का नेतृत्व
(ब) दोहरी कार्यपालिका
(स) शासन में स्थायित्व
(द) उत्तरदायी शासन।
उत्तर:
(स) शासन में स्थायित्व

प्रश्न 32.
अध्यक्षात्मक शासन का प्रमुख दोष है
(अ) निरंकुश व अनुत्तरदायी शासन।
(ब) व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता
(स) संकटकाल में उपयुक्त
(द) नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा।
उत्तर:
(अ) निरंकुश व अनुत्तरदायी शासन।

प्रश्न 33.
अध्यक्षात्मक शासन का आधार है
(अ) गोपनीयता
(ब) दोहरी कार्यपालिका
(स) राजनीतिक एकरूपता
(द) शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त।
उत्तर:
(द) शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त।

प्रश्न 34.
अक्षम व्यक्तियों का शासन माना जाता है
(अ) संसदात्मक शासन
(ब) एकात्मक शासन
(स) अध्यक्षात्मक शासन
(द) संघात्मक शासन
उत्तर:
(अ) संसदात्मक शासन

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लोकतान्त्रिक शासन के प्रमुख रूप कौन-कौन से हैं?
अथवा
आधुनिक युग में सरकार के चार प्रमुख रूपों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. एकात्मक
  2. संघात्मक
  3. संसदात्मक
  4. अध्यक्षात्मक।

प्रश्न 2.
वह कौन – सी शासन व्यवस्था है जिसमें शासन की समस्त शक्तियाँ एक ही सरकार में केन्द्रित कर दी जाती हैं?
उत्तर:
एकात्मक शासन व्यवस्था।

प्रश्न 3.
इकहरी नागरिकता एवं शक्तियों का केन्द्रीकरण शासन के किस स्वरूप को लक्षण है?
उत्तर:
एकात्मक शासन व्यवस्था।

प्रश्न 4.
एकात्मक शासन के कोई दो लक्षण (विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:

  1. सम्पूर्ण राज्य में एक ही सरकार
  2. स्थानीय शासन का केन्द्रीय शासन का अंग होना।

प्रश्न 5.
एकात्मक शासन के दो प्रमुख गुण लिखिए।
उत्तर:

  1. प्रशासन में एकरूपता
  2. राष्ट्रीय एकता।

प्रश्न 6.
किन भारतीय राजनीतिक विचारकों ने सुसंगठित एवं सक्षम प्रशासनिक व्यवस्था को राज्य के लिए अनिवार्य माना है।
उत्तर:
मनु, कौटिल्य एवं शुक्र ने।

प्रश्न 7.
एकात्मक शासन संकटकाल के लिए अधिक उपयुक्त क्यों माना जाता है?
उत्तर:
क्योंकि एकात्मक शासन में शासन की समस्त शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार के हाथों में रहती हैं। अत: संकटकाल में शीघ्र निर्णय ले लिया जाता है।

प्रश्न 8.
किन्हीं चार देशों के नाम बताइए जहाँ एकात्मक सरकार पायी जाती है।
उत्तर:

  1. ब्रिटेन
  2. इटली
  3. जापान
  4. बेल्जियम।

प्रश्न 9.
एकात्मक शासन के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:

  1. केन्द्रीय शासन के निरंकुश होने का भय,
  2. नौकरशाही का शाासन।

प्रश्न 10.
छोटे राज्यों के लिए कौन-सी शासन प्रणाली उपयुक्त है?
उत्तर:
एकात्मक शासन प्रणाली।

प्रश्न 11.
किन्हीं चार देशों के नाम लिखिए जहाँ संघात्मक शासन है?
उत्तर:

  1. भारत
  2. कनाडा
  3. संयुक्त राज्य अमेरिका
  4. स्विट्जरलैण्ड।

प्रश्न 12.
संविधान की सर्वोच्चता किस शासन प्रणाली का लक्षण है?
उत्तर:
संघात्मक शासन प्रणाली का।

प्रश्न 13.
विभिन्नता में एकता बनाए रखने के लिए कौन-सी शासन प्रणाली उपयुक्त रहेगी?
उत्तर:
संघात्मक शासन प्रणाली।

प्रश्न 14.
वह कौन-सी शासन प्रणाली है, जहाँ शासन की शक्तियों का संघ व इकाइयों में विभाजन होता है?
उत्तर:
संघात्मक शासन प्रणाली।

प्रश्न 15.
संघात्मक सरकार के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:

  1.  लिखित, निर्मित, कठोर एवं सर्वोच्च संविधान,
  2. स्वतन्त्र न्यायपालिका।

प्रश्न 16.
संघात्मक शासन के गौण लक्षण बताइए।
उत्तर:

  1.  दोहरी नागरिकता,
  2. द्विसदनात्मक व्यवस्था,
  3. सम्प्रभुता का दोहरा प्रयोग।

प्रश्न 17.
संघात्मक शासन के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  1. राष्ट्रीय एकता एवं स्थानीय स्वायत्तता,
  2.  लोकतन्त्र के अनुकूल।

प्रश्न 18.
विशाल राज्यों के लिए किस प्रकार की शासन प्रणाली उपयुक्त है?
उत्तर:
संघात्मक शासन प्रणाली।।

प्रश्न 19.
सामाजिक समझौता सिद्धान्त के किस प्रतिपादक ने अपने सिद्धान्त में दो समझौतों का उल्लेख किया है?
उत्तर:

  1. संकटकाल में अनुपयुक्त,
  2. संघर्ष की स्थिति।

प्रश्न 20.
संकटकाल में संघात्मक शासन अनुपयुक्त है। क्यों?
उत्तर:
क्योंकि संकटकाल में संघ सरकार को राज्यों से मन्त्रणा करनी पड़ती है। फलस्वरूप निर्णय लेने में देरी होती है। इसलिए संकट के समय संघात्मक शासन अनुपयुक्त है।

प्रश्न 21.
शासन शक्ति के वितरण के आधार पर एकात्मक एवं संघात्मक शासन की तुलना कीजिए। ”
उत्तर:
एकात्मक शासन में संविधान द्वारा सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार को प्रदान कर दी जाती है, जबकि संघात्मक शासन में शक्तियों का विभाजन केन्द्र व इकाइयों की सरकारों में होता है।

प्रश्न 22.
नागरिकता की दृष्टि से एकात्मक शासन एवं संघात्मक शासन में क्या अन्तर है?
उत्तर:
एकात्मक शासन में इकहरी नागरिकता पायी जाती है, जबकि संघात्मक शासन में दोहरी नागरिकता पायी जाती है।

प्रश्न 23.
संसदात्मक शासन प्रणाली वाले किन्हीं चार देशों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1.  ब्रिटेन
  2. कनाडा
  3. ऑस्ट्रेलिया
  4. भारत।

प्रश्न 24.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का श्रेष्ठ उदाहरण कौन-सा देश है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका।

प्रश्न 25.
किस शासन व्यवस्था में व्यवस्थापिका व कार्यपालिका में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है?
उत्तर:
संसदात्मक शासन व्यवस्था में।

प्रश्न 26.
गैटेल के अनुसार संसदीय शासन प्रणाली को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
गैटेल के अनुसार, “संसदीय शासन उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें वास्तविक कार्यपालिका अपने समस्त कार्यों के लिए कानूनी रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है।”

प्रश्न 27.
किस प्रकार की शासन व्यवस्था में संसद सर्वोच्च होती है?
उत्तर:
संसदात्मक शासन व्यवस्था में।

प्रश्न 28.
किस राजनीतिक विचारक ने मन्त्रिमण्डल को राजनीतिक मेहराब का आधार स्तम्भ कहा है?
उत्तर:
लॉवेल ने।

29.
संसदात्मक व्यवस्थापिका की जननी किस देश को कहा जाता है?
उत्तर:
ब्रिटेन को।

प्रश्न 30.
संसदात्मक शासन के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:

  1. दोहरी कार्यपालिका,
  2. सामूहिक उत्तरदायित्व।

प्रश्न 31.
संसदात्मक शासन में राज्य का प्रधान कौन होता है?
उत्तर:
राष्ट्रपति।

प्रश्न 32.
संसदात्मक शासन प्रणाली में शासन का प्रधान कौन होता है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री।

प्रश्न 33.
संवैधानिक एवं वास्तविक शासन-प्रधान किस शासन प्रणाली में होते हैं।
उत्तर:
संसदात्मक शासन प्रणाली में।

प्रश्न 34.
संसदात्मक शासन प्रणाली में वास्तविक शक्तियाँ किस संस्था में निहित होती हैं?
उत्तर:
मन्त्रिपरिषद् में।

प्रश्न 35.
संसदात्मक शासन प्रणाली में सामूहिक उत्तरदायित्व से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
सामूहिक उत्तरदायित्व से तात्पर्य है कि किसी मन्त्री के कार्य के लिए वह अकेला ही उत्तरदायी नहीं होता, बल्कि मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होता है।

प्रश्न 36.
संसदात्मक शासन के कोई दो लक्षण बताइए।
उत्तर:

  1. दोहरी कार्यपालिका,
  2. सामूहिक उत्तरदायित्व।

प्रश्न 37.
किस शासन प्रणाली में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका की बैठकों में भाग लेती है?
उत्तर:
संसदात्मक शासन प्रणाली में।

प्रश्न 38.
किस शासन प्रणाली में मन्त्रिमण्डल व्यवस्थापिका के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होता है?
उत्तर:
संसदात्मक शासन प्रणाली में।

प्रश्न 39.
संसदात्मक शासन प्रणाली में सरकार और मन्त्रिमण्डल का नेतृत्व कौन करता है?
उत्तर:
प्रधानमन्त्री।

प्रश्न 40.
संसदात्मक शासन के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  1. उत्तरदायी शासन,
  2. शासन की निरंकुशता पर रोक।

प्रश्न 41.
संसदात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका किसके प्रति पूर्ण रूप से उत्तरदायी रहती है?
उत्तर:
व्यवस्थापिका के प्रति

प्रश्न 42.
संसदात्मक शासन में संसद शासन की निरंकुशता पर किस प्रकार रोक लगाती है?
उत्तर:
संसद सदस्य सरकार के मन्त्रियों से प्रश्न पूछकर, निन्दा प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव एवं अविश्वास प्रस्ताव द्वारा शासन की निरंकुशता पर रोक लगाते हैं।

प्रश्न 43.
संसदात्मक शासन प्रणाली के कोई तीन दोष लिखिए।
उत्तर:

  1. शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिकूल
  2. निरंकुशता का उदय
  3. अस्थिर शासन।

प्रश्न 44.
संसदीय शासन को अक्षम व्यक्तियों का शासन क्यों कहते हैं?
उत्तर:
क्योंकि संसदीय शासन व्यवस्था में मन्त्रियों का चयन उनकी योग्यता एवं प्रशासनिक अनुभव के आधार परन होकर राजनीतिक दल में उनकी लोकप्रियता एवं राजनीतिक प्रभाव के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 45.
अध्यक्षात्मक शासन का आधार बताइए।
उत्तर:
शक्ति पृथक्करण का सिद्धान्त अध्यक्षात्मक शासन का आधार है।

प्रश्न 46.
सरकार के किस रूप में राजनीतिक स्थिरता पायी जाती है?
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन में।

प्रश्न 47.
वह कौन-सी शासन प्रणाली है, जिसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका की कार्यवाही में भाग नहीं लेती है?
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में।

प्रश्न 48.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में मन्त्रिपरिषद् के सदस्यों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
सचिव के नाम से।

प्रश्न 49.
वह कौन-सी शासन प्रणाली है, जिसमें कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी नहीं होती?
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में।

प्रश्न 50.
किस शासन प्रणाली में कार्यपालिका का प्रधान वास्तविक शासक होता है, नाममात्र का नहीं?
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में।

प्रश्न 51.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के कोई दो लक्षण लिखिए।
उत्तर:

  1. शक्तियों का पृथक्करण
  2. निश्चित कार्यकाल।

प्रश्न 52.
किस शासन व्यवस्था में एकल कार्यपालिका पायी जाती है?
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में या जाती है?

प्रश्न 53.
किस देश के संविधान में शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त के साथ स्वीकार किया गया है?
उत्तर:
संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान में।

प्रश्न 54.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के कोई दो गुण लिखिए।
उत्तर:

  1. शासन में स्थायित्व,
  2. दलबन्दी के दोषों से मुक्त।

प्रश्न 55.
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था के कोई दो दोष बताइए।
उत्तर:

  1. निरंकुश व अनुत्तरदायी शासन
  2. लचीलेपन का अभाव।

प्रश्न 56.
कार्यपालिका के आधार पर संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन में दोहरी कार्यपालिका होती है, जबकि अध्यक्षात्मक शासन में एकल कार्यपालिक़ा होती है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एकत्मिक शासन का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
एकात्मक शासन का अर्थ एवं परिभाषा-जिस शासन प्रणाली में संविधान द्वारा शासन की सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय सरकार में संकेन्द्रित होती है उसे एकात्मक शासन कहते हैं। इसमें प्रादेशिक और स्थानीय सरकारें न केवल अपनी शक्तियाँ केन्द्र सरकार से प्राप्त करती हैं, बल्कि उनका अस्तित्व भी केन्द्र सरकार की इच्छा पर ही निर्भर करता है। ब्रिटेन, इटली, जापान एवं बेल्जियम आदि देशों में एकात्मक शासन प्रणाली विद्यमान है।

विभिन्न विद्वानों ने एकात्मक सरकार की निम्नलिखित परिभाषाएँ दी हैं डॉ. गार्नर के अनुसार, “एकात्मक सरकार वह प्रणाली है जिसमें संविधान द्वारा शासन की सम्पूर्ण शक्ति एक अथवा एक से अधिक अंगों को प्रदान कर दी जाती है और स्थानीय सरकार अपनी सत्ता, स्वायत्तता एवं अपना अस्तित्वं भी उसी से प्राप्त करती है।”

विलोबी के अनुसार, “एकात्मक राज्यों में शासन के सब अधिकार मौलिक रूप से एक केन्द्रीय सरकार के हाथ में रहते हैं। यह सरकार इच्छानुसार, जैसे वह उचित समझती है, उन शक्तियों का वितरण क्षेत्रीय इकाइयों में करती है।” डॉ. फाइनर के अनुसार, “एकात्मक राज्य वह राज्य है, जिसमें समस्त सत्ता एवं शक्ति एक केन्द्र में निहित है और जिसकी इच्छा एवं जिसके अधिकार समस्त क्षेत्र पर कानूनन सर्वशक्तिमान होते हैं।” डायसी के अनुसार, “एक केन्द्रीय शक्ति के द्वारा सर्वोच्च विधायी शक्ति का प्रयोग किया जाना ही एकात्मक सरकार है।”

प्रश्न 2.
एकात्मक शासन के तीन गुण बताइए।
उत्तर:
एकात्मक शासन के गुण – एकात्मक शासन के तीन गुण निम्नलिखित हैं|
(क) प्रशासन में एकरूपता – एकात्मक शासन का सबसे बड़ा गुण वह है कि समस्त देश में एक ही सरकार होती है, जो पूरे देश के लिए एक ही प्रकार के कानून बनाती है तथा उनका क्रियान्वयन करती है।

(ख) लचीलापन – एकात्मक शासन प्रणाली का एक महत्वपूर्ण गुण उसका लचीलापन है। इसमें संविधान संशोधन की प्रक्रिया सरल होती है। इसलिए एकात्मक शासन विशेष परिस्थितियों और अवसरों का सामना आसानी से कर सकता है।

(ग) संकटकाल में अधिक उपयुक्त शासन व्यवस्था – एकात्मक शासन को संकटकाल के लिए अत्यन्त उपयुक्त माना जाता है। युद्ध सशस्त्र विद्रोह, संकटकालीन स्थिति या अन्य प्रकार की असाधारण परिस्थितियों में दृढ़तापूर्वक शीघ्र निर्णय करके उन्हें कार्यरूप में परिणत करने की आवश्यकता होती है।

ऐसा एकात्मक शासन में ही सम्भव है, क्योंकि उसमें शासन की समस्त शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार के हाथों में रहती हैं। इसी बात को दृष्टि में रखते हुए भारतीय संविधान के अन्तर्गत संकटकाल के समय संघात्मक शासन को एकात्मक शासन में परिवर्तन करने की व्यवस्था की गयी है।

प्रश्न 3.
एकात्मक शासन की कोई तीन कमियाँ अथवा दोष लिखिए।
उत्तर:
एकात्मक शासन की कमियाँ / दोष – एकात्मक शासन की तीन कमियाँ / दोष निम्नलिखित हैं

  1. केन्द्रीय सरकार के निरंकुश होने का भय – शक्तियों का केन्द्रीकरण निरंकुशता की प्रवृत्ति को जन्म देता है। एकात्मक शासन व्यवस्था में सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय शासन में निहित होती है। ऐसी दशा में शासन व्यवस्था में सरकार के निरंकुश व तानाशाह होने का भय बना रहता है।
  2. विशाल राज्यों के लिए अनुपयुक्त – जो देश जनसंख्या तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से विशाल है तथा भाषा, नस्ल, धर्म और संस्कृति की विविधता लिए हुए है वहाँ पर एकात्मक शासन का सफल संचालन सम्भव नहीं है।
  3. जनता की उदासीनता – एकात्मक शासन व्यवस्था में स्थानीय जनता को शासन सम्बन्धी कार्यों में सहभागिता निभाने का अवसर नहीं मिलता। जनता की राजनीतिक मामलों में सक्रिय भूमिका नहीं होने से उसकी राजकीय कार्यों के प्रति रुचि कम हो जाती है और वह उदासीन रहने लगती है।

प्रश्न 4.
संघात्मक शासन का अर्थ एवं परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
संघात्मक शासन का अर्थ एवं परिभाषा – संघात्मक शासन उस प्रणाली को कहते हैं जिसमें राज्य की समस्त शक्तियों का विभाजन संघ सरकार तथा संघ की इकाइयों (राज्यों) के मध्य होता है। दोनों सरकारें सीधे संविधान से शक्तियाँ प्राप्त करती हैं, दोनों अपने – अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा संघात्मक शासन व्यवस्था की परिभाषाएँ निम्न प्रकार से दी गई हैं डॉ. गार्नर के अनुसार, “संघ एक ऐसी प्रणाली है जिसमें केन्द्रीय तथा स्थानीय सरकारें एक ही प्रभुत्व शक्ति के अधीन होती है।

ये सरकारें अपने – अपने क्षेत्र में, जिसे संविधान तथा संसद का कोई कानून निश्चित करता है, सर्वोच्च होती हैं।” डायसी के अनुसार, “संघीय राज्य एक ऐसी राजनीतिक रचना है जिसमें राष्ट्रीयता, एकता और शक्ति तथा प्रदेशों के अधिकारों की रक्षा करते हुए दोनों में सामंजस्य स्थापित किया जाता है।” विलोबी के अनुसार, “संघ बहुशासनतन्त्रवादी राज्य है।” डॉ. फाइनर के अनुसार, “यह एक शासन है जिसमें सत्ता और शक्ति का एक भाग स्थानीय क्षेत्रों में निहित होता है। और दूसरा भाग केन्द्र में।”

प्रश्न 5.
संघात्मक शासन के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संघात्मक शासन के प्रमुख लक्षण – संघात्मक शासन के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:
(क) लिखित, कठोर एवं सर्वोच्च संविधान – संघात्मक शासन का संविधान लिखित, कठोर एवं सर्वोच्च होता है। लिखित संविधान में केन्द्र और उसकी इकाइयों के बीच उनके अधिकारों एवं शक्तियों का स्पष्ट उल्लेख रहता है।

संविधान । की कठोरता से आशय उसमें आसानी से संशोधन सम्भव नहीं होता। इससे संविधान की पवित्रता की रक्षा होती है। इस व्यवस्था में संविधान के प्रावधान सभी सरकारों पर बाध्यकारी हैं, अर्थात् कोई भी शक्ति संविधान के ऊपर नहीं होती है।

(ख) शक्तियों का विभाजन – संघात्मक शासन में केन्द्रीय सरकार और स्थानीय सरकारों के मध्य शक्तियों को विभाजन किया जाता है। राष्ट्रीय महत्व के विषय केन्द्रीय सरकार/संघीय सरकार को और स्थानीय महत्व के विषय इकाइयों (प्रदेशों) को सौंप दिये जाते हैं।

(ग) स्वतन्त्र न्यायपालिका – इस शासन में न्यायालय को केन्द्रीय सरकार या राज्यों की सरकारों द्वारा पारित किसी ऐसे कानून को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार होता है जो संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध है। स्वतन्त्र, सशक्त न्यायपालिका संघात्मक व्यवस्था की प्रहरी है।’

प्रश्न 6.
संघात्मक व्यवस्था के गौण लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
(i) दोहरी नागरिकता – संघात्मक शासन में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था होती है, प्रत्येक व्यक्ति संघ सरकार का नागरिक तो होता ही है, उसे राज्य की नागरिकता भी प्राप्त होती है। भारत में संघात्मक व्यवस्था है पर दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है। भारतीय संघीय व्यवस्था में इकहरी नागरिकता के सिद्धान्त को स्वीकार किया गया है।

(ii) द्वि – सदनात्मक व्यवस्था – संघीय शासन व्यवस्था में केन्द्रीय व्यवस्थापिका द्वि – सदनात्मक है जहाँ निम्न सदन सम्पूर्ण संघ की जनता का प्रतिनिधित्व करता है, वहीं उच्च सदन संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है।

(iii) सम्प्रभुतां का दोहरा प्रयोग – संघात्मक राज्य में सम्प्रभुता अविभाजित होती है। किन्तु एक संघ राज्य में सम्प्रभुता की अभिव्यक्ति केन्द्र सरकार एवं स्थानीय सरकारों द्वारा होती है। संघात्मक व्यवस्था वाले राज्यों में दोनों प्रकार की सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं।

प्रश्न 7.
संघात्मक शासन के तीन गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(i) राजनीतिक चेतना – संघात्मक शासन व्यवस्था का प्रमुख गुण यह है कि इसमें क्षेत्रीय और स्थानीय समस्याओं के समाधान के लिये उसी स्थान के योग्य व्यक्तियों का सहयोग मिल जाता है जो अपनी क्षेत्रीय समस्याओं को दूसरों से अच्छी तरह समझते हैं। इससे जनता में सार्वजनिक कार्यों के प्रति चेतना विकसित होती है।

(ii) निरंकुशता का विरोधी – संघात्मक शासन में संविधान द्वारा केन्द्र और राज्यों के बीच अधिकार क्षेत्र का स्पष्ट विभाजन होता है। दोनों सरकारों में कोई भी एक-दूसरे के क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करता। राज्यों को अपने क्षेत्राधिकार में पूर्ण स्वायत्तता रहती है। अत: केन्द्र सरकार कभी भी निरंकुश नहीं हो पाती।

(iii) लोकतन्त्र के अनुकूल – संघीय व्यवस्था लोकतन्त्र के अनुकूल है। इस व्यवस्था ने लोकतन्त्र को लोकप्रिय बनाने की दिशा में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया है।

प्रश्न 8.
संघात्मक शासन के कोई तीन दोष बताइए।
उत्तर:

  1.  कमजोर शासन व्यवस्था – संघात्मक शासन एक दुर्बल व्यवस्था है। इसमें विकेन्द्रीकरण और शक्ति । पृथक्करण के कारण निर्णय की दृढ़ता, एकरूपता एवं शीघ्रता का अभाव रहता है।
  2. संकटकाल में उपयोगी नहीं – संघात्मक शासन व्यवस्था संकट काल में उपयोगी सिद्ध नहीं होती है। युद्ध की स्थितियाँ या अन्य किसी संकट के समय तुरन्त निर्णय लेने होते हैं, परन्तु संघीय व्यवस्था के कारण कई विषयों पर संघ को राज्यों से मंत्रणा करनी पड़ती है इसलिए निर्णय लेने में विलंब होता है।
  3. संघर्ष की स्थिति – इस व्यवस्था में संघीय सरकार और इकाइयों की सरकारों के बीच संघर्ष और विद्रोह की सम्भावना हमेशा बनी रहती है। उनके बीच नदी के पानी, क्षेत्र एवं भाषा सम्बन्धी विवाद प्राय: बने ही रहते हैं।

प्रश्न 9.
एकात्मक और संघात्मक शासन में किन्हीं तीन बिन्दुओं के आधार पर अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एकात्मक एवं संघात्मक शासन में तीन बिन्दुओं के आधार पर अन्तर

  1. शक्तियों के केन्द्रीकरण एवं विभाजन का अन्र्तर – एकात्मक शासन में केन्द्र और राज्यों में संवैधानिक दृष्टि ‘से शक्तियों का बँटवारा नहीं होता। इसमें सम्पूर्ण शक्तियाँ केन्द्रीय सरकार में निहित होती हैं जबकि संघात्मक शासन में लिखित संविधान द्वारा केन्द्र व इकाइयों की सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन होता है एवं दोनों अपने – अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र होती हैं।
  2. संविधान के स्वरूप के आधार पर अन्तर – एकात्मक शासन व्यवस्था वाले राज्यों में संविधान लिखित अलिखिते, कठोर या लचीला किसी भी प्रकार का हो सकता है जबकि संघात्मक शासन व्यवस्था वाले राज्यों में संविधान अनिवार्य रूप से सर्वोच्च, लिखित एवं कठोर होता है।
  3. राज्य के आकार के आधार पर अन्तर – एकात्मक शासन छोटे राज्यों के लिए उपयोगी रहता है, जहाँ भाषा, धर्म, संस्कृति आदि की एकरूपता पायी जाती है जबकि संघात्मक शासन बड़े राज्यों के लिए उपयोगी होता है, जहाँ विभिन्न धर्म, भाषा, संस्कृति तथा विचारधारा के लोग रहते हैं।

प्रश्न 10.
संसदात्मक शासन किसे कहते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन-संसदात्मक शासन वह शासन प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है। इस व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्धं पाया जाता है। कार्यपालिका, व्यवस्थापिका का विश्वास बने रहने तक ही अपने पद पर बनी रह सकती है। राज्याध्यक्ष नाममात्र का प्रधान होती है।

वह शासन के किसी कार्य के लिए उत्तरदायी नहीं होता। वास्तविक कार्यपालक शक्तियाँ मन्त्रिमण्डल में निहित रहती हैं। मन्त्रिमण्डल के सदस्य व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं। अतः वे व्यवस्थापिका की बैठकों में सम्मिलित होते हैं और मतदान भी करते हैं। संसदात्मक शासन को मन्त्रिमण्डलात्मक एवं उत्तरदायी शासन भी कहा जाता है।

प्रश्न 11.
संसदात्मक शासन में कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के मध्य आपसी सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन में कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के मध्य आपसी सम्बन्ध-संसदात्मक शासन में कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के मध्य आपसी सम्बन्ध निम्नलिखित बिन्दुओं से स्पष्ट हैं

  1. वास्तविक कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिपरिषद् व्यवस्थपिका में से नियुक्ति की जाती है तथा अपने कार्यों और नीतियों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है।
  2. व्यवस्थापिका काम रोको प्रस्ताव, प्रश्न पूछकर, निन्दा व प्रस्ताव एवं कटौती प्रस्ताव आदि विभिन्न गतिविधियों द्वारा कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखती है तथा अविश्वास प्रस्ताव पारित कर उसे पदच्युत भी कर सकती है।
  3. बहुमत के आधार पर मन्त्रिपरिषद् भी व्यवस्थापिका को नियन्त्रित करती है। कार्यपालिका शासन की नीति निर्धारित करती है, प्रशासन का संचालन करती है तथा विधि निर्माण प्रक्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

प्रश्न 12.
संसदात्मक शासन के कोई तीन लक्षण बताइए।
उत्तर:

  1. दोहरी कार्यपालिका – संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका दोहरी होती है। एक नाममात्र की कार्यपालिका तथा दूसरी वास्तविक कार्यपालिका। नाममात्र की कार्यपालिका को राज्य के अध्यक्ष के रूप में तथा वास्तविक कार्यपालिका को शासन के अध्यक्ष के रूप में स्वीकार किया जाता है।
  2. व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में घनिष्ठ सम्बन्ध – इस प्रणाली में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। कार्यपालिका अपने कार्यों और नीतियों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है।
  3. राजनीतिक एकरूपता – राजनीतिक एकरूपता से आशय यह है कि मन्त्रिमण्डल के समस्त सदस्य एक ही राजनीतिक दल और सिद्धान्त के हों या समान विचारधारा के हों। राजनीतिक विचारों की एकता के कारण मन्त्रिमण्डल की नीतियों, कार्यक्रमों और सिद्धान्तों में एकता रहती है।

प्रश्न 13.
संसदीय शासन किस प्रकार शासन की निरंकुशता पर रोक लगाता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदीय शासन प्रणाली में वास्तविक कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिमण्डल व्यवस्थापिका में से ही बनता है और उसी के प्रति उत्तरदायी होता है तथा उसके विश्वास तक ही अपने पद पर बना रह सकता है। इस शासन व्यवस्था में सरकार कभी भी निरंकुश नहीं हो पाती, क्योंकि संसद में और संसद के बाहर विरोधी दल सदैव सरकार के कार्यों पर नजर रखते हैं।

वे समय – समय पर आलोचना करके उसे सीमा में रहकर ही कार्य करने को बाध्य करते हैं। संसद सदस्य प्रश्न पूछकर निन्दा प्रस्ताव, काम रोको प्रस्ताव तथा कटौती प्रस्ताव के द्वारा मन्त्रिमण्डल पर नियन्त्रण रखते हैं। भारत और इंग्लैण्ड में ऐसे अनेक उदाहरण देखने को मिले हैं जब किसी मन्त्री को भ्रष्टाचार, अक्षमता एवं चरित्रहीनता के कारण मंत्रिमण्डल से त्याग-पत्र देने के लिए बाध्य होना पड़ा है।

प्रश्न 14.
संसदात्मक शासन शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिकूल केसे हैं? बताइए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन का शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिकूल होना-शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त इस विचारधारा पर आधारित है कि निरंकुश शक्तियों के मिल जाने से व्यक्ति भ्रष्ट हो जाते हैं और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करने लगते हैं। इस सिद्धान्त के प्रतिपादकों का विचार है कि व्यवस्थापिका का काम कानून बनाना होना चाहिए। कार्यपालिका उन कानूनों को क्रियान्वित करे और उनके अनुसार शासन चलाये तथा न्यायपालिका उन कानूनों के अनुसार निर्णय करे।

इस प्रकार तीनों अपने – अपने क्षेत्र में स्वतन्त्रता व निष्पक्षता के साथ कार्य करें। लेकिन इस शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका एक – दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होती हैं, ऐसी व्यवस्था आसानी से स्वेच्छाचारी बन सकती है और नागरिकों की स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो सकता है। माण्टेस्क्यू ने लिखा है, “यदि व्यवस्थापिका और कार्यपालिका की शक्तियाँ एक ही व्यक्ति, एक ही संस्था में केन्द्रित हो जायें तो कोई स्वतन्त्रता नहीं रह सकती क्योंकि इस बात का भय उत्पन्न हो जाता है कि कहीं राजा या सीनेट अत्याचारी कानून बनायें और अत्याचारी ढंग से लागू करें।”

प्रश्न 15.
संसदीय शासन व्यवस्था को अस्थिर शासन माना जाता है। क्यों?
उत्तर:
संसदीय शासन व्यवस्था को अस्थिर शासन मानने का कारण-संसदीय शासन व्यवस्था में कई राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं अर्थात् देश में बहुदलीय व्यवस्था पायी जाती है। जब चुनावों में किसी कारणवश एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमतं नहीं मिलता है, तो कुछ दलों की मिली-जुली सरकार का गठन किया जाता है। चूंकि प्रत्येक दल की अपनी – अपनी राजनीतिक मान्यताएँ एवं लक्ष्य होते हैं। ऐसी दशा में उनमें शीघ्र ही मतभेद उभर कर सामने आ जाते हैं जिस कारण मन्त्रिपरिषद् में अस्थिरता आ जाती है और सरकार गिरने की स्थिति में पहुँच जाती है।

वर्तमान में कई सरकारों का गठन बाहरी समर्थन के आधार पर होता है। ऐसी सरकारें अपनी प्रकृति से ही अस्थाई होती हैं। बाहर से समर्थन देने वाले राजनीतिक दल कभी भी समर्थन वापिस लेकर सरकार को गिरा कर देते हैं। इस तरह निरन्तर दबाव से चलने वाली सरकार सदैव अस्थिर बनी रहती है। इस तरह संसदीय शासन व्यवस्था को एक अस्थिर शासन माना जाता है।

प्रश्न 16.
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली संकटकाल के लिए उपयुक्त मानी जाती है क्यों?
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका का प्रधान अर्थात् राष्ट्रपति वास्तविक शासक होता है। वह अपने मन्त्रिपरिषद् के सहयोग से कार्य करता है। राष्ट्रपति सहित सम्पूर्ण मन्त्रिपरिषद् अपने कार्यों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी भी नहीं रहती है। अतः राष्ट्रपति विभिन्न प्रकार के राष्ट्रहित के निर्णय शीघ्र करता है। इस कारण अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को संकटकाल के लिए उपयुक्त माना जाता है। इस शासन प्रणाली में राष्ट्रहित में तुरन्त निर्णय लिये जाते हैं।

राज्य की इकाइयों से परामर्श की कोई आवश्यकता नहीं होती है। अतः शीघ्र निर्णय लेकर दृढ़ता व कठोरता के साथ लागू कर संकटकाल का सामना किया जाता है। गिलक्राइस्ट नामक राजनीतिक विचारक ने ठीक ही कहा है कि किसी भी प्रकार के राष्ट्रीय संकट के समय नियन्त्रण की एकता, निर्णय में शीघ्रता और संगठित नीति की माँग होती है और वे सब बड़ी अच्छी तरह और सरलता से अध्यक्षात्मक व्यवस्था में उपलब्ध किये जा सकते हैं।”

प्रश्न 17.
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली के मध्य कोई दो अन्तर लिखिए।
उत्तर:
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक प्रणाली में दो अन्तर
(क) कार्यपालिका के आधार पर अन्तर – संसदात्मक व्यवस्था में कार्यपालिका का दोहरा स्वरूप होता है – एक नाममात्र की कार्यपालिका तथा दूसरी वास्तविक कार्यपालिका। भारत में राष्ट्रपति तथा इंग्लैण्ड में राजा-रानी नाममात्र की या वैधानिक कार्यपालिका होते हैं तथा प्रधानमन्त्री वास्तविक कार्यपालिका। अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका एकल होती है तथा राष्ट्रपति ही वास्तविक कार्यपालिका होती है। इसमें नाममात्र की और वास्तविक कार्यपालिका का भेद नहीं होता है; जैसे-संयुक्त राज्य अमेरिका का राष्ट्रपति ।

(ख) कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका के सम्बन्धों के आधार पर अन्तर – संसदात्मक शासन व्यवस्था में व्यवस्थापिका व कार्यपालिका के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। बहुमत दल का नेता प्रधानमन्त्री बनाया जाता है तथा वह व्यवस्थापिका में से ही अपनी मन्त्रिपरिषद् का निर्माण करता है, जबकि अध्यक्षात्मक शासन में इन दोनों अंगों का निकट सम्बन्ध नहीं होता और न ही कार्यपालिका का निर्माण व्यवस्थापिका में से किया जाता है। राष्ट्रपति स्वतन्त्र रूप से अपने सचिवों (मन्त्रियों) की नियुक्ति करता है।

प्रश्न 18.
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति की स्थिति को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक एवं अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति की स्थिति में अन्तर-संसदात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति संवैधानिक प्रमुख होता है तथा सभी प्रशासनिक कार्य उसी के नाम से किये जाते हैं। राष्ट्रपति नाममात्र का प्रशासक होता है। शासन की शक्तियों का वास्तविक उपयोग प्रधानमन्त्री के नेतृत्व में मन्त्रिपरिषद् ही करती है, वहीं दूसरी ओर अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति कार्यपालिका का वास्तविक अध्यक्ष होता है और व्यवहार में वही समस्त कार्यपालिका शक्तियों का उपयोग करता है। इस प्रकार संसदात्मक शासन में राष्ट्रपति राज्य का प्रधान होता है, शासन का प्रधान नहीं जबकि अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में राष्ट्रपति राज्य तथा शासन दोनों का प्रधान होता है।

RBSE Class 11 Political Science Chapter 10 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
एकात्मक शासन से क्या आशय है? इसके गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कात्मक शासन से आशय एकात्मक शासन ऐसी व्यवस्था है जिसमें शासन की सम्पूर्ण शक्ति संविधान या परम्पराओं द्वारा केवल एक ही सरकार, केन्द्रीय सरकार में निहित होती है। इसके अन्तर्गत केन्द्रीय सरकार अपनी कुछ शक्तियाँ इकाइयों की सरकार या प्रादेशिक सरकारों को प्रत्यायोजित कर देती है। एकात्मक शासन में प्रादेशिक इकाइयों की कोई पृथक् स्वतन्त्र सत्ता नहीं होती है। वे केन्द्रीय सरकार की प्रतिनिधि सरकारें होती हैं जिन्हें केन्द्रीय सरकार कभी भी समाप्त कर सकती है।

एकात्मक शासन के गुण:
1. प्रशासन में एकरूपता – इसमें समस्त देश की एक ही सरकार होती है जो सम्पूर्ण देश के लिए एक ही प्रकार के कानून बनाती है तथा समान ढंग से उनका कार्यान्वयन करती है। समान कानून से शासित होने के परिणामस्वरूप सम्पूर्ण देश में प्रशासन की एकरूपता बनी रहती है।

2.  राष्ट्रीय एकता का प्रतीक – एकात्मक व्यवस्था राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। सम्पूर्ण शक्तियाँ केन्द्र में निहित रहती हैं तथा सम्पूर्ण देश में एक संविधान, एक कानून और एक नीति का अनुसरण किया जाता है।

3.  संकटकाल के समय अधिक उपयुक्त – चूँकि इस व्यवस्था में समस्त शक्तियाँ केन्द्र सरकार में निहित होती हैं। अत: संकटकालीन स्थिति में तुरन्त व दृढ़ निर्णय लेने के लिये यह शासन व्यवस्था अधिक उपयुक्त रहती है।

4.  कुशल व दृढ़ शासन – एकात्मक शासन व्यवस्था में दक्षता, क्षमता और कुशलता बहुत अधिक होती है क्योंकि शासन का संचालन और नीतियों का निर्धारण एक ही स्थान पर होता है। केन्द्र सरकार के सबल और सशक्त होने के कारण शासन में दृढ़ता और कुशलता आ जाती है।

5. सरल शासन व्यवस्था – एकात्मक शासन व्यवस्था बहुत सरल होती है इसमें न तो दोहरी शासन व्यवस्था रहती है, न ही दोहरी नागरिकता और न ही परस्पर उत्तरदायित्वों का संघर्ष। शासन की समस्त शक्तियाँ केन्द्र सरकार में निहित रहने के कारण समस्त प्रशासनिक निर्णय आसानी से हो जाते हैं।

6. मितव्ययी शासन – एकात्मक शासन व्यवस्था मितव्ययी होती है क्योंकि इसमें संघात्मक शासन की तरह संघ तथा राज्य की पृथक्-पृथक् दोहरी शासन व्यवस्था नहीं रहती है।

7.  लचीलापन – एकात्मक शासन का सबसे बड़ा गुण उसका लचीलापन है। इसमें संविधान की प्रक्रिया सरल होती है। एकात्मक शासन में साधारण कानून की विधि के समान ही संविधान में संशोधन लाया जा सकता है।

8. संघर्षरहित शासन व्यवस्था-एकात्मक शासन में समस्त शक्तियाँ केन्द्र के अधीन रहती हैं। इसलिए सभी को केन्द्र का निर्णय मानना पड़ता है। अतः एकात्मक शासन में प्रान्तीय एवं स्थानीय इकाइयों में संघर्ष की सम्भावना बहुत कम होती है।

9. सुदृढ़ विदेश नीति – अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में एकात्मक सरकार की स्थिति बहुत मजबूत और स्पष्ट रहती है क्योंकि इसमें एकरूप नीति का अनुसरण किया जाता है तथा अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में शीघ्र निर्णय लिये जा सकते हैं।

एकात्मक शासन के दोष:

  1. लोकतन्त्र विरोधी – एकात्मक शासन व्यवस्था लोकतन्त्र विरोधी मानी जाती है। शासन के अत्यधिक केन्द्रीकरण के कारण यह लोकतन्त्र विरोधी है।
  2. नौकरशाही का शासन – एकात्मक शासन में सम्पूर्ण शक्ति केन्द्रीय शासन में निहित होती है। इसके कारण उसके निरंकुश होने का भय बना रहता है और नौकरशाही का शासन स्थापित हो जाता है।
  3. जनता की उदासीनता – एकात्मक सरकार में जनता की सार्वजनिक कार्यों में रुचि कम हो जाती है और वह राज्य द्वारा किए जाने वाले राजकीय कार्यों के प्रति उदासीन रहने लगती है।
  4. विशाल राज्यों के लिए अनुपयुक्त – एकात्मक शासन व्यवस्था विभिन्नता वाले विशाल राज्यों के लिये उपयुक्त नहीं है। विविधताओं वाले विशाल राज्यों के लिए संघात्मक शासन प्रणाली ही उपयुक्त रहती है।
  5. स्थानीय स्वशासन की उपेक्षा – एकात्मक सरकार में शासन व्यवस्था का समस्त उत्तरदायित्व केन्द्रीय सरकार के ऊपर ही रहता है। उसे उन कार्यों को भी करना पड़ता है जिन्हें क्षेत्रीय और स्थानीय संस्थाएँ आसानी और निपुणता से कर सकती हैं। लेकिन पर्याप्त शक्ति के अभाव में स्थानीय संस्थाओं का समुचित विकास नहीं हो पाता है।
  6. केन्द्रीय सरकार के निरंकुश होने का भय – इस शासन व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार कभी-कभी इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि तानाशाही का रूप धारण कर लेती है।

प्रश्न 2.
संघात्मक शासन से आप क्या समझते हैं? इसके लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संघात्मक शासन – संघात्मक शासन उस प्रणाली को कहा जाता है, जिसमें राज्य की समस्त शक्तियों का विभाजन संघ सरकार और संघ की इकाइयों (राज्यों) के मध्य होता है। दोनों सरकारें सीधे संविधान से ही शक्तियाँ प्राप्त करती हैं। दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतन्त्र रहती हैं। दोनों की सत्ता मौलिक रहती है। दोनों का अस्तित्व संविधान पर निर्भर रहता है। इस प्रकार संघात्मक राज्यों में दोहरी शासन व्यवस्था होती है। भारत, कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, स्विट्जरलैण्ड आदि देशों में संघात्मक शासन व्यवस्था स्थापित है।

संघात्मक शासन के लक्षण:

  1.  लिखित, कठोर एवं सर्वोच्च संविधान – संघात्मक शासन का संविधान लिखित, कठोर एवं सर्वोच्च होता है। संविधान में केन्द्र एवं इकाइयों (राज्यों) के मध्य उनके अधिकारों और शक्तियों का स्पष्ट उल्लेख रहता है। संविधान के प्रावधान समस्त सरकारों पर बाध्यकारी हैं।
    स्वतन्त्र न्यायपालिका – संघात्मक शासन व्यवस्था के लिए स्वतन्त्र न्यायपालिका अनिवार्य है। इसका कार्य संविधान की व्याख्या व
  2. रक्षा करना होता है। सर्वोच्च न्यायालय को केन्द्रीय सरकार या राज्यों की सरकारों द्वारा पारित किसी ऐसे कानून को अवैधानिक घोषित करने का अधिकार है जो संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध हो।
  3. शक्तियों का विभाजन – संघात्मक शासन में केन्द्रीय सरकार एवं स्थानीय सरकारों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया जाता है। राष्ट्रीय महत्व के विषय केन्द्रीय सरकार अथवा संघीय सरकार को, स्थानीय महत्त्व के विषय इकाइयों को प्रदान कर दिये जाते हैं।
  4.  द्वि-सदनात्मक व्यवस्था – संघीय शासन व्यवस्था में केन्द्रीय व्यवस्थापिका द्वि-सदनात्मक होती है जहाँ निम्न सदन सम्पूर्ण संघ की जनता का प्रतिनिधित्व करता है वहीं उच्च सदन संघ की इकाइयों का प्रतिनिधित्व करता है।
  5.  दोहरी नागरिकता – संघात्मक शासन में दोहरी नागरिकता की व्यवस्था होती है। प्रत्येक व्यक्ति संघ सरकार का भी नागरिक होता है,एवं उस राज्य का भी नागरिक होता है जहाँ का वह निवासी होता है। यद्यपि भारत में संघात्मक व्यवस्था है, पर दोहरी नागरिकता का प्रावधान नहीं है। भारतीय संघीय व्यवस्था में इकहरी नागरिकता के सिद्धान्त को ही अपनाया गया है।
  6. सम्प्रभुता का दोहरा प्रयोग-संघात्मक राज्य में दोनों प्रकार की सरकारें अपने-अपने क्षेत्र में स्वायत्त होती हैं। उनकी अपनी सम्प्रभुता होती है एक-दूसरे के कार्य-क्षेत्र में हस्तक्षेप नहीं करतीं।

प्रश्न 3
संघात्मक शासन के गुण-दोषों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संघात्मक शासन के गुण:
1. राष्ट्रीयता, एकता एवं स्थानीय स्वायत्तता – संघात्मक शासन में राष्ट्रीय एकता व स्थानीय स्वायत्तता के दोहरे गुण पाये जाते हैं। इसके संगठन में एकता होती है। छोटे-छोटे राज्य मिलकर अपने आपको एक बड़े राज्य में परिवर्तित कर लेते हैं।

2. केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण का समन्वय – संघात्मक शासन केन्द्रीकरण तथा विकेन्द्रीकरण का समन्वये करता है। इस प्रकार की शासन व्यवस्था में राष्ट्रीय महत्व के विषय केन्द्रीकृत एवं स्थानीय महत्व के विषय विकेन्द्रीकृत कर दिये जाते हैं।

3. प्रशासनिक दक्षता – इस शासन व्यवस्था में शक्ति विभाजन के कारण शक्तियाँ एक स्थान पर केन्द्रित न होकर इकाइयों के मध्य विभाजित हो जाती हैं। इससे केन्द्रीय सरकार का कार्यभार कम हो जाता है और उसकी प्रशासनिक दक्षता और कुशलता में वृद्धि हो जाती है।

4. निर्बल राज्यों को शक्तिशाली बनाने की पद्धति – संघात्मक शासन में अनेक छोटे-छोटे राज्य मिलकर एक शक्तिशाली संगठन का निर्माण करते हैं, जिससे वे स्वयं को सुदृढ़ एवं सुरक्षित हो जाते हैं।

5. विशाल राज्यों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त – संघीय व्यवस्था विशाल राज्यों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त है। जहाँ विभिन्न भाषा, धर्म और संस्कृति के लोग रहते हैं जिनके हितों में विभिन्नताएँ पायी जाती हैं। ऐसे राज्यों में विविधताओं के साथ-साथ राष्ट्रीय एकता स्थापित करनी होती है, जो संघात्मक व्यवस्था में ही सम्भव है।

6. शासन निरंकुश नहीं होता – संघात्मक शासन प्रणाली में केन्द्र तथा राज्यों में शासन की शक्तियाँ विभाजित होने से शासन निरंकुश नहीं हो पाता है।

7.  समय और धन की बचत – शक्ति विभाजन के कारण संघीय व्यवस्था में केन्द्रीय सरकार का कार्यभार कुछ कम हो जाता है परिणामस्वरूप लालफीताशाही की प्रवृत्ति क्षीण हो जाती है जिससे समय की बचत होती है। शासन का संघात्मक रूप आर्थिक दृष्टि से भी लाभकारी होता है।

8. राजनीतिक चेतना – संघीय शासन व्यवस्था अपने नागरिकों को श्रेष्ठ राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान करती है। इसमें स्थानीय स्वशासन की संस्थाओं को अधिक शक्ति प्राप्त होती है। ये संस्थाएँ नागरिकों में राजनीतिक समस्याओं के प्रति रुचि जागृत करती हैं। इससे उनमें राजनीतिक चेतना विकसित होती है।

9. विश्व संघ की ओर कदम – छोटे – छोटे राज्यों को विशाल राज्य के रूप में संगठित करके संघ राज्य के मानवीय दृष्टिकोण को व्यापक तथा उदार बनाता है। इस प्रकार संघ राज्य विश्व संघ निर्माण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

10. अन्तर्राष्टीय क्षेत्र में प्रतिष्ठा – संघात्मक राज्य अनेक इकाइयाँ के मेल से सुदृढ़ और शक्तिशाली बनता है। इसलिए अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में इसका महत्व और प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।

11. लोकतन्त्र के अनुकूल-संघीय व्यवस्था लोकतन्त्र के अनुकूल है। इस व्यवस्था ने लोकतन्त्र को लोकप्रिय बनाने की दिशा में अत्यन्त महत्वपूर्ण कार्य किया है।

संघात्मक शासन के दोष:

1. अकुशल शासन व्यवस्था – संघात्मक शासन का प्रमुख दोष यह है कि इसमें केन्द्र एवं राज्यों में अलग – अलग सरकार होने से शासन की कुशलता कम हो जाती है। इसमें शासन सम्बन्धी निर्णय लेने में समय अधिक लगता है।

2. संघर्ष और विद्रोह की स्थिति उत्पन्न होना – इस प्रकार की शासन व्यवस्था में संघीय और इकाइयों की सरकारों के बीच संघर्ष एवं विद्रोह की सम्भावना सदैव बनी रहती है।

3. कमजोर शासन व्यवस्था – संघात्मक शासन एक दुर्बल व्यवस्था है। इसमें विकेन्द्रीकरण और शक्ति पृथक्करण के कारण सुदृढ़ शासन की स्थापना नहीं हो पाती।

4.  राष्ट्रीय एकता को खतरा – संघात्मक शासन व्यवस्था में केन्द्र और राज्य सरकारों के मध्य केवल विधायी और प्रशासनिक शक्तियों का ही बँटवारा नहीं होता बल्कि वित्तीय साधनों का भी बँटवारा होता है। कई बार किसी विषय या मुद्दे पर तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सदैव इस बात का डर बना रहता है कि कहीं कोई इकाई विद्रोह न कर दें। देश की इकाइयों में प्रान्तीयता की भावनाओं के उग्र हो जाने पर राष्ट्रीय हित एवं एकता के सम्मुख खतरा उत्पन्न हो जाता है।

5.  संकट काल में अनुपयुक्त – संकट के दौरान संघात्मक शासन व्यवस्था अनुपयुक्त मानी जाती है। युद्ध अथवा अन्य किसी संकट के समय तुरन्त निर्णय लेने होते हैं, जोकि संघात्मक शासन में सुनिश्चित नहीं हो पाता।

6.  अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में दुर्बलता – संघात्मक शासन में राज्य अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में कमजोर होता है। विदेशी सरकारों से किए गए सन्धियों एवं समझौतों को यदि इकाइयाँ स्वीकार न करें तो निर्णय में देरी होती है। इससे विदेशों में राज्य का सम्मान कम हो जाता है।

7. इकाइयों द्वारा अलग होने की आशंका – संघात्मक शासन व्यवस्था में संघ-राज्य के सुदृढ़ एवं कुशल नेतृत्व के अभाव में संघ की इकाइयों के अलग होने की सम्भावना बनी रहती है।

8.  न्यायपालिका की रूढ़िवादिता – संघात्मक शासन में न्यायपालिका संविधान की संरक्षक होती है। न्यायपालिका को व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों को गैर-संवैधानिक घोषित करने का अधिकार होता है। कभी – कभी न्यायपालिका की यह रूढ़िवादिता देश के विकास एवं प्रगतिशील परिवर्तन में बाधक होती है।

प्रश्न 4.
संसदात्मक शासन व्यवस्था क्या है? इसके प्रमुख लक्षणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन व्यवस्था का अर्थ एवं परिभाषा:
संसदात्मक शासन वह शासन व्यवस्था है जिसमें कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है तथा कार्यपालिका का निर्माण भी व्यवस्थापिका में से किया जाता है। इस शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। कार्यपालिका, व्यवस्थापिका में विश्वास बने रहने तक ही अपने पद पर बनी रहती है।

संसदात्मक शासन व्यवस्था के लक्षण:
(1) दोहरी कार्यपालिका का होना – संसदात्मक शासन प्रणाली में दोहरी कार्यपालिका कार्य करती है। इस व्यवस्था में राज्याध्यक्ष राज्य का संवैधानिक प्रधान होता है। सिद्धान्ततः शासन की सभी शक्तियाँ उसी राज्याध्यक्ष (राजा या राष्ट्रपति) में निहित होती हैं तथा शासन के समस्त कार्य उसी के नाम से किये जाते हैं परन्तु व्यवहार में वह केवल नाममात्र का ही राज्याध्यक्ष होता है। वह राज्य का प्रधान होता है, शासन का नहीं संसदात्मक शासन व्यवस्था के शासन का प्रधान प्रधानमन्त्री होता है वही शासन सम्बन्धी कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है।

(2) कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध – संसदीय शासन प्रणाली में कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध पाया जाता है। वास्तविक कार्यपालिका अर्थात् मन्त्रिपरिषद् व्यवस्थापिका में से नियुक्त की जाती है तथा अपने कार्यों और नीतियों के लिए व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है।

(3) सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धान्त – संसदात्मक शासन व्यवस्था सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धान्त पर कार्य करती है। इसका आशय यह है कि किसी मन्त्री के कार्य के लिए वह अकेला ही उत्तरदायी नहीं होता बल्कि मन्त्रिमण्डल सामूहिक रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होता है।

(4) प्रधानमन्त्री का नेतृत्व – संसदात्मक शासन व्यवस्था में प्रधानमन्त्री शासन व्यवस्था का नेता होता है, वही सरकार और मन्त्रिपरिषद् का नेतृत्व करता है। समस्त मन्त्री उसी के नियन्त्रण में रहते हैं और उसी की इच्छा पर्यन्त वे मन्त्री पद पर रह सकते हैं। प्रधानमन्त्री के त्यागपत्र के साथ सम्पूर्ण मन्त्रिमण्डल अपदस्थ हो जाता है।

(5) गोपीयता का होना – संसदात्मक शासन व्यवस्था में मन्त्रिमण्डल की समस्त कार्यवाही गुप्त रखी जाती है। समस्त मन्त्री अपना पद ग्रहण करते समय संविधान के प्रति निष्ठा बनाये रखने एवं पद व गोपनीयता की शपथ लेते हैं।

(6) राजनीतिक एकरूपता का होना – संसदात्मक शासन व्यवस्था में राजनैतिक विचारों की एकता के कारण मन्त्रिमण्डल की नीतियों, कार्यक्रमों और सिद्धान्तों में एकता रहती है। कभी-कभी किसी एक राजनीतिक दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं होने की स्थिति में मिली-जुली सरकार (संयुक्त मन्त्रिमण्डल) का गठन किया जाता है जो कि न्यूनतम सामान्य कार्यक्रम के आधार पर कार्य करता है।

प्रश्न 5.
संसदात्मक शासन के प्रमुख गुणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर;
संसदात्मक शासन के प्रमुख गुण संसदात्मक शासन के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
(1) व्यवस्थापिका एवं जनता के प्रति उत्तरदायी शासन – संसदीय शासन व्यवस्था ही एकमात्र ऐसी शासन प्रणाली है जिसमें कार्यपालिका पूर्ण रूप से व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है।

(2) व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में पारस्परिक सहयोग होना-इस प्रकार की शासन व्यवस्था का यह प्रमुख गुण है कि इसमें व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में किसी प्रकार का संघर्ष नहीं होता, क्योंकि कार्यपालिका संसद में से ही बनती है और उसी के प्रति उत्तरदायी होती है।

(3) शासन की निरंकुशता पर रोक – संसदीय शासन व्यवस्था में सरकार कभी भी निरंकुश नहीं हो पाती। संसद में और संसद के बाहर विरोधी दल सदैव सरकार के कार्यों पर नजर रखते हैं तथा संसद में काम रोको प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव तथा कटौती प्रस्ताव आदि द्वारा मन्त्रिमण्डल पर भी नियन्त्रण रखते हैं।

(4) विरोधी दल का महत्त्व – संसदात्मक शासन में विरोधी दल का बहुत अधिक महत्व होता है एक ओर तो विरोधी दल सरकार की नीतियों और कमियों की आलोचना करके सरकार को सजग और सचेत रखता है और दूसरी ओर सरकार गिरने पर शासन सम्भालने के लिये सदैव तैयार रहता है।

(5) योग्य एवं अनुभवी व्यक्तियों का शासन – संसदीय शासन व्यवस्था योग्य व अनुभवी व्यक्तियों का शासन होता है। परिश्रमी, ईमानदार एवं अधिक लोकप्रिय व्यक्ति ही शासन सत्ता एक पहुँच पाते हैं। संसदीय व्यवस्था में वही व्यक्ति उच्च प्रशासनिक पदों पर पहुँच पाता है जो लोकप्रिय हो तथा प्रशिक्षण प्राप्त कर चुका है।

(6) समय व आवश्यकतानुसार परिवर्तनशीलता सम्भव – संसदात्मक शासन व्यवस्था का एक प्रमुख गुण उसका लचीलापन एवं समय तथा आवश्यकतानुसार उसकी परिवर्तनशीलता है। बैजहॉट नामक राजनीतिक विचारक के अनुसार, संकटकालीन स्थिति में सरकार अपना एक ऐसा शासक चुन सकती है जो ऐसे नाजुक अवसर पर राष्ट्र का नेतृत्व कुशलता से कर सके।

उदाहरण के लिए; इंग्लैण्ड में द्वितीय महायुद्ध के समय चेम्बरलेन के स्थान पर चर्चिल को प्रधानमन्त्री बनाया गया था। भारत में प्रधानमन्त्री पद से वी. पी. सिंह के त्याग-पत्र देने के पश्चात् चन्द्रशेखर की सरकार बनना उदाहरण है।

(7) राज्याध्यक्ष निष्पक्ष सलाहकार के रूप में – इस शासन प्रणाली में राज्याध्यक्ष (राजा या राष्ट्रपति) राष्ट्र की एकता का प्रतीक होता है तथा राष्ट्रीय जीवन को स्थायित्व प्रदान करता है। राज्याध्यक्ष चुने जाने के पश्चात् उसका किसी भी राजनीतिक दल से सम्बन्ध नहीं होता है। यदि दल के आधार पर वह राष्ट्रपति चुना भी जाता है तो उससे यह अपेक्षा की जाती है कि वह दलगत राजनीति से हटकर निष्पक्ष एवं तटस्थ रहकर राष्ट्रहित में सोचेगा।

(8) राजनीतिक चेतना व शिक्षा – इस शासन प्रणाली में जनता को राजनीतिक शिक्षा प्राप्त करने का उपयुक्त अवसर मिलता है। सरकार के कार्यों और विरोधी दल की भूमिका से जनता को राज्य व्यवस्था के बारे में निरन्तर जानकारी और शिक्षा मिलती रहती है।

प्रश्न 6.
संसदात्मक शासन के दोषों का वर्णन कीजिए अथवा संसदीय शासन का आलोचनात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर:
संसदात्मक शासन के दोष / आलोचना संसदात्मक शासन / संसदीय शासन के प्रमुख दोष / आलोचना निम्नलिखित है
(1) शक्ति-पृथक्करण सिद्धान्त के प्रतिकूल शक्ति – पृथक्करण सिद्धान्त के अनुसार शासन के तीनों अंगोंव्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का पृथक्करण कर दिया जाता है ताकि तीनों अपने – अपने क्षेत्र में स्वतन्त्रता और निष्पक्षता से कार्य करें।

चूंकि इस शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित होते हैं। ऐसी दशा में व्यवस्था आसानी से स्वेच्छाचारी बन सकती है और नागरिकों की स्वतन्त्रता के लिए संकट उत्पन्न हो सकता है।

(2) निरंकुशता का उदय – इस शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में घनिष्ठ सम्बन्ध होने से दोहरे खतरे की सम्भावना सदैव बनी रहती है।

(3) कमजोर शासन – इस प्रकार की शासन व्यवस्था कमजोर होती है। शासन का कार्यकाल व्यवस्थापिका की इच्छा पर निर्भर होने से दोहरे खतरे की सम्भावना सदैव बनी रहती है। अनिश्चितता के वातावरण में मन्त्रिपरिषद् सुदृढ़ और दीर्घकालीन योजनाएँ बनाकर उसे क्रियान्वित नहीं कर सकती। मन्त्रिपरिषद् की कमजोरी का लाभ उठाकर व्यवस्थापिका शासन कार्यों में अनुचित हस्तक्षेप करने लगती है।

(4) राजनीतिक दलबन्दी में तीव्रता – राजनीतिक दल राष्ट्रहित को कम और दलहित को अधिक महत्व देते हैं, जिससे राष्ट्रीय हितों को हानि पहुँचती है। सत्तारूढ़ दल का उद्देश्य शासन सत्ता पर अपना अधिकार बनाए रखना होता है। और विरोधी दलों का उद्देश्य सत्तारूढ़ दल के प्रत्येक कार्य की आलोचना कर शासन सत्ता को प्राप्त करना होता है। इससे हमेशा संघर्ष और मतभेद का वातावरण बना रहता है।

(5) अस्थिर शासन व्यवस्था – संसदात्मक शासन व्यवस्था में यह एक प्रमुख दोष है। कई बार किसी एक राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिलता है तो मिली-जुली सरकार का गठन होता है। ऐसी सरकार में दलों के बीच मतभेद उत्पन्न होने पर सरकार गिरने की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

(6) अक्षम व्यक्तियों का शासन – इस प्रकार की शासन व्यवस्था में मन्त्रियों का चयन उनकी योग्यता तथा प्रशासनिक अनुभव के आधार पर न होकर राजनीतिक दल में उनकी लोकप्रियता और राजनीतिक प्रभाव के आधार पर किया जाता है। मन्त्रिपरिषद् में कई अशिक्षित, कम शिक्षित एवं अनुभवहीन व्यक्तियों को सम्मिलित किया जाता है जो देश-हित में नहीं होता है।

(7) संकटकाल या युद्धकालीन स्थिति के लिए अनुपयुक्त शासन व्यवस्था – इस प्रकार की शासन व्यवस्था युद्धकाल या संकटकाल में अनुपयुक्त सिद्ध होती है क्योंकि ऐसे समय में तुरन्त निर्णय लेने की आवश्यकता होती है, जबकि इस शासन व्यवस्था में निर्णय लेने में बहुत अधिक समय लगता है।

(8) प्रशासनिक कार्य की उपेक्षा – इस प्रकार की शासन व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् के सदस्य मतदाताओं के निरन्तर सम्पर्क में रहते हैं। फलस्वरूप वे शासन सम्बन्धी कार्यों पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं।

(9) बहुमत दल की तानाशाही का भय होना – इस प्रकार के शासन में बहुमत के कारण सत्तारूढ़ दल अपनी मनमानी कर जनता के हितों की उपेक्षा कर सकता है जो एक नुकसानदेह प्रवृत्ति है।

प्रश्न 7.
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था अध्यक्षात्मक शासन में कार्यपालिका का प्रधान (राष्ट्रपति) वास्तविक शासक होता है, नाममात्र का नहीं। वह जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि होता है। उसका कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित रहता है।

इस शासन व्यवस्था में अध्यक्ष के कार्यों में सहायता देने के लिए एक मन्त्रिपरिषद् होती है जिसकी नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। इनको सचिव कहा जाता है। ये राष्ट्रपति की इच्छा पर्यन्त तक ही अपने पद पर बने रहते हैं तथा अपने कार्यों के लिए राष्ट्रपति के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था के लक्षण:
(1) शक्तियों का पृथक्करण – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था शक्ति-पृथक्करण के सिद्धान्त पर आधारित होती है। इसमें कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका तीनों को अलग – अलग क्षेत्र होता है। कोई किसी के कार्य में हस्तक्षेप नहीं करता है। सभी स्वतन्त्र होकर कार्य करते हैं।

(2) निश्चित कार्यकाल – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका को एक निश्चित अवधि के लिए चुना जाता है और महाभियोग के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से उसे उसके कार्यकाल को निलंबित नहीं किया जा सकता।

(3) अवरोध और सन्तुलन का सिद्धान्त – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में यदि शक्ति पृथक्करण के सिद्धान्त को अपनाया जाता है तो प्रशासन में अवरोध उत्पन्न हो सकता है, क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र में कार्य करने की स्वतन्त्रता के साथ-साथ सहयोग की भी आवश्यकता पड़ती है। इसलिये अवरोध तथा सन्तुलन के सिद्धान्त को अपनाया जाता है, जिससे एक अंग का दूसरे अंग के साथ सम्बन्ध और अंकुश बना रह सके।

(4) वास्तविक कार्यपालिका – अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली में कार्यपालिका एकल होती है, राष्ट्रपति ही वास्तविक शासक होता है। इसमें ही राज्याध्यक्ष एवं शासनाध्यक्ष दोनों की शक्तियाँ निहित होती हैं। वह राज्य व शासन दोनों का प्रधान होता है।

(5) राजनीतिक एकरूपता आवश्यक नहीं – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में राजनीतिक एकरूपता आवश्यक नहीं है, क्योंकि इस व्यवस्था में मन्त्रिपरिषद् जैसी कोई चीज नहीं होती और राष्ट्रपति अपने सचिवों को चुनने के हटाने हेतु पूर्ण रूप से स्वतन्त्र होता है।

प्रश्न 8.
अध्यक्षात्मक शासन के गुणों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था के प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं
अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था के गुण:
(1) शासन में स्थायित्व – अध्यक्षात्मक शासन का सबसे बड़ा गुण यह है कि इसमें सरकार स्थायी रहती है। इसमें एक निश्चित समय के लिये स्थायी कार्यपालिका की स्थापना की जाती है। समय निश्चित होने के कारण राष्ट्रपति और सचिव मिलकर शासन और व्यवस्था के सम्बन्ध में दीर्घकालीन योजनायें बना सकते हैं।

(2) प्रशासन में एकता – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका की समस्त शक्तियाँ राष्ट्रपति में निहित रहती हैं। सभी सचिवों को राष्ट्रपति द्वारा निर्मित और निर्देशित नीतियों का पालन करना पड़ता है।

(3) शासन में कुशलता – अध्यक्षात्मक शासन में राष्ट्रपति एवं उसके सचिवों को न तो विधायी कार्य में भाग लेना पड़ता है और न ही उन्हें व्यवस्थापिका को प्रसन्न रखने की चिन्ता रहती है। राष्ट्रपति विभिन्न प्रशासनिक विभागों में ऐसे व्यक्तियों को सचिव (मन्त्री) नियुक्त करता है जो अपने-अपने क्षेत्र में विशेषज्ञ होते हैं।

(4) दलबन्दी के दोषों से मुक्त – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में बहुत कम राजनीति दल होते हैं इसलिए उनमें दलगत प्रवृत्ति पनपने की सम्भावना भी बहुत कम होती है। दलगत भावना और दृष्टिकोण राष्ट्रपति के चुनाव के समय ही प्रकट होते हैं। राष्ट्रपति को निश्चित अवधि से पूर्व हटाया नहीं जा सकता इसलिए चुनावों के बाद राजनीतिक दलों की गतिविधियाँ धीमी पड़ जाती हैं। इसके परिणामस्वरूप दलगत राजनीति से उत्पन्न दोष इस व्यवस्था में अधिक महत्व नहीं रखते हैं।

(5) संकटकाल में उपयुक्त – अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली संकटकालीन स्थिति में अत्यधिक उपयुक्त रहती है। क्योंकि इसमें निर्णय तुरन्त लिये जाते हैं और उन्हें दृढ़ता एवं कठोरता से लागू किया जा सकता है।

(6) विभिन्नता वाले राज्यों के लिए उपयुक्त – अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का यह गुण है कि यह धर्म, भाषा, सम्प्रदाय तथा संस्कृति सम्बन्धी विभिन्नताओं वाले राज्यों के लिए उपयुक्त रहती है क्योंकि एक ओर तो यह राज्यों के हितों और स्वार्थों की रक्षा करती है और दूसरी ओर राष्ट्रीय नीतियों में एकता और स्थायित्व बनाये रखती है।

(7) नागरिक स्वतन्त्रता की रक्षा – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में नागरिकों की स्वतन्त्रता एवं उनके अधिकार सुरक्षित होते हैं, इसमें समस्त शक्तियाँ सरकार के सभी अंगों में बँटी रहती हैं। इस व्यवस्था में शक्ति पृथक्करण सिद्धान्त के साथ-साथ अवरोध एवं सन्तुलन के सिद्धान्त को भी अपनाया जाता है।

(8) व्यवस्थापिका की स्वतन्त्रता – इस प्रणाली में व्यवस्थापिका अधिक स्वन्त्रता से कार्य करती है। अत: यह अधिक निष्पक्षता एवं स्वतन्त्रता से कानून निर्माण का कार्य कर सकती है। इन गुणों के कारण ही संयुक्त राज्य अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली को अपनाया गया है।

प्रश्न 9.
अध्यक्षात्मक शासन के दोषों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
उत्तर:
अध्यक्षात्मक शासन के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं
(1) अनुत्तरदायी और निरंकुश शासन – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में राष्ट्रपति कार्यपालिका का वास्तविक प्रमुख होता है। वह अपने कार्यों के लिये किसी के प्रति उत्तरदायी भी नहीं होता एवं दूसरी ओर वह निरंकुश भी रहता है, क्योंकि उसे आसानी से पदच्युत नहीं किया जा सकता। नियन्त्रण और उत्तरदायित्व के अभाव में कभी – कभी महत्वाकांक्षी राष्ट्रपति अपनी शक्तियों का मनमाने ढंग से उपयोग करके राष्ट्रहित को नुकसान पहुँचा सकता है।

(2) लचीलेपन का अभाव – अध्यक्षात्मक शासन कठोर होता है। इसमें समय के अनुसार लचीलेपन का अभाव होता है। इस व्यवस्था में संविधान प्रायः लिखित एवं कठोर होता है जिसमें आवश्यकतानुसार आसानी से परिवर्तन नहीं किया जा सकता। दूसरे, यदि राष्ट्रपति अयोग्य या अकुशल सिद्ध होता है तो उसे समय से पूर्व हटाना सम्भव भी नहीं होता। उसे जनता को मजबूर होकर स्वीकार करना ही पड़ता है।

(3) शासन में गतिरोध की अधिक आशंका – इस प्रकार की शासन व्यवस्था में कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के बीच गतिरोध उस समय उत्पन्न होता है जब राष्ट्रपति एक दल का होता है और व्यवस्थापिका में दूसरे दल का बहुमत होता है।

(4) उत्तरदायित्व की अनिश्चितता – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में उत्तरदायित्व की अनिश्चितता का डर बना रहता है। चूंकि इस व्यवस्था में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका एवं न्यायपालिका तीनों ही अपने – अपने क्षेत्र में स्वतन्त्र रहते हैं। इसलिए इनमें से किसी एक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

(5) विदेश नीति में अनिश्चितता – इस प्रकार की शासन व्यवस्था का एक अन्य दोष यह भी है कि इसमें एक सशक्त विदेश नीति नहीं बन पाती है क्योंकि राष्ट्रपति को वैदेशिक सम्बन्धों का संचालन एवं उन्हें अन्तिम रूप देने में व्यवस्थापिका की स्वीकृति पर निर्भर रहना पड़ता है।

(6) प्रशासकीय कार्यकुशलता के लिए हानिकारक – इस प्रकार की शासन व्यवस्था प्रशासकीय कार्यकुशलता के लिये हानिकारक है क्योंकि इसमें कार्यपालिका और व्यवस्थापिका के बीच सामंजस्य एवं सहयोग का अभाव रहता है।

(7) सावयवी सिद्धान्त के विपरीत – प्रशासन में मानव शरीर के समान ही एकता और अंगों में पारस्परिक निर्भरता होती है, परन्तु अध्यक्षात्मक व्यवस्था में शासन के तीनों अंग पृथक् एवं स्वतन्त्र होने से उनमें आपसी सम्बन्ध और सहयोग का अभाव पाया जाता है। इससे शासन की एकता समाप्त हो जाती है। अत: यह शासन व्यवस्था सावयवी सिद्धान्त के विपरीत है।

(8) जनता में राजनीतिक जागरूकता का अभाव – अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका में पारस्परिक सम्बन्ध और सहयोग बहुत कम रहता है, जबकि संसदीय व्यवस्था में मन्त्रीगण व्यवस्थापिका के अन्तर्गत आते हैं, उसकी बैठकों में भाग लेते हैं, सदस्यों के प्रश्नों का उत्तर देते हैं एवं विभिन्न विषयों पर वाद – विवाद होता है। इस सबकी जानकारी समाचार पत्रों एवं अन्य माध्यमों से जनता को मिलती रहती है। इससे जनता में जागरूकता आती है। लेकिन अध्यक्षात्मक व्यवस्था में इसका अभाव रहता है।

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