RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 16 सूक्तयः है

RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 16 सूक्तयः है is part of RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 6 Sanskrit Chapter 16 सूक्तयः है.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 6
Subject Sanskrit
Chapter Chapter 16
Chapter Name सूक्तयः है
Number of Questions 15
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 6 Sanskrit Chapter 16 सूक्तयः है

पाठ्य पुस्तक के प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत-(उच्चारण कीजिए-)
नानृतम्        दुर्लभम्            ददाति         पुत्रोऽहं
पृथिव्याः       जन्मभूमिश्च        नार्यस्तु        श्रद्धावान्
गुरूणाम्     ह्यविचारणीया     अनर्थानाम्    स्वर्गादपि
उत्तर:
छात्रं स्वयं उच्चारण करें।

प्रश्न 2.
एकपदेन उत्तरत-(एक पद में उत्तर दीजिए-)
(क) किं न जयते? (क्या नहीं जीतता है?)
(ख) विद्या किं ददाति? (विद्या क्या देती है?)
(ग) अनर्थानाम् मूलं कः? (हानियों की मुख्य कारण कौन है?)
(घ) कः ज्ञानं लभते? (कौन ज्ञान प्राप्त करता है?)
(ङ) केषाम् आज्ञा हिविचारणीया? (किनकी आज्ञा ही विचार करने योग्य नहीं है?)
ऊत्तर:
(क) अनृतम्
(ख) विनयम्
(ग) क्रोधः,
(घ) श्रद्धावान्
(ङ) गुरूणां।

प्रश्न 3.
एकवाक्येन उत्तरत-(एक वाक्य में उत्तर दीजिए-)
(क) कीदृशं वचः दुर्लभम्? (कैसा वचन दुर्लभ है?)
(ख) जननी जन्मभूमिश्च कस्मात् गरीयंसी? (माता और जन्मभूमि किससे बढ़कर है?)
(ग) देवताः कुत्र रमन्ते? (देवता कहाँ विचरण करते हैं?)
(घ) कां विना ज्ञानं भारः भवति? (किसके बिना ज्ञान बोझा होता है?)
(ङ) यत्नं विना किं न लभ्यते? (बिना प्रयत्न के क्या नहीं प्राप्त होता है?)
उत्तर:
(क) हितं मनोहारि च वचः दुर्लभम् अस्ति। (हितकारी और सुन्दर वचन कठिन है।)
(ख) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी। (माता और जन्मभूमि स्वर्ग से श्रेष्ठ ।)
(ग) यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र देवता: रमन्ते। (जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है। वहाँ देवता रहते हैं।)
(घ) क्रियां विना ज्ञानं भारः भवति। (क्रिया के बिना ज्ञान बोझ होता है।)
(ङ) यत्नं विना रत्नं न लभ्यते। (बिना प्रयत्न के रत्न प्राप्त नहीं होता है।)

प्रश्न 4.
परस्परं सुमेलयत-(आपस में मिलाइए-)
उत्तर:
RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 16 सूक्तयः है 1

प्रश्न 5.
मञ्जूषायां प्रदत्तशब्दानां प्रयोगेण रिक्तस्थानानि पूरयत – (मञ्जूषा में दिये गये शब्दों के प्रयोग से खाली स्थानों का पूरा कीजिए-)
पूज्यन्ते, गरीयसी, ददाति, ज्ञानं, देवताः, जननी
(क) विद्या……………विनयम्।
(ख) …………….. भारः क्रियां विना।
(ग) यत्र नार्यस्तु………………..रमन्ते तत्र………………।
(घ) …………..”जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी ।
उत्तर
(क) ददाति
(ख) ज्ञानं
(ग) पूज्यन्ते, देवताः
(घ) जननी

प्रश्न 6.
प्रदत्तानाम् अव्ययपदानां प्रयोगं कृत्वा वाक्यनिर्माण कुरुत-(दिये गये अव्यय पदों का प्रयोग करके वाक्य बनाइए-)
उत्तर:
यथा – च- रामः गणेशः च आगच्छतः।
(क) न – असत्यं न ब्रूयात् ।
(ख) तत्र – तत्र एकः पुस्तकालयः अस्ति।
(ग) विना – धनेन विना सुखं नास्ति।
(घ) यत्र – यत्रनार्यस्तुपूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
(ङ) एव – हे ईश्वर। त्वम् एव मम बन्धुः।

प्रश्न 7.
कोष्ठकात् चित-पदस्य प्रयोगं कृत्वा सूक्तिं पूरयत – (कोष्ठक से उचित पद का प्रयोग करके सूक्ति पूरी कीजिए-)
(क) माता -पुत्रोऽहं पृथिव्याः । (भूमिम्, भूमिः, भूमय:)
(ख) ……………..शक्ति: कलौ युगे। (सङ्घ, सङ्घम्, सङ्गघस्य)
(ग) बत्नं विना रत्नम्………..लभ्यते । (एव, च, न)
(घ) जननी जन्मभूमिश्च…………………अपि गरीयसी।
(स्वर्गात्, स्वर्गस्य, स्वर्गम्)
(ङ) हितं मनोहारि चः……………….वचः। (दुर्लभेन, दुर्लभम्, दुर्लभस्य)
उत्तर:
(क) भूमिः
(ख) सङ्घ
(ग) न
(घ) स्वर्गात्
(ङ) दुर्लभम्

योग्यता-विस्तार

प्रिय छात्रो! इस पाठ में तुम सबने संस्कृत सूक्तियों का अध्ययन किया। संस्कृत भाषा में अनेक सूक्तियाँ हैं। सामान्य जीवन में भी मनुष्य इन सूक्तियों का प्रयोग करते हैं। अनेक सूक्तियाँ तो अनेक संस्थाओं और विभागों के ध्येय वाक्य रूप में भी प्रयोग की जाती हैं। जैसे “सत्य की ही जीत होती है।” यह हमारी सरकार का ध्येय वाक्य है। सूक्तियों के प्रयोग से भाषा में विशेषता आ जाती है। इसलिए सूक्तियों का स्मरण और प्रयोग अवश्य ही करना चाहिए। तुम्हारे लिए कुछ अन्य सूक्तियाँ यहाँ हैं
(क) लोभः पापस्य कारणम्। लोभ पाप का कारण है।
(ख) नास्ति विद्यासमं चक्षुः। विद्या के समान नेत्र नहीं है।
(ग) विद्याधनं सर्वधनप्रधानम् । विद्याधन सब धनों में श्रेष्ठ है।
(घ) बुद्धिर्यस्य बलं तस्य। जिसमें बुद्धि है उसी में बल है।
(ङ) आचारः परमो धर्मः। सदाचार श्रेष्ठ धर्म है।
(च) प्रारब्धम् उत्तमजना: न परित्यजन्ति । उत्तम पुरुष प्रारब्ध को नहीं छोड़ते हैं।
(छ) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्। जो अपने लिए प्रतिकूल हो उसे दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए।

सूक्ति कथन – खेल
अध्यापक छात्रों के दो गण (समूह) करता है। एक गण दूसरे गण के सामने बैठता है। पहले गण का एक विद्यार्थी एक सूक्ति या एक अच्छा कथन बोलता है। जैसे-‘सत्यमेव जयते नानृतम्’ (सत्य ही जीतता है झूठ नहीं ।) दूसरे गण का एक छात्र कोई भी दूसरी सूक्ति या दूसरा अच्छा कथन बोलता है। इसी क्रम से छात्र सूक्तियों को और अच्छे कथनों को बोलते हैं। यहाँ ध्यान देना चाहिए कि सूक्तियों और अच्छे कथनों की पुनरावृत्ति (दुबारा) नहीं होनी चाहिए। सूक्ति और अच्छे कथनों का उच्चारण पूर्ण और स्पष्ट होना चाहिए। जो गण (समूह) सूक्ति या सुभाषित कहने के लिए समर्थ नहीं है, उस गण की हार होती है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

बहुविकल्पीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किम् एव जयते?
(क) अनृतम्
(ख) असत्यम्
(ग) सत्यम्
(घ) अप्रियम्
उत्तर:
(ग) सत्यम्

प्रश्न 2.
विद्या किम् ददाति?
(क) धनं
(ख) रूपं
(ग) विनयम्
(घ) वस्त्रं
उत्तर:
(ग) विनयम्

प्रश्न 3.
मनोहारि कः दुर्लभं
(क)वचः
(ख) पुत्रः
(ग) विद्या
(घ) हितं
उत्तर:
(ख) पुत्रः

प्रश्न 4.
भूमिः का?
(क)पुत्रः
(ख) पृथिव्या
(ग) माता
(घ) अहं।
उत्तर:
(ग) माता

प्रश्न 5.
कस्मिन् शक्तिः कलौयुगे ?
(क)सङ्गे
(ख) सत्ये
(ग) कार्ये
(घ) कलयुगे
उत्तर:
(क)सङ्गे

रिक्त स्थान प्रश्न
कोष्ठकात् उचित पदस्य प्रयोगं कृत्वा सूक्तिं पूरयत-

(क) लोभ…………..”कारणम्। (पापस्य, पापं)
(ख) विद्या………………सर्वधनप्रधानम्। (धनात्,धनम्)
(ग) आचार………………धर्मः। (परमो, परमात्)
(घ) बुद्धिर्यस्य……………….”तस्य। (बलं, बलेन)
उत्तर:
(क) पापस्य
(ख) धनं
(ग) परमोः
(घ) बलं

एकपदेन उत्तरत

1. कस्य एव विजयः भवति?
2. कस्य विजयः न भवति?
3. हितं मनोहारि च कः दुर्लभम् ?
4. अहं पृथिव्याः कः?
5. क्रियां विना ज्ञानं किं भवति ?
उत्तर:
(1) सत्यस्य
(2) असत्यस्य
(3) वचः
(4) पुत्रः
(5) भारः

पूर्णवाक्येन उत्तरत

1. अनर्थानां मूलं किम् अस्ति?
2. केषाम् आज्ञा न विचारणीया।
3. कलियुगे कस्मिन् शक्तिः अस्ति ?
4. अस्मिन् संसारे किं दुर्लभम् अस्ति?
5. स्वर्गादपि कः गरीयसी? ।
उत्तर:
1. अनर्थानां मूलं क्रोधम् अस्ति।
2. गुरूणां आज्ञा न विचारणीया।
3. कलियुगे सल्ले शक्तिः अस्ति।
4. अस्मिन् संसारे हितकरं मनोहरं च वचनं दुर्लभम् अस्ति।
5. स्वर्गादपि जननी जन्मभूमिश्च गरीयसी।

सूक्तियों का हिन्दी अनुवाद, भावार्थ एवं व्याख्या
1. सत्यमेव जयते नानृतम्।
भावार्थ: – सत्यस्य एव विजयः भवति, असत्यस्य विजयः कदापि न भवतिः। अतः सर्वदा सत्यम् एव वदामः।
शब्दार्थाः – सत्यमेव = सत्य ही। जयते = जीत होती है। अनृतम् = झूठ। कदापि = कभी भी। सर्वदा = हमेशा। वदामः = बोलते हैं।
हिन्दी अनुवाद – सत्य की ही जीत होती है झूठ की नहीं। हिन्दी
भावार्थ – सत्य की ही विजय होती है, झूठ की विजय कभी भी नहीं होती। अतः हमेशा सत्य ही बोलना चाहिए। व्याख्या-सत्य सत्य ही होता है, सत्य में बल होता है, सत्य के साथ ईश्वर भी मदद करता है। झूठ छिपता नहीं है। सत्य बोलने में धर्म है और झूठ में पाप है। इसलिए सत्य ही बोलना चाहिए।

2. हितं मनोहारि च दुर्लभं वचः।
भावार्थ: – अस्मिन् संसारे हितकरं मनोहरं च वचनं दुर्लभमेव अस्ति ।
शब्दार्थाः – हितं = हितकारी। मनोहरं = सुन्दर । दुर्लभम् = कठिनता से प्राप्त। हिन्दी अनुवाद-हितकारी और सुन्दर वचन कठिनता से प्राप्त होते हैं। हिन्दी भावार्थ – इस संसार में हित (भलाई) करने वाले और मन को प्रसन्न करने वाले वचन कठिनता से ही प्राप्त होते हैं। व्याख्या-जो वचन हितकारी होते हैं वे अच्छे नहीं लगते हैं। और जो अच्छे लगते हैं वे हितकारी नहीं होते हैं। इसलिए हितकारी और सुन्दर दोनों प्रकार के वचन कठिनाई से मिलते हैं।

3. विद्या ददाति विनयम्।
भावार्थ: – विद्या एव विनयशीलतां ददाति अर्थात् यः शिक्षा प्राप्नोति सः एव विनम्रः भवति ।
शब्दार्थाः – ददाति = देती है। विनयम् = नम्रता ।
हिन्दी अनुवाद – विद्या नम्रता देती है।
हिन्दी भावार्थ – विद्या ही नम्रता देती है, अर्थात् जो शिक्षा प्राप्त कर लेता है (पढ़ जाता है) वह ही विनम्र होता है। व्याख्या-हमारे शास्त्रों में विद्या की बड़ी महिमा बतायी है। विद्या से व्यक्ति सब कुछ प्राप्त कर सकता है और उसका जीवन सुखी बन जाता है। यहाँ केवल एक गुण नम्रता दिया गया है। नम्रता से व्यक्ति अपने उद्देश्य में सफल हो जाता है।

4. माताः भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः।
भावार्थ: – अस्मान् माता पालयति लालयति च तथैः ‘जी अपि अस्मान् पालयति लालयति च। अतः वयं सर्वे अस्याः पृथिव्याः पुत्राः स्मः। भूमिः अस्माकं सर्वेषां माता अस्ति । अतः एषा सर्वदा पूज्या।
शब्दार्था: – पृथिव्याः = धरती का। अस्मान् = हमको । पालयति = पालन करती है। लालयति = दुलार ( प्यार) करती है। स्मः = हैं। सर्वदा = हमेशा। पूज्या = पूजनीय।
हिन्दी अनुवाद – धरती हमारी माता है, मैं धरती का पुत्र हूँ।
हिन्दी भावार्थ – हमारी माता (माँ) पालन करती हैं और स्नेह करती है वैसे ही पृथ्वी भी हमको पालती है और स्नेह करती है। इसलिए हम सब इस पृथ्वी (धरती) के पुत्र हैं। धरती हम सब की माता है। इसलिए यह सदा पूजा करने । योग्य है। व्याख्या-एक तो जन्म देने वाली माँ है दूसरी धरती माँ है। जिस प्रकार माँ बच्चे के लिए सब कुछ न्यौछावर कर देती है। उसी प्रकार धरती भी हमारे लिए अन्न, फल, लकड़ी, वस्त्र अन्य खाद्य वस्तुएँ देती है। अर्थात् धरती में सभी वस्तुएँ पैदा होती हैं। इसलिए धरती भी माँ के समान पूजनीय है!

5. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।
भावार्थ: – या अस्मान् जनयति सा जननी (माता) भवति । यत्र च अस्माकं जन्म भवति, सा जन्मभूमिः भवति। माता जन्मभूमिः च स्वर्गलोकाद् अपि श्रेष्ठा भवति।
शब्दार्थाः – जननी = माता । स्वर्गादपि = स्वर्ग से भी। गरीयसी = बढ़कर। जनयति = जन्म देती है। जन्म भवति – जन्म होता है।
हिन्दी अनुवाद – जन्म देने वाली माँ (माता) और वह जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर हैं अर्थात् श्रेष्ठ हैं।
हिन्दी भावार्थ – जो हमको जन्म देती है वह माता होती है। और जहाँ हमारा जन्म होता है वह जन्मभूमि होती है। माता और जन्मभूमि स्वर्गलोक से भी श्रेष्ठ है। व्याख्या-माता का सर्वोपरि स्थान है, माता हमारे लिए कितना कष्ट उठाती है और जन्मभूमि से भी स्नेह होता है। इसलिए माता और जन्मभूमि स्वर्गलोक से भी श्रेष्ठ पानी गयी हैं। हमें हमेशा माता की आज्ञा पालन और उसको सेवा करनी चाहिए।

6. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।।
भावार्थ: – यत्र नारीणां सम्मानः भवति तत्र देवाः प्रसन्ना: भवन्ति। यत्र नारीणां सम्मानः न भवति तत्र देवताः अपि प्रसन्नाः न भवन्ति। अतः वयं सर्वदा नारीणां सम्मानं कुर्मः।
शब्दार्था: – यत्र = जहाँ । नार्यस्तु = नारियाँ । पूज्यन्ते = पूजा होती है। (सम्मान होता है)। रमन्ते = विचरण करते हैं। तत्र = वहाँ।
हिन्दी अनुवाद – जहाँ नारियाँ (स्त्री) पूजी जाती हैं अर्थात् स्त्रियों का सम्मान होता है वहाँ देवता विचरण करते हैं अर्थात् प्रसन्न होते हैं।
हिन्दी भावार्थ: – जहाँ स्त्रियों का आदर होता है, वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ स्त्रियों का सम्मान नहीं होता है वहाँ देवता भी प्रसन्न नहीं होते हैं। इसलिए हम सब हमेशा स्त्रियों का सम्मान करते हैं। व्याख्या-प्राचीन काल से ही स्त्रियाँ सम्मानित रही हैं। जिस घर में महिलाओं का सम्मान होता है। वहाँ शान्ति रहती है और देवता भी विचरण करते हैं व प्रसन्न होते हैं। जिस घर में स्त्रियों का सम्मान नहीं होता वहाँ अधिकांश कलह रहता है। इसलिए हम को स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए।

7. सड़े शक्तिः कलौ युगे।
भावार्थ: – एष युगः कलियुगः अस्ति। कलौ युगे सङ्गठने एव शक्तिः भवति। अतः वयं सदैव परस्परं मिलित्वा सङ्गठितरूपेण कार्यं कुर्मः।
शब्दार्थाः – सङ्घ = संगठन में। कलौ युगे = कलियुग में । सदैव = हमेशा । परस्परं = आपस में मिलित्वा = मिलकर। सङ्गठितरूपेण = इकट्टै रूप से। हिन्दी अनुवाद-कलियुग में सङ्गठन में ही शक्ति है।
हिन्दी भावार्थ: – यह युग कलियुग है। इसलिए हम सब हमेशा आपस में मिलकर संगठित रूप से कार्य करते हैं। व्याख्या-अब कलियुग चल रहा है, इस युग में संगठन में ही बल होता है जो परिवार मिलकर इकट्टे रहते हैं वह घर के कार्यों को आपस में बाँटकर कर लेते हैं जिससे कार्य जल्दी पूरे हो जाते हैं। किसी भी कार्य पर जब सब लग जाते हैं तो भी कार्य शीघ्र पूरा हो जाता है। इसलिए संगठन में रहना चाहिए।

8. श्रद्धावान् लभते ज्ञानम्।
भावार्थ: – यः पूर्वजानां स्मरणं, अग्रजानाम् आज्ञापालनं, सम्मानं च करोति सः श्रद्धावान् भवति। एतादृशः श्रद्धावान् एव श्रेष्ठं ज्ञानं प्राप्नोति।
शब्दार्थाः – श्रद्धावान् = श्रद्धा से युक्त हो । लभते = प्राप्त करता है। पूर्वजानां = पुरखों का। स्मरणं = याद अग्रजानाम् । = अपने से बड़ों का। प्राप्नोति = प्राप्त करता है।
हिन्दी अनुवाद – श्रद्धा से युक्त ही ज्ञान प्राप्त करता है।
हिन्दी भावार्थ – जो अपने पुरखों का स्मरण करता है, अपने से बड़ों की आज्ञा का पालन करता है और उनका सम्मान करता है। वह ही श्रद्धावान् होता है। ऐसा श्रद्धावान् ही श्रेष्ठ ज्ञान प्राप्त करता है। व्याख्या-बिना श्रद्धा के कुछ प्राप्त नहीं होता है। यदि छात्र अपने गुरुओं के प्रति श्रद्धा नहीं रखेगा तो उसे विद्या प्राप्त नहीं होगी और न परीक्षा में सफल होगा। इसलिए छात्रों को अपने माता, पिता, गुरु, अपने से बड़ों और पूर्वजों के प्रति श्रद्धावान् होना चाहिए।

9. ज्ञानं भारः क्रिया विना। भावार्थः-केवलं ज्ञानप्राप्तिः एव पर्याप्तं न भवति। ज्ञानेन सह कार्यमपि आवश्यकम् । कार्यं (क्रिया) विना ज्ञानम् अपि भारः इव भवति ।
शब्दार्थाः – भारः = बोझ । क्रियां = कार्य करना। पर्याप्त = पूर्ण । ज्ञानेन सह = ज्ञान के साथ। आवश्यकम् = जरूरी।
हिन्दी अनुवाद – कार्य (क्रिया) के बिना ज्ञान बोझ है।
हिन्दी भावार्थ – केवल ज्ञान प्राप्त कर लेना ही पर्याप्त नहीं होता है। ज्ञान के साथ कार्य करना भी आवश्यक है। कार्य करने के बिना ज्ञान भी बोझ की तरह होता है। व्याख्या-ज्ञान बिना क्रिया किये भार की तरह ही है। जब तक ज्ञान का उपयोग नहीं होगा तो उस ज्ञान से क्या लाभ? इसलिए ज्ञान होने पर उसका उपयोग होना चाहिए अर्थात् क्रिया करनी चाहिए। बिना क्रिया के ज्ञान बोझ के समान है।

10. आज्ञा गुरूणां ह्यविचारणीया।।
भावार्थ: – य: शिक्षयति, बोधयति, ज्ञानं प्रददाति अन्धकारस्य च नाशं करोति स एव गुरुः। गुरुजनाः सर्वदा छत्राणां हितम् एवं कुर्वन्ति। अत: गुरुजनानाम् आज्ञा अवश्यं पालनीया। (न विचारणीया अपितु पालनीया। विचारार्थं न भवति पालनार्थम्। एव भवति ।)।
शब्दार्था: – गुरूणां = गुरुओं का। ह्यविचारणीया = विचार नहीं की जानी चाहिए। बोधयति = बोध करता है। अन्धकारस्य = अन्धकार का। नाशं = नष्ट। हितम् = हित (भलाई)। पालनीया = पालन करना चाहिए। विचारार्थं = सोचने के लिए। हिन्दी अनुवाद-गुरुओं की आज्ञा विचार नहीं (पालन) की जानी चाहिए।
हिन्दी भावार्थ – जो सिखाता है, बोध कराता है, ज्ञान देता है। और अन्धकाररूपी अज्ञान का नाश करता है वह ही गुरु है। गुरु हमेशा छात्रों की भलाई ही करते हैं। इसलिए गुरुओं की आज्ञा का अवश्य पालन करना चाहिए। (विचार करने योग्य नहीं अपितु पालन करने योग्य है। विचार के लिए नहीं अपितु पालन करने के लिए ही होती है।) व्याख्या-जो गुरु वास्तविक गुरु है, जो हमें ज्ञान देता है, हमारी भलाई के लिए कार्य करता है, अज्ञान को दूर करता है। ऐसे गुरु की आज्ञा के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है, बल्कि उसकी आज्ञा पालन करनी चाहिए।

11. यत्नं विना रत्नं न लभते।
भावार्थ: – यत्नः अर्थात् प्रयासः। प्रत्येक कार्यं प्रयासेन एव सफलं भवति। अतः प्रयास विना रत्नस्य (बहुमूल्यपदार्थस्य) प्राप्तिः अपि असम्भवा।।
शब्दार्थाः – यत्नं = प्रयास । लभते = प्राप्त होता है। रलं = बहुमूल्य पदार्थ।
हिन्दी अनुवाद – प्रयास के बिना बहुमूल्य पदार्थ प्राप्त नहीं होते हैं।
हिन्दी भावार्थ – कोशिश अर्थात् प्रयास। प्रत्येक कार्य प्रयास से ही सफल होता है। इसलिए प्रयास के बिना बहुमूल्य पदार्थ की प्राप्ति भी असम्भव है। व्याख्या-असफलता यह सिद्ध करती है कि हमने भरसक प्रयास नहीं किया। किसी भी कार्य को पूरी लगन और पूरे प्रयास से किया जाय तो अवश्य ही सफल होंगे। कोई भी कार्य असम्भव नहीं है।

12. क्रोधो मूलमनर्थानाम्।
भावार्थ: – क्रोध: अस्माकं शत्रुः अस्ति । यः क्रोधं करोति सः स्वस्य एव हानि (अनर्थं) करोति। अनर्थस्य (हाने:) मुख्यं कारणं क्रोध एव भवति। अतः कदापि क्रोधः न करणीयः।
शब्दार्थाः – मूलम् = मुख्य कारण। अनर्थानाम् = हानियों का। शत्रुः = दुश्मन। स्वस्य = अपने का। एव = ही। अतः = इसलिए। कदापि = कभी भी। करणीयः = करना चाहिए।
हिन्दी अनुवाद – क्रोध ही हानियों का मुख्य कारण है।
हिन्दी भावार्थ – क्रोध अर्थात् कोप हमारा दुश्मन है जो क्रोध करता है, वह अपनी ही हानि करता है। हानियों का मुख्य कारण क्रोध ही होता है। इसलिए कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए। व्याख्या-क्रोध मनुष्य का महान शत्रु है। क्रोध सब झगड़ों का कारण है। क्रोध से विवेक नष्ट हो जाता है उसे ज्ञान नहीं रहता कि वह क्या कह रहा है। क्रोध करने पर लाभ कुछ नहीं अपितु हानियाँ ही होती हैं। इसलिए कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए।

 

We hope the RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Chapter 16 सूक्तयः है will help you. If you have any query regarding Rajasthan Board RBSE Class 6 Sanskrit Chapter 16 सूक्तयः है, drop a comment below and we will get back to you at the earliest.