RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः

पाठ्यपुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोतराणि

प्रश्न 1.
किं नाम छन्दः? (छन्द किसे कहा जाता है?)
उत्तर:
निश्चितवर्णान् मात्राः वा पादं मत्वा रचितं वाक्यं वाक्यसमूहं वा छन्दः कथ्यते। (निश्चित वर्गों या मात्राओं को पाद मानकर रचे गये वाक्य या वाक्य-समूह को छन्द कहा जाता है।)

प्रश्न 2.
कतिविधाः मात्राः? (मात्रा कितने प्रकार की होती हैं?)
उत्तर:
उच्चारणे आवश्यकः (निर्धारितः) समय एव मात्रा। ह्रस्व स्वरे एकमात्रा, दीर्घस्वरे द्वे मात्रे, प्लुतस्वरे तिस्रः मात्राः भवन्ति। अतः मात्राः तिस्रः विधाः सन्ति। (उच्चारण में आवश्यक (निर्धारित) समय ही मात्रा होती है। ह्रस्व स्वर में एक मात्रा, दीर्घ स्वर में दो मात्राएँ तथा प्लुत स्वर में तीन मात्राएँ होती हैं। अत: मात्राएँ तीन प्रकार की होती हैं।)

प्रश्न 3.
छन्दस्सु लघुगुरुव्यवस्था कथं भवति? (छन्दों में लघु-गुरु व्यवस्था किस प्रकार होती है?)
उत्तर:
लघुगुरुव्यवस्थाः-छन्दसां प्रयोगः मूलतः स्वरवर्णाधारितः अस्ति। छन्दसां दृष्ट्या वर्णाः द्विप्रकारकाः

  • लघुः,
  • गुरुः

सामान्यतः ह्रस्वः स्वरः लघुः भवति। अस्यकृते ‘।’ इति चिह्न निर्धारितम्। ह्रस्व-स्वराः पञ्च सन्तिः अ, इ, उ, ऋ, लु। दीर्घस्वरः गुरुः भवति। अस्य कृते ‘ऽ’ इति चिह्न निर्धारितम्। दीर्घ-स्वराः अष्ट्र सन्ति-आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। लघुगुरुव्यवस्थायां केचन विशेषनियमाः एवं सन्ति

1. अनुस्वारयुक्तः वर्ण: गुरुः भवति।
2. विसर्गयुक्त: वर्ण: गुरुः भवति।
3. संयुक्त वर्णात् पूर्वः वर्णः गुरुः भवति।
4. चरणस्य अन्तिमः वर्णः यदि लघु अस्ति तर्हि आवश्यकतानुसार गुरुः स्वीकर्तुं शक्यते।।

(छन्दों का प्रयोग मूल रूप से स्वर वर्गों पर आधारित होता है। छन्दों की दृष्टि से वर्ण दो प्रकार के हैं-1. लघु, 2. गुरु। सामान्यतः ह्रस्व स्वर लघु होता है। इसके लिए ‘।’ चिह्न निर्धारित है। हृस्व पाँच हैं-अ, इ, उ, ऋ, लु। दीर्घस्वर गुरु होता है। इसके लिए (5) चिह्न निर्धारित है। दीर्घ स्वर आठ हैं- आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ। लघु-गुरु व्यवस्था में कुछ विशेष नियम इस प्रकार हैं

1. अनुस्वारयुक्त वर्ण गुरु होता है।
2. विसर्गयुक्त वर्ण गुरु होता है।
3. संयुक्त वर्ण से पूर्व का वर्ण गुरु होता है।
4. चरण का अन्तिम वर्ण यदि लघु होता है तो आवश्यकतानुसार गुरु स्वीकार किया जा सकता है।)
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 1

प्रश्न 4.
छन्दसा कति मुख्यभेदाः? (छन्दों के मुख्य भेद कितने हैं?)
उत्तर:
सर्वप्रथमं छन्दसां भेदद्वयम्-

  • लौकिकच्छन्दः
  • वैदिकच्छन्दः।

एषु छन्दस्सु अपि भेदाः सन्ति, ते एवं सन्ति

वार्णिकच्छन्दः-यत्र वर्णानां गणनाऽऽधारेण छन्दसां निर्धारणं भवति तत्र वार्णिकच्छन्द भवति। (जहाँ वर्षों की गणना के आधार पर छन्द का निर्धारण होता है वहाँ वार्णिक छन्द होता है।)

मात्रिकच्छन्दः-यत्र मात्राणां गणनाऽऽधारेण छन्दसां निधारणं भवति तत्र मात्रिकच्छन्दः भवति। (जहाँ मात्राओं की गणना के आधार पर छन्द का निर्धारण होता है वहाँ मात्रिक छन्द होता है।)

प्रश्न 5.
निम्नलिखितच्छन्दसा लक्षणोदाहरणानि लेखनीयानि(निम्नलिखित छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण लिखिए-)
(क) अनुष्टुप,
(ख) वंशस्थम्
(ग) आर्या
(घ) शार्दूलविक्रीडितम्।
उत्तर:
(क) अनुष्टुप् छन्द-अनुष्टुप छन्दसि प्रत्येकचरणे अष्ट अक्षराणि (वर्णाः) भवन्ति। अतः चतुषु चरणेषु आहत्य (8×4=32) द्वात्रिशंतु वर्णाः भवन्ति। (अनुष्टुप् छन्द में प्रत्येक चरण में आठ अक्षर (वर्ण) होते हैं। अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (8×4=32) बत्तीस वर्ण होते हैं।)

लक्षणम्-
श्लोके षष्ठं गुरुज्ञेयं, सर्वत्र लघुपंचमम्।।
द्विचतुष्पादयोह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः।।

(श्लोक अर्थात् अनुष्टुप् छन्द के प्रत्येक चरण में छठा अक्षर (वर्ण) गुरु तथा पाँचवाँ अक्षर (वर्ण) लघु होता है। दूसरे और चौथे पाद में सातवाँ अक्षर (वर्ण) लघु होता है। पहले और तीसरे पाद में सातवाँ अक्षर (वर्ण) गुरु होता है।)

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 2

(ख) वंशस्थम् छन्दः-द्वादशवर्णात्मकं समवृत्तमिदम्। वंशस्थच्छन्दसि प्रत्येक चरणे द्वादश वर्णाः भवन्ति। (वंशस्थ छन्द बारह वर्गों का समवृत्त छन्द है। वंशस्थ छन्द में प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते हैं। अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (12 x 4 = 48) अड़तालीस वर्ण होते हैं।)

लक्षणम्- ‘जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ”

अत्र प्रत्येक चरणे जगण (IST), तगण (ऽऽ।), जगण (।।), रगण (ऽ।ऽ) च भवन्ति। (इसके प्रत्येक चरण में जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ1), जगण (।ऽ1) और रगण (ऽ।ऽ) होते हैं।
उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 3

(ग) आर्या छन्दः-इदं मात्रिकच्छन्दः अस्ति। अतः एतत् आर्या जातिः अपि कथ्यते। अत्र मात्राणां गणनाऽऽधारेण छन्दः भवति। अत्र चत्वारि चरणानि भवन्ति। (यह मात्रिक छन्द है। अतः यह आर्या जाति भी कहा जाता है। इसमें मात्राओं की गणना के आधार पर छन्द होता है। इसमें चार चरण होते हैं।)।

लक्षणम्-
यस्याः पादे प्रथमे द्वादश मात्रास्तथा तृतीयेऽपि।
अष्टादश द्वितीये चतुर्थके पञ्चदश साऽऽर्या।।

अत्र प्रथमे चरणे तृतीये चरणे च द्वादश-द्वादश मात्राः भवन्ति। द्वितीय चरणे अष्टादश मात्रा:। अन्तिमे चतुर्थे चरणे पञ्चदश मात्राः भवन्ति। (इसके पहले और तीसरे चरण में बारह-बारह मात्राएँ होती हैं। दूसरे चरण में अठारह मात्राएँ होती हैं। अन्तिम चौथे चरण में पन्द्रह मात्राएँ होती हैं।)

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 4

(घ) शार्दूलविक्रीडितम् छन्दः-नवदश (एकोनविंशतिः) वर्णात्मकं समवृत्तम् इदम्। अत्र प्रत्येक चरणे नवदश वर्णाः भवन्ति। अतः चतुषु चरणेषु आहत्य (19×4=76) षट् सप्ततिः वर्णाः भवन्ति। (यह उन्नीस वर्षों का समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में उन्नीस वर्ण होते हैं। अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर छिहत्तर वर्ण होते हैं।)

लक्षणम्- ‘सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगा: शार्दूलविक्रीडितम्’

अत्र प्रत्येक चरणे मगण (ऽऽऽ), सगण (।।ऽ), जगण (IST), सगण (।।ऽ), तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ।), एकः गुरुश्च भवन्ति। अत्र द्वादशे सप्तमे च वर्णे यतिः भवति। (इसमें प्रत्येक चरण में मगण (ऽऽऽ), सगण (।।ऽ), जगण (।ऽ।), सगण (।।ऽ), तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ।) और एक गुरु होते हैं। इसमें बारहवें और सातवें वर्ण पर यति होती है।)

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 5

प्रश्न 6.
अधोलिखितश्लोकांशेषु लघुगुरूणां सङ्गतीकृत्य छन्दसां नाम लिखत(निम्नलिखित श्लोकांशों में लघु-गुरु की संगति करते हुए छन्दों का नाम लिखिए-)
(क) अनाघ्रातं पुष्पं, किसलयमलूनं कररुहै,
रनाविद्धं रत्नं, मधु नवमनास्वादितरसम्।

(ख) वागर्थाविव सम्पृक्तौ, वागर्थप्रतिपत्तये।

(ग) येषां न विद्या न तपो न दानम्,
ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।

(घ) या कुन्देन्दुतुषारहारधवला, या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणावरदण्डमण्डितकरा, या श्वेतपद्मासना।

(ङ) वयमिह परितुष्टाः वल्कलेनापि कूलैः,
सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः।
उत्तर:
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 6

अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तरराणि

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः (एकपदेन उत्तरत)
1. संयुक्तवर्णस्य पूर्ववर्ती वर्णः कीदृशः भवति? (संयुक्त वर्ण का पूर्ववर्ती वर्ण कैसा होता है?)
2. तगणस्य स्वरूपं किमस्ति?(तगण का स्वरूप क्या है?)
3. कस्मिन् ग्रन्थे वैदिकलौकिकानां छन्दसां च विवेचनात्मक विवरणं प्राप्यते? (किस ग्रन्थ में लौकिक और वैदिक छन्दों का विवेचनात्मक विवरण प्राप्त होता है?)
4. छन्दशास्त्रस्य रचयितुः किं नाम अस्ति? (छन्दशास्त्र के रचयिता का क्या नाम है?)
5. वर्णानाम् उच्चारणकालः किम् उच्यते? (वर्षों का उच्चारण काल क्या कहा जाता है?)
6. वर्णच्छन्दसः अपर नाम किम् अस्ति? (वर्ण छन्द का दूसरा नाम क्या है?)
7. एकमात्राकालः यस्य उच्चारणकालः तस्य का संज्ञा भवति? (एक मात्रा काल जिसका उच्चारण काल है, उसकी क्या संज्ञा होती है?)
8. अनुष्टुप् छन्दसि कति अक्षराः भवन्ति? (अनुष्टुप् छन्द में कितने अक्षर होते हैं?)
9. सर्वत्र लघु पञ्चमं वर्णं कस्मिन् छन्दसि भवति? (चारों चरणों में पाँचवाँ वर्ण लघु किस छन्द में होता है?)
10. कुत्र षष्ठं गुरु ज्ञेयम्? (किसमें छठा वर्ण गुरु होता है?)
11. वंशस्थ-छन्दसि कति वर्णाः भवन्ति? (वंशस्थ छन्द में कितने वर्ण होते हैं?)
12. ‘भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैः’ अस्यां पंक्तौ के गणाः सन्ति? (भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमैः’ इस पंक्ति में कौन-कौन से गण हैं?)
13. ‘जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ’ इति लक्षणं कस्य छन्दसः अस्ति? (‘जतौ तु वंशस्थमुद्रीरितं जरौ’ यह लक्षण किस छन्द का है?)
14. चतुर्दशवर्णोपेतम् समवृत्तम् किम् अस्ति (चौदह वर्णों वाला समवृत्त कौन-सा है?)
15. एकोनविंशवर्णोपेतम् समवृत्तम् किम् अस्ति? (उन्नीस वर्षों वाला समवृत्त कौन-सा है?)
उत्तर:
1. गुरुः 2. अन्तलघुः 3. छन्दःशास्त्रे 4. आचार्य पिङ्गलः 5. मात्रा 6. वार्णिकछन्दः 7. ह्रस्वः 8. अष्टः 9. अनुष्टुप्छन्दसि 10.श्लोके 11.द्वादशवर्णा: 12. जगण, तगण, जगण, रगण 13. वंशस्थस्य 14. वसन्ततिलका
15. शार्दूलविक्रीडितम्।।

लघूत्तरात्मक प्रश्नाः पूर्णवाक्येन उत्तरत)

प्रश्नः 1.
गणः कः कथ्यते? (गण किसे कहा जाता है?)
उत्तर:
त्रयाणां वर्णानां समूहः गणः कथ्यते। (तीन वर्षों के समूह को गण कहा जाता है।)

प्रश्नः 2.
गणाः कति भवन्ति? (गण कितने होते हैं?
उत्तर:
गणाः अष्टौ भवन्ति। (गण आठ होते हैं।)।

प्रश्न: 3.
मगणस्य स्वरूपं लिख्यताम्। (मगण का स्वरूप लिखिए।)
उत्तर:
मगणस्य स्वरूपं मातारा (ऽऽऽ) अस्ति। (मगण का स्वरूप मातारा (ऽऽऽ) है।)

प्रश्नः 4.
छन्दःशास्त्रे ‘पाद’ शब्दस्य कः अर्थः अस्ति? (छन्दशास्त्र में ‘पाद’ शब्द का अर्थ क्या है?)
उत्तर:
छन्दःशास्त्रे पादशब्दस्य अर्थः छन्दसः चतुथो भागः अर्थात् ‘चरणम्’ इति अस्ति। (छन्दशास्त्र में पाद शब्द का अर्थ है-छन्द का चौथा भाग अर्थात् ‘चरण’।)

प्रश्नः 5.
कः गणः त्रिगुरुः भवति? (कौन-सा गण त्रिगुरु होता है?)
उत्तर:
मगणः त्रिगुरुः भवति। (मगण त्रिगुरु होता है।)

प्रश्नः 6.
छन्दःशास्त्रे ‘यतिः’ शब्दस्य कः अर्थ अस्ति? (छन्दशास्त्र में ‘यति’ शब्द का क्या अर्थ है?)
उत्तर:
छन्दःशास्त्रे यति: शब्दस्य अर्थ: ‘विराम:’ इति भवति। (छन्दशास्त्र में यति शब्द का अर्थ विराम होता है।)

प्रश्नः 7.
‘यमाताराजभानसलगाः’ इति सूत्रं कस्य स्वरूपं परिज्ञातुं वर्तते? (‘यमाताराजभानसलगाः’ यह सूत्र किसके स्वरूप को जानने के लिए है?)
उत्तर:
गणानां स्वरूपं परिज्ञातुम् इदम् सूत्रम् वर्तते। (गणों का स्वरूप जानने के लिए यह सूत्र है।)

प्रश्नः 8.
कोऽपि एकः शब्दः लिख्यतां यत्र आदिवर्णः लघुः भवेत्। (कोई भी एक शब्द लिखिए जिसका आदि वर्ण ‘लघु’ हो।)
उत्तर:
असारम् (1ऽऽ)

प्रश्नः 9.
कस्मिन् गणे सर्वे वर्णाः लघवः भवन्ति? (किस गण में सभी वर्ण लघु होते हैं)
उत्तर:
नगणे सर्वे वर्णाः लघवः भवन्ति। (नगण में सभी वर्ण लघु होते हैं।)

प्रश्नः 10.
‘सम्बन्धः’ इत्यस्मिन् शब्दे कः गणः? (‘सम्बन्धः’ इस शब्द में कौन-सा गण है?)
उत्तर:
‘सम्बन्धः’ इति शब्दे ‘मगणः अस्ति। (‘सम्बन्धः’ इस शब्द में मगण है।)

प्रश्नः 11.
‘सज्जनः’ इत्यस्मिन् शब्दे ‘ज’ वर्णः गुरुः लघु वा? (‘सज्जनः’ इस शब्द में ‘ज’ वर्ण गुरु है अथवा लघु?)
उत्तर:
‘सज्जनः’ इत्यस्मिन् शब्दे ‘ज’ वर्णः लघु अस्ति। (‘सज्जन’ शब्द में ‘ज’ वर्ण लघु है)

प्रश्न: 12.
लौकिकवाङ्मये छन्दः शब्देन किम् अभिधीयते? (लौकिक वाङ्मय में छन्द शब्द से क्या अभिप्राय है?)
उत्तर:
लौकिकवाङ्मये नियतवर्णानां मात्राणां वा नियमबद्धं वाक्यं वाक्यसमूहो वी छन्दः शब्देन अभिधीयते।। (लौकिक साहित्य में निश्चित वर्गों या मात्राओं के नियमबद्ध वाक्य या वाक्य-समूह को छन्द कहा जाता है।)

प्रश्नः 13.
छन्दसा कति भेदाः सन्ति? (छन्दों के कितने भेद हैं?)
उत्तर:
छन्दसां द्वौ भेदौ स्त:-वार्णिकछन्दः मात्रिक छन्दश्च। (छन्दों के दो भेद हैं-वार्णिक छन्द और मात्रिक छन्द।)

प्रश्नः 14.
प्रतिपादं वर्णानां गणना कस्मिन् छन्दसि भवति? (प्रत्येक पाद में वर्षों की गणना किस छन्द में होती है?)
उत्तर:
प्रतिपादं वर्णानां गणना वार्णिकछन्दसि भवति। (प्रत्येक पाद में वर्गों की गणना वार्णिक छन्द में होती है।)

प्रश्नः 15.
प्रतिपादं मात्राणां गणना कस्मिन् छन्दसि भवति? (प्रत्येक पाद में मात्राओं की गणना किस छन्द में होती है?)
उत्तर:
प्रतिपादं मात्राणां गणना मात्रिकछन्दसि भवति। (प्रत्येक पाद में मात्राओं की गणना मात्रिक छन्द में होती है।)

प्रश्नः 16.
कस्यापि एकस्य मात्रिकछन्दसः नामनिर्देशं कुरुत। (किसी एक मात्रिक छन्द का नाम निर्देश कीजिए।)
उत्तर:
‘आर्या’ इति छन्दः मात्रिकछन्दः अस्ति। (आर्या यह छन्द मात्रिक छन्द है।)

प्रश्नः 17.
मात्रिकछन्दसः अपरनाम किमस्ति? (मात्रिक छन्द का दूसरा नाम क्या है?)
उत्तर:
मात्रिकछन्दस: अपरनाम ‘जातिः’ इति अस्ति। (मात्रिक छन्द का दूसरा नाम ‘जाति’ है।)

प्रश्नः 18.
वार्णिकछन्दसः अपरनाम लिख्यताम्। (वार्णिक छन्द का दूसरा नाम लिखिए।)
उत्तर:
वार्णिकछन्दस: अपरनाम ‘वृत्तम्’ इति अस्ति। (वार्णिक छन्द का दूसरा नाम ‘वृत्त’ है।)

प्रश्नः 19.
छन्दशास्त्रे ह्रस्वस्वरः कः कथ्यते? (छन्दशास्त्र में ह्रस्व स्वर को क्या कहा जाता है?)
उत्तर:
छन्दःशास्त्रे ह्रस्वस्वर: ‘लघुः कथ्यते। (छन्दशास्त्र में ह्रस्व स्वर को लघु कहा जाता है।)

प्रश्नः 20.
गुरुः कः स्वरः भवति? (गुरु कौन-सा स्वर होता है?)
उत्तर:
गुरुः दीर्घः स्वरः भवति। (गुरु दीर्घ स्वर होता है।)

प्रश्नः 21.
गुरुवर्णस्य संकेतचिह्न किमस्ति? (गुरु वर्ण का संकेत चिह्न क्या है?)
उत्तर:
गुरुवर्णस्य संकेतचिह्नम् अवग्रहः (ऽ) अस्ति। (गुरु वर्ण का संकेत चिह्न अवग्रह (ऽ) है।)

प्रश्न: 22.
गणस्वरूपस्य लघुसूत्रं लिख्यताम्। (गणों के स्वरूप का लघु सूत्र लिखिए।)
उत्तर:
गणस्वरूपस्य लघुसूत्रं यमाताराजभानसलगाः’ इति अस्ति। (गणों के स्वरूप को लघु सूत्र ‘यमाताराजभानसलगा:’ है।)

प्रश्नः 23.
ह्रस्वस्वराः कति सन्ति? लिख्यताम्। (ह्रस्व स्वर कितने हैं? लिखिए।)
उत्तर:
अ, इ, उ, ऋ, लु एते पञ्च ह्रस्वस्वराः सन्ति। (अ, इ, उ, ऋ, लू ये पाँच ह्रस्व स्वर हैं।)

प्रश्नः 24.
दीर्घस्वराः के सन्ति? (दीर्घस्वर कौन से हैं?)
उत्तर:
आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ एते अष्टौ दीर्घस्वराः सन्ति। (आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ-ये आठ दीर्घस्वर हैं।)

प्रश्न: 25.
लघुवर्णः कदा दीर्घः अपि मन्यते? (लघु वर्ण कब दीर्घ वर्ण भी माना जाता है?)
उत्तर:
विसर्गेण युक्तः, अनुस्वारेण युक्तः, संयोगपूर्वः पदान्ते च ह्रस्ववर्णः गुरुसंज्ञको भवति। (विसर्ग से युक्त, अनुस्वार से युक्त, संयुक्त वर्ण से पूर्व का वर्ण तथा पद के अन्त में स्थित लघु वर्ण गुरु संज्ञक होता है।)

प्रश्नः 26.
शार्दूलविक्रीडितम् छन्दसि कति वर्णान्ते यतिः वर्तते? (शार्दूलविक्रीडित छन्द में कितने वर्षों पर यति होती है?)
उत्तर:
शार्दूलविक्रीडितम् छन्दसि द्वादशवर्णान्ते सप्तवर्णान्ते च यतिः भवति। (शार्दूलविक्रीडितम् छन्द में क्रमश: बारहवें और सातवें वर्ण पर यति होती है।)

प्रश्नः 27.
मन्दाक्रान्ताछन्दसि कति वर्णाः भवन्ति? (मन्दाक्रान्ता छन्द में कितने वर्ण होते हैं?)
उत्तर:
मन्दाक्रान्ता छन्दसि सप्तदशवर्णाः भवन्ति। (मन्दाक्रान्ता’छन्द में सत्रह वर्ण होते हैं।)

प्रश्नः 28.
चतुर्दशवर्णीये कस्मिन् छन्दसि अन्ते गुरुद्वयं भवति? (चौदह वर्ण वाले किस छन्द के अन्त में दो गुरु होते हैं?)।
उत्तर:
वसन्ततिलकाछन्दसि अन्ते गुरुद्वयं भवति। (वसन्ततिलका छन्द के अन्त में दो गुरु होते हैं।)

प्रश्नः 29.
मन्दाक्रान्ता छन्दसः लक्षणं लिख्यताम्। (मन्दाक्रान्ता छन्द का लक्षण लिखिए।)
उत्तर:
मन्दाक्रान्ताम्बुधिरसनगै भनौ तौ गयुग्मम्।।

प्रश्नः 30.
‘मौनान्मूकः, प्रवचनपटुर्वातुलो जल्पको वा।’ इदम् उदाहरणं कस्य छन्दसः अस्ति? (यह उदाहरण किस छन्द का है?)
उत्तर:
इदम् उदाहरणं मन्दाक्रान्ताछन्दसः अस्ति। (यह उदाहरण मन्दाक्रान्ता छन्द को है।)

प्रश्नः 31.
कस्मिन् छन्दसिं सूर्यैः अश्वैः च यतिः भवति? (किस छन्द में सूर्यों और अश्वों से यति होती है?)
उत्तर:
शार्दूलविक्रीडितम् छन्दसि सूर्यैः अश्वैः च यतिर्भवति। (शार्दूलविक्रीडितम् छन्द में सूर्यों और अश्वों से यति होती है।)

प्रश्नः 32.
सूर्याश्वैः कति वर्णैः यतिः भवति? (सूर्यों और अश्वों से कितने वर्षों पर यति होती हैं?)
उत्तर:
सूर्यैः = द्वादशवर्णंः, अश्वैः = सप्तवर्णैः यति भवति। (सूर्य = बारह वर्षों से और अश्व = सात वर्षों से यति होती है।)

प्रश्नः 33.
शार्दूलविक्रीडितम् छन्दसः लक्षण लिख्यताम्। (शार्दूलविक्रीडितम् छन्द का लक्षण लिखिए।)
उत्तर:
‘सूर्याश्वैर्यदिमः सजौ सततगा: शार्दूलविक्रीडितम्।’

प्रश्नः 34.
अधोलिखितेषु श्लोकेषु छन्दः निर्दिश्यताम्। (नीचे लिखे हुए श्लोकों में छन्द बताइये।)
(अ) इत्थं द्विजेन द्विजराजकान्ति,रावेदितो वेदविदां वरेण।
एनोनिवृत्तेन्द्रियवृत्तिरेनं, जगाद भूयो जगदेकनाथः।।

(ब) निर्बन्धसञ्जातरुषार्थकार्य, मचिन्तयित्वा गुरुणाहमुक्तः।।
वित्तस्य विद्यापरिसंख्यया मे, कोटीश्चतस्रो दश चाहरेति।।

(स) गुर्वर्थमर्थी श्रुतपारदृश्वा, रघोः सकाशादनवाप्य कामम्।।
गतो वदान्यान्तरमित्ययं मे, मा भूत्परीवादनवावतारः।।

(द) स त्वं प्रशस्ते महिते मदीये, वसंश्चतुर्थोऽग्निरिवाग्न्यगारे।
द्वित्राण्यहान्यर्हसि सोढुमर्हन्, यावद्यते साधयितुं त्वदर्थम् ॥

(य) बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम् ॥

(र) नियतं कुरु कर्म त्वं कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः।।
शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः॥

(ल) न कर्मणामनारम्भान्नैष्कर्म्यम् पुरुषोऽश्नुते।।
न च सन्यसनादेव सिद्धिं समधिगच्छति ॥

(व) न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत्।।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः॥

(च) वत्सायाश्च रघूद्वहस्य च शिशावस्मिन्नभिव्यज्यते,
संवृत्तिः प्रतिबिम्बतेव निखिला सैवाकृति सा द्युतिः।
सा वाणी विनयः स एव सहज: पुण्यानुभावोऽप्यसौ,
हा! हा! देवि किमुत्पथैर्मम मनः पारिप्लवं धावति ॥

(छ) पापान्निवारयति योजयते हिताय, गुह्यं निगूहति गुणान्प्रकटीकरोति।।
आपद्गतं च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः॥
उत्तर:
(अ) उपजातिः वृत्तम् (ब) उपजाति: वृत्तम् (स) उपजाति: वृत्तम् (द) उपजाति: वृत्तम् (य) अनुष्टुप् वृत्तम् (र) अनुष्टुप् वृत्तम् (ल) अनुष्टुप् वृत्तम् (व) अनुष्टुप् छन्दः (च) शार्दूलविक्रीडितम् वृत्तम् (छ) वसन्ततिलको वृत्तम्।

प्रश्न: 35.
अधोलिखितपंक्त्यां कः छन्दः? (नीचे लिखी पंक्ति में कौन-सा छन्द है?):
(अ) येषां न विद्या न तपो न दानम्।
(ब) प्रदानं प्रच्छन्नं गृहमुपगते सम्भ्रमविधिः।
(स) वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थ प्रतिपत्तये।
(द) कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
(य) तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर।
(र) एते सत्पुरुषाः परार्थघटकाः स्वार्थं परित्यज्य ये।
(ल) महिम्नामेतस्मिन् विनयशिशिरो मौग्ध्यमसृणो।।
(व) विपदि धैर्यमथाभ्युदये क्षमा, सदसि वाक्पटुता युधिविक्रमः।
(च) मनसि वचसि काये पुण्यपीयूषपूर्णा।
उत्तर:
(अ) इन्द्रवज्रा
(ब) शिखरिणी वृत्तम्
(स) अनुष्टुप् वृत्तम्
(द) अनुष्टुप् वृत्तम्
(य) अनुष्टुप् वृत्तम्।
(र) शार्दूलविक्रीडितम् वृत्तम्
(ल) शिखरिणी छन्दः
(व) द्रुतविलम्बितम् छन्दः
(च) मालिनी।

प्रश्नः 36.
कश्चिदेकस्य छन्दसः उदाहरणं लिखत। (किसी एक छन्द का उदाहरण लिखिए।) अनुष्टुप्, वंशस्थम्, मालिनी, शिखरिणी, शार्दूलविक्रीडितम्, वसन्ततिलका, उपजातिः।
उत्तर:
(i) अनुष्टुप् छन्दसः उदाहरणम्।
यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥

(ii) वंशस्थछन्दसः उदाहरणम्-
भवन्ति नम्रास्तरवः फलोद्गमै, र्नवाम्बुभिरविलम्बिनो घनाः।
अनुद्धता: सत्पुरुषाः समृद्धिभिः, स्वभाव एवैष परोपकारिणाम्।।

(iii) मालिनीछन्दसः उदाहरणम्
सरसिजमनुविद्धं शैवलेनापि रम्यं, मलिनमपि हिमांशोर्लक्ष्म लक्ष्म तनोति।
इयमधिकमनोज्ञा वल्कलेनापि तन्वी, किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्।।

(iv) शिखरिणीछन्दसः उदाहरणम्
अंनाघ्रातं पुष्पं किसलयमलूनं कररुहै, रनाविद्धं रत्नं मधु नवमनास्वादितरसम्।
अखण्डं पुण्यानां फलमिव च तद्रूपमनघं, न जाने भोक्तारं कमिह समुपस्थास्यति विधिः ॥

(v) शार्दूलविक्रीडितम् छन्दसः उदाहरणम्
यास्यत्यद्य शकुन्तलेति हृदयं संस्पृष्टमुत्कण्ठया,
कण्ठः स्तम्भितवाष्पवृत्तिकलुषश्चिन्ताजडं दर्शनम्।।
वैक्लव्यं मम तावदीदृशमिदं स्नेहादरण्यौकसः,
पीड्यन्ते गृहिणः कथं न तनया विश्लेषदु:खैर्नवैः॥

(vi) वसन्ततिलकाछन्दसः उदाहरणम्-
जाड्यं धियो हरति सिञ्चति वाचि सत्यं, मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति।
चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्ति, सत्सङ्गतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ॥

(vii) उपजातिछन्दसः उदाहरणम्
आलोकमार्गं सहसा व्रजन्त्या, कयाचिदुद्वेष्टनवान्तमाल्यः।
बद्धं न सम्भावित एव तावत्, करेण रुद्धोऽपि च केशपाशः॥

संस्कृतसाहित्ये पद्यभागस्य ……………………………………….. विराम एव यतिः। (पृष्ठ 128)
संस्कृत साहित्य में पद्य भाग की अधिकता है। पद्यरचना के लिए छन्दों का ज्ञान आवश्यक है। पाणिनीय शिक्षा में छन्दों के विषय में कहा गया है-“छन्दः पादौ तु वेदस्य” अर्थात् छन्द वेद के पैर हैं। छन्द शब्द ‘छदि छादने’ धातु से निष्पन्न हुआ है। छन्दों के ज्ञान से श्लोकों अथवा मन्त्रों की गति, यति (विराम), लय (ताल) आदि विषयों में कुशलता प्राप्त की जा सकती है। इसलिए आओ, हम छन्दों के विषय में जानें।

अक्षरम्-जिसका उच्चारण हो सकता है, उसे अक्षर कहते हैं। जैसे-रामम् यहाँ ‘रा’ ‘में’ ये दो अक्षर हैं। छन्दों में। मात्रा सहित वर्गों या अक्षरों की गणना की जाती है।

मात्रा-उच्चारण में आवश्यक (निर्धारित) समय ही मात्रा है। ह्रस्व स्वर में एक मात्रा, दीर्घस्वर में दो मात्राएँ तथा प्लुत स्वर में तीन मात्राएँ होती हैं।

ध्यातव्य- अर्थात् चुटकी बजाने में अथवा पलक गिरने में जितना समय लगता है उतना ही समय ह्रस्व स्वर के उच्चारण में समझना चाहिए। उतने काल में एक मूल स्वर का उच्चारण होता है। अत: एक मूल स्वर के उच्चारण में जितना काल अपेक्षित है उतने काल को एक मात्रा काल कहते हैं। कुक्कुट के शब्द ‘कु कू कू ३’ में एक मात्रा, दो मात्रा और तीन मात्राओं का क्रमशः आरोहं (चढ़ाव) स्पष्ट प्रतीत होता है। व्यञ्जनों में अर्ध मात्रा का समय लगता है। यथा र्, क्, ख्, न्। आदि।।

एकमात्रो भवेद् ह्रस्वो द्विमात्रो दीर्घ उच्यते।।
त्रिमात्रस्तु प्लुतो ज्ञेयो व्यञ्जनं चार्धमात्रिकम्।।

ध्यातव्य-छन्दों में हलन्त व्यञ्जन को नहीं गिना जाता अर्थात् बिना स्वर के व्यञ्जन अर्द्धमात्रिक होता है। जैसे= र् + अ, अतः ‘र्’ को नहीं गिना जायेगा। जबकि ‘र’ ह्रस्व स्वर (एक मात्रा) गिना जायेगा।।

यति-पद्य के गायन में जहाँ एक चरण में अधिक अक्षर होते हैं, वहाँ उनका समान रूप से (एक-सा) गायन सरल नहीं होता है, अत: उन स्थलों पर विराम आवश्यक है। यह विराम निश्चित होता है। विराम ही यति होती है। अर्थात् पद्य के उच्चारण में श्वास लेने हेतु क्षणभर रुकने का व्यवस्थित स्थान ‘यति’ कहलाता है। इस यति को ‘विराम’ भी कहते हैं।

छन्दसा प्रयोगः ……………………………………….. गुरुः स्वीकर्तुं शक्यते। (पृष्ठ 128)
लघुगुरुव्यवस्था-छन्दों का प्रयोग मूलरूप से स्वरवर्गों पर आधारित है। छन्दों की दृष्टि से वर्ण दो प्रकार के होते हैं–1. लघु (1) 2. गुरु (ऽ)।

सामान्य रूप से ह्रस्व स्वर लघु होता है। इसके लिए ‘।’ यह चिह्न निर्धारित है। ह्रस्व स्वर पाँच होते हैं-अ, इ, उ, ऋ, लु।।

दीर्घ स्वर गुरु होता है। इसके लिए ‘ऽ’ (अवग्रह) यह चिह्न निर्धारित है। दीर्घ स्वर आठ होते हैं-आ, ई, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।।

किन्तु गुरुलघु व्यवस्था में कुछ विशेष नियम इस प्रकार हैं-

– अनुस्वारयुक्त वर्ण गुरु होता है।
– विसर्गयुक्त वर्ण गुरु होता है।
– संयुक्त वर्ण से पूर्व का वर्ण गुरु होता है।
– चरण का अन्तिम वर्ण यदि लघु है तो आवश्यकतानुसार गुरु स्वीकार किया जा सकता है।

सर्वप्रथमं छन्दसां ……………………………………….. छन्दसि एवं त्रयः पादाः सन्ति।
(पृष्ठ 129) छन्दों के भेद-सर्वप्रथम छन्दों के दो भेद हैं-
1. लौकिक छन्द,
2. वैदिक छन्द। इन छन्दों में भी भेद हैं, जो इस प्रकार हैं-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 7

वार्णिक छन्द-जहाँ वर्षों की गणना के आधार पर छन्दों का निर्धारण होता है वहाँ वार्णिक छन्द होता है। जैसे-अनुष्टुप, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्री, वसन्ततिलका, मन्दाक्रान्ता, शार्दूल विक्रीडित आदि।
वर्षों की गणना की दृष्टि से यहाँ गण व्यवस्था होती है। तीन वर्षों का समूह ही गण है। गण आठ होते हैं-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 8

भगण’ के आदि में गुरु, ‘जगण’ के मध्य में गुरु, ‘सगण’ के अन्त में गुरु होता है।
‘यगण’ के आदि में लघु ‘रंगण’ के मध्यम् में लघु, तगण के अन्त ते लघु होता है।।।ऽ ऽऽ
‘मगण’ में तीनों गुरु तथा ‘नगण’ में तीनों लघु वर्ण होते हैं।

[नोट-इस गण व्यवस्था को समझने एवं याद रखने के लिए यह सूत्र उपयोगी है-य मा ता रा ज भा न स ल गा। इसमें केवल दो स्वर हैं ‘अ’ और ‘आ’। ‘अ’ स्वर वाले अक्षर से लघु को तथा ‘आ’ स्वर वाले अक्षर से गुरु का बोध होता है। जैसे-य = यगण = यमाता =।ऽऽ, मा = मगण = मा ता रा = ऽऽऽ, ता = तगण = ता रा ज = ऽऽ।, रा = रगण = रा ज भा = ऽ।ऽ, ज = जगण = ज भा न =।ऽ।, भा = भगण = भा न स = ऽ।।, न = नगण = न स ल =।।।, स = संगण = स ल गा =।।ऽ, ल = लघु =।, गा = गुरु = ऽ; गण सदैव बायीं ओर से दाहिनी ओर लगाए जाते हैं।]

मात्रिक छन्द-जहाँ मात्राओं की गणना के आधार पर छन्द का निर्धारण होता है वहाँ मात्रिक छन्द होता है। यहाँ भी (अर्थात् मात्रिक छन्दों में भी) गण होते हैं, लेकिन यहाँ पाँच प्रकार के मात्रिक गण होते हैं।

ध्यातव्य-मात्रिक छन्दों के लिए उपयोगी गण चार-चार मात्राओं के समूह पाँच प्रकार के हैं, अर्थात् ‘ऽ’ गुरु और ‘।’ लघु को मिलाकर चार-चार मात्राओं का समूह बनाया जाय तो उसे पाँच प्रकार से ही लिखा जा सकता है

1. सर्वगुरु ऽऽ 2 + 2 = 4 मात्रा
2. अन्तगुरु।। 1 + 1 + 2 = 4 मात्रा
3. मध्यगुरु।ऽ। 1 + 2 + 1 = 4 मात्रा
4. आदिगुरु।। 2 + 1 + 1 = 4 मात्रा
5. सर्वलघु।।।। 1 + 1 + 1 + 1 = 4 मात्रा

पाद या चरण-प्रायः छन्दों में चार पाद (चरण) होते हैं। गायत्री छन्द में ही तीन पाद (चरण) होते हैं।

पाठ्यक्रम में निर्धारित छन्द
1. आर्या-छन्दः
यह मात्रिक छन्द है। अत: इस आर्या को जाति भी कहा जाता है। यह छन्द मात्राओं की गणना के आधार पर होता है। इसके चार चरण होते हैं।

लक्षणम्-
यस्याः पादे प्रथमे द्वादशमात्रास्तथा तृतीयेऽपि।
अष्टादश द्वितीये चतुर्थक पञ्चदश साऽऽर्या।।

अर्थ-जिसके प्रथम और तृतीय चरण में बारह-बारह मात्राएँ होती हैं, द्वितीय चरण में अठारह मात्राएँ तथा अन्तिम चतुर्थ चरण में पन्द्रह मात्राएँ होती हैं, वह आर्या नामक छन्द है।

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 9

2. अनुष्टुप छन्दः
अनुष्टुप छन्द के प्रत्येक चरण में आठ अक्षर (वर्ण) होते हैं। अत: चारों चरणों में कुल मिलाकर (8 x 4 = 32) बत्तीस वर्ण होते हैं।

लक्षणम्-
“श्लोके षष्ठं गुरुज्ञेयं सर्वत्र लघु पञ्चमम्।
द्विचतुष्पादयोह्रस्वं सप्तमं दीर्घमन्ययोः।।

अर्थात् जिस छन्द के चारों चरणों (पादों) में छठा अक्षर (वर्ण) ‘गुरु’ हो और पाँचवां वर्ण अक्षर चारों चरणों में ‘लघु हो, दूसरे और चौथे चरण (पाद) में सप्तम वर्ण (अक्षर) ह्रस्व हो और पहले तथा तीसरे चरण (पाद) में सप्तम वर्ण (अक्षर) दीर्घ (गुरु) हो, यह पद्य का लक्षण है। इसी को अनुष्टुप तथा श्लोक भी कहते हैं। इसके प्रत्येक चरण में आठ-आठ अक्षर (वर्ण) होते हैं।

यहाँ पर ये नियम विशेष रूप से ध्यान रखने योग्य हैं

1. चारों चरणों में पाँचवां वर्ण लघु (ह्रस्व) हो।
2. चारों में चरणों में छठवां’ वर्ण गुरु (दीर्घ) हो।
3. दूसरे और चौथे इन दो चरणों में सातवां वर्ण ह्रस्व (लघु) हो।
4. पहले और तीसरे इन दो चरणों में सातवाँ वर्ण गुरु (दीर्घ) हो।

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 10

3. इन्द्रवज्रा

लक्षणम्- ‘‘स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः।
इस छन्द के प्रत्येक चरण में 11 वर्ण होते हैं। इसके प्रत्येक पाद में क्रमशः तगण, तगण, जगण और दो गुरुवर्ण होते हैं। यद्यपि यहाँ यति का निर्देश नहीं है तथापि पाँचवें और छठे अक्षर पर यति होती है। पाद के अन्त में यति होती है।

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 11
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 12

4. उपेन्द्रवज्रा (एकादशवर्णाः)
लक्षणम्-उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ।। अर्थात् उपेन्द्रवज्रा के प्रत्येक चरण में क्रमश: एक जगण, एक तगण, एक जगण और दो गुरु वर्ण होते हैं।
उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 13

5, उपजाति छन्दः
जहाँ इन्द्रवज्रा और उपेन्द्रवज्रा का मिश्रण होता है, वहाँ उपजाति वृत्तम् होता है।

इन्द्रवज्रा का लक्षण-‘स्यादिन्द्रवज्रा यदि तौ जगौ गः”

अर्थ-तौ = दो तगण, जगौ = जगण और गुरु, गः = गुरु मिलाकर अर्थात् तगण, तागण, जगण, गुरु, गुरु, = 11 वर्ण [चारों चरणों में 11 x 4 = 44 वर्ण होने पर इन्द्रवज्रा छन्द होता है। पाद के अन्त में यति होती है। यह त्रिष्टुप जाति (एक पाद में 11 वर्ण) का छन्द होता है। इसमें तीन गण तथा दो गुरु वर्ण होते हैं।

उपेन्द्रवज्रा का लक्षण-उपेन्द्रवज्रा जतजास्ततो गौ”

अर्थ-जतजाः = जगण तगण जगण, ततः = तव, गौ = 2 गुरु मिलाकर एक पाद में कुल 11 वर्ण होते हैं। चारों पादों में, अर्थात् पूरे छन्द में [11 x 4 = 44] वर्ण होते हैं। यति पाद के अन्त में होती है।

उपजाति का लक्षण-अनन्तरोदीरितलक्ष्म भाजौ पादौ यदीयावुपजातयस्ताः।
इत्थं किलान्यास्वपि मिश्रितासु वदन्ति जातिष्विदमेव नाम।।

अर्थ-अनन्तरोदीरित = अनन्तर पूर्व में पढ़े हुए इन्द्रवज्रा तथा उपेन्द्रवज्रा के, लक्ष्मभाजौ = लक्षणों से युक्त, यदीयौ = जिसके, पादौ = चरण होते हैं, वे उपजातयः, उपजातियाँ हैं। इत्थं = इसी प्रकार, अन्यासु = दूसरी, जातिषु = जातियों के (जगती .आदि), मिश्रितासु =..मिलने पर, अपि = भी, इदमेव = यही नाम, वदन्ति = कहते हैं।

अर्थात् समान जाति के दो छन्दों के चरणों का किसी छन्द में संकर (मेल) होने पर वह उपजाति कहा जाता है। यह किसी भी छन्द की जाति में ‘सम्भव है, किन्तु दो तीन छन्दों के सांकर्य को ही उपजाति की मान्यता प्राप्त है। मुख्य रूप से उपजाति शब्द का प्रयोग इन्द्रवज्रा तथा उपेन्द्रवज्रा के चरणों के मेल से बने हुए छन्द के लिए होता है। दो चरण में इन्द्रवज्रा, दो चरण में उपेन्द्रवज्रा, एक चरण में इन्द्रवज्रा, तीन चरण में उपेन्द्रवज्रा-इसी प्रकार चरणों की संख्या के भेद से इस छन्द के कुल चौदह भेद हो जाते हैं।

उदाहरणम् 1.
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 14
इसमें पहले और तीसरे दो चरणों में इन्द्रवज्रा, दूसरे और चौथे दो चरणों में उपेन्द्रवज्रा है। अतः इन दोनों के मिश्रण से उपजाति छन्द बना है।
2.
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 15

6. वंशस्थ छन्दः
यह बारह वर्षों का समवृत्त छन्द है। वंशस्थ छन्द के प्रत्येक चरण में बारह वर्ण होते हैं। अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (12 x 4 = 48) अड़तालीस वर्ण होते हैं। इसमें 12 वर्ण पर अर्थात् चरण के अन्त में यति होती है।

लक्षणम्- ‘जतौ तु वंशस्थमुदीरितं जरौ”।

अर्थ-जतौ = जगण तथा तगण, जरौ = जगण और रगण, तु = तो, वशंस्थम् उदीरितम् = वंशस्थ कहा गया है। यहाँ प्रत्येक चरण में जगण (।ऽ।), तगण (ऽऽ।), जगण (।ऽ।) और रगण (ऽ।ऽ) होते हैं। अर्थात् क्रमशः जगण, तगण, जगण और रगण-इन चार गणों को वंशस्थ कहते हैं।

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 16

7. मालिनी छन्दः
मालिनी छन्द पन्द्रह वर्षों (अक्षरों) वाला समवृत्त (अतिशक्वरी) जाति का छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में पन्द्रह वर्ण होते हैं। चारों चरणों में कुल मिलाकर (15 x 4 = 60) साठ वर्ण होते हैं।

नोट-इस छन्द से प्रारम्भ करके आगे सभी जातियों के छन्दों में वर्ण अधिक होने से मध्य में यति देना आवश्यक है।

लक्षणम्-‘न न म य य युतेयं मालिनी भोगिलोकैः।

अर्थ-इसके प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण (।।।), नगण (।।।), मगण (ऽऽऽ), यगण (।ऽऽ) और यगण (।ऽऽ) होते हैं। मालिनी छन्द में यति मध्य में भी होती है। इसमें आठवें वर्ण पर (भोगी = सर्प, सर्यों के आठ कुल हैं।

इसलिए ‘भोगी’ का अर्थ आठ है) और सातवें वर्ण पर (लोकाः = लोक, लोक सात हैं इसलिए लोकाः का अर्थ सात है) यति अर्थात् विराम होता है।

उदाहरणम्-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 17

पाठ्यपुस्तक में प्रदत्त अन्य छन्द

8. वसन्ततिलका छन्दः यह चौदह वर्षों के समवृत्त छन्द शक्वरी को भेद है। इसके प्रत्येक चरण में चौदह वर्ण होते हैं। अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (14 x 4 = 56) छप्पन वर्ण होते हैं। इसमें 14 वर्षों पर अर्थात् चरण के अन्त में यति होती है।

लक्षणम्- “उक्ता वसन्ततिलका तभजा जगौ गः”

अर्थ-तभजा = तगण, भगण, जगण; जगौ = जगण, गुरु, गः = गुरु होने पर, वसन्ततिलका, उक्ता = कहा जाता है। इसमें तगण (ऽऽ।), भगण (511), जगण (IST), जगण (ISI) और दो गुरु (ऽऽ) होते हैं।

अर्थात् वसन्ततिलका छन्द के प्रत्येक चरण में क्रमश: तगण, भगाः, जगण, जगण और दो अक्षर गुरु होते हैं। इस प्रकार इसके प्रत्येक चरण में चौदह वर्ण होते हैं। यति चरण में अन्त में होती है।

उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 18
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 19

9. शिखरिणी छन्दः
यह सत्रह वर्गों का समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में सत्रह वर्ण होते हैं। अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (17 x 4 = 68) अड़सठ वर्ण होते हैं। यह छन्द छन्दोजाति अत्यष्टि’ के अन्तर्गत आता है।

लक्षणम्- “रसैः रुद्वैश्छिन्ना यमनसभलागः शिखरिणी”

अर्थ-इसके प्रत्येक चरण में यगण (1ऽऽ), मगण (ऽऽऽ), नगण (।।।), सगण (।।), भगण (ऽ।।), एक लघु और एक गुरु वर्ण होते हैं। इसमें रसैः = छः (रस छः होते हैं), रुद्र = ग्यारह (रुद्र ग्यारह होते हैं), छिन्ना = विभक्त हुई, अर्थात् छठे तथा ग्यारहवें वर्ण पर यति होती है। यमनसभलागः = क्रम से यगण, मगण, नगण, संगण, भगण, लघु तथा गुरु होने पर शिखरिणी छन्द होता है।

उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 20

10. शार्दूलविक्रीडित छन्दः
उन्नीस वर्गों का यह समवृत्त छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में उन्नीस वर्ण होते हैं। अतः चारों चरणों में कुल मिलाकर (19×4 = 76) छिहत्तर वर्ण होते हैं। यह उन्नीस अक्षरों के पादवाली ‘अतिधृति’ जाति का छन्द है। शार्दूल ‘शेर’ को कहते हैं। उसका विक्रीडित = खेलना। ऐसी प्रसिद्धि है कि सिंह बारह हाथ लम्बाई में तथा सात हाथ ऊँचाई में छलांग लगा लेता है। इस छन्द में भी बारह तथा सात वर्षों पर यति होने से इसका नाम शार्दूल विक्रीडित पड़ गया है।

लक्षणम्-‘सूर्याश्वैर्यदि मः सजौ सततगाः शार्दूल विक्रीडितम्”.

अर्थ-इसके प्रत्येक चरण में मगण (ऽऽऽ), संगण (।।ऽ), जगण (।ऽ1), सगण (।।ऽ), तगण (ऽऽ।), तगण (ऽऽ1) और एक गुरु वर्ण होते हैं। इसमें बारहवें और सातवें वर्ण पर यति होती है।

सूर्य = बारह, सूर्य बारह राशियों पर विचरण करता है, अतः सूर्य बारह माने गये हैं। अश्वैः = सात, सूर्य के सात घोड़े माने गये हैं। अर्थात् जिस छन्द के चरण में बारहवें तथा सातवें वर्ण पर यति होती है, मसजस्तताः = क्रमशः मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण, सगुरवः = गुरु से युक्त हों, अर्थात् छः गण एक गुरु, कुल उन्नीस वर्ण हों तो वह शार्दूलविक्रीडित छन्द होता है।

उदाहरण-
RBSE Class 11 Sanskrit अलंकार-परिचयः 21

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