RBSE Class 11 Sanskrit वैदिक साहित्यम्

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sanskrit वैदिक साहित्यम्

पाठ्यपुस्तकस्य अभ्यास प्रश्नोत्तराणि

प्रश्न 1.
रिक्तस्थानानि पूरयत- (रिक्त स्थानों की पूर्ति करो)
(अ) विश्वसाहित्यस्य आदिमः ग्रन्थः …………………………………….. अस्ति।
(ब) वेद शब्दे …………………………………….. धातु अस्ति।
(स) तिलकमहोदयेन वेदानां आरम्भिकं रचनाकालं …………………………………….. स्वीकृतम्।
(द) ऋग्वेदस्य …………………………………….. शाखा सम्प्रति उपलभ्यते।
(य) मन्त्राणां द्रष्टारः …………………………………….. कथयन्ते।
(र) कर्मकाण्डस्य वेदः …………………………………….. अस्ति।
(ल) यजुर्वेदस्य द्वौ भागौ …………………………………….. स्तः।
(व) सामन् इति शब्दस्य अर्थः …………………………………….. अस्ति।
(श) ओषधीनां ज्ञानं …………………………………….. वेदेन भवति।
(ष) अथर्ववेदस्य …………………………………….. ब्राह्मणः वर्तते।
(क) आरण्यकाः ग्रन्थाः …………………………………….. कृते निर्मिताः।
(ख) शिक्षाग्रन्थेषु वेदमन्त्राणां. …………………………………….. शिक्षा प्रदीयते।
(ग) व्याकरणं …………………………………….. मुखं मन्यते।
(घ) शुल्वसूत्रेषु …………………………………….. निर्माणस्य नियमाः निरूपिताः।
(ङ) निरुक्तस्य रचयिता महर्षिः …………………………………….. आसीत्।
उत्तर:
1. (अ) ऋग्वेदः
(ब) विद्
(स) 6000 ई.पू.
(द) शाकलशाखा
(य) मन्त्रदृष्टाः
(र) यजुर्वेदः
(ल) शुक्ल यजुर्वेदः कृष्णयजुर्वेदश्च
(व) गानम्
(श) अथर्व
(घ) गोपथ ब्राह्मणः
(क) वानप्रस्थानां
(ख) उच्चारणस्य
(ग) वेदस्य
(घ) यज्ञवेद्याः
(ङ) यास्क।

प्रश्न 2.
कति वेदाः कश्च तेषां स्वरूपः? (वेद कितने हैं और उनका क्या स्वरूप है?)
उत्तर:
वेदाः चत्वारः सन्ति। तेषा स्वरूपः गद्यात्मकः पद्यात्मकश्च। (वेद चार हैं। उनका स्वरूप पद्यात्मक एवं गद्यात्मक है।)

प्रश्न 3.
उपनिषद् इति शब्दस्य कोऽर्थः? (‘उपनिषद्’ शब्द का क्या अर्थ है?).
उत्तर:
तत्त्वज्ञानाय गुरुसमीपे निष्ठया श्रद्धया वा उपवेशनम् ‘उपनिषद्’ इति शब्दस्य अर्थः। (तत्वज्ञान के लिए गुरु के पास निष्ठा या श्रद्धा से बैठना ‘उपनिषद्’ शब्द का अर्थ है।)

प्रश्न 4.
वेदाङ्गानि कति? (वेदाङ्ग कितने हैं?)।
उत्तर:
वेदाङ्गानि षड्विधानि सन्ति। (वेदाङ्ग छः प्रकार के हैं?)

प्रश्न 5.
ब्राह्मणग्रन्थेषु कः विषयः विवेचितः? (ब्राह्मण-ग्रन्थों में किस विषय की विवेचना की गई है?)
उत्तर:
मन्त्राणां यज्ञे कथं विनियोगः कार्यः इति विवेचितः। (यज्ञ में मन्त्रों का विनियोग किस प्रकार किया जाये, इस विषय की विवेचना की गयी है।)

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तराणि
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः (एकपदेन उत्तरत)

1. ‘विद्’ धातोः अर्थं किमस्ति? (‘विद्’ धातु का अर्थ क्या है?)
2. वेदस्य अपरः नाम किमस्ति? (वेद का दूसरा नाम क्या है?)
3. केषां प्रमाणं परमं प्रमाणं स्वीक्रियते? (किनका प्रमाण परम प्रमाण स्वीकार किया जाता है?)
4. भारतीय संस्कृतेः वास्तविक ज्ञानं केन एवं भवितुं शक्यते? (भारतीय संस्कृति का वास्तविक ज्ञान किससे हो सकता है?)
5. विश्ववाङ्मये आदिमाः ग्रन्थाः के सन्ति? (विश्ववाङ्मय में आदि ग्रन्थ कौन से हैं?).
6. कस्याः वैज्ञानिकम् अध्ययनम् अपि वेदाधारितं वर्तते? (किसका वैज्ञानिक अध्ययन भी वेदों पर आधारित है?)
7. वेदाः अपौरुषेयाः इति केषां मतम् अस्ति? (वेद अपौरुषेय हैं यह किनका मत है?)
8. बालगङ्गाधरतिलकमते ऋग्वेदस्य (मन्त्राणां आरम्भिकः) रचनाकालः कः अस्ति? (बालगङ्गाघर तिलक के मत में ऋग्वेद का (मन्त्रों के आरम्भ का) रचनाकाल क्या है?
9. देवानां स्तुति मन्त्राणि कस्मिन् वेदे सन्ति? (देवताओं के स्तुति मन्त्र किस वेद में हैं?)
10. ऋचा इति कानि ज्ञायन्ते? (ऋचा नाम से क्या जाने जाते हैं?)
11. ऋग्वेदस्य का शाखा संप्रति उपलभ्यते? (अब ऋग्वेद की कौन सी शाखा उपलब्ध होती है?).
12. ऋग्वेदे कति मण्डलानि सन्ति? (ऋग्वेद में कितने मण्डल हैं?)
13. ऋग्वेदे कति अनुवाकाः सन्ति? (ऋग्वेद में कितने अनुवाक हैं?)
14. ऋग्वेदे कति सूक्तानि सन्ति? (ऋग्वेद में कितने सूक्त हैं?)
15. ऋग्वेदे कति मन्त्राणि सन्ति? (ऋग्वेद में कितने मन्त्र हैं?)।
16. कर्मकाण्डस्य वेदः कः अस्ति? (कर्मकाण्ड का वेद कौन सा है?)।
17. यजुर्वेदस्य कः भागः विशुद्धः मन्त्रात्मकः अस्ति? (यजुर्वेद का कौन सा भाग विशुद्ध मन्त्रात्मक है?)
18. यजुवेदे कस्मिन् भागे मन्त्राणां व्याख्या अस्ति? (यजुर्वेद के कौन से भाग में मन्त्रों की व्याख्या है?)
19. ‘सामन्’ इति शब्दस्य कः अर्थः? (सामन् इस शब्द का क्या अर्थ है?)
20. सामवेदः कति भागेषु विभक्त:? (सामवेद कितने भाग में विभक्त है?)
21. सामवेदस्य मन्त्रसंख्या कति अस्ति? (सामवेद के मन्त्रों की संख्या कितनी है?)
22. कः वेदः ब्रह्मवेदः अपि कथ्यते? (कौन सा वेद ब्रह्मवेद भी कहा जाता है?)।
23. अथर्ववेदस्य प्राचीनं नाम किमस्ति? (अर्थवेद का प्राचीन नाम क्या है?)
24. अथर्ववेदः कति काण्डेषु विभक्तः अस्ति? (अथर्ववेद कितने काण्डों में विभक्त है?)
25. ओषधीनां वर्णनं कस्मिन् वेदे उपलभ्यते? (औषधियों का वर्णन किस वेद में उपलब्ध होता है?)
26. धर्ममूलं कः उच्यते? ( धर्म का मूले क्या कहा जाता है?)
27. चतुषु वेदेषु प्राचीनतमः वेदः कः अस्ति? (चारों वेदों में प्राचीनतम वेद कौन सा है?)
28. यज्ञे ऋत्विजः कति भवन्ति? (यज्ञ में कितने ऋत्विज होते हैं?)
29. वेदाङ्गानि कस्मिन् साहित्ये परिगणितानि? (वेदाङ्ग किस साहित्य में गिने जाते हैं?).
30. सर्वासां भारतीय विद्यानाम् आधाराः के सन्ति? (सभी भारतीय विद्याओं के आधार कौन हैं?)
31. वैदिक मन्त्र समुदायः केन शब्देन व्यवहियते?। (वैदिक मन्त्र समुदाय को किस शब्द से व्यवहरित किया जाता है?)
32. संहिताभागस्य व्याख्यारूपः कः विद्यते? (संहिता भाग का व्याख्या रूप क्या है?)
33. यज्ञस्वरूप प्रतिपादकः वेदभागः कः कथ्यते? (यज्ञस्वरूप का प्रतिपादन करने वाला वेदभाग क्या कहलाता है?)
34. यज्ञम् आध्यात्मिक रूपेण विवेचयन्तः अरण्ये पठिताः के वेदभागाः सन्ति?। (यज्ञ का आध्यात्मिक रूप से विवेचन करने वाले अरण्य में पढ़े जाने वाले वेद भाग क्या हैं?)
35. वेदान्तः इति कः उच्यते? (वेदान्त किसे कहा जाता है?)
36. ज्योतिषशास्त्रस्य प्राचीनतमः ग्रन्थः कः वर्तते? (ज्योतिषशास्त्र का प्राचीनतम ग्रन्थ कौन सा है?)
37. आरण्यकभागः केषां कृते उपयोगी भवति? (आरण्यक भाग किनके लिए उपयोगी होता है?)
38. यज्ञीय कर्मकाण्डस्य नियमाः केषु ग्रन्थेषु उपलभ्यन्ते? (यज्ञीय कर्मकाण्डों के नियम किन ग्रन्थों में उपलब्ध होते हैं?)
39. वेदमन्त्राणां उच्चारणस्य शिक्षा कस्मिन् वेदाङ्गे प्रदीयते? (वेदमन्त्रों के उच्चारण की शिक्षा किस वेदाङ्ग में दी जाती है?)
40. शिक्षायाः कति अङ्गानि सन्ति? (शिक्षा के कितने अङ्ग हैं?)।
41. वेदस्य मुखरूपेण किं मन्यते? (वेद का मुखरूप किसे मामा जाता है?)
42. व्याकरणस्य कति प्रयोजनानि सन्ति? (व्याकरण के कितने प्रयोजन हैं?)
43. वैदिक यज्ञानां क्रमबद्धवर्णनं केषु प्राप्यते (वैदिक यज्ञों का क्रमबद्ध वर्णन किनमें प्राप्त होता है?)
44. भारतस्य प्राचीनज्यामितिविषयस्य दर्शनं केषु ग्रन्थेषु भवति? (भारत के प्राचीन ज्यामिति विषय का दर्शन किन ग्रन्थों में होता है?)
45. निरुक्तग्रन्थस्य रचयिता केः आसीत् (निरुक्त ग्रन्थ का रचयिता कौन था?)
46. निघण्टु ग्रन्थे कति अध्यायाः सन्ति? (निघण्टु ग्रन्थ में कितने अध्याय हैं?)
47. मन्त्राणां दृष्टारः के सन्ति? (मन्त्रों के द्रष्टा कौन हैं?)
उत्तर:
(1) ज्ञानम् (2) श्रुति (3) वेदानां (4) वेदेन (5) वेदाः (6) भाषायाः (7) प्राचीन भारतीय विदुषां (8) 6000 ई.पू. (9) ऋग्वेदे (10) स्तुति मन्त्राणि (11) शाकलशाखा (12) दशमण्डलानि (13) 85 (14) 1028 (15) 10552 (16) यजुर्वेद (17) शुक्लयजुर्वेदः (18) कृष्णयजुर्वेदे (19) गायन (20) द्वौ (21) 1875 (22) अथर्ववेद (23) अथर्वाङ्गिरसवेदः (24) विंशति (25) अथर्ववेदे (26). वेदः (27) ऋग्वेदः (28) चत्वारः (29) वैदिकसाहित्ये (30) वेदाः (31) संहिता (32) ब्राह्मणरूपः (33) ब्राह्मणाः (34) आरण्यकाः (35) उपनिषद् (36) वेदांगज्योतिषं (37) वानप्रस्थानां कृते (38) ब्राह्मणग्रन्थेषु (39) शिक्षायां (40) षट् (41) व्याकरणं (42) पञ्च (43) श्रौतसूत्रेषु (44) शुल्ब सूत्रेषु (45) महर्षि यास्क (46) पञ्च (47) ऋषयः।

लघूत्तरात्मक प्रश्नाः (पूर्णवाक्येन उत्तरत)

प्रश्न 1.
सूक्तमण्डलभेदेन कः वेदः विभक्तः? (सूक्तमण्डल भेद से कौन-सा वेद विभक्त है?)
उत्तर:
सूक्तमण्डलभेदेन ऋग्वेदः विभक्तः। (सूक्तमण्डल भेद से ऋग्वेद विभक्त है।)

प्रश्न 2.
वैदिकसाहित्ये कति युगानि मन्यन्ते? नामानि लिखत। (वैदिक साहित्य में कितने युग माने जाते हैं? नाम लिखिये।)
उत्तर:
वैदिकसाहित्ये चत्वारिं युगानि मन्यन्ते। तेषाम् नामानि सन्ति-छन्दोयुगम्, मन्त्रयुगम्, ब्राह्मणयुगम् सूत्रयुगम् च। (वैदिक साहित्य में चार युग माने जाते हैं। उनके नाम हैं-छन्दयुग, मन्त्रयुग, ब्राह्मणयुग तथा सूत्रयुग।)

प्रश्न 3.
त्रयाणां वेदानां ज्योतिषां प्रणेता कः अस्ति? (तीनों वेदों के ज्योतिष शास्त्रों का प्रणेता कौन है?)
उत्तर:
त्रयाणां वेदानां ज्योतिषां प्रणेता लगधो मुनिः अस्ति। (तीनों वेदों के ज्योतिष शास्त्रों का प्रणेता लगध मुनि है।)

प्रश्न 4. वेदस्य निर्मलं चक्षुः किं मतः? (वेद का निर्मल नेत्र क्या माना गया है?)
उत्तर:
वेदस्य निर्मलं चक्षुः ज्योतिष शास्त्रम्। (वेद का निर्मल नेत्र ज्योतिषशास्त्र है।)

प्रश्न 5.
आर्चज्योतिषम् कि प्रोक्तम्? (आर्चज्योतिष किसे कहा गया है?)
उत्तर:
ऋग्वेदस्य ज्योतिषम् आर्चज्योतिषम् प्रोक्तम्। (ऋग्वेद का ज्योतिष आर्चज्योतिष कहलाया।)

प्रश्न 6.
कोलविज्ञापकं शास्त्रं किम् उच्यते? (समय बताने वाला शास्त्र क्या कहलाता है?)
उत्तर:
ज्योतिषम् कालविज्ञापकं शास्त्रम् उच्यते। (ज्योतिष समय बताने वाला शास्त्र कहलाता है।)

प्रश्न 7.
छन्दसाम् प्रथमविवेचनं कुत्र प्राप्यते? (छन्दों का प्रथम विवेचन कहाँ मिलता है?)
उत्तर:
छन्दसाम् प्रथमविवेचनं शौनक विरचिते ऋक् प्रातिशाख्यस्य चरमे भागे प्राप्यते। (छन्दों का प्रथम विवेचन शौनक्र रचित ऋक् प्रातिशाख्य के अन्तिम भाग में प्राप्त होता है।)

प्रश्न 8.
छन्दःशास्त्रस्य प्रथमग्रन्थस्य किं नाम कः च तस्य लेखकः? (छन्दशास्त्र के प्रथम ग्रन्थ का क्या नाम है और इसका लेखक कौन है?)
उत्तर:
पिङ्गल नामकेन आचार्येण विरचितः ‘पिङ्गलछन्दःसूत्र’ नाम ग्रन्थः छन्दःशास्त्रस्य प्रथमः ग्रन्थः अस्ति। (पिङ्गल नाम के आचार्य द्वारा रचा हुआ ‘पिङ्गलछन्दसूत्र’ नामक ग्रन्थ छन्दशास्त्र को प्रथम ग्रन्थ है।)

प्रश्न 9.
व्याकरणस्य का अपेक्षा भवति। (व्याकरण से क्या अपेक्षा की जाती है?)
उत्तर:
भाषायाः व्युत्पादनाय शुद्धये वा व्याकरणस्य अपेक्षा भवति। (भाषा की व्युत्पत्ति करने के लिए अथवा शुद्धि के लिए व्याकरण की अपेक्षा होती है।)

प्रश्न 10.
केन कारणेन व्याकरणस्य वेदाङ्गत्वं समर्थ्यते? (किस कारण से व्याकरण का वेदाङ्गत्व समर्थित है?).
उत्तर:
वेदरक्षाक्षमतया व्याकरणस्य वेदाङ्गत्वं समर्थ्यते। (वेद रक्षा की क्षमता द्वारा व्याकरण का वेदाङ्ग होना समर्थित है।)

प्रश्न 11.
कल्पग्रन्थाः कति प्रकाराः सन्ति? (कल्पग्रन्थ कितने प्रकार के हैं?).
उत्तर:
कल्पग्रन्थाः चतुष्प्रकाराः सन्ति-श्रौतसूत्राणि, गृह्यसूत्राणि, धर्मसूत्राणि शुल्बसूत्राणि च। (कल्प ग्रन्थ चार प्रकार के हैं-श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्मसूत्र और शुल्बसूत्र)।

प्रश्न 12.
शुल्बसूत्रेषु के नियमाः निरूपिताः? (शुल्बसूत्रों में कौन से नियम वर्णित हैं?)
उत्तर:
शुल्बसूत्रेषु यज्ञवेद्याः निर्माणं तस्याः मापविषयकाः च नियमाः निरूपिताः। (शुल्बसूत्रों में यज्ञ वेदी के निर्माण और इसकी मापं विषयक नियम वर्णित हैं।)

प्रश्न 13.
यास्केन को ग्रन्थः लिखितः? (योस्क ने कौन-सा ग्रन्थ लिखा?)
उत्तर:
यास्केन निरुक्तः ग्रन्थः लिखितः। (यास्क ने निरुक्त ग्रन्थ लिखा।)

प्रश्न 14.
गृह्यसूत्रेषु कस्य वर्णनं विद्यते? (गृह्य सूत्रों में किसका वर्णन है?)
उत्तर:
गृह्यसूत्रेषु षोडश संस्काराणां, पञ्चमहायज्ञानां, पाकयज्ञानां, गृहनिर्माणस्य, गृहप्रवेशस्य पशुपालनस्य च इत्यादीनां विषयानां वर्णनम् अस्ति। (गृह्य सूत्रों में सोलह संस्कारों का, पञ्चमहायज्ञों का, पाक यज्ञों का, गृह निर्माण का, गृहप्रवेश का और पशुपालन आदि विषयों का वर्णन है।)

प्रश्न 15.
शिक्षायाः किम् प्रयोजनम्? (शिक्षा का क्या प्रयोजन है?)
उत्तर:
शिक्षायाः प्रयोजनं वेदमन्त्राणां शुद्धम् उच्चारणम् अस्ति। (शिक्षा का प्रयोजन वेदमन्त्रों का शुद्ध उच्चारण है।)

प्रश्न 16.
के ग्रन्थाः वैदिकसाहित्यस्य पूरकसंहिताः सन्ति? (कौन-से ग्रन्थ वैदिसाहित्य की पूरक संहिता हैं?)।
उत्तर:
ब्राह्मणम्, आरण्यकम् उपनिषदश्च वैदिकसाहित्यस्य पूरकसंहिताः सन्ति। (ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् वैदिक साहित्य की पूरक संहिता हैं।)

प्रश्न 17.
आरण्यकम् इति के साहित्यं कथ्यते? (आरण्यक किस साहित्य को कहा जाता है?)
उत्तर:
यस्य साहित्यस्य अध्ययनम् अध्यापनं च नगरग्रामाभ्यां दूरम् अरण्ये भवति स्म, तत् साहित्यम् ‘आरण्यके’ कथ्यते। (जिस साहित्य का अध्ययन और अध्यापन नगरों-गाँवों से दूर वन में होता था, उस साहित्य को आरण्यक कहा जाता है।)

प्रश्न 18.
सामगानस्य आरम्भः केन शब्देन भवति? (सामगीन को आरम्भ किस शब्द से होता है?)
उत्तर:
सामगानस्य आरम्भः ‘ॐ’ इति शब्देन भवति। (सामगान का आरम्भ ‘ॐ’ शब्द से होता है।)

प्रश्न 19.
सामगानस्य प्राणाः के सन्ति? (सामगान के प्राण क्या हैं?)
उत्तर:
सामगानस्य प्राणाः स्वराः सन्ति। (सामगान के प्राण स्वर हैं।)

प्रश्न 20.
वेदस्य प्रसिद्धिः श्रुतिरूपेण अस्ति’ अस्य कारणं लिखत। (‘वेद की प्रसिद्धि श्रुतिरूप में है इसका कारण लिखो।)
उत्तर:
वेदाः श्रुतिपरम्परया एव प्राचीनकालात् इदानीं पर्यन्तं सुरक्षिताः सन्ति, अतः एतेषां प्रसिद्धिः श्रुतिरूपेण अस्ति। (वेद श्रुति-परम्परा से ही प्राचीनकाल से अब तक सुरक्षित हैं, अतः इनकी प्रसिद्धि श्रुति के रूप में है।)

प्रश्न 21.
वेदाङ्गानि कति सन्ति? तेषा नामानि लिखत। (वेदाङ्ग कितने हैं? उनके नाम लिखिए।)
उत्तर:
वेदाङ्गानि षड् सन्ति-

  1. शिक्षा,
  2. कल्पः,
  3. निरुक्तम्,
  4. व्याकरणम्,
  5. छन्दः,
  6. ज्योतिषश्च।

(वेदाङ्ग छः हैं-

  1. शिक्षा,
  2. कल्प,
  3. निरुक्त,
  4. व्याकरण,
  5. छन्द और
  6. ज्योतिष।

प्रश्न 22.
शिक्षाशास्त्रे किं वर्णितम् अस्ति? (शिक्षाशास्त्र में क्या वर्णित है?)
उत्तर:
शिक्षाशास्त्रे मन्त्राणामुच्चारणस्य ज्ञानं स्वरज्ञानं च वर्णितम् अस्ति। (शिक्षाशास्त्र में मन्त्रों के उच्चारण का ज्ञान और स्वर-ज्ञान वर्णित है।)

प्रश्न 23.
कल्पसूत्राणां वण्र्यविषयः कः? (कल्पसूत्रों का वर्ण्य-विषय क्या है?)
उत्तर:
कल्पसूत्रग्रन्थेषु वेदोक्तयागानां पूर्णपरिचयः प्रदत्तः। (कल्पसूत्रों के ग्रन्थों में वेद द्वारा बताए गये यज्ञों का पूरा परिचय दिया गया है।)

प्रश्न 24.
व्याकरणस्य किं प्रयोजनम्? (व्याकरण का क्या प्रयोजन है?)
उत्तर:
वैदिकशब्दानां शुद्धनिर्धारणम् एव व्याकरणस्य प्रयोजनम्। (वैदिक शब्दों का शुद्ध निर्धारण करना ही व्याकरण का प्रयोजन है।)

प्रश्न 25.
निरुते कस्य विवेचनं प्राप्यते? (निरुक्त में किसका विवेचन प्राप्त होता है?)
उत्तर:
निरुक्ते वैदिक शब्दानां व्युत्पत्तिपूर्वकम् अर्थ-विवेचनम् अस्ति। (निरुक्त में वैदिक शब्दों का व्युत्पत्तिपूर्वक अर्थ का विवेचन है।)

प्रश्न 26.
छन्दःशास्त्रस्य किं प्रयोजनम्? (छन्दशास्त्र का क्या प्रयोजन है?)
उत्तर:
यति-चरण-मात्रादीनां आधारेण मन्त्राणां शुद्ध-स्वरूपनिर्धारणमेव छन्दशास्त्रस्य प्रयोजनम्। (यति, चरण, मात्रा आदि के आधार से मन्त्रों के शुद्ध स्वरूप का निर्धारण ही छन्दशास्त्र का प्रयोजन है।)

प्रश्न 27.
ज्योतिषशास्त्रस्य उपयोगं लिखत। (ज्योतिषशास्त्र का उपयोग लिखिए।)
उत्तर:
ज्योतिषशास्त्रं यज्ञादिक्रियाणां निर्दोषमुहूर्तं ज्ञातुं मार्गदर्शनं करोति। (ज्योतिषशास्त्र यज्ञ आदि क्रियाओं के निर्दोष मुहूर्त को जानने के लिए मार्गदर्शन करता है।)

प्रश्न 28.
छन्दशास्त्रस्य प्रथमः आचार्यः कः आसीत्? (छन्दशास्त्र का प्रथम आचार्य कौन था?)
उत्तर:
आचार्यपिङ्गलः छन्दशास्त्रस्य प्रथमः आचार्यः आसीत्। (आचार्य पिङ्गल छन्दशास्त्र के प्रथम आचार्य थे।)

प्रश्न 29.
यजुर्वेदस्य कति भेदाः सन्ति? नामानि लिखत। (यजुर्वेद के कितने भेद हैं? नाम लिखिए।)
उत्तर:
यजुर्वेदः द्विविधः-

  1. शुक्लयजुर्वेदः,
  2. कृष्णयजुर्वेदश्च।

(यजुर्वेद दो प्रकार का है-

  1. शुक्ल यजुर्वेद,
  2. कृष्ण यजुर्वेद।)

प्रश्न 30.
वेदानां समादरस्य किं कारणम्? (वेदों के आदर का क्या कारण है?)
उत्तर:
धर्ममूलकतया वेदाः समादृताः। (धर्म का मूल होने के कारण वेद आदरणीय हैं।)

प्रश्न 31.
ब्राह्मणरूपः वेदः कथं विभक्तः? (ब्राह्मण रूप वेद कैसे विभक्त है?)
उत्तर:
ब्राह्मणानाम् अन्तिमो भागः आरण्यकाः, आरण्यकानां च अन्तिमो भागः उपनिषदः। (ब्राह्मण ग्रन्थों का अन्तिम भाग आरण्यक तथा आरण्यकों का अन्तिम भाग उपनिषद हैं।)

प्रश्न 32.
ऋग्वेदे कानि-कानि तत्त्वानि अन्तर्निहितानि सन्ति? (ऋग्वेद में कौन-कौन से तत्त्व अन्तर्निहित हैं?)
उत्तर:
ऋग्वेदे धार्मिकानि, आध्यात्मिकानि, सामाजिक-आर्थिक-राजनैतिक–दार्शनिक च तत्त्वानि अन्तर्निहितानि सन्ति।
(ऋग्वेद में धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक तथा दार्शनिक तत्त्व अन्तर्निहित हैं।)

प्रश्न 33.
ऋग्वेदे मन्त्राणां द्रष्टारः के सन्ति? तेषां नामानि लिखत। (ऋग्वेद में मन्त्रों के द्रष्टा कौन हैं? उनके नाम लिखिए।)।
उत्तर:
ऋग्वेदे मन्त्राणां द्रष्टारः ऋषयः सन्ति। ते च गृत्समद-विश्वामित्र-वामदेव-अत्रि-भरद्वाज-वशिष्ठादयः सन्ति। (ऋग्वेद में मन्त्रों के द्रष्टा ऋषि हैं और वे गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भरद्वाज, वशिष्ठ आदि हैं।)

प्रश्न 34.
मन्त्राणां यज्ञानां च विषये कि विश्वासः? (मन्त्रों और यज्ञों के विषय में क्या विश्वास है?)
उत्तर:
मन्त्रैः येषां देवांना आह्वानं यज्ञेषु क्रियते ते देवा: यज्ञे आगत्य यजमानस्य कामनानां पूर्तिः कुर्वन्ति इति विश्वासः। (मन्त्रों के द्वारा जिन देवताओं का आह्वान यज्ञों में किया जाता है, वे देवता यज्ञ में आकर यजमान की कामनाओं की पूर्ति करते हैं, ऐसा विश्वास है।)

प्रश्न 35.
यजुर्वेदस्य कति भागाः सन्ति? (यजुर्वेद के कितने भाग हैं?)
उत्तर:
यजुर्वेदस्य द्वौ भागौ स्त:-शुक्लयजुर्वेदः कृष्णयजुर्वेदश्च। (यजुर्वेद के दो भाग हैं-शुक्लयजुर्वेद और कृष्णयजुर्वेद।)

प्रश्न 36.
शुक्ल यजुर्वेदस्य कति संहिताः सन्ति? (शुक्ल यजुर्वेद की कितनी संहिताएँ हैं?)
उत्तर:
शुक्ल यजुर्वेदस्य माध्यन्दिनी अथवा वाजसनेयी संहिता काण्व संहिता च स्तः। (शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनी अथवा वाजसनेयी संहिता और काण्व संहिता हैं।)

प्रश्न 37.
कृष्णयजुर्वेदस्य कति संहिताः उपलभ्यन्ते? (कृष्ण यजुर्वेद की कितनी संहिता उपलब्ध होती हैं?)
उत्तर:
कृष्णयजुर्वेदस्य चतस्रः संहिताः उपलभ्यन्ते-तैत्तरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता कपिष्ठलकठ संहिता च। (कृष्ण यजुर्वेद की चार संहिताएँ उपलब्ध होती हैं-तैत्तरीय संहिता, मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता और कपिष्ठलकठ संहिता।)

प्रश्न 38.
यजुर्वेदस्य मन्त्राणां पुरोहितः कः कथ्यते? (यजुर्वेद के मन्त्रों के पुरोहित को क्या कहा जाता है?)
उत्तर:
यजुर्वेदस्य मन्त्राणां पुरोहितः अध्वर्युः कथ्यते। (यजुर्वेद के मन्त्रों के पुरोहित को अध्वर्यु कहा जाता है।)

प्रश्न 39.
सामवेदस्य कति शाखा उपलभ्यतन्ते? (सामवेद की कितनी शाखा प्राप्त होती हैं?)
उत्तर:
सामवेदस्य तिस्रः शाखा उपलभ्यन्ते-राणायनीयः कौथुमीयः, जैमनीयः अथवा तलवकारः इति। (सामवेद की तीन शाखाएँ प्राप्त होती हैं-राणायनीय, कौथुमीय, जैमनीय अथवा तलवकार।)

प्रश्न 40.
सामवेदः कति भेदेषु विभक्तः? (सामवेद कितने भेदों में विभक्त है?)
उत्तर:
सामवेदः पूर्वार्चिक: उत्तरार्चिकः च इति द्वयोः भेदयोः विभक्तः। (सामवेद पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक इन दो भेदों में विभक्त है।)

प्रश्न 41.
अथर्ववेदस्य कति शाखाः उपलभ्यन्ते? (अथर्ववेद की कितनी शाखाएँ उपलब्ध होती हैं?)
उत्तर:
अथर्ववेदस्य द्वे शाखे उपलभ्येते-शौनकीय शाखा पैप्पलाद शाखा च। (अथर्ववेद की दो शाखाएँ उपलब्ध होती हैं-शौनकीय शाखा और पिप्पलाद शाखा।)

प्रश्न 42.
ब्राह्मणग्रन्थाः के सन्ति? (ब्राह्मण ग्रन्थ क्या हैं?)
उत्तर:
ब्रह्मन् शब्दः वेदे मन्त्र-यज्ञ-रहस्यादीनाम् अर्थानां वाचकः। अतः ब्राह्मणग्रन्थेषु मन्त्राणां व्याख्या क्रियते। ब्राह्मणं नाम कर्मणः तत् मन्त्राणां व्याख्या ग्रन्थाः। (ब्रह्मन् शब्द वेद में मन्त्र, यज्ञ, रहस्य आदि अर्थों का वाचक है। अतः ब्राह्मण ग्रन्थों में मन्त्रों की व्याख्या की गई है। ब्राह्मण नाम कर्म और उन मन्त्रों के व्याख्या ग्रन्थ हैं।)

प्रश्न 43.
उपनिषद्’ शब्दस्य कः अर्थः? (उपनिशद्’ शब्द का अर्थ क्या है?)
उत्तर:
तत्वज्ञानाय गुरुसमीपे निष्ठया श्रद्धया वा उपवेशनम् उपनिषद् इति शब्दस्य अर्थः अस्ति। (उपनिषद् शब्द का अर्थ है-तत्त्वज्ञान के लिए गुरु के पास निष्ठा अथवा श्रद्धा से बैठना।)

प्रश्न 44.
शिक्षाग्रन्थेषु के विषयाः वर्णिताः? (शिक्षा ग्रन्थों में कौन से विषय वर्णित हैं?)
उत्तर:
वर्णस्य उच्चारणस्थानं, प्रयत्नः, कति स्वराः सन्ति, कस्य स्वरस्य कस्मात् स्थानात् उच्चारणं भवति इत्यादयः . विषयाः शिक्षाग्रन्थेषु वर्णिताः। (वर्ण का उच्चारण स्थान, प्रयत्न, स्वर कितने हैं, किस स्वर का कौन से स्थान से उच्चारण होता है, आदि विषय शिक्षा-ग्रन्थों में वर्णित हैं।)

प्रश्न 45.
शिक्षायाः कति अङ्गानि सन्ति? नामानि लिखत। (शिक्षा के कितने अङ्ग हैं? नाम लिखिए।)
उत्तर:
शिक्षायाः षड् अङ्गानि सन्ति-वर्ण-स्वर-मात्रा-बल-साम संतानश्च। (शिक्षा के छः अङ्ग हैं-वर्ण, स्वर, मात्रा, बल, साम और सन्तान।)

प्रश्न 46.
व्याकरणं किमस्ति? (व्याकरण क्या है?)
उत्तर:
यस्मिन् शब्दस्य प्रकृति-प्रत्यायादीनां च विवेचनं क्रियते तद् व्याकरणं भवति। (जिसमें शब्द के प्रकृति और प्रत्यय आदि का विवेचन किया जाता है, वह व्याकरण होता है।)

प्रश्न 47.
व्याकरणस्य कति प्रयोजनानि सन्ति? (व्याकरण के कितने प्रयोजन हैं?)
उत्तर:
रक्षा (वेदानां रक्षा), ऊहः (विभक्त्यादीनां यथास्थानं परिवर्तनम्), आगमः (वेदाध्ययनम्), लघुः (शब्दज्ञानं संक्षेपे), असंदेहः (सन्देह निवारणम्) – इति व्याकरणस्य पञ्च प्रयोजनानि सन्ति। (वेदों की रक्षा, विभक्ति आदि का यथास्थान परिवर्तन, वेदों का अध्ययन, संक्षेप में शब्दज्ञान, और सन्देह का निवारण-व्याकरण के ये पाँच प्रयोजन हैं।)

प्रश्न 48.
वेदानां समादरस्य कारणं संक्षेपेण लिखत। (वेदों के आदर का कारण संक्षेप में लिखिए।)।
उत्तर:
धर्ममूलकतया वेदाः समादृताः। वेदाः संसारे प्राचीनतमाः ग्रन्थाः सन्ति। सर्वासां भारतीय विद्यानां आधाराः अपि वेदाः एव सन्ति। वेदाः एव भारतीय संस्कृतेः मूल स्रोतांसि सन्ति, यतः वेदैः एव भारतीय संस्कृतेः यथार्थस्वरूपस्य ज्ञानम् उपलभ्यते। (धर्ममूलकता के कारण वेद आदरणीय हैं। वेद संसार में प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। सभी भारतीय विद्याओं के आधार भी वेद ही हैं। वेद ही भारतीय संस्कृति के मूल स्रोत हैं, क्योंकि वेदों से ही भारतीय संस्कृति के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान उपलब्ध होता है।)

प्रश्न 49.
भारतीय संस्कृतेः मूलतत्त्वानि कानि सन्ति? ( भारतीय संस्कृति के मूल तत्त्व क्या हैं?)
उत्तर:
यज्ञेषु अखण्डविश्वासः, एकात्मवादस्य स्वीकृत्या सह बहुदेवतावादे विश्वासः, निष्काम कर्मणा कर्तव्यता, परमात्मतत्त्वस्य सर्वव्यापकता, ज्ञान-कर्मणोः समन्वयः, भौतिकवादं प्रति अनास्था, पुनर्जन्मनि विश्वासः पुरुषार्थचतुष्टयस्य संप्राप्तिः च भारतीय संस्कृतेः मूलतत्त्वानि सन्ति। (यज्ञों में अखण्ड विश्वास, एकात्मवाद की स्वीकृति के साथ बहुदेवतावाद में विश्वास, निष्काम कर्म, परमात्म तत्त्व की सर्वव्यापकता, ज्ञान और कर्म का समन्वय, भौतिकवाद के प्रति अनास्था, पुनर्जन्म में विश्वास तथा पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति भारतीय संस्कृति के मूल तत्त्व हैं।)

प्रश्न 50.
ब्राह्मणरूपवेदः कथं विभक्तः। (ब्राह्मणरूपी वेद कैसे विभक्त हैं?)
उत्तर:
वैदिकसंहितायाः अन्तिमः भागः ब्राह्मणम्, ब्राह्मणस्य अन्तिमः भागः आरण्यकम्, आरण्यकस्य अन्तिमः भागः उपनिषदः च सन्ति। एवं आरण्यकग्रन्थाः उपनिषद्-ब्राह्मणयो: मध्यवर्तिनः सन्ति। (वैदिक संहिता का अन्तिम भाग ब्राह्मण, ब्राह्मण का अन्तिम भाग आरण्यक तथा आरण्यक का अन्तिम भाग उपनिषद् हैं। इस प्रकार आरण्यक ग्रन्थ उपनिषद् तथा ब्राह्मण ग्रन्थों के मध्यवर्ती हैं।)

प्रश्न 51.
अधोलिखितरचनानां लेखकानां नामानि लिखत- (निम्नलिखित रचनाओं के लेखकों के नाम लिखिए-) रचनानां नामानि
उत्तर:
लेखकानां नामानि

  1. पिङ्गले छन्दःसूत्रम् – आचार्य पिङ्गलः
  2. ऋक् प्रातिशाख्यम्। – शौनकः
  3. अष्टाध्यायी – पाणिनि
  4. निरुक्त – यास्क
  5. ऋग्वैदिक इण्डिया – डॉ. अविनाशचन्द्र:

प्रश्न 52.
अधोलिखितानां व्यक्तित्वं कृतित्वं च लिखत-(निम्नलिखित का व्यक्तित्व एवं कृतित्व लिखिये-)
(क) पाणिनि,
(ख) पिङ्गल।
उत्तर:
(क) पाणिनि-अयं महान् वैयाकरणः अभवत्। पाणिनिः ‘अष्टाध्यायी’ इति व्याकरणग्रन्थं लिखितवान्। ग्रन्थोऽयं सूत्रात्मकः। कात्यायनः अस्य वार्तिकम् अलिखत्। पतञ्जलिः अस्य महाभाष्यं लिखित्वा इमं सर्वबोध्यमकरोत। एवं मुनित्रयस्य इदं व्याकरणं प्रसिद्धम्। (पाणिनि महान् वैयाकरण हुए। पाणिनि ने ‘अष्टाध्यायी’ नाम के व्याकरण ग्रन्थ को लिखा। यह ग्रन्थ सूत्रबद्ध है। कात्यायन ने इसकी वार्तिक लिखी। पतञ्जलिं ने इसका महाभाष्य लिखकर इसे सबके लिए सुबोध बना दिया। इस प्रकार तीनों मुनियों का यह व्याकरण प्रसिद्ध है।)

(ख) पिङ्गलः-अयम् आचार्य: छन्दःशास्त्रस्य ज्ञाता अभवत्। आदौ तु शौनकविरचितऋक्प्रातिशाख्यस्य अन्तिमे भागे एव छन्दसां विवेचनम् उपलब्धम् आसीत्। एषः पिङ्गलाचार्यः सर्वप्रथम पिङ्गलछन्द:सूत्र नामानं प्रसिद्ध छन्दःशास्त्र ग्रन्थं रचितवान्। अत्र लौकिकानि वैदिकानि च छन्दांसि विवेचितानि सन्ति। अस्य नाम्ना एवं छन्दःशास्त्रः पिङ्गलशास्त्रः अपि उच्यते। (यह आचार्य छन्दशास्त्र का ज्ञाता हुआ। आरम्भ में शौनक-रचित ऋक्प्रातिशाख्य के अन्तिम भाग में ही छन्दों का विवेचन उपलब्ध था। इस पिङ्गलाचार्य ने सबसे पहले पिङ्गल छन्द:सूत्रम्’ नामक प्रसिद्ध छन्दशास्त्र की रचना की। यहाँ लौकिक और वैदिक छन्दों के विवेचन हैं। इसके नाम से ही छन्दशास्त्र पिङ्गलशास्त्र भी कहलाता है।)

वेद इति शब्द …………………………………….. वेदाधारितं वर्तते। (पृष्ठ 116)

(क) वैदिक साहित्य-वेद शब्द विद् धातु (विद् = जानना) से घञ् प्रत्यय होने पर निष्पन्न होता है जिसका अर्थ है। ‘ज्ञान’। हमारे प्राचीन ऋषियों द्वारा अपनी साधना से जिस ज्ञान को अर्जित अथवा अनुभूत किया गया, उसका संग्रह वेदों में है। वेद को ‘श्रुति’ (शब्द से) भी कहा जाता है। आचार्य तथा गुरु वेदमन्त्रों का उच्चारण करके शिष्यों को पढ़ाते थे और शिष्य श्रवण मात्र से (सुनने मात्र से) निरन्तर अभ्यास के द्वारा मन्त्रों का स्मरण और वेदों के अर्थ का अवबोधन करते थे, अर्थात् वेदों के अर्थ को जानते थे। अतः गुरु परम्परा से वेदों का संरक्षण सुनने मात्र से था।

वेद ईश्वर के वचन भी हैं। दूसरे प्रकार से जिसका ज्ञान नहीं होता उसका ज्ञान वेद से ही किसी भी प्रकार होता है। अतः वेदों का प्रमाण परम प्रमाण स्वीकार किया जाता है। भारतीय संस्कृति का वास्तविक ज्ञान भी वेद से ही हो सकता है। वेद हमारे कर्त्तव्य-अकर्तव्य के बोधक, प्राचीन सामाजिक व्यवस्था के परिचायक और ऐतिहासिक तथ्यों उद्घाटन करने वाले हैं। विश्व वाङ्मय में वेद ही आदि ग्रन्थ हैं। इसलिए भाषा का

वैज्ञानिक अध्ययन भी वेदों पर आधारित है। वेदानां रचनाकाल …………………………………….. प्रचलितमिति ज्ञेयम्। (पृष्ठ 116)
वेदों का रचनाकाल-वेदों के रचनाकाल के विषय में विद्वानों में एक मत नहीं है। प्राचीन भारतीय विद्वानों का मत है कि वेद अपौरुषेय हैं और इस प्रकार वेद हमारे शाश्वत निधिरूप हैं। पाश्चात्य विद्वान और उनके समर्थक भारतीय विद्वान अपनी बुद्धि के अनुसार वेदों के रचनाकाल को निर्धारित करते हैं। इन विद्वानों में मैक्समूलर, याकोबी, विन्टरनित्स, शंकरबालकृष्णदीक्षित, बालगंगाधर तिलक महोदय हैं। इन सभी विद्वानों के मतों की समालोचना विद्वानों के द्वारा की गई है।

और समालोचना से निर्णय प्राप्त होता है कि वेदों के मन्त्रभाग का निर्माण सबसे पहले हुआ। उसके बाद महर्षि कृष्ण द्वैपायन व्यास के द्वारा मन्त्रों की संहिता का निर्माण किया गया। कृष्ण द्वैपायन व्यास का समय 312 ई. पू. था। अतः वेदों की संहिता का समय यही है। ज्योतिषशास्त्र की गणना के अनुसार तिलक महोदय ने मन्त्रों का आरम्भिक निर्माण काल 6000 ई.पू. स्वीकार किया है। उसके बाद ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद और सूत्र साहित्य का निर्माण बुद्ध के समय तक प्रचलित माना है, ऐसा जानना चाहिए।

ऋग्वेदे देवानां …………………………………….. कर्वन्तीति विश्वासः। (पृष्ठ 116)

ऋग्वेद-ऋग्वेद में देवताओं की स्तुति के मन्त्र हैं। स्तुति मन्त्र ‘ऋचा’ (नाम से) जाने जाते हैं। ऋचाओं से देवताओं का यज्ञ आदि कार्यों में आह्वान किया जाता है। अब ऋग्वेद की शाकल शाखा ही उपलब्ध है। इसमें-अग्नि, इन्द्र, वायु (मरुत), अश्विनी कुमार इत्यादि देवताओं की स्तुतियाँ हैं। ऋग्वेद के दश मण्डल हैं जिनमें 85 अनुवाक, 1028 सूक्त 10552 मंत्र हैं। इस वेद में धार्मिक, आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, दार्शनिक तत्व अन्तर्निहित हैं। ऋग्वेद की स्तुतियों में प्रयुक्त मन्त्रों के दृष्टा (मन्त्रदृष्टा) ऋषि हैं। वे-गृत्समद्, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज और वशिष्ठ आदि हैं। मन्त्रों से जिन देवताओं का आह्वान यज्ञों में किया जाता है, वे देवता यज्ञ में आकर यजमान की कामनाओं की पूर्ति करते हैं, ऐसा विश्वास है।

यजुर्वेदः कर्मकाण्डस्य …………………………………….. अध्वर्युः कथ्यते। (पृष्ठ 116-117)

यजुर्वेद-यजुर्वेद कर्मकाण्ड का वेद है। यजुर्वेद में जिन मन्त्रों का संग्रह है वे ‘यजुष्’ इस नाम से कहे जाते हैं। यजुर्वेद के दो भाग हैं-शुक्ल यजुर्वेद और कृष्ण यजुर्वेद। इन दोनों वेदों के मन्त्र विविध यज्ञों में पढ़ जाते हैं। शुक्ल यजुर्वेद विशुद्ध मन्त्रात्मक है, लेकिन कृष्ण यजुर्वेद में उन मन्त्रों की व्याख्या, विवरण और विनियोग हैं। इसलिए यह वेद कृष्ण यजुर्वेद कहा जाता है। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिनी अथवा वाजसनेयी संहिता और काण्व संहिता हैं। कृष्ण यजुर्वेद की चार संहिताएँ उपलब्ध होती हैं-तैत्तरीयसंहिता, मैत्रायणीसंहिता, काठकसंहिता और कपिष्ठलकठ संहिता। यजुर्वेद के मन्त्रों का पुरोहित अध्वर्यु कहा जाता है।

सामवेदः ऋग्वेदस्य मन्त्राः ……………………………………..मन्त्रसंख्या 1875 अस्ति। (पृष्ठ 117)

सामवेद-ऋग्वेद के मन्त्र जब विशिष्ट गान पद्धति से गाये जाते हैं तब वे सामन् (प्रशंसात्मक गान) कहे जाते हैं। ‘सामन्’ इस शब्द का अर्थ ही ‘गान’ है। यज्ञ के अवसर पर उद्गाता इन मन्त्रों का गायन करता है। सामवेद में-सोम (लता विशेष जिसका रस यज्ञ के काम आता है) का, सोमरस का, सोमपान का और सोमयज्ञ का वैशिष्ट्य है। सोम ही ब्रह्म तत्व है। अतः संगीत से भक्ति और उस ब्रह्म की प्राप्ति सामवेद में की जाती है।

सामवेद की तीन शाखाएँ उपलब्ध होती हैं-राणानीय, कौथुमीय, और जैमनीय अथवा तलवकार। यह वेद पूर्वार्चिक और उत्तरार्चिक इन दो भेदों में विभक्त है। पूर्वार्चिक में अग्नि, इन्द्र, पवमान और सोम से सम्बन्धित मन्त्र हैं। इन मन्त्रों के राग और लय का प्रयोग उत्तरार्चिक में है। सामवेद के मन्त्रों की संख्या 1875 है।

अथर्ववेदः अथर्वन् …………………………………….. अथर्ववेदेन जायते। (पृष्ठ 117)

अथर्ववेद-अथर्ववेद अथर्वन् इस शब्द से बना है। इस वेद में ब्रह्म साक्षात्कार की विद्या का अथवा आत्मविद्या का उपदेश है। इस वेद का प्राचीन नाम अथर्वाङ्गिरस वेद है। यह ब्रह्म वेद भी कहा जाता है। इसकी दो शाखाएं उपलब्ध होती हैं शौनकीय शाखा और पिप्पलाद शाखा। यह वेद 20 काण्डों में विभक्त है, इस वेद में उस समय प्रचलित रीति, नियम आदि का, प्रथाओं का, मारण-उच्चाटन अभिचारों का, सम्मोहन आदि विद्याओं को, औषधियों का, इंद्रजालों का वर्णन उपलब्ध होता है। भारतीय समाज की सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान तथा इतिहास का ज्ञान अथर्ववेद से होता है। ब्रह्मन्

शब्दः वेदे …………………………………….. अथर्ववेदस्य गोपथ ब्राह्मणः। (पृष्ठ 117)

ब्राह्मण ग्रंथ-ब्रह्मन् शब्द वेद में मंत्र, यज्ञ, रहस्य आदि अर्थों का वाचक है। अतः ब्राह्मण ग्रंथों में मंत्रों की व्याख्या की गई है। ब्राह्मण नाम कर्म और उसके मंत्रों को व्याख्यान ग्रंथ है। यज्ञ के कर्मकांड के नियम, यज्ञ के महत्त्व को बतलाना, आध्यात्मिक विचारों का समन्वय इन ग्रंथों में उपलब्ध होता है। मंत्रों का यज्ञ में कैसे विनियोग किया जाए-इसकी विवेचना इन ग्रंथों में की गई है। ब्राह्मण ग्रंथों की भाषा सरल, सरस, और प्रसाद गुण से युक्त है। ऋग्वेद के ऐतरेय और शांखायन ये दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं। शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण, कृष्ण यजुर्वेद का तैत्तरीय ब्राह्मण, सामवेद के पंचविंश (तांड्य या। प्रौढ़) ब्राह्मण, षड्विंश (अन्तिम प्रपाठक में अद्भुत) ब्राह्मण ग्रन्थ, सामविधान, आर्षेय, दैवत, छान्दोग्य, संहितोपनिषद्, वंश जैमनीयं ब्राह्मण हैं। अथर्ववेद का गोपथ ब्राह्मण है।

उपनिषद् शब्द …………………………………….. श्वेताश्वतराः इति। (पृष्ठ 117-118)

उपनिषद्-उपनिषद् शब्द ‘उप + नि’ उपसर्गपूर्वक ‘सद्’ धातु से ‘क्विप्’ प्रत्यय के प्रयोग से उत्पन्न हुआ है। ‘उप’ का अर्थ है निष्ठा के साथ समीप में बैठना। ‘तत्वज्ञान के लिए गुरु के पास (समीप) में निष्ठा अथवा श्रद्धा से बैठना’ यह उपनिषद् शब्द का अर्थ है। तत्वज्ञान अथवा ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति से मनुष्य अपने अज्ञान के आवरण को दूर करके आधिभौतिक, आधिदैविक तथा आध्यात्मिक दुःखों के नाश और मोक्ष प्राप्ति के लिए प्रयास कर सकता है।

‘सद्’ = सदलु धातु के विनाश, प्राप्त और शिथिल ये तीन अर्थ हैं। विशरण का अर्थ विनाश है, जिससे संसार की अविद्या का नाश होता है। गति अर्थात् प्राप्ति जिससे ब्रह्मणत्व की प्राप्त होती है। अवसादनम् अर्थात् शैथिल्यम, जिससे मनुष्य के दु:ख आदि शिथिलता को प्राप्त होते हैं।

उपनिषद् ग्यारह हैं-ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक, श्वेताश्वतरा।

अरण्ये अध्ययनं क्रियते …………………………………….. आरण्यकम् उपलब्धं नास्ति। (पृष्ठ 118)

आरण्यक ग्रन्थ-अरण्य अर्थात् जंगल में अध्ययन किया जाता है, इसलिए यह आरण्यक ग्रंथ हैं। इन ग्रंथों में आत्मविद्या का और तत्व चिंतन रहस्य विद्या का वर्णन है। उपनिषद् ग्रंथों में जो आत्मा, परमात्मा, सृष्टि, कर्म, तत्व ज्ञान आदि का वर्णन उपलब्ध होता है, उन तत्त्वों का प्रारम्भिक ज्ञान आरण्यकों में प्राप्त होता है। ये ग्रन्थ गृहस्थ से निवृत्त हुए वानप्रस्थियों के लिए हैं। वे वन में निवास करते हुए जप, तप, स्वाध्याय, मनन, चिन्तन आदि करते हैं। आरण्यक ग्रन्थ प्रत्येक वेद के अनुसार हैं, जैसे ऋग्वेद के दो आरण्यक ऐतरेय और शांखायन हैं। कृष्णयजुर्वेद के भी तैत्तरीय आरण्यक तथा मैत्रायणीय आरण्यक हैं। सामवेद के तलवकार तथा छान्दोग्य आरण्यक हैं। अथर्ववेद का कोई भी आरण्यक प्राप्त नहीं है।

वेदस्य अङ्गानि …………………………………….. अंसदेहः (संदेहनिवारणम् इति)। (पृष्ठ 118)
वेदाङ्ग-वेद के अङ्ग, वेदाङ्ग कहे जाते हैं। जिनसे चिह्नित किये जाते हैं, जाने जाते है, वे अंग होते हैं। वस्तुओं के यथार्थ रूप का ज्ञान अङ्गों से होता है। वेदों के वेदाङ्ग छः प्रकार के हैं-शिक्षा, कल्प, व्याकरण, छन्द, निरुक्त, ज्योतिष।

शिक्षा में वेद मन्त्रों के उच्चारण की शिक्षा दी जाती है। वर्ण का उच्चारण स्थान, प्रयत्न, कितने स्वर हैं, किस स्वर का किस स्थान से उच्चारण होता है, आदि विषय शिक्षाग्रन्थों में वर्णित हैं। वेद की प्रत्येक शाखा से सम्बद्ध शिक्षा-ग्रन्थ प्रातिशाख्य ग्रन्थ भी कहे जाते हैं। शिक्षा के भी छः अङ्ग हैं-वर्ण, स्वर, मात्रा, बल, साम और संतान। व्याकरण को मुख माना है, इस प्रकार व्याकरण वेद का मुखरूप माना जाता है। जिसके द्वारा शब्दों के विश्लेषण किये जाते हैं तथा शब्दों की विवेचना की जाती है वह व्याकरण है। अर्थात् जिसमें शब्द की प्रकृति-प्रेत्यय आदि की विवेचना की जाती है वह व्याकरण होता है। व्याकरण के पाँच प्रयोजन हैं-रक्षा (वेदों की रक्षा), अनुमान (विभक्ति आदि का यथास्थान परिवर्तन), वेद (वेदों का अध्ययन), संक्षेप (संक्षेप में शब्दज्ञान) असंदेह (सन्देह का निवारण)।

कल्पोहि नाम …………………………………….. एतेषु ग्रन्थेषु दृश्यते। (पृष्ठ 118)

कल्प-वेद विहित कर्मों के यथाक्रम कल्पनाशास्त्र का नाम कल्प है, अर्थात् इन ग्रन्थों में वैदिक कर्मों का क्रमबद्ध व व्यवस्थित रूप से वर्णन है। कल्पग्रन्थ चार प्रकार के हैं-श्रौतसूत्र, गृह्यसूत्र, धर्म सूत्र और शुल्वे सूत्र। वैदिक यज्ञों का क्रमबद्ध वर्णन श्रौतसूत्रों में प्राप्त होता है। गृह्य सूत्रों में सोलह संस्कारों का, पाँच महायज्ञों का, पाक यज्ञों का, गृह निर्माण का, गृह प्रवेश का, पशुपालन आदि विषयों का वर्णन है। धर्मसूत्रों में धर्म, नीति, रीति, प्रथा, चार प्रकार के वर्षों और आश्रमों का, कत्तव्यों का तथा सामाजिक नियमों का उल्लेख है।

शुल्व सूत्रों में यज्ञवेदी का निर्माण और उसकी नाप के नियम निरूपित हैं। भारतीय प्राचीन ज्यामिति विषय का दर्शन इन ग्रन्थों में होता है। प्राचीनतम गणितशास्त्र भी इन ग्रन्थों में दिखाई देता है।

वैदिक मन्त्राणां …………………………………….. प्राचीनतमः ग्रन्थः वर्तते। (पृष्ठ 119)

छन्द-वैदिक मंत्रों के सही रूप से उच्चारण के लिए छंदों का ज्ञान अनिवार्य है। छंदों में आच्छादन अर्थात् छन्द से युक्त भावों का आच्छादन अथवा सही रूप से प्रकाशन किया जाता है। छन्दों का ज्ञान शांखायन श्रौतसूत्र में, ऋग्वेद प्रातिशाख्य में, सामवेद के निदान सूत्र में और पिंगल प्रणीत छन्द सूत्र में उपलब्ध होता है। निरुक्त ग्रन्थ में वैदिक शब्दों का अर्थ निर्वचन पद्धति से दिया गया है। इस ग्रन्थ के रचयिता महर्षि यास्क थे। निघण्टु। यह वैदिक शब्दकोष की व्याख्या एवं निरुक्त है। निघण्टु ग्रन्थ में पाँच अध्याय हैं। निरुक्त में वर्णागम, वर्ण विपर्यय, वर्णविकार, वर्णनाश आदि और धातुओं को अनेक अर्थों में प्रयोग है।

ज्योतिष ग्रन्थों की उपयोगिता वैदिक यज्ञ-यागादि के शुभ और उपयुक्त मुहूर्त निर्धारण के लिए है। आचार्य लगध का वेदांगज्योतिष ग्रन्थ ज्योतिषशास्त्र का प्राचीनतम ग्रन्थ है।

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