RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 30 मानव में गति एवं चलन

Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Chapter 30 मानव में गति एवं चलन

RBSE Class 12 Biology Chapter 30 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर

RBSE Class 12 Biology Chapter 30 बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जन्तु का बाह्य कंकाल है-
(अ) करोटी
(ब) पसलियाँ
(स) नखर
(द) उरोस्थि
उत्तर:
(ब) पसलियाँ

प्रश्न 2.
अस्थि की आधात्री किस प्रोटीन की बनी होती है?
(अ) कोन्ड्रिन
(ब) ऑसीन
(स) फाइब्रीन
(द) रेटिनिन
उत्तर:
(द) रेटिनिन

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प्रश्न 3.
कंकाल का कार्य है-
(अ) कोमल अंगों की सुरक्षा
(ब) मांस पेशियों को जुड़ने के लिए सतह
(स) रक्ताणु का निर्माण
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) मांस पेशियों को जुड़ने के लिए सतह

प्रश्न 4.
पक्ष्माभ की आगे-पीछे दोलन गति का कारण है-
(अ) सूक्ष्म नलिकाओं का विसर्पण
(ब) सूक्ष्मतन्तुओं का संकुचन
(स) कोशिका भित्ति का दीर्धीकरण
(द) स्फीति में परिवर्तन
उत्तर:
(ब) सूक्ष्मतन्तुओं का संकुचन

प्रश्न 5.
तन्तु विसर्पण सिद्धान्त के अनुसार पेशी संकुचन के समय पेशी की लम्बाई कम करने के लिए गति करने वाला अण है|
(अ) कोलेजन
(ब) एक्टिन
(स) मायोसिन
(द) टाइटिन
उत्तर:
(ब) एक्टिन

प्रश्न 6.
कोहनी की सन्धि का प्रकार है-
(अ) अचल सन्धि
(ब) कब्जा सन्धि
(स) दृढ़ सन्धि
(द) धुराग्र सन्धि
उत्तर:
(ब) कब्जा सन्धि

प्रश्न 7.
संकुचनशील प्रोटीन है-
(अ) ट्रोपोनिन ।
(ब) मायोसिन
(स) ट्रोपोमायोसिन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(ब) मायोसिन

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प्रश्न 8.
मानव के पश्च पाद में अस्थियों की संख्या होती है-
(अ) 14
(ब) 24
(स) 26
(द) 30
उत्तर:
(द) 30

प्रश्न 9.
पेशियों का अनॉक्सी संकुचन किसके संचयन के कारण पीड़ा दायक होता है?
(अ) कैल्सियम आयन
(ब) मायोसिन
(स) लैक्टिक अम्ल
(द) क्रियेटिन फॉस्फेट
उत्तर:
(स) लैक्टिक अम्ल

प्रश्न 10.
अनुप्रस्थ सेतुओं के बन्धन के लिए कौन-से आयन की उपस्थिति आवश्यक है?
(अ) कैल्शियम
(ब) सोडियम
(स) लौह
(द) पोटैशियम
उत्तर:
(अ) कैल्शियम

RBSE Class 12 Biology Chapter 30 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पेशी की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई बताइए।
उत्तर:
पेशी की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई सार्कोमीयर (Sarcomere) है।।

प्रश्न 2.
पेशी किसके द्वारा अस्थि से जुड़ती है?
उत्तर:
कण्डराओं (Tendons) द्वारा।

प्रश्न 3.
अस्थि से अस्थि किसके द्वारा जुड़ती है?
उत्तर:
स्नायुओं (Ligaments) द्वारा।

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प्रश्न 4.
मनुष्य के त्रिक का निर्माण कितने कशेरुक करते हैं?
उत्तर:
पाँच कशेरुक।

प्रश्न 5.
मनुष्य में करोटि का निर्माण कितनी अस्थियों से होता हैं?
उत्तर:
29 अस्थियों द्वारा।

प्रश्न 6.
अस्थियों में संचित प्रमुख पदार्थों के नाम दीजिए।
उत्तर:
ओसीन प्रोटीन, कैल्सियम व फॉस्फेट लवण।

प्रश्न 7.
पेशी कार्य में किस प्रकार का ऊर्जा परिवर्तन होता है?
उत्तर:
रासायनिक ऊर्जा को यान्त्रिक ऊर्जा में।

RBSE Class 12 Biology Chapter 30 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपास्थिजात अस्थियाँ क्या हैं? समझाइए।
उत्तर:
उपास्थिजात या प्रतिस्थापी अस्थियाँ (Cartilagenous or replacing bones)-इस प्रकार की अस्थियों का निर्माण उपास्थि से होता है। प्रारम्भिक अवस्था में ये कोमल होती हैं। इनकी अधात्रि कॉण्डुिन नामक प्रोटीन की बनी होती है तथा इसमें कॉन्ट्रोसाइट्स पाये जाते हैं। इसके चारों ओर पर्युपास्थि (Perichondrium) का आवरण होता है। परन्तु प्राणी की वृद्धि के साथ ही इनकी संरचना में परिवर्तन आता है। अधात्रि में कैल्सियम लवण जमा होने लगता है जिससे वह दृढ़ एवं कठोर हो जाती है। इसमें कॉण्ड्रोसाइट्स नष्ट हो जाती हैं और इनके स्थान पर ऑस्टियोसाइट्स बन जाते हैं। ऑस्टियोसाइट्स अधात्री में ओसीन प्रोटीन का स्रावण करते हैं। पेरीकॉण्डियम, पेरी ऑस्टियम में बदल जाती है। इस प्रकार उपास्थि रूपान्तरित होकर अस्थि बनती है।

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प्रश्न 2.
कंकाल को मुख्य कार्य लिखिए।
उत्तर:
कंकाल के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं-

  • कंकाल शरीर को दृढ़ता तथा निश्चित आकृति प्रदान करता है।
  • शरीर के कई कोमल अंगों, जैसे-हृदय, यकृत, फेफड़े, प्लीहा, मस्तिष्क आदि की रक्षा करता है।
  • कंकाल पेशियों को जुड़ने के लिए आधार प्रदान करता है।
  • यह पेशियों के गति करने में सहायक होता है।
  • अस्थियों की अस्थि मज्जा (Bone marrow) में रुधिर कणिकाओं का निर्माण होता है।
  • जन्तु को गति, प्रचलन, श्रवण, जनन आदि क्रियाओं में सहयोग प्रदान करता है।
  • पसलियाँ, स्वासोच्छवास क्रिया में सहायक होती है।
  • कर्ण अस्थियाँ सुनने की क्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न 3. उरोस्थि पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
उरोस्थि (Sternum)-मनुष्य की उरोस्थि में सात छड़ाकार अस्थियाँ पायी जाती हैं जिन्हें तीन समूहों में विभेदित किया जा सकता
है-

  • प्रथम समूह-इसमें प्रथम उरोस्थि प्रीस्टर्नम (Presternum) आती है। इससे प्रथम जोड़ी पसलियों के अंशमेखला की क्लैविकल अस्थियाँ जुड़ी होती हैं। इसे मैनुब्रियम (Manubrium) भी कहते हैं।
  • द्वितीय समूह-इसमें दूसरी से छटी उरोस्थियाँ आती हैं, जिन्हें मोजोस्टर्नम या ग्लेडियोलस कहते हैं।
  • तृतीय समूह-इसमें सातवीं (अन्तिम) उरोस्थि आती है, जिसे मेटास्टर्नम या जीफाइड स्टर्नम कहते हैं।
    इन सातों उरोस्थियों को सम्मिलित रूप से स्टर्नेब्री (Sternebrae) भी कहते हैं। इन सातों स्टर्नेब्री से प्रथम सात जोड़ी पसलियाँ जुड़ी रहती हैं। यह वक्षीय पिंजर निर्माण में भी सहायक हैं।

प्रश्न 4.
श्रोणिमेखला का नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
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प्रश्न 5.
स्नायु एवं कण्डरा में भेद लिखिए।
उत्तर:
स्नायु एवं कण्डरा में भेद
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प्रश्न 6.
संकुचन के लिए पेशी किस प्रकार उत्तेजित होती है?
उत्तर:
तन्त्रिका आवेग के कारण तन्त्रिका पेशी सन्धि पर तन्त्रिका के सिरों द्वारा मुक्त ऐसीटिल कोलीन नामक तन्त्रिका प्रेषी रसायन पेशी की प्लाज्मा झिल्ली को Na+ के प्रति पारगम्यता को बढ़ा देता है। जिससे Na+ पेशी कोशिका में प्रवेश करते हैं और प्लाज्मा झिल्ली की आन्तरिक सतह पर धनात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है। यह विभव पूरी प्लाज्मा झिल्ली पर संचरित होकर सक्रिय विभव (Action potential) उत्पन्न करता है। यही अवस्था पेशी कोशिका की उत्तेजन अवस्था कहलाती है।

प्रश्न 7.
मनुष्य की भुजा की सभी सन्धियाँ अचल हो जाएँ तो क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
मनुष्य की भुजा की सभी सन्धियों के अचल होने पर पेशीय संकुचन अप्रभावी हो जाएगा तथा भुजा में किसी भी प्रकार की गति सम्भव नहीं हो पाएगी।

प्रश्न 8.
ओस्टियोपोरोसिस किसे कहते हैं?
उत्तर:
ओस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis)-यह एक अस्थि रोग (Bone disease) होता है। इसमें अस्थि के द्रव्यमान की क्षति हो जाती है। अस्थि पतली, कमजोर तथा कम प्रत्यास्थ हो जाती है, जिससे इसकी मजबूती घट जाती है। फलत: मामूली चोट लगने पर अस्थि टूट जाती है। ऑस्टियोपोरोसिस, एस्ट्रोजन हार्मोन (Estrogen harmone) की कमी के कारण वृद्ध महिलाओं में अधिक होता है। कैल्सियम युक्त सन्तुलित आहार एवं नियमित व्यायाम से इस रोग से बचा जा सकता है।

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प्रश्न 9.
पेशी संकुचन के लिए ऊर्जा स्रोत क्या है?
उत्तर:
पेशी संकुचन के लिए ऊर्जा ATP द्वारा मिलती है। संकुचन के समय ADP को क्रिएटिन:फॉस्फेट पुन ATP में परिवर्तित कर देता है। पेशी में ATP का निर्माण संचित ग्लाइकोजन तथा वसीय अम्लों के ऑक्सीकरण के द्वारा होता है।

प्रश्न 10.
यदि कंकाल पेशी को जाने वाली तन्त्रिका को काट दिया जाए, तो संकुचन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कंकाल पेशी को जाने वाली पेशी को काट देने पर तन्त्रिका पेशी रसायन ऐसीटिल कोलीन (Acetylcholine) का स्रावण नहीं होगा। फलतः पेशी प्लाज्मा झिल्ली की Na++ के प्रति पारगम्यता नहीं बढ़ेगी और सोडियम आयन के पेशी कोशिका में प्रवेश न कर पाने के कारण झिल्ली की आन्तरिक सतह पर धनात्मक विभव उत्पन्न नहीं होगा और पेशी का उत्तेजन नहीं होगा। परिणामस्वरूप पेशी संकुचन नहीं होगा।

RBSE Class 12 Biology Chapter 30 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कंकाल पेशी की विस्तृत संरचना लिखिए।
उत्तर:
कंकाल पेशी की संरचना (Structure of Skeletal | Muscle)-प्रत्येक कंकाल पेशी अनेक तन्तुओं से निर्मित समूहों जिन्हें पूलिकाएँ (Fasciculi) कहते हैं, से मिलकर बनी होती है। पूलिका में उपस्थित तन्तु एण्डोमाइसियम (Endomysium) नामक संयोजी ऊतक से घिरे रहते हैं। प्रत्येक पूलिका भी एक संयोजी ऊतक द्वारा घिरी होती है। जिसे पेरीमाइसियम (Perimysium) कहते हैं। प्रत्येक पूलिका अनेक लम्बे पेशी तन्तुओं से मिलकर बनी होती है, जिन्हें पेशी तन्तु कहते हैं। पेशी तन्तु वास्तव में एक पेशी कोशिका (Myocyte) होती है।
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प्रत्येक पेशी कोशिका आन्तरिक रूप से अनेक लम्बी बेलनाकार संरचनाओं से मिलकर बनी होती है। जिसे पेशी तन्तुक (Myofibrils) कहते हैं। पेशी तन्तुक पेशी की क्रियात्मक इकाई होती है। इनका व्यास लगभग 1 µm होता है। एक पेशी तन्तुक में लगभग 1500 मायोसिन तन्तु तथा 3000 एक्टिन तन्तु होते हैं। ये तन्तु संकुचन प्रक्रिया के लिए उत्तरदायी होते हैं।
मायोसिन तन्तु मोटे तथा गहरे रंग के होते हैं। एक्टिन तन्तु पतले तथा हल्के रंग के होते हैं। एक्टिन तन्तु तीन विभिन्न घटकों के बने होते हैं।

  • F-एक्टिन-यह तन्तु का मुख्य घटक है।
  • ट्रोपोमायसिन-यह F-एक्टिन से जुड़ी हुई अतिरिक्त प्रोटीन होती है। विश्राम की अवस्था में यह एक्टिन की सक्रिय सतह को ढके रहती है।
  • ट्रोपोनिन-यह तीनों ग्लोबुलर प्रोटीन्स का मिश्रण है। एक पेशी तन्तु के समस्त पेशी तन्तुक एक-दूसरे के समान्तर होते हैं। और इस प्रकार विन्यसित होते हैं कि सभी तन्तुओं की A पट्टिकाएँ व Z-पट्टिकाएँ एक ही स्तर पर होती हैं।

प्रश्न 2.
सन्धि किसे कहते हैं? मानव शरीर में पायी जाने वाली सन्धियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सन्धि (Joints)-सन्धि दो या दो से अधिक अस्थियों या अस्थि एवं उपास्थि के मिलने का स्थल होती हैं। अर्थात् जहाँ अस्थियाँ या उपास्थियाँ परस्पर जुड़ती हैं। उस स्थल को सन्धि कहते हैं। कशेरुकियों में सन्धियों के कारण ही गति सम्भव होती है।

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सन्धियों के प्रकार (Types of Joints)-सन्धियों की गति के आधार पर ये निम्नलिखित तीन प्रकार की होती हैं-
(1). अचल सन्धि या स्थिर सन्धियाँ (Fixed Joints)-इस प्रकार की संधियों में गति सम्भव नहीं होती तथा ये अस्थियाँ परस्पर ऊतक द्वारा जुड़ी रहती हैं। इनमें अस्थियों के मध्य कोई स्थान या अवकाश नहीं होता है।
उदाहरण-करोटि की अस्थियाँ, दाँत तथा मैक्सिला के मध्य की संधियाँ।

(2). चल सन्धियाँ (Movable Joints)-इस प्रकार की सन्धियों में अस्थियाँ एक या अधिक दिशाओं में स्वतन्त्रतापूर्वक गति कर सकती हैं। इस प्रकार की सन्धियों की अस्थियों में मध्य अवकाश या स्थान पाया जाता है। इस स्थान को सन्धि कोटर (Synovial cavity) कहते हैं। इस कैविटी में एक म्यूसिन युक्त तरल साइनोवियल तरल (Synovial fluid) भरा होता है, जो कि सन्धि को स्नेहन (Lubrication) प्रदान करता है। चल सन्धि निम्न प्रकार की होती है

  • कन्दुक खल्लिका सन्धि (Ball and Socket Joints)-इस प्रकार की संन्धियों में एक अस्थि को गेंदनुमा गोल सिरा दूसरी अस्थि के प्यालेनुमा गड्ढे में फिट रहता है। उभरे सिरे वाली अस्थि चारों ओर घूम सकती है।
    उदाहरण-कन्धों एवं कूल्हों की सन्धियाँ ।
  • कब्जा सन्धि (Hinge Joints)-इस प्रकार की सन्धि में एक अस्थि के सिरे का उभार दूसरी अस्थि के गड्ढे में इस प्रकार फिट रहता है कि उभरे सिरे वाली अस्थि केवल एक ही दिशा में गति कर सकती है।
    उदाहरण-कुहनी, घुटने, टखने तथा अंगुलियों के पोरों की सन्धियाँ।
  • दीर्घवृत्त सन्धियाँ (Ellipsoidal Joints)-इस प्रकार की सन्धियों में दोनों तलों में गति सम्भव है।
    उदाहरण-मनुष्य की रेडियस एवं कार्पस की सन्धि।

(3) आंशिक चल सन्धि (Slightly Movable Joint)-यह एक दृढ़ सन्धि होती है, किन्तु तनाव या ऐंठन के कारण इसमें सीमित गति सम्भव हो जाती है। ऐसी सन्धियों में अस्थियों के किनारे तन्तुमय उपास्थि द्वारा जुड़े रहते हैं। अस्थियों के मध्य ऐसे जोड़ को संधान (Symphysis) भी कहते हैं। जघन संधान, कशरुकों की सन्धियाँ, दंतिकास्थियों के मध्य सन्धि आदि इस प्रकार की सन्धियाँ हैं। इसके विभिन्न प्रकार निम्नलिखित हैं

  • धुराग्र सन्धि (Pivot Joint)-इस प्रकार की सन्धि में केवल अक्ष के चारों ओर घूर्णन ही सम्भव है। इसमें एक अस्थि स्थिर तथा दूसरी अस्थि गोलाई में घूमती है। उदाहरण-एटलस एवं एक्सिस कशेरुकों के मध्य सन्धि।
  • विसप सन्धि (Gliding Joints)-इस प्रकार की सन्धियों में अस्थियों की संधायी सतहें चपटी होती हैं जिससे एक अस्थि दूसरी अस्थि पर फिसलती है। उदाहरण-कशेरुकों की सन्धि, कलाई की सन्धि, टखने की सन्धि।

प्रश्न 3.
पेशी संकुचन की क्रियाविधि का सचित्र वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पेशी संकुचन की क्रियाविधि (Mechanism of Muscle Contraction)
पेशी संकुचन की क्रियाविधि को समझाने के लिए हक्सले (Huxley, 1965) ने सर्षी तन्तु सिद्धान्त (Sliding filament theory) प्रस्तुत किया था। इस सिद्धान्त के अनुसार, पेशीय रेशों का संकुचन पतले तन्तुओं (एक्टिन तन्तुओं) के मोटे तन्तुओं (माइसिन तन्तुओं) के ऊपर विसर्पण (खिसकने) से होता है।

रेखित (कंकाल) पेशी के संकुचन की क्रियाविधि। (Contraction Mechanism of Straited Muscle)
रेखित पेशियाँ तान्त्रिकीय उत्तेजन पर संकुचित होती हैं। पेशियों में पाये जाने वाले तन्त्रिका तन्तु अपने सिरों पर एसिटिल कोलीन (Acetylcholine) नामक पदार्थ स्रावित करके संकुचन की प्रेरणाओं को पेशियों में पहुँचाते हैं। प्रत्येक पेशी तन्तु के अन्दर इन प्रेरणाओं को तन्तुओं तक प्रसारित करने का काम सारकोप्लाज्मिक जाल (Sarcoplasmic network) करता है। हक्सले के पेशीय संकुचन सर्दी सिद्धान्त के अनुसार, पेशी संकुचन के समय ‘A’ पट्टियों की लम्बाई तो यथावत् बनी रहती है, किन्तु इसके दोनों ओर की ‘I’ पट्टियों के अर्द्धशों की एक्टिन छड़े (Actin fibres), मायोसिन छड़ों के कंटकों पर शीघ्रतापूर्वक बनते बिगड़ते आड़े रासायनिक सेतु बन्धनों की सहायता से सार्कोमियर (Sarcomere) के मध्य की ओर खिसककर ‘M’ रेखा तक पहुँच जाती हैं या इनके सिरे एक-दूसरे पर चढ़ जाते हैं। इस प्रकार पेशीय खण्डों या सार्कोमियर्स (Sarcomeres) के छोटे हो जाने से पेशी तन्तु सिकुड़ते हैं।

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प्रेरणास्थान से प्रारम्भ होकर पेशी तन्तु में दोनों ओर संकुचन की लहर-सी दौड़ जाती है, किन्तु संकुचन एक ही दिशा की ओर होता है, जिस ओर सम्बन्धित पेशी किसी अचल अस्थि में लगी होती हैं। अधिकतम संकुचन में दोनों ओर की ‘Z’ रेखाएँ ‘A’ पट्टियों की मायोसिन छड़ों को छूने लगती हैं, अर्थात् ‘P’ पट्टियाँ और ‘H’ क्षेत्र अन्तर्धान हो जाते हैं और पेशी तन्तु की लम्बाई घटकर 2/3 रह जाती है। शिथिलन (Relaxation) में एक्टिन तथा मायोसिन (Actin and Myosin) छड़ों को जोड़ने वाले सेतु बन्ध पूर्णतया खुल जाते हैं। अत: प्रत्येक पेशीखण्ड (सार्कोमियर) की सब एक्टिन छड़े वापस अपनी सामान्य स्थिति में आ जाती हैं और पेशी संकुचन समाप्त हो जाता है।
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पेशी संकुचन के प्रमुख चरण
(Main steps or Muscle Contractions)
पेशी संकुचन की क्रियाविधि को सर्षी तन्तु या छड़े विसर्पण सिद्धान्त (Sliding filament theory) द्वारा अच्छी तरह समझाया जा सकता है, जिसके अनुसार पेशीय रेशों का संकुचन पतले तन्तुओं के मोटे तन्तुओं के ऊपर सरकने या विसर्पण से होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार पेशी संकुचन चार चरणों में पूरा होता है-
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(1) उत्तेजन (Excitation)-यह पेशी संकुचन का प्रथम चरण है। उत्तेजन में तन्त्रिका आवेग के कारण तन्त्रिकाक्ष (Dendron) के सिरों द्वारा ऐसीटिलकोलीन (एक तन्त्रिको पेशी रसायन), तन्त्रिका पेशी सन्धि पर मुक्त होता है। यह ऐसीटिलकोलीन (Acetylcholine) पेशी-प्लाज्मा की Na+ के प्रति पारगम्यता (Permeability) को बढ़ावा देता है, जिसके फलस्वरूप प्लाज्मा झिल्ली की आन्तरिक सतह पर धनात्मक विभव उत्पन्न हो जाता है। यह विभव पूरी प्लाज्मा झिल्ली पर फैलकर सक्रिय विभव उतपन्न कर देता है और पेशी कोशिका उत्तेजित हो जाती है।

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(2) उत्तेजन-संकुचन युग्म (Excitation-Contraction Coupling)-इस चरण में सक्रिय विभव पेशी कोशिका में संकुचन प्रेरित करता है। यह विभव पेशी प्रद्रव्य में तीव्रता से फैलता है और Ca* * मुक्त होकर ट्रोपोनिन-सी (Troponin-C) से जुड़ जाते हैं और ट्रोपोनिन अणु के संरूपण में परिवर्तन हो जाते हैं। इन परिवर्तनों के कारण एक्टिन (Actin) के सक्रिय स्थल पर उपस्थित ट्रोपोमायोसिन एवं ट्रोपोनिन (Tropomyosin and Troponin) दोनों वहाँ से पृथक् हो जाते हैं। मुक्त सक्रिय स्थल पर तुरन्त मायोसिन (Myosin) तन्तु के अनुप्रस्थ सेतु इनसे जुड़ जाते हैं और संकुचन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है।

(3) संकुचन (Contraction)-एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल से जुड़ने से पूर्व सेतु का सिरा एक ATP से जुड़ जाता है। मायोसिन के सिरे के ATPase एन्जाइम द्वारा ATP, ADP तथा Pi में टूट जाते हैं किन्तु मायोसिन के सिर पर ही लगे रहते हैं। इसके उपरान्त मायोसिन (Myosin) का सिर एक्टिन तन्तु के सक्रिय स्थल में जुड़ जाता है। इस बन्धन के कारण मायोसिन के सिर में संरूपण परिवर्तन होते हैं और इसमें झुकाव उत्पन्न हो जाता है जिसके फलस्वरूप एक्टिन तन्तु सार्कोमियर (Sarcomere) के केन्द्र की ओर खींचा जाता है। इसके लिए ATP के विदलन से प्राप्त ऊर्जा काम आती है और सिर झुकाव के कारण इससे जुड़े ADP तथा Pi भी मुक्त हो जाते हैं। इनके मुक्त होते ही नया ATP अणु सिर के जुड़ जाता है। ATP के जुड़ते ही सिर एक्टिन से पृथक् हो जाता है। पुनः ATP का विदलन होता है। मायोसिन सिर नये सक्रिय स्थल पर जुड़ता है तथा पुनः यही क्रिया दोहराई जाती है, जिससे एक्टिन तन्तुक (Actin filaments) खिसकते हैं और संकुचन हो जाता है।

(4) शिथिलन (Relaxation)-पेशी उत्तेजन समाप्त होते ही Ca++ पेशी प्रद्रव्यी जालिका में चले जाते हैं, जिससे ट्रोपोनिन-सी Ca++ से मुक्त हो जाती है और एक्टिन तन्तुक के सक्रिय स्थल अवरुद्ध हो जाते हैं। पेशी तन्तु अपनी सामान्य स्थिति में आ जाते हैं तथा पेशीय शिथिलन हो जाता है।

प्रश्न 4.
मनुष्य में मेखलाओं की संरचना एवं इनका महत्व दीजिए।
उत्तर:
मनुष्य में मेखलाएँ (Girdles) अनुबन्धीय कंकाल की अस्थियाँ होती हैं। मनुष्य के शरीर में दो प्रकार की मेखलाएँ पायी जाती हैं-अंश मेखलाएँ तथा श्रोणिमेखला। अंशमेखला उच्च अग्रांग में तथा श्रोणिमेखला निम्न अग्रांग में स्थित होती है।

अंश मेखला (Pectoral girdle)-मनुष्य में अंश मेखला के दो अद्भुश होते हैं। प्रत्येक अर्द्धश अनामिकास्थि (Osinnominate) कहलाता है। दोनों अर्धांश एक-दूसरे से पृथक होते हैं तथा अक्षीय कंकाल एवं अग्रपादों अथवा हाथ के मध्य कंकाल में उपस्थित होते हैं। प्रत्येक अर्धांश में एक जत्रुक या क्लेविकल (Clavical) एवं एक अंशफलक या स्केपुला (Scapula) होती है।

अंशफलक चपटी एवं त्रिभुजाकार अस्थि होती है और यह दूसरी से सातवीं पसलियों को ढकती हुई कक्ष के ऊपरी पृष्ठ भाग तक पायी जाती है। यह स्कन्ध (Shoulder) का भाग बनाती है, अतः इसे स्कन्ध फलक (Shoulder bone) भी कहते हैं। अंशफलक की ऊपरी बाहरी सतह पर अंक्षफलक कंटक (Scapular spine) नामक उभार पाया जाता है। इस कंटक का एक प्रवर्ध अंसकूट (Acromian) कहलाता है। पास में दूसरा प्रवर्ध अंसतुंड (Corocoid) होता है। इन प्रवधू के समीप एक चिकना गड्ढा होता है, इसे अंश उलूखल (Glenoid cavity) कहते हैं। इसमें प्रगंडिका (Humerus) का सिर जुड़ा रहता है, जिससे स्कन्ध सन्धि बनती है, जो कन्दुक खल्लिका (Ball and socket) सन्धि होती है।

कॉलर अस्थि अथवा क्लेविकल एक सुविकसित अस्थि है। यह लम्बी, पतली एवं वक्रित छड़ जैसी अस्थि होती है। इसका एक सिरा अंसकूट प्रवर्ध से तथा दूसरा सिरा अरोस्थि से संधित होता है।

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महत्व-अंश मेखला हाथ के कंकाल को अक्षीय कंकाल से जोड़कर सहारा देने का कार्य करती है।

श्रोणिमेखला (Pelvic Girdle)-यह निम्न अग्रांग अस्थि है। यह भी अंशमेखला की तरह दो अर्धाशों से मिलकर बनी होती है, परन्तु इसके दोनों अर्धांश मध्य रेखा पर परस्पर जघन संधान (Pubic symphysis) द्वारा जुड़े होते हैं। श्रोणिमेखला शरीर के पश्च भाग के दोनों पश्चपादों के बीच उदर गुहा में स्थित रहती है।
श्रोणिमेखला का प्रत्येक अर्धांश तीन अस्थियों का बना होता है-

  • श्रोणिअस्थि (Ilium)
  • आसनस्थि (Ischium)
  • जघनास्थि (Pubis)

श्रोणि अस्थि बड़ी एवं अग्र पृष्ठ भाग में स्थित होती है। जघनास्थि एवं आसनास्थि, अधर भाग में क्रमशः अग्र एवं पश्च दिशा में स्थित होती हैं। प्रत्येक ओर की आसनास्थि एवं जघनास्थि के बीच श्रोणि रन्ध्र होता है। प्रत्येक अर्धांश के बाहरी किनारे पर एक गड्ढा श्रोणि उलूखल (Acetabulum) होता है, जिसमें ऊर्विका का फीमर का सिर जुड़ा रहता है और श्रोणि सन्धि निर्मित होती है। मनुष्य में श्रोणि अस्थियाँ त्रिक एवं अनुत्रिक मिलकर श्रोणि (Pelvis) बनाती हैं।

महत्व-श्रोणि मेखला पश्च पादों के कंकाल को अक्षीय कंकाल से जोड़कर सहारा प्रदान करती है। महिलाओं में प्रसव के समय यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

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