RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 मानवधर्मः

Rajasthan Board RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 मानवधर्मः

RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 वस्तुनिष्ठ प्रश्नाः

प्रश्ना 1.
प्राणायामाः कतिविधः भवन्ति?
(क) द्विविधः
(ख) चतुर्विधः
(ग) त्रिविधः
(घ) पञ्चविधः
उत्तर:
(ग) त्रिविधः

प्रश्ना 2.
‘श्रुतिस्मृति’ रूपेण के ग्रन्थाः परिगण्यते?
(क) वेदशास्त्र-धर्मशास्त्र
(ख) अर्थशास्त्र-कामशास्त्र
(ग) इतिहास-पुराण
(घ) वेदांग-उपनिषद्
उत्तर:
(क) वेदशास्त्र-धर्मशास्त्र

प्रश्ना 3.
इन्द्रियाणां संख्या वर्तन्ते?
(क) पञ्च।
(ख) षट्।
(ग) दश
(घ) एकादश
उत्तर:
(घ) एकादश

प्रश्ना 4.
‘श्रेयस्त्रिवर्ग:’ अस्मिन् पदे त्रिवर्गस्य किमर्थम्?
(क) धर्मः।
(ख) अर्थः।
(ग) कामः।
(घ) एते सर्वे।
उत्तर:
(घ) एते सर्वे।

प्रश्न 5.
रिक्तस्थानपूर्तिः क्रियताम्
उत्तर:
(क) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
(ख) संतोषं परमास्थायं सुखार्थीः संयतो भवेत्।
(ग) श्रद्धधानोऽनसूयश्च शतं वर्षाणि जीवति।
(घ) इह कीर्तिमवाप्नोति प्रेत्य चानुत्तमं सुखम्।

प्रश्न 6.
अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितान् पदान् आश्रित्य प्रश्ननिर्माण कुरुत
उत्तर:
(क) सत्यं मौनात् विशिष्यते।
सत्यं कस्मात् विशिष्यते।

(ख) कामानाम् उपभोगेन कामः न शाम्यति?
केषाम् उपभोगेन कामः न शाम्यति?

(ग) आचारः अलक्षणं हन्ति।
आचारः किं हन्ति?

(घ) ईप्सिताः प्रजाः आचारात् लभते।
ईप्सिताः प्रजाः कस्मात् लभते?

RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नाः
प्रश्न 1.
परं तपः किमस्ति?
उत्तर:
प्राणायामाः।

प्रश्न 2.
अक्षय्यं धनं कस्मात् लभते?
उत्तर:
आचारात्।

प्रश्न 3.
गुरुगतां विद्यां कः अधिगच्छति?
उत्तर:
शुश्रूषुः।

प्रश्न 4.
शतं वर्षाणि कः जीवति?
उत्तर:
सदाचारवान्, श्रद्दधानः अनसूयश्च नरः।

प्रश्न 5.
अमित्रादपि किं ग्राह्यम्?
उत्तर:
सद्वृत्तम्।

RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 लघूत्तरात्मकप्रश्नाः
प्रश्न. 1.
श्रुतिस्मृतिग्रन्थान् अनुसृत्य किम् अवाप्नोति?
उत्तर:
श्रुतिस्मृतिग्रन्थान् अनुसृत्य इह कीर्तिम्, प्रेत्य चानुत्तमं सुखम् अवाप्नोति।

प्रश्न 2.
इन्द्रियाणां संयमे विद्वान् यत्नं कथम् आचरेत्?
उत्तर:
इन्द्रियाणां संयमे विद्वान् यत्नं यन्ता वाजिनामिव आचरेत्।

प्रश्न 3.
सुखदुःखमयोः मूलं किम्?।
उत्तर:
संतोषं सुखस्य मूलम् तथा असन्तोषं दुःखस्य मूलम्।

प्रश्न 4.
आचारात् किं-किं लभते?
उत्तर:
आचारात् आयुः, ईप्सिताः प्रजाः, अक्षय्यं धनं च लभते।

प्रश्न 5.
सुखदुःखयोः लक्षणं किम्?
उत्तर:
सर्वं परवशं दुःखम्, सर्वमात्मवशं सुखम्।

RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 निबन्धात्मकप्रश्नाः
प्रश्न 1.
इन्द्रियसंयमस्य महत्त्वं प्रतिपादयत।
उत्तर:
इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन मानवः निश्चयेन दोषं प्राप्नोति, तानि इन्द्रियाणि एवं संनियम्य सः सिद्धिं प्राप्नोति। अतः अपहारिषु विषयेषु विचरताम् इन्द्रियाणां संयमे विद्वान् यन्ता वाजिनामिव यत्नं करणीयम्।

प्रश्न 2.
‘सन्तोषमूलं हि सुखम्’ किमर्थम् उच्यते?
उत्तर:
यतोहि सर्वेषां दु:खानां मूलम् असन्तोष भवति, सन्तोषेणैव मानवः सुखी भवति। परमं सन्तोषमास्थाय संयतः सुखार्थी भवेत्। अत एवोक्तं यत् सन्तोषमूलं सुखम्।

प्रश्न 3.
पाठस्य द्वादश-सप्तदशयोः श्लोकयोः संप्रसङ्गव्याख्या विधेया।
उत्तर:
द्वादशश्लोकस्य व्याख्या यथा खनन् …………………………………… रधिगच्छति॥

प्रसङ्गः-प्रस्तुतश्लोकः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘मानवधर्मः’ इतिशीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः श्लोकोऽयं मनुस्मृतेः द्वितीयाध्यायात् संकलितः। श्लोकेऽस्मिन् गुरुगतां विद्याप्राप्तिविषये वर्णितम्।

व्याख्या-महर्षिः मनुः कथयति यत् यथा मानवः खनित्रेण परिश्रमपूर्वकं भूमिम् खननं कृत्वा जलं प्राप्नोति, तथैव गुरोः सेवापरायणः आज्ञाकारी वा शिष्यः गुरौ स्थितां विद्यां ज्ञानं वा प्राप्नोति।

सप्तदशश्लोकस्य व्याख्या
यद्यत्परवशं ……………………………………….. “सेवेत् यलतः॥

प्रसङ्गः-प्रस्तुतश्लोकः अस्माकं पाठ्यपुस्तकस्य ‘मानवधर्मः’ इतिशीर्षकपाठाद् उद्धृतः। मूलतः श्लोकोऽयं मनुस्मृतेः चतुर्थाध्यायात् संकलितः। श्लोकेऽस्मिन् परवशं कर्म त्यक्त्वा आत्मवशं कर्म करणीयमिति प्रेरणा प्रदत्ता।

व्याख्या-महर्षिः मनुः कथयति यत्-यदपि पराधीनं कर्म भवति तत् सर्वमपि प्रयत्नपूर्वकं त्याज्यम्। यत् यत् आत्मवशं (स्वाधीनं) कर्म भवेत् तत् तत् कर्म प्रयत्नपूर्वक करणीयम्।

RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 व्याकरणात्मक प्रश्नाः

प्रश्न 1.
अधोलिखितेषु पदेषु नामोल्लेखपूरस्सरसन्धिः कार्यः।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 1

प्रश्न 2.
अधोनिर्दिष्टानां सन्धिपदानां सन्धि-नाम-निर्देशपूर्वक-विग्रहो विधेयः।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 2

प्रश्न 3.
अधोलिखितानां पदानां नाम-निर्देशपूर्वक-समासो विधेयः।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 3

प्रश्न 4.
निम्नलिखितानां समस्तपदानां नाम-निर्देश-पुरस्सर-विग्रहो विधेयः।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 4

प्रश्न 5.
अधोनिर्दिष्टेषु पदेषु शब्द-विभक्ति-वचन-निर्देशं कुरुत।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 5

प्रश्न 6.
निम्नलिखितानां तिङन्तपदानां धातुः लकारः पुरुषः वचनं च पृथक निर्दिश्यताम्।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 6

प्रश्न 7.
निम्नलिखितेषु पदेषु प्रकृतिः प्रत्ययश्च पृथक् लिख्यताम्।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 7

प्रश्न 8.
अधोनिर्दिष्टान् पदान् आश्रित्य वाक्यानि रचयत्।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 8

RBSE Class 12 Sanskrit विजेत्री Chapter 3 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
निम्नलिखितशब्दानाम् हिन्द्याम् अर्थं लिखत
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 9
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 10

प्रश्न 2.
रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत

  1. मानवः श्रुतिस्मृत्युदितं धर्ममनुतिष्ठन् इह कीर्तिमवाप्नोति।
  2. मानवः प्रेत्य अनुत्तमं सुखं प्राप्नोति।
  3. एकाक्षरं परं ब्रह्म कथ्यते।
  4. प्राणायामाः परं तपः कथ्यते।
  5. सत्यं मौनात् विशिष्यते।
  6. इन्द्रियाणां संयमे यत्नमातिष्ठेत्।
  7. इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन दोषम् ऋच्छति।
  8. तानि संनियम्य सिद्धि प्राप्नोति।
  9. कामानाम् उपभोगेन कामः न शाम्यति।
  10. हविषा कृष्णवर्मा भूयः एवाभिवर्धते।
  11. अभिवादनशीलस्य चत्वारि वर्धन्ते।
  12. यत्र नार्यः पूज्यन्ते तत्र देवताः रमन्ते।
  13. अहिंसया एव कार्यं श्रेयः।
  14. विषात् अपि अमृतं ग्राह्यम्।
  15. इह धर्मार्थी श्रेयः उच्यते।
  16. शुश्रूषुः गुरुगतां विद्यामधिगच्छति।
  17. परं सन्तोषम् आस्थाय सुखार्थी भवेत्।
  18. सन्तोषमूलं हि सुखम्।
  19. आचारात् आयुः लभते।
  20. सर्वं परवशं दुःखम्।

उत्तर:
प्रश्ननिर्माणम्

  1. मानवः कीदृशं धर्ममनुतिष्ठन् इह कीर्तिमवाप्नोति?
  2. मानवः प्रेत्य कीदृशं सुखं प्राप्नोति?
  3. किम् परं ब्रह्म कथ्यते?
  4. प्राणायामाः किम् कथ्यते?
  5. सत्यं कस्मात् विशिष्यते?
  6. केषां संयमे यत्नमातिष्ठेत्?
  7. इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन किम् ऋच्छति?
  8. कानि संनियम्य सिद्धि प्राप्नोति?
  9. केषाम् उपभोगेन कामः न शाम्यति?
  10. केन कृष्णवर्मा भूयः एवाभिवर्धते?
  11. कस्य चत्वारि वर्धन्ते?
  12. कुत्र देवताः रमन्ते?
  13. कया एव कार्यं श्रेयः?
  14. कस्मात् अपि अमृतं ग्राह्यम्?
  15. इह कौ श्रेयः उच्यते?
  16. कः गुरुगतां विद्यामधिगच्छति?
  17. किम् आस्थाय सुखार्थी भवेत्?
  18. सन्तोषमूलं हि किम्?
  19. कस्मात् आयुः लभते?
  20. सर्वं किम् दुःखम्?

प्रश्न 3.
अधोलिखितपद्यांशानां हिन्दीभाषायां भावार्थ लिखत
(i) इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन दोषमृच्छत्यसंशयम्।
(ii) न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
(iii) न विप्रदुष्टभावस्य सिद्धिं गच्छन्ति कहिंचित्।
(iv) अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम्।
(v) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
(vi) संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।
उत्तर:
(i) इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन दोषमृच्छत्यसंशयम्।
भावार्थ-प्रस्तुत पद्यांश ‘मानवधर्मः’ शीर्षक पाठ से उद्धृत है, जो मूलतः। मनुस्मृति के द्वितीय अध्याय से संकलित है। इस पद्यांश का भाव यह है कि इन्द्रियों का विषय-भोगों से सम्पर्क हो जाने से मनुष्य निश्चित रूप से दोषों अर्थात् पाप को प्राप्त करता है तथा उन इन्द्रियों को ही संयमपूर्वक नियन्त्रित करने से सिद्धि को प्राप्त करता है। अतः विषय-वासनाओं में भटकने वाली इन्द्रियों को प्रयत्नपूर्वक नियन्त्रित करना चाहिए। इससे मनुष्य पाप को प्राप्त न करके सिद्धि को प्राप्त करता है।

(ii) न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
भावार्थ-मूलतः मनुस्मृति के द्वितीय अध्याय से संकलित प्रस्तुत पद्यांश में कहा गया है कि कभी भी विषय-भोगों के निरन्तर उपभोग करने पर भी भोगों की अभिलाषा शान्त नहीं होती है, अपितु जिस प्रकार हवनीय सामग्री की आहुति से अग्नि और अधिक बढ़ जाती है, उसी प्रकार प्रतिदिन वाञ्छित विषय-भोगों के प्राप्त होने पर भी भोगों की कामना और अधिक बढ़ती जाती है। इसलिए विषय-वासनाओं से विरक्ति तथा सन्तुष्टि से ही मानव सुखी रह सकता है।

(iii) न विप्रदुष्टभावस्य सिद्धिं गच्छन्ति कहिँचित्।
भावार्थ-मूलतः मनुस्मृति के द्वितीय अध्याय से संकलित प्रस्तुत पद्यांश में महर्षि मनु द्वारा प्रतिपादित किया गया है कि जिस मनुष्य का मन मलिन भावों से युक्त होता है, वह कभी भी सफलता को प्राप्त नहीं करता है। उस मलिन भाव वाले प्राणी के समस्त वेद, त्याग, यज्ञ, नियम और तप कभी भी सिद्धि को प्राप्त नहीं होते हैं, वे सब निष्फल हो जाते हैं। अतः मानव को अपने मलिन भावों को दूर करना चाहिए। (iv)

(iv) अहिंसयैव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम्।
भावार्थ-मूलतः मनुस्मृति के द्वितीय अध्याय से संकलित प्रस्तुत पद्यांश में महर्षि मनु ने अहिंसा के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा है कि प्राणियों का कल्याण करने के लिए अहिंसा से ही अनुशासन अर्थात् उपदेश करना चाहिए, क्योंकि हिंसा से प्राणी अनुशासनहीन हो जाता है। अहिंसा को परम धर्म कहा गया है। इसलिए प्राणियों के लिए मधुर और कोमल वाणी का प्रयोग करते हुए अहिंसा द्वारा दिया गया उपदेश ही कल्याणकारी होता है।

(v) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
भावार्थ-मूलतः मनुस्मृति के तृतीय अध्याय से संकलित प्रस्तुत पद्यांश में महर्षि मनु ने कहा है कि जिस कुल में स्त्रियों का सम्मान होता है, वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ स्त्रियाँ अपमानित होती है, वहाँ उस कुल के सभी कार्य (पुण्य) निष्फल हो जाते हैं। अतः हमें सदैव स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए।

(vi) संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः। भावार्थ-मूलतः मनुस्मृति के चतुर्थ अध्याय से संकलित प्रस्तुत पद्यांश में महर्षि मनु ने कहा है कि सभी सुखों का मूल कारण सन्तोष है तथा सभी दु:खों का मूल कारण असन्तोष है। क्योंकि असन्तोष से मनुष्य की लालसा बढ़ती जाती है और वह हमेशा दुःखी रहता है। अतः सुख की इच्छा रखने वाले को संयमपूर्वक परम सन्तोष को धारण करना चाहिए।

प्रश्न 4.
अधोलिखितश्लोकानाम् अन्वयं लिखत
(क) एकाक्षरं परं ………………………………………….. विशिष्यते।
(ख) इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन ………………………………………….. नियच्छति॥
(ग) अभिवादनशीलस्य ………………………………………….. यशोबलम्॥
(घ) सर्वलक्षण ………………………………………….. जीवति॥
उत्तर:
[नोट-पूर्व में पाठ के सभी श्लोकों के हिन्दी-अनुवाद के साथ अन्वय भी दिये गये हैं, अतः उपर्युक्त श्लोकों के अन्वय वहाँ से देखकर लिखिये।]

प्रश्न 5.
पाठ्यपुस्तकाधारितं भाषिककार्यम्
(क) कर्तृक्रियापदचयनम्प्रश्न:अधोलिखितपद्यांशेषु कर्तृक्रियापदचयनं कुरुत
(i) मानवः इह कीर्तिमवाप्नोति।
(ii) संयमे यत्नमातिष्ठेद्विद्वान्यन्तेव वाजिनाम्।
(iii) न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
(iv) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते।
(v) रमन्ते तत्र देवताः।
(vi) यथा खनन् खनित्रेण नरो वार्यधिगच्छति।
(vii) आचारो हन्यलक्षणम्।
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 12 Sanskrit Chapter 3 मानवधर्मः 11

(ख) विशेषणविशेष्यचयनम्
प्रश्न: (i)
श्रुतिस्मृत्युदितं धर्ममनुतिष्ठन्हि मानवः।” इत्यत्र ‘धर्मम्’ इत्यस्य विशेषणपदं लिखत।
उत्तर:
श्रुतिस्मृत्युदितम्।

प्रश्न: (ii)
”इहकीर्तिमवाप्नोति प्रेत्य चानुत्तमं सुखाम्।” इत्यत्र ‘अनुत्तमम्’ इत्यस्य विशेष्यपदं लिखत।
उत्तर:
सुखम्।

प्रश्नः (iii)
”एकाक्षरं परं ब्रह्म प्राणायामाः परं तपः।” इत्यत्र ‘ब्रह्म’ इत्यस्य विशेषणपदं लिखत। .
उत्तर:
परम्।

प्रश्नः (iv)
इन्द्रियाणां विचरतां विषयेष्वपहारिषु।” इत्यत्र ‘अपहारिषु’ इत्यस्य विशेष्यपदं लिखत।
उत्तर:
विषयेषु।

प्रश्नः (v)
सर्वान् संसाधयेदर्थानक्षिण्वन् योगतस्तनुम्।” इत्यत्र ‘सर्वान्’ इत्यस्य विशेष्यपदं लिखत।
उत्तर:
अर्थान्।

प्रश्नः (vi)
तथा गुरुगतां विद्यां शुश्रुषुरधिगच्छतिं।” इत्यत्र ‘विद्याम्’ इत्यस्य विशेषणपदं लिखत।
उत्तर:
गुरुगताम्।

प्रश्नः (vii)
”आचाल्लभते ह्यायुराचारादीप्सिताः प्रजाः।” इत्यत्र ‘प्रजाः’ इत्यस्य विशेषणपदं लिखत।
उत्तर:
ईप्सिताः।

प्रश्नः (viii)
”आचाराद्धनमक्षय्यमाचारो हन्त्यलक्षणम्।” इत्यत्र ‘अक्षय्यम्’ इत्यस्य विशेष्यपदं लिखत।
उत्तर:
धनम्।

(ग) सर्वनाम-संज्ञा-प्रयोगः
प्रश्नः अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदस्य स्थाने संज्ञापदस्य प्रयोगं कृत्वा वाक्यं पुनः लिखत

  1. संनियम्य तु तानि एव ततः सिद्धिं नियच्छति।
  2. तस्य आयुर्विद्या यशोबलं वर्धन्ते।
  3. यत्र एताः न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।
  4. सदाचारवान् सः शतं वर्षाणि जीवति।
  5. सः इह कीर्तिमवाप्नोति।
  6. इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन सः दोषं प्राप्नोति।

उत्तर:

  1. संनियम्य तु इन्द्रियाणि एव ततः सिद्धिं नियच्छति।
  2. अभिवादनशीलस्य आयुर्विद्या यशोबलं वर्धन्ते।
  3. यत्र नार्यः न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।
  4. सदाचारवान् नरः शतं वर्षाणि जीवति।
  5. मानवः इह कीर्तिमवाप्नोति।
  6. इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन मानवः दोषं प्राप्नोति।

प्रश्नः निम्नलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां सर्वनामपदानि लिखत

  1. सैव मानवः प्रेत्य सुखं प्राप्नोति।
  2. विद्वान् तेषाम् इन्द्रियाणां संयमे यत्नमातिष्ठेत्।
  3. तान्येव इन्द्रियाणि संनियम्य सिद्धिं नियच्छति।
  4. तस्य विप्रदुष्टभावस्य ते वेदादयः सिद्धिं न गच्छन्ति।
  5. सर्वान् अर्थान् योगतः तनुमक्षिण्वन् संसाधयेत्।
  6. यत्रैताः नार्यः पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
  7. यद्यत्परवशं कर्म तत्तद्यत्नेन वर्जयेत्।
  8. एतद्विद्यात् समासेन लक्षणं सुखदु:खयोः।

उत्तर:

  1. सः
  2. तेषाम्।
  3. तानि
  4. तस्य।
  5. सर्वान्।
  6. एताः
  7. यत् यत्, तत् तत्
  8. एतत्।

(घ) समानविलोमपदचयनम्-
प्रश्न:अधोलिखितवाक्येषु रेखाङ्कितपदानां पर्यायबोधकपदानि लिखत

  1. श्रुतिस्मृत्युदितं धर्ममनुतिष्ठन्हि मानवः।
  2. एकाक्षरं परं ब्रह्म।
  3. यन्तेव वाजिनाम्।
  4. हविषा कृष्णवर्मा इव।
  5. सर्वान् संसाधयेदर्थानक्षिण्वन् योगतः तनुम्।
  6. मधुरा श्लक्ष्णा च वाक् प्रयोज्यो।
  7. अमेध्यादपि काञ्चनं ग्राह्यम्।
  8. खनित्रेण खनन् नरः वारि अधिगच्छति।
  9. आचाराद् धनं लभते।
  10. सर्वं परवशं दुःखम्।

उत्तर:

  1. मनुष्यः, नरः।
  2. ओ३म्, प्रणवाक्षरः
  3. अश्वानाम्, घोटकानाम्
  4. अग्निः , अनलः
  5. शरीरम्, वपुम्।
  6. वाणी, वचनम्।
  7. स्वर्णम्, सुवर्णम्।
  8. जलम्, नीरम्
  9. वित्तम्, अर्थम्।
  10. पराधीनम्, पराश्रितम्।

प्रश्न:
अधोलिखितवाक्येषु रेखांकितपदानां विलोमार्थकपदानि लिखत

  1. इह कीर्तिम् अवाप्नोति।
  2. मौनात् सत्यं विशिष्यते।
  3. ततः सिद्धिं नियच्छति।
  4. अहिंसया एव भूतानां कार्यं श्रेयोऽनुशासनम्।
  5. सर्वास्तत्र अफलाः क्रियाः।
  6. विषादपि अमृतं ग्राह्यम्।
  7. अमित्रादपि सद्वृत्तं ग्राह्यम्।
  8. अर्थः एवेह वा श्रेयः।
  9. संतोषं परमास्थाय सुखार्थी भवेत्।
  10. संतोषमूलं हि सुखम्।
  11. सर्वलक्षणहीनोऽपि यः सदाचारवान् नरः।
  12. सर्व परवशं दुःखम्।
  13. तत्तद्यत्नेन वर्जयेत्।
  14. मानवः प्रेत्य अनुत्तमं सुखं प्राप्नोति।
  15. इन्द्रियाणां प्रसङ्गेन दोषमृच्छति असंशयम्।

उत्तर:

  1. अपकीर्तिम्
  2. असत्यम्
  3. असिद्धिम्।
  4. हिंसया
  5. सफलाः
  6. विषम्।
  7. मित्रादपि
  8. अनर्थः
  9. असंतोषम्।
  10. दुःखम्।
  11. दुराचारवान्।
  12. आत्मवशम्।
  13. सेवेत्
  14. उत्तमम्।
  15. संशयम्।

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