RBSE Solutions for Class 12 History Chapter 6 आधुनिक भारत का स्वाधीनता आन्दोलन

Rajasthan Board RBSE Class 12 History Chapter 6 आधुनिक भारत का स्वाधीनता आन्दोलन

RBSE Class 12 History Chapter 6 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 History Chapter 6 बहुचयनात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
ब्रह्म समाज की स्थापना किसने की?
(क) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(ख) स्वामी विवेकानन्द
(ग) राजा राममोहन राय
(घ) आत्मारंग पांडुरंग।
उत्तर:
(ग) राजा राममोहन राय

प्रश्न 2.
रामकृष्ण मिशन की स्थापना किसने की?
(क) रामकृष्ण परमहंस
(ख) महादेव गोविन्द रानाडे
(ग) स्वामी विवेकानन्द
(घ) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) स्वामी विवेकानन्द

प्रश्न 3.
1893 ई. में विश्वधर्म सम्मेलन में विवेकानन्द ने कहाँ भाग लिया था?
(क) सेन फ्रांसिस्को
(ख) न्यूयार्क
(ग) शिकागो
(घ) ब्रिस्टल।
उत्तर:

प्रश्न 4.
राजा राममोहन राय की मृत्यु कहाँ हुई थी?
(क) लंदन
(ख) ब्रिस्टल
(ग) शिकागो
(घ) कलकत्ता।
उत्तर:
(ख) ब्रिस्टल

प्रश्न 5.
राजा राममोहन राय के प्रयासों से किस गवर्नर जनरल के समय सती – प्रथा को रोकने के लिए कानून बना?
(क) वारेन हेस्टिंग्स
(ख) लॉर्ड विलियम बैंटिक
(ग) लार्ड डलहौजी
(घ) लार्ड रिपन।
उत्तर:
(ख) लॉर्ड विलियम बैंटिक

प्रश्न 6.
‘वेदों की ओर लौट चलो’ का नारा किसने दिया?
(क) राजा राममोहन राय
(ख) स्वामी विवेकानन्द
(ग) स्वामी दयानन्द सरस्वती
(घ) केशवचन्द्र सेन।
उत्तर:
(ग) स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रश्न 7.
‘जयहिन्द’ का नारा किसने दिया?
(क) भगत सिंह
(ख) वीर सावरकर
(ग) सुभाषचन्द्र बोस
(घ) चन्द्रशेखर आजाद।
उत्तर:
(ग) सुभाषचन्द्र बोस

प्रश्न 8.
भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव को फाँसी कब दी गयी?
(क) 31 दिसम्बर, 1929
(ख) 26 जनवरी, 1930
(ग) 23 मार्च, 1931
(घ) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ग) 23 मार्च, 1931

प्रश्न 9.
कांग्रेस का प्रथम अध्यक्ष कौन था?
(क) ए. ओ. ह्यूम
(ख) व्योमेश चन्द्र बनर्जी
(ग) सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
(घ) दादा भाई नौरोजी।
उत्तर:
(ख) व्योमेश चन्द्र बनर्जी

प्रश्न 10.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सूरत अधिवेशन (1907) का अध्यक्ष कौन था?
(क) दादा भाई नौरोजी
(ख) रास बिहारी घोष
(ग) सुरेन्द्र नाथ बनर्जी
(घ) गोपाल कृष्ण गोखले।
उत्तर:
(ख) रास बिहारी घोष

प्रश्न 11.
महात्मा गाँधी ने किस आन्दोलन के समय एक वर्ष के भीतर स्वराज्य दिलाने की बात कही थी?
(क) चम्पारण सत्याग्रह
(ख) असहयोग आन्दोलन
(ग) सविनय अवज्ञा आन्दोलन
(घ) भारत छोड़ो आन्दोलन।
उत्तर:
(ख) असहयोग आन्दोलन

प्रश्न 12.
प्रान्तों में द्वैध शासन किस अधिनियम द्वारा लागू किया गया?
(क) 1909 के अधिनियम द्वारा
(ख) 1919 के अधिनियम द्वारा
(ग) 1935 के अधिनियम द्वारा
(घ) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(ख) 1919 के अधिनियम द्वारा

प्रश्न 13.
साम्प्रदायिक आधार पर पृथक् निर्वाचन – प्रणाली को अपनाते हुए किस अधिनियम के द्वारा मुस्लिमों के लिए पृथक् निर्वाचक मण्डल की स्थापना की गयी?
(क) 1909 के अधिनियम द्वारा
(ख) 1919 के अधिनियम द्वारा
(ग) 1935 के अधिनियम द्वारा
(घ) इसमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) 1909 के अधिनियम द्वारा

प्रश्न 14.
कांग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में गाँधी जी ने किस गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था?
(क) प्रथम गोलमेज सम्मेलन में
(ख) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में
(ग) तृतीय गोलमेज सम्मेलन में
(घ) तीनों गोलमेज सम्मेलन में।
उत्तर:
(ख) द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में

RBSE Class 12 History Chapter 6 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
‘स्वराज्य’ शब्द का प्रयोग पहली बार किसने किया?
उत्तर:
‘स्वराज्य’ शब्द का सबसे पहली बार प्रयोग स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया।

प्रश्न 2.
स्वामी दयानन्द सरस्वती की मृत्यु कहाँ हुई?
उत्तर:
स्वामी दयानन्द सरस्वती की मृत्यु 30 अक्टूबर, सन् 1883 ई. को अजेमर में हुई।

प्रश्न 3.
‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर:
‘सत्यार्थ प्रकाश’ नामक पुस्तक स्वामी दयानन्द सरस्वती ने लिखी। इसमें उन्होंने अपने विचारों को हिन्दी में लिखा।

प्रश्न 4.
भारतीय राष्ट्रवाद एवं भोरतीय पुनर्जागरण का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रवाद का सूत्रपात हुआ। राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का जनक माना जाता है।

प्रश्न 5.
‘शुद्धि आन्दोलन’ किसने चलाया?
उत्तर:
शुद्धि आन्दोलन’ स्वामी दयानन्द सरस्वती ने चलाया। उनका मुख्य कार्य शुद्धि प्रथा थी।

प्रश्न 6.
‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’ यह प्रसिद्ध नारा किसने दिया?
उत्तर:
यह प्रसिद्ध द्वारा सुभाष चन्द्र बोस ने दिया ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’।

प्रश्न 7.
‘भारतीय स्वतन्त्रता लीग’ की स्थापना किसने एवं कब की?
उत्तर:
‘भारतीय स्वतन्त्रता लीग’ की स्थापना 23 जून, 1942 को बैंकाक में रास बिहारी बोस की अध्यक्षता में की गई।

प्रश्न 8.
बिरसा मुण्डा कौन था?
उत्तर:
यह मुण्डा जनजाति का प्रमुख नेता था। इसी के नेतृत्व में मुण्डा विद्रोह हुआ। मुण्डा जनजाति बिरसा मुण्डा को भगवान मानते थे।

प्रश्न 9.
इण्डियन एसोसिएशन की स्थापना कब एवं किसने की?
उत्तर:
इण्डियन एसोसिएशन की स्थापना कलकत्ता में 26 जुलाई, 1876 को सुरेन्द्रनाथ बनर्जी एवं आनन्द मोहन बोस ने की।

प्रश्न 10.
कांग्रेस की स्थापना कब और किसने की?
उत्तर:
कांग्रेस की स्थापना अवकाश प्राप्त अंग्रेज अधिकारी एलेन अक्टावियन ह्यूम ने दिसम्बर, 1885 में की।

प्रश्न 11.
बंगाल का विभाजन कब और किस गवर्नर जनरल के समय हुआ?
उत्तर:
बंगाल का विभाजन वायसराय लॉर्ड कर्जन के समय 1905 ई. में हुआ।

प्रश्न 12.
कांग्रेस के किस अधिवेशन में कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गयी?
उत्तर:
कांग्रेस के सूरत अधिवेशन 1907 ई. में कांग्रेस नरम दल एवं गरम दल में विभाजित हो गयी।

प्रश्न 13.
जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड कब हुआ?
उत्तर:
जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड 13 अप्रैल, 1919 ई. को वैशाखी के दिन अमृतसर में हुआ।

प्रश्न 14.
महात्मा गाँधी ने किस घटना के कारण असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया?
उत्तर:
5 फरवरी, 1922 ई. को देवरिया जिले के (उत्तर प्रदेश) चौरी – चौरा नामक घटना के कारण असहयोग आन्दोलन स्थगित कर दिया।

प्रश्न 15.
महात्मा गाँधी ने दाण्डी मार्च कब एवं कितने सदस्यों के साथ प्रारम्भ किया?
उत्तर:
12 मार्च, 1930 ई. को महात्मा गाँधी ने अपने चुने हुए 78 समर्थकों के साथ दाण्डी के लिए पदयात्रा आरम्भ की।

प्रश्न 16.
किस अधिनियम द्वारा प्रान्तों को स्वायत्तता प्रदान की गयी?
उत्तर:
1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित प्रान्तों में द्वैध शासन को समाप्त किया गया। प्रान्तों को पूर्ण स्वायत्तता प्रदान की गयी।

प्रश्न 17.
गाँधी ने ‘करो या मरो’ का नारा कब एवं कहाँ दिया?
उत्तर:
8 अगस्त, 1942 ई. को बम्बई के ग्वालिया टैंक में एक ऐतिहासिक सभा में ‘करो या मरो’ का नारा दिया।

RBSE Class 12 History Chapter 6 लघु उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
राष्ट्रवाद के उदय के कारण बताइए।
उत्तर:
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में राष्ट्रीय भावना के विकास के फलस्वरूप राजनीतिक आन्दोलन का सूत्रपात हुआ। अंग्रेजी शासन काल में भारतीयों में राष्ट्रीयता की भावना के उदय के कई कारण थे। इनमें अंग्रेजी शोषणकारी आर्थिक नीतियाँ, प्रशासनिक एकीकरण, यातायात एवं संचार के साधनों का विकास, प्रेस एवं साहित्य की भूमिका, जातीय भेदभाव, आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा, लॉर्ड लिटन की नीति, इल्बर्ट बिल विवाद तथा विभिन्न संस्थाओं की स्थापना प्रमुख थे। इस प्रकार भारतीयों ने राजनीतिक आन्दोलन के माध्यम से अंग्रेजी सत्ता से मुक्ति प्राप्त करने के लिए एक लम्बा संघर्ष किया।

प्रश्न 2.
आर्य समाज की शिक्षाओं को समझाइए।
उत्तर:
आर्य समाज की प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं-

  1. सत्य ही ईश्वर ज्ञान का प्रमुख कारण है।
  2. ईश्वर निराकार है और संचित आनन्द है।
  3. वेद सत्य एवं विद्या के भण्डार हैं।
  4. प्रत्येक कार्य को अपनी बुद्धि से विचार कर उचित – अनुचित का निर्णय कर अपनाना चाहिए।
  5. आर्य समाज का उद्देश्य शारीरिक, आत्मिक तथा सामाजिक सुधारों द्वारा संसार का भला करना है।
  6. अविद्या का नाश एवं विद्या का प्रचार करना है।
  7. प्रत्येक व्यक्ति को सर्वसाधारण की उन्नति में रुचि लेनी चाहिए।
  8. व्यक्तिगत स्वतन्त्रता होनी चाहिए परन्तु समाज की हानि करके नहीं।

प्रश्न 3.
चन्द्रशेखर आजाद के सम्बन्ध में संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
चन्द्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई, 1906 ई. को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भाबंरा गाँव में हुआ। इनके पिता सीताराम तिवारी एवं माता जगरानी देवी थी। वे अपने घर को छोड़कर काशी आ गये और संस्कृत विद्यालय में पढ़ने लगे। इन्होंने बनारस में रहते हुए असहयोग आन्दोलन में भाग लिया।

पकड़े जाने पर जब मजिस्ट्रेट ने इनसे जानकारी माँगी तब इन्होंने अपना नाम ‘आजाद’ पिता का नाम ‘स्वतन्त्रता’ एवं निवास स्थान ‘कारागार’ बतलाया। मजिस्ट्रेट ने इस बालक को 14 बेंत की सजा सुनाई। बेंत पड़ते समय इन्होंने ‘वन्देमातरम्’ के नारे लगाए। वीरता के लिए इनका अभिनन्दन किया गया। काकोरी ट्रेन लूट एवं साण्डर्स हत्याकाण्ड में आजाद ने भूमिका निभाई।

इनके नेतृत्व में दिसम्बर, 1930 में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ने दिल्ली के निकट वायसराय लॉर्ड इर्विन की रेलगाड़ी को बम से उड़ाने का प्रयास किया किन्तु वायसराय इसमें बच गया। 27 फरवरी, 1931 को इलाहाबाद में एक भेदिए द्वारा पहचान लिए गए। इन्होंने बड़ी वीरता से पुलिस का सामना किया और अन्त में उनके पास एक गोली बची थी जिससे उन्होंने अपनी कनपटी पर रखकर मृत्यु को वरण किया।

प्रश्न 4.
संथाल विद्रोह क्या था? समझाइए।
उत्तर:
अंग्रेजी शासन के विरुद्ध 1850 ई. के बाद होने वाले विद्रोहों में संथाल जनजाति का विद्रोह सबसे तीव्र एवं महत्वपूर्ण था। भागलपुर से राजमहल तक का क्षेत्र संथाल बाहुल्य क्षेत्र था। संथालों का विद्रोह मुख्य रूप से वीरभूम, बांकुरा, सिंहभूम, हजारीबाग, भागलपुर एवं मुंगेर तक फैला। इस विद्रोह का मुख्य कारण अंग्रेजी उपनिवेशवादी शोषण की नीति थी। भूमिकर अधिक वसूला जाना, अंग्रेजी अदालतों से उचित न्याय न मिलना, पुलिस के अत्याचार एवं भ्रष्टाचार, महाजनों द्वारा शोषण किया जाना, उधार की समस्या आदि कारणों से संथालों में विद्रोह की भावना आई।

प्रश्न 5.
गदर दल के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
अमेरिका में भारतीय क्रान्तिकारियों की गतिविधियों का मुख्य केन्द्र पोर्टलैण्ड था। सोहन सिंह भखना के नेतृत्व में अमेरिका के पोर्टलैण्ड में हिन्दुस्तान एसोसिएशन ऑफ द पैसिकिक कोस्ट’ नामक संस्था की स्थापना हुई। इसका उद्देश्य भारत के लोगों के अधिकारों की रक्षा करना और भारत की स्वतन्त्रता प्राप्त करने के लिए भारतीयों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न करना था।

यह संस्था आगे चलकर ‘गदर दल’ के रूप में सामने आई। गदेर आन्दोलन चलाने के लिए 1 नवम्बर 1913 को अमेरिका के सेन फ्रांसिस्को में लाल हरदयाल ने ‘गदर दल’ का गठन किया। इसके अध्यक्ष सोहन सिंह भखना एवं मन्त्री लाला हरदयाल थे। प्रथम विश्वयुद्ध के समय गदर दल ने इंग्लैण्ड के शत्रुओं से साँठगाँठ कर भारत में 21 फरवरी, 1915 ई. को सशस्त्र क्रान्ति की योजना बनाई।

प्रश्न 6.
अभिनव भारत के बारे में बताइए।
उत्तर:
नासिक में गणपति उत्सव मनाने के सम्बन्ध में 1899 ई. में ‘मित्र मेला’ संगठन की स्थापना की गयी। 1904 ई. में इसी मित्र मेला से वीर सावरकर के नेतृत्व में ‘अभिनव भारत’ नामक गुप्त क्रान्तिकारी संस्था का जन्म हुआ। इसका उद्देश्य भारत को विदेशी सत्ता से स्वतन्त्र कराना था। इस संस्था ने तिलक द्वारा प्रारम्भ किए गए गणपति उत्सव एवं शिवाजी उत्सव के माध्यम से क्रान्तिकारी विचारों को लोगों तक पहुँचाया।

इसने सभाओं एवं पुस्तिकाओं के माध्यम से अपने विचारों का प्रसार किया। यह संस्था नवयुवकों को लाठी चलाने, तलवार चलाने, पहाड़ पर चढ़ने, घुड़सवारी करने, दौड़ने आदि की शिक्षा देकर अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार करने लगी। अभिनव भारत ने बंगाल एवं भारत की अनेक गुप्त क्रान्तिकारी संस्थाओं से सम्बन्ध स्थापित किया।

प्रश्न 7.
कांग्रेस के उद्देश्य एवं कार्यक्रम बताइए।
उत्तर:
कांग्रेस के उद्देश्य एवं कार्यक्रम निम्नलिखित थे-

  1. देशहित के लिए कार्य करने वाले विभिन्न भागों के भारतीयों के बीच व्यक्तिगत सम्पर्क एवं मित्रता स्थापित करना।
  2. देशप्रेमियों के बीच जाति, धर्म या प्रान्तीय विद्वेष को मिटाना और राष्ट्रीय एकता की भावना को विकसित एवं दृढ़ करना।
  3. महत्वपूर्ण राजनीतिक एवं सामाजिक प्रश्नों पर भारत के शिक्षित वर्ग के मत को व्यक्त करना।
  4. उन नीतियों एवं उपायों को निर्धारित करना जो आगे के वर्ष में सार्वजनिक हित के लिए आवश्यक हों।

कार्यक्रम:
कांग्रेस की प्रमुख माँगों में रॉयल कमीशन की नियुक्ति, विधायिका सभा या कौंसिलों में अधिक संख्या में चुने हुए प्रतिनिधि लिए जाएँ, उत्तर पश्चिम प्रदेश एवं पंजाब में ऐसी कौंसिलें बनाई जाएँ, इन कौंसिलों को बजट पर बहस करने का अधिकार दिया जाय, सिविल सर्विस की परीक्षा ब्रिटेन के साथ भारत में भी आयोजित की जाएँ, सेना के खर्च में कमी की जाए आदि।

प्रश्न 8.
बंगाल – विभाजन पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। बंगाल-विभाजन क्यों किया गया?
उत्तर:
वायसराय लॉर्ड कर्जन ने राष्ट्रीय आन्दोलन के विकास एवं भारतीयों में बढ़ती हुई एकता की भावना से चिन्तित होकर ‘फूट डालो और राज्य करो’ की नीति का अनुसरण किया। हिन्दुओं और मुसलमानों में फूट डालने का प्रयास किया। अत: लॉर्ड कर्जन ने राष्ट्रीय आन्दोलन को कुचलने के लिए 1905 ई. में बंगाल को विभाजित कर दिया।

लॉर्ड कर्जन ने बंगाल को बड़ा प्रान्त बताते हुए प्रशासनिक सुविधा के लिए इसके दो भाग किए जाने की आवश्यकता बताई। बंगाल सम्पूर्ण देश के राजनीतिक आन्दोलन का केन्द्र बनता जा रहा था। 16 अक्टूबर, 1905 ई. को यह योजना लागू की गई। बंगाल विभाजन के विरुद्ध बढ़ते असन्तोष के कारण 1911 ई. में यह विभाजन रद्द कर दिया गया।

प्रश्न 9.
खिलाफत आन्दोलन क्या था?
उत्तर:
खिलाफत आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य तुर्की के साम्राज्य के बँटवारे का विरोध करना एवं खलीफा के पद को बनाए रखना था। यह आन्दोलन मुख्य रूप से प्रतिक्रियावादी था। तुर्की के सुल्तान को मुस्लिम खलीफा अर्थात् मजहबी मामलों में प्रमुख (मजहबी गुरु) मानते थे। प्रधानमन्त्री जॉर्ज लॉयड ने भारतीय मुसलमानों को यह विश्वास दिलाया था कि तुर्की की अखण्डता को बनाये रखा जायेगा किन्तु प्रथम विश्वयुद्ध में विजयी होने के साथ ही ब्रिटेन का तुर्की के प्रति व्यवहार बदलने लगा। अपने धार्मिक स्थलों की रक्षा को लेकर मुस्लिम चिन्तित थे। तुर्की की हार के बाद ब्रिटेन ने विजयी शक्तियों के साथ मिलकर तुर्की साम्राज्य का बँटवारा कर दिया। तुर्की एवं खलीफा के साथ किए गए व्यवहार से भारतीय मुसलमानों में असन्तोष की भावना फैली।

प्रश्न 10.
1919 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1919 के अधिनियम को मॉण्टेग्यू – चेम्सफोर्ड सुधार कहा गया। इसकी निम्न विशेषताएँ थीं

  1. प्रान्तों में द्वैध शासन की स्थापना की गयी। प्रान्तीय विषयों को दो भागों – सुरक्षित विषय एवं हस्तान्तरित विषय में बाँटा गया।
  2. गवर्नर की कार्यकारिणी विधान सभा के प्रति उत्तरदायी न होकर गवर्नर के प्रति उत्तरदायी होती थी, जबकि मन्त्री विधान सभा के प्रति उत्तरदायी थे।
  3. केन्द्र एवं प्रान्तों के बीच शक्ति का विभाजन किया गया। केन्द्र के पास रक्षा, विदेश नीति, रेलवे संचार, सार्वजनिक ऋण आदि विषय थे। प्रान्तों के पास स्थानीय स्वशासन, शिक्षा, स्वास्थ्य, पुलिस आदि विषय थे।
  4. इस अधिनियम द्वारा पहली बार द्विसदनात्मक विधायिका की व्यवस्था की गयी।
  5. प्रान्तीय विधान सभाओं में साम्प्रदायिक आधार पर पृथक् निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया।

प्रश्न 11.
स्वराज्य पार्टी के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर:
असहयोग आन्दोलन के स्थगित होने के बाद भावी कार्यक्रम को लेकर कांग्रेस में मत भिन्नता थी। 1919 के अधिनियम के अन्तर्गत होने वाले विधान मण्डलों के चुनाव में भाग लेने के प्रश्न को लेकर मतभेद था। सी. आर. दास., मोतीलाल नेहरू आदि नेताओं का मानना था कि बदलती हुई राजनीतिक परिस्थिति में कांग्रेस को कौंसिल के चुनाव में भाग लेना चाहिए। कौंसिल में प्रवेश कर सरकार का विरोध करने की नीति अपनानी चाहिए।

ये लोग परिवर्तनवादी कहलाए। परिवर्तनवादियों ने मार्च, 1923 में इलाहाबाद में अपने समर्थकों का अखिल भारतीय सम्मेलन बुलाकर ‘स्वराज्य दल’ की स्थापना की। इसके अध्यक्ष चितरंजनदास एवं सचिव मोतीलाल नेहरू थे। यह निर्णय लिया गया कि केन्द्रीय विधान सभा एवं प्रान्तीय विधान परिषदों में प्रवेश कर एक निश्चित समय में राष्ट्रीय माँगों को पूरा करने के लिए ब्रिटिश सरकार पर दबाव डालेंगे।

प्रश्न 12.
गाँधी – इरविन समझौते का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
लम्बी बातचीत के बाद 5 मार्च, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता हुआ। पहली बार कांग्रेस एवं सरकार को समानता के स्तर पर रखा गया। गाँधी-इरविन समझौते को दिल्ली पैक्ट’ भी कहा जाता है। गाँधी – इरविन समझौते के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार ने हिंसात्मक कार्यों में लिप्त बन्दियों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा करने एवं उनकी जब्त की गई सम्पत्ति को वापस करने की बात मान ली।

सरकार ने समुद्रतटीय इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को घरेलू उपयोग के लिए नमक बनाने का अधिकार दिया। जिन सरकारी कर्मचारियों ने त्यागपत्र दिया था, उनके साथ नरमी बरतने की बात सरकार ने मानी। भारतीयों को शान्तिपूर्ण धरना दिए जाने का अधिकार दिया गया। इन आश्वासनों के बदले कांग्रेस ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को समाप्त करने की शर्त मान ली।

प्रश्न 13.
माउण्टबेटन योजना की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
ब्रिटिश सरकार ने भारत के बँटवारे की माउण्टबेटन योजना को 3 जून, 1947 को प्रकाशित किया। इसमें प्रमुख बातें निम्न र्थी-

  1. भारत को दो भागों – भारतीयों संघ एवं पाकिस्तान में बाँट दिया जाएगा।
  2. संविधान सभा द्वारा पारित संविधान भारत के उन भागों में लागू नहीं किया जाएगा, जो इसे मानने के लिए तैयार न हों।
  3. भारत के विभाजन के पहले पंजाब एवं बंगाल के सीमांकन के प्रश्न का फैसला होगा। बंगाल एवं पंजाब के हिन्दू एवं मुस्लिम बहुसंख्यक जिलों के प्रान्तीय विधान सभा के सदस्यों की अलग-अलग बैठक बुलाई जाए।
  4. उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रान्त और असम के सिलहट जिले में जनमत द्वारा यह निर्णय लिया जाएगा कि वे किसके साथ रहना चाहते हैं।
  5. देशी रियासतों को यह तय करने का अधिकार होगा कि वह किसके साथ सम्मिलित हों।

प्रश्न 14.
1935 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
1935 के अधिनियम की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. 1919 के अधिनियम द्वारा स्थापित प्रान्तों में द्वैध शासन को समाप्त किया गया।
  2. प्रान्तों में दो सदनों वाली विधायिका की व्यवस्था की गयी। उच्च सदन विधान परिषद् एवं निम्न सदन विधान सभा था।
  3. एक ‘अखिल भारतीय संघ’ की स्थापना का प्रावधान किया गया।
  4. केन्द्र में द्वैध शासन की व्यवस्था की गयी।
  5. इस अधिनियम द्वारा समस्त विषयों को तीन सूचियों में बाँट दिया गया – संघ सूची, प्रान्त सूची एवं समवर्ती सूची।
  6. एक संघीय न्यायालय की स्थापना की गयी।
  7. इस अधिनियम द्वारा 1858 के अधिनियम द्वारा स्थापित इण्डिया कौंसिल को समाप्त कर दिया गया।
  8. साम्प्रदायिक निर्वाचन प्रणाली का विस्तार किया गया।
  9. एक केन्द्रीय बैंक का प्रावधान किया गया, जो भारतीय रिजर्व बैंक कहलाया।

RBSE Class 12 History Chapter 6 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
स्वामी विवेकानन्द के विचारों का वर्णन कीजिए। राष्ट्रीय जागृति में उनके योगदान को बताइए।
उत्तर:
1. जीवन-परिचय:
रामकृष्ण मिशन के संस्थापक स्वामी विवेकानन्द का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में हुआ था। इनके बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्त था। इनके पिता विश्वनाथ दत्त एवं माता भुवनेश्वरी देवी थीं। स्वामी विवेकानन्द कलकत्ता विश्वविद्यालय के स्नातक थे। स्वामी विवेकानन्द अपनी धार्मिक एवं आध्यात्मिक जिज्ञासा के कारण रामकृष्ण परमहंस के सम्पर्क में आए।

रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता में दक्षिणेश्वर मन्दिर के पुजारी थे। रामकृष्ण की हिन्दू धर्म में गहरी आस्था थी। वे ईश्वर की प्राप्ति के लिए नि:स्वार्थ भक्ति भावना पर बल देते थे। वे सभी मत – पन्थों की मौलिक एकता में विश्वास करते थे। रामकृष्ण परमहंस के विचारों से प्रभावित होकर स्वामी विवेकानन्द उनके शिष्य बन गये। 1886 ई. में रामकृष्ण की मृत्यु के बाद विवेकानन्द ने संन्यास ग्रहण कर लिया।

2. शिकागो धर्म सम्मेलन में भाग लेना:
विवेकानन्द ने भारत के विभिन्न स्थानों का भ्रमण किया और धार्मिक ग्रन्थों का गहनता से अध्ययन किया। खेतड़ी के महाराजा के सहयोग से विवेकानन्द सितम्बर, 1893 में विश्व धर्म संसद में भाग लेने अमेरिका के शिकागो शहर गए। सितम्बर, 1893 में विश्वधर्म सम्मेलन में इन्होंने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘प्रिय भाइयों एवं बहनों’ के सम्बोधन से प्रारम्भ किया। अपने भाषण में इन्होंने भारतीय संस्कृति एवं धर्म की महत्ता को बड़े प्रभावशाली तरीके से पश्चिमी जगत के समक्ष रखा।

इन्होंने अपने व्याख्यान द्वारा भारत की बौद्धिक, आध्यात्मिक एवं धार्मिक समृद्धि को प्रमाणित किया। इनके सम्बन्ध में अमेरिका के न्यूयार्क हैरल्ड ने लिखा- “शिकागो धर्म सम्मेलन में विवेकानन्द ही सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति हैं। उनके भाषण सुनने के बाद लगता है कि भारत जैसे समुन्नत राष्ट्र में ईसाई प्रचारकों को भेजा जाना कितनी मूखर्ता की बात है।” विवेकानन्द ने इसके बाद अमेरिका एवं इंग्लैण्ड में भ्रमण कर हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का प्रचार किया। 1896 ई. में न्यूयार्क में ‘वेदान्त सोसाइटी’ की स्थापना की।

3. रामकृष्ण मिशन की स्थापना:
5 मई, 1897 में स्वामी विवेकानन्द ने वेलूर में रामकृष्ण मिशन की स्थापना की। रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर की। इसकी शाखाएँ भारत के विभिन्न भागों एवं विदेशों में खोली गयी। स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण मिशन के माध्यम से अपने विचारों का प्रचार किया। रामकृष्ण मिशन की शिक्षाएँ मुख्य रूप से वेदान्त – दर्शन पर आधारित हैं।

विवेकानन्द के सामाजिक विचार एवं कार्य:

विवेकानन्द तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त संकीर्णताओं एवं कुरीतियों का विरोध किया। उन्होंने जातीय भेदभावों का विरोध कर समानता की बात की। उनको मत था कि सामाजिक-धार्मिक परम्पराओं एवं मान्यताओं को तभी स्वीकार करना चाहिए जब वे उचित जान पड़े। उन्होंने स्त्री पुनरुत्थान की बात कही। वे निर्धनता एवं अज्ञानता को समाप्त करना चाहते थे। उन्होंने कहा, “जब तक करोड़ों व्यक्ति भूखे और अज्ञानी हैं तब तक मैं उस प्रत्येक व्यक्ति को देशद्रोही मानता हूँ जो उन्हीं के खर्चे पर शिक्षा ग्रहण करता है परन्तु उनकी परवाह नहीं करता।”

विवेकानन्द के विचारों को सफल बनाने के लिए रामकृष्ण मिशन ने समाज सेवा एवं पुरोपकार के कार्यों को बहुत महत्व दिया। अपने कार्यों में मानवतावादी दृष्टिकोण के कारण रामकृष्ण मिशन अधिक लोकप्रिय हुआ। रामकृष्ण मिशन ने कई विद्यालय, अनाथालय, चिकित्सालय आदि स्थापित किए और इसके माध्यम से समाज सेवा के कार्य किए। अकाल, बाढ़ आदि विपदाओं के समय रामकृष्ण मिशन ने सहायतार्थ कार्य कर लोगों को समाज सेवा की प्रेरणा दी।

1. विवेकानन्द के धार्मिक विचार:
स्वामी विवेकानन्द हिन्दू धर्म एवं दर्शन में गहन और आस्था रखते थे। इन्होंने हिन्दू धर्म एवं संस्कृति की मौलिकता एवं इसकी विशेषताओं को लोगों के समक्ष रखा। इन्होंने मनुष्य की आत्मा को ईश्वर का अंश बताया। इनका मानना था कि ईश्वर की आराधना का एक रूप दीन-दु:खी और दरिद्रों की सेवा भी है। रामकृष्ण मिशन ने मानव सेवा को ईश्वर की सेवा माना है। नर सेवा नारायण सेवा’ उनका ध्येय वाक्य है।

2. स्वामी विवेकानन्द का राष्ट्रीय दृष्टिकोण:
स्वामी विवेकानन्द ने राष्ट्रीयता की भावना के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। विवेकानन्द एवं रामकृष्ण मिशन ने भारतीयों में आत्मविश्वास एवं आत्म सम्मान की भावना का विकास किया। इसी भावना ने युवाओं को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की ओर प्रेरित किया। उन्होंने स्वतन्त्रता, समानता एवं स्वतन्त्र चिन्तन की बात कर युवाओं को नई दिशा प्रदान की। उन्होंने कहा “उठो, जागो और तब तक विश्राम न करो जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”

वे भारत के पिछड़ेपन पतन एवं गरीबी से दु:खी थे। वे पश्चिम के अन्धानुकरण के विरोधी थे। विवेकानन्द आध्यात्मिक उन्नति पर बल देते थे। मनुष्य भी आध्यात्मिक उन्नति कर पहले वे मनुष्य को मनुष्य बनाना चाहते थे और उसी को सम्पूर्ण प्रगति का आधार मानते थे। पूरे विश्व में हिन्दू धर्म एवं दर्शन को प्रसारित कर विवेकानन्द ने उल्लेखनीय कार्य किया। उन्होंने भारत के प्राचीन गौरव को संसार के समक्ष रखा। उन्होंने ऐसी शिक्षा की बात कही जिससे चरित्र का निर्माण हो। उन्होंने शक्तिमान एवं पौरुष युक्त बनने की बात कही।

उन्होंने कहा कि मनुष्य का साहस एवं वीरत्व एक दिन उसे कुपथ त्यागने की प्रेरणा देंगे। विवेकानन्द ने खेतड़ी के महाराजा को लिखा “हर कार्य को तीन अवस्थाओं से गुजरना होता है उपहास, विरोध और स्वीकृति। जो मनुष्य अपने समय से आगे विचार करता है लोग उसे निश्चय ही गलत समझते हैं, इसलिए विरोध और अत्याचार हम सहर्ष स्वीकार करते हैं परन्तु मुझे दृढ़ और पवित्र होना चाहिए और भगवान में अपरिमित विश्वास रखना चाहिए तब ये सब लुप्त हो जाएँगे।”

स्वामी विवेकानन्द का मूल्यांकन:
स्वामी विवेकानन्द एक महान् दार्शनिक तथा धर्मोपदेशक थे। उन्होंने केवल भारत में ही नहीं, अपितु समस्त विश्व में हिन्दू धर्म का महत्व प्रतिपादित किया और हिन्दू धर्म तथा संस्कृति के गौरव को चरम सीमा पर पहुँचा दिया। उन्होंने पूर्व तथा पश्चिम की संस्कृतियों में समन्वय करने का प्रयत्न किया। इस सम्बन्ध में रवीन्द्रनाथ टैगोर का कथन है कि यदि कोई भारत को समझना चाहे तो उसे विवेकानन्द पढ़ना चाहिए। एस. एन. नटराजन के अनुसार, “विवेकानन्द ने अपना जीवन भारत के करोड़ों पीड़ित लोगों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। वह राष्ट्र का पुनर्निर्माण करना चाहते थे।”

श्री रामधारी सिंह दिनकर का कथन है कि “स्वामी विवेकानन्द ने अपनी वाणी तथा कर्म से भारतीयों में यह अभिमान जगाया कि हम अत्यन्त प्राचीन सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं। हमारे धार्मिक ग्रन्थ सबसे उन्नत तथा इतिहास सबसे प्राचीन है, महान् हैं। हमारा धर्म ऐसा है जो विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरता है और विश्व के सभी धर्मों का सार होते हुए भी उन सबसे कुछ और अधिक है। स्वामी जी के प्रचार से हिन्दुओं में यह विश्वास उत्पन्न हुआ कि उन्हें किसी के भी सामने सिर झुकाने की आवश्यकता नहीं है। भारत में सांस्कृतिक राष्ट्रीयता पहले उत्पन्न हुई, राजनीतिक राष्ट्रीयता बाद में जन्मी है और इस सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के पिता विवेकानन्द थे।”

प्रश्न 2.
राजा राममोहन राय के सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्र में किए गए कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूमिक:
उन्नीसवीं सदी में सामाजिक धार्मिक सुधार आन्दोलन बंगाल से राजा राममोहन राय के नेतृत्व में प्रारम्भ हुआ। राजा राममोहन राय को बंगाल में नवचेतना एवं क्रान्ति का अग्रदूत, भारत में नवजागरण का अग्रदूत, सुधार आन्दोलनों का प्रवर्तक एवं आधुनिक भारत का पहला नेता कहा गया। इनकी हिन्दू धर्म के मौलिक सिद्धान्तों एवं दर्शन में आस्था थी। ये कालान्तर में हिन्दू धर्म एवं समाज में आए आडम्बरों को समाप्त करना चाहते थे।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानव गरिमा, सामाजिक समानता आदि विचारों को अपनाकर भारत का सामाजिक – सांस्कृतिक, राजनीतिक एवं धार्मिक पुनरुत्थान करना चाहते थे। राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल के राधा नगर में ब्राह्मण जमींदार परिवार में हुआ। इन्होंने हिन्दू, इस्लाम, ईसाई आदि धर्म एवं इनके महत्वपूर्ण ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। ये अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, लैटिन, हिब्रू आदि कई भाषाओं के जानकार थे।

इन्होंने ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नौकरी की किन्तु बाद में त्यागपत्र दे दिया। इन्होंने अपने विचार के प्रचार के लिए एकेश्वरवादियों का उपहार (Gift to. monotheist) एवं प्रीसेप्ट्स ऑफ जीजस (Precepts of Jesus) नामक पुस्तक लिखी। ‘तोहफत-उल-मुंहीद्दीन’ फारसी भाषा में लिखी। फारसी में ‘मिरात-उल-अखबार’, बांग्ला में ‘संवाद कौमुदी’ पत्रिका एवं हिन्दी में ‘बंगदूत’ निकाला।

1815 ई. में इन्होंने कलकत्ता में ‘आत्मीय सभा’ की स्थापना की। 1825 ई. में कलकत्ता में वेदान्त कालेज की स्थापना की। 1828 ई. में इन्होंने कलकत्ता में ब्रह्म सभा’ की स्थापना कर अपने विचारों को प्रचार-प्रसार किया। ब्रह्म सभा ‘ब्रह्म समाज’ कहलाया। देवेन्द्र नाथ टैगोर (रवीन्द्रनाथ टैगोर के पिता) ने राजा राममोहन राय के विचारों से प्रभावित होकर 1839 ई. में ‘तत्वबोधिनी सभा’ की स्थापना की। राजा राममोहन राय के बाद 1843 ई. में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज को पुनर्जीवित किया।

केशवचन्द्र सेन ने ब्रह्म समाज की लोकप्रियता को बढ़ाया। देवेन्द्रनाथ टैगोर ब्रह्म समाज को राजा राममोहन राय के मार्ग पर चलाना चाहते थे। केशवचन्द्र सेन ने ब्रह्म समाज में सभी धर्मों के प्रस्तावों के पाठ की अनुमति दे दी। वे सामाजिक सुधारों में अधिक रुचि लेने लगे। इसी कारण दोनों में मतभेद बढ़ता गया। 1867 ई. में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने केशवचन्द्र सेन को आचार्य के पद से हटा दिया। ब्रह्म समाज दो भागों में विभाजित हो गया। देवेन्द्रनाथ टैगोर का समाज ‘आदि ब्रह्म समाज’ (भारतीय ब्रह्म समाज) कहलाया।

केशवचन्द्र सेन ने बाल-विवाह का विरोध बड़ी दृढ़ता से किया किन्तु इन्होंने अपनी तेरह वर्षीय अल्पायु बेटी को विवाह बहुत बड़ी उम्र के कूच बिहार के राजा से कर दिया। इस कारण इनके कुछ अनुयायी इनसे रुष्ट हो गए और 1878 ई. में केशवचन्द्र सेन के ‘भारत का ब्रह्म समाज’ में फूट पड़ गयी। अपने को प्रगतिशील मानने वाले लोगों ने भारत का ब्रह्म समाज’ से पृथक् होकर ‘साधारण ब्रह्म समाज’ की स्थापना की। राजा राममोहन राय एवं ब्रह्म समाज ने सामाजिक, धार्मिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए।

राजा राममोहन राय के सामाजिक सुधार

राजा राममोहन राय एवं उनके ब्रह्म समाज ने भारतीय समाज में कालान्तर में आई कई कुरीतियों का विरोध किया। राजा राममोहन राय ने प्राचीन धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि कई सामाजिक रूढ़ियाँ मौलिक हिन्दू धर्म के विरुद्ध हैं। उन्होंने जाति-प्रथा, अस्पृश्यता, सती – प्रथा, बहु – विवाह, बाल विवाह, परदा – प्रथा आदि को विरोध किया। उन्होंने सती – प्रथा को समाप्त करने के लिए आन्दोलन चलाया।

उन्होंने मौलिक हिन्दू धार्मिक ग्रन्थों के आधार पर यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि सती–प्रथा को धार्मिक मान्यता प्राप्त नहीं थी तथा यह कभी भी हिन्दू समाज में एक प्रथा के रूप में मान्य नहीं रही। उन्होंने कहा कि मानव की बुद्धि भी इस प्रथा का समर्थन नहीं कर सकती। राजा राममोहन राय ने पत्र – पत्रिकाओं के माध्यम से सती – प्रथा के विरुद्ध जनमत तैयार किया। राजा राममोहन राय के प्रयासों से ब्रिटिश गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बैंटिंक के समय 1829 ई. में कानून बनाकर सती – प्रथा पर रोक लगा दी गयी।

न्यायालयों को आदेश दिए गए कि ऐसे मामलों में मानव हत्या के अनुसार मुकदमा चले एवं दण्ड दिया जाए। प्रारम्भ में यह नियम केवल बंगाल के लिए था। 1830 ई. में इसे बम्बई एवं मद्रास में लागू किया गया। राजा राममोहन राय एवं ब्रह्म समाज ने सामाजिक कुरीतियों का विरोध करते हुए स्त्रियों की स्थिति में सुधार के लिए विधवा पुनर्विवाह का समर्थन किया। उन्होंने स्त्रियों को आर्थिक अधिकार देने की बात की। स्त्री शिक्षा के प्रयास किए। ब्रह्म समाज ने बालिका विद्यालय की नींव डाली।

राजा राममोहन राय के धार्मिक सुधा:र

राजा राममोहन राय ने एक ब्रह्म (एकेश्वरवाद) का उपदेश दिया। उन्होंने वेद, उपनिषद् आदि के माध्यम से इस बात को प्रमाणित करने का प्रयास किया कि हिन्दू धर्म के मौलिक ग्रन्थों में एक ब्रह्म की बात है। उन्होंने निरर्थक पांथिक अनुष्ठानों एवं आडम्बरों का विरोध किया। उनका विश्वास था कि वेदान्त दर्शन भी तर्क शक्ति पर आधारित है। राजा राममोहन राय ने कहा कि यदि कोई दर्शन, परम्परा आदि तर्क की कसौटी पर खरा न उतरे और वे समाज के लिए उपयोगी न हों तो मनुष्य को उन्हें त्यागने से हिचकना नहीं चाहिए।

इन्होंने ईसाई धर्म में व्याप्त अन्धविश्वासों की भी आलोचना की। राजा राममोहन राय विश्व के मत – पन्थों की मौलिक एकता में विश्वास करते थे। ब्रह्म समाज ने राजा राममोहन राय के एकेश्वरवाद एवं मूर्ति पूजा में अन्धविश्वास की मान्यताओं का प्रसार किया।

प्रश्न 3.
आजाद हिन्द फौज का भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में योगदान बताइए।
उत्तर:
द्वितीय विश्वयुद्ध में दिसम्बर, 1941 में जापानियों ने उत्तर मलाया में ब्रिटिश सेना को पराजित कर दिया। इसके बाद मलाया के कैप्टन मोहन सिंह के मन में आजाद हिन्द फौज’ के गठन का विचार आया। ब्रिटिश भारतीय सेना के कैप्टन मोहन सिंह ने भारतीय सैनिकों के साथ जापानी फौज के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया था। फरवरी, 1942 को सिंगापुर के पतन के बाद चालीस हजार भारतीय युद्ध बन्दियों को जापानी मेजर फूजीहारा ने कैप्टन मोहन सिंह को सौंप दिया।

बैंकाक सम्मेलन में यह निश्चय किया गया कि भारतीय सैनिकों एवं पूर्व एशिया के भारतीय नागरिकों को लेकर भारतीय राष्ट्रीय सेना बनाई जाय। एक सितम्बर, 1942 को भारतीय युद्ध बन्दियों को लेकर ‘आजाद हिन्द फौज’ की स्थापना की गई। इसकी पहली डिवीजन के गठन के साथ ही नियमतः इसकी स्थापना 1 सितम्बर, 1942 को हो गयी।

रास बिहारी बोस द्वारा निमन्त्रण मिलने पर सुभाष चन्द्र बोस जर्मनी पनडुब्बी द्वारा जापान गए। जून, 1943 में सुभाष चन्द्र बोस जापान के टोक्यो पहुँचे। सुभाष चन्द्र बोस ने टोक्यो रेडियो पर ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशस्त्र क्रान्ति की घोषणा की। सुभाष चन्द्र बोस सिंगापुर पहुँचे, जहाँ 4 जुलाई, 1943 को रास बिहारी बोस ने पूर्व एशिया में भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन का नेतृत्व सुभाष चन्द्र बोस को सौंप दिया।

सुभाष चन्द्र बोस ‘भारतीय स्वतन्त्रता लीग’ के अध्यक्ष बने। सुभाष चन्द्र बोस ने 21 अक्टूबर, 1943 को सिंगापुर के कैथहाल में अस्थायी भारतीय सरकार की स्थापना की घोषणा की। जापान, जर्मनी, इटली, बर्मा, चीन, थाईलैण्ड, फिलीपींस, मंचूरिया आदि की सरकारों ने आजाद हिन्द की अस्थायी सरकार को मान्यता प्रदान कर दी। सुभाष चन्द्र बोस ने जापान के सेनाध्यक्ष को इस बात के लिए सहमत कर लिया कि भारत – बर्मा सीमा पर आजाद हिन्द फौज भी जापानी सेना के साथ अंग्रेजी सेना के विरुद्ध युद्ध करेगी।

सुभाष चन्द्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के समक्ष ‘दिल्ली चलो’ का नारा दिया। उन्होंने अपने भाषण में कहा ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा।’ सुभाष चन्द्र बोस ने महात्मा गांधी के लिए राष्ट्रपिता’ शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने रेडियो पर गांधीजी को सम्बोधित करते हुए कहा “भारत की स्वाधीनता का आखिरी युद्ध प्रारम्भ हो चुका है। राष्ट्रपिता भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध में हम आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ चाहते हैं।” आजाद हिन्द फौज का मुख्यालय रंगून एवं सिंगापुर बनाया गया। गाँधी, सुभाष एवं नेहरू ब्रिगेड बनायी गयी। झाँसी रानी रेजीमेण्ट के रूप में महिलाओं का दल बनाया गया।

अण्डमान एवं निकोबार टापुओं को अधिकार में लेकर आजाद हिन्द की अस्थाई सरकार ने अण्डमान का नाम ‘शहीद द्वीप’ एवं निकोबार का नाम ‘स्वराज द्वीप’ रखा। इन द्वीपों पर भारत का झण्डा फहराया गया। आजाद हिन्द फौज के सैनिकों ने जापानी फौज़ के साथ कोहिमा पर कब्जा कर भारत का तिरंगा झण्डा फहराया। आजाद हिन्द फौज इम्फाल तक पहुँच गयी।

जून, 1944 के बाद जापान आगे नहीं बढ़ सका और आजाद हिन्द फौज को रसद सामग्री, गोला बारूद्ध एवं दवाइयों की कमी के कारण बहुत परेशानी उठानी पड़ी। अगस्त, 1945 में जापान ने अपनी पराजय के बाद आत्मसमर्पण कर दिया। सुभाष चन्द्र बोस 18 अगस्त, 1945 को फारमोसा के ‘ताईहोकू’ हवाई अड्डे से विमान से जैसे ही रवाना हुए विमान में आग लग गई। जापान सूत्रों के अनुसार सुभाषचन्द्र बोस को घायल अवस्था में अस्पताल पहुँचाया गया।

जापान के युद्ध में पराजय के बाद आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों एवं सैनिकों को गिरफ्तार कर युद्ध बन्दी रूप में भारत लाया गया। शहनवाज खाँ, गुरुदयाल सिंह दिल्ली एवं कर्नल सहगल पर दिल्ली के लाल किले में मुकदमा चलाया गया। आजाद हिन्द फौज के अधिकारियों एवं सैनिकों की रिहाई के लिए देश में आन्दोलन हुआ।

भूलाभाई देसाई, तेज बहादुर सपू, कैलाश नाथ काटजू, आसफ अली, जवाहरलाल नेहरू आदि ने बचाव पक्ष के वकील के रूप में न्यायालय में इन अधिकारियों के मुकदमे की पैरवी की सैनिक न्यायालय ने इन अधिकारियों को मृत्यु दण्ड की सजा दीं। पूरे देश में इस निर्णय के विरुद्ध जन आन्दोलन हो गया। भारतीय जनता की तीखी प्रतिक्रिया को देखते हुए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड वेबल ने अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए इनकी सजा माफ कर दी।

आजाद हिन्द फौज का मूल्यांकन

आजाद हिन्द फौज के त्याग एवं बलिदान ने भारतीयों के मन में स्वतन्त्रता की भावना को और तीव्र कर दिया। अब लोग शीघ्र स्वतन्त्रता प्राप्त करना चाहते थे। आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के बचाव के लिए चलाए जा रहे आन्दोलन में विभिन्न वर्ग के लोग सम्मिलित हुए। राजनीतिक दलों के साथ व्यवसायी, भारतीय ब्रिटिश सैनिक, युवा आदि बहुत बड़ी संख्या में इनके बचाव के पक्ष में आ गए। छात्र कक्षा का बहिष्कार करने लगे।

व्यवसाइयों ने अपनी दुकानें बन्द कीं। इसका प्रभाव ब्रिटिश नौ-सेना एवं थल सेना पर भी पड़ा। फरवरी, 1946 में बम्बई की नौ-सेना के विद्रोहियों ने आजाद हिन्द फौज के सिपाहियों को छोड़ने की माँग की। गुप्तचर ब्यूरो के निदेशक ने आजाद हिन्द फौज के सैनिकों को रिहा करने के लिए चलाये जा रहे आन्दोलन के बारे में कहा “शायद ही कोई और मुद्दा हो जिसमें भारतीय जनता ने इतनी दिलचस्पी दिखाई हो और यह कहना गलत नहीं होगा कि जिसे इतनी व्यापक सहानुभूति मिली हो।”

प्रश्न 4.
असहयोग आन्दोलन के उदय के कारण, इसके प्रमुख कार्यक्रम एवं महत्व को समझाइए।
उत्तर:
असहयोग (1920 ई. – 1922 ई.) की भूमिका:
प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात उत्पन्न हुआ आर्थिक संकट, रोलट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड, माण्टेग्यू – चेम्सफोर्ड सुधार से असन्तोष आदि असहयोग आन्दोलन के प्रमुख कारण थे। गाँधी जी ने कांग्रेस एवं खिलाफत समिति की माँगों को मिला दिया। उन्होंने सरकार से माँग की सरकार जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड पर खेद प्रकट करे, टर्की के प्रति अपने व्यवहार को नम्र करे और भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए कोई नवीन योजना प्रस्तुत करे।

असहयोग आन्दोलन के कारण: असहयोग आन्दोलन के निम्नलिखित कारण थे-

1. प्रथम विश्वयुद्ध:
प्रथम विश्वयुद्ध के समय भारतीयों का सहयोग प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की थी, कि इस विश्वयुद्ध का उद्देश्य विश्व को प्रजातन्त्र के लिए सुरक्षित बनाना तथा प्रत्येक देश को आत्मनिर्णय लेने की अधिकार दिलाना था। किन्तु युद्ध की समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार अपने वायदे से मुकर गयी।

2. 1917 ई. की रूसी क्रान्ति:
1917 की रूसी क्रान्ति ऐसी ही एक घटना थी जिसने भारतीयों के समक्ष यह प्रदर्शित किया कि किस प्रकार से आम जनता शक्ति व साहस के आधार पर अपने अधिकारों को प्राप्त कर सकती थी।

3. 1919 ई. का अधिनियम:
1919 ई. के अधिनियम (माण्टेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार) के द्वारा भारत में द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना की गई थी। किन्तु कांग्रेस के कुछ नेताओं ने इनको अपर्याप्त व निराशाजनक तथा कूटनीतिपूर्ण  बताया। इससे कांग्रेस के नेताओं में फूट पड़ गयी और गाँधी जी को छोड़कर शेष सभी उदारवादी नेता कांग्रेस से अलग हो गये।

4. रौलट एक्ट:
सर सिडनी रौलट एक्ट के द्वारा किसी भी व्यक्ति को बिना मुकदमा चलाए बन्दी बनाने, उससे जमानत लेने के कार्यों पर प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार सरकार को प्राप्त हो सके। इस एक्ट के द्वारा अपील, वकील और दलील की व्यवस्था का अन्त कर दिया।

5. जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड:
13 अप्रैल, 1919 को वैशाखी के दिन अमृतसर में अपरान्ह जलियांवाला बाग में एक सभा के आयोजन के दौरान निहत्थे भारतीयों पर जनरल डायर ने बिना चेतावनी के सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया। इस हत्याकाण्ड में 379 लोग मारे गए। हण्टर कमीशन ने भारतीयों को दोषी ठहराया। इससे भारतीयों के दिलों में धधकती आग और भी तीव्र हो गयी।

6. खिलाफत आन्दोलन:
प्रथम विश्वयुद्ध के समय अंग्रेजों ने घोषणा की थी कि तुर्क साम्राज्य की अखण्डता व पवित्र स्थलों की रक्षा की जाएगी। अतः भारतीय मुसलमानों ने प्रथम विश्वयुद्ध में भाग लिया तथा अंग्रेजों का साथ दिया। किन्तु युद्ध की समाप्ति के बाद तुर्की को अपमानजनक शर्ते स्वीकार करने पर विवश किया गया तथा तुर्की साम्राज्य को छिन्न – भिन्न कर दिया गया। इस प्रकार अंग्रेजों ने भारतीय मुसलमानों के साथ विश्वासघात किया। अतः उन्होंने खिलाफत आन्दोलन प्रारम्भ किया तथा कांग्रेस ने भी गाँधीजी के नेतृत्व में उनका समर्थन किया। अब गाँधीजी अंग्रेज सरकार के सहयोगी न होकर असहयोगी बन गये।

गाँधीजी ने कांग्रेस एवं खिलाफत समिति की माँगों को मिला दिया। उन्होंने सरकार से माँग की कि सरकार जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड पर खेद प्रकट करे, तुर्की के प्रति अपने व्यवहार को नम्र करे और भारतीयों को सन्तुष्ट करने के लिए कोई नवीन योजना प्रस्तुत करे। सरकार को चेतावनी दी कि यदि सरकार इन माँगों को स्वीकार नहीं करेगी तब वे असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ कर देंगे। सरकार ने इनकी माँगों पर ध्यान नहीं दिया। गाँधी जी ने 1 अगस्त, 1920 ई. से असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया।

कलकत्ता अधिवेशन:
लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में सितम्बर, 1920 में कलकत्ता में कांग्रेस का विशेष अधिवेशन हुआ। इस विशेष अधिवेशन में असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम स्वीकार किया गया। इस अधिवेशन में माण्टेग्यू – चेम्सफोर्ड सुधार 1919 के अनुसार नवम्बर, 1920 में होने वाले चुनावों का बहिष्कार करने का भी निर्णय लिया गया।

असहयोग आन्दोलन का कार्यक्रम

विजय राघवाचार्य की अध्यक्षता में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन दिसम्बर, 1920 में नागपुर में हुआ। इस अधिवेशन में असहयोग के प्रस्ताव को दोहराया गया। असहयोग आन्दोलन के अग्रांकित कार्यक्रम रखे गए-

  1. सरकारी उपाधियों एवं अवैतनिक पदों का त्याग
  2. सरकारी और अर्द्धसरकारी उत्सवों का बहिष्कार
  3. सरकारी स्कूल – कालेज एवं अदालतों का बहिष्कार
  4. विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार आदि थे।

इसके अतिरिक्त इसमें सरकारी नौकरी से त्याग-पत्र देने एवं करों की अदायगी से इन्कार करना भी शामिल था।

रचनात्मक कार्य:
राष्ट्रीय स्कूलों एवं कॉलेजों की स्थापना, झगड़ों को निपटाने के लिए पंचायतों की स्थापना करना, चरखों दारा निर्मित स्वदेशी वस्त्रों का प्रचार, हाथ से कताई एवं बुनाई को प्रोत्साहन देना, शराबबन्दी, हिन्दू – मुस्लिम एकता को प्रोत्साहित करना, अस्पृश्यता का उन्मूलन आदि।

असहयोग आन्दोलन की प्रगति

गाँधीजी ने यह विश्वास दिलाया कि यदि इन सभी कार्यक्रमों को पूरी तरह से लागू किया गया तब एक वर्ष में स्वराज प्राप्त हो जाएगा। महात्मा गाँधी ने ब्रिटिश सरकार से प्राप्त ‘केसर-ए-हिन्द’ की उपाधि त्याग दी। जमनालाल बजाज ने ‘रायबहादुर’ की उपाधि त्याग दी। गाँधी से प्रोत्साहित होकर कई लोगों ने पदवियाँ एवं उपाधियाँ त्याग दीं। मोतीलाल नेहरू, चितरंजन दास, राजेन्द्र प्रसाद आदि कई नेताओं ने वकालत छोड़ दी। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार हुआ। विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गयी।

बहुत से राष्ट्रीय स्कूल एवं कालेज खोले गए। काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ, बिहार विद्यापीठ, जामिया मिलिया विश्व विद्यालय आदि की स्थापना हुई। 17 नवम्बर, 1921 को ब्रिटिश युवराज प्रिन्स ऑफ वेल्स बम्बई पहुँचा। प्रिन्स ऑफ वेल्स के स्वागत के लिए तैयारियाँ की गयी थीं किन्तु बम्बई की जनता ने इसके विरोध में जुलूस निकाला। मजदूरों ने कारखाने बन्द कर हड़ताल घोषित कर दी। जगह – जगह प्रदर्शन हुए। प्रदर्शनकारियों पर पुलिस ने गोली चलाई जिसमें कई लोग मारे गए। 1921 ई. में 396 हड़ताले हुईं, जिसमें छः लाख श्रमिक सम्मिलित हुए।

मोतीलाल नेहरू, चितरंजनदास, लाला लाजपत राय, डॉ. किचलू, मुहम्मद अली, मौलाना शौकत अली आदि कई प्रमुख नेता गिरफ्तार कर लिए गए। गाँधी अब तक गिरफ्तार नहीं हुए थे। अंग्रेजी सरकार ने मदनमोहन मालवीय एवं मुहम्मद अली जिन्ना के माध्यम से बातचीत करने का प्रयास किया गया। दिसम्बर, 1921 ई. में मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में एक शिष्टमण्डल वायसराय रीडिंग से मिला, किन्तु समझौता नहीं हो पाया।

1. अहमदाबाद कांग्रेस सम्मेलन:
इसी बीच अहमदाबाद में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन दिसम्बर, 1921 ई. में हुआ। इसमें अध्यक्ष देशबन्धु चितरंजनदास चुने गए किन्तु उनके जेल में होने के कारण हकीम अजमल खाँ ने पद ग्रहण किया। सरोजिनी नायडू ने चितरंजन दास का भाषण पढ़ा। इस सम्मेलन में असहयोग आन्दोलन को प्रभावी तरीके से चलाने का निर्णय लिया गया। तीस हजार से अधिक लोगों ने वायसराय लॉर्ड रीडिंग को चेतावनी दी कि यदि सरकार ने एक सप्ताह के भीतर दमन चक्र बन्द करते हुए बन्दी बनाए गए आन्दोलनकारियों को रिहा नहीं किया तब वे बारडोली से सामूहिक सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर देंगे।

2. चौरा – चौरी काण्ड (5 फरवरी, 1922 ई.):
इसी बीच 5 फरवरी, 1922 ई. को उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के चौरी – चौरा नामक स्थान पर एक घटना घट गयी। चौरी – चौरा में शान्तिपूर्ण जुलूस को पुलिस ने दबाना चाहा, जिस कारण उत्तेजित भीड़ ने पुलिस चौकी को घेर लिया और उसमें आग लगा दी। इसमें एक थानेदार एवं इक्कीस सिपाही मारे गये। गाँधी ने इस घटना के कारण असहयोग आन्दोलन को बन्द करने का निर्णय लिया। 12 फरवरी, 1922 को बारदोली में कांग्रेस कमेटी की बैठक में गाँधी ने असहयोग आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा की।

जेल में बन्द लाला लाजपत राय, चितरंजनदास एवं मोतीलाल नेहरू ने गाँधी के इस निर्णय का विरोध करते हुए पत्र लिखा सुभाष चन्द्र बोस एवं जवाहरलाल नेहरू भी गाँधी के इस निर्णय से दुःखी हुए। आन्दोलन के समाप्त होने पर भी अंग्रेजों का दमन – चक्र कम नहीं हुआ। 10 मार्च, 1922 को महात्मा गाँधी को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। गाँधी को छः वर्ष की जेल की सजा दी गई किन्तु गाँधी को फरवरी, 1924 में जेल से रिहा कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान खादी को बढ़ावा देने, छुआछूत को समाप्त करने आदि में लगाना प्रारम्भ कर दिया।

3. असहयोग आन्दोलन का महत्व:
भारत के स्वाधीनता संग्राम में असहयोग आन्दोलन का विशेष महत्व है। इस आन्दोलन की आलोचना इस आधार पर की जाती है कि यह आन्दोलन स्वराज – प्राप्ति में सफल नहीं हो सका। गाँधी द्वारा एक वर्ष के भीतर स्वराज प्राप्त करने का वादा पूरा नहीं किया जा सका। खिलाफत के प्रश्न का भी अन्त हो गया। हिन्दू – मुस्लिम एकता स्थापित करने में भी यह आन्दोलन सफल नहीं हुआ। इसके विपरीत साम्प्रदायिक भावना को बढ़ावा मिला। पंजाब में किए गए अत्याचारों का निवारण भी नहीं हुआ।

इस आन्दोलन के रचनात्मक कार्यों को सफलता अवश्य मिली। राष्ट्रीय शिक्षण संस्थाओं की स्थापना, चरखा चलाना एवं खादी तैयार करना, स्वदेशी वस्तु अपनाना आदि महत्वपूर्ण कार्य हुए। इस आन्दोलन ने कांग्रेस को नई दिशा प्रदान की। इसने कांग्रेस के आन्दोलन को जन – आन्दोलन का रूप प्रदान किया। इसने भारतीयों में स्वराज की प्राप्ति की प्रबल इच्छा जागृत की। इस आन्दोलन ने ब्रिटिश सरकार को चुनौती देने के लिए जनता को संगठित किया।

प्रश्न 5.
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम एवं महत्व को बताइए।
उत्तर:
1930 ई. में प्रारम्भ हुआ सविनय अवज्ञा आन्दोलन भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण आन्दोलन था। 1828 ई. की नेहरू रिपोर्ट के अस्वीकृत होने और ब्रिटिश सरकार द्वारा औपनिवेशिक स्वराज प्राप्त नहीं किए जाने से भारतीय नेताओं में असन्तोष व्याप्त था। कांग्रेस के दिसम्बर 1929 के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज्य’ के लक्ष्य को घोषित करने के बाद भारतीयों में आशा एवं उल्लास की भावना भर गयी। महात्मा गाँधी ने अपने पत्र ‘यंग इण्डिया’ के माध्यम से वायसराय लॉर्ड इरविन के समक्ष ग्यारह सूत्री माँग रखी।

इन माँगों को ब्रिटिश सरकार द्वारा स्वीकृत न किए जाने पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने का निश्चय किया गया। इन माँगों में लगान में कमी करना, सैन्य व्यय में कमी करना, नमक कर समाप्त करना, रुपये की विनिमय दर घटाना, विदेशी कपड़ों के आयात को नियन्त्रित करना, नशीली वस्तुओं का विक्रय बन्द करना, राजनीतिक कैदियों को छोड़ देना आदि थी। वायसराय इरविन द्वारा इन माँगों को अनदेखा किए जाने पर सविनय अवज्ञा का मार्ग अपनाया गया। कांग्रेस कार्यकारिणी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ करने को कार्य गाँधी को सौंप दिया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का आरम्भ तथा दाण्डी – यात्रा:
12 मार्च, 1930 को गाँधी ने अपने चुने हुए 78 समर्थकों के साथ साबरमती आश्रम से दाण्डी के लिए पदयात्रा आरम्भ कर दी। 240 मील की पदयात्रा चौबीस दिन में कर गाँधी अपने सहयोगियों के साथ दाण्डी पहुँचे। 6 अप्रैल, 1930 को समुद्र तट से मुट्ठी भर नमक हाथ में लेकर नमक कानून तोड़ा। नमक कानून का तोड़ना इस बात का प्रतीक था कि भारतीय अब ब्रिटिश कानूनों को मानने को तैयार नहीं हैं। देश के कई भागों में नमक कानून तोड़ा गया। सुभाष चन्द्र बोस ने गांधी की इस पद यात्रा की तुलना नेपोलियन की एलबा से पेरिस मार्च से की।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का कार्यक्रम

इस आन्दोलन के कार्यक्रमों में निम्न प्रमुख थे नमक कानून का उल्लंघन करना एवं स्वयं नमक बनाना, महिलाओं द्वारा शराब, अफीम एवं विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना देना, सूत कातना, विदेशी वाहनों की होली जलाना, छात्रों द्वारा सरकारी स्कूल-कालेज छोड़ना, सरकारी सेवाओं से इस्तीफा देना, छुआछूत त्यागना आदि।

इस आन्दोलन में प्रदर्शन, हड़ताल, बहिष्कार, धरने आदि में बहुत बड़ी संख्या में युवाओं, महिलाओं, किसानों एवं मजदूरों ने सक्रिय भागीदारी निभाई। प्रमुख नेता महात्मा गाँधी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू सहित हजारों सत्याग्रही बन्दी बनाए गए। महाराष्ट्र, कर्नाटक एवं मध्य भारत में वन नियमों का उल्लंघन किया गया। समुद्र तट से दूर बिहार में लोगों में चौकीदारी कर देने से मना कर दिया गया। चौकीदार गाँव के रक्षक होते थे। ये सरकार की ओर से गुप्तचरी भी किया करते थे। उत्तर प्रदेश में लगान देने का आन्दोलन चलाया गया। चन्द्र सिंह गढ़वाली की अपील पर सैनिकों ने पेशावर के आन्दोलनकारियों पर गोली चलाने से मना कर देश-प्रेम प्रदर्शित किया।

शोलापुर में आन्दोलनकारियों ने कई अंग्रेजी संस्थानों को जलाकर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। यहाँ आन्दोलन कारियों ने ब्रिटिश राज समाप्त कर प्रशासन की बागडोर अपने हाथ में लेकर एक प्रकार से समानान्तर सरकार स्थापित कर ली। शोलापुर शहर लगभग एक सप्ताह तक आन्दोलनकारियों के हाथ में रहा। पूर्वोत्तर सीमान्त क्षेत्र में नागाओं ने ‘यदुनांग’ के नेतृत्व में ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध आन्दोलन किया।

यदुनांग को फाँसी की सजा दी गयी। यदुनांग के बाद नागरानी गैडनल्यु (गिडालू) के नेतृत्व में विद्रोह हुआ। छोटी सी उम्र की रानी को अंग्रेजों द्वारा आजीवन कारावास की सजा दी गयी। देश की इस वीरांगना को भारत की स्वतन्त्रता के बाद ही मुक्ति मिली। मुस्लिमों की भागीदारी उस आन्दोलन में 1920 के असहयोग आन्दोलन की तुलना में कम थी फिर भी पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के अब्दुल गफ्फार खान के संगठन ‘खुदाई खिदमतगार’ ने इस आन्दोलन में प्रमुख भागीदारी निभाई।

ब्रिटिश सरकार के घोर दमन के बाद भी यह जन-आन्दोलन व्यापक होता चला गया। इसी बीच भारतीय संवैधानिक सुधारों के सम्बन्ध में विचार करने के लिए लन्दन में प्रथम गोलमेज सम्मेलन नवम्बर, 1930 को आरम्भ हुआ। कांग्रेस ने इस सम्मेलन में भाग नहीं लिया। ब्रिटिश सरकार ने कांग्रेस से बात करने के उद्देश्य से गाँधी सहित कांग्रेस के नेताओं को 26 जनवरी, 1931 को रिहा कर दिया।

1. गाँधी – इरविन समझौता (मार्च, 1913 ई.):
लम्बी बातचीत के बाद 5 मार्च, 1931 ई. को गाँधी-इरविन समझौता हुआ। पहली बार कांग्रेस एवं सरकार को समानता के स्तर पर रखा गया। गाँधी-इरविन समझौते को दिल्ली पैक्ट’ भी कहा जाता है। गाँधी-इरविन समझौते के अन्तर्गत ब्रिटिश सरकार ने हिंसात्मक कार्यों में लिप्त बन्दियों के अतिरिक्त सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा करने एवं उनकी सम्पत्ति को वापस करने की बात मान ली।

सरकार ने समुद्रतटीय इलाकों में रहने वाले ग्रामीणों को घरेलू उपयोग के लिए नमक बनाने का अधिकार दिया। जिन सरकारी कर्मचारियों ने त्यागपत्र दिया था, उनके साथ नरमी बरतने की बात सरकार ने मानी। भारतीयों को शान्तिपूर्ण धरना दिए जाने का अधिकार दिया गया। इन आश्वासनों के बदले कांग्रेस लन्दन में होने वाले दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने पर सहमत हो गई।

2. द्वितीय गोलमेज सम्मेलन:
गाँधी जी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने के लिए लन्दन गये। इस सम्मेलन में ब्रिटिश को कोई भी प्रस्ताव स्वीकार करने योग्य नहीं था। इस कारण महात्मा गाँधी दिसम्बर, 1931 में भारत वापस आ गये। लन्दन के द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के समय सरकार ने गाँधी – इरविन समझौते के विपरीत भारत में दमन – चक्र जारी रखा।

3. सविनय अवज्ञा आन्दोलन को पुनः आरम्भ:
महात्मा गाँधी ने भारत आकर इरविन के स्थान पर नियुक्त नये वायसराय विलिंगटन से मिलकर बातचीत करने का प्रयास किया किन्तु उनका प्रयास असफल रहा ऐसी परिस्थिति में 3 जनवरी, 1932 को गाँधी ने पुनः सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया।

कांग्रेस ने लन्दन में 1932 ई. में तीसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग नहीं लिया। आन्दोलन पुनः आरम्भ करने पर ब्रिटिश सरकार ने गाँधी को जेल में बन्द कर दिया। गाँधी ने जेल में अनशन शुरू कर दिया। गाँधीजी की बिगड़ती हालत को देखते हुए सरकार ने 23 अगस्त, 1933 ई. को उन्हें जेल से रिहा कर दिया। जेल से रिहा होने के बाद गाँधी राजनीति से अलग हो गये और अछूतोद्धार के कार्यक्रम में लग गये। 18 मई, 1934 को पटना में कांग्रेस की बैठक में बिना शर्त सविनय अवज्ञा आन्दोलन समाप्त कर दिया।

सविनय अवज्ञा आन्दोलन का महत्व

इस आन्दोलन ने बहुत बड़े सामाजिक वर्ग में राजनीतिक चेतना जागृत की। महिलाओं, युवाओं मजदूरों, किसानों एवं कम पढ़े – लिखे ग्रामीण लोगों ने भी इस आन्दोलन में भागीदारी निभाई। इसे देखकर अंग्रेज भी आश्चर्य करने लगे। बंगाल के पुलिस विभाग के आई. जी. ने कहा, “मुझे इस बात का कतई अन्दाजा नहीं था कि कांग्रेस को इस प्रकार से अज्ञानी और गंवार लोगों का भी सहयोग प्राप्त होगा।”

अवध के किसानों, महाराष्ट्र, मध्य भारत एवं कर्नाटक के जनजातीय समुदाय एवं महाराष्ट्र के मजदूरों ने जिस प्रकार से इस आन्दोलन में सक्रियता दिखाई वह अद्भुत थी। इस आन्दोलन का आर्थिक प्रभाव महत्त्वपूर्ण था। आन्दोलन के दौरान ब्रिटेन से आयातित कपड़े की मात्रा घटकर एक तिहाई हो गयी।

प्रश्न 6.
भारत छोड़ो आन्दोलन किन परिस्थितियों में प्रारम्भ हुआ? इसके महत्व को बताइए।
उत्तर:
1. भारत छोड़ो आन्दोलन की परिस्थितियाँ एवं कारण:
भारत छोड़ो आन्दोलन भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन का एक ऐसा जन-आन्दोलन था जिसने ब्रिटिश सरकार की जड़े हिलाकर रख दीं। इस आन्दोलन ने भारत की स्वतन्त्रता प्राप्ति में एक नई दिशा प्रदान की।

2. क्रिप्स मिशन की असफलता:
मार्च, 1942 के क्रिप्स मिशन की असफलता ने भारतीय जनता को निराश कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कीमतों में वृद्धि एवं आवश्यक वस्तुओं की कमी के कारण भारतीय जनता में असन्तोष की भावना बढ़ गयी थी। ब्रिटेन द्वितीय विश्वयुद्ध में मलाया, सिंगापुर और बर्मा में पीछे हट रहा था। जापान ने इन पर अधिकार कर लिया था। ऐसे समय में महात्मा गाँधी ने अपने पत्र ‘हरिजन’ में अंग्रेजों से भारत छोड़ने की बात करते हुए लिखा कि भारत में अंग्रेजों की उपस्थिति जापानियों को भारत पर आक्रमण करने का निमन्त्रण है।

गाँधी ने अंग्रेजों से भारत को ईश्वर के हाथों में अथवा अराजकता में छोड़ने की बात कही। गाँधी ने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध अहिंसक आन्दोलन आरम्भ करने का निश्चय किया। अबुल कलाम आजाद एवं जवाहर लाल नेहरू इसके पक्ष में नहीं थे। उन्हें महात्मा गाँधी की यह योजना अव्यावहारिक लग रही थी। गाँधी ने कहा “भारत की बालू से एक ऐसा आन्दोलन पैदा करेंगे जो खुद कांग्रेस से भी बड़ा होगा।”

3. वर्धा प्रस्ताव (14 जुलाई, 1942 ई.):
कांग्रेस कार्य समिति ने वर्धा में हुई 14 जुलाई, 1942 ई. को अपनी बैठक में महात्मा गांधी के अहिंसक संघर्ष के कार्यक्रम को स्वीकृति प्रदान कर दी। अगस्त में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में इस प्रस्ताव का अनुमोदन होना था।

4. भारत छोड़ो प्रस्ताव:
7 अगस्त, 1942 को बम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में एक प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ का यह प्रस्ताव पास किया गया। 8 अगस्त, 1942 को बम्बई के ग्वालिया टैंक में एक ऐतिहासिक सभा में महात्मा गांधी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। उन्होंने कहा, “मैं आपको छोटा-सा मन्त्र दे रहा हूँ आप इसे अपने दिलों में सँजोकर रख लें और हर एक साँस में इसका जाप करें।

वह मन्त्र हैं ‘करो या मरो’ हम या तो भारत को स्वतन्त्र करायेंगे या इस प्रयास में मारे जाएँगे, मगर हम अपनी पराधीनता का स्थायित्व देखने के लिए जिन्दा नहीं रहेंगे।” गाँधीजी वायसराय से मिलकर कांग्रेस के प्रस्ताव को स्वीकार करवाना चाहते थे। उनका यह मानना था कि इसमें दो-तीन सप्ताह लग जाएँगे।

भारत छोड़ो आन्दोलन का विस्तार

इसके पहले कि कांग्रेस आन्दोलन चलाती, 9 अगस्त, 1942 को प्रात: ही गांधी एवं दूसरे कांग्रेस नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। कांग्रेस को एक बार पुनः गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया। महात्मा गाँधी और सरोजिनी नायडू को पूना के आगा खाँ पैलेस में एवं कांग्रेस के अन्य नेताओं को अहमदनगर दुर्ग में नजरबन्द कर दिया गया। राजेन्द्र प्रसाद बम्बई नहीं आए थे, इसलिए उन्हें पटना में गिरफ्तार कर नजरबन्द कर दिया। इस आन्दोलन की कोई निश्चित योजना तैयार नहीं की गयी थी। कांग्रेस के प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी से जनता नेतृत्व विहीन हो गयी।

राष्ट्रीय नेताओं की गिरफ्तारी से जनाक्रोश फैल गया। देश में बम्बई, अहमदनगर, पूना, दिल्ली, कानपुर, इलाहाबाद, पटना आदि प्रमुख शहरों में बड़े-बड़े जुलूस निकाले गए। स्कूल, कॉलेज एवं कारखानों में हड़तालें की गयौँ। स्थान – स्थान पर स्वतः स्फूर्त आन्दोलन होने लगे। ब्रिटिश दमन चक्र से आक्रोशित जनता हिंसात्मक कार्यवाहियों में लिप्त हो गयी। भीड़ में ब्रिटिश सत्ता के प्रतीकों पुलिस थाने, डाकघर, न्यायालय, रेलवे स्टेशन आदि स्थानों पर आक्रमण किया।

सार्वजनिक भवनों पर तिरंगा फहराया जाने लगा। रेल की पटरियाँ उखाड़ने, पुल उड़ा देने एवं टेलीफोन व तार की लाइनें काट देने का सिलसिला चलता रहा। सरकारी अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों एवं मुसाफिरों पर हमले हुए।समाजवादी अच्युत पटवर्धन, जयप्रकाश नारायण, डॉ. राममनोहर लोहिया, श्रीमती अरूणा आसफ अली ने भूमिगत होकर इस आन्दोलन में योगदान दिया।

जयप्रकाश नारायण 9 नवम्बर, 1942 को पाँच लोगों के साथ हजारीबाग सेण्ट्रल जेल से भाग निकले। उन्होंने ‘आजाद दस्ता’ बनाकर अपना जन क्रान्ति का कार्यक्रम सम्पन्न करने का प्रयास किया। लोगों ने भूमिगत नेताओं को छुपने की जगह दी। सुमति मोरारजी ने अच्युत पटवर्धन के लिए प्रतिदिन एक नयी कार की व्यवस्था की और गिरफ्तार होने से बचाया। राममनोहर लोहिया कांग्रेस रेडियो पर बोलते रहे। अरूणा आसफ अली बम्बई में सक्रिय रहीं। उन्होंने ग्वालिया टैंक मैदान में तिरंगा फहराया।

1. समानान्तर सरकार की स्थापना:
आन्दोलनकारियों ने कई स्थानों पर समानान्तर सरकार स्थापित कर ली। बलिया में पहली ऐसी सरकार चित्त पाण्डे के नेतृत्व में बनी। उनकी सरकार ने कलकत्ता के कलक्टर के सारे अधिकार छीनते हुए सभी गिरफ्तार नेताओं को रिहा कर दिया। बंगाल के मिदनापुर में 17 दिसम्बर, 1942 से सितम्बर, 1944 तक जातीय सरकार के रूप में राष्ट्रीय सरकार रही। जातीय सरकार ने आपसी समझौता करने के लिए अदालतें बनाईं, स्कूलों को अनुदान दिए और कई राहत के कार्य चलाए। महाराष्ट्र के सतारा की समानान्तर सरकार सबसे अधिक दीर्घजीवी रही।

नाना पाटिल इसके प्रमुख नेता थे। यहाँ की सरकार 1945 ई. तक चलती रही। 10 फरवरी, 1943 में गाँधी ने जेल से उपवास आरम्भ कर दिया। अंग्रेज सरकार गाँधी पर दबाव डाल रही थी कि वे भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान हुई हिंसात्मक गतिविधियों की भर्त्सना करें। गांधी का मानना था कि आन्दोलन के हिंसक रूप के लिए ब्रिटिश सरकार उत्तरदायी थी। गाँधी की रिहाई की माँग उठने लगी।

वायसराय की कार्यकारिणी परिषद् के तीन सदस्य एम. एस. एनी., एन. आर. सरकार एवं एच. पी. मोदी ने इस्तीफा दे दिया। एक तरफ भारतीय जनता के विभिन्न वर्ग गाँधी की रिहाई की माँग कर रहे थे तो दूसरी ओर ब्रिटिश सरकार गाँधी के अन्तिम संस्कार की तैयारियाँ कर रही थी। गाँधी को बीमारी के आधार पर 6 मई, 1944 को रिहा कर दिया गया।

2. आन्दोलन का दमन:
कांग्रेस के नेताओं ने आन्दोलन के समय हुई हिंसात्मक गतिविधियों का उत्तरदायित्व स्वीकार नहीं किया। इस आन्दोलन को कुचलने के लिए सरकार ने बड़ी क्रूरता दिखाई। प्रदर्शनकारियों पर गोलियाँ चलाई गर्थी। उन पर बम बरसाये गए। बन्दी बनाए गए आन्दोलनकारियों को बहुत यातनाएँ दी गयीं। विद्रोही गाँवों से भारी जुर्माना वसूला गया। 1942 ई. के अन्त तक साठ हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका था। पुलिस एवं सेना की गोलाबारी में दस हजार से भी अधिक लोग मारे गए।

3. मुस्लिम लीग की निरपेक्षता की नीति:
मुस्लिम लीग ने इस आन्दोलन में निरपेक्षता की नीति अपनाई। मुस्लिम लीग के मुहम्मद अली जिन्ना ने मुसलमानों से अपील की कि वे इस आन्दोलन से बिल्कुल अलग रहें। जब कांग्रेस के प्रमुख नेता जेल में थे तब जिन्ना ने मुस्लिम लीग को 23 मार्च, 1943 को ‘पाकिस्तान दिवस’ मनाने को कहा। साम्यवादियों ने कांग्रेस से भारत छोड़ो आन्दोलन वापस लेने को कहा। कम्युनिस्ट पार्टी ने अंग्रेज सरकार का सहयोग किया।

भारत छोड़ो आन्दोलन का महत्व

नेतृत्व विहीन यह आन्दोलन भारतीय जनता के संघर्ष एवं बलिदान का अनूठा उदाहरण है। इसकी व्यापकता को देखते हुए अंग्रेज यह समझने लगे कि भारत में अंग्रेज अधिक दिनों तक शासन नहीं कर सकते। युवाओं, महिलाओं, किसानों आदि विभिन्न वर्गों ने बड़ी वीरता से इस आन्दोलन में भाग लिया और यातनाएँ सहन क। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, केरल आदि के किसान सक्रिय रहे। बड़े जर्मीदारों में दरभंगा के राजा ने सरकार को सहायता नहीं दी और गिरफ्तार लोगों की मदद की।

अरूणा आसफ अली एवं सुचेता कृपलानी जैसी महिलाओं ने भूमिगत होकर कार्य किया। उषा मेहता कांग्रेस रेडियो चलाने वाले समूह की सदस्य थीं। मजदूर वर्ग की भूमिका इस आन्दोलन में सक्रिय थी। अहमदाबाद, बम्बई, जमशेदपुर आदि में कारखाने कई दिनों तक बन्द रहे। अहमदाबाद में लगभग साढ़े तीन महीने कारखाने बन्द रहे। विद्यार्थियों ने इस आन्दोलन का सन्देश गाँवों में घूम – घूम कर फैलाया।

इस आन्दोलन की सबसे बड़ी सफलता यही थी कि इसके परिणामस्वरूप भारत की स्वतन्त्रता की माँग राष्ट्रीय आन्दोलन की प्रथम माँग बन गयी। ब्रिटिश सरकार से अब सत्ता हस्तान्तरण पर ही बात की जानी थी। स्वतन्त्रता के लिए जनता बड़े से बड़ा त्याग करने को तैयार हो गयी।

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