RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 2 मूलभूत अवधारणाएँ-I (समाज, समुदाय, समूह, प्रस्थिति एवं भूमिका)

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 मूलभूत अवधारणाएँ-I (समाज, समुदाय, समूह, प्रस्थिति एवं भूमिका)

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर  

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘समाज’ नामक पुस्तक के लेखक कौन हैं?
(अ) पारसंस
(ब) मार्क्स
(स) बॉटोमोर
(द) मैकाइवर एवं पेज।
उत्तर:
(द) मैकाइवर एवं पेज।

प्रश्न 2.
सामाजिक संबंधों के जाल को हम क्या कहते हैं?
(अ) समुदाय
(ब) संस्था
(स) समाज
(द) समिति।
उत्तर:
(स) समाज

प्रश्न 3.
व्यक्तियों के उस संगठन को क्या कहते हैं जो एक निश्चित भू-भाग पर रहता है?
(अ) समूह
(ब) समुदाय
(स) समिति
(द) संस्था
उत्तर:
(ब) समुदाय

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प्रश्न 4.
निम्नलिखित में से किसे एक समुदाय के रूप में स्वीकार किया जा सकता है?
(अ) छात्र संघ
(ब) जनजाति
(स) परिवार
(द) भीड़।
उत्तर:
(ब) जनजाति

प्रश्न 5.
किस समाजशास्त्री ने समूह का विभाजन प्राथमिक और द्वितीयक समूह में किया?
(अ) चार्ल्स कूले
(ब) समनर
(ग) चार्ल्स विनिक
(द) गिलिन एवं गिलिन
उत्तर:
(अ) चार्ल्स कूले

प्रश्न 6.
प्राथमिक समूह में संबंध किस प्रकार के होते हैं?
(अ) औपचारिक
(ब) अनौपचारिक
(स) नकारात्मक
(द) सकारात्मक।
उत्तर:
(ब) अनौपचारिक

प्रश्न 7.
कूले के अनुसार कौन-सा प्राथमिक समूह का उदाहरण है?
(अ) परिवार
(ब) पड़ोस
(स) क्रीड़ा समूह
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 8.
“प्रस्थिति संस्थात्मक भूमिका है।” यह कथन किस विद्वान का है?
(अ) सदरलैण्ड का
(ब) फिचर का
(स) वीरस्टीड का
(द) विलियम गुडे का।
उत्तर:
(स) वीरस्टीड का

प्रश्न 9.
“भूमिका प्रस्थिति का गत्यात्मक पक्ष है।” यह कथन किस विद्वान का है?
(अ) मर्टन
(ब) वीरस्टीड
(स) जॉनसन
(द) लिंटन।
उत्तर:
(द) लिंटन।

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प्रश्न 10.
प्रदत्त प्रस्थितियों की बहुलता किस प्रकार के समाज की द्योतक है?
(अ) द्वितीयक समाज
(ब) मुक्त समाज
(स) बंद समाज
(द) वृहद् समाज।
उत्तर:
(स) बंद समाज

प्रश्न 11.
अर्जित प्रस्थिति किससे संबंधित होती है?
(अ) योग्यता से
(ब) जन्म से
(स) शक्ति से
(द) जाति से।
उत्तर:
(अ) योग्यता से

प्रश्न 12.
वह प्रस्थिति कौन-सी है जो किसी व्यक्ति को जन्म के आधार पर प्राप्त होती है और जिसे प्राप्त करने के लिए उसे मेहनत नहीं करनी पड़ती?
(अ) प्रदत्त प्रस्थिति
(ब) अर्जित प्रस्थिति
(स) प्रदत्त भूमिका
(द) अर्जित भूमिका।
उत्तर:
(अ) प्रदत्त प्रस्थिति

प्रश्न 13.
व्यक्तिगत गुणों व योग्यता के आधार पर प्राप्त प्रस्थिति को क्या कहते हैं?
(अ) प्रदत्त प्रस्थिति
(ब) अर्जित प्रस्थिति
(स) चमत्कारिक प्रस्थिति
(द) मनोवैज्ञानिक प्रस्थिति।
उत्तर:
(ब) अर्जित प्रस्थिति

प्रश्न 14.
निम्नांकित में से कौन-सी प्रदत्त प्रस्थिति नहीं है?
(अ) प्रजाति
(ब) जाति
(स) वर्ग
(द) लिंग।
उत्तर:
(स) वर्ग

प्रश्न 15.
प्रस्थिति और भूमिका की अवधारणा किस विद्वान से संबंधित है?
(अ) मैकाइवर एवं पेज
(ब) किंग्स्ले डेविस
(स) रॉल्फ लिंटन
(द) विल्मर्ट मूर।
उत्तर:
(स) रॉल्फ लिंटन

प्रश्न 16.
मुख्य प्रस्थिति किसकी अवधारणा है?
(अ) मर्टन
(ब) दुर्थीम
(स) लिंटन
(द) हिलर।
उत्तर:
(द) हिलर।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज किसे कहते हैं?
उत्तर:
व्यक्तियों के बीच पाये जाने वाले सामाजिक सम्बन्धों के आधार पर निर्मित व्यवस्था को समाज कहा जाता है।

प्रश्न 2.
समुदाय की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
समुदाय ऐसे व्यक्तियों का संकलन है जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं तथा जिनके मध्य हम की भावना पायी जाती है।

प्रश्न 3.
समूह को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
समूह व्यक्तियों का ऐसा संकलन है जिसमें व्यक्तियों के मध्य निश्चित प्रकार के सामाजिक संबंध पाये जाते हैं तथा जिसका प्रत्येक सदस्य समूह व उसके प्रतीकों के प्रति सचेत रहता है।

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प्रश्न 4.
प्राथमिक समूह की अवधारणा किसने दी है?
उत्तर:
प्राथमिक समूह की अवधारणा चार्ल्स कूले ने दी है।

प्रश्न 5.
द्वितीयक समूह का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर :
एक ऐसा सामाजिक समूह जिसके सदस्यों के मध्य अप्रत्यक्ष, अवैयक्तिक व औपचारिक संबंध पाये जाते हैं, उसे द्वितीयक समूह कहते हैं।

प्रश्न 6.
संदर्भ समूह किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब हम अपने समूह के मानदंडों का पालन न करके किसी अन्य समूह के मानदंड को स्वीकार कर उसके साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं, तो उसे संदर्भ समूह कहते हैं।

प्रश्न 7.
प्रस्थिति को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी समाज या किसी समूह में व्यक्ति के पद को प्रस्थिति कहा जाता है।

प्रश्न 8.
प्रदत्त प्रस्थिति का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी समाज या समूह में जन्म लेते ही परम्परागत रूप से स्वतः प्राप्त होने वाली प्रस्थिति प्रदत्त प्रस्थिति कहलाती है।

प्रश्न 9.
अर्जित प्रस्थिति किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी समाज में किसी व्यक्ति द्वारा गुण, योग्यता व क्षमता के द्वारा प्राप्त प्रस्थिति को अर्जित प्रस्थिति कहते हैं।

प्रश्न 10.
भूमिका को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति विशेष द्वारा प्रस्थिति से संबंधित दायित्वों के निर्वाह व उससे संबंधित सुविधाओं एवं विशेषाधिकारों का उपयोग करना ही भूमिका कहलाता है।

प्रश्न 11.
प्रस्थिति संकुल का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समाज में व्यक्तियों द्वारा एक प्रस्थिति धारण न करके अनेक प्रस्थितियाँ धारण की जाती हैं। इन विभिन्न प्रस्थितियों के योग को प्रस्थिति संकुल कहते हैं।

प्रश्न 12.
भूमिका प्रतिमान का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक व्यक्ति अपनी प्रस्थिति से सम्बन्धित विभिन्न प्रस्थितियों को धारण करने वाले व्यक्तियों के साथ अलग-अलग प्रकार की जो भूमिका निभाता है, उसकी सम्पूर्णता को ही भूमिका प्रतिमान कहते हैं।

प्रश्न 13.
सदस्यता समूह किसे कहते हैं।
उत्तर:
सदस्यता समूह वह समूह है जो परस्पर समाज द्वारा स्थापित प्रतिमानों के अनुरूप अन्तः क्रिया करते हैं तथा वे स्वयं तथा दूसरों के द्वारा उसी समूह के सदस्य माने जाते हैं।

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प्रश्न 14.
आदिम समाज का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
आदिम समाज से तात्पर्य है एक ऐसा समाज जो आधुनिक सभ्यता की दृष्टि से पिछड़ा हुआ हो तथा जो मानवीय क्रियाओं, साहित्य, कला, विज्ञान के अभाव या निम्न स्वरूप को दर्शाता हो तथा जिसमें सामाजिक सम्पर्क सीमित हों।

प्रश्न 15.
नकारात्मक समूह का अर्थ बताइये।
उत्तर:
नकारात्मक समूह वे समूह हैं जिन्हें व्यक्ति अच्छा नहीं मानता तथा उस समूह में प्रचलित मान्यताओं का विरोध करता है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज की अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज एक अमूर्त धारणा है जो विभिन्न रीतियों, कार्य-प्रणालियों, अधिकार, पारस्परिक सहायता, अनेक समूहों व विभागों, मानव व्यवहार के नियंत्रण आदि की एक जटिल व्यवस्था है, जो स्वयं संघ, संगठन होते हुए औपचारिक संबंधों का योग है, जिसमें व्यक्ति एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। इस प्रकार सामाजिक सम्बन्धों की परिवर्तनशील जटिल व्यवस्था को ही समाज कहा जाता है।

प्रश्न 2.
मैकाइवर एवं पेज द्वारा स्पष्ट समाज की परिभाषा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मैकाइवर एवं पेज के अनुसार समाज सामाजिक संबंधों का जाल या ताना-बाना है। जिसमें संबंध सदैव परिवर्तनशील रहते हैं। इस प्रकार सामाजिक संबंधों के परिवर्तन की जटिल प्रक्रिया को समाज कहा जाता है। इसमें रीतियों, कार्यप्रणालियों, अधिकारों, पारस्परिक सहायता समूहों व उनके विभागों, मानव व्यवहार, उसके नियंत्रण एवं स्वतंत्रता का समावेश होता है।

प्रश्न 3.
समुदाय के आवश्यक तत्वों का उल्लेख करें।
उत्तर:
किसी भी समूह के समुदाय कहलाने अथवा समुदाय के निर्माण के लिए निम्न तीन तत्व आवश्यक माने गये हैं :

  • व्यक्तियों का समूह :
    इसके बिना सामाजिक जीवन, सामुदायिक भावना व समुदाय निर्माण की कल्पना करना भी संभव नहीं है।
  • निश्चित भौगोलिक क्षेत्र :
    इस तत्व के द्वारा ही गाँव, नगर, राज्य, राष्ट्र की कल्पना व उसका निरूपण किया जा सकता है।
  • सामुदायिक भावना :
    मैं के स्थान पर ‘हम’ की भावना समुदाय हेतु अति आवश्यक है। हम की यह भावना ही सामुदायिक भावना है।

प्रश्न 4.
समाज एवं समुदाय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समाज एवं समुदाय में अन्तर

समाज समुदाय
1. समाज सामाजिक संबंधों का जाल है। 1. समुदाय व्यक्तियों का एक समूह है।
2. समुदाय मूर्त होता है। 2. समाज अमूर्त होता है।
3. समाज हेतु निश्चित क्षेत्र का होना आवश्यक नहीं है। 3. समुदाय हेतु निश्चित क्षेत्र या भू-भाग का होना आवश्यक है।
4. समाज हेत सामुदायिक भावना आवश्यक नहीं है। 4. समुदाय में सामुदायिक भावनाएँ होना अति अविश्यक है।
5. समाज का अपना कोई नाम नहीं होता है। 5. समुदाय का अपना एक विशिष्ट नाम होता है।
6. समाज व्यापक है जिसमें कई समुदाय हो सकते हैं। 6. समुदाय समाज का एक भाग है।
7. समाज की प्रकृति समग्रता या संपूर्णता की होती है। 7. समुदाय की प्रकृति क्षेत्रीय या स्थानीय है।

प्रश्न 5.
समूह की विशेषताओं का उल्लेख करें।
उत्तर:
समूह की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

  1. समूह व्यक्तियों का संग्रह है
  2. समूह की अपनी संरचना होती है
  3. समूह में कार्यात्मक विभाजन होता है
  4. समूह में सामान्य स्वार्थ भावना होती है
  5. समूह की सदस्यता ऐच्छिक होती है
  6. समूह की अपनी सत्ता होती है
  7. सामाजिक मानदंडों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है
  8. समूह एक मूर्त संगठन है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 2 मूलभूत अवधारणाएँ-I (समाज, समुदाय, समूह, प्रस्थिति एवं भूमिका)

प्रश्न 6.
सन्दर्भ समूह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
संदर्भ समूह की अवधारणा समाजशास्त्रीय साहित्य की एक प्रमुख अवधारणा है। इस अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग हाइमन द्वारा 1942 में किया गया। इस अवधारणा को व्यवस्थित रूप से विकसित करने का श्रेय रॉबर्ट के मर्टन को दिया जाता है। इनके अनुसार यह अवधारणा उपयोगी है क्योंकि यह केवल व्यावहारिक ही नहीं अपितु स्व मूल्यांकन में भी सहायक है। इस अवधारणा के अनुसार संदर्भ समूह का उदय तब होता है जब हम अपने समूह के मानदंडों का अनुपालन न करके किसी अन्य समूह के मानदंडों का अनुपालन करने लगते हैं तथा उसके साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं तथा उसी के अनुसार हम संचालित होना चाहते हैं।

प्रश्न 7.
प्राथमिक समूह की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक समूह की विशेषताएँप्राथमिक समूह की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :

  1. प्राथमिक समूह के सदस्यों के लक्ष्यों में समानता होती है।
  2. प्राथमिक समूह के सम्बन्ध व्यक्तिगत तथा सर्वांगीण होते हैं।
  3. प्राथमिक समूहों के लिए शारीरिक समीपता का होना आवश्यक है।
  4. प्राथमिक समूह आकार में लघु होते हैं।

प्रश्न 8.
प्रस्थिति एवं भूमिका का संबंध बताइए।
उत्तर:
प्रस्थिति एवं भूमिका के बीच अत्यधिक घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। जिसके कारण दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू कहा जाता है। कुछ विद्वानों के अनुसार बिना प्रस्थिति के कोई भूमिका नहीं होती और बिना भूमिका के कोई प्रस्थिति नहीं होती है। हालांकि प्रस्थिति एक समाजशास्त्रीय अवधारणा है, जबकि भूमिका सामाजिक मनोविज्ञान का विषय है। प्रस्थिति एवं भूमिका के संबंध सदैव स्थिर न रहकर बदलते रहते हैं। नये विचारों, नये मूल्यों एवं मान्यताओं के साथ-साथ प्रस्थिति व भूमिका के संबंध भी परिवर्तित होते रहते हैं। दोनों पृथक-पृथक भी हो सकते हैं। ये एक दूसरे के पूरक व परस्पर संबंधित तथ्य हैं।

प्रश्न 9.
प्रदत्त प्रस्थिति के आधारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रदत्त प्रस्थिति के निम्नलिखित आधार होते हैं :

  • लिंगभेद :
    लिंग के आधार पर स्त्री-पुरुषों की प्रस्थिति का अलग-अलग होना, उनके कार्यों का भिन्न होना, सामाजिक महत्व भिन्न-भिन्न होना तथा अवसरों की स्थिति भिन्न होना।
  • आयुभेद :
    आयु के अनुसार कार्य, व्यक्ति का महत्त्व, सम्मान की स्थिति, नेतृत्व की जिम्मेदारी आदि निर्धारित हैं।
  • नातेदारी :
    रक्त संबंधों, पैतृक परम्पराओं, जातिगत व्यवस्था व समाज में भूमिका का निर्धारण नातेदारी से निश्चित होता है।
  • जन्म :
    व्यक्ति के जन्म से उसके घराने, कुल व जाति का निर्धारण होता है।
  • शारीरिक विशेषता।
  • जाति व प्रजाति।

प्रश्न 10.
अर्जित प्रस्थिति के आधारों को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
अर्जित प्रस्थिति के आधार निम्नलिखित हैं :

  1. संपत्ति-संपत्ति से ही ऊँच-नीच, अमीर-गरीब आदि प्रस्थितियाँ निर्धारित होती हैं।
  2. व्यवसाय-व्यक्ति विशेष के कार्य भी प्रस्थिति का निर्धारण करते हैं।
  3. शिक्षा-शिक्षा का स्तर व्यक्ति की प्रस्थिति का महत्वपूर्ण निर्धारक घटक है।
  4. राजनीतिक सत्ता–समाज में किसी व्यक्ति की राजनीतिक प्रस्थिति उसे अन्य व्यक्तियों से अलग व ऊँचा बनाती है।
  5.  विवाह-विवाह से विभिन्न सम्बन्धों व सामाजिक पदों के रूप में प्रस्थिति प्राप्त होती है।
  6. उपलब्धियाँ-उपलब्धियों से सामाजिक, आर्थिक प्रस्थिति ऊँची हो जाती है।
  7. धन/आध्यात्मिकता/वीरता/साहस आदि।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज को परिभाषित कीजिए। समाज की विभिन्न विशेषताओं की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
समाज एक अमूर्त अवधारणा है। व्यक्तियों के बीच पाये जाने वाले सामाजिक संबंधों के आधार पर निर्मित व्यवस्था को समाज कहा जाता है। इसे अलग-अलग विद्वानों ने निम्नानुसार परिभाषित किया है।

मैकाइवर व पेज के अनुसार इन्होंने समाज को सामाजिक संबंधों का जाल या ताना-बाना माना है तथा संबंधों की इस सदैव परिवर्तित होते रहने वाली जटिल अवस्था को समाज कहा है। गिडिंग्स के अनुसार समाज स्वयं संघ है, संगठन है, औपचारिक संबंधों का योग है, जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए या सम्बद्ध हैं।

समाज की विभिन्न विशेषताएँ :
समाज व उसकी प्रकृति को स्पष्ट रूप से समझने के लिए इसकी निम्न विशेषताओं का अध्ययन करना पड़ेगा

  • पारस्परिक जागरूकता :
    पारस्परिक जागरूकता समाज की मुख्य विशेषता है। इसके बिना समाज व सामाजिक संबंध नहीं बन सकते। जागरूकता से ही लोगों से परिचय व अन्त:क्रिया होती है। इसके बिना सामाजिक संबंध निर्मित नहीं हो सकते। अतः अन्तःक्रिया व समाज के विकास हेतु जागरूकता आवश्यक है।
  • समाज अमूर्त है :
    समाज व्यक्तियों का समूह न होकर उसमें पनपने वाले सामाजिक संबंधों का जाल है, जिन्हें न तो देखा जा सकता है और न ही छुआ जा सकता है। सामाजिक संबंध अर्मूत होते हैं। इन्हें तो केवल अनुभव किया जा सकता है। इन सामाजिक संबंधों से निर्मित संबंध भी अमूर्त होते हैं। समाज एक वस्तु न होकर संबंध स्थापित करने की एक प्रक्रिया है।
  • समाज में समानता व असमानता का होना :
    समाज में मिलने वाली समानताओं व असमानताओं का समाज में अपना महत्व है तथा ये दोनों एक-दूसरे की पूरक भी हैं। प्रत्येक समाज में समानता एवं असमानता पायी जाती है। समानता से संबंधों व समाज का निर्माण होता है जबकि असमानता में लिंग-भेद, रुचि-भेद, शारीरिक-भेद, स्वभाव या प्रकृति संबंधी भेद शामिल किये जाते हैं।
  • समाज में सहयोग व संघर्ष का होना :
    समाज में सहयोग व संघर्ष दोनों शक्तियाँ विद्यमान होती हैं। सहयोग से एकता एवं संघर्ष से पृथकता का उदय होता है। मानव ने अपनी आदिम अवस्था से वर्तमान तक सहयोग व संघर्ष दोनों का सहारा लिया है। सहयोग से मानव ने सफलता प्राप्त की है जो पारिवारिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक आदि क्षेत्रों से जुड़ी है जबकि संघर्ष ने मानव की शारीरिक व वैयक्तिक भिन्नता, सांस्कृतिक भिन्नता, स्वाभाविक, चारित्रिक, रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, आचार-विचार संबंधी भेदों को जन्म दिया है।
  • समाज का अन्योन्याश्रितता पर आधारित होना :
    समाज की उत्पत्ति व विकास में अन्योन्याश्रितता का प्रमुख योगदान है। यह भी समाज की सभ्यता, संस्कृति व उन्नति में सहायक होती है। यौन सन्तुष्टि, शिकार व जीवन-रक्षा हेतु दूसरों पर निर्भर रहना इनका एक प्राचीनकालीन पहलू है। वर्तमान में तो मानव प्रत्येक कार्य के लिए एक-दूसरे पर निर्भर है।
  • समाज का सदैव परिवर्तनशील एवं जटिल व्यवस्था वाला होना :
    सामाजिक परिवर्तन एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। अनेक कारणों से सामाजिक संबंध बदलते रहते हैं। प्राचीन काल से वर्तमान तक मानवीय समाज व उसके संबंधों में अनेक परिवर्तन हुए हैं। इस परिवर्तनशीलता के साथ समाज में जटिलता का गुण भी विद्यमान है। प्रत्येक व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सैकड़ों व्यक्तियों से जुड़ा रहता है। उसके कार्य, विचार व व्यवहार भी इसी प्रक्रिया के अनुसार होते हैं।
  • समाज का मनुष्यों तक ही सीमित न रहना :
    समाज मनुष्यों तक सीमित न रहकर पशुओं, पक्षियों, जीव-जन्तुओं में भी देखने को मिलता है यथा चींटियों व मधुमक्खियों का समाज, हाथी, गाय, वानरों का समाज। ये सभी समाज पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानान्तरित होते रहते हैं। यद्यपि समाजशास्त्र में हम केवल मानव समाज का ही अध्ययन करते हैं। उपरोक्त वर्णित सभी विशेषताएँ समाज की उत्पत्ति से लेकर उसकी वृद्धि व उसके अस्तित्व को बनाये रखती हैं, जिससे अनेक सामाजिक संबंधों का उदय होता है।

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प्रश्न 2.
समुदाय से आप क्या समझते हैं? समुदाय के विभिन्न लक्षणों का विस्तृत रूप से विवेचन करें।
उत्तर:
समुदाय शब्द लेटिन भाषा के दो शब्दों com व munis से मिलकर बना है। जिसमें com तथा munis का अर्थ क्रमशः है-एक साथ व सेवा करना। अर्थात् समुदाय का मतलब होता है-साथ-साथ मिलकर सेवा करना। समुदाय एक मूर्त अवधारणा है। समुदाय ऐसे व्यक्तियों का संकलन है जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं तथा जिनके सदस्यों के मध्य हम की भावना पायी जाती है। डेविस के अनुसार, “समुदाय सबसे छोटा ऐसा क्षेत्रीय समूह है जिसमें सामाजिक जीवन के समस्त पहलू आ जाते हैं।”

समुदाय के विभिन्न लक्षण (विशेषताएँ) समुदाय के लक्षणों का वर्णन निम्नानुसार है :

  • स्वतः विकास :
    समुदाय का विकास पूर्व नियोजित न होकर स्वतः ही होता है। किसी स्थान विशेष पर लोगों के साथ-साथ रहने से उनमें हम की भावना का विकास होने लगता है। जिससे लोग अपने आप को उसका अंग मानने लगते हैं। यह समूह ही कालान्तर में समुदाय बन जाता है।
  • स्थायीपन :
    समुदाय हेतु एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र का होना आवश्यक है। बिना स्थायित्व के समुदाय नहीं बन सकता। समुदाय एक ही स्थान पर स्थायी रूप से बसा होता है।
  • विशिष्ट नाम :
    प्रत्येक समुदाय का एक विशिष्ट नाम होता है जो उनको पहचान दिलाने के साथ-साथ लोगों में हम की भावना जागृत करता है। साथ ही प्रत्येक समुदाय का अपना एक विशिष्ट इतिहास होता है।
  • मूर्तता :
    समुदाय एक मूर्त समूह है, हालांकि इसके नियमों को देखा नहीं जा सकता किन्तु अनुभव अवश्य किया जा सकता है।
  • व्यापक उद्देश्य :
    समुदाय का उद्देश्य किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष के हित से सम्बन्धित न होकर व्यक्तियों या समूहों के हितों से सम्बन्धित होता है। अतः समुदाय व्यापक लक्ष्यों की पूर्ति करने में सहायक है।
  • सामान्य जीवन :
    समुदाय के अन्दर रहकर ही मनुष्य अपनी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक व सांस्कृतिक आवश्यकताओं को सामान्य रूप से पूरा करता है। समुदाय के माध्यम से ही मानव का सम्पूर्ण जीवन सामान्य रूप से व्यतीत होता है।
  • सामान्य नियम व्यवस्था :
    समुदाय की मुख्य विशेषता नियमों की सामान्य व्यवस्था है। जिनसे सभी सदस्यों पर नियंत्रण रहता है। इनके द्वारा ही समुदाय में समानता व एकजुटता बनी रहती है।
  • आत्मनिर्भरता :
    समुदाय अपने आप पर आत्मनिर्भर रहता है। यह अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति स्वयं करता है। हालांकि वर्तमान संदर्भ में आत्मनिर्भरता के इस पहलू में कमी अवश्य आयी है।
  • अनिवार्य सदस्यता :
    प्रत्येक व्यक्ति का किसी न किसी समुदाय का अंग होने से निकटता, अन्त:क्रिया, अपनत्व व लगाव की भावना का विकास हो जाता है। वर्तमान में बदलते सामाजिक परिदृश्य के पश्चात् भी व्यक्ति किसी न किसी समुदाय का सदस्य अवश्य होता है।

प्रश्न 3.
समूह को परिभाषित कीजिए। समूह के विभिन्न प्रकारों का विवेचन करें।
उत्तर:
समूह का मानवीय समाज में ऐतिहासिक काल से ही महत्व रहा है। बिना समूह के मानव समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मानव जीवन व मानवीय विकास समूह के बिना सम्भव नहीं है।

समूह को अलग-अलग विद्वानों ने निम्नानुसार परिभाषित किया है :
ऑगबर्न व निमकाफ के अनुसार, “जब कभी दो या दो से अधिक व्यक्ति एकत्रित होते हैं एवं एक-दूसरे पर प्रभाव डालते हैं तो वे एक समूह का निर्माण करते हैं।”

मैकाइवर व पेज के अनुसार, “समूह से हमारा तात्पर्य व्यक्तियों के किसी भी ऐसे संग्रह से है जो एक-दूसरे के साथ सामाजिक संबंध स्थापित करते हैं। सारांशतः हम यह कह सकते हैं कि समूह लोगों का एक ऐसा समुच्चय है, जिसमें लोग आपसी अन्तः क्रिया करते हुए अनेक सामाजिक सम्बन्धों का निर्माण करते हैं।

समूहों के विभिन्न प्रकार :
समूहों का वर्गीकरण उनके भिन्न आधारों को सामने रखकर किया गया है, जो विभिन्न विद्वानों के अनुसार निम्न प्रकार से है :
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कुछ प्रमुख समूहों की विवेचना :

  • क्षेत्रीय समूह :
    ऐसे समूह जो एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निवास करते हैं। यथा राष्ट्र, पड़ोस, गाँव, नगर, देश, जनजाति आदि।
  • निश्चित संगठन वाले हितों के प्रति चेतन समूह :
    ऐसे समूह हितों के संबंध में सचेत होने के साथ-साथ संगठित भी होते हैं। यथा-परिवार, पड़ोस व क्लब आदि। ऐसे समूहों में सदस्य संख्या सीमित व उत्तरदायित्व असीमित होते हैं।
  • अनिश्चित संगठन वाले हितों के प्रति चेतन समूह :
    ऐसे समूह जिनमें संगठन का अभाव होते हुये भी हितों के प्रति चेतनता मिलती है। यथा-वर्ग, शरणार्थी समूह, समान व असमान रुचि वाली भीड़ आदि।

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प्रश्न 4.
समूह क्या हैं? प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समूह-समूह व्यक्तियों का ऐसा संकलन है जिसमें व्यक्तियों के मध्य निश्चित प्रकार के सामाजिक संबंध पाये जाते हैं तथा समूह प्रत्येक सदस्य समूह व उसके प्रतीकों के प्रति सचेत रहता है तथा जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना, उनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संबंधों का होना तथा उनकी क्रियाओं का आधार सामान्य हित या उद्देश्य का होना आवश्यक होता है।

प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह में अंतर-प्राथमिक एवं द्वितीयक समूह की विशेषताएँ एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। इन भिन्नताओं के आधार पर इनके अंतरों को निम्नानुसार स्पष्ट किया गया है

प्राथमिक व द्वितीयक समूह में अंतर :
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प्रश्न 5.
प्रस्थिति को परिभाषित कीजिए। प्रस्थिति के विभिन्न प्रकारों का विवेचन करें।
उत्तर:
प्रस्थिति की परिभाषा-प्रतिस्थिति शब्द का तात्पर्य पद से लिया जाता है प्रत्येक समाज एवं समूह में किसी भी व्यक्ति का एक समय विशेष में एक निश्चित स्थान होता है, जिसके माध्यम से समय विशेष में व्यक्ति की पहचान होती है। इस प्रकार समाज या समूह द्वारा स्वीकृत व्यक्ति के इस पद को ही प्रस्थिति कहा जाता है।
आगर्बन व निमकॉफ के अनुसार, ‘प्रस्थिति किसी समूह में व्यक्ति के पद का प्रतिनिधित्व करती है।’ लेपियर के अनुसार, “सामाजिक प्रस्थिति सामान्यतः उस पद के रूप में समझी जाती है जो एक व्यक्ति समाज में प्राप्त किये होता है।”

प्रस्थिति के प्रकार :
समाज में मिलने वाली प्रस्थितियों को राल्फ लिंटन महोदय ने निम्न दो भागों में विभाजित किया है

  1. प्रदत्त प्रस्थिति
  2. अर्जित प्रस्थिति।

1. प्रदत्त प्रस्थिति :
समाज में कुछ प्रस्थितियाँ ऐसी होती हैं जो व्यक्ति के गुणों पर ध्यान दिये बिना ही उसको स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। उन्हें प्रदत्त प्रस्थिति कहा जाता है। इस प्रकार की प्रस्थितियाँ व्यक्ति को किसी परिवार विशेष में जन्म लेने व परम्परा के रूप में प्राप्त होती हैं।

ये प्रस्थितियाँ पहले से ही मौजूद रहती हैं जो जन्म लेते ही नवीन प्राणी को प्रदान कर दी जाती हैं। ये प्रस्थितियाँ भविष्य में प्राप्त होने वाली प्रस्थितियों की सीमा भी निर्धारित करती हैं। प्रदत्त प्रस्थिति पर व्यक्ति या प्राणी विशेष का अपना कोई नियंत्रण नहीं होता है। यथा-स्त्री-पुरुष होना आदि। ये सभी प्रस्थितियाँ जन्म या आनुवंशिक रूप से प्राप्त होती हैं। प्रदत्त प्रस्थिति के निर्धारक घटकों में मुख्यतः लिंगभेद, आयुभेद, नातेदारी, जन्म, शारीरिक दशा व विशेषताओं तथा जाति एवं प्रजाति को शामिल किया जाता है।

2. अर्जित प्रस्थिति :
समाज में कुछ प्रस्थितियाँ ऐसी होती हैं, जो व्यक्ति अपने गुण, योग्यता एवं क्षमता के आधार पर प्राप्त करता है। इन्हें अर्जित प्रस्थितियाँ कहा जाता है। अर्जित प्रस्थितियाँ प्रतिस्पर्धा के पश्चात योग्य एवं सक्षम व्यक्ति को प्राप्त होती हैं।

इन अर्जित प्रस्थितियों का संबंध शिक्षा, व्यवसाय, संपत्ति संचय, श्रम विभाजन आदि से होता है। व्यक्ति की सफलता व असफलता के आधार पर ही उसे सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। सक्षम व योग्य व्यक्ति ही अन्य व्यक्तियों पर नियंत्रण करता है। सामाजिक प्रतिष्ठा में सामान्यतः दयालु, बुद्धि, योग्य, प्रतिभाशाली, साहसी, शक्तिशाली व क्षमताशाली व्यक्तियों को ही प्रधानता दी जाती है। ये सभी प्रस्थितियाँ ऐसी होती हैं जो व्यक्ति स्वयं अपने प्रयासों से प्राप्त करता है।

अर्जित प्रस्थिति के निर्धारक घटकों में मुख्यतः संपत्ति, व्यवसाय, शिक्षा, राजनीतिक सत्ता, विवाह, उपलब्धियों, एवं प्राप्त नवीन दशाओं को शामिल किया जाता है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 2 मूलभूत अवधारणाएँ-I (समाज, समुदाय, समूह, प्रस्थिति एवं भूमिका)

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
आदिम समुदायों को समाज कौन मानते हैं
(क) अर्थशास्त्री
(ख) मानवशास्त्री
(ग) राजनीतिशास्त्री
(घ) भूगर्भशास्त्री।
उत्तर:
(ख) मानवशास्त्री

प्रश्न 2.
समाज स्वयं संघ है, संगठन है’ यह कथन है
(क) मैकाइवर का
(ख) पेज का
(ग) गिडिंग्स का
(घ) पारसंस का।
उत्तर:
(ग) गिडिंग्स का

प्रश्न 3.
मैकाइवर व पेज ने समाज के कितने आवश्यक तत्व बताये हैं?
(क) 4
(ख) 6
(ग) 7
(घ) 9
उत्तर:
(ग) 7

प्रश्न 4.
भाग्यवादिता व रूढ़िवादिता किस समाज का लक्षण है?
(क) परम्परागत समाज का
(ख) मुक्त समाज का
(ग) पूँजीवादी समाज का
(घ) आधुनिक समाज का।
उत्तर:
(क) परम्परागत समाज का

प्रश्न 5.
समुदाय के लक्षणों में जो शामिल नहीं है वह है
(क) स्वतः विकास
(ख) मूर्तता
(ग) विशिष्ट जीवन
(घ) आत्मनिर्भरता।
उत्तर:
(ग) विशिष्ट जीवन

प्रश्न 6.
समनर ने समूहों को कितने भागों में बाँटा है?
(क) 2
(ख) 4
(ग) 6
(घ) 8
उत्तर:
(क) 2

प्रश्न 7.
सामाजिक संगठन नामक कृति के लेखक हैं?
(क) पेज
(ख) गिडिंग्स
(ग) मैकाइवर
(घ) चार्ल्स कूले।
उत्तर:
(घ) चार्ल्स कूले।

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प्रश्न 8.
गेसेलशाफ्ट अवधारणा के प्रतिपादक कौन हैं?
(क) टॉनीज
(ख) गिलिन
(ग) लियोपोल्ड
(घ) बीरस्टीड
उत्तर:
(क) टॉनीज

प्रश्न 9.
संदर्भ समूह की अवधारणा का समाजशास्त्र में सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया?
(क) राबर्ट के मर्टन ने
(ख) हाइमन ने
(ग) पारसंस ने
(घ) गिडिंग्स ने।
उत्तर:
(क) राबर्ट के मर्टन ने

प्रश्न 10.
जो अर्जित प्रस्थिति का अंग नहीं है, वह है
(क) शिक्षा
(ख) योग्यता
(ग) नातेदारी
(घ) संपत्ति।
उत्तर:
(ग) नातेदारी

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 अतिलघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पारसंस के अनुसार समाज को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
पारसंस के अनुसार “समाज उन मानवीय सम्बन्धों के रूप में संपूर्ण रूप से परिभाषित किया जा सकता है जो साधन साध्य सम्बन्धों से उत्पन्न हुए हों चाहे वे यथार्थ हों या प्रतीकात्मक”।

प्रश्न 2.
मैकाइवर व पेज ने रीतियों में किस-किसको शामिल किया है?
उत्तर:
मैकाइवर व पेज ने रीतियों में खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, विवाह, धर्म, जाति, शिक्षा आदि को शामिल किया है।

प्रश्न 3.
समाज में विभाजन हेतु कौन उत्तरदायी है?
उत्तर:
समाज में विभाजन हेतु आयु, लिंग, जाति, प्रजाति, वर्ग आदि तथ्य उत्तरदायी हैं।

प्रश्न 4.
सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन कौन से हैं?
उत्तर:’
सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधनों में कानून, न्याय-व्यवस्था, पुलिस एवं प्रशासन को शामिल किया जाता है।

प्रश्न 5.
सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन कौन से हैं?
उत्तर;
सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधनों में जनजातियों, रूढ़ियों, संस्थाओं, धर्म व नैतिकता को शामिल करते हैं।

प्रश्न 6.
ऐली चिनाय ने समाज की प्रमुख संस्थाएँ किसे माना है?
उत्तर:
ऐली चिनाय ने समाज की प्रमुख संस्थायें पारिवारिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक, शैक्षणिक स्थिति आदि को माना है।

प्रश्न 7.
गिडिंग्स ने समाज का आधार किसे माना है?
उत्तर:
गिडिंग्स ने समानता (सजातीयता) की चेतना को समाज का आधार माना है?

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प्रश्न 8.
समाज में कितने प्रकार की शक्तियाँ पायी जाती हैं?
उत्तर:
समाज में दो प्रकार की शक्तियाँ मिलती हैं :

  1. सहयोग शक्ति,
  2. संघर्षरूपी शक्ति।

प्रश्न 9.
एक समाज से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
एक समाज का अर्थ ऐसे व्यक्तियों के एक समूह से है जो सामान्य जीवन में भागीदार रहते हों। यूटर ने इसे एक भिन्न संगठन माना है जिसकी सहायता से लोग अपना सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं।

प्रश्न 10.
मानव समाज को कितने भागों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
मानव समाज को दो भागों आदिम समाज व सभ्य समाज के रूप में बाँटा गया है।

प्रश्न 11.
टॉनीज ने समाजों को कितने श्रेणियों में बाँटा है?
उत्तर:
टॉनीज ने समाजों को दो श्रेणियों :

  1. गेमाइनशाफ्ट व
  2. गेसेलशाफ्ट के रूप में बाँटा है।

प्रश्न 12.
ऑगबर्न व निमकॉफ ने समुदाय की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
ऑगबर्न व निमकॉफ के अनुसार समुदाय एक सीमित क्षेत्र में सामाजिक जीवन का सम्पूर्ण संगठन होता है।

प्रश्न 13.
सामुदायिक भावना की तीन प्रमुख बातें कौनसी हैं?
उत्तर:
सामुदायिक भावना की तीन प्रमुख बातें हैं :

  1. हम की भावना
  2. दायित्वों के निर्वाह की भावना
  3. निर्भरता की भावना।

प्रश्न 14.
लघु समुदाय की अवधारणा का प्रतिपादक कौन है?
उत्तर:
लघु समुदाय की अवधारणा का प्रतिपादक राबर्ट रेडप को माना जाता है।

प्रश्न 15.
मर्टन ने समूह के महत्वपूर्ण पक्ष कौनसे बताये हैं?
उत्तर:
मर्टन ने समूह के दो महत्वपूर्ण पक्ष बताये हैं :

  1. व्यक्तिपरक पक्ष
  2. वस्तुपरक पक्ष।

प्रश्न 16.
एलवुड ने समूहों को किन भागों में बाँटा है?
उत्तर:
एलवुड ने समूहों को ऐच्छिक व अनैच्छिक, संस्थागत व असंस्थागत तथा स्थायी व अस्थायी समूहों के रूप में बाँटा है।

प्रश्न 17.
वीरस्टीड ने समूहों को किन श्रेणियों में बाँटा है?
उत्तर:
बीरस्टीड ने समूहों को सांख्यिकीय, समजातीय, सामाजिक तथा सहचारी समूहरूपी इन चार श्रेणियों में बाँटा है।

प्रश्न 18.
वीरस्टीड ने प्रस्थिति की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
वीरस्टीड के अनुसार प्रस्थिति समाज अथवा समूह में एक पद होता है।

प्रश्न 19.
ऑफिस से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऑफिस किसी औपचारिक संगठन में स्वेच्छानुसार बनाया गया पद है जिसमें सीमित व विशेष नियमों का अधिकार व नियंत्रण होता है।

प्रश्न 20.
प्रतिष्ठा क्या है?
उत्तर:
समाज में प्रत्येक प्रस्थिति के प्रति लोगों में मिलने वाली आदर-श्रद्धा की भावना को ही प्रतिष्ठा कहा जाता है।

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प्रश्न 21.
मुख्य प्रस्थिति की अवधारणा का प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर:
मुख्य प्रस्थिति की अवधारणा का प्रतिपादन ई.टी. हिलर नामक समाजशास्त्री ने किया।

प्रश्न 22.
मर्टन ने प्रस्थिति प्रतिमान किसे कहा है?
उत्तर:
एक समय में एक व्यक्ति की अनेक प्रस्थितियाँ धारण करने की प्रक्रिया को मर्टन ने प्रस्थिति प्रतिमान कहा है।

प्रश्न 23.
भूमिका वंचन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी व्यक्ति द्वारा पूर्व में प्राप्त प्रस्थिति को छोड़कर नई प्रस्थिति धारण करने पर पूर्व प्रस्थिति सम्बन्धी भूमिका का त्याग करना भूमिका वंचन कहलाता है।

प्रश्न 24.
भूमिका संघर्ष क्या है?
उत्तर:
दो भिन्न परिस्थितियों में एक साथ भूमिका निभाने पर होने वाले विरोधाभासों को भूमिका संघर्ष कहते हैं।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 लघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
रीतियों या प्रथाओं का समाज में क्या महत्व है?
उत्तर:
रीतियाँ/प्रथाएँ सामाजिक मानदंड का आधार होती हैं। ये समाज के निर्माण में आधार प्रदान करती हैं। सामाजिक व्यवस्थाओं को बनाये रखने में इनकी मुख्य भूमिका रहती है। ये रीतियाँ व्यक्ति को विशेष तरीके से व्यवहार करने हेतु प्रेरित करती हैं तथा इनके विपरीत आचरण करने पर व्यक्ति को अपमान भी सहना पड़ता है। इनके माध्यम से ही समाजीकरण की प्रक्रिया का पीढ़ी दर पीढ़ी स्थानान्तरण होता है। इसी से इनका सामाजिक महत्व है।

प्रश्न 2.
समाज में आदर्शशून्यता व विघटन की स्थिति कब उत्पन्न होती है?
उत्तर:
समाज सामाजिक सम्बन्धों की एक जटिल व्यवस्था है। एक समाज में जब व्यक्ति की आवश्यकताएँ असीमित हो जाती हैं तथा वह धन, वैभव, सम्मान, शक्ति आदि प्राप्त करने हेतु मनमाने ढंग से काम करने लगे एवं उसको रोका न जाए तो व्यक्ति स्वच्छंद ढंग से कार्य करने लगेगा, जिससे समाज में आदर्श शून्यता व विघटन की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।

प्रश्न 3.
मैकाइवर व पेज ने समाज के कितने आवश्यक तत्व बताए हैं?
उत्तर:
मानव व पेज ने समाज के सात आवश्यक तत्व बताए हैं, जो निम्नानुसार हैं :

  1. सामाजिक रीतियाँ
  2. कार्य प्रणालियाँ
  3. अधिकार
  4. पारस्परिक सहायता।
  5. समूह एवं विभाग
  6. मानव व्यवहार का नियंत्रण
  7. स्वतंत्रता आदि।

प्रश्न 4.
मानव समाज में संषर्घ क्यों होता है?
उत्तर:
मानवीय समाज में होने वाले संघर्ष हेतु अनेक कारण उत्तरदायी हैं यथा-शारीरिक या वैयक्तिक भिन्नताएँ, सांस्कृतिक भिन्नताएँ, विरोधी स्वार्थ या स्वार्थों का टकराना, तीव्र गति से होने वाले सामाजिक परिवर्तन, प्रत्येक व्यक्ति के बीच रुचि, स्वभाव, चरित्र, व्यक्तित्व, रहन-सहन, वेश-भूषा, आचार-विचार सम्बन्धी भिन्नताओं का मिलना तथा लोगों के अलग-अलग धर्म-सम्प्रदाय मत-मतान्तर व संस्कृतियों में मिलने वाले अन्तर के कारण आपसी स्वार्थ टकराने से समाज में संघर्ष होता है।

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प्रश्न 5.
समाज को एक जटिल व्यवस्था क्यों कहा गया है?
उत्तर:
समाज अनेक सामाजिक सम्बन्धों से निर्मित है, जिसके कारण इसमें रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति सैकड़ों लोगों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा होता है। इन आपसी सम्बन्धों के आधार पर ही उसकी प्रस्थिति व भूमिका निर्धारित होती है। अनेक सामाजिक सम्बन्धों से बँधा होने के कारण उसका व्यवहार भी दूसरों की अपेक्षाओं पर निर्भर करता है। इस प्रकार लाखों-करोड़ों व्यक्तियों के सामाजिक सम्बन्धों, उनकी प्रस्थितियों, भूमिकाओं व पारस्परिक अपेक्षाओं के आधार पर निर्भर होने से समाज एक जटिल व्यवस्था है।

प्रश्न 6.
एक समाज एवं समाज में क्या अन्तर होता है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एक समाज एवं समाज में अन्तर निम्नानुसार स्पष्ट किया गया है :

एक समाज समाज
1. यह व्यक्तियों का एक समूह होता है। 1. यह सामाजिक सम्बन्धों की एक जटिल व्यवस्था है।
2. यह एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के निवासियों को दर्शाता है। 2. इसका कोई निश्चित भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता है।
3. एक समाज छोटे आकार को दर्शाता है। 3. समाज बड़े व विस्तृत आकार को दर्शाता है।
4. एक समाज का प्रयोग किसी समिति के लिए भी सकता है। 4. समाज का प्रयोग समिति के लिए नहीं किया किया जा सकता है।
5. एक समाज में समान जीवन विधि या संस्कृति का होता है। 5. समाज विभिन्न जीवन विधियों व संस्कृतियों का योग बोध होता है।

प्रश्न 7.
आदिम समाज व सभ्य समाज में क्या अन्तर है?
उत्तर:
आदिम समाज व सभ्य समाज में निम्न अन्तर होते है :

आदिम समाज सभ्य समाज
1. इनका क्षेत्र छोटा होता है। 1. इनका क्षेत्र व्यापक होता है।
2. ये सभ्यता की दृष्टि से पिछड़े समाज होते हैं। 2. इनमें आधुनिक सभ्यता पाई जाती है।
3. इनमें प्रौद्योगिकी का स्तर अत्यन्त न्यून या न के बराबर होता है। 3. ये प्रौद्योगिकी के दृष्टिकोण से उन्नत होते हैं।
4. इनकी अर्थव्यवस्था अविकसित होती है। 4. इन समाजों की अर्थव्यवस्था विकसित होती है।
5. इन समाजों में शिक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान व अध्यात्म का अभाव पाया जाता है। 5. ये समाज शिक्षा, साहित्य, कला, विज्ञान व अध्यात्म के दृष्टिकोण से समृद्ध होते हैं।

प्रश्न 8.
प्राचीन समाज से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
ऐसे समाज जिनमें परम्पराओं की प्रधानता रहती है उन्हें प्राचीन समाज कहते हैं। इस प्रकार के समाजों में व्यक्ति के व्यवहारों का निर्धारण परम्पराओं से होता है। इनमें उत्पादन की प्रणाली कम विकसित होती है तथा अधिकांश लोग पशु-पालन व कृषि कार्यों में कम विकसित औजारों का प्रयोग करते हैं। इनमें संपत्ति का असमान वितरण देखने को मिलता है तथा शोषण व वर्ग संघर्ष की स्थिति इनकी मुख्य विशेषता है।

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प्रश्न 9.
सामन्तवादी व पूँजीवादी समाज में क्या अन्तर है?
उत्तर:
सामंतवादी व पूंजीवादी समाजों में निम्न अन्तर पाये जाते हैं

सामंतवादी समाज पूँजीवादी समाज
1. इनका उदय 11वीं से 19वीं सदी के मध्य हुआ है। 1. इनका उदय मुख्यतः 19वीं सदी के पश्चात हुआ है।
2. इसमें भूमि व संसाधनों पर सामंतों या जमींदारों का अधिकार होता था। 2. इसमें व्यक्ति विशेष या किसी पूँजीपति का अधिकार रहता है।
3. ऐसे समाजों में अर्द्ध-दास किसानों से खेती व उत्पादन का कार्य कराया जाता था। 3. इन समाजों में मशीनों से वस्तुओं का उत्पादन होता है।
4. ऐसे समाजों में सामंतों द्वारा किसानों का शोषण किया जाता था। 4. इन समाजों में पूँजीपतियों द्वारा श्रमिकों का शोषण किया जाता है।

प्रश्न 10.
समाजवादी समाज से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समाजवादी समाज पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के बाद की स्थिति है, जिसमें गरीब-अमीर का भेद बढ़ने व तीव्र वर्ग चेतना जागृत होने से वर्ग संघर्ष के पश्चात् पूंजीपति वर्ग की समाप्ति होती है और वर्ग विहीन समाज की स्थापना होती है। ऐसे समाज में निजी संपत्ति का कोई स्थान नहीं होता है। उत्पादन पर सारे समाज का अधिकार होता है उत्पादन लाभ हेतु न करके केवल उपभोग हेतु किया जाता है तथा सभी अपनी योग्यता अनुसार कार्य करते हैं।

प्रश्न 11.
गेमाइनशाफ्ट (बद्ध समाज) और गेसेलशाफ्ट (संघ समाज) में क्या अंतर है?
उत्तर:
गेमाइनशाफ्ट व गेसेलशाफ्ट समाजों में निम्न अन्तर पाये जाते हैं

गेमाइनशाफ्ट (बद्ध समाज) गेसेलशाफ्ट (संघ समाज)
1. ये समाज औद्योगीकरण से पूर्व के समाज हैं। 1. ये समाज औद्योगीकृत समाज हैं।
2. इनमें उच्चकोटि की सामाजिक एकता व समाज तथा समुदाय के प्रति उच्चकोटि की प्रतिबद्धता पायी जाती है। 2. इन समाजों में व्यक्ति परस्पर लाभ की संभावना व विनिमय भावना से प्रेरित होकर एकजुटता दर्शाते हैं।
3. इस समाजों के सदस्यों में अपने समाज के मूल्यों व मानकों के प्रति एकमत की भावना मिलती है। 3. इन समाजों में द्वैधता की भावना पायी जाती है।
4. इनमें सामाजिक सम्बन्ध स्वाभाविक रूप से बनते हैं। 4. इनमें सामाजिक सम्बन्ध कृत्रिम पाये जाते हैं।

प्रश्न 12.
मैकाइवर व पेज ने समुदाय की क्या परिभाषा दी है?
उत्तर:
मैकाइवर व पेज के अनुसार जब किसी छोटे या बड़े समूह के सदस्य साथ-साथ इस प्रकार रहते हैं कि वे किसी विशेष हित में ही भागीदार न होकर सामान्य जीवन की मूलभूत दशाओं या परिस्थितियों में भाग लेते हैं तो ऐसे समूह को समुदाय कहा जाता है। इन्होंने समुदाय को एक सामान्य जीवन जीने वाला समूह माना है।

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प्रश्न 13.
समुदाय में सामान्य नियम व्यवस्था क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
सामान्य नियम व्यवस्था के माध्यम से समुदाय के सभी सदस्यों के व्यवहार को निर्देशित किया जाता है। सदस्यों पर नियंत्रण रखा जाता है। इन सामान्य नियमों से निर्देशित होने के कारण ही एक समुदाय विशेष के लोगों के व्यवहारों में समानता देखने को मिलती है। इनके साथ ही समुदाय की अनुकूल स्थिति बनी रहे, इसलिए सामान्य नियम व्यवस्था आवश्यक है।

प्रश्न 14.
किंग्सले डेविस ने समुदाय वर्गीकरण हेतु किन कसौटियों का वर्णन किया है।
उत्तर:
किंग्सले डेविस ने समुदायों का वर्गीकरण करने के लिए चार अन्तर्सम्बन्धित तत्वों या कसौटियों का वर्णन किया है, जो निम्न हैं :

  1. जनसंख्या का आकार
  2. समुदाय के चारों ओर के प्रदेश का विस्तार, संपत्ति एवं आबादी
  3. सम्पूर्ण समाज में समुदाय के विशेषीकृत कार्य 4. समुदाय के संगठन का प्रकार इन तत्वों के आधार पर आदिम समुदायों के विभिन्न प्रकारों के बीच, ग्रामीण व नगरीय समुदायों के बीच अंतर स्पष्ट किया जा सकता है।

प्रश्न 15.
लघु समुदायों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
लघु समुदायों की निम्न विशेषताएँ हैं :

  1. लघु समुदायों का आकार बहुत छोटा होता है।
  2. लघु समुदाय विशिष्ट प्रकार की जीवन शैली को व्यक्त करते हैं, जिनके आधार पर हम एक समुदाय को दूसरे से भिन्न रूप में पहचान सकते हैं।
  3. लघु समुदाय के लोगों के जीवन व संस्कृति में समरूपता पायी जाती है।
  4. लघु समुदाय आत्मनिर्भर होते हैं। उनमें जन्म से लेकर मृत्यु तक सारी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है।

प्रश्न 16.
जनजातीय समुदाय से क्या तात्पर्य है? इसकी प्रमुख विशेषता बताइये।
उत्तर:
सामान्यतः आदिवासी या आदिम जाति के लोगों के समूह को जनजातीय समुदाय कहते हैं। इस समुदाय की निम्न विशेषताएँ होती हैं :

  1. ऐसे समुदाय प्रायः एक ही भाषा बोलते हैं।
  2. इनकी अपनी एक विशिष्ट संस्कृति होती है।
  3. इनकी अपनी राजनीतिक व आर्थिक स्वायत्तता होती है।
  4. इनमें नातेदारी को अधिक महत्व दिया जाता है।
  5. इनमें गतिशीलता का अभाव व स्थिरता की प्रबलता मिलती है।
  6. इनमें धार्मिक जड़ता व अंधविश्वासों का अधिक प्रचलन मिलता है।

प्रश्न 17.
क्षेत्रीय समुदाय को परिभाषित करते हुए इसकी विशेषता बताइये।
उत्तर:
एक ऐसा क्षेत्र जिसमें लक्षणों की समरूपता मिलती हो जिनके आधार पर वह क्षेत्र दूसरों से भिन्न पहचाना जा सके। ऐसे भौतिक-सांस्कृतिक व आर्थिक लक्षणों की समानता वाले क्षेत्र को क्षेत्रीय समुदाय कहा जाता क्षेत्रीय समुदाय की निम्न विशेषताएँ होती हैं

  1. इनमें भौतिक तत्वों की समानता पायी जाती है।
  2. इनकी एक विशिष्ट स्थिति होती है।
  3. इनमें लक्षण एक समान होने के साथ विचार भी समान मिलते हैं।
  4. ये परिवर्तनशील होते हैं।
  5. इनका वर्गीकरण सिद्धान्तों के आधार पर किया जाता है।

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प्रश्न 18.
मैकाइवर व पेज के अनुसार सीमावर्ती समुदायों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मैकाइवर व पेज के अनुसार सीमावर्ती समुदाय ऐसे समुदायों को कहा जाता है जिनमें कुछ विशेषताएँ समुदाय की होती हैं साथ ही उनमें संस्था, समूह या समिति की विशेषताएँ भी होती हैं। ऐसे समुदाय पूरी तरह समुदायों के लक्षणों को नहीं दर्शाते हैं। इनमें सभी लोगों के सदस्य होने की स्वतंत्रता का गुण नहीं पाया जाता तथा सामान्य जीवन का गुण भी न मिलने के कारण इन्हें सीमावर्ती समुदाय कहा जाता है।

प्रश्न 19.
जेल को समुदाय क्यों नहीं माना जा सकता?
उत्तर:
जेल को समुदाय नहीं मानने के पीछे निम्न कारण उत्तरदायी हैं :

  1. जेल के कैदियों में हम की भावना, जेल के प्रति लगाव, अपनत्व या त्याग की भावना का अभाव मिलना।
  2. व्यक्ति के जीवन के सभी पक्ष जेल में अभिव्यक्ति प्राप्त नहीं कर सकते।
  3. जेल का स्वतः विकास नहीं होता है।
  4. जेल में समुदाय के समान स्थायित्व का भी अभाव पाया जाता है।
  5. जेल में सभी सामान्य जीवन के भागीदार नहीं होते हैं।

प्रश्न 20.
आधुनिक पड़ोस को समुदाय क्यों नहीं माना जा सकता है?
उत्तर:
आज के आधुनिक जटिल नगरीकृत समाजों में पड़ोस को समुदाय नहीं मानने के पीछे निम्न कारण उत्तरदायी हैं :

  1. पड़ोस सामान्यताओं का क्षेत्र नहीं है, यहाँ सभी व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती है।
  2. नगरीय क्षेत्रों में लोग पड़ोसी को जानते तक नहीं, फिर हम की भावना का मिलना असम्भव है।
  3. पड़ोस स्वतः उत्पन्न न होकर सुनियोजित बसने लगा है। 4. यहाँ नियमों की कोई व्यवस्था नहीं होती है।

प्रश्न 21.
बाँटामोर के अनुसार सामाजिक समूह क्या है?
उत्तर:
बाँटामोर के अनुसार सामाजिक समूह व्यक्तियों के उस योग को कहते हैं जहाँ व्यक्तियों के बीच निश्चित सम्बन्ध होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति समूह के प्रति सचेत होता है और उसके प्रतीकों को जानता है। अर्थात् सामाजिक समूह कम से कम अल्पविकसित संरचना व संगठन तथा उसके सदस्यों में चेतना का एक मनोवैज्ञानिक आधार होता है।

प्रश्न 22.
बागार्डस के अनुसार सामाजिक समूह किसे कहते हैं?
उत्तर:
बागार्डस के अनुसार एक सामाजिक समूह का अर्थ दो या दो से अधिक व्यक्तियों के ऐसे संग्रह से है जिनके अपने कुछ सामान्य लक्ष्य होते हैं, जो एक-दूसरे को प्रेरणा देते हैं जिनमें वफादारी पायी जाती है और जो समान क्रियाओं में भाग लेते हैं।

प्रश्न 23.
गिलिन एवं गिलिन द्वारा प्रस्तुत समूह की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गिलिन व गिलिन ने समूहों को निम्न भागों में बाँटा है :

  1. रक्त सम्बन्धी समूह (परिवार, जाति)
  2. शारीरिक विशेषताओं पर आधारित समूह (समान लिंग, आयु, प्रजातियाँ)
  3. क्षेत्रीय समूह (जनजाति, राज्य, राष्ट्र)
  4. अस्थिर समूह (भीड़, स्रोता समूह)
  5. स्थायी समूह (खानाबदोशी लोग, कस्बे, शहर, ग्रामीण पड़ोस)
  6. सांस्कृतिक समूह (आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक, शैक्षिक)

प्रश्न 24.
प्राथमिक समूहों से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
चार्ल्स कुले ने प्राथमिक समूह को परिभाषित करते हुए कहा था कि प्राथमिक समूहों से मेरा तात्पर्य उन समूहों से है जिनकी विशेषता आमने-सामने का घनिष्ठ सम्बन्ध व सहयोग है। ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव व आदर्शों के निर्माण में सहायक होते हैं। घनिष्ठ सम्बन्धों का परिणाम सभी व्यक्तियों का एक सामान्य सम्पूर्णता में इस प्रकार मिल जाना है कि अनेक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए एक ही व्यक्ति के विचार व उद्देश्य सम्पूर्ण समूह का सामान्य जीवन व उद्देश्य बन जाते है।

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प्रश्न 25.
प्रस्थिति संगठन से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
समाज में कोई भी प्रस्थिति अकेली नहीं होती वरन् वह अन्य से सम्बन्धित एवं प्रभावित भी होती है। समाज में व्यक्ति का मूल्यांकन उन विभिन्न प्रस्थितियों को धारण करने एवं उनके द्वारा निभायी जाने वाली भूमिका के आधार पर किया जाता है। जब हम ऑफिस, स्थिति, संकुल, स्तर, सम्मान, श्रेणी, प्रतीक व प्रस्थिति सम्बन्धों, प्रस्थिति संघर्ष व प्रतिभा आदि का समावेशित अध्ययन करते हैं तो यह संयुक्त अध्ययन प्रस्थिति संगठन कहलाता है।

प्रश्न 26.
स्तर का प्रस्थिति से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर:
स्तर का सम्बन्ध ही विभिन्न प्रकार के स्थिति संकुल को प्राप्त करने वाले विभिन्न लोगों से है। स्तर का तात्पर्य एक समाज में करीब-करीब सामान्य स्थिति संकुल तथा पदों की समग्रता वाले व्यक्तियों के जन-समूह से है। स्तर किसी भी सामाजिक ढाँचे का प्रमुख आधार होता है। यह समाज में स्तरीकरण को जन्म देता है। जिससे एक समान स्तर वाले लोगों में स्वार्थ, समस्यायें व विश्व दृष्टिकोण समान रूप से उत्पन्न होते हैं। इसमें मिलने वाली एकता को स्थिति समूह दृढ़ता कहा जाता है।

प्रश्न 27.
प्रस्थिति प्रतीक क्या होते हैं?
उत्तर:
प्रस्थिति प्रतीकों में पोशाक, बैज, श्रृंगार आदि भौतिक व सांस्कृतिक तत्वों के साथ स्त्री-पुरुष के भेद को आयु, प्रजाति, जाति, व्यवसाय रूपी प्रतीकों से दर्शाया जाता है। प्रस्थिति के प्रतीकों का निर्धारण अलग प्रकार से होता है यथा-स्त्री-पुरुष को उनकी पोशाकों से, सैनिक कर्मचारियों को उनकी ड्रेस से, छात्रों को ड्रेस व बस्ते से, अधिकारी व चपरासी को उनके बैठने के स्थान से पहचाना जाता है।

प्रश्न 28.
मुख्य प्रस्थिति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
बीरस्टीड के अनुसार प्रमुख प्रस्थिति वह है जो प्रस्थितियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण एवं अग्रणी होती है। आधुनिक औद्योगिक समाजों में व्यवसाय ही व्यक्ति की प्रमुख प्रस्थिति का निर्धारण करता है। मुख्य प्रस्थिति के आधार पर व्यक्ति की वर्ग स्थिति भी ज्ञात हो जाती है। कुछ समाजों में मुख्य प्रस्थिति का विकास नातेदारी, राजनीति, धर्म व जाति से होता है।

प्रश्न 29.
प्रस्थिति संघर्ष से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जब एक ही व्यक्ति दो इस प्रकार की प्रस्थितियाँ धारण किए हुए होता है, जिसके मानदण्ड एक दूसरे से भिन्न होते हैं। परिणामस्वरूप एक के मानदण्डों का पालन करने पर दूसरे के मानदण्डों की अवहेलना होती है तो यह स्थिति प्रस्थिति संघर्ष कहलाती है, यथा भारत में एक राज्य कर्मचारी किसी भी राजनीतिक दल की चुनाव गतिविधि वे भाग नहीं ले सकता किन्तु देश का नागरिक होने के कारण उसे ऐसा करने का अधिकार है।

प्रश्न 30.
नातेदारी जनित प्रस्थिति क्या है?
उत्तर:
व्यक्ति को नातेदारी के आधार पर अनेक प्रस्थितियाँ प्राप्त होती हैं। मानव रक्त सम्बन्धों के माध्यम से अनेक प्रस्थिति प्राप्त करता है यथा-माता-पिता, भाई, बहिन, चाचा, मामा, जीजा, साला, दादा, दादी, सास-ससुर आदि। यह नातेदारी जैविकीय एवं सांस्कृतिक दोनों तथ्यों का मिश्रित रूप है। इस नातेदारी से व्यक्ति के अधिकार व दायित्व भी जुड़े हुए होते हैं।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 2 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मैकाइवर व पेज के अनुसार वर्णित समाज के आधारों का विशद् वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मैकाइवर व पेज ने समाज की अवधारणा को स्पष्ट करने के लिए निम्न आधारों को मुख्य माना है :

  • रीतियाँ :
    सामाजिक जीवन में विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित अनेक रीतियाँ पायी जाती हैं जो सामाजिक मानदण्डों का प्रमुख प्रकार हैं यथा-खान-पान, रहन-सहन, वेश-भूषा, विवाह, धर्म, जाति एवं शिक्षा आदि। रीतियाँ व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने के साथ-साथ समाजीकरण की प्रक्रिया को पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित करती है।
  • कार्य प्रणाली :
    कार्य प्रणालियाँ संस्था के नाम से जानी जाती है, जिनके माध्यम से एक समाज विशेष के लोग अपनी विभिन्न आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। एक समाज में व्यक्तियों की सभी क्रियाएँ इन कार्य प्रणालियों के अनुसार ही होती हैं।
  • अधिकार :
    इसे सत्ता या प्रभुत्व के नाम से भी जाना जाता है। यह समाज का एक प्रमुख आधार है। प्रायः सभी समाजों में प्रभुत्व व अधिकार के सम्बन्ध पाये जाते हैं। समाज में मिलने वाली समिति, समूह के कार्य-संचालन व सदस्य व्यवहार नियंत्रण हेतु अधिकार या शक्ति अवश्य पायी जाती है। व्यवस्था को बनाये रखने में अधिकार मुख्य भूमिका निभाते हैं।
  • पारस्परिक सहायता :
    पारस्परिक सहायता के बिना समाज की कल्पना करना बेकार है। सहयोगपूर्ण सम्बन्धों से ही परिवार या छोटे से समूह का अस्तित्व बना रहता है। पारस्परिक सहायता की मात्रा समाज को प्रगाढ़ता प्रदान करने के साथ उसके आकार को भी बढ़ाती है।
  • समूह एवं विभाग :
    प्रत्येक समाज में अनेक समूह, समितियाँ व संगठन पाये जाते हैं। जिनकी सहायता से व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। सभी समूह एवं विभाग एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। ये समूह जितने अधिक संगठित होंगे समाज उतना ही अधिक उन्नत होगा।
  • मानवीय व्यवहार का नियंत्रण :
    समाज सामाजिक सम्बन्धों की जटिल व्यवस्था है। इसे ठीक तरह संचालित करने हेतु मानवीय व्यवहार पर नियंत्रण आवश्यक है। अनियंत्रण की स्थिति आदर्श शून्यता उत्पन्न कर देती है, जिससे स्थान का विघटन हो सकता है। अतः मानवीय व्यवहार नियंत्रण हेतु औपचारिक व अनौपचारिक साधनों को अपनाया जाता है।

स्वतंत्रता :
स्वतंत्रता समाज में सभी व्यक्तियों को अपने विकास हेतु उचित वातावरण प्रदान करती है। स्वतंत्र वातावरण में ही व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का समुचित विकास कर समाज के विकास में योगदान दे सकता है। स्वतंत्रता ही व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार कार्य करने का अवसर देती है बिना स्वतन्त्रता के व्यक्ति कुंठित हो जाता है जो समाज के विकास में अहितकर होता है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 2 मूलभूत अवधारणाएँ-I (समाज, समुदाय, समूह, प्रस्थिति एवं भूमिका)

प्रश्न 2.
सामुदायिक भावना से क्या तात्पर्य है? इसके प्रमुख घटकों का विशद् वर्णन कीजिए।
उत्तर:
जब किसी समाज में रहने वाले लोग व्यक्तिगत हितों को छोड़कर परस्पर एक-दूसरे का सहयोग करते हुए हम की भावना से काम करते हैं तथा एक-दूसरे के सुख-दुःख में समान रूप से भागीदार रहते हैं तो इसी भावना को सामुदायिक भावना कहा जाता है। :

सामुदायिक भावना के तीन प्रमुख घटक :

  • हम’ की भावना की अभिव्यक्ति :
    हम की भावना व्यक्तियों को सुख-दुख में साथ देने और मिलकर काम करने को प्रोत्साहित करती है। लोगों में भाई-चारे का सम्बन्ध पाया जाता है। लोगों का अपने क्षेत्र व समुदाय के साथ विशेष लगाव पाया जाता है, सबके हित समान होते हैं। इसकी बलवती भावना समुदाय को एकता के सूत्र में बाँधे रखती है।
  • योगदान या दायित्वों के निर्वाह की भावना :
    समुदाय के कार्यों में सदस्यों द्वारा सम्मिलित होकर सहयोग करने की भावना आवश्यक है। समुदाय से सम्बन्धित अनेक ऐसे सामूहिक कार्य होते हैं जिन्हें समुदाय के सदस्यों के सहयोग के बिना पूर्ण नहीं किया जा सकता है। अतः सभी सदस्य अपनी प्रस्थिति के अनुसार समुदाय के कार्यों में सहयोग देते हैं।
  • निर्भरता की भावना :
    सामुदायिक भावना में अन्तर्निर्भरता की भावना एक आवश्ययक तत्व है। व्यक्ति अपने को एक-दूसरे पर और सम्पूर्ण समुदाय पर निर्भर समझते हैं। उन्हें अपनी आवश्यकता की पूर्ति हेतु अन्य लोगों के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है। पारस्परिक रूप से निर्भर रहने की यह भावना सामुदायिक भावना को बढ़ाने में सहायक सिद्ध होती है।

प्रश्न 3.
समाज के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
समाजशास्त्र समाज का अध्ययन करता है और समाज को हम तब तक नहीं समझ सकते जब तक उसके प्रकारों को न जान पायें। समाज के प्रमुख प्रकार निम्न हैं :

  • परम्परागत समाज :
    प्राचीन परम्परागों व प्रथाओं को विशेष महत्व देने वाले समाज परम्परागत समाज कहलाते हैं। इन समाजों में व्यक्तियों के दृष्टिकोण व व्यवहार पर धार्मिकता व आध्यात्मिकता का प्रभाव भी मिलता है। इन समाजों में धर्म, नैतिकता, प्रथा, परंपरा, रूढ़ियों एवं जनमत का विशेष स्वरूप दृष्टिगत होता है। ये समाज प्रौद्योगिकी दृष्टिकोण से पिछड़े होते हैं। इसी कारण इन समाजों में सामाजिक गतिशीलता व सामाजिक परिवर्तन मंद गति से होते हैं।
  • मुक्त समाज :
    मुक्त समाज को खुला समाज भी कहा जाता है। इन समाजों में धर्म, प्रथाओं, नैतिकता. परम्पराओं का प्रभाव कम मिलता है। मुक्त समाज रूढ़िवादी समाज न होकर प्रगतिशील और सापेक्ष रूप से अधिक परिवर्तनशील समाज होता है। इसमें वैयक्तिक गुण पाये जाते हैं। इन समाजों में जाति व्यवस्था की जगह वर्ग व्यवस्था का महत्व अधिक होता है। मुक्त समाज में विज्ञान का व्यापक प्रभाव देखने को मिलता है।
  • आदिम समाज :
    वे जनजातीय समाज जो पहाड़ी, पठारी या घने जंगलों में पाए जाते हैं तथा आधुनिक सभ्यता के दृष्टिकोण से पिछड़े हैं, आदिम समाज कहलाते हैं। इनमें साहित्य, कला, विज्ञान व अध्यात्म का अभाव पाया जाता है।
  • सभ्य समाज :
    ऐसे समाज जनसंख्या, क्षेत्र व सामाजिक संपर्क दृष्टि से बड़े होते हैं। इनमें प्रौद्योगिकी व अर्थव्यवस्था विकसित होती है। साथ ही सामाजिक कार्यों का विशेषीकरण पाया जाता है। ऐसे समाजों में परिवार, नातेदारी, धर्म, परम्परा व रूढ़ियों को कम महत्व दिया जाता है।

सरल समाज :
ऐसे समाज जिनकी संरचना व प्रकार्य सरल होते हैं, उन्हें सरल समाज कहते हैं। ऐसे समाजों में विभिन्नताएँ कम पायी जाती हैं। इनमें आदिम समाजों को शामिल किया जाता है।

जटिल समाज :
ऐसे समाज जिनकी संरचना तथा प्रकार्य जटिल होते हैं, उन्हें जटिल समाज कहा जाता है। ऐसे समाजों में अत्यधिक विभिन्नता पायी जाती है। आधुनिक समाज ऐसे समाजों का अंग है।

प्रश्न 4.
समुदाय के विभिन्न प्रकारों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समुदाय के विभिन्न संघटकों को आधार मानकर व उनमें मिलने वाली विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए समुदायों को निम्न भागों में बाँटा गया है :

  • ग्रामीण समुदाय :
    मानवीय आवास का एक रूप माने जाने वाले ग्रामीण समुदाय में कम जनसंख्या, छोटा आकार, लोगों की प्रकृति पर निर्भरता, कृषि कार्य की प्रधानता, आत्मीय व घनिष्ठ सम्बन्धों की प्रधानता, सरल व सादा जीवन, सामाजिक सरलता जैसी विशेषताएँ पायी जाती हैं। ऐसे समुदाय संयुक्त परिवारों के प्रचलन, सामुदायिक भावना, रूढ़ियों के प्रभाव को भी दर्शाते हैं।
  • नगरीय समुदाय :
    नगरीय समुदाय मुख्यतः बड़े आकार, अधिक जनसंख्या, जनसंख्या की विभिन्नताओं, कार्यों की भिन्नताओं, कृषि के स्थान पर व्यवसायों की प्रधानता को दर्शाते हैं। इन समुदायों में एकल परिवार, सम्बन्धों की कृत्रिमता, व्यक्तिगतता का महत्व व सामाजिक समस्याओं जैसी दशाएँ पाई जाती हैं।
  • लघु समुदाय :
    इन समुदाओं का आकार छोटा, विशिष्ट जीवन शैली, लोगों के जीवन व संस्कृति में समरूपता व आत्मनिर्भरता जैसी दशाएँ पायी जाती हैं। ये समुदाय मानव के स्थायी निवास बनाकर रहने के प्रारम्भिक स्वरूप को दर्शाते हैं।
  • जनजातीय समुदाय :
    आदिम/आदिवासी लोगों के समुदायों को जनजाति समुदाय कहा जाता है। इनकी अपनी विशिष्ट बोली, विशिष्ट संस्कृति विशिष्ट राजनीतिक व आर्थिक स्वायत्तता होती है। इनमें गतिशीलता कम व स्थिरता अधिक होती है। यथा-गोंड, भील, एस्किमो समुदाय।
  • क्षेत्रीय समुदाय :
    क्षेत्रीय समुदाय भौतिक तत्वों की समरूपता, विशिष्ट स्थिति, लक्षणों की समानता, विचारों की समानता, परिवर्तनशीलता जैसी विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं।
  • सीमावर्ती समुदाय :
    ऐसे समुदाय समुदाय के समान, आंशिक विशेषताओं को दर्शाने वाले होते हैं।

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प्रश्न 5.
जाति को एक समुदाय क्यों नहीं माना गया है?
उत्तर:
जाति किसी क्षेत्र में समुदाय जैसी दशाओं का प्रदर्शक होती है, किन्तु उसे समुदाय नहीं माना जा सकता। इसके समुदाय न मानने के पीछे निम्नलिखित कारण उत्तरदायी हैं :

  1. किसी भी समुदाय का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र पाया जाता है किन्तु जाति का कोई निश्चित भौगोलिक क्षेत्र नहीं होता है।
  2. समुदाय का क्षेत्र विशेष से संबंध पाया जाता है किन्तु जाति का किसी क्षेत्र विशेष के साथ कोई संबंध नहीं होता। एक ही जाति विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती है।
  3. समुदाय में सामुदायिक भावना पायी जाती है किन्तु जाति अनेक उपजातियों में बँटी होती है। जिसके कारण जाति के लोगों में सामुदायिक भावना की जगह व्यक्तिगत भावना अधिक पाई जाती है।
  4. समुदाय में विशिष्ट हितों को प्रधानता दी जाती है जाति के अन्दर सदस्यों के सामान्य या व्यक्तिगत हितों को अधिक महत्व दिया जाता है।

उपर्युक्त वर्णित सभी कारकों से स्पष्ट हो जाता है कि जाति समुदाय के सदृश अवश्य लगती है किन्तु पूर्ण जाति को समुदाय नहीं माना जा सकता क्योंकि जाति में समुदाय निर्माण की आधारभूत दशाओं का अभाव पाया जाता है

प्रश्न 6.
अन्तः समूह व बाह्य समूह में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
समनर द्वारा वर्णित समूहों के वर्गीकरण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
समनर ने समूह के सदस्यों में घनिष्ठता व सामाजिक दूरी के आधार पर समस्त समूहों को निम्नलिखित दो भागों में बाँटा है.
1. अन्तः समूह
2. बाह्य समूह।
इन दोनों समूहों में मिलने वाली दशाओं व अन्तरों का विवरण निम्नानुसार है :
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प्रश्न 7.
डेविस के अनुसार प्राथमिक समूहों की आंतरिक विशेषताओं का विशद् वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक समूहों की आंतरिक विशेषताओं में सदस्यों के सम्बन्धों को शामिल किया जाता है। डेविस महोदय ने प्राथमिक समूहों की निम्न विशेषताएँ बताई हैं :

  • लक्ष्यों की सादृश्यता :
    प्राथमिक समूहों में लोग घनिष्ठ संबंध वाले होते हैं, जिसके कारण सभी सदस्यों के लक्ष्यों या उद्देश्यों में समानता मिलती है। इसमें कोई भी सदस्य अपने हित की पूर्ति हेतु दूसरे सदस्य का अहित नहीं करता है।
  • संबंध स्वयं साध्य होता है :
    प्राथमिक समूहों में स्थापित संबंधों में किसी विशेष उद्देश्य प्राप्ति की भावना नहीं होती हैं। उद्देश्य प्राप्ति हेतु संबंध बनाये भी नहीं जाते अपितु संबंध ही अंतिम लक्ष्य होते हैं।
  • संबंध व्यक्तिगत होता है :
    इन समूहों में सदस्य प्रत्यक्ष रूप से एक-दूसरे से परिचित होते हैं। इनमें आडम्बरों या दिखावे का अभाव मिलता है। इसी कारण संबंध व्यक्तिगत होते हैं।
  • संबंध सर्वांगीण होते हैं :
    इन समूहों में प्रत्येक सदस्य हृदय व इच्छा से भाग लेता है तथा प्रत्येक सदस्य जागरूक होता है। सभी सदस्य आपस में मिलकर लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न करते हैं। इन समूहों में प्रत्येक व्यक्ति दूसरे के जीवन की सम्पूर्ण दशाओं को जानता है।
  • संबंध स्वतः स्फूर्त होते हैं :
    इन समूहों में संबंधों का विकास स्वतः होता है। एक-दूसरे के साथ बनने वाले संबंधों का आधार स्वेच्छा होती है। इसमें किसी दबाव, प्रलोभन या शर्त का अभाव पाया जाता है। प्रत्येक व्यक्ति अपनी प्रसन्नता व इच्छा से समूह के सदस्यों के लिए अपना सब कुछ त्याग करने के लिए तैयार रहता है।

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प्रश्न 8.
द्वितीयक समूहों की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
द्वितीयक समूहों की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • बड़ा आकार :
    द्वितीयक समूहों का आकार बड़ा होता है क्योंकि इनमें सदस्य संख्या अधिक पाई जाती है तथा इन समूहों की सदस्यता की कोई सीमा नहीं होती है।
  • उद्धेश्यों का विशेषीकरण :
    ये समूह किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति हेतु बनाये जाते हैं। कोई भी द्वितीयक समूह उद्देश्यविहीन नहीं होता है। इनमें पूर्णतः स्वार्थता पायी जाती है।
  • अप्रत्यक्ष संपर्क :
    इन समूहों में सदस्यों की अधिकता के कारण अप्रत्यक्ष संबंधों की प्रधानता मिलती है। इन अप्रत्यक्ष संबंधों के कारण घनिष्ठता का अभाव मिलता है।
  • व्यक्तिगत व घनिष्ठ संबंधों का अभाव :
    इन समूहों में घनिष्ठता का अभाव पाया जाता है। अपनी बड़ी सदस्य संख्या के कारण सदस्य परस्पर वैयक्तिक संबंध स्थापित नहीं कर पाते हैं।
  • उद्देश्यों की भिन्नता :
    इन समूहों में प्रत्येक व्यक्ति अपने हित-लक्ष्यों को पूरा करने की सोचता है। अपनी-अपनी स्वार्थ जनित स्थिति के कारण सबके उद्देश्य अलग-अलग होते हैं। प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहन मिलता है।
  • औपचारिक संबंध :
    इन समूहों में सदस्यों के बीच पारस्परिक संबंध कुछ निश्चित नियमों व उपनियमों के अनुसार नियंत्रित होते हैं। यदि इन नियमों का पालन न हो तो अव्यवस्था फैल जाती है। इसलिए लोग औपचारिक रूप से संबंध निभाते हैं।
  • इच्छा से स्थापित :
    ये समूह जान-बूझकर अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु स्थापित किये जाते हैं। विशेष उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु ही इन समूहों की स्थापना की जाती है।

प्रश्न 9.
प्रस्थिति और भूमिका के आवश्यक तत्व कौन से हैं?
उत्तर:
प्रस्थिति और भूमिका के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं :

  1. प्रत्येक समाज में एक प्रस्थिति व भूमिका का निर्धारण उस समाज के सांस्कृतिक कारकों व मूल्यों द्वारा होता है। संस्कृति ही प्रस्थिति व भूमिका का निर्धारण करती है।
  2. प्रस्थिति एवं भूमिका की अवधारणा को दूसरे व्यक्तियों के संदर्भ में ही समझा जा सकता है। एक व्यक्ति की प्रस्थिति व भूमिका का संबंध अन्य व्यक्तियों की प्रस्थितियों व भूमिकाओं से होता है।
  3. एक ही प्रस्थिति एवं भूमिका का निर्वाह पृथक-पृथक् व्यक्तियों द्वारा अपने-अपने ढंग से किया जाता है। प्रधानमंत्री के रूप में पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री एवं मोरारजी द्वारा समान ढंग से भूमिकाओं का निर्वाह नहीं किया गया।
  4. प्रत्येक प्रस्थिति एवं भूमिका व्यक्ति के संपूर्ण सामाजिक पद का केवल एक भाग ही होती है। व्यक्ति समाज में एक साथ अनेक प्रस्थितियाँ प्राप्त करता है और विभिन्न अवसरों पर उनके अनुरूप ही अपनी भूमिका निभाता है। उदाहरणार्थ, एक ही व्यक्ति डॉक्टर, पिता, पति एवं पुत्र की विभिन्न प्रस्थितियों के अनुरूप भूमिकाओं का निर्वाह करता है।
  5. प्रस्थिति एवं भूमिका के आधार पर संपूर्ण समाज विभिन्न प्रस्थिति-समूहों में बँटा होता है। इन प्रस्थिति-समूहों के आधार पर हम किसी समाज की विशेषताओं को ज्ञात कर सकते हैं।
  6. प्रत्येक प्रस्थिति के साथ एक विशेष मूल्य एवं प्रतिष्ठा जुड़ी होती है, जो संस्कृति द्वारा निर्धारित होती है।
  7. एक व्यक्ति एक ही समय में कई प्रस्थितियों को धारण करता है किंतु वह सभी का निर्वाह समान योग्यता एवं कुशलता के साथ नहीं कर पाता है। एक व्यक्ति अच्छा खिलाड़ी हो सकता है किंतु वह एक असफल व्यापारी और लापरवाह पति भी हो सकता है।
  8. समाज में उच्च एवं निम्न प्रस्थितियों के कारण ही सामाजिक संस्तरण तथा विभेदीकरण पैदा होता है जो उदग्र या क्षैतिज रूप में हो सकता है।
  9. समाज में कुछ प्रस्थितियाँ प्रदत्त होती हैं जो एक व्यक्ति को समाज स्वयं प्रदान करता है और दूसरी ओर कुछ प्रस्थितियाँ व्यक्ति अपनी योग्यता एवं प्रयत्नों के द्वारा अर्जित करता है।

प्रश्न 10.
प्रदत्त व अर्जित प्रस्थितियों में अंतर स्पष्ट कीजिए
उत्तर:
प्रदत्त व अर्जित प्रस्थितियों में निम्नलिखित अंतर है
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प्रश्न 11.
भूमिका की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भूमिका की निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं :

  1. भूमिका का संबंध उन व्यवहारों की संपूर्णता से है जिनकी एक विशिष्ट प्रस्थिति धारण करने के कारण समूह अथवा समाज द्वारा अपेक्षा की जाती है।,
  2. भूमिका का निर्धारण संस्कृति एवं सामाजिक मानदंडों के आधार पर होता है।
  3. समाज में कोई भी भूमिका अकेली या एकपक्षीय नहीं होती है वरन वह सदैव दूसरी प्रस्थितियों या भूमिकाओं के संदर्भ में ही निभायी जाती है।
  4. भूमिका का संबंध प्रस्थिति के साथ जुड़ा होता है। चूँकि प्रस्थितियाँ प्रदत्त और अर्जित दो प्रकार की हैं, अतः भूमिकाएँ भी प्रदत्त और अर्जित होती हैं।
  5. भूमिका गतिशील और परिवर्तनशील है। एक ही भूमिका विभिन्न लोगों द्वारा भिन्न-भिन्न प्रकार से निभायी जाती है और विभिन्न समयों एवं संस्कृतियों में अलग-अलग प्रकार से निभायी जाती है।
  6. प्रत्येक व्यक्ति अपनी भूमिका का निर्वाह स्वयं की योग्यता, क्षमता, रुचि, मनोवृत्ति आदि के आधार पर ही करता है।
  7. व्यक्ति समाज में अनेक भूमिकाएं निभाता है, किंतु जिस भूमिका के कारण वह समाज में जाना जाता है वह उसकी ‘मुख्य भूमिका’ कहलाती है। अन्य छोटी-मोटी भूमिकाओं को ‘सामान्य भूमिकाएँ’ कहते हैं।
  8. अलग-अलग भूमिकाओं का निर्वाह करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार का व्यवहार किया जाता है। सभी भूमिकाओं का निर्वाह एक ही प्रकार के व्यवहार द्वारा नहीं किया जाता।
  9. प्रत्येक भूमिका के साथ कुछ-न-कुछ अधिकार एवं सुविधाएँ जुड़ी होती हैं।

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प्रश्न 12.
प्रस्थिति व भूमिका का समाजशास्त्रीय महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रस्थिति व भूमिका के समाजशास्त्रीय महत्व को निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझा जा सकता है :

  1. प्रस्थिति व भूमिकाएँ मिलकर ही समाज व्यवस्था का निर्माण करते हैं और सामाजिक संगठन को सुचारू रूप से चलाने के लिए इनमें पारस्परिक संतुलन एवं ताल-मेल होना आवश्यक है।
  2. प्रस्थिति व भूमिकाएँ समाज में श्रम-विभाजन कर सामाजिक कार्यों को सरल बना देती हैं।
  3. ये समाज में सामाजिक नियंत्रण बनाये रखने में भी योग देते हैं क्योंकि प्रत्येक प्रस्थिति एवं भूमिका से संबंधित सामाजिक प्रतिमान एवं नियम होते हैं और व्यक्ति से उनके अनुरूप आचरण करने की अपेक्षा की जाती है।
  4. ये व्यक्ति का समाजीकरण करने में भी योग देते हैं क्योंकि व्यक्ति के जन्म से पूर्व ही ये समाज में विद्यमान होते हैं और व्यक्ति उनके अनुसार आचरण करना सीखता है।
  5. प्रस्थिति एवं भूमिका व्यक्ति की क्रियाओं का मार्गदर्शन करते हैं और उसे बताते हैं कि किस प्रस्थिति में उसे किस प्रकार की भूमिका निभानी होगी।
  6. इनके द्वारा हम किसी भी व्यक्ति के व्यवहार का पूर्वानुमान लगा सकते हैं। उदाहरणार्थ, यदि कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनता है तो हम उसके कार्यों के बारे में पूर्वानुमान लगा सकते हैं और भविष्यवाणी कर सकते हैं क्योंकि संविधान एवं सामाजिक प्रथाओं द्वारा उसके कार्य निर्धारित कर दिये गये हैं।
  7. भूमिकाओं के निर्वाह से समाज की प्रकार्यात्मक आवश्यकताएँ पूरी होती रहती है, इससे समाज में निरंतरता एवं स्थिरता बनी रहती है।
  8. एक प्रस्थिति और उससे संबंधित भूमिका व्यक्ति में एक विशेष प्रकार की मनोवृत्ति को जन्म देती है। व्यापारी, अध्यापक, छात्र, सैनिक की मनोवृत्तियों के निर्धारण में उनकी प्रस्थिति एवं भूमिका का भी प्रभाव होता है।
  9. प्रस्थितियाँ व्यक्ति में जागरूकता एवं उत्तरदायित्व की भावना पैदा करती हैं।
  10. समाज में ऊँची एवं नीची प्रस्थितियाँ होती हैं। ये व्यक्ति को प्रयत्न करने के लिए प्रेरित करती हैं और प्रयत्नों के कारण ही उसकी प्रगति संभव हो पाती है।

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