RBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास

RBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास is part of RBSE Solutions for Class 12 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास.

Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास वस्तुनिष्ठ प्रश्न

surdas ke pad class 12 प्रश्न 1.
सूरदास की भक्ति मानी जाती है
(अ) सखा भाव की
(ब) दास्य भाव की
(स) माधुर्य भाव की
(द) कान्ता भाव की
उत्तर:
(अ)

rbse solutions for class 12 hindi प्रश्न 2.
सूरदास ने अँखियों को भूखी बताया है
(अ) प्राकृतिक सौन्दर्य की
(ब) सुरमा लगाने की
(स) नींद लेने की
(द) हरिदर्शन की
उत्तर:
(द)

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

surdas ke pad class 12 notes प्रश्न 1.
ऊद्धव को गोपियों ने ऐसे कौन से प्रश्न किए कि उद्धव ठगा-सा रह गया?
उत्तर:
गोपियों ने पूछा कि वह निर्गुण ब्रह्म किस देश का रहने वाला है? उसके माता-पिता का नाम क्या है, पत्नी कौन है, दासी कौन है, कैसा रूप-रंग है, किसकी इच्छा करता है? इन प्रश्नों को सुनकर उद्धव ठगा-सा रह गया।

सूरदास के पद अर्थ सहित class 12 प्रश्न 2.
हारिल पक्षी की क्या विशेषता है? बताइए।
उत्तर:
हारिल पक्षी अपने पंजों में एक हरी लकड़ी दबाए रहता है, उसे छोड़ता नहीं, वह हमेशा हरी लकड़ी पर ही बैठता है।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास लघूत्तरात्मक प्रश्न

surdas class 12 प्रश्न 1.
गोपियों को उद्धव का योग (जोग) सन्देश किसके समान लग रहा है?
उत्तर:
गोपियों को उद्धव का योग सन्देश कड़वी ककड़ी के समान लग रहा है। गोपियाँ तो श्रीकृष्ण के साकार स्वरूप से प्रेम करती हैं। उद्धव उनकी भावनाओं को न समझकर उन्हें बार-बार योग साधना करने को प्रेरित कर रहे हैं। श्रीकृष्ण को भूलकर निर्गुणनिराकार ईश्वर की आराधना गोपियों को तनिक भी नहीं सुहा रहा है। अतः उन्हें उद्धव का योग-उपदेश मन को कड़वी कर देने वाला लगता है।

कक्षा 12 हिन्दी अनिवार्य सृजन pdf प्रश्न 2.
“मानहु नील माट तें काढ़े लै जमुना जाय पखारे।” पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार है। कविता में जहाँ उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। इस पंक्ति में यमुना के श्याम होने में मथुरावासियों के नील के माट से निकाल कर, यमुना में धोने की सम्भावना व्यक्त की गई है। अत: यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास निबन्धात्मक प्रश्न

कक्षा 12 हिन्दी अनिवार्य सृजन प्रश्न 1.
सूरदास के पदों में वर्णित प्रेम भक्तिभावना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हमारी पाठ्यपुस्तक में कवि सूरदास रचित ‘भ्रमरगीत प्रसंग’ से कुछ पद संकलित हैं। इन पदों में श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने से दुखी गोपियों की भावनाओं का बड़ा मार्मिक चित्रण हुआ है। यह प्रसंग प्रेम और भक्ति भावना से ओत-प्रोत है।

उद्धव श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर ब्रज में आए हैं। अपने वियोग में दुखी गोपियों के लिए योग साधना का सन्देश भिजवाया है। गोपियों को लगा था कि उनके प्रिय कृष्ण ने अवश्य ही उनके लिए कोई प्रेम भरा सन्देश भिजवाया होगा। किन्तु जब उन्होंने श्रीकृष्ण को भुलाकर योग और ज्ञान को अपनाने का सन्देश सुना तो उनके हृदय को बड़ा आघात पहुँचा। उन्होंने उद्धव को अपने मन की भावनाएँ और वेदना समझाने का यत्न किया।

वे कहती हैं-“हमारे हरि हारिल की लकरी।” उनके मन से श्रीकृष्ण का ध्यान एक पल को भी नहीं हटता। वे उद्धव से अनुरोध करती हैं कि योग और ज्ञान की शिक्षा उनको दें जिनका किसी से दृढ़ प्रेम-भाव नहीं है। हमारे मन, वचन और कर्म में तो श्रीकृष्ण दृढ़ता से समाए हुए हैं।

गोपियाँ उद्धव की प्रेमपरक भक्ति को नहीं समझ पाने पर, उन पर व्यंग्य करती हैं। उनका उपहास भी करती हैं। ऐसा वह उद्धव का अपमान करने के लिए नहीं करर्ती बल्कि यह उनके अविचल और निश्छल प्रेम को
पहुँची ठेस की प्रतिक्रिया हैं।

‘अँखियाँ हरि दरसन की भूखी’, बारक वह मुख फेरि दिखाओ दुहि पय पिवत पतूखी’ ‘बिन गोपाल बैरिन भई कुनैं’ गोपियों की इन सभी उक्तियों में प्रेममयी भक्ति भावना का प्रकाशन हुआ है। भ्रमरगीत में कविवर सूर की भक्ति भावना को भी दर्शन हो रहा है।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास व्याख्यात्मक प्रश्न

अँखियाँ हरि दरसन……सरिता हैं सूखी।
उत्तर संकेत-छात्र’सप्रसंग व्याख्याएँ’ प्रकरण-4 का अवलोकन करें।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास वस्तुनिष्ठ प्रश्न

rbse solutions for class 12 1. गोपियों ने करुई ककरी’ बताया है –

(क) उद्धव को
(ख) श्रीकृष्ण को
(ग) अपने जीवन को
(घ) योग को।

कक्षा 12 हिंदी साहित्य प्रथम सरयू 2. गोपियाँ योग की शिक्षा देने को कहती हैं

(क) पुरुषों को
(ख) अस्थिर मने वालों को
(ग) साधु-सन्तों को
(घ) मथुरा की नारियों को।

कक्षा 12 हिंदी साहित्य सरयू  3. गोपियों ने स्वयं को बताया है

(क) श्रेष्ठ जाति की
(ख) छोटी जाति की
(ग) सच्ची प्रेमिका
(घ) श्रीकृष्ण की दास।

हिंदी साहित्य कक्षा 12 4. गोपियाँ किसकी माता को धिक्कार योग्य कहती हैं?

(क) जो कायर है
(ख) जो योग साधना करता है।
(ग) जो कृष्ण से विमुख है।
(घ) जो निर्गुण का उपासक है।

rbse 12 hindi solutions 5. गोपियों ने ‘सूखी सरिता’ कहा है

(क) उद्धव के योग सन्देश को
(ख) अपने हृदयों को
(ग) श्रीकृष्ण के व्यवहार को
(घ) ब्रज जीवन को।

उत्तर:

  1. (घ)
  2. (ख)
  3. (ख)
  4. (ग)
  5. (ग)

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास अति लघूत्तरीय प्रश्न

class 12 rbse hindi book solutions प्रश्न 1.
गोपियों ने कृष्ण को अपने लिए हारिले की लकड़ी क्यों बताया है?
उत्तर:
जैसे हारिल पक्षी वृक्ष की टहनी को कभी अपने से अलग नहीं करता, उसी प्रकार गोपियाँ भी श्रीकृष्ण को एक पल के लिए अपने हृदय से दूर नहीं होने देना चाहतीं।

hindi compulsory 12th class rbse book प्रश्न 2.
गोपियों ने श्रीकृष्ण को किस प्रकार अपना रखा है?
उत्तर:
गोपियों ने मन, वचन और कर्म तीनों के द्वारा कृष्ण को अपना रखा है।

sarjan hindi book class 12 प्रश्न 3.
“यह तौं सूर तिन्हैं लै दीजै” पंक्ति में ‘तिन्हैं’ शब्द का प्रयोग किनके लिए हुआ है?
उत्तर:
गोपियों ने इस शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया है जिनके मन चंचल हैं, जो किसी एक व्यक्ति से दृढ़ प्रेम नहीं करते।

srajan hindi book class 12 प्रश्न 4.
‘जिनके मन चकरी’ कथन में गोपियों ने किस पर व्यंग्य किया है?
उत्तर:
इस कथन द्वारा गोपियों ने कृष्ण पर व्यंग्य किया है कि जो कल तक उनसे प्रेम करते थे वो अब कुब्जा पर मुग्ध हो गए हैं।

कक्षा 12 हिंदी के लिए rbse समाधान प्रश्न 5.
गोपियों ने दोनों प्रकार से फल कैसे पाया है?
उत्तर:
गोपियों का मानना है कि यदि श्रीकृष्ण से पुनर्मिलन हो जाय तो उनकी प्रेम तपस्या सफल होगी ही, यदि वह न मिले तो संसार में उनका यशगान होगा।

surdas ke pad class 12 summary in hindi प्रश्न 6.
गोपियों के अनुसार श्रीकृष्ण घोष निवासी क्यों हुए?
उत्तर:
गोपियों का मानना है कि भगवान भक्तों के प्रेम के अधीन होने के कारण ही ग्वालों के बीच आकर बसे हैं। योग, ज्ञान या वेदों के अध्ययन से नहीं।

हिंदी साहित्य कक्षा 12 नोट्स प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से क्या अनुरोध किया?
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव से अनुरोध किया कि वह बार-बार अपना योग सन्देश न सुनाएँ। इससे उनके हृदय को बहुत कष्ट होता है।

class 12 hindi rbse solutions प्रश्न 8.
गोपियों ने किसकी माता को धिक्कारा है?
उत्तर:
गोपियों ने उस व्यक्ति की माता को धिक्कारा है जो कृष्ण को त्याग कर किसी और से प्रेम करते हैं।

rbse 12th hindi book प्रश्न 9.
गोपियों द्वारा मथुरा को ‘काजरे की कोठरी’ बताने से आशय क्या है?
उत्तर:
गोपियों ने मथुरा को काजल की कोठरी बताकर उद्धव, अक्रूर और श्रीकृष्ण के कपटपूर्ण आचरण पर व्यंग्य किया है।

class12 rbse hindi प्रश्न 10.
गोपियों के अनुसार यमुना के साँवली हो जाने का क्या कारण है?
उत्तर:
गोपियों का मानना है कि काले तन-मन वाले मथुरावासियों के यमुना में स्नान करते ही वह स्याम वर्ण वाली हो गई है।

rbse solutions for class 12 hindi anivarya प्रश्न 11.
गोपियों ने ‘रूखी बतियाँ’ किसे कहा है?
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव के ज्ञान और योग के नीरस उपदेशों को रूखी बातें बताया है।

12th hindi syllabus rbse प्रश्न 12.
उद्धव हठपूर्वक क्या प्रयत्न कर रहे हैं?
उत्तर:
उद्धव गोपियों के सूखी सरिता के समान हृदयों में योग की नाव चलाना चाह रहे हैं, जो कदापि सम्भव नहीं है।

class 12 hindi sarjan प्रश्न 13.
ऊद्धव के मौन होकर ठगे से रह जाने का कारण क्या था?
उत्तर:
गोपियों के निर्गुण ब्रह्म को लेकर किए गए प्रश्नों का उत्तर न दे पाने के कारण उद्धव मौन और ठगे से रह गए।

प्रश्न 14.
गोपियों ने निर्गुण (ब्रह्म) के विषय में उद्धव से क्या पूछा?
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव से निर्गुण के निवास स्थान, उसके माता-पिता, पत्नी, दासी और उसके रूप-रंग और रुचियों का परिचय पूछा।

प्रश्न 15.
श्रीकृष्ण के वियोग में गोपियों को कौन-सी बातें व्यर्थ लग रही हैं?
उत्तर:
कृष्ण वियोग में गोपियों को यमुना का बहना, पक्षियों की कलरव, कमलों का खिलना और भौंरों की गुंजार व्यर्थ प्रतीत हो रही है।

प्रश्न 16.
गोपियों ने उद्धव से कृष्ण को क्यो सन्देश देने का अनुरोध किया?
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव से अनुरोध किया कि वह कृष्ण को उनकी विरह व्यथा से हुई दयनीय दशा का परिचय कराएँ।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उद्धव तथा गोपियों के संवाद को ‘भ्रमरगीत’ नाम दिए जाने का क्या कारण है? लिखिए।
उत्तर:
‘भ्रमरगीत’ शब्द का सामान्य अर्थ होता है-भ्रमर को लक्ष्य करके गाया गया गीत या रचना। सूरसागर में सूरदास जी ने एक काल्पनिक प्रसंग की रचना की है। जब उद्धव गोपियों को कृष्ण का योग सन्देश सुना रहे थे और गोपियाँ मन-ही-मन झुंझला रही थीं, तभी वहाँ एक भ्रमर (भौंरा) आ पहुँचा और गोपियों के ऊपर मँडराने लगा। गोपियों को भ्रमर और अपने प्रिय श्रीकृष्ण में वेश और स्वभाव दोनों में समानता दिखाई दी। अत: उन्होंने भ्रमर को लक्ष्य करके उद्धव और कृष्ण पर व्यंग्यों, उलाहनों और उपहासों की वर्षा करना आरम्भ कर दिया। इसी कारण इस संवाद का नाम ‘भ्रमरगीत’ प्रचलित हो गया।

प्रश्न 2.
“हमारे हरि हारिल की लकरी।” इस पद में गोपियों ने उद्धव को क्या समझाने का प्रयास किया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
गोपियाँ प्रेमपंथ की पथिक थीं और उद्धव नीरस योग के साधक और समर्थक। वह गोपियों की विरह वेदना को समझ पाने में असमर्थ थे। अत: गोपियों ने हारिल पक्षी के उदाहरण से अपनी बात आरम्भ की। उन्होंने उद्धव से कहा कि उनके लिए श्रीकृष्ण’ हारिल की लकड़ी’ के समान हैं। जैसे हारिल पक्षी सदा वृक्ष की टहनी पंजे में दबाए रहता है, उसी प्रकार गोपियों के जीवन में कृष्ण समाए हुए हैं। उन्हें त्याग कर योग पथ को अपनाना उनके लिए किसी भी प्रकार सम्भव नहीं है।

प्रश्न 3.
“यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजैं जिनके मन चकरी।” गोपियों के इस कथन का आशय क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गोपियों के इस कथन में उद्धव और कृष्ण दोनों के प्रति बड़ा चुटीली व्यंग्य छिपा हुआ है। जब गोपियों की योग के प्रति अत्यन्त अरुचि (करुई ककरी कहना) होते हुए भी उद्धव अपना योग का राग अलापे जा रहे थे तो गोपियों ने कहा–हे उद्धव! आप कैसे ज्ञानी हैं। आपको पात्र और अपात्र का भी ज्ञान नहीं है। यदि आपको योग की दीक्षा देने का इतना ही चाव है तो उसे उन लोगों को सौंपो जिनके मन भरे की तरह रस लोलुप और चंचल हों। यहाँ गोपियों का कटाक्ष श्रीकृष्ण पर है जो कल तक उन्हें प्रेम करते थे और अब कुब्जा के साथ रमण कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
“हम तो दुहुँ भाँति फल पायो।” गोपियों के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गोपियाँ उद्धव के हठ पर खीजती हुईं उन्हें योग कथा बन्द कर देने को कह रही हैं। वे कहती हैं-उद्धव आप हमारे कल्याण के लिए व्यर्थ इतना परिश्रम कर रहे हैं। हमने तो दोनों रूपों में सुफल प्राप्त कर लिया है। यदि श्रीकृष्ण मिल जाते हैं तो बहुत ही अच्छी बात है। यदि नहीं भी मिलते तो भी हमने सारे जगत में यश प्राप्त कर लिया है। कहाँ हम गोकुल की गॅवार, छोटी जाति और वर्ण की स्त्रियाँ और कहाँ वे (कृष्ण) लक्ष्मी के पति नारायण । हमें उनके साथ मिल बैठने का अवसर मिल गया। हमारे लिए यही पर्याप्त है। अतः अब आप अपनी योग-कथा को विराम दीजिए।

प्रश्न 5.
‘मुक्ति कौन की दासी’ इस कथन द्वारा गोपियों ने उद्धव पर क्या व्यंग्य किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्धव ने बार-बार गोपियों को यह समझाने की चेष्टा की कि योग साधना से उनकी मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होगा। पर गोपियों ने उन पर पलटवार करते हुए व्यंग्य किया कि उद्धव तनिक यह बताइए कि जो निर्गुण परब्रह्म वेद अध्ययन और मुनियों के ज्ञान से भी परे है उसे घोष निवासी (ग्वालों की बस्ती का निवासी) बनने की क्या आवश्यकता आ पड़ी? गोपियों का आशय यही है कि प्रेम और भक्ति के वशीभूत होकर ही ईश्वर को श्रीकृष्ण के रूप में ब्रज में आना पड़ा। प्रेमी भक्तों के लिए मुक्ति दासी के समान सामने खड़ी रहती है। उन्हें मुक्ति के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता।

प्रश्न 6.
काजल की कोठरी’ लोकोक्ति का अभिप्राय क्या है? गोपियों ने मथुरा को ‘काजर की कोठरी’ क्यों बताया? लिखिए।
उत्तर:
‘काजल की कोठरी’ के बारे में कहावत है-‘काजर की कोठरी में कैसौ हू सयानौ जाइ, काजर की एक रेख लागि है पै लागि है।” अर्थात् काजल की कोठरी का अभिप्राय उस स्थान या संगति से होता है जिसके सम्पर्क में आने पर व्यक्ति उसके कुप्रभाव से स्वयं को नहीं बचा सकता । गोपियों ने मथुरा को काजल की कोठरी बताकर कृष्ण, अक्रूर और उद्धव, तीनों के आचरण और स्वभाव पर आक्षेप और व्यंग्य किया है। अपने अनुचित आचरण से व्यक्ति अपनी निवास भूमि को भी बदनाम कर देता है। गोपियों का व्यंग्य है कि मथुरावासियों का शरीर ही नहीं मन भी काला है।

प्रश्न 7.
“तिनके संग अधिक छबि उपजत गोपियों के इस कथन में क्या व्यंग्य छिपा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गोपियों के इस व्यंग्य वचन के लक्ष्य श्रीकृष्ण हैं। वह गोरी, सुन्दर गोपियों को त्याग कर मथुरा के काले-कुबड़े लोगों में जा बसे हैं। गोपियाँ व्यंग्य कर रही हैं कि उन कालों के बीच रहने से, कमल जैसे नेत्र वाले सुन्दर श्रीकृष्ण की शोभा शायद बहुत बढ़ रही है। तभी तो वह गोपियों को भुलाकर मथुरा में बसे हुए हैं।

प्रश्न 8.
यमुना के श्याम रंग की होने का गोपियों ने क्या कारण माना है? पद के आधार पर लिखिए।
उत्तर:
मथुरा के सब लोग काले हैं। लोग ही नहीं मथुरा के समीप से बहती यमुना भी साँवली है। गोपियाँ अनुमान लगाती हैं कि नीले रंग से भरे माटे (मिट्टी का बड़ा बर्तन) में से निकल कर इन मथुरावासियों को यमुना में धोया गया है। इसी कारण यमुना का जल श्याम रंग का हो गया है। यमुना तो बेचारी निर्मल से श्याम हो गई। परन्तु ये मथुरावासी अभी भी काले हैं। यमुना स्नान से भी इनका स्वभाव और आचरण नहीं बदला।

प्रश्न 9.
गोपियों ने उद्धव को अपनी आँखों की क्या विवशता बताई है? ‘अँखियाँ हरि दरसन की भूखी।” पद के आधार पर बताइए।
उत्तर:
गोपियों ने इस पद में अपनी आँखों की दयनीय दशा का वर्णन करते हुए, उद्धव को वास्तविकता से परिचित कराने की चेष्टा की है। उद्धव योगी होने के कारण गोपियों की मानसिक दशा को समझ पाने में असमर्थ हैं। गोपियाँ कहती हैं-उद्धव ! हमारी आँखों की एक ही लालसा है, श्रीकृष्ण का दर्शन पाना। हमारी आँखों को श्रीकृष्ण के लौटने के मार्ग को एकटक देखने पर भी उतना कष्ट नहीं हुआ। जितना आपके इन योग सन्देशों को सुन-सुन कर हो रहा है। अत: आप उपदेश छोड़ कर हमारे परम प्रिये कृष्ण का दर्शन कराइए।

प्रश्न 10.
‘दुहि पय पिवत पतूखी’ इन शब्दों में गोपियों का क्या भाव निहित है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव से अनुरोध किया कि वह योग सन्देश सुनाना बन्द करके उनकी कुछ यथार्थ सहायता करें। उनकी कृष्ण दर्शन की भूखी आँखों को कृष्ण के उस मुख का दर्शन करा दें जिससे वह पत्तों के दोनों में गायों का दूध दुह कर पिया करते थे। गोपियों के इस कथन में यह भाव निहित है कि वे राजाधिराज रूप में नहीं अपितु उस रूप में दर्शन चाहती हैं, जो उनके हृदय में बसा है। ब्रज के ग्वाल-बाल का स्वरूप ।

प्रश्न 11.
“निर्गुण कौन देस को बासी?” पद में गोपियों ने ज्ञानी उद्धव को अपने प्रश्नों के जाल में फंसा लिया है।” क्या आप इसे कथन से सहमत हैं? अपना मत लिखिए।
उत्तर:
इस पद में गोपियों ने उद्धव द्वारा दिए गए निर्गुण ईश्वर की आराधना के उपदेश की हँसी उड़ाई है। गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि हमें आप अपने निर्गुण का पूरा परिचय तो दीजिए। पिता, पत्नी, दासी, उसका निवास स्थल, उसका रूप-रंग, उसकी रुचियाँ, इन सबके बारे में बताइए। जो निर्गुण है, निराकार है उसके बारे में इन प्रश्नों का कोई औचित्य नहीं है। इस प्रकार उद्धव गोपियों के प्रश्न जाल में फंसकर मौन हो गए हैं।

प्रश्न 12.
गोपियों ने ‘निर्गुण’ पर प्रश्न पूछते हुए उन्हें क्या चेतावनी दी है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘निर्गुण’ का पूरा परिचय पूछते हुए गोपियों ने उद्धव को चेतावनी भी दी कि यदि उन्होंने झूठ या कपटपूर्ण उत्तर दिया तो उन्हें अपने कर्म का फल भुगतना पड़ेगा। इस चेतावनी ने उद्धव को असमंजस में डाल दिया। यदि वे कहते हैं कि निर्गुण का कोई सांसारिक परिचय सम्भव नहीं तो फिर ग्रामवासिनी साधारण नारियाँ उसकी उपासना, उससे प्रेम कैसे कर पाएँगी। तब तो वे श्रीकृष्ण से अपने प्रेम को ही निर्गुण उपासना से श्रेष्ठ बताएँगी । इसीलिए उद्धव निरक्षर गोपियों से हार मान कर मौन रह गए।

प्रश्न 13.
श्रीकृष्ण के वियोग में गोपियों को प्रिय लगने वाली वस्तुएँ अप्रिय और कष्टदायक क्यों लग रही हैं? “बिन गोपाल बैरिन भई कुनैं।” पद के आधार पर उत्तर दीजिए।
उत्तर:
गोपियाँ श्रीकृष्ण से अत्यन्त प्रेम करती थीं। उनके मथुरा चले जाने और लौटकर न आने से उनके मन बहुत व्याकुल रहते थे। कुंजों, लताओं, यमुना, पक्षियों का कलरव, कमलों का खिलना, उन पर भौंरों का गुंजार करना आदि सुन्दर दृश्ये उन्हें श्रीकृष्ण के साथ बिहार करने के आनन्द का स्मरण कराते थे। इससे उनका दुख और भी बढ़ जाता था। जब व्यक्ति का मन दु:खी होता है तो सुखदायी वस्तुएँ भी दुखदायी लगने लगती हैं।

प्रश्न 14.
“बिन गोपाल बैरिन भई कुंजैं।” पद की काव्यगत विशेषताएँ संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
इस पद की भाषा साहित्यिक ब्रज है। कवि ने ‘विषम, ज्वाल, बृथा, खग, अलि, घनसार, दधिसुत आदि तत्सम शब्दों को सहजता से प्रयोग किया है। वर्णन और कथन की शैली भावात्मक है। ‘पवन पानि’, ‘भानु भई भुजें’ में अनुप्रास अलि गुंजें तथा ज्यों गुंजें में यमक, “तब ये लता……की पुंजें तथा “पवन पानि……भई मुं” में उपमा अलंकार है। सम्पूर्ण पद में वियोग श्रृंगार की हृदयस्पर्शी अभिव्यंजना हुई है। कवि गोपियों की मनोभावनाओं को व्यक्त करने में पूर्ण रूप से सफल हुआ है।

प्रश्न 15.
‘भ्रमर गीत’ के पदों के द्वारा कवि सूरदास ने क्या सन्देश देना चाहा है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इन पदों में गोपियों ने श्रीकृष्ण के द्वारा प्रेषित योग साधना के सन्देश के प्रति अपना विरोध और असन्तोष व्यक्त किया है। उन्होंने उद्धव और कृष्ण के आचरण पर व्यंग्य करते हुए योग को अस्वीकार कर दिया है। इसे प्रसंग द्वारा कवि सूर ने प्रेम और भक्ति के मार्ग को ही सहज और आनन्दायक सिद्ध किया है। निराकार ईश्वर की उपासना साधारण व्यक्ति के लिए बहुत कठिन है। अत: साकार श्रीकृष्ण की भक्ति के समर्थन द्वारा उन्होंने ज्ञान और योग पर प्रेम और भक्ति की श्रेष्ठता का सन्देश दिया है।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
पाठ्यपुस्तक में संकलित पदों के आधार पर बताइए कि ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग में गोपियों ने उद्धव और उनके योग-सन्देश पर क्या-क्या व्यंग्य किए हैं?
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक में संकलित पदों में गोपियों ने उद्धवे और योग पर तीखे व्यंग्य प्रहार किये हैं। वह पहले पद में ही योग को निशाना बनाते हुए कहती हैं-“सुनतहि जोग लगत ऐसो अलि ! ज्यों करुई ककरी” यहाँ योग को ‘कड़वी ककड़ी’ के समान बताकर गोपियों ने योग के प्रति अपनी अरुचि की घोषणा कर दी है। इसी प्रकार “यह तौ सूर…..मन चकरी” में योग की तुच्छता भी प्रदर्शित कर दी है।”जोग-कथा……ना कहु बारम्बार’ में उद्धव के हठ को व्यंग्य का लक्ष्य बनाया है। “बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे” पद में गोपियों ने उद्धव के साथ अक्रूर और श्रीकृष्ण को भी व्यंग्य की लपेट में ले लिया है। “निर्गुन कौन देस को बासी’ पद में उद्धव की सारी योग्यता और तर्क पटुता को ही चुनौती दे डाली है। इस प्रकार गोपियों ने अपनी वाक्पटुता से ज्ञानी उद्धव की बोलती बन्द कर दी है।

प्रश्न 2.
पाठ्यपुस्तक में संकलित भ्रमरगीत प्रसंग के पदों में, वियोग श्रृंगार रस की योजना पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से संकलित पदों में सूरदास ने गोपियों की विरह-वेदना का बड़ा मार्मिक चित्रण किया है। गोपियाँ तो श्रीकृष्ण के मथुरा जा बसने से पहले ही बड़ी दुखी थीं। उस पर उनके योग सन्देश और उद्धव के संवेदनहीन व्यवहार ने उनके घाव पर नमक छिड़कने का काम किया। इससे आहत होकर गोपियों की वियोग व्यथा उनकी वाणी में उमड़ पड़ी। उन्होंने अबोध उद्धव को समझाया कि-“हमारे हरि हारिल की लेकरी ।’ उनका तन-मन कृष्णमय है और जीवन का हर क्षण’कृष्ण-कृष्ण’ रटते हुए बीत रहा है। उन्हें उद्धव का योग सन्देश कड़वी ककड़ी जैसा लग रहा है। वह उद्धव से आग्रह करती हैं-“जोग-कथा पालागौं ऊधो, ना कहु बारम्बार ।”

गोपियों की विरह दशा को मार्मिकता से प्रस्तुत करते हुए, सूर ने उनकी व्यथित मनोदशा का चित्रण करते हुए कहलवाया है-“अँखियाँ हरि दरसन की भूखी।” जो आँखें अब तक श्रीकृष्ण के रूप रस का पान करती आ रही थीं। वे उद्धव की रूखी योग कथा से कैसे सन्तुष्ट हो सकती हैं।

इसी प्रकार वियोगिनी नारियों के लिए सुखदायी वस्तुओं का दुखदायी हो जाने की परम्परा का निर्वाह सूरदास ने किया है। “बिन गोपाल बैरिन भई कुर्जी” पद में कवि ने यही परम्परा निभाई है। इस प्रकार ‘भ्रमरगीत’ से संकलित पदों में वियोग शृंगार का प्रभावशाली वर्णन हुआ है।

प्रश्न 3.
पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग के पदों को पढ़ने के पश्चात् आपको इस प्रसंग की रचना के पीछे सूरदास का क्या उद्देश्य प्रतीत होता है? लिखिए।
उत्तर:
पाठ्यपुस्तक में संकलित सूर के पदों का अध्ययन करने के पश्चात् हमें ऐसा लगता है कि कवि ने गोपियों के माध्यम से ज्ञान और योग पर प्रेम और भक्ति को विजयी बनाया है। श्रीकृष्ण के सन्देशवाहक बनकर उद्धव ब्रज में आते हैं। गोपियाँ उनका स्वागत करती हैं। उन्हें आशा है कि कृष्ण ने अवश्य ही उनके हृदय को मुदित करने वाला कोई प्रेम सन्देश भिजवाया होगा, परन्तु उद्धव के मुख से योग और ज्ञान का सन्देश सुनकर उनके विरह व्यथित हृदय को बड़ी निराशा और क्षोभ होता है। योगी उद्धव नारी हृदय की भावनाओं और प्रेम के प्रभाव से अपरिचित हैं। अत: उनका सन्देश और उपदेश गोपियों के क्षोभ के निशाने पर आ जाता है। गोपियाँ अपने सहज तर्को, व्यंग्यों, करुण भावनाओं तथा उपहासों के प्रहार से उन्हें निरुत्तर कर देती हैं। “निर्गुन कौन देस को बासी ?” पद में ज्ञानियों और योगियों के तर्कों को अपनी भावनात्मक उक्तियों और प्रश्नों से धराशायी करके गोपियों ने योग और ज्ञान पर प्रेम और भक्ति की विजय ध्वजा फहरायी है।

प्रश्न 4.
“सोई व्याधि हमैं लै आए” गोपियों ने व्याधि किसे कहा है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्धव श्रीकृष्ण का सन्देश लेकर गोपियों को सांत्वना देने और समझाने आए थे। कृष्ण ने उद्धव को कहा था कि वह योगी हैं, अत: योग का उपदेश करके गोपियों का सही मार्गदर्शन करें। उन्हें सांसारिक मोह से मुक्त होकर मुक्ति के मार्ग पर चलने का सन्देश दें। उद्धव ने यही किया। उन्होंने गोपियों को समझाने की चेष्टा की कि कृष्ण के वियोग में दुखी होना छोड़, वे निराकार ईश्वर की उपासना करें।

परन्तु गोपियों को उद्धव का योग-उपदेश तनिक भी नहीं भाया। उन्होंने उद्धव से कह दिया कि उनका योग का सन्देश उन्हें कड़वी ककड़ी जैसा लग रहा है। अत: इस योग रूपी व्याधि को उन्हें ही सिखाएँ जिनके मनं अस्थिर अथवा चंचल हैं। यह योग हम नारियों के लिए एक रोग या झंझेटे के समान है। भला स्त्रियाँ योगियों के समान लंगोट लगाकर शरीर पर भस्म मल कर तथा जटाएँ बढ़ाकर कैसे रह सकती हैं।

योग रूपी व्याधि से बचने के लिए ही वे उद्धव से अनुरोध करती हैं-“जोग-कथा, पालागौं ऊधो, ना कहु बारम्बार ।” उद्धव के मुख से योग सन्देशों को बार-बार सुनकर गोपियाँ अत्यन्त व्यथित हो गई हैं।

यही कारण है जिसके कारण गोपियों ने योग को ‘व्याधि’ कहा है।

प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तक में संग्रहीत भ्रमरगीत के पदों का सार संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
हमारी पाठ्यपुस्तक में भ्रमरगीत शीर्षक के अन्तर्गत छ: पद संकलित हैं। इनमें गोपियों ने अपने हृदय की भावनाएँ उद्धव के सम्मुख व्यक्त की हैं।

गोपियाँ उद्धव से कहती हैं कि वे अपने हृदय से कृष्ण को दूर करने में असमर्थ हैं। उनके लिए कृष्ण हारिल पक्षी की लकड़ी के समान हैं। जागते, सोते, सपने में, प्रत्यक्ष में, उनके मुख से कृष्ण का नाम ही निकलता रहता है। अत: वह अपना योग उन लोगों को सिखाएँ जो एकनिष्ठ प्रेमी नहीं हैं, जिनके मन चंचल हैं। गोपियाँ कहती हैं कि उन्हें चाहे कृष्ण मिले या न मिलें। वे तो हर हाल में सन्तुष्ट हैं। कृष्ण अपने को ऊँची जाति का समझकर हमारी उपेक्षा करते हैं तो करें, पर कुब्जा से प्रेम करके संसार में जो उनका यश फैल रहा है, उसका भी ध्यान करें। आपके योग की साधना से हमें मुक्ति ही तो मिलेगी। भक्त और प्रेमी अपने प्रिय पर मुक्ति को न्योछावर कर देते । हैं। मुक्ति तो दासी के समान उनकी आज्ञा में खड़ी रहती है। गोपियों को कृष्ण प्रेम के सामने उद्धव की योग कहानी बड़ी अरुचिकर और नीरस लगती है। वे उद्धव से यही अनुरोध करती हैं कि वह उनको श्रीकृष्ण से मिला दें। गोपियों ने “निर्गुन” कौन देस को बासी” कहते हुए उनके “निर्गुण” ईश्वर की हँसी उड़ाई है। वे अपने ग्रामीण तर्को से उद्धव का मुँह बन्दकर देती हैं। अन्त में वे यही कहती हैं कि उद्धव हमारी दयनीय दशा पर विचार करो। आज सारी सुखदायिनी वस्तुएँ हमारे लिए दुखदायिनी हो गई हैं। मथुरा जाकर हमारी दशा से कृष्ण को अवगत कराओ ताकि वे हमें दर्शन देकर कृतार्थ करें।

प्रश्न 6.
आपके अनुसार श्रीकृष्ण द्वारा योग के सन्देश के स्थान पर कौन-सा सन्देश भिजवाना उचित होता?
उत्तर:
मेरी दृष्टि में श्रीकृष्ण को योग सन्देश के स्थान पर प्रेम और सांत्वना से पूर्ण सन्देश भिजवाना चाहिए था। जब तक वह ब्रज में रहे उन्होंने गोपियों के प्रति प्रेम का भाव ही प्रदर्शित किया। गोपियाँ भी उनसे अत्यधिक प्रेम करती थीं। जब किसी का प्रिय बिछुड़ता है तो उसका हृदय अत्यन्त व्याकुल हो जाता है। श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने और लौटकर न आने से गोपियों को गहरा आघात लगा था। उन्हें सारी सुखदायिनी वस्तुएँ कष्टदायिनी लगने लगी थीं। ऐसी स्थिति में कृष्ण का कर्तव्य था कि वह योग साधना जैसा नीरसे सन्देश न भिजवाकर प्रेम और सहानुभूतिमय सन्देश भिजवाते । तभी गोपियों के हृदयों को सन्तोष और सुख मिलता। वैसे भी योग साधना ग्रामीण स्त्रियों के लिए बड़ा कठिन काम था।

सूरदास कवि-परिचय

श्रीकृष्ण की विविध लीलाओं का मनोहारी वर्णन करने वाले कविवर सूरदास का जन्म दिल्ली के समीप स्थित सीही नामक गाँव में 1483 ई. में हुआ था। सूरदास नेत्र ज्योति से वंचित थे। वह मथुरा-आगरा के मध्य स्थित रुनकता में आकर रहने लगे। यहाँ पर उनकी भेट महाप्रभु बल्लभाचार्य से हुई। उनके उपदेशों से प्रेरित होकर सूरदास ने कृष्ण की लीलाओं का वर्णन प्रारम्भ किया। वे गोवर्धन आकर श्रीकृष्ण के विग्रह के सामने उनकी लीलाओं का गान करने लगे। उनका देहान्त सन् 1563 ई. में पारसौली गाँव में हुआ।

रचनाएँ-सूरदास जी की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं-

  1. सूर सागर,
  2. सूर सारावली,
  3. साहित्य लहरी।

सूरदास भक्ति और श्रृंगार के कवि हैं। उन्होंने श्रृंगार रस के संयोग तथा वियोग पक्ष दोनों का ही अद्वितीय हृदयस्पर्शी वर्णन किया है। वात्सल्य का तो ‘सूरसागर’ सूरदास की अक्षयकीर्ति की ध्वजा है।

सूरदास पाठ परिचय

पाठ्यपुस्तक में महाकवि सूरदास के छ: पद संकलित हैं। इन पदों में गोपियों के विरह व्यथित हृदय की भावनाएँ व्यक्त हुई हैं। उद्धव के मुख से कृष्ण का योग सन्देश सुनकर गोपियों को बड़ा आघात लगा और उन्होंने अपनी भावनाएँ उद्धव तथा कृष्ण पर व्यंग्य करते हुए व्यक्त। गोपियाँ उद्धव के योग उपदेश को कड़वी ककड़ी के समान बताती हैं। श्रीकृष्ण द्वारा अपनी उपेक्षा और कुब्जा से प्रेम पर व्यंग्य करती हैं। उद्धव, अक्रूर और कृष्ण के काले रंग पर चुटकी लेती हैं। अपनी आँखों की करुण दशा का वर्णन करती हैं। निर्गुण ब्रह्म की उपासना का उपहास करती हैं और वियोग से पीड़ित अपने मन की व्यथा का वर्णन करते हुए उद्धव ने कृष्ण को अपनी दयनीय दशा सुनाने का आग्रह करती हैं।

संकलित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ।

1. हमारे हरि हारिल की लकरी।
मन बच क्रम नंदनन्दन सो उर, यह दृढ़ करि पकरी॥
जागत, सोवत सपने सौंतुख कान्ह कान्ह जकरी।
सुनतहि जोग लगत ऐसो अलि! ज्यों करुई ककरी॥
सोई व्याधि हमैं लै आए देखी सुनी न करी।
यह तौ सूर तिन्हैं लै दीजै, जिनके मन चकरी॥

कठिन शब्दार्थ-हारिल = एक हरे रंग का तोते से मिलता-जुलता पक्षी जो हर समय पंजे में टहनी पकड़े रहता है। लकरी = लकड़ी, वृक्ष की टहनी। बच = वचन, वाणी। क्रम = कर्म, कार्य। नंदनंदन = श्रीकृष्ण। उर = हृदय। सौंतुख = साक्षात्। कई = कड़वी। ककरी = ककड़ी। व्याधि = झंझट, रोग। चकरी = चकई नाम का खिलौना, अस्थिर, चंचल।

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित सूरदास के पदों से उधृत है। इस पद में गोपियाँ उद्धव के ज्ञान और योग मार्ग को ग्रहण करने में अपनी असमर्थता दिखाते हुए कृष्ण के प्रति अपने अविचल प्रेम को प्रकट कर रही हैं।

व्याख्या-गोपियाँ उद्धव से कहती हैं-हे उद्धव! श्रीकृष्ण हमारे लिए हारिल की लकड़ी के समान हैं। जैसे हारिल पक्षी अपने पंजों में पकड़ी हुई टहनी को एक बार के लिए भी अपने से अलग नहीं करता, उसी प्रकार हमारे कृष्ण प्रेमी हृदयों से कृष्ण का ध्यान एक पल के लिए भी नहीं हट पाता है। जागते, सोते, स्वप्न में और प्रत्यक्ष में हमारे हृदय निरन्तर कृष्ण-कृष्ण की ही रट लगाए रहते हैं। हम एक क्षण के लिए कृष्ण का वियोग सहन नहीं कर सकतीं। आपके योग साधना के उपदेश कान में पड़ते ही हमारे हृदय उसी तरह वितृष्णा से भर जाते हैं, जैसे कड़वी ककड़ी चखते ही मुँह कड़वाहट से भर जाता है। हे उद्धव! आप कड़वी ककड़ी जैसे इस योगरूपी रोग को हमारे लिए ले आए हैं। हमने आज तक इस व्याधि को न देखा है, न सुना है और न कभी इसे किया है। उद्धव! आप इस योग के रोग की शिक्षा उन लोगों को दीजिए जिनके मन अस्थिर हैं। जिनमें दृढ़ प्रेमभाव का अभाव है।

विशेष-
(i) पद में गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने दृढ़ प्रेम को प्रदर्शित करते हुए उद्धव के ज्ञान और योग का उपहास किया है।
(ii) कवि ने ‘हारिल की लकड़ी’ लोकोक्ति का बड़ा सटीक प्रयोग किया है।
(iii) सरल ब्रजभाषा में सूर ने मार्मिक भावनाओं का सफल प्रकाशन किया है।
(iv) पद में अनुप्रास, उपमा तथा पुनरुक्ति अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
(v) विप्रलम्भ (वियोग) श्रृंगार की सफल योजना हुई है।
(vi) लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रभावशाली प्रयोग है।

2. हम तौ दुहुँ भाँति फल पायो।
जो ब्रजनाथ मिलैं तो नीको, नातरु जग जस गायो।
कहँ वै गोकुल की गोपी सब बरनहीन लघुजाती।
कँह वै कमला के स्वामी संग, मिलि बैठीं इक पाँती।
निगमध्यान मुनिज्ञान अगोचर, ते भए घोषनिवासी।
ता ऊपर अब साँच कहों धौं मुक्ति कौन की दासी?
जोग-कथा, पा लागों ऊधो, ना कहु बारम्बार।
सूर स्याम तजि और भजै जो ताकी जननी छार॥

कठिन शब्दार्थ-दुहुँ भाँति = दोनों प्रकार से। ब्रजनाथ = कृष्ण। नीको = अच्छा। नातरु = नहीं तो। जस = यश। बरनहीन = अवर्ण, हीनवर्ण वाली। लघुजाती = छोटी जाति की, ग्वालिन। कमला = लक्ष्मी। इक पाँती = एक पंक्ति में, साथ। निगमध्यान = वेदों का अध्ययन या ज्ञान, अगोचर = अज्ञात, पहुँच से बाहर। घोष = गोपालकों की बस्ती। ता = उस। पालागौं = पैर लगती हूँ। तजि = त्याग कर। भजै = ध्यान करे। ताकी = उसकी। जननी = माता। छार = राख, धूल, तुच्छ।

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि सूरदास के रचित पदों से लिया गया है। इस पद में बार-बार योग की चर्चा करने वाले उद्धव और उनके मित्र कृष्ण पर व्यंग्य करते हुए गोपियों ने मुक्ति पर भक्ति और प्रेम को भारी बताया है।

व्याख्या-गोपियाँ कहती हैं-उद्धव जी ! हमें कृष्ण से प्रेम करने पर कोई पछतावा नहीं है। हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं। यदि हमारे निष्कपट प्रेम से प्रभावित होकर कृष्ण हमें फिर से दर्शन दें तो बहुत ही अच्छी बात है। यदि ऐसा नहीं भी हो तो भी संसार में उनका यश गाने का सुफल तो हमें मिलेगा ही। संसार देखेगा कि इस प्रेम प्रसंग में किसका कैसा व्यवहार रहा? हम तो गोकुल गाँव की ग्वालिन हैं। वर्ण और जाति दोनों में ही छोटी हैं। कृष्ण उच्च जाति के हैं। भला उनसे प्रेम करने का हमको क्या अधिकार था पर मथुरा की एक दासी, उन लक्ष्मी के स्वामी नारायण के अवतारे, कृष्ण के साथ बराबरी से एक पंक्ति में बैठी हैं। यह कैसा बड़प्पन हुआ? उद्धव!

आप तो ज्ञानी हैं। तनिक बताइए जिस परब्रह्म श्रीकृष्ण को वेदों के अध्ययन कर्ता, ध्यानस्थ योगी और ज्ञानी मुनि जन भी प्राप्त नहीं कर पाते, वे ही कृष्ण गोपों की बस्तियों में आकर क्यों रहे? केवल गोप-गोपियों की भक्ति और प्रेम के कारण वह निराकार-निर्गुण ब्रह्म सगुण साकार होकर इस ब्रजभूमि में अवतरित हुआ है। अब आप सब छोड़कर यही बता दीजिए कि आप जैसे ज्ञानी और योगी जिसे मुक्ति की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयत्न करते रहते हैं, वह किसकी दासी है? वह भक्ति की दासी है। हम ब्रजवासी प्रेम और भक्ति के उपासक हैं। हमें मुक्ति की आकांक्षा नहीं। अब आपके पैर छूकर : हमारी यही प्रार्थना है कि आप अपनी योग कथा को बार-बार न सुनाएँ। हमारा तो स्पष्ट और दृढ़ मत है कि श्रीकृष्ण को छोड़ जो व्यक्ति किसी अन्य की उपासना करता है, वह अपनी माता को ही तुच्छ बनाकर लजाता है।

विशेष-
(i) गोपियों ने अपने तीखे व्यंग्यों और सहज तर्को से योग और ज्ञान पर भक्ति और प्रेम की श्रेष्ठता स्थापित की है।
(ii) ‘भगवान भक्त के वश में हैं, इस उक्ति की गोपियों ने इस पद में कठिन परीक्षा ली है।
(iii) भक्ति की दृष्टि से भगवान का अनुग्रह और प्रेम ही सर्वोपरि है। मुक्ति उसके लिए एक तुच्छ वस्तु है। यह भाव इस पद का मूल विषय है।
(iv) ‘ताकी जननी छार’ कथन से गोपियों का उद्धव के प्रति क्षोभ प्रकट हो रहा है।
(v) भाषा साहित्यिक और लाक्षणिक है। शैली व्यंग्यात्मक तथा तार्किक है।

3. बिलग जनि मानहु, ऊधो प्यारे।
वह मथुरा काजर की कोठरि जे आवहिं ते कारे॥
तुम कारे, सुफलकसुत कारे, कारे मधुप सँवारे।
तिनके संग अधिक छवि उपजत, कमलनैन मनिआरे॥
मानहु नील माट तें काढ़े, लै जमुना जाय पखारे।
ता गुन स्याम भई कालिंदी, सूर स्याम-गुन न्यारे॥

कठिन शब्दार्थ-बिलग = बुरा, अन्यथा। जनि = मते, नहीं। काजर की कोठरि = काजल की कोठरी, दूषित या कलंकित करने वाला स्थान। आवहिं = आते हैं। ते = वे। सुफलकसुत = अक्रूर जो बलराम और कृष्ण को मथुरा लिवा ले गए थे। मधुप = भौंरा, रस लोभी। सँवारे = भौंरा जैसा, फूल-से-फूल पर मँडराने वाला। छवि = शोभा। कमलनैन = कमल जैसे नेत्र वाले कृष्ण। मनिआरे = मणि या रत्न जैसी दमक वाले। नील = एक पौधे से निकाला जाने वाला नीला रंग। माट = वस्त्र आँगने या धोने का बड़े मुँहवाला मिट्टी का बर्तन। काढ़े = निकाले। पखारे = धोए, साफ किए। ता गुन = उस गुण या कारण से। स्याम = साँवली। भई = हो गई है। कालिंदी = यमुना। गुन = गुण। न्यारे = सबसे अलग, अनोखे॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित सूर रचित सूरसागर के ‘भ्रमरगीत’ प्रसंग से लिया गया है। इस पद में गोपियाँ उद्धव के काले रंग पर कटाक्ष करते हुए मथुरावासियों के चंचल और विलासी स्वभाव का परिहास कर रही हैं।

व्याख्या-गोपियाँ योग और ज्ञान सिखाने आए उद्धव पर मधुर व्यंग्य करते हुए कह रही हैं-हे उद्धव! आप बुरा मत मानना। हमें तो ऐसा लगता है वह मथुरा नगरी काजल की कोठरी के समान है। वहाँ से निकलकर आने वाला हर व्यक्ति काला ही होता है। आप काले हैं, बलराम और कृष्ण को बहकाकर ले गए वह अक्रूर भी काले थे। यह हमारे ऊपर मँडराता मधु का लोभी, फूल-फूल का रस चखने वाला, भौंरा भी काला है। यह भी, लगता है मथुरा से ही आया है अथवा वह कृष्ण भी जो पहले गोपियों पर प्रेम जताया करते थे और अब कुब्जा पर मोहित हो रहे हैं मथुरा से ही लाए गए थे। सच तो यह है कि वह रत्न जैसी कान्ति वाले कमल के समान नेत्रधारण करने वाले कृष्ण, मथुरा के काले लोगों में ही शोभा पाते हैं। वह उन्हीं के बीच रहने योग्य हैं। ऐसा लगता है जैसे, इन्हें नील के माट से निकाल कर यमुना में धोया गया है। इसी कारण यह यमुना भी साँवली हो गई है। उद्धव! आपके परममित्र उन श्रीकृष्ण के गुणों का कहाँ तक वर्णन करें। वे तो सबसे न्यारे हैं। विलक्षण चरित्र वाले हैं।

विशेष-
(i) उद्धव के श्याम वर्ण को लेकर गोपियों ने मथुरावासियों के तन और मन दोनों पर करारा व्यंग्य किया है।
(ii) “काजर की कोठरी’ लोकोक्ति का सटीक प्रयोग करते हुए कवि ने क्षुब्ध गोपियों की मनोभावनाओं को उजागर किया है।
(iii) “तिनके संग……मनियारे” पंक्ति में गोपियों ने कृष्ण के मथुरावास पर हृदयवेधी व्यंग्य प्रहार किया है। भाव यह है कि कृष्ण को ब्रज की गोरी और प्रेम में समर्पित सुन्दर गोपियाँ नहीं सुहाईं। उसे कुब्जा से सम्बन्ध जोड़ना अच्छा लगा। काले को काली ही भाई।
(iv) भाषा साहित्यिक ब्रज है। वर्णन शैली व्यंग्यात्मक और उपहासात्मक है।
(v) ‘काजर की कोठरि’ ‘कारे’ में श्लेष अलंकार है। ‘कमल नैन’ में उपमा अलंकार है।

4. अँखियाँ हरि दरसन की भूखी।
कैसे रहैं रूपरसराची, ये बतियाँ सुनी रूखी॥
अवधि गनत इकटक मग जोवत, तब एती नहिं झूखी।
अब इन जोग सँदेसन ऊधो, अति अकुलानी दूखी॥
‘बारक वह मुख फेरि दिखाओ, दुहि पय पिवत पतूखी।
सूर सिकत हुठि नाव चलायो, ये सरिता है सूखी॥

कठिन शब्दार्थ-भूखी = अत्यन्त लालायित। रूपरस = सुन्दरतारूपी आनन्द। राँची = रँगी हुई, डूबी हुई। बतियाँ = बातें, उपदेश। रूखी = नीरस। अवधि = लौटकर आने का समय। गनत = गिनते हुए। इकटक = अपलक, टकटकी लगाए हुए। मग = मार्ग। जोवत = जोहते हुए, देखते हुए। एती = इतनी। झूखी = हुँझलाईं, खीझी, क्षुब्ध। जोग-सँदेसन = योग के सन्देशों से। अकुलानी = व्याकुल हैं। दूखी = दुखी हो रही हैं। दुख रही हैं। बारक = एकबार। फेरि = फिर से, दोबारा। दुहि = दुहकर। पय = दूध। पतूखी = पत्ते से बना दोना। सिकत = रेत, बालू। हठि = हठपूर्वक, अविवेक से। सरिता = नदियाँ, गोपियों के हृदय। सूखी = जलरहित॥

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित सूर रचित सूरसागर के भ्रमर गीत प्रसंग से लिया गया है। इस पद में गोपियाँ श्रीकृष्ण के उस रूप का दर्शन करना चाहती हैं, जिसमें वह पत्तों के दोनों में दूध दुहकर पिया करते थे।

व्याख्या-उद्धव द्वारा हठपूर्वक बार-बार श्रीकृष्ण द्वारा भिजवाए गए योग साधना के सन्देश को सुनाए जाने पर गोपियाँ उनके विवेक पर तरस खाते हुए कहती हैं-हे उद्धव! क्या आप अभी तक नहीं समझ पाए कि हमारी आँखें प्रिय श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए लालायित हैं। इनकी भूख आपके नीरस योग और ज्ञान के उपदेशों से कैसे बुझ सकती है। कल तक जो आँखें श्रीकृष्ण के अनुपम स्वरूप के रस में डूबी रहती र्थी, वे आपके इन नीरस उपदेशों से कैसे सन्तुष्ट हो सकती हैं। जब हम श्रीकृष्ण के मथुरा से लौटने की अवधि का एक-एक दिन गिन रही थीं। हमारी आँखें कटकी लगाए उनके आगमन के मार्ग को देख रही थीं, तब भी ये इतनी नहीं खीझी थीं। पर आज आपके इन योग के सन्देशों को सुन-सुनकर हमारी आँखें अत्यन्त अकुला रही हैं। ये अत्यन्त दुख रही हैं। अब आप इन योग और ज्ञान के सन्देशों और उपदेशों को बन्द कीजिए। बस एक बार हमें हमारे प्राणप्रिय श्रीकृष्ण के उस मुख के दर्शन करा दीजिए। जिससे वह पत्तों के दोनों में दूध दुहकर पिया करते थे। हमें मथुराधीश, योगी और ज्ञानी श्रीकृष्ण नहीं चाहिए। हम तो उसी कृष्ण की आस लगाए बैठी हैं, जो गोपियों से हिलमिलकर रसमय क्रीड़ा और लीलाएँ किया करते थे।

विशेष-
(i) “हरि दरसन की भूखी” कथन में गोपियों का एकनिष्ठ, अविचले प्रेम और मिलन की तड़प साकार हो रही है।
(ii) “कैसे रहें …………….. रूखी।” पंक्ति में निर्गुण के आराधक योगियों और ज्ञानमार्गियों पर कटाक्ष किया गया है।
(iii) “दुहि पय पिवत पतूखी।” में ब्रज की गोप संस्कृति की हृदयस्पर्शी झाँकी है।
(iv) ‘सिकत हठि नाव चलायो’ में रेत में नाव चलाना’ मुहावरा ही रूपान्तरण के साथ प्रयुक्त हुआ है।
(v) पद में भावसिक्त तर्को द्वारा गोपियों ने अपनी दयनीय मनोदशा का वर्णन किया है।
(vi) भाषा में प्रौढ़ता, साहित्यिकता और लोकांचल का मधुर स्पर्श है।

5. निर्गुन कौन देस को बासी?
मधुकर! हँसि समुझाय, सौंह दै बूझति साँच, न हाँसी॥
को है जनक, जननि को कहियत, कौन नारि, को दासी?
कैसो बरन, भेस है कैसो, केहि रस में अभिलासी॥
पावैगो पुनि कियो आपनो जो रे! कहैगो गाँसी।
सुनत मौन ह्वै रह्यो ठग्यो सूर सबै मति नासी॥

कठिन शब्दार्थ-निर्गुन = गुणरहित, निराकार ईश्वर। बासी = निवासी, रहने वाला। मधुकर = भौंरा। सौंह दै = सौगन्ध दिलाकर। बुझति = पूछती हूँ। साँच = सच। हाँसी = हँसी, मजाक। जनक = पिता। जननि = माता। नारि = पत्नी। बरन = रंग। भेस = वेशभूषा। अभिलासी = चाहने वाला, रुचि रखने वाला। गाँसी = कपटपूर्ण बात, झूठ। वै = होकर। ठग्यो सो = ठगा हुआ सा, चकित। मति = बुद्धि, चतुराई। नासी = नष्ट हो गई, व्यर्थ हो गई।

सन्दर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित महाकवि सूरदास द्वारा रचित ‘भ्रमरगीत प्रसंग’ के पदों से लिया गया है। इस पद में गोपियाँ उद्धव से निर्गुण ब्रह्म का परिचय पूछकर उनसे परिहास कर रही हैं।

व्याख्या-गोपियों को बार-बार निराकार ईश्वर की आराधना का उपदेश देने वाले उद्धव का मुँह बन्द करने के लिए गोपियों ने उनसे ‘निर्गुण’ का पूरा परिचय ही पूछ डाला। उन्होंने कहा-“हे उद्धव ! हमें आपका उपदेश स्वीकार है। इस निर्गुण से मन लगाने को तैयार हैं परन्तु उसका पूरा परिचय तो हमें बताइए। वह आपका निर्गुण किस देश का रहने वाला है। हे मधुकर ! (कृष्ण का प्रतीक) बुरा न मानो हमें हँस कर बताओ। हम तुम से हँसी नहीं कर रहीं। सचमुच ही हम उस निर्गुण से परिचित होना चाहती हैं। बताओ उस निर्गुण का पिता कौन है? उसकी माता कौन है? उसकी पत्नी का नाम क्या है और उसकी दासी कौन है, उसका रूप-रंग और वेशभूषा कैसी है, यह भी बताओ कि उसे किस रस में रुचि है? परन्तु यह ध्यान रखना कि यदि तुमने झूट या कपटपूर्ण बातें कही तो उसका फल तुम्हें अवश्य भोगना पड़ेगा।” गोपियों की इन बातों या प्रश्नों को सुनकर उद्धव मौन हो गए। उनको उत्तर देते नहीं बना, निर्गुण ब्रह्म के माता, पिता, दासी और रूप-रंग का तो प्रश्न ही नहीं उठता। बेचारे ज्ञानी उद्धव ब्रज की गोपियों के सहज प्रश्नों से परास्त होकर चुप हो गए।

विशेष-
(i) ज्ञान और तर्कशक्ति में गोपियाँ उद्धव के सामने कहीं नहीं ठहरतीं। किन्तु उनको सहज जिज्ञासाओं का समाधान कर पाना, ज्ञान और तर्क से परे है। प्रेम के क्षेत्र में तर्क का स्थान नहीं है और ज्ञानी तथा तार्किक व्यक्ति प्रेम के भावभीगे क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर पाता है। कवि ने इस पद द्वारा ज्ञान और योग पर प्रेम और भक्ति की श्रेष्ठता प्रतिपादित की है।
(ii) इस प्रसंग के आयोजन द्वारा सूरदास जी की काव्य प्रतिभा संवेदनशीलता और भक्ति भावना गोपियों के माध्यम से व्यक्त हुई है।
(iii) साहित्यिक ब्रज भाषा का प्रयोग है। प्रस्तुतीकरण की शैली व्यंग्यात्मक, परिहासात्मक और रोचक है।
(iv) पद में अनुप्रास अलंकार है।

6. बिन गोपाल बैरिन भई कुनैं॥
तब ये लता लगति अति सीतल, अब भई विषम ज्वाल की पुंजें॥
वृथा बहति जमुना, खग बोलत, वृथा कमल फूलै अलि गुंजै।
पवने पानि घनसार संजीवनि दधिसुत किरन भानु भई भुजें॥
ए, ऊधो, कहियो, माधव सों विरह कदन करि मारत लुजें॥
सूरदास प्रभु को मग जोवत, अँखियाँ भई बरन ज्यों गुंजै॥

कठिन शब्दार्थ-बैरिन = शत्रु, कष्टदायिनी। कुंजें = वृक्षों का समूह। विषम = भयंकर। ज्वाल अग्नि। पुंजें = समूह। बृथा = व्यर्थ। खग = पक्षी। अलि = भौंरा। गुंजें = गुंजार करते हैं। पानि = पानी। घनसार = कपूर। संजीवनि = बादल (संजीवनी = जीवनदायिनी)। दधिसुत = चन्द्रमा। भानु = सूर्य। भई = होकर, बनकर। भुजें = जला रही हैं। माधव = श्रीकृष्ण। कदन करि = मारकर, घोर कष्ट देकर। लुजें = अशक्त, लुज-पुंज। मग = मार्ग, आगमन। जोवत = देखते हुए। बरन = वर्ण, रंग। गुंजें = गुंजा या रत्ती, जिससे पहले सोना और रत्न तोले जाते थे। इसका रंग लाल और रूप आँख जैसा होता था।

सन्दर्भ तथा प्रसंग-यह पद हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि सूरदास रचित पदों से लिया गया है। गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में दु:खी होकर उद्धव को बता रही हैं कि सारी सुखदायिनी वस्तुएँ अब उनको कष्ट देने वाली लग रही हैं।

व्याख्या-गोपियाँ उद्धव से कहती हैं-हे उद्धव! आप क्या जाने कि कृष्ण के वियोग में हमारा जीवन कितना कष्टमय हो गया है। आज श्रीकृष्ण के पास न होने से ब्रज के वनों की वे कुंज जहाँ हमने प्रिय कृष्ण के साथ विहार किए थे, शत्रुओं के समान हमें अप्रिय और कष्टदायिनी लगती हैं। जो लताएँ तब तन-मन को शीतलता प्रदान किया करती थीं, अब भयंकर अग्नि के समूह के समान जला देने वाली लग रही हैं। कल-कल शब्द में बहती यमुना, कलरव करते पक्षी, कमल पुष्पों का खिलना और पुष्पों पर भौंरों की गुंजार, यह सारे दृश्य हमें व्यर्थ प्रतीत हो रहे हैं। इन्हें देखकर हमारा मन अब हर्षित नहीं होता। वायु, जल, कपूर, बादल और चन्द्रमा की किरणें, ये सभी शीतलता प्रदान करने वाली वस्तुएँ आज प्रचण्ड सूर्य के समान हमें जलाने वाली बन गई हैं। हे उद्धव! आपसे हमारा अनुरोध है कि आप मथुरा जाकर निर्मोही कृष्ण से कहना कि उनके वियोग ने हमें प्राणान्तक कष्ट देकर विकलांग-सा बना दिया है। हम जीवित ही, मृततुल्य हो गए हैं। उन्हें बताना कि उनके आगमन के पथ को एकटक देखते रहने के कारण, हमारी आँखें गुंजा के समान लाल होकर दु:ख रही हैं।

विशेष-
(i) गोपियों की विरह व्यथा का मार्मिक वर्णन हुआ है। विरह व्यथित नारी के जीवन में सुखदायक वस्तुएँ भी दुखदायक बन जाती हैं, इस काव्य परम्परा को कवि सूर ने इस पद में निपुणता से निभाया है। श्रीकृष्ण के दूर हो जाने से कुंज, लताएँ, यमुना की कल-कल, पक्षियों का कलरव, कमल का खिलना और उन पर भौंरों का मडराना ये सारे सुन्दर दृश्य और वस्तुएँ उन्हें कृष्ण का स्मरण कराके दुखी बना रही हैं।
(ii) गोपियों ने उद्धव को ही अपना संदेशवाहक बनाया है क्योंकि उन्होंने अपनी आँखों से गोपियों की करुण दशा देखी है और वह श्रीकृष्ण के विश्वासपात्र मित्र भी हैं।
(iii) ‘लगति अति सीतल’ तथा ‘भानु भई भुजें’ में अनुप्रास अलंकार हैं।
(iv) वियोग श्रृंगार रस की हृदयस्पर्शी योजना है।
(v) भाषा साहित्यिक ब्रज है। परम्परागत शैली में विरह वर्णन किया है।

We hope the RBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 2 सूरदास, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.