RBSE Solutions for Class 9 Physical Education Chapter 8 प्राथमिक उपचार एवं सुरक्षा शिक्षा

Rajasthan Board RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 प्राथमिक उपचार एवं सुरक्षा शिक्षा

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक चिकित्सक के दो प्रमुख गुण लिखें।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सक के दो प्रमुख गुण–निम्न

  1. प्राथमिक चिकित्सक अच्छे स्वास्थ्य व मजबूत हृदय वाला होना चाहिए।
  2. प्राथमिक चिकित्सक को चतुर एवं दक्ष होना चाहिए।

प्रश्न 2.
एक स्वस्थ व्यक्ति का तापमान कितना होता है ?
उत्तर:
एक स्वस्थ व्यक्ति का तापमान 98.4 होता है।

प्रश्न 3.
नकसीर किसे कहते हैं?
उत्तर:
कभी-कभी खेल के मैदान पर अत्यधिक गर्मी के कारण अथवा खिलाड़ियों के आपस में टकराने से नाक के अन्दर की पतली व मुलायम झिल्ली से रक्त स्राव हो जाता है जिसे नकसीर कहते हैं।

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक चिकित्सा क्या है? अवधारणा स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा – दुर्घटना स्थल पर चिकित्सक के आने से पूर्व दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को जो चिकित्सकीय सहायता प्रदान की जाती है वह प्राथमिक चिकित्सा कहलाती है।
अवधारणा – प्रकृति ने मानव शरीर की सुरक्षा की समुचित व्यवस्था का प्रबन्ध किया है तथापि मानव जीवन अनिश्चितताओं एवं दुर्घटनाओं से परिपूर्ण है। प्रत्येक मनुष्य प्रत्येक समय अपनी प्रगति व विकास के लिए प्रयत्नशील रहता है। इसके लिए वह दिन-रात कार्य करता है। फिर भी मानव जीवन एक ऐसे वातावरण से गुजरता है कि किसी भी समय किसी भी प्रकार की दुर्घटना की संभावना बनी रहती है। आधुनिक युग विज्ञान का युग है। अतः दैनिक जीवन में आधुनिक उपकरणों के प्रयोग आदि से छोटी-छोटी दुर्घटनाएँ सदैव होती रहती हैं। अत: ऐसी स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति को एवं गृहिणी को अवश्य ही प्राथमिक चिकित्सा का ज्ञान होना अनिवार्य है। जिससे दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की जान बचाई जा सके।

प्रश्न 2.
प्राथमिक उपचार पेटी (फर्स्ट एड बॉक्स) क्या है? इसके तैयार करने के लिए आवश्यक वस्तुएँ लिखिए।
उत्तर:
प्राथमिक उपचार पेटी (फर्स्ट एड बॉक्स)प्राथमिक चिकित्सा हेतु एक बॉक्स (बैग या पेटी) रखना आवश्यक है, जिसमें समस्त आवश्यक दवाइयाँ एवं तुरन्त उपचार करने का सामान रखा जा सके, उसे प्राथमिक उपचार पेटी या फर्स्ट एड बॉक्स कहते हैं। प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स में रखी जाने वाली दवाइयाँ व सामान –
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प्रश्न 3.
दुर्घटना होने पर प्राथमिक उपचार क्यों आवश्यक है? कारण बताइये।
उत्तर:
चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध होने तक पीड़ित व्यक्ति की स्थिति न बिगड़ने देने के लिए दुर्घटना की स्थिति के अनुसार उचित प्राथमिक उपचार आवश्यक है।

प्रश्न 4.
मूच्र्छा ( बेहोशी) आने पर अपनाए गए किन्हीं चार उपचारों को लिखिए।
उत्तर:
मूच्र्छा (बेहोशी) आने पर अपनाए गए चार उपचार निम्न हैं –

  1. रक्तस्राव के कारण यदि मूच्र्छा आ रही है तो सर्वप्रथम रक्त को बहने से रोका जाना चाहिए।
  2. रोगी को खुले हवादार और शान्त स्थान में ले जाना चाहिए।
  3. लोगों की आस-पास लगी भीड़ को हटा देना चाहिए।
  4. रोगी के मुँह पर ठण्डे पानी के छींटे मारने चाहिए। तथा पीने के लिए ठण्डा पानी देना चाहिए।

प्रश्न 5.
मोच आने पर अपनायी जाने वाली प्राथमिक चिकित्सा बताइये।
उत्तर:
मोच आने पर अपनायी जाने वाली प्राथमिक चिकित्सा –

  1. जोड़ के स्थान पर कसकर पट्टी बाँध दें। उस अंग को आराम दें।
  2. रोगी के उस अंग का हिलना-डुलना बिल्कुल बंद कर दें।
  3. पट्टी को बर्फ या ठण्डे पानी से गीला कर दें।
  4. कभी-कभी गर्म पानी से सेक दें।
  5. मोच आये अंग पर कडुए तेल को गर्म कर धीरे धीरे मालिश करने पर भी आराम मिलता है।
  6. आयोडेक्स की मालिश करना भी उत्तम रहेगा।

प्रश्न 6.
रक्तस्राव होने के कोई दो कारण एवं उसे रोकने के चार उपाय बताएँ।
उत्तर:
रक्तस्राव होने के दो कारण – निम्न हैं –

  1. खेल के मैदान में कभी-कभी आपस में टकराने से या अचानक मैदान में स्थित किसी भी चीज से टकराने से या गिरने से रक्तस्राव होने लगता है।
  2. रक्तनलिका के कट जाने से या फिर किसी कोशिका के टूट जाने से रक्तस्राव होता है।

रोकने के उपाय-निम्न हैं –

  1. घायल व्यक्ति को लिटा देना चाहिए। क्योंकि बैठे रहने के बजाय लिटा देने पर रक्त कम बहता है।
  2. रक्त बहने वाले अंग को ऊपर उठा देना चाहिए।
  3. घाव पर मजबूती से कपड़ा बाँध देना चाहिए। यदि कपड़े से कोई असर नहीं हो तो घाव से दिल की ओर वाले निकटतम स्थान पर दबाव डालना चाहिए। दबाव बिन्दु पर टुर्नीकेट बाँध देना चाहिए।
  4. यदि कोई विजातीय पदार्थ घाव में फँसा हुआ होतो सर्वप्रथम सावधानी से उसे निकाल दें।

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
जलना या झुलसना दुर्घटना के लक्षण व उपचार लिखिए।
उत्तर:
जलना या झुलसना – प्रायः हम कभी-कभी स्टोव या चाय बनाते समय, कपड़ों पर प्रेस करते समय या प्रयोगशाला में प्रयोग करते समय हाथ, पैर या अन्य शरीर के अंगों को जला लेते हैं। आग, बिजली, अम्ल या गर्म धातु से अथवा उबलते पानी या दूध या गर्म तेल, घी आदि से त्वचा झुलस जाती है। लक्षण

  1. जलन या झुलसने से त्वचा लाल रंग की हो जाती है परन्तु नष्ट नहीं होती।
  2. शरीर पर फफोले पड़ जाते हैं।

उपचार –

  1. यदि जले हुए अंग पर कपड़ा चिपक गया हो तो सर्वप्रथम कपड़े को सावधानीपूर्वक अलग करना चाहिए।
  2. शरीर पर फफोले (छाले) पड़ गए हों तो उन्हें फोड़ना नहीं चाहिए।
  3. घावों पर पानी नहीं डालना चाहिए।
  4. जले अंग पर नारियल का तेल लगाना लाभदायक रहता है।
  5. घाव पर बोरोलीन या बरनोल या साधारण बोरिक मलहम या एन्टिसेप्टिक क्रीम लगानी चाहिए।
  6. टेनिक अम्ल का घोल लगाना भी लाभदायक होता
  7. जले हुए स्थानों पर खाने के सोड़े के घोल से ड्रेसिंग करना चाहिए।
  8. घायल व्यक्ति को गर्म रखने के लिए गर्म चाय या कॉफी देवें।।
  9. एक भाग अलसी के तेल में एक भाग चूने का पानी मिलाकर स्वच्छ कपड़े या फाहा (रूई), द्वारा जले हुए भाग पर लगाना लाभदायक होगा।
  10. जले हुए व्यक्ति को शीघ्रातिशीघ्र डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
  11. घाव होने पर जले हुए अंग पर ठंडा पानी डालें जब तब कि जलन कम न हो जाए।
  12. खिड़की, दरवाजे खोल कर स्वच्छ हवा आने दें, ताकि धुएँ से दम न घुटे।
  13. आग यदि कपड़ों में लगी हुई हो तो मरीज को तुरन्त कम्बल या दरी इत्यादि से ढककर आग बुझाने का प्रयास करनी उत्तम होगा।

प्रश्न 2.
हड्डी टूटने पर प्राथमिक उपचारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हड्डी टूटने पर प्राथमिक उपचारजाँघ तथा टाँग की हड्डियों की टूट –
जाँघ –

  1. घायल व्यक्ति को सीधे पीठ के बल पर लिटा देना चाहिए और सावधानीपूर्वक दोनों हाथों से घायल टाँग को खींचकर दूसरे पैर को सीध में लाना चाहिए।
  2. दोनों टाँगों को एक साथ बाँध देना चाहिए। यदि टाँगों के बराबर खपच्ची, लाठी या छाता न हो तो दोनों टाँगों को परस्पर मजबूती से बाँध देना चाहिए।

टाँग –

  1. इसका भी जाँघ की हड्डियों की टूट के समान ही उपचार करना चाहिए।
  2. खपच्ची इतनी बड़ी हो कि तलुए से लेकर जाँघ तक पहुँच सके।
  3. खपच्ची को पूरी टाँग के बाहर रखकर टूटी हड्डी के नीचे और ऊपर ठीक घुटने पर तथा दोनों टकनों के चारों ओर पट्टी से बाँध देना चाहिए।
  4. खोपड़ी की हड्डी टूटने पर-खोपड़ी के निचले भाग की हड्डी सिर के बल गिर पड़ने पर जबड़े पर जोर को धक्का लगने से टूट सकती है।

उपचार –

  1. घायल व्यक्ति को कुर्सी पर सावधानीपूर्वक सीधा बिठा देना चाहिए, जिससे उसका सिर ऊपर रहे।
  2. साफ कपड़े के टुकड़ों की तहें बनाकर तथा ठण्डे पानी में भिगोकर घायल व्यक्ति के सिर पर रखना चाहिये।
  3. इसके अतिरिक्त प्राथमिक चिकित्सा करने वाले को डॉक्टर की सलाह के बिना कुछ भी कार्य नहीं करना चाहिये, नहीं तो मस्तिष्क को चोट आने का भय रहता है। अतः डॉक्टर को बुलाना चाहिए।

हाथ की हड्डी टूट जाने पर एवं ऊपरी बाँह की हड्डी की टूट –
घायल व्यक्ति को सीधा बिठा देना चाहिए तथा आगे की भुजा की कोहनी को मोड़कर सीधा करना चाहिए। अँगूठा ऊपर की ओर करके आगे की भुजा को स्लिंग या झोली में लटका देना चाहिए कि वह बगल से कोहनी के जोड़ तक फैल जाये। इसके उपरान्त खपच्चियों को सावधानी से बाँध देना चाहिए।

अग्रबाहु की हड्डी की टूट –
इसमें दो चौड़ी खपच्चियों को इस प्रकार रखना चाहिये कि वे आपस में समकोण बना रही हों। इस प्रकार खपच्चियों को रखकर मजबूती से बाँध देनी चाहिए। खपच्ची बाँधने के बाद हाथ धीरे-धीरे कोहनी पर मोड़िए। मोड़ने के बाद अँगूठा ऊपर की ओर तथा हथेली सीने की ओर होनी चाहिए। अग्रबाहु को खप्पची के साथ तीन-चार जगह बाँधकर स्लिंग पर लटका देना चाहिए।

हथेली या अँगुलियों की हड्डी की चोट –
पूरी हथेली की लम्बाई की एक चौड़ी खपच्ची लेकर उस पर रूई रखिये तथा ऊपर से हथेली को सावधानीपूर्वक सीधा रख दीजिए। एक तिकोनी पट्टी इस प्रकार लो कि उसका बीच का भाग उँगलियों पर रहे। फिर दोनों सिरों को खपच्ची के नीचे की ओर से घुमाकर ऊपर लाओ तथा एक-दूसरे से बांध दो।

प्रश्न 3.
जल में डूबने पर किये जाने वाले उपचार तथा कृत्रिम श्वसन क्रिया देने हेतु सिलवेस्टर विधि व शेफर विधि का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
जल में डूबने पर उपचार –

  1. डूबते हुए व्यक्ति के बाल या कपड़े पकड़ कर खींचकर किनारे तक लायें।
  2. पानी से बाहर निकालते ही रोगी के नाक, गले तथा मुँह आदि से कीचड़, मिट्टी साफ की जाए।
  3. मरीज को बाहर निकालने पर उसकी श्वसन क्रिया पर ध्यान दें, क्योंकि फेफड़ों में पानी भर जाता है।
  4. डूबे हुए व्यक्ति के कपड़े उतार देने चाहिये, फिर उसे उल्टा लटकाना चहिए। इस प्रकार उसके मुँह से कुछ पानी बाहर निकल जायेगा।
  5. उसके पश्चात् उसे पेट के बल लिटा कर पेट के नीचे हाथ डाल कर ऊपर उठाओ। इस प्रकार शेष पानी भी मुँह व नाक के मार्ग से बाहर निकल जायेगा।
  6. रोगी को गर्म चाय या कॉफी देनी चाहिए। अनेक बार व्यक्ति डूबने से अर्द्ध-मूर्छित या मूर्छित हो जाता है। इस दशा में रोगी को कृत्रिम श्वास दिया जाना आवश्यक होता है ताकि रोगी की क्रिया पुनः निरन्तर हो जाये।

सिलवेस्टर विधि – इस विधि में रोगी को सीधा चित्त लिटाया जाता है। उसके कंधों के नीचे तकिया रखकर दूसरे व्यक्ति द्वारा उसकी जीभ बाहर खींची जाती है। फिर घुटने के बल रोगी के पीछे बैठकर एवं कोहनी के नीचे उसके हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हैं। उन्हें दायें-बायें, आगे-पीछे ले जाते हैं तथा पसलियों के अगल-बगल हाथों एवं कोहनियों को दबाते हैं। यह काम तब तक करते हैं जब तक कि रोगी स्वाभाविक रूप से श्वास लेना शुरू नहीं कर देता है।

शेफर विधि – इस विधि में डूबे व्यक्ति को पेट के बल लिटा कर उसके दोनों हाथ सिर की सीध में फैला देते हैं। उसके पश्चात् एक तरफ घुटनों के बल बैठाना चाहिए तथा पीठ पर हथेलियों से दबाव धीरे-धीरे डालें ताकि फेफड़ों में से हवा निकलेगी। धीरे-धीरे दबाव कम करें, ताकि फेफड़ों में हवा जाये। इस क्रिया को तब तक करें जब तक कि रोगी को श्वास आना शुरू न हो।

प्रश्न 4.
फ्रेक्चर के कौनसे कारण हो सकते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
फ्रेक्च – शरीर की स्थिरता हड़ियों पर निर्भर करती है। जब किसी गहरे आघात के कारण प्रायः हड्डी टूट जाती है तो उस दशा को फ्रेक्चर या अस्थि भंग कहते हैं। उस भाग में सूजन आ जाती है तथा पीड़ा होती है। व्यक्ति को प्रभावित अंग के हिलाने-डुलाने में बड़ी कठिनाई होती है। इसके लक्षण निम्न –

  1. हड्डी टूटने पर आस-पास सूजन आ जाती है।
  2. अस्थि भंग के स्थान पर दर्द होता है।
  3. टूटे हुए स्थान से हड़ियों से कट-कट की आवाज आती है।
  4. जिस अंग में चोट लगती है, उसमें हिलाने-डुलाने की शक्ति नहीं रहती है तथा टूटे हुए भाग को उठाने में कठिनाई होती है।
  5. यदि अस्थि भयंकर रूप से टूटी है, जो घायल व्यक्ति का सम्पूर्ण शरीर अशक्तता की शिकायत करता है तथा मूच्र्छा (बेहोशी) भी आ जाती है।

हड्डी की टूट के प्रकार निम्न हैं –

  1. साधारण अस्थिभंग – जब हड्डी बिना किसी घाव के टूटी हो, स्नायु में हल्की चोट हो और हड्डी अपने स्थान से अधिक विचलित न हो, तो वह साधारण अस्थि-भंग है।
  2. विषम अस्थिभंग – इसमें अस्थिभंग के साथ-साथ स्नायु में बाह्य घाव हो जाता है।
  3. जटिल अस्थिभंग – हड्डी टूटने के साथ-साथ शरीर के किसी भीतरी कोमल अंग अथवा रक्तवाहिनी शिरा में चोट आ जाये तो उसे जटिल या पेचीदा अस्थिभंग कहते हैं।
  4. कच्ची टूट – छोटे बालकों की हड़ियाँ बड़ों की अपेक्षा आसानी से नहीं टूटतीं बल्कि लचककर या झुककर टेढ़ी हो जाती हैं, तो उसे कच्ची टूट कहते हैं।
  5. पच्चड़ी टूट – जब टूटी हड्डियों के सिरे एक-दूसरे में फँस जाते हैं, तो विषम स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसे पच्चड़ी टूट कहते हैं।
  6. बहुखण्ड टूट – कभी-कभी भारी आघात पहुँचने के कारण हड्डियाँ छिन्न-भिन्न हो जाती हैं और उनके छोटे-छोटे टुकड़े भी हो जाते हैं जिनका उपचार अत्यन्त सावधानी से ही किया जा सकता है।

प्रश्न 5.
घाव कितने प्रकार के होते हैं? घाव की मरहमपट्टी किस प्रकार करेंगे, लिखिए ?
उत्तर:
घाव-खेल के मैदान में खिलाड़ी को खेलते समय ऐसी चोट लगती है, जब त्वचा तथा उसके नीचे के तन्तु फट जाते हैं या कट जाते हैं। उसे ही घाव कहते हैं। घाव निम्न प्रकार के होते हैं।

  1. कटा हुआ घाव – ये घाव गहरे होते हैं। चोट लगने से धमनियाँ या नाड़ियाँ भी कट जाती हैं। काँच घुसने, चाकू या ब्लेड से घाव हो जाते हैं।
  2. कुचला हुआ घाव – कई बार हाथ या जोड़ की अँगुलियों के कुचल जाने से घाव हो जाते हैं जिससे नील भी पड़ जाती है एवं पीड़ा भी होती है।
  3. फटा हुआ घाव – यह घाव कटे या कुचले हुए घाव से अधिक खतरनाक होता है। घाव के किनारे फटे-फटे से एवं टेढ़े-मेढ़े होते हैं।

इसमें से रक्त अधिक नहीं बहता, किन्तु इनके विषैले होने का अधिक भय रहता है। घाव के भर जाने पर भी शरीर पर स्थायी एवं भद्दे निशान पड़ जाते हैं। घाव की मरहम-पट्टी – सर्वप्रथम घाव को रूई से पूर्णतः साफ करना चाहिए। धूल या गंदगी से विषाक्त होने की संभावना रहती है। इसके पश्चात् घाव को डिटॉल या ‘कार्बोलिक एसिड से धोकर उस पर टिंचर आयोडीन या स्प्रिट लगा कर पट्टी बाँध देनी चाहिए। घाव में यदि कोई वस्तु घुस गई हो, तो उसे सावधानी से निकाल दिया जाए। यदि घाव कम गहरा हो, तो थोड़ा-सा रक्त बह जाने देना चाहिये ताकि कीटाणु बाहर निकल जावें। घाव में पानी नहीं लगाना चाहिए। गहरे घाव पर सल्फोनेमाइड पाउडर अच्छी तरह भुरक कर तथा रूई रखकर बाँध देना चाहिए।

प्रश्न 6.
खेलते समय चोट लगने पर किस-किस प्रकार के उपचार किये जा सकते हैं? वर्णन कीजिये।
उत्तर:

  1. जोड़ के स्थान पर कसकर पट्टी बाँध देवें। उस अंग को अवश्य आराम देवें।
  2. रोगी के उस अंग का हिलना-डुलना बिल्कुल बंद कर देवें।
  3. पट्टी को बर्फ या ठण्डे पानी से गीला कर देवें।
  4. कभी-कभी गर्म पानी से सेंक देवें।
  5. मोच आये अंग पर कडुए तेल को गर्म कर धीरे धीरे मालिश करने पर भी आराम मिलता है।
  6. आयोडैक्स की मालिश करना भी उत्तम रहेगा।

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
रोगी का तापमान किससे लिया जाना चाहिए?
उत्तर:
थर्मामीटर से।

प्रश्न 2.
धमनी का रक्त कैसा होता है?
उत्तर:
धमनी का रक्त चमकीला, लाल तथा शुद्ध होता है।

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 लघूत्तरात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक चिकित्सा के उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
प्राथमिक चिकित्सा के उद्देश्य –

  1. घायल व्यक्ति की तात्कालिक सहायता करना घायले व्यक्ति की वास्तविक चिकित्सा तो चिकित्सक ही करता है किन्तु चिकित्सक तक पहुँचने के लिए घायल की स्थिति की गम्भीरता से बचने के लिए यथासम्भव तुरन्त ही उपलब्ध साधनों के अनुसार उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करना प्राथमिक चिकित्सा का प्रथम उद्देश्य है।
  2. जीवन – रक्षा करना – प्राथमिक चिकित्सा का दूसरा प्रमुख उद्देश्य घायल व्यक्ति की जीवन रक्षा करना है। इसके लिए प्राथमिक चिकित्सक को अपनी सूझबूझ व विवेक से काम लेना होता है। उसे उसकी जीवन-रक्षा के लिए चिकित्सकीय सहायता उपलब्ध होने तक सभी प्रयत्न एवं उपाय करने चाहिए।
  3. दुर्घटना की गंभीरता को बढ़ने से रोकना – प्राथमिक चिकित्सा करने वाला चिकित्सक नहीं होता। यह चिकित्सा केवल उतने ही समय के लिए की जाती है जब तक डॉक्टरी सहायता उपलब्ध न हो जाये। प्राथमिक चिकित्सा का कार्य आकस्मिक दुर्घटनाओं के अवसर पर तत्काल प्राप्त सामान के आधार पर रोगी का यथासमय उपचार करने से है।

प्रश्न 2.
नकसीर आने पर क्या उपाचार किया जाना चाहिए ?
उत्तर:
नकसीर आने पर उपचार –

  1. बालक को पीछे की ओर सिर झुकाकर कुर्सी पर खुली खिड़की के सामने वायु की ओर बैठा देना चाहिये और हाथ से सिर ऊपर उठा लेना चाहिए।
  2. नाक, चेहरे या गर्दन के पीछे शीतल जल में कपड़ा भिगोकर रखना चाहिए।
  3. गर्दन और छाती पर कपड़ों को ढीला कर देना चाहिए।
  4. पैरों को गर्म पानी में डुबोकर रखना चाहिए।
  5. रोगी को जोर से नाक साफ नहीं करने देना चाहिये। उसे मुँह से श्वास लेने देना चाहिए।
  6. बर्फ के पानी में फिटकरी के घोल से नाक साफ करनी चाहिए।
  7. डॉक्टरी सहायता का तुरन्त प्रबन्ध करना चाहिए।
  8. रक्त स्राव को रूई या गाज-पट्टी भरकर बंद कर देना चाहिए।
  9. रोगी को कोई भी गरम पेय नहीं देना चाहिए।
  10. हाइड्रोजन पराक्साइड या पीली मिट्टी की ढेली को पानी में भिगोकर रोगी को सुंघा देना चाहिए।

RBSE Class 9 Physical Education Chapter 8 निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 1.
प्राथमिक चिकित्सा में क्या-क्या सावधानियाँ रखी जानी चाहिए?
उत्तर:
हमारे दैनिक जीवन में आकस्मिक घटनायें घटित होती ही रहती हैं। इन अवस्थाओं में डॉक्टर को बुलाना पड़ता है। डॉक्टर के आने तक रोगी व्यक्ति को तात्कालिक उपचार दिया जाता है तथा डॉक्टर के परामर्श देने के बाद भी रोगी व्यक्ति का खास ध्यान रखा जाता है। इसके लिए मुख्य रूप से निम्न सावधानियाँ रखना आवश्यक हैं –
(1) नाड़ी की गति का परीक्षण – हृदय की धड़कन की अवस्था का पता नाड़ी की गति से चलता है। नाड़ी की गति का अनुभव कई स्थानों पर किया जाता है लेकिन उपयुक्त स्थान कलाई के सामने के भाग में अँगूठे की दिशा में दो अँगुलियाँ रखने से किया जा सकता है। सामान्य नाड़ी की गति 72 से 80 बार प्रति मिनट होती है। नाड़ी की निश्चित गति जानने के लिए प्रत्येक 15 मिनट बाद नाड़ी को गिनना चाहिए। प्रत्येक बार एक ही गणना आये तो नाड़ी स्थिर एवं निश्चित है, अन्यथा अस्थिर एवं अनिश्चित है।

(2) रोगी का तापमान लेना – रोगी का समय-समय पर तापमान लेते रहना चाहिए एवं उसकी तारीख व समय लिखते रहना चाहिए। तापमान थर्मामीटर से लिया जाना चाहिए। थर्मामीटर को रोगी की जीभ के नीचे रखना चाहिए। यहाँ दो-तीन मिनट रखना चाहिए। इसके पश्चात् थर्मामीटर निकालकर तापमान पढ़ना चाहिए। सामान्य व स्वस्थ व्यक्ति का तापमान 98.4°F होना चाहिए। छोटे बच्चों के मुँह में थर्मामीटर नहीं लगाया जा सकता। अत: थर्मामीटर उनकी बगल या जाँघ पर लगाना चाहिए।

(3) श्वास प्रक्रिया का निरीक्षण – रोगी की श्वास प्रक्रिया का निरीक्षण करना चाहिए। श्वास की गति जानने के लिए छाती या पेट के ऊपर हाथ रखकर धड़कन प्रति मिनट गिननी चाहिए। सामान्यतः श्वास की गति एक मिनट में 15 से 20 तक होती है।

(4) रोगी को स्नान कराना – रोगी को गर्म पानी से स्नान कराना चाहिये। यदि रोगी पूर्ण स्नान की स्थिति में नहीं हो तो उसके शरीर को तौलिया गीला करके पोंछ देना चाहिए। स्नान कराते समय कमरे की खिड़कियाँ बंद कर देनी चाहिए।

(5) दाँत, जीभ एवं मुँह की सफाई – निरन्तर रोगी के दाँत व जीभ की सफाई करवाई जानी चाहिए। रोगी यदि बैठने लायक हो तो उसके पीछे तकिया लगाकर उसकी जीभ व दाँत साफ करवाकर कुल्ले करा देने चाहिए। कुल्ले सदैव विसंक्रामक घोल से करवाने चाहिए। रात्रि में सोने से पूर्व अच्छी तरह कुल्ला करवाना चाहिये।

(6) मलमूत्र विसर्जन करना – जो रोगी शौचालय तक नहीं जा सकते, उन्हें शौच आदि बिस्तर पर ही बर्तन में कराना चाहिए। मलमूत्र कराने से पूर्व बिस्तर पर रबर को बिछा देना चाहिए जिससे पानी के छींटे बिस्तर पर न पड़े। मल-त्याग के बाद सादे पानी, टायलेट पेपर, गीली रूई से गुदा मार्ग को साफ करना चाहिये। यदि रोगी शौचालय तक जाने लायक हो तो उसे सहारा देकर शौचालय तक ले जाना चाहिए। शौच वाले जल में डिटॉल डाल दें। रोगी के हाथ कीटाणुनाशक साबुन से धुलवाने चाहिए।

(7) रोगी को दवा देना – रोगी को दवा समय पर सावधानीपूर्वक देनी चाहिए। थोड़ी सी असावधानी से भयंकर परिणाम निकल सकते हैं। रोगी को दवा डॉक्टर के निर्देशानुसार समय, मात्रा, प्रयोग विधि के अनुसार देनी चाहिए।

प्रश्न 2.
जानवर के काटने पर की जाने वाली प्राथमिक चिकित्सा को समझाइये।
उत्तर:
जानवर के काटने पर-कुत्ते, बंदर या जंगली जानवर के काटने पर रेबीज होने का खतरा रहता है। यह बहुत ही खतरनाक बीमारी है, जिसमें मृत्यु होना निश्चित है। कुत्ते या किसी जानवर के काटने पर प्राथमिक चिकित्सा है।

  1. साँप के काटने पर-सर्प के काटने के स्थान के थोड़ा ऊपर की ओर रूमाल, टाई, जूते के फीते या किसी अन्य उपयुक्त वस्तु से कसकर बाँध देना चाहिए।
  2. सर्प काटे जाने के स्थान के आसपास तेज चाकू या ब्लेड से काट देना चाहिए।
  3. रोगी को नींद नहीं लेने देना चाहिए।
  4. रोगी को गर्म दूध, चाय या कॉफी पीने देनी चाहिए।
  5. रोगी को लिटाकर काटे हुए शेष भाग को नीचे रखें।
  6. श्वास रुकने पर उसे कृत्रिम श्वास दें।
  7. रोगी के पास ज्यादा भीड़ न हो तथा उसे शुद्ध हवा मिलती रहे।
  8. धाव को पोटेशियम परमैंगनेट के घोल से धो देवें।

पागल कुत्ते के काटने पर – लक्षण –

  1. रोगी को प्रायः पानी से डर लगता है।
  2. रोगी चिंतित एवं एकान्तवासी हो जाता है।
  3. रोगी के गले में दर्द रहता है तथा भोजन निगलने में कठिनाई होती है।

उपचार –

  1. घाव को साबुन, पानी अथवा स्प्रिट से धो लेना चाहिए।
  2. चाय, कहवा, कॉफी गुनगुने पानी में मिलाकर पिला दें।
  3. काटे हुए स्थान के निकट व हृदय के मध्य भाग को कस कर बाँध दें, ताकि रुधिर रोगाणु सहित बाहर निकल जाए।

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