RBSE Solutions for Class 12 Accountancy Chapter 12 लेखाशास्त्र में नैतिकता

Rajasthan Board RBSE Class 12 Accountancy Chapter 12 लेखाशास्त्र में नैतिकता

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 12 पाठ्यपुस्तक के प्रश्न

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 12 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नैतिकता क्या है ?
उत्तर:
नैतिकता का शास्त्र या नीतिशास्त्र दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जो व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहार से सम्बन्धित है।

प्रश्न 2.
नैतिकता के लिए अंग्रेजी शब्द Ethics की उत्पत्ति कैसे हुई ?
उत्तर-
नैतिकता के लिये अंग्रेजी शब्द Ethics की उत्पत्ति ग्रीक शब्द ईथोस (Ethos) से उत्पन्न हुआ जिसका अर्थ है जीने का तरीका।

प्रश्न 3.
नैतिकता का सम्बन्ध किससे है ?
उत्तर-
नैतिकता का सम्बन्ध केवल मानव से है इसमें व्यक्ति तथा समाज दोनों को सम्मिलित किया जाता है।

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प्रश्न 4.
नैतिकता के आनुवांशिक होने की खोज किसने की ?
उत्तर:
नैतिकता के आनुवांशिक होने की खोज अमेरिका के दो नीतिशास्त्र विशेषज्ञ जॉर्ज एवं जॉन स्टीवर द्वारा की गई।

प्रश्न 5.
किसी लेखाकार की सबसे मूल्यवान सम्पत्ति क्या होती है ?
उत्तर-
किसी लेखाकार की सबसे मूल्यवान सम्पत्ति उसकी ईमानदार छवि होती है।

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 12 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
किसी निर्णय के नीति संगत होने के लिए उसमें क्या विशेषताएँ होनी चाहिए ?
उत्तर-
किसी भी निर्णय के नीतिगत होने के लिए निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए ।

  • नैतिक रूप से सही एवं उचित होना आवश्यक है।
  • सभी सम्बन्धित पक्षों के लिए स्वच्छ होना चाहिये ।
  • न्यायसंगत एवं समानता का नियम ।
  • उपयुक्त एवं स्वीकार्य ।
  • न्याय मात्र होना ही नहीं चाहिए बल्कि होता हुआ प्रतीत भी होना चाहिए।
  • निर्णय नीतिगत के अन्तर्गत ईमानदारी होना आवश्यक है।

प्रश्न 2.
आचार संहिता प्रायः कितने प्रकार की होती है ?
उत्तर-
लेखाशास्त्र में नैतिकता के अन्तर्गत आचार संहिता प्रायः तीन प्रकार की होती हैं

  • पेशेवर आचार संहिताएँ-पेशेवर संस्थाओं जैसे-भारतीय चार्टर्ड अकाउटेण्ट संस्थान ने अपने सदस्यों के लिए आचार संहिताएँ बनायी है जो इनके नैतिक व्यवहार को सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।
  • कम्पनी की आचार संहिता ये सामान्यतः संक्षिप्त, अधिक सामान्यीकृत तथा उचित व्यवहार के बारे में मोटे तौर पर की गई अपेक्षाएँ दर्शाती हैं।
  • कम्पनी की परिचालन नीतियाँ इनमें ग्राहकों की शिकायतों के निवारण, नियुक्तियाँ करने तथा उपहार देने आदि से सम्बन्धित कम्पनी की नीतियाँ सम्मिलित हैं जो अनैतिक व्यवहारों से सुरक्षा प्रदान करती हैं।

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प्रश्न 3.
पेशेवर लेखाकार का नैतिकता से क्या सरोकार है ?
उत्तर-
पेशेवर लेखाकार की समाज में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विनियोगकर्ता, कर्मचारी, ऋणदाता, सरकार तथा जनसामान्य पेशेवर लेखाकारों पर निर्भर रहते हैं। पेशेवर लेखाकार की सबसे मूल्यवान सम्पत्ति इसकी ईमानदार छवि होती है इनमें प्रभावशाली वित्तीय प्रबन्ध तथा व्यवसाय व कर से सम्बन्धित मामलों में प्रभावपूर्ण सलाह आदि प्रमुख हैं। पेशेवर लेखकारों का ऐसी सेवाओं को प्रदान करने में आचरण एवं व्यवहार देश की आर्थिक खुशहाली पर प्रभाव डालता है।

अतः पेशेवर लेखाकारों से यह आशा की जाती है कि वे समाज को अपनी सर्वश्रेष्ठ सेवाएँ देंगे जो नैतिक आवश्यकताओं के अनुकूल होंगी। पेशेवर लेखाकारों के विभिन्न संस्थानों, जैसे—भारतीय चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट संस्थान आदि ने अपने सदस्यों के लिए आचार संहितायें लागू कर रखी हैं जिससे पेशेवर लेखाकारों का उच्च नैतिक व्यवहार सुनिश्चित किया जा सके।

प्रश्न 4.
माल के सम्बन्धं में नैतिक आधार पर लेखांकन करते समय क्या ध्यान में रखा जाना चाहिये ?
उत्तर-
माल के सम्बन्ध में नैतिक आधार पर लेखांकन करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान में रखा जाना आवश्यक होता .

  • माल के क्रय का लेखा करते समय लेखाकार को बीजक की सत्यता की जाँच कर लेनी चाहिए जिसमें बीजक विक्रेता का नाम, धनराशि तथा पूर्ण ब्यौरा होना चाहिए।
  • माल की विक्रय वापसी के सम्बन्ध में लेखाकार को आपूर्तिकर्ताओं को भेजे गए डेबिट नोट (Debit Note) की उपयुक्तता देख लेनी चाहिए तथा सक्षम अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर होने चाहिए।
  • बेचे गए माल का लेखा विक्रय बीजक के आधार पर किया जाता है जिन पर ग्राहक का नाम,पता, तिथि,माल का विवरण, बड़े की दर तथा धनराशि का स्पष्ट रूप से उल्लेख होना चाहिए तथा सक्षम अधिकारी के हस्ताक्षर होने चाहिए।
  • विक्रय वापसी लेखांकन करते समय माल लौटाने वाले ग्राहक को भेजे गए क्रेडिट नोट (Credit Note) को आधार बनाया जाता है जिस पर ग्राहक का नाम, लौटाये गये माल का विवरण तथा सक्षम अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर होने चाहिए।

प्रश्न 5.
दिखावटी लेन-देन पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
वित्तीय स्थिति को वास्तविक स्थिति से अधिक बेहतर दिखाने के लिए अनेक बार लेखाकार दिखावटी लेन-देनों का सहारा लेते हैं विशेषकर लेखावर्ष की समाप्ति के समय इस प्रकार का कार्य किया जाता है। इसके कुछ उदाहरण निम्न हैं

  • स्टॉक की मूल्यांकन विधियों में इसलिए परिवर्तन करना कि उसका मूल्य बढ़ सके तथा अधिक लाभ दिखाया जा सके।
  • देनदारों को लेखा वर्ष की समाप्ति से कुछ समय पूर्व भुगतान करने के लिए बट्टे का प्रस्ताव दिया जाता है । देनदारों द्वारा शीघ्र भुगतान प्राप्त होने पर तरलता की स्थिति वास्तविक स्थिति से बेहतर हो जाती है।
  • सम्पत्तियों पर हास की विधियों में इस प्रकार परिवर्तन करना कि ह्रास कम प्रदर्शित हो तथा सम्पत्ति की आय अधिक हो जाय एवं लाभ अधिक प्रदर्शित हो।

RBSE Solutions for Class 12 Accountancy Chapter 12 लेखाशास्त्र में नैतिकता

इस प्रकार के लेन-देन करने का उद्देश्य लेखों की वास्तविक स्थिति को बदलकर प्रदर्शित करना होता है। यह लेखाशास्त्र में नैतिकता नहीं कही जा सकती इससे लेख द्वारा व्यवसाय के हितधारियों को सही सूचना प्रदान करने में बाधा उत्पन्न होती है।

RBSE Class 12 Accountancy Chapter 12 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
नीतिशास्त्र की परिभाषा देते हुए इसकी अवधारणा को समझाइए।
उत्तर-
नीतिशास्त्र की परिभाषा (Definition of Ethics) :
पॉल एवं एल्डर के अनुसार, “नीतिशास्त्र अवधारणाओं एवं सिद्धान्तों का एक समूह है जो हमें बताता है कि कौन-सा व्यवहार जीवों की सहायता करेगा अथवा उन्हें हानि पहुँचायेगा।

आर. वायने मोंडी के अनुसार, “नीतिशास्त्र एक विषय है जो नैतिक कर्तव्य के बारे में अच्छा तथा बुरा अथवा सही तथा गलत से सम्बन्धित है।”

दर्शनशास्त्र के कैम्ब्रिज शब्दकोष के अनुसार, “नीतिशास्त्र का अर्थ प्रायः किसी विशेष परम्परा, समूह अथवा व्यक्ति के नैतिक सिद्धान्तों से लिया जाता है।”

वैबस्टर न्यू वर्डस शब्दकोष के अनुसार, “नीतिशास्त्र आचरण के मानकों तथा नैतिक निर्णयों का विषय है। यह एक विशेष उद्देश्य, धर्म, समूह या पेशे के लिए सदाचरण की संहिता या पद्धति है।”

निष्कर्ष निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि नीतिशास्त्र ऐसे नियमों और सिद्धान्तों का समूह है जिससे सभी के हितों के लिए सभी व्यक्तियों के पारस्परिक सम्बन्धों को इस प्रकार शासित किया जाय जिससे सभी की आवश्यकताओं के प्रति परस्पर आदर बना रहे ।।

नीतिशास्त्र की अवधारणाएँ। (Concept of Ethics) :

  • नैतिकता के लिए अंग्रेजी शब्द एथिक्स (Ethics) ग्रीक शब्द ईथोस (Ethos) से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है “जीने का तरीका ।
  • यह हमारे आचरण सम्बन्धी निर्णयों के तर्कसंगत औचित्य का परीक्षण करता है।
  • नैतिकता कोई आधुनिक खोज नहीं है । शताब्दियों से दर्शनशास्त्री मानव व्यवहार को समझने के क्रम में इसके विभिन्न आयामों को पहचानते हैं।
  • नैतिकता का शास्त्र दर्शनशास्त्र की एक शाखा है जो व्यक्तियों के सामाजिक व्यवहार से सम्बन्धित है।
  • नैतिकता द्वारा यह ज्ञात होता है कि नैतिक दृष्टि से क्या सही अथवा क्या गलत तथा उचित अथवा अनुचित के भेद को दर्शाता है।

प्रश्न 2.
नीतिशारः कृति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर-
नीतिशास्त्र की प्रकृति (Nature of Ethics) :
नीतिशास्त्र की प्रत को निम्न प्रकार समझा जा सकता है-

  1. नैतिकता का सम्बन्ध केवल मानव से है, इसमें व्यक्ति तथा समाज दोनों सम्मिलित हैं क्योंकि व्यक्ति ही अच्छे एवं बुरे में। भेद कर सकता है जिसका नैतिक आधार पर ही बेहतर चयन किया जा सकता है।
  2. इसमें सार्वभौमिक रूप से स्वीकार्य मानवीय आचरण एक व्यवहार के नियम सम्मिलित होते हैं, जैसे-सत्य बोलना, नम्रता, पवित्रता, सहानुभूति आदि मानवीय आचरण के नियम हैं।
  3. यह व्यवस्थित ज्ञान की एक शाखा है जो सामाजिक विज्ञान से सम्बन्धित है। यह मूल्य आधारित निर्णयों तथा व्यक्तिगत एवं सामाजिक आचरण की एक नियामक पद्धति है।
  4. नैतिकता के सिद्धान्त समय एवं स्थान की सीमाओं से बँधे नहीं होते ये सदैव एवं सभी जगहों पर वैध होते हैं। कोई धर्म, देश, समाज ये कभी नहीं कहेगा कि सत्य तथा अहिंसा बुरे एवं अनावश्यक होते हैं।
  5. यह मानव के स्वैच्छिक आचरण एवं व्यवहार से सम्बन्धित है। अज्ञानतावश परिस्थितियों के दबाव में किए गये आचरण इसके अपवाद होते हैं। जैसे एक सैनिक द्वारा देश की रक्षा के समय दुश्मनों को मारना अहिंसा की नीति का उल्लंघन नहीं माना जा सकता है।
  6. नैतिकता मानव मूल्यों के आधारभूत तत्व हैं इसलिए इन्हें सनातन धर्म भी कहा गया है।
  7. किसी भी निर्णय के नीतिगत होने के लिए उसमें निम्न महत्वपूर्ण गुणों का होना जरूरी है
  • नैतिक रूप से सही एवं न्यायसंगत
  • सभी सम्बन्धित व्यक्तियों के लिए सबसे अच्छा एवं ईमानदार होना आवश्यक है
  • न्याय मात्र होना ही नहीं बल्कि होता हुआ भी प्रतीत होना चाहिए।

RBSE Solutions for Class 12 Accountancy Chapter 12 लेखाशास्त्र में नैतिकता

प्रश्न 3.
नैतिकता के विभिन्न स्रोतों को समझाइए।
उत्तर-
नैतिकता के विभिन्न स्रोत (Various sources of Ethics)
अमेरिका के दो नीतिशास्त्र विशेषज्ञों जॉर्ज एवं जॉन स्टीवर ने नैतिकता के निम्नलिखित स्रोत बताये हैं

  1. दार्शनिक प्रणालियों – प्राचीनकाल से ही विद्वानों ने जीवन एवं कर्तव्य के प्रति कई दार्शनिक प्रणालियाँ विकसित की हैं। ये प्रणालियाँ नैतिक व्यवहार के विभिन्न आयामों को बताती हैं।
  2. कानून प्रणाली – किसी भी देश में लागू कानून वहाँ के नैतिक मानकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार कानून के द्वारा जीवन के नैतिक पक्षों की शिक्षा भी प्राप्त होती है।
  3. धर्म – सभी धर्मों में व्यक्तियों को नैतिक व्यवहार करने की शिक्षाएँ दी गई हैं। ये शिक्षाएँ नैतिक व्यवहार का महत्वपूर्ण एवं प्रभावी साधन मानी जाती हैं।
  4. आनुवांशिक धरोहर – आधुनिक युग में किये गये अनुसन्धानों से जीव विज्ञानों को ऐसे प्रमाण मिले हैं जो बताते हैं कि अच्छाई के गुण, जो किसी व्यक्ति के नैतिक आचरण से सम्बन्धित होते हैं वे उसकी आनुवांशिक धरोहर हो सकते हैं।
  5. सांस्कृतिक अनुभव – कई ऐसे सांस्कृतिक नियम परम्पराएँ एवं मानक होते हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी आचार व्यवहार को नियमित करते हैं। व्यक्तिगत मूल्यों को उचित आकार प्रदान करने में समाज के ये नियम बड़ी भूमिका निभाते हैं।
  6. आचार संहिता – नैतिकता के दृष्टिकोण से आचार संहिता को तीन भागों में बाँटा जा सकता है
  • कम्पनी की आचार संहिता – इस प्रकार की आचार संहिता सामान्यतः संक्षिप्त अधिक सामान्यीकृत तथा उचित व्यवहार के बारे में अनेक प्रकार की अपेक्षाओं को दर्शाती है।
  • कम्पनी की परिचालन नीतियाँ – इनमें ग्राहकों की शिकायतों के निवारण, नियुक्तियाँ करने, उपहार देने आदि से सम्बन्धित कम्पनी की नीतियाँ सम्मिलित हैं जो अनैतिक व्यवहारों से सुरक्षा प्रदान करती है.
  • पेशेवर आचार संहिता – पेशेवर संस्थाओं, जैसे—भारतीय चार्टर्ड अकाउन्टेन्ट संस्थान (ICAI) ने अपने सदस्यों के लिए आचार संहिताएँ बनाई है जो इनके नैतिक व्यवहार को सुनिश्चित करने का महत्वपूर्ण कार्य करती है।

प्रश्न 4.
रोकड़ प्राप्ति एवं रोकड़ भुगतान के सम्बन्ध में नैतिक आधार पर लेखांकन किस प्रकार किया जाता है ?
उतर-
लेखांकन करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि समस्त प्रविष्टियाँ नियमानुसार तथा उचित प्रमाणकों (Vouchers) के आधार पर की गई हों जिससे लेखों में कपटपूर्ण तरीके से प्रविष्टि करने अथवा हेरा-फेरी की सम्भावना न रहे।
(A) रोकड़ प्राप्ति की संरचना में नैतिक आधार पर लेखांकन करते समय निम्नलिखित प्रक्रिया अपनायी जानी चाहिये

  • रोकड़ प्राप्ति से सम्बन्धित सभी प्रमाणकों पर क्रमांक लगे होने चाहिए तथा उन्हें क्रमवार व्यवस्थित किया जाना चाहिये।
  • सभी प्रमाणकों पर सक्षम अधिकारियों के हस्ताक्षर आवश्यक रूप से अंकित हों।
  • समस्त प्रविष्टियाँ नियमानुसार दिनांक तथा प्रमाणक पर क्रमांक नम्बर दिखाया जाये जिससे अंकेक्षण कार्य में आसानी हो ।
  • समस्त रोकड़ प्राप्तियाँ व्यवसाय से सम्बन्धित होनी अनिवार्य हों ।
  • प्रत्येक दिवस की प्रविष्टि समान दिवस पर की गई हों ।।
  • बैंक में जमापर्ची के प्रतिपर्ण (Counter Foil) अथवा अन्य प्रमाणक के आधार पर प्रविष्टि की जाये।

(B) रोकड़ भुगतान के सम्बन्ध में

  • समस्त भुगतान व्यवसाय से सम्बन्धित होने चाहिए।
  • नकद भुगतानों का ही लेखा किया जाना चाहिए।
  • प्रत्येक भुगतान का लेखा प्राप्तकर्ता द्वारा जारी की गई छपी हुई रसीद के आधार पर होना चाहिए।
  • प्रत्येक भुगतान रसीद पर संस्था के किसी वरिष्ठ अधिकारी द्वारा हस्ताक्षर से अधिकृत किया जाना आवश्यक है।
  • वित्तीय वर्ष के अन्त में अंकेक्षण (Audit) करवाकर प्रमाणित किया जाना आवश्यक है।

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प्रश्न 5.
अन्य सम्पत्तियों एवं दायित्वों के सम्बन्ध में नैतिक आधार पर लेखांकन किस प्रकार किया जा सकता है ?
उत्तर-
सम्पत्तियों एवं दायित्वों के सम्बन्ध में नैतिक आधार पर लेखांकन निम्न प्रकार से किया जा सकता है

  • ‘सम्पत्तियाँ, जैसे-Plant & Machinery, Building आदि का लेखा करते समय लेखाकार के पास सक्षम अधिकारी से हस्ताक्षरित ऐसे प्रमाणक होने चाहिए जिससे यह साबित हो सके कि
    (A) सम्पत्ति का स्वामित्व संस्था के पास है।
    (B) सम्पत्ति वास्तव में अस्तित्व में है।
    (C) सम्पत्तियों को विभिन्न वर्गों के अनुसार विभाजित किया हुआ होना चाहिए (लेखामानक के अनुसार)।
  • विभिन्न दायित्वों जैसे व्यक्तियों तथा संस्थाओं से लिये गये ऋण का लेखा करते समय लेखाकार के पास प्रमाणक के रूप में पर्याप्त आधार होना चाहिए जो यह बताता हो कि
    (A) दायित्व किस प्रकार का है, जैसे- अल्पकालीन अथवा दीर्घकालीन ।
    (B) दायित्व व्यवसाय से सम्बन्धित हो।
    (C) दायित्व उपयुक्त रूप से अधिकृत हो ।

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