RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 2 किशोरावस्था में विकास II: सामाजिक, संवेगात्मक एवं संज्ञानात्मक विकास

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 2 किशोरावस्था में विकास II: सामाजिक, संवेगात्मक एवं संज्ञानात्मक विकास

RBSE Class 12 Home Science Chapter 2 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें
(i) किशोरों के सबसे घनिष्ठ मित्र होते हैं –
(अ) माता – पिता
(ब) सखा
(स) पड़ौसी
(द) मर्यादित
उत्तर:
(ब) सखा

(ii) नवकिशोरों का व्यवहार यौवनारम्भ काल की अपेक्षा होता है –
(अ) बातूनी
(ब) कोलाहलपूर्ण
(स) बेधड़क
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(द) इनमें से कोई नहीं

(iii) किशोरों का सबसे बड़ा समूह कहलाता है –
(अ) युवक समूह
(ब) मंडली
(स) भीड़
(द) सखा
उत्तर:
(स) भीड़

(iv) हमारी संस्कृति में जीवन साथी के चुनाव का विशेषाधिकार होता है –
(अ) युवक
(ब) युवती
(स) माता – पिता
(द) (अ) तथा (स)
उत्तर:
(द) (अ) तथा (स)

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(v) किशोरों में आकुलता का कारण है –
(अ) परीक्षा परिणाम
(ब) समूह के सामने भाषण देने की झिझक
(स) लोकप्रियता
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी

(vi) उत्तर किशोरावस्था में ईर्ष्या एवं स्पर्धा की प्रारूपिक प्रतिक्रिया होती है –
(अ) शारीरिक
(ब) शाब्दिक
(स) मानसिक
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) शाब्दिक

(vii) किशोर कब अपने संवेगों पर नियंत्रण करना सीख जाता है?
(अ) यौवनारम्भ
(ब) पूर्व किशोरावस्था
(स) उत्तर किशोरावस्था
(द) उपरोक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(स) उत्तर किशोरावस्था

(viii) किशोर संज्ञानात्मक विकास के………सोपान पर होते हैं –
(अ) प्रथम
(ब) द्वितीय
(स) तृतीय
(द) चतुर्थ
उत्तर:
(द) चतुर्थ

(ix) किशोर……..ढंग से समस्याओं पर विचार करने लगता है –
(अ) परिकल्पनात्मक
(ब) मूर्त
(स) वास्तविक
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) परिकल्पनात्मक

(x) उत्तर किशोरावस्था में किशोर अपने बड़ों के साथ सहायक बनकर कार्य –
(अ) करना चाहते हैं।
(ब) नहीं करना चाहते हैं।
(स) कभी – कभी करना चाहते हैं।
(द) तय नहीं कर पाते।
उत्तर:
(ब) नहीं करना चाहते हैं।

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) उत्तर किशोरावस्था में मित्रों की……….का कम महत्व होता है व उनके………होने का अधिक।
(ii) किशोरावस्था के अंत तक लड़के और लड़कियाँ दोनों ही………मित्रों के साथ अधिक समय बिताने लगते
(iii) चौदह वर्ष की आयु तक लड़कियाँ नेता के रूप में………को चुनना पसन्द करती हैं।
(iv) नवकिशोर में यौवनारम्भ काल में पाई जाने वाली नकारात्मक अभिवृत्तियों का स्थान……..अभिवृत्तियाँ लेने लगती हैं।
(v)……. समूह एकाकी प्रवृत्ति वाले किशोरों को सामाजिक जीवन बिताने का अवसर प्रदान करते हैं।
(vi) नवयुवक…….. और ……… व्यक्तित्व वाली लड़कियाँ पसन्द करते हैं।
(vii) किशोरावस्था में क्रोध उद्दीपन करने वाली परिस्थितियाँ अधिकांशतः …….. होती हैं।
(viii) उम्र बढ़ने के साथ – साथ भय का स्थान……..ले लेती हैं।
(ix) किशोर संज्ञानात्मक विकास की………अवस्था में आते हैं।
(x) इस समय किशोरों के सोच-विचार में …….. आ जाता है।
(xi)……..की प्रक्रिया द्वारा किशोर विविध रास्तों से एक ही लक्ष्य तक पहुँचने में सक्षम होते हैं।
(xii) तरुण किशोरों की बौद्धिक प्रक्रिया ………तथा ………पर आधारित होती है।

उत्तर:
(i) संख्या, उपयुक्त
(ii) विषमलिंगीय
(iii) लड़कों
(iv) विधानात्मक
(v) संगठित
(vi) सुखद, प्रसन्न
(vii) सामाजिक
(viii) आकुलताएँ
(ix) अमूर्त संक्रियात्मक
(x) तर्क
(xi) पारस्परिक सम्बद्धता
(xii) मात्रात्मकता व गुणात्मकता, प्रभाव।

प्रश्न 3.
मित्र के रूप में किशोर किन व्यक्तियों को अपनाते हैं?
उत्तर:
किशोर मित्र के रूप में उन्हीं व्यक्तियों को अपनाते हैं –

  1. जो उनके समवयस्क हों।
  2. जिनकी पसंद व तौर – तरीके उनके अनुरूप हों।
  3. जिनके अन्दर उनकी पसंद के व्यक्तित्व वाले लक्षण हों।
  4. जो उन्हें समझते – बूझते हों।
  5. जो उनके आदर्शों व मूल्यों के अनुरूप हों।
  6. जो उनके समान सामाजिक – आर्थिक स्थिति के हों।
  7. जिनसे इन्हें सुरक्षा की भावना मिलती हो।

प्रश्न 4.
किशोरों में सामाजिक व्यवहार का विकास किस प्रकार होता है?
उत्तर:
बालक जैसे – जैसे बड़ा होता है उसका सामाजिक दायरा बढ़ने लगता है तथा उसके व्यक्तित्व के विकास में समाज का हाथ उत्तरोत्तर महत्वपूर्ण हो जाता है। बालक की रुचियाँ और अनुभव विशाल हो जाता है। बड़े पैमाने पर सामाजिक सम्पर्क रखने से नव किशोर अपने क्रियाकलापों को व्यवस्थित करना, नेताओं को चुनना, छोटे पैमाने पर युवाओं की भाँति व्यवहार करना, विषम – लिंगियों के साथ व्यवहार रखना, वार्तालाप करना, नृत्य करना व सामाजिक स्वीकृत तरीके से व्यवहार करना सीख लेते हैं।

नव किशोर में यौवनारंभ में पाई जाने वाली नकारात्मक अभिवृत्तियाँ सकारात्मक अभिवृत्तियों में बदल जाती हैं। उसका व्यवहार मर्यादित व संयत होने लगता है। किशोरावस्था के अंत तक असहिष्णुता की भावना भी समाप्त हो जाती है। अब किशोर सामाजिक परिस्थितियों से अच्छा समायोजन कर लेता है और लड़ने – झगड़ने की आदत उसके व्यवहार में बाधा उत्पन्न नहीं करती है।

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प्रश्न 5.
एक किशोर में सामाजिक विकास क्यों अनिवार्य है? समझाइए।
उत्तर:
किशोर का सामाजिक विकास होना अति आवश्यक है जो किशोर सामाजिक परिपक्वता प्राप्त कर लेते हैं वे युवा जीवन में समायोजन करने के लिये तैयार रहते हैं तथा स्वयं निर्णय कर सकते हैं। अपना एवं अपने परिवार का पालन-पोषण कर सकते हैं एवं समाज में सम्मान प्राप्त कर सकते हैं। इसके लिए किशोर को समाज के आदर्शों एवं मूल्यों को समझना, विभिन्न व्यक्तियों के व्यवहारों, विचारों, भावनाओं को समझना व समायोजन करना बहुत आवश्यक है। सामाजिक विकास के कारण ही किशोर अपने नागरिक कर्तव्यों को स्वीकार करते हैं एवं उन्हें निष्ठा के साथ पूरा करते हैं।

प्रश्न 6.
यौवनारंभ में संवेगात्मक अस्थिरता क्यों होती है? समझाइए।
उत्तर:
बाल मनोवैज्ञानिक जी० स्टेनले हॉल ने किशोरावस्था को “तूफान और तनाव” की अवस्था बताया है। जीवन चक्र के इस पड़ाव में किशोर की ग्रन्थियों से होने वाले स्रावण के कारण शारीरिक परिवर्तनों के साथ – साथ उनमें संवेगात्मक अस्थिरता व तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। किशोरों के संवेग अधिकतर तीव्र, अस्थिर, अनियन्त्रित अभिव्यक्ति वाले तथा विवेकशून्य होते हैं।

यौवनारंभ में संवेगात्मक अस्थिरता, किशोरों में बदलती रुचियों से उत्पन्न उलझन, ग्रन्थियों व शारीरिक परिवर्तनों से उत्पन्न बदलाव, स्वयं को शारीरिक दृष्टि से सामान्य से हीन समझने की प्रवृत्ति, स्वयं की योग्यताओं पर संशय या आत्मविश्वास की कमी अन्तर्द्वन्द्व की स्थिति के कारण होती है। नवकिशोरों को बहुत कम बातों से ही प्रसन्नता का अनुभव होता है। साधारण सी साधारण बात उन्हें अपनी आलोचना लगती है। ये किशोर उदास एवं खिन्न रहकर अपनी संवेगात्मक अनुक्रियाएँ प्रकट करते हैं। कभी – कभी वे रोने भी लगते हैं।

प्रश्न 7.
किशोर एवं किशोरी द्वारा संवेग प्रदर्शन में भिन्नता को समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था के अंत तक लड़के और लड़कियाँ दोनों ही समलिंगीय मित्रों की अपेक्षा विषमलिंगीय मित्रों के साथ अधिक समय व्यतीत करने लगते हैं। लड़के हास – परिहास की मनोवृत्ति वाली तथा साहसी लड़कियों को पसंद करते हैं। तो लड़कियाँ सदैव लड़कों को पौरुष युक्त, साफ-सुथरा और परिहास वृत्ति वाला होना पसंद करती हैं।

लैंगिक सम्बन्धों में लड़कियाँ लड़कों से अधिक आक्रामक होती हैं। आजकल के नवयुवक सुखद और प्रसन्न व्यक्तित्व, स्वच्छता, विश्वसनीयता, दूसरों का ध्यान रखने वाले गुण व अच्छी आकृति को अधिक महत्व देते हैं जबकि नवयुवतियाँ अच्छे तौर-तरीके वाले, स्वच्छ रहने वाले, आकर्षक व उपयुक्त कपड़े पहनने वाले, निर्भीक, वाक्पटु नवयुवकों को पसंद करती हैं।

लड़कियाँ नेता के रूप में लड़कों का चुनाव पसंद करती हैं जबकि किशोर किशोर को ही अपना नेता बनाना पसंद करते हैं। क्रोधित होने पर किशोर खिंचा-खिंच सा रहता है तथा किसी भी प्रकार की बदतमीजी कर सकता है परन्तु किशोरी ऐसा नहीं कर पाती हैं। ईष्र्यालु किशोर अपनी ईष्र्या को सूक्ष्म शाब्दिक अनुक्रिया जैसे व्यंग्यात्मक टीका – टिप्पणी, उपहास या निंदा के रूप में प्रदर्शित करते हैं, जबकि किशोरियाँ कभी-कभी ईष्यवश या उपेक्षित महसूस करने पर रोने लगती हैं या चिल्लाने लगती हैं। किशोरियाँ हर्ष से प्रायः खिलखिलाती हैं जबकि किशोर अट्टहास करते हैं। किशोर के मन में जिज्ञासाएँ अधिक होती हैं जबकि किशोरियों में इतनी अधिक नहीं होती हैं।

प्रश्न 8.
स्पर्धा किशोरावस्था में अपचार का एक कारण है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था में मित्रों से आगे बढ़ने की भावना जागृत होती है तथा उत्तर किशोरावस्था में किशोर अपने से अच्छी सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले मित्र से स्पर्धा नहीं करते, बल्कि वे अपने को बड़ा दुर्भाग्यशाली व मित्र को भाग्यशाली मानते हैं। स्पर्धा का उद्दीपन व्यक्ति विशेष की वस्तुओं द्वारा होता है। प्रत्येक किशोर यह चाहता है कि उसके पास भी अपने मित्र के समान सभी सुविधाएँ हों। वे यह भी चाहते हैं कि उनकी वस्तुएँ भी उतनी ही अच्छी हों जितनी कि उनके मित्र की वस्तुएँ हैं। किशोर दूसरे की वस्तुओं को देखकर उन पर छींटाकशी करते हैं या उनका मजाक उड़ाते हैं तथा अपनी चीजों को अधिक आकर्षक सिद्ध करते हैं। कभी-कभी ईष्र्या व स्पर्धा के कारण वे गलत आचरण (चोरी करना) भी सीख जाते हैं। इस प्रकार किशोर अपचार के पीछे स्पर्धा का भाव ही छुपा होता है।

प्रश्न 9.
किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास की विशिष्ट उपादेयता को समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास की विशिष्ट उपादेयता – संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य है, वे सभी मानसिक क्रियाएँ तथा व्यवहार जिनके द्वारा किशोर सांसारिक गतिविधियों को ग्रहण करता है तथा इनके सम्बन्ध में चिंतन करता है। किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास की विशिष्ट उपादेयता हम निम्न बिन्दुओं के अन्तर्गत समझ सकते हैं –

  1. किशोर संज्ञानात्मक विकास के साथ – साथ अपनी स्वयं की एक अलग अनोखी भाषा विकसित कर लेते हैं जो दो भाषाओं का सम्मिलित रूप होती हैं। एक ही वाक्य को आंशिक रूप से वह एक भाषा में बोलते हैं तथा आंशिक रूप से दूसरी भाषा में।
  2. किशोर अपने स्वयं के काल्पनिक प्रतिमान स्थापित कर लेते हैं तथा इन प्रतिमानों के परिप्रेक्ष्य में वे स्वयं को बड़ा
    सुधारकर्ता समझते हैं।
  3. किशोर यह समझने लगते हैं कि बड़ों का व्यवहार उनके प्रति न्यायपूर्ण नहीं है जिसके परिणामस्वरूप वे काल्पनिक द्रोही | हो जाते हैं। युवावस्था तक पहुँचते – पहुँचते विद्रोह की यह भावना स्वयं समाप्त हो जाती है।
  4. संज्ञानात्मक विकास के कारण किशोरों का दृष्टिकोण तीव्र रूप से आलोचनात्मक हो जाता है। वे अपने आसपास के . वातावरण व लोगों को तार्किक तथा विश्लेषणात्मक रूप से परखते हैं।
  5. किशोर अपने स्वयं के तर्क तथा अनुभवों के आधार पर कार्य करते हैं। अपने बड़ों का सहायक बनकर उन्हें कार्य करना अच्छा नहीं लगता है।
  6. संज्ञानात्मक विकास के कारण बौद्धिक क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ किशोरों में सृजनात्मकता का भी विकास होता है। यदि घर तथा विद्यालय का वातावरण किशोरों के प्रति लचीला हो तो उनकी सृजनात्मकता का पूर्ण विकास हो सकता है।
  7. किशोर संज्ञानात्मक विकास के साथ – साथ अपने दीर्घावधि के मूल्य भी सुनिश्चित करने लगते हैं तथा उनमें तर्क-वितर्क, मूल्य तथा अभिवृत्तियों का भी विकास होने लगता है।
  8. किशोर अपने रंग, रूप तथा सौन्दर्य के प्रति अत्यधिक संवेदनशील तथा जागरूक हो जाते हैं।
  9. संज्ञानात्मक विकास के साथ – साथ किशोरों की दिवास्वप्न देखने की प्रवृत्ति में भी वृद्धि हो जाती है। आयु बढ़ने के साथ-साथ किशोरों की परिकल्पनाएँ सुनिश्चित तथा धनात्मक रूप लेने लगती हैं। दिवास्वप्नों में ही किशोर अपनी समस्याओं का संभावित विकल्प जाँच लेते हैं।

प्रश्न 10.
किशोरों में आकार, संख्या, रंग व समय की पारस्परिक संबद्धता का विकास कैसे होता है? समझाइए
उत्तर:
किशोरों में आकार, संख्या, रंग व समय की पारस्परिक संबद्धता का विकास:
किशोरों में मुंहजबानी ही गणित, विज्ञान, तर्क – वितर्क के कई सवाल तथा समस्याओं को सुलझाने की क्षमता का विकास हो जाता है। किशोरावस्था आते – आते बालकों की सोचने – विचारने की क्षमता में क्रमबद्धता आ जाती है जिसके फलस्वरूप किशोरों में आकार, संख्या, रंग तथा समय की पारस्परिक सम्बद्धता का विकास होता है। उदाहरण के लिए छोटे बालक को ड्राइंग करने के लिए देने पर वह कुछ भी मनपसंद चित्र बनाकर उनमें अपनी पसंद के रंग भरेगा चाहे वे रंग वहाँ उपयुक्त हों या नहीं।

किशोर को ड्राइंग का विषय दिए जाने पर वह विषय – वस्तु पर मनन करके मस्तिष्क में उसका चित्रण व उसमें भरे जाने वाले रंगों का एक खाका खींचेगा, फिर कागज पर हल्के हाथ से बाह्य रूपरेखा बनाएगा। रूपरेखा बनने पर उनमें क्रमिक रूप से हल्के से रंग भरेगा और वास्तविक व आकर्षक रंग – सज्जा के बाद अन्तिम परिसज्जा प्रदान करेगा जिससे वह तस्वीर बहुत ही आकर्षक व वास्तविक प्रतीत हो।

प्रश्न 11.
संज्ञानात्मक विकास में वातावरण एवं माता-पिता की क्या भूमिका है?
उत्तर:
संज्ञानात्मक विकास में वातावरण एवं माता-पिता की भूमिका:
बालक के किसी भी प्रकार के विकास में वातावरण तथा माता – पिता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। संज्ञानात्मक विकास में भी वातावरण तथा माता-पिता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संज्ञानात्मक विकास के दौरान किशोरों का दृष्टिकोण तीव्र आलोचनात्मक हो जाता है तथा अपनी उस प्रवृत्ति के कारण किशोर अपने बड़ों तथा माता – पिता के मध्य तनाव तथा विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।

ऐसे में माता-पिता को किशोरों के इस सामयिक परिवर्तन को समझते हुए वातावरण को शांतिपूर्ण बनाए रखने की कोशिश करते हुए स्नेहपूर्वक किशो रोंको उचित – अनुचित तथ्यों के बारे में समझाना चाहिए। संज्ञानात्मक विकास के साथ-साथ किशोरों की सृजनात्मकता का भी विकास होता है। ऐसे में माता-पिता को किशोरों के प्रति उपेक्षापूर्ण तथा नकारात्मक रुख न अपनाते हुए लचीलापन रखना चाहिए तथा किशोरों को ऐसा वातावरण उपलब्ध कराना चाहिए जिससे वे अपनी सृजनात्मकता का अधिकतम विकास कर सकें।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 2 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें
(i) किशोरों के सबसे घनिष्ठ मित्र होते हैं।
(अ) माता – पिता
(ब) पड़ौसी
(स) सखा / मित्र
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) सखा / मित्र

(ii) किस अवस्था में जिज्ञासा के क्षेत्र बदल जाते हैं?
(अ) शैशवावस्था
(ब) किशोरावस्था
(स) प्रौढ़ावस्था
(द) वृद्धावस्था
उत्तर:
(ब) किशोरावस्था

(iii) नव किशोरों का व्यवहार यौवनारम्भ काल की अपेक्षा होता है –
(अ) बेधड़क
(ब) मर्यादित
(स) कोलाहलपूर्ण
(द) बातूनी
उत्तर:
(ब) मर्यादित

(iv) किशोर कब अपने संवेगों पर नियंत्रण करना सीख जाता है?
(अ) यौवनारम्भ
(ब) पूर्व – किशोरावस्था
(स) उत्तर – किशोरावस्था
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(स) उत्तर – किशोरावस्था

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(v) उत्तर – किशोरावस्था में ईष्र्या एवं स्पर्धा की प्रारूपिक प्रतिक्रिया होती है –
(अ) शारीरिक
(ब) शाब्दिक
(स) मानसिक
(द) ये सभी
उत्तर:
(ब) शाब्दिक

(vi) पूर्व संक्रियात्मक अवस्था का समय है –
(अ) जन्म से दो वर्ष तक
(ब) दो से सात वर्ष तक
(स) तीन से नौ वर्ष तक
(द) ग्यारह से सत्रह वर्ष तक
उत्तर:
(ब) दो से सात वर्ष तक

(vii) तरुण किशोरों की बौद्धिक प्रक्रिया आधारित होती है –
(अ) मात्रात्मकता पर
(ब) गुणात्मकता पर
(स) प्रभाव पर
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

(viii) किशोरों का दृष्टिकोण होता है –
(अ) आलोचनात्मक
(ब) विश्लेषणात्मक
(स) तार्किक
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

(ix) किशोरावस्था का संवेग है –
(अ) ईष्र्या
(ब) स्पर्धा
(स) जिज्ञासा
(द) ये सभी
उत्तर:
(द) ये सभी

(x) संज्ञान शब्द का तात्पर्य है –
(अ) जानना
(ब) समझना
(स) तर्क करना
(द) जिज्ञासा
उत्तर:
(अ) जानना

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(i) संज्ञानात्मक विकास की पूर्ण संक्रियात्मक अवस्था का बालक……….होता है।
(ii)……….के बालकों में काल्पनिक भय ज्यादा होते हैं।
(iii) पूर्व किशोरावस्था में बालकों तथा नवकिशोरों में……….का स्वरूप भिन्न होता है।
(iv) ……….को व्यापक परिवर्तनों की अवधि कहा जाता है।

उत्तर:
(i) स्वकेन्द्रित
(ii) बाल्यावस्था
(iii) क्रोध
(iv) किशोरावस्था।

प्रश्न 3.
यह कब कहा जा सकता है कि व्यक्ति सामाजिक दृष्टि से परिपक्व हो गया है? समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था है, जिसमें सम्पूर्ण सामाजिक विकास का अन्य अवस्थाओं से अधिक महत्व होता है। किशोर बालक – बालिकाओं के भीतर सामाजिक गुणों का आविर्भाव तथा सामाजिक परिपक्वता का विकास केवल इस दृष्टि से ही आवश्यक नहीं होता क्योंकि वे सामाजिक सफलताओं के इच्छुक होते हैं, बल्कि इसलिए भी इसकी आवश्यकता होती है कि बालक द्वारा किशोरावस्था में स्थापित समायोजन उसकी भावी प्रौढ़ावस्था की रूपरेखा को निर्धारित करता है। जब कोई व्यक्ति विभिन्न सामाजिक परम्पराओं व रीति-रिवाजों में आस्था रखता है और जब वह खुशी से अपने समुदाय के प्रतिबन्धों के साथ अपना कुशल समायोजन स्थापित कर पाता है तभी यह कहा जा सकता है कि वह व्यक्ति सामाजिक दृष्टि से परिपक्व हो गया है।

प्रश्न 4.
सामाजिक परिपक्वता का किशोर के व्यक्तित्व पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:

  •  सामाजिक परिपक्वता वाले किशोर परिवार के सदस्यों के प्रति स्नेह, निष्ठा एवं विचारशीलता प्रकट करते हैं।
  • वे नागरिक कर्तव्यों को स्वीकार करते हैं एवं उन्हें निष्ठापूर्वक पूर्ण करते हैं।
  • वे धर्म, रंग या जाति के आधार पर किसी के प्रति पूर्वाग्रह न रखते हुए सभी प्रकार के लोगों से अच्छा समायोजन कर लेते हैं।
  • वे अपने मित्रों को उनके मौलिक स्वरूप में अपनाते हैं तथा उनके साथ पूर्ण निष्ठा रखते हैं।
  • सामाजिक परिपक्वता प्राप्त करके किशोर युवा जीवन में समायोजन कर लेते हैं तथा वे भविष्य निर्माण के लिए तैयार रहते हैं।

प्रश्न 5.
किशोरावस्था में बालक किस प्रकार के तर्क-वितर्क, चिन्तन एवं परिकल्पनाएँ करते हैं? समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था में बालक विविध प्रकार के तर्क:
वितर्क, चिन्तन एवं परिकल्पनाएँ करने लगते हैं। किशोर किसी भी समस्या के समाधान के लिए विविध संभावित विकल्पों के बारे में सोचता है। उसके विचार अब वास्तविकता से संभावनाओं की ओर बढ़ते हैं। उदाहरण के लिए, किसी दिन पिता के ऑफिस से कुछ खराब मन:स्थिति में लौटने पर छोटा बालक तो कुछ घबरा – सा जाता है किन्तु किशोर ऐसी स्थिति में कई संभावित कारणों पर विचार करता है, जैसे – पिता का स्वास्थ्य ठीक नहीं है, पिता को ऑफिस में सहयोगी मित्रों से कुछ तनाव हो गया हो, उनको अपने अधिकारी से झगड़ा हो गया हो या पिता की पदोन्नति रह गयी हो आदि। इस प्रकार किसी भी निर्णय पर पहुँचने से पूर्व किशोर सभी काल्पनिक परिस्थितियों पर विचार करते हैं।

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प्रश्न 6.
किशोरावस्था में किशोर द्वारा समझी जाने वाली विभिन्न क्रियाओं जैसे – योग, पारस्परिक सम्बद्धता, व्यतिक्रम एवं निषेधीकरण को समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था में बालक अब विविध प्रकार की क्रियाएँ जैसे योग, पारस्परिक सम्बद्धता, व्यतिक्रम एवं निषेधीकरण करने लगता है। उदाहरण के लिए वह अब दो या अधिक वर्गों को आराम से जोड़कर एक बड़ा वर्ग बना लेता है। जैसे सभी वृद्ध पुरुष + सभी वृद्ध स्त्रियाँ = सभी वृद्ध। किशोर इसे व्यतिक्रम में भी समझ सकते हैं जैसे सभी वृद्ध = सभी वृद्ध पुरुष + सभी वृद्ध स्त्रियाँ। पारस्परिक सम्बद्धता की प्रक्रिया द्वारा वे विविध रास्तों से एक ही लक्ष्य तक पहुँचने में सक्षम होते हैं। वे जानते हैं कि (3×4) x 2 = 24 होता है तथा (2×3) X 4 भी 24 के ही बराबर होता है। निषेधीकरण की प्रक्रिया को इस उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है, माना कि कक्षा में कुल 25 विद्यार्थी हैं तथा एक दिन भारत बंद के कारण कक्षा में 25 विद्यार्थी अनुपस्थित रहे तो उस दिन कक्षा में कुल कितने विद्यार्थी उपस्थित रहे। किशोर इस प्रश्न का उत्तर देगा कि एक भी नहीं।

प्रश्न 7.
किशोरावस्था में किन – किन विशेषताओं का विकास होता है?
उत्तर:
किशोरावस्था में निम्न विशेषताओं का विकास होता है –

  • तार्किक चिन्तन की क्षमता
  • समस्या समाधान की क्षमता
  • वास्तविक-अवास्तविक में अन्तर समझने की क्षमता
  • वास्तविक अनुभावों को काल्पनिक परिस्थितियों में प्रक्षेपित करने की क्षमता
  • परिकल्पनाओं को विकसित करने की क्षमता।

प्रश्न 8.
भय एवं आकुलता में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भय एवं आकुलता में अन्तर:
भय:

  • किशोरावस्था में आते – आते बाल्यावस्था के भय का स्थान नए – नए भय जैसे – अन्धेरे में अकेले होने का भय, रात में अकेले बाहर जाने का भय एवं विद्यालय में अपने प्रदर्शन का भय आदि ले लेते हैं।
  • किशोर अपने डर को छिपाने का प्रयास करता है तथा अपने व्यवहार को औचित्य बताने के लिए बहाने ढूँढ़ता रहता है।

आकुलता:

  • उम्र के बढ़ने के साथ – साथ भय का स्थान आकुलताएँ ग्रहण करने लगती हैं जैसे – परीक्षा परिणाम की आकुलता, समूह के समक्ष भाषण देने की आकुलता, खेल प्रतियोगिता में धाक जमाने की आकुलता।
  • अधिकांश आकुलताएँ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से असमर्थता की भावना से उत्पन्न होती हैं

प्रश्न 9.
किशोरावस्था में उत्पन्न होने वाले संवेगों को संक्षिप्त रूप से स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किशोरावस्था के संवेग उत्तर बाल्यावस्था के ही होते हैं लेकिन उनकी तीव्रता में अन्तर पाया जाता है। किशोरावस्था में उत्पन्न होने वाले संवेग निम्न प्रकार हैं
1. क्रोध:
पूर्व – किशोरावस्था में बालकों तथा नवकिशोरों में क्रोध का स्वरूप भिन्न होता है। उत्तर – किशोरावस्था में क्रोध पूर्व – किशोरावस्था की अपेक्षा अधिक देर तक रहता है। इस अवस्था में क्रोध के प्राय: दो कारण होते हैं, पहला, यदि कोई काम करने की इच्छा में बाधा पहुँचाता है या अनचाही सलाह देने अथवा उस पर अनचाहा दबाव डालता है तो वह क्रोधित हो जाता है। दूसरे तरह की क्रिया जैसे विशेष समय में पढ़ने अथवा सोचने में बाधा पहुँचाने पर क्रोधित हो जाता है, लेकिन किशोरों में क्रोध की अभिव्यक्ति चलती रहती है। क्रोध के आवेश में जबान चलाना, गाली-गलौज करना हो सकता है।

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2. भय:
आकुलता एवं चिन्ता – लड़कों को जो भय बाल्यावस्था में सताते हैं, अब पूर्व – किशोरावस्था में उनमें कमी आती है। अब जो भय होते हैं वे सामाजिक क्षेत्र से सम्बन्धित होते हैं। वेश (1950) के अनुसार ये भय सर्प या भ्रममय जन्तुओं, मृत्यु, सत्ता, माता – पिता की डांट, पाठशाला की असफलता, धन – जन की हानि आदि से संबंधित होते हैं। इस अवस्था में उसे समाज का भय अधिक सताता है कि कोई उसकी आलोचना न कर बैठे। हरलॉक के अनुसार नवकिशोर की अपनी मान-मर्यादा, प्रतिष्ठा और लोकप्रियता की आकुलता एवं चिंता रहती है।

3. ईष्र्या:
पूर्व किशोरावस्था में किशोर प्रेम से वंचित करने वाले पर शारीरिक आक्रमण के स्थान पर शाब्दिक आक्रमण अधिक करते हैं। जब विषमलिंगी उपेक्षा करते हैं तब भी ईष्र्या का प्रभाव जागृत होता है।

4. स्पर्धा:
किशोरावस्था में मित्रों से आगे बढ़ने की भावना जाग्रत होती है तथा उत्तर-किशोरावस्था में किशोर अपने से । अच्छी सामाजिक-आर्थिक स्थिति वाले मित्र से स्पर्धा नहीं करते, बल्कि वे अपने को बड़ा दुर्भाग्यशाली व मित्र को भाग्यशाली मानते हैं।

5. जिज्ञासा:
किशोरावस्था में जिज्ञासा के क्षेत्र बदल जाते हैं। ज्ञानेन्द्रियों के परिपक्व होने की अनेक शारीरिक क्रियाएँ होती हैं। जिज्ञासा की पूर्ति के लिए अनेक प्रकार के प्रश्न करते हैं।

प्रश्न 10.
किशोर के सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन के कारण उसके सामाजिक विकास पर पड़ने वाले प्रभाव बताइए।
उत्तर:
किशोर के सामाजिक सम्बन्धों में परिवर्तन का प्रभाव उसके सामाजिक विकास पर भी पड़ता है। ये प्रभाव निम्न प्रकार हैं –
1. बालक और बालिकाएँ दोनों ही अपने – अपने समूह की रचना करते हैं, जिनका उद्देश्य प्रायः मनोरंजन होता है। इसकी पूर्ति के लिए वे निकट स्थानों की यात्रा, खेल, नृत्य, संगीत सुनना आदि पर समय व्यतीत करना चाहते हैं।

2.  समूह की रचना के कारण बालकों में सहयोग, सहानुभूति, सद्भावना तथा नेतृत्व आदि गुणों का विकास होने लगता है।

3. इस अवस्था में बालकों में विपरीत लिंग की ओर आकर्षित होने की रुचि बढ़ जाती है। एक – दूसरे को आकर्षित करने के
लिए वेशभूषा, साज-श्रृंगार तथा अन्य गुणों के दिखावा करने की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है।

4. किशोरावस्था में किशोर की आयु बढ़ने के साथ-साथ सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने के अधिक अवसर प्राप्त होने लगते हैं एवं सामाजिक समायोजन बढ़ता चला जाता है।

5. इस अवस्था में मित्रों की संख्या प्रारम्भ में सर्वाधिक होती है। मित्रता में दृढ़ता का आभास होता है किन्तु यह प्रवृत्ति धीरे – धीरे कम होने लगती है। धीरे – धीरे यह संख्या भी कम होने लगती है क्योंकि मित्रों की अधिक संख्या के स्थान पर गुणकारी मित्र बनाने की आवश्यकता का ज्ञान होने लगता है।

RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 2 किशोरावस्था में विकास II: सामाजिक, संवेगात्मक एवं संज्ञानात्मक विकास

6. किशोरावस्था में बालकों को अपने बुजुर्गों से किसी – न – किसी बात पर संघर्ष और मतभेद हो जाता है। माता-पिता बच्चों को आदर्शों के अनुसार ढालना चाहते हैं अथवा नैतिक आदर्श का उदाहरण प्रस्तुत करके, उसका अनुसरण करने के लिए दबाव डालते हैं। उनके बाद उनके ये विचार बच्चों को विद्रोह के लिए प्रोत्साहित करने लगते हैं।

7.  इस अवस्था के अन्त तक किशोर एवं किशोरियाँ किसी – न – किसी चिन्ता या समस्या में उलझे रहते हैं। पढ़े-लिखे परिवार में चिन्ता का मूल कारण अपने भावी कैरियर को निर्धारण करना होता है। इसके अतिरिक्त धन, प्रेम, विवाह एवं कौटुम्बिक जीवन जैसी अनेक समस्याएँ भी निरन्तर बनी रहती हैं।

8. गायर और व्हाइट के अनुसार इस अवस्था में ग्रामीण किशोरों पर परिवार का एवं शहरी किशोरों पर मित्रों और बाहरी वातावरण का अधिक प्रभाव पड़ता है।

9. इस अवस्था में बालकों में परा – अहम् अर्थात् नैतिकता की भावना भी पैदा हो जाती है एवं सांस्कृतिक मूल्यों एवं व्यक्तिगत अनुभवों के द्वारा किशोरों में आत्म – नियंत्रण की क्षमता पैदा होती है।

प्रश्न 11.
संज्ञानात्मक विकास से क्या तात्पर्य है? बालक की मानसिक योग्यता संज्ञानात्मक विकास को कैसे प्रभावित करती है? संज्ञानात्मक विकास की विभिन्न अवस्थाओं को समझाइए।
उत्तर:
प्रारम्भ में बालक के लिए किसी वस्तु का होना या न होना, किसी बात को याद रखना, सोचना आदि बातों को कोई महत्व नहीं होता है। परन्तु जैसे – जैसे उसकी उम्र बढ़ती है उसमें अनेक संज्ञानात्मक योग्यताएँ बढ़ती जाती हैं। वह धीरे – धीरे वस्तुओं को पहचानने लगता है, याद रखने लगता है और क्यों और कैसे जैसे प्रश्नों से अपनी तर्कशक्ति का विकास करता जाता है। अतः संज्ञानात्मक विकास से तात्पर्य उन सभी मानसिक क्रियाओं और व्यवहारों से है जिसके द्वारा बालक सांसारिक क्रियाकलापों को ग्रहण करता है, याद रखता है और फिर सोचता है। दूसरे शब्दों में, संज्ञानात्मक विकास वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा बालक को किसी वस्तु, घटना यो परिस्थिति का ज्ञान होता है।

बालक की मानसिक योग्यता उसके संज्ञानात्मक विकास को निम्न चार अवस्थाओं द्वारा प्रभावित करती है –
1. संवेदी गामक अवस्था (Sensory Motor Stage) – बालक के जन्म से लेकर 2 वर्ष की अवस्था संवेदी गामक अवस्था कहलाती है। इस अवस्था में बालक अपनी ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से अनुभव प्राप्त करता है। आँख, कान, त्वचा, जीभ व नाक से प्राप्त तरह – तरह के संवेदों, जैसे-देखना, सुनना, छूना, स्वाद व सूंघने द्वारा अपने आस – पास के वातावरण के बारे में जानकारी प्राप्त करता है। इस अवस्था तक बच्चे की सभी ज्ञानेन्द्रियाँ विकसित हो जाती हैं। जीवन के इन शुरू के दिनों में बच्चा संवेदी गामक सहज क्रियाएँ करता है, जैसे-भूख लगने पर रोना, मुँह में अँगूठा चूसना।।

2. पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre-operational Stage):
यह 2 से 7 वर्ष तक की अवस्था है। नई सूचनाओं और नए अनुभवों को वह सीखता है। वह अपने चारों ओर की वस्तुओं के बारे में सोचना प्रारम्भ कर देता है। अनेक प्रकार के प्रतीक उसकी स्मृति से जुड़ते रहते हैं; जैसे – यदि उसके भाई या पिता नये कपड़े पहने या जूता पहने तो वह समझ जाता है कि वह बाहर जा रहे हैं। इस उम्र में वह शब्दों का उच्चारण भी करना प्रारम्भ कर देता है।

3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Concrete Operational Stage):
यह 7 से 11 वर्ष तक की अवस्था है। इसमें बच्चे अधिक व्यवहारशील एवं यथार्थवादी हो जाते हैं। वे कल्पना एवं वास्तविकता में अन्तर करना सीख जाते हैं। वे सच्चाई को समझने लगते हैं, ये पारिवारिक रिश्तों को समझने लगते हैं तथा उनके विचार क्रमबद्ध व तर्कयुक्त भी हो जाते हैं। बच्चे में अब संकल्पना का निर्माण करने की क्षमता आ जाती है।

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4. अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational Stage):
यह 11 से लेकर 17-18 वर्ष तक की अवस्था है। इस अवस्था में किशोर विविध विषयों पर सोचना आरम्भ कर देते हैं। उनके सोच-विचार में तर्क का समावेश हो जाता है। किसी भी बात की सूक्ष्मता या बारीकी को किशोर समझने लगता है।

प्रश्न 12.
संज्ञानात्मक विकास के कारण एक किशोर में, बालक की तुलना में कौन-कौन से परिवर्तन देखे जा सकते हैं? समझाइए।
उत्तर:
संज्ञानात्मक विकास के कारण एक किशोर में, बालक की तुलना में निम्नलिखित परिवर्तन देखे जा सकते हैं –
1. किशोर तीव्र आलोचक होते हैं, उनका अपने आस – पास के लोगों व वातावरण को देखने व परखने का नजरिया तार्किक एवं विश्लेषणात्मक होता है, जिससे उनके व्यक्तित्व, सामाजिक एवं संवेगात्मक स्तर पर बहुत प्रभाव पड़ता है। आलोचनात्मक प्रवृत्ति के कारण ही माता-पिता व किशोर-किशोरियों के बीच विवाद व तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है।

2. उत्तर – किशोरावस्था आते आते किशोर अपने से बड़ों के साथ सहायक बनकर कार्य करना पसन्द नहीं करते। अपनी बढ़ती हुई आलोचनात्मक क्षमताओं के कारण वे स्वयं के काल्पनिक प्रतिमान स्थापित करते हैं। किशोर ये समझने लगते हैं कि उनके बड़े उनके प्रति न्यायपूर्ण व्यवहार नहीं कर रहे हैं, फलतः वे विद्रोही बन जाते हैं।

3. संज्ञानात्मक विकास के साथ – साथ किशोर स्वयं की एक अनोखी – सी भाषा विकसित कर लेते हैं, जिसमें हिन्दी – अंग्रेजी का संगम होता है। जैसे – लेटस् गो फोर ए पिकनिक, बहुत मजा करेंगे। वे अपने शिक्षकों व बड़े-बुजुर्गों के नये-नये अनोखे नाम निकालते हैं। जैसे कड़क शिक्षक को भयंकर, सदैव डाँटने वाले शिक्षक व माता – पिता को बादल-बिजली जैसे कई नाम दे देते हैं।

4. किशोर अपने रूप, रंग व अपनी आकृति के बारे में बहुत जागरूक होते हैं। उनकी सीमित समझ के कारण वे महसूस करते हैं कि सारी दुनिया उन्होंने देखी है।

5. बहुधा किशोर सृजनात्मक होते हैं। अत: माता – पिता एवं बड़े-बुजुर्गों को उनकी सृजनात्मकता को प्रोत्साहित करना चाहिए। बौद्धिक क्षमता के बढ़ने के साथ – साथ उनकी सृजनात्मकता भी बढ़ती जाती है। उनकी सृजनात्मकता के भरपूर विकास के लिए घर व विद्यालय का वातावरण दोस्ताना तथा कुछ लचीलापन लिए हुए होना चाहिए।

6. ज्ञानात्मक विकास के साथ – साथ किशोरों की दिवास्वप्न देखने की प्रवृत्ति में भी वृद्धि होती है। उम्र के बढ़ने के साथ – साथ उनकी परिकल्पनाएँ धनात्मक एवं सुनिश्चित होने लगती हैं।

7. किशोरों में बौद्धिक विकास के साथ – साथ दीर्घावधि के मूल्य भी निश्चित होने लगते हैं। उम्र के बढ़ने के साथ – साथ स्वार्थ व आत्मवाद की भावनाएँ कम होने लगती हैं तथा किशोर में तर्क-वितर्क, मूल्य एवं अभिवृत्तियाँ विकसित होने लगती हैं।

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