RBSE Solutions for Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 सूर्यमल्ल मीसण

Rajasthan Board RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 सूर्यमल्ल मीसण

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘वळय-लजाणो नाह’ से आशय है
(क) दूध को लजाने वाला पुत्र
(ख) चूड़ियों को लजाने वाला पति
(ग) युद्ध से भागने वाला पति
(घ) युद्ध में जीतने वाला पति
उत्तर:
(ख) चूड़ियों को लजाने वाला पति

प्रश्न 2.
‘माथा मोल बिकाय’ से कवि क्या अभिप्राय है?
(क) सिरों का व्यापार होना
(ख) सिर कटवा देना
(ग) अभिमान में सिर को बलिदान कर देना
(घ) स्वामी के अन्न का बदला सिर देकर चुकाना।
उत्तर:
(घ) स्वामी के अन्न का बदला सिर देकर चुकाना।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 अति लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 3.
वीरों और कायरों के घर की स्त्रियों के स्वभाव में अंतर बताइये।
उत्तर:
वीरों के घर क़ी स्त्रियाँ वीरोचित स्वभाव की होती हैं, उनके व्यवहार में साहस, धीरता, पराक्रम झलकता है। दूसरी ओर कायर के घर की स्त्रियाँ स्वभाव से डरपोक होती हैं।

प्रश्न 4.
‘दूध लजाणो पूत’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
आशय है दूध को लज्जित करने वाला कायर पुत्र जिसे वीर माता स्वीकार नहीं करती।

प्रश्न 5.
सिंह किस चीज की परवाह नहीं करते?
उत्तर:
सिंह जंजीरों की परवाह नहीं करते।

प्रश्न 6.
‘चीटला’ और ‘साव’ में क्या अंतर है?
उत्तर:
‘चीटला’ नागिन के तथा ‘साव’ शेरनी के बच्चों को कहते हैं।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न 7.
वीर नारी को कौनसी दो बातें असहनीय हैं?
उत्तर:
वीर नारी को दूध लजाने वाला कायर पुत्र तथा कंगन को लज्जित करने वाला कायर पति असहनीय प्रतीत होता है, क्योंकि ये वीरकुल की मर्यादा के शत्रु हैं।

प्रश्न 8.
क्षत्रिय बालक जन्म के समय नाल के काटने की छुरी की ओर क्यों झपटता है?
उत्तर:
वीर माता की शिक्षाओं को क्षत्रिय बालक गर्भ में ही सीखना प्रारंभ कर देता है। वीरता की शिक्षा ग्रहण कर वह शस्त्रों से प्रेम करने लगता है। अतः जन्म लेते ही नाल काटने की छुरी देखकर उसे लेने के लिए झपटता है।

प्रश्न 9.
वीर माता अपने पुत्र को पालने में क्या संस्कार देती है?
उत्तर:
वीर माता अपने पुत्र को पालने में यह सिखाती है कि अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए रणक्षेत्र में भिड़ जाना, लेकिन दुश्मनों के हाथ यह न जाने देना। इसकी रक्षा के लिए मरना अमरता का प्रतीक है।

प्रश्न 10.
‘वाळा! चाल म वीसरे’ कहकर वीर माता ने कुल की किस परम्परा को न भूलने की बात कही है?
उत्तर:
वीर माता ने अपने पुत्र को अपने दूध के महत्त्व की बात बताते हुए कहा है कि हमारे वंश की परम्परा यही है कि युद्ध भूमि में विजय प्राप्त करें अथवा वीरगति को प्राप्त हो जाएँ। यह परम्परा उसे सदैव याद रखनी चाहिए।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 11.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(क) इला न देणी आप री ……….. मरण-वडाई माय।
(ख) विण मरियां, विण जीतियां ……….. रावत-री जाम।
(ग) गोठ गया सब गेह-रा ………..लीधी तेन उठाय।

(क) वीर माता की प्रशंसा में कवि कह रहा है कि वीर माता अपने पुत्र को शैशवावस्था में पालना झुलाते वक्त यह शिक्षा दे रही है कि हे पुत्र अपनी मातृभूमि किसी को मत देना। इस पर अधिकार करने की लालसा रखने वाले शत्रु से रण-क्षेत्र में भिड़ जाना। यह बात याद रखना कि जो मातृभूमि के लिए मरण को प्राप्त करता है, वह यश को प्राप्त करता है।

(ख) वीर पत्नी का कथन है कि यदि मेरा पति बिना मरे अथवा बिना शत्रु को जीते घर में आया तो मैं अपनी चूड़ियों के टुकड़े-टुकड़े करके उसके पग-पग पर बिछा दूंगी। तभी मैं अपने राजपूत की सन्तान कहलाने योग्य बन सकती हूँ। कायर पति की पत्नी होने की अपेक्षा मैं विधवा होना पसन्द करूंगी।

(ग) वीर पत्नी समय आने पर दुश्मनों का सामना भी कर सकती है। एक बार परिवार के सभी लोग भोजन करने हेतु बाहर गए हुए थे, तभी ऐसी घटना हुई कि शत्रु ने आक्रमण कर दिया। ऐसे समय में उस सिंह की पुत्री सिंहनी ने स्वयं ” तलवार उठा ली और दुश्मनों पर टूट पड़ी।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 अतिलघूत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
बळय लजाणो नाह’ का अर्थ बताइये।
उत्तर:
कंगन को लज्जित करने वाला पति अर्थात् कायर पति।

प्रश्न 2.
वीर क्षत्राणियों के वीर पुत्र कुछ नमक व आटे को मूल्य किस प्रकार चुकाते हैं?
उत्तर:
वीर क्षत्राणियों के वीर पुत्र नमक व आटे का मूल्य अपने सिर का बलिदान देकर चुकाते हैं।

प्रश्न 3.
चीटला, साव और वीर पुत्र में क्या समानता है?
उत्तर:
चीटला, साव और वीर पुत्र किसी के रोकने से नहीं रुकते। यह इनकी वंश परम्परा है।।

प्रश्न 4.
वीर सतसई’ की दो कलागत विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:

  1. भाषा राजस्थानी और डिंगल शैली में है।
  2. राजस्थानी के वयण सगाई अलंकार का विशेष रूप से प्रयोग हुआ है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सूरा घर सूरी महळ, कायर कायर गेह’-पंक्ति में निहित भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि इस पंक्ति में यह संदेश देता है कि वीरता या : कायरता परिवेश की देन है। जो जिस वातावरण में रहता है, वैसा ही व्यवहार सीखता है। नारियाँ भी इससे अलग नहीं हैं। शूरवीरों के घरों में वीर स्वाभिमानी एवं कुल की मर्यादा-रक्षक नारियाँ होती हैं। तो कायरों के घरों में कायर स्त्रियाँ हुआ करती हैं।

प्रश्न 2.
इळा न देणी आप-री रण-खेतां भिड़ जाय।’- पंक्ति से क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर:
उक्त पंक्तियों में वीर माता अपने शिशु को पालने में यह शिक्षा देती है कि अपने जीवित रहते हुए अपनी धरती दुश्मनों के हाथ में मत जाने देना। इससे हमें यह प्रेरणा मिलती है कि मातृभूमि और माँ समान हैं। मातृभूमि की रक्षा के लिए यदि प्राण भी अर्पण करना पड़े तो भी कम है। इसके हित प्राणों का उत्सर्ग सदैव यशकारी है।

प्रश्न 3.
‘पग-पग चूड़ी पाछटू’ पंक्ति का कलागत सौन्दर्य बताइये।
उत्तर:

  1. पग-पग शब्द की पुनरावृत्ति होने से यहाँ पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  2. पग-पग अर्थात् कायर पति के कदम जैसे-जैसे घर की ओर बढ़ेंगे, वैसे-वैसे चूड़ियाँ तोड़ती जाऊँगी, यह यथाक्रम अलंकार का बोध कराती है।
  3. पंक्ति में चूड़ी तोड़ती नारी का शब्द चित्र सा अंकित हो गया है।
  4. भाषा राजस्थानी व डिंगल शैली है।

RBSE Class 9 Hindi प्रबोधिनी पद्य Chapter 11 निबंधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न:
संकलित पदों के आधार पर वीर माताओं की चरित्रगत विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान की वीर-प्रसूता भूमि पर वीर माताएँ स्वाभिमानी, निर्भीक, दृढ़ संकल्पवान एवं परम्परा की रक्षा करने वाली रही हैं। संक्षिप्त चरित्रगत विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
(क) वीरता की प्रतिमूर्ति – वीरमाता स्वभाव से ही वीरत्व के गुण से ओतप्रोत होती है। अतः उनकी कोख से जन्म लेने वाले भी सिंहों की भाँति जंजीरों की परवाह नहीं करते। कवि ने कहा

“वींद जमीं-रा जे जणे, सांकळ-ढीटा सीह।”

(ख) स्वाभिमानी – वीर माता यह सहन नहीं कर सकती कि उसका पुत्र परम्परा की रक्षा न करे। वह अवसर आने पर अपने दूध को विष के समान बताती है और अपने बेटे को कुल की परम्परा को निर्वाह करने की सीख देती है। वह कहती है-

“बाळा! चाल म वीसरे, मो थण जहर समाण।”

(ग) निर्भीकता – वीर माताएँ इतनी निर्भीक होती हैं कि अपने शिशु को गर्भावस्था से ही युद्ध-प्रेम की शिक्षा देती हैं। और मातृभूमि के लिए मरण की सीख देती है। इसीलिए कवि कहता है-

“वाजा -रै सिर चेतणो, भ्रूणां कवण सिखाय?”

(घ) कुल – परंपरा की रक्षक – वीर माता अपने कुल की परंपरा की सदा रक्षक रही हैं। वह अपनी संतान को प्रेरणा देती है। परिणामस्वरूप उनकी संतान भी माँ के आदर्शों के अनुकूल जन्म लेती है,जैसे-

“नागण-जाया चीटला, सिंघण-जाया साव।
राणी जाया नह रुकै, सो कुळ-वाट सुभाव॥

इस प्रकार वीरमाता का चित्रण कवि ने यहाँ की मनोवृत्ति को आधार बनाकर ही किया है। यहाँ कोई अतिशयोक्ति दिखाई नहीं देती।

-वीर नारी

पाठ परिचय

संकलित पद ‘वीर सतसई’ से उद्धृत है। इसमें राजस्थान की वीर नारी, वीर माता, वीर पत्नी तथा वीर देवरानी के चरित्र का उद्घाटन किया गया है। वस्तुतः जिन परिवारों का जीवन युद्धमय परिस्थितियों में व्यतीत हुआ, वहाँ की स्त्रियों का व्यवहार भी त्याग, वीरता और स्वाभिमान से पूर्ण हो गया। कवि ने इसी प्रकार की वीर रमणियों का वर्णन कर राजस्थान की वीर-संस्कृति को अभिव्यक्ति प्रदान की है। इन पदों में वीर रस का पूर्ण परिपाक हुआ है।

प्रश्न 1.
सूर्यमल्ल मीसण का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
उत्तर:
कवि-परिचय
जीवन एवं साहित्यिक परिचय-राजस्थान की वीर प्रसूता भूमि पर सूर्यमल्ल मीसण का जन्म बूंदी में हुआ था। बूंदी दरबार के प्रधान कवि चंडीदान इनके पिता थे। इनकी काव्य प्रतिभा पैतृक परम्परा से है, क्योंकि इनके पिता ही नहीं, पितामह भी डिंगल के प्रसिद्ध कवि थे। सूर्यमल्ल मीसण हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, डिंगल तथा पिंगल भाषाओं में पारंगत थे। ओज काव्य, वीर रस और डिंगल शैली का अद्भुत प्रयोग आपके काव्य की विशेषता है। प्रमुख रचनाएँ-वंश-भास्कर, वीर सतसई, बलवंत विलास, राम रंजाट, छंदोमयूख, सती रासो, धातुरूपावलि आदि हैं।

पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्याएँ

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए

1. नरा! न ठीणों नारियां, ईखो संगत मेह
सूरा घर सूरी महळ, कायर कायर गेह॥
सहणी सब-री हूँ सखी! दो उर उळ्टी दाह
दूध-लजाणो पूत, तिम, बळय-लजाणो नाह॥

कठिन शब्दार्थ-ठीणों = उलाहना देना। ईखो = देखो। ओह = यह। सूरा = वीर। महळ = महिला। गेह = घर। सहणी = सहन करने वाला। दो = दो बातें। उर = हृदय में। उळटी = विपरीत। दाह = आग लगाने वाली। वळय = कंगन। लजाणो = लज्जित करने वाला। नाह = नाथ, पति।

सन्दर्भ एवं प्रसंग-वीर सतसई नामक कृति से संकलित इन, पदों में कवि सूर्यमल्ल मीसण ने राजस्थान के वीरों के वीरोचित स्वभाव व स्वाभिमानी व्यक्तित्व का दिग्दर्शन कराया है।

व्याख्या-कवि के अनुसार वीरत्व परिवेश की देन होता है। राजस्थान का परिवेश वीर-संस्कृति का रहा है। अतः यहाँ की नारियों का भी यह स्वाभाविक गुण है। अतः हे मनुष्यो! स्त्रियों को उपालंभ मत दो। उनका कोई दोष नहीं है। क्योंकि वीरों के घर में वीर स्त्रियाँ तथा कायरों के घर में कायर स्त्रियाँ जन्म लेती हैं। यह तो संगति का परिणाम है। वीर नारी गर्वोक्तिपूर्वक अपनी सखी से कह रही है कि हे सखी, मैं सब कुछ सह सकती हूँ, किन्तु दो बातें जो मर्यादा विरुद्ध हैं, मेरे हृदय में आग लगा देती हैं। वे मेरे लिए असहनीय हैं। पहला तो दूध लजाने वाला पुत्र तथा दूसरा मेरे कंगन को लज्जित करने वाला कायर पति है, क्योंकि यह मेरी कुल परम्परा के विरुद्ध है।

विशेष-
1. पुनरुक्तिप्रकाश, छेकानुप्रास, लाटानुप्रास तथा वयण सगाई अलंकार प्रयुक्त हुए हैं।
2. वीर रस, ओज गुण, राजस्थानी भाषा का प्रयोग हुआ है।

2. हूँ बळिहारी राणियां, जाया बंस छतीस
सेर सलूणो चूण ले, सीस करै बगसीस॥
हूँ बलिहारी राणियां, थाल वजाणै दीह।
वींद जमी-रा जे जणै, सांकळ-ढीटा सीह॥

कठिन शब्दार्थ-जाया = जन्म दिया। बंस = वंश, कुल। सलूणो = नमक सहित। चूण = चून, आटी। बगसीस = दान। दीह = दिन। वींद = पति। जमी-री = पृथ्वी का। अणै = जन्म देती है। सांकळ-ढीटा = साँकल की अवहेलना करना। सीह = सिंह।

संदर्भ एवं प्रसंग-सूर्यमल्ल मीसण रचित ‘वीर सतसई’ से उद्धृत इन पंक्तियों में कवि ने वीर क्षत्राणियों की प्रशंसा की है, जिन्होंने वीरों के वंशों को जन्म दिया। वीर-माताओं पर कवि न्योछावर है।

व्याख्या-कवि का कथन है कि वह क्षत्राणियों पर न्योछावर है, जिन्होंने वीरों के छत्तीस वंशों को जन्म दिया। ये वीर अपने स्वामी से नमक सहित सेर भर आटा प्राप्त करते हैं और उस नमक के बदले अपना सिर देकर प्राणोत्सर्ग कर देते हैं। ऐसे स्वामिभक्त वीरों को जन्म देने वाली माताएँ धन्य हैं। कवि वीर-प्रसविनी माताओं की जय-जयकार करता हुआ कहता है कि मैं उन वीर क्षत्राणियों पर बलिहारी जाता हैं जो थाल बजाने के दिन से ही, ऐसी पृथ्वी के पति सिंहों को जन्म देती हैं, जो साँकलों की परवाह नहीं करते।

विशेष-
(1) यमक, लुप्तोपमा एवं रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(2) भाषा-राजस्थानी, गुण-ओज तथा वीर रस का सार्थक प्रयोग है।

3. हूँ बळिहारी राणिया, भ्रूण सिखावण भाव
नाळो वाढण-री छुरी, झपटै जणियो साव॥
थाळ वजतां हे सखी! दीठो नैण फुळाय।
वाजा-रै सिर चेतणो, भ्रूणां कवण सिखाय?॥

कठिन शब्दार्थ-भ्रूण = गर्भस्थ शिशु। नाळो वाढण-री छुरी = नाल काटने की छुरी। जणियो = जन्म लेते ही। साव = शावक, बालक। दीठो = देखना। नैण फुलाय = नेत्र फैलाकर। वाजा-रै = बाजे बजने पर। चेतणो = सजग हो जाना। कवण = कौन।

संदर्भ एवं प्रसंग-सूर्यमल्ल मीसण रचित ‘वीर सतसई’ से उधृत इन पंक्तियों में कवि ने वीर क्षत्राणियों की प्रशंसा की है, जिन्होंने वीरों के वंशों को जन्म दिया। वीर-माताओं पर कवि न्योछावर है। व्याख्या-कवि उन वीर प्रसविनी माताओं को नमन करता है जो गर्भस्थ शिशु को वीरत्व तथा युद्ध की शिक्षा देती हैं। फलतः जन्म लेते ही वह बालक नाल काटने की छुरी को हाथ में लेने के लिए झपटने लगता है। आशय यह है कि जन्म से ही शस्त्रों से प्रेम माँ की सीख का ही परिणाम है। कवि वीरमाता का गुणगान करता है कि जन्म के समय थाल बजा तो वह बालक आँखें फैलाकर देखने लगा। बाजा बजने पर वीर सचेत हो जाता है। हे सखी, इन शिशुओं को बाजा बजने पर सचेत होने की सीख किसने दी है? भाव यह है कि वीर क्षत्राणियाँ अपने गर्भस्थ शिशु को यह सब सीख दे देती हैं।

विशेष-
(1) ‘भ्रूण सिखावण भाव’ में राजस्थानी वयण-सगाई अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(2) भाषा राजस्थानी है। ओजगुण का वीर रस के साथ सार्थक प्रयोग हुआ है।

4. नागण-जाया चीटला, सिंघण-जाया साव
राणी जाया नह रुकै, सो कुळ-वाट सुभाव॥
इळा न देणी आप-री, रण-खेतां भिड़ जाये
पूत सिखावै पालणे, मरण-वडाई माय॥

कठिन शब्दार्थ-नागण = नागिन। चीटला = सपोला, साँप का बच्चा। सिंघण = शेरनी। नह = नहीं। कुळ-वाट = कुल की परम्परा। सुभाव = स्वभाव। इळा = पृथ्वी। रण-खेतां = रणक्षेत्र। मरण-वड़ाई = मरण का गौरव।

संदर्भ एवं प्रसंग-‘वीर सतसई’ से अवतरित इन पंक्तियों में कवि ने वीर माताओं की प्रशंसा की है। वीरों को जन्म देने वाली माताओं के संस्कार इस प्रकार के होते हैं कि उनकी संतानों में वीरत्व स्वत: ही प्रकट होता है।

व्याख्या-कवि वीर क्षत्राणी के पुत्रों की विशेषता बताता है। कि जिस प्रकार नागिन के बच्चे और शेरनी के शावक किसी के रोकने पर नहीं रुकते, उसी प्रकार वीर क्षत्राणियों के जन्मे वीर भी, किसी के रोके नहीं रुकते हैं। यह उनके वेश का स्वभाव है। वीर माता की प्रशंसा में कवि कह रहा है कि वीर माता अपने पुत्र को शैशवावस्था में पालना झुलाते वक्त यह शिक्षा दे रही है कि हे पुत्र, अपनी मातृभूमि किसी को मत देना। इस पर अधिकार करने की लालसा रखने वाले शत्रु से रण-क्षेत्र में भिंड़ जाना। यह बात याद रखना कि जो मातृभूमि के लिए मरण को प्राप्त होता है, वह यश को प्राप्त करता है।

विशेष-
(1) दीपक, वयण सगाई, अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(2) भाषा-राजस्थानी, काव्यगुण-ओज, शैली-डिंगल, रस-वीर है।

5. बाळा! चाल म वीसरे, मो थण जहर समाण
रीत मरंता ढील की, ऊठ थियो घमसाण॥
और जहर मुख आवियां, भेजै झट पर-धाम
अतरो अंतर मूझ पै, मारै पडियां काम॥

कठिन शब्दार्थ-वाळा = बालक। चाल = कुल की रीति। वीसरे = भूलना। म = मत। थण = स्तन। रीत = परम्परा। ढील = देरी। थियो = ठन जाना। घमसाण = भीषण युद्ध। आवियां = मुख में आने पर। पर-धाम = परलोक। अतरो = इतना। पडियां = पड़ने पर।

संदर्भ एवं प्रसंग-सूर्यमल्ल मीसण रचित ‘वीर सतसई’ से उक्त पंक्तियाँ संकलित हैं। इस अंश में वीर-माता अपने पुत्र को कुल-परम्परा की याद दिला रही हैं, जिसमें प्राणोत्सर्ग की मर्यादा का निर्वहन होता है।

व्याख्या-वीर माता अपने पुत्र को युद्ध में प्राणोत्सर्ग करने की प्रेरणा दे रही हैं कि हे पुत्र! अपने वंश की रीति को मत भूल जाना। तुमने मेरा दूध पीया है। मेरे स्तनों का दूध जहर समान है। इसे पीने वाला बालक अपनी कुल की मर्यादानुसार युद्ध भूमि में प्राणों का उत्सर्ग कर देता है। उठो, अब घमासान युद्ध प्रारंभ हो गया है, कुल की रीति-अनुसार प्राण देने का समय आ गया है। अब इसमें विलम्ब मत करो। वीर-माता अपने दूध को विष के समान बताती है। वह दोनों विषों में अंतर स्पष्ट करती है कि अन्य प्रकार के विष तो अपने तुरन्त प्रभाव से व्यक्ति को तत्काल परलोक पहुँचा देते हैं, परन्तु मेरे दूध का विष काम पड़ने पर ही प्राण लेता है। जब युद्ध का उचित अवसर आता है तो मेरा दूध प्राण ले लेता है।

विशेष-
1. वयण सगाई और व्यतिरेक अलंकार प्रयुक्त हुए हैं।
2. भाषा-राजस्थानी, वीर रस, ओज गुण का प्रयोग हुआ है।

6. नह पड़ौस कायर नरां, हेली! वास सुहाय।
बळिहारी जिण देसड़े, माथा मोल बिकाय॥
विण मरियां, विण जीतियां, जे धव आवै धाम
पग-पग चूड़ी पाछट्, तो रावत-री जाम॥
गोठ गया सब गेह-रा बणी अचाणक आय
सिंघण-जायो सिंघणी, लीधी तेग उठाय॥

कठिन शब्दार्थ-नह = नहीं। हेली = सखी। वास = निवास। देस; = देश पर। धव = पति। धाम = नगर। पाछटू = तोड़कर बिखेर देंगी। रावत = राजपूत। जाम = संतान। गोठ = भोजन। गेह-रा = घर के। वणी = बन पड़ी, घटित हुई। सिंघण = सिंह। तेग = तलवार।

संदर्भ एवं प्रसंग-सूर्यमल्ल मीसण रचित ‘वीर सतसई’ से उधृत इन पंक्तियों में राजस्थान की वीर पत्नियों के स्वाभिमान, और वीरतापूर्ण संस्कारों को प्रकट किया है। ये वीर पत्नियाँ अपने पति के वीरत्व की ही प्रशंसक हैं।

व्याख्या-वीर पत्नी अपनी सखी से कहती है कि हे सखी, मुझे तो कायर-लोगों के पड़ोस में बसना भी अच्छा नहीं लगता। मैं तो उस देश पर न्योछावर होती हैं, जहाँ सिरों का मोल होता है। अर्थात् स्वामी के अन्न का ऋण सिर देकर चुकाया जाता है। वीर पत्नी का कथन है कि यदि मेरा पति बिना मरे अथवा बिना शत्रु को जीते घर में आया तो मैं अपनी चूड़ियों के टुकड़े-टुकड़े करके उसके पग-पग पर बिछा दूंगी। तभी मैं अपने आपको राजपूत की सन्तान कहलाने योग्य बन सकती हूँ। कायर पति की पत्नी होने की अपेक्षा मैं विधवा होना पसन्द करूंगी। वीर पत्नी समय आने पर दुश्मनों का सामना भी कर सकती है। एक बार परिवार के सभी लोग भोजन करने हेतु बाहर गए हुए थे, तभी ऐसी घटना हुई कि शत्रु ने आक्रमण कर दिया। ऐसे समय में उसे सिंह की पुत्री सिंहनी ने स्वयं तलवार को उठा लिया और दुश्मनों पर टूट पड़ी।

विशेष-
(1) पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुए हैं।
(2) वीर रस, ओज गुण, चाक्षुष बिम्ब हैं।

7. घोडा चढणो सीखिया, भाभी! किसड़े काम?
बंब सुणीजै पारको, लीजै हाथ लगाम॥
भाभी! हूँ डोढ्यां खडी, लोधां खेटक-रूक
थे मनवारो पाहुणां, मेड़ो झाले बँदूक॥

कठिन शब्दार्थ-बंब = नगाड़ा, युद्ध का बोजा। पारको = दूर के शत्रु का। डोढ्यां = द्वार पर। खेटक = ढालु। रूक = तलवार। पाहुणां = मेहमान (शत्रु)। मेड़ो = छत, अटारी। झाल = हाथ में लेकर।

संदर्भ एवं प्रसंग-‘वीर सतसई’ से उद्धृत इन पदों में कवि सूर्यमल्ल मीसण ने वीर देवरानी की प्रशंसा की है, जो आपद्-काल में शत्रुओं का सामना करने के लिए उत्सुक है। देवरानी-जिठानी का संवाद वीरत्वपूर्ण वचनों से ओतप्रोत है।

व्याख्या-देवरानी भाभी से कह रही है कि शत्रु ने आक्रमण कर दिया है और घर में कोई पुरुष नहीं है। तब जिठानी जी आपने घोड़ों पर चढ़ना किस उद्देश्य से सीखा है। इस समय शत्रुओं का नगाड़ा सुनाई पड़ रहा है। अतः उनसे लोहा लेने के लिए अपने हाथ में घोड़े की लगाम थाम लो। घर में कोई पुरुष नहीं है और शत्रु ने आक्रमण कर दिया तब वीर देवरानी अपनी जिठानी से कहती है कि भाभी मैं तलवार तथा ढाल लेकर द्वार पर खड़ी होती हूँ और तुम बन्दूक हाथ में लेकर अटारी पर जाओ। वहाँ से उन मेहमानों (शत्रुओं)
का अच्छा आतिथ्य करो।

विशेष-
(1) स्वभावोक्ति अलंकार प्रयुक्त हुआ है।
(2) वीर रस, ओजगुण का प्रयोग हुआ है।
(3) भाषा राजस्थानी है।

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