RBSE Solutions for Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई (व्यंग्य निबंध)

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई (व्यंग्य निबंध)

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
इस निबन्ध के अनुसार क्रांतिकारियों की क्रांति की सबसे बड़ी दुश्मन कौन है?
(क) माँ ।
(ख) फादर इन ला
(ग) पिता
(घ) मदर इन लो।
उत्तर:
(घ) मदर इन लो।

प्रश्न 2.
निबन्ध में लेखक नारी मुक्ति का कारण किसको मानता है?
(क) संस्कारों को
(ख) महँगाई को
(ग) सरकार को
(घ) विज्ञान को।
उत्तर:
(ख) महँगाई को

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पिण्डदान करने जाते समय इलाहाबाद को किस नाम से पुकारते हैं?
उत्तर:
पिण्डदान करने जाते समय इलाहाबाद को प्रयोग कहकर पुकारते हैं।

प्रश्न 2.
मदर इन ला और सास में क्या फर्क है?
उत्तर:
मदर इन ला और सास दोनों पर्यायवाची शब्द हैं। एक अंग्रेजी का शब्द है दूसरा हिन्दी का। दोनों में तजुर्बे का अन्तर है।

प्रश्न 3.
लेखक के मित्र जो कि उन्हें घर ले जाते हैं, उनके यहाँ बिना पर्दे के एकमात्र मादा कौन थी?
उत्तर:
लेखक के मित्र के घर बिना पर्दे की एकमात्र मादा बिल्ली थी।

प्रश्न 4.
संस्कारों के सीने पर चढ़कर गला कौन दबा रहा है?
उत्तर:
अर्थशास्त्र संस्कारों के सीने पर चढ़कर गला दबा रहा है।

प्रश्न 5.
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ नामक निबन्ध परसाई जी के किस निबन्ध संग्रह से लिया गया है?
उत्तर:
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ नामक निबन्ध परसाई जी के निबन्ध संग्रह ‘शिकायत मुझे भी है’ से लिया गया है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
लेखक को दोस्त के पिता की मृत्यु की अपेक्षा किसकी चिन्ता अधिक थी?
उत्तर:
लेखक को दोस्त के पिता की मृत्यु की अपेक्षा उसकी चिन्ता अधिक थी जिसे उन्होंने बीस साल से सच्चा पिता मान रखो था। मार्क्सवाद को उन्होंने सच्चा पिता मान रखा था, लेखक को उसी की चिन्ता थी।

प्रश्न 2.
लेखक के अनुसार प्रयाग और इलाहाबाद में क्या अन्तर है?
उत्तर:
लोग जब चोरी करने जाते हैं, तब इस शहर को इलाहाबाद कहते हैं, पिण्डदान करने जाते हैं तब प्रयाग कहते हैं।

प्रश्न 3.
लेखक ‘मदर इन ला’ को क्रान्ति का दुश्मन क्यों मानता है?
उत्तर:
मदर इन ला क्रान्तिकारी के विचारों को बदल देती है। वह दोस्त को धोती पहनकर पालथी मार कर सत्यनारायण की कथा सुनने को विवश कर देती है और कहती है – ‘लाला अपना नहीं तो बच्चों को तो ख्याल करो।’ बच्चों का ध्यान दिलाकर क्रान्ति के विचारों को बदल देती है। इसलिए लेखक ने उसे क्रान्ति का दुश्मन कहा है।

प्रश्न 4.
लेखक के पास सुनाने का आग्रह करने पर किस-किस तरह के नुस्खे हैं?
उत्तर:
लेखक के पास प्रौढ़ों को सुनाने के लिए डायबटीज का नुस्खा है। बच्चों के लिए कुकुर खाँसी का नुस्खा है। लेखक बच्चे को राक्षस की कहानी तुरन्त सुना देता है। ससुर को कृष्ण-सुदामा की कहानी भी सुना सकता है। सबके लिए सुनाने के नुस्खे उसके पास

प्रश्न 5.
लड़की की माता की किस तरह की सोच से पता लगा कि अर्थशास्त्र ने संस्कारों को पटकनी दे दी?
उत्तर:
माँ ने सोचा, यह जो 15 हजार दहेज के लिए रखे थे, साफ बेचे। 15 हजार में इतना अच्छा लड़को नहीं मिलता। उन्होंने कार्ड बाँट कर दावत दे दी। इस तरह अर्थशास्त्र ने संस्कारों को पटकनी दे दी, पहले वह शादी को बुरा समझ रही थी, किन्तु 15 हजार की बचत ने सारे संस्कारों को समाप्त कर दिया।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ निबन्ध के आधार पर परसाई जी की लेखन शैली की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
परसाई जी व्यंग्यकार निबन्ध लेखक हैं। उनकी शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ हैंभाषा- परसाई जी की भाषा में व्यंग्य की प्रधानता है। भाषा सामान्य होते हुए भी विशेष क्षमता रखती है। एक-एक शब्द तीखापन लिए होता है। तत्सम शब्दों के अतिरिक्त-उर्दू और अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी खुलकर किया है। जैसे- हैसियत, फजीहत, डाइबटीज, मदर इन ला आदि।

व्यंग्यात्मक शैली – परसाईजी ने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग किया है। आपने पाखण्ड, बेईमानी, भ्रष्टाचार आदि पर व्यंग्यों की तीखी चोट की है। प्रस्तुत निबन्ध में विचारों और आचरण में विरोध का सशक्त तरीके से उद्घाटन किया है। आज लोग अपना उल्लू सीधा करने के लिए हर किसी को अपना बाप बना लेते हैं। इस बात पर व्यंग्यकार इस प्रकार व्यंग्य करता है- ‘जिनकी हैसियत है, वे एक से ज्यादा भी बाप रखते हैं। ….. इधर एक आदमी है जिसके परसों तक 35 बाप थे।’ मार्क्सवादी विचारधारा का व्यक्ति भी पिण्डदान करता है, मुण्डन कराता है, इस पर भी व्यंग्य किया है। मदर इन ला के कहने पर सत्यनारायण की कथा सुनता है। अर्थशास्त्र किस प्रकार संस्कारों को कुचल देता है, इस पर भी लड़की की शादी और पत्नी की नौकरी के माध्यम से व्यंग्य किया है।

मुहावरेदार शैली – परसाईजी की रचनाओं में भाषा, भाव और भंगिमा के अनुरूप स्वरूप बदलती है। भाषा शैली में भी सहज परिवर्तन होता है। अपने भावों को प्रकट करने के लिए मुहावरों को सहज प्रयोग किया है। मुहावरे अप्रयास ही सहजता से आ गए हैं, जैसेरंगे हाथों पकड़ना, सीने पर चढ़कर, हाय-तौबा मचाना आदि। मुहावरों के प्रयोग से भाषा सशक्त हो गई है। कहीं-कहीं सूत्रात्मक शैली भी अपनाई है- जैसे ‘एबुलेंस की गाड़ी ने ही मुझे कुचल दिया।”इसमें द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है।’ आदि ।

प्रश्न 2.
पाठ का सार लिखते हुए उसके मूल उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
निबन्ध में विभिन्न घटनाओं के द्वारा लेखक ने अपने उद्देश्य की पूर्ति की है। लेखक के मित्र वैज्ञानिक दृष्टि रखने वाले आधुनिक बुद्धि वादी हैं। अपने पिता की मृत्यु पर मुण्डन कराते हैं और उनकी राख को गंगा में विसर्जन करने के लिए और पिण्डदान के लिए प्रयाग जाते हैं। वे मार्क्सवादी विचारधारा के हैं किन्तु परिवार के संस्कारों से बँधे होने के कारण मुण्डन कराते हैं। मित्र बीस वर्ष से राजनीति में हैं। उनके भी कोई है इसमें सन्देह था। पिता की बात सुनकर लेखक को आश्चर्य हुआ। एक मित्र पूर्णत: वैज्ञानिक दृष्टि वाले हैं। विचार और कर्म से क्रान्तिकारी। धार्मिक अन्धविश्वास में तनिक भी आस्था नहीं रखते। वे भी परिवार के कहने पर धोती पहन पालथी मारकर सत्यनारायण की कथा सुनते हैं। चाची के कहने पर कि चाची जी की स्वर्ग में दुर्गति होगी वे अपने क्रान्तिकारी विचारों को त्याग देते हैं।

अर्थशास्त्र संस्कारों पर विजय प्राप्त करता है। एक व्यक्ति लेखक को चाय पीने अपने घर ले जाते हैं। उनकी पत्नी पहली बार तो बाहर नहीं आती। दूसरी बार बाहर आती है और चाय की ट्रे रखकर चली जाती है, क्योंकि उन्हें स्कूल जाना है। एक घटना और है। लड़का लड़की की स्वीकृति पर सरकारी विवाह करता है। संस्कारों के कारण माँ पहले तो विरोध करती है बाद में यह सोचकर कि 15 हजार बचे वह उस सम्बध को स्वीकार कर लेती है। इस प्रकार महँगाई और दहेज के कारण अर्थशास्त्र संस्कारों पर विजय प्राप्त कर लेता है। उद्देश्य – इस निबन्ध के माध्यम से लेखक विचारों और आचरण में विरोध का उद्घाटन करता है। घटनाओं के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि विपरीत परिस्थितियों के दबाव में सिद्धान्तवादियों के सिद्धान्त टूट जाते हैं। आचरण और विचार में विरोध, व्यवहार में दोगलेपन को प्रस्तुत करना ही लेखक का उद्देश्य है।

प्रश्न 3.
पाठ में आए निम्नलिखित गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) यों कोई बुरी बात नहीं ……………… उसके 38 बाप हो गए हैं।
(ख) अर्थशास्त्र संस्कारों के सीने ………………. तो हम एक भोज दे दें।
उत्तर:
इन गद्यांशों की व्याख्या के लिए महत्वपूर्ण गद्यांशों की प्रसंग एवं संदर्भ सहित व्याख्याएँ शीर्षक प्रकरण देखें।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ निबन्थ है –
(क) भावात्मक
(ख) व्यंग्यात्मक
(ग) विचारात्मक
(घ) वर्जनात्मक
उत्तर:
(क) भावात्मक

प्रश्न 2.
प्रयाग को इलाहाबाद कौन कहते हैं?
(क) भ्रमण करने वाले
(ख) गंगा स्नान करने वाले
(ग) पिण्डदान करने वाले
(घ) चोरी करने वाले
उत्तर:
(घ) चोरी करने वाले

प्रश्न 3.
संविद सरकार टूटने पर आदमी के कितने बाप रह गए?
(क) 15
(ख) 38
(ग) 35
(घ) 20
उत्तर:
(क) 15

प्रश्न 4.
बीस साल से मित्र ने सच्चा पिता किसे मान रखा था?
(क) अद्वैतवाद को
(ख) समाजवाद को
(ग) माक्र्सवाद को
(घ) फ्राइडवाद को
उत्तर:
(ग) माक्र्सवाद को

प्रश्न 5.
‘जिनकी हैसियत है, वे एक से ज्यादा भी बाप रखते हैं’ कथन में भाव है –
(क) व्यंग्य का
(ख) उपहास का
(ग) हास्य का
(घ) उपालम्भ का
उत्तर:
(क) व्यंग्य का

प्रश्न 6.
लेखक के दूसरे मित्र विचार और कर्म दोनों से हैं –
(अ) सिद्धान्तवादी
(ख) क्रान्तिकारी
(ग) तर्कवादी
(घ) संघर्षकारी
उत्तर:
(ख) क्रान्तिकारी

प्रश्न 7.
मदर इन ला और सास में फर्क है –
(क) विचारों का
(ख) अवस्था का
(ग) सिद्धान्तों का
(घ) तजुर्बे का
उत्तर:
(घ) तजुर्बे का

प्रश्न 8.
क्रान्तिकारी का पहला और सबसे बड़ा संघर्ष होता है
(क) फांदर इन ला से
(ख) मदर इनं ला से
(ग) ब्रदर इन ली से
(घ) अंकिल इन ला से
उत्तर:
(ख) मदर इनं ला से

प्रश्न 9.
साँकल किस युग की घरेलू कॉलबेल है?
(क) आदिम युग की
(ख) चरागाह युग की
(ग) धातु युग की
(घ) मध्य युग की
उत्तर:
(ग) धातु युग की

प्रश्न 10.
माँ ने लड़की की सरकारी शादी को स्वीकार क्यों कर लिया?
(क) चिन्ता से मुक्ति मिली
(ख) परिश्रम बचा
(ग) कष्ट मिटा
(घ) दहेज़ बचा
उत्तर:
(घ) दहेज़ बचा

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ निबन्ध में लेखक ने किस बात का उदघाटन किया है?
उत्तर:
इस निबन्ध में व्यंग्यकार ने विचारों और आचरण में विरोध का सशक्त रूप में उद्घाटन किया है।

प्रश्न 2.
लेखक को कैसे पता लगा कि मित्र का भी कोई था?
उत्तर:
मित्र पिताजी का पिण्डदान करने प्रयाग जा रहे थे और उनका मुण्डन हुआ था। इससे लेखक ने अनुमान लगाया कि उनका भी कोई थी।

प्रश्न 3.
‘जिनकी हैसियत है, वे एक से ज्यादा भी बाप रखते हैं।’ लेखक को आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यक्ति स्वार्थी है। जहाँ और जिससे स्वार्थ सिद्ध होता है, वही उसे महत्त्व दे देता है और बाप बना लेता है।

प्रश्न 4.
दोस्त को बाप के मरने का दुःख क्यों नहीं था?
उत्तर:
बाप 80 वर्ष के थे और उनके मरने से कोई अनाथ नहीं हुआ था। इसलिए दोस्त के बाप के मरने का दु:ख नहीं था।

प्रश्न 5.
उन्होंने खुद अपने हाथों मार्क्सवाद का मुण्डन कर दिया था। लेखक का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक का आशय है कि दोस्त ने जिस मार्क्सवादी सिद्धान्त का बीस वर्ष से पालन किया था उसे एक झटके में तोड़ दिया, उसे भुला दिया।

प्रश्न 6.
मैं समझा, इसमें द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है।’ द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
मार्क्सवादी सिद्धान्त और संस्कारों में संघर्ष हो गया। आचरण और विचार में टकराव हो गया। व्यवहार में दोगलापन हो गया।

प्रश्न 7.
‘मेरी जो फजीहत हुई, मैं ही जानता हूँ।’ दोस्त की फजीहत क्यों हुई?
उत्तर:
चाचा की मृत्यु के बाद श्राद्ध न करने का दोस्त ने ऐलान कर दिया। परिवार के संस्कारों को तोड़ने का निश्चय किया। इसलिए फजीहत हुई।

प्रश्न 8.
‘अगर तुम्हारी यह भावना है तो मैं क्रान्ति छोड़ देता हूँ।’ दोस्त चाची की किस भावना को देखकर क्रान्ति छोड़ देता है?
उत्तर:
यदि चाची यह कह देती कि तुम्हारे चाचा की आत्मा को दु:ख होगी, परलोक में उनकी दुर्गति हो जाएगी, तो दोस्त क्रान्ति को छोड़ने को तैयार हो जाता।

प्रश्न 9.
लेखक के दूसरे दोस्त किस प्रकार के थे?
उत्तर:
दूसरे दोस्त वैज्ञानिक दृष्टि वाले थे तथा विचार और कर्म दोनों से क्रान्तिकारी थे।

प्रश्न 10.
मुझे लगा जैसे एंबुलेंस की गाड़ी ने ही मुझे कुचल दिया हो। लेखक को ऐसा अनुभव क्यों हुआ?
उत्तर:
लेखक ने दोस्त को परिवार के संस्कारों से बँधे होने के कारण धोती पहने, पालथी मारे सत्यनारायण की कथा सुनते देखा। तब उसे लगा कि एंबुलेंस की गाड़ी ने ही उसे कुचल दिया है।

प्रश्न 11.
लेखक ने दोस्त को झूठ नारायण कहकर क्यों पुकारा?
उत्तर:
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और क्रान्तिकारी विचारों का ढोल पीटने पाला मित्र परिवार के संस्कारों के कारण सत्यनारायण की कथा सुन रहा था। उसकी कथनी और करनी में अन्तर था। इसलिए झूठ नारायण कहा।

प्रश्न 12.
लाला की क्रान्तिकारिता भ्रान्तकारिता में कब बदल जाती है?
उत्तर:
जब मदर इन ला आकर कहती है लाला अपना नहीं तो बच्चों का तो ख्याल करो, तब लाला की क्रान्तिकारिता भ्रान्तकारिता में बदल जाती है।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ शीर्षक निबन्ध में व्यक्त लेखक के विचारों को संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
निबन्ध में लेखक ने विचारों और आचरण में विरोध दिखाया है। निबन्ध में कई घटनाओं से यह व्यक्त किया है कि थोड़ी-सी विपरीत परिस्थिति उत्पन्न होने पर सिद्धान्तवादियों के सिद्धान्त समाप्त हो जाते हैं। आचरण और विचार के विरोध, व्यवहार में दोगलापन उपस्थित कर देते हैं। इन्हीं विचारों को इस निबन्ध में व्यक्त किया है।

प्रश्न 2.
दोस्त को मॅड़े सिर देखकर लेखक को आश्चर्य क्यों हुआ?
उत्तर:
लेखक का दोस्त वैज्ञानिक दृष्टिवाला, बुद्धिवादी और क्रान्तिकारी बनता था। परिवार से नाता तोड़कर बीस साल से राजनीतिक कार्य में लगा था। लेखक समझता था कि इनके कोई नहीं है। लेकिन दोस्त से यह सुनकर कि फादर की मृत्यु हो गयी और पिण्डदान के कारण मुण्डन कराया है। लेखक को आश्चर्य हुआ कि जो अपने को क्रान्तिकारी और वैज्ञानिक दृष्टि वाली कहता है, इन संस्कारों से कैसे बँध गया है। क्या इसका भी परिवार है। इन्हीं कारणों से लेखक को आश्चर्य हुआ।

प्रश्न 3.
‘वे एक से ज्यादा बाप रखते हैं।’ लेखक ने किन पर किस प्रकार व्यंग्य किया है?
उत्तर:
लेखक ने उन लोगों पर व्यंग्य किया है जो अपना काम निकालने के लिए दूसरे लोगों को अथवा सामने वाले को व्यर्थ ही महत्त्व देते हैं। ऐसे लोग अवसरवादी होते हैं। जिसका पल्ला भारी होता है उधर ही झुक जाते हैं और उसे ही महत्त्व दे देते हैं। इनके अनगिनत बाप हो जाते हैं। एक बाप घर में, एक दफ्तर में, एक बाजार में और एक-एक बाप प्रत्येक राजनीतिक दल में होते हैं। ऐसे लोगों के बापों की संख्या घटती-बढ़ती रहती है। इस प्रकार के स्वार्थी लोगों पर लेखक ने व्यंग्य किया है। सरकार के बदलने पर इनके बापों की संख्या भी बदल जाती है।

प्रश्न 4.
लेखक को दोस्त के बाप की मृत्यु की अपेक्षा उसकी अन्य बात की चिन्ता थी। उसे स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक को दोस्त के बाप की मृत्यु की चिन्ता इसलिए नहीं थी क्योंकि वह उन्हें जानता नहीं था। उनकी आयु भी 80 वर्ष थी और वे किसी को अनाथ भी नहीं छोड़ गए थे। दोस्त ने जिस मार्क्सवाद को बीस वर्ष से गले लगा रखा था, वह सिद्धान्त टूट गया था। लेखक को इसी की चिन्ता थी। उनकी वह मार्क्सवादी मान्यता संस्कारों के आगे झुक गई थी। इसी चिन्ता ने लेखक को परेशान कर रखा था।

प्रश्न 5.
दोस्त अपने क्रान्तिकारी विचार को कब छोड़ देता?
उत्तर:
यदि कोई सामाजिक क्रान्ति में बौद्धिक विश्वास से लगा हो तभी परिवार का कोई सदस्य या चाची कह दे कि बेटा तुम्हारे चाचा की आत्मा को परलोक में दु:ख होगा, परलोक में उनकी दुर्गति होगी। यह सुनकर मार्क्सवादी सिद्धान्त को मानने वाला क्रान्तिकारी अपनी क्रान्ति की भावना को चाची को प्रसन्न करने के लिए छोड़ देता।

प्रश्न 6.
एंबुलेंस की गाड़ी ने ही मुझे कुचल दिया।’ लेखक के भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक अपने मित्र का वैज्ञानिक दृष्टि वाला और क्रान्तिकारी विचारधारा वाला समझता था। वह सोचता था कि दोस्त धार्मिक अन्धविश्वास में नहीं फंसेगा, किन्तु लेखक ने देखा कि वह सत्यनारायण की कथा सुन रहा था। यह देखकर उसकी भावना को, उसके विश्वास को ठेस लगी। दोस्त के विचार कुछ और थे और व्यवहार-आचरण कुछ और था। जैसे एंबुलेंस की गाड़ी सहायता करती है, मरीजों को लाती ले जाती है, वही हत्या कर दे तो सभी को बुरा लगेगा। इसी प्रकार दोस्त के आचरण और विचारों में अन्तर देखकर उसे लगा कि एंबुलेंस गाड़ी ने ही मुझे कुचल दिया है।

प्रश्न 7.
मदर इन ला को क्रान्ति की दुश्मन क्यों बताया है?
उत्तर:
मदर इनला क्रान्ति की दुश्मन होती है। वह लाला (दामाद) के क्रान्तिकारी विचारों को बदल देती है। परिवार के संस्कारों के अनुसार आचरण करने को विवश कर देती है। यदि वह न माने तो मदर इनला बच्चों का ध्यान दिलाकर क्रान्तिकारी को परिवार की मान्यता और संस्कारों को मानने के लिए विवश कर देती है। इस प्रकार मदर इनला क्रान्तिकारी की क्रान्ति की भावना की दुश्मन बन जाती है।

प्रश्न 8.
अर्थशास्त्र संस्कारों पर भारी पड़ता है। लेखक ने इसे कैसे सिद्ध किया है?
उत्तर:
लेखक ने संस्कारों पर अर्थशास्त्र की विजय दिखाने के लिए दो घटनाओं का उल्लेख किया है। पहली घटना उस परिवार की है जहाँ स्त्री परिवार की मान्यताओं का और पर्दा प्रथा का उल्लंघन करके स्कूल में नौकरी करने जाती है। अर्थशास्त्र ने परिवार के संस्कारों पर विजय पा ली। दूसरी घटना उस परिवार की है जहाँ लड़का-लड़की सरकारी शादी कर लेते हैं। माता परिवार के संस्कारों के कारण पहले मना करती है फिर स्वीकार कर लेती है। क्योंकि इससे दहेज के 15 हजार बचते हैं। दोनों घटनाएँ संस्कारों पर अर्थशास्त्र की विजय दिखाती हैं।

प्रश्न 9.
लेखक अपने पास किस प्रकार के नुस्खे रखता है?
उत्तर:
लेखक के पास अलग-अलग अवस्था वालों के लिए सुनाने को अलग-अलग नुस्खे हैं। प्रौढ़ों को सुनाने के लिए डाइबटीज का नुस्खा है। बच्चों को बहलाने के लिए कुकुर-खाँसी और राक्षस की कहानी का नुस्खा है। यदि आवश्यकता हो तो लेखक ससुर साहब को कृष्ण-सुदामा की कहानी सुना सकता है। वह हर अवसर पर हर प्रकार की कहानी सुनाने को तैयार रहता है।

प्रश्न 10.
लड़की की माता ने लड़की की सरकारी शादी को स्वीकार क्यों कर लिया?
उत्तर:
अर्थशास्त्र ने संस्कारों पर विजय प्राप्त कर ली थी। पहले माता ने इस विवाह का विरोध किया क्योंकि संस्कार प्रबल थे। बाद में यह सोचकर कि लड़का योग्य है, सुन्दर है और अच्छी नौकरी वाला है। माता ने सोचा दहेज के 15 हजार बचे। 15 हजार में भी इतना अच्छा लड़का नहीं मिलता, यही सोचकर लड़की की माता ने लड़की की सरकारी शादी स्वीकार कर ली।

RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 21 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ निबन्ध व्यंग्यात्मक निबन्ध है। सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
व्यंग्यकार परसाई जी ने पाखण्ड, बेईमानी, भ्रष्टाचार आदि व्यंग्यों की करारी चोट की है। इस निबन्ध में उन्होंने विचार और आचरण के विरोध का सशक्त तरीके से उद्घाटन किया है। मार्क्सवादी सिद्धान्त में विश्वास करने वाला क्रान्तिकारी व्यक्ति भी परिवार के संस्कारों से बँधकर मुण्डन कराता है। लेखक ने उसके सिद्धान्त पर चोट करते हुए लिखा- ‘उन्होंने खुद अपने हाथों मार्क्सवाद का मुण्डन कर दिया था।’ अवसरवादी लोग हर किसी को अपना बाप बना लेते हैं, उन पर व्यंग्य करते हुए लिखा -‘जिनकी हैसियत है, वे एक से ज्यादा भी बाप रखते हैं।’ मदर इन ला के कहने पर अपने क्रान्तिकारी विचारों को छोड़ने वाले व्यक्तियों पर व्यंग्य करते हुए लिखा- ‘मदर इन ला के शिकार 20-25 क्रान्तिकारियों की हड्डियाँ तो इधर मेरे पास ही रखी हैं। पर्दा प्रथा पर करारी चोट की – ‘उस घर में बिल्ली एकमात्र मादा थी, जो पर्दा नहीं करती थी। इसी प्रकार आधुनिक सभ्यता पर व्यंग्यबाण चलाते हुए उन्होंने लिखा – ‘आप लोग चाय पिएँ। मेरा स्कूल का वक्त हो गया। वे चप्पल फटकारती सीढ़ी से उतर गईं।’

लड़के-लड़कियाँ माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध भागकर कोर्ट मैरेज कर लेते हैं। इस पर व्यंग्य की तीखी मार की- ‘इधर एक लड़के ने लड़की को उसी की इच्छा से भगाकर सरकारी शादी कर ली।’ इस प्रकार व्यंग्यकार ने विभिन्न तरीकों से व्यंग्य किए हैं।

प्रश्न 2.
दुविधाग्रस्त अर्द्ध आधुनिक परिवार का जो चित्र लेखक ने खींचा है, उसका वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दुविधाग्रस्त अर्द्ध आधुनिक परिवार में पहले पति महोदय आते हैं, उसके थोड़ी देर बार पत्नी जी आती हैं। वे नमस्ते करती हैं, फ़िर बने-बनाए वाक्य बोलती हैं- ‘हम आपकी कहानियाँ पढ़ते रहे हैं। इतनी हँसी आती है कि बस कुछ मत पूछिए।’ वे अपने साथ पति को भी ले लेती हैं, उनसे भी समर्थन कराती हैं जिससे यह निश्चय हो जाए कि उन्होंने वास्तव में कहानी पढ़ी है। अगर घर में बच्चा हो तो अंकल जी को नमस्ते कराया जाता है, फिर अंकल जी से कहानी सुनने का आग्रह किया जाता है। अंकल जी को भी विवश होकर कहानी सुनानी पड़ती है। ऐसे परिवारों में औपचारिकता निभाई जाती है। इन परिवारों का यथार्थ चित्र लेखक ने उतारा है। यदि परिवार में पर्दा प्रथा हो तो श्रीमती जी अन्दर से साँकल बजाकर पति को बुलाती हैं और आने वाले के लिए चाय की ट्रे पकड़ा देती हैं।

प्रश्न 3.
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ निबन्ध के मूल कथ्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ निबन्ध एक व्यंग्यात्मक निबन्ध है, जिसमें परसाई जी ने घटनाओं के द्वारा व्यंग्यात्मक रूप में दिखाया है। परिस्थिति के कारण व्यक्ति के आचरण और विचार में अन्तर आ जाता है। बड़े-बड़े सिद्धान्तवादियों के सिद्धान्त ६ अरे रह जाते हैं। आचरण और विचार में अन्तर होने के कारण दोगलापन आ जाता है। लेखक ने आरम्भ की दो घटनाओं के द्वारा यह स्पष्ट किया है कि वैज्ञानिक और क्रान्तिकारी विचार रखने वाले परिवार के संस्कारों से बँधे हैं और उन संस्कारों के कारण सिद्धान्त धरे रह जाते अन्तिम घटनाओं के द्वारा संस्कारों पर अर्थशास्त्र की विजय दिखाई है। महँगाई के कारण नारी परिवार के संस्कारों की उपेक्षा करके नौकरी कर लेती है। इसी प्रकार लड़का-लड़की भागकर सरकारी विवाह कर लेते हैं। संस्कारवान माँ पहले विरोध करती है फिर 15 हजार दहेज के बचे, उस विवाह को स्वीकार कर लेती है। इस प्रकार घटनाओं द्वारा लेखक ने व्यंग्यों को उभारा है।

प्रश्न 4.
आचरण और विचार के विरोध, व्यवहार में दोगलेपन को प्रस्तुत करना ही परसाईजी को उद्देश्य है। निबन्ध के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
परसाई ने अपने निबन्ध में चार घटनाओं का उल्लेख करके आचरण और विचार के विरोध को दर्शाया है। पहली घटना वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले आधुनिक बुद्धिवादी की है जो बीस साल से मार्क्सवाद के सिद्धान्त में विश्वास करता है। वह अपने बाप की मृत्यु पर प्रयाग में पिण्डदान करता है और मुण्डन कराता है। वह संस्कार और परिवार को भावना के कारण माक्र्सवादी सिद्धान्त को भूल जाता है। लेखक व्यंग्यात्मक रूप में वर्णन करता है कि ऐसे स्वार्थी लोग अपने अनेक बाप रखते हैं।

दूसरी घटना उस क्रान्तिकारी की है जो मदर इन ला के कहने पर क्रान्ति की भावना को तिलांजलि दे देता है। मदर इन ला क्रान्तिकारी दुश्मन है, वह बच्चों का ख्याल कराकर क्रान्तिकारी के विचारों को बदल देती है। क्रान्ति के सिद्धान्त धरे रह जाते हैं। तीसरी-चौथी घटना के द्वारा लेखक अर्थ की संस्कारों पर विजय दिखाई है। पर्दे में रहने वाली नारी महँगाई के कारण नौकरी करने निकल पड़ती है। उसके पर्दा प्रथा सम्बन्धी विचार अर्थ के आगे दब जाते हैं। चौथी घटना में उस माँ का वर्णन है जो संस्कारों के कारण भाग कर किए गए सरकारी विवाह को बुरा समझती है, पर दहेज के रुपये बचेंगे वह उस विवाह को स्वीकार कर लेती है। इस प्रकार लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि सिद्धान्त और आचरण में बहुत अन्तर है। हमारे विचार कुछ और होते हैं और हम व्यवहार कुछ और ही करते हैं।

लेखक – परिचय :

हरिशंकर परसाई का जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में 22 अगस्त, 1924 को हुआ। 18 वर्ष की अवस्था में वन विभाग में नौकरी की। खण्डवा में 6 महीने तक अध्यापक रहे। 1941 से 1943 के मध्य शिक्षण कार्य का अध्ययन कर 1943 में वह मॉडल हाईस्कूल में अध्यापक हो गए। 1952 में सरकारी नौकरी छोड़ दी। इसके बाद चार साल तक प्राइवेट स्कूलों में नौकरी की। नागपुर विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए.किया फिर नौकरी छोड़कर 1957 से स्वतंत्र लेखन आरम्भ किया। जबलपुर से ‘वसुधा’ नामक साहित्यिक मासिक पत्रिका निकाली। 10 अगस्त 1995 को जबलपुर मध्य प्रदेश में इनका निधन हो गया।

साहित्यिक परिचय – हरिशंकर परसाई हिन्दी के पहले ऐसे रचनाकार थे, जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलवाया और उसे हल्के-फुल्के मनोरंजन की परम्परागत परिधि से निकालकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा। आपने पाखण्ड, भ्रष्टाचार आदि पर व्यंग्यों की गहरी चोट की है। भाषा में भी व्यंग्य की प्रधानता है। भाषा सामान्य होते हुए भी विशेष क्षमता रखती है। प्रत्येक शब्द में तीखापन है। हिन्दी के अतिरिक्त उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है। भाषा भाव और भंगिमा के अनुरूप स्वरूप बदलती है, शैली भी बदल जाती है। आपको ‘विकलांग श्रद्धा का दौर’ कृति पर साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्राप्त हुआ।

रचनाएँ – व्यंग्य निबन्ध – ‘तब की बात और थी’, ‘भूत के पाँव पीछे’, ‘पगडण्डियों का जमाना’, बेईमानी की परत, प्रेमचन्द के फटे जूते, काग भगोड़ा आदि। कहानियाँ- हँसते हैं रोते हैं, भोलाराम का जीव, दो नाक वाले लोग आदि। संस्मरण- ‘तिरछी रेखाएँ’, मरना कोई हार नहीं होती आदि।। लघु कथाएँ- चंदे का डर, अपना-पराया, यस सर, अश्लील आदि।

पाठ – सार

लेखक के एक मित्र मार्क्सवादी विचारधारा के हैं। रीति-रिवाज और बाह्याडम्बर में विश्वास नहीं करते। पर अपने फादर की मृत्यु पर मुण्डन कराते हैं। उनकी भस्म को प्रयाग में गंगा में विसर्जन करने के लिए ले जाते हैं। लेखक को उनके फादरं की बात सुनकर आश्चर्य होता है। श्राद्ध न करने का निश्चय करके भी श्राद्ध करते हैं। वे द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद में फंस जाते हैं। लेखक व्यंग्य करता है। कि लोग अपना उल्लू सीधा करने को किसी को भी माई-बाप बना लेते हैं। ऐसे लोगों के बापों की संख्या बढ़ जाती है। मित्र परिवार के संस्कारों से जुड़ा है जबकि उसके विचार कुछ और ही हैं। चाचा को स्वर्ग में दुर्गति से बचाने के लिए अपने क्रान्तिकारी विचारों को त्याग देता है।

लेखक के दूसरे मित्र वैज्ञानिक विचारधारा के क्रान्तिकारी हैं। वे भी धर्माडम्बरों और अंधविश्वासों से अपने को अलग मानते हैं। किन्तु सत्यनारायण की कथा सुनते हैं। धोती पहनते हैं। मदर इन ला के कहने पर सत्यनारायण की कथा सुनते हैं। मदर इन ला की बात इसलिए मानते हैं क्योंकि वह बीवी देती है। इनके हृदय में भी द्वन्द्व है। इनके विचार कुछ हैं और संस्कार कुछ और हैं। ये संस्कारों से बँधे हैं। लेखक को एक सज्जन ने चाय का निमंत्रण दिया है। सरिता जी का नाम लेकर घर बुलाया, घर पहुँचने पर सरिता जी नहीं आईं। चाय की ट्रे पति ही अन्दर से लेकर आए। पर्दे के कारण पत्नी बाहर नहीं आई, दूसरी बार फिर चाय पर बुलाया। इस बार पत्नी चाय लेकर आईं और थोड़ी देर बैठकर स्कूल जाना है ऐसा कहकर उठकर चली गई।

पहली बार पर्दा था दूसरी बार पर्दा नहीं किया और आगन्तुक की उपेक्षा करके उठकर चली गई। अर्थशास्त्र ने संस्कारों को पछाड़ दिया। ऐसे ही एक लड़के ने लड़की से शादी कर ली। लड़की की माँ ने संस्कारों के कारण विरोध किया, बाद में 15 हजार की बचत हुई, ऐसा सोचकर शादी को स्वीकार कर लिया। अर्थशास्त्र फिर संस्कारों पर भारी पड़ा। विभिन्न उदाहरणों से लेखक ने यह स्पष्ट किया है कि व्यक्ति के विचार कुछ और होते हैं और संस्कार कुछ और होते हैं। संस्कारों के आगे विचार धरे रह जाते हैं। यही है संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई।

कठिन शब्दों का अर्थ :

(पृष्ठ 128) बुद्धिवादी = बुद्धिवाद को मानने वाला। मुँडे सिर = जिस सिर के बाल पूरी तरह कटे हुए हों। पिंडदाने = मरने के पश्चात्, परिवार के लोगों द्वारा पिंड देना, मरने के बाद एक कर्मकांड। हैसियत = योग्यता, सामर्थ्य। मान = प्रतिष्ठा । संविद सरकार = वह सरकार जिसमें अनेक दलों के विधायक शामिल हों। अनाथ = निराश्रय, दीन, बिना माँ-बाप का बच्चा। द्वन्द्वात्मक = दो के मध्य अनिश्चय होने का भाव। विसर्जन = छोड़ना, परित्याग । श्राद्ध = श्रद्धायुक्त, शास्त्र विहित। पितृ विहित = कर्म। फजीहत = अपमान, बेइज्जती। परलोक = वह स्थान जो मृत्यु के बाद आत्मा को प्राप्त होता है। दुर्गति = दुर्दशा।
(पृष्ठ 129) मदर इनला = सास । तजुर्बे = अनुभव। आयोजन = कार्यक्रम । संहिता = संयोग, संग्रह, वेदों का मंत्रभाग । प्रौढ़ों = परिपक्वों, 20 से 50 के बीच उम्र की अवस्था के लोगों। डायबटीज = मधुमेह।
(पृष्ठ 130) नेपथ्य = पर्दे के पीछे का स्थान। औपचारिक = जो केवल कहने, सुनने या दिखलाने भर हो जो वास्तविक न हो। पटकनी = पछाड़, कड़ा आघात।

महत्त्वपूर्ण गद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ

1. यों कोई बुरी बात नहीं जिनकी हैसियत है, वे एक से ज्यादा भी बाप रखते हैं – एक घर में, एक दफ्तर में, एक-दो बाजार में, एक-एक हर राजनीतिक दल में। इधर एक आदमी है जिसके परसों तक 35 बाप थे। कल संविद सरकार टूट रही है तो 15 रह गए। आज वह सरकार थम गई तो 38 बाप हो गए हैं। (पृष्ठ 128)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हरिशंकर परसाई के व्यंग्यात्मक निबन्ध संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ से लिया गया है। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तके में संकलित है। यहाँ लेखक यह स्पष्ट कर रहा है कि मनुष्य अवसर के अनुसार और अपना उल्लू सीधा करने के लिए हर किसी को अपना बाप बना लेता है। वह अवसरवादी है। अवसर का लाभ उठाने के लिए वह ऐसा करता है। इसी प्रसंग में लेखक लिखते हैं

व्याख्या – लोग हैसियत के अनुसार लोगों को अपनी बाप बना लेते हैं। जिस व्यक्ति से लाभ मिलने की आशा होती है, जिससे स्वार्थ की पूर्ति होती है उसी व्यक्ति को महत्त्व दे देते हैं। उसे माई-बाप कहकर सम्बोधन करते हैं। ऐसे व्यक्तियों के बापों की संख्या अनगिनत होती है। एक असली बाप घर में होता है। एक बाप दफ्तर में बन जाता है क्योंकि वहाँ उन्हें अपना काम निकालना होता है। इसी प्रकार बाजार में भी हर किसी को अपना बाप बनाकर महत्त्व दे देते हैं। ऐसे लोग सभी राजनीतिक दलों से सम्बन्ध रखते हैं। जिस राजनीतिक दल का बोलवाला होता है उसी के नेता को बाप बनाकर महत्त्व दे देते हैं। लेखक व्यंग्य करता है कि ऐसे आदमियों के बापों की कमी नहीं होती। एक आदमी ने 35 लोगों को बाप बना रखा था। मिली-जुली सरकार टूटने लगी तो उसके नेताओं का महत्त्व कम हो गया। व्यक्ति ने उनको सम्मान देना कम कर दिया। सरकार स्थिर हो गई तो हर राजनीतिक दल के नेता को जो संविद सरकार में शामिल थे सम्मान देने लगा और बाप की संख्या 38 हो गई। तात्पर्य यह है कि ऐसे लोग अवसरवादी होते हैं और लाभ लेने के लिए किसी को भी सम्मान दे देते हैं।

विशेष –

  1. लोगों की मनोवृत्ति का चित्रण है।
  2. अवसरवादी लोग स्वार्थ के लिए किसी को भी बाप बना लेते हैं।
  3. अवसरवादियों के बाप की संख्या बहुत होती है।

2. मेरे एक दोस्त हैं मुझसे ज्यादा वैज्ञानिक दृष्टि सम्पन्न, विचार और कर्म दोनों से क्रान्तिकारी। मैं ही उनसे ज्ञान और प्रेरणा लेता रहा हूँ। एक दिन मैंने उन्हें धोती पहने, पालथी मारे सत्यनारायण की कथा पर बैठे रंगे हाथों पकड़ लिया। मुझे लगा जैसे एंबुलेंस की गाड़ी ने ही मुझे कुचल दिया हो। (पृष्ठ 129)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित व्यंग्यात्मक निबन्ध संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई हैं।
लेखक यह स्पष्ट करता है कि उनके एक मित्र क्रान्तिकारी विचारधारा के तर्कशील प्राणी हैं। लेकिन वे भी परिवार के संस्कारों से बँधे हैं।

व्याख्या – लेखक के एक दोस्त वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले तर्कशील प्राणी हैं। वे हर बात को तर्क के आधार पर स्वीकार करते हैं। क्रान्तिकारी विचार रखते हैं। वे विचारों और कर्म दोनों से क्रान्तिकारी हैं। उनकी बातों से पता लगता है कि वे किसी बात को आसानी से स्वीकार नहीं करते। उनका कार्य भी क्रान्तिकारी है। लेखक कहता है कि मैं भी उनसे ज्ञान लेता हूँ और प्रेरणा पाता हूँ। ऐसे क्रान्तिकारी विचारधारा के व्यक्ति जो अन्धविश्वासी नहीं हैं, धर्म-कर्म को नहीं मानते। मैं उन्हें क्रान्तिकारी सिद्धान्त वाला समझता था। एक दिन उन्हें सत्यनारायण की कथा में धोती पहनकर बैठे हुए देखा। उनके इस आचरण ने मुझे चकित कर दिया। मुझे लगा एंबुलेंस की गाड़ी ने मुझे कुचल दिया। जिनको मैं क्रान्तिकारी और सिद्धान्तवादी समझता था, उन्होंने ही मुझे निराश कर दिया। मेरा विश्वास उन पर से उठ गया। मुझे लगा उनके सिद्धान्त केवल वाणी तक ही सीमित हैं, उनके आचरण तो संस्कारी हैं। आचरण और विचारों में दोगलापन है।

विशेष –

  1. दोस्त के दोगलेपन का चित्रण किया गया है।
  2. एंबुलेंस की गाड़ी प्रतीक का प्रयोग सटीक है।
  3. लेखक की निराशा का वर्णन दृष्टव्य है।

3. यह जो मदर इन ला कहलाती है, क्रान्ति की दुश्मन होती है। क्रान्तिकारी का पहला और सबसे बड़ा संघर्ष मदर इन ला से निपटना है। बात यह है कि वह बीबी दे देती है। बीबी कर्तव्यों को आगे बढ़ाते हुए बच्चे दे देती है। तब मदर इनला आकर कहती है- लाला अपना नहीं तो बच्चों का तो ख्याल करो। लाला की क्रान्तिकारिता भ्रांतिकारिता में बदल जाती है।
(पृष्ठ 129)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश ‘संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ शीर्षक व्यंग्यात्मक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक हरिशंकर परसाई हैं। यह निबन्ध हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित है।
लेखक यह स्पष्ट करता है कि व्यक्ति अपने संस्कारों से बँधा है। कभी-कभी परिवार के बड़े लोग भी सिद्धान्तों को तोड़ने और विचारों को बदलने के लिए बाध्य कर देते हैं।

व्याख्या – व्यक्ति अपने ससुराल वालों की बात मानने के लिए विवश हो जाता है। व्यक्ति चाहे कितने भी खुले विचार का हो, विचारों से क्रान्तिकारी हो पर मदर इनला की बात नहीं टाल सकता। मदर इनला उसके क्रान्तिकारी विचारों की कट्टर विरोधी होती है। उसे मदर इन ला से संघर्ष करना पड़ता है। मदर इन ला पुराने विचारों की होने के कारण दामाद के क्रान्तिकारी नये विचारों को नहीं मानती। व्यक्ति को उसके आगे झुकना पड़ता है। कारण यह है कि वह पत्नी देती है और पत्नी बच्चे देती है। ऐसी स्थिति में मदर इन ला व्यक्ति को बच्चों की याद दिलाती है कि तुम चाहे कैसे भी क्रान्तिकारी विचारों के हों पर बच्चे के भविष्य के लिए तुम्हें परम्पराओं का पालन करना ही पड़ेगा। ऐसी स्थिति में क्रान्तिकारी की भावना का दमन हो जाता है। वह दुविधा में पड़ जाता है कि अपने विचारों को महत्त्व दें या मदर इन ला की बात मानें। उसके क्रान्तिकारी विचार समाप्त हो जाते हैं।

विशेष –

  1. मदर इन ला का वर्चस्व दिखाया है।
  2. दामाद की दुविधा दिखाई है।
  3. बच्चों के लिए क्रान्तिकारी विचार छोड़ने पड़ते हैं।
  4. मदर इन ला अंग्रेजी शब्द का प्रयोग किया है।

4. अर्थशास्त्र संस्कारों के सीने पर चढ़कर गला दबा रहा है। इधर एक लड़के ने लड़की को उसी की इच्छा से भगाकर सरकारी शादी कर ली। लड़की योग्य, सुन्दर और अच्छी नौकरी वाला। पहले लड़की की माँ के संस्कारों ने जोर मारा और उसने हाय-तोबा मचाया। अर्थशास्त्र से यह बरदाश्त नहीं हुआ। उसने संस्कारों को एक पटकनी दी। माँ ने सोचा, यहःजो 15 हजारे दहेज के लिए रखे थे, साफ बचे। फिर 15 हजार में भी इतना अच्छा लड़का नहीं मिलता। उन्होंने कार्ड बाँट कर दावत दे दी। (पृष्ठ 130)

संदर्भ एवं प्रसंग – प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्यपुस्तक के व्यंग्यात्मक निबन्ध संस्कारों और शास्त्रों की लड़ाई’ से उद्धृत है। इस निबन्ध के लेखक हरिशंकर परसाई हैं। ‘ जहाँ अर्थ को प्रश्न आता है वहाँ व्यक्ति के विचार बदल जाते हैं। व्यक्ति अर्थ के लिए दौड़ने लगता है। संस्कार धरे रहे जाते हैं।

व्याख्या – इस अर्थप्रधान युग में अर्थ की प्रधानता है। अर्थ कमाने के लिए व्यक्ति अपने सिद्धान्तों को भी भूल जाता है। अर्थशास्त्र व्यक्ति के आचरण और विचारों को कुचल देता है। पैसा प्रधान हो जाता है। एक लड़के ने लड़की की इच्छा से भगाकर सरकारी शादी अर्थात् कोर्ट मैरिज कर ली। लड़का योग्य था, सुन्दर था और अच्छी नौकरी वाला था। माँ पुराने विचारों की थी। उसे यह विवाह स्वीकार नहीं था। उसके संस्कार इस प्रकार की शादी के विरुद्ध थे। माँ ने शादी का विरोध किया। बाद में उसे अनुभव हुआ कि इस शादी के कारण दहेज के पन्द्रह हजार रुपए बचे । दहेज देने पर भी इतना अच्छा लड़का नहीं मिलता। अर्थ के लोभ ने संस्कारों को दबा दिया। माँ ने शादी को स्वीकार कर लिया। उन्होंने केवल दावत दे दी। माँ के सिद्धान्त अर्थ के आगे पछाड़ खा गए।

विशेष –

  1. अर्थ की प्रधानता दिखाई है।
  2. अर्थ के आगे सिद्धान्तों का कोई महत्त्व नहीं है।
  3. माँ ने दहेज से मुक्ति के कारण शादी को स्वीकार कर लिया।

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