RBSE Solutions for Class 6 Hindi Chapter 12 मुंडमाल

RBSE Solutions for Class 6 Hindi Chapter 12 मुंडमाल are part of RBSE Solutions for Class 6 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 6 Hindi Chapter 12 मुंडमाल.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 6
Subject Hindi
Chapter Chapter 12
Chapter Name मुंडमाल
Number of Questions Solved 35
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 6 Hindi Chapter 12 मुंडमाल

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठ से
उच्चारण के लिए
जंगी-जोश, मुखारविंद, पुष्प वृष्टि, हृदय हारिणी, झंझरीदार।
नोट—छात्र-छात्राएँ स्वयं उच्चारण करें।

सोचें और बताएँ
प्रश्न 1.
सरदार चूड़ावत जी युद्ध में क्यों जा रहे थे?
उत्तर:
सरदार चूड़ावतजी युद्ध से औरंगजेब का दर्प दलन करने और उसके अंधाधुंध अंधेर का उचित उत्तर देने जा रहे थे।

प्रश्न 2.
इस पाठ के शीर्षक ‘मुंडमाल’ का क्या आशय है?
उत्तर:
इस पाठ के शीर्षक ‘मुंडमाल’ का आशय यह है। कि अपनी पत्नी के प्रेमपाश में बँधे सरदार चूड़ावत जी ने जब रानी हाड़ी से आशा और विश्वास का चिह्न माँगा तो उसने अपना सिर काटकर दे दिया। जिसके प्रेम में पागल होकर उन्होंने रानी के सिर को गले में लटका लिया। जो ‘मुंडमाल’ बन गया।

लिखें
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
रूप नगर के राठौड़ वंश की राजकुमारी ने पहले वर लिया था
(क) दिल्ली के बादशाह को
(ख) राणा राजसिंह को
(ग) सरदार चूड़ावत जी को
(घ) शूर सामंतों को।

प्रश्न 2.
नवोढ़ा रानी ने आशा और अटल विश्वास का चिह्न भेंट किया
(क) अपनी चूड़ी
(ख) अपना सिर
(ग) अपना कंगन
(घ) अपना रूमाल
उत्तर:
1. (ख)
2. (ख)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उदयपुर के चौक में चहल-पहल क्यों थी?
उत्तर:
उदयपुर के चौक में चहल-पहल इसलिए थी क्योंकि चुंडावतजी औरंगजेब से युद्ध करने जा रहे थे।

प्रश्न 2.
चूंडावत जी के मन की लगाम कहाँ अटकी हुई थी?
उत्तर:
चूड़ावत जी के मन की लगाम खिड़की में अटकी हुई थी।

प्रश्न 3.
चूड़ावत जी ने रानी से चिह्न क्यों मँगवाया?
उत्तर:
चूड़ावतजी ने अपनी संतोष के लिए रानी से चिह्न मँगवाया।

लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चूड़ावतजी को अपने युद्ध से वापस लौटने के लक्षण क्यों नहीं दिख रहे थे?
उत्तर:
चूड़ावतजी को अपने युद्ध से वापस लौटने के लक्षण इसलिए नहीं दिखायी दे रहे थे क्योंकि घनघोर युद्ध छिड़ने वाला था, और वे जी जान से लड़ने वाले थे। चूंड़ावत जी सत्य की रक्षा के लिए अपने पुर्जे पुर्जे कटाने को भी तैयार थे।

प्रश्न 2.
हाड़ी रानी ने युद्ध में जाते हुए चूड़ावत जी को क्या समझाया?
उत्तर:
हाड़ी रानी ने युद्ध में जाते हुए चूड़ावत जी को यह समझाया कि सत्य और न्याय की रक्षा के लिए जाते समय सहज सुलभ सांसारिक सुखों की बुरी वासना को मन में घर करने देना उनके समान प्रतापी क्षत्रिय कुमार का काम नहीं है।

प्रश्न 3.
चूड़ावत जी ने रानी के द्वारा भेजे गए आशा और अटल विश्वास के चिह्न का क्या किया?
उत्तर:
चूड़ावतजी ने रानी के द्वारा भेजे गए आशा और अटल विश्वास के चिह्न यानि रानी के सुगंधों से सींचे हुए मुलायम बालों के गुच्छों को दो हिस्सों में चीरकर जो कि सौभाग्य सिंदूर से भरा हुआ था, अपने गले में लटका लिया।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हाड़ी रानी ने अपने सिर को ही चिह्न के रूप में क्यों भेंट किया?
उत्तर:
हाड़ी रानी अपने प्रति अपने पति के प्रेम को देखकर यह विचार कर रही थी कि प्राणेश्वर का मन यदि मुझमें ही लगा रहेगा तो विजयलक्ष्मी किसी प्रकार उनके गले में जयमाला नहीं डालेगी यानि कि उनकी विजय नहीं होगी। रानी यह विचार कर ही रही थी कि चूड़ावतजी का सेवक उनका संदेश लेकर आया कि चूड़ावत जी आपसे दृढ़ आशा और अटल विश्वास का चिह्न चाहते हैं। यह सुनकर रानी ने अपने मन में विचार किया कि प्राणेश्वर का ध्यान जब तक मेरे तुच्छ शरीर में लगा रहेगा तब तक वह अपना कर्तव्य पूरा नहीं कर पायेंगे। इसीलिए रानी ने यह सोचकर कि अगर वह जीवित ही नहीं रहेगी तो चूड़ावतजी अपने कार्य को दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कर सकेंगे। इसीलिए उसने अपने सिर को काटकर चिह्न के रूप में भेज दिया।

प्रश्न 2.
महाराजा राजसिंह व औरंगजेब के बीच युद्ध का क्या कारण था?
उत्तर:
महाराणा राजसिंह उदयपुर नगर के राजा थे। वह रूपनगर की राठौड़ वंश की राजकुमारी से प्रेम करते थे। राजकुमारी भी राणाजी को वर चुन चुकी थी। लेकिन दिल्ली का बादशाह औरंगजेब रूपनगर की राजकुमारी से बलपूर्वक विवाह करना चाहता था। इसीलिए औरंगजेब रूपनगर जाकर उसे प्राप्त करने की योजना बना रहा था। इधर राणा राजसिंह रूपनगर जा रहे थे। औरंगजेब को राह में रोकने के लिए रणयात्रा प्रारंभ की। जिससे वह रूपनगर तक नहीं पहुँच सके। महाराणा राजसिंह और औरंगजेब के बीच युद्ध का यही कारण था।

भाषा की बात
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में से विशेषण व विशेष्य छाँटकर लिखिए।
जंगी जोश, झंझरीदार खिड़की, सुकुमारी कन्या, नवोढ़ा रानी, सटाकार लटें, सजीली सेनाएँ।
उत्तर:

विशेषण विशेष्य
जंगी जोश
झंझरीदार खिड़की
सुकुमारी कन्या
नवोढ़ा रानी
सटाकार लटें
सजीली सेनाएँ

प्रश्न 2.
नीचे लिखे गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए—
चूड़ावत जी बोले, “प्राणेश्वरी ! हमको केवल तुम्हारी चिंता बहुत सता रही है। किसे मालूम था कि तुम-सी अनूपरूपा, कोमलांगी के भाग्य में ऐसा भयंकर खेल होगा?” गद्यांश को पढ़ते समय हम विराम चिह्नों पर रुकते हैं। इन विराम चिह्नों को नाम से जानते हैं; जैसे—

, अल्प विराम
,, अवतरण चिह्न/उद्धरण चिह्न
! विस्मय बोधक चिह्न
? प्रश्नवाचक
| पूर्ण विराम
योजक चिह्न

आप भी नीचे दिए गए गद्यांश में उचित विराम चिह्नों का प्रयोग करते हुए लिखिए
हाड़ी रानी हृदय पर हाथ रखकर बोली प्राणनाथ सत्य और न्याय की रक्षा के लिए लड़ने जाते समय सहज सुलभ सांसारिक सुखों की बुरी वासना को मन में घर करने देना आपके समान प्रतापी क्षत्रियकुमार का काम नहीं है।
उत्तर:
हाड़ी रानी हृदय पर हाथ रखकर बोली, “प्राणानाथ ! सत्य और न्याय की रक्षा के लिए लड़ने जाते समय सहज सुलभ सांसारिक सुखों की बुरी वासना को मन में घर करने देना आपके समान प्रतापी क्षत्रियकुमार का काम नहीं है।”

पाठ से आगे
प्रश्न 1.
हाड़ी रानी दृढ़ आशा और अटल विश्वास के चिह्न के रूप में अपने सिर के स्थान पर और क्या चिह्न भेज सकती थी?
उत्तर:
हाड़ी रानी दृढ़ आशा और अटल विश्वास के चिह्न के रूप में अपने सिर के स्थान पर चूड़ा, कंगना, मंगलसूत्र, पायल आदि भेज सकती थी, जो उसके प्रेम को दर्शाते और चूड़ावतजी को हिम्मत भी देते।

प्रश्न 2.
अगर सरदार चूड़ावतजी के स्थान पर आप होते तो क्या करते? लिखिए।
उत्तर:
अगर हम चूड़ावतजी के स्थान पर होते तो क्रोध से पागल हो जाते और इसका जिम्मेदार शत्रुओं को मानते हुए उनसे बदला लेने के लिए उन पर दुगुने जोश के साथ टूट पड़ते और उनका नाश करके ही दम लेते।

यह भी करें
प्रश्न 1.
हाड़ा वंश की राजकुमारी ने अपने देश के लिए बलिदान दिया। अपने शिक्षक/शिक्षिकाओं की मदद से ऐसी अन्य वीरांगनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त करें जिन्होंने अपने देश के लिए बलिदान किया हो।
उत्तर:
रानी पद्मिनी मेवाड़ के राजा रतन सिंह की पत्नी थी, जो अतिसुन्दर थी। उसे पाने हेतु अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर आक्रमण किया। रानी पद्मिनी ने आग में कूदकर जौहर किया और अपने धर्म की रक्षा की। पन्ना धाय बहुत ही स्वामिभक्त थी। उसने उदयसिंह की जान बचाने के लिए अपने पुत्र को बनवीर की नंगी तलवार के सामने रख दिया और अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र का कत्ल होते देखा।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
महाराणा राजसिंह के समर्थ सरदार कौन हैं
(क) अमर सिंह
(ख) उदय सिंह
(ग) रामसिंह
(घ) चूड़ावतजी

प्रश्न 2.
चुंडावतजी किससे युद्ध करने जा रहे थे
(क) औरंगजेब
(ख) हुमायूँ
(ग) जहाँगीर
(घ) अकबर

प्रश्न 3.
हाड़ी रानी किस वंश की सुलक्षणा कन्या थी
(क) राठौड़ वंश
(ख) हाड़ा वंश
(ग) प्रतिहार वंश
(घ) चौहान वंश

प्रश्न 4.
हाड़ी रानी ने शीघ्र ही मिलने के लिए कहा
(क) युद्ध में
(ख) नरक में
(ग) स्वर्ग में
(घ) आकाश में
उत्तर:
1. (घ)
2. (क)
3. (ख)
4. (ग)

रिक्त स्थान पूर्ति……
(भारत, कंकण, उत्साह, चंचल)

  1. नवयुवकों में नवीन ………. उमड़ उठा था।
  2. नवोढ़ा रानी के हाथ का …….. हाथ की शोभा बढ़ा रहा है।
  3. चूड़ावतजी का चित्त …………. हो चला।
  4. ………. की महिलाएँ स्वार्थ के लिए सत्य का संहार नहीं करना चाहती।

उत्तर:

  1. उत्साह
  2. कंकण
  3. चंचल
  4. भारत

अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चूड़ावतजी और हाड़ी रानी का विवाह हुए कितने दिन हुए थे?
उत्तर:
चूड़ावतजी और हाड़ी रानी का विवाह हुए दो-चार दिन ही हुए थे।

प्रश्न 2.
किसने चूड़ावतजी चकोर को आपे से बाहर कर दिया था?
उत्तर:
जालीदार खिड़की से छन-छनकर आने वाली चाँद की चटकीली चाँदनी ने चूड़ावत चकोर को आपे से बाहर कर दिया था।

प्रश्न 3.
चुंडावतजी के साथ युद्ध में और कौन थे?
उत्तर:
चूड़ावतजी के साथ युद्ध में शूर सामंतों की सैकड़ों सजीली सेनाएँ।

प्रश्न 4.
चूड़ावतजी को किसकी चिंता सता रही थी?
उत्तर:
चूड़ावतजी को अपनी प्रिय पत्नी हाड़ी रानी की चिंता सता रही थी।

प्रश्न 5.
भारत की सती देवियाँ किससे नहीं डिग सकर्ती?
उत्तर:
भारत की सती देवियाँ अपने प्रण से तनिक भी नहीं डिग सकतीं।

लघु उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
चुंडावतजी हाड़ी रानी के लिए क्यों चिंता कर रहे थे?
उत्तर:
चूड़ावतजी हाड़ी रानी के लिए इसलिए चिंता कर रहे थे क्योंकि वह युद्ध में जा रहे थे और उन्हें लड़ाई से अपने लौटने का लक्षण नहीं दिखाई दे रहा था और वे सोच रहे थे कि हाड़ी रानी जैसी अनूपरूपा कोमलांगी के भाग्य में ऐसा भयंकर खेल था।

प्रश्न 2.
हाड़ी रानी ने भारत की महिलाओं के बारे में क्या कहा था?
उत्तर:
हाड़ी रानी ने चूड़ावतजी से कहा कि भारत की महिलाएँ स्वार्थ के लिए सत्य का संहार नहीं करना चाहती। आर्य महिलाओं के लिए समस्त संसार की सारी संपत्तियों से बढ़कर सतीत्व ही अमूल्य धन है।

प्रश्न 3.
चूड़ावतजी का चित्त क्यों पुलकित हो उठा?
उत्तर:
चूड़ावतजी का चित्त हाड़ी के हृदयरूपी हीरे को परखकर पुलकित हो उठा। प्रफुल्ल मन चूड़ावतजी ने रानी को बार-बार गले लगाया और चूँड़ावतजी प्रेमभरी नजरों से एकटक रानी को देखते रहे।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
हाड़ी रानी का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर:

  1. अपूर्व सुंदरी—हाड़ी रानी वंश की अत्यंत सुंदर, सुशील और सुलक्षणा कन्या थी। उनका मुख चंद्रमा के समान था। तभी तो उनके मुख की चटकीली चाँदनी ने चूड़ावत चकोर को आपे से बाहर कर दिया था।
  2. पतिव्रता—हाड़ी रानी पतिव्रता स्त्री थी। अपने पति का उदास चेहरा देखकर वह बहुत परेशान हो गयी थी। उन्हें अपने पति की चिंता सताने लगी। वह उनका दु:ख दूर करना चाहती थी।
  3. देशभक्त—वह एक सच्ची देशभक्त भी थी, क्योंकि युद्ध के लिए जाते समय जब चूड़ावतजी का मन उनके लिए कमजोर हो रहा था, तो उन्होंने चूड़ावतजी को सुख के फंदे में हँसकर अपने जातीय कर्त्तव्य न भूलने की सलाह दी।
  4. कर्तव्यपरायण—रानी हाड़ी स्वयं भी एक कर्त्तव्य परायण स्त्री थी और सतीत्वशाली भी थी। वह चूड़ावतजी को अपना मोह छोड़ने के लिए कहती है और उन्हें शीघ्र युद्ध के लिए जाने को कहती हैं।
  5. वीरांगना—रानी हाड़ी सच्ची राजपूत कन्या थी। इसीलिए तो जब उन्हें लगा कि उनके पति का मन उनके तुच्छ शरीर में लगा हुआ है तो उस वीरागंना ने अपना सिर काटकर अपने पति को भेंट कर दिया।

प्रश्न 2.
चूड़ावतजी के चरित्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:

  1. वीर योद्धा—चूड़ावतजी एक वीर योद्धा थे। उनकी आयु अठारह वर्ष से अधिक नहीं थी फिर भी वह औरंगजेब से युद्ध करने जा रहे थे। जंगी-जोश के मारे वह इतने फूल गये थे कि वह कवच में भी नहीं समा रहे थे।
  2. पत्नी प्रेमी—चूड़ावतजी अपनी पत्नी से बहुत प्यार करते थे। वह उसके रूप में पागल हो रहे थे। युद्ध में जाते समय उनका मन अपनी पत्नी का वियोग सहन नहीं कर पा रहा था। उन्हें अपनी पत्नी की चिंता सता रही थी। इसलिए तो वह पत्नी से कहते हैं कि “देवी ! तुम्हारे……….विराजने के लिए वस्तुत: हमारे हृदय में बहुत ऊँचा सिंहासन है।”
  3. कर्त्तव्यपरायण—लेकिन चूड़ावतजी कर्तव्यपरायण भी थे। युद्ध में जाते समय उन्हें अपने लौटने के लक्षण नहीं दिखायी दे रहे थे। फिर भी वह जी-जान से लड़ने की बात कहते हैं और सत्य की रक्षा के लिए अपने पुर्जे-पुर्जे कटाने को भी तैयार हैं।
  4. देशभक्त—चूड़ावतजी एक सच्चे देशभक्त थे। वे कहते हैं कि ऐसे अवसरों पर ही क्षत्रियों की परीक्षा हुआ करती हैं। संसार के सारे सुखों की बात ही क्या, प्राणों की भी आहुति देकर क्षत्रियों को अपने कर्तव्यों का पालन करना पड़ता है।

कठिन शब्दार्थ

चौक = आँगन्। चहल-पहल = रौनक। नवीन = नया। उत्साह = खुशी। उमड़ = दिख रहा है, प्रतीत हो रहा है। ऐठे = घमंड। ललाई = लालिमा। ललकार = पुकार। समर्थ = सक्षम, योग्य। दर्पदलन = अभिमान, चूर-चूर करना। अंधाधुंध = अत्यधिक। अंधेर = अत्याचार। यद्यपि = जबकि। तथापि = तब भी। जंगी = लड़ाई। जोश = उत्साह। कवच = सुरक्षित आवरण। उचकना = उछलना। अनायास = अचानक। नवोढ़ा = नव-विवाहिता। झंझरीदार म जालीदार (बहुत छोटे छोटे छेद वाली खिड़की)। सुलक्षणा = अच्छे लक्षणों से युक्त। सुशीला = सुंदर गुणों वाली। सुकुमारी = कोयल। घनपटल = बादलों की ओर से। चटकीली = तड़क-भड़क। चंचल = नटखट, अधीर। चोखीचाट = बहुत सुंदर लग रही है। हृदय-हारिणी = मन को लुभाने वाली। प्राणनाथ = पति परमेश्वर, प्राणों के नाथ। मनमलिन = मन दुखी होना। मुखारविंद = चेहरा, मुँह। मुझया = उदास। चपला = चतुर। प्राणप्यारी = पत्नी। बलात = बलपूर्वक, जबरदस्ती। पौ फटते = सुबह-सुबह ही। शूर सामंतों = वीर सैनिकों। सजीली = सजी हुई तैयारे। लक्षण = संकेत। पुर्जे-पुर्जे = शरीर का अंग-अंग। अनूपरूपा = अतिसुंदर। कोमलांगी = कोमल शरीर वाली। सहज = सरल। सुलभ = आसानी से मिलने वाली। संहार = नष्ट। सतीत्व = इज्जत, चरित्र। विलंब = देर। परख = जानकार। पुलकित = खुश होना। प्रफुल्ल = खुले हुए, प्यार से। विराजो = बैठाने। कंठ= गला। गद्गद् = खुशी से भर गया। आलिंगित = बाँहों में भरना, गले से ना। सतृष्ण = तृष्णा सहित। घनी = तेज। प्रशस्त ललाट = ऊँचा चमकीला माथा। कुंचित = भरा हुआ। विजयलक्ष्मी = युद्ध में विजय। विनम्र = नम्रता के साथ। दृढ़ आशा। इच्छाशक्ति। अटल = जिसे हिलाया न जा सके। स्नेहसूचक = प्यार भरे संकेत। कृत = कार्य में लगानी। लच्छेदार = धुंघराले। केशोंवाला = बालों वाला। तुच्छ = निम्न, संकीर्ण। रक्त = खून। सींचकर = भिगोकर। भय = डर। अपूर्व आनंद = अनोखी खुशी से। कड़ियाँ = जंजीर। सुगंधों = खुशबू। चीरकर =’फाड़कर। सौभाग्य सिंदूर = भाग्य से भरी हुई रोली। शीश = सिर। रुद्रदेव = शंकर भगवान। भीषण वेश = भयानक रूप। धारण = धरकर। शत्रु = दुश्मन। नाश = नष्ट। भ्रम = संदेह। सटाकार लटें = लंबी-पतली छड़ी के आकार की लटें। अंजलि = हथेली। मानिनी = अभिमान करने वाली। पुष्प वृष्टि = फूलों की बारिश। मुंडमाल = कटे सिरों की माला।

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

(1)
महाराणा राजसिंह के समर्थ सरदार चूड़ावतजी आज औरंगजेब का दर्प दलन करने और उसके अंधाधुंध अंधेर का उचित उत्तर देने वाले हैं। यद्यपि उनकी अवस्था अठारह वर्ष से अधिक नहीं है, तथापि जंगी-जोश के मारे वह इतने फूल गये हैं कि कवच में नहीं अटते। घोड़े पर सवार होने के लिये वह ज्यों ही हाथ में लगाम थामकर उचकना चाहते हैं। त्यों ही अनायास उनकी दृष्टि सामने वाले महल की झंझरीदार खिड़की पर, जहाँ उनकी नवोढ़ा पत्नी खड़ी है, जो पड़ती है।
प्रसंग—प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘मुंडमाल’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक शिव पूजन सहाय हैं। इन पंक्तियों में लेखक ने महाराणा राजसिंह के सरदार चूड़ावतजी जो कि औरंगजेब से युद्ध करने जा रहे हैं, का वर्णन किया है।
व्याख्या/भावार्थ—लेखक कहते हैं कि महाराजा राजसिंह के योग्य सरदार चूड़ावतजी आज औरंगजेब का अभिमान चूर-चूर करने तथा उसके अंधाधुंध अत्याचार का सही जवाब देने वाले हैं। जबकि उनकी आयु अठारह वर्ष से अधिक की नहीं है, फिर भी वह युद्ध के जोश में इतने फूल गये हैं कि सुरक्षा आवरण में भी समा नहीं रहे हैं। थोड़े पर बैठने के लिए जैसे ही वह हाथ में लगाम पकड़कर उछलते हैं तभी अचानक उनकी दृष्टि सामने वाले महल की जालीदार खिड़की पर पड़ी, जहाँ उनकी नवविवाहिता खड़ी है।

प्रश्न 1.
महाराज राजसिंह के समर्थ सरदार कौन हैं?
उत्तर:
महाराज राजसिंह के समर्थ सरदार चूड़ावतजी हैं।

प्रश्न 2.
चूड़ावतजी किसका दर्प दलन करने जा रहे हैं?
उत्तर:
चूड़ावतजी औरंगजेब का दर्प दलन करने जा रहे हैं।

प्रश्न 3.
चूड़ावतजी किसलिए इतने फूल गये कि कवच में नहीं अँटते हैं?
उत्तर:
चूड़ावतजी जंगी-जोश की वजह से इतने फूल गये कि कवच में नहीं अटते हैं।

प्रश्न 4.
चूड़ावतजी की दृष्टि कहाँ जा पड़ती है?
उत्तर:
चूड़ावतजी की दृष्टि सामने वाले महल की झंझरीदार खिड़की पर जा पड़ती हैं जहाँ उनकी नवोढ़ा पत्नी खड़ी है।

(2)
हाड़ी रानी हृदय पर हाथ रखकर बोली, ”प्राणनाथ! सत्य और न्याय की रक्षा के लिए लड़ने जाते समय सहज सुलभ सांसारिक सुखों की बुरी वासना को मन में घर करने देना आपके समान प्रतापी क्षत्रियकुमार का काम नहीं है। अपने आप को सुख के फंदे में फाँसकर अपने जातीय कर्तव्य मत भूलिए। मेरा मोह छोड़ दीजिए। भारत की महिलाएँ स्वार्थ के लिए सत्य का संहार करना नहीं चाहतीं। आर्य-महिलाओं के लिए समस्त संसार की सारी संपत्तियों से बढ़कर सतीत्व ही अमूल्य धन है। मैं भी अगर सच्ची राजपूत कन्या होऊँगी तो शीघ्र ही आपसे स्वर्ग में जा मिलूंगी। विलंब करने का समय नहीं।”
प्रसंग—प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘मुंडमाल’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक शिव पूजन सहाय हैं। इन पंक्तियों में हाड़ी रानी अपने पति को युद्ध के लिए जाने को प्रेरित करती है।
व्याख्या/भावार्थ—इन पंक्तियों में हाड़ी रानी अपने हृदय पर हाथ रखकर अपने पति से कहती हैं, कि “पति परमेश्वर ! सत्य और न्याय की रक्षा के लिए लड़ने जाते समय आराम से मिलने वाले संसार के सुखों की बुरी इच्छाओं को मन में रखना आप जैसे शक्तिशाली राजपूत के लिए अच्छा नहीं है। अपने आप को मोह में फंसाकर अपने राजपूताना कर्त्तव्य मत भूलिए। मेरा मोह छेड़ दीजिए। भारत की महिलाएँ स्वार्थ के लिए सच्चाई को नष्ट नहीं करना चाहर्ती । आर्य-महिलाओं के लिए सारे संसार की सारी संपत्तियों से बढ़कर चरित्र ही अमूल्य धन है। मैं भी अगर सच्ची राजपूत कन्या होऊँगी तो जल्दी ही आपसे स्वर्ग में मिलूंगी। आप देर मत करिये, जल्दी युद्ध के लिए जाइए।”

प्रश्न 1.
हाड़ी रानी किसको मन में घर करने देने को क्षत्रिय कुमार का काम नहीं मानती?
उत्तर:
हाड़ी रानी सहज सुलभ सांसारिक सुखों की बुरी वासना को मन में घर कर देने को क्षत्रिय कुमार का काम नहीं मानती।

प्रश्न 2.
हाड़ी रानी किसको अपना मोह छोड़ने के लिए कहती है?
उत्तर:
हाड़ी रानी चुंडावतजी को अपना मोह छोड़ने के लिए कहती है।

प्रश्न 3.
भारत की महिलाएँ किसके लिए सत्य का संहार नहीं करना चाहती हैं?
उत्तर:
भारत की महिलाएँ स्वार्थ के लिए सत्य का संहार नहीं करना चाहती हैं।

प्रश्न 4.
आर्य महिलाओं के लिए समस्त संसार की सारी संपत्तियों से बढ़कर अमूल्य क्या है?
उत्तर:
आर्य महिलाओं के लिए समस्त संसार की सारी संपत्तियों से बढ़कर सतीत्व ही अमूल्य धन है।

(3)
सुगंधों से सचे हुए मुलायम बालों के गुच्छों को दो हिस्सों में चीरकर चूड़ावत जी ने उस सौभाग्य सिंदूर से भरे हुए सुंदर शीश को गले में लटका लिया। मालूम हुआ, मानो स्वयं भगवान रुद्रदेव भीषण वेष धारण करके शत्रु का नाश करने जा रहे हैं। सबको भ्रम हो उठा कि गले में काले नाग लिपट रहे हैं या लंबी-लंबी सटाकार लटें हैं। अटारियों पर से सुंदरियों ने भर-भर अंजलि फूलों की वर्षा की, मानो स्वर्ग की मानिनी अप्सराओं ने पुष्प वृष्टि की हो । गाजे-बाजे की ध्वनि के साथ लहराता हुआ आकाश फाड़ने वाला एक गंभीर स्वर चारों ओर गूंज उठा- धन्य मुंडमाल!!
प्रसंग—प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के मुंडमाल नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक शिव पूजन सहाय हैं। उन पंक्तियों में चूड़ावतजी के रौद्र रूप का वर्णन किया गया है।
व्याख्या/भावार्थ—लेखक कहते हैं कि खुशबू से भरे हुए मुलायम बालों के गुच्छों को दो हिस्सों में फाड़कर चूड़ावतजी ने उस भाग्यशाली रोली से भरे हुए सुंदर सिर को अपने गले में लटका लिया। ऐसा लग रहा था कि मानो स्वयं भगवान शंकर भयंकर रूप धारण करके दुश्मन को नष्ट करने जा रहे हैं। सबको संदेह हो उठा कि गले में काले नाग लिपट रहे हैं या लंबी-लंबी पतली छड़े हैं। अटारियों पर से सुंदरियों ने हथेली भर-भर कर फूलों की वर्षा की मानों स्वर्ग की अभियान करने वाली सुंदर अप्सराओं ने फूलों की वर्षा की हो। गाजे-बाजे की ध्वनि के साथ लहराता हुआ आकाश को फाड़ता हुआ एक गंभीर स्वर चारों ओर पूँज उठा- धन्य मुंडमाल।

प्रश्न 1.
चूड़ावतजी ने मुलायम बालों के गुच्छों का क्या किया?
उत्तर:
चूड़ावतजी ने मुलायम बालों के गुच्छों को दो हिस्सों में चीरकर गले में लटका लिया।

प्रश्न 2.
सुंदर सिर किससे भरा हुआ है?
उत्तर:
सुंदर सिर सौभाग्य सिंदूर से भरा हुआ है।

प्रश्न 3.
गले में सिर लटका चूड़ावतजी कैसे लग रहे हैं?
उत्तर:
मानो, स्वयं भगवान रुद्रदेव भीषण वेश धारण कर शत्रु का नाश करने जा रहे हैं।

प्रश्न 4.
अटारियों पर सुंदरियों ने किसकी वर्षा की है?
उत्तर:
अटारियों पर से सुंदरियों ने भर-भर अंजलि फूलों की वर्षा की है।

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