RBSE Class 12 Hindi व्याकरण अलंकार

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Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi व्याकरण अलंकार

अर्थ और स्वरूप – अलंकार शब्द का सामान्य अर्थ आभूषण है। आभूषण जिस प्रकार शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए धारण किए जाते हैं, उसी प्रकार काव्य की शोभा-वृद्धि के लिए अलंकार प्रयोग किए जाते हैं। काव्यशास्त्र के आचार्य दंडी ने भी कहा है

काव्य शोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते।”

अर्थात् काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्द ही अलंकार हैं।
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल भी अलंकारों को काव्य में प्रस्तुत भाव को उत्कर्ष देने वाला मानते हैं। काव्य, शब्द तथा अर्थमय है, अत: उसका अलंकरण भी शब्द तथा अर्थमूलक रहा है। कुछ अलंकार केवल शब्द-सौन्दर्य पर आधारित हैं और कुछ अर्थ-सौन्दर्य पर। शब्द पर आधारित अलंकार एक विशेष शब्द के प्रयोग पर निर्भर रहता है। उसका पर्यायवाची प्रयोग करने पर चमत्कार या शोभा समाप्त हो जाती है। अर्थमूलक अलंकार के प्रायः तीन प्रकार हैं –

  1. साम्यमूलक, जो दो पदार्थों की समानता पर आधारित है
  2. विरोध मूलक, जिनमें चमत्कारपूर्ण विरोध की कल्पना प्रस्तुत की जाती है और
  3. वक्रोक्तिमूलक, जिसमें कथन की वक्रता से शोभा उत्पन्न होती है।

इसी आधार पर शब्दालंकारों और अर्थालंकारों की स्वरूप-रचना की गई है।

अलंकार के भेद – अलंकार द्वारा काव्य में चमत्कार का प्रदर्शन शब्द पर अथवा अर्थ पर आधारित होता है। अत: अलंकारों के दो प्रमुख भेद हैं –

(1) शब्दालंकार तथा (2) अर्थालंकार। एक तीसरा अन्य भेद उभयालंकार’ भी होता है।

शब्दालंकार – जहाँ चमत्कार कविता में प्रयुक्त शब्द पर आधारित होता है, वहाँ शब्दालंकार होता है। यदि प्रयुक्त शब्दों को हटाकर उनका कोई पर्यायवाची रख दिया जाए, तो चमत्कार समाप्त हो जाता है। इस प्रकार शब्द-विशेष पर आधारित होने के कारण ये शब्दालंकार कहे जाते हैं, जैसे –

“कनक-कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।”

इसे पंक्ति में ‘कनक’ शब्द का दो बार भिन्न-भिन्न अर्थों में प्रयोग करके चमत्कार उत्पन्न किया गया है। यदि यहाँ कनक का पर्यायवाची ‘स्वर्ण’ शब्द रख दिया जाए तो चमत्कार समाप्त हो जाएगा। अत: चमत्कार शब्द (कनक) पर आधारित होने के कारण इस पंक्ति में शब्दालंकार है।

अर्थालंकार – जहाँ कविता का चमत्कार या शोभा उसके अर्थ पर आधारित होती है, वहाँ अर्थालंकार होता है। वहाँ यदि प्रयुक्त शब्दों के स्थान पर उनके पर्यायवाची भी रख दिए जाएँ तो भी चमत्कार यथावत् रहता है, जैसे

चली आ रही फेन उगलती फन फैलाए व्यालों-सी
इस पंक्ति को यदि इस प्रकार कहें

“उमड़ रही थीं फेन उगलती फन फैलाए सर्पो-सी
तो भी चमत्कार या शोभा वैसी ही रहती है। अत: यहाँ अर्थालंकार है।

शब्दालंकार तथा अर्थालंकार में अन्तर – शब्दालंकार कविता में वहाँ होता है, जहाँ उक्ति का चमत्कार उसमें प्रयुक्त शब्दों पर आश्रित होता है। शब्द का पर्यायवाची रखते ही चमत्कार समाप्त हो जाता है। अर्थालंकार वहाँ होता है, जहाँ उक्तिगत चमत्कार कविता के अर्थ पर आश्रित होता है। इसी कारण, प्रयुक्त शब्दों के पर्यायवाची रख देने पर भी चमत्कार पूर्ववत् रहता है।

उभयालंकार – जो शब्द एवं अर्थ दोनों में चमत्कार पैदा करके काव्य की शोभा बढ़ाते हैं, वे उभयालंकार होते हैं। इन्हें मिश्रित संज्ञा भी दी गई है, जैसे-संसृष्टि और संकर।

शब्दालंकार

1.अनुप्रास अलंकार
लक्षण या परिभाषा – जहाँ काव्य-पंक्ति में वर्षों की आवृत्ति एक से अधिक बार हो, चाहे उसमें स्वरों की समानता हो या विषमता, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

उदाहरण (1) ‘भगवान! भक्तों की भयंकर भूरि भीति भगाइये।’
उपर्युक्त काव्य-पंक्ति में ‘भ’ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है। अत: ध्यान देने की बात यह है कि यहाँ अनुप्रास अलंकार है। यहाँ ‘भ’वर्ण में स्वरों की विषमता है-‘भगवान, भूरि’, ‘भीति’।।

उदाहरण (2) ‘उसकी मधुर मुस्कान किसके हृदयतल में ना बसी।”
प्रस्तुत काव्य-पंक्ति में ‘मधुर मुस्कान’ में ‘म’ वर्ण का दो बार प्रयोग हुआ है, यद्यपि स्वरों में भिन्नता है। यहाँ भी अनुप्रास अलंकार को सौन्दर्य विद्यमान है।

उदाहरण (3) ‘छोरटी है गोरटी या चोरटी अहीर की।’
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में अंतिम वर्ण ‘ट’ और ‘र’ की एक से अधिक बार आवृत्ति होने से काव्य सौन्दर्य आ गया है।

उदाहरण (4) ‘विभवशालिनी, विश्वपालिनी दुख हर्ती है, भय निवारिणी, शांतिकारिणी सुख कर्ती है।
उपर्युक्त पंक्ति में पास-पास प्रयुक्त शब्द ‘विभवशालिनी’ और ‘विश्वपालिनी’ में अन्तिम दो वर्णो ‘ल’, ‘न’ की आवृत्ति और ‘भयनिवारिणी’ तथा ‘शांतिकारिणी’ में भी अन्तिम दो वर्गों ‘र’, ‘ण’ की आवृत्ति हुई है।

उदाहरण (5) ‘तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।’
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति पाँच बार हुई है। सभी ‘त’ वर्ण क्रमश: शब्दों के प्रारम्भ में आए हैं तथा उनके स्वर को समान हैं, अत: यहाँ अनुप्रास अलंकार है।।

अनुप्रास के भेद – अनुप्रास अलंकार के निम्नलिखित भेद हैं –

(1) छेकानुप्रास – अनुप्रास के इस भेद में एक या एक से अधिक वर्षों की आवृत्ति केवल एक बार ही होती है, जैसे-‘कानन कठिन भयंकर भारी।’ इस काव्य पंक्ति में ‘क’ वर्ण तथा ‘भ’ वर्ण केवल दो-दो बार आए हैं, अतः यहाँ छेकानुप्रास अलंकार है।

(2) वृत्यानुप्रास – जहाँ एक या अनेक वर्षों की एक से अधिक बार आवृत्ति हो, वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है, जैसे-‘विरति विवेक विमल विज्ञानी।’ इस काव्य पंक्ति में ‘व’ वर्ण की आवृत्ति अनेक बार हुई है, अत: यहाँ वृत्यानुप्रास है।

(3) श्रुत्यानुप्रास – जहाँ ऐसे वर्षों की आवृत्ति हो, जो मुख के एक ही उच्चारण-स्थान से उच्चरित हों, वहाँ श्रुत्यानुप्रास होता है, जैसे-‘दिनान्त था, थे दिननाथ डूबते।’ इस काव्य पंक्ति में एक ही उच्चारण-स्थान ‘दन्त’ से उच्चरित होने वाले अनेक वर्षों ‘त, थ, द, न’ की आवृत्ति हुई है, अत: यहाँ श्रुत्यानुप्रास है।

(4) अन्त्यानुप्रास – छन्द के चरणों के अन्त में जहाँ एक समान वर्गों का प्रयोग हो, वहाँ अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है, जैसे
‘काली काली अलकों में,
आलस-मद-नत पलकों में।’

उपर्युक्त काव्य पंक्तियों के अन्तम वर्ण एक समान हैं। अत: इन तुकान्त (एक जैसी तुक वाली) पंक्तियों में अन्त्यानुप्रास है।

नोट – कुछ विद्वान् अनुप्रास का एक अन्य भेद’लाटानुप्रास’ भी मानते हैं। लाटानुप्रास अलंकार में शब्दों या वाक्यांशों की आवृत्ति होती है और उनके अर्थ में भी कोई अन्तर नहीं होता, किन्तु अन्वय-भेद से अथवा वर्ण भेद से अर्थ (तात्पर्य) बदल जाता है, जैसे –

‘पराधीन जो जन, नहीं स्वर्ग-नरक ता हेतु।
पराधीन जो जन नहीं, स्वर्ण-नरक ता हेत्।’

उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में वाक्यांश ज्यों के त्यों दुहराए गए हैं और उनके अर्थ भी एक समान हैं, किन्तु अल्पविराम का स्थान बदलकर अन्वय करने पर दोनों पंक्तियों का अर्थ बदल जाता है। अत: यहाँ लाटानुप्रास अलंकार है।

2. श्लेष अलंकार
लक्षण या परिभाषा – काव्य में जहाँ एक ही शब्द के एक से अधिक अर्थ प्रकट होकर चमत्कार की अनुभूति कराते हैं, वहाँ श्लेष अलंकार होता है।

उदाहरण (1) बलिहारी नृप कूप की, गुन बिन बूंद न देइ ।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘गुन’ शब्द में श्लेष है। ‘गुन’ शब्द के यहाँ दो अर्थ ग्रहण किए गए हैं। नृप (राजा) के पक्ष में ‘गुन’ को अर्थ है-गुण या विशिष्टता तथा कूप (कुएँ) के पक्ष में ‘गुन’ का अर्थ है-रस्सी । अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।

उदाहरण (2) विमलाम्बरा रजनी वधू, अभिसारिका सी जा रही।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘विमलाम्बरा’ शब्द के दो भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। रजनी अर्थात् रात्रि के पक्ष में ‘विमलाम्बरा’ शब्द का अर्थ है-विमल (स्वच्छ) अम्बर (आकाश) वाली तथा अभिसारिका के पक्ष में ‘विमलाम्बरा’ का अर्थ है-स्वच्छ वस्त्रों वाली । अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।

उदाहरण (3) ‘पानी गये न ऊबरै, मोती, मानुस, चून।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में ‘पानी’ शब्द के विभिन्न सन्दर्भो में भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। मोती के सन्दर्भ में ‘पानी’ का अर्थ ‘चमक’ है, मनुष्य के सन्दर्भ में ‘पानी’ अर्थ ‘प्रतिष्ठा’ है व चून के सन्दर्भ में ‘पानी’ का अर्थ ‘जल’ है, अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।

उदाहरण (4) चरन धरत चिंता करत, चितवत चारिहुँ ओर।
सुबरन को ढूंढत फिरत, कवि, व्यभिचारी, चोर ।।’
प्रस्तुत दोहे की दूसरी पंक्ति में ‘सुबरन’ का प्रयोग किया गया है, जिसे कवि, व्यभिचारी एवं चोर तीनों ही खोज रहे हैं। यहाँ सुबरन के तीन अर्थ हैं-कवि अच्छे शब्द, व्यभिचारी अच्छा रूप-रंग तथा चोर स्वर्ण ढूंढ़ रहा है, अर्थात् यहाँ श्लेष अलंकार है।

उदाहरण (5) ‘मंगन को देखि पटे देत बार-बार है।
इस काव्य पंक्ति में पट के दो अर्थ हैं, पहला अर्थ है-व्यक्ति याचक को देखकर बार-बार वस्त्र देता है तथा दूसरा अर्थ है-कि याचक को देखते ही दरवाजा बंद कर लेता है। अतः यहाँ श्लेष अलंकार का सौन्दर्य परिलक्षित होता है।

श्लेष अलंकार के भेद – श्लेष अलंकार के दो भेद माने गए हैं – (i) अभंग पद श्लेष तथा (ii) सभंग पद श्लेष। जब शब्द के विभिन्न अर्थ शब्द के टुकड़े किए बिना ही स्पष्ट हो जाते हैं, तो अभंग पद श्लेष अलंकार माना जाता है, जैसे-‘पानी गये न ऊबरै’ पंक्ति में भी ‘पानी’ शब्द के टुकड़े किये बिना ही उसके तीनों अर्थ स्पष्ट हो जाते हैं। किन्तु, जहाँ विभिन्न अर्थों की प्राप्ति हेतु शब्द के टुकड़े करने पड़े, वहाँ सभंग पद श्लेष अलंकार माना जाता है, जैसे

“चिरजीवौ जोरी जुरै, क्यों न सनेह गंभीर।
को घटि ये वृषभानुजा, वे हलधर के वीर ।।’

उपर्युक्त दोहे में ‘वृषभानुजा’ शब्द के दोनों अर्थों की प्राप्ति इस शब्द के टुकड़े करने पर ही होती है – ‘वृषभानु + जा’ (वृषभानु की पुत्री-राधा) तथा ‘वृषभ + अनुजा (बैल की बहन-गाय)। अतः यहाँ सभंग पद श्लेष है।

3. यमक अलंकार
लक्षण या परिभाषा – जहाँ एक या एक से अधिक शब्दों की आवृत्ति हो, किन्तु उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हों, वहाँ यमक अलंकार होता है।

उदाहरण (1) ‘काली घटा का घमण्ड घटा, नभ-मण्डल तारक-वृन्द लिखे।’
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में शरद ऋतु के आगमन पर उसके सौन्दर्य का चित्रण किया गया है। वर्षा की समाप्ति पर शरद ऋतु के आने पर काली घटा का घमंड घट गया है। ‘घटा’ शब्द की आवृत्ति दो बार हुई है, किन्तु प्रथम ‘घटा’ शब्द का अर्थ ‘बादल की घटा’ है जबकि द्वितीय ‘घटा’ शब्द का अर्थ ‘कम होना’ है। अत: यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग है।

उदाहरण (2) “कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।।
वा खाये बौराय जग, या पाये बौराय ।।”
उपर्युक्त दोहे में ‘कनक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है, किन्तु प्रथम ‘कनक’ शब्द का अर्थ ‘ धतूरा’ है तथा द्वितीय ‘कनक’ शब्द ‘स्वर्ण’ (सोने) के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अत: यहाँ यमक अलंकार का प्रयोग है।

उदारहण (3) ‘सुन्यौ कहूँ तरु अरक ते, अरक समान उदोतु।’
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में ‘अरक’ शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। यहाँ पहले ‘अरक’ शब्द का अर्थ ‘आक’ (पौधा) तथा दूसरे ‘अरक’ शब्द का अर्थ ‘सूर्य’ है, अत: इस पंक्ति में यमक अलंकार का सौन्दर्य है।

उदाहरण (4) कहै कवि बेनी, बेनी ब्याल की चुराई लीनी,
रति-रति सोभा सब रति के सरीर की।
पहली पंक्ति में ‘बेनी’ शब्द की दो बार आवृत्ति हुई है। पहली बार प्रयुक्त ‘बेनी’ शब्द कवि का नाम है तथा दूसरी बार प्रयुक्त ‘बेनी’ का अर्थ ‘चोटी’ है। इसी प्रकार द्वितीय पंक्ति में ‘रति’ शब्द तीन बार प्रयुक्त हुआ है। पहली बार ‘रति-रति’ का अर्थ रत्ती के समान जरा-जरा सी है और दूसरे स्थान पर प्रयुक्त रति का अर्थ-कामदेव की परम सुंदरी पत्नी रति है। इस प्रकार ‘बेनी’ और ‘रति’ शब्दों की आवृत्ति से काव्य सौन्दर्य उत्पन्न हो गया है तथा यमक अलंकार है।

उदाहरण (5) भजन कह्यौ ताते भज्यौ, भज्यौ न एको बार।
दूरि भजन जाते कह्यौ, सो ते भज्यो गॅवार।।
उपर्युक्त दोहे में ‘भजन’ और ‘ भज्यौ’ शब्दों की आवृत्ति हुई है।’ भजन’ शब्द के दो अर्थ हैं, पहले भजन का अर्थ भजन-पूजन और दूसरे भजन का अर्थ भाग जाना। इसी प्रकार पहले ‘भज्यौ’ का अर्थ भजन किया तथा दूसरे –‘भज्यौ’ का अर्थ भाग गया, इस प्रकार भजन एवं भज्यौ शब्दों की आवृत्ति ने दोहे में चमत्कार उत्पन्न कर दिया है। कवि अपने मन को संबोधित करते हुए कहता है-हे मेरे मन ! जिस परमात्मा का मैंने तुझे भजन करने को कहा, तू उससे भाग खड़ा हुआ और जिन विषय-वासनाओं से भाग जाने के लिए कहा, तू उन्हीं की आराधना करने लगा। इस प्रकार इन भिन्नार्थक शब्दों की आवृत्ति से दोहे में सौन्दर्य (यमक अलंकार है) उत्पन्न हो गया है।

उदाहरण (6) तो पर वारौं उरबसी सुनि राधिके सुजान।
तू मोहन के उरबसी ह्वै उरबसी समान ।।
उपर्युक्त पंक्तियों में प्रथम ‘उरबसी’ उर्वशी अप्सरा, द्वितीय ‘उर + बसी’ क्रिया (हृदय में बसने वाली) तथा तृतीय आभूषण विशेष के अर्थ में प्रयुक्त है। अत: यहाँ ‘उरबसी’ शब्द के तीन भिन्न अर्थों में प्रयोग होने से यमक अलंकार है।

अर्थालंकार

4. उपमा अलंकार
लक्षण या परिभाषा – ‘उपमा’ का सामान्य अर्थ है-किसी एक वस्तु की किसी दूसरी वस्तु से तुलना करना। अतः जहाँ किसी प्रस्तुत (वर्णित) वस्तु की तुलना गुण, धर्म अथवा व्यापार (क्रिया) के आधार पर अप्रस्तुत वस्तु से की जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है।

दूसरे शब्दों में, अत्यंत सादृश्य के कारण सर्वथा भिन्न होते हुए भी जहाँ रूप, रंग, गुण आदि किसी धर्म के कारण किसी वस्तु की समानता किसी दूसरी श्रेष्ठ या प्रसिद्ध वस्तु से दिखाई जाए, वहाँ उपमा अलंकार होता है।

उपमा के अंग – उपमा अलंकार के निम्नलिखित चार अंग होते हैं –

(1) उपमेय – जिस वस्तु का वर्णन किया जाता है, उसे अर्थात् वर्णित या प्रस्तुत वस्तु को उपमेय कहते हैं, जैसे-कमल सदृश कोमल हाथों ने’ काव्य पंक्ति में ‘हाथों’ का वर्णन किया जा रहा है। अत: यहाँ ‘हाथ’ उपमेय है। उपमेयं को प्रस्तुत’ या ‘वर्णित’ भी कहते हैं।
(2) उपमान – जिस अप्रस्तुत वस्तु से प्रस्तुत वस्तु अर्थात् उपमेय की समानता दिखाई जाती है, उसे उपमान कहते हैं, जैसे-‘कमल-सदृश कोमल हाथों ने’ काव्य पंक्ति में हाथों की समानता ‘कमल’ से दिखाई गयी है, अत: यहाँ ‘कमल’ उपमान है।
(3) साधारण धर्म – उपमेय तथा उपमान के जिस गुण की समानता दिखाई जाती है, उसे साधारण धर्म कहते हैं। इसे सामान्य या समान धर्म भी कहा जाता है, जैसे-कमल-सदृश कोमल हाथों ने’ काव्य पंक्ति में ‘कोमलता’ समान धर्म है।
(4) वाचक शब्द – समान गुण को व्यक्ति करने वाला शब्द ‘वाचक शब्द’ कहलाता है। वाचक शब्द द्वारा उपमेय तथा उपमान की समानता सूचित की जाती है, जैसे-कमल सदृश कोमल हथों ने’ काव्य पंक्ति में ‘सदृश’ वाचक शब्द है। जिन शब्दों की सहायता से उपमा अलंकार की पहचान होती है, वे हैं-सा, सी, तुल्य, सम, जैसा, ज्यों, सरिस, के समान आदि।

उदाहरण (1) विदग्ध होके कण धूलि-राशि का,
तपे हुए लौह-कणों समान था।’
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में धूल के कणों की समानता तपे हुए लौहकणों से दिखाई गयी है। अतः यहाँ उपमा अलंकार है। पंक्ति में * धूल का कण’ उपमेय, ‘लौहकण’ उपमान, साधारण या समान धर्म ‘विदग्धता’ तथा वाचक शब्द ‘समान’ है।

उदाहरण (2) ‘हरि सा हीरा छाँड़ि है, करै और की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रैदास ।।’
उपर्युक्त दोहे में प्रस्तुत ‘हरि’ की समानता अप्रस्तुत ‘हीरा’ से की गयी है। अत: यहाँ उपमा अलंकार है। उपमा अलंकार के चारों अंग यहाँ विद्यमान हैं। ‘हरि’ उपमान है। (क्योंकि हरि की उपमा हीरा से दी गयी है), ‘दुर्लभता’ समान या साधारण धर्म है तथा ‘सा’ वाचक शब्द है।

उपमा के भेद – उपमा अलंकार के निम्नलिखित तीन भेद हैं –

(1) पूर्णोपमा – जिस उपमा में उसके चारों अंग (उपमेय, उपमान, साधारण धर्म तथा वाचक शब्द) विद्यमान हों, वह पूर्णोपमा कहलाती है, जैसे-‘दोनों बाँहें कलभकर-सी, शक्ति की पेटिका हैं।’ प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उपमा के चारों अंग उपमेय (दोनों बाँहें), उपमान (कलभ-कर), साधारण, धर्म, (शक्ति की पेटिका) तथा वाचक शब्द (सी) उपस्थित हैं। अत: यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण देखिए –

‘प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे’-प्रस्तुत पंक्ति में प्रात:कालीन नभ उपमेय है, शंख उपमान है, नीला साधारण धर्म है और जैसे वाचक शब्द है। यहाँ उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं, अत: यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

(2) लुप्तोपमा – जिस उपमा में उसके चारों अंगों में से एक या एक से अधिक अंक अनुपस्थित हों, वह लुप्तोपमा कहलाती है, जैसे-‘कमल-सदृश कोमल हाथों ने, झुका दिया धनु वज्र कठोर।’

प्रस्तुत प्रथम आधी पंक्ति में पूर्णोपमा है, क्योंकि यहाँ उपमा के चारों अंगों का उल्लेख है। किन्तु दूसरी आधी पंक्ति में उपमेय (धनु), उपमान (वज्र) तथा साधारण धर्म (कठोर) का ही उल्लेख है। यहाँ वाचक शब्द अनुपस्थित है, अत: लुप्तोपमा अलंकार है।

इसी प्रकार एक अन्य उदाहरण देखिए –
‘मखमल के झूले पड़े हाथी-सा टीला’।

उपर्युक्त काव्यपंक्ति में टीला उपमेय है, मखमल के झूले पड़े हाथी उपमान है, सा वाचक शब्द है किन्तु इसमें साधारण धर्म नहीं है। वह छिपा हुआ है। कवि का आशय है-‘मखमल के झूले पड़े ‘विशाल’ हाथी-सा टोला।’ यहाँ ‘विशाल’ जैसा कोई साधारण धर्म लुप्त है, अत: यहाँ लुप्तोपमा अलंकार है।

(3) मालोपमा – जिस उपमा में एक ही उपमेय के अनेक उपमान उपस्थित हों, वह मालोपमा कहलाती है, जैसे-‘माँ शारदा तुषार, कुन्द, हीरे के सदृश धवल हैं।

प्रस्तुत पंक्ति में एक ही उपमेय शारदा (सरस्वती) की समानता कुन्द, तुषार एवं हीरे (तीन-तीन उपमानों) द्वारा दिखायी गयी है, अत: यहाँ मालोपमा अलंकार है।

5. रूपक अलंकार
लक्षण यो परिभाषा – जहाँ उपमेय और उपमान में एकरूपता दिखाकर दोनों में अभेद स्थापित कर दिया जाता है वहाँ रूपक अलंकार होता है। यद्यपि रूपक में उपमेय एवं उपमान दोनों ही उपस्थित होते हैं, किन्तु अत्यधिक सादृश्य के कारण दोनों एक दिखाई पड़ते हैं। तात्पर्य यह है कि रूपक में प्रस्तुत वस्तु (उपमेय) पर अप्रस्तुत वस्तु (उपमान) को आरोपित कर दिया जाता है। इस प्रकार उपमेय और उपमान में अभेद स्थापित हो जाता है।

उदाहरण (1) ‘अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट उषा-नागरी।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उपमेय ‘अम्बर’ में उपमान’ पनघट’ का, उपमेय ‘तारा’ में उपमान’घट’ का तथा उपमेय’उषा’ में उपमान ‘नागरी’ का भेद-रहित आरोप है। अत: यहाँ रूपक अलंकार है।

उदाहरण (2) ‘तेरे नयन-कमल बिनु जल के।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में नयन (उपमेय) और कमल (उपमान) में अभेद स्थापित किया गया है, अत: यहाँ रूपक अलंकार है।

उदाहरण (3) ‘किसलय-कर स्वागत हेतु हिला करते हैं।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उपमेय (किसलय = पत्ते) और उपमान (कर = हाथ) में अभेद स्थापित किया गया है, अत: रूपक अलंकार है।

उदाहरण (4) ‘सिर झुका तूने नियति की मान ली यह बात।
स्वयं ही मुझ गया तेरा हृदय-जलजात।।
उपर्युक्त पंक्तियों में हृदय जल-जात में ‘हृदय’ उपमेय पर ‘जलजात’ (कमल) उपमान का अभेद आरोप किया गया है।

उदाहरण (5) ‘अपलक नभ नील नयन विशाल’
इस पंक्ति में खुले आकाश पर अपलक विशाल नयन का आरोप है, अत: यहाँ रूपक अलंकारे है।

उदाहरण (6) ‘शशि-मुख पर पूँघट डाले अंचल में दीप छिपाये।’
यहाँ ‘मुख’ उपमेय में ‘शशि’ उपमान का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार का चमत्कार है।

उदाहरण (7) ‘मन-सागर, मनसा लहरि, बूड़े-बहे अनेक।’
इस पंक्ति में ‘मन’ पर सागर का और ‘मनसा’ (इच्छा) पर लहर का आरोप होने से रूपक अलंकार है।

उदाहरण (8) ‘विषय-वारि मन-मीन भिन्न नहिं होत कबहुँ पल एक।”
उपर्युक्त काव्य पंक्ति में विषय पर ‘वारि’ का और मन पर ‘मीन’ (मछली) को अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार का सौन्दर्य है।

उदाहरण (9) उदित उदयगिरि-मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन-शृंग।।
उपर्युक्त दोहे में उदयगिरि पर ‘मंच’ का, रघुवर पर ‘बाल-पतंग’ (सूर्य) का, संतों पर ‘सरोज’ का एवं लोचनों पर ‘भृगों’ (भौंरों) का अभेद आरोप होने से रूपक अलंकार है।

6. उत्प्रेक्षा अलंकार
लक्षण या परिभाषा – जहाँ उपमेय में किसी उपमान की सम्भावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यद्यपि दोनों (उपमेय एवं उपमान) में भिन्नता होती है, तथापि समान धर्म होने के कारण ऐसी सम्भावना व्यक्त की जाती है।

सम्भावना व्यक्त करने के लिए ‘मानो’, ‘मनु’, ‘मनहुँ’, जनहुँ’, ‘जानो’, ‘ज्यों, ‘मनो’, ‘यथा’, ‘जनु’ आदि वाचक शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण (1) ‘लट-लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मदहिं पिए।’
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में उपमेय ‘लट-लटकनि’ में उपमान ‘मत्त मधुपगन’ की सम्भावना व्यक्त की गई है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

उदाहरण (2) ‘जनक बाम दिसि सोह सुनयना। हिमगिरि संग बनी जनु मयना।’
प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में उपमेय (जनक एवं सुनयना) में उपमाने (हिमगिरि एवं मयना) की सम्भावना व्यक्त की गई है, अत: उत्प्रेक्षा अलंकार है।

उदाहरण (3) उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उसका लगा।
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।’
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में उपमेय’क्रोध’ में उपमान ‘हवा के वेग’ की तथा उपमेय’तनु’ में उपमान ‘सागर’ की सम्भावना व्यक्त की गई है, अत: उत्प्रेक्षा अलंकार है।

उदाहरण (4) ‘मानो माई घनघन अंतर दामिनि।
घन दामिनि दामिनि घन अंतर,
सोभित हरि-बृज भामिनि।।’
उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में रासलीला का सुन्दर दृश्य दर्शाया गया है। रास के समय हर गोपी को लगता था कि श्रीकृष्ण उसके साथ नृत्य कर रहे हैं। गोरी गोपियाँ और श्याम वर्ण कृष्ण मंडलाकार नाचते हुए ऐसे लगते हैं, मानो बादल और बिजली, बिजली और बादल साथ-साथ शोभायमान हो रहे हों। अत: यहाँ गोपिकाओं में बिजली की और कृष्ण में बादल की संभावना व्यक्त की गई है। अत: उत्प्रेक्षा अलंकार है।

उदाहरण (5) सोहत ओढ़े पीत पट, स्याम सलोने गात।
मनहुँ नीलमनि सैल पर, आतप पर्यौ प्रभात।।
उपर्युक्त काव्य-पंक्तियों में श्रीकृष्ण के सुन्दर श्याम शरीर में नीलमणि पर्वत की और उनके शरीर पर शोभायमान पीतांबर में प्रभात की धूप की मनोरम कल्पना की गई है।

उदाहरण (6) ‘कहती हुई यों उत्तरा के, नेत्र जल से भर गये।
हिम के कणों से पूर्ण मानो, हो गये पंकज नये ।।’
इन पंक्तियों में उत्तरा के अश्रुपूर्ण नेत्रों (उपमेय) में ओस जल-कण युक्त पंकज (उपमान) की संभावना की गई है। ‘मानो’ वाचक शब्द का प्रयोग किया गया है।

उदाहरण (7) ‘चमचमात चंचल नयन, बिच घूघट पट छीन।
मनहुँ सुरसरिता विमल, जल उछरते जुग मीन।।
यहाँ झीने पूँघट में सुरसरिता के निर्मल जल की और चंचल नयनों में दो उछलती हुई मछलियों की अपूर्व संभावना की गई है। अतः उत्प्रेक्षा का यह अति सुन्दर उदाहरण है।

उत्प्रेक्षा के भेद – उत्प्रेक्षा अलंकार के निम्नलिखित तीन भेद हैं

(1) वस्तूत्प्रेक्षा – जहाँ उपमेय वस्तु में उपमान वस्तु की सम्भावना की जाती है, अर्थात् एक वस्तु को दूसरी वस्तु मान लिया जाता है, वहाँ वस्तूत्प्रेक्षा होती है, जैसे –

‘प्राणप्रिया मुख जगमगै, नीले अंचल चीर।
मनहुँ कलानिधि झलमले, कालिन्दी के नीर।।

उपर्युक्त काव्य पंक्तियों में मुख’ में ‘कलानिधि’ की तथा ‘नीले अंचल चीर’ में ‘कालिन्दी के नीर’ की सम्भावना की गयी है, अतः यहाँ वस्तूत्प्रेक्षा है।

(2) हेतूत्प्रेक्षा – जहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना की जाए, अर्थात् अकारण को कारण मान लिया जाए, वहाँ हेतूत्प्रेक्षा होती है, जैसे-‘मनहुँ कठिन आँगन चली ताते राते पाँय।
प्रस्तुत काव्य पंक्ति में कवि ने नायिका के पैरों के लाल होने का कारण कठिन आँगन पर चलना माना है, जो कि वास्तविक नहीं है। सुकुमार स्त्रियों के चरण (पैर) तो स्वाभाविक रूप से ही लाल होते हैं। अत: यहाँ अहेतु में हेतु की सम्भावना के कारण हेतूत्प्रेक्षा है।

(3) फलोत्प्रेक्षा – जहाँ अफल में फल की सम्भावना की जाती है, अर्थात् जो फल या उद्देश्य नहीं होता, उसे ही फल या उद्देश्य मान लिया जाता है, वहाँ फलोत्प्रेक्षा होती है, जैसे –
नित्य ही नहाती क्षीरसिन्धु में कलाधर है, सुन्दर तवानन की समता की इच्छा से।’
यहाँ कलाधर (चन्द्रमा) द्वारा क्षीरसिन्धु में स्नान करने का उद्देश्य, प्रयोजन या फल नायिका के मुख की समानता प्राप्त करना माना गया है, जबकि चन्द्रमा के क्षीरसागर में नहाने का प्रयोजन यह है कि चन्द्रमा की उत्पत्ति ही क्षीरसागर से हुई है। अत: यहाँ अफल में फल की सम्भावना के कारण फलोत्प्रेक्षा अलंकार है।

7. उदाहरण अलंकार
जहाँ एक बात कहकर उसके उदाहरण के रूप में दूसरी बात कही जाए और दोनों को उपमावाचक शब्द-‘जैसे’, ‘ज्यों’, ‘मिस’ आदि से जोड़ दिया जाए, वहाँ उदाहरण अलंकार होता है। जैसे –

नीकी पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात।
जैसे बरनत युद्ध में, रस श्रृंगार न सुहात।।

प्रस्तुत पद में ‘ अच्छी बात को भी बिना अवसर के फीका लगना’ की पुष्टियुद्ध में श्रृंगार रस’ की बात कहकर की गई है तथा दोनों को ‘जैसे’ उपमा वाचक शब्द से जोड़ दिया गया है। अत: उदाहरण अलंकार है।

उदाहरण (1) सबै सहायक सबल के, कोई न निबल सहाय।
पवन जगावत आग ज्यों, दीपहिं देत बुझाय।।

उक्त पंक्तियों में सबल और निर्बल के प्रति जगत के व्यवहार को पवन के व्यवहार से बताया गया है, जो अग्नि को तो और प्रज्वलित करता है और दीपक को बुझाता है। दोनों को ‘ज्यों’ उपमा वाचक शब्द से जोड़ा गया है।

उदाहरण (2) जो पावै अति उच्च पद, ताको पतन निदान।
ज्यों तपि-तपि मध्याहन लौं, असत होत है भान।।
प्रस्तुत काव्य – पंक्तियों में उच्च पद पर पहुँचकर नीचे आने के सामान्य कथन की पुष्टि सूर्य के मध्याह्न में तपने तथा सायंकाल अस्त होने से की गई है। दोनों को ‘ज्यों’ उपमावाचक शब्द से जोड़ दिया गया है।

8. विरोधाभास अलंकार
जहाँ पर विरोध न होने पर भी विरोध की प्रतीति होती है, अर्थात् कवि शब्दार्थ की योजना इस प्रकार करता है कि सुनते ही पदार्थों में विरोध प्रतीत होने लगता है, किन्तु अर्थ स्पष्ट होते ही विरोध शांत हो जाता है, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है। जैसे

तंत्री-नाद, कवित्त-रस, सरस राग रति-रंग।
अनबूड़े बूड़े, तिरे, जे डूबे सब अंग।।

प्रस्तुत दोहे की द्वितीय पंक्ति में बताया गया है कि वाद्य-संगीत, कवित्त का रस, मधुर राग और प्रेम के रंग में जो नहीं डूबे वे डूब गए तथा जो डूब गए वे तिर गए। यहाँ विरोध प्रतीत हो रहा है, परंतु वास्तविक अर्थ है-जिन्होंने गहराई में बैठकर आनंद लिया, उनका जीवन सफल हो गया तथा जो गहराई में गोता नहीं लगा सके, उनका जीवन निष्फल गया। अत: ‘विरोधाभास’ अलंकार है।

उदाहरण (1) “मीठी लगै अँखियान लुनाई।”
आशय यह है कि आँखों का लावण्य मीठा प्रतीत होता है। लुनाई का शब्दार्थ है- लवणयुक्त अर्थात् खारा। खरापन यहाँ मीठा लग रहा है, यह विरोध-कथन है, परन्तु लुनाई का तात्पर्य यहाँ पर सुन्दरता के रूप में प्रकट होने से विरोध समाप्त हो गया है।

उदाहरण (2) विसमय यह गोदावरी, अमृतन के फल देते।
केसव जीवन हार को, असेस दुख हर लेत।।

प्रस्तुत पंक्तियों में गोदावरी को विसमय बताया गया है, जो विरोध प्रकट करता है। परन्तु विस का अर्थ ‘जल’ प्रकट होने पर विरोध समाप्त हो जाता है। अत: विरोधाभास अलंकार है।

RBSE Class 12 Hindi अलंकार अभ्यास-प्रश्न

RBSE Class 12 Hindi अलंकार वस्तुनिष्ठ प्रश्न

Alankar In Hindi Class 12 प्रश्न 1.
अलंकार की विशेषता है

(क) अलंकार काव्य की आत्मा है।
(ख) अलंकार काव्य की शोभा बढ़ाते हैं।
(ग) अलंकार काव्य का अंतरंग तत्त्व है।
(घ) अलंकार के बिना काव्य असंभव है।

Alankar Class 12 प्रश्न 2.
अनुप्रास अलंकार का उदाहरण है

(क) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानस, चून
(ख) कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय
(ग) मीठी लगै अँखियान लुनाई
(घ) भगवान भक्तों की भंयकर भूरि भीति भगाइये

Alankar 12th Class प्रश्न 3.
‘विसमय यह गोदावरी, अमृतन के फल देत।’ पंक्ति में अलंकार है-

(क) विरोधाभास
(ख) उत्प्रेक्षा
(ग) उपमा
(घ) रूपक

Alankar Class 12th प्रश्न 4.
यमक अलंकार का उदाहरण है –

(क) पीपर पात सरिस मन डोला
(ख) तारा-घट उषा नागरी
(ग) तीनि बेर खाती थीं वे तीनि बेर खाती हैं।
(घ) मनौ नीलमनि सेल पर, आतप पर्यो प्रभात

Alankar Hindi Class 12 प्रश्न 5.
निम्न में अर्थालंकार है –

(क) अनुप्रास
(ख) उपमा
(ग) श्लेष
(घ) यमक

Alankar Hindi Grammar Class 12 प्रश्न 6.
उपमा वाचक शब्द है –

(क) मिस
(ख) ज्यों
(ग) जैसे
(घ) उपर्युक्त सभी

Alankar Class 12 RBSE प्रश्न 7.
‘कालिंदी कुल कदम्ब की डारन।’ पंक्ति में अलंकार है –

(क) अनुप्रास
(ख) यमक
(ग) श्लेष
(घ) उपमा

हिंदी साहित्य के अलंकार  प्रश्न 8.
निम्नलिखित में कौन-सी पंक्ति में रूपक अलंकार है –

(क) पच्छी परछीने ऐसे परे परछीने बीर
(ख) मखमल से झूले पड़े हाथी-सा टोला
(ग) रामनाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार
(घ) सुरभित सुन्दर, सुखद सुमन तुझ पर खिलते हैं

उत्तर:

  1. (ख)
  2. (घ)
  3. (क)
  4. (ग)
  5. (ख)
  6. (घ)
  7. (क)
  8. (ग)।

RBSE Class 12 Hindi अलंकार अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

Alankar In Hindi Class 12 RBSE प्रश्न 1.
अलंकार की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
काव्य की शोभा बढ़ाने वाले शब्दों को अलंकार कहते हैं।

Class 12 Hindi Alankar प्रश्न 2.
अलंकार कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
अलंकार मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं –

  1. शब्दालंकार तथा
  2. अर्थालंकार।

RBSE Solutions For Class 12 Hindi प्रश्न 3.
अनुप्रास अलंकार का लक्षण बताइए।
उत्तर:
जहाँ काव्य में एक वर्ण या अनेक वर्षों की एक बार या अनेक बार क्रम-सहित आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है।

Hindi Compulsory 12th Class RBSE प्रश्न 4.
यमक अलंकार का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
काली घटा का घमण्ड घटा, नभ मण्डल तारक वृन्द लिखे।

Hindi RBSE Class 12 Solutions प्रश्न 5.
‘शोभा-सिन्धु न अन्त रही री’ इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
उत्तर:
इस पंक्ति में ‘शोभा’ उपमेय पर ‘सिन्धु’ उपमान का आरोप किया गया है, अत: ‘रूपक अलंकार है।

Class 12 Hindi RBSE Solutions प्रश्न 6.
यमक अलंकार का लक्षण तथा उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
जहाँ एक या अनेक शब्दों की एक या अनेक बार आवृत्ति हो और उनके अर्थ भिन्न-भिन्न हों। वहाँ यमक अलंकार होता है।
उदाहरण – “सारंग ने सारंग गह्यौ सारंग बोल्यौ आई। जो सारंग सारंग कहे, तो सारंग छुट्यो जाई ।।”
यहाँ ‘सारंग’ शब्द की अनेक बार आवृत्ति हुई है और उसके अर्थ क्रमशः मोर, सर्प, बादल, बोली या ध्वनि हैं। अत: यहाँ यमक अलंकार है।

RBSE Class 12 Hindi Book Solution प्रश्न 7.
श्लेष अलंकार की परिभाषा और उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जहाँ एक ही शब्द अनेक अर्थों को प्रकट करता हुआ केवल एक बार प्रयुक्त होता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है, यथा—‘दक्षिण में रहकर भी मैं उत्तर का अभिलाषी हूँ।’

यहाँ ‘उत्तर’ शब्द का एक बार प्रयोग हुआ है तथापि इसके दो अर्थ (पत्रोत्तर तथा उत्तर दिशा) है, अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।

RBSE Class 12 Hindi Syllabus प्रश्न 8.
कोकिल, केकी, कीर कुंजते हैं कानन में’-इस पंक्ति में कौन-सा अलंकार है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में अनुप्रास अलंकार है। जहाँ कविता में वर्गों की आवृत्ति से चमत्कार उत्पन्न किया जाता है, वहाँ अनुप्रस अलंकार होता है। यहाँ ‘क’ वर्ण की अनेक बार आवृत्ति हुई है। अत: अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्ति में उपस्थित अलंकार का नाम तथा लक्षण लिखिए
‘जीवन को जीवन आधार जग जीवन है’।
उत्तर:
इस पंक्ति में यमक अलंकार है। जहाँ एक शब्द की भिन्न-भिन्न अर्थों के साथ आवृत्ति हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। उपर्युक्त पंक्ति में ‘जीवन’ शब्द तीन बार आया है। प्रथम ‘जीवन’ का अर्थ ‘प्राणी’, द्वितीय का जीवित रहना’ तथा तृतीय का अर्थ ‘जल’ है। अत: यहाँ यमक अलंकार है।

प्रश्न 10.
हलधर के प्रिय हैं सदा केशव और किसान।’ इस पंक्ति में निहित अलंकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पंक्ति में निहित अलंकार श्लेष है। जहाँ कविता में एक शब्द अनेक अर्थ व्यक्त करता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। इस पंक्ति में ‘हलधर’ शब्द के ‘बलराम’ तथा ‘बैल’ अर्थ हैं। अत: श्लेष अलंकार है।

प्रश्न 11.
प्रस्तुत पंक्ति में अवस्थित अलंकार को स्पष्ट कीजिए-‘गंगाजल-सा पावन मन है।
उत्तर:
इस पंक्ति में उपमा अलंकार है। जहाँ कवि दो वस्तुओं में गुण-धर्म के आधार पर समानता प्रदर्शित करता है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। यहाँ ‘मन’ की समानता ‘गंगाजल’ से की गई है। ‘पावनता’ समान धर्म है तथा ‘सा’ वाचक शब्द है।

प्रश्न 12.
‘साल वृक्ष दो अति विशाल थे, मानो प्रहरी हों वन के।’ इन पंक्तियों में स्थित अलंकार का नाम और लक्षण बताइए।
उत्तर:
उक्त पंक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार है। जहाँ कवि उपमेय में उपमान की सम्भावना व्यक्त करता है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यहाँ ‘साल के वृक्षों में कवि ने ‘प्रहरी’ की सम्भावना व्यक्त की है। अत: यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

RBSE Class 12 Hindi अलंकार लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का अन्तर समझाइए।
उत्तर:
उपमा और उत्प्रेक्षा – उपमा में उपमेय को उपमान के समान बताया जाता है, परन्तु उत्प्रेक्षा में उपमाने की सम्भावना व्यक्त की जाती है। यथा-
उपमा – ‘लघु तरणि हंसिनी-सी सुन्दर’।
‘तरणि’ को ‘हंसिनी’ के समान सुन्दर बताया गया है।
उत्प्रेक्षा – लघु तरणि मानो हंसिनी तिरती लहर पर,
यहाँ ‘तरणि’ में हंसिनी’ की सम्भावना प्रकट की गई है।

प्रश्न 2.
रूपक अलंकार का लक्षण तथा उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
जहाँ उपमेय में उपमान का भेद-रहित आरोप दिखाया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। इस अलंकार में उपमेय को उपमान का रूप प्रदान करते हुए वर्णन होता है, इसी कारण यह रूपक अलंकार कहलाता है।

उदाहरण 1. “अम्बर-पनघट में डुबो रही, तारा-घट उषा-नागरी।”
यहाँ ‘अम्बर’ उपमेय में ‘पनघट’ उपमान का भेद-रहित आरोप है। इसी प्रकार ‘तारा’ में ‘घट’ का तथा ‘उषा’ में ‘नागरी’ का भेद-रहित आरोप है, अत: रूपक अलंकार है।
उदाहरण 2. “नैन खंजन हुइ केलि करेहीं। कुच नारंग मधुकर रस लेहीं।”
यहाँ नेत्रों पर खंजन’ का और कुच पर ‘नारंग’ का आरोप है। जो सर्वथा भेद रहित है। अत: रूपक अलंकार है।

प्रश्न 3.
उत्प्रेक्षा अलंकार का लक्षण तथा उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
जहाँ कवि उपमेय और उपमान में भिन्नता रहते हुए भी उपमेय में उपमान की सम्भावना प्रस्तुत करता है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

उदाहरण 1. लट लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मधुहिं पिए।
यहाँ लटों के लटकने में ‘मधुपगन’ (भौंरों) की सम्भावना व्यक्त की गई है, अत: यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है। उत्प्रेक्षा अलंकार में मनु, जनु, मानो, जानो, मनहु, जनहु, ज्यों आदि ‘वाचक’ शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण 2. सरवर तीर पमिनी आई। खोपा छोरि केस मोकेराई।।
ससि मुख अंग मलैगिरि रानी। नागन्ह झाँपि लीन्ह अरधानी।।
यहाँ पद्मावती के केशों में नागों की सम्भावना व्यक्त की गई है, अत: यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

प्रश्न 4.
अनुप्रास तथा यमक अलंकार का अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अनुप्रास अलंकार वर्गों की आवृत्ति पर आधारित होता है, किन्तु यमक अलंकार में शब्द की आवृत्ति होती है तथा हर बार अर्थ भिन्न होता है।
यथा – अनुप्रास – लट लटकनि मनु मत्त मधुपगन मादक मदहिं पिए।
यहाँ ल, ट, तथा में वर्षों की आवृत्ति हुई है।

यमक – कर से कर कर्म उठो जग में,
पद से चल ऊँचा पद पाओ।
इस उदाहरण में ‘कर’ तथा ‘पद’ शब्दों की आवृत्ति हुई है। प्रथम ‘कर’ का अर्थ हाथ तथा द्वितीय कर का अर्थ ‘करना है। इसी प्रकार ‘पद’ के अर्थ क्रमश: ‘पैर तथा स्थान हैं।

प्रश्न 5.
उपमा तथा रूपक अलंकार का अंतर समझाइए।
उत्तर:
उपमा अलंकार में कवि दो वस्तुओं की गुण, धर्म, व्यापार आदि के आधार पर समानता प्रदर्शित करता है। इसमें प्रस्तुत (उपमेय) को अप्रस्तुत (उपमान) के समान बताया जाता है। यह समानता ‘समान धर्म’ तथा ‘वाचक शब्द’ द्वारा व्यक्त की जाती है।
रूपक में उपमेय में उपमान का भेद-रहित आरोप किया जाता है। समान धर्म और वाचक शब्द का उल्लेख नहीं होता।

यथा – उपमा-‘कमल समान मृदुल पग तेरे’।

यहाँ ‘पग’ उपमेय की ‘कमल’ उपमान से समानता दिखाई गई है। समान धर्म ‘मृदुल’ है तथा वाचक शब्द समान है। यहाँ उपमा अलंकार के चारों तत्व विद्यमान हैं अत: उपमा अलंकार है।
रूपक – चरन कमल बंद हरि राई।
इस उदाहरण में ‘चरन’ उपमेय में ‘कमल’ उपमान का भेद-रहित आरोप है। समान धर्म तथा वाचक शब्द का उल्लेख नहीं है। अत: रूपक अलंकार है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में प्रयुक्त अलंकारों का नाम बताते हुए उनके लक्षण लिखिए –
(क) ‘पानी गये न ऊबरै, मोती मानुष चूने।’
(ख) ‘माया-दीपक नर पतंग, भ्रमि-भ्रमि इवै पड़न्त।’
उत्तर:
(क) श्लेष अलंकार है। जहाँ एक ही शब्द अनेक अर्थों को प्रकट करता हुआ, केवल एक बार प्रयुक्त होता है, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। उक्त पंक्ति में ‘पानी’ शब्द के अनेक अर्थ प्रकट हो रहे हैं। अतः श्लेष अलंकार है।
(ख) रूपक अलंकार है । जहाँ उपमेय में उपमान का भेदरहित आरोप दिखाया जाता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है। उक्त पंक्ति में दीपक को माया का रूप दिया गया है। अत: रूपक अलंकार है।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित काव्य पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकारों का नाम लिखते हुए, उनके लक्षण लिखिए –
(क) उदित उदय गिरि मंच पर, रघुवर बाल-पतंग।
विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन शृंग।।
(ख) निकसे जनु जुग बिमल बिधु जलद पटल बिलगाई।
उत्तर:
(क) रूपक अलंकार – जहाँ उपमेय में उपमान का भेद रहित आरोप किया जाता है वहाँ रूपक अलंकार होता है।
(ख) उत्प्रेक्षा अलंकार – जहाँ उपमेय और उपमान में भिन्नता रहते हुए भी जनु, जानहु, मनु, मानहु आदि शब्दों द्वारा उपमेय में उपमान की संभावना व्यक्त की जाती है, वहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।

प्रश्न 8.
यमक तथा श्लेष अलंकारों का अंतर सोदाहरण लिखिए।
उत्तर:
जहाँ कविता में एक शब्द एक से अधिक बार आता है तथा भिन्न अर्थ व्यक्त करता है, वहाँ यमक अलंकार होता है, यथा-नगन जड़ातीं थीं वे नगन जड़ाती हैं।’

यहाँ ‘नगन’ शब्द दो बार आया है। प्रथम नगन का अर्थ नगों (रत्नों) से है तथा दूसरे का नग्न से। अत: यहाँ यमक अलंकार है। श्लेष अलंकार में एक ही शब्द अनेक अर्थ प्रकट करता हुआ कविता की शोभा बढ़ाता है। यथा-‘पानी गए न ऊबरै मोती मानुस चून।’

यहाँ ‘पानी’ शब्द के अर्थ हैं-दमक, प्रतिष्ठा तथा जल। अत: यहाँ श्लेष अलंकार है।

प्रश्न 9.
यमक एवं श्लेष अलंकारों का एक-एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
यमक का उदाहरण-‘विरज, विरज भयौ पावसी फुहार ते।’
(प्रथम विरज का अर्थ ब्रजभूमि तथा द्वितीय विरज का अर्थ धूलरहित है।)

श्लेष का उदाहरण-मुदित देख घनश्याम को, ब्रजजन और मयूर।
(यहाँ ‘घनश्याम’ शब्द के काले बादल तथा श्रीकृष्ण अर्थ में प्रयुक्त होने से श्लेष अलंकार है।)

प्रश्न 10.
निम्नलिखित काव्यांशों में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए –

(क) निकल रही थी कर्म वेदना करुणा विकल कहानी-सी।
(ख) चरण कमल बंद हरिराई।
(ग) ताड़ वृक्ष मानो छूने चला अम्बर तल को।
(घ) नील कमल सी आँखें उसकी जाने क्या-क्या कह गईं।
(ङ) मैया मैं तो चन्द्र खिलौना लैहों।
(च) पाकर प्रथम प्रेमभरी पाती प्यारी प्रियतम की।

उत्तर:

(क) उपमा अलंकार
(ख) रूपक अलंकार
(ग) उत्प्रेक्षा अलंकार
(घ) उपमा अलंकार
(ङ) रूपक अलंकार
(च) अनुप्रास अलंकार।

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