RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 सेव और देव (कहानी)

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 सेव और देव (कहानी)

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार कौन लोग अविनयी हो सकते हैं?
(क) क्षुद्र व्यक्ति
(ख) दुष्ट व्यक्ति
(ग) शिक्षित व्यक्ति
(घ) अशिक्षित व्यक्ति
उत्तर:
(क) क्षुद्र व्यक्ति

प्रश्न 2.
प्रोफेसर गजानन किस विषय के प्रोफेसर हैं?
(क) इतिहास
(ख) प्राचीन इतिहास और पुरातत्व
(ग) भूगोल
(घ) प्राचीनतम सभ्यता
उत्तर:
(ख) प्राचीन इतिहास और पुरातत्व

प्रश्न 3.
अज्ञेय ने कितने तार सप्तकों का सम्पादन किया?
(क) एक
(ख) दो
(ग) चार
(घ) तीन
उत्तर:
(ग) चार

प्रश्न 4.
लेखक किसकी उपेक्षा पर दुःख व्यक्त करता है?
(क) मानवत्व
(ख) देवत्व
(ग) दानवत्व
(घ) राक्षसत्वे
उत्तर:
(ख) देवत्व

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रोफेसर साहब कहाँ घूमने जाते हैं और क्यों?
उत्तर:
प्रोफेसर साहब कुल्लू पहाड़ पर घूमने आये थे। वे पुरातत्व की खोज के लिए आये थे। भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष और हिन्दू-काल की शिल्प-कला के नमूने देखने आये थे।

प्रश्न 2.
मन्दिर में उपेक्षित देवी की मूर्ति को देखकर वे क्या सोचते हैं?
उत्तर:
प्रोफेसर सोचने लगे यह मूर्ति पाँच सौ वर्ष से कम पुरानी नहीं होगी। तीन-चार हजार में बिकती। किसी पारखी के पास होती तो दस हजार में बिकती इस पर कितनी बलियाँ चढ़ी होंगी। अब इस पर कीड़े चल रहे हैं।

प्रश्न 3.
अज्ञेय पहाड़ी बालक को चाँटे क्यों लगाते हैं?
उत्तर:
लड़के ने सेव के बगीचे में से सेब चुराये थे। उन्हें लगा कि यह लड़का उस सारी प्राचीन आर्य सभ्यता को एक साथ ही नष्ट-भ्रष्ट किए दे रहा है। इसलिए चाँटे लगाए।

प्रश्न 4.
अज्ञेय का पूरा नाम बताते हुए उनके प्रसिद्ध उपन्यासों का नाम बताइए।
उत्तर:
अज्ञेय का पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ है। शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनवी उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रोफेसर गजानन देवी मूर्ति उठाकर ओवरकोट में रखकर चलते समय क्या सोचते हैं?
उत्तर:
उनका हृदय आह्लाद से भर रहा था, वे सोचने लगे उनका पहला दिन कितना सफल हुआ है। कितना सौन्दर्य उन्होंने देखा था और कितना सौन्दर्य, बहुमूल्य सौन्दर्य, उन्होंने पाया था। कुल्लू का अनिर्वचनीय सौन्दर्य ! वास्तव में वह देवताओं का अंचल है।

प्रश्न 2.
सेव तोड़ने वाले लड़के को पीटने के बाद उनके मन में क्या विचार आते हैं? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रोफेसर साहब लड़के को पीटने के बाद आगे बढ़ते हुए सोच रहे थे कि वह खड़ा-खड़ा देख रहा होगा कि चोरी भी की तो फल नहीं मिला। बहुत अच्छा हुआ सेवों का सड़ जाना अच्छा, चोर को मिलना अच्छा नहीं। चोर को क्या हक है?

प्रश्न 3.
राजपूती बाला को देखकर अज्ञेय के मन में पहाड़ी ग्रामवासियों के विषय में क्या विचार उत्पन्न हुए?
उत्तर:
प्रोफेसर साहब सोचने लगे, कितने सीधे-सादे सरल स्वभाव के होते हैं यहाँ के लोग। प्रकृति की सुखद गोद में खेलते हुए इंन्हें न फिक्र है न लोभ-लालच है। अपने खाने-पीने, ढोर चराने, गाने-बजाने में दिन बिता देते हैं। अपने आप में लीन रहने वाले इन भोले प्राणियों को बाहर वालों से क्या सरोकार ?

प्रश्न 4.
लोभ-लालच कुछ समय के लिए मन को विचलित कर सकते हैं परन्तु अन्त में नैतिक भाव ही विजयी होते हैं। संकलित कहानी के सन्दर्भ में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
देवी की मूर्ति को देखकर प्रोफेसर के मन में लोभ उत्पन्न हो गया। मूर्ति लगभग पाँच सौ वर्ष पुरानी है। किसी अच्छे स्थान पर इसे होना चाहिए जहाँ इसकी पूजा हो सके। यदि इसे बेचा जाय तो दस हजार से कम नहीं बिकेगी। यही सोचकर प्रोफेसर मूर्ति को ओवरकोट में छिपाकर ले जाते हैं। किन्तु सेव चुराने वाले लड़के को डाँटकर उन्हें यह अनुभव होता है कि इसने तो सेव ही चुराए हैं तुम तो बहुमूल्य सम्पत्ति चुराकर ले जा रहे हो। वे लौटकर मूर्ति उसी स्थान पर रख आते हैं। थोड़ी देर के लिए उनके मन में लोभ छाया किन्तु नैतिकता के आधार पर वे मूर्ति को मन्दिर में ही रखकर आ गये। लोभ-लालच में मन थोड़ी देर ही विचलित होता है पर अन्त में नैतिकता की ही विजय होती है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
अज्ञेय कहानी कला की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय हिन्दी की नई कहानी लेखक के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपने कहानी कला में निपुणता प्राप्त की है। क्रान्ति, अशोक, अन्तर्द्वद्व, मनोविश्लेषण और सामाजिक चेतना के नये स्वर इनकी कहानियों में मिलते हैं। इनकी कहानियों को दो वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। एक तो राजनीतिक विद्रोह की चिनगारियाँ प्रज्ज्वलित करने वाली और दूसरी सामाजिक जिनमें भारतीय समाज व जीवन के चित्र का रंग भरकर प्रस्तुत किए गए हैं। इनमें अन्तर्मुखी मनोवृत्तियों को अभिव्यक्त करने की अपूर्व क्षमता है। विपथगा, कोठरी की बात, परम्परा और जयदोल इनके कहानी संग्रह हैं।

अज्ञेय की कहानियाँ बड़ी प्रभावशाली हैं। प्रभावशाली ढंग का एक उदाहरण उनकी रोज कहानी में मिलता है। इसमें लेखक ने प्रतिदिन के असंख्य उदाहरणों से एक सुन्दर, प्रभावशाली और महत्त्वपूर्ण नमूना छाँटकर सामने रख दिया है कि साधारण मनुष्यों का जीवन कितना भार रूप और कितना ऊबे पैदा करने वाला होता है। इस कहानी में लेखक ने इस भारग्रस्त जीवन के प्रति कठोर उपेक्षा का भाव न दिखाकर सहानुभूति को प्रकट किया है। सेव और देव कहानी मनोविश्लेषणात्मक कहानी है। प्रोफेसर के मन को अन्तर्द्वन्द्व दर्शनीय है। मूर्ति को उठाने से पूर्व उनके मन में कई विचार आते हैं और जब वे मूर्ति रखने जाते हैं उस समय भी उनके मन में द्वन्द्व होता है। लेखक ने बड़ी सावधानी से प्रोफेसर के मन का चित्रण किया है। उनकी मनोवैज्ञानिक कहानियों में इसी प्रकार का अन्तर्द्वन्द्व दर्शनीय है।

प्रश्न 2.
‘सेव और देव’ कहानी की मूल संवेदना अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
सेव और देव कहानी के माध्यम से अज्ञेय ने जहाँ एक ओर यह स्पष्ट संकेत दिया है कि नैतिक मूल्यों की स्थिति स्वतः स्फूर्त होती है, आरोपित नहीं की जा सकती है। वहीं यह भी व्यक्त किया है कि मनुष्य की आस्था उसे अधिक नैतिक बल देती है। देव मूर्तियों के प्रति विशेष रुचि एवं आस्था रखने वाले प्रोफेसर अपने व्यक्तित्व से यह सिद्ध कर देते हैं कि आस्था में बहुत बड़ी शक्ति होती है। प्रोफेसर बालक को सेव चुराकर तोड़ने पर डाँटते हैं और स्वयं देव मन्दिर में पड़ी अनुपम मूर्ति को चुराकर ले जा रहे हैं। लेकिन उनके मन ने उन्हें नैतिक मूल्य के आधार पर मूर्ति मन्दिर में ही रखने के लिए विवश कर दिया और वे मूर्ति को मन्दिर में ही रख आते हैं। मन्दिर, है जिसमें देवता विराजमान हैं, इस कारण प्रोफेसर बूट खोलकर अन्दर जाते हैं। यह आस्था का ही परिणाम है कि वे बूट खोलकर ही मन्दिर में प्रवेश करते हैं।

प्रश्न 3.
प्रोफेसर गजानने की चारित्रिक विशेषताओं को रेखांकित कीजिए।
उत्तर:
प्रोफेसर गजानन सेव और कहानी के एक प्रमुख पात्र हैं, उनके चरित्र की कतिपय विशेषताएँ निम्न हैं –
पुरातत्व-विद – प्रोफेसर गजानन दिल्ली के एक कॉलेज में प्राचीन इतिहास और पुरातत्त्व के प्रोफेसर थे। उनकी रुचि प्राचीन वस्तुओं को खोजने और देखने में थी। उनका पेशा और मनोरंजन एक ही है। मनोरंजन के लिए भी वे पुरातत्व की ओर ही जाते हैं। कुल्लू पहाड़ की सुरम्य उपत्यकाओं में भी वे यह सोचते हुए आए थे कि यहाँ भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष की मूर्तियाँ और न जाने क्या-क्या मिलेगा। प्राचीन वस्तु को देखने में उनकी रुचि थी।

जिज्ञासु प्रवृत्ति – प्रोफेसर गजानन की प्रवृत्ति जिज्ञासात्मक है। इसी कारण उन्हें मनु के प्राचीन मन्दिर को देखा जो संसारभर में मनु का एकमात्र मन्दिर था, इस कारण महत्त्वपूर्ण था। उनकी जिज्ञासा और मन्दिर देखने की हुई। उन्होंने अन्य मन्दिरों के सम्बन्ध में जानकारी ली। पुजारी से पहाड़ की चोटी के ऊपर जंगल में एक देवी का स्थान है, यह जानकर उस मन्दिर को देखने की उनकी जिज्ञासा बढ़ गई और वे रास्ता पूछकर उस मन्दिर की ओर चल दिये।

भ्रमणशील – प्रोफेसर गजानन को भ्रमण करने में और प्राचीन मूर्तियों और मन्दिरों को देखने में आनन्द आता था। उन्होंने कुल्लू के प्राकृतिक सौन्दर्य का आनन्द लिया, गिरते हुए प्रपात पर पड़ती हुई प्रकाश की किरणों को देखकर उनके मन में कवि-समान कल्पनाएँ जाग्रत होने लगीं। वे उस प्राकृतिक सौन्दर्य को देखकर अभिभूत हो गये थे।

सरल स्वभाव – प्रोफेसर गजानन सरल एवं शान्त स्वभाव के व्यक्ति थे । यद्यपि उन्हें सेव चुराने वाले लड़के पर क्रोध आ गया था, क्योंकि उन्हें लगा कि वह प्राचीन आर्य संस्कृति को कलंकित कर रहा था। प्राचीन मन्दिर पर पहुँचकर उन्होंने बड़ी शान्ति से गाँववालों से और पुजारी से अन्य मन्दिर और मूर्तियों के सम्बन्ध में पूछा और प्रसन्नता से आगे बढ़ गये।

अन्तर्द्वन्द्व की भावना – प्रोफेसर गजानन के हृदय में देवी की मूर्ति देखकर द्वन्द्व होता है। वे कभी मूर्ति को उठाते हैं कभी धरते हैं। कभी मन्दिर के बाहर आते हैं और कभी मन्दिर के अन्दर जाते हैं। इसी द्वन्द्व में डूबे रहते हैं। वे मूर्ति ओवरकोट में छिपाकर ले जाते हैं। किन्तु लड़के को डाँटने के बाद वे मूर्ति को वापिस रखने जाते हैं, उस समय फिर हृदय में द्वन्द्व होता है। लौटते समय उनके मन में विचार आया कि वह एक अमूल्य निधि को नष्ट कर रहे हैं दूसरी ओर उन्हें सन्तोष भी था कि मन्दिर की मूर्ति मन्दिर में ही पहुँचा दी थी।

भीरु व्यक्तित्व – प्रोफेसर गजानन भीरु व्यक्तित्व के व्यक्ति थे। मूर्ति को उठाते समय वे बार-बार बाहर आकर देखते कि कोई आ तो नहीं रहा है या उन्हें देख तो नहीं रहा है। उन्हें डर लग रहा है कि कोई मूर्ति उठाते समय देख न ले। इस प्रकार जब वे मूर्ति लेकर जाते हैं तो वह हाथ में लेकर तेजी से भागते हुए ऊपर से उतरते हैं और उस रास्ते से जाते हैं जहाँ मार्ग में गाँव न पड़े। गाँव वाले जब उन्हें देखते हैं तो उन्हें लगता है कि वे शायद उनके ओर कोट को ही देख रहे हैं। मुझे भूतों से डर नहीं लगता’। ऐसा कहकर वह अपनी निर्भीकता प्रकट करते हैं। पर मूर्ति को ले जाते समय उनका दिल काँप जाता है। यह मानव स्वभाव की विशेषता ही है जब वह दूसरे की चीज उठाता है तो मन में तनिक भयभीत भी होता है।

प्रश्न 4.
‘इसने तो सेव ही चुराया है, तुम देवस्थान लूट लाये।’ इस कथन में लेखक की मनः स्थिति पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
प्रोफेसर साहब को आत्मग्लानि होती है। उनका हाथ जैसे ही ओवरकोट के कॉलर में घुसा उन पर मानो एक गाज गिरी। वे सोचने लगे होंगे कि इसने तो एक साधारण-सी चीज चुराई है, तुम तो एक बहुमूल्य वस्तु चुराकर ले जा रहे हो। लड़के ने तो अपने ही घर में अपनी वस्तु चुराई है तुम तो दूसरे के घर में दूसरों की वस्तु चुराकर ले जा रहे हो। तुम ज्यादा दोषी हो। जो कार्य लड़के ने किया वही तुम कर रहे हो। फिर तुम्हें लड़के को डाँटने और मारने का क्या अधिकार है। वह तो बच्चा है, अबोध है, तुम तो समझदार हो, तुम चोरी क्यों कर रहे हो। सेव जैसी साधारण वस्तु चुराने वाले को तुम चोर कह रहे हो, उसके सेव छीनकर फेंक रहे हो और प्रसन्न हो रहे हो। तुम स्वयं निधि चुराकर ले जा रहे हो और अपने को ईमानदार समझ रहे हो। लड़का इतना दोषी नहीं है जितने तुम दोषी हो। ऐसे ही विचार प्रोफेसर के मन में आये होंगे।

प्रश्न 5.
पाठ में आए निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) ”ऐसा जान पड़ता था . …………. मालूम हो रहा है।”
(ख) “वे उन थोड़े से लोगों ……………… अंधी नहीं हैं।”
(ग) “रास्ता अब फिर घिर ………………… झूम से जाते हुए।”
(घ) “तर्क उन्हें सुझाने लगा ……………… तीव्रतर होती गयी।”
(ङ) “देवत्व की कितनी उपेक्षा ! ………………… कहीं ठिकाने से होती।”
उत्तर:
इन गद्यांशों की व्याख्या महत्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ शीर्षक के अन्तर्गत देखिए।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
मोटर से उतरकर प्रोफेसर गजानन डाक बंगले पर न जाकर घूमने चल दिए क्योंकि
(क) पहाड़ी सौन्दर्य देखने की जिज्ञासा
(ख) आराम की जरूरत नहीं थी।
(ग) थके नहीं थे।
(घ) सेव खाने की इच्छा थी।
उत्तर:
(ख) आराम की जरूरत नहीं थी।

प्रश्न 2.
मनोरंजन के लिए प्रोफेसर गजानन कहाँ जाते हैं?
(क) सिनेमा देखने
(ख) प्रकृति-सौन्दर्य की ओर
(ग) पुरातत्व की ओर
(घ) पहाड़ी क्षेत्र की ओर।
उत्तर:
(ग) पुरातत्व की ओर

प्रश्न 3.
बाला के पैरों के पास झरने को बहता देखकर प्रोफेसर को ख्याल आया –
(क) हंसिनी और सरस्वती का
(ख) हिरनी और सरस्वती का
(ग) देवी और सरस्वती का
(घ) लक्ष्मी और पार्वती का
उत्तर:
(क) हंसिनी और सरस्वती का

प्रश्न 4.
बाला ने प्रोफेसर के प्रश्न का उत्तर क्यों नहीं दिया?
(क) ग्लानि के कारण
(ख) उपेक्षा के कारण
(ग) लज्जा के कारण
(घ) संकोच के कारण
उत्तर:
(घ) संकोच के कारण

प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार विनय किन लोगों में देखने को मिलता है?
(क) जिनमें सार होता है।
(ख) जो भोले होते हैं।
(ग) जो शिष्ट होते हैं।
(घ) जो शिक्षित होते हैं।
उत्तर:
(क) जिनमें सार होता है।

प्रश्न 6.
पहाड़ी सभ्यता के प्रति प्रोफेसर गजानन का आदर-भाव अधिक बढ़ गया। क्यों?
(क) सीधे-सादे पन के कारण
(ख) ईमानदारी के कारण
(ग) पारस्परिक प्रेम के कारण
(घ) भोलेपन के कारण।
उत्तर:
(ख) ईमानदारी के कारण

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रपात के फेन पर सूर्य किरणों को पड़ता देखकर प्रोफेसर ने क्या सोचा?
उत्तर:
प्रोफेसर को ऐसा जान पड़ा मानो अंधकार की कोख में चाँदी का प्रवाह फूट पड़ा या प्रकृति नायिका की कजरारी आँखों से स्नेह गद्गद आँसुओं की झड़ी है।

प्रश्न 2.
अन्य पेशेवर लोगों की अपेक्षा प्रोफेसर की क्या विशेषता है?
उत्तर:
अन्य पेशेवर लोगों को पेशा और मनोरंजन दोनों अलग-अलग होते हैं। प्रोफेसर का पेशा और मनोरंजन एक ही था।

प्रश्न 3.
प्रोफेसर कुल्लू पहाड़ की सुरम्य उपत्यकाओं में क्यों आए थे?
उत्तर:
वे यह सोचकर आए थे कि यहाँ भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष मिलेंगे और हिन्दू-काल की शिल्प-कला के नमूने और धातु, प्रस्तर और सुधा की मूर्तियाँ मिलेंगी।

प्रश्न 4.
कुल्लू में आकर प्रोफेसर को सबसे अधिक खुशी क्यों हुई?
उत्तर:
प्रोफेसर ने देखा कि गंध, स्वाद और रस की उस विपुल राशि का न कोई रक्षक था और न बचाव के लिए बाढ़ ही लगाई गई थी। सभी ईमानदार और सच्चे व्यक्ति थे।

प्रश्न 5.
सेव चुराने वाले लड़के को किंचित ग्लानि से भरकर देखकर प्रोफेसर ने लड़के को छोड़ा क्यों नहीं?
उत्तर:
प्रोफेसर को लगा कि यह लड़का चोरी करके प्राचीन आर्य सभ्यता को एक साथ ही नष्ट-भ्रष्ट कर रहा है जो फाहियान के समय से सदियों पहले से अक्षुण्ण बनी चली आई है।

प्रश्न 6.
प्रोफेसर से चाँटा खाने के बाद लड़के ने क्या किया और उसके मन में क्या भाव उठे?
उत्तर:
चाँटा खाने के बाद लड़का वही खड़ा आँसू भरी आँखों से उधर देखता रहा जहाँ घास में उसके तोड़े हुए सेव गिरकर आँखों से ओझल हो गए थे। वह उन्हें आँखों से खोजता रहा। उसने सोचा होगा कि मैंने इनके सेव नहीं चुराये फिर इन्होंने मुझे चाँटे क्यों लगाए।

प्रश्न 7.
मनाली में दर्शनीय मन्दिर कौन सा है? उसकी क्या विशेषता है?
उत्तर:
मनाली में मनु का प्राचीन मन्दिर है। मन्दिर छोटा था, सुन्दर नहीं लेकिन संसारभर में मनु का एकमात्र मन्दिर होने के कारण वह अपना महत्व रखता था।

प्रश्न 8.
‘आसपास और भी कोई मन्दिर है’? प्रोफेसर की जिज्ञासा का क्या कारण था?
उत्तर:
वे प्राचीन इतिहास और पुरातत्व के प्रोफेसर थे। उनका पेशा और मनोरंजन एक ही था। मनोरंजन के लिए भी प्रोफेसर पुरातत्व की ओर ही जाते थे। वे आस-पास के सब मन्दिर और मूर्तियों को देखना चाहते थे।

प्रश्न 9.
प्रोफेसर गजानन ने देवी के मन्दिर को किस रूप में देखा?
उत्तर:
मन्दिर की बुरी हालत थी। भीतर न जाने कब से बलि-पशुओं के सग बकरे के और हिरन के पड़े हुए थे जो सूखकर धूल रंग के हो गए थे- उन पर कीड़े भी चल रहे थे। फर्श के पत्थरों के जोड़ों में काई उग आई थी।

प्रश्न 10.
प्रोफेसर ने देवी की मूर्ति ही क्यों उठाई? सकारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गणेश और शिव की मूर्ति की अपेक्षा देवी की मूर्ति अत्यन्त सुन्दर थी। पाँच सौ वर्ष से कम पुरानी नहीं थी। लम्बे समय का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था, बल्कि पत्थर और चिकना हो गया था, जिससे मूर्ति और अधिक सुन्दर हो गई थी। मूर्ति बहुमूल्य थी। इसलिए देवी की मूर्ति ही उठाई।

प्रश्न 11.
‘क्या मूर्ति यहीं पड़े रहने के काबिल है?’ इस कथन से प्रोफेसर का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्रोफेसर का अभिप्राय है कि यह मूर्ति यहाँ वीरान में पड़ी रहने के काबिल नहीं है। यह मूर्ति देवता की है। देवत्व की चिरन्तनता की निशानी है। एक भावना है, पर भावना आदरणीय है। देवत्व की इतनी उपेक्षा नहीं होनी चाहिए। इसी कारण प्रोफेसर ने यह विचार कि यह मूर्ति यहाँ नहीं पड़ी रहनी चाहिए।

प्रश्न 12.
‘मूर्ति के उपयुक्त यह स्थान कदापि नहीं है।’ प्रोफेसर ने ऐसा क्यों सोचा?
उत्तर:
यह देवी की मूर्ति है, देवत्व की निशानी है। मन्दिर है, पर यहाँ पूजा ही नहीं होती, यह कैसा मन्दिर । गाँव वाले परवाह कब करते हैं, अगर मन्दिर गिर जाए तो किसी को पता भी नहीं चलेगा। इस कारण यह स्थान मूर्ति के लिए उपयुक्त नहीं है। इसे तो ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ इसकी पूजा हो सके।

प्रश्न 13.
‘प्रोफेसर साहब पर मानो गाज गिरी।’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सेव चुराने वाले लड़के को दुबारा चाँटें लगाने के बाद प्रोफेसर को एक अनुभूति हुई कि एक चौंधिया देने वाला आलोक क्षण भर के लिए उनके नेत्रों में छा गया। उन्हें अनुभव हुआ कि इसने तो सेव ही चुराया है तुम तो देवस्थान ही लूट लाए हो। इसने तो साधारण वस्तु ही चुराई है तुम तो बहुमूल्य वस्तु चुराकर ले जा रहे हो। यह भाव उनके मन में उत्पन्न हुआ।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
सेव और देव’ कहानी के मूल भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सेव और देव कहानी के माध्यम से लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि नैतिक मूल्यों की स्थिति स्वत: स्फूर्त होती है, आरोपित नहीं। यह भाव भी स्पष्ट किया है कि मनुष्य की आस्था उसे और अधिक नैतिक बल देती है। देव मूर्तियों के प्रति विशेष रुचि एवं आस्था रखने वाले प्रोफेसर गजानन अपने व्यक्तिव से यह सिद्ध कर देते हैं कि आस्था में बहुत बड़ी शक्ति होती है।

प्रश्न 2.
पहाड़ी पर चढ़ते समय प्रोफेसर साहब ने जो प्राकृतिक दृश्य देखा, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
प्रोफेसर साहब पहाड़ी पर चढ़ने लगे। पहाड़ी रास्ता आगे खुल गया था। चीड़ के वृक्ष समाप्त हो गए थे। रास्ते को पार करता हुआ एक झरना बह रहा था। उसका जितना अंश भूमि में था, उस पर तो छाया थी, लेकिन जहाँ वह मार्ग के एक ओर नीचे गिरता था, वहाँ प्रपात के फेन पर सूर्य की किरणें भी पड़ रही र्थी । ऐसा जान पड़ता था कि अंधकार की कोख में चाँदी का प्रवाह फूट पड़ा हैया प्रकृति-नायिका की कजरारी आँखों से स्नेह गद्गद आँसुओं की झड़ी हो। प्रकृति का सौन्दर्य उन्हें अपनी ओर खींच रहा था।

प्रश्न 3.
बालिका के चले जाने के बाद प्रोफेसर साहब पहाड़ी लोगों के बारे में क्या सोचने लगे?
उत्तर:
वे सोचने लगे, कितने सीधे-सादे सरल स्वभाव के होते हैं, यहाँ के लोग। प्रकृति की सुखद गोद में खेलते हुए इन्हें न फिक्र है, न खटका है, न लोभ-लालच है। अपने खाने-पीने, ढोर चराने, गाने-बजाने में दिन बिता देते हैं। तभी तो बाहर से आने वाले आदमी को देखकर संकोच होता है। अपने आप में लीन रहने वाले इन भोले प्राणियों को बाहर वालों से क्या सरोकार।

प्रश्न 4.
प्रोफेसर गजानन पंडित ने पहाड़ी सभ्यता और यूरोपियन सभ्यता में क्या अन्तर देखा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहाड़ी लोग भोले-भाले हैं। इन्हीं के कारण प्राचीन सभ्यता के अवशेष बचे हैं। यूरोपियन सभ्यता के लोग चालाक होते हैं। यदि ये भी उस सभ्यता से प्रभावित होते तो !प्राचीन संस्कृति के दर्शन नहीं होते। ये भी उनकी तरह दूसरों को नोचकर खा जाते हैं। उसकी राख भी नहीं बचती। यहाँ तो फाहियान के जमाने का आदर्श है। सभी अपने काम में मस्त रहते हैं, दूसरों के काम में दखल नहीं देते जबकि यूरोपियन सभ्यता के लोग दूसरों के काम में टाँग अड़ाते हैं। कभी चोरी नहीं करते, कभी शिकायत नहीं करते। यूरोपियन सभ्यता वालों में यह गुण देखने को नहीं मिलता।

प्रश्न 5.
पहाड़ी सभ्यता के प्रति प्रोफेसर का आदर-भाव क्यों बढ़ गया?
उत्तर:
पहाड़ी लोगों पर यूरोपियन सभ्यता का प्रभाव नहीं पड़ा था। उन्होंने रास्ते में सेव के फलों से लदे हुए लचीले गातेवाले वृक्ष देखे। जिनका कोई रखवाला नहीं था, न कोई बाड़ लगाई गई थी। खेती खड़ी है कोई पहरेदार नहीं है। चोरी की आशंका नहीं है। ये अपने काम से काम रखते हैं। दूसरों के काम से कोई मतलब नहीं ये ढोर चराते हैं और गाने-बजाने में दिन निकाल देते हैं। इन्हें बाहर वालों से कोई सरोकार नहीं। बाहरी लोगों को देखकर ये संकोच करते हैं। पहाड़ी लोगों के इन गुणों को देखकर प्रोफेसर के मन में आदर-भाव बढ़ गया।

प्रश्न 6.
सेव चुराने वाले लड़के से प्रोफेसर गजानन ने क्या कहा और क्या सोचा?
उत्तर:
प्रोफेसर गजानन ने कहा, ”क्यों वे बदमाश चोरी कर रहा है? शर्म नहीं आयी दूसरे का माल खाते हुए ? पाजी कहीं का! चोरी करता है? तेरे जैसों के कारण तो पहाड़ी लोग बदनाम हो गए हैं। क्यों चुराये थे सेव? यहाँ तो पैसे के दो मिलते होंगे, एक पैसे के खरीद लाता। ईमान क्यों बिगाड़ता है?” प्रोफेसर सोचने लगे, वह खड़ा देख रहा होगा कि चोरी भी की फल नहीं मिला। बहुत अच्छा हुआ। सेवों का सड़ जाना अच्छा, चोर को मिलना अच्छा नहीं। चोर को क्या हक है?

प्रश्न 7.
मनु-मन्दिर से आगे के पहाड़ी मार्ग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
छोटी-छोटी झाड़ियाँ दीखने लगीं। घास की बजाय अब पथरीली जमीन आई, जिसमें कोई पगडंडी नहीं थी। कहीं-कहीं लाल पत्थर के भी कुछ टुकड़े दीख जाते थे, जो शायद किले की इमारत में कहीं लगे होंगे। कहीं-कहीं पत्थर और मिट्टी स्तूपाकार टीले की आड़ में कोई गाढ़े रंग की पत्तों वाली झाड़ी लगी हुई दीख जाती, तो वह आस-पास के उजाड़ सूनेपन को और भी गहरा कर देती। साँझ के धुंधलके में ऐसी झाड़ी को देखकर स्तूप के धूम्रवत् निकलते हुए प्रेत की कल्पना होना कोई असम्भव बात नहीं।

प्रश्न 8.
देवी के मन्दिर की मूर्तियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बलि पशुओं के सींगों के बीच में देवी की काले पत्थर की मूर्ति लुढ़की पड़ी है। पास में पड़ी गणेश की पीतल की मूर्ति जंग से विकृत हो रही थी। दूसरी ओर खड़ा श्वेत पत्थर का शिवलिंग अब भी साफ, चिकना और सधे हुए सिपाही की तरह शान्त खड़ा था। उसके दर्पोन्नत भाव से ऐसा जान पड़ता था, मानो क्रुद्ध होकर कह रहा हो, मेरी इस निभृत अन्तः शाला में आकर मेरे कुटुम्ब की शान्ति भंग करने वाले तुम कौन हो?

प्रश्न 9.
देवी की मूर्ति की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए प्रोफेसर के भाव को व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
देवी की मूर्ति अत्यन्त सुन्दर थी। पाँच सौ वर्ष से कर्म पुरानी नहीं थी। इस लम्बी अवधि का उस पर जरा भी प्रभाव नहीं पड़ा था। या पड़ा था तो पत्थर को और चिकना करके मूर्ति को सुन्दर ही बनाया गया था। मूर्ति को देखकर प्रोफेसर के मन में लोभ आ गया। वे सोचने लगे मूर्ति कहीं बिकती तो तीन-चार हजार से कम की न होती, किसी अच्छे पारखी के पास हो तो दस हजार भी कुछ अधिक मूल्य न होता और यह यहाँ उपेक्षित हालत में पड़ी है। न जाने कब से कोई इस मन्दिर में आया तक भी नहीं है।

प्रश्न 10.
प्रोफेसर गजानन के अन्तर्द्वन्द्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
देवी की मूर्ति को सौन्दर्य के देखकर प्रोफेसर गजानने के मन में उसे ले जाने का विचार आया किन्तु इस बात का भय था कि कोई देख न ले और टोक न दे। इसलिए वे मूर्ति को उठाने से पहले मन्दिर द्वार से हटकर चारों ओर घूमकर देखते हैं कि कोई देख तो नहीं रहा है। चारों ओर निर्जन पाकर तसल्ली हुई और शान्ति की साँस ली। उनका दिल धड़कने लगा। उन्होंने मूर्ति को उठाया, देखा और फिर रख दिया और फिर चारों ओर देखा। अपने मन को तसल्ली देने के लिए उन्होंने इजिप्ट के पिरामिड और फिलोडेल्फिया की तूता खामेन की मूर्ति के सम्बन्ध में सोचा। उन्हें लगा यह स्थान मूर्ति के लिए उपयुक्त नहीं है। वे बार-बार मूर्ति को उठाते फिर रख देते। एक विचार आता कि मूर्ति को ले जाऊँ, दूसरे किसी के देखने का डर लगता । इस प्रकार प्रोफेसर के मन में दो तरह के विचार आते। उनका मन झोटे ले रहा था। इस अन्तर्द्वन्द्व की स्थिति में उन्होंने हिम्मत करके मूर्ति को ओवरकोट में छिपाया और ले चले।

प्रश्न 11.
देवी की मूर्ति उठाने से पूर्व प्रोफेसर ने क्या किया? उस समय के उनके भावों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
देवी की मूर्ति को देखकर उसके सौन्दर्य को देखकर उनके हृदय की स्पन्दन गति तीव्र हो गई। आगे बढ़कर उन्होंने मूर्ति को उठाने का प्रयास किया किन्तु किसी भय के कारण मूर्ति नहीं उठाई और बाहर झाँककर देखा कि कोई देख तो नहीं रहा है। ऐसा उन्होंने कई बार किया। उनका दिल धड़कने लगा। उन्हें लगा जैसे वे डर रहे हैं। फिर सोचने लगे कि किससे डर रहा हूँ। क्या प्रेतों से पर मैं तो इन लोगों की तरह अंधविश्वासी नहीं हूँ जो प्रेतों से डरूं। इस सुन्दर मूर्ति की किसी को चिन्ता नहीं है फिर इसे यहाँ छोड़ दें। विचार प्रोफेसर के मन आते रहे।

प्रश्न 12. ‘
प्रोफेसर का हृदय आह्लाद से भर गया।’ प्रोफेसर के आह्लादित होने का कारण लिखिए।
उत्तर:
प्रोफेसर का मन आह्लाद से भर गया। क्योंकि उन्होंने बड़े साहस से देवी की मूर्ति को उठाकर अपने ओवरकोट में छिया लिया था और अपने डाक बंगले की ओर चल दिये थे। उनका पहला दिन ही कितना सफल हुआ था। कितनी बहुमूल्य वस्तु उन्होंने पाई। थी। वह मूर्ति जो उपेक्षित पड़ी थी वे उसे पा गये थे। इसके साथ ही उन्होंने प्रकृति का कितना सौन्दर्य देखा था वह अनिवर्चनीय था। कुल्लू का अनिवर्चनीय सौन्दर्य उन्होंने देखा था। उन्हें लगा वास्तव में यह देवताओं का अंचल है।

प्रश्न 13.
वह कौन सी घटना थी, जिसने प्रोफेसर को मूर्ति यथास्थान रखने के लिए विवश कर दिया?
उत्तर:
प्रोफेसर गजानन पंडित ने बड़े साहस से देवी की मूर्ति को ओवरकोट में छिपाकर ले जाने का प्रयास किया। वे डरते हुए पहाड़ी से नीचे उतरने लगे। मार्ग में सेवों के बगीचे मिले और पहले वाला लड़का ही सेव की चोरी करता हुआ मिला। उन्होंने पुन: उसके कोट का गला पकड़ कर सेव नीचे गिरा दिया और उसे धक्का दिया, चाँटे मारे, उसी समय उनका हाथ अपने ओवरकोट में गया जहाँ मूर्ति छिपा रखी थी। तभी प्रोफेसर साहब पर गाज गिरी। उन्हें अनुभव हुआ इसने तो सेव चुराया है, मैं तो देवालय ही लूट लाया हूँ। इस विचार के आते ही प्रोफेसर को मूर्ति यथास्थान रखने के लिए विवश कर दिया।

प्रश्न 14.
मानव के मन में जब चोर होता है तो वह हमेशा डरता ही रहता है। कहानी के आधार पर इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य जब गलत कार्य करता है या चोरी करता है तो वह हर समय शंकित और भयभीत रहता है। प्रोफेसर ने मूर्ति चुराई थी, इस कारण उन्हें गाँव वालों का डर था। अत: जब मूर्ति को मन्दिर में रखने के लिए लौटे तो वह आँधी की तरह गाँव में से गुजरे। उन्हें लगता कि तब घर जाता हुआ प्रत्येक व्यक्ति विस्मय से उनकी ओर देखता और उन्हें लगता कि वह उनकी छाती की ओर ही देख रहा है। उन्हें लगता कि प्रत्येक व्यक्ति उनके ओवरकोट में छिपी मूर्ति और उनके पाप को अच्छी तरह जानता है। प्रोफेसर को ऐसा केवल इसलिए लग रहा था कि वे छिपाकर मूर्ति को ले जा रहे थे। उनके मन में चोर छिपा था। अतः उपर्युक्त कथन यथार्थ ही है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 19 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘सेव और देव’ कहानी में लेखक ने प्राकृतिक सुषमा का सुन्दर चित्रण किया है। अपने शब्दों में उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पहाड़ी पर चढ़ते हुए प्रोफेसर ने वहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य देखा। चीड़ के वृक्ष समाप्त हो गए थे। एक पहाड़ी झरना बह रहा था। उसका जितना अंश भूमि पर था उस पर तो छाया थी जहाँ वह नीचे गिर रहा था वहाँ प्रपात के फेन पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं। ऐसा लगता था कि अंधकार की कोख में चाँदी का प्रवाह फूट पड़ा हो या प्रकृति-नायिका की कजरारी आँखों से स्नेह गद्गद आँसुओं की झड़ी हो। सेव से लदी हुई डारों को देखकर प्रोफेसर ने कल्पना की जहाँ सार होता है वहाँ विनय होती है। सेव के लचीले गातवाले वृक्षों से रास्ता घिर गया था। पहाड़ी की चोटी पर पहुँचकर प्रोफेसर ने देखा जंगल का रूप बदलने लगा था। बड़े-बड़े वृक्ष समाप्त हो गए, छोटी-छोटी झाड़ियाँ ही दीख रही थीं। वृक्ष हवा के थपेड़ों से पिटते रहते थे और जाड़ों में बर्फ की चोट वहाँ लगे हुए पेड़-पौधों को कुचल डालती थी। इस प्रकार विभिन्न स्थानों की प्रकृति का चित्रण किया है।

प्रश्न 2.
पहाड़ी लोगों के प्रति लेखक के मन में क्या विचार आए?
उत्तर:
पहाड़ी लोग कितने सीधे-सादे, सरल स्वभाव के होते हैं। ये प्रकृति की सुखद गोद में खेलते हैं। इन्हें न फिक्र है, न खटका है, न लोभ-लालच है। अपने खाने-पीने, ढोर चराने और गाने-बजाने में दिन बिता देते हैं। ये अपने आप में लीन रहते हैं, इन्हें बाहर वालों से कोई सरोकार नहीं। इन्हीं के कारण प्राचीन सभ्यता के अवशेष बचे हैं। सबको अपने काम से मतलब है, दूसरे के काम में दखल देना, दूसरे के मुनाफे की ओर दृष्टि डालना ये पाप समझते हैं। कभी चोरी नहीं करते, कभी किसी की शिकायत नहीं करते। यूरोपियन सभ्यता का इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यहाँ तो फाहियान कालीन सभ्यता के ही दर्शन होते हैं। ये खेती करते हैं, पर उसको कोई रखवाला नहीं है। ये ईमानदार और साफ हृदय वाले हैं।

प्रश्न 3.
‘सेव और देव’ कहानी में लेखक ने शहरी जीवन पर एक तीखा व्यंग्य किया है। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पहाड़ी लोग सच्चे और ईमानदार होते हैं। वहाँ सेवों के वृक्ष की रखवाली करने वाला कोई नहीं है। लेखक ने शहरी जीवन से उसकी तुलना की है। शहर में सेवों का बाग इस तरह नहीं बच सकता था। स्कूल और कॉलेज के लड़के टिड्डी दल की तरह आकर सब नष्ट कर देते हैं। फलों को पकने ही नहीं देते। सारे बाग को उजाड़ देते हैं। शहर में यदि कोई फलों का बाग लगाए तो एक-एक भोजपुरिये लठैत पहरेदार रखे तब बाग को बचा सकती है और चारों ओर जेल की दीवार खड़ी कर जिससे कोई फलों को लुक-छिप कर लेकर भाग न जाए। तभी बाग वाले को चैन मिल सकता है। यहाँ बाग की सीमा बनाने के लिए तार का जंगला भी नहीं है। शहर में तो सीमा पर ही लड़ाई-झगड़े हो जाते हैं। इन शब्दों में लेखक ने शहरी सभ्यता पर व्यंग्य किया है।

प्रश्न 4.
देवी-मन्दिर एवं उसके अन्दर की स्थिति का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
प्रोफेसर ने देखा देवी के मन्दिर की बुरी हालत थी। भीतर न जाने कब के बलि-पशुओं के सींग, बकरे और हिरन के पड़े हुए थे जो सूखकर धूल-रंग के हो गए थे, उन पर कीड़े भी चल रहे थे। फर्श के पत्थरों के जोड़ों में काई उग आई थी। उन सींगों के ढेर से परे देवी के काले पत्थर की मूर्ति एक ओर लुढ़क गई थी। पास में पड़ी गणेश की पीतल की मूर्ति जंग से विकृत हो गई थी। केवल दूसरी ओर खड़ा श्वेत पत्थर का शिवलिंग साफ, चिकना और सधे हुए सिपाही की तरह शान्त खड़ा था। आस-पास की जर्जर अवस्था में उसके उस दर्पोन्नत भाव से प्रोफेसर को लगा मानो वह क्रुद्ध होकर कह रहा है कि मेरी इस निभृत अन्त:शाला में आकर मेरे कुटुम्ब की शान्ति भंग करने वाले तुम कौन हो?

प्रश्न 5.
देवी की मूर्ति को देखने के पश्चात् प्रोफेसर के मन में जो विचार आए, उन्हें व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
प्रोफेसर के मन में विचार आया यह मूर्ति पाँच सौ वर्षों से यहाँ पड़ी होगी। न जाने कितनी पूजा इसने पाई होगी, कितनी बलियों के ताजे गर्म, पूत रक्त से स्नान करके अपना दैवी सौन्दर्य निखारा होगा और अब कितने बरसों से इन रेंगते हुए कीड़ों की लम्बी-लम्बी जिज्ञासु मूंछों की ग्लानिजनक गुदगुदाहट सह रही होगी । देवत्व की कितनी उपेक्षा है। देवता पत्थर जड़ है लेकिन मूर्ति तो देवता की है। देवत्व की चिरन्तनता की निशानी है। एक भावना है, पर भावना पवित्र है और आदरणीय है। यह मूर्ति ऐसी दुर्दशा में इन कीड़ों के बीच में पड़े रहने के काबिल नहीं है जिनके पास श्रद्धा को दिल नहीं, पूजने को हाथ नहीं, देखने को आँख नहीं, छूने को त्वचा नहीं, टटोलने के लिए केवल गन्दी मूंछे हैं। यह मूर्ति यहाँ के काबिल नहीं है। इसे यहाँ नहीं पड़े रहना चाहिए। इसलिए उनके मन में मूर्ति को ले जाने का विचार आया।

प्रश्न 6.
‘सेव और देव’ कहानी के आधार पर अज्ञेय जी की भाषा-शैली पर विचार कीजिए।
उत्तर:
अज्ञेय जी ने शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग किया है। अनिर्वचनीय, दर्पोन्नत, निभृत, उपेक्षित जैसे तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। सामाजिक पदावली का भी प्रयोग हुआ है, जैसे घूम-घाम, जल्दी जल्दी, सीधे-सादे आदि। कहीं-कहीं खुदान-खास्ता जैसे शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। एक-आध मुहावरा भी आ गया है। शैली वर्णनात्मक है। कुल्लू के पहाड़ों का, प्रकृति का और देवी के मन्दिर का विस्तार से वर्णन किया है। एक स्थान पर कथोपकथनात्मक शैली का भी प्रयोग किया है। प्रोफेसर और ग्रामीण में पारस्परिक वार्तालाप होता है। प्रोफेसर अन्य मन्दिर के सम्बन्ध में पूछते हैं- “आस-पास और भी कोई मन्दिर है”

“यहाँ मन्दिर नहीं।’ “यहाँ तो सैकड़ों मन्दिर होने चाहिए।’ “कौन – सा मन्दिर देखिएगा बाबू।” ऐसे छोटे-छोटे कथोपकथन हैं। कही-कही आलंकारिक शैली का भी प्रयोग किया है। मार्ग में झरते हुए झरने का आलंकारिक वर्णन किया है। जैसे‘प्रकृति-नायिका की कजरारी आँखों से स्नेह गद्गद आँसुओं की झड़ी।’ कल्पना की अच्छी उड़ान है। बालिका के पाँवों के पास बहते हुए झरने का स्वर सुनकर वे हंसिनी और सरस्वती की कल्पना करते हैं। इस प्रकार कहानी की भाषा और शैली सुन्दर है।

अज्ञेय का जन्म सन् 1911 में कसिया जिला देवरिया (उ.प्र.) में हुआ। आपका पूरा नाम सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ है। इनके पिता हीरानन्द शास्त्री पुरात्ववेत्ता थे। इनका बचपन लखनऊ, बिहार और मद्रास में व्यतीत हुआ। मद्रास और लाहौर में शिक्षा हुई। बी. एस. सी. के बाद अंग्रेजी में एम.ए. किया। साथ ही संस्कृत और हिन्दी का गहन अध्ययन किया। स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान वे क्रान्तिकारी के रूप में जेल भी गये।

साहित्यिक परिचय – ‘अज्ञेय’ आधुनिक साहित्य के बहुआयामी तथा विलक्षण व्यक्तित्व के धनी हैं। आप सैनिक, प्रतीक, नया प्रतीक, बिजली, विशाल भारत, वाक (अंग्रेजी त्रैमासिक) और दिनमान के सम्पादक रहे। कुछ वर्ष आकाशवाणी में भी नौकरी की। यायावरी स्वभाव के होने के कारण आपने यूरोप तथा एशिया का भ्रमण किया। कितनी नावों में कितनी बार’ पर ‘अज्ञेय’ को ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 4 अप्रैल 1987 को आपका स्वर्गवास हो गया। हिन्दी साहित्य में ‘अज्ञेय’ की प्रतिष्ठा नई परम्परा का सूत्रपात करने वाले कवि के रूप में हुई।

कृतियाँ – काव्य – भग्नदूत, चिन्ता, इत्यलम, हरी घास पर क्षण भर, बावरी अहेरी, कितनी नावों में कितनी बार, इन्द्र धनु, रौंदे हुए ये, आँगन के पार द्वार। उपन्यास-शेखर एक जीवनी, नदी के द्वीप, अपने-अपने अजनबी। कहानी संग्रह- विपथगा, परम्परा, कोठरी की बात, शरणार्थी, ये तेरे प्रतिरूप। यात्रा वृत्तान्त-अरे यायावर रहेगा याद, एक बूंद सहसा उछली ।

निबन्ध संग्रह – आत्मने पद, त्रिशंकु, नवरंग और कुछ राग, हिन्दी साहित्य का आधुनिक परिदृश्य। 1943 में ‘अज्ञेय’ ने ‘तार सप्तक’ का प्रकाशन किया, जिससे प्रयोगवादी काव्य धारा का जन्म माना जाता है। इसके बाद अज्ञेय ने तीन और तार सप्तकों का सम्पादन किया।

पाठ-सार

मोटर से उतर कर प्रोफेसर गजानन पंडित ने अपना चश्मा पोंछकर आँखों पर लगाया। सामान डाक बंगले पर भिजवाया और घूम-घाम कर पहाड़ी का सौन्दर्य देखने के लिए चल दिये। रूमाल से मुँह पोंछा, चश्मा साफ किया और वे पहाड़ी सौन्दर्य देखने चल दिये। चीड़ के वृक्ष समाप्त हो गये थे और पहाड़ी रास्ता आगे खुल गया था। रास्ते में एक झरना बहता था। जितना अंश समतल भूमि पर था उस पर छाया थी जहाँ वह नीचे गिर रहा था वहाँ उसके फेन पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं। ऐसा लगता था मानो अन्धकार की कोख में चाँदी का प्रवाह फूट पड़ा हो या प्रकृति-नायिका की कजरारी आँखों से स्नेह गद्गद आँसुओं की झड़ी हो।

चट्टान के सहारे एक पहाड़ी राजपूत बाला खड़ी थी। उसकी चौंकी हुई भोली शक्ल से लगता था कि उसे प्रोफेसर का आना अच्छा नहीं लगा। प्रोफेसर साहब दिल्ली के एक कॉलेज में प्राचीन इतिहास और पुरातत्त्व के अध्यापक हैं। उनका मनोरंजन पुरातत्व की खोज में ही होता है। कुल्लू पहाड़ की सुरम्य उपत्यकाओं में वे प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष देखने आये थे। हिन्दू-कला के नमूने और धातु या प्रस्तर या सुधा की मूर्तियाँ भी मिलेंगी। पर वे वहाँ के सौन्दर्य को भी देखने लगे और उससे प्रभावित भी हो गये। वहाँ खड़ी बालिका से उन्होंने पूछा तुम कहाँ रहती हो? बाला ने उत्तर नहीं दिया और सम्भ्रम दृष्टि से उनकी ओर देखती हुई पहाड़ पर चढ़ने लगी। प्रोफेसर उसके भोलेपन पर मुस्कराकर आगे चल दिये। सोचने लगे कितने भोले हैं ये लोग। ये अपने आप में लीन रहते हैं। ये यूरोपियन सभ्यता को सीखे होते तो एक दूसरे को नोंचकर खा जाते। ये तो अपने काम से काम रखते हैं। दूसरे के काम में दखल नहीं देते। कभी चोरी नहीं, शिकायत नहीं। खेती खड़ी है पर पहरेदार नहीं है। अगर चवन्नी फेंक दें तो कोई उठायेगा भी नहीं।

आगे रास्ता सेव के छोटे-छोटे लचीले डाल वाले पेड़ों से रास्ता घिर गया था। वे फलों से लदे हैं और झुके हुए हैं। पेड़ों पर सेवों को देखकर प्रोफेसर साहब प्रसन्न हुए। सबसे अधिक प्रसन्नता इस बात से हुई कि उनका कोई रखवाला नहीं था। पहाड़ी सभ्यता के प्रति उनका आदर-भाव बढ़ गया । शहरी सभ्यता से उन्होंने तुलना की। प्रोफेसर ने तभी धम्म की आवाज सुनी है। एक लड़का पेड़ से कूदा और हाथ के सेव छिपाने लगा। प्रोफेसर को लगा, यह लड़का प्राचीन आर्य सभ्यता को जो फाहियान के समय से चली आ रही है, उसे नष्ट-भ्रष्ट कर रहा है। उन्होंने लड़के को पकड़ लिया और एक तमाचा उसके लगा दिया। उसे गर्दन से पकड़कर रास्ते पर ले आये और बोले ‘चोरी करता है। तुम जैसों के कारण पहाड़ी सभ्यता बदनाम होती है। उन्होंने लड़कों को वही छोड़ दिया। वे आगे बढ़ गये।’ वे लड़के के सम्बन्ध में सोचते हुए आगे बढ़े।

प्रोफेसर मनाली गाँव के पास पहुँच गये। लोगों से पूछकर वे मनु के प्राचीन मन्दिर के पास पहुँच गये। मन्दिर छोटा था, सुन्दर भी नहीं था पर संसार में मनु का एकमात्र मन्दिर होने के कारण महत्त्वपूर्ण था। प्रोफेसर साहब बहुत देर तक टकटकी लगाकर उधर को देखते रहे। उन्होंने एक आदमी से पूछा कि वहाँ और भी मन्दिर हैं क्या? उसने केवल उसी मन्दिर के बारे में बताया। पुजारी ने पहाड़ी की चोटी पर किले में देवी का थान बताया जहाँ अब कोई नहीं जाता, केवल पत्थर पड़े हैं। वहाँ अब भूत बसते हैं। भूत की बात सुनकर प्रोफेसर मुस्कराए और बोले कैसे भूत। उनसे तो मेरी दोस्ती है। पुजारी से रास्ता पूछकर प्रोफेसर उधर ही चढ़ने लगे।

पेड़ों के बाद मार्ग में झाड़ियाँ दीर्थी फिर पथरीला स्थान आया जहाँ लाल पत्थरों के टुकड़े पड़े थे। कोई पगडण्डी नहीं थी। पत्थर और मिट्टी के ढेर के पास काले रंग की झाड़ियों को देख प्रेत की कल्पना करना स्वाभाविक था। ऐसे स्तूप की आड़ में प्रोफेसर ने एक गड्ढा देखा जिसमें कीच भरी थी, वहीं दो पेड़ खड़े हैं, जिनके नीचे एक छोटा-सा मन्दिर है जिसका द्वार बन्द है। उन्होंने किवाड़ खोला और थोड़ी देर इन्तजार करते रहे जिससे बन्द मन्दिर की गन्ध निकल जाय। फिर मन्दिर के भीतर झाँकने लगे। मन्दिर की बुरी हालत थी। बलि पशुओं के सींग पड़े थे, पत्थरों पर काई लगी थी। देवी की काले रंग की मूर्ति पड़ी थी। पास ही जंग लगी पीतल की गणेश की मूर्ति पड़ी थी। सफेद रंग का चिकना शिवलिंग भी था। दो- एक मिनट प्रोफेसर खड़े रहे, फिर ओवरकोट रखा, जूते उतारे, मन्दिर में अन्दर गये और देवी की मूर्ति उठाकर देखने लगे। मूर्ति सुन्दर थी और लगभग पाँच सौ वर्ष पुरानी थी। प्रोफेसर उसका मूल्य आँकने लगे। उन्होंने मूर्ति ठीक स्थान पर रखी और देहरी पर आकर उसका सौन्दर्य देखने लगे।

मूर्ति को देखकर प्रोफेसर सोचने लगे। पाँस सौ वर्ष से यह मूर्तियाँ ही पड़ी हैं। इस पर कितनी बलियाँ चढ़ी होंगी। आज इस पर कीड़े चल रहे हैं। देवता की मूर्ति का ऐसा अनादर, अगर यह मूर्ति ठिकाने से होती तो इसकी कितनी पूजा होती। प्रोफेसर ने चारों ओर देखा फिर अन्दर गये। गणेश की मूर्ति पीतल की थी पर वह इतनी सुन्दर नहीं थी। उन्होंने मूर्ति उठा ली। प्रोफेसर का हृदय धड़कने लगा। उन्होंने स्वयं को समझाया कि क्या मैं प्रेतों से डर रहा हूँ? मैं अन्धविश्वासी नहीं हैं। उन्होंने मूर्ति को रख दिया और बाहर आकर देखने लगे। फिर उन्हें इजिप्ट के पिरामिडों की याद आई जिनके प्रति भी लोगों की धारणा अच्छी नहीं थी। प्रोफेसर अन्दर गये, मूर्ति उठाई, फिर रख दी

और बाहर आ गये। ठण्ड के कारण ओवरकोट पहना फिर अन्दर गये, मूर्ति उठाई, ओवरकोट में छिपाया। जूते हाथ में लेकर भागते हुए से लौटने लगे। थोड़ी दूर जाकर बूट पहने और ऐसे स्थान से जाने लगे जहाँ गाँव न पड़े। सूरज छिप रहा था। प्रोफेसर पहले दिन की सफलता पर प्रसन्न थे। थोड़ी दूर चलने पर सेव के बाग आ गये। वहाँ फिर धमाका हुआ, वही लड़का पेड़ से कूदा और एक डाल भी टूट गई। प्रोफेसर ने उसके कोट का कालर पकड़ा और दो तमाचे जड़ दिये। खाया हुआ आधा सेव गिर गया। उन्होंने लड़के को डाँटा। लड़के को धक्का दियो। कोट का कॉलर पकड़कर चीख मार कर रोने लगा। प्रोफेसर का हाथ ओवरकोट में गया और सोचा इसने तो सेव चुराये हैं तुम तो देवालये लूट लाये हो। वे लौटने लगे। गाँव के पास से निकलते हुए उन्हें ऐसा लगा मानो प्रत्येक व्यक्ति उनके ओवरकोट की ओर देख रहा है। अँधेरा हो गया था। वे मन्दिर पर पहुँचे। किवाड़ हटाकर मूर्ति अन्दर रख रखी। तर्क कहता था तुम गलती कर रहे हो, सुनसान ने सुझाया कि तुम एक निधि को नष्ट कर रहे हो। पर उन्हें शान्ति मिल रही थी।

कठिन शब्दों के अर्थ :

(पृष्ठ 112) प्रपात = झरना। कोख = गोद। कजरारी = श्यामल। अकस्मात = अचानक । सुरम्य = रमणीय । उपत्यकाओं = घाटियों । अवशेष = बचा हुआ। यथासम्भव = जहाँ तक हो सके। सम्भ्रम = आश्चर्य ।
(पृष्ठ 113) अविनयी = उदंड। किंचित् = तनिक, थोड़ी। अक्षुण्ण = अनवरत, जो नष्ट न हो।
(पृष्ठ 114) दर्शनीय = सुन्दर, देखने योग्य। आकृष्ट = खिंच गया।
(पृष्ठ 115) उपयुक्त = उचित । निरवशेष = नष्टप्रायः। स्तूपाकार = मिट्टी, ईंट आदि से बना ढूह के समान। धूम्रवत = धुएँ के समान। निर्जन = एकान्त। उपेक्षित = तिरस्कृत।
(पृष्ठ116) पूत रक्त-पवित्र खून। देवत्व = ईश्वरत्व। नश्वर = नाशवान । चिरन्तनता = शाश्वतता । काबिल = योग्य । निर्मित = बनी हुई । स्पन्दन गति = धड़कन । दीप्ति = प्रकाश। एकटक = टकटकी लगाकर, ध्यान से। अंधविश्वासी = विवेकशून्य धारणा वाला। कन्दराओं = गुफाओं । उपास्य = उपासना करने योग्य । अखण्ड नीरवता = पूर्ण शान्त वातावरण।
(पृष्ठ 117) पुरातत्वविद = प्राचीन काल की बातों को जानने वाले। उपयुक्त = उचित अनुकूल। आह्लाद = प्रसन्नता। अनिर्वचनीय =अवर्णनीय। (पृष्ठ-118) शाखा = डाल। आलोक = प्रकाश । स्तम्भित = जड़वत । विस्मय = आश्चर्य।

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ 

1. ऐसा जान पड़ता था कि अंधकार की कोख में चाँदी का प्रवाह फूट पड़ा है- या प्रकृति-नायिका की कजरारी आँखों से स्नेह गद्गद आँसुओं की झड़ी- और उसके पार एक चट्टान के सहारे एक पहाड़ी राजपूत बाला खड़ी थी, उसकी चौंकी हुई भोली शक्ल से साफ दिखता था कि प्रोफेसर साहब का यहाँ अकस्मात आ जाना उसे एकदम अनधिकार-प्रवेश मालूम हो रहा है। (पृष्ठ 112)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश अज्ञेय लिखित कहानी ‘सेव और देव’ से उद्धृत है। प्रोफेसर कुल्लू पहाड़ पर चढ़ते हैं तब रास्ते में एक झरना दिखता है। जिसके कुछ भाग पर छाया है और शेष भाग पर सूर्य किरणें पड़ रही हैं, जिससे झरना चमकने लगता है। उसी का वर्णन यहाँ किया गया है।

व्याख्या – मार्ग में नीचे गिरते हुए प्रपात के फेन पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं, उस समय लेखक को ऐसा अनुभव हुआ मानो अंधकार की गोदी में चाँदी का प्रवाह फूट पड़ा हो। संध्या के समय झरने के एक अंश पर अंधकार था किन्तु नीचे गिरने वाले अंश पर सूर्य की किरणें पड़ रही थीं जिन्हें देखकर प्रोफेसर को लगा मानो अन्धकार में चाँदी का प्रवाह फूट पड़ा है अथवा प्रकृतिरूपी नायिका की काली आँखों से स्नेह गद्गद् आँसुओं की झड़ी लग गई हो। आँखों के आँसू बूंद के रूप में गिरते हैं और श्वेत होते हैं, उसी प्रकार झरने का झरना श्वेत दिखने के कारण आँसुओं सा दिख रहा था। उस झरने के पार पर एक चट्टान के सहारे एक पहाड़ी राजपूत बाला खड़ी थी, उसकी शक्ल भोली थी। उसकी आँखों से लेखक को अनुभव हुआ कि उसे प्रोफेसर का वहाँ आना अच्छा नहीं लगा। ऐसा प्रतीत हुआ कि हम पहाड़ी लोगों के बीच में यह अजनबी यहाँ क्यों आ गया है। इसका यहाँ क्या काम है, क्या अधिकार है?

विशेष –

  1. आलंकारिक शैली का प्रयोग किया गया है।
  2. पहाड़ी बालिका के भोलेपन का वर्णन अनुपम है।
  3. प्रकृति की सुषमा का यथार्थ वर्णन एवं आलंकारिक वर्णन दृष्टव्य है।

2. वे उन थोड़े से लोगों में से हैं, जिनका पेशा और मनोरंजन एक ही है- मनोरंजन के लिए भी वे पुरातत्त्व की ओर ही जाते हैं। यहाँ कुल्लू पहाड़ की सुरम्य उपत्यकाओं में भी वे सोचते हुए आए हैं कि यहाँ भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष उन्हें मिलेंगे और हिन्दू-काल की शिल्प कला के नमूने और धातु या प्रस्तर या सुधा की मूर्तियाँ और न जाने क्या-क्या लेकिन इतना सब होते हुए भी सौन्दर्य के प्रति-जीते-जागते स्पन्दन युक्त क्षणभंगुर, सौन्दर्य के प्रति उनकी आँखें अँधी नहीं हैं। (पृष्ठ 112)

सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कहानी ‘सेव और देव’ से उद्धृत है। इस कहानी के लेखक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय हैं। प्रोफेसर साहब प्राचीन इतिहास और पुरातत्व के अध्यापक हैं। उन्हें प्राचीन वस्तुओं और प्राचीन मन्दिरों को देखने का शौक है और आनन्द भी आता है। कुल्लू के पहाड़ पर प्राचीन मन्दिर देखने ही आए थे। उसी का उल्लेख यहाँ किया गया है।

व्याख्या – प्रोफेसर गजानन पुरातत्त्व और इतिहास के अध्यापक थे। उनका पेशा प्राचीन वस्तुओं और मन्दिरों को देखने का था और उन्हें देखने में भी उन्हें आनन्द आता था। उनकी रुचि उनके पेशे के अनुकूल ही थी। वे अपना मनोरंजन करने के लिए भी पुरातत्त्व की ओर ही जाते थे। अर्थात् प्राचीन वस्तुओं और इमारतों को देखने में उन्हें आनन्द आता था। कुल्लू की सुन्दर घाटियों में वे इसी आशा से आए थे कि यहाँ भारत की प्राचीनतम सभ्यता के अवशेष मिलेंगे जिन्हें देखकर उन्हें आनन्दानुभूति होगी। साथ ही हिन्दू-काल की शिल्प कला के नमूने मिलेंगे, धातु, प्रस्तर और सुधा की मूर्तियाँ मिलेंगी और भी नई-नई चीजें मिलेंगी, जिन्हें देखकर वे आनन्द का अनुभव करेंगे। इन सबके अतिरिक्त वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य के प्रति उनकी आँखें अन्धी नहीं थीं अर्थात् नई वस्तुओं को देखने की जिज्ञासा के साथ प्राकृतिक सौन्दर्य भी उनको आकर्षित कर रहा था। वे उस सौन्दर्य को देखकर गद्गद हो रहे थे। उन्हें यहाँ नई धातुओं और मन्दिर देखने का अवसर तो मिलेगा ही, प्रकृति की शोभा देखने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ जिसने उन्हें स्पन्दित कर दिया।

विशेष –

  1. प्रोफेसर के पेशे को वर्णन है।
  2. प्रोफेसर की रुचि एवं मनोरंजन का वर्णन है।
  3. कुल्लू के पहाड़ों पर मिलने वाले पदार्थों का उल्लेख है।
  4. प्रकृति के सौन्दर्य से प्रोफेसर के स्पन्दित होने का वर्णन है।

3. “ऐसे भले लोग न होते तो प्राचीन सभ्यता के जो अवशेष बचे हैं, ये भी क्या रह जाते। खुदा-न-खास्ता ये लोग यूरोपियन सभ्यता को सीखे हुए होते तो एक-दूसरे को नोचकर खा जाते हैं, उसकी राख भी न बची रहने देते। लेकिन यहाँ तो फाहियान के जमाने का ही आदर्श है, सबको अपने काम से मतलब है। दूसरे के काम में दखल देना, दूसरे के मुनाफे की ओर दृष्टि डालना यहाँ महापाप है।” (पृष्ठ संख्या 112-113)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कहानी ‘सेव और देव’ से उद्धृत है। इस कहानी के लेखक अज्ञेय जी हैं। यहाँ प्रोफेसर पहाड़ी लोगों के सम्बन्ध में सोचता है जो अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं, अपना काम करते हैं। गाने-बजाने में मस्त रहते हैं। ये सीधे-सादे लोग हैं। इसी भावना को यहाँ वर्णन किया गया है।

व्याख्या – ये पहाड़ी लोग अपने आप में लीन रहते हैं, इन्हें बाहर वालों से कोई मतलब नहीं। ये भोले और भले लोग हैं। अगर पहाड़ी जैसे भले लोग नहीं होते तो प्राचीन संस्कृति के दर्शन नहीं होते। प्राचीन सभ्यता के अवशेष इन्हीं के कारण बचे हुए हैं। इन पर यूरोपियन सभ्यता का प्रभाव नहीं पड़ा है। अगर ये उस सभ्यता में पले होते तो एक दूसरे को नोचकर खा जाते । एक दूसरे की आलोचना करते, आपस में लड़ते-झगड़ते और एक-दूसरे का नामोनिशान तक मिटा देते पर यहाँ तो फाहियान के समय की सीधी-सादी सभ्यता के दर्शन होते हैं। यहँ प्राचीन सभ्यता के आदर्श के दर्शन होते हैं। सभी अपने ही काम में मस्त रहते हैं, व्यस्त रहते हैं। दूसरे से, दूसरे के काम से कोई मतलब नहीं रखते। अपने अतिरिक्त दूसरे के लाभ-हानि पर विचार करना पाप समझते हैं। कोई क्या करता है। कितना कमाता है या खर्च करता है, इन्हें उससे कोई मतलब नहीं है।

विशेष –

  1. तुलनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
  2. फहियान के समय की सभ्यता का स्मरण किया गया है।
  3. खुदा-न-खास्ता जैसे उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।

4. साधारणतया ऐसी दशा में प्रोफेसर साहब किंचित ग्लानि से उसकी ओर देखते और आगे चल देते, लेकिन इस समय वैसा नहीं कर सके। उन्हें जान पड़ा कि यह लड़का उस सारी प्राचीन आर्य सभ्यता को एक साथ ही नष्ट-भ्रष्ट किए दे रहा है जो फाहियान के समय से सदियों पहले से अक्षुण्ण बनी चली आई है।” (पृष्ठ 113)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्य की पंक्तियाँ अज्ञेय जी की कहानी ‘सेव और देव’ से ली गई हैं। यह कहानी हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित है। सेव के पेड़ से फल तोड़कर एक लड़का कूदता है, उसने फलों की चोरी की है। प्रोफेसर को उससे कोई मतलब नहीं था, क्योंकि बगीचा उनका नहीं था। पर वे अपने को रोक नहीं सके और लड़के को पकड़ लिया। उन्हें प्राचीन सभ्यता की याद आई । इस प्रसंग में ये पंक्तियाँ लिखी गई हैं।

व्याख्या – लड़का सेव तोड़कर पेड़ से कूदा। उसके कूदने पर प्रोफेसर का ध्यान उसकी ओर गया। पेड़ों से उनका कोई सम्बन्ध नहीं था। इसलिए वे उपेक्षा करके चल सकते थे। उसकी ओर ध्यान भी नहीं देते। किन्तु उन्हें अनुभव हुआ कि यह लड़का सेवों की चोरी करके प्राचीन आर्य सभ्यता को नष्ट कर रहा है। प्राचीन सभ्यता में चोरी का नाम नहीं था, सभी-सच्चे ईमानदार थे। यह लड़का चोरी करके पहाड़ी लोगों को कलंकित कर रहा है। जो सभ्यता फाहियान के समय से अनवरत चली आई है, उसे यह अपने कार्य से कलंकित कर रहा है। इस कारण प्रोफेसर गजानन लड़के की करनी की उपेक्षा नहीं कर सके और रुक गये। उन्हें कुछ दु:ख हुआ कि यह लड़का यहाँ के लोगों को, यहाँ की सभ्यता को कलंकित कर रहा है।

विशेष –

  1. फाहियान ने समय की सभ्यता का स्मरण किया गया है।
  2. प्रोफेसर के स्वभाव का चित्रण हुआ है।

5. रास्ता अब फिर घिर गया था, लेकिन चीड़ के दीर्घकाय वृक्षों से नहीं, अब उसके दोनों ओर थे सेव के छोटे-छोटे लचीले गातवाले पेड़, डार-डार पर लदे हुए फलों के कारण मानो विनय से झुके हुए – क्योंकि जहाँ सार होता है, वहाँ विनय भी अवश्य होता है, क्षुद व्यक्ति ही अविनयी हो सकता है और कभी-कभी हवा से झूम से जाते हुए। (पृष्ठ 113)

सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश अज्ञेय द्वारा लिखित कहानी ‘सेव और देव’ से लिया गया है। यह कहानी हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित है। प्रोफेसर कुल्लू के पहाड़ पर चढ़ रहे हैं, रास्ते में सेव के लचीले वृक्षों से रास्ता घिर गया है। फलों से लदे होने के कारण पेड़ों की शाखाएँ झुक गई हैं। उसी प्राकृतिक सुषमा का वर्णन यहाँ किया गया है।

व्याख्या – प्रोफेसर बस से उतरकर और अपना सामान डाक बंगले पर पहुँचाने के बाद कुल्लू के पहाड़ पर चढ़ने लगे। रास्ते में पहले चीड़ के वृक्ष मिले, किन्तु आगे बढ़ने पर चीड़ के वृक्षों के स्थान पर सेव के लचीले वृक्ष मिले। रास्ता सेव के वृक्ष से घिर गया था। वे वृक्ष छोटे और लचीले गातवाले थे। सेव के वृक्षों की डालों पर सेव के फल लटके हुए थे जिनके कारण शाखाएँ झुक गई थीं। लेखक सोचता है जहाँ सार होता है वहाँ विनय अवश्य होती है, अर्थात् जो सज्जन और गम्भीर व्यक्ति होते हैं, वे हमेशा विनयी होते हैं। जो दुष्ट एवं क्षुद्र व्यक्ति होते हैं वे उद्दण्ड और अविनयी होते हैं। सेव के वृक्ष हवा के कारण कभी-कभी झुक जाते थे।

विशेष –

  1. मार्ग की प्रकृति का वर्णन हुआ है।
  2. सज्जन और दुष्ट व्यक्तियों का अन्तर दृष्टव्य है।
  3. फलों से लदे वृक्षों को यथार्थ वर्णन हुआ है।
  4. सेव के वृक्षों के आकार और लचीलेपन का वर्णन सजीव है।

6. देवत्व की कितनी उपेक्षा! मानव नश्वर है, यह मर जाए और उसकी अस्थियों पर कीड़े रेंगे, यह समझ में आता है। लेकिन देवता-पत्थर जड़ है, उसका महत्त्व कुछ नहीं! लेकिन मूर्ति तो देवता की है, देवत्व की चिरन्तनता की निशानी तो है। एक भावना है, पर भावना आदरणीय है। क्या यह मूर्ति यहीं पड़े रहने के काबिल है? इन कीड़ों के लिए जिनके पास श्रद्धा को दिल नहीं, पूजने को हाथ नहीं, देखने को आँख नहीं, छूने को त्वचा नहीं, टटोलने को ये हिलती हुई गन्दी पूँछे हैं …… यह मूर्ति कहीं ठिकाने से होती। (पृष्ठ 115)

सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्य पंक्तियाँ अज्ञेय जी की सुपरिचित कहानी ‘सेव और देव’ से उद्धृत हैं। यह कहानी हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। देवी की पुरानी मूर्ति को खण्डहर मन्दिर में सुनसान स्थान पर पड़ी देखकर प्रोफेसर गजानन सोचते हैं कि इस मूर्ति को यहाँ नहीं होना चाहिए। किसी उपयुक्त स्थान पर इसे होना चाहिए जहाँ इसकी पूजा हो सके। इसी प्रसंग में उपर्युक्त पंक्तियाँ लिखी गई हैं।

व्याख्या – प्रोफेसर गजानन निर्जन स्थान पर सूने मन्दिर में उपेक्षित पड़ी देवी की मूर्ति को देखकर सोचते हैं कि देवमूर्ति की इतनी उपेक्षा। यहाँ इसकी पूजा करने वाला कोई नहीं है। मनुष्य नश्वर है, मरणशीला है। उसके मरने के बाद उसकी अस्थियों पर कीड़ों को चलना तो स्वाभविक है, यह बात समझ में भी आती है। लेकिन देवता की मूर्ति चाहे वह पत्थर की है जड़ है क्या उसको महत्व नहीं है। पत्थर की मूर्ति है, इससे क्या तात्पर्य, पर उसके प्रति भावना तो आदर की है। पत्थर की मूर्ति होने पर भी वह दैवी शक्ति की शाश्वतता की निशानी तो है। उसके प्रति लोगों की भावना तो श्रेष्ठ है। ऐसी पवित्र एवं देवत्व की भावना से युक्त इस मूर्ति को यहाँ पड़े रहना क्या उचित है। यह मूर्ति यहाँ नहीं होनी चाहिए, इससे देवत्व की भावना का अनादर होता है।

यह मूर्ति इन कीड़ों के बीच में पड़ी हैं। उन कीड़ों के बीच जिनमें श्रद्धा नहीं है। पूजा करने के लिए हाथ नहीं हैं, आँखें नहीं हैं मूर्ति को स्पर्श करने के लिए कोई साधन नहीं है, केवल गन्दी मूंछों से कीड़े इस मूर्ति को टटोलते हैं, इस ऐसे गन्दे स्थान पर नहीं होना चाहिए। यदि यह अच्छे स्थान पर होती तो इसकी कितनी उपासना होती। यह इस तरह उपेक्षित नहीं पड़ी रहती। लोग श्रद्धा से इसकी पूजा करते।

विशेष –

  1. प्रोफेसर की भावना का सुन्दर चित्रण किया गया है।
  2. मूर्ति की उपेक्षा का वर्णन है।
  3. मन्दिर की खण्डहर स्थिति का चित्रण दृष्टव्य है।
  4. कीड़ों का मूर्ति पर रेंगने का वर्णन चित्रित है।

7.“मैं भी क्या यहाँ के लोगों की तरह अंधविश्वासी हूँ जो प्रेतों को मानूंगा? कविता के लिहाज से भले ही मुझे सोचना अच्छा लगे कि यहाँ प्रेत बसते हैं और रात में जब अँधेरा हो जाता है तब इस मन्दिर में देवी के आसपास नाचते हुए……देवी है, शिव है, इसके गण भी तो होने ही चाहिए। रात को मूर्तियों को घेर-घेर कर नाचते होंगे।”

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश सेव और देव’ कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय हैं। यह कहानी हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है। प्रोफेसर पहाड़ी की चोटी पर स्थित देवी के मन्दिर में पहुँचते हैं। घहाँ देवी गणेश और शिव की मूर्तियाँ हैं। वे देवी के सौन्दर्य को देखकर उसे उठाते हैं। तब किसी अज्ञात आशंका के कारण उनका हृदय धड़कने लगता है। तब वे स्वत: अपने आप से बात करते हैं कि दिल धड़क क्यों रहा है। इसी क्रम में यह बात कही गई है।

व्याख्या – प्रोफेसर से ग्रामीण पहाड़ी व्यक्ति ने कहा था कि वहाँ कोई नहीं जाता, वहाँ पुराने राजाओं के भूत-प्रेत बसते हैं। प्रोफेसर को उसी की बात याद आती है। वे सोचते हैं कि क्या मुझे भूत-प्रेतों का डर लग रहा है। पर मैं तो प्रेतों को मानता ही नहीं यह तो अन्ध-विश्वास है, अशिक्षित लोगों की बात है। मैं भूत-प्रेतों में विश्वास नहीं करता फिर मेरा दिल क्यों घबरा रहा है, क्यों धड़क रहा है। कवि लोग कल्पना के आधार पर अपनी कविता में प्रेतों का वर्णन कर सकते हैं। लेकिन वह उसकी कल्पना ही होती है। यथार्थ नहीं कवि कल्पना कर सकता है कि देवी के मन्दिर में रात को प्रेत देवी की मूर्ति के पास आकर नाचते हैं। कवि कविता में इनका वर्णन कर सकता है। मेरे कवि हृदय तो प्रेतों की कल्पना कर सकता है और देवी के मन्दिर में नाचने की कल्पना कर सकता है। पर वास्तविक जगत में ऐसा नहीं है। फिर मैं क्यों घबरा रहा हूँ? यहाँ देवी और शिव की प्रतिमाएँ हैं तो उनके गण तो होंगे ही और वे रात को मूर्तियों के पास आकर नाचते भी होंगे। पर मुझे उनसे क्या लेना-देना मैं क्यों उस अन्धविश्वास में पड़ रहा हूँ।

विशेष –

  1. प्रोफेसर का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया गया है।
  2. भूत-प्रेतों की कल्पना को निराधार बताया है।
  3. प्रोफेसर की धड़कन का चित्रण हुआ है।
  4. पहाड़ी लोगों के अन्धविश्वास का उल्लेख किया गया है।

8. उस समय प्रोफेसर के भीतर जो कुल्लू-प्रेम का ही नहीं मानव-प्रेम का संसार भर की शुभेच्छा का रस उमड़ रहा था, उसकी बराबरी कुल्लू के रस-भरे सेव भी क्या करते। प्रोफेसर साहब की स्नेह उंडेलती हुई दृष्टि के नीचे वे मानो और पक कर रस से भर जाते थे, उनका रंग कुछ और लाल हो जाता था, कितने रस-गद्गद हो रहे थे प्रोफेसर साहब। (पृष्ठ 117)

सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक कहानी ‘सेव और देव’ से से उद्धृत है। इस कहानी के लेखक अज्ञेय जी हैं। प्रोफेसर साहब देवी के मन्दिर से मूर्ति लेकर आये हैं। मूर्ति देवी की है, सुन्दर है और बहुमूल्य है। उसे लेकर अनेक कारण प्रोफेसर साहब बहुत प्रसन्न हैं, उनका मन प्रसन्न है, इसलिए उन्हें बाह्य प्रकृति भी सुन्दर और रसमयी दिखाई देती है। उसी का वर्णन यहाँ किया गया है।

व्याख्या – प्रोफेसर साहब देवी के मन्दिर से मूर्ति उठाकर लाये हैं, वे अत्यधिक प्रसन्न हैं। मन चंगा तो खटौती में गंगा की लोकोक्ति के अनुसार उन्हें बाहरी प्रकृति भी प्रसन्न और आनन्दमय दीखती है। वे कुल्लू के सौन्दर्य से ही अभिभूत नहीं थे, कुल्लू का प्रेम ही उन्हें। प्रसन्न नहीं कर रहा था। बल्कि मानव प्रेम का संसार भर की शुभेच्छा का रस उमड़ रहा था। उन्हें इस समय जो आनन्द, जो सुख प्राप्त हो रहा था वह उन रस भरे सेवों से भी प्राप्त नहीं होता। उन्हें इस समय अपार सुख और आनन्द प्राप्त हो रहा था। आज उन्हें व सेव जिनका स्वाद वे पहले भी ले चुके हैं, अधिक रस भरे मीठे और पके हुए दिखते थे। आज प्रोफेसर साहब अधिक रसयुक्त हो रहे थे। उनका मन प्रसन्नता के कारण बल्लियों उछल रहा था। अपनी खुशी के आगे उन्हें सब कुछ फीका दिखाई पड़ रहा था। सेवों के रस की अनुभूति भी उन्हें मूर्ति प्राप्त करने के रस की अनुभूति से फीकी जान पड़ती थी। वे अनुभव कर रहे थे कि इस मूर्ति के दर्शन करके संसारभर के लोग प्रसन्न होंगे। उनकी शुभभावनाएँ मुझे प्राप्त होंगी।

विशेष –

  1. प्रोफेसर की मन:स्थिति का चित्रण किया गया हो।
  2. प्रोफेसर की अत्यधिक प्रसन्नता का वर्णन हुआ हो।
  3. मानव स्वभाव का यथार्थ चित्रण हुआ हो।
  4. मनपसन्द वस्तु प्राप्त होने पर प्रसन्नता होगी, इसका विश्लेषण किया गया है।

9. तर्क उन्हें सुझाने लगा कि बेवकूफी है, उनकी दलील बिलकुल गलत है, तुलना आधारहीन है, लेकिन वे न जाने कैसे इसे सब बुद्धि की प्रेरणा के प्रति बहरे हो गए थे। जैसे कोलाहल बढ़ने लगा, उसे रोक रखने के लिए उनकी गति भी तीव्रतर होती गई। (पृष्ठ 118)

सन्दर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कहानी ‘सेव और देव’ से लिया गया है। इस कहानी के लेखक अज्ञेय जी हैं। लड़के को चाँटा मारने के बाद लेखक पर ग़ाज गिरी। वह सोचने लगा कि लड़के ने तो सेव ही चुराया है, जिसकी यहाँ कोई कीमत नहीं है, पर तुम तो देवस्थान लूट लाये हो। यह सोचकर वे मूर्ति मन्दिर में रखने लौट जाते हैं। तब उनके मन में जो विचार आता है, उसी का यहाँ वर्णन है।

व्याख्या – प्रोफेसर को यह अनुभव हुआ कि लड़के की चोरी इतनी बड़ी नहीं है जितनी बड़ी चोरी मैंने की है। मैं तो देवस्थान ही लूट लाया हूँ। यह सोचकर वे मूर्ति मन्दिर में रखने के लिए लौट पड़े। उस समय बुद्धि ने तर्क दिया कि इस मूर्ति का सुनसान टूटे मन्दिर में रखना अनुचित है। यह मूर्ति बहुत पुरानी और बहुमूल्य है। इसे उपयुक्त स्थान पर ही रखना चाहिए। यह सोचना कि मैं मूर्ति चुराकर ले जा रहा हूँ अनुचित है। यहाँ की मूर्ति यहीं रहनी चाहिए, यह विचार निरर्थक है। लड़के की चोरी से अपनी चोरी की तुलना करना अनुचित है। सेव इतने कीमती नहीं हैं जितनी यह मूर्ति कीमती और महत्त्वपूर्ण है। पर प्रोफेसर साहब इतने भावुक हो गए थे कि उन्होंने अपनी बुद्धि के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया और वे मूर्ति को यथास्थान रखने के लिए लौट गए। मन में जैसे-जैसे अन्तर्द्वन्द्व बढ़ने लगा और लोगों की हलचल बढ़ने लगी, उनकी गति भी तीव्र होती गई। वे लोगों की निगाह से बचकर शीघ्र ही मन्दिर तक पहुँच जाना चाहते थे ताकि वे मूर्ति को मन्दिर में रख सकें।

विशेष –

  1. प्रोफेसर के अन्तर्द्वन्द्व का अच्छा वर्णन है।
  2. तार्किक बुद्धि का चित्रण हुआ है।
  3. लड़के और प्रोफेसर की तुलना का वर्णन प्रासंगिक है।
  4. प्रोफेसर की भावुकता का चित्रण सजीव है।

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