RBSE Class 12 Sanskrit अपठितावबोधनम् 40-60 शब्दपरिमिताः सरलगद्यांशाः

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sanskrit अपठितावबोधनम् 40-60 शब्दपरिमिताः सरलगद्यांशाः

40-60 शब्दपरिमिताः सरलगद्यांशाः

निर्देशः-अधोलिखितगद्यांशान् पठित्वा प्रश्नानाम् उत्तर: लिखत
(1)
भारतस्य पुनरुत्थानं भवेत्। तत्र नास्ति सन्देहः। किन्तु तत् पुनरुत्थानं जडसामर्थ्यन न, अपितु आत्मसामने अतः वस्तुतः भवद्भिः सर्वत्यागार्थं सिद्धैः भवितव्यम्। त्यागं विना किमपि महत् कार्यं न सिद्धयति। अस्माभिः कार्यं कुर्वद्भिः एव भवितव्यम्। सदा कार्यशीलैः भवितव्यम्। फलं स्वयमेव प्राप्यते। भविष्यं किं स्यात् इति न जानामि अहम्। तस्य ज्ञाने मम इच्छा अपि नास्ति। किन्तु एकं चित्रं तु मम नयनयोः स्फुटं दृश्यते।

हिन्दी-अनुवाद- भारत का पुनः उत्थान होना चाहिए। उसमें कोई सन्देह नहीं है। किन्तु वह पुनः उत्थान जड़-सामर्थ्य से नहीं अपितु आत्म-सामर्थ्य से होना चाहिए। इसलिए वास्तव में आपको सभी प्रकार से त्याग के लिए तत्पर होना चाहिए। त्याग के बिना कोई भी महान् कार्य सिद्ध नहीं होता है। हमें कार्य करते रहना चाहिए। हमेशा कार्यशील होना चाहिए। फल स्वयं ही प्राप्त होगा। भविष्य क्या होगा, यह मैं नहीं जानता हूँ। उसको जानने की मेरी इच्छा भी नहीं है। किन्तु एक चित्र तो मेरे नेत्रों में स्पष्ट दिखाई दे रहा है।

प्रश्नाः

  1. भारतस्य पुनरुत्थानं कथं भवितव्यम्? (एकपदेन उत्तरम्)।
  2. कं विना किमपि महत् कार्यं न सिद्धयति? (पूर्णवाक्येन उत्तरम्)
  3. भविष्यं किं ………………………….. अहम्। इत्यत्र ‘अहम्’ इति कर्तृपदस्य क्रियापदं किम्?

उत्तर:

  1. आत्मसामन।
  2. त्याग विना किमपि महत् कार्यं न सिद्धयति।
  3. जानामि।

(2)
अस्मान् परितः यत् वृत्तं आवृणोति तत् पर्यावरणम् इति कथ्यते। तद् द्विविधं प्रकृतिनिर्मितं मानवनिर्मितञ्च। सम्प्रति संसारे औद्योगिकविकासेन समं पर्यावरणप्रदूषणस्य समस्या सम्मुखीना वर्तते। विविधोद्योगैः नवाविष्कारैश्च वायुमण्डलं, जलं च प्रदूषितं संजातम्। जनसंख्या विस्फोटेन, वनानां विनाशेन, वाहनानामपरिमितेन धूमेन, विषमिश्रितरसायनानामुपयोगेन, ध्वनिप्रदूषणेन च सर्वत्र हाहाकारः रोगाः अशान्तिश्च व्याप्ता दृश्यन्ते। अस्याः प्रदूषणसमस्यायाः निवारणाय पर्यावरणसंरक्षणार्थं अस्माभिः सर्वैरेव प्रयत्नः कर्तव्यः।

हिन्दी-अनुवाद-हमारे चारों ओर जो घेरा घिरा हुआ है वह पर्यावरण कहा जाता है। वह दो प्रकार का है-प्रकृति निर्मित और मानव निर्मित। इस समय संसार में औद्योगिक विकास के साथ पर्यावरण प्रदूषण की समस्या सम्मुख है। विविध उद्योगों और नवीन आविष्कारों से वायुमण्डल और जल प्रदूषित हो गया है। जनसंख्याविस्फोट से, वनों के विनाश से, वाहनों की अपरिमित धुआँ से, विषैले रसायनों के उपयोग से और ध्वनि प्रदूषण से सभी जगह हाहाकार, रोग और अशान्ति व्याप्त दिखाई देती है। इस प्रदूषण की समस्या का निवारण करने के लिए पर्यावरण की सुरक्षा हेतु हम सभी को प्रयत्न करना चाहिए।
प्रश्नाः

  1. ‘पर्यावरणं कतिविधम्? (एकपदेन उत्तरम्)
  2. कस्याः निवारणाय अस्माभिः सर्वैरेव प्रयत्नः कर्तव्यः? (पूर्णवाक्येन उत्तरम्)
  3. “सम्प्रति संसारे ……………………………… वर्तते।” इत्यत्र ‘वर्तते’ क्रियायाः कर्तृपदं किम्?

उत्तर:

  1. द्विविधम्।
  2. प्रदूषणसमस्यायाः निवारणाय अस्माभिः सर्वैरेव प्रयत्नः कर्त्तव्यः।
  3. समस्या।

(3)
मेवाड़राज्यं बहूनां शूराणां जन्मभूमिः। तस्य,राजा राणा प्रतापः सिंहासनम् आरूढ़वान्। ‘हस्तच्युतानां भागानां प्रतिप्राप्तिः कथम्’ इति विचिन्त्य सः पुरप्रमुखाणां सभाम् आयोजितवान्। तत्र सः प्रतिज्ञां कृतवान् ‘चित्तौड़स्थानं यावत् न प्रतिप्राप्स्यामि तावत् सुवर्णपात्रे भोजनं न करिष्यामि। राजप्रासादे वासं न करिष्यामि। मृदुतल्पे शयनमपि न करिष्यामि” इति। तदा पुरप्रमुखाः अवदन्वयमपि सुखसाधनानि त्यक्ष्यामः। देशाय यथाशक्तिः धनं दास्यामः। अस्मत् पुत्रान् सैन्यं प्रति प्रेषयिष्यामः” इति।

हिन्दी-अनुवाद-मेवाड़ राज्य बहुत से शूरों (वीरों) की जन्म-भूमि है। उसका राजा राणा प्रताप सिंहासन पर आरूढ़ हुए।’हाथ से निकले हुए भागों की पुन: प्राप्ति कैसे हो’ ऐसा विचार करके उन्होंने नगर प्रमुखों की सभा का आयोजन किया। वहाँ उन्होंने प्रतिज्ञा की कि ”जब तक चित्तौड़ को पुनः प्राप्त नहीं करूंगा तब तक स्वर्ण पात्र में भोजन नहीं करूंगा। राजमहल में निवास नहीं करूंगा। कोमल बिस्तर पर नहीं सोऊंगा।” तब नगर-प्रमुख बोले- “हम सब भी सुख-साधनों का त्याग करेंगे। देश के लिए यथाशक्ति धन देंगे। हमारे पुत्रों को सेना में भेजेंगे।”

प्रश्नाः

  1. कः सुवर्णपात्रे भोजनं न करिष्यति? (एकपदेन उत्तरत)।
  2. किं विचिन्त्य प्रतापः पुरप्रमुखाणां सभाम् आयोजितवान्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. तदा पुरप्रमुखाः …………………………….. सुखसाधनानि त्यक्ष्यामः’ इत्यत्र ‘त्यक्ष्यामः इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?

उत्तर:

  1. राणा प्रतापः।
  2. ‘हस्तच्युतानां भागानां प्रतिप्राप्तिः कथम्’ इति विचिन्त्य
  3. पुरप्रमुखाः।

(4)
अस्ति मगधदेशे अतीव सुन्दरः मनोहरः रमणीयः जलाशयः। तस्य तोये सुरभीणि कमलानि आसन्। तत्र तड़ागे हंसौ अवसताम्। कम्बुग्रीवो नाम कुर्मः तयोः मित्रमासीत्। एकदा केचित् धीवरास्तत्रागत्य श्वो जलचराणां ग्रहणाय निश्चयमकुर्वन्। तेषां निश्चयं ज्ञात्वा कूर्मस्य नयनाभ्याम् अश्रूणि अगलन्। हंसौ तम् उपायमेकं बोधितवन्तौ।

हिन्दी-अनुवाद-मगध देश में अत्यन्त सुन्दर, मनोहर और रमणीय तालाब था। उसके जल में सुगन्धित कमल थे। वहाँ तालाब में दो हंस रहते थे। कम्बुग्रीव नामक कछुआ उन दोनों का मित्र था। एक बार कुछ मछुआरों ने वहाँ आकर कल जलचरों को पकड़ने का निश्चय किया। उनका निश्चय जानकर कछुए के नेत्रों से आँसू निकलने लगे। दोनों हंसों ने उसको एक उपाय बताया।
प्रश्नाः

  1. हंसयो: मित्रं कः आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
  2. जलाशयस्य तोये कानि आसन्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. एकदा केचित् धीवराः ……………………………………. निश्चयमकुर्वन्’ इत्यत्र ‘अकुर्वन्’ इति क्रियायाः कर्तृपदं किम्?

उत्तर:

  1. कम्बुग्रीवः कुर्मः।
  2. जलाशयस्य तोये सुरभीणि कमलानि आसन्।
  3. धीवराः।

(5)
अस्माकं पुस्तकालयः नगरस्य रमणीये स्थाने वर्तते। अस्य भवनं विशालं सुन्दरं चास्ति। अस्मिन् पुस्तकालये दशसहस्राणि पुस्तकानि सन्ति तथा च अत्र विविध पत्र-पत्रिकादयः प्रतिदिनं आयान्ति। बहवः जनाः, छात्राः, युवतयश्च अत्र आगत्य स्वध्यायं कुर्वन्ति। अस्माकं ज्ञानवर्धनाय बौद्धिकविकासाय च पुस्तकालयानां महती भूमिका वर्तते।

हिन्दी-अनुवाद-हमारा पुस्तकालय नगर के रमणीय स्थान पर है। इसका भवन विशाल और सुन्दर है। इस पुस्तकालय में दस हजार पुस्तकें हैं और विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ प्रतिदिन आती हैं। बहुत से लोग, छात्र और युवतियाँ यहाँ आकर स्वाध्याय करते हैं। हमारे ज्ञान-वर्धन और बौद्धिक विकास के लिए पुस्तकालयों की महान् भूमिका है।
प्रश्नाः

  1. अस्माकं पुस्तकालयस्य भवनं कीदृशं वर्तते? (एकपदेन उत्तरत)
  2. अस्माकं ज्ञानवर्धनाय बौद्धिकविकासाय च केषां महती भूमिका वर्तते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)।
  3. ‘दशसहस्राणि पुस्तकानि” इत्यत्र विशेषणपदं किम्?

उत्तर:

  1. विशालं सुन्दरं च।
  2. अस्माकं ज्ञानवर्धनाय बौद्धिकविकासाय च पुस्तकालयानां महती भूमिका वर्तते।
  3. दशसहस्राणि।

(6)
अस्माकं देशे षड् ऋतवः नवचेतनासञ्चराणाय समायान्ति। तत्रापि। वर्षाकालं दृष्ट्वा सर्वे नन्दन्ति। अयं ग्रीष्मानन्तरं समायाति। वर्षाकाले आकाशे मेघाः आयान्ति। ते गर्जन्ति वर्षन्ति च। सौदामिन्यः स्फुरन्ति। सर्वत्र जलं भवति। वर्षाजलैः स्नाता वसुन्धरा मोदते। सर्वत्र हरीतिमा विभाति। वर्षाकाले मण्डूकाः रटन्ति। मयूराः नृत्यन्ति। वृक्षाः पल्लविताः भवन्ति। निर्झराः मधुरं नदन्ति, नद्यः वेगेन प्रवहन्ति। वर्षाकाले ग्रामे मार्गाः पङ्कमयाः भवन्ति। जलाशयाः, कूपाः अपि पूर्णाः भवन्ति।

हिन्दी-अनुवाद-हमारे देश में छः ऋतुएँ नवीन चेतना का संचार करने के लिए आती हैं। उनमें भी वर्षा-काल को देखकर सभी आनन्दित होते हैं। यह ग्रीष्म ऋतु के बाद आता है। वर्षाकाल में आकाश में बादल आते हैं। वे गर्जन करते हैं और वर्षा करते हैं। बिजलियाँ चमकती हैं। सभी जगह जल होता है। वर्षा के जल से स्नान की हुई पृथ्वी प्रसन्न होती है। सभी जगह हरियाली सुशोभित होती है। वर्षाकाल में मेंढक टर्राते हैं। मोर नाचते हैं। वृक्ष नवीन पत्तों से युक्त होते हैं। झरने मधुर नाद करते हैं, नदियाँ वेग से बहती हैं। वर्षाकाल में गाँव में रास्ते कीचड़युक्त हो जाते हैं। तालाब, कुएँ भी जल से पूर्ण हो जाते हैं।
प्रश्नाः

  1. कं कालं दृष्ट्वा सर्वे नन्दन्ति? (एकपदेन उत्तरत)
  2. अस्माकं देशे षड् ऋतवः किं कर्तुं समायान्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. ‘अयं ग्रीष्मानन्तरं समायाति’ ……………………… इत्यस्मिन् वाक्ये ‘अयं सर्वनाम पदस्थाने ‘संज्ञापदं किम्?

उत्तर:

  1. वर्षाकालम्।
  2. अस्माकं देशे षड् ऋतवः नवचेतनासञ्चराणाय समायान्ति।
  3. वर्षाकालः।

(7)
एकः कपोतपालकः आसीत्। तस्य समीपे बहवः कपोताः आसन्। सः तान् उपदिशति स्म-वने व्याधः आगमिष्यति, जालं प्रसारयिष्यति, तण्डुलान्, विकरिष्यति परन्तु युष्माभिः तत्र न गन्तव्य्। रटत-“वयं तत्र न गमिष्यामः, जाले न पतिष्यामः’। कपोताः तथैव पाठं रटितवन्तः, प्रतिदिनमेव पाठं कृतवन्तः। एकस्मिन् दिने यावत् ते सर्वे आकाशे विहरन्ति स्म, तावद् एकस्मिन् स्थाने जालस्य उपरि तण्डुलकणान् दृष्ट्वा झटिति अवातरन्। जाले बद्धाः अपि ते तथैव वदन्ति स्म-‘वयं जाले न पतिष्यामः …………………………………………” नूनं ज्ञानं भारः क्रिया विना।

हिन्दी-अनुवाद-एक कबूतर-पालक था। उसके पास बहुत-से कबूतर थे। वह उनको उपदेश देता था कि-वन में शिकारी आयेगा, जाल फैलायेगा, चावलों को बिखेरेगा, किन्तु तुम्हें वहाँ नहीं जाना चाहिए। रटो–”हम वहाँ नहीं जायेंगे, जाल में नहीं गिरेंगे।” कबूतरों ने उसी प्रकार पाठ को रटा, रोजाना ही पाठ करते थे। एक दिन जब वे सभी आकाश में उड़ रहे थे, तभी एक स्थान पर जोल के ऊपर चावलों के कणों को देखकर शीघ्र ही नीचे उतर गये। जाल में बन्द होने पर भी वे उसी प्रकार बोल रहे थे—’हम जाल में नहीं गिरेंगे: …………………………………………।” निश्चय ही क्रिया के बिना ज्ञान भार ही होता है।

प्रश्नाः

  1. कपोताः कस्य उपरि तण्डुलकणान् अपश्यन्? (एकपदेन उत्तरत)
  2. कः कपोतान् उपदिशति स्म? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. ‘नीचैः’ इति पदस्य किं विलोमपदम् अत्र प्रयुक्तम्?

उत्तर:

  1. जालस्य।
  2. कपोतपालकः कपोतान् उपदिशति स्म।
  3. उपरि।

(8)
इदं हि विज्ञानप्रधानं युगम्। ‘विशिष्टं ज्ञानं विज्ञानम्’ इति कथ्यते। अस्यां शताब्द्यां सर्वत्र विज्ञानस्यैव प्रभावो दरीदृश्यते। अधुना नहि तादृशं किमपि कार्यं यत्र विज्ञानस्य साहाय्यं नापेक्ष्यते। आवागमने, समाचारप्रेषणे, दूरदर्शने, सम्भाषणे, शिक्षणे, चिकित्साक्षेत्रे, मनोरंजनकार्ये, अन्नोत्पादने, वस्त्रनिर्माणे, कृषिकर्मणि तथैवान्यकार्यकलापेषु विज्ञानस्य प्रभावस्तदपेक्षा च सर्वत्रूवानुभूयते।

हिन्दी-अनुवाद-यह विज्ञान-प्रधान युग है। ‘विशेष ज्ञान ही विज्ञान हैं’-ऐसा कहा जाता है। इस शताब्दी में सभी जगह विज्ञान का ही प्रभाव दिखाई देता है। अब ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जिसमें विज्ञान की सहायता की आवश्यकता नहीं हो। आवागमन में, समाचार भेजने में, दूरदर्शन में, सम्भाषण में, शिक्षण में, चिकित्सा के क्षेत्र में, मनोरञ्जन कार्य में, अन्न-उत्पादन में, वस्त्र निर्माण में, कृषि कार्य में तथा अन्य कार्य-कलापों में विज्ञान का प्रभाव और उसकी आवश्यकता सभी जगह अनुभव में की जाती है।

प्रश्नाः

  1. इदं हि कीदृशं युगम्? (एकपदेन उत्तरत)
  2. विज्ञानं किम् कथ्यते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. उपर्युक्तगद्यांशे ‘इदम्’ सर्वनामपदस्य संज्ञापदं किमस्ति?

उत्तर:

  1. विज्ञानप्रधानम्।
  2. विशिष्टं ज्ञानं विज्ञानम्’ कथ्यते।
  3. युगम्।

(9)
भारतं शान्तेः भूमिः। अत्र अस्माकं पूर्वजाः ऋषयः मुनयः च विश्वं कुटुम्बवत् पश्यन्ति स्म। ऋषिः व्यासः अपि अकथयत्-‘परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीडनम्’ इति एतद् वाक्यद्वयमेव सर्वेषां धर्मग्रन्थानां सारः।
उपनिषत्सु अपि वर्णितम्-यः मानवः सर्वान् आत्मवत् पश्यति सः एव वस्तुतः पश्यति। इदानीं केचन शिक्षिताः अपि मार्गभ्रष्टाः भृत्वा समाजविरोधिकार्याणि कुर्वन्ति इति खेदस्य विषयः। अतः शिक्षायाम् नैतिकमूल्यानां विकासाय अधिकाधिकः प्रयत्नः करणीयः। येन विद्या संस्कार दद्यात्, विनयं वर्धयेत्, शीलं च विकासयेत्।

हिन्दी-अनुवाद- भारत शान्ति की भूमि है। यहाँ हमारे पूर्वज ऋषि और मुनि संसार को परिवार के समान देखते थे। ऋषि व्यास ने भी कहा है- ‘परोपकार पुण्य के लिए तथा दूसरों को पीड़ित करना पाप के लिए होता है।” ये दो वाक्य ही सभी , धर्मग्रन्थों का सार है। उपनिषदों में भी वर्णन किया गया है जो मनुष्य सभी को अपने समान देखता है, वही वास्तव में देखता है। इस समय कुछ शिक्षित लोग भी मार्गभ्रष्ट होकर समाज-विरोधी कार्य करते हैं, यह खेद का विषय है। इसलिए शिक्षा में नैतिक मूल्यों के विकास के लिए अधिक से अधिक प्रयत्न करने चाहिए। जिससे विद्या संस्कार प्रदान करे, विनम्रता बढ़ावे और चरित्र का विकास करे।

प्रश्नाः

  1. शिक्षायां केषां विकासाय प्रयत्नः करणीयः? (एकपदेन उत्तरत)
  2. के विश्वं कुटुम्बवत् पश्यन्ति स्म? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. ‘शिक्षिताः’ इति विशेष्यस्य विशेषणं किम्?

उत्तर:

  1. नैतिकमूल्यानाम्।
  2. अस्माकं पूर्वजाः ऋषयः मुनयः च विश्वं कुटुम्बवत् पश्यन्ति स्म।
  3. केचन।

(10)
उत्साहः, उदासीनता, निराशा चेति तिस्रः मनसः अवस्थाः। शिशवः सदा उत्साहशीलाः इति विदितमेव। युवानः अपि प्रायेण उत्साहशीलाः। अनेके वृद्धाः अपि तथैव। वयसः उत्साहस्य च नास्ति सम्बन्धः। उत्साहः मानवस्य सहजः स्वभावः। स मनसः शरीरस्य च विकासाय भवति। शिशुः उत्साहेन सर्वं ग्रहीतुं, सर्वं खादितुं सर्वं सह खेलितुं च प्रवर्तते, प्रतिबन्धे कृते रोदिति। उपहासे कृते क्रोधं प्रकटयति किन्तु निराशो न भवति।
हिन्दी-अनुवाद-उत्साह, उदासीनता और निराशा ये तीन मन की अवस्था हैं। बालक सदा उत्साहशील होते हैं, यह जानते ही हैं। युवक भी प्रायः उत्साहशील होते हैं। अनेक वृद्ध भी उसी तरह ही होते हैं। आयु का और उत्साह का सम्बन्ध नहीं है। उत्साह मानव का सहज स्वभाव है। वह मन और शरीर के विकास के लिए होता है। बालक उत्साह से सब कुछ ग्रहण करने, सब कुछ खाने के लिए और सभी के साथ खेलने में प्रवृत्त होता है, रोकने पर रोता है। उपहास करने पर क्रोध प्रकट करता है किन्तु निराश नहीं होता है।

प्रश्नाः

  1. मनसः कति अवस्थाः सन्ति? (एकपदेन उत्तरत)
  2. मनसः तिस्रः अवस्थाः का:? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. अनेके वृद्धाः’–इत्यनयोः पदयोः विशेषणपदं किम्?

उत्तर:

  1. तिस्रः।
  2. उत्साहः, उदासीनता, निराशा चेति तिस्रः मनसः अवस्थाः।
  3. अनेकेः।

(11)
मथुरानगर्याम् एकं कुटीरम् आसीत्। तत्र महाप्राज्ञः, ज्ञानचक्षुः आचार्यः दण्डी निवसति स्म। एकदा कश्चन युवा संन्यासी आगत्य द्वारताडनं कृतवान्। तं शब्दं श्रुत्वा अन्तर्भागतः एव आचार्यः अपृच्छत-“कः भवान्’ इति। तदा युवा संन्यासी अवदत्-तदेव ज्ञातुम् अहम् अत्र आगतः इति। आश्चर्यचकितः आचार्यः द्वारम् उद्घाट्य अपृच्छत्-‘किं नाम भवतः?” संन्यासी अवदत्-‘जनाः माम् दयानन्दः’ इति सम्बोधयन्ति।”

हिन्दी-अनुवाद-मथुरा नगरी में एक कुटिया थी। वहाँ महान् विद्वान्, ज्ञानरूपी नेत्रों वाला आचार्य दण्डी रहता था। एक बार किसी युवा संन्यासी ने आकर दरवाजा बजाया। वह शब्द सुनकर अन्दर से ही आचार्य ने पूछा- “आप कौन हैं?” तब युवा संन्यासी ने कहा—वही जानने के लिए मैं यहाँ आया हूँ। आश्चर्यचकित आचार्य ने दरवाजा खोलकर पूछा “आपका क्या नाम है?” संन्यासी बोला- ”लोग मुझे ‘दयानन्द’ इस नाम से सम्बोधित करते हैं।”

प्रश्नाः

  1. युवा संन्यासी कः आसीत्? (एकपदेन उत्तरत)
  2. आचार्यः कस्यां नगर्या वसति स्म? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. ‘सम्बोधयन्ति’ इति क्रियापदस्य कर्तृपदं किम्?

उत्तर:

  1. दयानन्दः।
  2. आचार्यः दण्डी मथुरानगर्यां वसति स्म।
  3. जनाः।

(12)
यत् परितः अस्मान् आवृणोति तत् पर्यावरणं कथ्यते। पृथ्वीजलाकाशवनस्पतयः जीवाश्च पर्यावरणसर्जकाः सन्ति। वर्तमानकाले प्राकृतिसंसाधनानां असन्तुलितदोहनेन औद्योगिक-विस्तारेण च पर्यावरण प्रदूषितं जातम्। अद्य वायु-जल-ध्वनिप्रदूषणेन मानवजीवनं दुःखमयं सञ्जातम्। अद्य मानवसभ्यतायाः संरक्षणार्थं स्वास्थ्य संवर्द्धनार्थञ्च पर्यावरणस्य सन्तुलनं संरक्षणं च आवश्यकं वर्तते।

हिन्दी-अनुवाद-जो चारों ओर से हमें ढकता है, उसे पर्यावरण कहा जाता है। पृथ्वी, जल, आकाश, वनस्पतियों और जीव पर्यावरण को बनाने वाले होते हैं। वर्तमान समय में प्राकृतिक संसाधनों के असन्तुलित दोहन से और औद्योगिक विस्तार से पर्यावरण प्रदूषित हो गया है। आज वायु, जल और ध्वनि प्रदूषण से मानव-जीवन दुःखमय हो गया है। आज मानव-सभ्यता की सुरक्षा के लिए और स्वास्थ्य के संवर्द्धन के लिए पर्यावरण का सन्तुलन और संरक्षण आवश्यक है।

प्रश्नाः

  1. यत् परितः अस्मान् आवृणोति तत् किं कथ्यते? (एकपदेन उत्तरत)
  2. किमर्थं पर्यावरणस्य सन्तुलनं संरक्षणं च आवश्यकं वर्तते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. उपर्युक्त अनुच्छेदे ‘सुखमयम्’ इति पदस्य विलोमशब्दः कः?

उत्तर:

  1. पर्यावरणम्।
  2. मानवसभ्यतायाः संरक्षणार्थं स्वास्थ्य-संवर्द्धनार्थञ्च पर्यावरणस्य सन्तुलन संरक्षणं च आवश्यकं वर्तते।
  3. दुःखमयम्।

(13)
अस्माकं भारतवर्षः प्राकृतिक सुषमायाः भण्डारो वर्तते। अत्र प्रकृति नटी प्रतिक्षणं नव्यं भव्यं च नाटयति। अत्र एकस्मिन् वर्षे षड्तवो भवन्ति वसन्तः, ग्रीष्मः, वर्षा, शरत्, शिशिर, हेमन्तश्च। एषु वसन्तस्यैव प्राधान्यं वर्तते। समागमे वसन्ते नातिशीतं नात्युष्णं भवति। साधुः एष ऋतुः ऋतुषु ऋतुराज इति कथ्यते। अस्मिन् ऋतौ वसुन्धरा सुसज्जितं मनोरमं रूपं धारयति। सर्वमपि चारुतरं प्रतिभाति।

हिन्दी-अनुवाद-हमारा भारतवर्ष प्राकृतिक सौन्दर्य का भण्डार है। यहाँ प्रकृति रूपी नायिका प्रत्येक क्षण नवीन और भव्य रूप धारण करती है। यहाँ एक वर्ष में छः ऋतुएँ होती हैं–वसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरत्, शिशिर और हेमन्त ऋतु। इनमें वसन्त की ही प्रधानता है। वसन्त ऋतु के आने पर न अधिक गर्मी रहती है और न अधिक सर्दी रहती है। वह श्रेष्ठ ऋतु ऋतुओं में ‘ऋतुराज’ कही जाती है। इस ऋतु में पृथ्वी सुसज्जित और मनोरम रूप को धारण करती है। सभी कुछ सुन्दर प्रतीत होता है।

प्रश्नाः

  1. अत्र एकस्मिन् वर्षे कति ऋतवो भवन्ति? (एकपदेन उत्तरत)
  2. कः प्राकृतिकसुषमायाः भण्डारो वर्तते? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. “अत्र प्रकृतिनटी प्रतिक्षणं नव्यं भव्यं च नाटयति।” उपर्युक्तवाक्ये क्रियापदं किम्?

उत्तर:

  1. षड्।
  2. भारतवर्षः प्राकृतिकसुषमायाः भण्डारो वर्तते।
  3. नाटयति।

(14)
यदि स्वजनः एव लोभी भूत्वा शत्रुभिः सह मिलति तदा नाशः एव भवति। कोऽपि जनः आत्मानं तस्मात् नाशात् रक्षितुं समर्थः न भवति। एकः मनुष्यः कुठारं रचितवान्। प्रयोगार्थं तत्र काष्ठदण्डम् योजितवान् ततः सः कुठारं नीत्वा वनम् अगच्छत्। तत्र कुठारेण वृक्षस्य छेदनं कर्तुं प्रारभत। तदा वृक्षः काष्ठदण्डं सम्बोध्य अवदत्-भो विभीषणः नूनं त्वमेव मम नाशस्य कारणम् इति।

हिन्दी-अनुवाद-यदि अपना ही व्यक्ति लोभी होकर शत्रुओं के साथ मिलता है तो विनाश ही होता है। कोई भी व्यक्ति स्वयं को उस विनाश से बचाने में समर्थ नहीं होता है। एक मनुष्य ने कुठार का निर्माण किया.., काम में लेने के लिए उसे लकड़ी के दण्डे से जोड़ा। तब वह कुठार (कुल्हाड़ी) को लेकर वन में गया। वहाँ कुल्हाड़ी से वृक्ष काटने लगा। तब वृक्ष ने लकड़ी के दण्डे को सम्बोधित करके कहा-अरे विभीषण! निश्चय तुम ही मेरे विनाश का कारण हो।

प्रश्नाः

  1. वृक्षः कं विभीषणः!’ इति सम्बोधयति? (एकपदेन उत्तरत)
  2. वृक्षः काष्ठदण्डं सम्बोध्य किं वदति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. आनीय’ इति पदस्य किं विलोमपदम् अत्र प्रयुक्तम्?

उत्तर:

  1. काष्ठदण्डम्।
  2. वृक्षः काष्ठदण्डं सम्बोध्य वदति यत्-भो विभीषण! नूनं त्वमेव मम नाशस्य कारणम्।
  3. नीत्वा।

(15)
आँग्लदेशीयाः पूर्वम् भारतदेशे शासनम् अकुर्वन्। स्वाधीनतायै अनेकानि आन्दोलनानि अभवन्। लक्ष्मीबाई एका प्रमुखा सेनानायिका आसीत्। तस्याः जनकः जननी च बिठूरराज्ये अवसताम्। लक्ष्मीबाई शस्त्रज्ञाने अश्वारोहणे च निपुणा आसीत्। तस्याः विवाहः गंगाधरेण सह अभवत्। गंगाधरस्य असमये एवं मृत्युः अभवत्। आँग्लसेनानायकः यूरोजः अकथयत्-‘राज्ञी आत्मसमर्पण करोतु’ इति। लक्ष्मीबाई अवदत्-‘झाँसीराज्यं मम अस्ति। अहं झाँसी-राज्यं न दास्यामि’ इति। सा अँग्लैः सह भीषणं युद्धम् अकरोत्। अन्ते सा प्राणान् अत्यजत्।

हिन्दी-अनुवाद-पहले भारत में अंग्रेज शासन करते थे। स्वतन्त्रता के लिए अनेक आन्दोलन हुए। लक्ष्मीबाई एक प्रमुख सेनानायिका थी। उसके माता-पिता बिठूर राज्य में रहते थे। लक्ष्मीबाई शस्त्र-ज्ञान और अश्वारोहण में निपुण थी। उसका विवाह गंगाधर के साथ हुआ था। गंगाधर की असमय में ही मृत्यु हो गई थी। अंग्रेज सेनानायक यंरोज ने कहा—‘रानी आत्मसमर्पण करो।’ लक्ष्मीबाई बोली-‘झाँसी-राज्य मेरा है। मैं झाँसी-राज्य को नहीं देंगी।’ उसने अंग्रेजों के साथ भीषण युद्ध किया। अन्त में उसने प्राणों को त्याग दिया।

प्रश्नाः

  1. आँग्लदेशीयाः पूर्वम् कुत्र शासनम् अकुर्वन्? (एकपदेन उत्तरत)
  2. लक्ष्मीबाई कस्मिन् निपुणा आसीत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. “सा आँग्लैः सह भीषणं युद्धम् अकरोत्’ उपर्युक्तवाक्ये सर्वनामपदं ‘सा’ स्थाने संज्ञापदं किम्?

उत्तर:

  1. रतदेशे।
  2. लक्ष्मीबाई शस्त्रज्ञाने अश्वारोहणे ; निपुण आसीत्
  3. लक्ष्मीबाई।

(17)
शिष्यः गुरुम् अपृच्छत्-‘महोदय! सुखसुविधयोः को भेदः?” गुरुः अवदत्-अहम् एकदा एकस्य थनिनो गृहे अतिथिः अभवम् तस्य आतिथ्यगृहं दृष्ट्वा मनसि अतिव्यथितः आसम्। तत्र सर्वतः बहुमूल्यानि उपकरणानि आसन्, भ्रमणेऽपि अवधानतायाः आवश्यकता अभवत्, कदाचित् किमपि उपकरणं त्रुटितं न स्यात्। आसीत् तत्र सर्वा सुखसामग्री परम् आनन्दस्य ने अवर्तत कोऽपि उपभोक्ता। आतिथ्यस्थानं नासीद् उपवेष्टु योग्यम् एवमुक्त्वा गुरुः शिष्यं समबोधयत्-‘उपकरणैः प्राप्यते नैव सुखम्। तत् तु मनसः आनन्देन एव जायते।”

हिन्दी-अनुवाद-शिष्य ने गुरु से पूछा-”महोदय ! सुख और सुविधा में क्या भेद है?” गुरु ने कहा–”मैं एक बार एक धनवान् के घर अतिथि के रूप में गया। उसका आतिथ्य-गृह देखकर मन में बहुत दुःखी था। वहाँ सभी ओर बहुमूल्य उपकरण थे, भ्रमण में भी सावधानी की आवश्यकता हुई कि कभी कोई उपकरण टूट न जाये। वहाँ सभी सुख-सामग्री थी, किन्तु परम आनन्द को भोगने वाला कोई नहीं था। आतिथ्य का स्थान बैठने योग्य नहीं था।” ऐसा कहकर गुरु ने शिष्य को समझाया-“उपकरणों से सुख प्राप्त नहीं होता है। वह तो मन के आनन्द से ही उत्पन्न होता है।

प्रश्नाः

  1. शिष्यः कयोः भेदम् अपृच्छत्? (एकपदेन उत्तरत)।
  2. सुखसामग्र्याः आनन्दस्य कः न आसीत्? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. ‘अभवम्’ इति क्रियापदस्य किं कर्तृपदम्?

उत्तर:

  1. सुखसुविधयोः।
  2. सुखसामग्रयाः आनन्दस्य उपभोक्ता न आसीत्
  3. अहम् (गुरुः)।

(18)
अस्माकं विद्यालयः अपरा काशीनाम्ना विख्यातस्य जयपुरनगरस्य मध्ये रमणीये स्थाने स्थितः। अयम् उच्चमाध्यमिकविद्यालयः अस्ति। अस्य भवनं द्विभूमिकं विस्तृतं भव्यं सुसज्जितम् चास्ति। अस्य पुस्तकालये दशसहस्राणि पुस्तकानि सन्ति, विविधाः पत्र-पत्रिकाः च समायान्ति। अयं विद्यालयः पठन-पाठनदृष्ट्या सुव्यवस्थितः सुशासितश्च वर्तते। अत्रत्याः छात्राः योग्यतमाः सन्ति। अयम् आदर्शविद्यालयः अस्ति।

हिन्दी-अनुवाद-हमारा विद्यालय दूसरी काशी के नाम से विख्यात जयपुर नगर के मध्य रमणीय स्थान पर है। यह उच्च माध्यमिक विद्यालय है। इसका भवन दुमंजिला, विस्तृत, भव्य और सुसज्जित है। इसके पुस्तकालय में दस हजार पुस्तकें हैं, और विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ आती हैं। यह विद्यालय पठन-पाठन की दृष्टि से सुव्यवस्थित और सुशासित है। यहाँ के छात्र योग्यतम हैं। यह आदर्श विद्यालय है।

प्रश्नाः

  1. अपरा काशी नाम्ना कः विख्यातः? (एकपदेन उत्तरत)
  2. विद्यालयस्य भवनं कीदृशम् अस्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत),
  3. “अस्य पुस्तकालये दशसहस्राणि पुस्तकानि सन्ति।” उपर्युक्तवाक्ये विशेष्यपदं किम्?

उत्तर:

  1. जयपुरनगरम्
  2. विद्यालयस्य भवनं द्विभूमिकं विस्तृतं भव्यं सुसज्जितं चास्ति।
  3. पुस्तकानि।

(19)
परेषाम् प्राणिनामुपकारः परोपकारोऽस्ति। परस्य हितसम्पादनं मनसा वाचा कर्मणा चान्येषां हितानुष्ठानमेव परोपकारशब्देन गृह्यते। संसारे परोपकारः एव स गुणो विद्यते, येन मनुष्येषु सुखस्य प्रतिष्ठा वर्तते। परोपकारेण हृदयं पवित्रं सरलं सरसं सदयं च भवति सत्पुरुषाः कदापि न स्वार्थतत्पराः भवन्ति। ते परेषां दुःखं स्वीयं दुःखं मत्वा तन्नाशाय यतन्ते। ये दीनेभ्यो दानं ददति, निर्धनेभ्यो धनम्, वस्त्रहीनेभ्यो वस्त्रम्, पिपासितेभ्यो जलम्, बुभुक्षितेभ्योऽन्नम्, अशिक्षितेभ्यश्च शिक्षा ददति।

हिन्दी-अनुवाद-दूसरे प्राणियों का उपकार करना परोपकार कहा जाता है। मन, वचन और धर्म से दूसरों का हित करना और अन्य लोगों के हित को सोचना ही परोपकार शब्द से ग्रहण किया जाता है। संसार में परोपकार ही वह गुण है, जिससे मनुष्यों में सुख की प्रतिष्ठा है। परोपकार से हृदय पवित्र, सरल, सरस और दयायुक्त होता है। सत्पुरुष कभी भी स्वार्थ में तत्पर नहीं होते हैं। वे दूसरों के दुःख को अपना दुःख मानकर उसके विनाश के लिए प्रयत्न करते हैं। वे दोनों के लिए दान देते हैं, निर्धनों के लिए धन, वस्त्रहीनों को वस्त्र, प्यासों को जल, भूखों को अन्न तथा अशिक्षितों को शिक्षा देते हैं।

प्रश्नाः

  1. केन हृदयं पवित्रं सरलं सरसं च भवति? (एकपदेन उत्तरत)
  2. कः परोपकारोऽस्ति? (पूर्णवाक्येन उत्तरत)
  3. उपर्युक्तगद्यांशे ‘शिक्षितेभ्यः’ इत्यस्य विलोमपदं किं प्रयुक्तम्?

उत्तर:

  1. परोपकारेण
  2. परेषाम् प्राणिनामुपकारः परोपकारोऽस्ति
  3. अशिक्षितेभ्यः।

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