RBSE Solutions for Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कविता के बहाने’ कविता की तुलना किससे सार्थक मानी गई है –
(अ) चिड़िया की उड़ान
(ब) फूल का खिलना
(स) बच्चे का खेलना
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स)

प्रश्न 2.
“करतब’ शब्द में है –
(अ) प्रशंसा
(ब) निन्दा
(स) व्यंग्य
(द) उपेक्षा
उत्तर:
(स)

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने-का अभिप्राय क्या है?
उत्तर:
इस कथन का अभिप्राय है कि चिड़िया की उड़ान सीमित क्षेत्र तक ही होती है, जबकि कविता का प्रभाव विश्वव्यापी होता है।

प्रश्न 2.
“सब घर एक कर देने के माने बच्चा ही जाने का क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
अभिप्राय यह है कि कविता का प्रभाव बच्चों के खेल की तरह भेदभावरहित और एकता का संदेश देने वाला होता है।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कविता के बहाने’ शीर्षक कविता का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
‘कविता के बहाने’ कविता में कवि ने आज के यंत्र प्रधान, भौतिकतावादी वातावरण में भी कविता के महत्व और प्रभाव को स्थापित करना चाहा है। यद्यपि कविता में लोगों की रुचि कम हुई है, फिर भी मानवीय मूल्यों के रक्षण और सामाजिक समरसता की दृष्टि से कविता आज भी प्रासंगिक है। चिड़िया की उड़ान, फूलों का खिलना और बच्चों के खेल को प्रतीक बनाकर कवि कविता के असीम प्रभाव को ही सत्यापित किया है। कविता के महत्व को पुनः स्थापित करना ही कवि का लक्ष्य प्रतीत होता है।

प्रश्न 2.
बिना मुरझाए कौन महकता है तथा क्यों?
उत्तर:
फूलों के खिलने के बहाने कवि ने कविता के अंदर की चिरंतनता को प्रमाणित किया है। फूल खिलता अवश्य है, किन्तु समय के साथ वह मुरझा जाता है। उसका सुंदर रूप तथा सुगंध समय की दया पर आश्रित होता है। उसके खिलने की उम्र बहुत छोटी होती है। इसके विपरीत कविता ऐसा फूल है, जिसका आकर्षण युगों तक बना रहता है। इसकी महक दूर-दूर तक फैलती है। इसका कारण यही है कि फूल एक क्षणिक प्राकृतिक घटना है और कविता मानव हृदय की चिरंतन भावधारा है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ती जाती है। कभी मुरझाती नहीं।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
भाषा के चक्कर में सीधी-सी बात टेढ़ी हो जाती है। समझाइए।
उत्तर:
जब कवि कविता के बाहरी रूप अर्थात् शिल्प पर अधिक बल देता है, तो कविता का सीधा-सादा कथ्य भी सहज रूप में पाठकों तक नहीं पहुँच पाता। भाषा की साज-सज्जा के चक्कर में कविता की आत्मा-बात-अनकही रह जाती है। कवि ने यही किया। वह अपनी बात या मनोभाव को अत्यन्त प्रभावशाली भाषा में प्रकट करने के चक्कर में फंस गया। भाषा के सुधार और बदलाव पर उसने जितना जोर दिया बात उतनी अस्पष्ट होती गई। भाषा को ही महत्व देने वाले लोगों के उकसाने में आकर स्थिति कवि के नियंत्रण से बाहर हो गई । अधीर होकर, बिना सोचे-समझे उसने बात को भाषा में बलपूर्वक स्थापित करने की कोशिश की और वह अपने उद्देश्य में विफल हो गया।

प्रश्न 2.
“कविता एक खेल है…… बच्चा ही जाने।” पंक्ति का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
इस कथन के द्वारा कवि बताना चाहता है कि कविता भी बच्चों के खेल की भाँति एक प्रकार का खेल ही है। बच्चे खेलते समय एक घर से दूसरे घर में बिना किसी झिझक और अपने-पराये का भेद किए खेलने जाते रहते हैं। उनके मन में कोई भेद-भाव नहीं होता। वे अपनी सुंदर क्रीड़ाओं से घरों को परस्पर जोड़ने का काम किया करते हैं। इस प्रकार, बच्चे मानवीय एकता के संदेशवाहक होते हैं।

इसी प्रकार, कवि कविता के माध्यम से अपनी भावनाओं और कल्पनाओं से खेला करता है। उसकी कविता भी घर-घर में पहुँचती है और लोगों को आनंदित करती है। कविता का प्रभाव देश और काल की सीमाओं से परे होता है। कविता एक देश से दूसरे देश को जोड़ती है। कविता इस विश्वव्यापी प्रभाव की आनंद वे ही उठा पाते हैं, जो बच्चों के समान पक्षपातरहित और सरल हृदय हुआ करते हैं।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण व्याख्यात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
“आखिरकार वही हुआ …… उसी जगह ठोंक दिया।” प्रस्तुत पद की व्याख्या कीजिए।
(संकेत : छात्र पाठ के अन्तर्गत की गई काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याओं में इस अंश की व्याख्या (पद्यांश-2, बात सीधी थी पर) का अवलोकन करें और स्वयं व्याख्या करें ।)

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. ‘कविता के बहाने’ कविता में व्यक्त की गई है –

(क) चिड़िया की उड़ान
(ख) फूल का खिलना
(ग) बच्चे को खेलना
(घ) कविता की सम्भावना।

2. कविता के बिना मुरझाए महकने का अर्थ है –

(क) कभी पुराना न होना
(ख) फूल की तरह सुगंध देना
(ग) देश-काल से परे रहकर रसात्मक बने रहना
(घ) कभी न मुरझाना।

3. ‘बात जो एक शरारती बच्चे की तरह मुझसे खेल रही थी’-में अलंकार है –

(क) उपमा
(ख) रूपक
(ग) उत्प्रेक्षा
(घ) श्लेष।

4. ‘पेंच’ प्रतीक है –

(क) कवि का
(ख) बात का
(ग) भाषा का
(घ) भाषा और बात की।

5. “सहूलियत से बरतना” का अर्थ है –

(क) बहुत सावधानी से प्रयोग करना
(ख) सुविधानुसार प्रयोग में लाना
(ग) धैर्य और सरलता से काम में लाना
(घ) अधिक महत्व न देना

उत्तर:

  1. (ख)
  2. (ग)
  3. (क)
  4. (ख)
  5. (ग)

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कुंवर नारायण हिन्दी कविता के किस स्वरूप से जुड़े हुए हैं?
उत्तर:
कुंवर नारायण हिन्दी कविता में नई कविता’ नामक स्वरूप से जुड़े हैं।

प्रश्न 2.
कवि ने चिड़िया के बहाने कविता को क्या बताया है?
उत्तर:
कवि ने चिड़िया के बहाने कविता को एक उड़ान बताया है।

प्रश्न 3.
चिड़िया क्या नहीं जान सकती है?
उत्तर:
चिड़िया कविता की सीमारहित उड़ान को नहीं जान सकती है।

प्रश्न 4.
चिड़िया की उड़ान और कविता की उड़ान में क्या मुख्य अंतर है?
उत्तर:
चिड़िया की उड़ान का क्षेत्र सीमित होता है, जबकि कविता की उड़ान देश या काल के बंधन से मुक्त होती है।

प्रश्न 5.
फूलों के बहाने कवि क्या बताना चाहता है?
उत्तर:
कवि फूलों के बहाने कविता को भी एक खिलने वाली वस्तु बताना चाहता है।

प्रश्न 6.
कविता के खिलने का आशय क्या है?
उत्तर:
कविता के खिलने का आशय है-कविता का रसपूर्ण आकर्षण

प्रश्न 7.
फूल कविता का खिलना क्यों नहीं जान सकता?
उत्तर:
फूल एक ही सीमित स्थान पर अपने महक और सुन्दरता से प्रभावित करता है, जबकि कविता घर-घर और देश-देशान्तर तक अपनी सुगन्ध फैलाया करती है।

प्रश्न 8.
कविता और फूल की महक में क्या अंतर है?
उत्तर:
फूल की महक (सुगन्ध) एक सीमित स्थान में ही प्रभाव डालती है, किन्तु कविता का आनन्द घर-घर और देश-देश तक अपना आनन्द बिखेरा करता है।

प्रश्न 9.
बिना मुरझाए महकने का क्या अर्थ है?
उत्तर:
कवि तो सदाबहार फूल के समान है, जो कभी न तो मुरझाए और न ही उसकी सुगन्ध समाप्त हो।

प्रश्न 10.
‘कविता के बहाने’ कविता का वर्य विषय क्या है?
उत्तर:
‘कविता के बहाने’ कविता के वर्णन का विषय है-कविता का सुरक्षित भविष्य। कवि ने इस आशंका को निर्मूल बताया। है कि भौतिकवादी दृष्टि से बढ़ने से कविता की उपेक्षा हो जाएगी।

प्रश्न 11.
बच्चों के खेल की मानवता को क्या देन है?
उत्तर:
बच्चों के खेल मानवों को उदार दृष्टिकोण अपनाने और सभी प्रकार के भेद-भाव को त्यागने की प्रेरणा देते हैं।

प्रश्न 12.
‘बात सी थी पर’ कविता द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
‘बात सीधी सी थी पर कविता द्वारा कवि कहना चाहता है कि सरल बात को कहने के लिए कवि को आडम्बरपूर्ण भाषा से बचना चाहिए।

प्रश्न 13.
सीधी बात टेढ़ी क्यों हँस गई?
उत्तर:
भाषा को अत्यधिक प्रभावशाली बनाने के चक्कर में भाषा टेढ़ी फंस गई।

प्रश्न 14.
टेढ़ी हँस जाने का आशय क्या है?
उत्तर:
टेढ़ी हँस जाने का आशय है बात को क्लिष्ट या आडम्बरपूर्ण भाषा द्वारा व्यक्त करना कवि को कठिन हो गया।

प्रश्न 15.
बात को पाने के लिए कवि ने क्या-क्या प्रयत्न किए?
उत्तर:
कवि ने भाषा में संशोधन, आकर्षण वृद्धि और फेर-बदल किया।

प्रश्न 16.
भाषा को तोड़ने-मरोड़ने और फेर-बदल करने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
परिणाम यह हुआ कि कविता का मूल भाव और अधिक अस्पष्ट होता चला गया।

प्रश्न 17.
पेंच कसते जाने का क्या आशय है?
उत्तर:
पेंच कसने का आशय है भाषा को और अधिक कठिन और आकर्षक बनाने का प्रयत्न करना।

प्रश्न 18.
कवि पर तमाशबीनों की वाह-वाही का क्या प्रभाव पड़ रहा था?
उत्तर:
कवि वाह-वाह करने वालों से प्रभावित होकर भाषा को और अधिक आडम्बरपूर्ण बनाए जा रहा था।

प्रश्न 19.
‘करतब’ शब्द से कवि का अभिप्राय क्या है?
उत्तर:
‘करतब’ शब्द द्वारा कवि अपनी मूर्खता पर व्यंग्य कर रहा है। वह समझ रहा था कि वह बिल्कुल सही दिशा में प्रयत्न कर रहा था।

प्रश्न 20.
‘तमाशबीनों’ से कवि ने किनकी ओर संकेत किया है?
उत्तर:
कवि ने इस शब्द द्वारा उन लोगों पर व्यंग्य किया है, जो कविता के कथ्य पर मर्म की अपेक्षा भाषा की सजावट को अधिक महत्व देते हैं।

प्रश्न 21.
कवि को किस बात का डर था?
उत्तर:
कवि डर रहा था कि भाषा को प्रभावी बनाने के चक्कर में कहीं उसकी बात’ प्रभावहीन न हो जाय।

प्रश्न 22.
‘चूड़ी मर जाने का आशय क्या है?
उत्तर:
आशय है कि जैसे चूड़ी बेकार हो जाने पर पेंच का कसाब और मजबूती जाती रहती है, उसी प्रकार भाषा पर बल देने से कविता का संदेश प्रभावहीन हो जाता है।

प्रश्न 23.
कवि ने हार मानकर क्या किया?
उत्तर:
कवि ने पेंच को लकड़ी में कील की तरह ठोंक दिया।

प्रश्न 24.
कील की तरह ठोंकने का आशय क्या है?
उत्तर:
भाव को जबरदस्ती कठिन भाषा द्वारा व्यक्त किए जाने की चेष्टा करना।

प्रश्न 25.
पेंच को कील की तरह ठोंकने का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
कील की तरह ठोंकने से पेंच ऊपर से तो ठीक-ठाक लगने लगा, लेकिन भीतर उसका कसाव और ताकत दोनों नष्ट हो गईं।

प्रश्न 26.
कवि के हृदय के भावों ने उस पर क्या व्यंग्य किया?
उत्तर:
भावों ने व्यंग्यपूर्वक कहा कि उसे ‘बात’ को सहज-सरल भाषा में व्यक्त कर पाने की तमीज इतनी काव्य-रचना करने पर भी नहीं आई थी।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान के समान क्यों नहीं है ?
उत्तर:
कविता की उड़ान चिड़िया की उड़ान की तरह नहीं है। चिड़िया सीमित दूरी तक ही उड़ सकती है किन्तु कविता पर स्थान तथा समय का कोई प्रभाव नहीं होता। प्रत्येक देश-काल में उसका रसास्वादन किया जा सकता है। चिड़िया की सीमित उड़ान से उसकी समानता नहीं हो सकती।

प्रश्न 2.
फूल कविता की किस विशेषता को नहीं जानता?
उत्तर:
जब तक फूल खिलता है उसकी सुगंध उसके आस-पास तक फैल जाती है। मुरझाते ही उसकी सुगंध भी नष्ट हो जाती है। कविता भी खिलती है (विकसित होती है)। कोई भी पाठक किसी भी युग में कविता का आनन्द ले सकता है। फूल यह नहीं जानता कि कविता कभी मुरझाती नहीं (पुरानी नहीं पड़ती) तथा सदैव सरस बनी रहती है।

प्रश्न 3.
कविता तथा बच्चों के खेल में क्या समानता है ?
अथवा
“कविता एक खेल है बच्चों के बहाने” ‘कविता के बहाने’ पाठ से कविता और बच्चे मानव-समाज को क्या संदेश देते हैं?
उत्तर:
बच्चे खेलते समय किसी विशेष घर तक ही सीमित नहीं रहते। वे घर-घर जाते और खेलते-कूदते हैं। वे समाज में समानता तथा एकता की स्थापना करते हैं। कविता भी शब्दों का खेल है। कवि सभी वर्गों के भावों, विचारों, सुख-दुख इत्यादि का निष्पक्ष होकर अपनी कविता में चित्रण करता है। इस प्रकार बच्चे तथा कविता दोनों मानव-एकता का सन्देश देते हैं।

प्रश्न 4.
‘कविता के पंख लगा उड़ने’ से कवि को क्या आशय है?
उत्तर:
चिड़िया उड़ने के लिए अपने पंखों का सहारा लेती है। कवि अपने मनोभावों को व्यक्त करने के लिए कल्पना की सहायता लेता है। वह कविता में अपने भावों को व्यक्त करता है। चिड़िया अपने भौतिक पंखों की सहायता से केवल सीमित दूरी तक उड़ान भर सकती है, किन्तु कवि कल्पना के पंखों के सहारे तो ब्रह्माण्ड में उड़ान भरा करता है।

प्रश्न 5.
‘फूल क्या जाने’- फूल क्या नहीं जानता?
अथवा
फूल और कविता में क्या असमानता है?
उत्तर:
फूल खिलता है तो उसकी सुगंध एक निश्चित समय तथा दूरी तक ही फैलती है। कविता का प्रभाव अनन्त देशकाल तक होता है। फूल की सुगंध के आनन्द की तुलना कविता के रसात्मक आनन्द से नहीं हो सकती। फूल के खिलने पर उसकी सुंदरता का आनन्द सीमित क्षेत्र के लोग ही उठा सकते हैं, किन्तु कविता के सौन्दर्य का आनन्द सारे विश्व को प्रभावित किया करता है।

प्रश्न 6.
कविता के बहाने’ कविता में किन बहानों के माध्यम से कविता की विशेषताएँ बताई गई हैं ?
उत्तर:
इस कविता में चिड़िया की उड़ान, फूल का खिलना तथा बच्चों के खेल आदि बहानों के माध्यम से कविता की विशेषताएँ बताई गई हैं। चिड़िया की उड़ान सीमित होती है लेकिन कवि की कल्पना की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। फूल खिलता है तो कुछ दूर तक और कुछ समय तक ही सुगन्ध फैलाता है लेकिन कविता का आनन्द सभी स्थानों और सभी युगों में व्याप्त हो जाता है। बच्चों को खेल भेदभाव से मुक्त तथा सभी को आनन्दित करने वाला होता है। इसी प्रकार कविता भी बिना किसी भेदभाव के सभी को आनन्दित करती है।

प्रश्न 7.
कविता के बहाने’ शीर्षक कविता का प्रतिपाद्य/कथ्य/उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
इस कविता में कविता के भविष्य पर विचार किया गया है। कवि ने चिड़िया, फूल और बच्चों के उदाहरण देकर कहा है। कि कविता की उड़ान असीम होती है। उसकी गंध कभी समाप्त नहीं होती। वह बच्चों के खेल की तरह सबको सदा आनन्ददायक होती है। अत: कविता पर कोई संकट नहीं आ सकता। कवि काव्य-प्रेमियों को कविता के सुखद भविष्य के बारे में आश्वस्त करना चाहता है।

प्रश्न 8.
‘बाहर भीतर इस घर उस घर’ इस पंक्ति का प्रयोग कवि ने चिड़िया की उड़ान, फूल की सुगन्ध और बच्चों के खेल तीनों के साथ किया है। इन तीनों सन्दर्भो में इस पंक्ति का भाव क्या है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तीनों ही सन्दर्भो में इस पंक्ति का अर्थ थोड़ा भिन्न है। चिड़िया की उड़ान और फूलों की गंध कुछ घरों तक ही सीमित रहती है लेकिन बच्चों के खेल घर-घर तक व्याप्त होते हैं। कवि की कल्पना की उड़ान की कोई सीमा नहीं होती। एक सुन्दर कविता सारे संसार में सराही जाती है।

प्रश्न 9.
कवि ने चिड़िया, फूल और बच्चों का उदाहरण देकर कविता की श्रेष्ठता दिखाई है। क्या आप ऐसे और उदाहरण दे सकते हैं? यदि हाँ, तो ऐसे दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ऐसे दो उदाहरण (i) सूरज और (ii) पवन हैं। सूरज बिना भेदभाव के सब पर प्रकाश बरसाता है। पूरे संसार के प्राणी उसका लाभ उठाते हैं। इसी प्रकार पवने भी किसी एक स्थान पर सीमित नहीं रहती। वह सभी की साँसों को जीवन का वरदान बाँटती है। किन्तु कविता से मिलने वाला आनन्द आत्मिक है और सूरज तथा पवन से प्राप्त आनन्द शारीरिक है।

प्रश्न 10.
बात किस कारण टेढ़ी फैंस गई ?
उत्तर:
कवि ने सरल बाते को कहने के लिए दुरूह तथा चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग किया। वह क्लिष्ट भाषा का प्रयोग करके स्वयं को श्रेष्ठ और विद्वान् कवि प्रदर्शित करना चाहता था। भाव सरल था किन्तु भाषा उसके अनुरूप सरल नहीं थी। इस कारण भाव की सरलता तथा स्वाभाविकता नष्ट हो गई और कविता का मर्म पाठकों की समझ से परे हो गया।

प्रश्न 11.
उसे पाने की कोशिश में भाषा को उलटा-पलटा’। कवि क्या पाना चाहता था? भाषा के उलटने-पलटने से कवि का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर:
कवि अपनी सीधी बात को प्रकट करना चाहता था। जटिले भाषा का प्रयोग करने के कारण कवि भावों को सफलतापूर्वक व्यंजित नहीं कर पा रहा था। इसके लिए उसने भाषा में प्रयुक्त शब्दों को बदला तथा वाक्य-रचना में भी परिवर्तन किया। उसकी सोच थी कि भाषा में हेर-फेर करने से व्यंजना की सरलता प्राप्त हो सकेगी परन्तु कवि का विचार सही नहीं था।

प्रश्न 12.
बात को पाने की कवि की कोशिश का क्या परिणाम हुआ ?
अथवा
‘बात या तो बने’ से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर:
कवि ने बात की सरलता तथा स्वाभाविकता को बनाए रखने का प्रयत्न किया। इसके लिए उसने भाषा के शब्दों तथा वाक्यों में परिवर्तन किया। वह चाहता था कि ‘या तो बात बने या फिर भाषा से बाहर आए’। किन्तु कवि का प्रयास सफल नहीं हो सका। भाषा की जटिलता और अधिक बढ़ गई तथा उसकी कविता पाठकों की समझ से बाहर हो गई।

प्रश्न 13.
‘बात और भी पेचीदा होती चली गई–से कवि का तात्पर्य क्या है?
उत्तर:
कवि कविता में सरल मनोभावों को व्यक्त करना चाहता था किन्तु अस्वाभाविक क्लिष्ट भाषा के कारण उसे सफलता नहीं मिल रही थी। वह भाषा को संशोधित करता तो वह और अधिक दुरूह हो जाती थी। इसके साथ ही उसका कथ्य (बात) भी अस्पष्ट और प्रभावहीन हो जाता था।

प्रश्न 14.
‘सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना’- के अनुसार वह क्या मुश्किल थी जिसे कवि ने समझने का धैर्य नहीं दिखाया।
उत्तर:
कवि सरल बात को प्रकट कर रहा था, जो भाषी के बनावटीपन तथा दुरूहता के कारण संभव नहीं हो रहा है। मुश्किल भाषा के बात के अनुरूप सरल न होने की थी। कवि ने धैर्यपूर्वक इस पर विचार नहीं किया। वह चमत्कारपूर्ण भाषा पर ही जोर देता रहा।

प्रश्न 15.
पेंच को खोलने तथा कसने का क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
पेंच के उदाहरण द्वारा कवि ने कथ्य (बात) और भाषा के परस्पर सम्बन्ध पर प्रकाश डाला है। अच्छी कविता के लिए आवश्यक है कि सही बात के लिए सही शब्दों का चुनाव किया जाए। बात को जब बलपूर्वक अनुपयुक्त भाषा द्वारा कहने की कोशिश की जाती है तो बात बिगड़ जाती है। पेंच को कसने और ढीला करने का आशय है बात पर भाषा को बलपूर्वक थोपना।

प्रश्न 16.
कवि की जोर भाषा को चमत्कारपूर्ण तथा दुरूह बनाने पर क्यों था ?
अथवा
‘तमाशबीनों की शाबाशी और वाह-वाह’ का क्या परिणाम हुआ?
उत्तर:
कवि ने भाषा को दुरूह तथा चमत्कारपूर्ण बनाया। इसका कारण यह था कि उसके पाठक तथा श्रोता उसे ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे थे। श्रोता उसको शाबाशी देते थे तथा वाह-वाह करते थे। उनके द्वारा प्रोत्साहन पाकर कवि बार-बार पांडित्य-प्रदर्शन के लिए प्रेरित होता था तथा भाषा को क्लिष्ट बनाता जाता था जिससे बात का मर्म प्रकट न हो सका।

प्रश्न 17.
‘करतब’ शब्द का क्या अर्थ है? ‘करतब’ शब्द को प्रयोग करने का क्या कारण है?
उत्तर:
करतब’ शब्द का प्रयोग कवि ने सरल बात को क्लिष्ट तथा दिखावटी भाषा में प्रकट करने के अपने प्रयास के लिए किया है। ‘करतब’ शब्द में अपने इस चमत्कार प्रदर्शन के प्रयास पर तीखा व्यंग्य किया गया है।

प्रश्न 18.
कवि का कौन-सा डर सच प्रमाणित हुआ ?
उत्तर:
कवि को डर लग रहा था कि उसकी कविता लोगों की समझ से बाहर न हो जाय। भाव स्पष्ट न होने से लोग उसे समझ न सकेंगे और उसे पढ़ना ही छोड़ देंगे। अन्त में कवि का यह डर सत्य सिद्ध हुआ। भाषा को चमत्कारपूर्ण बनाने के चक्कर में कथन की सरलता ही नष्ट हो गई और भावों की सही व्यंजना नहीं हो सकी।

प्रश्न 19.
‘बात की चूड़ी मर गई’ में कवि ने क्या व्यंजित किया है?
उत्तर:
‘बात की चूड़ी मर गई’ में कवि के कथनं के प्रभावहीन होने की व्यंजना है। बात की तुलना पेंच से की गयी है। बात को अस्वाभाविक भाषा में व्यक्त करने के प्रयास में वह प्रभावशून्य हो गई और कवि का कथन पाठकों की समझ से बाहर हो गया।

प्रश्न 20.
‘बात के भाषा में बेकार घूमने’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
आशय यह है कि क्लिष्ट तथा बनावटी भाषा में व्यक्त होने के कारण कविता प्रभावहीन हो गई। श्रोता तथा पाठक उसे समझ नहीं सके। कवि का प्रयास भी असफल हो गया। दुरूह भाषा में भावाभिव्यक्ति असंभव हो गई।

प्रश्न 21.
‘बात को कील की तरह ठोंकना’ से कवि का क्या अभिप्राय है ? इससे कथ्य पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
‘बात को कील की तरह ठोंकना’ से कवि का अभिप्राय अपनी बात को अनुपयुक्त भाषा में बलपूर्वक व्यक्त करने से है। पेंच को लकड़ी में हथौड़े से कील की तरह ठोंकने से उसकी पकड़ में कसावट नहीं आती। कवि ने भावों को अनुपयुक्त क्लिष्ट भाषा में प्रकट करने की जोर-जबरदस्ती की तो कविता का मर्म ही नष्ट हो गया। कविता में प्रकट भाव पाठकों की समझ से बाहर हो गए।

प्रश्न 22.
बाहर से कसाब तथा ताकत किसमें नहीं थी तथा क्यों?
उत्तर:
सरल बात दिखावटी भाषा में बलपूर्वक व्यक्त की गई थी। उससे कवि का कथन मर्मस्पर्शी तथा प्रभावशाली नहीं बन पड़ा था। लकड़ी में हथौड़े से कील की तरह बलपूर्वक ठोंके गए पेंच की तरह कवि का कथन भी मनोभावों की प्रकट करने में समर्थ नहीं था।

प्रश्न 23.
अपनी असफलता पर कवि की क्या दशा हुई ?
उत्तर:
कवि के समस्त प्रयास निरर्थक सिद्ध हुए। वह वांछित भावों को अपनी कविता में प्रकट न कर सका। भाषा की क्लिष्टता ने भावाभिव्यक्ति को भी दुरूह बना दिया। इससे वह निराश हो उठा। उसके माथे पर पसीने की बूंदें प्रकट हो उठीं। वह परेशान होकर बार-बार पसीना पोंछने लगा।

प्रश्न 24.
‘क्या तुमने भाषा को सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा’-इस कथन में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन द्वारा कवि उन साहित्यकारों पर व्यंग्य कर रहा है जो सीधी-सच्ची बात को कहने के लिए चमत्कारपूर्ण भाषा का सहारा लेते हैं तथा अपने इस प्रयास द्वारा भावों के सौन्दर्य को क्षति पहुँचाते हैं। कवि कहना चाहता है कि अच्छी कविता का गुण सरलता ही होता है। अतः भाषा के चक्कर में उसे हानि नहीं पहुँचानी चाहिए।

प्रश्न 25.
‘बात सीधी थी पर’ का प्रतिपाद्य/कथ्य/उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
कविता में भावों के अनुरूप सरल भाषा का प्रयोग ही उचित होता है। यह बताना ही कविता का प्रतिपाद्य है। कवि का संदेश है कि सरल भावों तथा विचारों को व्यक्त करने के लिए सरल भाषा ही उपयुक्त होती है। लोगों की प्रशंसा पाने के लालच में तथा पांडित्य-प्रदर्शन के इरादे से भाषा को दुरूह बनाना ठीक नहीं है। ऐसा करने से कथन का प्रभाव नष्ट हो जाता है तथा पाठक और श्रोता को काव्य के रस का स्वाद नहीं मिलता।

प्रश्न 26.
कवि ने बात को महत्व न देकर भाषा को महत्व दिया। ऐसा उसने क्यों किया होगा? अनुमान के आधार पर बताइए।
उत्तर:
कवि को लगा होगा कि भाषा को चमत्कारपूर्ण बनाने से उसकी कविता की अधिक प्रशंसा होगी। पाठकों की वाहवाही पाने के चक्कर में उसने भावों को बलात् भाषा में बिठाने की कोशिश की। कवि ने इस बात का संकेत भी “इस….. शाबाशी और वाह-वाह।” पंक्तियों में स्वयं किया है। अतः यहाँ किसी प्रकार के अनुमान की आवश्यकता ही नहीं है।

RBSE Class 12 Hindi सृजन Chapter 8 कुँवर नारायण निबंधात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘कविता के बहाने’ कविता का संक्षिप्त सारांश लिखिए।
उत्तर:
‘कविता के बहाने’ कुँवर नारायण के ‘इन दिनों’ नामक काव्य संग्रह से ली गई है। इस कविता के माध्यम से कवि ने काव्य प्रेमियों को आश्वस्त करना चाहा है कि भौतिकवादी विचारधारा के इस युग में भी कविता के अस्तित्व पर कोई संकट नहीं है। कवि ने ‘चिड़िया की उड़ान’ तथा ‘फूल के खिलने’ से कविता के व्यापक प्रभाव तथा उसके चिरजीवी आनंद की ओर संकेत दिया है। बच्चों के खेल’ द्वारा कवि संदेश देना चाहता है कि बच्चों के खेल की तरह कविता भी लोगों को परस्पर मिलाने का काम करती है। वह घरों और देशों की सीमाओं में बँध कर नहीं रहती।

प्रश्न 2.
‘बात सीधी सी थी पर कविता के विषय पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
इस कविता में कवि ने बताया है कि सीधे-सरल विषय या भाव को सीधी-सरल भाषा के द्वारा ही व्यक्त किया जाना चाहिए। सही भाषा ही कविता की लोकप्रियता का आधार होती है। कवि ने एक बार अपनी सीधी-सी बात कहने के लिए भाषा की सजावट पर अधिक ध्यान दिया। इससे कवि की बात की सहजता समाप्त हो गई। तक कवि ने भाषा को तोड़ा-मरोड़ा, उसमें बदलाव किया। अंत में स्थिति ऐसी आ गई कि कवि उल्टे प्रयत्नों से उसकी बात की सुगमता ही समाप्त हो गई। तभी उसे यह समझ में आया कि सीधी-सी बात को सीधी-सरल भाषा द्वारा ही व्यक्त किया जाना चाहिए।

प्रश्न 3.
“कविता एक उड़ान ………….. चिड़िया क्या जाने?” ‘कविता के बहाने’ कविता के इस अंश में कवि ने क्या बताना चाहा है?
उत्तर:
कवि इस काव्यांश द्वारा बताना चाहता है कि चिड़िया और कविता दोनों ही उड़ान भरती हैं किन्तु चिड़िया की उड़ान कुछ दूर तक होती है। उसकी उड़ान की सीमा है। कविता की उड़ान असीम होती है। भला कविता की घर-घर और देशान्तरों में उड़ान की तुलना चिड़िया की उड़ान से नहीं की जा सकती है। कवितारूपी पंखों को लगाकर जब कवि उंड़ता है तो उसकी कल्पना घरों और देशों की सीमा लाँधती हुई सारे ब्रह्माण्ड को नापने लगती है। वह देश (दूरी) की नहीं काल (समय) की सीमाओं में बँधकर नहीं रहती। बेचारी चिड़िया भला कविता की इस उड़ान को कैसे समझ सकती है। कवि का कहना यही है कि इस यांत्रिकता के युग में भी कविता अपनी इसी विशेषता से जीवित रहेगी और प्रासंगिक भी बनी रहेगी।

प्रश्न 4.
“कविता एक खेल है …………. बच्चा ही जाने।” इस काव्यांश में कवि कविता को बच्चों के खेल के समान कैसे सिद्ध किया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस काव्यांश में कवि ने कविता को बच्चों के खेल के समान बताया है। बच्चों के खेलने का अंदाज कविता के खेल की तरह ही है। बच्चे जब खेलने निकलते हैं तो वे इस पर ध्यान ही नहीं देते कि वे किस घर से किस घर में खेलने जा रहे हैं। बच्चों के मन में अपना-तेरा का भाव नहीं होता। इसी प्रकार जब कवि की कल्पना के सहारे कविता खेलने निकलती है तो वह भी बिना किसी भेद-भाव के घरों और देशों की सीमा में बँध कर नहीं रहती। कविता मुक्त भाव से सभी को अपना आनन्द लुटाया करती है। कविता किसी देश के कवि की हो वह सभी देशों में आदर और प्रेम पाया करती है।

प्रश्न 5.
“बात सीधी थी पर…………….. पेचीदा होती चली गई।” इस काव्यांश में कवि ने बात के पेचीदा हो जाने का क्या कारण बताया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि एक सीधी सी बात कहना चाहता था पर वह बात को भारी-भरकम बनाने के चक्कर में पड़ गया। वह चाहता था कि उसका कथन बड़े प्रभावशाली रूप में सामने आए। परन्तु इस बेतुके प्रयास में उसकी ‘बात’ भाषा के दिखावे के कारण अस्पष्ट रह गई। उसने बात को स्पष्ट करने के लिए भाषा पर तरह-तरह के प्रयोग करना प्रारम्भ कर दिया। उसकी शब्दावली को आगे-पीछे किया। शब्दों को तोड़ा-मरोड़ा, उन्हें इधर से उधर रख कर देखा। असल में कवि चाह रहा था कि या तो बात इस तरह स्पष्ट हो जाए या फिर वह भाषा के दबाव से बाहर आ जाए। लेकिन हुआ उल्टा। जितना-जितना कवि ने भाषा में बदलाव लाने की चेष्टा की बात’ उतनी ही अस्पष्ट होती चली गई। कवि के कहने का आशय यह है कि सीधी-सादी बात को सीधे-सादे शब्दों के द्वारा कहा जाना ही ठीक रहता है। जब कोई शब्दों के आडम्बर का प्रयोग करता है तो वह अपना आशय सही रूप में दूसरों तक नहीं पहुँचा पाता है।

प्रश्न 6.
“बात सीधी थी पर” नामक कविता में कवि को पसीना क्यों आ गया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘पसीना पोंछना’ एक मुहावरा है जिसका अर्थ होता है निरंतर प्रयत्न करने पर भी सफलता न मिलने पर घबराहट होना । ऐसा तभी होता है जब कि कोई व्यक्ति जबरन किसी परिणाम को पाने की चेष्टा करता है। कवि ने भी यही किया था। बात और भाषा में सामंजस्य न बिठा पाने पर उसने बात को भाषा में बलपूर्वक ढूंस दिया। ऊपर से तो उसे लगा कि बात बन गई परन्तु वास्तव में ऐसा था नहीं। किसी पेंच की चूड़ियाँ जब ठोक-पीट करने से बेकार हो जाती हैं तो वह वस्तु को मजबूती से कसने में असमर्थ हो जाता है। यही हालत उस समय कवि के प्रयत्न की हो रही थी। अपना हर प्रयास बेकार होते देख कवि अंदर ही अंदर बेचैन हो उठा और उसके माथे पर घबराहट से पसीना आ गया और झेंप मिटाने को वह अपना पसीना पोंछने लगा।

कुँवर नारायण कवि-परिचय

कवि कुँवर नारायण का जन्म सन् 1927 ई. में हुआ। हिन्दी में नई कविता’ का दौर चल रहा था। कुँवर नारायण ने अपनी रचनाओं ने तीसरे तारसप्तक’ नामक नई कविता के कवियों के काव्य संग्रह में प्रमुख स्थान प्राप्त किया। कुंवर नारायण केवल कवि ही नहीं हैं। उन्होंने कहानियाँ, लेख तथा फिल्मों पर समीक्षाएँ भी लिखी हैं। कविता के प्रति कुँवर नारायण का दृष्टिकोण यथार्थवादी है। वे भावुकता से बचकर काव्य-रचना करते रहे।

रचनाएँ-कुँवर नारायण के प्रमुख कविता-संग्रह हैं-चक्रव्यूह, अपने सामने, इन दिनों, परिवेश हम तुम, कोई दूसरा नहीं। उन्होंने ‘वाजश्रवा ये बहाने’ तथा ‘आत्मजयी’ नामक दो खण्ड काव्य भी लिखे हैं। ‘आकारों के आस-पास’ इनका कहानी संग्रह है। ‘आज और आज से पहले’ आपका समालोचना संग्रह है।

कुँवर नारायण पाठ-परिचय

कुँवर नारायण की दो कविताएँ पाठ्य-पुस्तक में संकलित हैं। प्रथम कविता कविता के बहाने’ में कवि आज के भौतिकवादी और यंत्र-प्रधान युग में कविता के भविष्य के प्रति आशंकित लगता है। इसी कारण, कवि ने कविता के महत्व को दर्शाया है। कविता के सृजन के लिए असीम क्षेत्र विद्यमान है। चिड़िया, फूल तथा बच्चों जैसे प्रतीकों द्वारा कवि ने कविता की उड़ान, उसकी सुगंध और सीमाओं के पार उसकी पहुँच को रेखांकित किया है। कविता को कोई खतरा नहीं है, क्योंकि काव्य-रचना के कोई भी ‘बहाना’ चुना जा सकता है।
दूसरी कविता’ बात सीधी थी पर’ में कवि ने कविता में अभिव्यक्ति की सहजता पर बल दिया है। अस्पष्ट और घुमावदार कथन कविता को उलझाकर रख देते हैं। अच्छी कविता की रचना के लिए शब्दों का आडंबर आवश्यक नहीं।

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ कविता के बहाने।

(1) कविता एक उड़ान है चिड़िया के बहाने
कविता की उड़ान भला चिड़िया क्या जाने
बाहर भीतर इस घर उस घर कविता के
पंख लगा उड़ने के माने चिड़िया क्या जाने?

कठिन-शब्दार्थ-उड़ान = उड़ना, कल्पना। बहाने = प्रतीक बनाकर। कविता की उड़ान = कविता की असीम पहुँच या प्रभाव। क्या जाने = क्या समझ सकती है। बाहर-भीतर = थोड़ी दूर तक। इस घर उस घर = एक घर से दूसरे घर तक। कविता के पंख = कवि की कल्पनाएँ। माने = अर्थ।।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। इस अंश में चिड़िया के बहाने से कविता की असीम संभावनाओं पर प्रकाश डाला गया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि कविता कवि के विचारों तथा भावनाओं की कल्पना के पंखों की सहायता से भरी गई उड़ान है। जिस प्रकार चिड़िया पंखों के सहारे उड़ती है, उसी प्रकार कवि भी कल्पना के सहारे कविता में अपने मनोभावों को प्रकट करता है। कवि की कल्पना असीम और अनन्त होती है। उस पर देश और काल का कोई बन्धन नहीं होता। वह अपनी कल्पना के सहारे सम्पूर्ण धरती पर ही नहीं, असीम आकाश में भी उड़ता है। चिड़िया अपने पंखों से उड़ती तो है परन्तु उसकी उड़ान की एक सीमा है। वह एक घर से दूसरे घर के बाहर और भीतर तक ही उड़ती है। कविता जब कल्पना के पंखों से उड़ती है उसमें बाहर-भीतर की कोई सीमा नहीं होती। कविता की इस असीमित विस्तार वाली उड़ान की तुलना चिड़िया की उड़ान से नहीं की जा सकती।

विशेष-
(i) कवि ने कविता के कल्पना की सहायता से भरी जाने वाली उड़ान बताया है। चिड़िया की उड़ान उसकी बराबरी नहीं कर सकती। कवि देशों और समय की सीमाओं को लाँघती हुई, जन-मन को प्रभावित करती रही है।
(ii) चिड़िया आकाश में अपने पंखों के सहारे एक सीमा तक ही उड़ती है परन्तु कविता कल्पना के सहारे लोगों के मन को गहराई तक छूती है। समय तथा स्थान की कोई बाधा उसको रोक नहीं पाती। कविता की जन-मन रंजन की शक्ति असीमित है। चिड़िया की उड़ान के माध्यम से कवि ने कविता के अपूर्व प्रभाव की महिमा प्रकट की है।
(iii) काव्यांश की भाषा सरल, किन्तु गम्भीर अर्थ वाली है। कथन की शैली में लक्षणा शक्ति का पूरा उपयोग हुआ है।
(iv) काव्यांश में ‘कविता की उड़ान ….. क्या जाने’ में वक्रोक्ति अलंकार है।’कविता के पंख लगाकर उड़ने’ में मानवीकरण तथा रूपक है तथा ‘बाहर-भीतर, इस घर उस घर में अनुप्रास अलंकार है।

2. कविता एक खिलना है फूलों के बहाने
कविता का खिलना भला फूल क्या जाने!
बाहर भीतर इस घर, उस घर बिना
मुरझाए महकने के माने फूल क्या जाने ?

कठिन-शब्दार्थ-खिलना = फूल का खिलना, कविता का आनंदमय प्रभाव। बाहर, भीतर = सीमित स्थान में, (कविता के पक्ष में), सर्वत्र। इस घर, उस घर = अपने देश में और विदेशों में। बिना मुरझाए = सदा एक जैसा आनंद देते हुए। महकना = (फूल के पक्ष में) सुगंध बिखेरना (कविता के पक्ष में) आनंदित करना, प्रभावित करना।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत.काव्याशं हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने से लिया गया है। कवि कविता की तुलना फूल और उसकी सुगंधि से कर रहा है–

व्याख्या-कविता और फूल दोनों ही खिलते हैं, आनंददायक प्रभाव व्यक्त करते हैं, किन्तु कविता के खिलने की तुलना फूल के खिलने से नहीं की जा सकती। फूल जब खिलता है तो उसकी सुगन्ध उसके निकटवर्ती स्थान तक ही फैलती है। कविता के सरस प्रभाव की कोई सीमा नहीं है। कविता का रसात्मक आनन्द समस्त विश्व को सुख देता है। कुछ दिनों के बाद फूल मुरझा जाता है और उसकी सुगन्ध भी नष्ट हो जाती है, किन्तु कविता की सरसता अनन्त काल तक सम्पूर्ण संसार को आनन्द का अनुभव कराती रहती है।

विशेष-
(i) कवि ने फूल तथा कविता की समानता उनके खिलने में बताई है। फूल डाली पर खिलता है और सुगन्ध बिखेरता है। वैसे ही कविता कवि के हृदय में विकसित होकर जब बाहर प्रकट होती है तो अपने रस से लोगों को आनन्दित करती है। फूल की महक अपने आस-पास के घरों के बाहर तथा भीतर लोगों को आनन्द देती है। उसकी महक दूर के स्थानों तक नहीं पहुँच पाती।
(ii) आशय यह है कि फूल मुरझा जाता है तो उसकी सुगन्ध नष्ट हो जाती है किन्तु कविता कभी भी मुरझाती नहीं अर्थात् कविता की रसात्मकता समय बीतने पर नष्ट नहीं होती। कविता कभी पुरानी नहीं पड़ती, वह हर काल में लोगों को आनन्द देती है।
(iii) काव्यांश की भाषा सरल, किन्तु भाव की गहराई को छिपाए है। शैली में कथन की विचित्रता कवि के काव्य-कौशल का प्रमाण दे रही है।
(iv) काव्यांश में ‘बिना मुरझाए महकने के माने’ में अनुप्रास, खिलना’ में यमक तथा ‘कविता का ….. क्या जाने’ में व्यतिरेक अलंकार है।

3. कविता एक खेल है बच्चों के बहाने
बाहर भीतर
यह घर, वह घर
सब घर एक कर देने के माने
बच्चा ही जाने।

कठिन-शब्दार्थ-एक कर देना = भेद-भाव मिटा देना।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘कविता के बहाने’ से लिया गया है। कवि कविता की तुलना बच्चों के खेल से कर रही है।

व्याख्या-कवि कहता है कि कविता बच्चों के खेल के समान है। बच्चे घर के बाहर तथा अन्दर एक घर से दूसरे घर तक बेरोक-टोक खेलते हैं। वे अपने खेल द्वारा सभी घरों को एक-दूसरे से जोड़ते हैं। खेल द्वारा सभी भेदभावों को मिटाकर सच्ची एकता पैदा करने की क्षमता बच्चों में ही होती है। कविता भी बच्चों के खेल की तरह ही है। कवि अनेक भावों और विचारों की कल्पना करके उनके साथ खेलता है। उसकी कविता का प्रभाव सभी श्रोताओं तथा पाठकों पर होता है। कविता का आनन्द देश-काल की सीमाओं में नहीं बँधता। सच्ची कविता सभी कालों में तथा सभी देशों में लोगों को प्रभावित करती है। दूरियाँ मिटाकर संसार में वास्तविक एकता कविता ही ला सकती है।

विशेष-
(i) कविता की तुलना बच्चों के खेल से करते हुए कवि संदेश देना चाहता है कि जैसे बच्चे निष्पक्ष भाव से ५.. घर से दूसरे में खेलने चले जाते हैं, इसी प्रकार, एक अच्छी कविता भी बिना किसी पक्षपात के सभी का मनोरंजन करती है।
(ii) बच्चे जिस प्रकार अपने खेलों से एक घर को दूसरे से जोड़ते हैं, कवि भी उसी प्रकार अपनी कविता से समाजों और देशों का एक-दूसरे को समझने का अवसर देता है। उन्हें परस्पर मिलाता है।
(iii) काव्यांश की भाषा सरल है और प्रवाहपूर्ण है। गहरे भावों को सहजता से व्यक्त करती है।
(iv) ‘बाहर-भीतर’, ‘यह घर वह घर’ तथा ‘बच्चों के बहाने’ में अनुप्रास अलंकार है।
(v) काव्यांश पाठकों को सभी भाषाओं के काव्यों के अनुशीलन के लिए प्रेरित करता है।

→ बात सीधी थी पर

1. बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी हँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा-पलटा
तोड़ा मरोड़ा।
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने।
या फिर भाषा से बाहर आए
लेकिन इससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

कठिन-शब्दार्थ-बात = कथ्य, संदेश। सीधी = सरल। चक्कर = उलझन, इच्छा। टेढ़ी फंस गई = उलझ गई, अस्पष्ट होती गई। . उसे पाने = बात को स्पष्ट करने। उलट-पलटी = बदला। तोड़ा-मरोड़ा = नए-नए ढंग से कहना चाहा। घुमाया-फिराया = बदल-बदल कर देखा। बने = स्पष्ट हो जाय। बाहर आए = भाषा की क्लिष्टता से मुक्त हो जाए। पेचीदा = पेंच के समान घुमावदार, अस्पष्ट।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुंवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। कवि इस अंश में उन रचनाकारों पर मधुर व्यंग्य कर रहा है, जो अपनी कविता को प्रभावशाली बनाने के लिए क्लिष्ट भाषा का प्रयोग किया करते हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि वह जो बात पाठकों तक पहुँचाना चाहता था वह बिल्कुल सीधी और सरल थी परन्तु वह उसे प्रभावपूर्ण भाषा में व्यक्त करना चाहता था। भाषा को आकर्षक बनाने पर अधिक ध्यान देने के कारण कथ्य की सरलता ही नष्ट हो गई। वह अस्पष्ट होती चली गई। कवि ने बात की सरलता को नष्ट होने से बचाने के लिए भाषा में संशोधन किया, शब्दों को बदला और वाक्य रचना में फेर-बदल किया। उसने प्रयास किया कि बात की सरलता बनी रहे तथा भाषा की क्लिष्टता और दिखावटी स्वरूप से छुटकारा मिले परन्तु इससे बात व भाषा और अधिक उलझती चली गई।

विशेष-
(i) कवि का कहना है कि भाषा की सजावट पर अधिक बल देने से कथ्य (भाव या विचार) का संदेश और सहजता अस्पष्ट हो जाती है। इस प्रकार, काव्य-रचना का मूल उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
(ii) सहज सरल भाषा के प्रयोग द्वारा भी कथन के भावों और विचारों को प्रभावशाली ढंग से प्रकाशित किया जा सकता है। इसके लिए प्रतिभा की आवश्यकता होती है, कारीगरी की नहीं
(iii) कवि ने आम भाषा का प्रयोग करते हुए भी एक गहरा संदेश सफलता से प्रस्तुत किया है।
(iv) भाषा के चक्कर में’, ‘टेढ़ी हँसना’ तथा ‘पेचीदा होना’ आदि मुहावरों के प्रयोग से कवि ने कथ्य को प्रभावशाली बनाया है।
(v) ‘उलट-पलटा’, ‘तोड़ा-मरोड़ा’, ‘घुमाया-फिराया’ में अनुप्रास, ‘साथ-साथ’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

2. सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना।
मैं पेंच को खोलने के बजाये
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्योंकि इसे करतब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबासी और वाह वाह।।
आखिरकार वही हुआ जिसको मुझे डर था
जोर जबरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई।
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

कठिन-शब्दार्थ-मुश्किल = कठिनाई, मूल समस्या। खोलने के बजाय = स्पष्ट बनाने के बजाय। बेतरह = बिना सोचे-समझे, गलत ढंग से। कसता = और अस्पष्ट बनाता। करतब = दिखावट, तमाशा। तमाशबीन = तमाशा देखने वाले लोग। शाबासी = प्रोत्साहन। वाह-वाह = प्रशंसा। आखिरकार = अंत में। जोर-जबरदस्ती से = भाषा की अनावश्यक सजावट, क्लिष्टता। चूड़ी = पेंच के चक्कर, बात का मूल प्रभाव। मर गई = बेकार हो गई, बात प्रभावहीन हो गई। बेकार घूमने लगी = भाषा से पीछे रह गई, बेअसर हो गई।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित कवि कुंवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश में कवि क्लिस्ट शब्दों की कविता में अनुपयोगिता बता रहा है-

व्याख्या-कवि कहता है कि उसने सीधी-सादी बात को व्यक्त करने के लिए आकर्षक और कठिन भाषा का प्रयोग करने की भूल की। इससे कविता में निहित भाव अस्पष्ट हो गया। कवि ने इस कठिन समस्या पर धैर्यपूर्वक सोच-विचार नहीं किया। बजाय इसके कि वह’बात’ पर भाषा के कसाब को ढीला करता, उसे सरल बनाता; वह उसे और अधिक कसता जा रहा था। कवि के इस प्रयास पर तमाशा देखने वाले लोग उसकी प्रशंसा और वाह-वाही कर रहे थे। इस शाबाशी से भ्रमित होकर कवि भाषा के पेंच को और कसता जा रहा था। परिणाम यह हुआ कि कथन उसी प्रकार निष्प्रभावी हो गया जिस प्रकार पेंच को जबरदस्ती कसने पर उसकी चूड़ी मर जाती है और वह कसने के स्थान पर बेकार ही घूमने लगता है।।

विशेष-
(i) कुछ लोगों को यह भ्रम रहता है कि बात को यदि पाण्डित्यपूर्ण, क्लिष्ट भाषा में कहा जाएगा, तो वह श्रोताओं को बहुत प्रभावित करेगी। ऐसे रचनाकार अपना संदेश पाठकों और श्रोताओं तक पहुँचाने में विफल रहते हैं।
(ii) कवि की कवियों को सलाह है कि उन्हें उन लोगों की प्रशंसाओं पर ध्यान न देना चाहिए, जो चमत्कार प्रदर्शन और शब्दों के आडम्बर को ही श्रेष्ठ काव्य मानते हैं।
(iii) कविता की काया (भाषा) को सजाने के चक्कर में कवि अपनी रचना को दुरूह और अप्रभावी बना डालता है, यह संदेश भी कुंवर नारायण देना चाहते हैं।
(iv) कवि सरल शब्दों से मनचाहा अर्थ प्रकाशित कराने में कुशल है। भाषा मिश्रित शब्दावली युक्त है।
(v) काव्यांश की कथन-शैली लाक्षणिक है।
(vi)‘बात की चूड़ी’ में रूपक तथा साफ सुनाई, जोर जबरदस्त में अनुप्रास और पेंच को कसने की प्रक्रिया के माध्यम से कथ्य को प्रस्तुत करने से, पूरे काव्यांश में सांगरूपक अलंकार है।

3. हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीक-ठाक
पर अन्दर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देखकर पूछा”
क्या तुमने भाषा को।
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”

कठिन-शब्दार्थ-हार कर = कोई अन्य उपाय न होने पर। कील की तरह = बेढंगे रूप में, बलपूर्वक। ठोंक दिया = क्लिष्ट भाषा में ही प्रकाशित कर दिया। ऊपर से = देखने-सुनने में, बाहरी रूप में। ठीक-ठाक = सही लगना। कसाब = मजबूत पकड़। ताकत = प्रभावशीलता। शरारती = चंचल, तंग करने वाला। खेलना = मजाक बनाना, हँसी उड़ाना। पसीना पोंछना = घबराना, निराश हो जाना। सहूलियत से = सुविधापूर्वक, सरल भाव से। बरतना = काम में लेना।

संदर्भ तथा प्रसंग-प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित कवि कुँवर नारायण की कविता ‘बात सीधी थी पर’ से लिया गया है। इस अंश में कवि कहना चाहता है कि भाव को जोर-जबरदस्ती से कठिन भाषा में ठोंक देने से वह प्रभावहीन हो जाता है। सरल भाषा में भी मार्मिक भाव प्रकाशित किए जा सकते हैं।

व्याख्या-कवि कहता है कि जब वह चमत्कारपूर्ण भाषा का प्रयोग करके भी अपने सरल मनोभावों को व्यक्त नहीं कर पाया तो निराश होकर उसने भावों को उसी क्लिष्ट भाषा में बलपूर्वक भर दिया। उसका यह कार्य ऐसा ही था जैसे कि कोई पेंच की चूड़ी मर जाने पर उसे कील की तरह हथौड़े से ठोंक दे। इससे वह पेंच ऊपर से तो ठीक लगता है परन्तु अन्दर से उसकी पकड़ में मजबूती तथा कसाव नहीं होता। ठीक इसी प्रकार क्लिष्ट भावहीन भाषा में व्यक्त मनोभावों में सौन्दर्य, आकर्षण तथा पाठक को प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती। अपनी असफलता पर कवि निराश था और बेचैन होकर बार-बार पसीना पोंछ रहा था। यह देखकर उसके मन के भाव किसी शरारती बच्चे की तरह उसे छेड़ने लगे। उन्होंने कवि से पूछा कि क्या वह अभी तक सरल भावों की व्यंजना के लिए सरल, सुबोध भाषा का प्रयोग नहीं सीख पाया है? सरल भाषा अभी तक के प्रयोग से भी श्रेष्ठतम भाव व्यक्त किए जा सकते हैं।।

विशेष-
(i) कवि क्लिष्ट तथा पांडित्यपूर्ण चमत्कारी भाषा में सरल भावों को व्यक्त करने में सफल न हो सका। उसके सभी प्रयास बेकार गए और वह सही भाषा का प्रयोग करने में असफल रहा। वह अपने प्रयासों से हार मान गया।
(ii) चमत्कारपूर्ण भाषा में, प्रयुक्त स्वाभाविक भाव लोगों के मन को प्रभावित नहीं करते। उनमें पाठकों को अन्दर तक प्रभावित करने की शक्ति नहीं होती। उसमें काव्य-सौन्दर्य का भी अभाव होता है।
(iii) भाषा भावानुकूल होनी चाहिए। उसके स्थान पर अपने पांडित्य को प्रदर्शित करने के लोभ में क्लिष्ट, चमत्कारपूर्ण, दुरूह तथा बनावटी शब्दों का प्रयोग करना उचित नहीं है। बनावट से मुक्त स्वाभाविक भाषा का भावों के अनुरूप प्रयोग करना ही भाषा को सहूलियत से बरतना है।
(iv) कवि कुंवर नारायण बात को सरल भाषा में व्यक्त करने की कला जानते हैं।
(v) काव्य की भाषा में उर्दू शब्दों का मुक्त भाव से प्रयोग हुआ है।
(vi) काव्यांश में “कील की तरह ……………. ठोंक दिया” तथा “बात ने ……………. खेल रही थी” में उपमा अलंकार तथा मानवीकरण अलंकार भी है।

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