RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 6 संरचना, स्तरीकरण और प्रक्रियाएँ

Rajasthan Board RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 संरचना, स्तरीकरण और प्रक्रियाएँ

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर  

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
इनमें से कौनसा सामाजिक संरचना का तत्व नहीं है
(अ) विश्वास
(ब) भावनायें
(स) मानक
(द) आवश्यकतायें
उत्तर:
(द) आवश्यकतायें

प्रश्न 2.
“सामाजिक संरचना की इकाइयाँ मनुष्य ही हैं।” यह कथन किसका है।
(अ) मे. लिनोवाकी
(ब) नेडेल
(स) रेडक्लिफ ब्राउन
(द) पारसन्स
उत्तर:
(स) रेडक्लिफ ब्राउन

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प्रश्न 3.
निम्न में से कौन सी जाति व्यवस्था की विशेषता नहीं है
(अ) व्यवसाय अनिश्चित होते हैं।
(ब) जाति का निश्चय जन्म से होता है।
(स) जाति के सदस्य अपनी जाति में विवाह करते हैं।
(द) जातियों में ऊँच-नीच का संस्तरण होता है।
उत्तर:
(अ) व्यवसाय अनिश्चित होते हैं।

प्रश्न 4.
निम्न में से कौन जाति नहीं है।
(अ) भील
(ब) ब्राह्मण
(स) वैश्य
(द) क्षत्रिय
उत्तर:
(अ) भील

प्रश्न 5.
जाति एक बन्द वर्ग है। यह कथन किसका है
(अ) कूले
(ब) एम.एन. श्रीनिवास
(स) जी.एस. घुर्ये
(द) मजूमदार एवं मदान
उत्तर:
(द) मजूमदार एवं मदान

प्रश्न 6.
लिंग के प्रमुख प्रकार हैं
(अ) स्त्री
(ब) पुरुष
(स) नपुंसक
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 7.
इनमें से कौन सी सामाजिक प्रक्रिया नहीं है
(अ) सहयोग
(ब) प्रतिस्पर्धा
(स) संघर्ष
(द) जाति
उत्तर:
(द) जाति

प्रश्न 8.
क्रिकेट का मैच किसका स्वरूप है
(अ) जाति
(ब) वर्ग
(स) प्रतिस्पर्धा
(द) नातेदारी
उत्तर:
(स) प्रतिस्पर्धा

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प्रश्न 9.
वर्ग संघर्ष की अवधारणा किसने दी है
(अ) अगस्त कॉम्ट
(ब) दुर्थीम
(स) कार्ल मार्क्स
(द) राधाकमल मुखर्जी
उत्तर:
(स) कार्ल मार्क्स

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
संरचना से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जब समाज की समस्त इकाइयाँ विशेष क्रम में परस्पर व्यवस्थित होती हैं तो वह एक जटिल समग्र का निर्माण करती हैं, उसे ही संरचना कहा जाता है।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
कोजर एवं रोजनबर्ग के अनुसार संरचना का तात्पर्य सामाजिक इकाइयों के तुलनात्मक स्थिर एवं प्रतिमानित संबंधों से है।

प्रश्न 3.
सामाजिक संरचना के आवश्यक तत्त्व बताइये।
उत्तर:
सामाजिक संरचना के आवश्यक तत्त्व हैं-धर्म, मूल्य, मानदंड, जाति, वर्ग, परिवार व अन्य संस्थाएँ आदि शामिल हैं।

प्रश्न 4.
जाति से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
जाति समाज का ऐसा खंडात्मक विभाजन है जो कि आनुवंशिकता पर आधारित रहकर अपने सदस्यों के व्यवसाय, खान-पान व विवाह पर निश्चित स्थिति में रोक लगाती है।

प्रश्न 5.
जाति का निर्धारण कैसे होता है?
उत्तर:
समाज में जाति का निर्धारण व्यक्ति के जन्म के आधार पर होता है।

प्रश्न 6.
वर्ग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
वर्ग ऐसे व्यक्तियों का समूह होता है जिनके सदस्यों की समान सामाजिक प्रस्थिति होती है। यह एक मुक्त सामाजिक व्यवस्था है।

प्रश्न 7.
प्रजाति का अर्थ बताइये।
उत्तर:
प्रजाति को नस्ल भी कहा जाता है। यह विशिष्ट वंशानुगत शारीरिक लक्षणों के आधार पर निश्चित की जाती है। समाज में शारीरिक लक्षणों वाले समूह को प्रजाति के नाम से पुकारा जाता है।

प्रश्न 8.
प्रजाति का निर्धारण किन लक्षणों के आधार पर होता है?
उत्तर:
प्रजाति का निर्धारण विशिष्ट शारीरिक लक्षणों के आधार पर होता है।

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प्रश्न 9.
लैंगिकता (जेंडर) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जेंडर से आशय शारीरिक संरचना संबंधी विभेदों से है, जो एक पुरुष एवं महिला के मध्य पाये जाते हैं।

प्रश्न 10.
लिंग विषमता या लिंग असमानता क्या है?
उत्तर:
समाज में स्त्रियों को पुरुषों से कम आँकने की प्रवृत्ति को ही लिंग असमानता कहा जाता है।

प्रश्न 11.
सहयोग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
सहयोग एकीकरण की प्रक्रिया है जो समाज में व्यक्तियों को संगठित करते हुए, उन्हें एकता के सूत्र में बाँधती है।

प्रश्न 12.
प्रतिस्पर्धा की परिभाषा दीजिए?
उत्तर:
प्रतिस्पर्धा एक असहयोगी सामाजिक प्रक्रिया है जो विरोधी व्यवहार के द्वारा व्यक्ति को दूसरे के उद्देश्यों को पराजित करके अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने का प्रोत्साहन देती है।

प्रश्न 13.
प्रतिस्पर्धा के प्रकार बताइये।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धा के प्रकार हैं-आर्थिक, सांस्कतिक पद व कार्य संबंधी एवं प्रजातीय प्रतिस्पर्द्धा।

प्रश्न 14.
संघर्ष किसे कहते हैं?
उत्तर:
संघर्ष व्यक्ति या समूह द्वारा अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दूसरे व्यक्ति या समूह को कार्य करने से हिंसा या हिंसा का दिखावा करके रोकने का प्रयास करता है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
जिस प्रकार एक भवन या मकान की संरचना ईंट, चूना, पत्थर व सीमेंट इत्यादि कई इकाइयों से मिलकर हुई होती है उसी प्रकार समाज की भी संरचना समाज के कई अंगों जैसे धर्म, नातेदारी, मूल्य, परपराएँ व विश्वास आदि इकाइयों से मिलकर बनी होती है। संरचना अमूर्त होती है। इससे समाज के अनेक अंग एक दूसरे से परस्पर संबंधित होते हैं। इससे समाज के बाहरी स्वरूप का भी ज्ञान प्राप्त होता है।

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प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना की कोई दो विशेषता बताइये।
उत्तर:
सामाजिक संरचना की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं :

  1. सामाजिक संरचनाएँ स्थानीय विशेषताओं से प्रभावित होती हैं।
  2. सामाजिक संरचनाएँ उपसंरचनाओं द्वारा निर्मित होती हैं। ये उपसंरचनाएँ ही समाज का उपयुक्त रूप से निर्माण करती हैं।

प्रश्न 3.
जाति की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जाति की प्रमुख विशेषताएँ :

  1. जाति की सदस्यता जन्म से ही निश्चित हो जाती है।
  2. जाति में संस्तरणात्मक श्रेणियाँ होती हैं।
  3. जाति के पेशे प्रायः निश्चित होते हैं।
  4. जाति समाज का एक खंडात्मक विभाजन है।
  5. जाति में भोजन, सहवास व विवाह पर प्रतिबंध पाया जाता है।

प्रश्न 4.
जाति तथा वर्ग के अंतर को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जाति तथा वर्ग में निम्न आधारों पर अंतर किया जा सकता है :

  1. जाति जन्म पर आधारित है, वर्ग कर्म पर आधारित होता है।
  2. जाति में प्रदत्त प्रस्थिति होती है, वर्ग में अर्जित प्रस्थिति पायी जाती है।
  3. जाति एक बंद व्यवस्था है, वर्ग एक मुक्त व्यवस्था है।
  4. जाति में व्यक्ति की प्रस्थिति परिवर्तित नहीं हो सकती है, जबकि वर्ग में व्यक्ति की प्रस्थिति गतिशील होती है।

प्रश्न 5.
जाति प्रथा के प्रमुख दोष बताइये।
उत्तर:
जाति प्रथा के प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं :

  • सामाजिक समानता में बाधक :
    जाति ने समाज में व्यक्तियों को उच्च व निम्न श्रेणियों में बाँट दिया है। जिससे समाज में असमानता पायी जाती है।
  • अप्रजातान्त्रिक :
    जाति व्यवस्था पूर्णतया अलोकतांत्रिक है क्योंकि इसमें व्यक्तियों के मध्य भेद किया जाता है।
  • धर्म परिवर्तन :
    भारत में हिंदू धर्म में व्याप्त कठोरता के कारण लाखों हिंदू स्त्री-पुरुषों को ईसाई व इस्लाम धर्म के प्रवर्तकों ने धर्म परिवर्तन करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
  • व्यक्तियों की गतिशीलता में बाधक :
    जाति व्यक्तियों को उनके परंपरागत व्यवसायों को करने पर बल देती है, जिससे वे किसी अन्य व्यवसाय में संलग्न नहीं हो पाते हैं।

प्रश्न 6.
वर्ग का अर्थ बताइए।
उत्तर:
वर्ग सामाजिक स्तरीकरण की एक मुक्त व्यवस्था है। जिसका आधार आर्थिक स्थिति, योग्यता, क्षमता, शैक्षणिक स्थिति आदि हो सकते हैं। यह समाज का वह भाग होता है जिसके सदस्यों की सामाजिक स्थितियाँ समान होती हैं, जिसके आधार पर इनमें सामाजिक जागरूकता पायी जाती है व समाज के अन्य वर्गों से अलग होते हैं।

प्रश्न 7.
वर्ग की सामान्य विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
वर्ग की विशेषताएँ :

  1. ऊँच-नीच की भावना-वर्गों के सदस्यों के मध्य उच्च व निम्नता की भावना पायी जाती है।
  2. वर्ग चेतना का समावेश वर्गों में वर्ग चेतना का समावेश भी होता है। वे अपने अधिकारों के लिए सजग रहते है
  3. अर्जित प्रस्थिति वर्ग व्यवस्था में व्यक्ति की प्रस्थिति अर्जित होती है, जिसे वह अपनी योग्यता के आधार पर प्राप्त करता है।
  4. अस्थिर या गतिशील धारणा-वर्ग एक गतिशील धारणा है, जहाँ व्यक्ति की स्थिति समयानुसार परिवर्तित होती रहती है।

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प्रश्न 8.
विश्व की प्रमख प्रजातियाँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर:
विश्व की प्रमुख प्रजातियों का वर्गीकरण विभिन्न विद्वानों ने दिये हैं, जो निम्न प्रकार से हैं :
(अ) क्रोनर का वर्गीकरण :

  1. काकेशायड :
    नार्डिक, अलपाइन, भूमध्यसागरीय, हिंदू।
  2. मंगोलायड :
    मंगोलियन, मलेशियन, अमेरिकन, इण्डियन।
  3. नीग्रोयड :
    नीग्रो, मलेशिया, पिग्मी ब्लेक, बुशमैन ।

(ब) बील्स एवं हाइजर का वर्गीकरण :

  1. काकेशायड
  2. मंगोलायड
  3. निग्रोयड

(स) हक्सले का वर्गीकरण :

  1. आस्ट्रेलायड
  2. नीग्रोयाड
  3. मंगोलायड
  4. केन्शोक्राइक
  5. मेलेनोक्राइक

प्रश्न 9.
प्रजातिवाद क्या है?
उत्तर :
प्रजातिवाद एक संकुचित विचारधारा है जो इस बात पर बल देती है कि एक प्रजाति शारीरिक रचना तथा मानसिक गुणों की दृष्टि से दूसरी प्रजाति से श्रेष्ठ है। उच्चता अथवा निम्नता की भावना एक समूह में दूसरे समूह के प्रति भय, घृणा, क्रोध, संदेह तथा प्रतिशोध जैसे भावों को जन्म देकर भेदभावपूर्ण असमान व्यवहार को प्रश्रय देती है।

प्रश्न 10.
विषमता का अर्थ बताइये।
उत्तर:
विषमता का अर्थ है :

  1. समान अवसरों का न पाया जाना।
  2. विशेषाधिकारों से वंचित रहना।

समाज में लिंग, शिक्षा, आयु, जन्म, धर्म, जाति, भाषा, रंग, पेशा आदि के आधारों पर व्यक्ति व समूहों में ऊँच-नीच का भेद पाया जाना व उनसे इन आधारों पर निश्चित दूरी को बनाए रखना आदि को हम विषमता का मुख्य आधार मान सकते हैं।

प्रश्न 11.
सामाजिक क्षेत्र में विषमता को समझाइये।
उत्तर:
सामाजिक क्षेत्र में विषमता का अर्थ है समाज में सामाजिक तौर पर व्यक्तियों को समान न समझना या दूसरों की तुलना में कम आँकने की प्रवृत्ति को ही सामाजिक विषमता कहा जाता है। समाज में लैंगिक-भेद, व्यवसाय, पेशा, जाति आदि के आधारों पर सामाजिक विषमता पायी जाती है।

प्रश्न 12.
सहयोग को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर:
सहयोग समाज में एक एकीकरण की सामाजिक प्रक्रिया है। यह समाज को संगठित रखती है तथा सभी इकाइयों में सामंजस्यता को बनाए रखती है। यह लोगों को एकता के सूत्र में बाँधती है। सहयोग के द्वारा ही समाज के सदस्य सामान्य लक्ष्य प्राप्त करते हैं। यह एक गतिशील प्रक्रिया है जो निरंतर या लगातार चलती है।

सहयोग के उदाहरण :

  1. प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, अनावृष्टि आदि के समय लोगों की सहायता करना।
  2. गरीब बच्चों की शिक्षा हेतु धनराशि देकर उनकी सहायता करना।
  3. गरीब कन्याओं की निम्न स्थिति देखते हुए सामूहिक रूप से उनके विवाह के लिए लोगों के सहयोग से सहायता प्रदान करना।

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प्रश्न 13.
प्रतिस्पर्धा के कोई दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
समाज में प्रतिस्पर्धा की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब साधन कम होते हैं, लोगों की संख्या उन साधनों को पाने के लिए अधिक होती है। यह एक असहयोग सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें सहयोग का अभाव पाया जाता है। इसमें निजी स्वार्थों को अधिक महत्व दिया जाता है।
प्रतिस्पर्धा के उदाहरण :

  1. विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में लोगों का सरकारी पदों को प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा का करना।
  2. खेल-कूद, शिक्षा, रंग, पेशा आदि के आधारों पर भी व्यक्ति प्रथम आने की होढ़ में प्रतिस्पर्धा करता है।

प्रश्न 14.
संघर्ष के कोई दो स्वरूप बताइये।
उत्तर:
संघर्ष के स्वरूप :

  • प्रजातीय संघर्ष :
    जब व्यक्ति शारीरिक आधारों पर भेदभाव करता है तो उसे प्रजातीय संघर्ष कहा जाता है। यह समूहगत संघर्ष होता है। जैसे गोरे व काले के बीच।
  • वर्ग संघर्ष :
    समाज में पाए जाने वाले वर्गों में वर्ग चेतना पायी जाती है जिससे वे सजग व सक्रिय रहते हैं। जिससे उनका अन्य वर्गों के साथ संघर्ष होता है। इसकी व्याख्या कार्ल-मार्क्स ने भी की थी।

प्रश्न 15.
प्रतिस्पर्द्धा एवं संघर्ष में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 6 संरचना, स्तरीकरण और प्रक्रियाएँ 1

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना की परिभाषा दीजिए एवं इसकी प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
सामाजिक संरचना एक जटिल समग्र होती है, जिसमें अनेक इकाइयाँ एक-दूसरे से परस्पर संबंधित होती हैं। जब ये समस्त इकाइयाँ एक विशेष क्रम में व्यवस्थित होती हैं तब उसे सामाजिक संरचना कहा जाता है।

सामाजिक संरचना की परिभाषा :
रैडक्लिफ ब्राउन के अनुसार :
“सामाजिक संरचना में अंग या भाग मनुष्य ही हैं और स्वयं संरचना द्वारा परिभाषित और नियमित संबंधों में लगे हुए व्यक्तियों की एक क्रमबद्धता है।”

कोजर एवं रोजनबर्ग :
“संरचना का तात्पर्य सामाजिक इकाइयों के तुलनात्मक स्थिर एवं प्रतिमानित संबंधों से है।

सामाजिक संरचना की विशेषताएँ :

  • बाह्य स्वरूप का ज्ञान :
    समाज की संपूर्ण इकाइयाँ व्यवस्थित रूप से जुड़ने पर बाह्य ढाँचे का निर्माण करती हैं। जिससे संरचना का स्वरूप स्पष्ट होता है।
  • अमूर्तता :
    सामाजिक संरचना का स्वरूप अमूर्त होता है क्योंकि ये विभिन्न इकाइयों जैसे मूल्य, नियम, संस्कृति, धर्म व जाति आदि से मिलकर बनी होती हैं, जिसे छुआ या देखा नहीं जा सकता है।
  • स्थायी व गतिशील अवधारणा :
    सामाजिक संरचना में स्थायीपन व गतिशीलता दोनों ही पायी जाती हैं क्योंकि इनका निर्माण अनेक अंगों से मिलकर हुआ है। जो कहीं-कहीं पर स्थायी होती है व कहीं पर गतिशील पाची जाती है।
  • इकाइयों में क्रमबद्धता पाई जाती है :
    संरचना का निर्माण तभी संभव है जब इसके विभिन्न अंग परस्पर रूप से मिलकर एक रूप का निर्माण करें। जब तक इकाइयों में क्रमबद्धता नहीं पायी जाएगी तब तक वह संरचना नहीं कहलाएगी। अतः उपर्युक्त विशेषताओं से स्पष्ट है कि इकाइयों के एक साथ क्रम में होने से ही संरचना का निर्माण होता है।

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प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना के प्रमुख तत्त्वों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक संरचना के प्रमुख तत्त्व निम्न प्रकार से हैं :

  • विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ :
    सामाजिक संरचना में प्रत्येक अंगों की अपनी एक निश्चित भूमिका होती है। जिससे सामाजिक संरचना का निर्माण होता है व वह पूर्ण रूप से व्यवस्थित रहती है।
  • विभिन्न प्रकार के उपसमूह :
    संरचना के निर्माण में अनेक प्रकार के उपसमूह पाए जाते हैं, जिससे संरचना का स्वरूप स्पष्ट होता है। यदि इन उपसमूहों में बदलाव आता है तो समाज की संरचना भी परिवर्तित होगी।
  • सांस्कृतिक मूल्य :
    इन मूल्यों के आधारों पर ही वस्तुओं की तुलना की जाती है। ये मूल्य प्रत्येक संस्कृति में अलग-अलग पाए जाते हैं। मूल्यों के आधार पर ही विचारों, भावनाओं व अन्य समूहों का मूल्यांकन किया जाता है।
  • नियामक प्रतिमान :
    संरचना में व्याप्त समूहों, भूमिकाओं आदि को नियंत्रित करने के लिए कुछ नियामक प्रतिमान होते हैं, जिसके फलस्वरूप सामाजिक अंतः क्रिया में स्थायित्व व नियमितता पायी जाती है।

उपरोक्त तत्वों के अतिरिक्त जॉनसन के संरचना संबंधी अन्य तत्त्व :

  1. सुविधाओं का वितरण।
  2. प्रत्येक प्रकार के उप-समूहों में सदस्यों व उनकी भूमिका का वितरण।
  3. पारितोषिकों का वितरण।

उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट होता है कि इन समस्त तत्त्वों की भूमिका के कारण ही सामाजिक संरचना का निर्माण होता है।

प्रश्न 3.
जाति व्यवस्था की प्रमुख विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
विभिन्न विद्वानों ने जाति की विशेषताओं का वर्णन किया है, जो निम्न प्रकार से है :
A. K. Dutta के अनुसार जाति की विशेषताएँ :

  1. जाति के पेशे प्रायः निश्चित होते हैं।
  2. सभी जातियों में उच्च-निम्नता का संस्तरण पाया जाता है।
  3. जाति के सदस्य जाति के बाहर विवाह नहीं कर सकते हैं।
  4. जाति की सदस्यता जन्म से ही निश्चित हो जाती है।

घुर्ये ने अपनी पुस्तक “Caste, Class and Occupation” में जाति की विशेषताओं का उल्लेख किया है। :

  • समाज का खंडात्मक विभाजन :
    जाति व्यवस्था ने संपूर्ण समाज को खंडों या स्तरों पर विभाजित कर दिया है। जहाँ सदस्य उच्चता व निम्नता के आधार पर श्रेणीबद्ध हैं।
  • संस्तरण :
    समाज में जाति का एक संस्तरण पाया जाता है, जहाँ लोगों को ऊपर से नीचे की ओर बाँट दिया जाता है।
  • भोजन व सहवास पर प्रतिबंध :
    इसमें दूसरी जाति के सदस्यों के हाथों से बना भोजन करने पर प्रतिबंध पाया जाता है।
  • धार्मिक निर्योग्यताएँ पर प्रतिबंध :
    घुर्ये के अनुसार समस्त जातियों पर धार्मिक आधारों पर प्रतिबंध पाया जाता है। जहाँ ब्राह्मणों को दलितों की अपेक्षा सर्वाधिक अधिकार दिये गए हैं।
  • व्यवसाय के चयन का अभाव :
    जाति के सदस्य केवल अपने परंपरागत व्यवसायों को ही कर सकते हैं। उन्हें जातियों के द्वारा किये जाने वाले व्यवसायों को करने की मनाही होती है।
  • विवाह संबंधी प्रतिबंध :
    जातियों में रक्त की शुद्धता व संस्कृति की सुरक्षा के लिए विवाहों पर प्रतिबंध लगाया गया है।

उपर्युक्त विशेषताएँ जाति की परंपरागत विशेषताएँ हैं, किंतु वर्तमान में अनेक सुविधाओं व सामाजिक प्रक्रियाओं के माध्यम से जाति की स्थिति में बदलाव दृष्टिगोचर हुए हैं।

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प्रश्न 4.
जाति व्यवस्था क्या है? जाति व्यवस्था में हो रहे परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जाति का अर्थ व परिभाषा जाति शब्द (Caste) पुर्तगाली भाषा के ‘Caste’ से बना है। जिसका अर्थ प्रजाति, जन्म या भेद होता है। जाति शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ग्रेसिया-डी-आर्टा ने 1665 में किया था।

मजुमदार व मदान के अनुसार :
“जाति एक बंद वर्ग है।” अर्थात् जाति जन्म पर आधारित समूह है जिसकी सदस्यता जन्म पर आधारित होती है।

जाति में हो रहे परिवर्तनों की विवेचना इस प्रकार से है :

  • छुआछूत की समाप्ति :
    प्राचीन समय में जाति के आधार पर लोगों से अनुचित व्यवहार किया जाता था। किन्तु वर्तमान में राजनीतिक अधिकारों के आधार पर इसे खत्म करने का प्रयास किया गया है।
  • औद्योगीकरण :
    उद्योगों के विकास के कारण अधिकांश लोग एक साथ काम करते हैं जिससे जाति व्यवस्था की धारणा कमजोर पड़ गयी है।
  • आवागमन के साधनों का विकास :
    यातायात के साधनों जैसे गाड़ियाँ, बस, ट्रेन आदि ने लोगों के बीच दूरी को कम किया है जिससे लोगों के विचारों व दृष्टिकोण में बदलाव आया है।
  • समाज सुधार आंदोलन :
    अनेक सामाजिक सुधारकों यथा, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह व अन्य सुधारकों ने अनेक सामाजिक आंदोलन किये हैं, जिससे जाति व्यवस्था की जड़ कमजोर हुई है।
  • व्यावसायिक बदलाव :
    अब जाति के सदस्य अन्य व्यवसायों को करने लगे हैं, जिससे उनकी स्थिति में गतिशीलता आयी है।
  • धन के महत्त्व में वृद्धि :
    समाज में आज जिसके पास सत्ता, शक्ति व धन है वही बलवान है। इस महत्व से भी जाति व्यवस्था में बदलाव हुए हैं। अत: उपरोक्त प्रतिमानों के आधारों पर ही जाति-व्यवस्था में बदलाव हुए हैं।

प्रश्न 5.
वर्ग का अर्थ बताते हुए वर्ग की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वर्ग का अर्थ वर्ग सामाजिक स्तरीकरण की एक मुक्त व्यवस्था है। यह समाज का वह भाग है जिसके सदस्यों की सामाजिक स्थिति समान होती है एवं उसके आधार पर ही इनमें सामाजिक जागरूकता पायी जाती है और ये समाज में अन्य वर्गों से भिन्न होते हैं।

वर्ग की मुख्य विशेषताएँ :

  • वर्ग चेतना का समावेश :
    वर्गों में वर्ग चेतना पायी जाती है, जिससे उनमें जागरूकता का संचार होता है।
  • मुक्त व्यवस्था :
    वर्ग एक मुक्त व्यवस्था है, जहाँ व्यक्ति अपनी योग्यतानुसार आगे की ओर बढ़ सकता है।
  • वर्ग में कर्म का महत्त्व :
    वर्ग में जन्म की बजाय कर्म का महत्व होता है।
  • वर्ग अर्जित प्रस्थिति पर आधारित होती है :
    वर्ग में व्यक्ति की प्रस्थिति अर्जित होती है, जिसे वह स्वयं की योग्यता, गुण व क्षमताओं के आधार पर प्राप्त करता है।
  • वर्ग एक गतिशील अवधारणा है :
    वर्ग की स्थिति अस्थिर होती है, जिसके अंतर्गत व्यक्तियों की प्रस्थितियों में परिवर्तन आता रहता है।
  • सामाजिक संस्तरण :
    वर्ग स्तरों, खंडों व वर्गों पर आधारित होते हैं। जिसे उच्चता व निम्नता के आधारों पर विभाजित किया जाता है।
  • ऊँच-नीच की भावना :
    वर्गों में स्तरों में बँटे होने के कारण लोगों में ऊँच-नीच की भावना पायी जाती है।
  • परस्पर निर्भरता :
    वर्गों के समस्त सदस्य एक-दूसरे के परस्पर रूप से निर्भर होते हैं। समाज को सुचारु रूप से चलाने के लिए वर्गों में पारस्परिक निर्भरता का होना एक आवश्यक तत्त्व है।

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प्रश्न 6.
वर्ग को परिभाषित करते हुए जाति व वर्ग में अंतर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
वर्ग की परिभाषा :

  • मैकाइवर व पेज के अनुसार :
    “एक सामाजिक वर्ग समूह का वह भाग है जो एक सामाजिक स्थिति के आधार पर अन्य लोगों से पृथक् किया जा सकता है।”
  • कार्ल मार्क्स :
    “वर्ग किसी भी समाज का एक ऐसा तथ्य है, जिसमें संपत्ति व उत्पादन के साधन सामाजिक स्तरीकरण का आधार प्रस्तुत करते हैं।”

जाति व वर्ग में अंतर :
निम्न आधारों पर जाति व वर्ग के बीच अंतर को स्पष्ट किया जा सकता है :
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प्रश्न 7.
प्रजाति का अर्थ बताते हुए जाति तथा प्रजाति में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रजाति का अर्थ :
प्रजाति एक प्राणिशास्त्रीय अवधारणा है। समान शारीरिक लक्षणों वाले समूह को प्रजाति के नाम से संबोधित किया जाता है। ये शारीरिक लक्षण वंशानुगत होते हैं व एक पीढ़ी-र्म दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते रहते हैं।

प्रजा ते की परिभाषा :
रमण्ड फर्श के अनुसार :
प्रजाति ऐसे मनुष्यों का समूह है जिसमें कुछ वंशानुगत शारीरिक लक्षण पाये जाते हैं। अतः प्रजाति एक प्रमाणित शारीरिक लक्षणों पर आधारित अवधारणा है।

जाति तथा प्रजाति में अंतर :
जाति व प्रजाति में प्रमुख अंतर निम्न प्रकार से है :

जाति प्रजाति
1. जाति एक जन्म पर आधारित सामाजिक अवधारणा है। 1. प्रजाति शारीरिक लक्षणों पर आधारित एक प्राणिशास्त्रीय अवधारणा है।
2. जाति धर्म से संबंधित होती है। 2. प्रजाति का धर्म के साथ कोई संबंध नहीं पाया जाता है।
जाति जन्म व व्यवसाय के आधार पर निर्धारित होती है। 3. प्रजाति शारीरिक गुण जैसे-बाल, बनावट या रंग के आधार पर निर्धारित होती है।
जाति के सदस्यों को शारीरिक लक्षणों के आधार पर अलग नहीं किया जा सकता है। 4. प्रजाति को शारीरिक लक्षणों के आधार पर अन्य प्रजाति के सदस्यों से अलग किया जा सकता है।
5. जाति सामाजिक विषमता का आधार है। 5. प्रजाति सामाजिक विषमता का आधार नहीं है।
6. जाति के साधनों के कार्य, स्थिति व पद निश्चित होते है। 6. प्रजाति में सदस्यों के कार्य, पद व स्थिति निश्चि  नहीं होती है।
7. जाति के सदस्यों में एक ऊँच-नीच का विभाजन पाया जाता है। 7. प्रजाति में ऐसा कोई विभाजन नहीं पाया जाता है।
8. जाति समाज में हजारों की संख्या में पायी जाती है। 8. प्रजाति की संख्या बहुत ही कम होती है।

प्रश्न 8.
प्रजातिवाद के दुष्परिणामों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रजातिवाद की अवधारणा :
यह एक संकीर्ण विचारधारा है, जो यह स्पष्ट करती है कि प्रजाति शारीरिक रचना तथा मानसिक गुणों के आधार पर वह दूसरी प्रजाति से श्रेउ है। प्रजाति को प्राणिशास्त्रीय अवधारणा के रूप में न समझकर उसको भाषा, देश, राष्ट्र व धर्म से संबंधित किया गया है

प्रजातिवाद के दुष्परिणाम :
प्रजातिवाद के निम्नलिखित दुष्परिणाम दृष्टिगोचर हुए हैं :

  • शोषण एवं अन्याय को प्रोत्साहन :
    प्रजातिवाद एक ऐसी अवधारणा है जो एक प्रजाति को कुछ विशिष्ट आधारों पर दूसरी प्रजातियों से श्रेष्ठ मानती है। वह इसी आधार पर वह दूसरी प्रजातियों का शोषण भी करती है। शोषण से ही अत्याचारों व अन्याय का समाज में उदय होता है। प्रजातिवाद के रूप में भेदभाव का विकास 18वीं सदी से ही शुरू हो चुका है। इसके आधार पर ही पश्चिमी देशों ने आदिवासियों को दास बनाना शुरू कर दिया था। अतः प्रजातिवाद ने समाज में शोषण को जन्म दिया है।
  • अश्वेत लोगों के साथ भेदभाव की नीति को बढ़ावा :
    प्रजातिवाद का विकराल रूप अफ्रीका व अमेरिका में उजागर हुआ था। जहाँ गोरों के द्वारा काले व्यक्तियों के साथ भेद-भाव किया जाता था। उनके लिए अलग रेलगाड़ी, रहने की जगह व बसों की व्यवस्था की गयी। उन्हें अधिकारों व सुविधाओं से वंचित रखा गया। इसके साथ ही अलग से कठोर दंड की व्यवस्था भी की गयी।
  • साम्राज्यवाद को जन्म :
    प्रजातिवाद ने साम्राज्यवाद की धारणा को जन्म दिया। गोरी प्रजाति के सदस्यों ने स्वयं को सर्वश्रेष्ठ माना व यहाँ तक कहा कि उन्हें ईश्वर ने काले लोगों पर शासन करने के लिए भेजा है। क्योंकि वे रंग व रूप में उनसे श्रेष्ठ हैं। गोरी प्रजाति ने यहाँ तक दावा किया कि अन्य प्रजातियों का विकास उन्हीं के द्वारा ही संभव है।

RBSE Solutions for Class 11 Sociology Chapter 6 संरचना, स्तरीकरण और प्रक्रियाएँ

प्रश्न 9.
लिंग असमानता पर एक लेख लिखिये।
उत्तर:
लिंग असमानता का अर्थ विभिन्न लिंगियों के बीच संबंधों के सामाजिक पक्ष के संदर्भ में ‘Gender’ एक ऐसी अवधारणा है जो जैवकीय यौन-भेद (Sex) से अलग की जाती है। ‘सेक्स’ का तात्पर्य पुरुषों व स्त्रियों का जैवकीय विभाजन है तथा gender का अर्थ स्त्री व पुरुष में सामाजिक रूप में असमान विभाजन से है। अतः लिंग की अवधारणा स्त्रियों व पुरुषों के बीच अनेक पहलुओं पर ध्यान आकर्षित करती है।

सन् 1970 के आस-पास लिंग-भेद (gender) के अध्ययन में समाजशास्त्रीय व मनोवैज्ञानिक रुझान पैदा हुआ। इस संबंध में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान इसे सांस्कृतिक मानते हैं व कुछ इसे श्रम-विभाजन का परिणाम मानते

स्त्री-पुरुष असमानता के संबंध में विभिन्न दृष्टिकोण :
i. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण :
इस परिप्रेक्ष्य में विश्वास रखने वाले समाजशास्त्रियों का मत है कि मानव व्यवहार संस्कृति द्वारा निर्धारित व संचालित होता है। इस संबंध में लेवी स्ट्रास व सर हैनरीमेन का मत महत्त्वपूर्ण है।

लेवी स्ट्रास के अनुसार :
समाज की रचना के दौरान पुरुषों ने आधिपत्य प्राप्त कर लिया व स्त्री ने अधीनता की स्थिति ग्रहण कर ली जिसके परिणामस्वरूप दोनों के सहयोग से परिवारिक बंधन मजबूत हुए व समाज का निर्माण हुआ।

सर हेनरीमेन के मतानुसार :
सामाजिक संगठन का स्वरूप पितृसत्तात्मक था। पुरुषों का वर्चस्व शुरू से ही समाज में अधिक था। इस कारण ही भारतीय समाज को पुरुष प्रधान समाज कहा जाता है।

अतः इस प्रकार समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि संस्कृति ही वह मुख्य तत्त्व है जिसके कारण स्त्री व पुरुष में भेद किया जाता है।

ii. प्राणिशास्त्रीय दृष्टिकोण :
इसके अनुसार क्षमताओं के आधार पर महिलाओं को गृह-कार्य व पुरुषों को घर के बाहर के कार्य सौंपे गए। मुरडॉक’ ने भी सभी समाजों में लिंग आधारित श्रम-विभाजन पाया है।

iii. ऐंजिल्स का दृष्टिकोण :
इनके मतानुसार प्रारंभ में महिलाएँ एक स्वतंत्र इकाई थीं, जो आगे चलकर पुरुषों के अधीन हो गयीं। वह अपने हर कार्यों के लिए पुरुषों पर आश्रित हो गयीं।

प्रश्न 10.
सहयोग की परिभाषा दीजिए। सहयोगात्मक प्रक्रिया के लक्षण बताइये।
उत्तर :
सहयोग एकीकरण की एक सामाजिक प्रक्रिया है। ये समाज को संगठित करने व सामाजिक व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। विभिन्न विद्वानों ने अनेक परिभाषाओं के आधार पर सहयोग को स्पष्ट किया है :

  • डेविस के अनुसार :
    “एक सहयोगी समूह वह है जो ऐसे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मिल-जुलकर प्रयास करता है जिसको सब चाहते हैं।”
  • समाजशास्त्र के शब्दकोष के अनुसार :
    “सहयोग वह क्रिया है, जिसके द्वारा अनेक व्यक्ति अथवा समूह सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए अपने प्रयासों को अधिक संगठित रूप से एक दूसरे से संबंध करते हैं।”

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि जिसमें दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी सामान्य लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए साथ-साथ कार्य करते हैं, उसे ही सहयोग कहा जाता है।

सहयोगात्मक प्रक्रिया के लक्षण :

  1. सहयोग एक सामाजिक क्रिया है, जो संघर्ष के विपरीत है।
  2. यह समाज को संगठित करती है।
  3. यह समाज में एक समुचित व्यवस्था का निर्माण करती है।
  4. यह सार्वभौमिक प्रक्रिया है, जो हर समाजों में पाया जाता है।
  5. इससे राष्ट्रीय एकीकरण में वृद्धि होती है।
  6. यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
  7. यह समाज में सदस्यों का संयुक्तिकरण करता है।
  8. इसका संबंध सामूहिक प्रयत्न से है।

अतः स्पष्ट है कि समाज के भिन्न अंगों में एकीकरण के लिए सहयोग आवश्यक है।

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प्रश्न 11.
सहयोग के प्रमुख प्रकार बताइये।
उत्तर :
समाजशास्त्रियों ने समाज के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है, जिसका विवरण निम्न प्रकार से है :
(A) मैकाइवर तथा पेज के अनुसार वर्गीकरण :

  • प्रत्यक्ष सहयोग :
    जब व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह आमने-सामने प्रत्यक्ष रूप से संगठित होकर कार्य करते हैं, तो उसे प्रत्यक्ष सहयोग कहा जाता है। जैसे-सड़क पर सभी व्यक्तियों के द्वारा किसी पत्थर या वाहन को हटाना, प्रत्यक्ष सहयोग का उदाहरण है।
  • अप्रत्यक्ष सहयोग :
    जब व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह किसी कार्य में अप्रत्यक्ष रूप से सहयोग करते हैं तब उसे अप्रत्यक्ष सहयोग कहा जाता है।

(B) ऑगबर्न व निमकॉफ के अनुसार वर्गीकरण :

  • सामान्य सहयोग :
    जब समाज के कुछ व्यक्ति सामान्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्य करते हैं तो उसे सामान्य सहयोग कहा जाता है। जैसे-भारतीयों के द्वारा त्योहारों का सामूहिक रूप से मनाना।
  • मित्रवत् सहयोग :
    आनंद प्राप्ति के लिए किया जाने वाला सहयोग मित्रवत् सहयोग कहलाता है। जैसेनृत्य करना, घूमने जाना आदि।
  • सहायतामूलक सहयोग :
    जब किसी संकट की स्थिति में हम किसी की सहायता करते हैं तो उसे सहायता मूलक सहयोग कहा जाता है। जैसे बाढ़ में लोगों को डूबने से बचाना।

(C) ग्रीन के अनुसार वर्गीकरण :

  1. प्राथमिक सहयोग प्राथमिक सहयोग का संबंध प्राथमिक समूहों से है। जैसे-परिवार, पड़ौस व मित्र आदि।
  2. द्वितीयक सहयोग-यह सहयोग व्यक्ति अपने या अपने समूह के विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करता है। जैसे राजनीतिक दल आदि।
  3. तृतीयक सहयोग जब समाज में समायोजन के लिए सहयोग करते हैं, उसे तृतीयक सहयोग कहते हैं। यह सहयोग पूर्णतया अवसरवादी है।

प्रश्न 12.
प्रतिस्पर्द्धा को परिभाषित करते हुए प्रतिस्पर्धा के कार्य बताइये।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धा का अर्थ-यह एक असहयोगी सामाजिक प्रक्रिया है। इसमें ईर्ष्या, द्वेष व शोषण का भाव निहित होता है। इसे पृथक्करण की प्रक्रिया के अन्तर्गत ही शामिल किया गया है।

परिभाषा :

  • बोगार्डस के अनुसार :
    “प्रतियोगिता किसी ऐसी वस्तु को प्राप्त करने के विवाद को कहते हैं जो कि इतनी मात्रा में नहीं पायी जाती है कि उसकी माँग की पूर्ति हो सके।”
  • समाजशास्त्रीय कोष के अनुसार :
    “किसी सीमित वस्तु के प्रयोग या आधिपत्य के लिए संघर्ष माना है।

उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि प्रतिस्पर्धा सीमित लक्ष्यों को प्राप्त होने वाले विरोध का एक स्वरूप है।

प्रतिस्पर्धा की महत्वपूर्ण विशेषताएँ :

  • अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक :
    प्रतिस्पर्धा में दो या दो से अधिक व्यक्तियों का होना आवश्यक
  • निरंतरता :
    प्रतिस्पर्धा एक प्रक्रिया है, जिसमें निरंतरता का गुण पाया जाता है।
  • सीमित लक्ष्य :
    प्रतिस्पर्धा में लक्ष्य सीमित होते हैं।
  • सर्वव्यापी :
    प्रतिस्पर्धा एक सर्वव्यापी तत्व है, जो प्रत्येक समाज में प्रत्येक आधारों पर पाया जाता है।

प्रतिस्पर्धा के कार्य :

  • समाज में वर्गों का निर्माण :
    आधुनिक समाज में प्रतिस्पर्धा का सामाजिक वर्गों के निर्माण में बहुत ही अहम् भूमिका है।
  • संतुलन को प्रोत्साहन :
    प्रतिस्पर्धा समाज में संतुलन को प्रोत्साहित करती है, यदि समाज में लक्ष्यों को लोग मनमाने ढंग से प्राप्त करने लगे तो समाज में असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाएगी। इसलिए प्रतिस्पर्धा लोगों को समाज में वैध तरीके से लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायता करता है।
  • विकास को बढ़त :
    जिस समाज में प्रतिस्पर्धा न हो उस समाज में वृद्धि कभी भी नहीं हो सकती, इस प्रकार प्रतिस्पर्धा समाज को विकास के पथ पर ले जाने वाला महत्वपूर्ण कारक है।

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प्रश्न 13.
प्रतिस्पर्धा के प्रमुख प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रतिस्पर्धी सामाजिक जीवन के हर क्षेत्र में देखने को मिलती है। इसी आधार पर ‘गिलिन’ ने प्रतिस्पर्धा के निम्न प्रकार बताए हैं :

  • आर्थिक प्रतिस्पर्धा :
    आधुनिक युग में उपभोग, उत्पत्ति, विनिमय आदि के क्षेत्र में पायी जाने वाली प्रतिस्पर्धा को आर्थिक प्रतिस्पर्धा कहा जाता है। उदाहरण के लिए, बाजार में खाने के लिए अनेक प्रकार के बिस्कुट हैं, जिनमें विज्ञापनों के द्वारा प्रतिस्पर्द्धा और अधिक बढ़ गयी है।
  • सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा :
    इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा का प्रारम्भ दो संस्कृतियों के संपर्क से होता है, जिसके फलस्वरूप दोनों सांस्कृतिक समूह अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं का अधिक से अधिक प्रसार करने के लिए एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं जैसे विभिन्न देशों की वेश-भूषा, बोली व रहन-सहन आदि।
  • पद तथा कार्य सम्बन्धी प्रतिस्पर्धा :
    पद व कार्य के सम्बन्ध में समाज में प्रतिस्पर्धा तीव्र रूप से दृष्टगोचर होती है। प्रत्येक समाज में व्यक्ति एक उच्च पद प्राप्त करना चाहता है क्योंकि व्यक्ति जितने ऊँचे पद पर होगा, समाज में उसकी प्रतिष्ठा उतनी ही अधिक होगी।
  • प्रजातीय प्रतिस्पर्धा :
    इसका आशय उस प्रतिस्पर्धा से है जो व्यक्ति में रंग, रूप व बनावट के आधार पर को जाती है। प्रजाति के आधार पर समाज में स्तरीकरण आज भी देखने को मिलता है। इस स्तरीकरण में श्वेत चमड़ी वाले अपने आप को अश्वेत चमड़ी वालों से श्रेष्ठ मानते हैं और इसी आधार पर उनमें प्रतिस्पर्धा होती है।

प्रश्न 14.
संषर्घ किसे कहते हैं? संघर्ष के स्वरूप एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
संघर्ष का अर्थ-संघर्ष किसी व्यक्ति या समूह द्वारा किया गया वह अर्थपूर्ण प्रयत्न है, जो शक्ति, हिंसा अथवा विरोध के द्वारा अन्य व्यक्तियों या समूह की क्रिया में बाधा डालता है। इसमें घृणा, क्रोध व आक्रमण जैसी भावनाओं का समावेश होता है।

परिभाषा :

  • किंग्सले डेविस के अनुसार :
    “प्रतिस्पर्धा का परिवर्तित रूप ही संघर्ष है। दोनों में केवल मात्रा का ही अंतर है।”
  • ग्रीन के अनुसार :
    “संघर्ष किसी अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों की इच्छा का जानबूझकर विरोध करने, रोकने या उसे शक्ति से पूर्ण कराने से सम्बन्धित प्रयत्न है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि संघर्ष व्यक्ति या समूह में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए दूसरे व्यक्ति या समूह को कार्य करने से हिंसा या हिंसा का दिखावा करके रोकने का प्रयास करता है।

संघर्ष के स्वरूप :

  • व्यक्तिगत संघर्ष :
    जब व्यक्ति स्वयं के हितों के लिए अन्य को शारीरिक हानि पहुँचाते हैं तो उसे व्यक्तिगत संघर्ष कहते हैं। इस प्रकार के संघर्ष में व्यक्ति एक-दूसरे को समाप्त करने के लिए तैयार रहते हैं।
  • प्रजातीय संघर्ष :
    जब व्यक्ति शारीरिक भेदभाव के कारण व्यक्तियों का वर्गीकरण करता है तो उसे प्रजातीय संघर्ष कहते हैं। यह संघर्ष समूहगत होता है जैसे काले. व गोरे के मध्य का संघर्ष।
  • वर्ग संघर्ष :
    मार्क्स के अनुसार वर्गों में चेतना पायी जाती है जिससे वह अपने अधिकारों के लिए सजग रहते हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते हैं।

राजनीतिक संघर्ष के दो प्रकार :

  • अंतःदेशीय राजनीतिक संघर्ष :
    जब एक ही देश में विभिन्न राजनीतिक दल सत्ता प्राप्त करने के लिए दूसरे राजनीतिक दल का विरोध करते हैं तो उसे अंतः देशीय राजनीतिक संघर्ष कहते हैं। जैसे कांग्रेस का BJP से विरोध।
  • अन्तर्देशीय राजनीतिक संघर्ष :
    जब एक देश का दूसरे देश से संघर्ष हो तो उसे अंतर्देशीय राजनीतिक संघर्ष कहा जाता है।

संघर्ष के सकारात्मक कार्य :

  1. घर्ष से समाज में एकता को प्रोत्साहन मिलता है।
  2. यह व्यक्ति के विकास में सहायक होता है।
  3. संघर्ष से समाज में नए आविष्कारों को बढ़ावा मिलता है।
  4. संघर्ष से समाज में परिवर्तन दृष्टिगोचर होता है।
  5. संघर्ष समाज के आंतरिक विघटन को रोकता है।
  6. यह समाज के संतुलन में सहायक है।

संघर्ष के नकारात्मक कार्य :

  1. यह समाज की शक्ति को ध्वस्त करती है।
  2. यह शांति व्यवस्था को भंग करती है।
  3. यह सामाजिक एकता को खंडित करती है।
  4. यह समाज में विचलन को प्रोत्साहन देती है।

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RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना की विशेषता है
(अ) मूर्त
(ब) अस्थायी
(स) क्रमबद्धता
(द) अगतिशील
उत्तर:
(स) क्रमबद्धता

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना का प्रयोग किस शताब्दी में किया गया था।
(अ) 20वीं
(ब) 18वीं
(स) 15वीं
(द) 19वीं
उत्तर:
(द) 19वीं

प्रश्न 3.
“जाति एक बंद वर्ग है” यह परिभाषा किस विद्वान ने की
(अ) एन. के. दत्ता
(ब) केतकर
(स) ब्राउन
(द) मजुमदार व मदान
उत्तर:
(द) मजुमदार व मदान

प्रश्न 4.
सामाजिक स्तरीकरण के आधार हैं
(अ) लिंग
(ब) संपत्ति
(स) आयु
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 5.
समाज में पूँजीपति वर्ग की व्याख्या किसने प्रस्तुत की
(अ) मार्क्स
(ब) दुर्थीम
(स) बेवर
(द) पारसंस
उत्तर:
(अ) मार्क्स

प्रश्न 6.
‘मेलेनोक्राइक’ क्या है.
(अ) जाति
(ब) प्रजाति
(स) जनजाति
(द) उपजाति
उत्तर:
(ब) प्रजाति

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प्रश्न 7.
किस विद्वान ने यह स्पष्ट किया है कि “परिवार में पिता की भमिका” अहं होती है
(अ) पारसंस
(ब) नाडेल
(स) लुण्डवर्ग
(द) वेबर
उत्तर:
(अ) पारसंस

प्रश्न 8.
‘मुण्डकमेर’ जनजाति का अध्ययन किसने किया
(अ) ब्राउन
(ब) मारग्रेट मीड
(स) एंजिल्स
(द) मार्क्स
उत्तर:
(ब) मारग्रेट मीड

प्रश्न 9.
सामाजिक प्रक्रिया होती है
(अ) अगतिशील
(ब) अनिश्चित
(स) निरंतर
(द) अस्पष्ट
उत्तर:
(स) निरंतर

प्रश्न 10.
ग्रीन ने सहयोग के कितने प्रकार बताए हैं
(अ) चार
(ब) तीन
(स) दो
(द) एक
उत्तर:
(ब) तीन

प्रश्न 11.
“प्रतिस्पर्धा व संघर्ष में केवल मात्रा का अंतर है” यह किसने कहा
(अ) डेविस
(ब) पारसंस
(स) क्रोबर
(द) ग्रीन
उत्तर:
(अ) डेविस

प्रश्न 12.
संघर्ष में गुण होता है
(अ) सापेक्षता
(ब) निरंतर
(स) अचेतन
(द) असार्वभौमिक
उत्तर:
(अ) सापेक्षता

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचना का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया?
उत्तर:
हरबर्ट स्पेन्सर ने 19वीं शताब्दी में इस शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग समाजशास्त्र में किया था।

प्रश्न 2.
सामाजिक संरचना के दो तत्वों के नाम बताइए।
उत्तर:
सामाजिक संरचना में दो तत्व-सांस्कृतिक मूल्य व नियामक प्रतिमान।

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प्रश्न 3.
सामाजिक स्तरीकरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
समाज के अंतर्गत सम्पूर्ण जनसंख्या को स्तरों में विभाजित करने को सामाजिक स्तरीकरण कहते हैं।

प्रश्न 4.
जाति व्यवस्था में बदलाव के दो कारक बताइए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था में बदलाव के दो कारक :

  1. यातायात व संचार के साधन
  2. प्रेम-विवाहों का चलन।

प्रश्न 5.
जाति के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
जाति के दो कार्य :

  1. व्यक्ति की सामाजिक स्थिति का निर्धारण।
  2. मानसिक रूप से सुरक्षित।

प्रश्न 6.
घूर्ये ने किस पुस्तक में जाति की व्याख्या प्रस्तुत की है?
उत्तर:
‘Caste, Class & Occupation’ में घूर्ये ने जाति की व्याख्या प्रस्तुत की है।

प्रश्न 7.
वर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसे व्यक्तियों का समूह जिनकी सदस्यों की समान प्रस्थिति होती है उसे वर्ग कहते हैं।

प्रश्न 8.
अनिश्चित शारीरिक लक्षण से क्या आशय है?
उत्तर:
ऐसे शारीरिक लक्षण जिनको मापा नहीं जा सकता, उसे अनिश्चित शारीरिक लक्षण कहा जाता है।

प्रश्न 9.
मानव शरीर में पाए जाने वाले रक्त समूहों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रमुख रक्त समूह-A, B, AB तथा O

प्रश्न 10.
नौकरशाही वर्ग किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक संख्यात्मक संगठन, जिसका मुख्य उद्देश्य बड़े पैमाने पर प्रशासनिक कार्य को चलाने के लिए अनेक व्यक्तियों व विशेषज्ञों के कार्यों में तर्कसंगत रूप में समन्वय करना होता है।

प्रश्न 11.
किस देश के निवासियों के बाल लाल रंग के होते हैं?
उत्तर:
आयरलैण्ड, वेलस व फिनलैण्ड के लोगों के बाल लाल रंग के होते हैं।

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प्रश्न 12.
त्वचा के रंग को कितने भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर:
त्वचा के रंग को 3 भागों में बाँटा जाता है-श्वेत, पीले व श्याम वर्ण त्वचा।

प्रश्न 13.
सामाजिक प्रक्रिया की दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
सामाजिक प्रक्रिया की दो विशेषता-क्रमबद्ध श्रेणियाँ तथा निरंतरता का गुण।

प्रश्न 14.
Cultural sociology’ किसकी पुस्तक है?
उत्तर:
गिलिन व गिलिन Cultural Sociology के रचयिता हैं।

प्रश्न 15.
संघर्ष की दो विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
संघर्ष की दो विशेषताएँ अस्थायित्व प्रकृति तथा सार्वभौमिक होती है।

RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सामाजिक संरचनाएँ स्थानीय विशेषताओं से किस प्रकार प्रभावित होती हैं?
उत्तर:
सामाजिक संरचना स्थानीय विशेषताओं से प्रभावित होती हैं। प्रत्येक समाज की एक संरचना होती है और वह दूसरे समाज से भिन्न होती है। इसका कारण है कि संरचना पर उस समाज की सांस्कृतिक, भौगोलिक व राजनीतिक व्यवस्था का प्रभाव पड़ता है। अतः सामाजिक संरचनाएँ भी इनसे प्रभावित होने के कारण भिन्न-भिन्न होती हैं।

प्रश्न 2.
जॉनसन ने सामाजिक संरचना के कितने स्तरों का उल्लेख किया है?
उत्तर:
जॉनसन ने सामाजिक संरचना का अध्ययन दो स्तरों पर किया है :

  • सूक्ष्म स्तर :
    यदि किसी विशिष्ट समूह, समुदाय अथवा ग्राम का अध्ययन करें तो वह सूक्ष्म रूप कहा जाएगा।
  • वृहद् स्तर :
    जब किसी समाज का सम्पूर्ण अध्ययन किया जाए तो वह वृहद् स्तर कहा जाएगा।

प्रश्न 3.
सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं :

  • सार्वभौमिकता :
    प्रत्येक समाज में स्तरीकरण किसी-न-किसी रूप में अवश्य पाया जाता है।
  • स्थायित्व :
    सामाजिक स्तरीकरण के आधार पर ही समाज में स्थायित्व पाया जाता है।
  • सामाजिक प्रकृति :
    समाज में स्तरीकरण की प्रकृति सामाजिक होती है।
  • उच्चता व निम्नता :
    समाज में व्यक्तियों का विभाजन उच्चता व निम्नता की श्रेणियों के आधार पर किया जाता है।

प्रश्न 4.
सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों का उल्लेख करें।
उत्तर:
सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं :

  • प्रजाति :
    प्रजाति के आधार पर समाज में स्तरीकरण पाया जाता है।
  • आयु :
    आयु को भी स्तरीकरण का आवश्यक आधार माना जाता है। हमारे भारतीय समाज में अधिक आयु वाले व्यक्तियों को अधिक सम्मान दिया जाता है।
  • संपत्ति :
    जिस व्यक्ति के पास अधिक धन होता है, उसे समाज में ऊँची प्रस्थिति व सम्मान प्राप्त होता है।
  • शारीरिक योग्यता :
    समाज में व्यक्ति की स्थिति उसकी शारीरिक योग्यता के आधार पर निर्भर करती है।

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प्रश्न 5.
समाज में वर्ग के प्रमुख आधारों का वर्णन करें।
उत्तर:
समाज में वर्ग निर्धारण के प्रमुख आधार निम्न प्रकार से हैं :

  • जाति :
    जाति के आधार पर लोगों को बाँट दिया जाता है जिससे उनमें उच्चता व निम्नता की भावना आ जाती है।
  • धर्म :
    धर्म के आधार पर भी वर्ग को निर्धारित किया जाता है। समाज में धर्म के आधार पर अनेक वर्ग पाए जाते हैं जैसे हिन्दू वर्ग, मुस्लिम वर्ग तथा सिख वर्ग आदि।
  • शिक्षा :
    शिक्षा की क्षमता व अक्षमता के आधार पर वर्गों का निर्माण होता है।
  • व्यवसाय की प्रकृति :
    व्यवसाय की समानता के आधार समाज में व्यक्तियों के अनेक वर्गों का निर्माण हुआ है।

प्रश्न 6.
समाज में कौन-कौन से वर्ग पाए जाते हैं?
उत्तर:
समाज में अनेक नवीन वर्गों का उदय हुआ है, जो निम्न प्रकार से है :

  • शासक वर्ग :
    इस वर्ग के अन्तर्गत राजनीतिक दल के लोग आते हैं। ये शासन व्यवस्था में पदों पर रहते हुए शासन तंत्र का संचालन करते हैं।
  • मजदूर वर्ग :
    इसे श्रमिक वर्ग भी कहा जाता है। भारत की कुल आबादी का लगभग एक-तिहाई भाग इसके अन्तर्गत आता है। इसमें वे व्यक्ति आते हैं जो गरीब होते हैं व उनके पास श्रम के अलावा और कुछ नहीं होता।
  • बुद्धिजीवी वर्ग :
    इसमें समाज के बुद्धिमान व्यक्ति आते हैं, जो समाज को व्यवस्थित रखने का कार्य करते हैं।

प्रश्न 7.
सामाजिक प्रक्रिया की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक प्रक्रिया की विशेषताओं की विवेचना निम्न प्रकार से है :

  • सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित :
    सामाजिक प्रक्रिया समाज में सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित होती
  • प्रक्रिया के स्वरूप :
    सामाजिक प्रक्रिया के अनेक स्वरूप होते हैं। जैसे-सहयोग, संघर्ष, आत्मसात आदि।
  • निरंतरता :
    सामाजिक प्रक्रिया एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है, जो सदैव गतिशील रहती है।
  • क्रमबद्ध श्रेणियाँ :
    सामाजिक प्रक्रिया में श्रेणियाँ पूर्ण रूप से निश्चित व क्रमबद्ध पायी जाती हैं।

प्रश्न 9.
प्रतिस्पर्धा के सकारात्मक कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  • संतुलन स्थापित करना :
    प्रतिस्पर्धा समाज में लोगों के बीच संतुलन स्थापित करती है, जिससे समाज भी संतुलित रहता है।
  • लक्ष्यों की प्राप्ति में सहायक :
    प्रतिस्पर्धा से व्यक्ति समाज में अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल होता है।
  • संतोष प्रदान करना :
    समाज में प्रतिस्पर्धा के आधार पर व्यक्ति जब कोई पद प्राप्त करता है तो उसे असीम सुख व संतोष की भावना की अनुभूति होती है।

प्रश्न 10.
संघर्ष के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
संघर्ष के लक्षणों का वर्णन निम्न प्रकार से है :

  • चेतन प्रक्रिया :
    संघर्ष एक चेतन प्रक्रिया है जिसमें एक पक्ष को दूसरे पक्ष की पूर्ण जानकारी होती है।
  • अस्थायित्व :
    संघर्ष में स्थायित्व नहीं होता है। इसकी स्थिति परिवर्तित होती रहती है।
  • विचारों में अंतर :
    संघर्ष के आधार पर समाज में व्यक्तियों के विचारों व सोचने-समझने के तरीकों में अंतर पाया जाता है।
  • सर्वव्यापी :
    संघर्ष समाज में एक सर्वव्यापी या सार्वभौमिक तत्व है जो प्रत्येक समाज में पाया जाता है।

प्रश्न 11.
प्राथमिक सहयोग की विशेषताओं का वर्णन करें।
उत्तर:

  • प्राथमिक समूहों से सम्बन्धित :
    प्राथमिक सहयोग का सम्बन्ध प्राथमिक समूहों से होता है जहाँ लोगों व समूहों के हितों में कोई भिन्नता नहीं पायी जाती है।
  • सम्बन्ध का स्वतः विकास :
    प्राथमिक सहयोग के आधार पर सदस्यों के बीच सम्बन्ध स्वतः व बाध्यता रहित होते हैं।
  • उद्देश्यों की समानता :
    प्राथमिक सहयोग के द्वारा व्यक्तियों के उद्देश्यों में समानता पायी जाती है। इसमें समूह की इच्छाएँ व प्रकृतियाँ प्रायः समान होती हैं, जैसे परिवार व मित्रों का समूह इसका श्रेष्ठ उदाहरण है।

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RBSE Class 11 Sociology Chapter 6 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
समाज में प्रचलित नवीन वर्गों की व्यवस्था व उनकी भूमिका पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
नवीन वर्ग की व्यवस्था :
समाज में स्तरीकरण का एक प्रमुख आधार भारतीय वर्ग व्यवस्था रही है। जिसमें आज वर्तमान में अनेक सामाजिक प्रक्रियाओं यथा नगरीकरण, आधुनिकीकरण व औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप समाज की संरचना व वर्गों की व्यवस्था में भी बदलाव हुए हैं। समाज में इन प्रक्रियाओं के कारण अनेक वर्गों का उदय हुआ है तथा पुराने वर्गों का लोप भी हुआ है। समाज में अनेक वर्गों का उदय हुआ, जिनका विवरण निम्न प्रकार से है :

  • बुद्धिजीवी वर्ग :
    समाज में यह वर्ग अत्यन्त योग्यतावान होता है, जो अपनी क्षमताओं से सम्पूर्ण समाज को एक करते हुए उन्हें संगठित करता है। यह वर्ग समाज में विवेकवाद व जनतंत्रवाद जैसी विचारधाराओं के प्रसार में सहायक सिद्ध हुए हैं।
  • शासक वर्ग :
    जैसा नाम से ही स्पष्ट होता है कि यह वर्ग शासन तंत्र से सम्बन्धित होता है। इसमें ऐसे व्यक्तियों के समूह आते हैं जो देश के सामाजिक व आर्थिक विकास में योगदान देते हैं। वर्तमान में इस वर्ग ने समाज में अनेक समस्याओं को उत्पन्न किया है जैसे भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद व तानाशाही जैसी अनेक विकृतियों को समाज में स्थापित करने में अपनी अहं भूमिका का परिचय इस वर्ग ने दिया है।
  • मजदूर वर्ग :
    इसे सर्वहारा या श्रमिक वर्ग के नाम से भी जाना जाता है। यह वर्ग मिल, कारखानों, खेतों व अन्य कार्यों जैसे रिक्शा व टैक्सी चलाना आदि में संलग्न पाए जाते हैं। यह एक प्रकार से श्रमजीवी वर्ग होता है, जिसके पास श्रम के अलावा अन्य साधन नहीं होता है।
  • कृषक वर्ग :
    कृषि करना इस वर्ग का मुख्य पेशा है। कृषि के आधार पर ही यह अपनी आजीविका को प्राप्त करते हैं। आज विभिन्न साधनों व प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप कृषि में काफी बदलाव हुए हैं।
  • पूँजीपति वर्ग :
    इस वर्ग के हाथों में अथाह शक्ति होती है। इसमें उद्योगपति, मिल-कारखानों के मालिक व अन्य बड़े व्यापारी शामिल होते हैं।
  • अभिजात वर्ग :
    यह वह वर्ग होता है जो अपने कार्यों में ही संलग्न पाए जाते हैं। बजाय किसी के अन्दर काम करने के। जैसे—डॉक्टर, वकील अध्यापक व इंजीनियर आदि।
  • नौकरशाही वर्ग :
    ये सरकार के शाही नौकर होते हैं, जो प्रशासनिक कार्यों को किया करते हैं। जैसे IAS, IPS, & Judge आदि।

प्रश्न 2.
जाति के प्रकार्यों व गुणों की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था ने समाज में अपनी एक विशेष भूमिका का निर्वाह करते हुए सम्पूर्ण समाज को एकता के सूत्र में बाँधते हुए, उन्हें संगठित किया है, इस जाति व्यवस्था ने व्यक्ति व समाज के लिए अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए हैं, जिनका विवरण निम्न प्रकार से है :

  • व्यक्ति की स्थिति का निर्धारण :
    जाति समाज में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को निर्धारित करता है, जिससे उसे अपनी स्थिति के विषय में पूर्ण ज्ञान रहता है।
  • समाज में व्यवस्था को बनाए रखना :
    जाति व्यवस्था ने समाज की संरचना को एक ठोस आधार प्रदान किया है जिससे समाज की एक समुचित व्यवस्था कायम हो सकती है। जाति ने लोगों की स्थिति को निर्धारित करते हुए उनकी भूमिकाओं को भी स्पष्ट किया है, जिससे व्यवस्था में संतुलन स्थापित हो सका है।
  • व्यवसाय का निर्धारण :
    समाज में व्यक्ति के पेशे का निर्धारण उसके जन्म से ही निश्चित हो जाता है, उसे व्यवसाय की चिंता से मुक्त कर देता है। जाति से व्यक्ति को अपने परम्परागत व्यवसाय के विषय में पर्ण जानकारी होती है, जिससे उन्हें अन्य व्यवसायों की चिंता नहीं होती है।
  • मानसिक सुरक्षा :
    जाति व्यक्ति को एक मानसिक सुरक्षा की अनुभूति कराती है, उसे मानसिक संतोष प्रदान करती है, जब जाति के सदस्य एक साथ मिलकर कार्य करते हों तो व्यक्ति सुरक्षित महसूस करता है।
  • आपसी सहयोग को बढ़ावा :
    जाति के सदस्य दुख की स्थिति में एक दूसरे की सहायता करते हैं जिससे लोगों को संकट की घड़ी में संतोष की अनुभूति होती है। इस प्रकार जाति सहयोग को समाज में बढ़ावा देती है।
  • संस्कृति का हस्तांतरण :
    जाति के सदस्य पीढ़ी दर पीढ़ी अपने सदस्यों को संस्कृति का हस्तांतरण करते हैं। जिससे जाति की संस्कृति सुरक्षित रहती है।
  • जीवन साथी के चयन में सहायक :
    जाति प्रत्येक सदस्य को अपनी ही जाति में विवाह करने की अनुमति देती है, जिससे व्यक्ति को विवाह के लिए चयन में कठिनाई नहीं होती है।
  • व्यवहार पर रोक :
    जाति अपने सदस्यों पर व उनके अनुचित व्यवहारों पर रोक लगाती है तथा सदस्यों को जाति के नियमों का पालन न करने पर उन्हें दंडित भी करता है।

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प्रश्न 3.
जाति व्यवस्था के दोषों या अकार्यों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
अनेक प्रक्रियाओं व समय के साथ जाति-व्यवस्था के स्वरूप में अनेक बदलाव आए हैं। जहाँ जाति के कुछ लाभ समाज में देखने को मिले वहीं इसके कुछ दोष भी उभरकर सामने आए हैं। जाति व्यवस्था के अवगुण या दोषों का विवरण निम्न प्रकार से है :

  • व्यक्तित्व के विकास में अवरोधक :
    जाति अपने सदस्यों को समाज में जन्म के आधार पर विभाजित करती है। जिससे व्यक्ति की वास्तविक क्षमताओं का विकास नहीं हो पाता है जो उसके व्यक्तित्व के विकास में बाधा उत्पन्न करती है।
  • अन्य व्यवसायों के चयन पर रोक :
    जाति सदस्यों को केवल अपने परम्परागत व्यवसायों में ही संलग्न रहने का निर्देश देती है, जिससे व्यक्ति का रुझान अन्य व्यवसायों की ओर होते हुए भी वह उन्हें कर नहीं पाता है।
  • अलोकतांत्रिक :
    जाति व्यवस्था अलोकतांत्रिक प्रणाली को जन्म देती है जहाँ संविधान ने नागरिकों को अनेक अधिकार प्रदान किये, वहीं जाति के आधार पर उनके साथ भेद-भाव किया जाता है। इस तरह यह समाज में लोकतंत्र के मूल्यों के विरुद्ध कार्य करती है।
  • असमानता को बढ़ावा देती है :
    जाति व्यवस्था समाज में असमानता को बढ़ावा देती है, जाति ने ही सदस्यों को उच्चता व निम्नता के आधार पर विभाजित किया है, जिससे समाज में असमानता की प्रवृत्ति में वृद्धि होती है।
  • प्रगति में बाधक :
    जाति व्यवस्था परिवर्तनों का समर्थन नहीं करती है। वह रूढ़िवाद को बढ़ावा देती है जिससे समाज की प्रगति अवरुद्ध हो जाती है।
  • धर्म परिवर्तन :
    जाति के प्रकोप से बचने के लिए अनेक लोगों ने अपने धर्म का परित्याग करते हुए नए धर्म को स्वीकार कर लिया था, जिससे समाज में लोगों में धर्म परिवर्तन में वृद्धि हुई है।
  • गतिशीलता में बाधक :
    जाति एक लगभग अगतिशील अवधारणा है, जो गतिशीलता को आसानी से स्वीकार नहीं करती है।
  • शोषण को बढ़ावा :
    जाति ने समाज में निम्न जातियों के लिए शोषण की व्यवस्था का प्रतिपादन किया है। उच्च जाति के द्वारा निम्न जाति के सदस्यों का शोषण किया जाता है।
  • अस्पृश्यता को बढ़ावा :
    जाति व्यवस्था ने समाज में छुआछूत की भावना को प्रबल किया है। इससे समाज में हीनता की प्रवृत्ति दृष्टिगोचर होती है।
  • राष्ट्रीय एकता में बाधक :
    जाति राष्ट्र की एकता में एक बाधक तत्व है जो राष्ट्र में विकास की गति को रोकता है। ये समाज को अनेक भागों में बाँट देता है, जिससे राष्ट्र की प्रगति अवरुद्ध हो जाती है।

प्रश्न 4.
प्रजाति के निर्धारण के निश्चित शारीरिक लक्षणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रजाति का निर्धारण किसी मानव समूह में पाये जाने वाले विशिष्ट शारीरिक लक्षणों के आधार पर किया जाता था। लक्षणों के हस्तांतरित होने को वंशानुक्रमण कहते हैं। वंशानुक्रमण से प्राप्त इन शारीरिक लक्षणों को दो भागों में विभक्त किया गया है :

  1. निश्चित शारीरिक लक्षण
  2. अनिश्चित शारीरिक लक्षण।

1. निश्चित शारीरिक लक्षण :
वे शारीरिक लक्षण जो नापे जा सकते हैं तथा जो पर्यावरण से बहुत कम प्रभावित होते हों। इनके लक्षण निम्नलिखित हैं :
i. शीर्ष देशना (सिर की बनावट) :
निश्चित शारीरिक लक्षणों में सिर की बनावट को प्रमुख माना गया है क्योंकि इसकी माप सरल है तथा इस पर पर्यावरण का प्रभाव बहुत कम पड़ता है।

सिर की बनावट की माप सिर की लम्बाई व चौड़ाई के आधार पर की जाती है, सिर की लम्बाई का माप नाक के ऊपर आँखों की भौंओं से लेकर सिर के पीछे तक की जाती है। सिर की चौड़ाई की माप दोनों कानों के ऊपर से की जाती है।

सिर की बनावट ज्ञात करने के लिए इस सूत्र का प्रयेग किया जाता है :
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  • लम्बा सिर :
    जिसकी बनावट 75 से कम हो। नीग्रो लोगों का सिर इस श्रेणी में आता है।
  • मध्य सिर :
    जिसकी बनावट 75 से 80 तक हो। श्वेत लोगों का सिर इसी श्रेणी में आता है।
  • चौड़ा सिर :
    जिसकी बनावट 80 से अधिक हो। मंगोलियन लोगों का सिर इसी श्रेणी में आता है।

ii. नाक की बनावट :
इसका माप भी सिर की बनावट की नाप की तरह ही ज्ञात किया जाता है। नाक की बनावट पर भी पर्यावरण का प्रभाव नहीं पड़ता है।
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यह तीन भागों में बाँटा गया है :

  1. चौड़ी नाक बनावट 85 से अधिक हो, जैसे नीग्रो लोगों की नाक।
  2. मध्य या चपटी नाक–बनावट 70 से 84.99 तक हो, जैसे मंगोलिया की नाक।
  3. पतली व लम्बी नाक बनावट 70 से कम हो, जैसे श्वेत लोगों की नाक।

iii. खोपड़ी का घनत्व :
इसकी माप व्यक्ति की मृत्यु के बाद ही की जा सकती है। इसकी माप खोपड़ी में रेत या सरसों भरकर की जाती है। इसकी माप करना कठिन है। अधिक घनत्व श्वेत लोगों में पाया गया है व सबसे कम घनत्व नीग्रो लोगों में पाया गया है।

iv. शरीर का कद-कद का माप सबसे सरल है। इस पर वंशानुगत के साथ पर्यावरण का भी प्रभाव पड़ता है। इसे 4 भागों में बाँटा गया है

  • लम्बा कद :
    2 मीटर 30 से.मी. हो या इससे अधिक हो।
  • औसत से अधिक :
    1 मीटर 650 से.मी. से 2 मीटर तक।
  • औसत कद :
    5 फीट से 5 फीट 5 इंच तक का हो।
  • छोटा कद :
    कद 5 फीट से कम हो।

v. रक्त समूह विश्व में प्रमुख चार रक्त समूह हैं A, B, AB, O। यूरोप के लोगों में A रक्त समूह, मंगोलयाड में B, नीग्रो में O आदि।

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प्रश्न 5.
अनिश्चित शारीरिक लक्षण की सविस्तार व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अनिश्चित शारीरिक लक्षण का अर्थ-ऐसे शारीरिक लक्षण जिनको मापा नहीं जा सकता है व पर्यावरण का प्रभाव भी अधिक पड़ता है। इसमें अनेक लक्षणों को शामिल कर सकते हैं, जो निम्न प्रकार से हैं :
i. त्वचा का रंग-त्वचा का रंग सरलता से पहचाना जा सकता है। इसे तीन भागों में बाँटा गया है :

  1. श्वेत वर्ण वाले लोग
  2. पीले वर्ण वाले लोग
  3. श्याम वर्ण वाले लोग

ii. बालों की बनावट :
इसे 3 भागों में बाँटा गया है :

  1. सीधे मुलायम बाल – ये पीले वर्ण वाले लोगों के होते हैं।
  2. चिकने धुंघराले बाल – ये भारत, यूरोप आदि जगह पाए जाते हैं।
  3. मोटे ऊनी बाल – नीग्रो प्रजाति में पाए जाते हैं।

iii. बालों का रंग इसे 3 भागों में बाँटा गया है :

  1. भूरे बाल-यूरोप के लोगों में पाए जाते हैं।
  2. काले बाल – भारत के लोगों में पाए जाते हैं।
  3. लाल बाल – वेलस, फिनलैण्ड आदि में पाए जाते हैं।

iv. आँखों की बनावट-तीन भागों में बाँटा गया है :

  1. सीधी आँखें सभी प्रजातियों में पायी जाती हैं।
  2. टेढ़ी-तिरछी आँखें – मंगोलियनों में पायी जाती हैं।
  3. गोल आँखें सभी में पायी जाती हैं।

v. आँखों का रंग-4 भागों में बाँटा गया है :

  1. सफेद – भारत में।
  2. नीली – अमेरिका व यूरोप में।
  3. पीली – मंगोल में।
  4. काली – सभी प्रजातियों में।

vi. ओंठ-दो भागों में बाँटा गया है

  1. पतले ओंठ आर्य व अमरीकन लोगों में।
  2. मोटे ओंठ नीग्रो लोगों में

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