RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 28 मानव का जनन तंत्र

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 28 मानव का जनन तंत्र

RBSE Class 12 Biology Chapter 28 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

RBSE Class 12 Biology Chapter 28 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ग्राफियन पुटिकाएँ कहाँ पायी जाती हैं?
(अ) मनुष्य की थाइराएड में
(ब) मनुष्य के प्रोस्टेट में
(स) स्त्री के अण्डाशय में
(द) पुरुष के वृषण में
उत्तर:
(स) स्त्री के अण्डाशय में

प्रश्न 2.
मैथुन क्रिया के समय योनि को चिकना बनाने हेतु एक क्षारीय द्रव्य का स्रावण करने वाली ग्रन्थि है-
(अ) प्रोस्टेट
(ब) रैक्टल
(स) काउपर
(द) पेरीनियल
उत्तर:
(स) काउपर

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प्रश्न 3.
स्त्रियों में रज चक्र औसत कितने दिनों पश्चात् होता है-
(अ) 14 दिन
(ब) 20 दिन
(स) 32 दिन
(द) 28 दिन
उत्तर:
(द) 28 दिन

RBSE Class 12 Biology Chapter 28 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्पस ल्यूटियम का कार्य लिखो।
उत्तर:
कार्पस ल्यूटियम का कार्य प्रोजेस्टरोन तथा ऐस्ट्रोजन हार्मोन्स का स्रावण करना होता है।

प्रश्न 2.
वृषण में कौन-सी कोशिकायें अन्तःस्रावी ग्रन्थि की भाँति कार्य करती हैं? इनके द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम लिखिए।
उत्तर:
वृषण में अन्तराली कोशिकाएँ (Inerstitial cells) या लेंडिंग कोशिकाएँ अन्त:स्रावी ग्रन्थि की भाँति कार्य करती हैं। इनके द्वारा नर हार्मोन, टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) का स्रावण होता है।

प्रश्न 3.
लैंगिक कोशिकाओं के द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम तथा कार्य बताइये।
उत्तर:
वृषण की लैंगिक कोशिकाएँ टेस्टोस्टेरोन हार्मोन का स्रावण करती हैं, जिनका कार्य पुरुषों में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों तथा सहायक जनन ग्रन्थियों का विकास करना होता है। स्त्रियों में ग्राफियन पुटिका की कोशिकाएँ एस्ट्रोजन स्रावित करती हैं, जो गर्भाशय तथा स्तंन ग्रन्थियों को क्रियाशील बनाते हैं।

प्रश्न 4.
मानव में नर व मादा प्राणी में प्राथमिक जनन अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मानव नर में प्राथमिक जननांग वृषण तथा मादा में अण्डाशय होते हैं।

प्रश्न 5.
गर्भाशय की आन्तरिक गुहीय सतह पर पायी जाने वाली श्लेष्मा स्तर को क्या कहते हैं? नाम बताइये।
उत्तर:
गर्भाशय की आन्तरिक गुहीय सतह पर पाई जाने वाली श्लेष्मा स्तर को गर्भाशय अन्तःस्तर (Endometrium) कहते हैं।

प्रश्न 6.
स्त्री में दो द्वितीय लैंगिक लक्षणों को लिखिए।
उत्तर:
त्वचा का कोमल होना, स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि स्त्री में होने वाले दो द्वितीय लैंगिक लक्षण होते हैं।

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RBSE Class 12 Biology Chapter 28 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मानव नर व मादा में यौवनारम्भ शुरू होने पर क्या-क्या परिवर्तन दिखाई देते हैं ?
उत्तर:
मानव नर में यौवनारम्भ शुरू होने पर वृषणों की सक्रियता तथा शुक्राणुओं का उत्पादन शुरू हो जाता है अर्थात् नर एवं मादा के अपरिपक्व जनन अंग परिपक्व हो जाते हैं, जिनमें जनन क्षमता का। विकास हो जाता है। मादा में स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि एवं रजोदर्शन का प्रारम्भ हो जाना आदि परिवर्तन दिखाई देते हैं। इसके अतिरिक्त मानव नर में दाढ़ी मूंछ आना, शरीर पर घने बाल होना, आवाज भारी होना तथा मानव मादा की त्वचा का कोमल, स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि, शरीर पर कम बालों का होना, आवाज का महीन व मधुर होना आदि परिवर्तन दिखाई देते हैं।

प्रश्न 2.
शरद ऋतु में वृषण कोष सिकुड़कर छोटे हो जाते हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सर्दियों में वृषणकोषों का ताप कम होने लगता है, जिससे डारटोस पेशियाँ एवं वृषणोत्कर्ष पेशी सिकुड़कर वृषणकोश को उदरगुहा के अधिक नजदीक ले जाती हैं, जिससे वृषणकोश सिकुड़कर छोटे हो जाते हैं। इस प्रकार से शरीर के ताप के कारण वृषण का ताप स्थिर बना रहता है।

प्रश्न 3.
जीणपुरकता किसे कहते हैं ?
उत्तर:
प्रश्न पाठ्यक्रम से बाहर का है।

प्रश्न 4.
सर्टोली कोशिकाओं से क्या तात्पर्य है? इनका क्या कार्य है?
उत्तर:
शुक्रजनक नलिका के चारों ओर ट्यूनिका प्रोप्रिया (Tunica propria) आवरण के अन्दर उपस्थित जनन उपकला (Germinal epithelium) स्तर में एक प्रकार की कोशिकाएँ पायी जाती हैं, जिन्हें सर्योली कोशिकाएँ (Sertoli cells) कहते हैं। ये कोशिकाएँ संख्या में कम, आकार में बड़ी तथा स्तम्भी प्रकार की होती हैं।
कार्य-

  • इन कोशिकाओं का कार्य विकासशील जनन कोशिकाओं को सुरक्षा प्रदान करना आलम्बन तथा पोषण प्रदान करने के साथ-साथ शुक्राणुपूर्व कोशिका के अनावश्यक कोशिकद्रव्य का विघटन करना होता है।
  • सर्योली कोशिकाओं के द्वारा शुक्राणु उत्पादन को प्रेरित करने वाले हार्मोन (FSH) की क्रिया का नियमन करने के लिए इन्हिबिन (Inhibin) नामक प्रोटीन हार्मोन का स्रावण भी किया जाता है।

प्रश्न 5.
स्त्रियों में स्तनग्रन्थियों का नामांकित चित्र बनाते हुए समझाइये कि यह जनन प्रक्रिया में किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर:
स्त्रियों में स्तनग्रन्थियाँ (Mammary glands) से युक्त एक जोड़ी स्तन होते हैं। इनकी आन्तरिक संरचना में संयोजी ऊतक 15-20 नलिकाकार कोष्ठकीय पालियों का बना होता है। जिसमें वसा ऊतक होते हैं। प्रत्येक पालियों में अँगूर के गुच्छों के समान दुग्ध ग्रन्थियाँ होती हैं। जिनसे दुग्ध का स्राव होता है। स्त्रियों में यह स्तन जनन प्रक्रिया के सहायक अंगों का कार्य करते हैं। इसका कारण यह है कि जनन प्रक्रिया में स्त्रियों की पुरुषों की तुलना में अधिक जिम्मेदारी होती है क्योंकि मादा जननतंत्र द्वारा जनन से सम्बन्धित कई कार्य पूरे किये जाते हैं। जिनमें प्रमुख हैं प्रसव के पश्चात शिशु को स्तन ग्रन्थियों द्वारा संश्लेषित एवं स्रावित दुग्ध का पान करवाना।
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प्रश्न 6.
वृषण की अनुप्रस्थ काट का नामांकित चित्र बनाते हुए कार्य लिखिए।
उत्तर:
वृषण के कार्य-(Functions of Testes)
(1) वृषण द्वारा नर युग्मकों अर्थात् शुक्राणुओं का निर्माण किया जाता
(2) वृषण द्वारा नर हार्मोन टेस्टोस्टेरोन (Testosterone) का स्रावण अथवा निर्माण किया जाता है।
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RBSE Class 12 Biology Chapter 28 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य में नर जननतंत्र का नामांकित चित्र बनाते हुए वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नर जनन तन्त्र (Male Reproductive System) इसे निम्न भागों में बाँटा गया है-
(1) वृषण (Testes)-यह वयस्क पुरुष में एक जोड़ी गुलाबी तथा अण्डाकार रचना होती है। जो कि उदर गुहा के बाहर दोनों टाँगों के मध्य कोषों में स्थित होते हैं। प्रत्येक वृषण कोष की गुहा से एक संकरी वंक्षण नाल (Inguinal canal) जुड़ी होती है।

(2) अधिवृषण (Epdidymis)-यह एक पतली, लगभग 6 मीटर लम्बी, अत्यधिक कुण्डलित, चपटी तथा अर्धविराम (Comma) के आकार की नलिकां है। यह नलिका शीर्ष अधिवृषण (Caput epididymis) जोकि चौड़ा तथा वृषण के ऊपरी भाग पर टिका होता है। मध्य वृषण (Corpus epididymis) जो वृषण की पश्च सतह तक फैला रहता है तथा पुच्छक अधिवृषण (Cauda epididymis) यह अन्तिम पतला भाग, जोकि वृषण के निचले भाग को ढके रहता है, इन तीन भागों में बँटी होती है।

(3) शुक्रवाहिनी (Vas deferens)-इसकी लम्बाई 45 सेमी. तक होती है। यह अधिवृषण के पिछले भाग से प्रारम्भ होकर ऊपर की ओर वंक्षण नाल से होकर उदर गुहा में मूत्राशय से होती हुई अन्त में तुम्बिका (Ampulla) का निर्माण करती है।

(4) मूत्रमार्ग (Urethra)-मूत्राशय से निकलने वाली मूत्रवाहिनी स्खलनीय वाहिनी से मिलकर मूत्र जनन नलिका या मूत्रमार्ग (Urinogenital duct or Urethra) का निर्माण करती है।

(5) सहायक जनन ग्रन्थियाँ (Accessory Reproductive Glands)-

  • प्रोस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland),
  • शुक्राशय (Seminal Vesicles) तथा
  • काउपर की ग्रन्थि (Cowper’s Gland) ये तीनों ही नर में सहायक ग्रन्थियाँ होती हैं। ये ग्रन्थियाँ अपने स्रावों को मूत्रमार्ग में छोड़ती हैं। जिनके द्वारा वीर्य (Semen) का निर्माण होता है।

(6). शिश्न (Penis)-यह वृषण कोषों के बीच में उदर से लटका हुआ एक लम्बा, बेलनाकार (Cylindrical) उच्छायी (Erectile) तथा अत्यधिक संवहनी (Richly vascularized) मैथुन अंग होता है।
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प्रश्न 2.
अण्डाशय की संरचना स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अण्डाशय की संरचना (Structure of Ovary)-स्त्रियों में बादाम की आकृति के दो अण्डाशय उदर गुहा में स्थित होते हैं। यह 1:5 से 3 सेमी लम्बी तथा 8 मिमी. मोटी रचना है। यह वृक्क के पीछे, श्रोणि प्रदेश (Pelvic region) में मध्यअण्डाशयी (Mesovarium) नामक आंत्रयोजनी (Mesentery) द्वारा उदरगुहा की पृष्ठ पाश्र्व भित्ति से जुड़ी होती है।

अण्डाशय एक सघन तथा ठोस अंग होता है जो एक मोटे, वल्कुट (Cortex), मध्यांश (Medulla) में विभक्त रहता है। इसके सबसे बाहरी आवरण को आंतरंग पेरिटोनियम (Viscecal peritonium) कहते हैं। इसका आन्तरिक हिस्सा संयोजी ऊतक तथा ट्यूनिका ऐल्बूजीनिया (Tunica albuginea) का बना होता है। वल्कुट एवं मध्यांश का संयोजी ऊतक के तन्तुओं से निर्मित पदार्थ स्ट्रोमा (Stroma) कहलाता है।

स्ट्रोमा में प्रत्यास्थ तन्तु, अरेखित पेशी तन्तु, रुधिर वाहिनियाँ तथा ग्राफीयन पुटिकाएँ (Grafion follicles) पायी जाती हैं।

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अण्डकोशिका (Oocyte) के बाहर की तरफ एक पारदर्शी एवं पतला स्तर जोना पैल्युसिडा (Zona pellucida) होता है। इसके बाहर कोरोना रेडिएटा (Corona radiata) स्तर बनाती है। ग्राफीयन पुटक की वृद्धि प्रावस्था में एन्ट्रम (Antrum) का निर्माण हो जाता है। इसमें एक द्रव भरा रहता है। ग्राफी पुटक के एक भाग में अण्डधर पुंज (Cumuls Oophorus) होता है तथा ग्राफी पुटक में द्वितीयक अण्ड कोशिका बनाती है, यही अवस्था अण्डोत्सर्ग की होती है। जिससे परिपक्व पुटिका के फटने से अण्डाणु मुक्त होकर बाहर आ जाते हैं तथा फटी हुई पुटक कोशिकाओं द्वारा पीले रंग की रचना कॉपर्स ल्युटियम का निर्माण होता है। इससे स्रावित हार्मोन्स द्वारा गर्भाशय तथा स्तन ग्रन्थियाँ क्रियाशील बनती है। प्रत्येक अण्डाशय से एक 12 सेमी लम्बी कीपनुमा एवं कुण्डलित पेशी नलिका, अण्डवाहिनी से सम्बद्ध होती है।

प्रश्न 3.
नर एवं मादा जननांग तन्त्रों की, जनन क्रिया में सहायक विभिन्न ग्रन्थियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
नर एवं मादा जननांग तन्त्रों की, जनन क्रिया में सहायक विभिन्न ग्रन्थियों का वर्णन निम्न प्रकार से है-
(1) नर जनन तन्त्र-सहायक ग्रन्थियाँ-(Accessory Reproductive Glands)–नर में निम्नलिखित तीन प्रकार की सहायक जनन ग्रन्थियाँ होती हैं-

  • प्रॉस्टेट ग्रन्थि (Prostate Gland)-इस ग्रन्थि की स्थिति मूत्र मार्ग की स्थिति के आधार पर होती है। प्रॉस्टेट ग्रन्थि के द्वारा हल्के सफेद, क्षारीय तरल पदार्थ का स्रावण होता है। इसके द्वारा वीर्य (Semen) का 25-30 प्रतिशत भाग बनता है। इनमें फॉस्फेटेस (Phosphatase), सिट्रेट (citrate) लाइसोजाइम, फाइब्रिनोलाइसिन, स्पर्मिन इत्यादि पदार्थ पाये जाते हैं।
  • शुक्राशय (Seminal Vesicles)-यह एक जोड़ी थैलीनुमा संरचना होती है जोकि मूत्राशय की सतह एवं मलाशय के बीच में स्थित होती है। इस ग्रन्थि के द्वारा पीले, चिपचिपे तरल पदार्थ का स्रावण होता है। शुक्राशय के स्राव द्वारा वीर्य (Semen) का 60 प्रतिशत भाग बनता है। इसमें फ्रक्टोस (Fructose) शर्करा, प्रोस्टाग्लैंडिन्स (Prostaglandis) तथा प्रोटीन सेमीनोजेलिन (Semenogelin) होते हैं। प्रत्येक शुक्राशय से एक छोटी नलिका निकलकर शुक्रवाहिनी की तुम्बिका में खुलती है।
  • काउपर की ग्रन्थि या बल्बोयूरीथल ग्रन्थि (Cowper’s Gland or Bulbourethral Gland)-काउपर ग्रन्थियाँ प्रॉस्टेट ग्रन्थि के ठीक नीचे, मूत्र मार्ग के दोनों पाश्र्वो में एक-एक छोटी अण्डाकार ग्रन्थियाँ स्थित होती हैं। इन ग्रन्थियों द्वारा निकलने वाला पदार्थ गाढ़ा, चिपचिपा तथा क्षारीय पारदर्शी प्रकृति का होता है, जोकि मैथुन के समय निकलता है। इस तरल द्वारा मादा योनि को चिकनापन तथा मैथुन क्रिया को सुगमता प्राप्त होती है।

(2) मादा जनन तन्त्र सहायक ग्रन्थि-स्तन या छाती (Breast)-स्त्री में स्तन मादा जनन तंत्र के सहायक अंगों का कार्य करते हैं। मादा में यह एक जोड़ी होते हैं, जोकि स्तन ग्रन्थियों (Mammary glands) से युक्त होते हैं। इनकी उपस्थिति वक्ष में सामने की तरफ होती है, यह अंशीय पेशियों (Pectoral muscles) के ऊपर स्थित होते हैं। इनमें 15-20 पालियों में अंगूर के गुच्छों के समान दुग्ध ग्रन्थियाँ होती हैं। इनसे दुग्ध के स्राव द्वारा नवजात शिशु को पोषण प्राप्त होता है। स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि एवं कार्य का नियन्त्रण सोमैट्रोपिन प्रोलेक्टिन, ऐस्ट्रोजन, प्रोजेस्टरोन, ऑक्सीटोसिन इत्यादि हार्मोन्स द्वारा होता है। स्तनग्रन्थियों के शीर्ष भाग पर चूचुक एक उभरी हुई वर्णकित (Pigmented) रचना होती। है। इन चुचुक में 0-5 मिमी के 15 से 25 छिद्र पाये जाते हैं। इनसे निकलने वाला दुग्ध शिशु को विभिन्न संक्रमणों से बचाता है।

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प्रश्न 4.
स्त्रियों में मादा जनन तन्त्र का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मादा जनन तन्त्र (Female Reproductive System)-इसके निम्नलिखित भाग होते हैं-
(i) अण्डाशय (Ovary)-यह एक जोड़ी होते हैं जोकि उदरगुहा में स्थित होते हैं। इनकी आकृति बादाम के समान होती है। अण्डाशय 1:5 से 3 सेमी. तथा 8 मिमी. रचना होती है। इसके द्वारा अण्डाणुओं (Ova) की उत्पत्ति तथा मादा हार्मोन एस्ट्रोजन (Estrogen) तथा प्रोजेस्टोरोन (Progesterone) का स्रावण होता है। यह वृक्क के पीछे, श्रोणि प्रदेश (Pelvic reigon) में मध्यअण्डाशयी (Mesovarium) नामक आंत्रयोजनी (Mesentery) द्वारा उदर गुहा की पृष्ठ पाश्र्वभित्ति से जुड़ी रहती है।

(ii) अण्डवाहिनी (Oviduct)-अण्डवाहिनी (Oviduect) एक 12 सेमी. लम्बी, कीपनुमा एवं कुण्डलित पेशीय नलिका होती है। यह गर्भाशय तक फैली रहती है। अण्डवाहिनी के आगे कीपनुमा भाग को इंफन्डीबुलम (Infundibulum) या कीपक कहते हैं। यह अण्डाशय से लगा रहता है। झालर कीप के किनारों पर अँगुलियों के समान झालरदार प्रवर्ध होते हैं। कीप के छिद्रनुमा मुख को ऑस्टियम (Ostium) कहते हैं। अण्डवाहिनी का अन्तिम सिरा गर्भाशय में खुलता है।

(iii) गर्भाशय (Uterus)-यह एक खोखला अंग होता है, जिसकी आकृति नाशपाती के समान होती है। गर्भाशय के दोनों ओर अण्डवाहनियाँ आकर खुलती हैं। गर्भाशय का ऊपरी मुख्य भाग चौड़ा एवं तिकोना होता है जिसे काय (Body) कहते हैं तथा निचला भाग गर्भाशय ग्रीवा (Cervix uteri) कहलाता है। गर्भाशय बाहर की ओर योनि में खुलता है। यह भ्रूण को सुरक्षा एवं पोषण प्रदान करता है।

(iv) योनि (Vagina)-योनि एक लचीली, पेशीय झिल्लीमय नलिका रूपी रचना होती है जोकि गर्भाशय ग्रीवा के उभरने से बनती है। योनि द्वार एक पतली झिल्ली द्वारा आंशिक रूप से बंद रहता है, जिसे योनिच्छद (Hymen) कहते हैं।

(v) भग (Vulva)-भग बाह्य जननांगों के सम्मिलित रूप को कहा जाता है। यह श्रोणि क्षेत्र में मूलाधार (Perinaeum) के ठीक ऊपर स्थित होते हैं। भग के निम्न भाग होते हैं-

(a) प्यूबिस मुंड (Mons pubis)-यह प्यूबिस सिम्फाइसिस के ऊपर उभरा हुआ भाग होता है।
(b) वृहद्भगोष्ठ (Labia majora)–यह प्यूबिस मुंड से नीचे की तरफ व पीछे होती है। इसकी बाह्य सतह पर रोम पाये जाते हैं।
(c) लघुभगोष्ठ (Labia minora)-यह वृहद भगोष्ठों के बीच में, एक जोड़ी छोटे वलन होते हैं। यह वर्णक युक्त होते हैं।
(d) भगशेफ (Clitoris)-यह नर के शिश्न के समजात अंग होता है जोकि प्यूबिस मुंड के नीचे व लघुभगोष्ठों के अग्र कोने पर स्थित होता
है। यह उच्छायी (Erectile) अंग होता है।
(e) प्रघाण (Vestibul)-यह एक दराररूपी संरचना है जोकि लघुभगोष्ठों के मध्य स्थित होती है। इसे प्रघाण कहते हैं। इसमें मूत्र मार्ग एवं योनि अपने संगत द्वारा (Orifices) खुलते हैं।
(f) बर्थोलिन की ग्रन्थियों अथवा वृहत् प्रघाण ग्रन्थियाँ (Bartholins’ glands or Greater Vestibular Glands)-यह सेम की आकृति की ग्रन्थि योनि द्वार के ओर वृहद्भगोष्ठ पर स्थित होती है।

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(vi) स्तन या छाती (Breast)-यह स्त्री जनन तंत्र के सहायक अंगों का कार्य करती है। वक्ष के सामने एक जोड़ी स्तन उपस्थित होते हैं। यह स्तन ग्रन्थियों युक्त संरचना होती है।
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प्रश्न 5.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए-
(1) अण्डाशय
(2) शिश्न
(3) एपिडिडाइमिस
(4) द्वितीय लैंगिक लक्षण
(5) कार्पस ल्यूटिम ।
उत्तर:
(1) अण्डाशय (Ovary)-स्त्रियों में एक जोड़ी अण्डाशय (Ovary) प्राथमिक जनन अंगों के रूप में होते हैं। यह बादाम की आकृति के होते हैं। इनकी लम्बाई 1-5 सेमी 3 सेमी. तथा मोटाई 8 मिमी. की होती है। यह वृक्क के पीछे, श्रोणि प्रदेश (Pelvic region) में मध्यअण्डाशयी (Mesovarium) नामक आंत्रयोजनी (Mesenhtery) द्वारा उदर गुहा की पृष्ठ पाश्र्व भित्ति से संलग्न रहती है। अण्डाणुओं की उत्पत्ति अण्डाशय द्वारा होती है। यह मादा हार्मोन ऐस्ट्रोजन (Estrogen) तथा प्रोजेस्ट्रोरोन (Progesterone) का स्रावण करती है।

(2) शिश्न (Penis)-शिश्न नर जनन अंग में मैथुन अंग होता है। यह वृषण कोषों के बीच में उदर से लटका हुआ एक लम्बा, बेलनाकार, उच्छायी (Erectile) तथा संवहनी (Vascularized) मैथुन अंग है। इसको एक महीन उदरभित्ति ढके रहती है।

शिश्न की काय तन्तुमय एवं पेशीय संयोजी ऊतकों की तीन स्पंजी अनुलम्ब डोरियों (Longitudinal Chords) की बनी होती है। शिश्न का शिखर भाग फैलकर एक फूले हुए चिकने मुण्ड (Glans-penis) का निर्माण करता है। शिश्न मुण्ड एक टोपी के समान रचना शिश्नमुण्डछद द्वारा ढकी रहती है। शिश्न मैथुन के समय उत्तेजित अवस्था में योनि में गहराई तक प्रवेश कर जाता है जिससे मैथुन के समय निकलने वाले | शुक्राणु गर्भाशय में आसानी से पहुँच जाते हैं।

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(3) एपिडिडाइमिस (Epididymis)-इसे अधिवृषण भी कहा जाता है, जो कि एक पतली 6 मीटर लम्बी, अत्यधिक कुण्डलित, चपटी तथा अर्धविराम (Comma) के आकार की नलिका होता है। इसके कुण्डल संयोजी ऊतक द्वारा परस्पर चिपके रहते हैं। इसकी दीवार में बाहर की तरफ मोटा पेशीय स्तर तथा आन्तरिक स्तर पर स्तरित उपकला (Straitified epithelium) द्वारा आस्तरित होता है। यह नलिका तीन भागों से मिलकर बनी होती है-

  • शीर्ष अधिवृषण-भाग चौड़ा तथा वृषण के ऊपरी भाग पर टिका होता है।
  • मध्य वृषण-यह भाग पतला चपटा होता है तथा वृषण की पिछली सतह तक फैला होता है।
  • पुच्छक अधिवृषण-पतला अन्तिम भाग होता है तथा वृषण के निचले भाग को ढके रहता है।

(4) द्वितीयक लैंगिक लक्षण-मनुष्य में लैंगिक द्विरूपता पायी। जाती है, अर्थात् नर तथा मादा को बाह्य लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता है। ऐसा इनमें लैंगिक जनन होने के आधार पर होता है। प्राथमिक लैंगिक लक्षणों के नर एवं मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षण भी स्पष्ट दिखाई देते हैं, जो कि यौवनारम्भ की ओर संकेत करते हैं। जैसे-पुरुषों में दाढ़ी-मूंछ आना, शरीर पर घने बाल होना, आवाज का भारी होना, वृषण कोष में वृद्धि होना आदि। इसी प्रकार से स्त्रियों में त्वचा का कोमल होना, स्तन ग्रन्थियों की वृद्धि, शरीर पर कम बालों का होना, आवाज का महीन व मधुर होना आदि।

स्त्री तथा पुरुष में यही सब लक्षण द्वितीयक लैंगिक लक्षण कहलाते हैं।

(5) कार्पस ल्यूटियम-मनुष्य सहित अधिकांश स्तनियों में अण्डोत्सर्ग की क्रिया होती है। अण्डोत्सर्ग के समय परिपक्व पुटिका के फटने से अण्डाणु मुक्त होकर बाहर आ जाते हैं। जिसके पश्चात फटी हुई पुटक की कोशिकाओं के द्वारा पीले रंग की एक ग्रन्थिल रचना कॉपर्स ल्युटियम (Carpus Luteum) का निर्माण होता है। कापर्स ल्यूटियम अस्थायी अन्त:स्रावी ग्रन्थि का कार्य करती है। यह प्रोजेस्टरोन तथा ऐस्ट्रोजन हार्मोन्स का स्रावण करती है।

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