RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 आनुवंशिक अभियांत्रिकी

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 15 आनुवंशिक अभियांत्रिकी

RBSE Class 12 Biology Chapter 15 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

RBSE Class 12 Biology Chapter 15 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कौन से एन्जाइम डी.एन.ए को विशिष्ट स्थल पर काटते हैं
(अ) लाइगेज
(ब) पॉलिमरेज
(स) रिस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(स) रिस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज

प्रश्न 2.
प्राकृतिक रूप से रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम पाया जाता है-
(अ) जीवाणु में
(ब) विषाणु में
(स) पादपों में
(द) जन्तुओं में
उत्तर:
(अ) जीवाणु में

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प्रश्न 3.
वाहक डी.एन.ए है-
(अ) प्लाज्मिड
(ब) c-DNA
(स) संश्लेषित DNA
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) प्लाज्मिड

प्रश्न 4.
M13 उदाहरण है-
(अ) प्लाज्मिड का
(ब) जीवाणुभोजी का
(स) कॉस्मिड का
(द) उपरोक्त सभी का
उत्तर:
(ब) जीवाणुभोजी का

प्रश्न 5.
DNA खण्डों की पहचान में कौन-सी ब्लाटिंग तकनीक प्रयोग की जाती है-
(अ) जीनोमिक DNA
(ब) वैस्टर्न
(स) सदर्न
(द) नादर्न
उत्तर:
(स) सदर्न

प्रश्न 6.
डी.एन.ए के मुक्त सिरों को जोड़ने का कार्य करता है-
(अ) रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लीएज
(ब) लाइगेजेज
(स) लाइसोजाइम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) लाइगेजेज

प्रश्न 7.
जम्पिंग जीन्स कहते हैं-
(अ) फाज्मिड को
(ब) प्लाज्मिड को
(स) कॉस्मिड को
(द) ट्रान्पोजोन्स को।
उत्तर:
(द) ट्रान्पोजोन्स को।

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प्रश्न 8.
1989 में मुलिस ने खोज की थी-
(अ) प्लाज्मिड की
(ब) पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया की
(स) सदर्न ब्लाटिंग तकनीक की
(द) वैस्टर्न ब्लाटिंग तकनीक की
उत्तर:
(ब) पॉलिमरेज श्रृंखला अभिक्रिया की

प्रश्न 9.
c-DNA के निर्माण में प्रयुक्त होता है-
(अ) tRNA
(ब) mRNA
(स) rRNA
(द) DNA
उत्तर:
(ब) mRNA

प्रश्न 10.
Eco R नामक एन्जाइम का स्रोत है-
(अ) जीवाणु
(ब) शैवाल
(स) पादप
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) जीवाणु

RBSE Class 12 Biology Chapter 15 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक की खोज किसने की थी?
उत्तर:
पुनर्योगज डी.एन.ए तकनीक की खोज स्टेनले कोहन, बोयर व उनके सहयोगियों ने की।

प्रश्न 2.
पुनर्योगज डी.एन.ए प्रौद्योगिकी की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
किसी भी जीव के डी.एन.ए में हेरफेर करने के लिए आवश्यक प्रभावी प्रक्रमों को पुनर्योगज डी.एन.ए प्रौद्योगिकी कहते हैं।

प्रश्न 3.
क्लोनिंग वाहक क्या होते हैं?
उत्तर:
वह वाहक जिसमें डी.एन.ए निवेश्य को समाकलित करके उपयुक्त परपोषी में क्लोन करते हैं अर्थात उसकी बहुत-सी प्रतियाँ उत्पन्न करते हैं, क्लोनिंग वाहक कहलाते हैं।

प्रश्न 4.
आण्विक प्रोब्स क्या है?
उत्तर:
DNA या RNA के खण्ड जिसकी सहायता से किसी भी जीव में उपस्थित उसके पूरक DNA या RNA खण्डों की पहचान की जा सकती है, आण्विक प्रोब्स कहलाते हैं।

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प्रश्न 5.
मार्कर जीन क्या होते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जब वांछित जीन को वाहक के साथ जोड़ा जाता है तो कई अवांछित उत्पाद भी प्राप्त होते हैं। इन अवांछित उत्पाद को हटाने के लिए परपोषी कोशिका में पुनर्योजी डी.एन.ए का चयन करने के लिए विशेष प्रकार की जीन का प्रयोग किया जाता है। इस जीन को मार्कर जीन कहते हैं। उदाहरण केनामाइसिन प्रतिरोधक जीन ।

प्रश्न 6.
रिपोर्टर जीन क्या होते हैं? उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
मार्कर जीन के अतिरिक्त कुछ जीन ऐसी भी हैं जो कोशिका में विशेष लक्षण प्ररूप प्रदर्शित करती हैं, इन्हें रिपोर्टर जीन कहते हैं। उदाहरण LUC (ल्यूसीफरेज) जीन जो जुगनू में उपस्थित होती है। तथा जैवप्रदीप्तीकरण (Bioluminiscence) उत्पन्न करती है।

प्रश्न 7.
जीन लाइब्रेरी क्या है?
उत्तर:
किसी भी जीन के सम्पूर्ण जीनोम (Genome) के क्लोनित खण्डों का संग्रह जीन लाइब्रेरी कहलाता है।

प्रश्न 8.
कॉस्मिड क्या होते हैं?
उत्तर:
ऐसे प्लाज्मिड कण जिनमें लेम्डा जीवाणुभोजी के कॉस स्थलों वाले डी.एन.ए. अनुक्रमों को निवेशित किया जाता है, कॉस्मिड कहलाते हैं।

प्रश्न 9.
रिस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लीएज एन्जाइम को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
ये एन्जाइम आण्विक कैचियों की तरह होते हैं, जो डी.एन.ए. अणु को एक निश्चित स्थल पर काटते हैं।

प्रश्न 10.
जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस में प्रयोग आने वाले जैल के नाम बताएँ।
उत्तर:
जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस में प्रयोग आने वाले जैल हैं – अगेरोज जैल, तथा पॉलीएक्राइलेमाइड जैल।

प्रश्न 11.
RFLP का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
RFLP का पूरा नाम है-Restriction Fragment Length Polymorphism ।

RBSE Class 12 Biology Chapter 15 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
क्लोनिंग वाहक क्या हैं? पुनर्योगज डी.एन.ए. प्रौद्योगिकी में काम आने वाले विभिन्न वाहकों का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वह वाहक जिसमें डी.एन.ए निवेश्य को समाकलित करके उपयुक्त परपोषी में क्लोन किया जाता है अर्थात् उसकी बहुत-सी प्रतियाँ उत्पन्न करते हैं, क्लोनिंग वाहक कहे जाते हैं। पुनर्योगज डी.एन.ए प्रौद्योगिकी में काम करने वाले विभिन्न वाहक निम्नलिखित हैं-

  1. प्लास्मिड (Plasmid)—सामान्यतया जीवाणुओं में जीन परिचलन प्रविधि में प्लास्मिड्स को क्लोनिंग संवाहक के रूप में प्रयोग किया जाता है। प्लास्मिड्स अतिरिक्त गुणसूत्री स्वयं द्विगुणन करने वाले द्विरज्जुकी बन्द तथा वत्ताकार डी.एन.ए अणु होते हैं, जो जीवाणु कोशिका में पाए जाते हैं।
  2. जीवाणुभोजी (Bacteriophage)-वे वाइरस जो जीवाणु को संक्रमित करते हैं, जीवाणुभोजी कहलाते हैं।
    उदाहरण-लेम्डा व M13
  3. कॉस्मिड (Cosmid)-कॉस्मिड्स को संकर वेक्टर कहा जाता है। इनका विकास प्लाज्मिड्स से होता है। इनके COS स्थल फेज λ वाले होते हैं। इनकी खोज सर्वप्रथम कॉलिन्स तथा हॉन द्वारा किया गया।

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प्रश्न 2.
pBR 322 प्लाज्मिड पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
pBR 322 प्लाज्मिड सबसे ज्यादा प्रयोग में लिए जाने वाला प्लाज्मिड है। इस प्लाज्मिड में दो चिन्हित स्थल टेट्रासाइक्लीन प्रतिरोधी (TetR) तथा एम्पिसीलीन प्रतिरोधी (AmpR) होते हैं। इसमें 12 विभिन्न रिस्ट्रिक्शन एन्जाइमों के अभिज्ञान स्थल होते हैं। TetR व AmpR जीन के बीच रिस्ट्रिक्शन एन्जाइम की सहायता से विजातीय DNA को समाकलित किया जाता है।
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर टिप्पणी कीजिए-
(i) सदर्न ब्लाटिंग तकनीक
(ii) डी.एन.ए फिंगर प्रिंटिंग
(iii) पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया
(iv) रिस्ट्रिक्शन एन्जाइम का नामकरण
(v) वाहक के लक्षण
उत्तर:
(i) सदर्न ब्लाटिंग तकनीक–सर्वप्रथम ई.एम.सदर्न (E.M. Southern) ने 1975 में डी.एन.ए खण्डों को नाइट्रोसेल्यूलोज फिल्टर पर स्थानान्तरित किया व इस तकनीक को संदर्न ब्लाटिंग तकनीक (Southern blotting technique) कहा गया। DNA खण्डों का विश्लेषण इसी तकनीक द्वारा किया जाता है।
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(ii) डी.एन.ए फिंगर प्रिंटिंग-डी.एन.ए फिंगर प्रिंटिंग की खोज 1985 में एलेक जेफरी (Alec jeffreys) व साथियों ने की थी। डी.एन.ए में उपस्थित नाइट्रोजन क्षारों के विशिष्ट अनुक्रम के कारण एक व्यक्ति विशेष की पृथकता से पहचान की जा सकती है। प्रत्येक व्यक्ति विशेष के डी.एन.ए का चित्र सदैव एक जैसा होता है। चाहे वो शरीर के किसी भी अंग की कोशिका से लिया गया हो। इस विधि में डी.एन.ए को रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिऐज की सहायता से छोटे खण्डों में तोड़कर जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस की सहायता से बैंड के रूप में अलग कर लेते हैं। फिर एक्सरे प्लेट पर सदर्न प्लाटिंग तकनीक द्वारा uv प्रकाश की सहायता से उद्भाषित कर लिया जाता है। इसे डी.एन.ए फिंगर प्रिंटिंग कहते हैं।

(iii) पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया–वर्ष 1985 तक यूकैरियोटिक व प्रोकैरियोटिक कोशिकाओं में जीन के प्रतिलिपिकरण के वाहक को आवश्यक साधन समझा जाता था परंतु 1989 में मुलिस (Mullis) ने डी.एन.ए प्रतिलिपिकरण के लिए एक सशक्त तकनीक खोजी जिसके द्वारा DNA की एक प्रतिलिपि से लाखों प्रतिलिपियाँ अत्यन्त कम समय में प्राप्त की जा सकती हैं। इसे पॉलीमरेज श्रृंखला अभिक्रिया के नाम से जाना जाता है।

इस अभिक्रिया के तीन प्रमुख चरण हैं जो बारम्बर चक्रित हो डी.एन.ए बहुलीकरण करते हैं तथा लगभग 20-30 बार दोहराने पर डी.एन.ए की लाखों प्रतियाँ निर्मित हो जाती हैं। यह अभिक्रिया डी.एन.ए थर्मल साइक्लर (Thermal cycler) में संपन्न की जाती है। प्रत्येक चक्र को पूर्ण होने में 225 सैकण्ड का समय लगता है।

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(iv) रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम का नामकरण-

  • एन्जाइम का प्रथम अक्षर वंश का होता है जिससे उसको पृथक किया जाता है। यह सदैव बड़े अक्षरों में लिखा जाता है।
  • इसके बाद के दो अक्षर उस वंश की जाति के होते हैं। ये छोटे अक्षरों में लिखे जाते हैं। ये तीनों अक्षर इटेलिक्स में लिखे जाते हैं।
    उदाहरण Eco. = Escherichia coli (ईश्चेरिचिया कोली से)
    Hin = Haemophitus influenzae (हीमोफिलस इन्फ्लुएंजी से)
  • चौथे अक्षर के रूप में वंश के उस प्रभेद को लिखा जाता है। जिससे उसे निकाला गया है।
    उदाहरण EcoR = E.coli की प्रभेद R से।
  • यदि एक ही जीव से एक अधिक रिस्ट्रिक्शन एन्जाइम प्राप्त होते हैं तो उन्हें रोमन अंकों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। उदाहरण Eco RI, Eco RII इत्यादि। EcoRI एन्जाइम डी.एन.ए में निम्न क्रम को पहचान कर उसे क्षार G व क्षार A के मध्य काट देते हैं।
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(v) वाहक के लक्षण-वाहक के लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • यह आसानी से परपोषी में प्रवेश कर सके तथा पुनः पृथक्कृत हो सके।
  • रूपान्तरित कोशिकाओं के चयन में सहायक एक चिन्हित स्थल (Marker site) होनी चाहिए।
  • इसके द्वारा होने वाला रूपान्तरण दक्ष व सरल हो।
  • यह पुनरावृत्ति के लिए परपोषी कोशिका में स्वतन्त्र होना चाहिए।
  • वाहक अणु में विशिष्ट प्रतिबन्ध स्थल होने चाहिए। जिनको रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम आसानी से तोड़ सके।
  • वांछित विजातीय DNA की अभिव्यक्ति के लिए वाहक में ऑपरेटर (Operator), प्रमोटर (Promoter) जैसे नियामक अवयव होने चाहिए।

प्रश्न 4.
जिनोमिक लाइब्रेरी की निर्माण विधि समझाइए।
उत्तर:
किसी भी जीव में उपस्थित संजीन या जीनोम क्लोनित खण्डों के संग्रह को जीनोमिक लाइब्रेरी कहा जाता है। किसी जीव के सम्पूर्ण अगुणित DNA समुच्चय को उस जीव का संजीन कहा जाता है। एक कोशिका से उसका सम्पूर्ण DNA निकालकर जीन लाइब्रेरी का निर्माण किया जाता है। इसका निर्माण निम्न तरीके से किया जाता है।
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प्रश्न 5.
वाहक के रूप में जीवाणुभोजी की उपयोगिता का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वे विषाणु जो जीवाणु को संक्रमित करते हैं जीवाणुभोजी कहलाते हैं ।
उदाहरण लेम्डा व M 131
प्लाज्मिड की तुलना में जीवाणुभोजी एक अच्छे वाहक हैं। क्योंकि इसमें निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं-
1. इसमें बड़े DNA खण्ड (24Kb) की क्लोनिंग की जा सकती है।
2. प्रत्येक जीवाणुभोजी से प्लाक (Plaque) क्षेत्र उत्पन्न होता है जिससे परीक्षण अपेक्षाकृत आसान होता है। लेम्डा जीवाणुभोजी (A Bacteriophage) का महत्त्व वाहक के रूप में M13 से ज्यादा होता है। क्योंकि-

  • यह ई.कोलाई के जीवाणुभोजी है।
  • इसका DNA रेखीय व द्विकुण्डलित होता है।
  • λ फाज में अनावश्यक डी.एन.ए भाग को हटाया जा सकता है ताकि वाहक अणु का आकार छोटा हो जाए बड़े आकार का विजातीय डी.एन.ए जोड़ा जा सके।

RBSE Class 12 Biology Chapter 15 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जीन अभियांत्रिकी की पुनर्योगज डी.एन.ए तकनीक के विभिन्न चरणों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जीन अभियांत्रिकी की सामान्य विधि (General Method of Genetic Engineering)
पुनर्योगज DNA तकनीक जीन अभियांत्रिकी की प्रमुख विधि है। इसके चरण निम्नलिखित हैं-

1. वांछित जीन की पहचान करना व पृथक्करण
2. वांछित जीन का क्लोनिंग वाहक में निवेशन
3. क्लोनिंग वाहक का चयन
4. क्लोन की गयी जीन की पहचान करना व अन्य जीवों में स्थानान्तरण
5. पुनर्योगज डी.एन.ए द्वारा परपोषी कोशिका में गुणन
6. वांछित जीन की अभिव्यक्ति जीन अभियांत्रिकी की पुनर्योगज डी.एन.ए तकनीक के विभिन्न चरणों का उल्लेख निम्नलिखित है

1. वांछित जीन की पहचान व पृथक्करण (Identification and isolation of desired gene)
प्रतिबंध या सीमित अंत:न्यूक्लिएज (रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज, Restriction endonuclease) एन्जाइम का प्रयोग वांछित जीन की पहचान कर उसे पृथक करने के लिए किया जाता हैं। वर्ष 1970 में हेमिल्टन ओ. स्मिथ (Hamilton 0 Smith) ने रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम की खोज की थी।
रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज (Restriction Endonuclease)

  • ये एन्जाइम आण्विक कैचियों (Molecular scissors) की तरह होते हैं। जो डी.एन.ए अणु को एक निश्चित स्थल (Specific site) पर काटते हैं।
  •  ये एन्जाइम प्राकृतिक रूप से ई.कोलाई, बेसीलस, स्ट्रेप्टोकोकस, थर्मस एक्वेटिस आदि में पाए जाते हैं।
  • रिस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम तीन प्रकार के होते हैं।
    टाइप I एन्डोन्यूक्लिएज (RI), टाइप II एन्डोन्यूक्लिएज (R-II), टाइप-III एन्डोन्यूक्लिएज (R-III)। टाइप-II एन्डोन्यूक्लिएज (R-II) का प्रयोग मुख्यतः जीन क्लोनिंग व रिस्ट्रिक्शन मानचित्रण में किया जाता है।
    उदाहरण Eco RI, Hind II आदि।

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2. क्लोनिंग वाहकों का चयन (Selection of Cloning Vectors)
वांछित जीन को पृथक्कृत करने के बाद एक वाहक की आवश्यकता होती हैं जो वांछित जीन सहित परपोषी में प्रवेश करके अपने DNA की पुनरावृत्ति कर सके। एक वाहक में निम्नलिखित विशेषताएँ होनी चाहिए।

  • क्लोनिंग वाहक परपोषी कोशिका में पुनरावृत्ति के लिए स्वतन्त्र होना चाहिए।
  • क्लोनिंग वाहक परपोषी में आसानी से प्रवेश कर सके तथा पुनः पृथक्कृत हो सके।
  •  रूपान्तरित कोशिकाओं के चयन में सहायता प्रदान करने के लिए क्लोनिंग वाहकों में एक चिन्हित स्थल (Markar site) होनी चाहिए।
  • वाहक अणु में ऐसे विशिष्ट प्रतिबन्ध स्थल होने चाहिए जिनको रिस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लिएज एन्जाइम आसानी से तोड़ सके। प्रतिबन्ध स्थल पर विजातीय डी.एन.ए. का निवेश आसानी से हो सकता है।
  • वाहकों के द्वारा रूपान्तरण सरल व दक्ष हो।
  • प्रमोटर (Promoter), ऑपरेटर (Operator) जैसे नियामक अवयव वांछित विजातीय डी.एन.ए. की अभिव्यक्ति के लिए वाहकों में उपस्थित होने चाहिए।

प्राकृतिक एवं मानव निर्मित दोनों प्रकार के वाहकों का प्रयोग ई. कोलाई में किया जा सकता है। इनमें प्रयुक्त होने वाले प्रमुख वाहक निम्नलिखित हैं-
1.प्लाज्मिड (Plasmid)
2. जीवाणुभोजी (Bacteriophage)
3. वांछित जीन का क्लोनिंग वाहक में निवेशन (Insertion of desired gene in cloning vector)-वांछित जीन को वाहक जीन में जोड़ने के लिए दोनों जीनों में समान रेस्ट्रिक्शन स्थान बनाए जाते हैं। इसके बाद दोनों को जोड़ा जाता है। इसे लाइगेशन (Ligation) कहा जाता है। इस प्रक्रिया में निम्न एन्जाइमों की आवश्यकता होती है-

  • रेस्ट्रिक्शन एन्डोन्यूक्लीएज (Restriction endonucleases)
  • मिथाइलेजेज (Methylases)
  • डी.एन.ए. लाइगेजेज (DNA Ligases)
  • एल्केलाइन फास्फेटेज (Alkaline phosphatases)
  • रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज (Reverse transcriptase)
  • टर्मिनल ट्रांसफरेजेज (Terminal transferases)

4. पुनर्योगज DNA का परपोषी कोशिका में गुणन (Multiplication of recombinant DNA in host cell)-परपोषी कोशिका में DNA को पुनयोंगज दो प्रकार से निवेशित कराया जाता है |

  • रूपान्तरण द्वारा (Transformation)
  • पारक्रमण द्वारा (Transduction)

इस प्रक्रिया में ई.कोलाई जीवाणु कोशिका का मुख्यत: प्रयोग परपोषी के रूप में किया जाता है। इन प्रक्रियाओं का अध्ययन पहले किया जा चुका है। ई. कोलाई कोशिका में पुनर्योगज DNA का गुणन होता है।

5. क्लोन की गई जीन की पहचान एवं अन्य जीवों में स्थानान्तरण (Identification of cloned gene and its transfer in other organisms) जब वांछित जीन को वाहक के साथ जोड़ा जाता है। तो कई अवांछित उत्पाद भी प्राप्त होते हैं। इन अवांछित उत्पाद को हटाने के लिए व परपोषी कोशिका में पुनर्योजी DNA का चयन करने के लिए विशेष प्रकार की जीन का प्रयोग किया जाता है। इस जीन को मार्कर जीन (Marker gene) कहा जाता है जो कि रूपान्तरित कोशिकाओं में विशेष लक्षण उत्पन्न करती है। इस जीन को वाहक डी.एन.ए. में जोड़ा जाता है। उदाहरण केनामाइसित प्रतिरोधक जीन मार्कर जीने के अतिरिक्त कुछ जीन ऐसी भी हैं जो कोशिका में विशेष लक्षण प्ररूप प्रदर्शित करती है। ये रिपोर्टर जीन कहलाती हैं जो अपने लक्षण प्ररूप के कारण दूसरी कोशिकाओं से अलग दिखती हैं। उदाहरण LUC (ल्यूसीफरेज) जीन जो जुगनू में उपस्थित होती है। तथा जैवप्रदीप्तीकरण (Bioluminiscence) उत्पन्न करती है।

6. वांछित जीन की अभिव्यक्ति (Expression of desired gene)-वांछित जीन से प्राप्त क्लोन जीन की अभिव्यक्ति का अर्थ है। क्लोन जीन को ई.कोलाई से प्राप्त कर उसे किसी सूक्ष्मजीव, पादप या जन्तु में निवेशित करवाकर उससे वांछित उत्पाद प्राप्त करना। उदाहरण ई.कोलाई में इन्सुलिन उत्पादन। वे पादप व जन्तु जिनमें विजातीय डी.एन.ए. उपस्थित होता है। ट्रान्सजेनिक पादप या ट्रॉन्सजैनिक जन्तु कहलाते हैं।

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प्रश्न 2.
ब्लाटिंग तकनीकों का विस्तृत वर्णन कीजिए। उत्तर- ब्लाटिंग तकनीक में DNA टुकड़ों को अगारोज जैल को प्राप्त करने के पश्चात (जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस) द्वारा इन्हें नाइट्रोसेल्यूलोज फिल्टर (Nitrocellulose) पर स्थानान्तरित कर स्थिर किया जाता है। फिर इन्हें DNA प्रोब्स द्वारा संकरण से पहचाना जाता है। यह प्रक्रिया ब्लाटिंग तकनीक (Blotting Technique) कहलाती है।
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सर्वप्रथम वर्ष 1975 में ई.एम सदर्न (EM. Southern) द्वारा डी.एन.ए. खण्डों को नाइटोसेल्यूलोज (Niturocellulose) फिल्टर पर स्थानान्तरित किया जाता है। इस तकनीक को सदर्न ब्लाटिंग तकनीक कहा जाता है। इस तकनीक द्वारा डी.एन.ए. खण्डों का विश्लेषण किया जाता है।

आल्विन ने वर्ष 1979 में RNA खण्डों को जैल इलेक्ट्रोफोरेसिस के पश्चात नाइट्रोसेल्यूलोज फिल्टर के स्थान पर अमीनोबेन्जाइल ऑक्सीमिथाइल पत्र पर स्थानान्तरित किया इस तकनीक को नादर्न ब्लाटिंग तकनीक (Northern blotting technique) के नाम से जाना गया। नादर्न ब्लाटिंग तकनीक द्वारा RNA खण्डों का विश्लेषण किया जाता है। तौबिन व साथियों ने वर्ष 1979 में सर्वप्रथम फ्रेटीन को सोडियम डोडिसाइल सल्फेट (Sodium-do-decyl sulphate) की सहायता से पालिपेप्टाइडों (Polypetides) में विलगित किया फिर इलैक्ट्रोफोरेसिस की मदद से अलग कर नाइट्रोसेल्यूलोज पेपर या नाइलोन झिल्ली पर स्थानान्तरित किया तथा प्रोटीन की पहचान एक्स-रे प्लेट पर उद्भाषित कर की। इस तकनीक द्वारा प्रोटोनों का विश्लेषण किया जाता है। इसको वेस्टर्न ब्लॉटिंग कहते हैं।

प्रश्न 3.
प्लाज्मिड पर विस्तृत टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
सर्वप्रथम लेडरबर्ग ने वर्ष 1952 में प्लाज्मिड को जीवाणु कोशिका में अतिरिक्त गुणसूत्र के रूप में देखा था। इनकी प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।

  • प्लाज्मिड गुणसूत्र के अतिरिक्त जीवाणु कोशिका में पाए जाते हैं।
  • प्लाज्मिड वृत्ताकार, सर्पिलाकार तथा द्विरज्जुकी अणु होते हैं।
  • प्लाज्मिड अपनी पुनरावृत्ति के लिए स्वतन्त्र होते हैं।
  • प्लाज्मिड में एक विशिष्ट प्रतिबन्ध स्थल होता है, जहाँ वांछित जीन का निवेश कराया जा सके।
  • प्लाज्मिड जीवाणु को जीवित रखने के लिए व उसकी वृद्धि के लिए आवश्यक नहीं होते हैं।
  • प्लाज्मिड में चिन्हित स्थल (Marker sites) उपलब्ध होते हैं।
  • प्लाज्मिड में तीन से लेकर हजार जीन तक हो सकते हैं।

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pBr 322 सबसे ज्यादा प्रयोग में लिए जाने वाला प्लाज्मिड है। प्रतिरोधी तथा AmpR (एम्पिमीलीन प्रतिरोधी) होते हैं। इसमें 12 भिन्न रिस्ट्रिक्शन एन्जाइमों के अभिज्ञान स्थल होते हैं। रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम की सहायता से TetR व AmpR जीन के बीच विजातीय DNA को समाकलित किया जाता है।

सर्वप्रथम प्लाज्मिड में वांछित जीन के निवेश के लिए रिस्ट्रिक्शन एन्जाइम द्वारा काट कर रैखिक कर लिया जाता है। इसके बाद दोनों सिरों प्लाज्मिड DNA व विजातीय DNA को जोड़ते हुए बीच में लगभग 5-10 Kb लम्बा वांछित डी.एन.ए. खण्ड जोड़ लिया जाता है।
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द्विगुणन की स्थिति के अनुसार अतिरिक्त गुणसूत्रीय संरचना को प्लाज्मिड अथवा अधिकाभ (Episome) कहते हैं।

स्वतन्त्र रूप से द्विगुणन करने वाली संरचना को प्लाज्मिड कहते हैं, वहीं जीवाणु के मुख्य गुणसूत्र से जुड़े रहकर उसके साथ ही द्विगुणन करने वाली संरचना को अधिकाय कहते हैं।

प्रश्न 4.
आण्विक प्रोब्स से आप क्या समझते हैं? इनके उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी भी जीव में उपस्थित उसके पूरक DNA या RNA खण्डों की पहचान DNA या RNA के खण्डों की सहायता से की जा सकती है, ऐसी स्थिति को आण्विक प्रोब्स कहा जाता है।
प्रोब्स निम्न प्रकार के होते हैं-

  • DNA प्रोब्स
  • RNA प्रोब्स

आण्विक प्रोब्स के उपयोग (Uses of Molecular Probes)
आण्विक प्रोब्स के उपयोग निम्नलिखित हैं-

  • भोजन में उपस्थित प्रदूषकों की पहचान आण्विक प्रोब्स की मदद से की जा सकती है।
  • जीन अभियांत्रिकी में शोध के लिए इनका उपयोग विशिष्ट DNA खण्डों की पहचान के लिए होता है।
  • प्रोब्स की सहायता से फसल प्रजनक बीज व पौधों की अच्छी जातियों की पहचान की जाती है।
  • प्रोब्स की सहायता से पैतृकता के मामले सुलझाए जाते हैं। इनका उपयोग अपराध विज्ञान में, पारिवारिक रिश्तेदारी स्थापित करने में भी किया जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 आनुवंशिक अभियांत्रिकी

प्रश्न 5.
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के महत्त्व का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
इसके अन्तर्गत DNA का कृत्रिम संश्लेषण, DNA की मरम्मत DNA खण्डों को जोड़ना, इच्छित जीन को स्थापित करना, DNA के कुछ न्यूक्लियोटाइड्स को पृथक करके बदलना आदि क्रियाएँ आती हैं। इस कारण इसे पुनः संयोजी DNA प्रौद्योगिकी (Recombinant DNA technology) भी कहा जाता है।

अनुसन्धान कार्य के लिए तथा अनेक व्यावसायिक उत्पादनों के लिए भी आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग किया जा रहा रहा है। मानव जीन्स की खोज, रोगों के कारणों की खोज भी आनुवंशिक इजीनियरिंग की सहायता से की गई है। इसके द्वारा रोगों के उपचार में भी सहायता मिल रही है।

आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के महत्त्व (Importance of Genetic Engineering)
1. आनुवंशिक अभियान्त्रिकी के महत्त्व का वर्णन निम्नलिखित है-

1. आनुवंशिक रोगों का पता लगाना (Diagnosing genetic diseases or disorders)
एम्निओसेन्टेसिस (Amniocentesis) तकनीक द्वारा अनेक आनुवंशिक रोगों का गर्भ में ही पता लगाया जाता था किन्तु डी.एन.ए. पुनर्सयोजन तकनीक द्वारा क्लोनकृत डी.एन.ए. क्रम (Cloned DNA sequence) के उपलब्ध होने से गर्भस्थ शिशु के सम्पूर्ण जीनोटाइप का निरीक्षण किया जा सकता है। इस विधि द्वारा विलोपन, प्रतिलोपन (Inversion) बिन्दु उत्परिवर्तन आदि सभी का पता लगाया जा सकता है। पश्चिमी देशों में इस विधि का प्रयोग गर्भस्थ शिशुओं में दात्त कोशिका आरक्तता, थैलेसीमिया, फिनाईल किटोन्यूरिया आदि रोगों का पता लगाने के लिए किया जा रहा है।

2. व्यक्तिगत जीन्स की पहचान (Identification of individual gene)
व्यक्तिगत जीन्स की पहचान आनुवंशिक इंजीनियरिंग द्वारा की गई और इस माध्यम से अनेक रोगों के जीन्स की खोज की गई है।

3. आनुवंशिक रोगों का उपचार (Treatment of hereditary diseases)
सर्वप्रथम आनुवंशिक रोगों के उपचार के लिए प्रयोगशाला के जन्तुओं में मानव रोग के जीन को प्रविष्ट कराया जाता है। फिर क्लोनिंग की सहायता से ऐसे जन्तुओं की संख्या बढ़ाई जाती है। इसके बाद इन जन्तुओं पर इन रोगों के उपचार के प्रयोग किए जाते हैं।

4. व्यक्तिगत जीन्स को पृथक् करना (Isolation of individual genes)-सन् 1970 व 1980 के बीच जीन्स को पृथक् करने की तकनीक विकसित की गई। कुछ जीन्स इस काल में पृथक किए गये जो निम्नलिखित समूहों में वर्गीकृत किए जा सकते हैं-

  • राइबोसोमल आर.एन.ए के जीन्स,
  • विशिष्ट प्रोटीन बनाने वाले जीन्स,
  • नियन्त्रण क्रिया वाले जीन्स जैसे—रेगुलेटरी जीन (Regulatory gene), प्रोमोटर जीन (Promoter gene) आदि। पहली बार सन् 1965 में जीनोंपस (Xenopus) के राइबोसोमल जीन्स को पृथक् किया गया था।

इस प्रकार चूजों में ओवलब्यूमिन (Ovalbumin) के जीन; चूहे में ग्लोबिन तथा इम्यूनोग्लोबिन जीन, अनाजों व लेग्यूम्स में प्रोटीन संग्रह के जीन्स, बाजरे में ऐमाइलेज के जीन्स आदि को पृथक् किया जा चुका है।

5. मानव जीन्स की मैपिंग (Mapping of human genes)-डी.एन.ए. पुनर्संयोजन तकनीक द्वारा लगभग 1,00,000 से अधिक मानव जीन्स की गुणसूत्र पर स्थिति का निर्धारण किया जा चुका है।

न्यूक्लियोटाइड क्रम में प्राकृतिक रूप से विभिन्नताएँ (Random variations in uncleotide Sequence) पायी जाती हैं। डी.एन.ए अणु की विभिन्नताओं को रेस्ट्रिक्शन फ्रेग्मेंट लेंग्थ पॉलिमॉर्फिज्म (Restriction fragment length polymorphism या RFLP ) कहते हैं। ऐसे हजारों रेस्ट्रिक्शन फ्रेग्मेंट लेंग्थ पॉलिमॉर्फिज्म (RFLP) मानव जीनोम में खोजे जा चुके हैं। इनका विभिन्न व्यक्तियों में अध्ययन किया जा सकता है। तथा इनको वंशागति सामान्य मेण्डेलियन वंशागति (Mendelian inheritance) की भाँति होती है।

डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग (DNA finger printing)-डी.एन.ए. फिंगर प्रिंटिंग के लिए रेस्ट्रिक्शन फ्रेग्मेंट लेंग्थ पॉलिमॉर्फिज्म (RFLP) का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता हैं। प्रत्येक व्यक्ति के गुणसूत्रों में उसकी विशिष्ट RFLP होती है जिसके द्वारा उस व्यक्ति को रुधिर की एक बूंद, एक रोम या त्वचा के कुछ भाग द्वारा ही पहचाना जा सकता है।

RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 15 आनुवंशिक अभियांत्रिकी

7. व्यावसायिक उत्पाद (Commercial products)आनुवंशिक इंजीनियरिंग तकनीक से तैयार उत्पाद आज बाजार में उपलब्ध हैं।

  • इस तकनीक से निर्मित बाजार में उपलब्ध पहला उत्पाद था-टमाटर। आज जो टमाटर बाजार में उपलब्ध है, उसे फ्लेवर सेवर टमाटर (Flavor saver tomato) कहते हैं। यह टमाटर बिना फ्रिज के भी बहुत दिनों तक खराब नहीं होता है।
  • मानव इन्सुलिन, मानव वृद्धि हॉर्मोन (Human growth hormone), मानव इण्टरफेरॉन (Interferon) का उत्पादन भी किया जा रहा है।
  • इस तकनीक द्वारा विभिन्न रोगों के टीकों का भी उत्पादन किया जा रहा है। एण्टीरैबीज टीके, हेपैटाइटिस-बी आदि इसी तकनीक से तैयार किए गए हैं।
  • जीवाणुओं से कीट प्रतिरोधक जीन निकाल कर पौधों में प्रविष्ट कराया जा रहा है। इससे व्यापारिक महत्त्व के पौधे को कीटों के आक्रमण से बचाया जा सकेगा।
  • इसी प्रकार विषाणुरोधी तथा जीवाणुरोधी पौधे भी तैयार किए जा रहे हैं। आज प्रत्येक क्षेत्र में आनुवंशिक इंजीनियरिंग का उपयोग किया जा रहा है।

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