RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय काव्य दोष

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय काव्य दोष

(ख) काव्य – दोष
काव्य का जितना गुण युक्त होना आवश्यक है, उतना ही दोष मुक्त होना भी। कविता क बाह्य तथा अन्तरंग दोनों ही रूपों को प्रभावशाली होना चाहिए। बाह्य रूप से तात्पर्य कविता के वर्णों, पदों, शैली आदि विशेषताओं से है तथा अन्तरंग रूप उसमें व्यंजित भाव और कल्पना को माना जायगा। जब ये दोनों ही रूप सब प्रकार दोष रहित होते हैं, तभी काव्यकार अपनी बात सहृदयों तक सफलतापूर्वक पहुँचा पाता है तथा सहृदय भी उसको आत्मसात करने में सफल होते हैं। अच्छी कविता वह है जिसमें व्यक्त भावों को पाठक या श्रोता बिना विशेष प्रयास के सरलतापूर्वक ग्रहण करने में समर्थ हो। सरसता कविता का प्राण है। काव्य की सरसता में जिन तत्वों के कारण बाधा उत्पन्न होती है तथा सहृदय को उसकी रसानभूति से वंचित होना पड़ता है, उन तत्वों को काव्य-दोष कहा जाता है। जिस प्रकार सुस्वादु भोजन से शरीर तृप्त होता है, उसी प्रकार रसपूर्ण काव्य से चित्त अनुरंजित होता है। काव्य दोष मीठी खीर में मिल जाने वाले लवण के समान होते हैं, जो काव्यानन्द को कम कर या नष्ट कर देते हैं।

काव्य के मुख्यार्थ में बाधा उत्पन्न करने वाले तत्वों को आचार्यों ने काव्य-दोष कह’ है-‘मुख्यार्थ-हति दोषः। भामह, वामन, मम्मट आदि सभी आचार्यों ने काव्य-दोष पर विचार किया है। वामन के अनुसार काव्य-सौन्दर्य को क्षति पहुँचाने वाले तत्व काव्य-दोष होते हैं। ‘काव्य-प्रकाश’ के रचयिता आचार्य मम्मट कहते हैं कि मुख्यार्थ का अपकर्ष करने वाले तत्व काव्य-दोष हैं। काव्य का उद्देश्य रसानुभूति है। इसमें बाधा आने से मुख्यार्थ का अपकर्ष होता है। रस में बाधा तीन प्रकार की होती है। देर से रस की अनुभूति होना, रसानुभूति में बाधा होना तथा रस की अनुभूति होना ही नहीं। रसानुभूति के बाधक यही तत्व काव्य-दोष कहे जाते हैं।

परिभाषा – जिस तत्व के कारण कविता के अर्थ को समझने में बाधा उत्पन्न होती है और काव्य-सौन्दर्य का अपकर्ष होता है, उसको काव्य-दोष कहते हैं। काव्य की रसानुभूति में बाधक तत्वों को काव्य-दोष कहा जाता है।

काव्य – दोषों के प्रकार
काव्य-दोषों की कोई निश्चित संख्या नहीं है।
काव्य के अर्थ को समझने में सामान्यतः चार प्रकार की बाधाएँ होती हैं। काठ्यार्थ को व्यक्त करने में शब्द, वाक्य, रस और अर्थ महत्वपूर्ण तत्व होते हैं। काव्यार्थ की व्यंजना में आने वाली बाधाएँ इनसे ही सम्बन्धित होती हैं। इनको शब्द दोष, वाक्य दोष, रस दोष तथा अर्थ दोष कह सकते हैं।

(1) शब्द दोष

वर्णों अथवा शब्दों के प्रयोग में असावधानी होने पर जब अर्थ का बोध होने से पहले ही दोष जान पड़े, वहाँ शब्द-दोष होता है। शब्द-दोष निम्नलिखित होते हैंश्रुति कटुत्व दोष जब किसी कविता के पढ़ने अथवा सुनने मात्र से कानों में कटुता अथवा कड़वापन उत्पन्न हो जाय तो वहाँ श्रुति कटुत्व दोष होता है। कोमल रसों के वर्णन में कठोर वर्गों के प्रयोग से श्रुति कटुत्व दोष उत्पन्न होता है।
उदाहरण –
देखत कबु कौतुक इतै, देखौ नेकु विचारि।
कब की इकटक डटि रही, टटिया अँगुरिन डारि॥

उपर्युक्त दोहे में नायिका टटिया को अँगुलियों से हटाकर नायक को देख रही है। शृंगार रस के इस वर्णन में ट वर्ग के वर्गों के प्रयोग के कारण श्रुति कटुत्व दोष है।

च्युत संस्कृति दोष
जब किसी शब्द के प्रयोग में व्याकरण सम्बन्धी दोष होता है तब भाषा के संस्कार से गिरने के कारण वहाँ च्युत संस्कृति दोष होता है।
उदाहरण –
मरम बचन सीता जब बोला।
हरि प्रेरित लछमन मन डोला।

‘बोला’ क्रिया पुल्लिंग की है। उसका प्रयोग सीता के लिए होना व्याकरण का दोष है। ग्राम्यत्व दोष है।

जब कवि की भाषा में ग्रामीण भाषा अथवा बोलचाल की भाषा के शब्दों का प्रयोग होता है तो उसमें ग्राम्यत्व दोष माना जाता
उदाहरण –
खोपरी पै परति पन्हैयाँ ब्रज नारिन की।
इस पंक्ति में कवि ने ‘खोपरी’ और ‘पन्हैयाँ’ जैसे ग्राम्य शब्दों का प्रयोग किया है। अतः यहाँ ग्राम्यत्व दोष है।

अश्लीलत्व दोष
जब कविता में अभद्रतासूचक, असाहित्यिक, लज्जाजनक शब्दों का प्रयोग होता है तो वहाँ कविता में भद्दापन उत्पन्न हो जाता है। उसके पढ़ने से घृणा का भाव उत्पन्न होता है। ऐसी स्थिति में वहाँ अश्लीलत्व दोष होता है।
उदाहरण –
दस्त से खाना खिलाया।
मैंने अपने यार को॥
प्यास जब उसको लगी।
पेशाब मैंने कर दिया॥
यहाँ दस्त (हाथ) तथा पेशाब (पानी पेश करना) अभद्रतापूर्ण प्रयोग होने के कारण घृणा पैदा कर रहे हैं। अतः अश्लीलत्व दोष है।

क्लिष्टत्व दोष
जहाँ किसी शब्द का अर्थ आसानी से समझ में न आये वहाँ किलष्टत्व दोष होता है।
उदाहरण –
कहत कत परदेशी की बात।
मन्दिर अरध अवधि बदि हमसौं हरि अहार चलि जात ॥
वेद, नखत, ग्रह जोरि अरध करि सोई बनत अब खाता 1

यह सूरदास जी का कूट पद है। इसमें गोपियाँ की विरह दशा का वर्णन है। गोपियाँ कहती हैं उस परदेशी श्रीकृष्ण की बात मत पूछो। वह हमसे मन्दिर अरध अर्थात् एक पक्ष का पन्द्रह दिन में लौटकर आने की बात कह कर गए थे। परन्तु अब तो हरि अहार (सिंह का भोजन, मांस) अर्थात् एक महीना बीतने वाला है। अब तो वेद (4) नक्षत्र (27) तथा ग्रह (9) को जोड़कर, उसका आधा करके (4 + 27 +9 = 40 का आधा 20) जो बनेगा वही हम खा लेंगी। बीस का अर्थ विष लिया गया है। अर्थ ग्रहण में कठिनाई के कारण इस पद में क्लिष्टत्व दोष है।

2. वाक्य दोष

जहाँ किसी वाक्य अथवा वाक्यांश की रचना दोषपूर्ण होती है, तो वहाँ वाक्य दोष माना जाता है। उसके प्रमुख भेद निम्नलिखित

न्यूनपदत्व दोष
जहाँ वाक्य की रचना में किसी शब्द की कमी रह जाती है, वहाँ न्यूनपदत्व दोष होता है। न्यूनपदत्व का अर्थ है- पद या शब्द की कमी होना। इसमें अर्थ निकालने के लिए पाठक को कुछ शब्द अपनी ओर से जोड़ने पड़ते हैं।
उदाहरण –
पानी, पावक, पवन, प्रभु ज्यों असाधु त्यों साधु। इस पंक्ति का अर्थ है पानी, अग्नि, वायु तथा ईश्वर सज्जन तथा असज्जन सभी के प्रति समता का व्यवहार करते हैं। किन्तु यह अर्थ प्राप्त करने के लिए पाठक को अपनी ओर से कुछ पद जोड़ना आवश्यक है। अत: यहाँ न्यूनपदत्व दोष है।

अधिक पदत्व दोष
जब, काव्य में कवि कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिनको हटा देने पर भी काव्यार्थ ग्रहण में कोई बाधा नहीं होती, वहाँ अधिक पदत्व दोष होता है।
उदाहरण –
पुष्प पराग से रंगकर भ्रमर गुंजारता है।
उपर्युक्त पंक्ति में ‘पुष्प’ शब्द को हटा देने पर भी अर्थ स्पष्ट हो जाता है। ‘पुष्प’ का प्रयोग अधिक होने के कारण अधिकपदत्व दोष है।

अक्रमत्व दोष
जब वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक नहीं होता वहाँ अक्रमत्व दोष होता है। यह दोष विभक्ति चिह्नों, अव्यय, उपसर्ग आदि क्रम भंग होने से होता है।
उदाहरण –
ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।
इस पंक्ति में ‘देना’ शब्द ‘दिखला’ शब्द के पश्चात् आना चाहिए अत: इसमें अक्रमत्व दोष है।

पुनरुक्त दोष
जहाँ एक ही अर्थ वाले शब्दों का पुनः अनावश्यक प्रयोग होता है, वहाँ पुनरुक्त दोष होता है।
उदाहरण –
कोमल वचन सभी को भाते।
अच्छे लगते मधुर वचन।
उपर्युक्त में ‘भाते’ तथा ‘अच्छे लगते’ का एक ही अर्थ है। अतः पुनरावृत्ति होने के कारण यहाँ पुनरुक्त दोष है।

3. अर्थ दोष

जब काव्य का अर्थ ग्रहण करने में बाधा हो तो वहाँ अर्थ दोष होता है। अर्थ दोष निम्नलिखित हैं –

दुष्क्रमत्व दोष
जहाँ शास्त्रों अथवा परम्परा में प्रसिद्ध क्रम के विपरीत किसी बात का वर्णन होता है, वहाँ दुष्क्रमत्व दोष होता है।
उदाहरण –
मारुत नन्दन मारुत को, मन को, खगराज को वेग लजायौ।
उपर्युक्त पंक्ति में दुष्क्रमत्व दोष है क्योंकि मन को सही क्रम में नहीं रखा गया है। मन का वेग मारुत तथा खगराज के वेग से अधिक होने के कारण उसको सबसे अंत में रखा जाना चाहिए।

4. रस दोष

काव्य रचना का उद्देश्य रसास्वादन है। इसमें किसी तरह का व्यवधान होने पर रस दोष माना जाता है। भाव, विभाव और संचारी भावों का उचित विवेचन न होना अर्थात् उनका प्रतिकूल अवस्था में चित्रण होना भी रस दोष है। जैसे- शृंगार रस के वर्णन में करुण रस का होना भी रस दोष है।
उदाहरण –
खेलो आज होरी, गोरी करत निहोरी हम,
पल को पतौ न यहाँ कालि कहा होइगौ ।।

प्रथम पंक्ति में शृंगार तथा द्वितीय पंक्ति में वैराग्य सूचक भाव है। इनको एक साथ नहीं रखा जाना चाहिए। अत: यहाँ रस दोष है।

RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय काव्य दोष महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर प्रश्न

प्रश्न 1.
काव्य-दोष की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
मुख्यार्थ में बाधा पहुँचाने वाले कारकों को काव्य-दोष कहते हैं। काव्य-दोष रसानुभूति में बाधा उत्पन्न करने तथा काव्योद्देश्य में व्यवधान पैदा करने वाले तत्वों को कहते हैं।

प्रश्न 2.
ग्राम्यत्व काव्य-दोष किसे कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ काव्य में असाहित्यिक, भदेस, लोक प्रचलित, गँवारू शब्दों का प्रयोग होता है, वहाँ ग्राम्यत्व काव्य दोष होता है।

प्रश्न 3.
ग्राम्यत्व काव्य-दोष का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
ग्रम्यत्व काव्य-दोष का उदाहरण
वाह रे अकबरा, तेरे जे जे ठाठ।
नीचे दरी और ऊपर खाट॥

यहाँ बादशाह अकबर को ‘अकबरा’, राजसिंहासन को ‘खाट’ तथा कालीन को ‘दरी’ कहने से ग्राम्यत्व दोष है।

प्रश्न 4.
च्युत संस्कृति दोष किसको कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ काव्य में व्याकरण के नियमों का उल्लंघन करके शब्दों का प्रयोग किया जाता है, वहाँ च्युत संस्कृति दोष होता है।

प्रश्न 5.
अश्लीलतत्व दोष की सोदाहरण परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
जहाँ किसी काव्य में घृणास्पद, अभद्र तथा असंस्कृत शब्दों का प्रयोग होता है जिनके कारण काव्य में भद्दापन आ जाता है। वहाँ अश्लीलत्व दोष होता है। जैसे रावण के दरबार में थिर अंग का पाद। इस पंक्ति में ‘पाद’ शब्द का अर्थ पैर है किन्तु यह अपान वायु के लिए भी प्रयुक्त होता है। इसे पढ़ने से घृणा का भाव पैदा होता है।

प्रश्न 6.
क्लिष्टत्व दोष किसे कहते हैं?
उत्तर:
जहाँ किसी शब्द का अर्थ समझने में कठिनाई होती है और अर्थ-ग्रहण के लिए बौद्धिक व्यायाम करना होता है, वहाँ क्लिष्टत्व दोष होता है।

प्रश्न 7.
क्लिष्टत्व दोष का उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
क्लिष्टत्व दोष का उदाहरण
एक अचम्भा देखा भाई।
ठाड़ौ सिंह चरावै गाई॥
चेले के गुरु लागे पाई।
पकड़ बिलाई मुर्गे खाई॥

प्रश्न 8.
दुष्क्रमत्व और अक्रमत्व दोषों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लोक परम्परा शास्त्रीय विधि के विरुद्ध कोई बात करने से दुष्क्रमत्व दोष होता है। इसमें शास्त्र विरुद्ध क्रम में किसी बात का वर्णन किया जाता है, जबकि अक्रमत्व दोष में वाक्य में शब्दों का क्रम ठीक नहीं होता उसमें विभक्ति चिह्न, अव्यय, उपसर्ग आदि का क्रम ठीक नहीं होता।

प्रश्न 9.
काव्य-दोष का काव्य पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
काव्य-दोष होने पर पाठक अथवा श्रोता को काव्य से रसानुभूति नहीं होती। वह काव्य का आनन्द भली प्रकार नहीं ले पाता। अव्यय, उपसर्ग आदि का क्रम ठीक नहीं होता।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में दुष्क्रमत्व दोष किस पंक्ति में है
(क) फूलों में लावण्यता देती है आनन्द।
(ख) कमल चन्द्रमा का उदय होने पर खिल उठा।
(ग) शिशिर सा झर नयनों का नीर, झुलस देता गालों के फूल।
(घ) वेद नखत ग्रह जोरि अरध करि, सोइ बनत अब खात।
उत्तर:
उपर्युक्त में दुष्क्रमत्व दोष वाली काव्य-पंक्ति है –
(क) कमल चन्द्रमा का उदय होने पर खिल उठा।

प्रश्न 11.
‘च्युत संस्कृति दोष’ का एक उदाहरण दीजिए तथा बताइए कि यहाँ यह दोष किस कारण है?
उत्तर:
‘च्युत संस्कृति दोष’ का उदाहरण-फूलों की लावण्यता देती है आनन्द। यहाँ लावण्यता’ शब्द का प्रयोग दोषपूर्ण है। ‘लावण्य’ कहना ही ठीक है। उसमें ‘ता’ प्रत्यय जोड़ना ठीक नहीं है।

प्रश्न 12.
‘पुनरुक्त दोष’ को उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जल में उत्पत्ति जल में वास।
जल में नलिनी तोर निवास ॥
यहाँ प्रथम पंक्ति में ‘वास’ तथा द्वितीय पंक्ति में ‘निवास’ शब्द का प्रयोग हुआ है।
यह पुनरुक्त दोष है। वास तथा निवास एकार्थक शब्द हैं।

प्रश्न 13.
‘न्यून पदत्व दोष’ तथा ‘अधिक पदत्व दोष’ में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जहाँ वाक्य-रचना में किसी शब्द की कमी रह जाती है, वहाँ न्यूनपदत्व दोष’ होता है। इसके विपरीत अधिक पदत्व दोष तब होता है जब कवि कुछ ऐसे शब्दों का प्रयोग करता है जिनके हटा देने पर भी काव्यार्थ ग्रहण में कोई बाधा नहीं आती। ऐसे शब्दों को अधिक पद कहते हैं।

प्रश्न 14.
काव्य के अर्थ ग्रहण आने वाली बाधाएँ कौन-सी हैं?
उत्तर:
काव्य के अर्थ ग्रहण में चार प्रकार की बाधाएँ आती हैं

  1. शब्द सम्बन्धी बाधाएँ,
  2. वाक्य सम्बन्धी बाधाएँ,
  3. अर्थ सम्बन्धी बाधाएँ तथा,
  4. रस सम्बन्धी बाधाएँ।

इनके कारण काव्य का अर्थ समझने में कठिनाई आती है।

प्रश्न 15.
रसानुभूति में कितने प्रकार की बाधाएँ होती हैं? इनका क्या परिणाम होता है?
उत्तर:
काव्य का उद्देश्य रस की अनुभूति करना है। रस की अनुभूति में तीन प्रकार की बाधाएँ आती हैं

  1. रस की अनुभूति होने में देर लगना।
  2. रस की अनुभूति होने में व्यवधान उत्पन्न होना।
  3. रस की अनुभूति ही न होना। इसका परिणाम मुख्यार्थ का अपकर्ष होता है।

प्रश्न 16.
निम्नलिखित पंक्तियों को पुनः लिखकर उनके सामने उनसे सम्बन्धित काव्य दोष का नाम भी लिखिए
(क) करके आज याद इस जन को,
निश्चय वे मुसकाये।
(ख) शरद इन्दिरा के मन्दिर की,
मानो कोई गैल रही।
उत्तर:
(क) करके याद आज इस जन को,
निश्चय वे मुसकाये॥
इस पंक्ति में ‘जन’ शब्द उर्मिला के लिए प्रयुक्त है, जिसमें व्याकरण सम्बन्धी लिंग दोष है। अत: यहाँ च्युत संस्कृति दोष है।
(ख) शरद इन्दिरा के मन्दिर की।
मानो कोई गैल रही।
इस पंक्ति में ‘गैल’ शब्द ग्रामीण भाषा का होने से इसमें ग्राम्यत्व काव्य दोष है।

प्रश्न 17.
निम्नलिखित पंक्तियों में ग्राम्यत्व काव्य दोष किसमें है? उसे छाँटकर लिखिए।
(क) आये बैरी विपुल चढ़ के अब उठो सैनिको तुम।
(ख) मन्दिर अरध अवधि बदि हमसौ, हरि अहार चलि जात।
(ग) त्रिसना छानि परी घर ऊपर।
उत्तर:
‘त्रिसना छानि परी घर ऊपर’ पंक्ति में ‘छानि’ शब्द में ग्राम्यत्व दोष है।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित में से वह काव्य-पंक्ति छाँटकर लिखिए जिसमें श्रुतिकटुत्व दोष है
(क) मूंड पै पाग बिराजति श्याम के।
(ख) भोजन बनावै, नीको न लागे
पाव भर दाल में सवा सेर नुनवा
(ग) कवि के कठिन तर कर्म की करते नहीं हम धृष्टता।
पर क्या न विषयोत्कृष्टता करती विचारोत्कृष्टता।
उत्तर:
कवि के कठिनतर कर्म की करते नहीं हम धृष्टता। पर क्या न विषयोत्कृष्टता करती विचारोत्कृष्टता। इन पंक्तियों में श्रुति कटुत्व दोष है। कृष्टता, विषयोत्कृष्टता तथा विचारोत्कृष्टता में कर्ण-कटुता है।

प्रश्न 19.
“देखौ चतुराई सेनापति कविताई की जु।
ग्रीष्म विषम बरसा की सम कर्यो है।”
उपर्युक्त पंक्ति में आपकी दृष्टि में कौन-सा काव्य-दोष है?
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति में च्युत संस्कृति काव्य दोष है। द्वितीय पंक्ति में बरसा की सम’ न होकर ‘बरसा के सम’ होना चाहिए।

प्रश्न 20.
‘जिसने अपनाया था त्यागा
रहे स्मरण ही आते।’
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में कौन-सा काव्य-दोष है?
उत्तर:
उपर्युक्त पंक्ति ‘रहे स्मरण ही आते’ में अक्रमत्व काव्य दोष है। ‘रहे’ शब्द ‘आते’ के पश्चात् प्रयुक्त होना चाहिए।

RBSE Class 12 Hindi काव्यांग परिचय काव्य दोष वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मुक्त करो नारी को मानव! चिरवन्दिनि नारी को, युग-युग की बर्बर कारा से, जननि, सखी, प्यारी को। उपर्युक्त पंक्ति में काव्य-दोष है –
(क) क्लिष्टत्व दोष
(ख) अक्रमत्व दोष
(ग) ग्राम्यत्व दोष
(घ) च्युत संस्कृत दोष।
उत्तर:
(ख) अक्रमत्व दोष

प्रश्न 2.
कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है’।
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में काव्य दोष है –
(क) ग्राम्यत्व
(ख) च्युत संस्कृति
(ग) अक्रमत्व
(घ) दुष्क्रमत्व।
उत्तर:
(क) ग्राम्यत्व

प्रश्न 3.
आका से मुख ओंधा कुआँ, पाता ले पनिहार।
ताका पानी को हंसा बिरला पीवे आदि विचार ॥
में काव्य दोष है
(क) च्युत संस्कृति
(ख) दुष्क्रमत्व
(ग) ग्राम्यत्व
(घ) क्लिष्टत्व।
उत्तर:
(घ) क्लिष्टत्व।

प्रश्न 4.
‘दिखा रहे पथ इस भूमा का’ में कौन-सा काव्य-दोष है –
(क) ग्राम्यत्व
(ख) श्रुतिकटुत्व
(ग) अश्लीलत्व
(घ) च्युत संस्कृति दोष।
उत्तर:
(घ) च्युत संस्कृति दोष।

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