RBSE Solutions for Class 12 Home Science Chapter 3 किशोरावस्था की समस्याएँ और उनका प्रबन्धन

Rajasthan Board RBSE Class 12 Home Science Chapter 3 किशोरावस्था की समस्याएँ और उनका प्रबन्धन

RBSE Class 12 Home Science Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें:
(i) किशोरावस्था को कहते हैं –
(अ) निरोगी अवस्था
(ब) तनावहीन अवस्था
(स) समस्याओं का काल
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(स) समस्याओं का काल

(ii) बाल्यावस्था के उत्तरोत्तर विकास के साथ – साथ बालक में शासन का प्रतिरोध करने का भाव बढ़ता है तथा व अधिक………होने की चाह करता है।
(अ) स्वतंत्र
(ब) निर्भर
(स) बेधड़क
(द) मर्यादित
उत्तर:
(अ) स्वतंत्र

(iii) बाल्यावस्था से किशोरावस्था की ओर बढ़ने पर यौवनारम्भ में ही बालक की………वृद्धि व………विकास चरमोत्कर्ष पर होता है।
(अ) लारीरिक
(ब) यौन
(स) मानसिक
(द) (अ) और (ब)
उत्तर:
(द) (अ) और (ब)

(iv) किशोरों में अपराधी प्रवृत्तियों को पनपने से रोकने के लिए योगदान देते हैं–
(अ) माता – पिता
(ब) बड़े – बुजुर्ग
(स) शिक्षक
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. किशोरावस्था को………की आयु कहा जाता है।
2. किशोरावस्था में शारीरिक समन्वयों में असंतुलन एवं फुर्ती में अस्थाई………आ जाती है।
3. किशोर प्रत्येक बात को……..दृष्टिकोण से देखता है तथा पुराने रीति – रिवाजों व रूढ़ियों का प्रतिरोध करता
4. विद्यार्जन तथा व्यावसायिक क्षेत्रों में बढ़ती स्वतंत्रता के कारण आजकल विवाह……….उम्र में होने लगे हैं।
5. दैनिक जीवन की चुनौतियों का सामना करने में असमर्थ होने पर कई किशोर अपनी कमियों को छुपाने के लिए………का सहारा लेते हैं।
6. समाज के नियमों की अवहेलना एवं हिंसात्मक व्यवहार करना ही……….या………है।
7. लड़कों की तुलना में लड़कियों की समस्याएँ……..होती हैं।

उत्तर:
1. समस्याओं
2. मंदता
3. वैज्ञानिक
4. बड़ी
5. मादक द्रव्यों
6. अपचार, अपराध
7. अधिक।

प्रश्न 3.
किशोरावस्था को समस्याओं की आयु क्यों कहते हैं?” समझाइए।
उत्तर:
किशोरावस्था को ‘समस्याओं का काल’ कहा गया है। किशोरों को विभिन्न समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस अवस्था की सबसे प्रमुख समस्या समायोजन को लेकर होती है। एक ओर किशोर को अपनी तीव्र शारीरिक वृद्धि, संवेगात्मक अस्थिरता एवं समाज में उसके बदलते परिदृश्य के साथ सामंजस्य स्थापित करना होता है तो दूसरी ओर उसे स्वयं के लिए एक निश्चित कैरियर चुनना तथा वैवाहिक एवं सामाजिक उत्तरदायित्वों को निभाने के लिए खुद को तैयारे भी करना होता है। इसी समय वह गलत मित्रमंडली एवं समस्याओं से तनावग्रस्त होकर कई बार शराब, तम्बाकू, सिगरेट, नशीली दवाओं के चक्कर में पड़कर स्वयं के अमूल्य जीवन को तबाह कर लेता है। यही नहीं कई बार तो वे चोरी, मारपीट, स्कूल या घर से भागना आदि अपराधों में भी लिप्त हो जाते हैं।
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प्रश्न 4.
निम्न पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें
1. तीव्र शारीरिक वृद्धि से समायोजन
2. यौन समस्या
3. स्वतंत्रता एवं नियंत्रण की कशमकश।
उत्तर:
1. तीव्र शारीरिक वृद्धि से समायोजन:
किशोरावस्था के पदार्पण करते ही किशोरो में विकास तथा शारीरिक वृद्धि अत्यन्त तीव्र गति से होती है। यह विषमानुपातिक होती है। नव किशोर इस वृद्धि एवं तीव्र परिवर्तनों के लिए तैयार नहीं होते हैं। कुछ बालक अधिक लम्बे तो कुछ मोटे – नाटे तो कुछ भयंकर कील – मुंहासों की समस्या से ग्रस्त रहते हैं। इन कारणों से किशोर के सहपाठी उन्हें मजाक-मजाक में विभिन्न सम्बोधनों से बुलाते हैं। जैसे-खंभा, मोटू, छोटू आदि।

शारीरिक विषमानुपात से तरुण बालक के अन्दर आकुलता उत्पन्न हो जाती है जो आतंक की सीमा तक पहुँच जाती है। किशोरों में कुछ शारीरिक समन्वयों में असंतुलन एवं फुर्ती में अस्थायी मंदता आ जाती है। वे चलते – फिरते किसी भी चीज से टकरा जाते हैं, हाथ छोड़कर साइकिल चलाना जैसे कौशलों में गड़बड़ा जाते हैं। इसे भौंडेपन की अवस्था भी कहते हैं। उत्तर किशोरावस्था आते-आते व शारीरिक विकास पूर्ण होने पर समस्या स्वत: ही समाप्त हो जाती है।

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2. यौन समस्या:
किशोरावस्था के पदार्पण से ही बालकों में यौन वृद्धि एवं विकास अपनी चरम सीमा पर होता है। किशोर एवं किशोरियों के लिए यह यौन वृद्धि एवं परिपक्वता सर्वाधिक महत्वपूर्ण विषय होते हैं। ये परिवर्तन किशोरों में एक जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं। कभी-कभी ये आकुलता भी उत्पन्न कर देते हैं। हमारे समाज में पारिवारिक बुजुर्गों द्वारा अथवा विद्यालयों में शिक्षकों द्वारा यौन विषयों पर सार्वजनिक रूप से कोई वार्तालाप नहीं किया जाता है और इसे एक निषेध विषय मानकर टाल दिया जाता है।

ऐसी स्थिति में किशोरों में घटिया साहित्य या चित्रों के अधकचरे ज्ञान के द्वारा भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। वास्तविक समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब किशोर फिल्म या मीडिया की काल्पनिक दुनिया को अपने वास्तविक जीवन में उतारने का प्रयास करते हैं। इन समस्याओं से बचने के लिए किशोरों का विभिन्न सृजनात्मक क्रियाकलापों आदि में भाग लेना चाहिए।

3. स्वतंत्रता एवं नियंत्रण की कशमकश:
बाल्यावस्था के क्रमिक विकास के साथ – साथ उसमें शासन का प्रतिरोध करने का भाव बढ़ने लगता है। वह स्वतंत्र रहना पसंद करता है। शारीरिक वृद्धि एवं आकार-प्रकार में वृद्धि के कारण वह स्वयं को युवा एवं समर्थ समझने लगता है तथा स्वयं के निर्णय को ही शत – प्रतिशत सही मानने लगता है। वह स्वयं निर्णय लेना चाहता है परन्तु वास्तव में अभी किशोर पूर्णरूपेण परिपक्व नहीं होता है।

माता – पिता व पारिवारिक सदस्यों द्वारा उसे किसी कार्य का पूर्ण उत्तरदायित्व नहीं दिया जाता है। किशोर पुराने रीति – रिवाजों व रूढ़ियों का प्रतिरोध करना चाहता है तथा किसी भी प्रकार की रोकटोक एवं नियंत्रण से मुक्त रहना पसंद करता है। ऐसे समय में माता-पिता को उचित मार्गदर्शन प्रदान करना चाहिए तथा कठोर अनुशासन को लादकर उन्हें अनावश्यक रूप से प्रतिबंधित नहीं करना चाहिए।

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प्रश्न 5.
किशोरावस्था में किशोर / किशोरी किस प्रकार के तनावों से ग्रसित रहते हैं?
उत्तर:
किशोरावस्था में प्रवेश करते ही अनेक प्रकार की समस्याएँ तथा तनाव उत्पन्न होने लगते हैं। किशोर अनेक कारणों जैसे – तीव्र शारीरिक वृद्धि से प्राप्त युवत्व, आकार, बचपन एवं यौवन के मध्य झूलता सामाजिक पड़ाव, पारिवारिक एवं सामाजिक परिपाटियाँ एवं प्रतिबन्ध, स्वयं के व्यक्तित्व, व्यवसाय व कैरियर तथा जीवन – साथी के चुनाव, तीव्र संवेगशीलता व मनोस्थिति के उतार-चढ़ाव के कारण तनाव को झेलते हैं। सुन्दरता व आकर्षण न पाने पर स्वयं को हीन समझने लगते हैं और अंत में राई का पर्वत बना देते हैं।

लड़कियाँ अपनी आकृति को लेकर अधिक चिंतित रहती हैं। दुबली – पतली व छरहरी दिखने के प्रयास में वह भूखी रहने लगती हैं जिससे शारीरिक कपजोरी व अन्य समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं। व्यक्तित्व का अपनी आशाओं के अनुरूप नहीं होने पर किशोर निराश हो जाता है। उसमें असमर्थता तथा असुरक्षा की भावना बनी रहती है। कभी-कभी किशोर भावावेश में आकर आत्महत्या जैसे गलत निर्णय भी कर लेते हैं। अधिक समय तक रहने वाला तनाव अवसाद में बदल जाता है जिससे छुटकारा प्राप्त करना अत्यन्त कठिन होता है।

प्रश्न 6.
किशोरों में अपराधी प्रवृत्ति रोकने में माता-पिता तथा शिक्षकों का योगदान होता है, अध्यापक की सहायता से कक्षा में इस विषय पर स्वयं के अनुभवों के आधार पर चर्चा करें।
उत्तर:
माता – पिता का योगदान:
किशोरों में अपराधी प्रवृत्ति रोकने के लिए उन्हें बपचन से ही माता – पिता का उपयुक्त स्नेह, नियोजन, पूर्ण विश्वास व सुरक्षा का वातावरण मिलना चाहिए, किशोरों की आपराधिक प्रवृत्ति को रोकने में माता – पिता का दृष्टिकोण महत्त्वपूर्ण होता है। यदि माता – पिता किशोर का तिरस्कार करते हैं या उसके प्रति उदास रहते हैं तो किशोर के मन में अस्थिरता आने लगती है।

पूर्व किशोरावस्था में यह सर्वाधिक विकसित होती है जो किशोर अपराधी बनते हैं। उनकी दिक्कतें बचपन के दिनों से ही प्रारम्भ हो जाती हैं। माता – पिता की असमय मृत्यु या तलाक भी किशोरों में अपराधी प्रवृत्ति उत्पन्न कर देता है। किशोरों में अपराध प्रवृत्तियों को पनपने से रोकने के लिए उन्हें बपचन से ही माता – पिता का उपयुक्त स्नेह, नियंत्रण, पूर्ण विश्वास व सुरक्षा का वातावरण प्राप्त होना चाहिए।

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परिवार के बड़े – बुजुर्गों को चाहिए कि वे अपना मृदु व्यवहार व अनुशासन बनाये रखते हुए किशोर-किशोरियों को उचित व उपयुक्त मार्गदर्शन व परामर्श प्रदान करते रहें। शिक्षक का योगदान – किशोर / किशोरियों में अपराधी प्रवृत्ति को रोकने में शिक्षक की भूमिका प्रमुख होती है। इसका कारण यह है कि किशोर किसी – न – किसी शिक्षक को अपना आदर्श मानकर उसका अनुसरण करने लगता है। यदि शिक्षक उत्तम जों, आदर्शों तथा योग्यता वाला व्यक्ति है तो किशोर बहुत कुछ उसका अनुसरण करने लगता है। शिक्षक द्वारा विद्यालय में शारीरिक दंड देने से किशोर के मन में आपराधिक प्रवृत्ति जागृत होने लगती है।

विद्यालय या कॉलेज में बौद्धिक कौशल व अन्य कौशलों में पिछड़ने के कारण किशोर शिक्षण संस्थान से भागने लगते हैं तथा गलत संगति में पड़कर नशीले द्रव्यों का सेवन करने लगते हैं तथा चोरी व मार – पीट भी करने लगते हैं। शिक्षकों को चाहिए कि वे अपना मृदु व्यवहार व अनुशासन बनाये रखते हुए किशोर/किशोरियों को उचित मार्गदर्शन प्रदान करें तथा उन्हें बुरी संगति से रोकें। विद्यालयों में उपयुक्त मार्गदर्शन व परामर्श प्रदान किया जाये तथा बच्चों की रुचियों को देखते हुए उन्हें अपने शैक्षणिक व व्यावसायिक क्षेत्र चुनने में पूरी – पूरी सहायता दी जाये तथा उनके उत्साह को लगातार सृजनात्मक दिशा प्रदान करते रहें। शिक्षक द्वारा यौन शिक्षा का प्रबन्ध भी करना चाहिए।

RBSE Class 12 Home Science Chapter 3 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्न प्रश्नों के सही उत्तर चुनें –
(i) समाज के नियमों की अवहेलना एवं हिंसात्मक व्यवहार करना है –
(अ) समस्या
(ब) अपचार
(स) हिंसा
(द) कानून – भंग।
उत्तर:
(ब) अपचार

(ii) तनाव व अवसाद बढ़ना प्रारम्भ होता है –
(अ) किशोरावस्था में
(ब) युवावस्था में
(स) शिशुकाल में
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) किशोरावस्था में

(iii) किशोरावस्था में प्रवेश करने वाले बालक/बालिका कहलाते हैं –
(अ) नवकिशोर
(ब) उत्तर किशोर
(स) नवयुवा
(द) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) नवकिशोर

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(iv) समस्याओं का काल कहा गया है –
(अ) बालपन को
(ब) युवावस्था को
(स) प्रौयावस्था को
(द) किशोरावस्था को
उत्तर:
(द) किशोरावस्था को

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
1. किशोरों की अधिकतर…….सामाजिक होती है।
2. किशोर स्वयं से अधिक………वालों के लिए समस्या होता है।
3. औसत बुद्धि वालों की अपेक्षा………बुद्धि वाले किशोर अच्छा समायोजन करते हैं।
4. पूर्वकिशोरावस्था के किशोर और किशोरियों की………में अन्तर पाया जाता है।

उत्तर:
1. समस्याएँ
2. परिवार
3. तीव्र
4. रुचियों।

प्रश्न 3.
किशोर में अपनी शक्ल – सूरत पर असन्तोष किन कारणों से और अधिक बढ़ जाता है?
उत्तर:
किशोरों में सुन्दरता एवं आकर्षण प्राप्त न होने पर स्वयं में हीन भावना उत्पन्न हो जाती है। किशोरों का अपनी शक्ल सूरत पर होने वाला असन्तोष उस समय और अधिक बढ़ जाता है, जब वे अपनी बौद्धिक सामर्थ्य या व्यक्तित्व को अपनी आशाओं के अनुरूप नहीं पाते हैं और निराश हो जाते हैं।

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प्रश्न 4.
किशोर / किशोरी यौन सम्बन्धी ज्ञान के बारे में भ्रमित क्यों रहते हैं?
उत्तर:
किशोरकिशोरी यौन सम्बन्धी ज्ञान के बारे में भ्रमित इस कारण रहते हैं क्योंकि हमारे समाज में पारिवारिक बुजुर्ग एवं विद्यालय के शिक्षकों द्वारा यौन विषयों पर सार्वजनिक रूप से कोई बातचीत नहीं की जाती तथा इसे एक निषेध विषय समझकर टाल दिया जाता है। किशोर/किशोरी इसी अज्ञानता के कारण भ्रमित रहते हैं।

प्रश्न 5.
किशोरों में धूम्रपान एवं मादक द्रव्यों की लत किन परिस्थितियों में उत्पन्न होती है?
उत्तर:
किशोर के जीवन में आने वाली निम्न परिस्थितियाँ उन्हें धूम्रपान एवं मादक द्रव्यों की लत की ओर ढकेलने का कार्य करती हैं

  • मित्रो द्वारा उकसाना एवं दबाव।
  •  शिक्षा या व्यवसाय में असफलता।
  • प्रेम में असफलता।
  • सामाजिक प्रतिष्ठा के रूप में प्रदर्शन करने की चाह
  • समाज में स्वयं को युवा के रूप में देखने की उत्कंठा।
  • घर – परिवार एवं सामाजिक परिवेश में अकेला महसूस करने पर।
  • परिवार एवं पारिवारिक मित्रों के प्रति विरोध प्रदर्शन के लिए।
  • कभी – कभी उत्सुकतावश व जिज्ञासावश स्वयं इनका प्रभाव आजमाने के लिए।

प्रश्न 6.
किशोर प्रायः किस प्रकार के नशीले द्रव्यों का उपयोग करते हैं?
उत्तर:
किशोर प्रायः नशीले द्रव्यों में मदिरापान, धूम्रपान व तम्बाकू तथा नशीली दवाओं का सेवन करते हैं जिनका विवरण निम्नलिखित है
1. मदिरापान:
शराब में व्यग्रता/आकुलता को कम करने एवं संवेगों को कम करने एवं संवेगों को शांत करने की क्षमता होती है। अत: कुछ किशोर दैनिक जीवन की चुनौतियों में असफल होने पर अपनी कमियों को छुपाने के लिए मदिरा का। सहारा लेने लगते हैं। शराब के नशे में किशोर का स्वयं पर कोई नियंत्रण नहीं रहता तथा वह नकारात्मक व्यवहार;
जैसे – गाली – गलौज, मारपीट व बड़ों के साथ अभद्रता कर बैठता है।

2. धूम्रपान व तम्बाकू सेवन:
तम्बाकू सिगरेट, गुटखा व पान आदि के रूप में उपयोग में लाया जाता है। किशोरों द्वारा धूम्रपान व तम्बाकू का सेवन पुरुषत्व के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इनकी आदत किशोरों में मित्र मंडली के दबाव में प्रारम्भ होती है। तम्बाकू में उपस्थित हानिकारक निकोटीन शरीर को हानि पहुँचाता है तथा कैंसर की संभावनाओं को
भी बढ़ाता है।।

3. नशीली दवाएँ:
आजकल किशोरों में नशीले पदार्थों जैसे ब्राउन शुगर, गाँजा, अफीम, चरस आदि का सेवन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। किशोर इन नशीले पदार्थों को प्राप्त करने के लिए कई बार असामाजिक वे आपराधिक कार्य करने लगते हैं। एक बार इनकी आदत पड़ने पर उसे छोड़ना अत्यन्त कष्टदायक होता है। आज के बदलते परिवेश में न केवल हमारे किशोर बल्कि किशोरियाँ भी इन मादक द्रव्यों के चंगुल में फँस जाती हैं।

किशोर – किशोरियों को चाहिए कि वे इन नशीले पदार्थों से होने वाले दुष्प्रभावों को जानें, अपने आत्मविश्वास को जागृत करें तथा सकारात्मक रवैया अपनाते हुए अपनी इच्छाशक्ति का सदुपयोग कर जीवन की विविध चुनौतियों का सामना करें। इनके उपयोग से किशोरों की शारीरिक शक्तियाँ नष्ट होने लगती हैं। ये नशीली दवाएँ महँगी भी होती हैं। फलस्वरूप व्यक्ति की आर्थिक स्थिति भी कमजोर हो जाती है।

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प्रश्न 7.
किन कारणों से किशोर में आपराधिक प्रवृत्ति जाग्रत होती है?
उत्तर:
समाज में नियमों की अवहेलना एवं हिंसात्मक व्यवहार करना अपराध (Offence) कहलाता है। जो व्यक्ति समाज के नियमों का पालन नहीं करता वह अपराधी कहलाता है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कोई भी व्यक्ति जन्म से ही अपराधी नहीं होता तथा न ही समाज विरुद्ध आचरण एक ही रात में सीख लिया जाता है। जो किशोर अपराधी बनते हैं, उनकी दिक्कतें शिशु विहार के दिनों से ही प्रारम्भ हो जाती हैं। उदाहरण के लिए, अधिकतर किशोर किसी न किसी समय छोटी-मोटी चोरी कर रहे होते हैं या स्कूल से भाग जाते हैं। निम्न कारणों से किशोरों में अपराधिक प्रवृत्ति जाग्रत होती है –
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प्रश्न 8.
किशोर अपराध को रोकने के कौन – कौन से उपाय हैं? बताइए।
उत्तर:
किशोर अपराध को रोकने के उपाय – किशोर अपराध को रोकने के लिए निम्नलिखित संगठनों द्वारा कार्य किया जाता है –
1. परिवार:
यह सत्य है कि परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है इसलिए परिवार से ही अपराध सुधार का कार्य प्रारम्भ किया जाता है। टप्पन के अनुसार, “सफल पैतृकता बच्चे में जन्म से पहले ही आरम्भ हो जाती है।”

2. विद्यालय:
विद्यालय दूसरी ऐसी संस्था है जहाँ बालकों के सुधार का कार्य किया जाता है। विद्यालय बच्चों के व्यक्तित्व पर प्रभाव डालता है। विद्यालय में बच्चों के विकास सम्बन्धी अनेक कार्य होते हैं; जैसे – धर्म शिक्षा, नैतिक शिक्षा, नागरिकता की शिक्षा, चरित्र निर्माण तथा किशोर न्यायालय के कार्य आदि। अतः स्पष्ट है कि स्कूल में बच्चे को अच्छी शिक्षा प्राप्त होती है।

3. सामुदायिक संगठन:
आधुनिक सामाजिक विचारधाराओं में स्थानीय समुदायों और पड़ोस को पुनः संगठित करने पर विशेष जोर दिया जाता है। अमेरिका में सामुदायिक सहयोग समिति संगठित की गई हैं, जो भारत में भी काफी सफलता से कार्य कर रही हैं। सामुदायिक सहयोग समिति में सामान्यतः स्थानीय किशोर न्यायालय, प्रति रक्षण विभाग, पुलिस विभाग, शिक्षा विभाग आदि संगठनों के प्रतिनिधि सम्मिलित किये गये हैं।

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4. आर्थिक संस्थाएँ:
आर्थिक परिस्थितियाँ यदि ठीक होंगी तो बालक में अपराधी प्रवृत्ति कम होती है। कई बार आर्थिक | विषमताओं, निर्धनता, बेरोजगारी और गन्दी बस्तियों आदि के प्रभाव से भी व्यक्ति स्वतः ही अपराधी बन जाता है।

5. मनोरंजन सुविधाएँ:
पार्क्स और टीटर्स के विचारों के अनुसार, “पर्याप्त मनोरंजन के अतिरिक्त किशोरों की प्रवृत्तियों को समाज विशेष विरोधी व्यवहार की दिशा में ले जाने के बजाय अच्छे नागरिक बनने की ओर निर्देशित करने के लिए एक अर्थपूर्ण कार्यों का आयोजन आवश्यक है।”

6. ग्रुप वर्क:
सामान्य रूप से ग्रुप वर्क को दो विधियों में अपराधी बच्चों के सुधार के लिए किया जाता है और उन्हें अन्य नागरिकों के समान बनाया जाता है क्योंकि किशोर हमारे समाज की भावी पीढ़ी हैं।

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