RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 9 केवट का प्रेम

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 9 केवट का प्रेम are part of RBSE Solutions for Class 7 Hindi. Here we have given Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 9 केवट का प्रेम.

Board RBSE
Textbook SIERT, Rajasthan
Class Class 7
Subject Hindi
Chapter Chapter 9
Chapter Name केवट का प्रेम
Number of Questions Solved 34
Category RBSE Solutions

Rajasthan Board RBSE Class 7 Hindi Chapter 9 केवट का प्रेम (कविता)

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

पाठ से
सोचें और बताएँ

प्रश्न 1.
श्रीराम के पैरों की धूल का क्या प्रभाव था?
उत्तर:
श्रीराम के पैरों की धूल का यह प्रभाव था कि उनके चरण कमलों की धूल से पत्थर की शिला एक स्त्री में बदल गयी थी।

प्रश्न 2.
केवट श्रीराम को बिना पैर धोए नाव पर क्यों नहीं बैठाना चाहता था?
उत्तर:
केवट श्रीराम को बिना पैर धोए नाव पर इसलिए नहीं बैठाना चाहता था क्योंकि उसे भय था कि श्रीराम के पैरों की धूल से उसकी लकड़ी की नाव स्त्री में बदल जायेगी।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 9 केवट का प्रेम

लिरवें
अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ तुलसीदास के किस ग्रंथ से लिया गया है?
उत्तर:
प्रस्तुत पाठ तुलसीदास के श्रीरामचरितमानस ग्रंथ से लिया गया है।

प्रश्न 2.
यह पाठ कौन-सी भाषा में लिखा गया है?
उत्तर:
यह पाठ अवधी भाषा में लिखा गया है।

प्रश्न 3.
अहिल्या किस ऋषि की पत्नी थी?
उत्तर:
अहिल्या गौतम ऋषि की पत्नी थी।

लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
केवट श्रीराम के चरण कमलों की रज का कौन-सा रहस्य जानता था?
उत्तर:
केवट श्रीराम के चरण कमलों की रज का यह रहस्य जानता था कि उन्हें छूने से गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या एक पत्थर की शिला से सुंदर स्त्री बन गयी थी। उनके चरणों की धूल में मनुष्य बनाने की जड़ी-बूटी शामिल थी।

प्रश्न 2.
श्रीराम के पैर धोकर केवट प्रसन्न क्यों हो गया था?
उत्तर:
श्रीराम के चरण धोकर केवट इसलिए प्रसन्न हो गया क्योंकि उस समय उसके समान पुण्यराशि कोई नहीं थी। उसने बड़े उत्साह और उमंग के साथ उनके चरण धोए। केवट की समझ से ऐसा करने से उसकी नाव भी बच गई थी।

RBSE Solutions for Class 7 Hindi Chapter 9 केवट का प्रेम

प्रश्न 3.
केवट लक्ष्मण जी के क्रोध से भी क्यों नहीं डरता था?
उत्तर:
केवट लक्ष्मण जी के क्रोध से भी इसलिए नहीं डरता था क्योंकि उसे अपनी नाव बचाने की चिंता सता रही थी। इसलिए उसे लक्ष्मण के तीर मारने का भय नहीं था।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
इस पाठ में केवट का श्रीराम के प्रति अगाध प्रेम प्रकट हुआ है, कैसे? लिखिए।
उत्तर:
वन में सीताजी और लक्ष्मण के साथ जाते समय जब श्रीराम को गंगाजी को पार करने की आवश्यकता पड़ी तो उन्होंने केवट से अपनी नाव से गंगाजी को पार कराने के लिए कहा। केवट ने उनसे कहा कि मैं आपको अपनी नाव। में तब ही बिठाऊँगा जब आप मुझे अपने चरण कमल धोने की आज्ञा प्रदान करेंगे, क्योंकि आपके चरणों की धूल से पत्थर की शिला भी स्त्री बन गई थी। मेरी नाव तो लकड़ी की बनी हुई है और वह पत्थर जितनी कठोर भी नहीं है। वास्तव में केवट इस बहाने से भगवान श्रीराम के चरण कमलों को अपने हाथों से धोकर पुण्य प्राप्त करना चाहता था।

प्रश्न 2.
‘केवट का प्रेम’ पाठ श्रीराम की उदारता का सुंदर उदाहरण है, कैसे? अपने विचार तर्क सहित लिखिए।
उत्तर:
‘केवट का प्रेम’ पाठ श्रीराम की उदारता का सुंदर उदाहरण इसलिए है क्योंकि केवट के प्रेम से भरे हुए अटपटे वचनों को सुनकर भी श्रीराम को केवट पर क्रोध नहीं आया। वे केवट की बात सुनकर मुस्कराए और केवट से बोले कि तुम वह सब यत्न करो जिससे तुम्हारी नाव बच जाए। जल्दी से जाकर पानी ले आओ और मेरे पैर धो दो। हमें देर हो रही है। जल्दी से गंगाजी पार करा दो। जिन भगवान श्रीराम का एक बार नाम लेने से ही मनुष्य संसार रूपी सागर से पार हो जाता है, वही दयामय भगवान बार-बार केवट से आग्रह कर रहे हैं। यही उनकी दयालुता का उदाहरण है।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
जब एक शब्द के कई समानार्थी शब्द आते हैं, उन्हें पर्यायवाची शब्द कहते हैं। जैसे-इस पाठ में पत्थर के अर्थ में ‘सिला’ व ‘पाहन’ शब्द प्रयुक्त हुए हैं। कमल शब्द के अर्थ में ‘पदम’ व ‘सरोज’। निम्नांकित शब्दों के सही पर्यायवाची समूह चुनकर अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
गंगा – सागर, जलनिधि, रत्नाकर
पैर – पुष्प, कुसुम, प्रसून, सुमन
समुद्र – देवनदी, भागीरथी, जाह्नवी
संसार – पद, चरण, पाँव, पग
फूल – जग, जगत, लोक
आप अन्य शब्दों का चयन कर उनके पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:
गंगा – देवनदी, भागीरथी, जाह्नवी
पैर – पद, चरण, पाँव, पग
समुद्र – सागर, जलनिधि, रत्नाकर
संसार – जग, जगत, लोक
फूल – पुष्प, कुसुम, प्रसून, सुमन।

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अन्य पर्यायवाची शब्द

नारी – स्त्री, औरत, महिला
घरिनी – भार्या, जीवन संगिनी, गृहणी, प्रिया, वधू
मुनि – व्रती, तपस्वी, साधु, तापस, योगी
आनंद – मोद, प्रमोद, प्रसन्नता, उल्लास, हर्ष
तीर – किनारी, तट, कूल, पुलिन, कगार
जल – नीर, पानी, वारि, तोय, उदक
अनुरागा – प्रेम, प्यार, स्नेह
नर – मनुष्य, आदमी, पुरुष।

प्रश्न 2.
ध्यान से पढ़िएतुलसी-सा कवि, मीराँ-सी भक्तिन यहाँ समानता बताने के लिए दो शब्दों ‘सा’ और ‘सी’ का प्रयोग किया गया है। आप भी ऐसे ही समानता बताने वाले शब्दों का प्रयोग कर वाक्य बनाइए
(1) राम-सा
(2) सीता-सी
(3) आकाश-सा।
उत्तर:
1. राम-सा दयालु = राम-सा दयालु मनुष्य आजकल मिलना कठिन है।
2. सीता-सी पत्नी = सीता-सी पत्नी बड़े भाग्यवालों को मिलती है।
3. आकाश-सी विशाल = हनुमान जी का हृदय आकाश-सा विशाल है।

प्रश्न 3.
कोष्ठकों में लिखे वर्षों से नए शब्द बनाइए। आप वर्गों, मात्राओं की आवृत्ति कर सकते हैं।

 ी

जैसे-ताता, तात, सीता…….
उत्तर:
सहायता, सात, साहस, साहसी, हाय, सती, सतह, तीस, सही।

पाठसे आगे

प्रश्न 1.
यदि आप केवट के स्थान पर होते तो श्रीराम से क्या निवेदन करते?
उत्तर:
अगर हम केवट के स्थान पर होते तो भगवान श्रीराम को देखकर बहुत प्रसन्न होते। हम उनसे बार-बार अपनी नाव में बैठने का निवेदन करते। उनके चरण छूने की आज्ञा माँगते और उन्हें भक्ति-भाव से गंगा जी पार करा देते।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत पाठ अवधी भाषा में लिखा गया है। अवधी भाषा के संबंध में शिक्षक/शिक्षिका से जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
अवधी भाषा उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों लखनऊ, उन्नाव, बाराबंकी, बहराइच, गोंडा, बलिया, सीतापुर, फैजाबाद आदि में बोली जाती है। तुलसीदास जी ने अवधी भाषा को साहित्यिक स्वरूप प्रदान करते हुए रामचरितमानस जैसे महाकाव्य की रचना की है। तुलसीदास जी ने दोहा और चौपाई छंदों में अवधी भाषा को सजाकर उसे लोकप्रिय बनाया है।

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प्रश्न 3.
केवट की तरह राम के अन्य भक्तों के भी नाम लिखिए।
उत्तर:
केवट की तरह राम के अन्य भक्त सुग्रीव, विभीषण जामवंत और हनुमान आदि हैं।

यह भी करें

प्रश्न 1.
अहिल्या उद्धार व वामन अवतार की अंतर्कथाएँ अपने गुरुजी से पूछिए।
उत्तर:
अहिल्या उद्धार-एक बार गौतम ऋषि ने क्रोध में अपनी पत्नी अहिल्या को श्राप दे दिया था। श्राप के कारण अहिल्या एक पत्थर की शिला में बदल गयी थी। श्रीराम ने अपने चरण-कमलों से उस पत्थर की शिला को छुआ, तो वह वापस स्त्री रूप में आ गयी थी। 2. श्रीराम ने वामन अवतार में सारे संसार को तीन पग से भी छोटा कर दिया था। दो ही पग में उन्होंने त्रिलोक को नाप लिया था।

यह भी जानें

श्रीरामचरितमानस महाकवि तुलसीदास द्वारा रचित महाकाव्य है जिसमें श्रीराम की लीलाओं को मनुष्य के रूप में वर्णित किया है; श्रीरामचरितमानस में सात सोपान (कांड) हैं, जिनमें श्रीराम की लीलाओं के माध्यम से भारतीय संस्कृति की सुंदर व आदर्श छवि प्रस्तुत हुई है।

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
श्रीराम ने किसे वापस अयोध्या भेज दिया था?
(क) लक्ष्मण को
(ख) सुमंत को।
(ग) भरत को
(घ) शत्रुघ्न को।

प्रश्न 2.
श्रीराम किसके किनारे पर आ गये थे?
(क) गंगाजी के
(ख) यमुनाजी के
(ग) सरस्वतीजी के
(घ) नर्मदाजी के।

प्रश्न 3.
श्रीराम ने किससे नाव लाने के लिए कहा?.
(क) मनुष्य से
(ख) मुनि से
(ग) केवट से
(घ) स्त्री से।

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प्रश्न 4.
श्रीराम के चरण कमलों की धूल से पत्थर की शिलाबन गयी थी-
(क) नाव
(ख) नारी
(ग) कबूतरी
(घ) चिड़िया

उत्तर:
1. (ख)
2. (क)
3. (ग)
4. (ख)

रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए

(सौगंध, काम-धंधा, परिवार, मेहनताना, तीर)
प्रश्न 1.
इसे नाव से ही मैं अपने………….का पालन-पोषण करता हूँ।

प्रश्न 2.
मैं और कोई………….नहीं जानता हूँ।

प्रश्न 3.
मुझे आपसे कोई………भी नहीं चाहिए।

प्रश्न 4.
चाहे लक्ष्मण जी मुझे………..ही मार दें।

प्रश्न 5.
मुझे राजा दशरथ की……….. है।

उत्तर:
1. परिवार
2. काम-धंधा
3. मेहनताना
4. तीर
5. सौगंध।

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अति लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
श्रीराम ने किससे गंगाजी को पार कराने को कहा?
उत्तर:
श्रीराम ने केवट से गंगाजी को पार कराने को कहा।

प्रश्न 2.
केवट श्रीराम को नाव में बिठाने से पहले क्या करना चाहता था?
उत्तर:
केवट श्रीराम को नाव में बिठाने से पहले उनके पैर धोना चाहता था।

प्रश्न 3.
केवट को अपनी नाव क्या बन जाने का भय था?
उत्तर:
केवट को अपनी नाव मुनि की पत्नी बन जाने का भय था।

प्रश्न 4.
केवट ने राजा राम की अनुमति पाकर क्या किया?
उत्तर:
केवट ने राजा राम की अनुमति पाकर लकड़ी की परात में पानी भरकर श्रीराम के चरणों को धोया।

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
केवट को अपनी नाव के विषय में क्या डर सता रहा था?
उत्तर:
केवट को डर था कि श्रीराम के चरण कमलों की धूल से मेरी नाव भी मुनि की स्त्री बन जाएगी। क्षणभर में ही मेरी नाव उड़ जाएगी। मैं लुट जाऊँगा। मेरे खाने-कमाने की राह मारी जाएगी। मैं तो इसी नाव से अपने परिवार का पेट पालता हूँ।

प्रश्न 2.
केवट के वचनों को सुनकर श्रीराम ने क्या कहा?
उत्तर:
केवट के प्रेम से भरे हुए अटपटे वचनों को सुनकर श्रीराम हँसने लगे। उन्होंने सीता जी और लक्ष्मण जी की तरफ देखा और केवट से मुस्कराकर बोले कि तुम वही करो जिससे तुम्हारी नाव को कोई नुकसान न हो।

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प्रश्न 3.
केवट ने किस प्रकार श्रीराम के चरण कमलों को धोया?
उत्तर:
केवट ने श्रीराम की आज्ञा पाकर पानी से भरी लकड़ी की परात ले आया। उसने बड़ी खुशी, उमंग और स्नेह के साथ श्रीराम के चरणों को धोया। उस क्षण के समान कोई भाग्यशाली समय केवट के लिए नहीं हुआ था। इस अवसर पर समस्त देवताओं ने भी खुशी के साथ फूलों की वर्षा की।

दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
केवट ने किस प्रकार अपने पूर्वजों का उद्धारकिया?
उत्तर:
केवट ने प्रेम से भगवान श्रीराम के चरणों को धोया और उस चरणामृत को परिवार सहित पिया। उस चरणामृत के प्रभाव से केवट के पूर्वज भी तृप्त हो गये। केवट की भगवान श्रीराम के चरणों के प्रति असीम श्रद्धा थी। जिनका एक बार नाम लेने से ही मनुष्य संसाररूपी सागर को पार कर जाता है। जिन्होंने वामन अवतार में सारे संसार को तीन पग से भी छोटा कर दिया था। उन्हीं भगवान श्रीराम के पैर धोकर केवट ने केवल अपना और अपने परिवार को ही नहीं बल्कि अपनी आगे आने वाली सात पुश्तों का भी उद्धार कर दिया और खुशी-खुशी श्रीराम को सीता जी और लक्ष्मण जी सहित गंगा जी के पार उतार दिया।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

(1) बरबस राम सुमंत्रु पठाए। सुरसरि तीर आपु तब आए।। माँगी नाव न केवटु आना। कहइ तुम्हार मरमु मैं जाना।। चरण कमल रज कहूँ सब कहई। मानुष करनि मूरि कछु अहई।। छुअत सिला भई नारि सुहाई। पाहन ते न काठ कठिनाई।। कठिन शब्दार्थ-बरबस = जबरदस्ती, मुश्किल से , कठिनाई। पठाए = भेज दिए। सुरसरि = गंगाजी। तीर = किनारा। माँगी = माँगना। कई = कहा। तुम्हार = आपका। मरमु = रहस्य, भेद। चरण कमल = कमल के समान पैर। रज = धूल। मानुष = मनुष्य। करनि = करने की, बनाने की। मूरि = जड़ी-बूटी। अहई = है। छुअत = छूते ही। सिला = शिला, पत्थर। भई = हो गई। नारि = स्त्री। पाहन = पत्थर। काठ = लकड़ी। कठिनाई = कठोर।।

संदर्भ एवं प्रसंग-
प्रस्तुत चौपाई हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठ ‘केवट का प्रेम’ से ली गई है। ये पंक्तियाँ तुलसीदास कृत रामचरित मानस का अंश हैं। इन पंक्तियों में तुलसीदास जी ने राम के प्रति केवट के अगाध प्रेम को दर्शाया है।

व्याख्या/भावार्थ-
तुलसीदास जी कहते हैं कि श्रीराम ने वन में जाते समय अयोध्या के मंत्री सुमंत को बड़ी मुश्किल से वापस अयोध्या भेजा। स्वयं सीताजी और लक्ष्मण के साथ गंगाजी के किनारे आ गए। जब गंगाजी को पार करने के लिए उन्होंने केवट से नाव लाने को कहा तो केवट ने श्रीराम को गंगा पार ले जाने के लिए मना कर दिया। केवट ने श्रीराम से कहा कि मैं आपका रहस्य जानता हूँ। सब कहते हैं कि आपके कमल के समान चरणों की धूल में कुछ है। आपके पास कोई मनुष्य बनाने की जड़ी-बूटी है। आपके छूने से पत्थर की शिला एक स्त्री बन गई थी। मेरी नाव तो लकड़ी की है और लकड़ी तो पत्थर से कठोर नहीं होती है।

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(2) तरनिउ मुनि घरिनी होइ जाई। बाट परइ मोरि नाव उड़ाई।।
एहिं प्रतिपालउँ सब परिवारू। नहिं जानउँ कछु अउर कबारू।
जौं प्रभु पार अवसि गा चहहू। मोहि पद पदुम पखारन कहहू॥

कठिन शब्दार्थ-
तरनिउ = नाव भी। घरिनी = पत्नी। होइ जाई = हो जाएगी। बाट = क्षण में। परइ = देखते ही। एहिं = इससे प्रतिपालऊँ.= पालन-पोषण करता हूँ। परिवारू = परिवार का। जानउँ = जानना। अउर = और। कबारू = काम-धंधा। अवसि = अवश्य। गा = जाना। चहहू = चाहते हो। मोहि = मुझे। पद = पैर। पदुम = कमल। पखारन = धोने।।

संदर्भ एवं प्रसंग-
प्रस्तुत चौपाई हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित पाठ ‘केवट का प्रेम’ से ली गई है। ये पंक्तियाँ तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस का अंश हैं। इनमें तुलसीदासजी ने राम के प्रति केवट के अगाध प्रेम को दर्शाया है।

व्याख्या/भावार्थ-
तुलसीदासजी कहते हैं कि भय के कारण केवट ने राम से कहा कि आपके चरणों के स्पर्श से मेरी नाव भी मुनि की स्त्री हो जाएगी और क्षण में देखते ही मेरी नाव उड़ जाएगी। मैं तो इसी नाव से अपने सारे परिवार का पालन-पोषण करता हूँ। मैं और कुछ काम-धंधा नहीं जानता हूँ। हे प्रभु! अगर आप पार जाना ही चाहते हैं तो, मुझे पहले अपने चरण कमल धोने की आज्ञा दीजिए।

(3) पद कमल धोइ चढ़ाई नाव न नाथ उतराई चहौं।
मोहि राम राउरि आन दसरथ सपथ सब साची कहौं।
बरु तीर मारहुँ लखन पै जब लगि न पाय पखारिहौं।
तब लगि न तुलसीदास नाथ कृपाल पारु उतारिहौं।

कठिन शब्दार्थ-
पद = पैर। धोइ = धोना। चढाइ = चढ़ाना। उतराई = मेहनताना। चहौं = चाहना। रारि = दुहाई। आन = इज्जत। सपथ = सौगंध। साची = सच-सच। कहीँ = कहता हूँ। बरु = चाहे, भले ही। मारहूँ = मारना। पै = पर। लगि = तक। पाय = पैर। पखारिहौं = धोना। कृपाल = दयालु। पारु = परि। उतारिहौं = उतारना।

संदर्भ एवं प्रसंग-
प्रस्तुत छंद हमारी पाठ्य पुस्तक में संकलित पाठ केवट का प्रेम’ से लिया गया है। ये पंक्तियाँ तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस का अंश हैं। इनमें तुलसीदास जी ने राम के प्रति केवट का प्रेम दर्शाया है।

व्याख्या/भावार्थ-
तुलसीदासजी कहते हैं कि केवट श्रीराम से प्रार्थना करते हुए कहता है कि हे नाथ! मैं आपके चरण कमल धोकर अपनी नाव पर चढ़ा लूंगा। मैं आपसे कुछ मेहनताना भी नहीं चाहता हूँ। मुझे रामजी की इज्जत की दुहाई और राजा दशरथ की सौगंध है। मैं सब सच-सच कहता हूँ। लक्ष्मण जी भले ही मुझे तीर से मार दें, पर जब तक मैं चरण धो नहीं लूंगा, तब तक हे तुलसीदास के नाथ! मैं आपको पार नहीं उतारूंगा।

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(4) कृपासिंधु बोले मुसुकाई। सोई करु जेहि तव नाव न जाई।।
बेगि आनु जल पाय पखारू। होत विलंबु उतारहि पारू।
जासु नाम सुमिरत एक बारा। उतरहिं नर भवसिंधु अपारा।।
सोइ कृपालु केवटहि निहोरा। जेहिं जगु किए तिहुं पगहु ते थोरा।।

कठिन शब्दार्थ-
कृपा सिंधु = दया के सागर। मुसुकाई = मुस्कराकर। सोई = वही। करू = करो। जेहि = जैसा। बेगि = जल्दी आनु = लाओ। विलम्बु = देरी। जासु = जिसका। सुमिरते = स्मरण करने से ही। उतरहिं = उतर जाते हैं। भवसिंधु = भव सागर, संसार सागर। अपारा = बहुत अधिक। सोइ = वो, वही। कृपालु = दयालु। निहोरा = आग्रह। जेहिं = जिन्होंने। जगु = संसार। किय = किया। तिहुं = तीन। पगहु = पैर। थोरा = कम्।

संदर्भ एवं प्रसंग-
प्रस्तुत चौपाई हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित पाठ’केवट का प्रेम’ से ली गई हैं। पंक्तियाँ तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस का अंश हैं। इसमें तुलसीदास जी ने राम के प्रति केवट का अगाध प्रेम दर्शाया है।

व्याख्या/भावार्थ-
तुलसीदासजी कहते हैं कि केवट की बात सुनकर दया के सागर राम मुस्कराकर बोले-तुम वही करो जिससे तुम्हारी नाव बच जाए। जल्दी से जल लेकर आओ और मेरे पैर धोओ। हमें देर हो रही है, जल्दी से पार उतार दो। जिसका नाम एक बार लेने मात्र से मनुष्य भवसागर से पार उतर जाते हैं। वो दयालु भगवान आज केवट से आग्रह कर रहे हैं, जिन्होंने वामन अवतार में जगत को तीन पग से भी छोटा कर दिया था।

(5) केवट राम रजायसु पावा। पानि कठवता भरि लेई आवा। अति आनंद उमगि अनुरागा। चरन सरोज पखारन लागा। बरसि सुमन सुर सकल सिहाहीं। एहि सम पुण्यपुंज कोई नहीं। पद पखारि जलु पान करि, आपु सहित परिवार। पितर पारु करि प्रभुहि पुनि, मुदित गयउ लेइ पार।

कठिन शब्दार्थ-
रजायसु = राजा की रजामंदी। कठवता = लकड़ी की परात। भरि = भरकर। लेई = ले। आवा = आया। अति = बहुत अधिक। आनंद = खुशी। उमगि = उमड़ना। अनुरागा = प्रेम से। चरन = पैर। सरोज = कमल। पखारन = धोने। लागा = लगा। बरसि = वर्षा। सुमन = फूलों की। सुर = देवता। सकल = समस्त। सिहाहीं = खुश होकर। एहि = इसके। सम = समान। पुण्यपुंज = पुण्य की राशि। पद = पैर। पखार = धोकर। पितर = पूर्वज। मुदित = प्रसन्न होकर।।

संदर्भ एवं प्रसंग-
प्रस्तुत चौपाई हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित पाठ ‘केवट का प्रेम’ से ली गयी हैं। ये पंक्तियाँ तुलसीदास कृत श्रीरामचरित मानस का अंश हैं। इनमें तुलसीदास जी ने राम के प्रति केवट के अगाध प्रेम को दर्शाया है।

व्याख्या/भावार्थ-
तुलसीदासजी कहते हैं कि केवट श्रीराम की सहमति पाकर, लकड़ी की परात में पानी भरकर ले आया। बहुत अधिक खुशी और प्रेम से उमड़ते हुए, चरण कमलों को धोने लगा। समस्त देवों ने खुशी से फूलों की वर्षा की। इसके समान पुण्य की कोई राशि नहीं है। केवट के भगवान राम के चरणों को धोकर चरणजल का सपरिवार पान किया। इसके प्रभाव से पितरों को भी पार करके प्रसन्न मन से उसने भगवान को पार कर दिया।

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