RBSE Solutions for Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 निर्वासित (कहानी)

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 निर्वासित (कहानी)

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘निर्वासित’ कहानी की कहानीकार है –
(क) दीपबाला
(ख) वीरबाला
(ग) सूर्यबाला
(घ) राजबाला
उत्तर:
(ग) सूर्यबाला
उत्तर:
(ग) सूर्यबाला

प्रश्न 2.
‘निर्वासित’ कहानी का अंत होता है –
(क) सुखांत
(ख) दुखांत
(ग) प्रसादांत
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) दुखांत

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
माँ जी बच्चों को सुलाने के लिए कौन-सी कहानी सुनाती थी?
उत्तर:
माँ जी बच्चों को सुलाने के लिए ‘ढाका’, बंगाली कौआ की कहानी सुनाती थी।

प्रश्न 2.
‘निर्वासित’ कहानी की प्रारंभ की पंक्तियाँ कौन-से भावों को अभिव्यक्त करती हैं?
उत्तर:
कहानी की प्रारम्भ की पंक्तियाँ बुजुर्ग दंपत्ति की मार्मिक वेदना को स्पष्ट अभिव्यक्त करती हैं।

प्रश्न 3.
बाबूजी के दोनों बेटों के क्या नाम थे?
उत्तर:
बाबूजी के दोनों बेटों के नाम थे- राजेन और रनधीर।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
बड़े बेटे राजेन के पास जाने को लेकर पड़ोसियों ने क्या कहा?
उत्तर:
रिटायर होने के बाद डेढ़ साल तक तो राजेन उन्हें पैसे भेजता रहा। एक दिन उसने पत्र भेजकर दोनों को अपने पास आने के लिए कहा। यह बात जानकर पड़ोसियों ने उन दोनों को राजेन के पास जाकर रहने के लाभों को बताते हुए, वहाँ जाने को समझाया। अनेक तर्क रखे उनके सामने। उनकी एक पड़ोसिन ने उन्हें न जाने की सलाह देते हुए कहा- सब कचौड़ी-पकौड़ा एक तरफ और अपना सुराज एक तरफ। इस प्रकार पड़ोसियों ने उन्हें बड़े बेटे के पास जाने और न जाने के तर्कों को समझाया।

प्रश्न 2.
पड़ोसियों की राय के विपरीत बूढ़ी दरोगानी ने क्या विचार व्यक्त किये?
उत्तर:
आस-पड़ोस के लगभग सभी लोगों ने उन दोनों को अपने बड़े बेटे राजेन के पास जाने की सहूलियतों के विषय में समझाया, लेकिन इन सबके विपरीत एक बूढ़ी दरोगानी ने वहाँ जाने से होने वाले कष्ट और समस्याओं का संकेत करते हुए उनसे कहा- सब कचौड़ी-पकौड़ा एक तरफ और सुराज एक तरफ ! वहाँ तो अफसरी कायदे से रहना होगा। लेकिन हाँ आराम तो होगा ही, और फिर बुलाने पर न जाना भी अर्थात् वहाँ जाकर सुख तो मिलेगा किन्तु दु:ख और तकलीफों में लिपटा हुआ।

प्रश्न 3.
‘निर्वासित’ कहानी में निहित कहानीकार का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
‘निर्वासित’ कहानी एक ऐसे बुजुर्ग दंपत्ति की व्यथा है जो अपने आधुनिक बेटे-बहू के साथ रहते भी निर्वासित-सा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। किस प्रकार एक दंपत्ति अपनी स्वतंत्रता को त्याग कर अपने बहू-बेटे के अनुसार स्वयं को ढालते हैं, उनके अनुसार 
अपना जीवन व्यतीत करते हैं। इतना ही नहीं इससे भी अधिक तकलीफदेय उनका विभाजन । पुत्र उनकी भावनाओं को बिना समझे उनका बँटवारा कर लेते हैं। इन सबसे होने वाली तकलीफ और निर्वासित जीवन की घायल छटपटाती संवदेना को उकेरना कहानीकार को मूल उद्देश्य है।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पठित कहानी के आधार पर निर्वासित’ कहानी की कथावस्तु अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जेठ की तपती दोपहरी में चलने वाली लू का कमरे में आने से रोकने के लिए जैसे ही राजेन की माँ ने खिड़की का शीशा बन्द किया तो वह उस समय के ख्यालों में डूब गई, जब उनके दोनों बेटे राजेन और रनधीर छोटे थे। उन दोनों को सम्भालने और घर का काम करने में जेठ की इतनी बड़ी दोपहर का भी उन्हें पता नहीं लगता था। उन्हें जरा भी फुरसत नहीं मिलती थी। अब यह दोपहर काटने में ही नहीं आती है। उन्होंने धीरे-धीरे बिना आवाज किए अपने कुछ काम निपटाए और बैठक में पहुँच गई जहाँ राजेन के बाबूजी किताब पढ़ते-पढ़ते कुर्सी पर ही सो गए थे। उन्होंने आराम से उनका चश्मा और किताब हटाई किन्तु वे जाग गए।

उनसे चाय की पूछकर वह चुपचाप रसोई में चाय बनाने पहुँच गई, किन्तु हाथ से तेल की बोतल फिसलकर गिर जाने से उनके बहू-बेटे, राजेन और रीमा की नींद खुल गई। माँ के इस प्रकार रसोई में चाय बनाने पर रीमा ने उन पर व्यंग्य कसा। उसके इस प्रकार अपने प्रेम और स्नेह पर व्यंग्य कसे जाने से आहत वे दोनों अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए। राजेन की माँ फिर पुराने दिनों के बारे में सोचने लगी जब रिटायर होने के बाद डेढ़ साल तक पैसे भेजने के बाद एक दिन राजेन ने उन्हें अपने पास रहने के लिए बुला लिया। यहाँ आकर वे दोनों पहले तो कभी-कभी अधिकारपूर्वक राजेन को बुला लेते थे किन्तु धीरे-धीरे वे शांत होते गए।

उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों और पूजा-पाठ पर बेटे-बहू ने बड़े मीठे स्वरों में रोक लगा दी। इतना ही नहीं उनके मिलने, साथ बैठने, बातें करने पर भी वे मजाक उड़ाते। इसी बीच उनका छोटा बेटा रनधीर भी वहाँ आ गया। वह बहुत ही चुलबुले स्वभाव का था। वह कुछ दिन वहीं रहा। सब साथ बातें करते, हँसते । सब ठीक चल रहा था, किन्तु एक दिन अचानक राजेन के बाबूजी ने माँ जी से कहा कि वे छोटे बेटे के साथ रहने जा रहे हैं। इस बात को सुनकर माँ जी पर तो जैसे पहाड़ टूट पड़ा। बाबूजी भी इस असह्य दर्द को चुपचाप झेल रहे थे, किन्तु उनकी आँखें सब कुछ कह रही थीं। इस प्रकार अपना बाँटा जाना किसी अपराध की सजा के जैसा लगा।

प्रश्न 2.
‘निर्वासित’ कहानी के कथा शिल्प पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
कथा वस्तु – लेखिका सूर्यबाला द्वारा लिखित ‘निर्वासित’ एक मार्मिक दु:खांत कहानी है। इस कहानी की कथावस्तु भावप्रधान कथावस्तु है, जिसमें बुजुर्ग दंपत्ति की भावनाओं का बहुत ही मार्मिक ढंग से वर्णन किया गया है। कहानी संक्षिप्त, सरल, सरस, सुगठित और प्रभावोत्पादक है। यह पाठक पर गहरा प्रभाव डालती है और साथ ही उन्हें निर्वासित होने के कष्ट से भी परिचित कराती है।

शीर्षक – कहानी का शीर्षक कथानक के अनुरूप एवं उसके सम्पूर्ण भाव एवं उद्देश्य को स्पष्ट करने में सक्षम है। इस कहानी के सभी भाव उस बुजुर्ग दंपत्ति निर्वासन के उपजे कष्ट और दुःखों पर आधारित हैं।

पात्र संयोजन – कहानी के मुख्य पात्र भी बुजुर्ग दंपत्ति और उनके पुत्र, पुत्रवधू हैं। पौत्री, पड़ोसी व जमना आदि गौण पात्र हैं। कहानी मुख्यत: वृद्ध-दंपत्ति और बड़े पुत्र व पुत्र वधू के इर्दगिर्द घूमती है।

संवाद गठन – कहानी के संवाद भी छोटे और पात्रानुकूल हैं। सूर्यबाला की संवाद योजना मार्मिक, गंभीर और सारगर्भित है;
यथा –
– सुनो मैं जा रहा हूँ छोटे के साथ
– कब?
– कल।
– क्यों
– कुछ नहीं, यों ही…काफी दिन हो गए यहाँ रहते। थोड़ा घूम-फिर आना चाहिए।
– मुझे भी तो यहाँ रहते।
– मैं आ जाऊँगा, तब तुम जाओगी।

भाषा – शैली – लेखिका सूर्यबाला ने परिस्थिति, भाव और पात्रानुकूल भाषा शैली का प्रयोग किया है। प्रस्तुत कहानी में लेखिका ने व्यंग्य और भावप्रधान शैली का प्रयोग किया है। जिससे भाषा कहीं चुटीली तो कहीं बहुत अधिक मार्मिक बन पड़ी है। साथ ही संवादों की योजना ने कथा को नाटकीयता भी प्रदान की है।

देशकाल और वातावरण – गाँव के सामान्य जीवन से शहरी और आधुनिक जीवन शैली और उनके प्रभावों की सजीव वर्णन है। इस कहानी में निर्वासन से उपजे दु:ख से पाठकों को अवगत कराया गया है। इस उद्देश्य से कथा लेखिका ने परिस्थितियों का विशेष संयोजन किया है।

उद्देश्य – प्रस्तुत कहानी में वृद्ध दंपति द्वारा अपनी इच्छाओं को दबाना और पुत्र व पुत्रवधू के अनुरूप खुद को ढालना और अलग रहने के दु:खों और कष्टों को लेखिका ने बखूबी दर्शाया है। इस कहानी के माध्यम से अपने बड़े-बुजुर्गों की पीड़ा को समझने और उनसे आत्मीय व्यवहार रखने तथा अपना सुख-दु:ख साझा करने की आयु में अलग न करने की सीख भी छिपी हुई है। इस प्रकार कहानी कथ्य और शिल्प में बेजोड़ है, भाषा सहज सरल तथा भाव सम्प्रेषण के अनुकूल है। कहानी का अंत करुणायुक्त एवं दुखांत है।

प्रश्न 3.
वर्तमान सन्दर्भो में ‘निर्वासित’ कहानी की प्रासंगिकता सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में एकाकी रहने और स्वार्थपूर्ण मानसिकता रखने वाले समाज में घर के वृद्ध दंपत्ति के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है। उनके बच्चे उनकी भावनाओं को बिना समझे और जाने उन पर अपनी मनमानी भावनाएँ थोपते हैं। इस समय जब वृद्ध दंपत्ति को एक-दूसरे के साथ और बच्चों के स्नेह की आवश्यकता होती है, बच्चे उन्हें अपनी सहूलियत और सुविधाओं के अनुसार रखते हैं। वे अपने माता-पिता को भी संपत्ति अथवा किसी वस्तु के आधार पर बाँट लेते हैं।

माता-पिता जिन्होंने उन सभी को साथ पाला-पोसा, बड़ा किया वे ही बच्चे अपने माता-पिता दोनों को एक साथ रखने में असमर्थ होते हैं और यदि वे उन्हें अपने साथ रख भी लेते हैं तो अक्सर ही उनकी आत्मीय भावनाओं का मजाक उड़ाते हैं, उन पर व्यंग्य कसते हैं, जिसके परिणामस्वरूप वृद्ध दंपत्ति खुलकर एक-दूसरे से बात करना तो दूर अपने सुख-दुख भी साझा नहीं कर पाते हैं। जिस समय पर उनके बीच सर्वाधिक बातें होनी चाहिए, उस समय पर उनके बीच एक खामोशी आ जाती है। वह बच्चों के सामने एक-दूसरे से बात करने और अपना स्नेह प्रदर्शन करने में हिचक महसूस करते हैं। बच्चे उन्हें इस तरह से अलग कर देते हैं जैसे उन्होंने कोई अपराध किया हो। वर्तमान समय में यदि दो बेटे हैं तो वे अलग-अलग माता-पिता को रखते हैं।

एक निश्चित अवधि और आवश्यकतानुसार वे पुनः उनकी अदला-बदली कर लेते हैं। अपनी सुख-सुविधाओं के मध्य वे उनकी तकलीफों को भूल जाते हैं। वे सोचते हैं कि यदि उन्हें सभी सुविधाएँ उपलब्ध करा दो तो उन्हें कोई कष्ट नहीं है। इस प्रकार वर्तमान सन्दर्भो में यह कहानी पूर्णत: प्रासंगिक है। कहानी में भी ऐसे ही बुजुर्ग दंपत्ति की व्यथा का वर्णन किया गया है, जिन्हें उनके बेटे आपस में बाँट कर एक-दूसरे से विछिन्न कर देते हैं। उनकी भावनाओं का दमन कर देते हैं। उनके स्वभाव और आदतों पर कटाक्ष करते हैं।

प्रश्न 4.
अपनों के मध्य वानप्रस्थ जीवन जीने वाले दम्पत्ति की पीड़ा, संत्रास तथा घुटन की करुण कहानी है। ‘निर्वासित’। पठित कहानी के आधार पर उक्त कथन को समझाइये।
उत्तर:
प्रस्तुत कहानी में वृद्ध दंपत्ति कहने को तो अपने बड़े पुत्र व पुत्रवधू के साथ रहते हैं, किन्तु अपने बच्चों के साथ रहते हुए . भी अकेले और निर्वासित-सा जीवन व्यतीत करते हैं। वे अपनी समस्त इच्छाओं का दमन कर देते हैं और स्वयं को अपने पुत्र व पुत्रवधू के अनुसार ढालने का प्रयत्न करते हैं। सब कुछ होने पर भी वे घुटनभरा जीवन व्यतीत करते हैं। छोटी-सी भूल पर स्वयं को अपमानित और उपेक्षित पाते हैं। उनके पुत्र व पुत्रवधू उनकी भावनाओं को बिना जाने-समझे उनकी एक-दूसरे के प्रति भावनाओं और स्नेह का मजाक उड़ाते हैं, कटाक्ष करते हैं। बच्चों के द्वारा उन पर तरह-तरह के प्रतिबंध लगाए जाते हैं। बात-बात पर उन्हें रोका-टोका जाता है। उन्हें बात-बात पर बूढ़े-बुजुर्ग कहकर सम्बोधित किया जाता है।

बच्चों के द्वारा उनके प्रति किया जाने वाला यह व्यवहार उन्हें अत्यधिक पीड़ा पहुँचाता है। बच्चों के ऐसे व्यवहार के कारण यह दंपत्ति आपस में अपने सुख-दु:ख को साझा करना तो दूर पास बैठकर बात करने में भी संकोच करते हैं जो उनके अपनों के साथ रहने पर भी होने वाले अकेलेपन की पीड़ा को बढ़ाता है। वे हर समय इस संत्रास को झेलते हैं। एक-दूसरे के साथ समय बिताने की चाह, संकोच और हिचक में सिमट जाती है। उनके साथ रहने और बात करने को बच्चे उनको मॉर्डन बनना समझ लेते हैं।

यहाँ तक कि ऐसी परिस्थितियों का निर्माण हो जाता है कि वे दोनों अपने पुराने घर जाने की चाह को पूरा करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं। बच्चों के द्वारा हर समय किसी-न-किसी बात पर उन्हें लेकर व्यंग्य करना उन्हें बहुत अखरता है। फिर भी वे अपने मन की बात एक-दूसरे से नहीं कह पाते हैं और मन ही मन घुटते रहते हैं। इतना ही नहीं उनके दोनों बेटे उनका विभाजन कर देते हैं, जो एक असहनीय पीड़ा है उनके लिए। इस प्रकार यह बुर्जुग दंपत्ति अपनों के साथ रहते हुए भी अकेले, दु:खी और घुटंनभरी जिंदगी जीते हैं।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
लेखिका ने किन शब्दों में पाठ का परिचय दिया है? लिखिए।
उत्तर:
‘निर्वासित’ कहानी वानप्रस्थी जीवन जी रहे अपने घर को त्याग बड़े बेटे के घर पर रहने वाले दम्पत्ति की दर्द भरी कहानी है। स्वयं की स्वतंत्रता को अनिच्छापूर्वक छोड़कर अपने पुत्र और पुत्रवधू की इच्छा-भावना, रुचि एवं विचारों के अनुसार स्वयं को ढालना कितना दमघोंटू और पीड़ादायक होता है। एक दूसरे के पूरक पति-पत्नी जिनका जीवन और सुख-दु:ख समान थे, दोनों को अलग करके दोनों बेटों के बीच बाँटा जाना बहुत अधिक कष्टदायी और मर्मान्तक अभिव्यक्ति थी।

प्रश्न 2.
लेखिका ने पाठ में दोपहरी का कैसा वर्णन किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
लेखिका ने दोपहरी का वर्णन करते हुए कहा कि जेठ की दोपहरी में झुलसाने वाली लू के कारण युक्लिप्टस और केजुरीना के पेड़ की पत्तियाँ सिकुड़ गई हैं, गुलाब की क्यारियों की मिट्टी दरक रही है। लॉन में चारों ओर सूखे पत्ते बिखरे पड़े हुए हैं। सूखी और गरम हवा कमरा और बरामदा पार करते हुए खिड़की से अन्दर पहुँच रही है। जेठ-बैसाख की दोपहर ऐसी ही उजाड़-वीरान और

प्रश्न 3.
खिड़की के पास खड़ी वह (राजेन की माँ) क्या सोचने लगीं?
उत्तर:
खिड़की से आती गरम हवा को रोकने के लिए खिड़की बन्द करने के बाद वह खिड़की के पास खड़ी-खड़ी उस समय की जेठ और बैसाख की दोपहरी के बारे में सोचने लगीं जब उनके दोनों बेटे छोटे थे। उस समय भी ये दोपहर इतनी ही लम्बी हुआ करती थीं किन्तु उन्हें बच्चों के पीछे दौड़ने-भागने, सम्भालने से ही फुरसत नहीं मिलती थी। दो मिनट आराम करने के लिए भी वह तरस जाती थी। दोपहर कब बीत जाती उन्हें पता ही नहीं लगता था।

प्रश्न 4.
दोपहर में अपना समय काटने के लिए वह क्या-क्या काम करती हैं?
उत्तर:
दोपहर में अपना समय काटने के लिए वह अपनी पोथी निकालकर पढ़ने लगीं। कुछ देर तक पाठ गुनगुनाने के बाद बाहर अपनी साड़ी उतारकर लायी और धीरे-धीरे उसे तह करने लगी। फिर उन्होंने अपने बटुए से अपनी माला निकाली और माला फेरने लगी। बैठे-बैठे कमर में दर्द होने लगा तो लेट गई और उन्हें पता ही नहीं लगा कब उन्हें नींद आ गई । इस प्रकार कभी कुछ, कभी कुछ करते हुए अपना समय व्यतीत करने में लगी हुई थी।

प्रश्न 5.
दोपहर में ऐसी कौन-सी घटना हुई जिससे उनके बेटे वे बहू की नींद खुल गई?
उत्तर:
दोपहर में नींद न आने पर वह बैठक में पहुँची जहाँ राजेन के बाबूजी किताब पढ़ते-पढ़ते सो गए थे। उनकी किताब और चश्मा उठाते समय उनकी नींद खुल गई तो वह उनके लिए रसोई में चाय बनाने के लिए चली गई। स्टोव में तेल खत्म हो जाने पर वह जब तेल भरने लगी तो न जाने कैसे उनके हाथ से तेल की बोतल फिसल गई और चारों ओर मिट्टी का तेल फैल गया। तेल की बोतल गिरने की आवाज सुनते ही उनके बेटे राजेन और बहू रीमा की नींद खुल गई।

प्रश्न 6.
माँ जी झेंपकर पूजा वाले कमरे की ओर क्यों चली गईं?
उत्तर:
माँ जी के हाथ से मिट्टी के तेल की बोतल गिरने की आवाज से उनके बहू-बेटे की नींद खुल गई। वे दोनों अपने कमरे में उन वृद्ध दंपत्ति के आत्मीय संबंध और स्नेह पर व्यंग्य कस रहे थे और अपने द्वारा किए जा रहे कामों का वर्णन कर रहे थे। इन बातों को सुनकर चाय बनाने का जोश ठंडा पड़ गया। वे चुपचाप बैठक की ओर जा रही थीं तभी उन्हें राजेन और बहू के जोर से हँसने की आवाज आयी तो वह झेंपकर पूजा वाले कमरे की ओर चली गईं।

प्रश्न 7.
इतना अखबार उन्होंने जीवन में कभी नहीं पढ़ा था जितना पिछले ढाई सालों में। इसका क्या कारण था?
उत्तर:
अपने रिटायर होने के डेढ़ साल बाद ही राजेन के बुलाने पर पिताजी उसके यहाँ रहने के लिए चले गए थे। यहाँ रहते हुए उनके पास कोई अन्य काम नहीं था। वह अपना अधिकतर समय अखबार पढ़कर ही व्यतीत किया करते थे। यही कारण है कि लेखिका ने उनके अखबार पढ़ने के विषय में यह बात कही कि इतना अखबार उन्होंने जीवन में कभी नहीं पढ़ा था जितना पिछले ढाई सालों में ।

प्रश्न 8.
एक दिन बहू ने उन्हें समझाते हुए क्या कहा?
उत्तर:
एक दिन उनकी बहू ने आकर उन्हें बड़े मीठे ढंग से समझाते हुए कहा, माँ जी जरा बाबूजी से कहिएगा, इतनी जोर से पाठ न किया करें। वहाँ घर की बात और थी, यहाँ आस-पास सभी आफिसर्स रहते हैं और फिर भगवान तो सब जगह हैं, देखिए न, कबीरदास ने भी कहा है-ता चढ़ि मुल्ला बांग दे क्या बहिरा हुआ खुदाय। आप और बाबूजी मन-मन में पूजा कर लिया कीजिए, ये गुस्सा होते हैं।

प्रश्न 9.
आप लोग भी चाहें तो बैठे, बाबूजी! राजेन के इस कथन में क्या संकेत छिपा हुआ था?
उत्तर:
भोजन करने के बाद राजेन ने रनधीर को बात करने के लिए रोक लिया। माँ और बाबूजी भी वहीं उनके पास बैठे हुए थे, जिसके कारण वे सब आपस में खुलकर बात करने में असहज महसूस कर रहे थे। उन दोनों को वहाँ से सीधे तौर पर उठकर जाने के लिए कहना उचित नहीं था। अत: राजेन ने उनसे संकेत में उठकर जाने का इशारा किया कि वे लोग चाहें तो बैठे अर्थात् आप लोग भी उठ कर अपने-अपने कमरे में चले जाएँ।

प्रश्न 10.
बाहर उनके दोनों बेटे और बड़ी बहू किस बात पर खिलखिलाकर हँस रहे थे?
उत्तर:
उन दोनों के उठकर आते ही राजेन की बहू ने रनधीर को उनके आपसी व्यवहार, आत्मीयता और स्नेह के विषय में बताते हुए उनकी भावनाओं का मजाक उड़ाते हुए बोली पिताजी तो माँ को बिलकुल मॉर्डन बनाना चाहते हैं। राजेन ने उसकी बात पर विरोध किया फिर भी उसका उन दोनों के आपसी स्नेह पर तंज कसना बंद नहीं हुआ। साथ ही वह अपने प्रति ऐसा व्यवहार न करने के लिए राजेन को छेड़ती है और सब खिलखिलाकर हँसने लगते हैं।

प्रश्न 11.
राजेन की माँ का मन पूजा करने में क्यों नहीं लग रहा था?
उत्तर:
राजेने की माँ जब पूजा कर रही थी तबे डाइनिंग रूम से बाबूजी की अपने बच्चों के साथ घुल-मिलकर बात करने और हँसने की आवाजें सुनकर उनका ध्यान पूजा में नहीं लग रहा था। उनका मन उन्हीं लोगों पर था। वह आज ज्यादा खुश और मुक्त थे और बच्चों की बातों में खूब आनंद ले रहे थे। इससे भी ज्यादा खुशी उन्हें अपने बेटों के मुँह से ‘बाबूजी’ शब्द सुनकर हो रही थी। इन सब बातों के कारण पूजा करते हुए भी वह बीते समय को याद करने लगी जब उनके बेटे जीतकर आने की बातें अपने पिता को सुनाते थे।

प्रश्न 12.
ऐसी क्या बात हुई जिसने उन दोनों को अन्दर तक झकझोर दिया?
उत्तर:
डाइनिंग रूम से अन्दर आकर बाबूजी ने उन्हें अपने छोटे बेटे रनधीर के साथ उसके घर जाने की बात बताई। उन्होंने कहा कि वह वहाँ अकेले जाएँगे और उन्हें (राजेन की माँ को) यहाँ बड़े बेटे के पास रहना होगा। इस अप्रत्याशित बात ने उन दोनों को ही अन्दर तक झकझोर दिया। एक-दूसरे के बिना रहने की कल्पना ने ही उन्हें अन्दर तक तोड़ दिया। यहाँ दोनों के बीच खामोशी थी, किन्तु साथ तो थे। दोनों के लिए यह असहनीय पीड़ा थी।

RBSE Class 12 Hindi मंदाकिनी Chapter 3 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
बुजुर्गों का परिवार में क्या महत्त्व है? वर्तमान समय में उनकी भयावह स्थिति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
परिवार में वृद्धों को बुजुर्ग कहा जाता है, फिर चाहे वह हमारे वृद्ध माता-पिता हों अथवा दादा-दादी। परिवार के बुजुर्ग परिवार के लिए नींव के पत्थर के समान होते हैं जिस पर परिवाररूपी प्रासाद टिका रहता है। हमारे बुजुर्ग हमारी धरोहर हैं। बुजुर्गों की आयु और उनके अनुभव परिवार के अन्य सदस्यों की अपेक्षा बहुत अधिक होते हैं, जिनकी आवश्यकता परिवार को कदम-कदम पर पड़ती है। इनकी उपस्थिति परिवार को सदैव चिन्ता और तनाव से दूर रखती है।

हमारे देश में सदियों से संयुक्त परिवार की परम्परा को महत्त्व दिया जाता रहा है। समाज में प्रचलित विभिन्न रिवाजों और परम्पराओं की जानकारी हमें परिवार के बड़े-बुजुर्गों से ही प्राप्त होती है। यदि परिवार में बुजुर्ग न हों तो हम बहुत से रिवाजों से अछूते रह जाएँ। सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने का काम भी परिवार के वृद्धजन ही करते हैं। परिवार के छोटे बालकों को सम्हालने से लेकर बड़े सदस्यों को सलाह देने का कार्य यह बुजुर्ग ही करते हैं।

किन्तु वर्तमान की आधुनिक समस्या-नगरों के बढ़ते आकार, सिकुड़ते घर व संकुचित होती मानसिकता ने बुजुर्गों को अकेले और निर्वासित जीवन जीने को मजबूर कर दिया है। घर के वृद्ध दम्पत्ति या तो अकेले जीवन-यापन करते हैं या उनकी संतान उन्हें विभाजित करके अलग-अलग जीवन यापन करने को मजबूर कर देती है। युवा पीढ़ी भौतिक सुखों तथा अपने सपनों को साकार करने के लिए वृद्ध दंपत्ति की भावनाओं और सपनों की परवाह तक नहीं करती। आज का युवा बुजुर्गों को घर की शान, मान तथा अनमोल धरोहर समझने के स्थान पर उन्हें भार समझने लगा है और उनसे कटने लगा है।

प्रश्न 2.
वृद्ध माता-पिता के प्रति संतान के दायित्वों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य का जीवन अनेक उतार-चढ़ावों से होकर गुजरता है। उसकी नवजात शिशु अवस्था से लेकर विद्यार्थी जीवन, फिर गृहस्थ जीवन और अंतत: मृत्यु तक वह अनेक प्रकार के अनुभवों से गुजरता है। अपने जीवन में वह अनेक प्रकार के कार्यों व उत्तरदायित्वों का निर्वाह करता है। परंतु अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्य व उत्तरदायित्वों को वह जीवनपर्यन्त नहीं चुका सकता। माता-पिता से सन्तान को जो कुछ प्राप्त होता है वह अमूल्य है। माता की ममता व स्नेह तथा पिता को अनुशासन किसी भी मनुष्य के व्यक्तित्व निर्माण में सबसे प्रमुख भूमिका रखते हैं। अत: संतान का अर्थात् हमारा उनके प्रति यह दायित्व बनता है कि हम अपनी मेहनत, लगन और परिश्रम के द्वारा उच्चकोटि के कार्य करें, जिससे हमारे माता-पिता का नाम गौरवान्वित हो।

हम संदैव यह ध्यान रखें कि हमसे ऐसा कोई कार्य न हो जिससे हमारे माता-पिता को लोगों के सम्मुख शर्मिंदा होना पड़े। आज की भौतिकवादी पीढ़ी में विवाहोपरांत युवक अपने निजी स्वार्थों में इतना लिप्त हो जाते हैं कि वे अपने बूढे माता-पिता की सेवा तो दूर अपितु उनकी उपेक्षा करना प्रारंभ कर देते हैं। यह निस्संदेह एक निंदनीय कृत्य है। उनके कर्मों व संस्कारों का प्रभाव भावी पीढ़ी पर पड़ता है। यही कारण है कि समाज में नैतिक मूल्यों का ह्यसे हो रहा है। टूटते घर-परिवार व समाज सब इसी अलगाववादी दृष्टिकोण के दुष्परिणाम हैं।

अतः जीवनपर्यंत मनुष्य को अपने माता-पिता के प्रति कर्तव्यों के उत्तरदायित्वों का निर्वाह करना चाहिए। माता-पिता की सेवा सच्ची सेवा है। उनकी सेवा से बढ़कर दूसरा कोई पुण्य कर्तव्य नहीं। हमारे माता-पिता हमारी खुशियों व उन्नति के लिए अपने समस्त सुखों का परित्याग तक कर देते हैं। अत: हमारा यह परम दायित्व बनता है कि हम उन्हें पूर्ण सम्मान प्रदान करें और जहाँ तक संभव हो सके, खुशियाँ प्रदान करने की चेष्टा करें।

प्रश्न 3.
बुजुर्गों के प्रति युवा पीढ़ी (वर्ग) का क्या नजरिया होता है? युवा वर्ग और बुजुर्गों की सोच और व्यवहार में अंतर भी स्पष्ट करें। इस अंतर को किस प्रकार दूर किया जा सकता है?
उत्तर:
प्रत्येक संतान की सफलता-असफलता प्राप्त करने में या चरित्र निर्माण करने में माता-पिता के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है, यदि संतान की सफलता का श्रेय माता-पिता को मिलता है तो उसके चारित्रिक पतन या उसके व्यक्तित्व विकास के अवरुद्ध होने के लिए भी माता-पिता ही उत्तरदायी होते हैं। 
किन्तु आज का युवा वर्ग कुछ भिन्न प्रकार से अपनी सोच रखता है। वह सफलता का श्रेय सिर्फ अपनी मेहनत और लगन को देता है और असफलता के लिए बुजुर्गों को दोषी ठहराता है, आज के युवा के लिए बुजुर्ग व्यक्ति घर में विद्यमान मूर्ति के समान होता है, जिसे 

सिर्फ दो वक्त की रोटी, कपड़ा और दवा-दारू की आवश्यकता होती है, उसके नजरिये के अनुसार बुजुर्ग लोग अपना जीवन जी चुके होते हैं, उनकी आवश्यकताएँ, इच्छाएँ और भावनाएँ सब सीमित हैं, अब उन्हें सिर्फ मृत्यु का इंतजार है। आज का युवा अपने बुजुर्ग के तानाशाही व्यक्तित्व के आगे झुक नहीं सकता, सिर्फ बुजुर्ग होने के कारण उसकी अतार्किक बातों को स्वीकार कर लेना उसके लिए असहनीय होता है, परन्तु यह बात बुजुर्गों के लिए कष्टसाध्य होती है क्योंकि उन्होंने अपने बुजुर्गों को शर्तों के आधार पर सम्मान नहीं दिया था और न ही उनकी बातों को तर्क की कसौटी पर तौलने का प्रयास किया था, उन्हें आज की पीढ़ी का व्यवहार उदंडता प्रतीत होता है। समाज में आ रहे बदलाव उन्हें विचलित करते हैं।

इन सब मतभेदों को दूर करने के लिए आवश्यक है कि बुजुर्ग पीढ़ी अपनी संतान के मन को समझे क्योंकि आज के भौतिकवादी युग में यह संभव नहीं है कि अपने पुत्र को उसके कर्तव्यों की लिस्ट थमाते रहें और स्वयं निक्रिष्य रहें। इसके विपरीत बुजुर्गों को चाहिए कि वह संतान के दु:ख में भागीदार बने न कि उसके दोष गिनाए। परिवार में विपत्ति के समय उचित सलाह देने पर बुजुर्ग का सम्मान बढ़ जाता है, परिवार में उसकी स्थिति उपयोगी बन जाती है। उसे आत्मसंतोष मिलता है, वह आत्मसम्मान से ओत-प्रोत रहता है उसे स्वयं को परिवार पर बोझ होने का बोध नहीं होता।

प्रश्न 4.
हमें बुजुर्गों के प्रति कैसा रवैया अपनानी चाहिए? निर्वासित’ पाठ के आधार पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
माता-पिता सदैव अपनी संतान को सुखी और उन्नत देखाना चाहते हैं। उसके विकास और उन्नत जीवन के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देते हैं। इसके विपरीत वही संतान उन्हें बोझ समझती है। घर के किसी वस्तु और संपत्ति की भाँति उनका बँटवारा कर देती है। उसकी भावनाओं और इच्छाओं का तिरस्कार करती है। प्रस्तुत कहानी में भी इस दंपत्ति ने अपने बच्चों के पालन-पोषण में अपना रात-दिन का चैन और आराम सब-कुछ गॅवाया, उन्हें जीवन में सफल बनाया। उन्हीं बेटों ने उन्हें उस अवस्था में विभाजित कर दिया जब उन्हें उनकी सर्वाधिक आवश्यकता थी। यह दंपत्ति अपने परिवार के साथ रहते हुए भी सदैव निर्वासित होने का दंश झेलता रहा, किन्तु कभी शिकायत नहीं की।

जब उन्हें आपस में बैठकर सर्वाधिक समय बिताना चाहिए था, उस समय बहू-बेटे के कटाक्ष और व्यंग्य के चलते उन्होंने आपस में बात तक करना बंद कर दिया। उनके दोनों बेटों ने अपनी सहूलियत के अनुसार उनका बँटवारा कर लिया, किन्तु इस बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया कि उनके इस फैसले से उनके बुजुर्ग माता-पिता को कितना गहरा आघात लगा। यह बहुत गलत व्यवहार है। संतान को चाहिए कि वह अपने बुजुर्गों के प्रति बहुत ही संवेदनशील रवैया अपनाए। उनकी भावनाओं को समझे न कि उनका मजाक उड़ाए और उन पर कटाक्ष करे। उनके साथ बैठकर समय बिताए।

अपने अनुभवों को उनके साथ बाँटे और उनके अनुभवों को अपनी आवश्यकतानुसार ढालकर अपने जीवन को सफल बनाए। इस अवस्था में माता-पिता को अपनी सन्तान के प्यार और अपनेपन की आवश्यकता के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ की भी आवश्यकता होती है। अत: संतान को कभी भी उन्हें एक-दूसरे से विलगित करके जीवन-यापन करने के लिए मजबूर नहीं करना चाहिए क्योंकि यही वह समय होता है जब वे बीते समय की मधुर स्मृतियों को याद करके पुन: जीते हैं। अत: हमें चाहिए कि हम अपने माता-पिता से आत्मीयता और सम्मान का व्यवहार करें और कोशिश करें कि कभी भी उनके दु:खों का कारण न बनें।

प्रश्न 5.
‘निर्वासित’ कहानी की लेखिका ‘सूर्यबाला’ का जीवन-परिचय लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानी की सशक्त लेखिका सूर्यबाला का जन्म 25 अक्टूबर 1943 को उत्तरप्रदेश के बनारस में हुआ था। इनके आज तक 150 से ज्यादा उपन्यास, कहानियाँ और व्यंग्य आदि प्रकाशित हो चुके हैं। इनका प्रथम उपन्यास ‘मेरे सन्धि पत्र’ सन् 1975 ई. में प्रकाशित हुआ। जीवन की विविध परिस्थितियों को परखने वाली लेखिका के पास गाँधीवादी दृष्टि है।

रचनाएँ –

कहानी संग्रह – कात्यायनी संवाद, मुंडेर पर, एक इन्द्रधनुष, दिशाहीन, साँझवाती, गृह प्रवेश, थाली भर चाँद, मानुष गंध।
उपन्यास – सुबह के इन्तजार तक, अग्निपंखी, यामिनीकथा, दीक्षान्त।
व्यंग्य – धृतराष्ट्र टाइम्स, झगड़ा निपटारक दफ्तर, अजगर करे न चाकरी।
धारावाहिक – पलाश के फूल, न किन्नी ना, सौदा दुआओं के, एक इन्द्रधनुष, जुबैदा के नाम, निर्वासित, रेस।

सम्मान और पुरस्कार – साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट लेखन के लिए कथाकार सूर्यबाला को कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। घनश्याम दास पुरस्कार, सराफ पुरस्कार, प्रियदर्शिनी पुरस्कार तथा काशी नागरी प्रचारिणी सभा, दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, मुम्बई विद्यापीठ आरोही, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सतपुड़ा संस्कृति परिषद आदि कई संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया गया।

पाठ – सारांश :

‘निर्वासित’ लेखिका सूर्यबाली द्वारा रचित एक ऐसे वानप्रस्थी दंपत्ति की दु:खांत कहानी है जो अपने घर को छोड़कर अपने बड़े बेटे और बहू के साथ रहते हैं। वे अपनी इच्छाओं को त्यागकर बहू व बेटे के अनुसार ढालने का प्रयास करते हैं। इस प्रयास में वे अनेक कष्टों का अनुभव करते हुए जीवन व्यतीत करते हैं, किन्तु अंत में उनका दु:ख तब असीम हो जाता है जब उनके बेटे उनका बँटवारा कर लेते हैं।

तपती गर्मी की एक दोपहर को खिड़की से आती लू को रोकने के लिए राजेन की माँ ने खिड़की बन्द की और उन दिनों की जेठ की दोपहरी के बारे में सोचने लगी, जब उनके दोनों बेटे राजेन और धीरू छोटे थे। उन दिनों समय कब और कैसे बीत जाता था उन्हें पता भी नहीं लगता था। दो मिनट ठीक से झपकी भी नहीं ले पाती थी, वो। लेकिन अब समय है कि गुजरने में नहीं आता है। नींद न आने और गर्मी से व्याकुल होकर वह अपने छोटे-छोटे काम निपटाने लगती हैं।

उनके बेटे-बहू सो रहे थे और पूरे घर में कूलर की आवाज गूंज रही थी। जब वह बैठक में पहुँची तो देखा राजेन के पिता किताब पढ़ते-पढ़ते आराम कुर्सी पर ही सो गए थे। उन्होंने आराम से उनकी किताब उठाई और जब चश्मा उतार रही थीं तो वह भी जाग गए वह उनके लिए चाय बनाने के लिए रसोई गई तो स्टोव में तेल झलते समय मिट्टी के तेल की बोतल नीचे गिर गई। बोतल गिरने की आवाज से उनके बहू-बेटे भी जाग गए। उनकी बहू उनकी इस हरकत पर उनके बेटे और अपने पति से मजाक के स्वर में ताने कसंती हुए उस बुजुर्ग दंपत्ति को बूढ़े लोग कहकर पुकारती है और उन्हें काम को बढ़ाने वाला कहती है।

बहू के मुँह से ऐसे शब्द और कटाक्ष सुनकर उनकी आँखें भर आईं। रीमा ने राजेन से माँ और बाबूजी के स्नेह पर कटाक्ष किया, जिसे सुनकर वह झेंपते हुए पूजा के कमरे में चली गई और बाबूजी चाय की खाली प्याली रखकर चुपचाप सिर झुकाए बैठक में चले गए। एक बार के लिए उन्होंने सोचा भी कि जमना से माँ जी के बारे में पूछ लें, लेकिन रुक गए और अखबार पढ़ते-पढ़ते सोचने लगे।

उनके रिटायर्ड होने के डेढ़ साल बाद ही वे दोनों राजेन के पास आ गए थे। डेढ़ साल तक तो राजेन उन्हें पैसे भेजता रहा, किन्तु बाद में उसने उन्हें अपने पास बुलवा लिया। वहाँ जाने से पहले उन दोनों के मन में बहुत उथल-पुथल थी। अंतत: दोनों ने जाने का निश्चय कर लिया और माँजी ने अपना सारा-पुराना सामान बाँध लिया और फिर भी कुछ छूट गया। अपना पूरा घर किराए पर उठाकर दोनों, राजेन के पास पहुँच गए। राजेन के पास जाने से दो महीने पहले ही उनके छोटे बेटे रनधीर ( धीरु) की नौकरी लगी थी। माँ को अपने साथ इतना सारा-सामान लाया देखकर राजेन और रीमा बड़बड़ाने लगे और सारा सामान स्टोर रूम में टाँड पर चढ़ा दिया। माँ जी की अपेक्षा बाबूजी अधिक साहसी थे और वे अक्सर आस-पड़ोस में या पार्क में टहलकर अपना मन लगाने की कोशिश करते।

पूजा-पाठ करते रहते थे। उनकी तेज आवाज में पाठ करने की वजह से कभी-कभी रीमा और राजेन को अपने मेहमानों के सामने असहजता महसूस होती थी। रीमा के इस बारे में माँजी से कहने पर उन्होंने बाबूजी को समझा दिया। साथ ही राजेन भी बाबूजी को उसके दोस्तों के सामने बाहर बैठने से मना कर दिया। इस प्रकार दोनों माँ-बाबूजी को समझाकर बाहर चले गए। उनके जाने के बाद माँ-बाबूजी दोनों में बातचीत तो हुई किन्तु कुछ नपे-तुले शब्दों में, लेकिन वे शब्द भी बहुत गहरी संवेदना लिए हुए थे। इसी बीच माँ जी ने बाबूजी से एक बार अपने पुराने घर जाने की बात कही लेकिन बाबूजी ने कहा कि अगर जाएँगे तो ठहरेंगे कहाँ, क्योंकि पूरा घर तो वे किराए पर उठा आए थे और फिर उन दोनों के बीच एक अजीब सी चुप्पी पसर गई।

अगली सुबह रनधीर के आने का तार मिला, राजेन स्वयं जाकर उसे लेकर आया। अपने बचपन से ही चुलबुले और शरारती स्वभाव वाले रनधीर ने आते ही पूरे घर में हँसी का माहौल बना दिया। दोनों भाइयों में बहुत देर तक अपने कामों के विषय में बात होती रही। माँ बाबूजी दोनों आराम करने का बहाना करके अपने-अपने कमरे में तो आ गए, किन्तु दोनों को नींद कहाँ थी। बाहर बैठे दोनों बेटे और बड़ी बहू उन दोनों के आपसी प्रेम, स्नेह और एक दूसरे की चिन्ता करने की आदतों का मज़ाक बना रहे थे। उधर उन दोनों की आँखों से नींद गायब थी। दोनों मन ही मन दु:खी थे किन्तु अपने मन को दु:ख एक-दूसरे के सामने प्रकट भी नहीं कर पा रहे थे। सुबह होते ही रनधीर ने फिर सबको हँसाना शुरू कर दिया। वह जमना को उसकी शादी की बात लेकर छेड़ने लगा।

इस हँसी-मजाक के बीच जब कभी रनधीर और राजेन उन्हें बाबूजी कहकर बुलाते तो माँ का मन प्रसन्नता से भर उठता। राजेन के ऑफिस जाने के बाद उन्होंने इस बात पर बाबूजी को छेड़ा तब बाबूजी ने उन्हें छोटे बेटे रनधीर के साथ उसके घर जाने की बात कही जिसे सुनकर उन्हें गहरा आघात लगा। वह उनसे अलग होने के भय से काँप गईं और उनसे जाने का कारण व आने का समय पूछने लगी। बाबूजी ने उन्हें बताया कि जब बेटे दो हैं तो एक अकेला उनका बोझ क्यों उठाए। अत: वह छोटे के पास जा रहे हैं और रीमा की बेटी के बड़ी होने तक उन्हें यहाँ रहना होगा। उसके बाद छोटी बहू की डिलीवरी के समय वह छोटे बेटे के पास चली जाएँगी और वे यहाँ आ जाएँगे।

इस प्रकार अलग किए जाना उनके लिए किसी बिना किए अपराध की सजा के समान था। दोनों की आँखों और मन में गहरी पीड़ा थी। जिसे देखकर किसी का भी मन बेचैन हो जाए। वे माँ जी से उनका सामान तैयार करके रखने की बात कहकर अपना अखबार पकड़े चुप खड़े हो गए। उस समय भी उन दोनों के बीच एक अत्यंत दर्द भरी खामोशी थी और निर्वासित होने का यह दर्द उनकी आँखों से स्पष्ट झलक रहा था।

कठिन शब्दार्थ 

(पा.पु.पृ. 16) ढालना = किसी के व्यवहार के अनुसार स्वयं को बदलना। दमघोंटू = दम घोंटने वाला, घुटन से भरा हुआ। पीड़ादायक = कष्ट देने वाला। साझा = समान। बाण-बिद्ध = बाणों से बिंधा हुआ। क्रौंच = एक पक्षी। युगल = जोड़ा। मूक = खामोश। पीड़ा = दु:ख। मर्मान्तक = मारक। निर्वासित = निष्कासित। संवेदना = भावनाएँ। ऊब = बोरियत। मनहूसियत = अकल्याणकारिता। खिसक जाना = निकल जाना। दुपहरी = दोपहर । वक्त = समय। उढ़के हुए = बन्द। खामोशी = सन्नाटा। दबे पाँव = चुपके से। उठेगे-उठेगे = अजीब तरीके से।

(पा.पु.पृ. 17) अपराधिनी = दोषी। दयनीय = दया की पात्र। जमना = रसोइया। बेकार = बेवजह। तकलीफ = कष्ट। उचाट = परेशान। आँखें भरभरा आना = आँसू होना, आँखों में आँसू आ जाना। उत्साह = जोश। खिलखिलाना = जोर से हँसना। झेंपकर = शरमाकर। फील करना = महसूस करना। किचेन = रसोई। कटाक्ष = व्यंग्य।

(पा.पु.पृ. 18) मुद्रा = अवस्था, स्थिति। गौण = निम्न। अरदली = नौकर। सुराज = अच्छा राज्य। फायदे = नियम। हूक = टीस। अकाट्य = न काटे जाने योग्य। परतंत्रता = गुलामी। हिचक = संकोच। कलेजे पर हथौड़ा मारना = मन को ठेस पहुँचाने वाली बात कहना। तकलीफ = परेशानी। कृतज्ञता = धन्यवाद। अर्पित करना = देना। खीझना = खिसियाना। संयत = ठहरे हुए।

(पा.पु.पृ. 19) झेपना = लज्जित होना। खैर = कोई बात नहीं। हकबकी देखना = आश्चर्यचकित होना। फिकरा कसना = ताने देना। मन रमाना = मन लगाना। एकाधबार = कभी-भी। बड़प्पन = बड़े होने का एहसास। ढंग = तरीके से। चढ़ि = चढकर। बहिरा = बहरा। खुदाय = खुदी। निरुत्तर = उत्तर देने में असमर्थ। आश्वासन देना = विश्वास दिलाना। उज़ = हर्ज, तकलीफ। असल = वास्तव। ड्रिंक्स = शराब पीना। स्मोक = सिगरेट पीना।

(पा.पु.पृ. 20) सर्र-से = तेजी से। अस्फुट = अस्पष्ट। ध्वनि = आवाज। अहसास = भावनाएँ। सहज = सामान्य। गहरे = गहन, गंभीर। विस्तृत = विशाल। गुमसुमी = उदास। एकाएक = अचानक। अटकती = रुक-रुक कर। उसाँस = निश्वास। हुकुम = आदेश। भार = वजन। ठाठ = शान। ठाले = खाली।

(पा.पु.पृ. 21) असिस्टेंट = सहायक कर्मचारी। घाघ = दाँवबाज, चालक एवं धूर्त। कस्टमर्स = ग्राहक। ओहदा = पद। अन्दरूनी = भीतरी। फर्क = अंतर। दम = ताकत (धन)। ठंडा लहजा = बेमन से। मुक्ति = आज़ादी। घुल-घुल कर बतियाना = आत्मीयता से बात करना। मॉडर्न = आधुनिक। फायदा = लाभ। नुकसान = हानि। ऑबजेक्शन = परेशानी, समस्या। नाउ = अब। शी = वह। परफेक्टली = बिल्कुल। ऑलराइट = ठीक, स्वस्थ। चपट = चाँटा। स्तब्ध = चौंककर। अपलक = बिना पलक झपकाए।

(पा.पु.पृ. 22-23) चिबिल्ला = शरारती। बाबत = संबंधी। कुलबुलाना = हँसाना । रस लेना = आनन्द लेना। पुलकित होना = प्रसन्न होना। निहाल करना = खुश करना। ठहाके = जोर से हँसने की आवाज। ठट्ठे करनी = हँसी-मजाक करना। दृष्टि = नजर। अप्रत्याशित = अनपेक्षित। भयाक्रान्त = बहुत अधिक भयभीत। चकनाचूर होना = पूरी तरह टूट जाना। संयम = धैर्य। आवेग = भाव। असहाय = कमजोर। अथाह = बहुत गहरा।

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