RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 15 रघो: उदारता

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Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 6
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 15
Chapter Name रघो: उदारता
Number of Questions 18
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 6 Sanskrit Chapter 15 रघो: उदारता

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत-(उच्चारण कीजिए-) विश्वजित्, अवशिष्टानि मृत्तिका, आतिथ्यसत्कारम्, विद्यासमापनसमये, तृष्णारहितः, सुवर्णमुद्रा, गुरुदक्षिणार्थम्, द्विदिवसपर्यन्तम् , कुबेरस्योपरि, कोषरक्षकः, आह्वयति।
उत्तर:
छात्राः स्वयमेव उच्चारणं कुर्वान्तु (छात्र स्वयं उच्चारण करें।)

प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत-(एक पद में उत्तर दीजिए-)
(क) रघुः कस्मिन् यज्ञे सर्वस्वं धनं दानं करोति ? (रघु किस यज्ञ में सम्पूर्ण धन दान करता है?)
(ख) कौत्सः कस्य शिष्यः अस्ति? (कौत्स किसका शिष्य है?)
(ग) कुबेरः कस्य वृष्टिं करोति ? (कुबेर किसकी वर्षा करता है?)
(घ) कस्य भयावशात् कुबेर: सुवर्णवृष्टिं करोति ? (किसके डर से कुबेर सोने की वर्षा करता है?)
(ङ) कौत्सः रघवे किं ददाति ? (कौत्स रघु के लिए क्या देता है?)
उत्तर:
(क) विश्वजित्
(ख) वरतन्तोः
(ग) सुवर्णस्य
(घ) रघोः
(ङ) आशीर्वाद

प्रश्न 3.
पूर्णवाक्येन उत्तरत-(पूरे वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कौत्सः कः अस्ति? (कौत्स कौन है?)
(ख) विद्यासमापनसमये शिष्याणां किं कर्तव्यम् भवति? (विद्या समाप्ति के समय शिष्यों का क्या कर्त्तव्य होता है?)
(ग) गुरुदक्षिणारूपेण कौत्सः किं दातुम् इच्छति ? (गुरु दक्षिणा के रूप में कौत्स क्या देना चाहता है?)
(घ) रघोः निश्चयं श्रुत्वा कुबेर: किं करोति? (रघु के निश्चय को सुनकर कुबेर क्या करता है?)
(ङ) प्रात:काले कोषरक्षकः कोषे किं पश्यति ? (प्रात:काल खजाने का रखवाला खजाने में क्या देखता है?)
उत्तर:
(क) कौत्स: वरतन्तो: शिष्यः अस्ति। (कौत्स वरतन्तु का शिष्य है।)
(ख) विद्यासमापनसमये गुरूणां कृते गुरुदक्षिणां प्रदानं शिष्याणां कर्तव्यम् अस्ति। (विद्यासमापन के समय पर गुरुओं के लिए गुरुदक्षिणा देना शिष्यों का कर्तव्य है।)
(ग) गुरुदक्षिणारूपेण कौत्सः चतुर्दशकोटि सुवर्णमुद्राः दातुम् इच्छति। (गुरु दक्षिणा के रूप में कौत्स चौदह करोड़ सोने की मुद्राएँ देना चाहता है।)
(घ) रघो: निश्चयं श्रुत्वा कुबेरः सुवर्णवृष्टिं करोति। (रघु के निश्चय को सुनकर कुबेर सोने की वर्षा करता है।)
(ङ) प्रातः काले कोषरक्षकः कोषे अत्यधिक सुवर्णं पश्यति। (प्रात:काल खजाने का रखवाला खजाने में अत्यधिक सोना देखता है।)

प्रश्न 4.
सत्यकथनस्य समक्षे आम्’ इति असत्यकथनस्य समक्षे ‘न’ इति लिखत
(सत्य कथन के सामने आम् (हाँ) असत्य कथन के सामने ने इस प्रकार लिखिए।)
उत्तर:
यथा – रघुः कौत्सस्य आतिथ्यं करोति।                  (आम्)
(क) कौत्स: वरतन्तोः शिष्यः अस्ति।                      (आम्)
(ख) अश्वमेधयज्ञे रघुः सर्वस्वं दानं करोति।                  (न)
(ग) लक्ष्मी: कोषागारे सुवर्णवृष्टिं करोति ।                   (न)
(घ) रघुः चतुर्दशकोटि-सुवर्णमुद्राः ददाति।             (आम्)
(ङ) कौत्सः द्विदिवस पर्यन्तं राजभवने निवासं करोति। (न)

प्रश्न 5.
उदाहरणं दृष्ट्वा वचनरूपाणि लिखत-(उदाहरण देखकर वचन रूप लिखिए-)
उत्तर:           एकवचनम्    द्विवचनम्    बहुवचनम् 
RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 15 रघो उदारता 1

योग्यता-विस्तारः

1. इस पाठ में तुम सबने उकारान्त-पुल्लिङ्ग शब्दों का प्रयोग देखा। जिन पुल्लिङ्ग शब्दों के अन्त में ‘उ’ (उकार) होता है, वे सब उकारान्त पुल्लिङ्ग शब्द होते हैं।

ग् + उ + र् + उ = गुरु (गुरु + : = गुरुः)
भ् + आ + न् + उ = भानु (भानु + : = भानुः)
र् + अ + घ् + उ = रघु (रघु + := रघुः)
व् + इ + + + उ = विभु (विभु + : = विभुः)
ये सभी उकारान्त पुंल्लिङ्ग शब्द हैं। इनके प्रथमा-द्वितीया-षष्ठी विभक्ति में रूप उस प्रकार चलते हैं

प्रथमा विभक्तिः
शब्दः   एकवचनम्     द्विवचनम्      बहुवचनम्
गुरु –     गुरुः              गुरू            गुरव
भानु –   भानुः              भानू            भानव
रघु –     रघुः                रघू            रघव

द्वितीया विभक्तिः

शब्दः    एकवचनम्    द्विवचनम्   बहुवचनम्
गुरु –      गुरुम्           गुरू        गुरून्ः
भानु –     भानुम्ः         भानू        भानून्ः
रघु –       रघुम् :          रघू         रघून्ः

षष्ठी-विभक्तिः

शब्दः     एकवचनम्     द्विवचनम्    बहुवचनम्
गुरु –         गुरोः           गुर्वोः        गुरूणाम्।
भानु –       भानोः          भान्वोः      भानूनाम्
रघु –         रघोः            रघ्वोः       रघूणाम्।

प्रश्न 2.
इसी प्रकार अन्य उकारान्त पुल्लिंग शब्दों के अभ्यास कीजिए
उत्तर:
प्रभुः, विभुः, रघुः, वरतन्तुः, विष्णुः, धनुः, मनुः, शान्तनुः।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कौत्सः कस्य शिष्यः अस्ति?
(क) रघोः
(ख) वरतन्तोः
(ग) विश्वामित्रस्य
(घ) वसिष्ठस्य
उत्तर:
(ख) वरतन्तोः

प्रश्न 2.
सुवर्णवृष्टिं कः करोति?
(क) रघुः
(ख) कौत्सः
(ग) कुबेरः
(घ) वरतन्तुः
उत्तर:
(ग) कुबेरः

लघु उत्तरीय प्रश्न

(क) कौत्सस्य आतिथ्यं कः करोति ?
(ख) कौत्सः कस्य शिष्यः अस्ति?
(ग) कोषागारे कः सुवर्णवृष्टिं करोति ?
(घ) कौत्सः कुत्र गच्छति?
उत्तर:
(क) रघुः कौत्सस्य आतिथ्यं करोति।
(ख) कौत्सः वरतन्तोः शिष्यः अस्ति।
(ग) कोषागारे कुबेरः सुवर्णवृष्टिं करोति।
(घ) कौत्सः स्वगुरोः आश्रमं प्रति गच्छति।

‘रघोः उदारता’ इति कथायाः सारः हिन्दी भाषायां लिखप्त।
उत्तर:
कथा – सार – प्राचीन काल में रघु नाम के एक प्रतापी व दानी राजा हुए थे। एक बार उन्होंने विश्वजित यज्ञ किया। इस यज्ञ में उन्होंने अपना सब कुछ दान कर दिया। यहाँ तक कि भोजन के लिए मिट्टी के पात्र ही बचे थे। गुरु वरतन्तु ने क्रोधित होकर अपने शिष्य कौत्स को चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दक्षिणा में लाने को कहा। कौत्स सीधे राजा रघु के पास पहुँचे। लेकिन रघु को मिट्टी के पात्रों में भोजन करते देखकर वह वापस लौटने लगे। राजा रघु ने कौत्स के आने का प्रयोजन जाना। उन्होंने कौत्स को रोक लिया। यज्ञ शाला में उनको ठहराया। राजा ने मंत्रियों से परामर्श किया कि अगले दिन सुबह कुबेर पर आक्रमण किया जाय। ऐसी राजा ने योजना बनाई। कुबेर ने भयभीत होकर रात्रि में ही राजा रघु के भंडारों को स्वर्ण मुद्राओं से भर दिया। राजा रघु कौत्स को वह सारा धन देना चाहते थे। लेकिन अपरिग्रही कौत्स ने केवल चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ। स्वीकार क। इसके बाद राजा रघु को आशीर्वाद देते हुए कौत्स अपने आश्रम में लौट आते हैं।

मूल अंश, शब्दार्थ, हिन्दी अनुवाद एवं प्रश्नोत्तर

1. प्राचीनकालस्य वार्ता अस्ति। एकः रघुः नामकः नृपः। भवति। सः स्वस्य सर्वं धनं “विश्वजित्-यज्ञे” दानं करोति । रघोः पाश्र्वे केवलं मृत्तिका-पात्राणि अवशिष्टानि भवन्ति। तस्मिन् एव समये गुरोः वरतन्तो: शिष्यः कौत्सः तत्र आगच्छति। रघु: कौत्सस्य आतिथ्यं करोति। तत्पश्चात् महाराजः रघुः कौत्सम् आगमनस्य प्रयोजनं पृच्छति। कौत्सः रघु वदति-“हे रघो! भवान् जानाति एव यत् विद्यासमापनसमये गुरूणां कृते दक्षिणाप्रदानं शिष्याणां कर्तव्यम् अस्ति। मम अपि गुरुकुलस्य शिक्षा सम्पन्ना।
शब्दार्थाः – प्राचीनकालस्य = प्राचीन काल की। नृपः = राजा। स्वस्य = अपना। पाश्र्वे = पास में। मृत्तका पात्रणि = मिट्टी के बर्तन। अवशिष्टानि = बचे हुए। समये = समय पर। तत्र = वहाँ । आगच्छति = आता है। आतिथ्यं = अतिथि सत्कार। आगमनस्य = आने का। प्रयोजनम् = उद्देश्य। पृच्छति = पूछता है। भवान् = आप। जानाति = जानते हो। यत् = कि। कृते = लिए। सम्पन्ना = पूरी हुई।
हिन्दी अनुवाद – प्राचीन काल की वार्ता है। एक रघु नाम का राजा है। वह अपने सम्पूर्ण धन को विश्वजित यज्ञ में दान कर देता है। रघु के पास केवल मिट्टी के बर्तन बचे हुए हैं। उसी समय पर गुरु वरतन्तु का शिष्य कौत्स वहाँ आ जाता है। रघु कौत्स का सत्कार करता है। इसके बाद महाराज रघु = कौत्स को आने का उद्देश्य पूछते हैं। कौत्स रघु को बताता
है-हे रघु ! आप जानते ही हो कि विद्या समापन के समय पर गुरु के लिए दक्षिणा देना शिष्यों का कर्तव्य है। मेरी भी गुरुकुल की शिक्षा पूर्ण हो गयी है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) कः नृपः आसीत्
(ख) रघो: पार्वे कानि पत्रिाणि अवशिष्टानि सन्ति?
(ग) कौत्सस्य गुरु: कः आसीत् ?
(घ) रघुः कस्य आतिथ्यं करोति?
उत्तर:
(क) रघु:
(ख) मृत्तिका
(ग) वरतन्तुः
(घ) कौत्सस्य।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) रघु निकटं कः आगच्छति ?
(ख) रघु: कौत्सं किं पृच्छति?
उत्तर:
(क) रघु निकटे कौत्सः आगच्छति।
(ख) रघु कौत्स आगमनस्य प्रयोजनं पृच्छति ।

2.  अधुना अहम् अपि गुरोः वरतन्तोः कृते दक्षिणां दातुम्। इच्छामि। मम गुरुः वरतन्तुः पूर्णतया तृष्णारहितः अस्ति। अतः सः तु दक्षिणारूपेण किमपि न इच्छति। किन्तु अहं गुरवे दक्षिणार्थं चतुर्दशकोटिस्वर्णमुद्राः दातुम् इच्छामि। अहं चिन्तयामि यत् भवान् मम सहायतां करिष्यति। किन्तु अधुना भवान् एव स्वर्णपात्राणां स्थाने मृत्तिकापात्राणां प्रयोगं करोति एतद् भवतः धनाभावं सूचयति। अतः अहं चिन्तयामि यत् भवान् मम सहायतां कर्तुं न शक्नोति। अहम् अन्यत्र गच्छामि।”
शब्दार्थाः – अधुना = अब। कृते = लिए। दातुम् = देने के लिए। इच्छामि = इच्छा करता हूँ। पूर्णतया = पूर्ण रूप से। तृष्णारहितः = इच्छा रहित। गुरवे = गुरु के लिये। चतुर्दश कोटि = चौदह करोड़। स्वर्णमुद्राः = सोने की मुद्राएँ। चिन्तयामि = सोचता हूँ। यत् = कि। भवान् = आप। स्वर्णपात्राणां = सोने के पात्रों के। मृत्तिका = मिट्टी। भवतः = आपके। धनाभावं = धने का अभाव। सूचयति = सूचित करता है। कर्तुं = करने के लिए। न शक्नोति = नहीं समर्थ हो। अन्यत्र = दूसरी जगह।
हिन्दी अनुवाद – अब मैं भी गुरु वरतन्तु के लिए दक्षिणा देना चाहता हूँ। मेरे गुरु वरतन्तु पूर्णरूप से इच्छारहित हैं। इसलिए वह तो दक्षिणा रूप से कुछ भी इच्छा नहीं करते हैं। किन्तु मैं गुरु की दक्षिणा के लिए चौदह करोड़ सोने की मुद्राएँ देने की इच्छा करता हूँ। मैं सोचता हूँ कि आप मेरी सहायता करेंगे। किन्तु अब आप ही सोने के बर्तनों के स्थान पर मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग कर रहे हैं। यह आपके धन की कमी सूचित करता है। इसलिए मैं सोचता हूँ कि आप मेरी सहायता नहीं कर सकते हैं। मैं दूसरी जगह जाता हूँ।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) कौत्सः कस्मै दक्षिणां दातुम् इच्छति ?
(ख) तृष्णारहितः कः आसीत् ?
(ग) कौत्सः गुरवे कति स्वर्णमुद्रा: दातुम् इच्छति ?
(घ) रघुः केषां पात्राणां प्रयोगं करोति ?
उत्तर:
(क) गुरवे,
(ख) वरतन्तुः
(ग) चतुर्दशकोटिं
(घ) मृत्तिका

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) कौत्सः किम् इच्छति ?
(ख) कौत्सः गुरवे कति स्वर्णमुद्राः याचति ?
उत्तर:
(क) कौत्सः गुरवे दक्षिणां दातुं इच्छति।
(ख) कौत्सः गुरवे चतुर्दशकोटिस्वर्णमुद्राः याचति।

3. रघुः कौत्सस्य वार्ता श्रुत्वा कथयति-“हे कौत्स भवान् अन्यत्र मा गच्छतु। यद्यपि सम्प्रति यज्ञे सर्वस्वदानात् भवतः गुरुदक्षिणार्थं मम पार्वे धनं नास्ति। किन्तु अहं प्रयास करिष्यामि। भवान् द्विदिवसपर्यन्तं मम यज्ञशालायाम् निवास करोतु ।” रघो: वार्तं श्रुत्वा कौत्सः तत्रैव तिष्ठति।
शब्दार्थाः – श्रुत्वा = सुनकर । कथयति = कहता है। अन्यत्र = दूसरी जगह। मा = मत। गच्छतु = जाओ। सम्प्रति = अब। सर्वस्वदानात् = सब कुछ दान से। भवतः = आपके। द्विदिवसपर्यन्तं = दो दिन तक। तत्रैव = वहाँ ही। तिष्ठति = बैठता है (रुक जाता है)।
हिन्दी अनुवाद – रघु कौत्स की वार्ता सुनकर कहता है-“हे कौत्स ! आप दूसरी जगह मत जाइए। यद्यपि इस समय यज्ञ में सब कुछ दान देने से आपकी गुरु दक्षिणा के लिए मेरे पास में धन नहीं है। लेकिन मैं प्रयास करूंगा। आप दो दिन तक मेरी यज्ञशाला में निवास करें। रघु की वार्ता सुनकर कौत्स वहीं रुक जाता है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) कौत्सस्य वार्ती कः शृणोति?
(ख) रघुः कस्य वार्ता श्रुत्वा कथयति ?
(ग) कस्य पाश्र्वे धनं नास्ति?
(घ) कौत्सः कुत्र तिष्ठति?
उत्तर:
(क) रघुः,
(ख) कौत्सस्यः,
(ग) रघो:,
(घ) यज्ञशालायां

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) रघोः पाश्र्वे केन कारणेन धनं नास्ति?
(ख) कः यज्ञशालायां निवसतु ?
उत्तर:
(क) यज्ञे सर्वस्वदानेन रघोः पाश्र्वे धनं नास्ति।
(ख) कौत्सः यज्ञशालायां निवसतु ।

4. रघुः कौत्सस्य सहायतायाः उपायं चिन्तयति । सः विचारयति “कुबेर: धनपतिः अस्ति। तस्योपरि आक्रमणं कृत्वा अहं पर्याप्तं धनं प्राप्तुं शक्नोमि। अतः प्रातः काले कुबेरस्योपरि आक्रमणं करिष्यामि।” । यदा कुबेर: रघो: निश्चयं शृणोति तदा सः भीतः भवति। भयवशात् कुबेर: रात्रिकाले एव रघो: कोषे सुवर्णवृष्टिं करोति। प्रातः कोषरक्षकः कोषे अत्यधिक सुवर्णं पश्यति। झटिति एव सः रघु सूचयति।
शब्दार्था: – चिन्तयति = सोचता है। विचारयति = विचार करता है। तस्योपरि = तस्य + उपरि = उसके ऊपर। कृत्वा = करके। प्राप्तुं = प्राप्त करने के लिए। शक्नोमि = सकता हूँ। शृणोति = सुनता है। तदा = तब। भीतः = डरा हुआ। भयवशात् = डर के कारण से। कोषे = भण्डार में (खजाने में) । सुवर्णवृष्टिं = सोने की वर्षा को। कोषरक्षकः = खजाने की रक्षा करने वाला । झटिति = शीघ्र। सूचयति = सूचना देता है।
हिन्दी अनुवाद – रघु कौत्स की सहायता का उपाय सोचता है। वह विचार करता है “कुबेर धन का स्वामी है। उसके ऊपर आक्रमण करके मैं पर्याप्त धन प्राप्त कर सकता हूँ। इसलिए प्रातः काल कुबेर के ऊपर आक्रमण करूंगा।” जब कुबेर रघु के निश्चय को सुनता है तब वह डर जाता है। डर के कारण कुबेर रात में ही रघु के खजाने में सोने की वर्षा करता है। सवेरे खजाने का रखवाला खजाने में अत्यधिक सोना देखता है। जल्दी ही वह रघु को सूचना देता है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) रघुः कस्य सहायतायाः उपायं चिन्तयति ?
(ख) कुबेरस्योपरि आक्रमणं कः करिष्यति ?
(ग) रघो: निश्चयं कः शृणोति?
(घ) कुबेरः कस्य कोषे सुवर्णवृष्टिं करोति ?
उत्तर:
(क) कौत्सस्य,
(ख) रघुः,
(ग) कुबेरः
(घ) रघोः

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) रघुः कस्योपरि आक्रमणं करिष्यति ?
(ख) भयवशात् कुबेरः किं करोति ?
उत्तर:
(क) रघुः कुबेरस्योपरि आक्रमणं करिष्यति।
(ख) भयवशात् कुबेर: रात्रिकाले एव रघो: कोषे सुवर्णवृष्टिं करोति।

5. महाराजः रघुः तस्मिन् एव समये कौत्सम् आह्वयति। सर्वं सुवर्णं दातुम् इच्छति। किन्तु कौत्सः कथयति, “हे महाराज ! गुरुदक्षिणार्थं चतुर्दशकोटिसुवर्णमुद्राः एव इच्छामि। ततः अधिक न स्वीकरिष्यामि।” तदा रघुः कौत्सस्य कृते चतुर्दशकोटिस्वर्णमुद्राः ददाति। कौत्सः रघवे आशीर्वाद ददाति, स्वगुरोः आश्रमं प्रति गच्छति।
शब्दार्थाः – आह्वयति = बुलाता है। दातुम् = देने के लिए। गुरुदक्षिणार्थं = गुरु दक्षिणा के लिए। स्वीकरिष्यामि = स्वीकार करूंगा। ददाति = देता है। स्वगुरोः = अपने गुरु के। प्रति = ओर।
हिन्दी अनुवाद – महाराज रघु उसी समय पर कौत्स को बुलाते हैं। सारी सोने की मुद्रा देना चाहते हैं। लेकिन कौत्स कहता है, “हे महाराज! गुरु दक्षिणा के लिए चौदह करोड़ सोने की मुद्रा ही इच्छा करता (चाहता) हूँ। उससे अधिक नहीं स्वीकार करूंगा।” तब रघु कौत्स के लिए चौदह करोड़ सोने की मुद्रा देता है। कौत्स रघु को आशीर्वाद देता है, अपने गुरु के आश्रम की ओर जाता है।

प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरत
(क) कौत्सं कः आह्वयति ?
(ख) रघुः कति सुवर्णं दातुम् इच्छति?
(ग) कौत्सः कति सुवर्णमुद्राः इच्छति?
(घ) कौत्सः कस्मै आशीर्वाद ददाति?
उत्तर:
(क) रघुः
(ख) सर्वं
(ग) चतुर्दशकोटि
(घ) रघवे।

प्रश्न 2.
पूर्णवाक्येन उत्तरत
(क) रघुः तस्मिन् समये कम् आह्वयति?
(ख) कौत्स आशीर्वाद दत्वा कुत्र गच्छति ?
उत्तर:
(क) रघुः तस्मिन् समये कौत्सम् आह्वयति ?
(ख) कौत्सः आशीर्वादं दत्वा स्वगुरोः आश्रमं प्रति गच्छति

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